इंटरनेट बना गुस्सा निकालने का साधन

आजकल इंटरनैट आम आदमियों का अपना गुस्सा निकालने का सहज साधन बन गया है. दिल्ली, मुंबई एयरपोर्टों पर अब बहुत अधिक भीड़ होने लगी है और लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह वादा खूब याद आ रहा है कि वे देश के रेलवे स्टेशनों को एयरपोर्टों जैसा शानदार बना देंगे. लोग कह रहे हैं कि एयरपोर्टों और स्टेशनों में बराबर की भीड़, पार्क के निर्माण, बाहर गाडि़यों की अफरातफरी, धक्कामुक्की बराबर है.

स्टेशन तो एयरपोर्ट नहीं बन सके, पर एयरपोर्ट भारतीय स्टेशन जरूर बन गए हैं.नरेंद्र मोदी सरकार को बधाई.आम हवाई चप्पल पहनने वाला हवाईर् यात्रा तो आज भी नहीं कर रहा पर हवाई चप्पल ही ऐसी महंगी और फैशनेबल हो गई है कि गोवा, चेन्नई, बैंगलुरु में कितने ही रबड़ की ब्रांडेड चप्पलें पहने भी दिख जाएंगे. वह वादा भी उन्होंने पूरा कर दिया.सुविधा के नाम पर कुछ स्टेशन ठीकठाक हुए हैं,

‘वंदे भारत’ नाम की कुछ ट्रेनें चली हैं पर आज अब किराए इतने बढ़ा दिए गए हैं कि एक  बार ट्रेन में जा कर 4 दिन खराब करना और 4 दिन की मजूरी खराब करने से हवाई यात्रा करना ज्यादा सस्ता है. रेलों के बढ़ते दाम, हवाई यात्रा के घटते दामों ने यह वादा भी पूरा कर लिया.

वैसे भी देश की जनता हमेशा वादों को सच होता ऐसे ही मानती रही है जैसे वह मूर्ति के आगे मन्नत को पूरी होना मानती रही है. 4 में से एक काम तो हरेक का अपनी मरजी का अपनेआप हो ही जाता है. बीमार ठीक हो जाते हैं, देरसवेर छोटीमोटी नौकरी लग ही जाती है, लड़की को काला अधपढ़ा सा पति भी मिल जाता है, 10-20 साल बाद अपना मकान बन ही जाता है, 10 में से 2-3 के धंधे भी चल निकलते हैं और इन सब को मूर्ति की दया सम?ा कर सिर ?ाकाने वाले, अंटी खाली करने वालों, चुनावी वादों में से कुछ को भी सही होता देख कर वोट डाल ही आते हैं.

जहां तक हवाई यात्रा का सवाल है, यह देश के लिए जरूरी है, जैसे आज बिजली और उस से चलने वाली चीजें फ्रिज, कूलर, पंखा, बत्ती, एसी, टीवी, मोबाइल, लैटपटौप हरेक के लिए जरूरी है, वैसे ही हवाई यात्रा हरेक के लिए जरूरी हैं. पहले जो शान हवाई यात्रा में रहती थी, जब टिकट आज के रुपए की कीमत के हिसाब से महंगे थे, वह अब कहां.

उस के लिए अमीरों ने प्राइवेट जैट रखने शुरू कर दिए हैं. नरेंद्र मोदी भी या तो 8,000 करोड़ के प्राइवेट जैट में सफर करते हैं या 20-25 किलोमीटर की यात्रा हो तो हैलीकौप्टर में आतेजाते हैं. हवाई चप्पल पहनने वाली जनता इस शान की बात भूल जाए.हवाई यात्रा जरूरी इसलिए है कि देश बहुत बड़ा है और लोग गांवों से शहरों की ओर जा रहे हैं.

उन्हें जब भी गांव वापस जाना होता है तो उन के पास 7-8 दिन रेल के सफर के नहीं होते. वे यह काम हवाई यात्रा से घंटों में कर सकते हैं.दुनियाभर में हवाई यात्रा अब रेल यात्रा की तरह हो गई है. ट्रेनें और पानी के जहाज तो अब खास लोगों के लिए रह जाएंगे जिन में होटलों जैसी सुविधाएं होंगी. लोग चलते या तैरते होटलों का मजा लेंगे और हवाई यात्रा बस काम के लिए करेंगे.

शादियां अब हर तरह के लोगों के लिए एक जुआ बन गईर् हैं जिस में सबकुछ लुट जाए तो भी बड़ी बात नहीं. राजस्थान की एक औरत ने साल 2015 में कोर्ट मैरिज की पर शादी के बाद बीवी मर्द से मांग करने लगी कि वह अपनी जमीन उस के नाम कर दे वरना उसे अंजाम भुगतने पड़ेंगे. शादी के 8 दिन बाद ही वह लापता हो गई पर उस से मिलतीजुलती एक लाश दूर किसी शहर में मिली जिसे लावारिस सम?ा कर जला दिया.

औरत के लापता होने के 6 माह बाद औरत के पिता ने पुलिस में शिकायत की कि उस के मर्द ने उन की बेटी की एक और जने के साथ मिल कर हत्या कर दी है. दूर थाने की पुलिस ने पिता को जलाई गई लाश के कपड़े दिखाए तो पिता ने कहा कि ये उन की बेटी के हैं. मर्द और उस के एक साथी को जेल में ठूंस दिया गया.

7 साल तक मर्द जेलों में आताजाता रहा. कभी पैरोल मिलती, कभी जमानत होती.अब 7 साल बाद वह औरत किसी दूसरे शहर में मिली और पक्की शिनाख्त हुई तो औरत को पूरी साजिश रचने के जुर्म में पकड़ लिया गया है. आज जब सरकार हल्ला मचा रही है कि यूनिफौर्म सिविल कोड लाओ, क्योंकि आज इसलाम धर्म के कानून औरतों के खिलाफ हैं.

असलियत यह है कि हिंदू मर्दों और औरतों दोनों के लिए हिंदू कानून ही अब आफत बने हुए हैं. अब गांवगांव में मियांबीवी के ?ागड़े में बीवी पुलिस को बुला लेती है और बीवी के रिश्तेदार आंसू निकालते छातियां पीटते नजर आते हैं तो मर्दों को गिरफ्तार करना ही पड़ता है.शादी हिंदू औरतों के लिए ही नहीं, मर्दों के लिए भी आफत है. जो सीधी औरतें और गुनाह करना नहीं जानतीं वे मर्द के जुल्म सहने को मजबूर हैं पर मर्द को छोड़ नहीं सकतीं, क्योंकि हिंदुओं का तलाक कानून ऐसा है कि अगर दोनों में से एक भी चाहे तो बरसों तलाक न होगा. हिंदू कानूनों में छोड़ी गई औरतों को कुछ पैसा तो मिल सकता है पर उन को न समाज में इज्जत मिलती है, न दूसरी शादी आसानी से होती है.

चूंकि तलाक मुश्किल से मिलता है और चूंकि औरतें तलाक के समय मोटी रकम वसूल कर सकती हैं, कोई भी नया जना किसी भी कीमत पर तलाकशुदा से शादी करने को तैयार नहीं होता. सरकार को हिंदूमुसलिम करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोड की पड़ी है, जबकि जरूरत है ऐसे कानून की जिस में शादी एक सिविल सम?ौता हो, उस में क्रिमिनल पुलिस वाले न आएं.

जब औरतें शातिर हो सकती हैं, अपने प्रेमियों के साथ मिल कर पति की हत्या कर सकती हैं, नकली शादी कर के रुपयापैसा ले कर भाग सकती हैं, न निभाने पर पति की जान को आफत बना सकती हैं तो सम?ा जा सकता है कि देश का कानून खराब है और यूनिफौर्म सिविल कोड बने या न बने हिंदू विवाह कानून तो बदला जाना चाहिए जिस में किसी जोरजबरदस्ती की गुंजाइश न हो. यदि लोग अपनी बीवियों के फैलाए जालों में फंसते रहेंगे और औरतें मर्दों से मार खाती रहेंगी तो पक्का है कि समाज खुश नहीं रहेगा और यह लावा कहीं और फूटेगा.

चमत्कारी संदूक के लालच में 40 लाख गंवाए – भाग 1

अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

ब्लैक फंगस : क्या महुआ और उसके परिवार को मिल पाई मदद

महुआ मैक्स नोएडा हौस्पिटल के कौरिडोर में पागलों की तरह चक्कर लगा रही थी. तभी उस की बड़ी ननद अनिला आ कर बोली, ‘‘महुआ धीरज रखो, सबकुछ ठीक होगा. हम अमित को समय से अस्पताल ले आए हैं.’’

महुआ सुन रही थी पर कुछ समझ नहीं पा रही थी. महुआ और उस का छोटा सा परिवार पिछले 25 दिनों से एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गया था कि चाह कर भी वे उसे तोड़ कर बाहर नहीं निकल पा रहे थे. पहले कोरोना ने क्या उस पर कम कहर बरपाया था जो अमित को ब्लैक फंगस ने भी दबोच लिया?

