लव, सैक्स और मर्डर

उस दिन तारीख थी 31 जुलाई, 2017. भोर का समय था. नित्य मौर्निंग वौक करने वाले इक्का- दुक्का लोग सड़कों पर आ गए थे. खेतरपाल मंदिर के सामने से गुजरने वाले मेगा हाईवे पर वाहनों की आवाजाही जारी थी. मेगा हाईवे पर बाईं तरफ सड़क किनारे एक युवा महिला की औंधी लाश पड़ी थी. लाश देख कर एक राहगीर ठिठका और स्थिति को समझ कर मोबाइल से थानापुलिस को इस की सूचना दे दी. अज्ञात लाश की सूचना थानाप्रभारी सीआई विजय सिंह को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक राष्ट्रीय अखबार के प्रतिनिधि नरेश असीजा अखबार वितरण व्यवस्था का जायजा ले कर घर लौट रहे थे. उन्हें लाश मिलने की सूचना मिली तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस मृतका की पहचान का प्रयास कर रही थी. नरेश ने उस की पहचान कर दी. बरसों पहले मृतका उन की बिल्डिंग में किराएदार के रूप में रही थी. पत्रकार ने मृतका की पहचान समेस्ता पत्नी श्रवण कुमार के रूप में की. पहचान होने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

प्रथमदृष्टया यह मामला दुर्घटना का लग रहा था. संभवत: मृतका किसी वाहन की टक्कर से हाईवे पर गिर गई थी, जिस से उस का सिर फट गया था. लेकिन घटनास्थल पर मिले हुए साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे.

जिस जगह पर समेस्ता का शव मिला था, उस के पास मिट्टी में छोटे वाहन के टायरों के निशान दिख रहे थे. समेस्ता के शरीर पर टक्कर का कोई निशान नहीं था. पुलिस को लगा कि मृतका की हत्या कहीं और कर के लाश को यहां फेंक दिया गया है, ताकि मामला सड़क दुर्घटना का लगे.

समेस्ता की मौत का मामला संदिग्ध लग रहा था. बाल की खाल निकालने वाले माने जाने वाले सीआई विजय सिंह मीणा ने इस मामले को एक चैलेंज के रूप में लिया. विजय सिंह ने मामले के खुलासे के लिए एसआई छोटूराम तिवाड़ी, कांस्टेबल सुखदेव सिंह बेनीवाल, रीडर अमर सिंह, लक्ष्मीनारायण, अमनदीप व सुभाष को शामिल कर के एक टीम बना ली.

सुखदेव बेनीवाल का शहर में ही नहीं, देहात क्षेत्र में भी मुखबिरों का सशक्त नेटवर्क था. एसआई छोटूराम व सुखदेव ने मेगा हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू कर दिए. अथक प्रयासों के बाद एक हार्डवेयर शौप पर लगे कैमरे में समेस्ता दिखाई दी. वह संभल कर सड़क  पार कर रही थी. कैमरे के इस दृश्य को दोनों पुलिसकर्मियों ने जांच अधिकारी से साझा किया. जांच टीम ने विचारविमर्श के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि समेस्ता ने जितनी सावधानी से सड़क पार की थी. ऐसे में वह सड़क हादसे की शिकार नहीं हो सकती थी.

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पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाने के लिए मेगा हाईवे के 2 किलोमीटर के लंबे दायरे को खंगालना शुरू किया. एक वर्कशाप में लगे कैमरे की फुटेज में एक पिकअप गाड़ी दिखाई दी. 10 मिनट के अंतराल में 3-4 बार आनेजाने से पिकअप संदिग्ध के दायरे में आ गई. एक बार पिकअप एक झाड़ी के पास रुकी तो झाडि़यों में छिपा एक शख्स पिकअप के पास आता दिखाई दिया. यह दृश्य भी कैमरे में कैद हो गया था.

सुखदेव का एक मुखबिर जो समेस्ता के ही मोहल्ले में रहता था, ने भी जांच टीम को एक सुराग दिया. सुराग के मुताबिक समेस्ता और उस के पति की जरा भी नहीं बनती थी. उस का पति श्रवण कुमार सूरतगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह कभीकभार अपने 2 बच्चों के लिए रावतसर आ जाता था.

उधर दुर्घटनास्थल पर समेस्ता के शव की पहचान करने वाले पत्रकार नरेश असीजा घटनास्थल से सीधे समेस्ता के घर गए. श्रवण और समेस्ता का सगा भाई कालूराम घर में ही मिले. उन्होंने पूछा, ‘‘अरे श्रवण, समेस्ता दिखाई नहीं दे रही, कहां गई है वह?’’

‘‘अंकल, वह मंदिर गई थी, आती ही होगी.’’ श्रवण ने जवाब दिया.

नरेश असीजा समेस्ता के भाई कालूराम को साथ ले कर सीधे मोर्चरी पहुंचे. कालूराम ने मृतका की पहचान अपनी बहन समेस्ता के रूप में कर दी. कालूराम की तहरीर पर थाने में अज्ञात के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रवण 4 दिनों से रावतसर में ही था, जबकि कालूराम 2 दिन पहले ही रावतसर आया था.

समेस्ता कौन थी और बेमौत क्यों मारी गई, यह जानने के लिए हमें डेढ़ दशक पीछे लौटना पड़ेगा. समेस्ता श्रीगंगानगर निवासी पृथ्वीराज की बेटी थी. सन 2001 में समेस्ता की शादी हनुमानगढ़ जिले के मसीतावाली गांव निवासी हरलाल टाक के बेटे सीताराम टाक से हुई थी. सीताराम का ममेरा भाई था श्रवण कुमार.

श्रवण कुमार रातवसर तहसील के गांव सरदारपुरा खालसा में रहता था. कानून की पढ़ाई कर रहे श्रवण कुमार के परिवार की माली हालत अच्छी थी. श्रवण एक दिन अपने भाई सीताराम से मिलने बाइक से मसीता वाली आया. उस वक्त सीताराम खेतों पर गया हुआ था. दरवाजा समेस्ता ने खोला.

‘‘जी कहिए.’’ समेस्ता ने पूछा.

‘‘सीताराम भैया से मिलना था, मैं सरदारपुरा से आया हूं. मेरा नाम श्रवण है.’’ जवाब में श्रवण ने बताया.

‘‘आइए बैठिए, आप के भैया खेतों पर गए हैं. आते ही होंगे.’’

श्रवण आंगन में पड़ी कुरसी खिसका कर किचन के सामने ही बैठ गया. सुगठित देह, उभरे वक्षस्थल वाली समेस्ता सुंदर लग रही थी. मीठे बोल और सलीके का उच्चारण करने वाली समेस्ता श्रवण के दिल को छू गई. वह बैठाबैठा समेस्ता के सौंदर्य का रसपान करता रहा. तभी समेस्ता 2 प्यालों में चाय ले कर आ गई. ‘‘लीजिए चाय पीजिए.’’

श्रवण चाय पीने लगा. समेस्ता भी प्याला उठा कर पालाथी मार कर श्रवण के सामने बैठ गई. श्रवण चाय समाप्त करते ही बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी, आप ने तो बड़ी गड़बड़ कर दी, यह आप के हाथों का कमाल है या आप की भावनाओं का, मैं आप की चाय का मुरीद हो गया हूं. लगता है, अब चाय पीने हर रोज आना पड़ा करेगा.’’

‘‘मना किस ने किया है देवरजी, मेरा दरवाजा आप के लिए 24 घंटे खुला रहेगा.’’ समेस्ता ने कहा.

समेस्ता से उस का मोबाइल नंबर ले कर श्रवण लौट गया. उस से हुई संक्षिप्त मुलाकात के आगे श्रवण ने भाई से मिलना जरूरी नहीं समझा.

एक साल बीततेबीतते समेस्ता बिलकुल बदल गई. प्यारमोहब्बत तो दूर, वह पति सीताराम की उपेक्षा तक करने लगी. नतीजतन घर में कलह रहने लगी. इस कलह में श्रवण की चाहत और उस की वकालत ने आग में घी का काम किया. शादी के 2 साल बाद ही श्रवण के उकसाने पर समेस्ता ने सीताराम के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न व दहेज मांगने का आरोप लगा कर अदालत में मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के बाद समेस्ता अपने मायके लौट गई.

इन हालात में समेस्ता व श्रवण के बीच पनपे प्यार ने अपनी राह पकड़ ली थी. श्रवण की चाहत पर समेस्ता उस के बुलाए स्थान पर पहुंच जाती थी. सामाजिक व पारिवारिक वर्जनाएं उन दोनों के सरेआम मिलन में बाधक बन रही थीं. आखिर श्रवण और समेस्ता एक दिन अपनेअपने घरों से फुर्र हो गए. जब पास का पैसा खत्म हो गया तो 10 दिन बाद दोनों घर लौट आए. लेकिन दोनों के घर वालों ने उन से नाता तोड़ लिया. इसी बीच अदालत से सीताराम और समेस्ता का विधिवत तलाक हो गया. तब तक समेस्ता एक बच्ची की मां बन गई थी.

समेस्ता व श्रवण अब निरंकुश हो गए थे. दोनों लिव इन रिलेशनशिप में पतिपत्नी की तरह रावतसर में रहने लगे. श्रवण बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर का खर्च चला रहा था. इस के साथसाथ वह अपनी वकालत की पढ़ाई भी कर रहा था. इसी बीच समेस्ता एक बेटे की मां और बन गई. दूसरी ओर श्रवण ने एलएलबी तथा एलएलएम की डिग्री हासिल कर ली.

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मात्र सैक्स को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले श्रवण और समेस्ता का प्यार अब धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा था. बच्चों की ट्यूशन से होने वाली आय में उस के खर्चे मुश्किल से पूरे होते थे. महंगाई के जमाने में तंगहाली से 2-4 हुए समेस्ता और श्रवण खुदगर्ज बन गए थे. तब सन 2014 में श्रवण समेस्ता को रावतसर में ही छोड़ कर सूरतगढ़ चला गया और वहीं रह कर बैंकिंग सर्विस की कोचिंग लेने लगा.

समेस्ता रावतसर में अपने 2 बच्चों के साथ किराए के एक कमरे में तंगहाली में जीवन गुजार रही थी. बाद में मजबूरी में उस ने विवाह शादियों में बरतन साफ करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही दोनों बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा दिया.

आर्थिक हालात में मामूली सुधार होते ही उस ने घर में ही खाने के टिफिन तैयार करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही अकेले रह रहे 2-3 अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां दोनों समय का खाना भी बना आती थी. अब तक समेस्ता 35 साल की हो चुकी थी. हालातों से लड़ने के जज्बे ने उसे शालीन बना दिया था.

बता दें कि सूरतगढ़ में रह रहे श्रवण ने समेस्ता से अभी अपने संबंध खत्म नहीं किए थे. वह 2-4 महीने में चक्कर लगा कर समेस्ता को संभाल जाता था. श्रवण को यह पता चला कि समेस्ता अधिकारियों के घर जा कर खाना बनाती है तो वह बिफर पड़ा. समेस्ता के रहनसहन में आए बदलाव ने उस के मन में शक का जहर पैदा कर दिया.

श्रवण ने एक दिन उस से कह ही दिया, ‘‘समेस्ता, अब तू किसी के घर खाना बनाने नहीं जाएगी. मुझे पता चल गया है कि खाना बनाने की ओट में तू अधिकारियों के यहां गुलछर्रे उड़ाती है.’’

गुस्से में कांपते श्रवण ने गालियों के साथ समेस्ता को चेतावनी दे डाली.

‘‘देख श्रवण, तूने मुझे अकेली छोड़ कर डांटने या कोई बंदिश लगाने का अधिकार खो दिया है. तूने कभी जानने की कोशिश की है कि मैं किन हालात में जी रही हूं. और हां, वैसे भी अगर मैं किसी के साथ मस्ती करती हूं तो तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? अगर तूने भविष्य में मुझे टोका तो मैं तुझे काट कर फेंक दूंगी.’’ गुस्से में समेस्ता ने श्रवण को खरीखोटी सुना दी.

समेस्ता के तेवर देख कर श्रवण उलटे पैरों सूरतगढ़ लौट गया. यह बात 4-5 महीने पहले की है.

समेस्ता श्रवण की विवाहिता नहीं थी. फिर भी वह उस पर पाबंदी लगाना चाहता था. चूंकि समेस्ता अपने पैरों पर खड़ी हो कर संभल चुकी थी, इसलिए उस ने श्रवण की उपेक्षा करनी शुरू कर दी. जो भी हो, वह श्रवण के बच्चे की मां तो थी ही, वह नहीं चाहता था कि उस के बच्चे की मां पराए मर्दों की रातें गुलजार करे.

इस सब से श्रवण का दिमाग घूम गया. उस ने जुलाई, 2017 में रावतसर के एकदो चक्कर लगाए. वह घर पहुंचता तो बच्चे बताते कि मां फलां अधिकारी के यहां खाना बनाने गई है. श्रवण समेस्ता से बिना मिले ही लौट जाता. उस के मन में स्वयं को मिटाने या समेस्ता को मार डालने के विचार आने लगे.

