इज्जत का अपहरण : बदनामी का बदला

अपराह्न के साढ़े 3 बजे थे. कुलदीप के ट्यूशन जाने का समय हो गया था लेकिन अब तक वह दोस्तों के साथ खेल कर घर नहीं आया था. घर वालों ने कुलदीप को तलाशना शुरू किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

कुलदीप ताजमहल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध आगरा के थाना इरादत नगर के गांव हरजूपुरा निवासी किराना व्यापारी गब्बर सिंह का 9 वर्षीय बेटा था. गांव में जब वह कहीं नहीं मिला तो घर वालों को चिंता सताने लगी. कुलदीप दोपहर में गांव के मंदिर के पास अपने दोस्तों के बीच खेलने को कह कर गया था. वह गांव में आयोजित एक तेरहवीं के भोज में भी देखा गया था. इस के बाद उस का कोई पता नहीं चला. यह बात 23 जनवरी, 2022 की है.

उन दिनों उत्तर प्रदेश में चुनावी शोरगुल चल रहा था. गांव में चुनाव प्रचार के लिए विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी, उन के  कार्यकर्ता आजा रहे थे. ऐसी आशंका व्यक्त की गई कि कुलदीप कहीं चुनाव पार्टी वालों के साथ तो दूसरे गांव में नहीं चला गया?

कई घंटे तक तलाश करने के बाद भी जब कुलदीप का पता नहीं लगा तब घर वालों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर कुलदीप की तलाश शुरू कर दी. किराना व्यापारी के मासूम बेटे कुलदीप के अचानक लापता होने से गांव वाले भी परेशान थे.

कुलदीप को लापता हुए 6 दिन हो गए थे. गांव वालों के साथ घर वाले तथा पुलिस की 4 टीमें भी उस की तलाश में लगीं थीं. इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथ ही रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर भी एक टीमें लगाई गईं.

उस दिन गांव में आयोजित तेरहवीं के भोज में बड़ी संख्या में लोग आए थे. कुलदीप को साथ के बच्चों ने तेरहवीं में जाते हुए देखा था. तेरहवीं में आए लोगों की सूची बनाने का काम पुलिस की एक टीम ने शुरू कर दिया.

इन दिनों प्रत्याशी विधानसभा चुनाव के लिए गांव में वोट मांगने आ रहे थे. दबाव बनाने के लिए परिवार के लोगों के साथ ही ग्रामीणों ने उन से लापता बालक कुलदीप को ढूंढ कर लाने पर ही मतदान करने की शर्त भी रखी थी.

कुलदीप पूरे परिवार का दुलारा था. अपनी आखों के तारे कुलदीप को 6 दिनों से न देख पाने से किसी अनहोनी की आशंका से मां मनोरमा देवी और दादी कमला देवी की आंखों के आंसू रोरो कर सूख चुके थे. मां दरवाजे की ओर टकटकी लगाए थी. हर आहट व हलचल पर दरवाजे से बाहर की ओर दौड़ जाती है कि कहीं उस का बेटा कुलदीप तो नहीं आ गया.

कुलदीप का छोटा भाई विहान भी रोरो कर मां से बारबार भाई के बारे में पूछता. उधर पिता गब्बर सिंह भी पुलिस से बारबार अपने बेटे को लाने की गुहार लगा रहे थे.

कुलदीप की गुमशुदगी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. जिस के बाद पुलिस ने एक योजना के तहत 5 फरवरी, 2022 को कुलदीप के घर वालों की ओर से उस का सुराग देने वाले को 5 लाख रुपए का ईनाम देने की बात प्रसारित कर दी. इस के साथ ही इस संबंध में पर्चे छपवा कर गांव में बंटवा दिए.

इस का नतीजा दूसरे दिन यानी 6 फरवरी को ही सामने आ गया. गब्बर के घर के बाहर स्थित उस के घेर में 35 लाख की फिरौती का पत्र मिला. घेर के मौखले से पत्र फेंका गया था. फिरौती न देने पर बच्चे को बेचने और जान से मारने की धमकी दी गई थी.

पत्र में दिए गए पते पर पिता गब्बर सिंह लाल रंग के बैग में रुपए ले कर पहुंचे और बताए अनुसार बैग को पेड़ पर लटका दिया. लेकिन बैग को लेने कोई नहीं आया. ऐसा 2 दिन किया गया.

दूसरा पत्र 9 फरवरी को और तीसरा पत्र 11 फरवरी को मिला था. इस पत्र के साथ कुलदीप का टोपा (कैप) भी था. उस लेटर को भी रात में किसी ने घेर के अंदर फेंका था. पत्रों में पुलिस को जानकारी देने अथवा कोई चालाकी करने पर बच्चे की हत्या करने की धमकी दी गई थी.

जब परिजनों ने कुलदीप का टोपा देखा तो उन का माथा ठनका. इस संबंध में पुलिस को पूरी जानकारी दी.

गांव में आने का एक ही रास्ता था. मगर जब पत्र मिले, तब गांव में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आता दिखाई दिया था. इस से पुलिस को गांव के ही किसी व्यक्ति के शामिल होने का शक हुआ. पुलिस ने गब्बर से पुरानी रंजिश आदि के बारे में पूछा, लेकिन गब्बर सिंह ने किसी से भी दुश्मनी होने की बात नकार दी.

अपहर्त्ताओं ने पहले पत्र में जहां फिरौती के रूप में 35 लाख की मांग की थी, वहीं बाद के पत्रों में रकम घटा कर 25 लाख कर दी गई थी. मगर तीनों पत्रों में एक बात समान थी, वह यह कि फिरौती की रकम ले कर आने की जगह नहीं बदली गई थी.

तीनों ही पत्रों में अपहर्त्ताओं ने जगनेर के सरैंधी में पैट्रोल पंप के पास एक शीशम के पेड़ पर फिरौती की रकम को एक लाल रंग के बैग में रख कर टांगने के लिए कहा था.

पिता गब्बर व उन के जीजा सुरेंद्र सिंह  को शक हुआ कि फिरौती मांगने वालों के तार जरूर सरैंधी व उस के आसपास के गांव से जुड़े हुए  हैं. इस के बाद गांव के लोगों के बारे में गोपनीय तरीके से जानकारी करनी शुरू कर दी कि कितने लोगों के सगेसंबंधी सरैंधी के आसपास के गांवों में रहते हैं.

जानकारी करने पर पता चला कि गब्बर के घर के सामने रहने वाले आशु उर्फ कालिया का एक संबंधी सरैंधी के पास वाले गांव में रहता है. जबकि कुछ अन्य लोगों के रिश्तेदार फिरौती वाली जगह से दूर रहते थे.

इतनी जानकारी मिलने के बाद आशु के उस रिश्तेदार के बारे में छानबीन की गई तो पता चला कि वह भाड़े पर गाड़ी चलाता है.

जानकारी मिलने के 3 दिन बाद सुरेंद्र सिंह आशु के उस रिश्तेदार के गांव पहुंचा और दूसरे दिन खेरागढ़ जाने के लिए गाड़ी बुक करने की बात कही. इस बीच बातचीत के दौरान कुलदीप के बारे में बात की. इस पर रिश्तेदार चिंतित नजर आया. सुरेंद्र उसे सौ रुपए एडवांस दे कर आटो स्टैंड के लिए चल दिया.

सुरेंद्र के जाते ही रिश्तेदार ने सुरेंद्र सिंह का आटो स्टैंड तक लगातार पीछा किया. सुरेंद्र सिंह आटो स्टैंड पहुंचा और एक आटो में बैठ कर चल दिया. इस बीच उसे पता चल गया था कि आशु का रिश्तेदार उस की रेकी कर रहा है. करीब 100 मीटर दूर जाने के बाद सुरेंद्र आटो से उतर कर वापस आटो स्टैंड आ गया.

उस समय वहां पर वह रिश्तेदार किसी से मोबाइल पर बात कर रहा था. सुरेंद्र बिना बताए चुपचाप वहां खड़ा हो गया. देखा कि वह फोन पर बात करते समय घबराया हुआ था. सुरेंद्र सिंह यह सब जानकारी पाने के बाद गब्बर सिंह के पास पहुंचा और आशु पर शक जताते हुए पुलिस को हकीकत बताई और आशु से पूछताछ करने को कहा.

पुलिस को भी जांच के दौरान पहले ही आशु पर शक हो रहा था. लेकिन कुलदीप के परिजनों द्वारा उस पर कोई शक नहीं जताने तथा आशु के कुलदीप की तलाश में परिजनों के साथ सबसे आगे होने पर पुलिस उस से पूछताछ करने से हिचक रही थी.

इस के बाद पुलिस ने जानकारी जुटा कर कड़ी से कड़ी जोड़ी और एसओजी प्रभारी कुलदीप दीक्षित तथा थानाप्रभारी अवधेश कुमार गौतम की टीम ने आशु को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की.

पूछताछ के दौरान पता चला कि अपहरण में उस के 2 और साथी कन्हैया और मुकेश शामिल थे. अपहरण वाले दिन ही उन्होंने कुलदीप की हत्या करने के बाद उस की लाश जंगल में दफना दी थी.

पुलिस ने 17 फरवरी, 2022 की रात को गब्बर सिंह के पड़ोस में रहने वाले तीनों आरोपी आशु, मुकेश व कन्हैया को गिरफ्तार कर लिया. तीनों ने कुलदीप का अपहरण करने के बाद उस की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में कुलदीप के अपहरण और हत्याकांड के 26 दिन बाद मामले का परदाफाश करते हुए बताया कि कुलदीप की हत्या के पीछे रंजिश का मामला निकल कर आया है. उन्होंने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार  करने की जानकारी दी.

पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर गब्बर के घर से एक किमी दूर जंगल में दफनाए गए कुलदीप के शव को बरामद कर लिया. कुलदीप की हत्या अपहरण करने वाले दिन ही अंगौछे (गमछा) से गला घोट कर दी गई थी. पुलिस ने गमछा, फावड़ा व अन्य सामान भी बरामद कर लिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का कारण गला घोटना बताया गया था. इस अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह चौंकाने वाली थी—

आरोपी आशु 2 साल पहले मृतक के पिता गब्बर सिंह के घर चोरी करते पकड़ा गया था. तब उसे अपमानित किया गया था. पंचायत ने आशु को गांव से बाहर रहने का फैसला सुनाया था. पंचायत के फैसले के बाद आशु अपनी बहन के घर खेरागढ़ चला गया था. उस की रिश्तेदारी गांव सरैंधी में भी है. इस बीच वह सरैंधी में रिश्तेदार के यहां भी रहा.

करीब 5 माह पहले आशु फिर से वापस गांव आ गया. आरोपी आशु को कुलदीप चोरचोर कह कर चिढ़ाता था. वह गब्बर व उस के बेटे कुलदीप से चिढ़ने लगा और दोनों से दिली रंजिश मानने लगा.

आरोपी मुकेश और कन्हैया, गब्बर सिंह के दूर के रिश्तेदार हैं. मुकेश लंबे समय से गब्बर के घर में ही किराए पर रहता था. मुकेश की एक बहन थी. ससुराल में उस की मौत हो गई. ससुरालीजनों ने समझौते की जो रकम दी थी, वह गब्बर सिंह ने रख ली थी और मांगने पर भी वह रकम वापस नहीं कर रहा था.

