प्रियंका को मिला मौत का शेयर – भाग 3

हिमांशु के साथ एक युवक और आया था. टीआई ने हिमांशु से उस के बारे में पूछा तो हिमांशु के बोलने से पहले वह युवक बोला, ‘‘सर, मैं आशीष साहू हूं और दयालबंद में मेरा मैडिकल स्टोर है. प्रियंका अकसर मेरे यहां आया करती थी और अपनी स्कूटी मेरी दुकान के सामने ही खड़ी करती थी.’’

यह सुन कर प्रदीप आर्य उस से निश्चिंत हो गए.

उन्होंने प्रियंका की सहेलियों का शाम को ही बयान लिया. एक सहेली राधिका ने बताया, ‘‘सर, 15 नवंबर, 2022 को देर शाम मेरे पास आशीष साहू का फोन आया था. उस ने कहा था कि प्रियंका की स्कूटी मेरी दुकान के सामने खड़ी है. मुझे दुकान बंद करनी है, स्कूटी आप ले जाओ, तो मैं स्कूटी ले आई साथ में उन्होंने एक बैग भी दिया.’’

यह सुन कर के प्रदीप आर्य की छठी इंद्री मानो जाग गई. उन्होंने हिमांशु से पूछा, ‘‘प्रियंका के मामले में यह आशीष साहू कहां से आ गया? कौन है यह? आप लोग क्या जानते हैं और क्या जब उस से मुलाकात की थी तो स्कूटी और बैग वाली बात उस ने बताई थी.’’

‘‘सर, मैं जब बिलासपुर आया तो आशीष साहू से ही मिला था और सब से पहले प्रियंका के बारे में बात की थी. उस ने इन सब बातों का तो कोई जिक्र नहीं किया.’’ हिमांशु बोला.

प्रदीप आर्य ने जांच और पूछताछ के लिए आशीष साहू को तलब किया तो उस ने कहा, ‘‘हां, यह सच है कि प्रियंका सिंह 15 नवंबर को मेरे मैडिकल स्टोर पर आई थी और स्कूटी और बैग छोड़ कर चली गई थी. यह बात मैं ने इसलिए नहीं बताई थी कि इन्हें राधिका ने तो बता ही दिया होगा.’’

पुलिस प्रियंका सिंह की गुमशुदगी के मामले में धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी. कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. 20 नवंबर, 2022 को आशीष साहू के पड़ोसी राम कुमार ने पुलिस को फोन कर बताया कि आशीष साहू के घर से बड़ी बदबू आ रही है.

यह जानकारी मिलते ही टीआई प्रदीप आर्य पुलिस टीम के साथ आशीष साहू के घर आ पहुंचे. उन्होंने महसूस किया कि घर के आसपास दुर्गंध फैली हुई है. उन्होंने आशीष से पूछा, ‘‘क्या बात है, किस चीज की बदबू आ रही है?’’

‘‘नहीं सर, मुझे तो कोई बदबू नहीं आ रही,’’ आशीष ने सहज रूप से जवाब दिया.

टीआई ने जब पुलिस टीम को उस के घर की तलाशी कर के जांच करने के लिए कहा तो आशीष साहू की हवाइयां उड़ने लगीं. थोड़ी देर में पुलिस ने आशीष साहू की कार में रखी प्रियंका सिंह की लाश बरामद कर ली, जो पौलीथिन में बंधी हुई थी. पुलिस ने आशीष साहू को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने आशीष साहू से पूछताछ की तो थोड़ी देर में वह टूट गया और उस ने प्रियंका की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी—

15 नवंबर, 2022 को दिन मंगलवार था. लगभग 2 बजे दोपहर अचानक प्रियंका सिंह आशीष के मैडिकल स्टोर पर आई तो उस ने हमेशा की तरह उस का स्वागत किया. मगर उस दिन प्रियंका सिंह की त्यौरी चढ़ी हुई थी.

उसे देख कर ही आशीष घबरा गया. उसे बमुश्किल शांत कर बैठाया और बातचीत शुरू की तो प्रियंका ने छूटते ही गुस्से में कहा, ‘‘क्या हुआ मेरे रुपए का, मुझे तो लगता है कि तुम मुझे यूं ही चक्कर पर चक्कर लगवाते रहोगे.’’

आशीष ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘प्रियंका, मुझे थोड़ा वक्त दो, मैं शेयर मार्केट में पूरी तरह बरबाद हो गया हूं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

प्रियंका ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘देखो आशीष, तुम ने क्या कहा था, तुम साफसाफ मुझ से बोले थे कि जो भी रिस्क है वह तुम्हारा होगा. अब मेरे पैसे दबाए तो यह अच्छी बात नहीं है.’’

आशीष साहू ने दुख भरे स्वर में कहा, ‘‘देखो, सच्चाई यह है कि शेयर का मार्केट कोई भी मोड़ ले सकता है. जब वह हम ने कमाए तो मैं ने तुम्हें दिए, अब अगर डूब गए हैं तो मैं क्या करूं. फिर भी मैं बोल रहा हूं कि मैं धीरेधीरे तुम्हारे सारे रुपए दे दूंगा.’’

‘‘देखो, मैं ने रुपए जिन से लिए हैं उन से क्या कहूं. मुझे लग रहा है कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो. मैं जानती हूं कि तुम्हारी नीयत खराब हो गई है और मैं कुछ नहीं जानती, मुझे आज पैसे चाहिए वरना…’’

इतना सुनना था कि आशीष दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘देखो, हम शांति से भी बात कर सकते हैं प्लीज. तुम्हारा पैसा मिल जाएगा, आज ही मिल जाएगा.’’

यह कह कर प्रियंका के गुस्से को शांत कर उस ने मैडिकल का शटर नीचे गिरा दिया. और मौका मिलते ही उस ने प्रियंका सिंह का गला दबा कर उसे जमीन पर पटक दिया.

आशीष ने प्रियंका सिंह के सिर पर एक डंडा दे मारा, वह दर्द से बिलबिला उठी. आननफानन में आशीष साहू ने क्लोरोफार्म रुई में रख कर उसे सुंघा दी. थोड़ी ही देर में प्रियंका बेहोश हो गई. आशीष साहू ने अब उस के बाद प्रियंका के टुकड़ेटुकड़े कर के लाश पौलीथिन में डाल कर फ्रिज में रख दी.

उस ने निश्चय कर लिया था कि रात को अपनी कार में पौलीथिन में रखी हुई लाश को डाल कर के ठिकाने लगा देगा. मगर रात होतेहोते उस की हिम्मत टूट गई. 4 दिनों तक लाश फ्रिज में ही पड़ी रही. इस बीच दुकान पर आ कर वह बैठता और दुकान में फैल रही बदबू को रोकने के लिए सेंट और अगरबत्ती का प्रयोग करता रहा.

फिर आशीष ने प्रियंका के शव को 19 नवंबर, 2022 की देर रात 3 बजे अपनी कार में डाला. यह सारा दृश्य सामने की दुकान के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया. उस ने सोचा कि प्रियंका के शव को कहीं ठिकाने लगा देगा. वह गाड़ी ले कर के निकला भी, मगर उस की हिम्मत नहीं हुई तो उस ने गाड़ी घर के गैरेज में खड़ी कर दी.

टिकरापारा, बिलासपुर के रहने वाले 27 वर्षीय आशीष साहू द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने 20 नवंबर, 2022 को देर शाम को उसे गिरफ्तार कर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मनीष दुबे के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तलाक के डर से बच्चे की बलि

9 जुलाई, 2017 की शाम 6 बजे के करीब घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा सुनील का 3 साल का बेटा यश अचानक लापता हो गया. सुनील मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के थाना गौतमपुरा के गांव गढ़ी बिल्लौदा का रहने वाला था. बेटे के गायब होने का पता चलते ही वह गांव वालों की मदद से उसकी तलाश में लग गया.

काफी खोजबीन के बाद भी जब बेटे का कुछ पता नहीं चला तो सुनील ने गांव के कुछ लोगों के साथ थाना गौतमपुरा जा कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सुनील बेटे की गुमशुदगी भले ही दर्ज करवा आया था, लेकिन घर लौट कर उस से रहा नहीं गया. वह पूरी रात बेटे की तलाश में इधरउधर भटकता रहा. जहां भी संभव हो सका, उस ने बेटे को खोजा.

लेकिन सुनील की सारी मेहनत तब बेकार गई, जब सुबह मुंहअंधेरे सुनील के पड़ोसी दिलीप बागरी ने शोर मचाया कि सुनील का बेटा यश उस के आंगन में बेहोश पड़ा है.

दिलीप के शोर मचाते ही पूरा गांव उस के आंगन में जमा हो गया. गांव वालों ने यश को टटोला तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की सूचना थाना गौतमपुरा पुलिस को दी गई.

सूचना मिलते ही थाना गौतमपुरा के थानाप्रभारी हीरेंद्र सिंह राठौर पुलिस बल के साथ गांव गढ़ी बिल्लौदा पहुंच गए. उन्होंने यश को गौर से देखा तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मर चुका है. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो उसे देख कर ही लग रहा था कि बच्चे के पूरे शरीर में सुई चुभोई गई है. उस के पूरे शरीर से खून रिस रहा था.

बच्चे के मुंह पर भी अंगुलियों के निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बच्चे का मुंह भी दबाया गया था. संभवत: मुंह दबाने से ही दम घुटने के कारण बच्चे की मौत हुई थी. सुई चुभोने से पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि तंत्रमंत्र में बच्चे की हत्या की गई थी. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर हीरेंद्र सिंह राठौर ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

यह साफसाफ तंत्रमंत्र में हत्या का मामला था, इसलिए हीरेंद्र सिंह इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर बच्चे की हत्या किस ने की है? तंत्रमंत्र के अलावा हत्या की कोई दूसरी वजह भी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि सुनील इतना पैसे वाला आदमी नहीं था कि कोई फिरौती के लिए उस के बेटे का अपहरण करता. उस का कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था कि दुश्मनी में उस के बेटे का कत्ल किया गया हो.

इस के अलावा थानाप्रभारी ने यह भी पता कराया कि सुनील का किसी अन्य औरत से चक्कर तो नहीं था? जिस की वजह से उस ने पत्नी और बेटे से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया हो.

जिस दिलीप बागरी के आंगन में यश का शव मिला था, उस से भी पूछताछ की गई. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं मासूम बच्चे की हत्या क्यों करूंगा? मैं तो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था. रात 12 बजे तक तो मैं सुनील के साथ ही था. उस के बाद घर आ कर सो गया था. बच्चे की चिंता में मैं ने रात में खाना भी नहीं खाया था.’’

दिलीप बागरी ने जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी थी, उस से हीरेंद्र सिंह राठौर को लगा कि शयद किसी अन्य ने बच्चे की हत्या कर के इसे फंसाने के लिए लाश इस के आंगन में फेंक दी है. यही सोच कर वह थाने लौट आए. थाने आ कर उन्होंने यश की गुमशुदगी की जगह उस की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की खुद ही जांच शुरू कर दी.

कई दिनों तक वह इस मामले की विवचेना करते रहे, पर हत्यारे तक पहुंचने की कौन कहे, वह यह तक पता नहीं कर सके कि मासूम यश की हत्या क्यों की गई थी?

जब हीरेंद्र सिंह राठौर इस मामले में कुछ नहीं कर सके तो आईजी हरिनारायण चारी ने उन का तबादला कर उन की जगह पर गौतमपुरा का नया थानाप्रभारी अनिल वर्मा को बनाया.

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अनिल वर्मा थोड़ा तेजतर्रार अधिकारी थे. अब तक की गई हीरेंद्र सिंह की जांच का अध्ययन कर के पूरी बात उन्होंने डीआईजी हरिनारायण चारी, एडिशनल एसपी पंकज कुमावत तथा एसडीओपी अमित सिंह राठौर को बताई तो सभी अधिकारियों ने एक बार फिर दिलीप बागरी से थोड़ा सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

क्योंकि दिलीप बागरी ने भले ही अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा था, पर सभी को उसी पर शक था. अनिल वर्मा ने दिलीप से पूछताछ करने से पहले मुखबिरों से उस के बारे में पत कराया. मुखबिरों से उन्हें पता चला कि दिलीप इधर बेटे की चाह में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा था. बेटे के लिए ही वह एक के बाद एक कर के 3 शादियां कर चुका है.

बेटे के ही चक्कर में उस की पहली पत्नी की मौत हुई थी. यह जानकारी मिलने के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप और उस की दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी को थाने बुलवा लिया. थाने में दिलीप और उस की पत्नियों से अलगअलग पूछताछ की जाने लगी तो तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया.