महुआ बैठेबैठे उबासियां ले रही थी. पिछले 25 दिनों से शायद ही कोई ऐसी रात हो जब वह ठीक से सोई हो. तभी मोबाइल की घंटी बजी. युग का फोन था. महुआ को मालूम था युग जब तक बात नहीं करेगा, फोन करता ही रहेगा.

महुआ के  फोन उठाते ही युग बोला, ‘‘मम्मी, पापा कैसे हैं? गरिमा मामी कह रही हैं, वे जल्दी ही वापस आएंगे, फिर हम लोग सैलिब्रेट करेगे.’’

महुआ आंसुओं को पीते हुए बोली, ‘‘हां बेटा, जरूर करेंगे.’’

युग क्याक्या बोल रहा था महुआ को समझ नहीं आ रहा था. बस युग की आवाज से महुआ को इतना समझ आ गया था कि गरिमा उस के बेटे का बहुत अच्छे से ध्यान रख रही हैं. गरिमा उस के छोटे भाई अनिकेत की पत्नी हैं.

महुआ मन ही मन सोच रही थी कि ये वही गरिमा हैं जिसे परेशान करने में महुआ ने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी और आज मुसीबत के समय ये गरिमा ही हैं जो उस के बेटे युग को अपने पास रखने के लिए तैयार हो गई.’’

उस की खुद की छोटी बहन सौमि ने तो साफ मना कर दिया था, ‘‘दीदी, मेरे खुद के 2 छोटे बच्चे हैं और फिर आप लोग अभीअभी कोरोना से बाहर निकले हो. आप युग को घर पर ही छोड़ दीजिए. मैं उस की ढंग से मौनिटरिंग कर लूंगी.’’

महुआ को समझ नहीं आ रहा था कि वे 5 वर्ष के युग को कहां और किस के सहारे छोड़े.

तभी गरिमा के  फोन ने डूबते को तिनके का सहारा दिया.

इस कोविड ने अपनों के चेहरे बेनकाब कर दिए थे. जिस ननद से उस से हमेशा दूरी बना कर रखी थी, मुसीबत में वही अपनी परवाह करे बिना भागती हुई नागपुर से मेरठ आ गई थी.

तभी अनिला बोली, ‘‘महुआ तुम अनिकेत के घर चली जाओ, थोड़ा आराम कर लो.’’

‘‘तुम्हारे जीजाजी अंनत नागपुर से आ रहे हैं.’’

‘‘हम दोनों यहां देख लेंगे, तुम भी तो कोविड से उठी हो.’’

महुआ रोते हुए बोली, ‘‘और दीदी आप क्या थकी हुई नहीं हैं? आप न होतीं तो मैं क्या करती… मुझे समझ नहीं आ रहा हैं. मैं यहीं रहूंगी दीदी… मैं युग का सामना नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘आप और जीजाजी अनिकेत के घर चले जाओ, मैं रात में यहीं रुकना चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से यह तय हुआ कि अनिला और अनंत पहले अनिकेत के घर जाएंगे और फिर थोड़ा आराम कर के वापस हौस्पिटल आ जाएंगे.

तभी नर्स आई और महुआ से बोली, ‘‘मैडम इंजैक्शन का इंतजाम हो गया क्या?’’

महुआ बोली, ‘‘हम लोग कोशिश कर रहे हैं.’’

नर्स बोली,’’ जल्दी करना मैडम 85 इंजैक्शन लगेंगे और अभी बस 10 इंजैक्शन ही हैं हमारे पास.’’

महुआ कुछ न बोली बस शून्य में ताकने लगी. तभी वार्ड से अमित के दर्द से

बिलबिलाने की आवाज आने लगी तो महुआ दौड़ती हुए अंदर गई. अमित की हालत देख कर वह घबरा गई. रोनी सी आवाज में बोली, ‘‘बहुत दर्द हो रहा हैं क्या अमित?’’

अमित बोला, ‘‘मुझे मुक्ति दे दो महुआ… अब सहन नहीं होता.’’

डाक्टर बाहर निकल कर बोले, ‘‘देखिए इन इंजैक्शन में दर्द तो होगा ही पर और कोई और उपाय भी नहीं है.’’

महुआ बोली, ‘‘डाक्टर ठीक तो हो जाएंगे न?’’

डाक्टर बोला, ‘‘अगर समय से इंजैक्शन मिल गए तो जरूर ठीक हो जाएंगे.’’

महुआ को बुखार महसूस हो रहा था. जब से कोविड हुआ है खुद का तो उसे होश ही नहीं था. बुखार रहरह कर लौट रहा था. बैठेबैठे ही महुआ की आंख लग गई. तभी अचानक झटके से उस की आंख खुली. अनिला महुआ को खाना खाने के लिए आवाज दे रही थी.

अनिला बोली, ‘‘अंनत और अनिकेत इंजैक्शन के लिए भागदौड़ कर रहे हैं.’’

‘‘हौस्पिटल में मैं और तुम रह लेंगे. ’’

‘‘फटाफट खाना खा कर पेरासिटामोल ले कर कुछ देर पैर सीधे कर लो.’’

महुआ जैसेतैसे मुंह में कौर डाल रही थी. तभी अनिला बोली, ‘‘युग के लिए तो हिम्मत रखनी होगी न महुआ और अमित के लिए हम सब पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

बाहर कौरिडोर में बहुत भयवह माहौल था. लोग औक्सीजन के लिए, दवाइयों के लिए, बैड के लिए गुहार लगा रहे थे. कुछ लोग रो रहे थे. कही से कराहने, कहीं से विलाप की और कहीं से मौत की आहट आ रही थी. महुआ को लग रहा था कि उसका दिमाग कभी भी फट जाएगा.

पहले कोरोना की दवाइयों के लिए मारामारी, फिर औक्सीजन के लिए और अब ब्लैक फंगस की दवाई भी नहीं मिल रही है. कौन जिम्मेदार है सरकार या हम लोग?

कुछ लोग कहते हैं लोगों ने दवाइयों को ब्लैक कर के रख लिया है ताकि महंगे दाम में बेच सकें पर इस के लिए भी कौन जिम्मेदार है? क्या यह एक आम आदमी की लाचारी और लापरवाही का नतीजा है जो यह ब्लैक फंगस अब सिस्टम से निकल कर एक आम नागरिक पर हावी हो गया है? तभी अनिला आई और बोली, ‘‘महुआ कल अनंत और अनिकेत शायद इंजैक्शन इंतजाम कर दें… उन की बात हो गई है.’’

‘‘कल मजिस्ट्रेट के औफिस जा कर कुछ कागज जमा करने होंगे और शायद फिर वाजिब दाम में ही हमें इंजैक्शन मिल जाएंगे.’’

महुआ ने राहत की सांस ली. ब्लैक में 4 इंजैक्शन की कीमत क्व2 लाख थी. अभी तो महुआ ने 10 इंजैक्शन के लिए क्व5 लाख दे दिए थे.पर बाकी 75 इंजैक्शन का इंतजाम कैसे होगा उसे नहीं पता था? वह मन ही मन अपने जेवरों की कीमत लगा रही थी जो करीब क्व10 लाख होगी और उस के पास घर के अलावा कुछ नहीं था.

अब शायद क्व10 लाख में ही सब हो जाए. महुआ जब सुबह नहाने के लिए भाईभाभी के घर पहुंची तो युग को देख कर उस का मन धक से रह गया. उस का बेटा बुजुर्ग सा हो गया था. उ4टासीधा पानी डाल कर, अनिला के लिए चायनाश्ता पैक करवा कर जब महुआ जाने लगी तो अनिकेत बोला, ‘‘दीदी हम तुम्हें हौस्पिटल छोड़ कर, डाक्टर से बात कर के फिर मजिस्ट्रेट के दफ्तर जाएंगे.’’

‘‘डाक्टर से लिखवाना जरूरी है कि ये इंजैक्शन अमित जीजू के लिए बेहद जरूरी हैं.’’

पूरे रास्ते दोनों ही महुआ की हिम्मत बंधवा रहे थे. हौस्पिटल में डाक्टर से बातचीत कर के अमित को देखते हुए अनंत और अनिकेत अनिला के पास आए और बोले, ‘‘बस अब कुछ भी हो जाए, इंजैक्शन ले कर ही आएंगे.’’

महुआ मरी सी आवाज में बोली, ‘‘मैं आप लोगों के पैसे एक बार अमित डिसचार्ज हो जाए लौटा दूंगी, फिलहाल अकाउंट खाली हो गया है,’’ और फिर फफकफफक कर रोने लगी.

अनंत महुआ के सिर पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘सूद समेत हम ले लेंगे, तुम बस अपना ध्यान रखो और टैंशन मत लो. हम लोग अभी हैं चिंता करने के लिए.’’