साथ ही पिछले दिनों गब्बर ने उस से अपना मकान भी खाली करा लिया था. इस से मुकेश भी गब्बर से रंजिश मानने लगा था. वर्तमान में मुकेश तीसरे आरोपी कन्हैया के घर में किराए पर रह रहा था.

मुकेश मथुरा के फरह का मूल निवासी है. वह 2 फरवरी को दिल्ली में फैक्ट्री में काम करने के लिए चला गया था. लेकिन उसे बहाने से आशु ने बुला लिया था.

तीनों ने गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए साजिश रची. घटना वाले दिन 23 जनवरी को गांव में एक जगह तेरहवीं के भोज का आयोजन होने व विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए विभिन्न पार्टी नेताओं के आने से गहमागमी थी. इस का फायदा उठाते हुए हत्यारोपियों ने साजिश के तहत कुलदीप का बहाने से अपहरण कर लिया.

कुलदीप गिल्ली डंडा खेलने का शौकीन था. गिल्ली डंडा के लिए लकड़ी लेने के बहाने मुकेश कुलदीप को जंगल की ओर ले गया. रास्ते में उस के साथी कन्हैया और आशु मिल गए.

तीनों उसे गांव से करीब एक किलोमीटर दूर जंगल में ले गए. कन्हैया और मुकेश ने कुलदीप के पैर पकड़े और आशु ने अपने गमछे से गला घोट कर उस की हत्या कर दी. तीनों ने वहीं गड्ढा खोद कर शव को दबा दिया और गांव आ गए.

हत्यारोपियों ने अपने दुश्मन के बेटे के अपहरण के दिन ही उस की हत्या कर दी थी. इतना ही नहीं, आशु, कन्हैया और मुकेश हत्याकांड को अंजाम देने के बाद पीडि़त परिजनों के साथ कुलदीप की खोजबीन का नाटक भी करते रहे.

जब बेटे का कोई सुराग नहीं मिला तो गब्बर सिंह ने 5 लाख का ईनाम देने की घोषणा कर दी. तब तीनों हत्यारों के मन में लालच जाग गया. तीनों ने फिरौती मांगने की योजना बनाई जो उन के पकड़े जाने का सबब बनी.

आरोपी कन्हैया का घर गब्बर सिंह के घर से लगा हुआ है. जबकि आशु का घर गब्बर सिंह के घर के सामने है. गब्बर सिंह के घर के बाहर स्थित घेर की दीवार में 4 मोखले बने हुए हैं. इन मोखलों से कन्हैया पत्र फेंक देता था. जबकि फिरौती मांगे जाने के बाद पुलिस गांव में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रख रही थी.

इस के साथ ही वह गब्बर सिंह के घर के सामने से गुजरने वालों पर भी निगरानी कर रही थी. लेकिन आरोपी इतने शातिर थे कि पुलिस और परिजनों की आंख से काजल चुरा रहे थे. लगातार फिरौती के पत्र आने से पुलिस इतना तो समझ गई थी कि फिरौती मांगने वाले गांव के ही किसी व्यक्ति का हाथ है.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि पत्रों में लिखी हैंड राइटिंग की जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला से रिपोर्ट मंगाई जाएगी. केस में मजबूत साक्ष्य पुलिस के पास हैं. 3 पत्र डाले गए थे. हैंड राइटिंग का मिलान कराया तो पता चल कि वो पत्र कन्हैया ने लिखे थे.

इस के साथ ही कुलदीप का टोपा (कैप) भी भेजा गया था. वहीं जहां शव दफनाया गया था, वहां पर फावड़ा मिला था. गला घोटने वाला गमछा भी बरामद कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का कारण दम घुटना बताया गया था. गिरफ्तार किए गए तीनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, अपने पीछे कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ जाता है. कुलदीप अपहरण और हत्याकांड की इस दिल दहलाने वाली वारदात में भी यही हुआ.

आरोपियों ने फूलप्रूफ प्लान बनाया था. लेकिन लालच के वशीभूत हो कर उन के द्वारा भेजे गए फिरौती के पत्रों व कुलदीप की कैप से ही पुलिस और परिजन हत्यारों तक पहुंच गए.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंधविश्वास का भंवर : समाज में कैसे बढ़ रहा है इसका कहर

घने और देवदार के लंबे वृक्षों से आच्छादित पहाड़ों के बीचोबीच एक आदिवासी गांव पहाड़गांव आम टोला. यह गांव झारखंड के गुमला जिले के कामडारा थाना क्षेत्र में आता है. गांव में एक ऐतिहासिक शिव मंदिर है इसीलिए इस गांव का नाम दूरदूर तक प्रसिद्ध है.

सावन का महीना हो या फिर महाशिवरात्रि पर्व, भक्तों की यहां भीड़ उमड़ती है. हालांकि पहाड़गांव में नक्सली संगठन पीएलएफआई काफी सक्रिय है. कई बार पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ भी हो चुकी है. इसलिए भी पहाड़गांव पूरे जिले में चर्चित है.

इसी गांव में 60 वर्षीय किसान निकोदिन तोपनो अपनी पत्नी जोसविना तोपनो (55 साल), बेटे भिनसेट तोपनो (35 साल), बहू शीलवंती तोपनो (30 साल) और पोते अलबिन तोपनो (5 साल) के साथ हंसीखुशी रहते थे.

बापबेटे मिल कर इतनी मेहनत कर लेते थे कि खेतों में साल भर के खाने से ज्यादा अनाज पैदा हो जाता था. साल भर खाने के लिए अनाज घर में रख कर बाकी का बाजार में बेच कर पैसे कमा लेते थे. इसी से उन का जीवनयापन होता था.

बात 23 फरवरी की है. रात में निकोदिन तोपनो पत्नी, बेटा, बहू और पोते एक साथ बैठ कर खाना खाने के बाद सोने चले गए. रात 9 बजतेबजते निकोदिन और उन का पूरा परिवार खर्राटे भरने लगा था. उन का मकान कच्ची मिट्टी और घासफूस का बना था.

अगली सुबह निकोदिन तोपनो का भतीजा अमृत तोपनो अपने घर के बाहर नीम का दातून कर रहा था. उसी समय गांव का एक आदमी दौड़ताहांफता उस के पास पहुंचा और बोला, ‘‘गजब हो गया अमृत, गजब हो गया.’’

‘‘अरे, क्या गजब हो गया भाई? थोड़ा सांस तो ले लो, फिर कहो जोे कहना

चाहते हो.’’ दातून मुंह से निकालते हुए अमृत बोला.

‘‘अरे भाई, सुनेगा तो तेरे भी होश उड़ जाएंगे. घर के बाहर तेरे बड़े पिता…’’

‘‘क्या हुआ बड़े पिताजी को..?’’

‘‘किसी ने पूरे परिवार को मार डाला. उन को और तेरी बड़ी मां को मार कर घर के बाहर फेंक दिया है. दोनों की लाशें बाहर पड़ी हैं.’’

अमृत ने इतना ही सुना था कि वह जिस अवस्था में था, वैसे ही दातून एक ओर फेंकता हुआ दौड़ताचिल्लाता ताऊ निकोदिन के घर पहुंचा. सचमुच वहां बड़े पिता और बड़ी मां की थोड़ी दूरी पर खून में डूबी लाशें पड़ी थीं. बड़ी बेरहमी से किसी ने उन के गले और सिर पर धारदार हथियार से वार कर मार डाला था.

फिर वह घबराया हुआ घर के अंदर गया. वहां का दिल दहला देने वाला दृश्य देख कर उस का कलेजा कांप उठा. एक ही बिस्तर पर भाई भिनसेट, भाभी शीलवंती और भतीजा अलबिन की खून से सनी लाशें पड़ी हुई थीं. अलबिन के पास उस का खिलौना खून में सना पड़ा था.

उस के बड़े पिता के परिवार को जड़ से ही खत्म कर दिया था. यह सोच कर अमृत की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर गांव वाले मौके पर जमा हो गए.

तभी किसी ने इस हृदयविदारक घटना की सूचना कारडामा थाने को दे दी. घटना की सूचना पा कर कारडामा थाने के थानाप्रभारी बैजू उरांव पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे.

हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से सारे कत्ल किए थे. जिस में 5 साल के अलबिन की लाश देख कर ग्रामीणों का कलेजा मुंह को आ गया. आखिर इस मासूम ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो इसे भी नहीं बख्शा.

थानाप्रभारी बैजू उरांव ने मौका मुआयना करने के बाद घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही अधिकारियों को मिली, कुछ ही देर बाद वे मौके पर पहुंच गए थे.

मौके पर पहुंचे अधिकारियों में उपायुक्त शिशिर कुमार सिन्हा, विधायक जिग्गा सुसारन होरो, एसपी पी. हृदीप जनार्दन, एसडीपीओ दीपक कुमार, एसडीओ संजय पीएम कुजूर, रवींद्र कुमार पांडेय, फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड और कई थानों के थानेदार शामिल थे.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की सूक्ष्मता से जांच की. कहीं से यह घटना नक्सली नहीं लग रही थी. नक्सली घटना होती तो मृतकों के शरीर गोलियों से छलनी हुए होते, किंतु मृतकों के शरीर पर जगहजगह धारदार हथियारों से हमला होना नजर आ रहा था.

जांचपड़ताल से पता चला कि यह घटना किसी रंजिश के कारण अंजाम दी गई है. खैर, पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गुमला भिजवाए और अमृत तोपनो की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 302 और डायन प्रथा प्रतिशोध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी थी.

इस घटना की खबर डीजीपी नीरज सिन्हा तक पहुंच गई थी. उन्होंने एसपी पी. हृदीप जनार्दन को आदेश दिया कि 24 घंटों के भीतर हत्यारे जेल की सलाखों के पीछे होने चाहिए. चाहे वे कितने ही ताकतवर क्यों न हों. उन के चेहरे पर कानून का भय दिखना चाहिए.

एसआईटी ने जांच शुरू की तो पासपड़ोस से पूछताछ में उन्हें पता चला कि तोपनो परिवार बेहद सीधा सरल था. किसी से उन की कोई रंजिश भी नहीं थी. तो क्यों हत्यारों ने उन के पूरे परिवार का खात्मा कर दिया? यह सोचने वाली बात थी.

आखिरकार, पुलिस की कड़ी मेहनत रंग लाई. 26 फरवरी की दोपहर में एक वीडियो क्लिप जांच अधिकारियों के हाथ लग गई. वीडियो क्लिप घटना से एक दिन पूर्व 23 फरवरी की थी. वीडियो में स्पष्ट दिख रहा था कि दिन में लगभग 11-12 बजे गांव के बाहर फुटबाल के मैदान में एक बैठक का आयोजन हुआ.

बैठक में 50 से अधिक लोग शामिल थे, जिन में लगभग 50 वर्षीय एक व्यक्ति मुंडारी भाषा में चिल्ला कर एक बुजुर्ग (मृतक निकोदिन तोपनो) से कह रहा है, ‘‘तुम लोग गांव में डायन हो. तुम बताओ और 4 लोग कौनकौन हैं, जो गांव में तबाही मचाए हैं. हम लोग इतना सबूत दे रहे हैं… लेकिन तुम नहीं समझ रहे हो…’’

उस व्यक्ति ने बुजुर्ग को बैठक में उपस्थित लोगों से हाथ जोड़ कर माफी मांगने को कहा और इस के बाद बुजुर्ग को 3-4 थप्पड़ जड़ दिए. इस घटना के 10-12 घंटे बाद ही निकोदिन तोपनो को परिवार सहित मार डाला गया था.