इस से अनिल वर्मा का संदेह गहराया तो उन्होने दिलीप बागरी से सख्ती से पूछताछ शुरू की. पुलिस की सख्ती के आगे दिलीप टूट गया और उस ने अपनी दोनों पत्नियों संतोष कुमारी और पुष्पा के साथ मिल कर यश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने यश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

दिलीप की पहली शादी 17 साल की उम्र मे गौतमपुरा के नजदीक के गांव इंगोरिया की रहने वाली सज्जनबाई से हुई थी. सज्जनबाई नाम से ही नहीं, स्वभाव से भी सज्जन थी. उस ने दिलीप की घरगृहस्थी तो संभाल ही ली थी, समय पर 2 बेटियों को जन्म दे कर उस का घरआंगन महका दिया था.

2 बेटियां पैदा होने के बाद सज्जनबाई और बच्चे नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने दिलीप से औपरेशन कराने को कहा. लेकिन दिलीप इतने से संतुष्ट नहीं था. उसे तो बेटा चाहिए था, इसलिए औपरेशन कराने से मना करते हुए उस ने कहा, ‘‘बिना बेटे के इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती, इसलिए जब तक बेटा पैदा नहीं हो जाता, तुम औपरेशन के बारे में सोचना भी मत.’’

पति के आदेश की अवहेलना करना सज्जनबाई के वश में नहीं था. क्योंकि दिलीप ने साफ कह दिया था कि उसे एक बेटा चाहिए ही चाहिए. अगर वह उस का कहना नहीं मानेगी तो वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेगा. दिलीप ऐसा कर भी सकता था, क्योंकि उस की जाति में यह कोई मुश्किल काम नहीं था.

इसलिए सज्जनबाई चुप रह गई. कुछ दिनों बाद सज्जनबाई तीसरी बार गर्भवती हुई. जबकि उस की उम्र तो अभी शादी लायक भी नहीं थी और वह तीसरे बच्चे की मां बनने जा रही थी. दुर्भाग्य से दिलीप का बेटे का बाप बनने का सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि बच्चे को जन्म देते समय सज्जनबाई ही नहीं, उस के बच्चे की भी मौत हो गई थी.

संयोग से पैदा होने वाला बच्चा बेटा ही था. दिलीप को पत्नी और बेटे की मौत का दुख तो हुआ, लेकिन चूंकि ज्यादा दिनों तक वह अकेला नहीं रह सकता था, फिर उसे बेटा भी चाहिए था, जो दूसरी पत्नी लाने के बाद ही पैदा हो सकता था. इसलिए उस ने उज्जैन के नागदा के नजदीक के गांव उन्हेल की रहने वाली पुष्पा से दूसरी शादी कर ली. पुष्पा के घर आते ही वह बेटा पैदा करने की कोशिश में जुट गया. साल भर बाद ही पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह 3 महीने का हो कर गुजर गया.

इस तरह से एक बार फिर दिलीप की आशाओं पर पानी फिर गया. बेटे की मौत से वह काफी दुखी था. लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पा से उसे बेटा हो सकता है, इसलिए वह इस दुख को भुला कर एक बार फिर बेटा पैदा करने की कोशिश में लग गया. पुष्पा गर्भवती तो हुई, लेकिन कुछ महीने बाद उस का गर्भपात हो गया.

इस से दिलीप को वहम होने लगा कि जरूर कोई ऐसी बात है, जो उसे बेटे का बाप बनने में बाधा डाल रही है. वह पड़ोस के गांव में रहने वाले तांत्रिक बलवंत से जा कर मिला. पूरी बात सुनने के बाद तांत्रिक बलवंत ने कहा, ‘‘तुझे बेटा कहां से होगा, तेरी पत्नी की कोख में तो डायन बैठी है. वही उस की संतान को खा जाती है.’’

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उपाय के नाम पर पुष्पा की झाड़फूंक शुरू हो गई. दिलीप कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने संतोष कुमारी से एक और शादी कर ली. उस का सोचना था कि पुष्पा से बेटा नहीं होगा तो संतोष कुमारी से तो हो ही जाएगा. लेकिन शायद उस की किस्मत ही खराब थी. संतोष कुमारी को बेटा होने की कौन कहे, गर्भ ही नहीं ठहरा.

बेटे के लिए दिलीप तो परेशान था ही, उस की दोनों पत्नियां पुष्पा और संतोष कुमार भी परेशान रहने लगी थीं, उन की परेशानी की वजह यह थी कि बेटे के चक्कर में कहीं दिलीप उन्हें तलाक दे कर चौथी शादी न कर ले. क्योंकि उन्हें पता था कि बेटे के लिए दिलीप कुछ भी कर सकता है.

दिलीप चौथी ही नहीं, बेटे के लिए पांचवीं शादी भी कर सकता था. तलाक के बारे में सोच कर पुष्पा और संतोष परेशान रहती थीं. अपनी परेशानी पुष्पा ने पिता मनोहर सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. क्योंकि वह भी दामाद की सोच को अच्छी तरह जानते थे. दामाद को न वह रोक सकते थे, न उन की बात उस की समझ में आ सकती थी.

इसलिए बेटी का भविष्य खराब न हो, यह सोच कर वह पुष्पा को नागदा के पास स्थित गांव उमरनी के रहने वाले तांत्रिक अंबाराम आगरी के पास ले गए. पुष्पा की पूरी बात सुनने के बाद अंबाराम ने कहा, ‘‘तुम्हारी कोख में जो डायन बैठी है, वह मासूम बच्चे की बलि मांग रही है. जिस बच्चे की बलि दी जाए, वह मांबाप की पहली संतान हो. बलि के बाद तुम्हें जो गर्भ ठहरेगा, वह बेटा ही होगा और जीवित भी रहेगा.’’

तांत्रिक अंबाराम ने जो उपाय बताया था, ससुराल आ कर पुष्पा ने उसे पति दिलीप बागरी और सौत संतोष कुमारी को बताया. दिलीप तो थोड़ा कसमसाया, पर पति के तलाक के डर से संतोष कुमारी राजी हो गई. लेकिन समस्या थी मासूम बच्चे की, जो मांबाप की पहली संतान हो.

लेकिन तीनों ने जब इस विषय पर गहराई से विचार किया तो उन्हें पड़ोस में रहने वाले सुनील का 3 साल का बेटा यश याद आ गया. वह मांबाप की पहली संतान था और पड़ोसी होने के नाते दिलीप के घर आताजाता रहता था.

इस के बाद दिलीप और उस की पत्नियों ने यश की बलि देने का मन बना लिया. मासूम बच्चा मिल गया तो दिलीप ने अंबाराम से मिल कर पूछा कि बलि कब और कैसे देनी है? इस तरह अपने घर का चिराग रोशन करने के लिए दिलीप ने पड़ोसी सुनील के घर का चिराग बुझाने का मन बना लिया. अंबाराम ने बलि देने के लिए अमावस्या या पूर्णिमा का दिन बताया था.

9 जून को पूर्णिमा थी, इसलिए 8 जून को पुष्पा, दिलीप और संतोष कुमारी ने अगले दिन बलि देने की तैयारी कर के यश को अगवा करने की योजना बना डाली. इस के बाद दिलीप रोज की तरह सट्टा खेलने बड़नगर चला गया. शाम को जैसे ही यश दिलीप के घर आया, संतोष कुमारी और पुष्पा ने उसे कमरे में बंद कर के दिलीप को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

दिलीप उत्साह से गांव के लिए चल पड़ा. जब वह गांव पहुंचा, यश के गायब होने का हल्ला मच चुका था. पूरा गांव मासूम यश की तलाश में लगा था. दिलीप भी गांव वालों के साथ यश की तलाश का नाटक करने लगा. रात एक बजे तक वह गांव वालों के साथ यश की तलाश में लगा रहा.

जब सभी अपनेअपने घर चले गए तो दिलीप भी अपने घर आ गया. इस के बाद दोनों पत्नियों के साथ मिल कर जिस तरह तांत्रिक अंबाराम ने बलि देने की बात बताई थी, उसी तरह सभी बलि देने की तैयारी करने लगे. यश पड़ोसियों की खतरनाक योजना से बेखबर गहरी नींद में सो रहा था. अंबाराम के बताए अनुसार, दिलीप उसे उठा कर कमरे के अंदर ले गया और वहां बिछी रेत पर लिटा कर तांत्रिक के बताए अनुसार, मासूम यश के शरीर में पिनें चुभोने लगा. पीड़ा से बिलबिला कर मासूम यश रोने लगा तो संतोष और पुष्पा ने उस का मुंह दबा दिया.

दिलीप लगातार यश के होंठों, गर्दन और कंधे पर पिन चुभोता रहा. जहां पिन चुभती, वहां से खून रिसने लगता, जो बह कर रेत में समा जा रहा था. इसी तरह करीब 3 घंटे तक दिलीप यश के शरीर में पिन चुभोता रहा, क्योंकि उसे तब तक यह करना था, जब तक उस मासूम की मौत न हो जाए.

लगभग 3 घंटे बाद जब यश की मौत हुई, तब तक करीब साढ़े 3 बज चुके थे. इस के बाद यश की लाश को ला कर आंगन में रख दिया गया, जिस जगह उस मासूम का खून गिरा था, उसी के ऊपर बिना बिस्तर बिछाए दिलीप ने अपनी दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

क्योंकि तांत्रिक अंबाराम ने दिलीप से कहा था कि मासूम की बलि देने पर जो खून निकलेगा, उस के सूखने से पहले ही उस के ऊपर जितनी भी औरतों से वह शारीरिक संबंध बनाएगा, सभी को 9 महीने बाद बेटा पैदा होगा और वे जीवित भी रहेंगे. इस तरह बेटा पाने की खुशी में दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी ने जश्न मनाया.

दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी को तांत्रिक अंबाराम पर इतना भरोसा था कि यश की लाश उन के आंगन में भले मिलेगी, फिर भी पुलिस उन तीनों पर जरा भी संदेह नहीं करेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

दिलीप और उस की पत्नियों से पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने उज्जैन के रेलवे स्टेशन से तांत्रिक अंबाराम को भी गिरफ्तार कर लिया था. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस का कहना था कि उस की नीयत दिलीप की दोनों पत्नियों पर खराब हो गई थी.

उस का सोचना था कि बच्चे की हत्या के आरोप में दिलीप जेल चला जाएगा तो बाद में उस की दोनों पत्नियां संतोष और पुष्पा आसानी से उस के कब्जे में आ जाएंगी. इसीलिए उस ने बलि देने के बाद बच्चे की लाश को घर के आंगन में रखने के लिए कहा था, ताकि दिलीप आसानी से कानून के शिकंजे में फंस जाए.

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पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप, पुष्पा, संतोष कुमारी और तांत्रिक अंबाराम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बेटे की चाहत में दिलीप ने अपना घर तो बरबाद किया ही, पड़ोसी के मासूम बेटे की जान ले कर उस के घर का भी चिराग बुझा दिया.

इस में सब से ज्यादा दोषी तो तांत्रिक अंबाराम है, जिस ने अपनी कुंठित भावना को पूरी करने के लिए 2 घर बरबाद कर दिए.

बेपटरी जिंदगी और लापरवाह अफसर

रेलवे की सुरक्षा और क्षमता बढ़ाने के लिए बजट में इस बार 1.48 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा गया है.  इस पैसे का इस्तेमाल सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर व रेलवे को हाइटैक बनाने में किया जाएगा. लेकिन, बजट के बाद संसद की लोकलेखा समिति की सदन में पेश की गई रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता वाली लोकलेखा समिति ने रेलवे की कार्यप्रणाली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि 150 खतरनाक चिह्नित पुलों, पटरियों तथा ट्रेनों की गति पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद रेलवे बोर्ड को 31 पुलों को मंजूरी देने में 213 महीने यानी 17 साल से अधिक का समय लग गया.

घटिया गुणवत्ता

लोकलेखा समिति ने रेलवे बोर्ड पर अपनी टिप्पणी में कहा है कि ब्रिटिश शासनकाल में बनाए गए कुछ पुल अच्छी स्थिति में हैं पर आजादी के बाद बनाए व मरम्मत किए गए पुल घटिया गुणवत्ता वाले हैं. रेल पटरियों का भी ऐसा ही हाल है. यह सब रेल अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ है. रिपोर्ट में कुशल कर्मचारियों की कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं.

ऐसे में महज रेल बजट बढ़ा देने से क्या यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा किया जा सकता है? रेल दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है.

अव्यवस्था की मार

रेलयात्रा में लगातार जानमाल का खतरा बना हुआ है. रेल व्यवस्था राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और निकम्मे अधिकारियों, कर्मचारियों के चलते भारी अव्यवस्था के दौर से गुजर रही है लेकिन फिर भी बुलेट ट्रेन चलाए जाने का शोर है. यात्रियों की जान की सुरक्षा को ले कर कोई गंभीर नहीं है. सरकार और उस के मुलाजिम दोनों ‘मनसा वाचा कर्मणा’ चोर हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से होने वाले रेल हादसों की अहम वजह स्टाफ का नकारापन रहा है, मगर सरकार द्वारा इन नकारे स्टाफ पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है.