वकालत की पढ़ाई वह पूरी कर चुका था. अंत में उस ने समेस्ता को मिटाने का मन बना लिया. वह वकील था और उस की सोच थी कि वह फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को ठिकाने लगाएगा, ताकि पुलिस या कानून को उस की करतूत का पता नहीं चल सके.

2 दिनों तक योजना बनाने के बाद श्रवण ने समेस्ता को सड़क दुर्घटना में मारने की योजना बना ली. पर इस योजना को हकीकत में बदलने के लिए उसे एक विश्वसनीय साथी की जरूरत थी. उस ने विचार कर के अपने साथी अमरजीत सिंह को राजदार बनाने का निश्चय किया. अमरजीत सिंह मूलरूप से रायसिंनगर क्षेत्र के चक 38 एनपी का निवासी था. वह सूरतगढ़ में रह कर ट्रांसपोर्ट का काम करता था.

अजरजीत सिंह श्रवण का खास दोस्त था. श्रवण ने अपने मन की बात अमरजीत सिंह को बताई. अमरजीत सिंह जानता था कि श्रवण कानून का अच्छा जानकार है, जो भी योजना बनाएगा, वह फूलप्रूफ होगी. वह श्रवण का साथ देने को तैयार हो गया. वह श्रवण की योजना पर सहमत हो गया. यह बात 26 जुलाई, 2017 की है.

योजना के अनुरूप अमरजीत, जो एक कुशल वाहनचालक था, को किराए की गाड़ी ले कर रावतसर आना था. भोर में समेस्ता जब खेतरपाल मंदिर जाती थी, उसी समय उसे मेगा हाईवे पर गाड़ी चढ़ा कर कुचल डालना था. 27 जुलाई की सुबह श्रवण रावतसर आ गया. अमरजीत भी रात में पिकअप ले कर आ गया.

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अगली सुबह मेगा हाईवे पर निकली समेस्ता इसलिए बच गई, क्योंकि उसी समय जयपुर से आने वाली वीडियो बस खेतरपाल मंदिर बसस्टैंड पर पहुंच गई. अगले 2 दिनों तक अमरजीत रावतसर आता रहा. पर कभी हाईवे पर यात्रियों के आगमन या मौर्निंग वौक वालों के जमघट के कारण योजना सिरे नहीं चढ़ पाई.

30 जुलाई की रात श्रवण समेस्ता व बच्चों के साथ सो गया. सुबह वह भोर से पहले ही उठ कर मेगा हाईवे पर आ गया. भोर में साढ़े 3 बजे अमरजीत सिंह भी पिकअप ले कर आ गया. 4 बजे के आसपास समेस्ता मंदिर जाने के लिए मेगा हाईवे पर पहुंच गई. झाडि़यों में छिपे श्रवण ने उसी क्षण अमरजीत को घंटी मार दी.

सुनसान गली में खड़ी पिकअप का चालक अमरजीत सिंह जल्दी से मेगा हाईवे पर पहुंच गया. सुनसान मेगा हाईवे पर शिकार नजर आते ही अमरजीत ने एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ा दिया. तेजी से आई पिकअप की टक्कर से समेस्ता हवा में उछल कर सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी. समेस्ता की खोपड़ी फट गई थी, जिस से उस का ज्यादा तादाद में खून निकल गया और उस ने उसी समय दम तोड़ दिया.

कुछ दूरी जा कर अमरजीत पिकअप ले कर लौट आया. तब तक झाडि़यों से निकल कर श्रवण भी मेगा हाईवे पर आ गया था. अमरजीत ने श्रवण को गाड़ी में बिठाया और उसे मोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गया. दोनों ने गाड़ी से उतर कर समेस्ता का जायजा लिया. निश्चल पड़ी समेस्ता की मौत हो चुकी थी. श्रवण दबे पांव अपने घर पहुंच कर बिस्तर में दुबक गया. जबकि अमरजीत पिकअप ले कर सूरतगढ़ लौट गया.

फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को मौत की नींद सुलाने वाले श्रवण व अमरजीत योजना के क्रियान्वयन से खुश थे. दोनों को उम्मीद थी कि उन का जघन्य अपराध कभी भी जगजाहिर नहीं होगा. लेकिन वकालत की पढ़ाई कर चुका श्रवण इस तथ्य से अनजान था कि उन का कृत्य सीसीटीवी कैमरे में रिकौर्ड हो रहा था.

यह एक ऐसा अकाट्य साक्ष्य था जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. इसी कैमरे की फुटेज से श्रवण के कृत्य का भंडाफोड़ हुआ. समेस्ता व श्रवण के बीच बढ़ी दूरियों से श्रवण संदिग्ध बन कर पुलिस रिकौर्ड पर आ चुका था.

समेस्ता के अंतिम संस्कार के बाद श्रवण भूमिगत हो गया था. पर कांस्टेबल सुखदेव बेनीवाल के मुखबिरों के नेटवर्क के आगे वह बौना साबित हुआ. 10 अगस्त को पुलिस ने श्रवण को अमरजीत के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने षडयंत्रपूर्वक समेस्ता को मार देने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

रावतसर के सीजेजेएम रविकांत सोनी की अदालत ने पुलिस की मांग पर दोनों हत्यारोपियों का 4 दिनों का पुलिस रिमांड दे दिया. पुलिस ने इस केस की प्राथमिकी में भादंवि की धारा 302, 120बी और जोड़ दी. इस अवधि में आरोपी अमरजीत सिंह ने वारदात में प्रयुक्त पिकअप गाड़ी पुलिस को बरामद करवा दी. पूछताछ में पता चला कि अमरजीत का आपराधिक रिकौर्ड रहा है. पूर्व में भी उस के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था. लेकिन अदालत ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया था.

16 अगस्त, 2017 को पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. वकालत की पढ़ाई कर चुके नासमझ श्रवण ने समेस्ता को मिटा कर अपना और अमरजीत सिंह का भविष्य तो अंधकारमय बना ही दिया, समेस्ता के दोनों बच्चे भी बेसहारा हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फर्जी MBBS दाखिले : करोड़ों लूटे – भाग 2

‘‘मैं जानता हूं एमबीबीएस करने के लिए अस्सीनब्बे लाख रुपया चाहिए. यह कोर्स अमीर लोग ही अपने बेटों को करवा सकते हैं. हम लोग यह कोर्स करने का सपना भी नहीं देख सकते, लेकिन अब हमारे लिए एक रास्ता खुल गया है.’’

‘‘कैसा रास्ता?’’ चंद्रेश ने राजवीर की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.

‘‘गौतमबुद्ध नगर में एक औफिस खुला है. वे एमबीबीएस के लिए संबंधित कालेज में केवल 15 लाख में एडमिशन दिलवा देते हैं.’’

‘‘15 लाख, यह तो ज्यादा है.’’ चंद्रेश की आवाज में निराशा झलकी.

‘‘अबे, 80-90 लाख से तो ठीक है. तेरा सपना अगर 15 लाख रुपए में पूरा हो जाए तो और क्या चाहिए. डाक्टर बन कर कालेज से बाहर आओगे तो ऐसे कितने ही 15 लाख कमा लोगे.’’

‘‘कहता तो तू ठीक है, बोल कब चलेगा उस औफिस में?’’

‘‘कल चलते हैं. मैं आज दोस्त से उस औफिस का एड्रैस कंफर्म कर लूंगा. मुझे भी एमबीबीएस करना है.’’

‘‘ठीक है, मैं कल तुम्हें 9 बजे तुम्हारे घर पर मिलता हूं.’’ चंद्रेश ने उठते हुए कहा.

शाम को उस ने घर पहुंच कर इंटरव्यू में धोखाधड़ी होने की बात अपनी भाभी रमा को बता दी थी. भाभी तब बहुत निराश हो गई थीं.

वह सोचता था, ‘क्या उस ने 10-12 हजार की नौकरी पाने के लिए बीएससी की थी?’

जैसेतैसे वह रात कटी. चंद्रेश ने जल्दी से बिस्तर छोड़ा. नित्यकर्म से फारिग होने के बाद उस ने चायनाश्ता किया और तैयार हो कर वह 8 बजे ही घर से निकल गया.

9 बजे से पहले ही वह राजवीर के घर पहुंच गया. उसे हैरानी हुई कि राजवीर पहले से ही तैयार हो कर उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘तूने एड्रैस कंफर्म कर लिया न राजवीर?’’ चंद्रेश ने हायहैलो करने से पहले ही पूछ लिया.

‘‘हां, वह सैक्टर-63 में है. पूरा पता है डी-247/4ए, गौतमबुद्ध नगर. हम वहां आटो से चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ चंद्रेश ने सिर हिला कर कहा, ‘‘मेरी जेब में 2 सौ रुपया है.’’

‘‘मेरी जेब भी गरम है यार.’’ राजवीर बोला तो चंद्रेश हंस पड़ा.

दोनों ने रोड से गौतमबुद्धनगर के सैक्टर-63 के लिए आटो किया और आधा घंटे में ही सैक्टर-63 में पहुंच गए. पूछते हुए दोनों डी-247/4ए के सामने पहुंच कर रुक गए. वहां कुछ युवक खड़े थे.

‘‘यही है औफिस. देखो, पहले से यहां कितने ही युवक खड़े हैं.’’ राजवीर ने चंद्रेश का हाथ दबा कर कहा.

‘‘शायद एकएक को अंदर बुलाया जा रहा है, तभी औफिस के बाहर ये लोग खड़े हैं.’’ चंद्रेश ने अनुमान लगा कर कहा, ‘‘आओ, किसी से पूछ लेते हैं.’’

दोनों वहां बाहर खडे युवकों के पास आए.

‘‘अंदर प्रवेश के लिए क्या प्रोसिजर है दोस्त?’’ राजवीर ने एक युवक से पूछा.

‘‘गेट पर गार्ड खड़ा है, उस से एक फार्म 5 रुपए का ले लो और अपना बायोडाटा लिख कर गार्ड को दे दो. वही आवाज लगा कर आप को बुलाएगा.’’ उस युवक ने बताया.

दोनों ने गार्ड को 10 रुपए दे कर 2 फार्म ले लिए फिर फार्म भर कर गार्ड के पास जमा करवा दिए. उन को बताया गया कि एक घंटे तक उन का नंबर आ जाएगा. दोनों वहीं धूप में खड़े हो गए.

एक घंटे बाद पहले राजवीर को अंदर बुलाया गया, फिर 15 मिनट बाद चंद्रेश का नंबर आया. चंद्रेश ने शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश किया, तब उस के दिल की धड़कन बेकाबू थी. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए उस ने अंदर बने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर घुसते हुए बड़े शिष्टाचार से कहा, ‘‘गुड मार्निंग सर.’’

‘‘वेरी गुडमार्निंग,’’ सामने कुरसी में धंसे एक मुसलिम नजर आने वाले युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए.’’

चंद्रेश ने कुरसी पर बैठ कर नजरें घुमाईं. उस युवक के साथ वाली कुरसियों पर 2 युवतियां बैठी हुई थीं, जो चेहरेमोहरों से शिक्षित दिखलाई पड़ती थीं.

केबिन की दीवारें सपाट थीं. उन पर किसी नेता की तसवीर नहीं लगी थी. अकसर औफिस में किसी राजनेता की तसवीर जरूर लगी होती है. सामने बैठा मुसलिम युवक शायद हैड था. उस ने चंद्रेश को गौर से देखा, ‘‘क्या आप का नाम चंद्रेश गुप्ता है?’’ हाथ में पकड़े फार्म को देख कर उस युवक ने पूछा.

‘‘जी सर,’’ चंद्रेश ने बताया.

‘‘गुप्ता लोग तो पैसे वाले होते हैं चंद्रेश बाबू.’’ युवक ने प्रश्न किया, ‘‘क्या आप भी पैसे वाले हैं?’’

‘‘नहीं सर, हम खानेकमाने वालों में से हैं. भैया 12 हजार की नौकरी करते हैं.’’

‘‘हूं,’’ सामने बैठे युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘क्या आप को नहीं मालूम एमबीबीएस में एडमिशन पाने के लिए लाखों रुपया लगता है?’’

‘‘मालूम है सर. लेकिन सुना है, आप कम रुपयों में एमबीबीएस का दाखिला दिला देते हैं.’’ चंद्रेश ने जल्दी से बात को संभाला, ‘‘आप केवल 15 लाख रुपया लेते हैं.’’

‘‘जरूरी नहीं, 15 लाख ही लेंगे. हमें आप का सब्जेक्ट, शिक्षा सभी पर गौर करना है. खुशी हुई आप ने साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन किया है. लेकिन आप के मार्क्स कम हैं, इसलिए आप को सरकारी कालेज में दाखिला दिलवाने में थोड़ी परेशानी पेश आएगी.’’

‘‘सर, मुझे एमबीबीएस करना है. आप मन से चाहेंगे तो मुझे एडमिशन मिल जाएगा.’’ चंद्रेश गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘मैं बहुत उम्मीद से यहां आया हूं.’’

उस युवक ने पास बैठी युवती की ओर देखा. आंखों ही आंखों में बात की, फिर उन में से एक युवती ने चंद्रेश के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘क्या आप 30 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकेंगे?’’

‘‘30 लाख? यह तो बहुत ज्यादा होगा मैम.’’ चंद्रेश घबरा कर बोला.

‘‘तो आप कितना दे सकते हैं?’’ दूसरी युवती ने पूछा.

‘‘15 लाख दे दूंगा मैम.’’

‘‘15 लाख कम रहेगा.’’ सामने बैठे युवक ने इंकार में सिर हिलाया तो तुरंत पास बैठी युवली बोल पड़ी, ‘‘आप 20 लाख का इंतजाम करिए. हम आप के लिए सरकारी कालेज में एडमिशन की बात कर लेते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं 20 लाख ही दूंगा, लेकिन मेरा एडमिशन हो जाना चाहिए मैम.’’ चंद्रेश ने अपनी बात रख कर आश्वासन मांगा.

‘‘अवश्य हो जाएगा. आप एक हफ्ते में 20 लाख रुपया जमा करवा दें, इस से ज्यादा समय नहीं दिया जाएगा आप को, क्योंकि यहां एडमिशन पाने वालों की भीड़ ज्यादा है और सरकारी कालेजों में सीटें कम हैं.’’

‘‘मैं एक हफ्ते से पहले ही 20 लाख जमा करवा दूंगा मैम.’’ चंद्रेश जल्दी से बोला.

चंद्रेश उठा और बाहर आ गया. राजवीर उसे बाहर ही मिल गया. उस ने बताया कि उस से 25 लाख रुपया मांगा गया है, वह 2 दिन में यह रुपया ला कर जमा करवा देगा.

सावधान ! ऐसे ड्राइवर से वरना…

कोई भी अनहोनी या परेशानी बता कर नहीं आती. जिस तरह उजाले को शाम का अंधेरा अपने आगोश में समेटता है, वैसा ही कुछ हाल अनहोनी और परेशानी का भी होता है. नोएडा के वीआईपी इलाके सैक्टर ओमेगा वन स्थित ग्रीनवुड सोसायटी के रहने वाले कारोबारी अशोक गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

13 जनवरी, 2017 की दोपहर उनकी आलीशान कोठी में अजीब सी हलचल थी. ऐसी हलचल, जिसे पहले कभी महसूस नहीं किया गया था. दरअसल उस दिन अशोक गुप्ता की पत्नी और बेटा विपुल काफी परेशान थे. मृदुभाषी अशोक का बैटरी बनाने का बड़ा कारोबार था, जिसे वह अपने 2 बेटों की मदद से चला रहे थे.

यूं तो अशोक गुप्ता खुशियों भरी जिंदगी जी रहे थे, लेकिन उस दिन जैसे उन के परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई थी. दरअसल ढाई बजे के करीब उन के बेटे विपुल के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. नंबर चूंकि पिता का था, इसलिए उन्होंने तत्काल फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

विपुल को झटका तब लगा, जब दूसरी ओर से किसी अनजान आदमी की आवाज आई, ‘‘पापा, नहीं मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘आप कौन ’’ विपुल ने पूछा.

‘‘यह भी बता देंगे, फिलहाल इतना जान लो कि तुम्हारे पापा हमारे कब्जे में हैं. अगर उन की जान की सलामती चाहते हो तो जल्दी से 3 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ फोन करने वाले ने सख्त लहजे में कहा.

उस की बात सुन कर विपुल के पैरों तले से जमीन खिसक गई. विपुल ने पूछना चाहा कि वह कौन बोल रहा है तो उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ज्यादा सवाल नहीं, जितना कहा है, सिर्फ उतना करो.’’

इतना कह कर फोन करने वाले ने फोन काट दिया. इस के बाद गुप्ता परिवार सकते में आ गया. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि अशोक गुप्ता का अपहरण हो चुका है. वह बदमाशों के चंगुल में हैं. उन्हें छोड़ने के लिए बदमाश फिरौती मांग रहे हैं.

अशोक गुप्ता घर में बाजार जाने की बात कह कर अपनी कोरोला कार से ड्राइवर पवन के साथ निकले थे. उसी बीच उन का अपहरण हो गया था. उन का तो अपहरण हो गया, ड्राइवर पवन कहां गया, उस का कुछ पता नहीं था. घर वाले उसी के बारे में सोच रहे थे कि घबराया हुआ पवन घर में दाखिल हुआ. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह काफी डरा हुआ था.

उस के आते ही विपुल ने पूछा, ‘‘पवन, पापा को क्या हुआ ’’

‘‘वे मेरी आंखों के सामने से उन्हें ले गए और मैं कुछ नहीं कर पाया.’’ कह कर पवन जोरजोर से रोने लगा.

‘‘क्या हुआ, पूरी बात ठीक से बताओ.’’ विपुल ने पूछा.

‘‘भैयाजी, मैं साहब को ले कर सैक्टर पी-3 गोलचक्कर के पास जा रहा था, तभी एक मारुति वैन ने हमारी कार को ओवरटेक कर के रोक लिया. 3 बदमाशों ने हथियारों के बल पर साहब को निकाल कर अपनी कार में बैठाया और देखतेदेखते ले कर चले गए. मैं ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे धक्का दे कर गिरा दिया.’’ डरे हुए अंदाज में पवन ने कहा.

पवन अपनी बात कह ही रहा था कि अपहर्त्ता का फिर फोन आ गया. विपुल ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया’’

‘‘इतनी बड़ी रकम का इंतजाम इतनी जल्दी कैसे हो सकता है ’’

‘‘गुप्ताजी को जिंदा देखना चाहते हो तो फिरौती तो देनी ही होगी.’’

‘‘आप लोग मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए, रकम बहुत ज्यादा है. हम कोशिश कर के भी इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर सकते. हमारे पास जो नकदी और गहने हैं, वह सब हम देने को तैयार हैं. लेकिन मेरे पापा को कुछ नहीं होना चाहिए.’’

‘‘उस की फिक्र तुम मत करो, हम अपने वादे के पक्के हैं. तुम पैसा तैयार करो, हम दोबारा फोन करते हैं. और हां, गलती से भी पुलिस को खबर की तो मजबूरन हमें अपने हाथ खून से रंगने पड़ेंगे.’’ अपहर्त्ता ने कहा और फोन काट दिया. इस तरह अपहर्त्ता लगातार विपुल के संपर्क में बने थे.

नातेरिश्तेदारों से सलाहमशविरा कर के विपुल ने पिता के अपहरण की सूचना पुलिस को दे दी. कारोबारी के अपहरण की सूचना मिलते ही सीओ डा. अरुण कुमार और स्थानीय थाना कासना के थानाप्रभारी सुधीर त्यागी अशोक गुप्ता की कोठी पर पहुंच गए.

मामला सीधे अपहरण का था. अब तक मिली जानकारी से पुलिस को पूरा विश्वास था कि अपहर्त्ता जरूर किसी न किसी रूप में अशोक गुप्ता के जानकार थे. उन्होंने उन की हैसियत देख कर ही फिरौती की मांग की थी.

उन के ड्राइवर पवन के सामने उन का अपहरण हुआ था, इसलिए पुलिस ने उस से पूछताछ की. उस ने वहीं बातें पुलिस को भी बताईं, जो विपुल को बताई थीं. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस ने वहां शोर क्यों नहीं मचाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं बहुत डर गया था.’’

एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने एसपी सुजाता सिंह से सलाह की. वह अपहृत कारोबारी अशोक गुप्ता की जल्द से जल्द बरामदगी चाहते थे, इसलिए उन के निर्देश पर एसपी सुजाता सिंह ने सर्विलांस टीम को सक्रिय कर दिया. पुलिस ने अपराध क्रमांक 33/2017 पर धारा 364ए/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी, साथ ही विपुल से अपहर्त्ताओं से संपर्क बनाए रखने को कहा.

अपहर्त्ता का फोन आया तो विपुल ने बात 15 लाख रुपए नकद और आभूषणों में तय कर ली. लेकिन अपहर्त्ताओं की एक बात ने विपुल को न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि वह सोचने पर भी मजबूर हो गए. अपहर्त्ता ने कहा था, ‘‘हम यह फिरौती एक शर्त पर लेंगे.’’

‘‘क्या ’’

‘‘आप को रकम अपने ड्राइवर के हाथों भेजनी होगी, क्योंकि हम उसे पहचानते हैं. इस में कोई चालाकी नहीं होनी चाहिए. फिरौती ले कर कहां आना है, यह हम थोड़ी देर में बता देंगे.’’

अपहर्त्ता ने जैसे ही फोन रखा, विपुल ने पुलिस अधिकारियों से कहा, ‘‘सर, अपहर्त्ता कौन है, मुझे पता चल गया है.’’

‘‘क्या ’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘जी सर, मैं ने उस की आवाज पहचान ली है. वह कोई और नहीं, हमारा पुराना ड्राइवर सनेश है. मेरा शक उस पर इसलिए और बढ़ गया है, क्योंकि उस ने फिरौती की रकम पहुंचाने के लिए पवन को भेजने की शर्त रखी है. पवन को डेढ़ महीने पहले उसी ने हमारे यहां नौकरी पर रखवाया था.’’ विपुल ने बताया.

विपुल ने यह बात बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कही थी, इसलिए पुलिस के शक की सुई पवन पर ठहर गई. उस की भूमिका पुलिस की नजर में पहले से ही संदिग्ध थी, क्योंकि उस ने पुलिस को फोन न कर के और शोर न मचा कर घर आ कर अपहरण की बात बताई थी.

जबकि अपहरण के मामलों में ऐसा होता नहीं है कि अपहर्त्ता किसी ड्राइवर के जरिए फिरौती मंगवाएं. असलियत जानने के लिए पुलिस की सर्विलांस टीम ने पवन, अशोक गुप्ता और सनेश की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना के समय की तीनों की लोकेशन एक साथ की पाई गई. यही नहीं, पवन और सनेश की लगातार बातें भी हो रही थीं.

पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की राह मिल गई थी. पवन से पूछताछ की गई तो पहले वह अपना हाथ होने से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपहरण की साजिश में वह खुद भी शामिल है.

सपी सुजाता सिंह जानती थीं कि अपहर्त्ताओं को जरा भी शक हुआ तो अशोक गुप्ता की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए उन्होंने पवन के जरिए अपहर्त्ताओं तक पहुंचने और अशोक गुप्ता को सकुशल बरामद करने की योजना बनाई. इस मामले में खास बात यह थी कि पवन को पता था कि अशोक गुप्ता को कहां रखा गया है.

विपुल ने अपहर्त्ताओं को फोन कर के बता दिया था कि उन्होंने पवन को रकम दे कर भेज दिया है. जबकि पुलिस टीम ने पवन को कार में अपने साथ बैठा रखा था. 10 मिनट बाद ही पवन के साथी का फोन उस के मोबाइल पर आ गया. पवन ने पुलिस के इशारे पर उसे विश्वास दिला दिया कि किसी तरह का कोई खतरा नहीं है और वह फिरौती का माल ले कर उन के पास पहुंच रहा है.

अब तक रात हो चुकी थी. हथियारों से लैस पुलिस टीम पवन को साथ ले कर रात करीब 12 बजे बुलंदशहर जनपद के थाना सिकंदराबाद के गांव सनौटा के जंगल में पहुंची. थोड़ी कोशिश कर के पुलिस ने ईंख के एक खेत में बंधक बनाए गए अशोक गुप्ता को सकुशल अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा लिया.

पुलिस ने घेराबंदी कर के सनेश और उस के साथी राबिन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि इन के 2 साथी पुलिस को चकमा दे कर भाग निकले. पुलिस को इन के कब्जे से 315 बोर के 2 तमंचे मिले. अशोक गुप्ता काफी डरेसहमे थे. पुलिस सभी को ले कर नोएडा आ गई. पुलिस के लिए यह बड़ी सफलता थी.

एसपी सुजाता सिंह ने आरोपियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में राह से भटके एक शातिर महत्त्वाकांक्षी नौजवान की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

एक साल पहले अशोक गुप्ता ने सनेश को अपने यहां ड्राइवर रखा था. वह नोएडा से ही लगे जिला बुलंदशहर के गांव खगावली का रहने वाला था. निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला बीए पास सनेश काफी महत्त्वाकांक्षी था और बचपन से ही अमीर बनने के सपने देखता आया था.

यह बात अलग थी कि उस के सपने पूरे नहीं हो सके थे और वह ड्राइवर बन कर रह गया था. अपने काम से सनेश जरा भी खुश नहीं था. अपने सपने के बारे में वह अकसर अशोक गुप्ता से भी जिक्र करता रहता था कि एक दिन उसे भी बड़ा आदमी बनना है. अशोक गुप्ता उस की बातें सुन कर मुसकरा देते थे.

अमीर बनने के सपने ने सनेश को कुंठित कर दिया था. अक्तूबर, 2016 के अंत में नौकरी छोड़ कर उस ने कोई दूसरा काम करने का विचार किया. जबकि अशोक गुप्ता नहीं चाहते थे कि वह नौकरी छोड़ कर जाए. उन्हें परेशानी हुई तो उन्होंने उस से कोई दूसरा ड्राइवर दिलाने को कहा.

अशोक गुप्ता के कहने पर उस ने अपने रिश्तेदार पवन को उन के यहां नौकरी पर रखवा दिया. पवन का बड़ा भाई सनेश का जीजा था. पवन उसी के पड़ोस के गांव शरीकपुर का रहने वाला था. यहां अशोक गुप्ता की लापरवाही ही कही जाएगी कि उन्होंने दोनों ड्राइवरों का पुलिस वैरिफिकेशन कराना जरूरी  नहीं समझा.

सनेश ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन काफी भटकने के बाद भी उसे न कोई दूसरी नौकरी मिली और न ही वह कोई दूसरा काम कर सका. हर समय वह किसी भी तरह रुपए कमाने के बारे में सोचा करता था. दिमाग में जब एक ही बात बैठ जाए तो आदमी अच्छाबुरा भी नहीं देखता.

ऐसे में ही सनेश के दिमाग में गलत तरीके से पैसे कमाने की बात आई तो उस ने अपने पुराने मालिक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूलने का मन बना लिया. क्योंकि वह अशोक गुप्ता की आर्थिक स्थिति और स्वभाव को जानता था.

उस ने सोचा कि अगर अशोक गुप्ता का अपहरण कर लिया जाए तो उन से आसानी से मोटी रकम फिरौती में मिल सकती है. चूंकि उस का रिश्तेदार पवन उन के यहां ड्राइवर था, इसलिए उस के जरिए बिना किसी खतरे के अशोक गुप्ता का अपहरण किया जा सकता था. पूरी योजना बना कर सनेश ने इस मुद्दे पर पवन से कहा, ‘‘पवन मेरा बचपन से करोड़पति बनने का सपना है. अगर तू मदद कर दे तो मैं एक ही झटके में करोड़पति बन सकता हूं, साथ ही तुझे भी करोड़पति बना सकता हूं.’’

‘‘इस के लिए मुझे क्या करना होगा ’’ पवन ने पूछा.

‘‘अपने लालाजी का अपहरण कराना होगा.’’

‘‘क…क…क्या ’’ पवन चौंका.

‘‘देख, सीधे रास्ते से तो करोड़पति बनने से रहे. भाई इस के लिए कुछ ऐसा ही करना होगा. लेकिन इस में तुझे घबराने की जरूरत नहीं है. मैं सब संभाल लूंगा. किसी को हम पर शक भी नहीं होगा.’’ सनेश ने पवन को समझाया तो अमीर बनने का उस का भी सपना जाग गया.

सनेश का ही एक दोस्त था राबिन, जो मेरठ जिले के थाना भावनपुर के गांव किनानगर का रहने वाला था. अपना इरादा उस ने राबिन और अन्य 2 साथियों विपिन और ललित को बताया तो पैसों के लालच में वे भी साथ देने को राजी हो गए. इस के बाद एक दिन सभी ने बैठ कर पूरी योजना तैयार की.

सनेश शातिर दिमाग था. वह पूरी सफाई के साथ अशोक गुप्ता का अपहरण कर फिरौती वसूलना चाहता था. उन की योजना थी कि फिरौती वसूल कर को वे अशोक गुप्ता की हत्या कर देंगे, क्योंकि वह उन्हें पहचानते थे. अगर उन्हें जिंदा छोड़ दिया जाता तो बाद में सभी पकड़े जाते. इसलिए वे फिरौती मिलने तक ही उन्हें जिंदा रखना चाहते थे. इस तरह अपहरण की फूलप्रूफ योजना तैयार कर ली गई.

योजना के मुताबिक, 13 जनवरी को पवन अशोक गुप्ता को ले कर निकला. उन्हें रामपुर बाजार जाना था. वापसी में पवन ने कार सेक्टर पी 3 गोलचक्कर के पास अचानक सर्विस रोड की ओर घुमा दी. अशोक गुप्ता को उधर नहीं जाना था, इसलिए

उन्होंने पूछा, ‘‘पवन, इधर कार कहां ले जा रहे हो ’’

‘‘अभी पता चल जाएगा.’’ पवन ने जवाब में कहा.

अशोक गुप्ता कुछ समझ पाते, उस के पहले ही पवन ने कार को किनारे कर के रोक दी. कार के रुकते ही पहले से ही मोटरसाइकिल से पीछा कर रहे सनेश और उस के साथियों ने कार को घेर लिया. इस के बाद सनेश और उस के अन्य साथी कार में दाखिल हो कर अशोक गुप्ता पर तमंचे तान दिए. अचानक घटी इस घटना से अशोक गुप्ता घबरा गए.

सनेश और उस के साथी राबिन ने अशोक को कब्जे में कर लिया. पवन ने कार बढ़ा दी तो बाकी 2 साथी मोटरसाइकिल से उन के पीछेपीछे चल पड़े. अशोक गुप्ता ने चीखने की कोशिश की तो उन्होंने उन के साथ मारपीट कर के और उन्हें जान से मारने की धमकी दे कर चुप करा दिया. इस में उन की स्वेटर भी फट गई.

कार पवन ही चला रहा था. योजना के मुताबिक वे उन्हें जंगल में ले गए और ईंख के खेत में बंधक बना लिया. इस के बाद पवन ने घर जा कर अपहरण की मनगढ़ंत कहानी सुना दी, जबकि सनेश आवाज बदल कर विपुल को फोन करता रहा. वे अपनी योजना में सफल भी हो जाते, लेकिन बुरे कामों का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. विपुल ने आवाज पहचान ली, जिस से अपहर्त्ताओं की पोल खुल गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सनेश, पवन और राबिन को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. बाकी बचे उन के साथियों ललित और विपिन की पुलिस तलाश कर रही थी. सनेश ने अपने बेलगाम सपनों को काबू में रखा होता तो ऐसी नौबत कभी न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्रकारिता की आड़ में देह व्यापार

कानपुर की क्राइम ब्रांच के आईजी आलोक कुमार सिंह को किसी व्यक्ति ने फोन पर जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंका देने वाली थी. एकबारगी तो आईजी साहब को भी खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ. पर इसे अनसुना करना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने उसी समय क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को फोन कर के अपने कैंप कार्यालय पर आने को कहा.

10 मिनट बाद क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला आईजी आलोक कुमार सिंह के निवास पर पहुंच गए. आईजी ने ऋषिकांत की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘शुक्लाजी, फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. और शर्मनाक बात यह है कि फीलखाना थाना व चौकी के कुछ पुलिसकर्मी ही कालगर्लों को संरक्षण दे रहे हैं. तुम जल्द से जल्द इस सूचना की जांच कर के दोषी पुलिसकर्मियों की जानकारी मुझे दो. इस बात का खयाल रखना कि यह खबर किसी भी तरह लीक न हो.’’

ऋषिकांत शुक्ला कानपुर के कई थानों में तैनात रह चुके थे. उन के पास मुखबिरों का अच्छाखासा नेटवर्क था. अत: आईजी का आदेश पाते ही उन्होंने फीलखाना क्षेत्र में मुखबिरों को अलर्ट कर दिया.

2 दिन बाद ही 2 मुखबिर ऋषिकांत शुक्ला के औफिस पहुंचे. उन्होंने उन्हें बताया, ‘‘सर, फीलखाना थाना क्षेत्र के पटकापुर में सूर्या अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर के एक फ्लैट में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चल रहा है. इस रैकेट की संचालिका बरखा मिश्रा है. वह पत्रकारिता की आड़ में यह धंधा करती है. उस ने बचाव के लिए वहां अपना एक औफिस भी खोल रखा है. उसे कथित मीडियाकर्मी, पुलिस तथा सफेदपोशों का संरक्षण प्राप्त है.’’

क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मुखबिर से मिली सूचना से आईजी आलोक कुमार सिंह को अवगत करा दिया. सूचना की पुष्टि हो जाने के बाद आईजी ने एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए.

चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए मीणा ने एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ कोतवाली अजय कुमार, सीओ सदर समीक्षा पांडेय, क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, फीलखाना इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, एसआई विनोद मिश्रा, रावेंद्र कुमार, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम तथा महिला सिपाही पूजा व सरिता सिंह को शामिल किया.

3 जनवरी, 2018 की शाम को यह टीम पटकापुर पुलिस चौकी के सामने स्थित सूर्या अपार्टमेंट पहुंची. कांस्टेबल पूजा ने इस अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली बरखा मिश्रा के फ्लैट का दरवाजा खटखटाया. चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला. सामने पुलिस टीम को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम बरखा मिश्रा है?’’ सीओ समीक्षा पांडेय ने पूछा.

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’  वह बोली.

‘‘मैडम, हमें पता चला है कि आप के फ्लैट में देह व्यापार चल रहा है.’’ समीक्षा पांडेय ने कहा.

इस बात पर बरखा मिश्रा न डरी न सहमी बल्कि मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं. मैं तो मीडियाकर्मी हूं. क्या आप ने मेरा बोर्ड नहीं देखा. पत्रकार के साथसाथ मैं समाजसेविका भी हूं. मैं भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की वाइस प्रेसीडेंट हूं.’’ रौब से कहते हुए बरखा ने एक समाचारपत्र का प्रैस कार्ड व कमेटी का परिचय पत्र उन्हें दिखाया.

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बरखा मिश्रा ने पुलिस टीम पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी कोशिश की, लेकिन पुलिस टीम उस के दबाव में नहीं आई. टीम बरखा मिश्रा को उस के फ्लैट के अंदर ले गई. वहां का नजारा कुछ और ही था. फ्लैट में 3 युवक, 3 युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे. जबकि एक युवक पैसे गिन रहा था.

पुलिस को देख कर सभी भागने की कोशिश करने लगे. लेकिन पुलिस टीम ने उन्हें भागने का मौका नहीं दिया. सीओ सदर समीक्षा पांडेय ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया, जबकि क्राइम ब्रांच प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने चारों युवकों को अपनी कस्टडी में ले लिया.

फ्लैट की तलाशी ली गई तो वहां से 72,500 रुपए नकद, शक्तिवर्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक चीजें मिलीं. पुलिस ने इन सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.

संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड, आधार कार्ड व पैन कार्ड मिले, जो 2 अलगअलग नामों से बनाए गए थे. सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पुलिस थाना फीलखाना लौट आई.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा और एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या भी थाना फीलखाना आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो एक युवती ने अपना नाम प्रिया निवासी शिवली रोड, थाना कल्याणपुर, कानपुर सिटी बताया.

दूसरी युवती ने अपना नाम विनीता सक्सेना, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर तथा तीसरी युवती ने अपना नाम नेहा सेठी निवासी मकड़ीखेड़ा, कानपुर सिटी बताया. जबकि संचालिका बरखा मिश्रा ने अपना पता रतन सदन अपार्टमेंट, आजादनगर, कानपुर सिटी बताया.

अय्याशी करते जो युवक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम शेखर गुप्ता, गौरव सिंह, नवजीत सिंह और दीपांकर गुप्ता थे. सभी कानपुर सिटी के ही अलगअलग इलाकों के रहने वाले थे.

पुलिस ने संचालिका बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. पता चला कि बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था.

उस ने कई वेबसाइटों पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड कर रखे थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. इतना ही नहीं वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था.

ग्राहकों की डिमांड पर वह दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस व मुंबई आदि शहरों के दलालों की मार्फत रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी. बरखा को कुछ मीडियाकर्मियों, पुलिस वालों, रसूखदार लोगों व प्रशासनिक अधिकारयों का संरक्षण प्राप्त था. समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण दे रहे थे. ऐसे लोग खुद भी उस के यहां रंगरलियां मनाते थे.

पूछताछ में पुलिस ने बरखा की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली. साधारण परिवार में पली बरखा के कालेज टाइम में कई बौयफ्रैंड थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी.

समय आने पर बरखा के मांबाप ने उस की शादी कर दी. मायके से विदा हो कर बरखा ससुराल पहुंच गई. ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो शरमीली बन कर रही पर बाद में वह धीरेधीरे खुलने लगी.

दरअसल, बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना संजोया था, उसे वैसा पति नहीं मिला. उस का पति दुकानदार था और उस की आमदनी सीमित थी. वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं. बरखा आए दिन उस से शिकायत करती रहती थी. फलस्वरूप आए दिन घर में कलह होने लगी.

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे, लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था. वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका करना या बंधन में रहना पसंद नहीं था. इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आखिर एक दिन ऐसा भी आया कि आजिज आ कर बरखा ने पति का साथ छोड़ दिया.

पति का साथ छोड़ने के बाद वह कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी. वह पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी. उसे विश्वास था कि उसे जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवन मजे से कटेगा. इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई.

बरखा को यह पता नहीं था कि नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

लिहाजा उस ने पैसे के लिए अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया. वह खूबसूरत भी थी और जवान भी, इसलिए उसे ग्राहक तलाशने में कोई ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पडी. यह काम करने में उसे शुरूशुरू में झिझक जरूर महसूस हुई लेकिन कुछ समय बाद वह देहधंधे की खिलाड़ी बन गई. आमदनी बढ़ाने के लिए उस ने अपने जाल में कई लड़कियों को भी फांस लिया था.

जब इस धंधे से उसे ज्यादा आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह किराए पर फ्लैट ले कर धंधे को सुचारू रूप से चलाने लगी.

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वह नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह व्यापार में उतार देती. उस के निशाने पर स्कूल कालेज की वे लड़कियां होती थीं, जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं. बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी बातचीत से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी. इसी का फायदा उठा कर उस ने कई सामाजिक संस्थाओं के संचालकों, नेताओं, मीडियाकर्मियों, पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए थे. इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी थी. पुलिस थानों में पंचायत करने लगी. यही नहीं, उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर के प्रैस कार्ड भी बनवा लिया और एक सामाजिक संस्था में अच्छा पद भी हासिल कर लिया.

बरखा मिश्रा को देह व्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और बढ़ा लिया. दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई दलालों से उस का संपर्क बन गया. इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजती थी तथा डिमांड पर विदेशी लड़कियों को शहर में बुलाती भी थी.

कुछ ग्राहक रशियन व नेपाली बालाओं की डिमांड करते थे. उन से वह मुंहमांगी रकम लेती थी. ये लड़कियां हवाईजहाज से आती थीं और हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं. बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक में लड़की बुक होती थीं. होटल व खानेपीने का खर्च ग्राहक को ही देना होता था.

बरखा इस धंधे में कोडवर्ड का भी प्रयोग करती थी. एजेंट को वह चार्ली के नाम से बुलाती थी और युवती को चिली नाम दिया गया था. किसी युवती को भेजने के लिए वह वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी. मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी. चार्ली नाम के उस के दर्जनों एजेंट थे, जो युवतियों की सप्लाई करते थे. एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो.’’

लोगों को शक न हो इसलिए बरखा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी. जैसे ही उस के बारे में सुगबुगाहट होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती थी. पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने स्वरूपनगर में अपना काम जमाया. स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में उस ने किराए पर फ्लैट लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी.

नवंबर, 2017 में बरखा ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया. यह फ्लैट किसी वकील का था. उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. उसे फ्लैट में अपना औफिस खोलना है. इस फ्लैट में वह धंधा करती थी, जबकि रहने के लिए उस ने आजादनगर के सदन अपार्टमेंट में फ्लैट किराए पर ले रखा था.

दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखा को सुझाव दिया था कि वह समाचारपत्र का कार्यालय खोल ले. इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे. यह सुझाव उसे पसंद आया और उस ने फ्लैट किराए पर ले कर समाचार पत्र का बोर्ड भी लगा दिया. यही नहीं, उस ने धंधे में शामिल लड़कियों से कह रखा था कि कोई पूछे तो बता देना कि वह प्रैस कार्यालय में काम करती हैं.

इस फ्लैट में सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना आईजी आलोक कुमार सिंह को दे दी, जिस के बाद पुलिस ने काररवाई की.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई 19 वर्षीय विनीता सक्सेना मध्यमवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वहां उस की कई फ्रैंड्स ऐसी थीं जो रईस घरानों से थीं. वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाठबाट से रहती थीं. महंगे मोबाइल फोन रखतीं, रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करती थीं. विनीता जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश! ऐसे ठाठबाट उस के नसीब में भी होते.’

एक दिन एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई. उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है. राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है.

उस की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर भी जाने लगी. घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है.

इस के बाद विनीता जब भी बरखा के घर आती तो वह उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती. धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फांस कर उसे देह व्यापार में उतार दिया. घटना वाले दिन वह ग्राहक शेखर गुप्ता के साथ रंगेहाथ पकड़ी गई थी.

सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 21 वर्षीय प्रिया के मातापिता गरीब थे. कालेज की पढ़ाई का खर्च व अपना खर्च वह ट्यूशन पढ़ा कर निकालती थी. प्रिया का एक बौयफ्रैंड था, जिस का बरखा मिश्रा के अड्डे पर आनाजाना था. उस ने प्रिया की मुलाकात बरखा से कराई. बरखा ने उसे सब्जबाग दिखाए और उस की पहुंच के चलते उसे नौकरी दिलाने का वादा किया.

crime

नौकरी तो नहीं मिली, बरखा ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया. प्रिया की एक रात की कीमत 10 से 15 हजार रुपए होती थी. मिलने वाली रकम के 3 हिस्से होते थे. एक हिस्सा संचालिका बरखा का, दूसरा दलाल का तथा तीसरा हिस्सा प्रिया का होता था. घटना वाली शाम वह दीपांकर गुप्ता के साथ पकड़ी गई थी.

जिस्मफरोशी का धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई 40 वर्षीय नेहा सेठी शादीशुदा व 2 बच्चों की मां थी. नेहा का पति शराबी था. वह जो कमाता, शराब पर ही उड़ा देता.

नेहा उस से शराब पीने को मना करती तो वह उस की पिटाई कर देता था. एक दिन तो हद ही हो गई. शराब के नशे में उस ने नेहा को पीटा फिर बच्चों सहित घर से निकाल दिया.

तब नेहा बच्चों के साथ मकड़ीखेड़ा में रहने लगी. उस ने बच्चों के पालनपोषण के लिए कई जगह नौकरी की. लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी. नेहा ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे.

उन्हीं दिनों उसे बरखा मिश्रा के सैक्स रैकेट के बारे में पता चला. उस ने एक दलाल के मार्फत बरखा मिश्रा से संपर्क किया, फिर उस के फ्लैट पर धंधे के लिए जाने लगी. घटना वाले रोज वह ग्राहक गौरव सिंह के साथ पकड़ी गई थी.

अय्याशी करते पकड़ा गया शेखर गुप्ता धनाढ्य परिवार का है. उस के पिता का सिविल लाइंस में बड़ा अस्पताल है. शेखर बरखा का नियमित ग्राहक था. वह उसे ग्राहक भी उपलब्ध कराता था. इस के बदले में उसे मुफ्त में मौजमस्ती करने को मिल जाती थी. शेखर के संबंध कई बड़े लोगों से थे.

शेखर जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया तो इन्हीं रसूखदारों ने पुलिस को फोन कर के शेखर को छोड़ देने की सिफारिश की थी. लेकिन पुलिस ने यह कह कर मना कर दिया कि मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता.

गिरफ्तार हुए नवजीत सिंह उर्फ टाफी सरदार के पिता एक व्यवसायी हैं. नवजीत की पहले कौशलपुरी में कैसेट की दुकान थी. वहां वह अश्लील सीडी बेचने के जुर्म में पकड़ा गया था. बरखा मिश्रा जब कौशलपुरी में सैक्स रैकेट चलाती थी, तभी उस की मुलाकात नवजीत से हुई थी. पहले वह बरखा के अड्डे पर जाता था. फिर वह उस का खास एजेंट बन गया. ग्राहकों को लाने के लिए बरखा उसे अच्छाखासा कमीशन देती थी.

दीपांकर गुप्ता तथा गौरव सिंह व्यापारी थे. बरखा के खास एजेंट टाफी सरदार से उन की जानपहचान थी. घटना वाले दिन टाफी सरदार ही उन्हें बरखा के अड्डे पर ले गया था. दोनों ने 15 हजार में सौदा किया था. उसी दौरान पुलिस की रेड पर पड़ गई. यद्यपि दोनों ने पुलिस को चकमा दे कर भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.

थाना फीलखाना पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बंटी और बबली ले डूबा लालच – भाग 3

प्रियंका ने राहुल का साथ देते हुए कहा, ‘‘इस तरह मुझे भी नौकरी करने की जरूरत नहीं होगी. बिना नौकरी के ही अपने पास काफी पैसे आ जाएंगे.’’

धमकी भरे खत में दीपक को राहुल ने लिखा, ‘‘मेरे मोबाइल की एक क्लिक तेरी जिंदगी खत्म कर देगी. तेरी प्राइवेट इनफार्मेशन को शेयर कर बदनाम कर फैक्ट्री तक को हम बंद करवा देंगे.’’

बदनाम करने की धमकी के साथ ही बिजनेसमैन को गैंग में कई सदस्यों के होने के बारे में भी बताया गया.

राहुल बोहरा ने धमकी भरे लेटर में दीपक और कंपनी की महिला कर्मचारी का नाम लिखा. दोनों के एक साथ गए स्थानों के बारे में डिटेल लिखी. बदनाम करने की धमकी दे कर पहली नवंबर, 2022 को 10 लाख रुपए देने की डिमांड की.

पुलिस को बताने या चालाकी करने पर लिखा कि उस की सारी कौन्टैक्ट लिस्ट उस के मोबाइल में है. उस की प्राइवेट और औफिशयल इनफार्मेशन सभी को शेयर कर दी जाएगी. तेरी हर मूवमेंट का मुझे मेरे मोबाइल में पता चल जाता है. मोबाइल के एक क्लिक से तेरी जिंदगी खत्म हो जाएगी.

रुपए कंपनी से डेढ़ किलोमीटर दूर विद्याधर नगर स्थित कपड़ों के शोरूम के पास रखने के लिए कहा. बताया गया था कि ब्लैकमेलिंग की रकम देने के लिए बिजनेसमैन खुद अकेला रुपए देने आए. रुपए बैग में रखने के बाद प्लास्टिक लौक से बंद हो. बैग की ऊपर चेन में अलग से सफेद लिफाफों में 25-25 हजार रुपए रख कर कोड लिखा जाए.

रुपए देने के दौरान बिजनेसमैन खुद की ही कार यूज करेगा और अकेले ही आएगा. बिजनेसमैन को बताया गया था कि उन के गैंग में कई लोग हैं. बैग उठाने वाला कोड देख कर अपना लिफाफा ले जाएगा. गैंग के अलगअलग लोग अपना कोड देख कर लिफाफे निकाल ले जाएंगे.

राहुल को पहली बार ब्लैकमेलिंग के समय डर लगा था. लेटर देने के लिए उस ने एक आटोरिक्शा ड्राइवर को पकड़ा. ड्राइवर को 5 सौ रुपए दे कर फैक्ट्री के गेट पर खड़े गार्ड को लिफाफा देने भेजा. लिफाफे पर लिखा, ‘इम्पोर्टेंट डाक्यूमैंट, केवल डायरेक्टर दीपक ही खोलें.’

बिजनेसमैन ने लेटर पढ़ने के बाद बदनामी के डर से पैसे देना तय किया. डिमांड के अनुसार रुपयों का बैग दीपक ने पेड़ के नीचे रख दिया.

करीब 15 मिनट तक खड़ा रहने के बाद वह वहां से चला गया. राहुल को पकड़े जाने का डर था. उस ने एक आटो ड्राइवर को पकड़ा. 5 हजार रुपए दे कर बैग उठा कर लाने के लिए भेजा था.

आटो वाला बैग उठा लाया और राहुल को दे दिया.

राहुल ने बैग खोल कर रुपए गिने तो पूरे 11 लाख रुपए थे. 11 लाख रुपए आसानी से मिलने से राहुल और प्रियंका का लालच बढ़ गया. ढाई लाख रुपए कम भेजने की बात कह कर दोबारा डिमांड की गई.

रुपए कम भेजने का जुरमाना 2 लाख रुपए लगाया गया. साढ़े 4 लाख रुपए के साथ ही 25-25 हजार के 3 लिफाफों की डिमांड का लेटर रास्ते में जा रहे मजदूर के जरिए गार्ड को भेजा. बिजनेसमैन को उसी पत्र में 10 लाख रुपए अलग से मांगे थे.

ये 10 लाख रुपए कंपनी के उस व्यक्ति की जानकारी देने के एवज में मांगे थे. दीपक ने सोचा कि कौन फैक्ट्री में आस्तीन का सांप बन कर यह सब जानकारियां जुटा कर आरोपियों को दे रहा है. उस का पता चल जाएगा. यह सोच कर दीपक ने डिमांड के अनुसार 15 लाख 25 हजार रुपए डर कर उसी पेड़ के नीचे रख दिए.

रुपए का बैग रख कर दीपक के जाने के बाद दूसरी बार राहुल का डर खुल गया था. बैग रखने के कुछ देर बाद जा कर राहुल खुद बैग उठा कर ले आया. दीपक कंपनी के व्यक्ति की जानकारी के लिए ब्लैकमेलर के लेटर का इंतजार करता रहा.

26 दिसंबर, 2022 को गार्ड ने दीपक को एक और लिफाफा दिया. उस में कुछ प्रश्नउत्तर लिखे थे. उस पत्र में कंपनी के व्यक्ति के नहीं मिलने और जानकारी नहीं होने के बारे में लिखा था. उस व्यक्ति की जानकारी देने के लिए 23 लाख रुपए की डिमांड की.

4 जनवरी, 2023 को बताए एड्रेस पर फिर दीपक माहेश्वरी रुपए की जगह पत्र लिख कर डाल आए. उस पत्र में दीपक ने लिखा कि रुपए की व्यवस्था नहीं हुई. व्यवस्था कर रहा हूं. मैं रात एक बजे आप के बताए अनुसार इसी जगह पर आप का काम कर दूंगा.

समाज में इज्जत न चली जाए, यह सोच कर उन्होंने पैसा ब्लैकमेलर को डर के मारे दे दिया था. 26 लाख 25 हजार रुपए गंवाने के बाद दीपक सोच रहे थे कि चलो ब्लैकमेलर से पिंड छूटा.

दीपक माहेश्वरी समझ गए कि ब्लैकमेलर उन्हें मरते दम तक ब्लैकमेल करते रहेंगे. ऐसे में दीपक माहेश्वरी ने 5 जनवरी, 2023 को विश्वकर्मा थाने में जा कर अपनी आपबीती बता कर ब्लैकमेलर ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद ही पुलिस ने योजना बना कर आरोपियों को गिरफ्तार किया.

दीपक माहेश्वरी को जब पता चला कि एक आरोपी उन की पूर्व अकाउंटेंट प्रियंका मेघवाल है और दूसरे आरोपी राहुल बोहरा की सगी बहन उन की फैक्ट्री में काम करती है तो वह कह उठे ‘यह सिला दिया जौब देने का.’

पुलिस ने दीपक द्वारा विश्वकर्मा थाने में दर्ज मामले में अज्ञात आरोपियों की जगह मुख्य आरोपी राहुल बोहरा एवं उस की सहयोगी प्रियंका मेघवाल का नाम दर्ज कर लिया. पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से राहुल व प्रियंका को जेल भेज दिया गया.  द्य

मसाज पार्लर की आड़ में जिस्म का धंधा – भाग 3

करमपाल केबिन से निकल कर रिसैप्शन काउंटर पर आ गया. उस ने बड़े रूखे स्वर में कहा, ‘‘वह युवती तो बड़े नखरे वाली है, मैं ने आप को 2 हजार दिए हैं. वह देह संबंध बनाने के लिए मुझ से एक्स्ट्रा पैसे मांग रही है. यह क्या बात हुई?’’

रिसैप्शनिस्ट गुस्से से भर गया. उस ने मोहिनी को बुलाया, वह आ गई तो रिसैप्शन मैनेजर उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यह क्या तरीका है मोहिनी, कस्टमर से अलग से चार्ज वसूलने का. मैं पहले भी तुम्हें समझा चुका हूं तुम्हें, यहां कस्टमर को खुश करने के लिए रखा गया है. मैं तुम्हें इसी बात के लिए मोटा कमीशन देता हूं लेकिन तुम हो कि अपनी हरकतों से बाज नहीं आती.’’

‘‘गलती हो गई सर,’’ मोहिनी सिर झुका कर बोली, ‘‘आगे आप को कोई शिकायत सुनने को नहीं मिलेगी.’’

‘‘जाओ, इन्हें केबिन में ले जाओ और संतुष्ट कर के ही विदा करना.’’

‘‘जी सर,’’ मोहिनी बोली और केबिन की तरफ कदम बढ़ाते हुए उस ने करमपाल को अपने पीछे आने का इशारा कर दिया. करमपाल उस के पीछेपीछे केबिन में आ गया.

मोहिनी केबिन का दरवाजा बंद करती उस से पहले ही करमपाल बोला, ‘‘मुझे फ्रैश होना है मोहिनी, तुम कपड़े उतार कर मेरा इंतजार करो. मुझे बताओ, वाशरूम कहां है?’’

‘‘आप सामने गैलरी में जाइए.’’

करमपाल गैलरी में आ गया. यह बिल्डिंग का फर्स्ट फ्लोर था. करमपाल ने जेब से रुमाल निकाल कर हवा में लहरा दिया. यह रेडिंग पार्टी के लिए इशारा था. स्पा के आजूबाजू खड़े पुलिसकर्मी एसएचओ रविंद्र पाल तोमर का इशारा पा कर धड़धड़ाते हुए स्पा में घुस गए. एसीपी भी साथ में थे, इसलिए सभी चौकन्ने और मुस्तैद थे.

स्पा मसाज पार्लर के रिसैप्शन हाल में पड़े सोफे पर एक युवती और एक युवक बैठे बातें कर रहे थे. वह पुलिस को देखते ही उठ कर भागने को हुए लेकिन एसआई राकेश और शिवराज ने उन्हें पकड़ लिया. उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं.

लड़की को कांस्टेबल पायल के हवाले कर के रेडिंग पार्टी अन्य कमरों में दाखिल हो गई. एक केबिन में मोहिनी पलंग पर पैर लटका कर बैठी थी. वह अपने कस्टमर करमपाल के बाथरूम से फारिग हो कर लौटने का इंतजार कर रही थी. पुलिस को देखते ही वह घबरा गई.

एसआई रवि चौधरी ने उसे हिरासत में ले लिया. करमपाल भी अंदर आ गया. उसे देख कर मोहिनी को समझते देर नहीं लगी कि वह उस की देह का सौदागर नहीं, पुलिस का ही आदमी है. मोहिनी को बाहर ला कर महिला कांस्टेबल पायल के सुपुर्द कर दिया गया.

तलाशी में रिसैप्शन काउंटर की मेज की दराज में सफेद पौलीथिन में कंडोम के 5 पैकेट मिले. उन्हें कब्जे में ले लिया गया.

एसीपी की मौजूदगी में रिसैप्शन पर बैठने वाले युवक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस में 5-5 सौ रुपए के वे नोट भी बरामद हो गए, जिन पर एसएचओ तोमर के बहुत बारीक हस्ताक्षर थे. उन्हें एक पौलीथिन में रख कर पौलीथिन को सील कर के मुहर लगा दी गई. कंडोम के पैकेट भी एक पौलीथिन में सुरक्षित रख कर सीलमोहर कर दिए गए.

पकड़े गए युवक से नामपता पूछा गया तो उस ने अपना नाम मोहम्मद तसलीम पता 2729, जे-29 छोटी मोर सराय, जीपीओ नार्थ, दिल्ली-6 बताया. वहीं इस गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा का मालिक था.

वह कमसिन और जवान खूबसूरत युवतियों को मसाज पार्लर की आड़ में देह परोसने के लिए कस्टमर को औफर करता था. इन्हें इस के लिए मोटा कमीशन दिया जाता था. उस पर स्पा में लड़कियों से वेश्यावृत्ति करवाने के जुर्म में 3/4/5 इम्मोरल ट्रैफिक एक्ट 1956 का केस दर्ज किया गया.

स्पा में देह व्यापार करने वाली युवतियां आलिया और मोहिनी थीं. आलिया पत्नी मुजाहिद, नजदीक मुस्तफा मसजिद लोनी, गाजियाबाद में रहती थी. मोहिनी पत्नी मोहित, नबी करीब दिल्ली में रहती थी. दोनों से स्पा में देह परोसने की बाबत पूछा गया तो उन दोनों ने बताया कि उन के पति कोई कामधंधा नहीं करते हैं.

घर खर्च चलाने के लिए वह गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा में लगी तो मसाज करने के लिए ही थीं, लेकिन मोहम्मद तसलीम ने उन्हें मोटी कमीशन का लालच दे कर देह परोसने के लिए भी राजी कर लिया. स्पा में अधिकांश लोग सैक्स के लिए ही आते थे.

पुलिस आलिया, मोहिनी और मोहम्मद तसलीम को थाना पहाड़गंज ले आई. तीनों से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया.

मसाज पार्लर की आड़ में चल रहे सैक्स रैकेट का खुलासा करने वाली पुलिस टीम 20 नवंबर, 2022 की रात को अपनी कामयाबी पर स्टाफरूम में जश्न मना रही थी. तब रात के 12 बजे पुलिस का मुखबिर एएसआई मनोज कुमार के सामने हाजिर हुआ.

एएसआई मनोज कुमार उसे देख कर मुसकराए, ‘‘आओ जयपाल, ठीक मौके पर आए. कल देशबंधु गुप्ता रोड पर स्थित गोल्डन यूनिसैक्स सैलून में सफल रेड डाल कर अपराधियों को पकड़ने की खुशी में पार्टी चल रही है. जाओ, स्टाफ रूम में जा कर तुम भी कुछ खापी लो.’’

‘‘मैं यहां पार्टी खाने नहीं आया हूं साहब.’’

‘‘तो किसलिए आए हो, क्या कोई खबर है तुम्हारे पास?’’ एएसआई मनोज कुमार ने जयपाल के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

‘‘बहुत महत्त्वपूर्ण खबर है साहब,’’ जयपाल आगे को झुक कर बोला, ‘‘साहब, आप ही के क्षेत्र लक्ष्मीनारायण स्ट्रीट, चूनामंडी में अरबन गार्डन के पास स्थित बार में अश्लील डांस किया जा रहा है. बार वाले सभी नियमकानून ताक पर रख कर तेज आवाज में म्यूजिक भी बजाते हैं, जिस से आसपास रहने वाले परेशान होते हैं. यदि आप बार में इसी वक्त रेड डालेंगे तो गैरतरीके से बार में होने वाले अर्द्धनग्न डांस को रोका जा सकता है.’’

‘‘ओह! यह तो बहुत महत्त्वपूर्ण खबर है. तुम बैठो जयपाल, मैं इंसपेक्टर साहब को यह जानकारी दे कर उन से रेड की इजाजत लेता हूं.’’ मनोज कुमार ने कहा और उठ कर बाहर निकल गए.

एसएचओ रविंद्र कुमार तोमर अपने कक्ष में थे. मनोज कुमार ने उन के कक्ष में जा कर उन्हें जयपाल द्वारा दी गई खबर बताई तो वह चौंक कर बोले, ‘‘यह पहाड़गंज थाने की नाक के नीचे हो रहा है और हमें खबर नहीं है. बैठिए, मैं अफसरों से बात कर लेता हूं.’’

इंसपेक्टर तोमर ने तुरंत डीसीपी और एसीपी (पहाड़गंज) से फोन द्वारा बात कर के बार में अश्लील डांस होने की सूचना दी. दोनों अधिकारियों ने उन्हें अपने तरीके से टीम बना कर बार पर रात को ही रेड डालने की परमिशन दे दी.

एसएचओ तोमर ने उसी वक्त एएसआई मनोज कुमार के नेतृत्व में एक रेड पार्टी का गठन कर दिया. इस टीम में एसआई सुरेश बाल्यान, हैडकांस्टेबल निर्देश, सुनील और महिला कांस्टैबल पायल को शामिल कर के मुखबिर राजपाल के साथ अरबन गार्डन पर रेड डालने केलिए भेज दिया.

रात के साढ़े 12 बजे यह पुलिस पार्टी एएसआई मनोज कुमार के साथ अरबन गार्डन के पास पहुंच गई. मनोज कुमार ने मुखबिर की बात को सही पाया.

उन्होंने मुखबिर जयपाल को ही स्थिति जानने के लिए बार में भेजा. जयपाल थोड़ी ही देर में बार से बाहर आ गया. उस ने बताया कि बार में अश्लील डांस चल रहा है. एएसआई मनोज कुमार ने रेड पार्टी को इशारा किया. रेड पार्टी उन के नेतृत्व में बार में प्रवेश कर गई. बार ग्राउंड फ्लोर पर था.

बार में म्यूजिक पार्टी एक किनारे बैठी म्यूजिक बजा रही थी और काफी ग्राहक बैठ कर वहां अश्लील डांस कर रही 3 लड़कियों की ओर आकर्षित थे. वे लड़कियां अर्द्धनग्न कपड़ों में थीं, उन के शरीर के उत्तेजक अंग उन कम कपड़ों से झांक रहे थे. लड़कियां बहुत ही भद्दा डांस कर रही थीं, वे वहां बैठे ग्राहकों की तरफ गंदे इशारे भी कर रही थीं.

पुलिस को देखते ही वहां भगदड़ मच गई. लेकिन मुस्तैद पुलिस पार्टी ने दरवाजा पहले ही कवर कर रखा था. हैडकांस्टेबल पायल ने उन तीनों लड़कियों को हिरासत में ले लिया. हाल में बैठे ग्राहकों को तथा बार काउंटर पर बैठे मालिक कमलेश कुमार रस्तोगी को भी हिरासत में ले लिया गया.

अश्लील डांस कर रही तीनों लड़कियों के नामपते पूछे गए. एक का नाम सुनीता निवासी महिपालपुर, दिल्ली. दूसरी लड़की की नाम प्रियंका निवासी सीताराम बाजार, दिल्ली, तीसरी लड़की फरजाना खान दिल्ली के ही रामनगर की थी.

उन से बार में अश्लील डांस करने के लिए पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बार का मैनेजर हेमंत गुप्ता ने उन्हें कम कपड़े पहन कर डांस करने के लिए बुलाया था.

उन के खिलाफ अश्लील डांस करने के लिए 294/109/34 आईपीसी की धारा के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एएसआई मनोज कुमार ने बार के मालिक कमलेश रस्तोगी, मैनेजर हेमंत गुप्ता, म्यूजिक बजाने वाली पार्टी, बार के स्टाफ मेंबर वहां दिल्ली और एनसीआर से आ कर अश्लील डांस देखने, डांस में शामिल होने के जुर्म में 17 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया. सभी को पहाड़गंज थाने लाया गया.

सभी के खिलाफ भादंवि की धारा 294/109/34 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें भेज दिया गया.

पहाड़गंज थाने ने 2 दिन में 2 जगह रेड डाल कर जो सफलता प्राप्त की थी, उस के लिए डीसीपी श्वेता चौहान ने उन्हें फोन कर बधाई दी.       द्य

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 3

कामुक मन में आया उबाल

नशा कैसा भी हो, चरस गांजा, भांग, यदि अपने सामने कोई इन का नशा करता है तो मन इन्हें सेवन करने को ललचा ही जाता है. अमर पुरी को धीरेधीरे चरस-गांजा, भांग पीने का चस्का लग गया. वह हर प्रकार का नशा करने लगा.

तथाकथित तंत्रमंत्र और ज्योतिष की दुकान चल ही रही थी, पैसा भी आ रहा था. नशेपत्ते ने अमर पुरी की खोपड़ी को ऐसा घुमाया कि वह हवालात में पहुंच गया.

हुआ यूं कि अपने कमरे में अमर पुरी बैठा हुआ शराब की चुस्कियां ले रहा था. तब उस के एक शिष्य ने आ कर बताया कि एक महिला अपनी समस्या ले कर दरवाजे पर आई है, आप से मिलना चाहती है.

‘‘भेज दो अंदर,’’ अमरपुरी ने बोतल का ढक्कन लगा कर बोतल को अलमारी के पीछे छिपाते हुए कहा.

शिष्य बाहर चला गया. कुछ ही देर में एक सुंदर महिला अंदर आ गई. अमर पुरी ने धूनी जला रखी थी. उस के सामने आसन पर वह आंखें मूंद कर बैठा था. महिला ने झुक कर अमर पुरी के चरण

स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘बाबा, मैं बहुत दुखी हूं. आप मेरा दुख दूर करें.’’

अमर पुरी ने आंखें खोल कर उस महिला की ओर देखा. उस के चेहरे पर परेशानी और दुख की पीड़ा साफ झलक रही थी. महिला की सुंदरता पर अमर पुरी मोहित हो गया.

कितने ही समय से वह स्त्री सुख से वंचित था,उस का मन महिला पर आया तो वह उसे हासिल करने की जुगत में लग गया. उस के दिमाग में एक योजना आई तो उस की आंखें चमक उठीं.

उस ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बैठ जाओ. और मुझे अपना कष्ट बताओ.’’

महिला नीचे बैठ गई. उस ने बड़े करुण स्वर में कहा, ‘‘मेरा पति मुझ से दूर होता जा रहा है बाबा.’’

‘‘क्यों?’’ अमर पुरी ने पूछा.

‘‘वह किसी दूसरी औरत के चक्कर में फंस गया है. सारी कमाई उसी पर खर्च कर देता है. मैं खर्चा मांगती हूं तो मुझ से लड़ाई करता है. मैं ने कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाला. मैं कैसे अपने खर्च के लिए काम करने जाऊं, मैं बहुत संकट में फंस गई हूं.’’

‘‘तुम्हारा संकट मैं दूर कर दूंगा. तुम अपने पति की तसवीर लाई हो क्या?’’

‘‘नहीं बाबा.’’

‘‘तुम कल उस की तसवीर ले कर उसी समय आना. मैं एकांत में तुम्हें सामने बिठा कर तंत्रमंत्र विद्या से तुम्हारे पति का दिमाग बदल दूंगा. वह कल के बाद कभी भी तुम्हारी सौतन के पास नहीं जाएगा. उस से नफरत करने लगेगा.’’

‘‘आप ऐसा कर देंगे तो मैं आप के चरणों को धो कर पीऊंगी बाबा. अब मैं चलती हूं, कल मैं अपने पति की फोटो ले कर इसी समय यहां आ जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है बच्चा,’’ अमर पुरी ने कहा.

वह महिला चली गई तो अमर पुरी फिर शराब की बोतल ले कर बैठ गया. उस की आंखों के आगे उस महिला का सुंदर चेहरा घूम रहा था और दिमाग में वह कुटिल योजना जिसे वह अमल में लाने वाला था.

दूसरे दिन शाम ढलने के बाद वह महिला अपने पति का फोटो ले कर अमर पुरी के कमरे में आ गई. अमर पुरी उसे देख कर खुश हो गया. अमर पुरी ने उसे अपने सामने आसन पर बिठाया और स्वर को गंभीर बना कर कहा, ‘‘मैं ने रात को ध्यान लगा कर तुम्हारे पति के विषय में ज्ञात किया था. उस औरत ने तुम्हारे पति को वश में करने के लिए किसी मौलवी से वशीकरण करवाया है. उसी वशीकरण क्रिया की काट हमें करनी होगी, तभी तुम्हारा पति उस औरत के वशीकरण से मुक्त होगा.’’

‘‘आप कुछ भी कीजिए बाबा, मुझे मेरा पति वापस चाहिए.’’ वह महिला गिड़गिड़ाई.

‘‘पति की तसवीर लाई हो तुम?’’

‘‘हां बाबा,’’ उस महिला ने अपने ब्लाउज में हाथ डाल कर चोली से एक पासपोर्टसाइज तसवीर निकाल कर अमर पुरी की तरफ बढ़ा दी.

अमर पुरी ने तसवीर ले कर अपनी दाईं ओर रखी काली माता की मूर्ति के चरणों में रख दी. फिर महिला से बोला, ‘‘मैं

तुम्हारे पति की वशीकरण क्रिया की काट करने के लिए तुम्हारे सहयोग से तांत्रिक क्रिया करूंगा. तुम्हें तन और मन से मेरा सहयोग करना होगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं बाबा,’’ महिला ने स्वीकृति दे दी.

महिला ने पहुंचा दिया हवालात

अमर पुरी ने धूप, लोबान जलाई. कमरे की तेज रोशनी बुझा कर उस ने जीरो पावर का मद्धिम प्रकाश कमरे में किया. फिर एक प्लेट में रखी उड़द और काले तिल को मुट्ठी में ले कर आंखें बंद कर के मंत्रजाप करने लगा.

वह महिला मद्धिम रोशनी के कारण रहस्यमयी बन चुके कमरे में बाबा के सामने बैठी उन की क्रिया को देख रही थी. वह बाबा द्वारा की जा रही तंत्रमंत्र क्रिया से और रहस्यमयी वातावरण से मन ही मन सहमी हुई थी.

अमर पुरी जोरजोर से मंत्रजाप कर रहा था और सामने जल रही धूनी में उड़द और तिल फेंक रहा था. कमरे में धूप, लोबान का धुआं भरने लगा तो वह महिला खांसने लगी.

‘‘लो, यह अभिमंत्रित जल पी लो, तुम्हारी खांसी रुक जाएगी.’’ अमर पुरी ने पानी से लबालब भरा एक प्याला उस महिला को देते हुए गंभीर स्वर में कहा.

महिला ने वह प्याला ले लिया और गटगट कर के वह प्याले का पानी पी गई. अमर पुरी के होंठों पर कुटिल मुसकान तैरने लगी. वह और जोर से मंत्रजाप करने लगा. कुछ ही क्षण गुजरे वह महिला सिर पकड़ कर बोली, ‘‘मेरा सिर तेजी से घूम रहा है बाबा.’’

‘‘घूमने दो,’’ अमर पुरी हंस कर अपनी जगह से उठते हुए बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में अपना होश खो दोगी. तब मैं तुम्हारे बेहोश जिस्म को वशीकरण क्रिया की काट करने के लिए उपयोग में लाऊंगा.’’

उस महिला ने बेहोशी की अवस्था में जातेजाते बाबा अमर पुरी के ये अंतिम शब्द नहीं सुने. वह लहरा कर फर्श पर गिरने को हुई तो अमर पुरी ने उसे अपनी बांहों में थाम लिया. उस के चेहरे पर शैतानी मुसकान और आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

सालों बाद उस की बांहों में एक खूबसूरत महिला का गुदाज जिस्म था. ऐसा जिस्म जो अमर पुरी की किसी भी अशोभनीय क्रियाकलापों का विरोध करने की स्थिति में नहीं था.

दुष्कर्मियों को सजा : निडरता की मिसाल बनी रीना

उस लड़की की हिम्मत को अब सराहा जाने लगा है, क्योंकि वह निडरता की ऐसी मिसाल बन गई,

जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली रीना (बदला हुआ नाम) दबंग प्रवृत्ति के युवाओं की दरिंदगी का शिकार हुई थी. प्यार करने वालों को सजा देने के मामले में बदनाम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की सरजमीं पर उसे 7 हैवानों ने सामूहिक रूप से अपनी हवस का शिकार बनाया था. विरोध करने पर उस के साथ दरिंदगी की गई.

चुप बैठने के बजाय दरिंदगी की शिकार रीना ने सामाजिक शर्म को किनारे रख कर उन्हें सजा दिलाने की ठान ली. लाख तिरस्कार, दबाव, लालच व धमकियों के बावजूद उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लड़ाई लड़ती रही. नतीजतन हैवानियत करने वाले छटपटा कर रह गए. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन मामूली लड़की निडरता से लड़ाई लड़ कर हैवानियत का खेल खेलने वालों को सजा दिला देगी.

मुजफ्फरनगर की जिला अदालत ने बहुचर्चित गैंगरेप कांड में 31 जुलाई, 2017 को दोपहर 7 युवाओं अब्दुल, राशिद, वासिफ, सोमान, मोनू, राहुल व सलाऊ को उम्रकैद और जुरमाने की सजा सुनाई. इन लोगों ने एक लड़की के साथ न केवल सामूहिक गैंगरेप किया था, बल्कि मोबाइल से उस का एमएमएस भी बना कर वायरल कर दिया था. उन की हनक, हैवानियत और गरीब लड़की की इज्जत को खिलौना समझने की भूल ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया.

किसी ने पीडि़त लड़की को डरायाधमकाया तो किसी ने उस की लूटी अस्मत को दौलत के तराजू में तौला. पर उन के सारे पैंतरों और दबंगता को उस मामूली लड़की ने चकनाचूर कर दिया. रीना की हिम्मत के सामने उन की सभी कोशिशें व करतूत जवाब दे गईं.

मुजफ्फरनगर के एक गांव की रहने वाली रीना रोंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत से रूबरू हुई. उस के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिता मजदूरी कर के तथा 2 भैसों को पाल कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते थे. रीना खुद शाहपुर कस्बे में एक चिकित्सक के क्लिनिक पर रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करती थी. वहीं काम करने वाले एक युवक से उस की दोस्ती हो गई.

17 अगस्त, 2013 को वह अपने दोस्त के साथ बाइक पर सवार हो कर रेस्टोरैंट में खाना खाने के लिए बेगराजपुर जा रही थी. बसधाड़ा गांव के जंगल में वे एक ट्यूबवेल पर रुक कर पानी पीने लगे. इसी बीच 3 युवक वहां पहुंच गए. उन की नजर में इस तरह एक लड़की का किसी लड़के से मिलना गुनाह था.

यह बात अलग थी कि समाज की इस कथित ठेकेदारी की आड़ में उन की खुद की घिनौनी मानसिकता जिम्मेदार थी. उन्होंने रीना के दोस्त के साथ मारपीट की, साथ ही अपने कुछ अन्य साथियों को भी बुला लिया. सभी ने मारपीट कर के रीना के दोस्त को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भगा दिया और रीना को पीटते हुए खींच कर खेत में ले गए.

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इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा.

रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

हैवानियत करने वाले रीना को अपनी मौजमस्ती का साधन बनाना चाहते थे. लेकिन अब वह उन से दूर चली गई थी. इस पर उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने 10 महीने बाद जून, 2014 में वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. इस से हड़कंप मच गया. रीना का चेहरा और युवकों की करतूत साफ झलक रही थी. सभी की पहचान से मामला तूल पकड़ गया.

वीडियो क्लिप रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और रीना को खोज निकाला. इस के बाद रीना ने 24 जून, 2014 को सातों आरोपियों के खिलाफ थाने में तहरीर दे दी. मामला गंभीर था. पुलिस ने गैंगरेप और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. आरोपी दूसरे संप्रदाय के थे. इस से इलाके में तनाव भी बढ़ा, लेकिन पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

पहचान उजागर होने से रीना की जिंदगी दोजख बन गई. समाज ने भी अपनी परंपरागत मानसिकता के चलते उस पर उल्टीसीधी टिप्पणियां कर के अपना रोल बखूबी निभाया. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जो आरोपियों के इस दुष्कर्म पर यह कह कर परदा डालने की कोशिश कर रहे थे कि अगर रीना दोस्त के साथ उस रास्ते से नहीं जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.

कई तरह के लांछन लगाए गए. जिल्लत और तोहमतों से रीना का बेहद करीबी रिश्ता बन गया. तोहमत लगाने वाले लोग ज्यादा थे, जो हर मामले में लडकियों की ही गलती निकालने की मानसिकता का शिकार होते हैं. लेकिन इन सब बातों ने रीना को और भी मजबूत बना दिया था. उस ने इंसाफ की लड़ाई लड़ने की ठान ली.

आरोपियों को सजा दिलाना ही उस की जिंदगी का मकसद बन गया. वक्त बीतता रहा. एक साल बाद 7 में से 6 आरोपियों को जमानत मिल गई. आरोपियों के खिलाफ सबूत मजबूत थे. उन्हें सजा का डर था, लिहाजा वे समझौता करना चाहते थे. रीना द्वारा अदालत में बयान बदलने से पूरा केस उलट सकता था. उन की तरफ से दबाव बनाया जाने लगा.

तरहतरह के लालच दिए गए, लेकिन रीना और उसके मातापिता ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. रीना एक असहनीय दर्द से गुजर रही थी. वह रातों को जाग कर रोती थी. उस का दुख कम हो, इसलिए घर वाले उस की गृहस्थी बसा देना चाहते थे. खतौली कस्बे के नजदीक का रहने वाला एक युवक उस का हाथ थामने को तैयार हो गया. फलस्वरूप दोनों का विवाह हो गया.

एक साल तो रीना का ठीक बीता, लेकिन घटना की परछाईं और वक्त ने खुशियों को उस का दुश्मन बना दिया. आरोपियों के पैरोकार रीना की ससुराल तक पहुंच गए. रीना बताती है कि उन्होंने उस के पति को 25 लाख रुपए देने का लालच तक दे डाला. लालच में आ कर पति व ससुराल वालों ने रंग बदल लिया और उस से बयान बदलने को कहने लगे.

उन का तर्क था कि अब उस की शादी हो गई है, इसलिए ऐसी सभी बातों को बीता हुआ कल मान कर भूल जाना चाहिए, वरना बदनामी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा. रीना ससुराल वालों के बदले रवैये पर हैरान थी. आरोपी पैसे देने और माफी मांगने को तैयार थे. लेकिन रीना ने किसी की नहीं मानी.

इस मुद्दे पर परिवार में कलह रहने लगी. कई महीनों तक भी जब उस ने ससुराल वालों की बात नहीं मानी तो उसे फरमान सुना दिया गया कि या तो वह बयान बदल कर आरोपियों को बचाने में मदद करे या फिर रिश्ता खत्म कर ले. रीना समझ चुकी थी कि ससुराल में उस का साथ देने वाला कोई नहीं है. यह शर्मनाक हकीकत भी थी कि एक पति जिस ने उसे उम्र भर साथ निभाने का वचन दिया था, वह इंसाफ की डगर पर उस का साथ देने के बजाय उसे कमजोर कर रहा था.

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रीना ने जितनी जिल्लत झेली, उतनी ही वह मजबूत होती गई. रीना ने भी ठान लिया कि वह दुराचारियों को कभी माफ नहीं करेगी. लिहाजा उस ने किसी अनहोनी की आशंका के भय से ससुराल से ही रिश्ता खत्म करने का फैसला कर लिया. ससुराल छोड़ कर आपसी सहमति से पतिपत्नी दोनों अलग हो गए. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विचेनाधिकारी सबइंसपेक्टर अजयपाल गौतम ने विवेचना कर के सबूतों सहित अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई. रीना ने पूरा घटनाक्रम अदालत में बयान किया.

अभियोजन पक्ष की तरफ से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता कय्यूम अली ने इसे गंभीर अपराध बताया, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने आरोपियों के कैरियर, उम्र व भविष्य की दलीलें दे कर कम से कम सजा की मांग की. अदालत में आरोपियों द्वारा सुनाई गई शर्मिंदा कर देने वाली वीडियो क्लिप को भी देखा गया. उस से उन की वहशत सामने आ गई. अदालत ने वीडियो को अहम सबूत माना.

आरोप तय होने के बाद आखिर 31 जुलाई को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश भारद्वाज ने सातों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें भादंवि धारा 376 (जी) में उम्रकैद व 10-10 हजार रुपए जुरमाना व आईटी एक्ट में 3 साल का करावास व 25-25 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. आरोपियों में सोमान को छोड़ कर सभी अविवाहित थे. सजा के बाद जब आरोपियों को जेल ले जाया गया तो वे मुंह छिपाते नजर आए.

अदालत का फैसला आने के बाद रीना कहती है, ‘मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती. हैवानों को कभी माफ नहीं किया जा सकता. सजा से दूसरे वहशियों को सीख मिलेगी, ताकि फिर कोई किसी लड़की के साथ ऐसा न कर सके.’

रीना के मातापिता कहते हैं, ‘हम ने बेटी की अस्मत के सामने समझौता नहीं किया. हमें न्याय की पूरी उम्मीद थी.’ हैवानियत करने वाले शायद अपने गुनाह से बच भी जाते, लेकिन अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली रीना की हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ है. उस की हिम्मत ने ही उन्हें उन के गुनाह की सजा दिलाई.

बदतर जिंदगी जीने को मजबूर ‘बाल मजदूर’

इन बच्चों की उम्र 14 साल से कम  है, लेकिन रोजाना इन्हें अकसर 14 घंटे से ज्यादा हाड़तोड़ मशक्कत करनी पड़ती है. कहने को तो ये बाल मजदूर हैं, लेकिन अपनी उम्र और कूवत से बढ़चढ़ कर बालिगों से कहीं ज्यादा मेहनत करते हैं.

सुबहसवेरे जब आमतौर पर लोग सो कर उठते हैं, तब तक ये बच्चे रूखीसूखी रोटी का पुलिंदा बगल में दबाए अपनी काम की जगह पर मौजूद हो चुके होते हैं, फिर 15-16 घंटे की मेहनत के बाद थकान से चूर रात को घर लौट कर बिस्तर पर लेटते हैं, तो दूसरे दिन ही नींद खुलती है. यही जिंदगी है इन नन्हे कामगारों की. इतनी मेहनत के बावजूद ये मजदूर महीने के आखिर में पाते हैं महज कुछ सौ रुपए, पर इस से ज्यादा इन्हें मालिकों से मिलता है जोरजुल्म.

अपनी बुनियादी जरूरतों से दूर ये बच्चे नाजुक उम्र में ही भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीड़ी उद्योग के बाल मजदूर नाक की बीमारी, उनींदापन, निकोटिन के जहर से पैदा होने वाली बीमारी, सिरदर्द, अंधेपन वगैरह के शिकार हो जाते हैं, वहीं कालीन उद्योग के बच्चे लगातार धूल और रेशों में रह कर फेफड़ों की बीमारी से घिर जाते हैं.

पटाका और माचिस उद्योग के बाल मजदूर सांस की परेशानी, दम घुटना, थकावट, मांसपेशियां बेकार हो जाने जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसी तरह ताला उद्योग में तेजाब से जलना, दमा, सांस का रुक जाना, टीबी, भयंकर सिरदर्द होना आम बात है. खदानों में काम करने वाले बच्चों की आंखों, फेफड़ों व चमड़ी की बीमारियों का तोहफा मिलता है, तो कांच उद्योग में काम कर रहे बाल मजदूर आग उगलती भट्ठियों के नजदीक हर समय कईकई घंटे तीनों ओर से गरम कांच से घिरे रह कर कैंसर, टीबी और मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां पाल लेते हैं.

इसी तरह मध्य प्रदेश के मंदसौर इलाके के स्लेट उद्योग में काम करने वाले बच्चे वहां स्लेट, पैंसिल बनाने के लिए खान से स्लेटी रंग की लगातार उड़ती धूल में रह कर फेफड़ों और सांस की तरहतरह की गंभीर बीमारियों से घिर जाते हैं. गुब्बारा उद्योग में काम करने वाले बच्चों की हालत तो और भी ज्यादा खतरनाक है. वे नन्ही उम्र में ही दिल की बीमारी, निमोनिया और सांस की बीमारी की जकड़ में आ जाते हैं.

इतना ही नहीं, ढाबों में काम कर रहे या घरेलू बाल मजदूर नशीली चीजों के सेवन के आदी तो हो ही जाते हैं, शारीरिक और यौन शोषण, ज्यादा काम और दूसरी तरह से भी वे खूब सताए जाते हैं.

गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खेतखलिहानों, अलगअलग लघु व कुटीर उद्योगों, पत्थर खदानों, ढाबों और घरेलू कामों में तकरीबन 10 करोड़ बच्चे मजदूर बने हुए हैं. यह आलम तो तब है, जब कई लैवलों पर कई सालों से बाल मजदूर उन्मूलन के लिए कायदेकानूनों की झड़ी लगा दी गई है. आज भी नए कानून बनाने व बाल मजदूरी लगाने की कोशिश जारी है. फिर आखिर क्या वजह है कि बाल मजदूरी में कमी आने के बजाय लगातार इजाफा ही हो रहा है?

मिसाल के तौर पर, ‘बाल दिवस’ यानी बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू के जन्मदिन के मौके पर जगहजगह सैमिनार, भाषणबाजी और न जाने क्याक्या होता है, पर इन सब से अनजान चाचा नेहरू के 10 करोड़ लाड़ले उस समय रोटी की जुगाड़ में न जाने क्याक्या, सह रह होते हैं.

कुछ लोग बच्चों को मजदूर बनाने में उन से काम कराने वालों का भी बहुत बड़ा हाथ मानते हैं. ऐसे लोगों का लालच यही होता है कि बाल मजदूरी सस्ती पड़ती है. छोटेछोटे कुटीर उद्योग जहां जगह की कमी होती है, इसीलिए बच्चों को काम पर रखा जाता है, क्योंकि वे जगह कम घेरते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा बच्चे वहां ज्यादा से ज्यादा काम कर सकते हैं.

ये बच्चे पूरी तरह से असंगठित होते हैं, जिस से अपने शोषण के खिलाफ मालिक के सामने आवाज नहीं उठा सकते. दूसरी ओर, मालिकों को इन्हें रखने की मजबूरी यह होती है कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें केवल बच्चे ही पूरी सफाई से कर सकते हैं.

मसलन, कालीन उद्योग में कालीन बनाते समय जगहजगह गांठ लगाने की जरूरत पड़ती है. सफाई से गांठ लगाने के लिए उंगलियों का पतला होना जरूरी है, इसीलिए इस उद्योग में बच्चों को अहमियत दी जाती है. इसी तरह माचिस उद्योग में बाल मजदूर लगे होने से माचिसों की बनाने की लागत कम आती है. कम लागत के चलते विदेशी माचिसों से होड़ लेने में दिक्कत नहीं आ रही है. फिर भी बाल मजदूरी कराने वाले मालिकों और बाल मजदूरी के पक्ष में चाहे जो भी दलीलें पेश की जाएं, सचाई तो यही है कि बाल मजदूरी से कई और तरह की सामाजिक दिक्कतें बढ़ी हैं. यह सच है कि गरीबी के चलते बच्चे मजदूरी के लिए मजबूर हैं, पर इस से पैदा होने वाली समस्याएं कहीं ज्यादा गंभीर हैं. चूंकि कुछ इलाको में केवल बच्चों को ही काम पर रखा जाता है, इसलिए उन के मांबाप अकसर बेरोजगार ही होेते हैं.

दूसरी ओर, 15 साल से बड़ा होते ही इन बच्चों को काम से हटा दिया जाता है, इसलिए मांबाप यह मान कर चलते हैं कि ज्यादा बच्चे होने से आमदनी बराबर बनी रहेगी, क्योंकि बड़े बच्चे के काम से हटते ही छोटा संभाल लेगा, फिर उस के बाद उस से छोटा और फिर उस से छोटा. इस सिलसिले को जारी रखने के लिए बच्चों की तादाद ज्यादा रखना मजबूरी बन जाती है.

यह सोच आबादी की समस्या को गंभीर बना रही है. पर इन सब में सब से ज्यादा चिंताजनक पहलू तो सेहत ही है, क्योंकि पैसे की कमी में ये बाल मजदूर न तो ठीक से इलाज करा पाते हैं और न ही ठीक से खानेपीने का बैलैंस बनाए रख पाते हैं, इसलिए ये बच्चे जवानी आतेआते गंभीर बीमारियों के शिकार हो कर कदमकदम पर कतराकतरा मौत का इंतजार करते हैं.

यकीनन, आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं, लेकिन जहां के एकतिहाई बच्चे बचपन की बुनियादी सुविधाओं से अलग हो कर मेहनतमजदूरी में रातदिन एक कर रहे हैं व कम उम्र में ही भयानक बीमारियों से घिर जाते हैं, भविष्य में उन की जगह कहां होगी? क्या बीमार बच्चों के नाजुक कंधों पर तैयार की जा रही भविष्य के विकास की बुनियाद मजबूत हो पाएगी? कब इन्हें इन का हक मिल पाएगा? इन सवालों के जवाब भारत के नीति बनाने वालों के पास भी नहीं है.