पुलिस को यह समझते देर न लगी कि मामला डायन बिसाही से जुड़ा हुआ है. इस के बाद राज से परदा खुलता चला गया. घटना का मूल दोषी गांव का पुजारी मथुरा तोपनो था. पुलिस ने पुजारी को गिरफ्तार किया तो एकएक कर के 8 आरोपी सामने आए, जिन्होंने बेहरमी से तोपनो दंपति सहित पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया था.

अगले दिन 27 फरवरी को आठों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए थे. जिन के नाम सुनील तोपनो, सोमा तोपनो, सलीम तोपनो, फिरंगी तोपनो, फिलिप तोपनो, अमृत तोपनो, सावन तोपनो और दानियल तोपनो थे. मुख्य आरोपी सुनील तोपनो से पुलिस ने जब कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया और हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, सभ्य समाज के विकृत चेहरे को उजागर करने वाली थी.

सुनील तोपनो मूलरूप से गुमला जिले के कामडारा इलाके के पहाड़गांव आमटोला का रहने वाला था. खेतीबाड़ी और मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपने परिवार का भरणपोषण करता था. सुनील जिस गांव का मूल निवासी था, वह इलाका आदिवासियों का इलाका कहा जाता है. इस गांव में ज्यादातर लोग अशिक्षित और बेरोजगार हैं, जो दूसरों के यहां मेहनत कर के अपना जीवनयापन करते हैं और अंधविश्वास की दुनिया में जीते हैं.

यहां अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं, जिसे दूर करना तो दूर की बात, उस की जड़ों को टटोल पाना टेढ़ी खीर साबित होती है.

सुनील ने एक देशी गाय और बैल पाल रखा था. दिन भर जानवरों की सेवा में वह लगा रहता था. अचानक उस के दोनों जानवर बीमार पड़ गए और कुछ दिनों बाद दोनों मर गए. जानवरों की अचानक हुई मौत से सुनील दुखी रहने लगा था. किसी काम में उस का मन ही नहीं लग रहा था.

सुनील के जानवरों की मौत के बाद गांव में एकएक कर के कई जानवर असमय काल के गाल में समा गए थे. यह देख कर सुनील के साथ सोमा तोपनो, सलीम, फिरंगी, फिलिप सावन और दानियल सभी परेशान थे. वे समझ नहीं पा रहे थे अचानक क्या हो गया, क्यों जानवर मरने लगे.

सुनील तोपनो गांव के बाकी लोगों को साथ ले कर पुजारी मथुरा तोपनो से मिलने उस के घर आया. पुजारी ने सुनील और उस के साथ आए सभी लोगों की बातें सुनीं. सब की बातें सुनने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि गांव में कोई डायन पाले हुए है. वही सब कुछ करा रहा है, इसीलिए गांव के जानवर एकएक कर के मर रहे हैं.

पुजारी मथुरा तोपनो ने गांव वालों से कहा कि निकोदिन तोपनो ही वह व्यक्ति है, जिस ने अपने घर में डायन पाल रखी है. वही सब को नुकसान पहुंचा रहा है. उस के साथ भी डायन जैसा व्यवहार होना चाहिए.

पुजारी मथुरा तोपनो के कथन ने आग में घी का काम किया. सुनील तोपनो और गांव वालों के दिमाग में यह बात बैठ गई कि निकोदिन तोपनो की वजह से ही उन के और पशुओं की मौत हुई है. डायन बन कर वह एकएक को खा रहा है. जब तक जिंदा रहेगा, मार कर ऐसे ही खाता रहेगा.

सुनील तोपनो ने इस को ले कर 23 फरवरी को गांव के बाहर फुटबाल मैदान में एक पंचायत आयोजित की. 50 से ज्यादा लोग इस में उपस्थित थे. इस बैठक में निकोदिन के बेटे भिनसेट तोपनो को शामिल नहीं होने दिया गया था.

3-4 घंटे तक चली इस बैठक का वीडियो एक शख्स ने बना लिया था. बैठक में पुजारी मथुरा तोपनो मुंडारी भाषा में चिल्ला कर निकोदिन तोपनो से कह रहा था, ‘‘तुम लोग गांव में डायन हो… तुम बताओ और 4 लोग कौनकौन हैं, जो गांव में तबाही मचाए हैं. हम लोग इतना सबूत दे रहे हैं…लेकिन तुम नहीं समझ रहे हो…’’

उस व्यक्ति ने बुजुर्ग निकोदिन को बैठक में उपस्थित लोगों से हाथ जोड़ कर माफी मांगने को कहा, जिस के बाद उसे 3-4 थप्पड़ जड़ दिए.

बुजुर्ग निकोदिन तोपनो समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें किस गुनाह की सजा दी गई थी. उन से ऐसा क्या गुनाह हुआ, जो भरी पंचायत में पुजारी ने थप्पड़ मारे. पुजारी की इस धृष्टता से निकोदिन सहम गए थे.

साधारण तरीके से जीने वाले निकोदिन पर डायन पालने का झूठा आरोप लगाया जा रहा था. जबकि उस ने पंचायत में चीखचीख कर कहा था कि उस पर लगाया जा रहा आरोप बेबुनियाद है. लेकिन पंच न तो उस की बात सुनने को तैयार थे और न ही मानने को.

बैठक खत्म होने के बाद निकोदिन तोपनो दुखी मन से घर पहुंचे. उन के बुझे हुए चेहरे को देख कर पत्नी, बेटे और बहू समझ गए कि पंचायत में जरूर कुछ बुरा हुआ है तभी इन का चेहरा लटका हुआ है. फिर निकोदिन ने परिवार के सामने सारी सच्चाई बता दी.

थप्पड़ वाली बात सुन कर सभी का कलेजा कांप उठा. वे मन मसोस कर रह गए, इस के अलावा वे और कुछ कर भी नहीं सकते थे.

इधर बैठक के बाद से ही सुनील तोपनो निकोदिन तोपनो को सजा देने के लिए फड़फड़ा रहा था. बस घटना को अंजाम देने की देरी थी.

रात 10 बजे तक गांव में सन्नाटा पसर गया था. हथियारों के साथ सुनील अपनी मोटरसाइकिल पर सोमा को पीछे बैठा कर निकोदिन के घर पहुंचा. एक दूसरी मोटरसाइकिल पर सवार सलीम और फिरंगी उस का साथ दे रहे थे.

चारों मोटरसाइकिल से नीचे उतरे और आपस में कुछ बात की. उस के बाद चारों अलगअलग दिशाओं में धारदार हथियार ले कर फैल गए.

सुनील निकोदिन तोपनो के घर की ओर बड़ा. दरवाजा खटखटा कर उस ने निकोदिन को बाहर आने को कहा. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर निकोदिन और उन की पत्नी की आंखें खुल गईं और वे बिस्तर पर उठ कर बैठ गए. दोबारा दरवाजे पर थाप की आवाज सुन कर निकोदिन यह देखने के लिए दरवाजे की ओर लपका कि बाहर कौन है, जो उसे बुला रहा है.

जैसे ही बुजुर्ग निकोदिन दरवाजा खोल कर बाहर निकले, सुनील और सोमा ने उन्हें कमरे से बाहर खींच लिया. जिस से निकोदिन के मुंह से चीख निकल पड़ी. पति की दर्दनाक चीख सुन कर जोसविना भी चिल्लाती हुई बाहर दौड़ी.

बाहर निकली तो देखा सुनील और सोमा कुल्हाड़ी और आरी से उस के पति को मार रहे थे. पति को बचाने के लिए जोसविना हत्यारों से भिड़ गई. हत्यारों ने उसे भी नहीं बख्शा और कुल्हाड़ी से प्रहार कर मौत के घाट उतार दिया.

दोनों बुजुर्गों की हत्या करने के बाद चारों हत्यारे बुरी तरह डर गए थे. वे इस बात से परेशान थे कि निकोदिन के बेटे और बहू जिंदा हैं. कहीं उन्होंने मुंह खोल दिया तो सारी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ेगा. इसलिए इन्हें भी रास्ते से हटा दें, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

फिर क्या था इंसान से हैवान बन चुके चारों कमरे में घुसे और गहरी नींद में सो रहे भिनसेट, उस की पत्नी शीलवंती और मासूम अलबिन को कुल्हाड़ी और लोहे की आरी से प्रहार कर मौत के घाट उतार दिया और फरार हो गए.

लेकिन खून की होली खेलने वाले दरिंदे कानून के हाथों से ज्यादा देर बच नहीं सके. आखिरकार पुलिस ने उन्हें पकड़ ही लिया.

पुलिस ने 27 फरवरी को आरोपी सुनील तोपनो, सोमा तोपनो, सलीम तोपनो, फिरंगी तोपनो, फिलिप तोपनो, अमृत तोपनो और दानियान तोपनो से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

आशा के एक सर्वे के अनुसार, झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर एक दशक के अंदर करीबन 700 महिलाओं की हत्या की जा चुकी है और यह सिलसिला अभी भी जारी है.

—कथा जनचर्चाओं और पुलिस सूत्रों पर आधारित

उजले लोगों का ये है काला धंधा – भाग 3

फ्लैट का सौदा करने दोनों में ही दोस्ती हो गई तो जल्दी ही दोनों में अनैतिक संबंध भी बन गए. बिल्डर के खिलाफ वकील ने इस्तगासा पेश करने की धमकी दी तो मीडियाकर्मी ने खबर चलाने की धमकी दी. गिरोह के इशारे पर रवनीत ने उस से एक करोड़ रुपए मांगे.

अंत में उस से 35 लाख रुपए वसूले गए. इस के बाद रवनीत को मोहरा बना कर गिरोह ने एक बिल्डर से 50 लाख, एक एक्सपोर्टर से 23 लाख, एक डाक्टर से एक करोड़ 5 लाख, प्रौपर्टी व्यवसाई से 80 लाख और रिसौर्ट मालिक के बेटे से 45 लाख रुपए वसूले.

ब्लैकमेलिंग से मोटी रकम मिली तो रवनीत ने हांगकांग जा कर अपने मातापिता को उन से लिए 8 लाख रुपए लौटा दिए. उस ने अपने घर वालों को बताया कि वह जयपुर में नौकरी करती है. उस ने उन से कोटा के अपने प्रेमी के बारे में भी बता दिया था.

उसी बीच रवनीत कौर उर्फ रूबी का गिरोह के लोगों से पैसों के बंटवारे को ले कर विवाद हो गया. इस की वजह यह थी कि गिरोह के सदस्य शिकार से तो मोटी रकम ऐंठते थे, लेकिन रवनीत को काफी कम पैसे देते थे. इसी बात को ले कर दिसंबर, 2015 के आखिर में रवनीत ने गिरोह छोड़ दिया.

इस के बाद रवनीत ने सन 2016 के शुरू में कोटा निवासी अपने प्रेमी रोहित से शादी कर ली. शादी के बाद वह कोटा चली गई, जहां वह महावीरनगर तृतीय में ससुराल वालों के साथ रहने लगी. बाद में उस ने कोटा की एक कोचिंग इस्टीट्यूट में नौकरी कर ली. उस इंस्टीट्यूट को छोड़ कर उस ने दूसरे कोचिंग इंस्टीट्यूट में करीब 4 महीने ही नौकरी की थी कि एसओजी ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. रवनीत की गिरफ्तारी तक उस की ससुराल वालों को उस के कारनामों का पता नहीं था.