सरकार संसद के भीतर तो यह स्वीकार करती है कि रेल दुर्घटनाओं में रेलकर्मी दोषी हैं, मगर उन को गिरफ्तार करवाने, कठोर सजा दिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती. लगता है कि सरकार मरने वाले यात्रियों को पिछले जन्म का फल मान कर पौराणिक सोच को पोषित करना चाहती है, बस.

लापरवाही की हद

सरकारी आंकड़े खुद चीख रहे हैं कि रेल हादसों के लिए स्टाफ की लापरवाही जिम्मेदार है, फिर भी सरकार है कि उन दोषी रेल अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई आपराधिक कार्यवाही करने से बचती है. मात्र अनुशासनात्मक कार्यवाही कर अगली बार फिर मौत पर मातम मनाती है और आखिर में मौत के मुलाजिमों को मुक्त कर देती है. यही कारण है कि अब तक स्टाफ की कमी से हुई दुर्घटनाओं में कार्यवाही का कोई बड़ा उदाहरण स्थापित नहीं हो सका कि जिस से स्टाफ सहमा हो और रेल दुर्घटनाएं रुकी हों.

होते होते बचा हादसा

25 सितंबर, 2017 (एक ही ट्रैक पर आई 3 ट्रेनें) : इलाहाबाद के निकट एक ही ट्रैक पर आई दूरंतो ऐक्सप्रैस सहित 3 ट्रेनें एकसाथ टकराने से बालबाल बच गईं.

29 सितंबर, 2017 को बिना गार्ड के रवाना हुई ट्रेन :  उत्तर प्रदेश के उन्नाव में गंगा घाट रेलवेस्टेशन से मालगाड़ी को बिना गार्ड के ही रायबरेली के लिए रवाना कर दिया गया.

हादसों की वजह सिर्फ स्टाफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में 3 वर्षों तक रेलमंत्री रहे सुरेश प्रभु के कार्यकाल में छोटे बड़े कुल 300 रेल हादसे हुए, जिनमें से सिर्फ साल 2017 में जनवरी से अगस्त तक 31 हुए. तब के रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने दुर्घटनाओं के बाबत नैतिक आधार पर इस्तीफा देने की पेशकश की, जिस के बाद तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को यह मंत्रालय मिला. मगर हादसे हैं कि अब भी थमने का नाम नहीं ले रहे.

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19 जुलाई, 2017 को संसद में सुरेश प्रभु ने रेलवे स्टाफ की लापरवाही की वजह से हुई दुर्घटनाओं के बाबत बताया था कि साल 2015-2016 में हुए कुल 107 हादसों में 55 और साल 2016-2017 में 85 हादसों में से 56 हादसे सिर्फ स्टाफ की लापरवाही से हुए. इसी तरह नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 से साल 2016-2017 तक प्रत्येक 10 रेल दुर्घटनाओं में से 6 स्टाफ की चूक की वजह से हुई हैं. नीति आयोग की ही एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में 31 मार्च तक 104 विभिन्न दुर्घटनाओं में 66 दुर्घटनाएं स्टाफ की लापरवाही से हुई हैं.

गुनाहगारों को सजा नहीं

रेलवे की बड़ी दुर्घटनाओं में जांच के लिए संसद ने एक कानून बना कर रेलवे संरक्षा आयोग बनाया है. निष्पक्ष जांच के लिए इस आयोग को केंद्रीय नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधीन रखा गया है. इस आयोग का मुखिया संरक्षा आयुक्त होता है, जो रेलवे के अलग अलग जोन का काम देखने वाले 5 आयुक्तों के साथ काम करता है. संरक्षा आयोग के पास इतना काम होता है कि लंबे अरसे तक जांच ही चलती रहती है. दूसरा, इस आयोग का इतिहास है कि इस के आयुक्त ज्यादातर रेलवे के ही लोग होते हैं, इस से भी जांच का कार्य काफी हद तक प्रभावित होता है.

यही कारण है कि बड़ी से बड़ी दुर्घटनाओं में दोषियों पर आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकी है, जिससे स्टाफ की लापरवाही से दुर्घटनाएं होती रहती हैं. फलस्वरूप, रेलयात्रियों की जान जाने पर दोषी सजा नहीं, मजा काटता है.

पानी में जनता की गाढ़ी कमाई

रेलवे के दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई कठोर कार्यवाही न करने के कारण दुर्घटनाओं के साथ साथ इन से होने वाला आर्थिक नुकसान भी बढ़ता चला जा रहा है, जो जनता की गाढ़ी कमाई है.

संसद में हुई बहस के दौरान जो आंकड़े बताए गए हैं (आशंका है कि सरकारी स्वभाव के अनुसार बहुतकुछ छिपा भी लिया गया हो), उन के अनुसार, रेल दुर्घटनाओं के कारण साल 2014-2015 में 70.07 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है.

सुरक्षा के बजाय दूध, दवाई और वाईफाई का झांसा : मोदी सरकार अच्छे दिन के जुमले से सत्ता में तो आ गई मगर रेलयात्रा के दौरान होने वाले मौतरूपी मर्ज को जड़ से न दूर कर, ट्वीट करने पर दूध और दवाई मुहैया कराने की वाहवाही लूटने में लग गई. इस के साथ ही बुलेट ट्रेन चलाने का दावा, ट्रेन में वाईफाई उपलब्ध करवाने का दावा और अब तो ट्रेन में ही शौपिंग कराने का दावा करने में लगी है. जबकि यात्री सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच पाएगा, यह सुनिश्चित नहीं है.

नियम है, नकेल नहीं

रेलवे के एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भारतीय रेलवे की नियम पुस्तिका के अनुसार, ट्रैक के रखरखाव हेतु प्रतिदिन 3-4 घंटे निर्धारित हैं, मगर ऐसा हो नहीं पाता. ज्यादातर नियम स्टाफ की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं. कभी कभी ट्रैक के खाली न होने या फिर ट्रेन के विलंब से चलने की वजह से भी ऐसा होता है. वे बताते हैं कि भारतीय रेल की प्रक्रिया बहुत अच्छी तरह से सुपरिभाषित, लिखित और वितरित की जाती है, यदि उसका सही से पालन हो जाए तो शायद ही कोई दुर्घटना हो.

सुरक्षा सुस्त, किराया चुस्त

हाल के दिनों में रेलवे ने टिकट में फ्लैक्सी रेट जैसे नए नए शिगूफे छोड़ कर जम कर आमदनी बढ़ाई है. अकसर रेलयात्री यह कहते हुए मिल जाते हैं कि प्रथम श्रेणी की यात्रा का खर्च उतनी ही दूरी के विमान यात्रा के खर्च के लगभग बराबर है.

ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब मुसाफिर का मुख्य मकसद एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना है तो क्या रेलवे उस स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी भी गंभीरता से लेता है. जवाब है, नहीं. तथ्य यह है कि 1 रुपए में मात्र 7 पैसा ही रख रखाव के लिए लगाया जाता है, बाकी दूसरे कामों में इस्तेमाल हो जाता है. हालांकि, साल 2014-2015 के मुकाबले सुरक्षा पर खर्च होने वाली रकम को साल 2017-2018 में 42,430 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 65,241 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

लाइफलाइन नहीं, किलरलाइन

रेलवे देश की लाइफलाइन कहलाती है, मगर इस के राजनीतिकरण ने इसे लगभग ‘किलरलाइन’ में तबदील कर दिया है. देखने में आता है कि गठबंधन सरकारों में यह मंत्रालय किसी मजबूत दल की झोली में ही रहा और ज्यादातर काम राष्ट्रीय स्तर पर न हो कर, क्षेत्रीय स्तर पर ही किए गए. पूर्व में अलग से पेश होने वाले रेलवे बजट में पश्चिम बंगाल, बिहार, रायबरेली, अमेठी जैसे क्षेत्रों को खास सौगातें मिलती रही हैं.

ऐसे में हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं के ऊपर अगर लालू प्रसाद यादव यह तंज कसते हैं कि खूंटा बदलने से नहीं, संतुलित आहार देने व खुराक बदलने से भैंस ज्यादा दूध देगी तो इसे महज एक राजनीतिक बयान नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इस को समग्र परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. वास्तव में किसी मंत्री का मंत्रालय बदल देने से रेलवे का भला नहीं हो पाएगा. बेहतर होगा कि रेलवे में भ्रष्टाचार, गैरजिम्मेदाराना कार्यसंस्कृति समाप्त हो और रेलवे स्टाफ व मंत्रालय जनता के प्रति जवाबदेह बनें.

अब तक के जितने भी रेल मंत्री बने हैं, सभी ने रेल सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें की हैं. फिलहाल वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेल की बदहाल स्थिति पर कोई सुधारात्मक कदम उठाया है, ऐसा तो लगता नहीं.

हाल में हुए प्रमुख रेल हादसे

हाल में स्टाफ के नकारेपन से कई दुर्घटनाएं हुईं. हद तो तब हो गई जब एक ही दिन में 4-4 रेल हादसे हुए और मोदी सरकार ने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की.

24 नवंबर, 2017 : उत्तर प्रदेश के मानिकपुर में वास्कोडिगामापटना सुपरफास्ट ट्रेन की 12 बोगियां बेपटरी हो गईं, जिस से पितापुत्र समेत 3 यात्रियों की मौत हो गई और 9 यात्री घायल हो गए.

29 सितंबर, 2017 : मुंबई के एलफिंस्टन रोड उपनगरीय रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ से 22 लोगों की मौत हो गई और 32 लोग घायल हो गए.

6 सितंबर, 2017 (एक ही दिन में 4 हादसे) : नए रेलमंत्री पीयूष गोयल की ताजपोशी के एक ही दिन बाद 4 रेल हादसे देश के अलगअलग हिस्सों में हुए. पहली घटना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में घटी जिस में शक्तिपुंज ऐक्सप्रैस के 7 डब्बे बेपटरी हो गए. दूसरी, नई दिल्ली के मिंटो ब्रिज स्टेशन के निकट रांचीदिल्ली राजधानी ऐक्सप्रैस का इंजन और पावरकार उतर गया. तीसरी, महाराष्ट्र में खंडाला के निकट मालगाड़ी पटरी से उतर गई. चौथी, फरुखाबाद और फतेहगढ़ के पास दिल्लीकानपुर कालिंदी ऐक्सप्रैस क्षतिग्रस्त होने से बच गई.

17 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के निकट खतौली में पुरीउत्कल ऐक्सप्रैस के हादसे में 23 लोगों की जानें गईं, जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए.

22 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के औरैया में कैफियत ऐक्सप्रैस के डंपर से टकराने के कारण 9 कोच पटरी से उतर गए, दर्जनों यात्री घायल हो गए.

21 मई, 2017 : उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्टेशन के पास लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट ट्रेन के 8 कोच पटरी से उतर गए, जिस में 30 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए.

15 अप्रैल, 2017 : मेरठलखनऊ राजधानी ऐक्सप्रैस के 8 कोच रामपुर के पास पटरी से उतर गए. इस में लगभग 1 दर्जन यात्री घायल हुए.

दलित उत्पीड़न से धूमिल होती समाज की छवि

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 58 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव शहर है. यहां के वारासगवर इलाके के सथनी गांव में 22 फरवरी को 19 साल की मोनी नामक लड़की को जिंदा जला दिया गया.

मोनी साइकिल से एक दिन अपने गांव से बाजार की तरफ जा रही थी. इतने में कुछ लड़के साइकिल से आए और उसे खेतों में खींच ले गए, फिर उस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. जान बचाने के लिए लड़की सड़क की ओर भागी पर उस की मदद करने वाला कोई न था. बदमाश लड़की को जलता छोड़ कर भाग गए. लड़की जल कर मर गई.

पुलिस ने 2 दिनों बाद विकास नामक एक लड़के को पकड़ कर जेल भेज दिया. विकास पर आरोप है कि उस की मोनी से दोस्ती थी. दोस्ती में दरार पड़ी तो उस ने यह कांड कर दिया. किसी लड़की को आज के सभ्य समाज में जिंदा जलाने की घटना क्रूर राजाओं और तानाशाहों की याद दिलाती है.

केंद्र और प्रदेश में सरकारें चला रही भारतीय जनता पार्टी के लिए उन्नाव महत्त्वपूर्ण जिला है. भाजपा के साक्षी महाराज यहां से सांसद है. उन के क्षेत्र में दलित लड़की की बर्बर हत्या से पता चलता है कि दबंगों का मनोबल कितना बढ़ा हुआ है.

प्रदेश सरकार में महत्त्वपूर्ण पद संभाल रहे विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का कार्यक्षेत्र भी उन्नाव ही है. एक ओर केंद्र से ले कर प्रदेश तक दोनों सरकारें ‘बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ’ की बात कर रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन्हीं सरकारों के दौर में लड़कियां जलाई जा रही हैं.

उन्नाव की घटना से कुछ ही दिनों पहले उत्तर प्रदेश की शिक्षानगरी कहे जाने वाले इलाहाबाद शहर में एक दलित युवक को एक रैस्टोरैंट में पीटपीट कर मार डाला गया. मारपीट की छोटी सी वजह थी. दोनों घटनाओं में सरेआम लोगों ने अकेले को मारा. उन्नाव की मोनी को पैट्रोल छिड़क कर जलाया गया तो इलाहाबाद के युवक को नाली के किनारे पीटपीट कर मार डाला गया. युवक के मरने के बाद भी उस को पीटा जाता रहा.

society

एनकाउंटर को सही ठहराते हुए उन्नाव और इलाहाबाद की घटनाएं पूरी तरह से बर्बरता से भरी हैं. यह तब है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘‘बदमाशों को उन की ही भाषा में जवाब दिया जाए.’’ पुलिस ने कुछ एनकाउंटर्स कर सनसनी फैलाने की कोशिश की पर दबंगों पर असर पड़ता तो ऐसी घटनाएं न घटतीं.

हिंदुत्व के नाम पर दबंगई

योगीराज में ये हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर चोला बदल चुके हिंदू रक्षा के नाम पर दबंग और गुंडे सक्रिय हो गए हैं. ये भगवा गमछाधारी बन गए हैं. अब इन को किसी पार्टी के झंडे तक की जरूरत नहीं रह गई है. ऐसे दबंग नेताओं के लिए भीड़ जुटाने में भी आगे हो जाते हैं. जहां अच्छे काम में 5 लोग एकसाथ नहीं खड़े होते वहां ये लोग हत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर भी बहुत सारे लोगों को तैयार कर लेते हैं.

उन्नाव और इलाहाबाद दोनों शहरों की ही घटनाओं में दबंगों का साथ देने वाले दूसरे लोग भी थे. कासगंज में हुए दंगे में भी ऐसे ही दबंग शामिल थे.

इन को कानून की परवा नहीं होती. कासगंज में धारा 144 लागू होने के बाद भी तिरंगा यात्रा निकालने की अनुमति लेने की जरूरत नहीं समझी गई.

प्रदेश में अगर कानून का राज होता तो लोगों में जरूर कानून का डर होता और एक के बाद एक बर्बर घटनाएं नहीं घटतीं. गौरक्षा और धर्म के नाम पर कानून तोड़ने वाले जब बचने लगे तो दूसरे दबंगों का भी मनोबल बढ़ने लगा. ये अब उद्दंड हो गए हैं. हर गांव गली में जाति की खाई लगातार गहरी होती जा रही है.

ऐसे में जब लोगों को यह लगता है कि सामने वाला उस से नीची जाति का है तो वह और भी ज्यादा हिंसक हो कर उस को पीटने लगता है. दलितों के साथ हो रही घटनाओं के पीछे पाखंडी सोच का बड़ा हाथ है. इस को रोज बढ़ावा दिया जा रहा है.

धर्म की आड़ में प्रवचनों द्वारा लोगों को लगातार यह बताया जा रहा है कि समाज में अलगअलग खेमे भगवान की देन हैं. यह पिछले जन्मों में किए गए पापों का फल है. दबंगई करनेवाले जानते हैं कि उन पर उंगली नहीं उठाई जाएगी क्योंकि यह समाज का दस्तूर है.

दलितों को आज भी धार्मिक कहानियों में यही समझाया जाता है कि सवर्णों व उच्च जाति की सेवा करो, तभी कल्याण होगा. यही सोच एक दलित लड़की को जिंदा जलाने को प्रेरित करती है. आज तक जिन बाबाओं के आश्रमों का परदाफाश हुआ वहां सब से अधिक दलित लड़कियां ही पाई गईं. इस से भी समाज में ऊंचनीच के अंतर को समझा जा सकता है.

खामोश हैं दलित संगठन

दलितों के संगठन इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. बहुजन समाज पार्टी की चुप्पी सब से बड़ी है. इस तरह की घटनाओं पर भाजपा के नेता कौशल किशोर दोनों ही जगहों पर गए और वहां पीडि़त परिवारों की मदद का पूरा भरोसा दिलाया. दलितों के मुखर न होने की प्रमुख वजह यह है कि भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर इन को अपने साथ कर लिया था.

देश और प्रदेश के तमाम बडे़ दलित नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और अब वे भाजपा के साथ हैं. ऐसे में वे चुप हैं. दलित संख्या में अधिक हैं. ऐसे में नेता उन को साथ रख कर वोट लेने तक उन के साथ रहते हैं. बाद में वे उन की मूल समस्याओं पर चुप हो जाते हैं. दलित अपने से ऊंची जातियों से मेलजोल नहीं रख पाते हैं. ऊंची जातियों वालों का मानना है कि दलितों को वैसे ही रहना चाहिए जैसे वे सदियों से रहते आए हैं.

आज जिस तरह दबंगों के हौसले बुलंद हैं उस से सरकार की छवि खराब हो रही है. इलाहाबाद और उन्नाव की दोनों ही घटनाओं में पुलिस ने पहले मुकदमा दर्ज नहीं किया. इलाहाबाद और उन्नाव की घटनाओं के वीडियो और फोटो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुए तब पुलिस हरकत में आई.

थाना स्तर पर आज भी दलित पीडि़त के पक्ष में कोई कार्यवाही नहीं होती है. सरकार यह कह कर अपना पल्ला झाड़ती रहती है कि वह प्रेमप्रसंग है, वह पारिवारिक विवाद है वगैरहवगैरह. असल में तो यह वर्णवाद है, वह भी सदियों पुराना.

सरकार के संरक्षण से बढ़ रही दबंगई

–आर एस दारापुरी (पूर्व आईपीएस, सदस्य – उत्तर प्रदेश स्वराज समिति)

उत्तर प्रदेश में दलितों के प्रति बढ़ रही हिंसक घटनाओं पर जहां बहुत सारे दलित नेता और दल चुप्पी साधे हैं वहीं अवकाशप्राप्त आईपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश स्वराज समिति के सदस्य आर एस दारापुरी पूरी तरह से मुखर हैं. वे कहते हैं, ‘‘दलितों पर हिंसक घटनाओं की शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शपथ लेते ही शुरू हो गई थी. जब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में कहा गया, ‘अगर यूपी में रहना है तो योगीयोगी कहना है’. इस नारे में ही बाद में वंदेमातरम भी जोड़ दिया गया. यही नहीं, वहां बाबासाहेब को ले कर भी आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं. इस से हिंदुत्व के नाम पर काम करने वालों का हौसला बढ़ गया.

‘‘सरकार के इस कदम से खुली गुंडई, हिंसा और दबंगई को संरक्षण मिलने लगा. कई तरह की वाहनियां और सेनाएं अपनाअपना विरोध प्रदर्शन करने लगीं. इस से समाज का माहौल खराब हुआ. समाज में कानून का भय खत्म हो गया. समाज में एक हिंसक वातावरण बन गया है जो पूरे समाज के लिए घातक है.’’

दलित आंदोलन की चुप्पी पर दारापुरी ने कहा, ‘‘बसपा के समय से दलित आंदोलन कमजोर हो गया था. बाबासाहेब हमेशा कहते थे कि हिंदूराष्ट्र समाज के लिए घातक होगा. यहां पर शंबूक और बाली की तरह लोगों के वध होंगे. सीता की तरह महिलाओं के साथ अन्याय होगा. वे हमेशा देश में हिंदूराष्ट्र की स्थापना का विरोध करते रहे.

‘‘कांशीराम आंदोलन की जगह उस तरह काम करते थे जिस में दलित कमजोर बन कर उन के पीछेपीछे चलता रहे. जिस वजह से आज भी दलित मुखर हो कर अपनी बात नहीं कह पा रहा है. आज वह फिर से बसपा का साथ छोड़ ऊंची जातियों की अगुआई करने वालों के पीछे खड़ा हो गया है. इस के साथ ही भाजपा ने दलित नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया, इसलिए दलित चुप हैं. उन को समझ में ही नहीं आ रहा है कि वे क्या करें?’’

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 3

भारत में 70 का दशक बेहद उठापटक वाला था. राजनीति करवट बदल रही थी और गरीबी अभिशाप सा बन चुकी थी. देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में इफरात से गैंगस्टर्स पैदा होने और पनपने लगे थे. सट्टा गलीमोहल्लों में सरेआम चल रहा था और गैंगवार से शहर हर वक्त दहशत की गिरफ्त  में रहता था.

छोटेबड़े मुजरिमों की भीड़ में शोभराज भी शामिल हो गया. शुरुआत में उस ने कोई बड़ा जोखिम नहीं उठाया और छोटीमोटी स्मगलिंग और चोरियां करता रहा, जिस का एक्सपर्ट वह पेरिस से ही था.

इसी दौरान उस ने जुएसट्टे में भी हाथ और किस्मत आजमाई. इसी दरम्यान उस के कई दोस्त बने, लेकिन वे स्थाई नहीं रहे. क्योंकि शोभराज सहज किसी पर भरोसा नहीं करता था.

इस रसिया पर मरती थीं लड़कियां

बहुत सी खूबियों के मालिक शोभराज की एक खूबी यह भी थी कि उस ने कभी एक जगह टिक कर अपराध नहीं किए. मुंबई में जब उसे हमपेशा लोगों और पुलिस से खतरा महसूस होने लगा तो वह काबुल भाग गया लेकिन टिका वहां भी नहीं.

1975 तक शोभराज फ्रांस, वियतनाम, अफगानिस्तान, ग्रीस, ईरान और पाकिस्तान के फेरे लगाता रहा. कार चोरी के अलावा ड्रग स्मगलिंग उस ने जम कर की और खूब पैसा कमाया और उसे खर्च भी शाही तरीके से किया.

औरतों के रसिया इस अपराधी पर लड़कियां मरती थीं. वह अपनी पर्सनैलिटी और वाकपटुता के दम पर किसी को भी खड़ेखड़े ही खरीद लेता था.

चैंटल के जाने के बाद उस की जिंदगी में मेरी आंद्रे लेक्लार्क नाम की सैक्सी और बेइंतिहा खूबसूरत लड़की आई. मेरी कनाडा की थी और पेशे से नर्स हुआ करती थी. उस के जरिए ही दिल्ली के रहने वाले अजय चौधरी नाम के शख्स से शोभराज की मुलाकात हुई. स्वभाव से मेरी और अजय दोनों ही अपराधी मानसिकता के थे, इसलिए तीनों गिरोह बना कर वारदातों को अंजाम देने लगे.

अब तक शोभराज के नाम कोई बड़ा यानी हत्या का जुर्म दर्ज नहीं था. वह चोरी के आरोप में ही पकड़ा जाता रहा था, जिस में आमतौर पर उसे जमानत मिल जाया करती थी.

बिकनी किलर के नाम से हुआ प्रसिद्ध

छोटेमोटे अपराधों से शायद उस का मन भर चुका था, जो अब वह बड़ा और रोमांचक कुछ करना चाहता था. मेरी, अजय और उस के बौस शोभराज की तिकड़ी इसी मकसद से थाईलैंड की राजधानी बैंकाक जा पहुंची. यहां तीनों सुनियोजित तरीके से ज्यादातर पर्यटकों को निशाना बनाते थे.

उन दिनों हिप्पी संस्कृति शबाब पर थी. दुनिया भर के लोग खासतौर से युवा शांति और अध्यात्म की तलाश में थाईलैंड आते थे, जो उन्हें धर्मस्थलों में तो नहीं मिलती थी, पर ड्रग्स के नशे में मिल जाती थी.

शोभराज खुद को रत्न व्यवसायी भी बताता था और पर्यटकों से अंतरंगता बढ़ने पर उन्हें ड्रग्स का लालच देता था. शांति बेचने का यह तरीका चल निकला और इन तीनों ने बहुत कम वक्त में बहुत ज्यादा पैसा लूट और ठगी के जरिए बनाया.

अब तक अजय और मेरी का मुख्य काम शिकार लाना भर होता था. इस के बाद का काम शोभराज संभाल लेता था, जिस के बातचीत करने के अंदाज पर हर कोई फिदा हो जाता था.

शोभराज अपने असल नाम से ज्यादा बिकनी किलर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यह सिलसिला भी थाईलैंड से ही शुरू हुआ और इतने दिलचस्प तरीके से हुआ कि एक झटके में दुनिया उसे जानने लगी.

वह साल 1975 का ही वाकया है, जब थाईलैंड के पटाया शहर से बिकनी पहने एक युवती की लाश मिली थी. इस युवती को शोभराज का पहला शिकार माना जाता है, जिस का नाम टेरेसा नोलटन था. इस के बाद कार्नेलिया हेमकर और हेनरिकस बिनटैंजा ेकी जली हुई लाशें मिलीं. फिर तो थाईलैंड में ऐसे नजारे आम हो गए, जिन में टूरिस्ट नशे में धुत थे और ड्रग्स के ओवरडोज के चलते मरे थे और कुछ की हत्या की गई थी.

मरें किसी भी तरीके से, लेकिन उन की जेबें शोभराज, अजय और मेरी खाली कर यह आध्यात्मिक मैसेज भी दे देते थे कि आदमी खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है.

ऐसी वारदातें चूंकि शोभराज एक जुनून के तहत एक के बाद एक कर रहा था, इसलिए उसे सीरियल किलर भी करार दे दिया गया. मान यह भी लिया गया था कि वह साइको है और एक हद तक यह सच भी था.

कुछ लोगों ने उसे सर्पेंटाइल के खिताब से नवाज दिया. शोभराज के शिकारों में लड़कियां ज्यादा होती थीं, क्योंकि वे आसानी से उस के झांसे में आ जाती थीं. टेरेसा नोलटन की लाश के बाद तो कई लाशें ऐसी भी मिली थीं, जिन्हें देख कर ही लोगों की रूह कांप जाया करती थी. कुछ लोगों को समुद्र में डुबो कर मारा गया था तो कुछ का शरीर चाकू से गोद दिया गया था. कइयों को तो जिंदा ही जला दिया गया था.

अजय और मेरी का नया काम इन लाशों को ठिकाने लगाने का भी हो गया था, जो शिकार को पहले बहलाफुसला कर शोभराज तक ले जाते थे. अधिकतर शिकारों को वह जानबूझ कर ड्रग्स का ओवरडोज देता था, जिस से कि वे विरोध न कर पाएं.

थाईलैंड में एक दौर ऐसा भी आया था, जब पर्यटक वहां जाने के नाम से ही कांपने लगे थे. थाईलैंड का पुलिस प्रशासन और सरकार भी सब हैरान थे कि यह हो क्या रहा है और कौन कर रहा है.

जांच में जब शक की सुई शोभराज की तरफ घूमी तो वह वापस भारत आ गया. लेकिन अब तक दुनिया भर में थाईलैंड में मिली लाशों को ले कर हाहाकार मच चुका था. खासतौर से बिकनी वाली लाशों को ले कर तो तरहतरह के सच्चेझूठे, हैरतंगेज और सनसनीखेज किस्से गढ़े जाने लगे थे.

थाईलैंड से शोभराज दिल्ली आ गया. लेकिन अपराध करने की लत उसे ठीक उसी तरह लग चुकी थी जैसे वह दूसरों को ड्रग्स की लत लगाता था. जुलाई, 1976 में फ्रांस से आए कुछ इंजीनयरिंग के छात्रों को नशे का सामान देने की कोशिश करता वह दिल्ली पुलिस द्वारा एक होटल में धर लिया गया.

चार्ल्स ने तिहाड़ जेल में बनाई लाइब्रेरी

चूंकि वह कई वारदातों में मोस्टवांटेड था, इसलिए पुलिस ने धोखाधड़ी और हत्या के कुछ मामले उस पर दर्ज किए. लेकिन किस्मत के धनी इस चालबाज पर हत्या का कोई आरोप साबित नहीं हो पाया. दूसरे मामलों में उसे 12 साल की सजा सुनाई गई.

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 3

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल को जासूसी का शौक था. पुरानी कोठी में रहने वाले अजय के कत्ल और उन के अंतिम समय में लिखे कोड में उन्हें रहस्य दिखा सो वे इस हत्या के केस को सुलझाने को उत्सुक हुए और मामू के साथ घटनास्थल पर गए. हत्या वाली जगह पहुंच उन्होंने लाश का मुआयना किया और अजय द्वारा लिखे कोड को पढ़ने की कोशिश के साथ उस का फोटो भी लिया.

उन्हें यहां नकली दाढ़ीमूंछ और भौंहें मिलीं. एक ओर अजय की पत्नी यास्मिन बेसुध रोए जा रही थीं. उन्हें पता चला कि अजय एक हफ्ते से लापता थे और वे नकली बाल लगा कर वहीं घूमते रहते थे.

इंस्पैक्टर रमेश से उन्हें यह भी पता चला कि लाश के पास एक मोबाइल मिला है, इस से उन का उत्साह बढ़ा पर जब पता चला कि मोबाइल से किसी फोन नंबर पर कौंटैक्ट नहीं हुआ तो वे निराश हुए. वहां उन्हें बड़े साइज के जूतों के धूमिल से निशान भी मिले जिस से उन्हें यकीन हो गया कि अजय का कत्ल ही हुआ है. फिर वे वापस आ गए. दो आंखें उन की हर हरकत पर नजर रखे थीं.

पूरे रास्ते फैजल बेचैनी से बारबार घड़ी देखता रहा. घर पहुंचते ही वह जुनैद से एक कागज और पैन ले कर तुरंत अपने कमरे में घुस गया. फिर आधे घंटे बाद बाहर हौल में जहां सब बैठे हुए कत्ल के बारे में ही बात कर रहे थे, आया  और बोला, ‘‘अजय मरते वक्त जो मैसेज छोड़ गए हैं, उस का मतलब मुझे पता चल गया है.’’ सब ऐसे हैरान हुए मानो आसपास कोई विस्फोट हुआ हो.

‘‘क्या  तुम ने पता कैसे लगाया ’’

‘‘जूलियस सीजर की मदद से,’’ शरारती मुसकान बिखेरते हुए फैजल ने जवाब दिया.

‘‘जूलियस सीजर  तुम्हारा मतलब है, वह रोम का राजा  पागल हो गए हो क्या  वह कैसे तुम्हारी मदद करेगा ’’

‘‘अरे भई, शांत हो जाइए आप सब. मैं अभी सारी बात आप को समझाता हूं. बात ऐसी है कि जब मैं ने पहली बार अजय का मैसेज पढ़ा था, मैं तभी समझ गया था कि यह कोई अनापशनाप बकवास नहीं, बल्कि एक कोड है और जरूर अजय कोई महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहते थे वरना उन्हें कोड इस्तेमाल करने की क्या जरूरत थी. वहां मैं ने इस बात का जिक्र इसलिए नहीं किया, क्योंकि मैं पहले उसे डीकोड कर के देखना चाहता था कि कहीं मेरा शक गलत तो नहीं है. इसीलिए मैं अपने फोन में उस का फोटो खींच लाया था और आते ही उसे सौल्व करने में जुट गया.

‘‘मेरा शक बिलकुल सही निकला. यह वाकई एक कोड है, जिसे सीजर साइफर कहते हैं. रोमन राजा जूलियस सीजर का नाम तो आप ने सुना ही है. वह अपने गुप्त संदेश भेजने के लिए इस कोड का प्रयोग करता था. उसी के नाम पर इस का नाम रखा गया है. इस में जो भी शब्द आप को लिखना होता है, उस के हर अक्षर को एक फिक्स नंबर तक आगे या पीछे खिसका कर लिख दिया जाता है.

‘‘मैं एक उदाहरण दे कर समझाता हूं. अंगरेजी अल्फाबेट में 26 लैटर होते हैं. मान लीजिए मुझे लिखना है रूह्वह्म्स्रद्गह्म्.  इसे लिखने के लिए मैं ने कोड सोचा 2 प्लेस आगे, तो इस का मतलब होगा कि  रूह्वह्म्स्रद्गह्म् शब्द के सारे लैटर्स को मैं 2-2 प्लेस आगे खिसका कर लिखूंगा यानी रू की जगह श, ह्व की जगह ङ्ख, क्त्र की जगह ञ्ज तो इस तरह मेरा नया शब्द बन जाएगा हृङ्खञ्जस्नत्रञ्ज. इसे हम कहेंगे 2 का राइट शिफ्ट, क्योंकि हम ने लैटर्स को राइट की तरफ खिसकाया है. अगर मैं 8 प्लेस का लैफ्ट शिफ्ट करता हूं, तो मेरा शब्द बन जाएगा  श्वरूछ्वङ्कङ्खछ्व. इन बेतरतीब लिखे अक्षरों को देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह वास्तव में रूह्वह्म्स्रद्गह्म् लिखा है.

‘‘अब आते हैं अजय के मैसेज पर. मरते वक्त उन का कोड लैंग्वेज यूज करने का सीधा अर्थ यह है कि वे कोई साधारण इंसान नहीं थे, बल्कि कोडिंग के ऐक्सपर्ट थे और कोई बहुत इंपोर्टैंट बात बता कर जाना चाहते थे. पहले उन का लापता हो जाना, फिर भेस बदल कर यहीं गांव में ही रहना, संदिग्ध हालात में उन की मौत और अब यह संदेश. ये सब बातें किसी गहरे राज की ओर संकेत कर रही हैं.’’

‘‘तुम तो जीनियस निकले फैजल,’’ प्रशंसा भरी नजरों से उसे देखते हुए साहिल बोला, ‘‘मुझे यह तो पता था कि तुम्हें लौजिकल पजल्स और कोड वगैरा हल करने का शौक है, लेकिन तुम इतने ऐक्सपर्ट हो, यह मुझे आज पता चला. अच्छा, अब जल्दी से बताओ कि अजय ने लिखा क्या है ’’

‘‘यह लो, खुद ही देख लो अजय ने 5 का राइट शिफ्ट यूज किया है और इस तरह उन के लिखे कोड ह्नह्लह्लश्च द्दद्भरूहृह्यद्य ङ्घद्वद्भ श्चस्ठ्ठ्नद्भङ्ग का अर्थ बना यह,’’ कहते हुए फैजल ने कागज दिखाया.

सभी उत्सुकता से उस कागज के टुकड़े पर देखने लगे. उस पर लिखा था,

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. उस ने कहीं चाकू रखे हैं, जिन के पीछे सारा राज छिपा है. अब हमें बस, उन चाकुओं को ढूंढ़ना है और केस सौल्व.’’

‘‘लेकिन ये चाकू हमें मिलेंगे कहां ’’

‘‘सब से पहले तो उसी अस्तबल में देखते हैं. वहां नहीं मिले तो अजय के घर पर तो जरूर मिल जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम जल्दी से खाना खा कर गाड़ी और ड्राइवर के साथ पुलिस स्टेशन चले जाओ. वहां से इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर ही आगे जाना. अकेले वहां जाना ठीक नहीं होगा. मुझे क्लिनिक में कुछ काम है, मैं वहां जा रहा हूं. इंस्पैक्टर को भी मैं फोन कर के सारी बात बता देता हूं.’’

इंस्पैक्टर रमेश को जब कोड सौल्व होने की बात पता चली, तो खुशी से उन की बाछें खिल गईं, उस के कैरियर का यह पहला कत्ल का केस था और अगर यह इतना जल्दी सुलझ गया तो पूरे पुलिस डिपार्टमैंट में उस की तो धाक जम जाएगी. हो सकता है प्रमोशन भी मिल जाए. ‘ये शहरी लड़के तो बड़े काम के निकले,’ उस ने मन ही मन सोचा और बेसब्री से उन का इंतजार करने लगा.

अस्तबल में पहुंच कर सब ने वहां का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. वहां से सब लोग अजय के घर गए. उन की पत्नी को जब सारी बात पता चली, तो उन की सूनी आंखों में भी एक उम्मीद की किरण जगमगा उठी.

‘‘अजय तो खैर अब कभी वापस नहीं आ सकते, लेकिन अगर उन का हत्यारा पकड़ा गया तो मेरे तड़पते दिल को सुकून जरूर मिल जाएगा. चलिए, चाकू ढूंढ़ने में मैं भी आप की मदद करती हूं,’’ कहते हुए उन्होंने कौंस्टेबल व इंस्पैक्टर के साथ घर के कोनेकोने की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

साहिल, फैजल और अजय की बीवी यास्मिन ने किचन, बाथरूम, सारे बैडरूम्स, यहां तक कि हर अलमारी को भी पूरा खंगाल दिया, लेकिन कुछ नहीं मिला.

तभी अचानक यास्मिन को कुछ याद आया, ‘‘हो सकता है कि ये चाकू दुकान में रखे हों ’’ अपने घर से कुछ ही दूरी पर अजय ने एक दुकान खोल रखी थी.

‘‘अरे हां, दुकान के बारे में तो मैं भूल ही गया था. पक्का ये चाकू हमें दुकान में ही मिलेंगे, क्योंकि इस के अलावा अजय की और कोई प्रौपर्टी नहीं है,’’ इंस्पैक्टर रमेश उत्साह से बोले.

सब लोग आननफानन में दुकान पर पहुंचे और वहां तलाशी शुरू कर दी. लगातार 2 घंटे ढूंढ़ने के बाद चेहरों से निराशा और झुंझलाहट टपकने लगी. पूरी दुकान में अच्छी तरह ढूंढ़ने के बाद भी चाकू जैसी कोई चीज उन के हाथ नहीं लगी. अब सिर्फ कोने में रखी एक आखिरी अलमारी की तलाशी लेना बाकी था.

एकएक कर के उस का सामान भी बाहर निकाला गया लेकिन जब उस में भी कुछ न मिला, तो सब के चेहरे उतर गए. अगर अस्तबल, घर, दुकान कहीं पर भी अजय का बताया यह क्लू नहीं मिला तो आखिर वह है कहां  मरतेमरते अगर वे किसी चीज की ओर इशारा कर के गए हैं, तो उसे कहीं न कहीं तो जरूर होना चाहिए था.

निराशा और झुंझलाहट से भरे आखिरकार वे सब वापस जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो अजय की पत्नी यास्मिन ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘आप लोग सुबह से काम में लगे हैं, थक गए होंगे. मेरे घर चल कर कुछ चायनाश्ता कर के जाइएगा.’’

‘‘नहींनहीं, इस की कोई आवश्यकता नहीं.’’

‘‘प्लीज, मना मत कीजिए. आप लोग मेरे मरहूम पति के कातिल को ढूंढ़ने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, चलिए,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा. फिर सब लोग वापस अजय के घर पहुंच गए.

यास्मिन चाय बनाने किचन में चली गईं और इंस्पैक्टर, साहिल और फैजल ड्राइंगरूम में बैठ कर बातें करने लगे. कुछ ही देर में चाय के कप थमाते हुए यास्मिन बोलीं, ‘‘आप लोग चाय पीजिए. मैं तब तक बाहर बरामदे में सिपाहियों को भी चाय दे कर आती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आंटी, आप बैठिए, उन लोगों को चाय मैं दे आता हूं,’’ कह कर साहिल ने उन के हाथ से ट्रे ली और बाहर की तरफ चल दिया.

चाय देने के बाद जैसे ही वह घर के अंदर घुसने के लिए वापस मुड़ा अचानक उस की नजर मेनगेट के ऊपरी हिस्से पर पड़ी. वह कुछ पल के लिए हक्काबक्का रह गया. फिर बड़बड़ाता हुआ अंदर आया, ‘‘ओह, यह तो हद हो गई,’’ और सब लोंगों को खींच कर अपने साथ बाहर ले आया.

‘‘आखिर हुआ क्या है  कुछ तो बताओ साहिल,’’ उस के ऐसे व्यवहार से सब अचंभित थे. उस ने बिना कोई जवाब दिए गेट की तरफ इशारा कर दिया. एक क्षण के लिए तो किसी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन अगले ही पल सभी के चेहरे पर खुशी झलक उठी, ‘‘ओह, कमाल हो गया,’’ इंस्पैक्टर बोले.

जिस ओर साहिल ने इशारा किया था, वहां दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर ठीक बीचोंबीच 2 बहुत ही कलात्मक छोटी कटारें एक के ऊपर एक क्रौस का चिह्न बनाते हुए लगी हुई थीं.

‘‘यह तो वही बात हो गई, ‘बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा.’ हर पल ये चाकू हमारी आंखों के सामने थे, लेकिन कमाल की बात है कि किसी का भी ध्यान इन पर नहीं गया ’’ फैजल बोला.

अजय की पत्नी यास्मिन भी माथे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘अरे, ये चाकू तो अजय को उन के किसी दोस्त ने गिफ्ट किए थे और जब से हम यहां आए हैं, तब से यहीं लगे हुए हैं. मुझे भी इन का खयाल ही नहीं आया.’’

आननफानन में सीढ़ी लगा कर साहिल ने उन कटारों को दीवार से उतारा  और आगेपीछे देखता हुआ बोला, ‘‘इस के पीछे कुछ लगा हुआ है.’’

जल्दी से सभी ड्राइंगरूम में पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से मेज के चारों तरफ इकट्ठे हो गए. खूबसूरत नक्काशी से सजी इन कटारों के हैंडिल 2 इंच के लगभग चौड़े थे, जिन में एक के पीछे सफेद कागज में लिपटी एक छोटी सी वस्तु टेप द्वारा मजबूती से चिपकाई गई थी. बड़ी ही सावधानी से उस टेप को हटा कर धीरे से कागज को खोलते हुए इंस्पैक्टर रमेश सहित सब को लग रहा था जैसे किसी रहस्य का पर्दाफाश होने वाला है.

जैसे ही कागज की तह खुली, उस के अंदर से लगभग 2 इंच लंबी और 1 सेंटीमीटर चौड़ी एक चाबी निकली, ‘‘यह कहां की चाबी है ’’ हैरानी से उसे उलटतेपुलटते हुए इंस्पैक्टर रमेश बोले.

कुछ और चीज मिलने की उम्मीद में इन्होंने कागज को एक बार फिर देखा. कागज पर कुछ लिखा हुआ था, जिसे पढ़ कर वे झुंझला गए और बोले, ‘‘लो, कर लो मजे. कहां तो हम केस सौल्व होने की उम्मीद में बैठे थे और कहां इस नए झंझट में फंस गए.’’

फैजल ने उन से कागज ले कर देखा, तो उन के गुस्से का कारण समझते देर न लगी. यानी पहेली हल होने के बजाय एक और नई पहली जैसे उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

अपना ही तमाशा बनाने वाली एक लड़की – भाग 3

उर्वशी ने ऋषिराज को समस्या बताई तो उस ने जगतपुरा में ही जगदीशपुरी कालोनी में उसे किराए का दूसरा मकान दिलवा दिया. कुछ समय बाद उर्वशी अपने पिता व छोटे भाई को भी जयपुर ले आई. जयपुर आ कर वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगी. उस ने कुछ समय पहले स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की परीक्षा के लिए फार्म भरा था.

उस का परीक्षा केंद्र अलवर में पड़ा था. 9 जनवरी को उस की परीक्षा थी. इस के लिए वह जयपुर से अलवर गई. परीक्षा समाप्त होने के बाद वह 9 जनवरी को अलवर से शाम को मुजफ्फरनगर-पोरबंदर एक्सप्रैस टे्रन में सवार हो कर शाम सवा 7 बजे जयपुर जंक्शन पर उतरी. ट्रेन से उतर कर उर्वशी ने करीब 7 बज कर 20 मिनट पर अपने छोटे भाई को फोन कर के कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो जाएगी. वे लोग खाना खा कर सो जाएं. वह जब घर आएगी तो दरवाजा खटखटा देगी.

उर्वशी जयपुर जंक्शन से औटो में बैठ कर जगतपुरा पहुंची. वहां उसे ऋषिराज मीणा मिला. ऋषिराज ने औटो का 180 रुपए किराया चुकाया और उसे अपनी पल्सर बाइक पर बैठा कर जगतपुरा में ही प्रेमनगर स्थित अपने फ्लैट नंबर 280 पर ले गया. तय योजना के अनुसार, उर्वशी ने रात करीब 10 बजे अपने परिचित युवक संदीप लांबा को अपने पास बुला लिया.

संदीप को उर्वशी ने 9 जनवरी को दिन में ही फोन कर के कहा था कि रात को उस के घर वाले घर पर नहीं रहेंगे, इसलिए वह रात को उस के घर आ जाए. जयपुर जंक्शन से औटो में जगतपुरा जाते समय भी उर्वशी ने संदीप को बता दिया था कि वह रात को 280 प्रेमनगर, जगतपुरा आ जाए.

उर्वशी के इस तरह बुलाने से संदीप लांबा खुश था. संदीप ने अपनी गर्लफ्रैंड उर्वशी के पास जाने के लिए अपने एक मित्र पोलू जाट से 5 सौ रुपए उधार लिए और सजधज कर अपने कमरे से निकला. संदीप नर्सिंग के द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह जयपुर में गुर्जर की थड़ी पर किराए के मकान में रहता था. उस की उर्वशी से दोस्ती इस घटना से करीब एक महीने पहले हुई थी.

दोनों एक महीने से फोन पर संपर्क में थे. संदीप ने घर से निकल कर उर्वशी के लिए चौकलेट खरीदी. इस के बाद वह लो फ्लोर बस से रात करीब 10 बजे जगतपुरा पहुंचा. रात का समय होने और उस फ्लैट की सही लोकेशन न मिलने पर संदीप ने उर्वशी को 3-4 बार फोन किया. इस पर उर्वशी उसे लेने के लिए पैदल ही जगतपुरा रेलवे लाइन तक अकेली आई.

रेलवे लाइन से वह संदीप को अपने साथ ऋषिराज के प्रेमनगर स्थित फ्लैट पर ले गई. संदीप के पहुंचने पर ऋषिराज फ्लैट में छिप गया. उर्वशी संदीप को एक कमरे में ले गई, जहां बिस्तर लगा था. कमरे की बिजली जल रही थी. कमरे की बिजली जली होने पर संदीप को कुछ शक हुआ, लेकिन उर्वशी ने उसे बातों में लगा लिया. इस के बाद उर्वशी और संदीप उस कमरे में एक साथ रहे. इस दौरान उन्होंने कई बार शारीरिक संबंध बनाए.

सुबह करीब 3 बजे जब दोनों थक गए तो शांत हुए. उर्वशी ने संदीप का मोबाइल ले कर यह कहते हुए उस का सारा रिकौर्ड डिलीट कर दिया कि किसी को पता लग जाएगा. बाद में उर्वशी ने संदीप के पर्स की तलाशी ली और उस के डेबिट व क्रेडिट कार्ड देखे. इस के बाद उर्वशी ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर उस से मोटी रकम मांगी.

संदीप के इनकार करने पर उर्वशी ने उस का एटीएम कार्ड ले लिया और उस का पासवर्ड भी पूछ लिया. इस के बाद उसे घर से निकल जाने को कहा. वह वहां से निकला तो करीब आधे घंटे बाद उर्वशी ने उसे फोन कर के जल्दी से रकम का इंतजाम करने को कहा.

संदीप के जाने के बाद उसी फ्लैट में छिपा ऋषिराज मीणा कमरे में आ गया. सुबह करीब 5 बजे वह उर्वशी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर एमएनआईटी के समने ले गया. वहां उस ने उर्वशी के मुंह पर कीटनाशक एल्ड्रीन का घोल लगाया और उस के कपड़ों पर भी कीटनाशक छिड़क दिया. ऋषिराज ने उर्वशी से कहा कि वह पुलिस कंट्रोल रू म को फोन कर के अपने साथ गैंगरेप होने की सूचना दे.

यह कह कर ऋषिराज वहां से चला गया. उस के जाने के बाद उर्वशी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. उर्वशी को एमएनआईटी छोड़ने के बाद ऋषिराज अपने फ्लैट पर पहुंचा और सामान समेट कर कमरे को खाली कर के फरार हो गया.

शुरुआती पूछताछ में उर्वशी ऋषिराज के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार करती रही, लेकिन जब मोबाइल लोकेशन के आधार पर उसे पकड़ कर दोनों का आमनासामना कराया गया तो उर्वशी ने सारा सच उगल दिया.

पूछताछ में पता चला कि दोनों ब्लैकमेलिंग करने के लिए पहले युवकों को ढूंढते थे और फिर पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से रकम ऐंठते थे. इस मामले में उर्वशी ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय संदीप और ब्रजेश का नाम लिया था.

संदीप ने उर्वशी से उस की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे. लेकिन संदीप से उर्वशी को कुछ नहीं मिला तो उस ने पुलिस के सामने संदीप का नाम ले लिया. संदीप खुद को बैंक मैनेजर का लड़का बताता था, इसलिए उर्वशी को उस से मोटी रकम मिलने की उम्मीद थी.

संदीप लांबा को जब इस षडयंत्र का पता चला तो उस ने जवाहर सर्किल थाने में खुद के साथ ब्लैकमेलिंग व आपराधिक षडयंत्र की लिखित रिपोर्ट दी. जांच में यह भी सामने आया कि उर्वशी ब्रजेश से भी पहले से ही अच्छी तरह परिचित थी. उन की फोन पर बातें होती रहती थीं. ऋषिराज ने ही ब्रजेश को उर्वशी से मिलवाया था. उर्वशी ब्रजेश को फोन कर के बुलाती थी, लेकिन वह उन के झांसे में नहीं आया.

पुलिस का कहना था कि ऋषिराज मीणा ने उर्वशी के साथ मिल कर लोगों को दुष्कर्म के केस में फंसाने की धमकी दे कर उन्हें ब्लैकमेल कर के मोटी रकम ऐंठने की योजना बनाई थी. ऋषिराज संदीप और ब्रजेश से करीब 5 लाख रुपए में सौदा करना चाहता था. इन पैसों से वह अपना कोई व्यापार करना चाहता था.

पुलिस ने षडयंत्र रच कर गैंगरेप की मनगढं़त कहानी बना कर झूठा मुकदमा दर्ज कराने, अवैध व फरजी आईडी से अलगअलग सिम व मोबाइल रखने और ब्लैकमेलिंग कर के धन ऐंठने के आरोप में उर्वशी और ऋषिराज मीणा को 13 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इन के कब्जे से 6 मोबाइल फोन और 15 सिम बरामद किए. ऋषिराज मीणा सवाई माधोपुर जिले के वजीरपुर थाना इलाके के बढोद गांव के रहने वाले रामफल मीणा का बेटा था. उस के खिलाफ चोरी व गबन के 2 मामले पहले से दर्ज हैं.

पुलिस जांच में सामने आया है कि उर्वशी के जयपुर आने के बाद से ऋषिराज उस के साथ रिलेशनशिप में रह रहा था. उस ने लोगों को फंसाने के लिए घटना से 20 दिनों पहले ही प्रेमनगर में 8 हजार रुपए महीने पर किराए का फ्लैट लिया था. वह जल्दी ही उर्वशी से शादी करना चाहता था और उर्वशी के माध्यम से लोगों को दुष्कर्म के केसों में फंसा कर ब्लैकमेल करने के बाद मोटी रकम ऐंठ कर पैसे वाला बनना चाहता था.

इस के लिए उस ने उर्वशी का ब्रेनवाश भी कर दिया था. उर्वशी भी सहयोग करने के लिए तैयार हो गई थी. जांचपड़ताल में यह भी सामने आया है कि ऋषिराज और उर्वशी मिल कर आगरा और मैनपुरी में ब्लैकमेलिंग की 5 वारदात कर चुके थे. उर्वशी जब काशीपुर छोड़ कर आगरा आ गई थी तो ऋषिराज उस से मिलने आगरा जाया करता था.

पुलिस ने 14 जनवरी को ऋषिराज व उर्वशी को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के एक दिन के रिमांड पर लिया. पूछताछ में पता चला कि उर्वशी और उस के पिता के 4 बैंक खातों में करीब 5 लाख रुपए की रकम जमा है. पुलिस को शक है कि यह राशि ब्लैकमेलिंग की है.

उर्वशी ने इस रकम के बारे में पुलिस को बताया कि उस के पिता ने गांव में जमीन बेची थी, जबकि मैनपुरी से पुलिस को पता चला कि उर्वशी के पिता ने अभी तक कोई जमीन नहीं बेची है. उर्वशी के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बैंक खातों में 5 लाख रुपए जमा कर सके. इसलिए पुलिस इस रकम के बारे में भी जांच कर रही है.

पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर 15 जनवरी को दोनों आरोपियों को फिर मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रैट ने ऋषिराज व उर्वशी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है. पुलिस उर्वशी की ओर से सदर थाने में दर्ज कराए गए मामले और जवाहर सर्किल थाने में संदीप लांबा की ओर से दर्ज कराए गए मामले की जांचपड़ताल कर रही है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, उर्वशी परिवर्तित नाम है.

100 करोड़ की फिरौती का फंडा – भाग 3

संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

संजीव अब परेशान रहने लगा था. इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए उस ने एक योजना बनाई, जिस में उस ने पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर गुप्ता को शामिल किया. अगर संजीव की योजना सफल हो गई होती तो नीता पांडेय और उस के पति प्रदीप पांडेय जेल में होते और वह विदेश में मौज कर रहा होता.

योजना के अनुसार, संजीव ने सारिका की बहन के बेटे विप्लव गुप्ता तथा साले सागर को फिरोजाबाद बुला लिया. सागर सीए भी था और वकील भी. संजीव ने सागर को अपने ऊपर सूदखोरी के चल रहे मुकदमे की पैरवी के लिए बुलाया था, लेकिन आने पर अपने अपहरण की पटकथा लिखवा डाली.

सारिका किटी पार्टियों की शान मानी जाती थी. कमेटी और किटी में रुपए डालने के लिए सदस्यों को पटाने का काम वही करती थी. कमेटी चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी. पति के अपहरण के इस ड्रामे में मुख्य भूमिका उसी की थी.

संजीव ने अपने अपहरण का तानाबाना काफी मजबूती से बुना था, पर पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता के कारण उस का ड्रामा सफल नहीं हुआ. पत्रकारों के सामने संजीव, सारिका, विप्लव और सागर को पेश कर के एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि संजीव अपनी कार को ऐसे रास्तों से अलीगढ़ गया, जिन पर कोई टोलनाका नहीं था.

इसी वजह से वह सीसीटीवी कैमरों की नजर में नहीं आ सका. अलीगढ़ के गभाना टोल प्लाजा के पहले ही उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे खड़ी कर के लौक कर दी और बस से दिल्ली के आईएसबीटी बसअड्डे पहुंचा. वहां से चंडीगढ़, मोहाली होते हुए 24 जुलाई को वह जम्मू पहुंच गया.

वहां से वह मनाली गया और 25 से 27 जुलाई तक वहीं रहा. वह रोहतांग भी गया, जहां से मनाली आ गया. मनाली से देहरादून होते हुए 28 जुलाई को वह पानीपत आया, जहां स्वर्ण होटल पहुंचा और योजना के अनुसार अपने अपहरण की कहानी होटल के कर्मचारियों को सुनाई.

दूसरी ओर सारिका ने कई बार सूटकेस ले कर कोठी से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के पहरे की वजह से वह जा नहीं सकी. यह भी उस का एक ड्रामा था. अगर वह निकल जाती तो लोगों से कहा जाता कि सौ करोड़ की फिरौती दे कर वह पति को छुड़ा कर लाई है.

संजीव एक तीर से कई निशाने साधना चाहता था. अपहरण की आड़ में नीता पांडेय और उस के पति को जेल भिजवा कर उन से छुटकारा पाना चाहता था. सौ करोड़ की फिरौती दे कर आने के नाम पर वह कमेटी के कर्ज से छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि लोगों को उस से सहानुभूति हो जाती.

पर सच्चाई सामने आ जाने से संजीव की योजना पर पानी फिर गया. इस की वजह थी ज्यादा लालच. उस ने सौ करोड़ की जो फिरौती की बात की थी, उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया.  जिन धाराओं में संजीव और सारिका को जेल भेजा गया है, उन का जेल से बाहर आना मुश्किल है. शानदार कोठी में रहने वाले पता नहीं कब तक जेल की कोठरी में रहेंगे.

संजीव के वकील ने उन की जमानत के लिए अदालत में अरजी लगा कर जमानत की काफी कोशिश की, लेकिन सरकारी वकील की दलीलें सुन कर न्यायाधीश श्री पी.के. सिंह ने जमानत की अरजी खारिज कर दी. एसटीएफ ने जिस तरह इस मामले का खुलासा किया, किसी को उम्मीद नहीं थी. उन की इस काररवाई से खुश हो कर एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने उन्हें प्रशस्तिपत्र के साथ 15 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह का तबादला हो गया है. उन की जगह पर नए कोतवाली प्रभारी भानुप्रताप सिंह आए हैं. वह संजीव गुप्ता और उस के साथियों को रिमांड पर ले कर एक बार फिर पूछताछ करना चाहते हैं.

12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर – भाग 3

गैंग का मुखिया सब से पहले अपनी रिश्तेदारी या फिर जानने वाले के बच्चे को तलाशने की कोशिश करता है. वहां न मिलने पर गांव के ही किसी बच्चे का चुनाव करता है. गांव के लोग बचपन से ही अपने बच्चे को छोटीमोटी चोरी करने की प्रैक्टिस कराते हैं. चोरी की प्राथमिक पढ़ाई घर वालों से पढ़ने के बाद हाथ आजमाने के लिए घर वाले इन्हें गैंग के लोगों को 6 महीने या साल भर के लिए सौंप देते हैं.

इन बच्चों के हुनर के अनुसार, उन का पैकेज 6 लाख से 12 लाख रुपए तक होता है. बच्चों के घर वालों को 25 प्रतिशत धनराशि एडवांस में नकद दे दी जाती है, बाकी की हर महीने की किस्तों में. इस तरह यहां के बच्चे बड़े पैकेज पर काम करते हैं.

राका ने पुलिस को बताया कि काम की शुरुआत करने से पहले उन्हें 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में उन्हें सिखाया जाता है कि लड़की या लड़के की शादी में ज्वैलरी या कैश का बैग किस तरह उड़ाना है.

राका और नीरज, दोनों साझे में काम करते थे. नीरज ने गैंग में अपने बेटे को भी शामिल कर रखा था. इन्होंने गांव के ही बच्चे चीमा (परिवर्तित नाम) को 10 लाख रुपए साल के पैकेज पर अपने गैंग में शामिल किया था. इस के बाद इन्होंने चीमा को बातचीत करने, खानेपीने, कपड़े पहनने, डांस करने की ट्रेनिंग दी. उस की मदद के लिए इन्होंने गांव के ही कुलजीत को अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

ये दिल्ली के अलगअलग इलाकों में किराए का कमरा ले कर रहते थे. ये अकसर मोटा हाथ मारने की फिराक में रहते थे. इन्हें पता था कि पैसे वाले लोग अपने बच्चों की शादियां कहां करते हैं. बच्चों को महंगे कपड़े पहना कर ये शाम होते ही औटोरिक्शा से छतरपुर, कापसहेड़ा, महरौली स्थित फार्महाउसों की तरफ घूम कर तलाश करते थे कि शादी कहां हो रही है. फार्महाउसों में ज्यादातर रईसों के बच्चों की ही शादियां होती हैं.

जिस फार्महाउस में शादी हो रही होती, उस के बाहर ही एक साइड में ये औटोरिक्शा खड़ा कर देते और तीनों बच्चे शादी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अंदर चले जाते, जबकि राका और नीरज औटो में ही बैठे रहते. औटो वाले को ये मुंहमांगा पैसा देते थे, इसलिए वह भी कुछ नहीं कहता था.

19 जून को भी इन्होंने ऐसा ही किया. राका और नीरज काम्या पैलेस के बाहर औटो में बैठे रहे और कुलजीत, चीमा तथा नीरज का बेटा मनोज चौधरी की बेटी की शादी समारोह में शामिल होने अंदर चले गए. वे उन के बेटे की लगन के कार्यक्रम में शामिल हुए.

लगन चढ़ने के बाद तीनों को 100-100 रुपए शगुन के तौर पर भी मिले थे. बेटी की शादी की वजह से मनोज चौधरी सूटकेस में अपने घर से कैश और ज्वैलरी ले आए थे. उस समय उन के सूटकेस में ज्वैलरी के अलावा 19 लाख रुपए नकद थे, इसलिए वह उस सूटकेस को अपने हाथ में ही लिए हुए थे.

तीनों बच्चों की टोली ने ताड़ लिया था कि माल इसी सूटकेस में है, इसलिए वे उस सूटकेस पर हाथ साफ करने के लिए उन के इर्दगिर्द ही मंडराते रहे.

शादी में आए मेहमानों की तरह उन्होंने खाना खाया और डीजे पर डांस भी किया. उन की गतिविधियां देख कर कोई शक भी नहीं कर सकता था कि बिन बुलाए मेहमान के रूप में ये चोर हैं.

जब कुलजीत डीजे पर डांस कर रही लड़कियों के साथ डांस कर रहा था, तब कन्यापक्ष के लोगों ने जरूर उस से डीजे से उतर जाने को कहा था. वह मनोज चौधरी का सूटकेस उड़ाने का मौका तलाशते रहे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

रात साढ़े 11 बजे के बाद जब फेरों का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उस समय भी वे उन के मेहमानों के बीच बैठ गए तो चीमा मंडप के इर्दगिर्द घूमता रहा. उसी दौरान जैसे ही मनोज ने हाथ में कलावा बंधवाने के लिए हाथ पंडित के आगे किया, तभी चीमा उन के सूटकेस को ले कर फुरती से निकल गया. उस के पीछे कुलजीत और फिर नीरज का बेटा भी निकल गया.

काम्या पैलेस से निकल कर वे सीधे औटो के पास पहुंचे, जहां राका और नीरज इंतजार कर रहे थे. इस के बाद वे औटो से द्वारका स्थित अपने कमरे पर गए और अगले दिन मध्य प्रदेश स्थित अपने घर चले गए. उन्होंने चुराए पैसे आपस में बांट लिए. राका के हिस्से में 4 लाख रुपए आए थे. कुछ दिन गांव में रह कर राका पैसे ले कर दिल्ली में अपने कमरे पर लौट आया.

वारदात करने के बाद ये किसी दूसरे इलाके में कमरा ले लेते थे. पूछताछ में राका ने बताया कि उस ने मुंबई के एक कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी का बैग चुराया था. उस ने बताया कि उस के गांव के लोग देश के तमाम बड़े शहरों में यही काम करते हैं. किसी गैंग में छोटे बच्चों के साथ महिला को भी रखा जाता है. लेकिन सारा कमाल ये बच्चे ही करते हैं.

राका से विस्तार से पूछताछ के बाद एंटी रौबरी सेल ने उस की निशानदेही पर 4 लाख रुपए कैश और कुछ ज्वैलरी बरामद कर ली. इस के बाद उसे कापसहेड़ा थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया, क्योंकि इस मामले की रिपोर्ट उसी थाने में दर्ज थी.

इस मामले की जांच एसआई प्रदीप को सौंपी गई थी. एसआई प्रदीप ने राका से पूछताछ की तो उस ने गुड़गांव की एक घटना का खुलासा किया है. कथा संकलन तक पुलिस उस से पूछताछ कर रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खिलाड़ियों का खिलाड़ी : भ्रष्टाचार की कहानी – भाग 3

सवाल यह था कि जब एसपी शंकरदत्त शर्मा ने ऋषभ सेठी के रिश्तेदार सनी पांड्या को फोन नहीं किया था तो उन के मोबाइल पर शंकरदत्त शर्मा का नंबर डिसप्ले कैसे हो रहा था?

इस मामले में एसीबी के अधिकारियों ने टेलीकौम के तकनीकी विशेषज्ञों से जानकारी मांगी तो पता चला कि आजकल विदेशी सौफ्टवेयर के जरिए स्पूफिंग काल किए जा सकते हैं. स्पूफिंग काल गेटवे के जरिए होती है. इसे वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) काल भी कहते हैं.

दरअसल, कई विदेशी कंपनियां ऐसा सौफ्टवेयर तैयार कर के उन के सर्वर बेचती हैं, जिन के जरिए कोई भी अपने मोबाइल से फोन कर सकता है, लेकिन फोन रिसीव करने वाले के पास नंबर वह डिसप्ले होगा, जो इस सौफ्टवेयर का उपयोग करने वाला चाहेगा. अगर किसी का मोबाइल स्विच औफ है तो भी उस के नंबर से इस सौफ्टवेयर द्वारा फोन किया जा सकता है.

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इस का टेलीकौम कंपनियों के पास कोई रिकौर्ड नहीं होता. केवल सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियों के सहयोग से ही जिस नंबर व मोबाइल फोन से फोन किया गया था, उस का आईपी एड्रैस पता किया जा सकता है. सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी यह काम बहुत आसान नहीं है.

भारत में स्पूफिंग काल के कोई 2-4 मामले ही अब तक सामने आए हैं. राजस्थान में इस तरह का यह पहला मामला था. जांच में पता चला कि फोन हांगकांग की एक गेटवे सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के जरिए किए गए थे. वे फोन दुनिया के 9 देशों के गेटवे सर्विस प्रोवाइडरों के जरिए रूट की गई थीं.

एसीबी के अधिकारियों ने अमेरिका, यूके, दक्षिणी अफ्रीका और चीन सहित 9 देशों की कंपनियों का सहयोग लिया. इस में कई महीने लग गए.

लंबी जांच के बाद एसीबी को उस मोबाइल नंबर का आईपी एड्रैस मिल गया. यह एयरटेल का सिम था, जो श्रीगंगानगर के साहिल राजपाल के नाम आवंटित था. इस के बाद एसीबी ने साहिल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

इस बीच एसीबी को जलदाय विभाग सहित दूसरे विभागों के अधिकारियों से भी कई और शिकायतें मिलीं. इन शिकायतों में भी बताया गया था कि एसीबी के एसपी शंकरदत्त शर्मा या किसी अन्य अधिकारी के नाम से उन्हें फोन कर के उन से रिश्वत की मांग की जा रही है.

इन शिकायतों के साथ एसीबी को 5 मोबाइल काल रिकौर्डिंग भी मिली, जिन में फोन करने वाले ने रिश्वत मांगी थी. जलदाय विभाग के एक इंजीनियर सी.एल. जाटव से एसीबी के एसपी शंकरदत्तर शर्मा के नाम से फोन कर के डेढ़ लाख रुपए ले भी लिए गए थे.

उन्होंने एसीबी के अधिकारियों को बताया कि एसपी शंकरदत्त शर्मा के मोबाइल नंबर एवं एसीबी के लैंडलाइनों से किसी ने उन के मोबाइल पर फोन कर के खुद को एसपी शंकरदत्त शर्मा बता कर जलदाय विभाग के घूसकांड से नाम निकालने के लिए 10 लाख रुपए मांगे थे. जाटव ने डेढ़ लाख रुपए दे भी दिए थे. इस के बाद भी बारबार पैसों के लिए एसीबी के नंबरों से फोन आ रहे थे.

एसीबी के अधिकारियों ने उन के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में शंकरदत्त शर्मा और एसीबी औफिस के लैंडलाइन नंबर मिल गए, लेकिन शंकरदत्त शर्मा की काल डिटेल्स में सी.एल. जाटव के नंबर नहीं मिले. यह भी कड़वा सच था कि उन का नाम जलदाय घोटाले में था ही नहीं, लेकिन साहिल के एसीबी का एसपी बन कर कई बार धमकाने से वह डर गए थे और डेढ़ लाख रुपए एसपी साहब के नाम पर दे भी दिए थे.

व्यापक जांच के बाद श्रीगंगानगर के साहिल राजपाल का नाम सामने आया तो एसीबी ने उस के बारे में पता किया. पता चला कि वह राजस्थान के पूर्वमंत्री और आजकल भाजपा के वरिष्ठ नेता राधेश्याम गंगानगर का पोता है.

साहिल के राजनीतिक परिवार से जुड़ा होने की जानकारी एसीबी के अधिकारियों ने उच्चाधिकारियों को दे दी.

वहां से हरी झंडी मिलने के बाद एसीबी ने 9 अगस्त, 2017 को जयपुर के जालूपुरा स्थित एक विधायक के सरकारी आवास से साहिल राजपाल को गिरफ्तार कर लिया. साहिल पूर्वमंत्री राधेश्याम गंगानगर के दूसरे बेटे वीरेंद्र राजपाल का बेटा था. वह इंग्लिश औनर्स से ग्रैजुएट था. एसीबी ने साहिल के खिलाफ 25 पेज की एफआईआर दर्ज की थी. इस एफआईआर के साथ फरवरी, 2017 से अब तक जुटाए गए दस्तावेजों के करीब 200 पेज लग चुके हैं.

पूछताछ में साहिल ने एसीबी के अधिकारियों को बताया कि उस ने जनवरी, 2017 से जुलाई तक विभिन्न सरकारी विभाग के अफसरों को विदेशी सौफ्टवेयर के जरिए एसीबी के लैंडलाइन एवं एसीबी अफसरों के मोबाइल नंबरों से न जाने कितने फोन किए हैं. वह अपने या किसी दूसरे के मोबाइल फोन से अफसरों को फोन करता था, लेकिन रिसीव करने वाले के मोबाइल पर एसीबी के नंबर डिसप्ले होते थे.

5 दिनों के रिमांड के दौरान पूछताछ में साहिल ने एसीबी को बताया कि उस ने जलदाय विभाग के एडिशनल चीफ इंजीनियर, 2 सुपरिंटेंडेंट इंजीनियरों और करीब 10 अन्य इंजीनियरों तथा रसद विभाग के अधिकारियों से एसीबी के एसपी के नाम से करीब 20 करोड़ रुपए मांगे थे.

वह एसपी शंकरदत्त शर्मा बन कर अधिकारी से पैसे मांगता था और उन का ड्राइवर बन कर पैसे लेने जाता था. उस ने एसीबी के अधिकारियों और जलदाय विभाग के इंजीनियरों के फोन नंबर विभागीय वेबसाइट से हासिल किए थे. स्पूफिंग काल के लिए उस ने एसटीडी बूथ से आईएसडी काल भी किए थे. उस ने कई बार एसटीडी बूथों से चंडीगढ़, गुड़गांव और दिल्ली फोन कर के अधिकारियों के नंबर लिए थे. एसीबी ने इन बूथों की भी जांच की है. चेन्नै से भी स्पूफिंग काल करने का पता चला है.

साहिल किसी भी अधिकारी को स्पूफिंग काल करने से पहले डायरी में लिख कर उस का अभ्यास करता था, ताकि पुलिसिया लहजे से बातचीत करने में कोई गलती न हो. एसीबी को उस के आवास से ऐसी 2 डायरियां मिली हैं, जिन में एसीबी के एसपी शंकरदत्त शर्मा के नाम से शुरुआत कर के कई बातें लिखी गई हैं.

डायरियों में कई नाम मिले हैं, जिन से अंदाजा लगाया जा रहा है कि साहिल ने उन्हें स्पूफिंग काल कर के पैसों की मांग की होगी. पुलिस ऐसे पीडि़तों का पता लगाने का प्रयास कर रही है. हालांकि एसीबी के पास अभी कुछ ही शिकायतें आई हैं. ज्यादातर पीडि़त अभी सामने नहीं आए हैं.

एसीबी को जालूपुरा स्थित विधायक के आवास की तलाशी में शराब की 34 बोतलें मिली थीं, जिन में विदेशी शराब भी थी. एसीबी की सूचना पर थाना जालूपुरा पुलिस ने शराब की उन बोतलों को जब्त कर लिया था और साहिल के खिलाफ अवैध रूप से शराब रखने का मामला दर्ज किया था. यह सरकारी आवास विधायक मोहनलाल गुप्ता के नाम से आवंटित था. इस में विधायक गुप्ता नहीं रहते थे. वहां साहिल रुका हुआ था.

पूछताछ में पता चला है कि साहिल राजपाल का श्रीगंगानगर में प्रौपर्टी का कारोबार था. प्रौपर्टी में मंदी के कारण उसे लाखों रुपए का घाटा हो गया था. घाटा पूरा करने के लिए उस ने जयपुर जा कर दिमाग लगाना शुरू किया. उस बीच मीडिया में जलदाय विभाग की रिश्वतखोरी की खबरें सुर्खियों में थीं.

साहिल हौलीवुड फिल्में खूब देखता था. इन्हीं फिल्मों से उसे आइडिया आया कि उन लोगों को ब्लैकमेल किया जा सकता है, जो भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हैं. ऐसे लोग जांच एजेंसियों के शिकंजे से निकलने के लिए मोटी रकम देने को जल्दी तैयार हो जाते हैं.

इस के लिए साहिल ने एसीबी के एसपी व अन्य अफसरों के नाम का उपयोग किया. राजनीतिक परिवार से जुड़ा होने की वजह से साहिल की श्रीगंगानगर में पुलिस अधिकारियों से भी अच्छी सांठगांठ थी. वह पैसे ले कर पुलिसकर्मियों व दूसरे विभागों के कर्मचारियों के तबादले कराता था. हालांकि लोग तबादलों के लिए राधेश्याम गंगानगर के पास आते थे.

राज्य में भाजपा की सरकार होने और भाजपा का वरिष्ठ नेता होने की वजह से लोग अधिकारियों पर उन का प्रभाव होने की बात मान कर तबादलों के लिए निवेदन करते थे.

वहीं साहिल के ताया रमेश राजपाल भाजपा के जिला उपाध्यक्ष हैं. इस कारण भी लोग मानते थे कि इस परिवार का अधिकारियों पर रुतबा है. तबादले के लिए दादा और ताया के पास आने वाले लोगों को मौका मिलने पर साहिल अपना शिकार बनाता था.

5 दिनों का रिमांड पूरा होने के बाद 14 अगस्त को एसीबी ने साहिल को अदालत में पेश कर 7 दिनों का रिमांड और लिया. एसीबी उस की एक साल की मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर रही है. इस के अलावा बैंक से उस के खातों की भी डिटेल मांगी गई है. एसीबी उस के साथियों के बारे में भी पता कर रही है.

विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जांच कराने के लिए उस की आवाज के नमूने लिए गए हैं. एसीबी ने जलदाय विभाग के इंजीनियर सी.एल. जाटव और एसपीएमएल कंपनी के डाइरेक्टर ऋषभ सेठी के रिश्तेदार सनी पांड्या के बयान दर्ज किए हैं.

दोनों ने एसीबी को वह रिकौर्डिंग भी सौंप दी थी, जो उन्होंने फोन पर एसपी के नाम से रकम मांगने के दौरान बातचीत की तैयार की थी.

इन रिकौर्डिंग की आवाज से साहिल की आवाज का मिलान किया जाएगा. एसीबी ने इन रिकौर्डिंग की ट्रांस्क्रिप्ट तैयार की है. पूर्वमंत्री राधेश्याम गंगानगर का कहना है कि उन का पोता ऐसा नहीं कर सकता. उन के परिवार को न्याय मिलेगा. न्याय प्रणाली पर उन्हें पूरा भरोसा है.

साहिल का कहना है कि इस मामले में उसे फंसाया गया है. सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि साहिल की गिरफ्तारी का असर राधेश्याम गंगानगर के राजनीतिक कैरियर पर भी पड़ सकता है.

साहिल के ताया रमेश राजपाल भाजपा जिला उपाध्यक्ष होने की वजह से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे थे. साहिल के पिता वीरेंद्र राजपाल गंगानगर क्लब के अध्यक्ष रहे हैं.

भारतपाक विभाजन के समय पाकिस्तान से आ कर श्रीगंगानगर में बसे राधेश्याम यहां की राजनीति की धुरी रहे हैं. कांग्रेस से 3 बार विधायक और एक बार राज्यमंत्री रहे राधेश्याम ने सन 2008 में टिकट कटने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया था. वह चाहे सत्ता में रहे हों या न रहे हों, उन के परिवार का विवादों से पुराना नाता रहा है.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए भाजपा से जवाब मांगा है. जयपुर की पूर्व महापौर और प्रदेश कांग्रेस महासचिव ज्योति खंडेलवाल ने जयपुर के किशनपोल के विधायक मोहनलाल गुप्ता की भूमिका को भी संदिग्ध बताते हुए मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है.

– कथा एसीबी सूत्रों एवं अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित