पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था. दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसान को लुटेरा बना सकती है शाहखर्ची

29 दिसंबर, 2016 की रात उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव मदाखेड़ा के देशी शराब के ठेके पर कुछ लोग बैठे शराब पी रहे थे. रात गहराई तो शराब पीने वाले वे लोग ठेके से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़े हो गए. इस की वजह यह थी कि वे शराब के ठेके के पास चलने वाली कैंटीन में चोरी करना चाहते थे. वे अकसर यहां शराब पीने आते थे. इस से उन्हें पता था कि कैंटीन में पैसा रखा रहता है.

दरअसल, नया साल आने वाला था, इसलिए उन लोगों को मौजमस्ती और शाहखर्ची के लिए पैसों की जरूरत थी. इस के लिए उन्हें कैंटीन में चोरी करने से बेहतर कोई दूसरा उपाय नजर नहीं आ रहा था. शराब का यह ठेका सिसेंडी निवासी राजेश कुमार जायसवाल की पत्नी सरिता जायसवाल के नाम था.

28 साल का मनीष कुमार अपने परिवार के गुजरबसर के लिए ठेके के पास कैंटीन चलाता था. उस की कैंटीन में शराब के साथ पीने के लिए पानी, कोल्डड्रिंक और नमकीन बिस्कुट वगैरह मिलता था. दिन भर जो बिक्री होती थी, वह मनीष के पास कैंटीन में ही रखी रहती थी. रायबरेली जिले के रहने वाले राजनारायण, कल्लू, चुन्नीलाल और चंदन अकसर यहां आ कर शराब पीते थे. पैसों के लिए ये इलाके में चोरी और लूटपाट करते थे. इन सभी को शान से रहने की आदत थी. इन्हें महंगी गाडि़यों में घूमने और ब्रांडेड कपड़े पहनने का शौक था.

रायबरेली जिले के थाना बछरावां के रहने वाले राजनारायण और चंदन बापबेटे थे. बेरोजगारी और महंगे शौक ने दोनों को एक साथ अपराध करने के लिए विवश कर दिया था. गिरोह बना कर ये इलाके में पत्तल और दोने बेचते थे.

इस के जरिए ये पता कर लेते थे कि किस घर या दुकान में रकम मिल सकती है. ये सभी ज्यादातर बड़ी दुकानों, शोरूम और दूसरी जगहों को ही निशाना बनाते थे. गांव और आसपास की बाजारों में अभी भी लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए घर पर ही रखते हैं. दिसंबर महीने में नोटबंदी के चलते बैंकों में पैसा जमा कराना मुश्किल हो गया था, इसलिए कैंटीन चलाने वाले मनीष ने भी बिक्री के पैसों को कैंटीन में ही रखा हुआ था.

यह बात लुटेरे गिरोह को पता चल गई थी, इसलिए 29 दिसंबर को शराब पीने के बाद इन लोगों ने वहां चोरी की योजना बना डाली थी. रात में मनीष सो गया तो ये सभी चोरी करने के लिए कैंटीन में घुसे. चोरी करते समय बदमाशों ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि किसी तरह का कोई शोरशराबा न हो.

इस के बावजूद कैंटीन में रखा एक बरतन गिर गया, जिस की आवाज सुन कर मनीष जाग गया. उस के जागने से चोरी करने वाले परेशान हो उठे. उन्हें पकड़े जाने का भय सताने लगा. बचने के लिए उन्होंने मनीष के सिर पर लोहे का सरिया मार दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गया.

उस के सिर से खून बहने लगा. इस के बाद लुटेरे नकदी और सामान लूट कर भाग गए. सुबह शराब के ठेके का सेल्समैन पहुंचा तो उस ने मनीष को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया. मनीष के शरीर से खून ज्यादा बह चुका था, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

उस की मौत की सूचना थाना निगोहां पुलिस को दी गई तो पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ चोरी और हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह ने मामले की जानकारी लखनऊ की एसएसपी मंजिल सैनी को दी तो उन्होंने इस मामले की जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

एसपी क्राइम डा. सुजय कुमार की अगुवाई में गठित टीम में से सर्विलांस सेल के प्रभारी अक्षय कुमार और इंसपेक्टर क्राइम उदय प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से मुश्किल काम यह था कि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था. यह पूरी तरह से ब्लाइंड मर्डर था. ऐसे में पूरा दारोमदार सर्विलांस टीम पर था.

निगोहां पुलिस और क्राइम ब्रांच ने कुछ संदिग्ध लोगों को निशाने पर लिया. उन की जानकारी सर्विलांस टीम को दी. इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ने लगी. आखिर में पुलिस के हत्थे रायबरेली जिले का यह लुटेरा गिरोह लग गया. अब जरूरत थी घटना के बारे में उन से कबूल करवाना.

दरअसल, लुटेरे आपस में फोन पर बातें कर रहे थे, उसी से पुलिस को उन के द्वारा की गई वारदात का पता तो चल ही गया था, यह भी पता चल गया था कि वे निगोहां के टिकरा गांव के पास बने सामुदायिक मिलन केंद्र पर एकत्र होंगे.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने घेराबंदी कर के 6 जनवरी को इस गिरोह को पकड़ लिया था. पुलिस को इस गिरोह के पास से 35 हजार रुपए नकद और 10 मोबाइल फोन मिले थे. पुलिस ने गिरोह के सदस्यों से वह सरिया भी बरामद कर लिया था, जिस से मनीष की हत्या की गई थी.

पूछताछ में इस गिरोह ने बताया था कि निगोहां के ही बाबूखेड़ा गांव में रामू के घर 15 अक्तूबर को हुई चोरी भी इन्हीं लोगों ने की थी. दरअसल 29 दिसंबर की रात इस गिरोह ने सब से पहले पत्तेखेड़ा और मदाखेड़ा गांव में चोरी का प्रयास किया था, पर सफल नहीं हो सके थे.

ऐसे में ये शराब के ठेके पर पहुंचे, जहां कैंटीन में इन लोगों ने पैसा देखा तो लूट की योजना बना डाली. लूट के दौरान आवाज होने से ये लोग बचने के लिए मनीष को मारने पर मजबूर हो गए. पुलिस की इस सफलता के लिए एसएसपी मंजिल सैनी और एसपी क्राइम डा. संजय कुमार ने पुलिस टीम को बधाई दी है.

एसआई अक्षय कुमार ने बताया कि यह गिरोह पहले अपने टारगेट को चुनता था, उस के बाद चोरी करता था. उस दिन 2 जगहों पर असफल होने के बाद ये कैंटीन में चोरी करने को मजबूर हो गए. इन्हें किसी भी तरह से पैसा हासिल करना था, इसलिए ये समझ नहीं पाए कि कैंटीन में कोई सोया हुआ है. इन्हें लगता था कि कैंटीन में कोई होगा नहीं. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह का कहना था कि इस गिरोह के पकड़े जाने के बाद इलाके में होने वाली चोरियां रोकी जा सकेंगी?

जिंदगी के बाद भी दलितों पर होता जुल्म

‘दलित भाइयों पर अत्याचार मत करो. अगर गोली मारनी है, तो उन्हें नहीं मुझे मारो…’ जैसी जज्बाती और किताबी अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के एक जलसे में की थी. उस का उलटा असर यह हुआ कि देशभर में दलित अत्याचारों की बाढ़ सी आ गई.

दलितों पर कहर ढाने के लिए दबंग धर्म के नाम पर तरहतरह के नएनए तरीके ईजाद करते रहते हैं. गौरक्षा इन में से एक है. लेकिन मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में तो दबंगों ने सारी हदें पार करते हुए ऐसा नजारा पेश किया था कि इनसानियत भी कहीं हो तो वह भी शर्मसार हो उठे.

लाश को भी नहीं बख्शा

यह मामला मुरैना जिले की अंबाह तहसील के गांव पाराशर की गढ़ी का है. 10 अगस्त, 2016 को इस गांव में एक दलित बाशिंदे बबलू की 25 साला बीवी पूजा की मौत हुई थी.

अपनी जवान बीवी की बेवक्त मौत का सदमा झेल रहा बबलू उस वक्त सकते में आ गया, जब दबंगों ने पूजा की लाश को श्मशान घाट में नहीं जलाने दिया.

इस पर बबलू हैरान रह गया और दबंगों के सामने गिड़गिड़ाता रहा कि वह लाश को कहां ले जा कर जलाए, पर दबंगों का दिल नहीं पसीजा. उन्होंने बबलू को डांट फटकार कर भगा दिया कि जो करना है सो कर लो, पर एक दलित औरत की लाश श्मशान घाट में जलाने की इजाजत हम नहीं दे सकते.

मौत के कुछ घंटे बीत जाने के बाद घर में पड़ी लाश भी भार लगने लगती है, इसलिए बबलू की हालत अजीब थी कि बीवी की लाश का क्या करे.

पाराशर की गढ़ी गांव में एक नहीं, बल्कि 3-3 श्मशान घाट हैं, पर तीनों पर रसूखदारों का कब्जा है, जिन में कोई दलित अंतिम संस्कार नहीं कर सकता.

बबलू को बुजुर्गों ने मशवरा यह दिया कि बेहतर होगा कि पूजा की लाश को किसी खेत में जला दो.

इस पर बबलू फिर गांव वालों के पास गया और बीवी की मिट्टी ठिकाने लगाने के लिए सभी जमीन वालों से 2 गज जमीन मांगी, पर किसी को उस पर तरस नहीं आया.

जब इस भागादौड़ी में पूरे 24 घंटे गुजर गए और लाश गलने लगी, तो बबलू घबरा उठा और थकहार कर बुझे मन से उस ने पूजा की लाश का दाह संस्कार अपने घर के सामने बनी कच्ची सड़क पर किया.

यह वही हिंदू धर्म है, जिस में किसी शवयात्रा के निकलते वक्त लोग सिर झुका कर किनारे हो जाते हैं और मरने वाले की अर्थी की तरफ देख कर हाथ जोड़ते हैं. लेकिन अगर शवयात्रा किसी दलित की हो, तो नफरत से मुंह फेर लेते हैं.

गांवों में यह नजारा आम है, जिस के तहत मरने के बाद भी दलितों से ऊंची जाति वालों की नफरत खत्म नहीं होती, उलटे उन्हें तंग करने के लिए श्मशान में भी जगह नहीं दी जाती.

इस हकीकत पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कहा था कि अब गांव में एक घाट एक श्मशान होगा, दलितों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.

अकेले ग्वालियरचंबल इलाके की नहीं, बल्कि देशभर के गांवों की यही हालत है कि दलितों के घर कोई मौत हो, तो उन्हें लाश बड़ी जाति वालों की तरह श्मशान में जलाने की सहूलियत नहीं है. इस का मतलब तो यह हुआ कि धर्म मानता है कि आत्मा भी दलित होती है और किसी ऊंची जाति वाले की आत्मा को दलित की आत्मा छू गई, तो वह भी अपवित्र हो जाएगी.

लेकिन हकीकत तो यह है कि इस तरह की ज्यादतियां दलितों को दबाए रखने के लिए जानबूझ कर की जाती हैं, जिस से वे दबंगों के सामने सिर नहीं उठा पाएं.

पाराशर की गढ़ी गांव की तरह दलितों को अपने वालों की लाश अपनी ही जमीन पर जलानी पड़ती है, लेकिन दिक्कत बबलू जैसे 95 फीसदी दलितों की होती है, जिन के पास अपनी जमीन नहीं होती. लिहाजा, वे लाश को किसी जंगल में या गांव के बाहर सरकारी जमीन पर जलाने के लिए मजबूर होते हैं.

कब्जा करने की मंशा

पाराशर की गढ़ी गांव के तीनों श्मशानों में केवल ऊंची जाति वालों की लाशें जलती हैं, पर हैरानी की बात यह है कि श्मशान की जमीनों पर दबंगों का कब्जा है और वे शान से इन जमीनों पर खेती करते हैं. उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है.

पूजा की लाश को जगह न देने पर जब ज्यादा होहल्ला मचा, तो आला अफसर भागेभागे पाराशर की गढ़ी गांव गए और हालात का जायजा लिया.

मुरैना के कलक्टर विनोद शर्मा और एसपी विनीत खन्ना ने फौरीतौर पर श्मशान घाट की जमीनों पर फैसिंग करवा दी, जो तय है कि जो कुछ दिनों या महीनों में हट जाएगी और दबंग फिर से इस सरकारी जमीन पर काबिज हो जाएंगे.

मंदिर बना कर जमीनें हड़पना आम बात है. इसी तर्ज पर अब श्मशानों की जमीनों पर भी ऊंची जाति वाले कब्जा करने लगे हैं. जिस तरह मंदिरों में पूजापाठ के लिए दलितों को दाखिल नहीं होने दिया जाता, ठीक उसी तरह श्मशानों में भी उन्हें जलाने की इजाजत नहीं है.

पाराशर की गढ़ी गांव में तहकीकात करने गए अफसर कुरसियों पर बैठे दलित बबलू की दास्तां सुनते रहे और बबलू समेत और दलित नीचे जमीन पर बैठे रिरियाते रहे.

प्रशासन ने बात सुनी, लेकिन किसी दोषी दबंग के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. यह बात इस रिवाज को शह देने वाली नहीं तो क्या है?

ऐसा ही एक मामला इसी साल अप्रैल के महीने में नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील में सामने आया था. वंदेसुर गांव के एक गरीब बुजुर्ग की मौत के बाद उस के घर वाले लाश को जलाने श्मशान घाट ले गए, तो दबंगों ने उन्हें लाश समेत वहां से भगा दिया था.

इस पर मरने वाले के भांजे गोपाल मेहरा ने हल्ला मचाया, तो गाडरवारा के तहसीलदार संजय नागवंशी गांव पहुंचे और मामले की जांच कर यह बयान दिया कि कायदेकानूनों के तहत कुसूरवारों पर कार्यवाही की जाएगी.

दरअसल, वंदेसुर गांव की श्मशान घाट की 3 एकड़ जमीन पर दबंगों भानुप्रताप राजपूत और छत्रसाल राजपूत का कब्जा है. इस मामले में भी मरे बुजुर्ग का अंतिम संस्कार तालाब किनारे सड़क पर किया गया था.

इन उजागर हुए मामलों से जाहिर सिर्फ इतना भर होता है कि जीतेजी तो दलित दबंगों का कहर झेलते ही हैं, पर मरने के बाद भी उन्हें बख्शा नहीं जाता.

गांव में पंचायती राज कहने भर की बात है, नहीं तो असल राज दबंगों का चलता है, जो श्मशान तक की जमीनें हथिया लेते हैं और दलितों की लाश को नहीं जलाने देते.

समस्या श्मशान घाटों की कमी की नहीं, बल्कि छुआछूत और दबंगई की है, जिस के तहत ऊंची जाति वाले श्मशान तक में छुआछूत मानते हैं. वे अगर दलितों को श्मशान में लाश जलाने की इजाजत दे देंगे, तो जमीनों पर बेजा कब्जा नहीं कर पाएंगे.

ज्यादातर दलितों के पास जमीनें नहीं हैं, इसलिए लाशों को ठिकाने लगाने के लिए वे यहांवहां भटकते रहते हैं. हालत यह है कि कुएं और नदी ऊंची जाति वालों के कब्जे में हैं, सड़कें उन के लिए हैं, मंदिर उन के लिए हैं और श्मशान घाट भी उन्हीं के हैं. ऐसे में भाईचारे और बराबरी की बात मजाक ही लगती है.

कबूतरबाजी का काला धंधा

साल 1989 में आई सलमान खान और भाग्यश्री की सुपरहिट फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ का एक गाना ‘कबूतर जाजाजा, कबूतर जा…’ बहुत मशहूर हुआ था, जिस में भाग्यश्री अपना लव लैटर एक खूबसूरत सफेद कबूतर की मारफत दूर गए सलमान खान तक भिजवाती है. वह समझदार कबूतर सलमान खान तक चिट्ठी पहुंचा कर कर अपना फर्ज निभाता है.

पर कुछ कबूतर समझदार नहीं, बल्कि शातिर होते हैं. उन की सरपरस्ती करने वाले कबूतरबाज तो और भी चालबाज. यहां कबूतर कोई पक्षी नहीं, बल्कि वे लालची लोग होते हैं जो पौंड, डौलर में कमाई करने की खातिर गैरकानूनी तरीके से विदेशों की धरती पर पैर रखते ही वहां ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग. लोगों को इस तरह एक देश से दूसरे देश में भेजने को ‘कबूतरबाजी’ का नाम दिया गया है.

साल 2003 में पंजाबी गायक दलेर मेहंदी कबूतरबाजी के मामले में फंसे थे. तब उन पर और उन के बड़े भाई शमशेर सिंह पर आरोप लगा था कि वे प्रशासन को धोखे में रख कर कुछ लोगों को अपनी सिंगिंग टीम का हिस्सा बता कर विदेश ले गए थे और उन्हें वहीं छोड़ दिया था. इस के एवज में उन्होंने काफी मोटी रकम भी वसूली थी.

मामला कुछ यों है कि साल 1998 और 1999 में दलेर मेहंदी 2 बार अमेरिका गए थे. इस दौरान वे 10 ऐसे लोगों को भी अपने साथ ले गए थे, जो लौटे ही नहीं.

साल 2003 में बख्शीश सिंह नाम के एक शख्स ने दलेर मेहंदी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. पंजाब की पटियाला पुलिस ने जानकारी के आधार पर दलेर मेहंदी के भाई शमशेर मेहंदी को गिरफ्तार किया था. पर तब पूरी पुलिस टीम का ही तबादला कर दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि किसी भारी दबाव के चलते ऐसा फैसला लिया गया था.

लेकिन अब 15 साल के बाद पटियाला कोर्ट ने दलेर मेहंदी को गैरकानूनी तरीके से लोगों को विदेश ले जाने के मामले में कुसूरवार बताया है. दलेर मेहंदी को 2 साल की सजा सुनाई गई है. साथ ही, उन पर 2 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

हालांकि, दलेर मेहंदी को फौरन जमानत भी मिल गई और उन के वकील ने कहा कि वे निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.

चूंकि यह हाईप्रोफाइल मामला पंजाबी गायक दलेर मेहंदी से जुड़ा हुआ है, इसलिए जल्दी ही सुर्खियों में आ गया, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी मानव तस्करी के नाम पर कबूतरबाजी का खेल खेलने का सिलसिला बेरोकटोक जारी है.

नवंबर, 2017 में मुंबई की सहार इलाके की पुलिस ने 40 साल के बल्लू कानू भाई को गुजरात से गिरफ्तार किया था. उस पर जाली पासपोर्ट के जरीए लोगों को अमेरिका और कनाडा भेजने का आरोप लगा था. पुलिस के मुताबिक यह आरोपी अब तक फर्जी तरीके से 53 लोगों को विदेश भेज चुका था.

कबूतरबाजी के सिलसिले में पुलिस की यह धरपकड़ मई महीने से ही शुरू हो गई थी. तब सहार पुलिस ने लोगों को जाली पासपोर्ट के आधार पर अमेरिका और कनाडा भेजने वाले एक कबूतरबाज गैंग का परदाफाश किया था. उस समय कुल 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने इस गोरखधंधे से जुड़े 3 इमिग्रेशन अफसरों को भी पकड़ा था.

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पुलिस की पूछताछ में बल्लू कानू भाई ने बताया कि साल 2015 से साल 2017 के दौरान उस ने कुल 53 लोगों को गलत तरीके से विदेश भेजा था. इस के एवज में हर शख्स से 50 लाख से 60 लाख रुपए लिए गए थे. इस काम में उस का पूरा गिरोह मदद करता था. लोगों से लिए गए पैसे में गैंग के हर सदस्य की हिस्सेदारी बंधी होती थी.

अगस्त, 2016 में दिल्ली पुलिस ने कबूतरबाजी के ऐसे गिरोह का परदाफाश किया था जो दुबई में अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से ठगी करता था. यह गिरोह पौश एरिया में आलीशान दफ्तर खोल कर कबूतरबाजी के काले कारोबार को अंजाम दे रहा था.

इस गिरोह के सदस्य ऐसे बेरोजगार नौजवानों को ठगते थे जिन को नौकरी की तलाश होती थी. वे उन्हें दुबई समेत कई दूसरे देशों में नौकरी दिलाने का लालच दे कर उन से लाखों रुपए की रकम ऐंठ लेते थे.

ऐसा ही एक मामला दिल्ली से सटे राज्य उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का भी था. वहां कैला भट्टा इलाके का रहने वाला फुरकान कविनगर में एक शख्स से मिला था. उस ने दुबई के एक होटल में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर उस से 50 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. इस के एवज में फुरकान को जो वीजा दिया गया था वह फर्जी निकला.

उस शख्स ने फुरकान के साथसाथ 4 नेपाली लोगों से भी इसी काम के नाम पर 50-50 हजार रुपए हड़प लिए थे. केरल का वह धोखेबाज इस करतूत को अंजाम दे कर फरार हो गया था.

कुछ लोगों के साथ तो इस से भी ज्यादा बुरा होता है. मध्य प्रदेश के भिंड इलाके का रहने वाला नरेंद्र सिंह विदेश में नौकरी कर के अपने घर की माली हालत सुधारना चाहता था. इस सिलसिले में उस की मुलाकात धर्मेंद्र सिंह से हुई जिस ने उस से सऊदी अरब में नौकरी दिलाने का वादा किया और उस से तकरीबन पौने 2 लाख रुपए ले लिए.

इस के बाद एक फर्जी पासपोर्ट बनवा कर नरेंद्र सिंह को किसी तरह सऊदी अरब भेज दिया गया. अभी एक साल भी नहीं बीता था कि नरेंद्र सिंह ने अपने परिवार वालों को फोन कर के बताया कि उसे भूखा रखा जाता है और तय की गई तनख्वाह भी नहीं दी जाती है.

तब नरेंद्र सिंह के परिवार वालों ने धर्मेंद्र सिंह से उसे वापस लाने को कहा तो उस ने उन से दोबारा ढाई लाख रुपए ले लिए, पर नरेंद्र सिंह वापस नहीं लौटा. पुलिस की मदद से धर्मेंद्र सिंह को पकड़ लिया गया और उस से की गई पूछताछ में पता चला कि वह एक कबूतरबाज गिरोह से जुड़ा था जिस ने 12 से ज्यादा लोगों को विदेश भेज कर लाखों रुपए की ठगी की थी. विदेश भेजे गए लोग नरेंद्र सिंह की तरह नरक की सी जिंदगी जी रहे थे.

ऐसा बहुत से मामलों में होता है कि यूरोप या दूसरे अमीर देशों में भेजने के नाम पर लोगों को अफ्रीका के गरीब देशों में भेज दिया जाता है. कई लोग पकड़े जाते हैं तो वे जिंदगीभर जेलों में सड़ते रहते हैं. बहुतों को तो ढंग से अंगरेजी भी नहीं बोलनी आती है जिस से वे अपनी बात विदेशी अफसरों से कह सकें. लिहाजा, वे न तो इधर के रहते हैं और न ही उधर के.

सवाल उठता है कि काबिल न होने के बाद भी बेरोजगारों में विदेश जाने का चसका क्यों लगता है? दरअसल, किसी परिवार से अगर कोई शख्स विदेश जा कर अच्छी कमाई करता है तो उस के परिवार के दूसरे सदस्य भी वहां जा कर पैसा बनाने का ख्वाब देखने लगते हैं. जब कानूनी तौर पर वे विदेश जा कर वहां रहने या रोजगार करने के लायक नहीं होते हैं तो वे किसी भी तरह अपना सपना पूरा करने की जुगत भिड़ाने लगते हैं.

पंजाब जैसे राज्यों में तो बहुत से नौजवान अपनी बेशकीमती जमीन बेच कर विदेश जाने की योजनाएं बनाते हैं, चाहे वहां जा कर उन्हें होटलों में बरतन ही क्यों न मांजने पड़ें. इस के लिए कानूनी नहीं तो गैरकानूनी तरीका ही उन्हें आसान लगता है, जिस का फायदा कबूतरबाज उठाते हैं.

गलीमहल्ले में बैठे ऐसे क्लियरिंग एजेंट बेरोजगारों से बहुत सी बातें छिपा जाते हैं. वे आसान तरीके से विदेश में घुसने के सब्जबाग दिखा कर लोगों को बरगलाते हैं ताकि उन्हें अपने जाल में फंसा कर पैसे ऐंठ सकें.

छोटी नौकरियों से जुड़े सरकारी नियमों की बात करें तो प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय के तहत प्रोटैक्टर जनरल औफ इमिग्रैंट्स के पास बिना कोई भी एजेंसी या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों की सेवाएं नहीं ले सकता. इस औफिस द्वारा वैलिड परमिट जारी किए जाने के बाद ही एजेंट या विदेशी ऐंप्लौयर भारतीय श्रमिकों से काम ले सकता है.

आप का एजेंट फर्जी तो नहीं है, इस के लिए आप नजदीकी प्रोटैक्टर के औफिस में मिल कर तसल्ली कर सकते हैं. बिना पढ़े किसी भी एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें. खुद कोई बात समझ न आए तो किसी पढ़ेलिखे से समझ लें. एजेंट को दिए जाने वाले पैसों की रसीद लें. अगर आप विदेश पहुंच जाएं तो अपने ऐंप्लौयर से किसी तरह के नए एग्रीमैंट पर दस्तखत न करें.

विदेश जा कर पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है पर वहां किसी गैरकानूनी तरीके से जाना बहुत बड़ा जुर्म है, जिस की सजा में पूरी उम्र तक जेल में गुजर सकती है.

बरतें ये सावधानियां

विदेश जा कर पैसा कमाने का ख्वाब देखना बुरा नहीं है, लेकिन किसी पर भी अंधा विश्वास कर के अपनी गाढ़ी कमाई उसे सौंप देना किसी लिहाज से ठीक बात नहीं है. ऐसा करने से पहले इन बातों पर जरूर ध्यान दें :

* विदेश जाने से पहले उस देश की एंबैसी से बात जरूर कर लें.

* अगर कोई आप को विदेश में पढ़ाईलिखाई से जुड़ा कोई कोर्स कराने के नाम पर वहां भेजने की बात करता है तो उस कोर्स के संबंध में कंप्यूटर वगैरह पर पूरी जानकारी ले लें.

* जो शख्स या एजेंसी आप को विदेश भेजना चाहती है उस की पूरी तहकीकात कर लें. ज्यादा जरूरी हो तो उन लोगों से भी बातचीत कर लें जो उस शख्स या एजेंसी की सेवाएं ले चुके हैं.

* अपनी तसल्ली करने के बाद ही पैसा दें.

* जरा सी भी भनक लगे, तो उन लोगों से फौरन दूर हो जाएं.

क्रिकेटर निकला कबूतरबाज

भारत की ओर से 10 इंटरनैशनल वनडे मैच खेलने वाले क्रिकेटर जैकब मार्टिन को साल 2011 में कबूतरबाजी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. वह वडोदरा रणजी टीम का कप्तान रह चुका था और 138 रणजी मैच भी खेल चुका था.

जैकब मार्टिन को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उस पर आरोप था कि वह युवा खिलाडि़यों को विदेशी टीमों की ओर से क्रिकेट मैच खिलाने के नाम पर उन्हें दूसरे देशों में ले जाता था और कई खिलाडि़यों को वहीं छोड़ देता था. इस के लिए वह फर्जी क्रिकेट टीम बनाता था. एक ऐसे ही फर्जी क्रिकेटर की गिरफ्तारी के बाद इस मामले का खुलासा हुआ था.

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 4

सन 1988 तक शोभराज जेल में रहा और मुकम्मल शांति से रहा. तिहाड़ जेल में वह आदत के मुताबिक किताबें मंगा कर पढ़ता रहा. इस में कोई शक नहीं कि वह एक अच्छा पाठक और लेखक भी था.

कम पढ़ेलिखे शोभराज की फिलासफी में भी गहरी दिलचस्पी थी. वह अकसर जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रैडरिक नीत्शे की किताबें पढ़ता रहता था. यह वही नीत्शे थे जिन का यह वाक्य आज तक भी खूब चर्चित है कि ईश्वर की मृत्यु हो गई है.

मुमकिन है अपराधबोध से ग्रस्त शोभराज नास्तिक कहे जाने वाले नीत्शे की थ्योरी में यह खोजता रहा हो कि ईश्वर का कोई अस्तित्व है भी या नहीं. मुमकिन यह भी है कि वह दैवीय सजाओं से डरता हो.

लेकिन एक जरायमपेशा मुलजिम का दर्शनशास्त्र में गहरे तक दखल रखना यह तो बताता है कि अपराधी भी बुद्धिजीवी होते हैं और रहस्यों के प्रति उन में भी सहज जिज्ञासा होती है.

शोभराज ने कितनी हत्याएं कीं, यह शायद अब पता चले. क्योंकि लिखने और खुद की जिंदगी पर लिखवाने की अपनी आदत से वह बाज आएगा, ऐसा लगता नहीं. कई नामी मीडिया संस्थानों को उस ने मुंहमांगी कीमत पर अपनी जिंदगी के राज बेचे.

अपनी आधी जिंदगी के लगभग शोभराज ने जेलों में गुजारी. वह जिस जेल में भी रहा, पूरी शानोशौकत से रहा. दिल्ली की तिहाड़ जेल में उस ने सब से लंबा वक्त गुजारा. लेकिन यहां भी वह ज्यादा टिका नहीं और जेल प्रशासन को धता बताते हुए 1986 में फरार हो गया.

यह वह वक्त था, जब थाईलैंड की सरकार भारत पर शोभराज के प्रत्यर्पण के लिए लगातार दबाब बना रही थी. तिहाड़ से शोभराज के छूमंतर होने के रोचक किस्से को उस की जिंदगी पर बनी एक फिल्म ‘मैं और चार्ल्स’ में दिखाया गया है.

चार्ल्स की भूमिका निभाने वाले इस फिल्म के हीरो रणदीप हुड्डा ने नेपाल की जेल में उस से मुलाकात भी की थी.

तिहाड़ से फरारी पर उठे सवाल

तिहाड़ से वह नाटकीय और चमत्कारिक तरीके से फरार हुआ था, जिस पर मीडिया ने सरकार को खूब कोसा था. पूरी दुनिया में एक बार फिर शोभराज की चर्चा थी.

देश भर की पुलिस शोभराज को खोज रही थी. ज्यादा नहीं 3 हफ्ते बाद ही शोभराज गोवा के पणजी के ओकाकीरियो रेस्तरां में पकड़ा भी गया.

उसे गिरफ्तार करने वाले इंसपेक्टर मधुकर जेड़े की खूब पीठ थपथपाई गई थी, जिन्होंने यह बयान दिया था कि शोभराज को लड़कियां, शराब और हिप्पी बहुत पसंद हैं. इसलिए उन्हें अंदाजा था कि वह यहां जरूर आएगा और ऐसा हुआ भी.

अगर आप कभी पणजी जाएं तो ओ कोकीरियो रेस्तरां जरूर जाएं, जहां कुरसी पर बैठे चार्ल्स शोभराज की मूर्ति आज भी रखी हुई है. वह कितना बड़ा सेलिब्रिटी हो गया था, यह इस बात का जीताजागता सबूत है.

लेकिन लगता नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ा था, बल्कि लगता ऐसा है कि यह सब प्री प्लांड था. क्योंकि इस बार गिरफ्तारी के बाद उस की सजा 10 साल और बढ़ा दी गई थी. अब उसे 1997 तक जेल में रहना था और यही शोभराज चाहता था. क्योंकि भारत सरकार उस के प्रत्यर्पण के लिए राजी हो गई थी.

थाईलैंड में उस के खिलाफ हत्या के कोई दरजन भर मामले दर्ज थे और वहां के कानून के मुताबिक उसे फांसी की सजा होनी तय थी, जिस से बचने के लिए शोभराज ने यह नायाब तरीका ढूंढ निकाला था.

शोभराज को यह मालूम था कि थाईलैंड के कानूनों के मुताबिक 20 साल बाद आरोप ज्यादा प्रभावी या धारदार नहीं रह जाते. इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा वक्त भारत में बिताना चाहता था. फरारी और फिर गिरफ्तारी उस का रचा और स्पांसर किया ड्रामा ही ज्यादा लगता है.

बैक टू फ्रांस

1997 तक शोभराज ईमानदारी से तिहाड़ में रहा और कोई उपद्रव या भागने की कोशिश उस ने नहीं की. बल्कि आदत के मुताबिक वह किताबें पढ़ता रहा. तिहाड़ में उस की अच्छीखासी लायब्रेरी बन गई थी. अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी थी.

उस की तीसरी प्रेमिका मेरी, जो लंबे समय तक अपराधों में उस की भागीदार रही थी, की 1984 में ही कैंसर से मौत हो चुकी थी. अजय दास का कहीं अतापता नहीं था कि वह जिंदा है या मर चुका है. लेकिन पुलिस उसे जिंदा मान उस की तलाश में है.

तिहाड़ में सजा काट कर शोभराज शांति से वापस फ्रांस चला गया और 6 साल यानी 2003 तक सुकून से रहा. इस दौरान उस के नाम कोई जुर्म दर्ज नहीं हुआ.

थाईलैंड से भी प्रत्यर्पण की आवाजें आनी बंद हो गई थीं, जो उस के हक की बात थी. लेकिन न जाने क्या सोच कर एकाएक ही वह नेपाल जा पहुंचा, जहां उस पर हत्या के 2 मामले दर्ज थे.

यह भी कम हैरानी की बात नहीं कि शोभराज नेपाल में खुद मीडियाकर्मियों से मिला और उन्हें इंटरव्यू भी दिए. आने के मकसद में उस ने हैंडीक्राफ्ट्स और शाल का कारोबार शुरू करना बताया था.

ऐसा लगता है कि वह जानबूझ कर खुद को गिरफ्तार कराने नेपाल पहुंचा था. अगर ऐसा था तो उस की यह मंशा भी पूरी हुई. उसे गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि 28 साल पहले उस ने नेपाल में 2 अमेरिकियों को चाकू से गोद कर मारा था.

दोनों लाशें काठमांडू के बाहरी इलाके में मिली थीं. शोभराज पर फरजी कागजों पर यात्रा करने के आरोप भी थे, जो उस की प्रोफाइल के लिहाज से बेहद मामूली थे. मुकदमा चला और साल 2004 में उसे उम्रकैद की सजा 20 साल सुनाई गई, जोकि उस ने 21 दिसंबर, 2022 को पूरी कर ली.

इस से पहले नेपाल की जेल में रहते ही साल 2008 में एक सुंदर नेपाली युवती निहिता बिस्वास से उस की शादी की खबर भी बड़ी और चर्चित खबरों में से एक थी. निहिता शोभराज से 43 साल छोटी थी.

बाद में निहिता रियल्टी शो बिग बौस के सीजन 5  में नजर आई थी, जहां उस ने शोभराज से न केवल शादी करने का बल्कि उस से शारीरिक संबंध बनाने का भी दावा किया था. फिल्म ‘मैं और चार्ल्स’ में निहिता की भूमिका एक्ट्रैस ऋचा चड्ढा ने निभाई थी.

अब चार्ल्स शोभराज आजाद है, जिस पर अभी भी कई आरोप और हैं. मुमकिन है पुरानी  फाइलें कुछ और राज उगलें. मुमकिन यह भी है कि शोभराज खुद ही कोई नया कारनामा खड़ा कर दे. उस की रिहाई का छिटपुट विरोध भी हुआ, पर वह बेअसर रहा.

शोभराज फिर अपने देश फ्रांस में है लेकिन 78 साल का यह बूढ़ा अपराधी कब क्या कर दे, कोई कुछ नहीं कह या सोच पा रहा. जिस की जिंदगी पर ढेरों किताबें लिखी गईं और फिल्में बनीं, लेकिन उस के अंदर वहां तक कम ही लोग झांक पाए, जहां से यह आवाज आती है कि आखिर मेरा गुनाह क्या था? मुझे क्यों दूसरे बच्चों की तरह मांबाप का प्यार नहीं मिला?    द्य

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 4

अमर पुरी ने जीरो पावर वाला बल्ब भी बुझा दिया और महिला के जिस्म को आगोश में भर कर एक ओर लुढ़क गया.

अमर पुरी ने सोचा था होश में आने के बाद वह महिला यदि जान जाएगी कि उस का रेप किया गया है तो अपनी बदनामी के डर से वह चुप्पी साध लेगी, लेकिन यह अमर पुरी की भूल थी. उस महिला ने होश में आने के बाद यह अहसास होते ही कि उस की अस्मत से बाबा ने खिलवाड़ किया है, शोर मचा दिया.

अमर पुरी कुछ करने की स्थिति में आता, उस से पहले ही वह महिला उस के कमरे से निकल कर बाहर आ गई और रोतीकलपती हुई उस क्षेत्र के थाने में पहुंच गई.

उस ने बाबा अमर पुरी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा कर अपनी रिपोर्ट दर्ज करा दी तो उसी रात अमर पुरी को गिरफ्तार कर के थाने में लाया गया और हवालात में बंद कर दिया गया.

जगह तो बदल ली लेकिन सोच नहीं

महिला के बयान ले कर उस की जांच शुरू की जाती, उस से पहले ही इस मामले ने विचित्र मोड़ ले लिया. बाबा अमर पुरी के इशारे पर उस महिला को  पहले काफी डरायाधमकाया गया. वह नहीं डरी तो उसे रुपयों का प्रलोभन दिया गया.

वह अपने पति से परेशान थी ही, मोटी रकम ले कर अपनी रिपोर्ट वापस लेने पर राजी हो गई. बाबा दिन निकलने से पहले ही हवालात से बाहर आ गया. यह घटना वर्ष 2017 में घटित हुई थी.

इस घटना से अमर पुरी को बदनामी झेलनी पड़ी, इसलिए उस ने वह कमरा छोड़ दिया और टोहाना (फतेहाबाद) में ही दूसरे स्थान पर एक कमरा किराए पर ले कर अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष की दुकान फिर से शुरू कर दी. उस की गांठ में पैसा था ही, इसी पैसों से अमर पुरी ने अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष विद्या का धुंआधार प्रचार करवाया.

अपनी पुरानी शिष्य मंडली को भी अपने तथाकथित ज्योतिष ज्ञान का बखान करने के लिए मैदान में उतार दिया. जल्दी ही इस नई जगह पर भी अपनी समस्याओं, दुखदर्द का समाधान करवाने वालों की भीड़ लग गई. यहां अमर पुरी ने खुद को सिद्ध महंत अमर पुरी नागा साधु के रूप में खुद का परिचय करवाया.

तंत्रमंत्र की आडंबर भरी यह दुकान ऐसी चली कि अमर पुरी के हजारों लोग शिष्य बन गए. टोहाना ही नहीं देश के अन्य शहरों में भी उस के भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

तंत्रमंत्र के साथसाथ अमर पुरी ने प्रवचन देने का कार्य भी शुरू कर दिया. उस ने बाजार से धर्मग्रंथ खरीदे और उन का चिंतनमनन कर के थोड़ाबहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया था. अब प्रवचन के लिए उस के बुलावे भी आने लगे.

पूरे टोहाना में वह सिद्ध अमर पुरी नागा साधु के रूप में प्रसिद्ध हो गया. उस ने दोनों हाथों से नोट बटोरे, इन से टोहाना में एक प्लौट भाटिया नगर में खरीद लिया और उस पर श्री बाबा बालकनाथ नाम से भव्य मंदिर का निर्माण करवा लिया. यह मंदिर वार्ड नंबर-19 में था.

अमर पुरी ने मंदिर के गर्भगृह में अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष साधना की दुकान स्थापित कर ली, यहीं पर अमर पुरी ने अपने रहने, खानेपीने की व्यवस्था कर ली. यहां उस के पुराने शिष्यों की फिर से बैठकें जमने लगीं. नशापत्ता फिर से शुरू हो गया. इस से अमर पुरी का मन युवा और जवान नारी को आगोश में समेटने के लिए फिर से मचलने लगा.

100 से ज्यादा महिलाओं को बनाया शिकार उस के साधनास्थल पर अमीर और गरीब घरों की महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर आती ही रहती थीं. अमर पुरी ने इन्हें ही अपनी मौजमस्ती के लिए शिकार बनाने के लिए नया तरीका ईजाद कर लिया.

वह बाजार से बेहोशी की दवा खरीद लाया. जो महिला या कुंवारी लड़की उसे पसंद आ जाती थी, उन्हें पूजाअर्चना के बहाने साधनास्थल में रोक लेता, पहले उसे बेहोशी की दवा चाय या जल में मिला कर पीने को देता, वह महिला बेहोश हो जाती तो उस के वस्त्र उतार कर उन की अपने मोबाइल से न्यूड वीडियो बनाता, फिर उन के साथ दुष्कर्म करता.

होश में आने के बाद जो महिला या लड़की पुलिस में जाने की धमकी देती, उन्हें उन की न्यूड वीडियो दिखा कर बदनाम कर देने की बात कह कर जुबान बंद रखने की धमकी देता था.

अपनी न्यूड वीडियो के वायरल होने के भय से यौन उत्पीड़न की शिकार वह महिलाएं, युवतियां चुप्पी साध लेने पर विवश हो जातीं.

अमर पुरी ने उन की इस चुप्पी का भरपूर फायदा उठाना शुरू कर दिया, जब उस का दिल करता वह उन्हें अपने बिस्तर पर बुला लेता. किसी अमीर घर की महिला को उस की न्यूड वीडियो का भय दिखा कर मोटी धनराशि लाने के लिए ब्लैकमेल करता. कहते हैं पाप किसी भी तरह किया जाए, एक न एक दिन उस का राज सामने आ ही जाता है.

अमर पुरी द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकार 2 महिलाओं ने अमर पुरी की ज्यादती से तंग आ कर टोहाना के सिटी थाने में अपने साथ रेप करने, न्यूड वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की रिपोर्ट दर्ज करवाई तो पुलिस हरकत में आ गई. अमर पुरी के साधनास्थल पर 20 जुलाई, 2018 को पुलिस ने छापा डाला और अमर पुरी को गिरफ्तार कर लिया.

उस के साधनास्थल से तकरीबन 120 महिलाओं, युवतियों की न्यूड वीडियो क्लिप बरामद हुईं तो मीडिया ने यह खबर टीवी पर प्रसारित कर के टोहाना (फतेहाबाद) हरियाणा में ही नहीं, पूरे देश में सनसनी फैला दी.

धर्म की आड़ ले कर ऐसा दुष्कर्म करने वाले इस ढोंगी तांत्रिक की करतूत जान कर सभी हैरान रह गए. उसे अपना धर्मगुरु मानने वाले लोगों ने अमर पुरी के साधनास्थल में तोड़फोड़ कर के अपना गुस्सा निकाला तो पुलिस भी हरकत में आ गई. पुलिस ने ढोंगी तांत्रिक अमर पुरी के खिलाफ ठोस सबूत इकट्ठे कर लिए.

4 साल बाद इन्हीं सबूतों के आधार पर अमर पुरी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया. अमर पुरी के दुष्कर्मों की अश्लील वीडियो ही उस के खिलाफ बड़ा सबूत बनीं. सजा सुनाने के बाद पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा का नाटकीय रूपांतरण किया गया है.

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 4

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल वहां हुए अजयजी के कत्ल की गुत्थी सौल्व करने में जुट गए थे. एक कोड हल होने पर दूसरा कोड उन्हें मुंह चिढ़ाता. पहले कोड को फैजल ने सीज साइफर के सिद्धांत से हल किया उस ने एक शब्द का उदाहरण दे कर बताया व कोड का अर्थ सुझाया, चाकुओं के पीछे देखें. अब वे चाकू ढूंढ़ने लगे, उन्होंने अभयजी की हर संदिग्ध जगह खंगाली पर चाकू न मिले.

फिर अंत में वे अजय की पत्नी के आग्रह पर उन के घर चाय पीने गए तो वहां उन्हें अचानक दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर बीचोबीच 2 कटारें क्रौस का चिह्न बनाती लगी हुई दिखीं. उन्हें उतार कर देखा और उन पर लिपटी टेप हटाई तो एक चाबी मिली, जो एक कागज में लिपटी थी. उन्होंने उलटपलट कर देखा कागज पर एक और कोड लिखा था. वे अचंभे में पड़ गए. एक और पहेली उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

साहिल ने यास्मिन को चाबी दिखा कर पूछा, ‘‘क्या आप जानती हैं कि यह चाबी कहां की है?’’ यास्मिन ने हाथ में ले कर ध्यान से चाबी को देखा और ना में सिर हिला दिया.

‘‘घर और दुकान दोनों जगह की तो अभी हम ने तलाशी ली ही है. वहां कहीं भी ऐसी कोई अलमारी या ताला नहीं था, जिस के लिए ऐसी चाबी की जरूरत हो,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले, ‘‘एक बात तो साफ है कि यह चाबी किसी साधारण ताले की नहीं है और इस कागज पर जो लिखा है, यह जरूर इस ताले को खोलने का रास्ता है. मेरे खयाल से यहां जरूर कोई गुप्त तिजोरी होनी चाहिए, जिस का लौक इस कोड से खुलेगा.’’

‘‘क्या आप को इस बारे में कोई जानकारी है?’’ साहिल ने यास्मिन से पूछा.

‘‘नहीं, अजय ने कभी इस तरह की किसी तिजोरी का जिक्र मुझ से नहीं किया.’’

‘‘अच्छा, अजय की बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताइए. आप की तो उन से शादी हुए कम से कम 25-30 साल हो गए होंगे. उन के बारे में जान कर केस सौल्व करने में हमें जरूर कुछ मदद मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘दरअसल, बात यह है कि हमारी शादी को अभी 6 साल हुए थे, जिस जनरल स्टोर में मैं नौकरी करती थी, वहीं हमारी मुलाकात हुई थी. मैं अनाथाश्रम में पलीबढ़ी हूं और मेरा कोई परिवार नहीं है. अजय ने भी मुझे यही बताया था कि वे भी अनाथाश्रम में ही पले हैं और उन के आगेपीछे कोई नहीं है. इसीलिए इतनी उम्र तक हम लोगों की शादी नहीं हो पाई थी दोनों की एक जैसी बैकग्राउंड की वजह से ही शायद हम एकदूसरे की तकलीफ को समझ पाए और पहली मुलाकात के कुछ दिन बाद ही हम ने शादी कर ली. कुछ साल हम मेरठ में रहे और फिर एक शांत जिंदगी बिताने की चाह में यहां रामगढ़ आ कर बस गए.

‘‘अनाथाश्रम की जिंदगी ने हमें जो अकेलापन दिया था, हम उस से बाहर कभी निकल ही नहीं पाए और इसीलिए कभी किसी से घुलेमिले भी नहीं. बचपन से छोटेमोटे काम कर के अपनी जिंदगी बसर करते हुए जो थोड़ेबहुत रुपए हम ने जमा किए थे, उन्हीं से यह घर और दुकान खरीद कर हम खुशीखुशी जिंदगी बिता रहे थे कि अचानक ये सब हो गया…’’ कहते हुए यास्मिन की आंखों में आंसू छलक आए, लेकिन अपने भावों पर काबू पा कर अगले ही पल वह दृढ़ता से बोली, ‘‘फिलहाल मेरी सब से पहली इच्छा है कि मेरे पति का हत्यारा जल्द पकड़ा जाए और इस के लिए मुझ से आप की जो भी मदद हो सकेगी, मैं करूंगी.’’

‘‘फैजल, तुम्हीं ने अजय का लिखा पहला कोड हल किया था न? तो देखो और सोचो. इस कोड का क्या हल हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल को वह कागज देते हुए कहा.

‘‘जी, मैं भी समझने की कोशिश तो कर रहा हूं पर कुछ सूझ नहीं रहा है,’’ माथे पर उंगली रगड़ते हुए फैजल बोला, ‘‘वैसे भी काफी देर हो गई है. घर पर सब लोग चिंता कर रहे होंगे. अभी तो हम चलते हैं. जैसे ही कुछ समझ आएगा तो आप को फोन करेंगे,’’ कहते हुए फैजल ने उन से बिदा ली. फिर साहिल, फैजल और अनवर घर के लिए चल दिए.

वे लोग अभी मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही चले होंगे कि अचानक साहिल ने फैजल को कुहनी मारी और धीमी आवाज में बोला, ‘‘फैजल, मुझे लग रहा है कि कोई हमारा पीछा कर रहा है.’’

‘‘बिलकुल मुझे भी काफी देर से ऐसा लग रहा है. यह हरे रंग की आल्टो लगातार हमारे पीछे चल रही है.’’

‘‘अरे, नहींनहीं…आल्टो नहीं, वह काली बाइक, देखो,’’ उस ने सामने लगे शीशे की ओर इशारा किया, ‘‘वह बाइक हमारे पीछे लगी हुई है.’’

‘‘नहींनहीं…वह तो हरी आल्टो है, जो हमारे पीछे लगी है.’’

‘‘अच्छा रुको…ड्राइवर भैया, आप एक काम करो, गाड़ी सीधे घर ले जाने के बजाय थोड़ी देर ऐसे ही सड़कों पर इधरउधर घुमाते रहो. अभी सब पता चल जाएगा,’’ साहिल ने कहा तो ड्राइवर गाड़ी इधरउधर घुमाने लगा.

15 मिनट में ही उन्हें समझ आ गया कि वास्तव में कोई एक नहीं, बल्कि आल्टो और बाइक दोनों ही उन का पीछा कर रही थीं.

‘‘आखिर ये लोग हमारा पीछा कर क्यों रहे हैं?’’

‘‘जाहिर है अपना भेद खुल जाने के डर से कातिल के पेट में मरोड़ उठ रहे हैं. कल इन का भी कुछ इंतजाम करना पड़ेगा.’’

घर पहुंच कर खाना वगैरा खा कर दोनों फिर से पहेली को हल करने में जुट गए.

‘‘चलो, हम स्टैप बाए स्टैप चलने की कोशिश करते हैं,’’ साहिल ने सुझाया, ‘‘हमारे पास है एक चाबी. चाबी का मतलब है कि कहीं कोई ताला है जो इस से खुलना है. अब क्योंकि यह थोड़ा सीक्रेट टाइप का ताला है, तो इसे खोलने के लिए कोई कोड होना चाहिए, जो यहां कागज पर लिखा है. घर और दुकान तो हम सब देख ही चुके हैं. अब इस ताले के होने के लिए 2 ही जगह बचती हैं या तो कहीं किसी दीवार के अंदर कोई गुप्त तिजोरी है या फिर कोई बैंक लौकर या गुप्त लौकर है. पेपर पर लिखा यह कोड उस जगह की लोकेशन बताएगा और अगर लौकर है तो उस का नंबर बताएगा. तू ने चैक किया फैजल कि यह कहीं कोई और साइफर तो नहीं है?’’

‘‘मैं ने काफी सोचा, लेकिन जितनी तरह के कोड मुझे आते हैं, उन में से कोई भी इस पर अप्लाई नहीं होता, अगर हम इसे बैंक लौकर मान कर चलते हैं तो बैंक लौकर के लिए हमें बैंक का नाम और लौकर नंबर चाहिए और ये दोनों तो अजय की पत्नी यास्मिन को पता ही होंगे.’’

‘‘नहीं फैजल, अगर उन्हें पता होता, तो अजय इन्हें यों कोड में लिख कर न जाता. इस का सीधा सा मतलब है कि ये लौकर उन की जानकारी में नहीं हैं और इस कोड का कुछ हिस्सा नंबर है और कुछ बैंक का नाम. अब देख इसे, क्या तू सौल्व कर सकता है?’’

कागजपैंसिल ले कर फैजल काफी देर तक इस पर माथापच्ची करता रहा पर नतीजा वही सिफर. थकहार कर दोनों सो गए.

सुबह नाश्ते की टेबल पर बैठे फैजल का दिमाग अब भी उसी पहेली के इर्दगिर्द घूम रहा था. तभी अचानक वह जोर से चिल्लाया, ‘‘वह मारा पापड़ वाले को.’’

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ? कुछ सूझा तुझे क्या?’’ बगल में बैठे साहिल ने पूछा.

‘‘हां, बिलकुल सूझा और कुछ नहीं, पूरा सूझा,’’ उस ने सामने पड़ा पहेली वाला पेपर उठाया और उस के नीचे 2 अलगअलग नंबर लिख दिए. यह देख, ये जो लैटर्स यहां लिखे हैं, वे सारे के सारे हर नंबर की स्पैलिंग का पहला अक्षर हैं. जैसे जीरो के लिए र्ं, 1 के लिए हृ, 2 और 3 दोनों ञ्ज से शुरू होते हैं, तो उन के लिए ञ्ज2 और ञ्जद्ध का प्रयोग किया हुआ है. इस तरह से ये 2 नंबर बन रहे हैं, 8431729 और 109 लेकिन इस टिक मार्क (क्क) का मतलब पल्ले नहीं पड़ रहा.

‘‘अरे, छोड़ उसे, इतना तो हो गया. अब फटाफट पुलिस को साथ ले कर सब बैंकों में जा कर चैक करते हैं ज्यादा बैंक तो यहां होंगे नहीं.’’

‘‘बेटा, हमारे गांव में ज्यादा नहीं तो भी कम से कम 15-16 बैंक तो हैं ही,’’ अपने कमरे से बाहर आते अनवर मामू बोले, ‘‘तो हो गई तुम्हारी दूसरी पहेली भी सौल्व…देखूं तो जरा,’’ उन्होंने कागज उठाया और उसे देखने लगे.

‘‘तो तुम्हारे हिसाब से ये 2 नंबर किसी बैंक लौकर की तरफ इशारा कर रहे हैं और इन में से यह पहला अकाउंट नंबर और दूसरा लौकर नंबर होना चाहिए.’’

‘‘हां मामू, लेकिन इतने सारे बैंक्स में से हम उसे ढूंढ़ेंगे कैसे?’’

‘‘ढूंढ़ना क्यों है तुम्हें? सीधे यस बैंक जाओ न, क्योंकि जो निशान बना है, यह यस बैंक का ही तो लोगो है. मेरे क्लिनिक के एकदम सामने ही है यह बैंक और उस का साइनबोर्ड सारा दिन मेरी आंखों के सामने ही रहता है.’’

‘‘वाह मामू, आप भी कमाल की बुद्धि रखते हैं,’’ शरारत से एक आंख दबाते हुए फैजल मुसकराया.

एक घंटे बाद इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर वे लोग यस बैंक पहुंच गए. पूछताछ से पता चला कि वह अकाउंट 8 दिन पहले ही किसी संजीव नामक व्यक्ति ने खोला है. पुलिस केस होने की वजह से लौकर खोलने में उन्हें कोई अड़चन नहीं आई. जब लौकर खुला तो उस में से सिर्फ एक मोबाइल फोन निकला. फोन को कस्टडी में ले कर वे पुलिस स्टेशन आ गए.

‘‘इस का सारा डाटा चैक करना पड़ेगा,’’ कुरसी पर बैठता साहिल बोला, ‘‘तभी कुछ काम की बात पता चल सकती है.’’

कुछ देर उस मोबाइल को चार्ज करने के बाद उस ने औन कर के चैक किया, लेकिन उस में कहीं ऐसा कुछ नहीं था, जो अजय की मौत या किसी और रहस्य पर कोई और रोशनी डाल सके.’’

तभी फैजल को कुछ याद आया, ‘‘और हां अंकल, एक बात तो हम आप को बताना भूल ही गए. कल जब हम वापस जा रहे थे, तो कोई हमारा पीछा कर रहा था.’’

‘‘अच्छा, यह तो चिंता की बात है,’’ इंस्पैक्टर रमेश के माथे पर शिकन उबर आई, ‘‘मैं 2 कौंस्टेबल तुम दोनों की सुरक्षा के लिए तैनात कर देता हूं, जो हर समय तुम्हारे साथ रहेंगे.’’

काफी देर फोन से माथापच्ची करने के बाद साहिल बोला, ‘‘इस फोन में तो कुछ भी नहीं है अंकल, आप एक काम कीजिए, इस का सिम कार्ड चैक करवाइए कि वह किस के नाम पर है. शायद उस से कुछ पता चले,’’ फिर उस ने फोन का बैक कवर खोला और सिम निकालने के लिए जैसे ही बैटरी को हटाया, चौंक पड़ा. बैटरी के नीचे कागज की एक छोटी सी स्लिप रखी हुई थी.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ वह बड़बड़ाया. फिर परची को खोल कर देखा. उस पर कुछ लिखा था, जिसे उस ने पढ़ कर सब को सुनाया, ‘‘सामने है मंजिल, महादेव की गली, सावन की रिमझिम में खिलती हर कली, धरम पुत्री से होगा जब सामना, पासवर्ड के बिना बनेगा काम न.’’

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. हमारी मंजिल हमें मिलने ही वाली है समझो,’’ फैजल उत्साह से बोला.

‘‘यहां कोई महादेव नाम की गली नहीं है,’’ अनवर कुछ सोचते हुए बोले.

इंस्पैक्टर रमेश ने भी ना में सिर हिलाया और बोले, ‘‘हो सकता है कि कहीं किसी दूर के या छोटेमोटे महल्ले में कोई अनजान सी गली हो. मैं सिपाहियों से पूछता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने रामदीन को पुकारा,’’ रामदीन, जरा बाहर बाकी सब सिपाहियों से पूछ कर आओ, उन में से शायद कोई इस गली को जानता हो.’’

रामदीन, जो बड़ी उत्सुकता से सारी बातें सुन रहा था, बोला, ‘‘साहब, महादेव गली तो पता नहीं, लेकिन लालगंज से थोड़ी दूरी पर काफी अंदर जाने के बाद एक मार्केट है. वहां एक छोटी सी इमारत है, जिस का नाम मंजिल है और उस के बिलकुल सामने जो सड़क जा रही है, उस का नाम है शंकर गली. हो सकता है इस कविता में इसी जगह का जिक्र किया गया हो.’’

‘‘वाह रामदीन भैया, क्या ब्रिलियंट दिमाग है तुम्हारा,’’ उत्साह से उछलता फैजल रामदीन का हाथ पकड़ कर एक ही सांस में बोल गया. बाकी सब भी जल्दी से उठ खड़े हुए, ‘‘चलो, वहीं चलते हैं. वहीं पर ही आगे का भी कुछ न कुछ सुराग मिलेगा.’’

काले चश्मे वाली दो आंखें उन्हें जाते हुए देख रही थीं.

चांद की चाहत में थानेदार – भाग 3

गांव जाने के बाद भी कमलदान चारण जकिया से मोबाइल पर संपर्क में रहा. इस बीच वह वाट्सऐप पर मैसेज भी भेजता रहा. वह 12 जून, 2017 की शाम को जोधपुर लौट आया. जोधपुर लौटने पर उस ने 12 जून की शाम को जकिया को फोन कर के नई सड़क स्थित एक होटल में बुलाया. जकिया ने मां की बीमारी का बहाना बना कर उस दिन उसे टाल दिया.

अगले दिन यानी 13 जून को कमलदान चारण ने जकिया को फोन कर के शाम को उस के घर आने की बात कही तो जकिया ने एसीबी को सूचित कर दिया. एसीबी अधिकारियों ने शाम होते ही जकिया के घर के आसपास डेरा डाल दिया. एसीबी के डीएसपी जगदीश सोनी ने जकिया को पहले ही समझा दिया था कि थानाप्रभारी कमरे में आ कर गलत हरकत करने की कोशिश करने लगे तो वह कोल्ड कौफी मंगाने के बहाने फोन कर देगी. जकिया ने ऐसा ही किया, जिस के बाद एसीबी द्वारा वह गिरफ्तार कर लिया गया.

थानाप्रभारी की गिरफ्तारी से जोधपुर पुलिस की बड़ी बदनामी हुई. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ ने इस पूरे मामले की जांच बोरानाड़ा के एसीपी सिमरथाराम को सौंप दी. वहीं पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह ने थानाप्रभारी कमलदान चारण को 14 जून को निलंबित कर दिया. एसीबी ने उसी दिन शाम को कमलदान चारण को मजिस्ट्रैट के घर पर पेश किया. न्यायाधीश ने चारण को 2 दिनों के रिमांड पर एसीबी को सौंप दिया.

रिमांड के दौरान एसीबी ने एक लाख रुपए के चैक के बारे में पूछताछ की तो कमलदान चारण ने कहा कि उस के पास कोई चैक नहीं था. एक लाख रुपए नकद लेने की बात से भी उस ने इनकार कर दिया. प्यार और दोस्ती के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह उस महिला से प्रेम नहीं करता, बल्कि वही उसे फंसा रही थी.

एसीबी ने जब उसे रिकौर्डिंग सुनाई तो उस ने कहा कि यह आवाज उस की नहीं है. कमलदान चारण ने एसीबी को बताया कि जब उन्होंने 3 जून को उस महिला के पति पंकज को अफीम के साथ गिरफ्तार किया था, तब से वह रोजाना थाने आ कर रोती थी. पति के जेल जाने के बाद वह खुद को बेसहारा बता कर बारबार मदद की गुहार लगाती थी. जिस से उसे उस पर तरस आ गया और यही उस की गलती थी.

उस औरत ने आंसुओं की आड़ में उसे हनीट्रैप में फंसाया. वह तो उसे दिलासा दे कर सहारा देने की कोशिश कर रहा था. अफीम वाले मामले में और भी कई लोगों के नाम आने की संभावना है, इसी वजह से उस ने उन के खिलाफ यह साजिश रची.

जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ ने चारण की गिरफ्तारी को एक सबक बताया. उन्होंने 15 जून को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के सभी अधिकारियों व थानाप्रभारियों को एक पत्र लिख कर कहा है कि ईमानदारी व ड्यूटी में कमी बरदाश्त नहीं होगी. पत्र में लिखा गया है कि इस घटना से पुलिस की प्रतिष्ठा पर आंच आई है, लेकिन अच्छी बात यह है कि गंदगी बाहर हो गई.

एसीबी ने रिमांड अवधि पूरी होने पर कमलदान चारण को 16 जून को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

बाद में पुलिस ने नए सिरे से जांच कर के 19 जून, 2017 की देर रात को गणपत बिश्नोई को अफीम की तस्करी के मामले में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसे 4 दिनों के रिमांड पर लिया. पुलिस ने जकिया की वह कार भी जब्त कर ली है, जिसे छोड़ने के लिए जकिया ने कमलदान चारण को रिश्वत दी थी.

22 जून को पुलिस ने निलंबित थानाप्रभारी कमलदान चारण को भी अफीम तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया है. उसे पहले जेल से प्रोडक्शन वारंट पर लिया गया. थाने में पूछताछ और गिरफ्तार आरोपी गणपत बिश्नोई से क्रौस एग्जामिनेशन के बाद उसे गिरफ्तार किया गया.

कमलदान चारण अफीम तस्करी के उस मामले में गिरफ्तार हुआ, जिस में वह परिवादी था. यानी परिवादी ही आरोपी बन गया. उसे एनडीपीएस एक्ट के सेक्शन 59 के तहत गिरफ्तार किया गया है. यह धारा एन्फोर्समेंट एजेंसियों के लिए बनी हैं. जो अफसर अपनी ड्यूटी भूल कर अवैध गतिविधियों में लिप्त हो जाता है और आरोपियों को बचाने का प्रयास करता है, उसे इस सेक्शन के तहत गिरफ्तार किया जाता है. इस सेक्शन में जमानत मिलने के आसार बहुत कम होते हैं. इस धारा में न्यूनतम सजा 10 साल और अधिकतम 20 साल है. अब बात करें जकिया चौहान की. जकिया जोधपुर की रहने वाली है. वह 29 सितंबर, 2008 को जोधपुर से अचानक गायब हो गई थी.

उसी साल 4 अक्तूबर को उस के अपहरण का मुकदमा दर्ज हुआ था. बाद में वह दिसंबर में लौट आई थी. तब उस ने कहा था कि वह अपनी मरजी से गई थी. उस समय जकिया की एक युवक से दोस्ती की बात सामने आई थी.

बाद में सन 2009 में उस ने जोधपुर के नामी कांट्रैक्टर के बेटे साहिल से निकाह कर लिया था. साहिल से जकिया को एक बेटा हुआ. बेटा इस समय 7 साल का है. कुछ समय बाद साहिल और जकिया में विवाद होने लगा. यह विवाद इतना बढ़ गया कि करीब 7-8 महीने पहले दोनों में तलाक हो गया.

तलाक होने पर साहिल ने जकिया को कुछ रकम दी. जकिया ने उन पैसों से ब्लैक मैजिक कैफे शुरू किया. कहा जाता है कि इस कैफे में हुक्का बार भी चलता है. जोधपुर  में अन्य हुक्का बार पर पुलिस ने कई बार काररवाई की, लेकिन जकिया के हुक्का बार पर कभी काररवाई नहीं हुई.

पंकज वैष्णव मूलरूप से फलौदी का रहने वाला है. जोधपुर के रातनाड़ा में उस का मकान है. वह कपड़े का काम करता था. जकिया से जानपहचान हुई तो दोनों ने विवाह कर लिया. गणपत बिश्नोई फींच के पास रोहिचा का रहने वाला है. वह बीटेक कर रहा है. गणपत जकिया के ब्लैक मैजिक कैफे में काम करता था.

यह बात भी सामने आई है कि गणपत जकिया का दोस्त था और जकिया उसे बचाना चाहती थी. गणपत का पिता ओमाराम बिश्नोई अफीम का धंधा करता था. उस के खिलाफ अफीम तस्करी के 3 मामले दर्ज हैं. गणपत ही अपने गांव से अफीम लाया था.

वह पंकज के साथ कार में सवार हो कर अफीम बेचने जा रहा था. वह जिसे अफीम बेचने जा रहा था, उसी ने मुखबिरी कर दोनों को पकड़वा दिया. वह ग्राहक हिस्ट्रीशीटर था और बाद में चारण का मुखबिर बन गया था.

अफीम तस्करी में पुलिस ने जो कार जब्त की है, जकिया ने वह कार अपने धर्मभाई की बताई थी. पुलिस की जांच में पता चला कि 15 लाख रुपए की यह कार जकिया ने ही खरीदी थी और उस की किस्तें भी वह खुद ही चुका रही थी. साहिल ने इस कार का एक दिन भी उपयोग नहीं किया था. अफीम तस्करी के मामले का पता चलने पर साहिल ने जकिया से इस बात पर झगड़ा भी किया था.

बहरहाल, इस मामले में पूर्व थानाप्रभारी कमलदान चारण, पंकज वैष्णव और गणपत बिश्नोई जेल पहुंच गए हैं.

जहां चारण को यह मामला उलटा पड़ गया, वहीं जकिया ने भी जिस कार को छुड़ाने के लिए एक लाख रुपए की रिश्वत दी, वह कार जब्त हो गई. जकिया का आरोप है कि उस के पति पंकज वैष्णव को पुलिस ने अफीम के झूठे मामले में फंसाया है.

– कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 3

मामला बढ़ता देख आखिर बठिंडा के एसपी (हैडक्वार्टर) भूपेंद्र सिंह और ड्यूटी मजिस्ट्रैट के रूप में रामपुराफुल के एसडीएम-1 सुभाष चंदर खटके विनोद के घर वालों से मिले. बातचीत करने के साथसाथ इन अधिकारियों ने उन के बयान भी दर्ज किए, साथ ही भरोसा भी दिया कि इस मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज कर घटना के जिम्मेदार लोगों को नामजद करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर के उन पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाएगा.

इस भरोसे के बाद शांत हो कर उन लोगों ने विनोद का शव ले तो लिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त यह थी कि नई एफआईआर दर्ज करने के बाद जब तक पुलिस उन्हें उस की अधिकृत प्रति नहीं दे देगी, तब तक वे विनोद का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.

यह शर्त भी मान ली गई. उसी दिन विनोद के भाई कुलदीप अरोड़ा के बयान के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धाराओं 364/341/186/120बी/148 एवं 149 के तहत नई एफआईआर दर्ज कर के उस में 13 लोगों को नामजद किया.

वे 13 लोग थे, गांव की सरपंच चरणजीत कौर, अमरिंदर सिंह राजू, भिंदर सिंह, पूर्ण सिंह, बड़ा सिंह, दर्शन सिंह, मनदीप कौर, गुरप्रीत सिंह, जगदेव सिंह, निम्मा सिंह, हरपाल सिंह, सीरा सिंह और गुरसेवक सिंह. ये सभी लोग गांव भागीवांदर के रहने वाले थे. इन के अलावा पुलिस ने दर्जन भर अज्ञात लोगों के इस कांड में शामिल होने का जिक्र किया था.

मामला दर्ज होने के बाद एफआईआर की प्रति शिकायतकर्ता कुलदीप अरोड़ा को दे दी गई. इस के बाद 10 जून की शाम तलवंडी साबो की लेलेवाल रोड पर स्थित श्मशान घाट में भारी पुलिस सुरक्षा के बीच विनोद का अंतिम संस्कार कर दिया गया. बेटे के अंतिम दर्शन के लिए विनोद के पिता विजय अरोड़ा को भी पुलिस सुरक्षा में गोबिंदपुरा मौडर्न जेल से वहां लाया गया था.

इलाके में पुलिस की गश्त लगातार जारी थी. दरअसल, इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से यह मामला पूरी दुनिया में फैल गया था. कोई इस कदम को सराह रहा था तो कोई इसे पंजाब में कानूनव्यवस्था की नाकामी बता रहा था.

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया. मीडिया में अपना बयान जारी करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री बनने पर शपथ लेते समय पंजाब से एक महीने के भीतर नशे को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कर पाने में वह पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

यही वजह थी कि भागीवांदर में नशा बेचने वाले 25 साल के युवक का लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने गांव वालों की शिकायत पर ड्रग तस्करों के खिलाफ समय रहते सख्त एवं व्यापक काररवाई की होती तो नशे से बरबाद हो रहे युवकों के घर वालों को इस तरह कानून अपने हाथों में लेने की नौबत न आती. राजनेताओं को उतने ही वादे करने चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से निभाए जा सकें.

यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस घटना के बाद पंजाब की एसटीएफ की टीम ने तेजी से नशा तस्करों को पकड़ने में अपनी अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है. इन में पुरुष, महिलाएं सभी तरह के लोग हैं. इन से करोड़ों का नशीला पदार्थ भी बरामद किया गया है.

यों तो यह एक लंबी सूची बनती जा रही है, लेकिन इस समय सब से चर्चित मामला पुलिस इंसपेक्टर इंदरजीत सिंह का है. उन पर आरोप है कि नशा तस्करों को पकड़तेपकड़ते वह खुद ही ड्रग्स डौन बन गए.

खाकी वर्दी पहन कर और सीने पर गैलेंट्री अवार्ड का तमगा लगा कर वह समानांतर ड्रग्स किंग बन गए. लंबे पुलिस रिमांड पर ले कर एसटीएफ उन से सघन एवं व्यापक पूछताछ कर रही है. एसटीएफ प्रमुख का दावा है कि वर्दी वाले इस गुंडे से गहन पूछताछ के बाद पंजाब के ड्रग तस्करी में एक नया अविश्वसनीय, लेकिन बौलीवुड की फिल्मों सरीखा रोचक अध्याय जुड़ने वाला है.

आगे खतरा यह भी है कि स्ट्रीट जस्टिस के नाम पर लोग खाकी कौलर वाले इस कथित अपराधी को अदालत में ही घेर कर मार न दें. नशा तस्करों को घेर कर लोगों द्वारा मार डालने के कुछ अन्य अपुष्ट समाचार भी प्रकाश में आए हैं. इन में 18 जून, 2017 को पटियाला के कस्बा समाना में शराब तस्कर सतनाम सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने व उस के साथी को बुरी तरह घायल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.

थाना सदर समाना के थानाप्रभारी हरमनप्रीत सिंह चीमा के बताए अनुसार, 17 जून, 2017 की रात 10 बजे 2 व्यक्ति अपनी स्विफ्ट कार से देशी शराब की 30 पेटियां ले कर पंजाब की सीमा में दाखिल हुए थे. गांव रामनगर के पास पहले से खड़े कुछ लोगों ने उन्हें रुकने का इशारा किया. न रुकने पर उन लोगों ने अपनी स्कौर्पियो से पीछा कर कार को टक्कर मार कर खाईं में पलट दी.

शराब की तमाम पेटियां इधरउधर बिखर गईं. कार में सवार दोनों लोग घायल हो कर बाहर आ गिरे तो उन लोगों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से उन की जम कर पिटाई कर दी और भाग गए. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. बुरी तरह घायल काका सिंह के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल एवं कत्ल के इरादे वगैरह की धाराओं पर एफआईआर दर्ज की गई. काका सिंह का साथी सतनाम सिंह इस मामले में मारा गया, जिस के घर वालों ने अस्पताल में हंगामा किया तो मामले में 5 लोगों हरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, परगट सिंह, मंगतराम और अशोक सिंगला को नामजद किया गया.

बहरहाल, विनोद उर्फ सोनू अरोड़ा के मामले में जहां उस के घर वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर धरना दिए बैठे हैं, वहीं भागीवांदर गांव के लोगों का कहना है कि गिरफ्तारी होगी तो पूरे गांव की होगी, वरना 13 लोगों को गिरफ्तार करने पुलिस भूल कर भी गांव में न आए.

सरपंच चरणजीत कौर के बताए अनुसार, गांव की 3 पीढि़यों को नशे की दलदल में धकेलने वाले विनोद उर्फ सोनू और उस के साथियों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था. गांव के नौजवानों को नशा सप्लाई करने के साथ उन्हें इस धंधे में शामिल कर उन का जीवन तबाह कर रहा था. पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर रही थी.

समय रहते अगर गांव वालों की शिकायत पर पुलिस ने ठीक से कारवाई की होती तो शायद ऐसा कदम उठाने की नौबत न आती. दोनों पक्षों की ओर से रोजरोज मिलने वाली चेतावनियों के बीच पुलिस वाले खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अभी तक नामजद अभियुक्तों में से किसी एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है.