पूरा दिन बीत गया, परंतु अनंत अनिकेत का कोई फोन नहीं आया. महुआ सोच रही थी कि फोन इसलिए नहीं किया होगा क्योंकि वे इंजैक्शन ले कर आ ही रहे होंगे.

रात के करीब 9 बजे थके कदमों से अनिकेत खाना ले कर आया और दिलासा देते हुए बोला, ‘‘सब कागजी कार्यवाही हो गई है, परंतु अभी इंजैक्शन सरकार के पास नहीं हैं. शायद परसों तक आ जाएं.’’

महुआ बोली, ‘‘अनिकेत परसों तक के ही इंजैक्शन बचे हैं… तुम कुछ ब्लैक में इंतजाम कर लो. मैं फ्लैट बेच दूंगी.’’ अनिकेत को खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

इधरउधर बहुत हाथपैर मारने पर एक दिन के इंजैक्शन का और इंतजाम हो गया. आज फिर अनिकेत और अनंत सरकारी हौस्पिटल इंजैक्शन के लिए गए थे. महुआ अमित का दर्द देख नहीं पा रही थी. आज 1 महीना हो गया था. महुआ मानसिक और शारीरिक रूप से इतनी थक चुकी थी कि उसे लग रहा था कि यह खेल कब तक चलेगा?

वह मन ही मन अमित की मौत की कामना करने लगी थी. यह जिंदगी और मौत के  बीच में चूहेबिल्ली का खेल अब उस की सहनशक्ति से परे था. महुआ को लग रहा था कि यह ब्लैक फंगस धीरेधीरे उस के पूरे परिवार को लील लेगा.

तभी अनंत आया और अनिला से बोला, ‘‘मैं ने अमेरिका में अपनी मामी से बात करी हैं, कुछ न कुछ जरूर हो जाएगा. सरकार से कुछ उम्मीद करना ही हमारी गलती थी.’’

महुआ सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर रही थी.

अनंत फिर दबी आवाज में अनिला से बोला, ‘‘अनिकेत को भी बुखार हो गया हैं. वे आइसोलेटेड हैं, पर मैं सब संभाल लूंगा.’’

अचानक महुआ उठी और पागलों की तरह चिल्लाने लगी, ‘‘आप सब दूर चले जाओ… यह ब्लैक फंगस बीमारी नहीं, काल है सब को खत्म कर देगा.’’

अनिला उसे जितना शांत करने की कोशिश करती, वह दोगुने वेग से चिल्लाती.

तभी डाक्टर ने आ कर महुआ को टीका इंजैक्शन लगाया. महुआ नींद में भी बड़बड़ा रही थी, ‘‘ये ब्लैक फंगस हमारे प्रजातंत्र की सच्ची तसवीर है जहां पर बेईमानी, भ्रष्टाचार का बोलबाला हैं. मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए, रोज मरती हूं और रोज जीती हूं.’’

अनिला महुआ की यह हालत देख कर सुबक रही थी और अनंत के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंची हुई थीं. ऐसा प्रतीत हो रहा था यह ब्लैक फंगस मरीज के साथसाथ उस के पूरे परिवार से भी काले साए की तरह चिपक गया है.

औरतें अपने पैरों पर खड़ी हों : प्रज्ञा भारती

साल 2003 में हैल्थ सैक्टर से समाजसेवा का काम शुरू करने वाली प्रज्ञा भारती आज बिहार में अच्छीखासी पहचान और इज्जत हासिल कर चुकी हैं. प्रज्ञा भारती साल 2005 से औरतों की तरक्की के लिए भी लगातार काम कर रही हैं. वे अब तक बिहार के 10 जिलों में 5 हजार औरतों को हुनरमंद बना चुकी हैं और 2 हजार औरतों को रोजगार दिला चुकी हैं. वे ‘परिहार सेवा संस्थान’ के तले औरतों को हुनरमंद बनाने के साथसाथ उन्हें रोजगार देने की मुहिम में लगी हुई हैं. साथ ही, वे पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं.

प्रज्ञा भारती कहती हैं कि औरतों को हुनरमंद बनाने के साथसाथ उन्हें रोजगार से जोड़ना जरूरी है. जब तक काम करने के बाद औरतों के हाथ में पैसा नहीं आएगा, तब तक उन के मन में अपने पैरों पर खड़ा होने का भाव नहीं आएगा.

फिलहाल प्रज्ञा भारती ‘वुमन फूड वैंडर योजना’ पर काम कर रही हैं. इस योजना में औरतों को ही रखा गया है. कैटरिंग से ले कर सर्विस तक के काम में औरतों को ही लगाया गया है. औरतें ही खाना पकाएंगी, परोसेंगी, पैक करेंगी और उसे पहुंचाएंगी. इस के लिए फिलहाल सौ औरतों को ट्रेंड किया गया है.

प्रज्ञा भारती कहती हैं कि घरेलू औरतों को उन के घर में ही काम देने की जरूरत है. इस से वे कमाई के साथसाथ अपने बच्चों और परिवार की भी देखरेख कर सकेंगी.

प्रज्ञा भारती बाल सुधारगृह के बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए स्पैशल ट्रेनिंग देने में लगी हुई हैं. इस से बाल सुधारगृह से बाहर निकल कर बच्चे रोजगार में लग सकेंगे.

प्रज्ञा भारती बताती हैं कि उन्होंने पटना कालेज से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मास कम्यूनिकेशन में एमए किया था. उस के बाद कुछ दिनों तक पत्रकारिता की, पर उस में मन नहीं रमा, क्योंकि वे समाजसेवा और औरतों को मजबूत करने की दिशा में कुछ ठोस काम करने के सपने देख रही थीं और साल 2003 में वे इस मुहिम में लग गईं.

सब से पहले उन्होंने पटना के स्लम एरिया कमला नेहरू नगर, कौशल नगर और कुम्हार टोली की औरतों के हालात का जायजा लिया और उन्हें हुनरमंद बनाने के काम में लग गईं.

इस के बाद प्रज्ञा भारती जहानाबाद और अरवल जैसे नक्सली पैठ वाले इलाकों में भी अपने दलबल के साथ पहुंच गईं और वहां की औरतों को काम सिखाने लगीं.

सिकरिया जैसे नक्सली इलाके, जहां पुलिस भी जाने से खौफ खाती थी, में पहुंच कर प्रज्ञा भारती ने औरतों के मन से मर्द के भरोसे बैठ कर जिंदगी गुजार देने के भाव को मिटाने में कामयाबी हासिल की.

प्रज्ञा भारती को औरतों और कमजोर लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करने की सीख अपने मातापिता से मिली. उन के पिता बचपन से ही पोलियो के शिकार हो गए थे, इस के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और सांख्यिकी महकमे के डायरैक्टर पद तक पहुंचे.

प्रज्ञा भारती की मां ने भी शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद अपना कारोबार खड़ा किया. ह्वीलचेयर पर बैठ कर ही उन्होंने अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में कामयाबी पाई. उन की मां की सोच है कि वे किसी के सहारे जिंदगी न गुजारें. इसी सोच ने प्रज्ञा भारती को.

3 किरदारों का अनूठा नाटक

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

युवाओं के सपने चूर करती अमेरिकी वीजा नीति

अमेरिका की प्रस्तावित नई वीजा नीति से दुनियाभर में खलबली मची हुई है. इस से अमेरिका में रह रहे एच1बी वीजा धारकों की नौकरी पर संकट तो है ही, वहां जाने का सपना देखने वाले युवा और उन के मांबाप भी खासे निराश हैं. एच1बी नीति का विश्वभर में विरोध हो रहा है. अमेरिकी कंपनियां और उन के प्रमुख, जो ज्यादातर गैरअमेरिकी हैं, विरोध कर रहे हैं. खासतौर से सिलीकौन वैली में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं. सिलीकौन वैली की 130 कंपनियां ट्रंप के फैसले का खुल कर विरोध कर रही हैं. ये कंपनियां दुनियाभर से जुड़ी हुई हैं. वहां काम करने वाले लाखों लोग अलगअलग देशों के नागरिक हैं. उन में खुद के भविष्य को ले कर कई तरह की शंकाएं हैं. हालांकि यह साफ है कि अगर सभी आप्रवासियों पर सख्ती की जाती है तो सिलीकौन वैली ही नहीं, पूरे अमेरिका का कारोबारी संतुलन बिगड़ जाएगा.

इस से उन कंपनियों में दिक्कत होगी जो भारतीय आईटी पेशेवरों को आउटसोर्सिंग करती हैं. कई विदेशी कंपनियां भारतीय कंपनियों से अपने यहां काम का अनुबंध करती हैं. इस के तहत कई भारतीय कंपनियां हर साल हजारों लोगों को अमेरिका में काम करने के लिए भेजती हैं.

आप्रवासन नीति पर विवाद के बीच अमेरिका की 97 कंपनियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा ठोक दिया है. इन में एपल, गूगल, माइक्रोसौफ्ट भी शामिल हैं. इन में से अधिकतर कंपनियां आप्रवासियों ने खड़ी की हैं. उन्होंने अदालत में दावा किया कि राष्ट्रपति का आदेश संविधान के खिलाफ है. आंकड़ों का हवाला दे कर कहा गया है कि अगर इन कंपनियों को मुश्किल होती है तो अमेरिकी इकौनोमी को 23 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है.

कई देश ट्रंप प्रशासन के आगे वीजा नीति न बदलने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं. भारत भी अमेरिका में रह रहे अपने व्यापारियों के माध्यम से दबाव बना रहा है कि जैसेतैसे मामला वापस ले लिया जाए या उदारता बरती जाए. भारत के पक्ष में लौबिंग करने वाले एक समूह नैसकौम के नेतृत्व में भारतीय कंपनियों के बड़े अधिकारी इस मसले को ट्रंप प्रशासन के सामने उठाना चाह रहे हैं.

नई वीजा नीति से भारत सब से अधिक चिंतित है. 150 अरब डौलर का घरेलू आईटी उद्योग संकटों से घिर रहा है. भारत के लाखों लोग अमेरिका में काम कर रहे हैं. तय है वहां काम  कर रहे भारतीय पेशेवरों पर खासा प्रभाव पड़ेगा. इस से टाटा कंसल्टैंसी लिमिटेड यानी टीसीएल, विप्रो, इन्फोसिस जैसी भारतीय आईटी कंपनियां भी प्रभावित होंगी. आईटी विशेषज्ञ यह मान कर चल रहे हैं कि यह नीति अमल में आती है तो यह बड़ी मुसीबत के समान होगी. अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका दुनिया को श्रेष्ठ आविष्कारक देने वाला देश नहीं रह जाएगा.

यह सच है कि दुनियाभर की प्रतिभाएं अमेरिका जाना चाहती हैं. वर्ष 2011 में आप्रवासन सुधार समूह ‘पार्टनरशिप फौर अ न्यू अमेरिकन इकोनौमी’ ने पाया कि फौर्च्यून 500 की सूची में शामिल कंपनियों में 40 प्रतिशत की स्थापना आप्रवासियों ने की. अमेरिका में 87 निजी अमेरिकन स्टार्टअप ऐसे हैं जिन की कीमत 68 अरब डौलर या इस से अधिक है. कहा जाता है कि यहां आधे से अधिक स्टार्टअप ऐसे हैं जिन की स्थापना करने वाले एक या उस से अधिक लोग प्रवासी थे, उन के 71 प्रतिशत एक्जीक्यूटिव पद पर नियुक्त थे.

गूगल, माइक्रोसोफ्ट जैसी कंपनियों के प्रमुख भारतीय हैं जो अपनी योग्यता व कुशलता से न सिर्फ इन कंपनियों को चला रहे हैं, इन के जरिए तकनीक की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत भी कर चुके हैं. इन कंपनियों ने हजारों जौब उत्पन्न किए हैं और पिछले दशक में इन्होंने न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी से निकाला बल्कि अरबों डौलर कमाई कर के उसे मजबूत भी बनाया. ये वही कंपनियां हैं जिन के संस्थापक दुनिया के अलगअलग देशों के नागरिक हैं.

1. क्या है एच1बी वीजा

एच1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों को अपने यहां विदेशी कुशल और योग्य पेशेवरों को नियुक्त करने की इजाजत देता है. अगर वहां समुचित जौब हो और स्थानीय प्रतिभाएं पर्याप्त न हों तो नियोक्ता विदेशी कामगारों को नियुक्ति दे सकते हैं.

1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति जौर्ज डब्लू बुश ने विदेशी पेशेवरों के लिए इस विशेष वीजा की व्यवस्था की थी. आमतौर पर किसी खास कार्य में कुशल लोगों के लिए यह 3 साल के लिए दिया जाता है. एच1बी वीजा केवल आईटी, तकनीकी पेशेवरों के लिए नहीं है, बल्कि किसी भी तरह के कुशल पेशेवर के लिए होता है. 2015 में एच1बी वीजा सोशल साइंस, आर्ट्स, कानून, चिकित्सा समेत 18 पेशों के लिए दिया गया. अमेरिकी सरकार हर साल इस के तहत 85 हजार वीजा जारी करती आई है. कहा जा रहा है कि फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप भी अमेरिका में मौडल के रूप में स्लोवेनिया से एच1बी वीजा के तहत आई थीं.

2. प्रस्तावित आव्रजन नीति

ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी किया और सिलीकौन वैली के डैमोके्रट जोए लोफग्रेन द्वारा संसद में हाई स्किल्ड इंटिग्रिटी ऐंड फेरयनैस ऐक्ट-2017 पेश किया गया. इस के तहत इन वीजाधारकों का वेतन लगभग दोगुना करने का प्रस्ताव है. अभी एच1बी वीजा पर बुलाए जाने वाले कर्मचारियों को कंपनियां कम से कम 60 हजार डौलर का भुगतान करती हैं. विधेयक के ज्यों का त्यों पारित होने के बाद यह वेतन बढ़ कर 1 लाख 30 हजार डौलर हो जाएगा. विधेयक में कहा गया है, ‘‘अब समय आ गया है कि हमारी आव्रजन प्रणाली अमेरिकी कर्मचारियों के हित में काम करना शुरू कर दे.’’

दरअसल, अब अमेरिका में यह भावना फैलने लगी थी कि विदेशी छात्र स्थानीय आबादी का रोजगार खा रहे हैं. ट्रंप इसी सोच का फायदा उठा कर सत्ता में पहुंच गए. उन्होंने चुनावी सभाओं में अमेरिकी युवाओं से विदेशियों की जगह उन के रोजगार को प्राथमिकता देने का वादा किया था.

वास्तव में भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में जौब भी दे रही हैं और वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान भी कर रही हैं. भारतीय आईटी कंपनियों से अमेरिका में 4 लाख डायरैक्ट तथा इनडायरैक्ट जौब मिल रहे हैं. वहीं, अमेरिकी इकोनौमी में 5 बिलियन डौलर बतौर टैक्स चुकाया जा रहा है. भारत से हर साल एच1बी वीजा तथा एल-1 वीजा फीस के रूप में अमेरिका को 1 बिलियन डौलर की आमदनी हो रही है.

अमेरिका पिछले साल जनवरी 2016 में एच1बी और एल-1 वीजा फीस बढ़ा चुका है. एच1बी वीजा की फीस 2 हजार डौलर से 6 हजार डौलर और एल-1 वीजा की फीस 4,500 डौलर कर दी गई थी. हाल के वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने यह नियम बना लिया कि विदेशों से प्रतिवर्ष केवल एक लाख छात्र ही ब्रिटेन आ सकते हैं. उस ने वीजा की शर्तें बहुत कठोर कर दीं. लगभग इसी समय अमेरिका ने उदारवादी शर्तों पर स्कौलरशिप दे कर भारतीय छात्रों को आकर्षित किया. वहां पार्टटाइम काम कर के शिक्षा का खर्च जुटाना भी आसान था. अनेक भारतीय छात्र,  जिन्होंने अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की थी, वहीं बस गए. अमेरिकी संपन्न जनता को भी सस्ती दरों पर प्रशिक्षित भारतीय छात्र मिल जाते थे जो अच्छी अंगरेजी बोल लेते थे और कठिन परिश्रम से नहीं चूकते थे.

एच1बी वीजा नीति को ले कर भारतीय आईटी कंपनियों में नाराजगी है. उन का तर्क है कि आउटसोर्सिंग सिर्फ उन के या भारत के लिए फायदेमंद नहीं है बल्कि यह उन कंपनियों व देशों के लिए भी लाभदायक है जो आउटसोर्सिंग कर रहे हैं.

नए कानून से भारतीय युवा उम्मीदों को गहरा आघात लगेगा. सालों से जो भारतीय मांबाप अपने बच्चों को अमेरिका भेजने का सपना देख रहे हैं, उन पर तुषारापात हो गया है. इस का असर दिखने भी लगा है. आईटी कंपनियां कैंपस में नौकरियां देने नहीं जा रही हैं. भारत के प्रमुख इंजीनियरिंग और बिजनैस स्कूलों के कैंपस प्लेसमैंट पर अमेरिका के कड़े वीजा नियमों का असर देखा जा रहा है. जनवरी से देश के प्रमुख आईआईएम और आईआईटी शिक्षण संस्थानों समेत प्रमुख कालेजों में प्लेसमैंट प्रक्रिया शुरू हुई पर उस में वीजा नीति का असर देखा जा रहा है.

3. प्रतिभा पलायन क्यों?

सवाल यह है कि भारतीय विदेश में नौकरी करने को अधिक लालायित क्यों है? असल में इस के पीछे सामाजिक और राजनीतिक कारण प्रमुख हैं. लाखों युवा और उन के मांबाप अमेरिका में जौब का सपना देखते हैं. बच्चा 8वीं क्लास में होता है तभी से वह और उस के परिवार वाले तैयारी में जुट जाते हैं.

इंजीनियरिंग, मैनेजमैंट व अन्य डिगरियों पर लाखों रुपए खर्र्च कर मांबाप बच्चों के बेहतर भविष्य का तानाबाना बुनने में कसर नहीं छोड़ते. आईआईटी, मैनेजमैंट में पढ़ाने वाले शिक्षक भी बच्चों के दिमाग में विदेश का ख्वाब जगाते रहते हैं. इन विषयों का सिलेबस ही विदेशी नौकरी के लायक होता है.

वहीं, मांबाप के लिए विदेश में रह कर नौकरी करने का एक अलग ही स्टेटस है. इस से परिवार की सामाजिक हैसियत ऊंची मानी जाती है. विदेश में नौकरी कर रहे युवक के विवाह के लिए ऊंची बोली लगती है. परिवार, नातेरिश्तेदारी में गर्व के साथ कहा जाता है कि हमारे बेटेभतीजे विदेश में रहते हैं. इस से सामान्य परिवार से हट कर एक खास रुतबा कायम हो जाता है.

60 के दशक में पहले अमीर परिवारों के भारतीय छात्र अधिकतर ब्रिटेन जाते थे. वहां के विश्वविद्यालय बहुत प्रतिष्ठित थे. कुछ विश्वविद्यालयों में यह प्रावधान था कि छात्र कैंपस से बाहर जा कर पार्टटाइम नौकरी कर सकते थे जिस से पढ़ाई का खर्च निकल सके पर धीरेधीरे ब्रिटिश सरकार ने पार्टटाइम काम कर के पढ़ाई की इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया. फिर ब्रिटेन में यह धारणा बनने लगी कि ये लोग स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं. लेकिन भारतीय आईटी इंडस्ट्री का मानना है कि अमेरिका में आईटी टैलेंट की बेहद कमी है. भारतीयों को इस का खूब फायदा मिला.

4. बदहाल सरकारी नीतियां

विदेशों में पलायन की एक प्रमुख वजह भारत की सरकारी नीतियां हैं. भारतीय प्रतिभाओं का  पलायन सरकारी निकम्मेपन, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार की वजह से हुआ. सरकार उन्हें पर्याप्त साधनसुविधाएं, वेतन नहीं दे सकी. सरकार ब्रेनड्रेन रोकना ही नहीं चाहती. इस के लिए कानून बनाया जा सकता है पर हमारे नेताओं को डर है कि इस से जो रिश्वत मिलती है वह बंद हो जाएगी.

अमेरिका जैसे देश में युवाओं को अच्छा वेतन, सुविधाएं मिल रही हैं. वे वापस लौटना नहीं चाहते. कई युवा तो परिवार के साथ वहीं रह रहे हैं और ग्रीनकार्ड के लिए प्रयासरत हैं. कई स्थायी तौर पर बस चुके हैं. सब से बड़ी बात है वहां धार्मिक बंदिशें नहीं हैं. भारतीय दकियानूसी सोच के चंगुल से दूर वहां खुलापन, उदारता और स्वतंत्रता का वातावरण है.

दरअसल, किसी भी देश के नागरिक को दुनिया में कहीं भी पढ़नेलिखने, रोजगार पाने का हक होना चाहिए. प्रकृति ने इस के लिए कहीं, कोई बाड़ नहीं खड़ी की. आनेजाने के नियमकायदे तो देशों ने बनाए हैं पर यह हर व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है. बंदिशें लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ हैं. इस से अमेरिका ही नहीं, दूसरे देशों की आर्थिक दशा पर भी असर पड़ेगा. तकनीक, तरक्की अवरुद्ध होगी.

इस तरह की रोकटोक से कोई नया आविष्कार न होने पाएगा. दुनिया अपने में सिकुड़ जाएगी. कोलंबस, वास्कोडिगामा अगर सीमाएं लांघ कर बाहर न निकलते तो क्या दुनिया एकदूसरे से जुड़ पाती. शिक्षा, ज्ञान, तकनीक, जानकारी, नए अनुसंधान फैलाने से ही मानव का विकास होगा, नहीं तो दुनिया कुएं का मेढक बन कर रह जाएगी. विकास से वंचित करना विश्व के साथ क्या अन्याय नहीं होगा.

अलग धार्मिक पहचान के मारे आप्रवासी

अमेरिका के कैंसास शहर में 22 फरवरी को 2 भारतीय इंजीनियरों को गोली मार दी गई. इस में हैदराबाद के श्रीनिवास कुचीवोतला की मौत हो गई और वारंगल के आलोक मदसाणी घायल हैं. गोली एक पूर्व अमेरिकी नौसैनिक ने मारी और वह गोलियां चलाते हुए कह रहा था कि आतंकियो, मेरे देश से निकल जाओ. इसे नस्ली हमला माना जा रहा है. नशे में धुत हमलावर एडम पुरिंटन की दोनों भारतीय इंजीनियरों से नस्लीय मुद्दे पर बहस हुई थी.

इसी बीच, 27 फरवरी को खबर आई कि व्हाइट हाउस में हिजाब पहन कर नौकरी करने वाली रूमाना अहमद ने नौकरी छोड़ दी. 2011 से व्हाइट हाउस में काम करने वाली रूमाना राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की सदस्य थीं. वैस्ट विंग में हिजाब पहनने वाली वे एकमात्र महिला थीं.

खबर में यह तो साफ नहीं है कि रूमाना अहमद ने नौकरी क्यों छोड़ी लेकिन उन की बातों से स्पष्ट है कि अलग धार्मिक पहचान की वजह से उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. वे बुर्का पहनना नहीं छोड़ना चाहती थीं. तभी उन्होंने कहा कि बराक ओबामा के समय में उन्हें कोई परेशानी नहीं थी.

भारतीय संगठन ने अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए जो एडवाइजरी जारी की है उस में अपनी स्थानीय भाषा न बोलने की सलाह तो दी गई है पर यह नहीं कहा गया कि वे अपनी धार्मिक पहचान छोड़ कर ‘जैसा देश, वैसा भेष’ के हिसाब से रहें.

आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्लीय हिंसा 115 प्रतिशत बढ़ी है. ट्रंप की जीत के 10 दिनों के भीतर ही हेट क्राइम के 867 मामले दर्ज हो चुके थे. वहां आएदिन मुसलमानों, अश्वेतों, भारतीय हिंदुओं व सिखों के साथ धार्मिक, नस्लीय भेदभाव व हिंसा होनी तो आम बात है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्ली घटनाओं में तेजी आई है. 11 फरवरी को सौफ्टवेयर इंजीनियर वम्शी रेड्डी की कैलिफोर्निया में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. जनवरी में गुजरात के हर्षद पटेल की वर्जीनिया में गोली मार कर जान ले ली गई थी.

सब से ज्यादा हमले मुसलमानों पर हो रहे हैं. काउंसिल औफ अमेरिकन इसलामिक रिलेशंस के अनुसार, पिछले साल करीब 400 हेट क्राइम दर्ज हुए थे जबकि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद 2 महीने में ही 175 मामले सामने आ चुके हैं.

ये घटनाएं तो हाल की हैं. असल में अमेरिका की बुनियाद ही धर्म आधारित है. ब्रिटिश उपनिवेश में रहते हुए वहां ब्रिटेन ने क्रिश्चियनिटी को प्रश्रय दिया पर ईसाइयों में यहां शुरू से ही प्रोटेस्टेंटों और कैथोलिकों के बीच भेदभाव, हिंसा चली. धार्मिक आधार पर कालोनियां बनीं. बाद में हिटलर के यूरोप से यहूदी शरणार्थियों के साथ भेदभाव चला.

1918 में यहूदी विरोधी भावना का ज्वार उमड़ा और फैडरल सरकार ने यूरोप से माइग्रेंट्स पर अंकुश लगाना शुरू किया. अमेरिका में उपनिवेश काल से ही यहूदियों के साथ भेदभाव बढ़ता गया. 1950 तक यहूदियों को कंट्री क्लबों, कालेजों, डाक्टरी पेशे पर प्रतिबंध और कई राज्यों में तो राजनीतिक दलों के दफ्तरों में प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई थी. 1920 में इमिग्रेशन कोटे तय होने लगे. अमेरिका में यहूदी हेट क्राइम में दूसरे स्थान पर होते थे. अब हालात बदल रहे हैं. माइग्रेंट धर्मों की तादाद दिनोंदिन बढ़ रही थी.

अमेरिका में 1600 से अधिक हेट क्राइम ग्रुप हैं. सब से बड़ा गु्रप राजधानी वाशिंगटन में है जिस का नाम फैडरेशन औफ अमेरिकन इमिग्रेशन रिफौर्म है. यह संगठन आप्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाता है. इस की गतिविधियां बेहद खतरनाक बताई जाती हैं. सोशल मीडिया पर भी इस का हेट अभियान जारी रहता है. यह मुसलमानों, हिंदू, सिख अल्पसंख्यक आप्रवासियों और समलैंगिकों के खिलाफ भड़काऊ सामग्री डालता रहता है.

आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका 15,000 से अधिक धर्मों की धर्मशाला है और करीब 36,000 धार्मिक केंद्रों का डेरा है. अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के बाद मुसलमानों के प्रति 1,600 प्रतिशत हेट क्राइम बढ़ गया. नई मसजिदों के खिलाफ आंदोलन के बावजूद 2000 में यहां 1,209 मसजिदें थीं जो 2010 में बढ़ कर 2,106 हो गईं. इन मसजिदों में ईद व अन्य मौकों पर करीब 20 लाख, 60 हजार मुसलमान नियमित तौर पर जाते हैं. अमेरिका में 70 लाख से अधिक मुसलिम हैं.

अमेरिकी चरित्र के बारे में 2 बातें प्रसिद्ध हैं. एक, वह ‘कंट्री औफ माइग्रैंट्स’ और दूसरा, ‘कंट्री औफ अनमैच्ड रिलीजियंस डायवर्सिटी’ कहलाता है. इन दोनों विशेषताओं के कारण वहां एक धार्मिक युद्ध जारी रहता है. इस के बीच कुछ बुद्धिजीवी हैं जो धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को प्रश्रय देने की मुहिम छेड़े रहते हैं.

पिछले 3-4 दशकों में भारत से अमेरिका में हिंदू, सिख और मुसलिम लोगों की बढ़ोतरी हुई. अन्य देशों से भी मुसलमान अधिक गए. ये लोग अपनेअपने धर्म की पोटली साथ ले गए. वहां मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिदें, चर्च बना लिए. वहां रह रहे करीब 5 लाख सिखों के यहां बड़े शहरों में कईकई गुरुद्वारे हैं. ये गुरुद्वारे भी ऊंचीनीची जाति में बंटे हुए हैं उसी तरह जिस तरह वहां ईसाइयों में गोरेकाले, प्रोटेस्टेंटकैथोलिकों के अलगअलग चर्च बने हुए हैं.

हिंदुओं के 450 से अधिक बड़े मंदिर बने हुए हैं. बड़ेबड़े आश्रम और मठ भी हैं. इन में स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इंटरनैशनल सोसायटी फौर कृष्णा कांशसनैस, चिन्मय आश्रम, वेदांत सोसायटी, तीर्थपीठम, स्वामी नारायण टैंपल, नीम करोली बाबा, इस्कान, शिव मुरुगन टैंपल, जगद्गुरु कृपालु महाराज, राधामाधव धाम, पराशक्ति टैंपल, सोमेश्वर टैंपल जैसे भव्य स्थल हैं. इन मंदिरों में विष्णु, गणेश, शिव, हनुमान, देवीमां और तरहतरह के दूसरे देवीदेवताओं की दुकानें हैं. सवाल है कि आखिर किसी को धार्मिक पहचान की जरूरत क्या है? सांस्कृतिक पहचान के नाम पर धर्म की नफरत को बढ़ावा दिया जाता है.

असल में नस्ली भेदभाव, हिंसा का कारण है. विदेश में जा कर लोग अपनी अलग धार्मिक पहचान रखना चाहते हैं. पूजापाठ, पहनावा, रहनसहन धार्मिक होता है. हिंदू पंडे अगर तिलक, चोटी, धोती रखेंगे तो दूसरे धर्म वालों की हंसी के साथ नफरत का शिकार होंगे ही. सिख पगड़ी, दाढ़ी और मुसलमान टोपी, दाढ़ी रखेंगे तो टीकाटिप्पणी झेलनी पड़ेगी ही. पलट कर जवाब देंगे तो मारपीट होगी. फिर शिकायत करते हैं कि उन के साथ नस्ली भेदभाव होता है, हिंसा होती है.

इस भेदभाव की वजह अमेरिका में बड़ी तादाद में फैले हुए धर्मस्थल हैं. हजारों मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, चर्च बने हुए हैं. भारतीय लोग वहां इन धर्मस्थलों को बनाने में तन, मन और धन से भरपूर सहयोग देते हैं. चीनियों, जापानियों, दक्षिण कोरियाई लोगों के साथ न के बराबर भेदभाव व हिंसा होती है क्योंकि वे किसी धर्म के पिछलग्गू नहीं हैं. वे विदेशों में रह कर उन्हीं लोगों के साथ हिलमिल कर मनोरंजन का आनंद लेते हैं. उन की अपनी चीनी संस्कृति भी है पर उस में धर्म नहीं है. उन की संस्कृति में मनोरंजन है जिस में दूसरे देशों के लोग भी हंसीखुशी आनंद उठाते हैं.

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 7

अजय के कातिल को ढूंढ़ते हुए उन्होंने यूसुफ से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और अजयजी साथ काम करते थे औैर वह अजयजी के कातिल को ढूंढ़ने हेतु यहां पहुंचा. दरअसल, वे दोनों सीक्रेट एजेंट थे इसलिए यूसुफ ने सीजर कोड जल्दी हल कर लिया. टैनिस बौल के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि उस में एक मैमोरीकार्ड निकला जिसे फोन में लगाने पर एक वीडियो क्लिपिंग दिखी.

उस में एक तहखाने में बंदूकों, राइफलों, बमों के ढेर दिख रहे थे. यूसुफ ने बताया कि हमारा डिपार्टमैंट इसी यूनिट की तलाश में था. शायद अजय ने इसे ढूंढ़ कर इस की रिकौर्डिंग कर ली थी. अब इंस्पैक्टर ने वीडियो को दोचार बार देख जगह की पहचान की और गुपचुप तरीके से वहां छापा मार कर सभी अपराधी पकड़ लिए. लेकिन कुछ सवाल अभी बाकी थे और असली कातिल उन से दूर था.

पुलिस वालों ने अनवर के घर के इर्दगिर्द मोरचाबंदी कर ली. शोरगुल सुन कर घर के  सब लोग उठ कर वहां आ गए और सारी बात पता चलने पर सब के मुंह खुले के खुले रह गए.

‘‘इस से यह बात तो बिलकुल साफ हो जाती है कि उन का कोई न कोई आदमी खुलेआम बाहर घूम रहा है और अब इस केस से जुड़े सभी लोगों को मार कर वह अपने साथियों का बदला लेगा. यूसुफ अंकल आज सुबह घर वापस जाने वाले थे, इसलिए पहले उन्हें निशाने पर लिया गया. अगला नंबर हमारा होगा या फिर इंस्पैक्टर अंकल का,’’ साहिल बोला.

‘‘लेकिन यूसुफ अंकल ने कहा था कि उन लोगों को कल की घटना से पहले उन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और कल जब हम उन्हें पकड़ कर पुलिस स्टेशन लाए, तब से एक औल्टो कार हमारा पीछा कर रही थी. शाम तक वे लोग वहीं बाहर ही छिपे थे जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ा था यानी उन के अलावा गैंग के किसी मैंबर को यूसुफ अंकल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस का मतलब यह हुआ कि औल्टो वालों ने पकड़े जाने से पहले किसी को इस बारे में बताया और वह जो भी था, वह उन के अड्डे पर नहीं बल्कि कहीं और था.’’

उस की बातों को ध्यान से सुन रहा फैजल बोला, ‘‘और अगर इस तरह की सिचुएशन में कोई आदमी फोन करेगा तो जरूर गैंग के किसी महत्त्वपूर्ण आदमी को ही करेगा. जो रिकौर्डिंग हम ने देखी थी उस के हिसाब से वे कुल 17 आदमी थे. 15 वहां से अरैस्ट हुए और 2 औल्टो वाले, तो पूरे 17 तो हो गए. फिर यह 18वां आदमी कहां से पैदा हो गया?’’ फैजल का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था, ‘‘17 आदमी वहां काम करते थे, मतलब वर्कर्स थे, तो इन वर्कर्स का कोई मालिक यानी बौस भी होना चाहिए. वही बौस जिसे उन्होंने फोन कर के खबर दी और जिस ने यूसुफ अंकल को मारा. कौन हो सकता है यह आदमी?’’

इतने में इंस्पैक्टर रमेश आ पहुंचे, उन्होंने बताया कि रामगढ़ लौंज नाम के होटल के जिस कमरे में यूसुफ ठहरा हुआ था, वहीं उस की लाश पड़ी मिली है. उस की हत्या भी गोली मार कर की गई है और अस्तबल जैसे ही बड़े जूतों के निशान वहां से भी मिले हैं यानी अजय और यूसुफ दोनों का कातिल एक ही है.

‘‘कोई और खास बात जो आप ने वहां देखी हो?’’ फैजल ने पूछा.

‘‘और तो कुछ खास नहीं, पर यूसुफ के चेहरे पर जो भाव थे, वे कुछ अजीब से थे. जैसे हैरान और कुछ समझ न पा रहा हो.’’

फैजल कुछ सोचने लगा. अचानक उस ने अपना फोन निकाला और जल्दीजल्दी दोचार बटन दबा कर स्क्रीन देखने लगा.

करीब 5 मिनट बाद उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए और वह ऐसे खुश नजर आने लगा, मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. फिर वह इंस्पैक्टर रमेश के पास पहुंचा और बोला, ‘‘अंकल, आप के पास अजय के घर का नंबर है न, वहां फोन लगाइए और आंटी को कहिए कि हम अभी आधे घंटे में उन के घर आ रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि अंकल की अलमारी में एक फाइल थी, जिस से हमें कोई काम की बात पता चल सकती है.’’

‘‘फैजल, इस समय कातिल बौराया हुआ घूम रहा है. तुम लोगों का बाहर जाना ठीक नहीं होगा,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘अरे, आप फोन लगाइए तो सही. मुझे समझ आ गया है कि कातिल कौन है और मेरे पास उसे पकड़ने का पूरा प्लान भी है.’’

इंस्पैक्टर रमेश ने फोन उठाया और अजय की पत्नी यास्मिन को वैसा ही कह दिया जैसा फैजल ने बताया था.

‘‘अब सब लोग ध्यान से मेरी बात सुनिए…’’ फैजल धीमी आवाज में उन्हें कुछ समझाने लगा.

जब वह चुप हुआ तो सब के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.

इंस्पैक्टर रमेश ने जल्दीजल्दी 3-4 फोन मिलाए, कुछ हिदायतें दीं और कुछ सामान लाने का और्डर दिया. फिर बैठ कर किसी का इंतजार करने लगा. साहिल, फैजल और अनवर मामू तैयार होने चले गए. कुछ ही देर में एक सिपाही सारा सामान ले कर आ गया और सब लोग बाहर जा कर जीप में बैठ गए.

अजय के घर पहुंच कर वे चारों जब ड्राइंगरूम में पहुंचे तो यास्मिन उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आइएआइए, मैं ने सुना है कल गांव में बहुत सारे आतंकवादी पकड़े गए. क्या यह सच है? और उस पहेली का कोई हल सूझा तुम्हें फैजल?क्या उसी के लिए तुम्हें वह फाइल चैक करनी है? आओ, तुम खुद ही देख कर निकाल लो, जो फाइल तुम्हें चाहिए.’’

अजय के कमरे से नीले रंग की एक फाइल ले कर वे फिर से ड्राइंगरूम में आ गए.

‘‘तुम इसे चैक करो, मैं चाय ले कर आती हूं,’’ कह कर यास्मिन किचन में चली गई?

कुछ ही पल बीते थे कि अचानक पिछले दरवाजे से दबेपांव एक बड़ेबड़े जूतों वाला नकाबपोश कमरे में दाखिल हुआ. उस के दोनों हाथों में रिवाल्वर थे, जिन में साइलैंसर लगे हुए थे. फाइल पर झुके चारों लोगों ने चौंक कर उस की ओर देखा ही था कि पिट…पिट…पिट…पिट… किसी को पलक झपकाने का मौका दिए बगैर उस ने चारों के सीने में गोलियां उतार दीं. दर्द भरी चीखों के साथ वे नीचे गिर पड़े. जितनी फुरती से नकाबपोश अंदर आया था, उतनी ही फुरती के साथ बाहर की तरफ लपका, लेकिन दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही 8-10 आदमियों ने उसे घेर कर बुरी तरह जकड़ लिया और उस से दोनों रिवाल्वर छीन लिए. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसे रस्सियों से बांध दिया गया. तभी चारों लाशें अपनेअपने कपड़े झाड़ती हुई उठ खड़ी हुईं. उन सब के चेहरे पर शरारती मुसकराहट थी.

‘‘क्यों, कैसी रही यास्मिन आंटी?’’ साहिल ने एक आंख दबाते हुए पूछा और फैजल ने उन का नकाब खींच कर दूर फेंक दिया.

‘‘आप ने क्या समझा था कि हम सब गोलगप्पे हैं जो आप एक मिनट में गटक जाएंगी?’’ कहते हुए फैजल शर्ट का एक बटन खोल कर अंदर पहनी बुलेटप्रूफ जैकेट की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘‘हमें हजम करना इतना आसान नहीं है.’’

यास्मिन गुस्से से बड़बड़ाती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें छोडं़ूगी नहीं. तुम ने मेरी बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया. मैं ने ये सब करने में अपनी सारी जिंदगी गुजार दी और तुम लोगों की वजह से एक पल में सब तहसनहस हो गया,’’ और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘मतलब आप बहुत छोटी उम्र से ही इन सब कामों में लगी हुई थीं?’’ इंस्पैक्टर रमेश हैरानी से बोले.

‘‘हां, अनाथाश्रम में रहते हुए मेरी पहचान इन लोगों से हुई थी और तभी से मैं इन के साथ काम कर रही हूं.’’

‘‘क्या आप को पता था कि अजय सीक्रेट एजेंट हैं?’’

‘‘अगर पता होता तो क्या मैं उन से शादी करती? यहां रामगढ़ में आ कर बसने की जिद भी मैं ने ही उन से की थी ताकि मुझे अपना काम करने में आसानी रहे. अगर मुझे जरा भी भनक होती तो मैं कभी यहां नहीं आती.’’

‘‘अजय के लापता होने में भी आप का हाथ था?’’

‘‘बिलकुल नहीं, मैं और मेरे आदमी तो खुद उन्हें ढूंढ़ रहे थे. उन्हें न जाने कब यहां चल रही गतिविधियों पर शक हो गया और एक दिन मेरे आदमी का पीछा करतेकरते वे मेरे अड्डे तक पहुंच गए. जब वे वहां से वापस भाग रहे थे, तो मेरे एक आदमी ने उन्हें देख लिया और मुझे खबर दी. उसे यह नहीं पता था कि अजय ने वहां कुछ रिकौर्ड भी किया है.

‘‘मैं ने तभी फैसला कर लिया कि उन के घर आते ही मैं उन्हें खत्म कर दूंगी, लेकिन वे घर आए ही नहीं. उन्हें रास्ते में ही पता चल गया कि कुछ आदमी उन का पीछा कर रहे हैं. उन्होंने एक पब्लिक बूथ में घुस कर किसी को फोन किया, लेकिन जिस से वे बात करना चाहते थे वह आदमी कुछ दिन के लिए बाहर गया हुआ था. बूथ के बाहर खड़ा मेरा आदमी सारी बातें सुन रहा था. फोन पर बात करने के बाद वे कुछ निराश हो गए और वहां से निकलने के कुछ ही देर बाद उन आदमियों को चकमा दे कर भागने में सफल हो गए.’’

‘‘ओह, अब समझा,’’ बीच में ही फैजल बोला, ‘‘जरूर अजय ने अपने पुराने चीफ को फोन किया होगा और जब वे नहीं मिले तो उन्होंने 15-20 दिन तक मैमोरीकार्ड को इन लोगों से बचाने के लिए अलगअलग भेष बदल कर यह सारा सैटअप किया.’’

‘‘तभी तो हम उन्हें पकड़ नहीं पाए. उसी दिन मैं ने उन के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई. अब मेरे आदमियों के साथसाथ पुलिस भी उन के पीछे थी. 8वें दिन मुझे उन के अस्तबल में होने की खबर मिली और मैं वहां पहुंच गई. मैं ने जानबूझ कर बड़े साइज के मर्दाना जूते पहने थे ताकि मुझ पर किसी को शक न हो.

‘‘मुझे इस रूप में देख कर पहले तो वे दुखी और हैरान हुए लेकिन जल्दी ही संभल गए. जिस तरह से उन्होंने मुझ से मुकाबला किया, उसे देख कर मैं हैरान थी. बड़ा संघर्ष करना पड़ा मुझे उन्हें मारने में. गिरतेगिरते जब उन्होंने मूंछें और भवें उतार कर फेंकीं, तब मैं उन की यह चाल समझ नहीं पाई. वह तो बाद में पता चला कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसा किया ताकि उन के पहले के जानने वाले लोग उन्हें आसानी से पहचान सकें.

‘‘मरतेमरते उन्होंने मुझे एक और धोखा दिया. दूसरी गोली लगने के बाद उन्होंने सांस रोक कर ऐसा नाटक किया जैसे मर गए हों. अच्छी तरह चैक करने के बाद मैं वहां से निकल गई और उस के  बाद उन्होंने वह संदेश लिख दिया. सुबह जब मैं रोतीपीटती वहां पहुंची तो उन्हें देख कर चौंकी. लेकिन समझ कुछ नहीं आया. इसीलिए मैं ने तुम लोगों के पीछे 24 घंटे आदमी लगा दिए ताकि तुम्हारी सारी रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहे, लेकिन एक बात समझ नहीं आई. तुम्हें मेरे बारे में पता कैसे चला?’’

‘‘फैजल मुसकराया, मुझे जब से यह पता चला कि अजय सीक्रेट एजेंट थे, तब से मुझे एक बात बारबार खटक रही थी कि अजय इतना बड़ा राज इस तरीके से बता कर गए, पर अपने खूनी का नाम क्यों नहीं बता गए? मुझे लग रहा था कि वह नाम हमारे बिलकुल सामने ही कहीं है, बस नजर नहीं आ रहा है. मैं इसी दुविधा में था जब इंस्पैक्टर रमेश ने बताया कि मरते वक्त यूसुफ के चेहरे पर हैरानी और कन्फ्यूजन के भाव थे. इस का मतलब है कि वे कातिल को पहचाते थे.

‘‘इस गांव में वे किसी और को तो जानते नहीं थे. इसलिए मेरा शक सीधा अजय की पत्नी यास्मिन यानी आप पर ही गया. उसी समय मेरे दिमाग में एक और बात आई. अगर अजय ने कहीं कातिल के बारे में कोई हिंट छोड़ा होगा तो वह सिर्फ उन के आखिरी मैसेज में ही हो सकता है. इसलिए मैं ने उसे निकाल कर दोबारा चैक किया और मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने बिलकुल साफसाफ कातिल का नाम लिख रखा था,’’ कहते हुए फैजल ने कागज की एक स्लिप निकाल कर यास्मिन के आगे रख दी, जिस पर लिखा था,

‘‘जब पूरा मैसेज स्माल लैटर्स में लिखा है तो बीच में ये कैपिटल लैटर्स क्यों? रूहृढ्ढङ्घस््न. इन्हें आगेपीछे कर के देखा जाए तो बनता है यास्मिन (ङ्घ्नस्रूढ्ढहृ) अगर यह बात पहले ही मुझे सूझ गई होती तो बेचारे यूसुफ अंकल को जान से हाथ न धोना पड़ता. खैर, जो हुआ सो हुआ. ले चलो इन्हें,’’ फैजल फिर बोला.

इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल और साहिल की पीठ थपथपाई और यास्मिन को गिरफ्तार कर लिया.

अंधविश्वास की राजनीति आखिर कबतक

देसी चुनावों में जीत पा जाना कोई कमाल की बात नहीं है खासतौर पर जब यह पैसा देने को भी तैयार हो और भक्तों का चलाया जा रहा मीडिया लोगों को पाखंडी और अंधविश्वासी के साथ राज्य की भक्ति भी सिखा रहा. नेता की ताकत तो तब दिखती है जब दूसरे देश उस की सुनते हों, उसे नाराज करने की हिम्मत न करते हों.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने की वजह से बारीबारी से मिलने वाली जी-20, बड़े 20 देशों की संस्था के अध्यक्ष बने हैं पर उन के अध्यक्ष की कुर्सी लेने के कुछ दिन बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ शुरू कर दी यही नहीं, मुसलिम देशों के संगठन औगैंनाइजेशन औफ इस्लामिक कंट्रीज के महासचिव ने भारत के कश्मीर के उस हिस्से का दौरा कर लिया जो पाकिस्तान ने 1947 से जबरन दबोच रखा है.

अच्छा नेता वह होता है जिस का खौफ न हो तो कम से कम इज्जत हो कि उसे अपने देश में नीचा देखने की जरूरत न पड़े. पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर घूमने जाने से या अरुणाचल प्रदेश में घुस जाने से भारत टूटने नहीं वाला, न उसे…..है पर यह सवाल जरूर कर सकता है कि जब केंद्र में दिल्ली में बैठी सरकार इतनी मजबूत है तो ऐसा हो ही क्यों रहा है.

अपने देश में अपने बलबूते पर चुनाव जीतना किसी देश के नेता के लिए काफी नहीं है. हर देश का नेता चुनाव जीत कर या लड़ कर जीत कर ही नेता बनता है. बड़ा नेता वह होता है जिस की सब की इज्जत करें. जवाहरलाल नेहरू ने 1962 में धोखा खाया था. उन्हें लगा कि महात्मा गांधी के शिष्य होने की वजह से उन्हें दुनिया भर में इज्जत मिलेगी और चाहे चुनाव उन्होंने जीते हो, बेहद लोकप्रिय रहे हो. कानून मानने वाले रहे हों, माओ त्से तुंग के चीन ने. 1862 में हमला कर के मोहभंग कर दिया.

आज भारत ऐसे मोड़ पर बैठा है जहां अपनी गिनती की वजह से, सस्ती मजदूरी की वजह से, बड़ा देश होने की वजह से, सडक़ों, हवाई अड्डों, रेलों के जाल की वजह से वह दुनिया के किसी भी देश से बढ़ कर बन सकता है. पर हो क्या हो रहा है. एक चीन और इस्लामिक देश अपने तेवर दिखा रहे है और दूसरी तरफ भारतीय मजदूर कोठियों में नौकरियां करने के लिए खुद को गुलाम बना कर दुनिया भर में घटिया काम करने के लिए जा रहे हैं.

हमारा हाल तो यह है कि हमारे पढ़ेलिखे ही पढऩे के लिए बाहर जा रहे हैं. देश में अमनचैन की बात की जाती है पर हर साल 2 लाख ङ्क्षहदुस्तानी अपनी नागरिकता छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता अपना लेते हैं.

देश को चलाने के बैलेट या बुलेट की नहीं, सही बैल्ट वाली नीतियों की जरूरत है जो हमारी खिसकती फटी पैंट को रोक सके. देश बाहरी खतरों से ज्यादा तो अदरुनी खतरों से परेशान है और इसीलिए बाहर वाले शेर हो रहे हैं.

एसिड अटैक रोकने में कानून नाकाम

एसिड अटैक रोकने  में कानून नाकाम   देश की राजधानी दिल्ली में अपनी छोटी बहन के साथ जा रही एक लड़की पर द्वारका मोड़ के पास एक लड़के ने एसिड अटैक कर दिया. लड़की ने इस मामले में 2-3 लोगों पर शक जाहिर किया. पुलिस ने सभी 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

लड़की के पिता ने बताया, ‘‘मेरी दोनों बेटियां सुबह स्कूल के लिए निकली थीं. कुछ देर बाद मेरी छोटी बेटी भागती हुई आई और उस ने बताया कि 2 लड़के आए और दीदी पर एसिड फेंक कर चले गए.  हर साल देश में एसिड अटैक के 1,000 से ज्यादा मामले सामने आते हैं. आरोपी पकड़े जाते हैं. पुलिस अपना काम करती है. इस के बावजूद लड़की की जिंदगी खराब हो जाती है. एसिड अटैक को ले कर साल 2013 में कानून बना था.

यह भी एसिड की शिकार लड़कियों की पूरी मदद नहीं कर पा रहा है. कानून के तहत एसिड हमलों को अपराध की श्रेणी में ला कर भारतीय दंड संहिता की धारा 326ए और धारा 326बी जोड़ी गई. इन धाराओं के तहत कुसूरवार पाए जाने पर कम से कम  10 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है. कुछ मामलों में उम्रकैद का भी प्रावधान रखा गया है.  सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में एक पीडि़ता की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कहा था, ‘एसिड हमला हत्या से भी बुरा है.

इस से पीडि़त की जिंदगी पूरी तरह बरबाद हो जाती है.’ इस के बाद एसिड अटैक के पीडि़तों के इलाज और सुविधाओं के लिए भी नई गाइडलाइंस जारी की गई थीं. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को एसिड हमले के शिकार को तुरंत कम से कम 3 लाख रुपए की मदद देने का प्रावधान है. पीडि़ता का मुफ्त इलाज भी सरकार की जिम्मेदारी है.  देखने में यह बेहतर लगता है, पर हकीकत में इस को संभालना बहुत मुश्किल होता है. एसिड की खुली बिक्री पर रोक लगी, इस के बाद भी एसिड मिल रहा है.

साल 2018 से साल 2020 के बीच देश में महिलाओं पर एसिड हमलों के 386 मामले दर्ज किए गए थे. इन में से केवल 62 मामलों के आरोपियों को कुसूरवार पाया गया था. एसिड अटैक की शिकार अपना मुकदमा सही से नहीं लड़ पाती हैं. उन के पास अच्छा वकील करने के लिए पैसे नहीं होते हैं.

एसिड अटैक की शिकार अंशु बताती हैं, ‘‘एसिड अटैक के बाद जिंदगी बेहद मुश्किल हो जाती है. इलाज में लाखों रुपए खर्च होते हैं. सरकार से मिलने वाली मदद लेना बेहद मुश्किल होता है. वह मदद इतनी नहीं होती कि सही तरह से इलाज हो सके.  ‘‘इस के बाद जिंदगी में किसी का साथ नहीं मिलता. एसिड अटैक की शिकार लड़कियों के लिए सरकार को पुख्ता कदम उठाने चाहिए.’’