एसओजी ने उसे अदालत में पेश कर सुबूत जुटाने के लिए रिमांड पर लिया. उस की हैंडराइटिंग और हस्ताक्षरों के नमूने लिए, ताकि उस का शिकार बने लोगों को लिखित में दिए गए स्टांप पेपरों की लिखावट से मिलान किया जा सके.

स्टांप पर रवनीत कौर अपने हाथों से लिख कर हस्ताक्षर करती थी. स्टांप पर लिखे समझौतों और हस्ताक्षरों की मिलान के लिए अदालत में रवनीत कौर से लिखवा कर हस्ताक्षर कराए गए. इस के बाद इन्हें जांच के लिए विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया.

इस गिरोह की दूसरी हसीना रीना शुक्ला और उस के सहयोगियों ने एक चार्टर्ड एकाउंटैंट से 70 लाख रुपए ऐंठे थे. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने पर एसओजी में इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई है. इसी के बाद एसओजी ने रीना शुक्ला, शंभू सिंह और किशोरीलाल को गिरफ्तार किया था.

किशोरीलाल सीए का दोस्त था. शंभू सिंह जयपुर के मानसरोवर में प्रौपर्टी का कारोबार करता था, जबकि रीना शुक्ला गरीब बच्चों का एक एनजीओ चलाती थी. रीना ने एक मासिक अखबार का रजिस्ट्रेशन भी करा रखा था. आरोपियों ने इसी अखबार के प्रैस कार्ड भी बनवा रखे थे. इन लोगों से पूछताछ में पता चला कि शंभू सिंह के प्रौपर्टी के व्यवसाय को वही सीए संभालता था.

रीना सन 2008 से शंभू सिंह के संपर्क में थी. शंभू सिंह के मार्फत रीना की दोस्ती सीए से हुई. रीना की मौसी कोटा में रहती थी. उस के पड़ोस में अनीता रहती थी. रीना ने अनीता को नौकरी दिलाने के बहाने सन 2013 में जयपुर बुलाया और सीए के माध्यम से एक कंपनी में नौकरी दिलवा दी, साथ ही रहने के लिए जयपुर के प्रतापनगर में एक फ्लैट किराए पर दिलवा दिया.

नवंबर, 2013 में रीना के रिश्तेदार की शादी में शरीक होने के लिए शंभू सिंह और अनीता राजस्थान के प्रतापगढ़ शहर गए. वहीं पर सीए अनीता के बीच अनैतिक संबंध बन गए. इस के सबूत रीना और अनीता ने एकत्र कर लिए. उन्हीं सबूतों के आधार पर उन्होंने सीए को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

रीना ने सीए से अनीता को एक लाख रुपए दिलवा कर कोटा भेज दिया. इस के बाद भी रीना और शंभू सिंह ने सीए को ब्लैकमेल करना जारी रखा. उन्होंने 6 महीने में उस से 10 लाख रुपए वसूल लिए.

किशोरीलाल को पता था कि रीना और शंभू सिंह सीए को ब्लैकमेल कर रहे हैं. उसी बीच सीए ने मानसरोवर स्थित अपना एक प्लौट सवा करोड़ रुपए में बेचा. किशोरीलाल ने सीए के प्लौट बेचने की बात रीना और शंभू सिंह को बता दी. सीए के पास मोटी रकम देख कर शंभू सिंह और रीना को लालच आ गया. उन्होंने सीए को धमकी दी कि अनीता कोर्ट में दुष्कर्म का इस्तगासा दर्ज करवा रही है. अगर समझौता करना हो तो वह एक करोड़ रुपए मांग रही है. उस ने मीडिया में भी मामला उजागर करने की धमकी दी.

इन धमकियों से सीए परेशान हो गया. वह आत्महत्या करने की सोचने लगा. इस के बाद शंभू सिंह के साथ मिल कर किशोरीलाल ने 70 लाख रुपए में सौदा करवा दिया. सीए ने अपने दोस्त किशोरीलाल को यह मामला निपटाने के लिए 70 लाख रुपए दे दिए. किशोरीलाल शंभू सिंह और रीना के साथ अनीता को यह रकम देने कोटा गया.

वहां उस ने 20 लाख रुपए खुद रखे और 50 लाख रुपए शंभू सिंह और रीना को दे दिए. रीना और शंभू सिंह ने अनीता को होटल में बुला कर एक समझौता पत्र तैयार किया. इस के बाद रीना ने समझौता पत्र और रुपए के साथ अनीता की एक फोटो ले ली.

शंभू सिंह और रीना ने अनीता को बताया कि सीए ने कोटा में कोई प्रौपर्टी खरीदी है, ये रुपए उन्हीं के हैं. वे प्रौपर्टी खरीदने के लिए सीए के दोस्त के साथ कोटा आए हैं. अनीता को बातों में उलझा कर रीना और शंभू सिंह ने उसे मात्र 10 हजार रुपए दे कर घर भेज दिया, बाकी रुपए दोनों ने अपने पास रख ली और सीए को समझौता पत्र और फोटो दे कर बता दिया कि समझौता हो गया.

एसओजी ने रीना और शंभू सिंह से अनीता के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अनीता की 6 महीने पहले कैंसर से मौत हो गई है. एसओजी अधिकारियों को आशंका है कि कहीं मामले का खुलासा होने के डर से अनीता की हत्या तो नहीं कर दी गई. इस बात की जांच शुरू हुई. इस जांच में शंभू सिंह के बैंक लौकर से 15 से ज्यादा सीडियां मिली हैं, जिन्हें पुलिस ने देखा तो उन में तमाम लोगों की आपत्तिजनक फिल्में थीं. इस से स्पष्ट हो गया कि इन लोगों ने अन्य लोगों से भी पैसे ऐंठे हैं.

जांच में रीना और शंभू सिंह के उस झूठ का परदाफाश हो गया कि अनीता मर चुकी है. एसओजी ने कोटा निवासी अनीता चौहान को गुजरात के अहमदाबाद शहर से जीवित बरामद कर लिया.

पूछताछ में अनीता ने बताया कि वह अपने पति के साथ पिछले 3-4 महीने से अहमदाबाद में रह रही थी. उसे शंभू सिंह और रीना शुक्ला द्वारा उस के नाम पर सीए से 70 लाख रुपए ऐंठने की जानकारी नहीं थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने अनीता को छोड़ दिया था. वह इस मामले में गवाह बन गई है.

जयपुर में इस तरह की ब्लैकमेलिंग करने वाले नएनए गिरोह सामने आ रहे हैं. एक अन्य गिरोह में तो एक सरकारी वकील के साथ कई लड़कियां शामिल थीं. उन्होंने स्पा मसाज सैंटर के नाम पर रईसों से मोटी रकम ऐंठी. एसओजी ने इस गिरोह की 2 लड़कियों वंदना भट्ट और पूनम कंवर को 11 फरवरी को गिरफ्तार किया.

इन्होंने एक साल में 6 रईसों से 60 लाख रुपए वसूल करने की बात स्वीकार की है. ये लड़कियां रईसों को मसाज पार्लर में बुला कर फांसती थीं. अनैतिक संबंध बनने के बाद थाने में शिकायत दर्ज करा कर वकील और उस के साथी उस रईस को फोन कर धमकाते थे और समझौता कराने के नाम पर 10 से 15 लाख रुपए ऐंठ लेते थे.

सौदा होने के बाद ये लोग पीडि़त को स्टांप पर समझौता लिख कर देते थे. एसओजी की जांच में सामने आया है कि हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने ढाई साल में करीब 45 लोेगों से 20 करोड़ रुपए वसूले हैं.

इन में गिरोह के सरगना एक वकील और कुख्यात अपराधी आनंदपाल के साथी आनंद शांडिल्य के हिस्से में 2-2 करोड़ रुपए आए हैं. रवनीत कौर के हिस्से में डेढ़ करोड़ रुपए आए थे. बाकी रकम अन्य सदस्यों में बांटी गई थी. गिरोह के सरगना वकील ने 8 वारदातों के बाद आनंद शांडिल्य को अलग कर दिया था. इस का कारण यह था कि आनंद शांडिल्य ब्लैकमेलिंग की राशि लाता था तो उस में से 15-20 लाख रुपए पहले  ही खुद रख लेता था. इस के बाद लाई गई रकम में भी हिस्सा लेता था. इस बात का पता गिरोह के दूसरे सदस्य वकील को चल गया था.

इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह में 4 वकील, 2 फरजी पत्रकार एवं एनआरआई युवती सहित करीब 30 लोग शामिल थे. गिरोह के सरगना वकील को एसओजी ने 9 फरवरी को गोवा से गिरफ्तार किया था. वहां भी उस के साथ एक युवती थी. उस युवती के बारे में जांच की जा रही है.

एक वकील को जयपुर से एक दिन पहले ही एसओजी ने गिरफ्तार किया था. फरार आरोपियों की तलाश में एसओजी जुटी हुई है. जयपुर बार एसोसिएशन ने गिरोह में शामिल वकीलों की सदस्यता रद्द कर दी है. बार कौंसिल के चेयरमैन एम.एम. लोढा ने 12 फरवरी को कहा है कि दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर रुपए ऐंठने वाले वकीलों की सदस्यता बार कौंसिल से भी समाप्त कर दी जाएगी.

– कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

926 करोड़ की डकैती, जो हो नहीं पाई – भाग 3

हताशा में आशा की किरण नजर आई पुलिस को

वारदात के दूसरे दिन पुलिस के अधिकारी और जवान सभी बिंदुओं पर विचार कर जांचपड़ताल करते रहे, लेकिन यह भी पता नहीं चल सका कि बदमाश किस रास्ते से वापस गए. दूसरे और तीसरे दिन भी पुलिस को बदमाशों के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ नहीं लगा. इस बीच जयपुर से पुलिस की टीमें नागौर, पाली, अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर व झुंझुनूं आदि जिलों में गईं और संदिग्ध बदमाशों की तलाश की.

9 फरवरी को जयपुर पुलिस को इस मामले में उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं. कई जगह फुटेज में नजर आया कि बदमाशों की इनोवा गाड़ी के पीछे वाली बाईं ओर की लाइट टूटी हुई थी. इसी वजह से गाड़ी चलने पर यह लाइट नहीं जलती थी. इसी आधार पर पुलिस जयपुर से अजमेर की ओर टोल नाकों पर ऐसी इनोवा कार की तलाश में जुटी रही.

इसी दिशा में पुलिस आगे बढ़ी तो पता चला कि दूदू के पास एक बार के बाहर इनोवा कार रुकी थी. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कुछ लोगों की तसवीर आ गई थी. इन लोगों ने कानों में सोने की मुर्की पहन रखी थीं. चेहरे भी ढंके हुए नहीं थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि बदमाश जोधपुर-पाली की तरफ के हो सकते हैं. दूदू में होटल पर रुकने के बाद यह गाड़ी ब्यावर की ओर चली गई थी.

इसी बीच जांचपड़ताल में पता चला कि एक्सिस बैंक में बदमाश जो कट्टे छोड़ गए थे, वे पाली जिले की रायपुर तहसील के बर गांव में एक दुकान से खरीदे गए थे. इन कट्टों पर बर गांव की परचून की दुकान का नाम लिखा था. पुलिस उस दुकानदार तक पहुंची. हालांकि दुकानदार से बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, लेकिन इस से यह अंदाजा जरूर लग गया कि बदमाशों का पाली जिले से कोई न कोई संबंध जरूर था.

पुलिस को बदमाशों की इनोवा कार की लोकेशन ब्यावर तक मिल गई थी. इस बीच महाराष्ट्र के नंबरों का पता चलने पर एक पुलिस टीम महाराष्ट्र भेजी गई. ब्यावर से पुलिस टीम सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इनोवा कार का पीछा करते हुए जोधपुर तक पहुंच गई.

10 फरवरी को पाली जिले की पुलिस को कुछ जानकारियां मिलीं. इस के अगले  दिन 11 फरवरी को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के महामंदिर थानाप्रभारी सीताराम को सूचना मिली कि जोधपुर के कुछ बदमाश कहीं बाहर कोई बड़ी वारदात कर के आए हैं.

आखिर पकड़ में आ ही गए लुटेरे

इस पर जोधपुर पुलिस की एक टीम बदमाशों की तलाश में जुटी और शाम तक 6 बदमाशों प्रकाश जटिया, पवन जटिया, धर्मेंद्र जटिया, जयप्रकाश जटिया, दिनेश लुहार और प्रमोद बिश्नोई को पकड़ लिया. ये छहों लोग जोधपुर के रहने वाले थे. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक कुमार राठौड़ ने इस की सूचना जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी. इस पर जयपुर से एक टीम रवाना हो कर रात को ही जोधपुर पहुंच गई.

पकड़े गए 6 बदमाशों से बाकी लुटेरों का भी पता चल गया. जयपुर व जोधपुर पुलिस उन की तलाश में जुट गई. 12 फरवरी को पुलिस ने 2 और बदमाशों को पकड़ लिया. इन में अनूप बिश्नोई को जोधपुर के बनाड इलाके से पकड़ा गया, जबकि झुंझुनूं के बदमाश विकास चौधरी को जैसलमेर से गिरफ्तार किया गया. विकास चौधरी आजकल जैसलमेर के शिकारगढ़ इलाके में रह रहा था.

लादेन था गिरोह का सरगना

इन बदमाशों से की गई पूछताछ में सामने आया कि लूट की योजना जोधपुर के ओसियां  के सिरमंडी निवासी हनुमान बिश्नोई उर्फ लादेन ने बनाई थी. लादेन ही इस गिरोह का सरगना है. लादेन ने जयपुर में एक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच की रैकी कर रखी थी. तिजोरी के ताले तोड़ने के लिए उस ने प्रमोद बिश्नोई के सहयोग से जोधपुर की जटिया कालोनी के रहने वाले प्रकाश, पवन, धर्मेंद्र व जयप्रकाश को तैयार किया था.

तिजोरी तोड़ने के लिए ये बदमाश जोधपुर से ही औजार ले कर चले थे. हनुमान उर्फ लादेन इस योजना में प्रकाश बिश्नोई से बराबर का हिस्सा मांग कर पार्टनर बना था. बाकी बदमाशों को 20 हजार से 10 लाख रुपए तक का लालच दिया गया था. लादेन और प्रकाश ने अपने भाड़े के साथियों को यह नहीं बताया था कि जयपुर में बैंक लूटने जाना है. उन्हें बताया गया था कि जयपुर में हवाला की रकम लूटनी है.

5 फरवरी को लादेन के नेतृत्व में 15 बदमाश जोधपुर से 2 गाडि़यों में सवार हो कर जयपुर के लिए चले. उन्होंने रास्ते में जयपुर-अजमेर के बीच दूदू के पास एक गाड़ी छोड़ दी. इनोवा गाड़ी से सभी बदमाश उसी रात जयपुर पहुंचे और एक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच पर धावा बोल दिया. बैंक में तैनात पुलिस कांस्टेबल के गोली चलाने से सभी बदमाश डर कर भाग निकले थे.

प्रकाश बिश्नोई जनवरी 2014 में राइकाबाग में रोडवेज बस स्टैंड पर रात्रि गश्त कर रहे पुलिस के एक एएसआई राजेश मीणा की हत्या का भी अभियुक्त था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. घटना के समय वह जमानत पर छूटा हुआ था.

पुलिस को लादेन के अन्य साथियों के नामपता चल गए हैं. कथा लिखे जाने तक जयपुर व जोधपुर पुलिस उस की तलाश में जुटी थी. गिरफ्तार किए गए आठों बदमाशों को पुलिस जोधपुर से जयपुर ले आई. बदमाशों से उन के साथियों और आपराधिक वारदातों के बारे में पूछताछ की गई.

सीताराम को किया गया सम्मानित

एक्सिस बैंक में लूट के प्रयास के दौरान उपयोग किए गए हथियारों के बारे में भी पता लगाया गया. गिरफ्तार व फरार बदमाशों का आपराधिक रिकौर्ड भी खंगाला गया. यह भी पता लगाया गया कि इस वारदात में बैंक के किसी नएपुराने कर्मचारी का सहयोग तो नहीं था.

देश की सब से बड़ी बैंक लूट की वारदात को विफल करने का हीरो कांस्टेबल सीताराम ही रहा. हालांकि जयपुर पुलिस ने वैज्ञानिक तरीकों से जांचपड़ताल के जरिए बदमाशों को पकड़ कर अपनी साख जरूर बचा ली.

यह भी दिलचस्प रहा कि 11 फरवरी को जोधपुर में जब 6 बदमाश पकड़े जा रहे थे, उसी समय जयपुर में राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओ.पी. गल्होत्रा ने कांस्टेबल सीताराम को हैडकांस्टेबल के पद पर विशेष पदोन्नति दी. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट में आयोजित समारोह में पुलिस महानिदेशक ने कहा कि ड्यूटी के दौरान उत्कृष्ट कार्य कर के सीताराम ने राजस्थान पुलिस की शान बढ़ाई है.

राजस्थान के सीकर जिले के पूनियाणा गांव के रहने वाले सीताराम के मातापिता पढ़लिख नहीं सके थे. वे मेहनतमजदूरी करते थे. पिता टोडाराम व मां प्रेम ने अपने एकलौते बेटे सीताराम को अपना पेट काट कर पढ़ाया लिखाया. सीताराम ने सीनियर सेकैंडरी तक की पढ़ाई सीकर में दांतारामगढ़ से की. 12वीं में वह क्लास टौपर रहा. कालेज की पढ़ाई रेनवाल से की. मातापिता की ख्वाहिश थी कि सीताराम शिक्षक बन जाए. सीताराम ने बीएड करने के साथ शिक्षक बनने की तैयारी शुरू भी की थी, लेकिन तभी उस का कांस्टेबल भर्ती में चयन हो गया.

उस ने साल 2015 में नौकरी जौइन की. प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद उसे बैंक की चेस्ट ब्रांच में सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. डेढ़ साल पहले ही उस की शादी हुई थी. सीताराम के मातापिता और गांव के लोगों ही नहीं, आज राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल से ले कर पुलिस महानिदेशक तक सभी को उस पर गर्व है.

अपनों के खून से रंगे माला जपने वाले हाथ

सुबह के 7 बज रहे थे. सुबोध जायसवाल उस वक्त अपने घर के आंगन में कुरसी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे. आसपास का वातावरण काफी शांत था. जायसवाल चाय का अंतिम घूंट पी कर खाली कप रखने वाले ही थे कि उन्हें किसी महिला की चीख सुनाई दी. अचानक कान में पड़ी चीख की तेज आवाज आते ही उन के हाथ से चाय का प्याला गिर पड़ा.

उन्होंने आने वाली चीख की ओर गरदन घुमा कर देखा. किंतु उस बारे में कुछ भी अंदाजा नहीं लग पाया. वह अभी अनुमान ही लगा रहे थे कि उन्हें फिर से एक और चीख सुनाई दी. इस बार चीख की आवाजें पहले से महीन, मगर तेज थीं.

वह चीख किसी बच्ची की थी. इसी के साथ चिल्लाने की आवाजें भी आने लगी थीं. दूसरी चीख से जायसवाल को अंदाजा लग गया था कि चीखनेचिल्लाने की आवाजें उन के साथ वाले मकान से ही आ रही हैं.

उस मकान में महेश तिवारी अपनी मां बीतन देवी, पत्नी नीतू तथा 4 बेटियों अपर्णा (15), सुवर्णा (11), अन्नपूर्णा (9) एवं कृष्णा (16) के साथ रहते थे. तिवारी मानसिक तौर पर अस्वस्थ चल रहे थे. उन का अधिकतर समय पूजापाठ में ही बीतता था.

वह अपने पड़ोसियों से अधिक मेलजोल नहीं रखते थे. उन के मकान की दीवारें चारों ओर से काफी ऊंची थीं. सुबोध जायसवाल अभी उन के बारे में सोच ही रहे थे कि वहीं से दोबारा बच्ची के चीखने की आवाज सुनाई दी. फिर तो उन से रहा नहीं गया.

तेज कदमों से वह अपने घर की छत पर चले गए. महेश तिवारी के मकान की ओर गरदन उठा कर झांकते हुए देखने की कोशिश की. वहां से उन के घर का जो दृश्य दिखा, वह होश उड़ाने वाला था. उन्होंने देखा कि महेश तिवारी के कपड़ों पर खून लगा है और वह हाथ में एक खून से सना चाकू लिए अपने घर में टहल रहा था.

सुबोध जायसवाल किसी अप्रिय घटना की आशंका से सिहर उठे. कहीं महेश ने अपने परिवार वालों के साथ कोई हिंसक वारदात न कर डाली हो. उन्होंने तुरंत इस बात की सूचना मोबाइल से पुलिस को दे दी और पड़ोसियों को आवाज दे कर अपने पास बुला लिया.

यह घटना उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के थाना रानीपोखरी के मोहल्ला नागाघेर की थी. बेहद चौंकाने वाली घटना 29 अगस्त, 2022 को घटित हुई थी.

रानीपोखरी थाने के एसएचओ शिशुपाल राणा इस की सूचना पाते ही थानेदार रघुवीर, कांस्टेबल वीर सिंह, सचिन मलिक के साथ मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महेश तिवारी के घर जा पहुंचे. मकान अंदर से बंद था और उस के चारों ओर पड़ोसियों व अन्य लोगों की काफी भीड़ जुटी हुई थी.

पहले तो राणा ने इस घटना की बाबत सुबोध जायसवाल और अन्य पड़ोसियों से पूछताछ की. उस के बाद तिवारी के मकान का दरवाजा खटखटाया. काफी समय तक दरवाजा नहीं खुलने पर सिपाही वीर सिंह दीवार फांद कर घर में कूद गया और मेन गेट का दरवाजा खोल दिया.

फिर धड़धड़ाती पुलिस महेश के मकान में जा घुसी. अंदर का दृश्य दिल को झकझोर देने वाला था. टीशर्ट और सफेद धोती पहने करीब 55 साल की उम्र का एक आदमी हाथ में खून सना चाकू लिए निडरता से घूम रहा था. पुलिस के साथ मकान में घुस आए कुछ पड़ोसियों ने बताया कि वह आदमी महेश तिवारी है.

मकान में फर्श पर खून से लथपथ 5 लाशें पड़ी थीं. उन में 2 औरतों की लाशें थीं, जबकि 3 लड़कियों की थीं. पड़ोसियों की मदद से पुलिस ने लाशों की पहचान तिवारी की मां, पत्नी और 3 बेटियों के रूप में की. निर्भीकता से खड़े तिवारी को भी तुरंत हिरासत में ले लिया गया.

मकान में एक साथ इतनी संख्या में लाशें देख कर क्या पुलिसकर्मी और क्या सुबोध जायसवाल समेत दूसरे पड़ोसी, सभी हैरान हो गए. यह पूरी तरह से एक सामूहिक हत्याकांड का मामला था.

राणा ने तुरंत यह सूचना एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर, एसपी (देहात) कमलेश उपाध्याय और सीओ अनिल शर्मा को दे दी.

थोड़ी ही देर बाद रानीपोखरी थाना अंतर्गत इस सामूहिक हत्याकांड की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम के वायरलैस पर प्रसारित होने लगी थी. घटनास्थल पर पुलिस छानबीन कर आवश्यक तथ्य जुटाने लगी थी.

महेश के घर की किचन में अधजली रोटियां पड़ी हुई थीं. पास में ही टिफिन बौक्स नीचे गिरे हुए थे. संभवत: वे उन की बेटियों के थे, जो स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थीं. महेश की मां की लाश के पास कुछ तह किए गए कपड़े रखे थे.

वारदात की नजाकत को समझते हुए एसएचओ शिशुपाल राणा ने महेश तिवारी को हिरासत में ले लिया था. शुरुआती पूछताछ में महेश ने जो कुछ बताया था, वह उस के द्वारा बदहवासी में दिया गया बयान ही था.

फिर भी उस से मिली जानकारी के अनुसार, राणा ने अनुमान लगाया कि सुबह करीब 6 बजे महेश की पत्नी नीतू बेटियां के लिए नाश्ते की तैयारी कर रही होंगी और बेटियां स्कूल जाने की तैयारी में होंगी. रसोई में लगा गैस सिलिंडर खत्म हो गया होगा और पूजाघर में पूजा कर रहे महेश को जब नीतू ने दूसरा गैस सिलिंडर लगाने को कहा होगा तो महेश भड़क उठा होगा.

इस बारे में महेश ने ही बताया कि जब वह पूजा पर बैठा हुआ था, तब वहां से उठ कर सिलिंडर बदलना संभव नहीं था. ऐसा करता, तब उस की पूजा में बाधा पहुंचती. इस कारण वह पत्नी पर नाराज हो गया था. जबकि उस की नाराजगी का जवाब पत्नी ने ताने से दिया था.

नीतू ने पति महेश को बड़ा पुजारी होने का ताना मारते हुए कहा कि इतना ध्यान तुम अगर अपने कामकाज पर देते तो घर में 4 पैसे भी आते. यह कहते हुए पत्नी ने उसे दिखावे का पुजारी भी कह डाला था. जैसे ही बकबक करती पत्नी ने कामचोर कहा, तब महेश और भी भड़क उठा था.

उस के बाद जो हुआ पत्नी को जरा भी अंदेशा नहीं था. महेश ने आंखें लाल करते हुए पुलिस को बताया था कि वह बौखलाया हुआ पूजा के आसन से उठा और तेजी से रसोई में जा घुसा. वहीं पड़े सब्जी की टोकरी से चाकू उठा लिया. संयोग से वह एक बड़ा और तेज धार वाला चाकू था. उस ने आव देखा न ताव, तुरंत नीतू की गरदन पर चला दिया. एक हाथ से उस के बाल खींचे और दूसरे हाथ से गला रेत डाला.

रसोई से शोरगुल सुन कर दूसरे कमरों से मां को बचाने बेटियां अपर्णा व अन्नपूर्णा रसोई में आ गईं. किंतु उस वक्त महेश पर तो हत्या का जुनून सवार था. तुरंत उस ने बेटियों पर भी चाकू से वार कर दिया. बेटियां बुरी तरह से जख्मी हो गईं. महेश ने उन का भी गला रेत डाला और कई वार शरीर पर भी किए.

अंत में उस ने अपनी मां बीतन देवी और विकलांग बेटी सुवर्णा का भी गला रेत डाला. सभी की चीखें बंद मकान के कमरे से होती हुई आसपास फैल गईं. सुबहसुबह की इस घटना के बारे में जब तक कोई कुछ समझ पाता, तब तक घर में पांचों की मौत हो चुकी थी और महेश बदहवास चाकू लिए इधरउधर टहलने लगा था.

एसएचओ शिशुपाल राणा घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे तभी एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर, एसपी (देहात) कमलेश उपाध्याय और सीओ अनिल शर्मा आ गए थे.

सभी अधिकारियों ने वहां पहुंच कर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने भी वारदात के बारे में महेश तिवारी से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने आवश्यक फोटोग्राफ लिए और खून के नमूने समेत चाकू और दूसरे अहम सामान को जांच के लिए इकट्ठा कर लिया.

तब तक मीडिया भी पहुंच चुकी थी और महेश तिवारी के कुछ रिश्तेदार भी आ गए थे. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने मौके की फोटोग्राफी की और वहां पर पड़े खून के नमूने एकत्र कर लिए. सभी लाशों का पंचनामा तैयार कर लिया गया और आगे की काररवाई करते हुए उन्हें पोस्टमार्टम के लिए देहरादून के कोरोनेशन अस्पताल में भेज दिया गया.

अधिकारियों से मिले निर्देशानुसार एसएचओ शिशुपाल राणा ने सामूहिक हत्याकांड का मुकदमा एसआई रघुवीर कप्रवाण की ओर से महेश तिवारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया.

इस के बाद एसएचओ राणा को महेश की बड़ी बेटी कृष्णा के बारे में जानकारी मिली. कृष्णा उस वक्त अपनी बुआ के पास ऋषिकेश में थी. वहीं रह कर ओंकारानंद सरस्वती निलयम स्कूल में 10वीं की पढ़ाई कर रही थी.

इसी दौरान पुलिस ने महेश के अमेरिका में रह रहे भाई नरेश तथा स्पेन में रह रहे भाई उमेश को भी फोन से इस हत्याकांड की जानकारी दे दी. महेश का बड़ा भाई रमेश अपने पुश्तैनी गांव अतहरा, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश में रहता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मरने वालों की गरदन पर कई वार किए गए थे, जिस से  उन की सांस व भोजन की नलियां कट गई थीं. हालांकि शरीर के अन्य हिस्सों पर चाकू के जख्म के निशान पाए गए थे. सिर्फ विकलांग अन्नपूर्णा के पेट पर चाकू से वार किए गए थे.

पूछताछ में महेश ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि जब वह पत्नी पर चाकू से वार कर रहा था, तब उस की 2 बेटियां अन्नपूर्णा और अपर्णा ने बचाने की भी कोशिश की थी. मगर वह उन्हें परे धकेल कर पत्नी की मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गया था.

तिवारी परिवार के पांचों शवों का पोस्टमार्टम वारदात के दिन ही रात 7 बजे तक चला था. रात साढ़े 8 बजे तिवारी परिवार के कुछ नजदीकी रिश्तेदार और उन के भाई नरेश पोस्टमार्टम हाउस से लाशों को ले गए थे. उन का अगले दिन अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

दूसरी ओर एसएचओ शिशुपाल राणा ने आरोपी महेश को उस का मैडिकल कराने के बाद कोर्ट में पेश कर दिया था, जहां से उसे देहरादून जेल भेज दिया गया.

इस जघन्य हत्याकांड के बारे में तिवारी परिवार के पड़ोसियों ने पुलिस को बताया कि महेश तंत्रमंत्र के चक्कर में रहता था. वह मानसिक तौर पर बीमार किस्म का व्यक्ति था. वह हमेशा डरा हुआ रहता था. उसे हमेशा लगता था कि कोई उसे मार डालेगा.

इस कारण जराजरा सी बात पर आक्रामक हो जाता था. शरीर से ताकतवर होने के कारण लोग उस की उग्रता को देख पीछे हट जाते थे.

इस सामूहिक हत्याकांड के बारे में एसपी (देहात) कमलेश उपाध्याय ने बताया कि महेश तिवारी का यह खूनी खेल लगभग 20 मिनट तक चला था. क्षेत्र का हर इंसान हैरान था कि माला जपने वाले के हाथों ने कैसे यह कत्लेआम कर दिया?

एसएचओ शिशुपाल राणा का कहना है कि हत्यारा महेश तिवारी मौके से कपड़े बदल कर भागने की फिराक में था, यदि वह मौके से पकड़ा नहीं जाता, तब उसे तलाशना मुश्किल हो जाता.

महेश तिवारी की बेटियां अपर्णा व अन्नपूर्णा काफी हंसमुख स्वभाव की थीं. दोनों पढ़ने में भी काफी होशियार थीं. महेश तिवारी के मकान में 10 साल पहले

कुछ समय योग की कक्षाएं भी चलती थीं, जिस में कुछ विदेशी भी योग सीखने आते थे.

महेश तिवारी की 2 बहनें श्याम भवानी व राम भवानी विवाहित हैं. महेश के परिवार का खर्च उस के विदेशों में रहने वाले दोनों भाई उठाते थे. रानीपोखरी स्थित यह मकान भी भाइयों द्वारा ही बनवाया गया था.

कथा लिखे जाने तक हत्यारोपी महेश तिवारी देहरादून जेल में बंद था. इस सामूहिक हत्याकांड की विवेचना एसएचओ शिशुपाल राणा द्वारा की जा रही थी.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मासूम किशोरी के साथ वहशीपन का नंगा नाच

घरों में अकेले रहना अब मासूमों के लिए ज्यादा मुफीद नहीं रहा है. चोरी के मकसद से आए चोरों ने मासूम किशोरी के साथ दर्दनाक और दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दिया और फरार हो गए.

यह घटना दिल्ली के पीरागढ़ी इलाके में 4 अगस्त, 2020 को घटी. मांबाप तो हर रोज की तरह सुबह ही काम पर चले गए थे, वहीं बड़ी बहन भी दोपहर में काम पर चली गई थी. अनुमान है कि शाम के तकरीबन 4 बजे 12-13 साल की किशोरी कमरे में अकेली थी, तभी चोर चोरी के मकसद से घर में घुसे.

अजनबी शख्स को कमरे में देख किशोरी ने शोर मचाया, पर उस की चीख कमरे में ही दब गई. चुप कराने की कोशिश में चोरों ने उस के साथ दरिंदगी की. विरोध करने पर कैंची से उस के सिर और शरीर को बुरी तरह गोद डाला.

घायल होने के बाद भी किशोरी बड़ी बहादुरी से इन चोरों से काफी देर तक जूझती रही. खून से नहाई मासूम को आखिर मरा समझ कर आरोपी फरार हो गए.

काफी देर तक वह बच्ची कमरे में बेसुध रही, उस के बाद जैसेतैसे कमरे से घिसटते हुए वह बाहर आई और पड़ोसी के दरवाजे को खटखटा कर इशारे से खुद की हालत बयां करते हुए फिर बेहोश हो गई. उस के निजी अंगों से लगातार खून बह रहा था.

किशोरी की ऐसी बुरी हालत देख पड़ोसी भी सहम गए. तुरंत ही इस की सूचना पुलिस को दी गई. साथ ही, उस के मातापिता को भी इस हादसे के बारे में बताया गया.

सूचना मिलने पर पश्चिम विहार वेस्ट थाने की पुलिस आई और बच्ची को संजय गांधी अस्पताल में भरती कराया. उस के सिर और हिप्स में किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. डाक्टरों ने फौरन ही बच्ची के सिर व कटे हुए हिस्सों में टांके लगाए और हाथोंहाथ एम्स रेफर कर दिया.

किशोरी ने जो बयान दिया, उस के आधार पर इस वारदात में 2 लड़के शामिल हैं. पुलिस के मुताबिक, 13 साल की किशोरी अपने परिवार के साथ पीरागढ़ी में किराए के मकान में रहती है. परिवार मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. जिस कमरे में परिवार रहता है, वह बिल्डिंग तीनमंजिला है. इस बिल्डिंग में छोटेछोटे तकरीबन 2 दर्जन कमरे बने हुए हैं. ज्यादातर आसपास की फैक्टरियों में लेबर का काम करते हैं. बच्ची के परिवार में मातापिता और एक बड़ी बहन है. वे सभी एक फैक्टरी में लेबर का काम करते हैं.

तकरीबन साढ़े 5 बजे फोन के जरीए पुलिस को सूचना मिली थी. आशंका है कि बच्ची के साथ 4 बजे के आसपास वारदात हुई.

शुरुआती जांच में उस मासूम किशोरी के साथ सैक्सुअल एसौल्ट की पुष्टि हुई.

पुलिस ने हत्या की कोशिश और पोक्सो एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश में संभावित ठिकानों पर छापेमारी की. तकरीबन 36 घंटे बाद यानी 3 दिन बाद एक आरोपी को पकड़ने का पुलिस ने दावा किया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी ड्रग एडिक्ट है. उस पर पहले से ही चोरी के अलावा दूसरे आपराधिक मामले दर्ज हैं. इस के कारण वह जेल भी जा चुका है.

हाल ही में आरोपी जेल से बाहर आया था. जेल से छूटने के बाद पास के पार्क में ही आरोपी ठहरता था. पुलिस को आरोपी के बारे में सीसीटीवी कैमरे से सुराग हाथ लगा.

घटना को अंजाम दे कर आरोपी फरार होने के बाद आसपास की जगहों पर छिप रहा था. केस की पड़ताल में पुलिस ने क्रिमिनल अपराधियों की हिस्ट्रीशीट खंगाली. इस के अलावा जमानत पर छूट कर आए चोरउचक्कों की लोकेशन का पता किया. सीसीटीवी, पड़ोसियों और 100 से अधिक संदिग्धों से पूछताछ के बाद जांच की सूई इस आरोपी पर आ कर टिकी.

पुलिस के मुताबिक, वारदात के समय आरोपी नशे में था और चोरी के इरादे से कमरे में घुसा था. कमरे में अकेली बच्ची ने जब उसे टोका और शोर मचाने की कोशिश की तो  उस ने दबोच लिया.

आरोपी ने नशे में बेरहमी से लड़की पर कैंची से ताबड़तोड़ वार किए और उसे मरा हुआ समझ कर फरार हो गया.

पुलिस ने जब आरोपी को पकड़ा, तब उस के शरीर पर खरोंच के निशान पाए गए थे. इस से खुलासा यह हुआ कि बहादुर किशोरी ने जम कर मुकाबला किया.

वहीं दूसरी ओर जांच में जुटी टीम का मानना है कि मासूम बेसुध होने तक आरोपियों से मुकाबला करती रही. कमरे में बिखरा खून और पास ही पड़ी कैंची इस ओर इशारा कर रहे थे.

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. माता, पिता और बड़ी बहन हर रोज की तरह काम पर चले जाते थे. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

मासूम किशोरी का एम्स में इलाज चल रहा है और वह जिंदगी और मौत से जूझ रही है. पर, उस ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म का डट कर विरोध किया और उन से जम कर जूझी भी. वहीं जेल से छूट कर आए अपराधियों पर पुलिस का नकेल न कस पाना ऐसे अपराधों को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है.

लगता है, समाज में ओछी यानी गिरती हुई सोच और बदली मानसिकता पर लगाम लगा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है, तभी तो इनसानियत यों शर्मसार हो रही है. यही वजह है कि आएदिन मासूम बच्चियों व किशोरियों पर हमले की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

कुंवारे थे, कुंवारे ही रह गए – भाग 3

शादी कब और कहां होगी, यह वह बाद में बता देगी. उस ने यह भी कहा कि शादी से कुछ दिनों पहले दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के पास स्थित आश्रम में पहले लड़कियां दिखाई जाएंगी, उन में वे जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी से उन की शादी कराई जाएगी. जिन के लड़कों की शादी नहीं हुई थी, उन्हें यह सौदा बुरा नहीं लगा.

वे चंदा देने के लिए तैयार हो गए. इस के बाद अनीता तो चली गई, सुशीला और मोनू शादी कराने वाले लड़कों के घर वालों से चंदा वसूल करने लगे.

कुछ जगह चंदा लेने के लिए सुशीला और मोनू के साथ अनीता भी गई थी. इन में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो किसी तरह गुजरबसर कर रहे थे. ऐसे लोगों ने बेटे की शादी के लिए कर्जा ले कर सुशीला को पैसे दिए.

रोहतक के राजबीर और मोहन के गांव बोहर में सुशीला की रिश्तेदारी थी. सुशीला ने उन के गांव जा कर ऐसे लोगों के बारे में पता किया, जो शादी करना चाहते थे. गांव में रिश्तेदारी होने की वजह से सुशीला पर विश्वास कर के मोहन ने 45 हजार तो राजबीर ने 50 हजार रुपए उसे दे दिए. इसी तरह खरखौदा के संदीप ने शादी के लिए सुशीला को 45 हजार रुपए दिए थे. उस के पास पैसे नहीं थे तो घर वालों ने उधार ले कर उसे 45 हजार रुपए दिए थे.

खरखौदा के ही सुरेश, अंशरूप, पवन, राजेंद्र, मुनेश, जौनी, राकेश और साबू, सोनीपत के अमित, रोहतक के गांव हुमायूंपुर के संतोष और लक्ष्मी, निलौठी के असीक और रामवीर, मोहाना के राजू, बोहर के सत्यनारायण, कृष्ण, मोहन, राजवीर और कुलदीप, रोहतक के गांव निडाना के रमेश, अनिल, धनाना के शिवकुमार, जींद के अमरजीत, संजीव, झज्जर के बहराना गांव के जगवीर सहित कई लोगों ने शादी के लिए सुशीला को पैसे दिए.

ठगी के शिकार सब से ज्यादा खरखौदा के ही हुए हैं. इन की संख्या 25 से भी ज्यादा है. खरखौदा का रहने वाला सुरेश कुमार खेती करता था. उस का दूध का भी धंधा था. घर में बुजुर्ग विधवा मां थी.

आखिर बूढी मां पर वह कब तक बोझ बना रहता. सुशीला ने उस की मां से कहा कि वह सुरेश की शादी अनाथाश्रम की लड़की से करा देगी. इस के लिए 45 हजार रुपए दान देने पड़ेंगे. घर में 10 हजार रुपए ही थे. बाकी के 35 हजार रुपए उस ने ब्याज पर ले कर दिए.

खरखौदा का संदीप सब्जीमंडी में सब्जी बेचता था. बूढ़ी मां की इच्छा थी कि संदीप की शादी हो जाए. कई लोगों ने सुशीला को अनाथाश्रम की लड़की से शादी कराने के लिए पैसे दिए थे, इसलिए संदीप की मां भी उस के झांसे में आ गई. कुछ पैसे घर में थे और कुछ पैसे उधार ले कर सुशीला को दे दिए थे.

इसी तरह खरखौदा के वार्ड नंबर 3 निवासी स्कूटर रिपेयरिंग का काम करने वाले जौनी की दादी ने उस की दुलहन के लिए दान के रूप में पैसे दिए थे. दादी ने सोचा था कि पोते की बहू आ जाएगी तो दो जून की रोटी मिलने लगेगी.

सुशीला और अनीता ने सभी से 27 दिसंबर को शादी कराने के लिए कहा था. कुछ लोगों से यह भी कहा था कि शादी से 10-11 दिन पहले उन्हें दिल्ली में लड़कियां दिखा दी जाएंगी. उन में से शादी के लिए लड़की पसंद कर लेना.

कुंवारों को टालती रही अनीता

लड़की दिखाने के लिए मोहाना गांव के रोहताश ने 16 दिसंबर को अनीता को फोन किया तो उस ने कहा कि अनाथाश्रम की लड़कियों की शादी में मदद करने के लिए कुछ विदेशी आने वाले थे, लेकिन बर्फबारी होने की वजह से वे नहीं आए. इसलिए अब लड़की दिखाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है. अब 27 दिसंबर को सीधे सामूहिक विवाह ही होगा.

जिन लोगों ने अनीता और सुशीला को लड़की दिखाने के लिए फोन किया था, सभी से यही कह दिया गया. लड़कों ने सोचा कि लड़की नहीं दिखाई जा रही, कोई बात नहीं शादी तो हो जाएगी.

इस के बाद सभी को फोन कर के बता दिया गया कि 27 दिसंबर को दिल्ली में शादी होगी. इस के लिए दिल्ली से खरखौदा बस आएगी. उस बस से सभी लोग दिल्ली पहुंच जाना, जहां तीसहजारी कोर्ट के पास स्थित एक अनाथाश्रम में सभी की शादी होगी. 27 दिसंबर को जो हुआ, वह बताया ही जा चुका है.

यह सारी योजना अनीता की थी. सुशीला और मोनू एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. शादी के नाम पर चंदे के रूप में वसूली गई रकम अनीता लेती थी. उस में से कुछ पैसे सुशीला और मोनू को मिलते थे.

पुलिस ने हिसाब लगाया तो इन लोगों ने शादी के नाम पर 40 से ज्यादा लड़कों से 25 से 30 लाख रुपए वसूले थे. पुलिस यह भी पता कर रही है कि इन लोगों के साथ और लोग तो नहीं थे. थानाप्रभारी वजीर सिंह ने ठगे गए युवकों को आश्वासन दिया है कि उन लोगों से पैसे वसूल कर उन के पैसे वापस कराने की कोशिश की जाएगी.

society

दरअसल, सोनीपत के खरखौदा में लड़कों के हिसाब से लड़कियां बहुत कम हैं. इसी वजह से यहां सभी लड़कों की शादियां नहीं हो रही हैं.

मजे की बात यह है कि चुनाव के दौरान जींद जिले में कुंवारा संगठन बना था. उन्होंने शादी की उम्र पार करने वाले लड़कों की शादियां कराने की मांग उठाई थी. तब एक नेता ने बिहार से लड़कियां ला कर उन की शादी करवाने का आश्वासन दिया था.

दुलहन के नाम पर अनोखी ठगी

उत्तराखंड के बनबसा में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) की प्रभारी एसआई मंजू पांडेय को एक दिन एक व्यक्ति ने खास सूचना दी. उस ने बताया कि ऊधमसिंह नगर के खटीमा इलाके में कुछ लोग विवाह की चाह रखने वाले युवकों की शादी कराने के लिए लड़कियां उपलब्ध कराते हैं.

इस के एवज में वह उन से मोटी रकम वसूलते हैं. बाद में लड़कियां मौका मिलने के बाद वहां से लौट जाती हैं या फिर ठग गिरोह द्वारा अन्यत्र भेज दी जाती हैं.

एसआई मंजू पांडे ने यह जानकारी सीओ (टनकपुर) आर.एस. रौतेला को दी. सीओ आर.एस. रौतेला ने मंजू पांडेय के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में हैडकांस्टेबल लक्ष्मणचंद, रवि जोशी, कांस्टेबल गणेश सिंह के अलावा स्थानीय लोग और एनजीओ के लोग शामिल थे.

साथ ही उन्होंने योजना बना कर उन्हें अपने हस्ताक्षरयुक्त कुछ नोट व चैक दे दिए. इस के बाद एसआई मंजू पांडेय ने ठग गिरोह से किसी लड़के की शादी कराने के बारे में बात की.

निश्चित तारीख को चकरपुर मंदिर परिसर में शादी कराने की तैयारियों का नाटक करते हुए सीओ के हस्ताक्षर वाले चैक और नोट ठग गैंग के सदस्य को दे दिए. कुछ देर बाद खटीमा की ओर से 2 महिलाएं एक बाइक से वहां पहुंचीं. फिर एक महिला बस में सवार हो कर आई.

वह टनकपुर से आई थी. उन के पहुंचते ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. उसी दौरान एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की दूसरी टीम वहां पहुंच गई. टीम ने पुरुष और तीनों महिलाओं को हिरासत में ले कर उन के पास से हस्ताक्षरयुक्त चैक और नोट अपने कब्जे में ले लिए.

पूछताछ में पता चला कि गिरोह में कलक्टर फार्म खटीमा की रहने वाली रजवंत कौर अपने बेटे सतनाम के साथ ठगी का यह धंधा कर रही थी. अन्य 2 महिलाओं में थाना नानकमता के गांव दहला निवासी गुरमीत कौर और टनकपुर की विष्णुपुरी कालोनी निवासी आरती कपूर थी. इन सभी के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 120बी, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से इन चारों को जेल भेज दिया गया.

भिखारी बनाने वाला खतरनाक गैंग – भाग 3

बिहार राज्य के सीवान जिला अंतर्गत एक गांव है-गोरिया कोठी पिपरा. इसी गांव में मुसाफिर मांझी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे परवेश कुमार, रमेश कुमार तथा सुरेश कुमार थे.

मुसाफिर किसान था. उस के पास मात्र 3 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जमीन की उपज से ही वह परिवार का भरणपोषण करता था. उस का बड़ा बेटा परवेश कृषि कार्य में उस का हाथ बंटाता था.

परवेश से छोटा रमेश था. वह तेज दिमाग का था. उस का मन किसानी में नहीं लगता था. मामूली पढ़ाई के बाद वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर आ गया था. यहां वह कई महीने तक भटकता रहा, उस के बाद उसे यशोदा नगर की एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई.

नौकरी लग गई तो उस की शादी भी जल्दी हो गई. कुछ समय बाद वह अपनी पत्नी छठी देवी को भी कानपुर शहर ले आया और नौबस्ता थाना क्षेत्र के एस ब्लौक नाला रोड पर रहने लगा.

छोटे बेटे सुरेश का मन जब पढ़ाई से उचट गया तो मुसाफिर ने उसे किसानी के काम में लगा लिया. कुछ समय बाद सुरेश सीवान चला गया. वहां वह एक दुकान पर काम करने लगा और अच्छा पैसा कमाने लगा.

सुरेश जब कमाने लगा तो मुसाफिर ने उस का विवाह सीवान निवासी गोपी की बेटी गुलाबो के साथ कर दिया. शादी का सारा खर्चा मुसाफिर व उस के बेटे रमेश ने उठाया था.

शादी के एक साल बाद गुलाबो ने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन महीने भर बाद ही उस की मौत हो गई. बेटी की मौत का सदमा सुरेश को इस कदर लगा कि वह गम भुलाने के लिए शराब पीने लगा. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया.

पति का शराब पीना गुलाबो को बेहद खलता था, क्योंकि वह सारा पैसा शराब पीने में ही खर्च कर देता था. अपनी कमाई का एक भी पैसा न घर वालों को देता था और न ही पत्नी गुलाबो को.

शराब पीने को ले कर अब पतिपत्नी के बीच तल्खियां बढ़ने लगी थीं. दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट भी होने लगी थी. पिता व भाइयों के समझाने के बावजूद वह मनमानी करता था.

पति की शराबखोरी और प्रताड़ना से जब गुलाबो आजिज आ गई तो वह उसे छोड़ कर मायके सीवान आ गई. कुछ माह बाद सुरेश पत्नी को लेने आया. लेकिन गुलाबो ने उस के साथ जाने से साफ इंकार कर दिया.

कालांतर में गुलाबो के प्रेम संबंध एक रिश्तेदार युवक से हो गए, बाद में उस ने उसी युवक से शादी कर ली और सुखमय जीवन व्यतीत करने लगी.

पत्नी ने साथ छोड़ा, तो सुरेश का मन गांव में नहीं लगा. वह गांव छोड़ कर अपने भाई रमेश के पास कानपुर शहर आ गया.

अपनी कमाई का आधा पैसा वह भाई के हाथ पर रखने लगा. शराब की लत अब भी उस की नहीं छूटी थी. इस को ले कर उसे भाई की फटकार भी सुननी पड़ती थी.

सुरेश मांझी मजदूर था. काम की तलाश में वह हर रोज सुबह 8 बजे किदवई नगर लेबर मंडी आ जाता था. काम मिल जाता तो ठीक वरना घर वापस लौट आता था.

अप्रैल, 2022 की बात है. एक रोज सुरेश मांझी काम की तलाश में लेबर मंडी में बैठा था. तभी एक आदमी उस के पास आ कर बैठ गया और बातचीत करने लगा. बातों में उलझा कर उस ने सुरेश को दिल्ली में नौकरी दिलवाने और अच्छा पैसा कमाने का लालच दिया. सुरेश उस के लालच में फंस गया.

दरअसल, सुरेश को अपने जाल में फंसाने वाला कोई और नहीं, भीख मंगवाने वाले गिरोह का सक्रिय सदस्य विजय नट था. वह मछरिया के गुलाबी बिल्डिंग के पास रहता था.

विजय नट कानपुर की लेबर मंडियों में सक्रिय रहता था. वहां वह 18 से 25 साल के युवकों को फंसाता था. फिर हाथपैर से अपंग बना कर भीख मंगवाने वाले गिरोह को बेच देता था. उस के गिरोह में उस की बहन तारा तथा बहनोई राजेश भी था.

विजय का एक रिश्तेदार राज नागर था. वह अपनी मां आशा के साथ किदवई नगर नटवन टोला में रहता था. लेकिन पिछले 3 साल से वह नांगलोई (दिल्ली) की कच्ची बस्ती में रहने लगा था. उस का कानपुर भी आनाजाना लगा रहता था.

राज नागर भी भीख मंगवाने वाले गिरोह का सदस्य था. वह विजय नट से युवकों को खरीदता था, फिर ऊंचे दाम पर दिल्ली के भीख मंगवाने वाले गिरोह को बेच देता था. कानपुर तथा उस के आसपास के क्षेत्र के कई युवकों को वह इस गिरोह को बेच चुका था.

सुरेश मांझी को अपने जाल में फंसाने के बाद विजय नट उसे अपने घर ले आया. यहां उस ने सुरेश को 2 दिन रखा और मीट मुरगे के साथ शराब पिलाई.

उस के बाद विजय सुरेश को अपने बहनबहनोई के डेरे पर झकरकटी ले आया. यहां आने के कुछ दिन बाद ही उस का उत्पीड़न शुरू हो गया. विजय की बहन तारा व बहनोई राजेश ने जुल्म की सारी हदें पार कर दीं.

सुरेश को भिखारी बनाने के लिए उन दोनों ने उस के हाथपैर के पंजे तोड़ दिए तथा उस की आंखों में कैमिकल डाल कर उसे अंधा बना दिया. यही नहीं, उन्होंने उस के शरीर को लोहे की गरम रौड से जगहजगह दागा तथा चेहरे पर उस की दाढ़ के पास कट लगा कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. इस के बाद वे दोनों सुरेश से भीख मंगवाने लगे.

लगभग 2 माह बाद विजय नट ने राज नागर व उस की मां आशा के हाथ सुरेश को 25 हजार रुपए में बेच दिया. राज नागर व आशा, सुरेश को गोरखधाम एक्सप्रेस से दिल्ली लाए और नांगलोई की कच्ची बस्ती में रखा.

इस के बाद वह सुरेश से भीख मंगवाने लगा. वह सुरेश को व्यस्ततम चौराहे पर छोड़ देता और उस पर निगरानी रखता. शाम तक जो पैसे मिलते, वह सब अपने पास रख लेता था.

राज नागर का संबंध भीख मंगवाने वाले दूसरे गिरोह से भी था. कुछ समय बाद उस ने सुरेश को दूसरे गिरोह को 70 हजार रुपए में बेच दिया.

अब दूसरा गिरोह सुरेश से भीख मंगवाने लगा. इस गिरोह ने फुटपाथ पर डेरे पर रहने की उस की व्यवस्था कर दी थी. इस डेरे में कई और लोग थे, जो भीख मांगते थे. गिरोह के सदस्य डेरे पर हर समय नजर रखते थे. सुरेश को ये लोग नांगलोई के व्यस्त चौराहे पर छोड़ देते.

रेड लाइट होने पर वह भीख मांगता था. उस की दशा देख कर लोग उसे 5-10 रुपए के नोट भीख में देते. इस तरह शाम तक वह हजार-2 हजार रुपया भीख में पा जाता. इस रकम को गिरोह के सदस्य अपने कब्जे में कर लेते थे.

डेरे पर सुरेश का उत्पीड़न भी किया जाता. उसे कम खाना दिया जाता तथा नशे का इंजेक्शन लगाया जाता. इस वजह से सुरेश कमजोर हो गया और वह बीमार पड़ गया. उस के शरीर के घावों में संक्रमण फैल गया और शरीर से बदबू भी आने लगी.

सुरेश भीख मांगने से लाचार हुआ तो गिरोह के सरगना की चिंता बढ़ गई. उस ने सुरेश को डाक्टर को दिखाया तो उस ने 40-45 हजार रुपए इलाज का खर्च बताया.

इस के बाद सरगना ने राज नागर को सारी बात बताई और सुरेश का इलाज किसी सरकारी अस्पताल में कराने की सलाह दी. साथ ही सुरेश के बदले किसी दूसरे युवक को देने का दबाव बनाया.

राज नागर ने तब विजय से बात की और जल्द ही किसी अन्य युवक को सौंपने की बात कही. विजय ने उसे आश्वासन दिया कि जल्दी ही उस का काम हो जाएगा.

इधर सुरेश की हालत बिगड़ी तो राज नागर और आशा उसे दिल्ली से कानपुर लाए और 30 अक्तूबर, 2022 की सुबह 4 बजे किदवई नगर चौराहा स्थित एक दुकान के बाहर छोड़ कर भाग गए.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 9 नवंबर, 2022 को आरोपी राज नागर व आशा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

विजय नट ने अदालत में 5 दिसंबर, 2022 को आत्मसमर्पण कर दिया था जबकि तारा व राजेश फरार थे. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी.

रमेश अपने भाई के इलाज से संतुष्ट नहीं था. उस का आरोप था कि उसे हैलट, उर्सला और कांशीराम अस्पताल के चक्कर लगवाए जा रहे थे. उस ने अपनी पीड़ा पार्षद प्रशांत शुक्ला को बताई तो वह मदद को आगे आए.

उन्होंने दिल्ली निवासी एक पत्रकार मित्र से बात की तो उन्होंने सुरेश मांझी के इलाज की व्यवस्था आई केयर चैरिटेबल अस्पताल, दरियागंज में करा दी. कथा लिखने तक सुरेश का इलाज इसी अस्पताल में हो रहा था. डाक्टरों ने बताया कि उस की एक आंख की रोशनी वापस आ सकती है.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित