Madhya Pradesh Crime : दो हजार रुपए की लालच में मां ने अपने ही प्रेमी से कराया बेटी का रेप

Madhya Pradesh Crime : पैसे ले कर बलात्कार के लिए अपनी नाबालिग बेटी को किसी वहशी को सौंपने वाली कई मांएं होंगी, जिन्हें मां के नाम पर कलंक ही कहा जा सकता है. ऊषा भी ऐसी ही मां थी, जिस ने मात्र 600 रुपए में अपनी नाबालिग बेटी को अपने यार महमूद को सौंप  दिया. लेकिन…

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया. रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया. प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था. पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी.

ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी. उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई. पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी. जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी. जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी. महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था.

महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं. उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा. महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता. कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी. ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है. बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा. ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई. महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी. महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया. इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई. 21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

 

Social Crime : बीटेक छात्रा से रेप करने के बाद सबूत मिटाने के लिए कपड़े और फोन को जलाया

Social Crime : अपराधी प्रवृत्ति का राहुल हत्या और बलात्कार के मामले में पकड़ा गया और उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन वह पैरोल पर आ कर भाग निकला. उस ने कई लड़कियों के साथ व्यभिचार किया और उन्हें मार डाला. ऐसे खतरनाक अपराधी…

झारखंड की राजधानी रांची स्थित सीबीआई कोर्ट के जज ए.के. मिश्र की अदालत में 22 दिसंबर, 2019 को कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. वकीलों के अलावा कुछ अन्य लोग भी अदालत की काररवाई शुरू होने से पहले कोर्टरूम में पहुंच चुके थे. अदालत परिसर में तमाम मीडियाकर्मी भी थे. दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था. इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए. राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा. 25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला था. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक थे. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था. राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

बचपन से ही जिद्दी आवारा था राहुल मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम ढलने पर घर लौटता था. घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी. इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा. बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया. जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया. राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

यहां रह कर राहुल उर्फ राज कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में उस पर मर मिटा था. 23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह अपनी बेटियों पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे. बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे. बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देखने के लिए वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

दरिंदे ने भांप लिया था कि अकेली है माही बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई. इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी. माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बना कर रहेगा.

उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला आसानी से खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया. माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस दौरान उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई. उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया. लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे. चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था. फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

केस की जांच पर निगाह रखे था राहुल बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था. वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है. उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कान तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी. जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर थे. इंसपेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की. डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी. सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए. बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 फोन नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे. सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल उर्फ राज का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है. परवेज आलम ने एकएक तथ्य जुटाया वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी. राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है. सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय काल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थीं.

बहन ने पहचाना दरिंदे को राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था. हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली.

तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए. तभी बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की. दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था. इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसलिए इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

—कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

 

 

Social Crime : मजेमजे में सेक्स करने गया और हो गया एड्स

Social Crime : मजेमजे में कई लोग देह व्यापार करने वाली औरतों के पास चले जाते हैं, जबकि ऐसी औरतों से संबंध बनाना बड़े खतरे को दावत देने जैसा है. इस की वजह है सैक्स शिक्षा का अभाव…

देह के धंधे का अहम पहलू ग्राहक होता है. ज्यादातर मामलों में यह साबित हुआ है है कि देह का धंधा केवल इस धंधे में शामिल लड़कियों या औरतों के लिए ही घातक होता है. जबकि हकीकत यह है कि देह का यह धंधा, इस धंधे में शामिल लड़कियों से अधिक ग्राहकों के लिए नुकसानदायक होता है. कुछ पल के मानसिक सुख के बदले ग्राहक को केवल अपना आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस के साथसाथ वह अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ करता है. जिस शारीरिक सुख की कल्पना में वह कालगर्ल या वेश्या के पास जाता है, उस में भी वह ठगा ही महसूस करता है. इस शौक में फंसे लोग बताते हैं कि जब तक वह उन के पास रहते हैं तब तक एक अनजाना सा डर लगा रहता है. पुलिस जब भी ऐसे धंधा करने वालों को पकड़ती है तो सब से खराब हालत ग्राहक की ही होती है.

एक तो ग्राहक पहले ही देहधंधा करने वालों की लूट का शिकार बनता है. उस के बाद अगर पुलिस ने उसे पकड़ लिया तो वह भी कुछ वसूले बिना नहीं छोड़ती. आजकल होटलों में ऐसे धंधे खूब होने लगे हैं. जिस में होटल में कमरा पहले से बुक होता है. लड़की वहां पहले से होती है. ग्राहक वहां जाता है और 2 से 4 घंटे बिता कर चला आता है. देहधंधा कराने वाले 24 घंटे के लिए बुक कमरे में शिफ्ट के अनुसार 3 ग्राहकों तक का इंतजाम कर लेते हैं. ऐसे ही एक होटल में जाने वाले ग्राहक ने बताया, ‘‘जब मैं कमरे से निकल कर होटल से बाहर जाने लगा तो होटल के वेटर और मैनेजर ने रोक कर कहा कि असली सेवक तो वही हैं. उन का भी कुछ हक बनता है. उन्होंने मुझ से 500 रुपए टिप के नाम पर ले लिए.’’

यही लोग ऐसे लोगों के बारे में पुलिस को भी बता देते हैं, तब पुलिस भी कुछ न कुछ नजराना ले लेती है. इस तरह ग्राहक कई जगह ठगा जाता है. पुलिस जब ऐसे किसी रैकेट को पकड़ती है तो समाचारपत्रों में जो फोटो छपती है, उस में लड़कियों के मुंह तो छिपा दिए जाते हैं लेकिन लड़कों के फोटो के साथ ऐसा नहीं किया जाता. इसी तरह खबर में भी लड़कों के वास्तविक नाम छापे जाते हैं, जबकि लड़कियों के नाम बदल दिए जाते हैं. पुरुषों के नाम और फोटो छप जाने से समाज में जो बदनामी होती है, उसे कम कर के नहीं देखा जाना चाहिए. यानी देहधंधे में पकड़े जाने पर लड़कियों से ज्यादा नुकसान लड़कों का होता है. अगर गहराई से देखा जाए तो नुकसान और भी हैं.

लगभग 3 महीने पहले लखनऊ पुलिस ने इसी तरह जिस्मफरोशी के धंधे का रैकेट पकड़ा था. गिरफ्तार की गई लड़कियों को तो थाने से ही जमानत दे दी गई थी, लेकिन लड़कों को अदालत तक जाना पड़ा था. गिरफ्तार किए गए रमेश नाम के एक युवक ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि मेरी शादी होने वाली थी.  एक दोस्त ने कहा शादी के पहले कुछ जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए. चलो, आज तुम्हें एक ऐसी ही लड़की से मिलवाता हूं जो इस बारे में सारी जानकारी दे देगी. मैं दोस्त के साथ चला गया. वह उस अड्डे पर पहले से ही आताजाता था. उस ने मुझे एक लड़की के हवाले कर दिया.

मैं शरमातेशरमाते उस लड़की से बात कर रहा था. इसी बीच वहां पर पुलिस का छापा पड़ गया. पुलिस ने मुझे भी पकड़ लिया. मैं कहता ही रह गया कि पहली बार आया हूं, पर पुलिस ने मेरी एक बात नहीं मानी. अगले दिन अखबारों में मेरी फोटो छपी. खबर और फोटो से मेरी समाज में बदनामी तो हुई ही साथ ही शादी भी टूट गई. यह अकेली परेशानी नहीं है. धंधा करने वाली लड़कियों के साथ पकड़े गए एक और युवक दीपक ने अपने बारे में बताया कि मेरी नौकरी में मुझे टूर पर रहना पड़ता था. एक बार मैं इलाहाबाद के एक होटल में रुका हुआ था. होटल में ही काम करने वाले एक वेटर ने मुझे एक लड़की के बारे में बताया कि यह लड़की बहुत जरूरतमंद है.

इस की मां बीमार रहती है. उस के इलाज के लिए यह कभीकभी किसी ग्राहक के पास जाती है. आज इसे 2 हजार रुपए की जरूरत है. अगर आप मदद कर देंगे तो अच्छा रहेगा. बदले में यह एक रात आप की सेवा में रहेगी. लड़की की मदद की बात सुन कर मेरा दिल भर आया और मैं ने उसे बुला लिया. मैं रात भर उस लड़की और उस की मां के बारे में पूछताछ की. लड़की अपनी दर्दभरी कहानी सुनाती रही. सुबह होने के पहले ही वह पैसा ले कर चली गई. मैं ने उस का पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह एक बदनाम गली की रहने वाली थी. इस के बाद भी पता नहीं क्यों मैं उस लड़की को प्यार करने लगा था. उस से मिलने मैं उस के घर भी जाने लगा. वहां कई लड़कियां मिल कर धंधा करती थीं.

कुछ होटलों के साथ उन का तालमेल था, जहां से मेरे जैसे लोगों को फंसाया जाता था पर मैं इस दलदल से बाहर निकलना ही चाहता था कि पुलिस ने पकड़ लिया. लड़कियों को तो थाने से ही छोड़ दिया गया पर मुझे अदालत से जमानत करानी पड़ी. इस बदनामी के कारण मेरी नौकरी चली गई. घरखानदान की इज्जत गई सो अलग. कुछ लोग तो इन धंधेवालियों के चक्कर में पड़ कर जीवन भर के लिए रोग ले बैठते हैं. ऐसे ही एक आदमी से हमारी मुलाकात हुई. साधूप्रसाद नाम का वह आदमी नौकरी करने मुंबई गया था. बीवीबच्चों से दूर रहने के कारण उस का मन दूसरी औरत से लग गया. राधा नामक एक औरत उस के करीब आई. दोनों के बीच जल्द ही नजदीकी संबंध बन गए.

राधा दूसरी धंधा करने वाली औरतों से अलग थी. जहां दूसरी औरतें कंडोम लगा कर संबंध बनाने के लिए कहती थीं, वहीं राधा बिना कंडोम के ही संबंध बनाती थी. एक दिन बातबात में मैं ने राधा से इस बारे में पूछा तो वह कुछ बताने के बजाए हंसीमजाक कर के बात को टालने लगी. अभी कुछ समय ही बीता था कि वह बीमार रहने लगी उसे तेज बुखार आने लगा था. मैं ने उस से अस्पताल चलने के लिए कहा तो वह बोली कि कोई फायदा नहीं है. यह बीमारी अब मेरी जान ले कर जाएगी.

मैं ने उस से पूछा कि ऐसी क्या बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं है, तो वह बिना किसी संकोच के बोली, ‘‘एड्स, मुझे एड्स हो गया है.’’

मैं अब भी कुछ नहीं समझ पाया और बोला, ‘‘इस के बाद भी तुम बिना कंडोम के यह धंधा करती हो?’’

वह गहरी सांस ले कर कहने लगी, ‘‘मुझे यह बीमारी एक आदमी ने जबरदस्ती दी थी. मैं उस से बारबार कंडोम लगाने के लिए कहती थी लेकिन वह नहीं माना. जब मुझे यह रोग लगा ही गया, तब से मैं ने भी कंडोम लगाना छोड़ दिया.’’

यह सुन कर मैं चक्कर खा गया और अपने गांव लौट आया. बीवीबच्चों को मारपीट कर मैं ने अपने से दूर कर दिया. फिर गांव के बाहर कुटिया बना कर रहने लगा. किसी को नहीं बताया कि मुझे क्या रोग लगा है. मैं नहीं चाहता था कि मेरी बीवी इस रोग की शिकार बने. इसलिए अपनी करनी खुद ही भुगत रहा हूं. अगर एक धंधे वाली के झांसे में नहीं आया होता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता. समाज लड़कियों के प्रति सहानुभूति का रुख रखता है लेकिन लड़कों को वह अपराधी मान लेता है. उसे लगता है कि देह के इस धंधे के लिए पुरुष ही दोषी होता है. इसलिए लड़कों की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता. बदनामी तो हर किसी को मिलती है. चूंकि इस धंधे में काम करने वाली लड़की पहले से ही बदनाम होती है, इसलिए उस की बदनामी के बारे में कोई विचार नहीं किया जाता.

इन के साथ पकड़ा गया लड़का सभ्य समाज का हिस्सा होता है, इसलिए उस की बदनामी ज्यादा मायने रखती है. सामाजिक पहलू के अलावा अगर हम रोगों की बात करें तो पता चलेगा कि पुरुषों को होने वाले ज्यादातर यौन रोग इस तरह के शारीरिक संबंधों के कारण ही होते हैं. थोड़ी सी असावधानी जिंदगी भर के लिए नासूर बन जाती है. देह का यह धंधा सेहत, जेब और सामाजिक हैसियत तीनों को नुकसान पहुंचाता है. इस के बाद भी लोग अनजान औरत पर पैसा क्यों खर्च करते हैं? इस बारे में अलगअलग बातें सामने आईं. साधूप्रसाद ने कहा कि वह अपनी पत्नी से दूर रहता था. इसलिए शरीर की इच्छा को दबा नहीं पाया और एक औरत के पास चला गया. उसे यह नहीं पता था कि यह काम इतना खतरनाक साबित होगा.

इस के विपरीत दीपक ने कहा कि वह लड़की की मदद करने के चक्कर में फंस गया था और लड़की से देह संबंध का लालच ही उस का दुश्मन बन गया. जबकि रमेश ने कहा कि वह गलत स्वभाव के दोस्त के चलते देहधंधा करने वाली लड़की के पास जा पहुंचा. अगर उस की सोहबत गलत लोगों की नहीं होती तो शायद यह नहीं होता. इन सब की बड़ी वजह यौन शिक्षा का अभाव है. अगर सब को यह मालूम हो कि इस तरह के सैक्स संबंधों से कितना नुकसान होगा तो शायद वे इन बातों का खयाल रखेंगे.

 

Social Crime : मसाज सर्विस के नाम पर कारोबारियो को जाल में फंसाया जाता

Social Crime :  दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

 

Social Crime : सट्टे का सही नंबर नहीं बताया तो सिर काट डाला

Social Crime :  हाफिज मुबीन ने सट्टेबाजों में झूठमूठ का जो भ्रम फैलाया था कि वह सट्टे का सटीक नंबर बता सकता है, वह उस के भांजे जीशान को बहुत भारी पड़ा. वह तो जान से गया ही…

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद से 15 किलोमीटर दूर हाइवे से सटा एक गांव है चमरौआ. यह गांव थाना मूंडापांडे के अंतर्गत आता है. इसी गांव में हाफिज मुबीन का परिवार रहता था. हाफिज मुबीन गांव की दरगाह पर बैठते थे. दरगाह पर जायरीनों का आनाजाना लगा रहता था. लोग यहां मन्नतें मांगने आते थे. इस के अलावा हाफिज मुबीन गंडाताबीज से लोगों की समस्याएं भी सुलझाते थे, जिस के लिए लोगों का उन के पास आनाजाना लगा रहता था. हाफिज मुबीन का 12 साल का भांजा उन के पास रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह मामा के घर पिछले 2 सालों से रह रहा था. वैसे जीशान मूलरूप से सहसपुर अलीनगर, अमरोहा का निवासी था. सहसपुर अलीनगर भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी का गांव है.

16 अगस्त, 2018 को जीशान मामा के घर के पास खड़ा था, तभी एक युवक मोटरसाइकिल से वहां पहुंचा. उस ने जीशान से उस के मामा हाफिज मुबीन के बारे में पूछा. जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर बैठे हैं. इस पर युवक बोला, ‘‘मैं ने दरगाह नहीं देखी, क्या तुम वहां तक मेरे साथ चल सकते हो. मैं तुम्हें वापस यहीं छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप 2 मिनट रुकिए, मैं घर में बता कर आता हूं.’’ कह कर 12 साल का जीशान घर में चला गया. उस वक्त घर पर उस की मामी व अन्य महिलाएं थीं. जीशान ने उन से कहा, ‘‘कंजी आंखों वाला एक आदमी मुबीन मामा को पूछ रहा है. उस के पास मोटरसाइकिल है. मैं उसे दरगाह तक छोड़ कर आता हूं.’’

महिलाओं ने सोचा कि कोई जरूरतमंद होगा, इसलिए उन्होंने जीशान से कह दिया कि उसे छोड़ कर जल्द आ जाना.

‘‘ठीक है, अभी आता हूं.’’ कह कर जीशान मोटरसाइकिल वाले के पास आ गया. वह जीशान को बाइक पर बिठा कर वहां से चल दिया. कुछ दूर आगे जा कर जीशान ने दरगाह की ओर जाने वाली सड़क की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इधर मोड़ लो.’’

लेकिन बाइक  वाले ने कहा कि मेरा एक साथी दलपतपुर पुलिस चौकी के पास इंतजार कर रहा है, उसे भी साथ ले लें. युवक बाइक को दलपतपुर की तरफ ले गया. दलपतपुर पुलिस चौकी से 500 मीटर आगे उस ने अपनी बाइक रोक दी. वहां एक युवक खड़ा मिला. बाइक चलाने वाले ने उस से कहा, ‘‘हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं हैं. वह मुरादाबाद गए हुए हैं.’’

उस का साथी भी उसी बाइक पर बैठ गया. जीशान बीच में बैठा था. वे दोनों जीशान को ले कर मुरादाबाद की तरफ चले गए. उस समय शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. उधर जब जीशान रात 8 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो घर में सब उस की चिंता करने लगे. उन्होंने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन जीशान का कुछ पता नहीं चल पाया. घर वाले रात भर उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटा. सभी घर वालों की आंखों से नींद गायब थी. वे लोग बैठे हुए उसी के बारे में बात कर रहे थे, तभी मुबीन के मोबाइल पर एक काल आई. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘जीशान हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें सट्टे का सही नंबर बताना होगा. नंबर लगते ही हम जीशान को आजाद कर देंगे. और हां, अगर पुलिस को बताया तो बहुत बुरा अंजाम होगा.’’

जीशान मामा के घर ननिहाल में रह रहा था. उस के मांबाप सहसपुर अलीनगर में रहते थे. उस के पिता इश्तेखार अहमद को इस बात की जानकारी मिली तो वह चमरौआ पहुंच गए. मामला गंभीर था, इसलिए घर के सभी लोगों ने इस की सूचना पुलिस को देने का फैसला किया. हाफिज मुबीन इश्तेखार अहमद व गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर थाना मूंडापांडे पहुंच गए. उन्होंने एसओ अजय कुमार गौतम से मुलाकात कर पूरे घटनाक्रम के बारे में बता दिया. लेकिन एसओ ने इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया. इस की जगह पीडि़त पक्ष से कह दिया कि बच्चा है, कहीं चला गया होगा, उसे ढूंढ लें.

जीशान ने अपनी मामी से जाते समय कहा था कि कंजी आंखों वाला कोई आदमी मामा को पूछ रहा है. इस से मुबीन को शक हो गया कि उस के भांजे का अपहरण मुरादाबाद के चक्कर की मिलक में रहने वाले आमिर और मुर्सलीन ने किया होगा, क्योंकि ये दोनों उस के पास सट्टे का नंबर पूछने के लिए आते थे. इन में से एक की आंखें कंजी थीं. 2 दिन बाद 18 अगस्त, 2018 को हाफिज मुबीन और उस का भाई यामीन थाने जा पहुंचे गए. उन्होंने आमिर और मुर्सलीन के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. मुबीन ने बताया कि सट्टे का नंबर पूछने को ले कर उन लोगों से उस का कई बार झगड़ा भी हो चुका था.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब मामला मीडिया में उछला तो पुलिस की नींद उड़ गई. उच्चाधिकारियों के आदेश पर थाना मूंडापांडे के एसओ ने नामजद आरोपियों के घर दबिश दे कर दोनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. थाने ला कर जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने कहा कि घटना वाले दिन वे दोनों अपनेअपने घरों पर थे. दोनों ने इतना जरूर बताया कि वे अकसर हाफिज मुबीन से सट्टे का नंबर पूछने जाया करते थे. पुलिस ने उन के मोहल्ले के कुछ लोगों से पूछताछ की तो उन की बात की पुष्टि हो गई. इस से पुलिस को लगा कि ये निर्दोष हैं. अत: उन्हें इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि पुलिस को बिना बताए मुरादाबाद से बाहर न जाएं और पुलिस बुलाए, थाने आ जाएं.

अब पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस नंबर से हाफिज मुबीन के पास काल आई थी. उस डिटेल्स से पता चला कि वह नंबर मुरादाबाद के ही चक्कर की मिलक निवासी इरफान उर्फ राजू का था. इरफान को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इरफान ने बताया कि 18 दिन पहले उस का मोबाइल गुम हो गया था, जिस की सूचना उस ने थाना सिविललाइंस को दे दी थी. उस ने सूचना की रिसीविंग कौपी भी दिखा दी. उस ने बताया कि वह गुम हुए मोबाइल को बंद करवाना भूल गया था. पुलिस जांच जहां से शुरू हुई थी, घूमफिर कर वहीं आ कर रुक गई. आखिर मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने जीशान अपहरण कांड को सौल्व करने के लिए 2 टीमों का गठन किया.

पहली टीम का नेतृत्व सीओ (हाइवे) राजेश कुमार कर रहे थे. उन के साथ थाना मूंडापांडे के एसओ अजय कुमार थे. जबकि दूसरी टीम में सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार थे. इस टीम का नेतृत्व सीओ सुदेश कुमार गुप्ता को सौंपा गया था. 19 अगस्त, 2018 को रविवार था. उस दिन मुरादाबाद शहर के थाना मुगलपुरा क्षेत्र में आने वाली रामगंगा नदी के किनारे एक बच्चे की सिरकटी लाश मिली. मौके पर एसपी (सिटी) अंकित मित्तल भी आ गए थे. मृत बच्चा नीले रंग की लोअर व टीशर्ट पहने हुए था. पुलिस ने आसपास के लोगों को बुला कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

लाश की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि बच्चे की हत्या 2-3 दिन पहले की गई थी. 20 अगस्त, 2018 को अखबारों में जब एक बच्चे की सिर कटी लाश मिलने की खबर छपी तो जीशान के पिता इश्तेखार अहमद और मामा यामीन पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. कपड़ों और कदकाठी के आधार पर उन्होंने लाश की पहचान जीशान के रूप में की. बकरा ईद से पहले जीशान की मौत की खबर से उस की ननिहाल और पैतृक गांव सहसपुर अलीनगर में मातम सा छा गया था. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. शिनाख्त हो जाने के बाद बच्चे का सिर ढूंढना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. अब तक यह मामला आईजी विनोद कुमार और एडीजी प्रेम प्रकाश के संज्ञान में आ चुका था.

बकरा ईद का त्यौहार आने वाला था. मुरादाबाद जिला वैसे भी अति संवेदनशील की श्रेणी में आता है. त्यौहार पर कोई बवाल न हो जाए, इसलिए एडीजी प्रेम प्रकाश ने मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ को निर्देश दिए थे कि जीशान के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए. जांच में पहले से जुटी दोनों टीमों ने जांच और तेज कर दी. अपहर्त्ताओं ने जिस फोन नंबर से हाफिज मुबीन को फोन किया था, वह स्विच्ड औफ आ रहा था और उस की अंतिम लोकेशन मुरादाबाद के रामगंगा पुल, जामा मसजिद के पास की आ रही थी. पुलिस ने इस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि इस नंबर से और भी कई जगह काल की गई थीं.

इस फोन पर आई काल वाले नंबरों की जांच के बाद पुलिस ने मुरादाबाद के जामा मसजिद, चामुंडा वाली गली में दबिश दे कर रशीद और उस के बेटे सुहैल को गिरफ्तार कर लिया. पहले तो वे खुद को निर्दोष बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वे टूट गए. उन से पूछताछ के बाद उन के 2 सहयोगियों फैजान निवासी मुगलों वाली मसजिद, मुरादाबाद, फराज खान निवासी वारसी नगर (हाथी वाला मंदिर) को भी गिरफ्तार कर लिया गया. चारों अभियुक्तों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही जीशान का अपहरण कर के उस का गला रेता था. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 24 अगस्त की रात को थाना गलशहीद के कब्रिस्तान से जीशान का सिर बरामद कर लिया.

पुलिस ने जीशान के सिर का पोस्टमार्टम करवा कर उसे उस के परिवार वालों के सुपुर्द कर दिया और चारों अभियुक्तों रशीद, सुहैल, फैजान और फराज खान से पूछताछ की तो जीशान की हत्या की कहानी कुछ इस तरह पता चली—

जिला मुरादाबाद के चमरौआ गांव निवासी हाफिज मुबीन गांव की एक दरगाह पर बैठते हैं. ये चारों आरोपी पिछले 3 सालों से उन के पास सट्टे का नंबर पूछने आते रहते थे. शुरूशुरू में हाफिज मुबीन ने उन्हें सट्टे के जो नंबर बताए, वे इत्तफाक से सही निकले, जिस से इन लोगों ने अच्छा पैसा कमाया. उन पैसों में से इन्होंने हाफिज मुबीन को भी अच्छी दक्षिणा दी. इस के बाद हाफिज मुबीन इस इलाके में मशहूर हो गए. लोग कहने लगे कि हाफिज मुबीन के बताए नंबर पर ही सट्टा खुलता है. इस से मुबीन के पास दूरदूर से सट्टेबाज आने लगे. मुबीन की भी अच्छी कमाई होने लगी. आरोपियों ने बताया कि कुछ दिन तक हाफिज मुबीन द्वारा बताए गए सट्टे के नंबर सही निकले, लेकिन उस के बाद हाफिज मुबीन ने जो नंबर दिए, उन पर सट्टा नहीं खुला.

उन्होंने सट्टे से जो कुछ कमाया, वह तो गंवा ही दिया साथ ही अपनी जमापूंजी भी गंवा दी. इस के अलावा उन्होंने अपना गंवाया हुआ पैसा पाने के चक्कर में लोगों से उधार लेले कर भी सट्टे में लगा दिया. यह बात उन्होंने हाफिज मुबीन से कही तो उस ने टका सा जवाब दे दिया कि अगर मेरे बताए नंबर से आप लोग संतुष्ट नहीं हैं तो किसी दूसरे तांत्रिक को ढूंढो. विश्वास नहीं है तो मेरे पास मत आना. इस के बाद हाफिज मुबीन ने इन चारों को भाव देना बंद कर दिया था. इस की एक वजह यह भी थी कि उन के पास सट्टे का नंबर जानने के लिए लोग लग्जरी गाडि़यों से आने लगे थे, जो मोटी रकम दे कर जाते थे.

हाफिज मुबीन ने इन चारों से बात करनी भी बंद कर दी थी. जब ये लोग ज्यादा जिद करने लगे तो वह फिर आने की बात कह कर टाल देते थे. बरबाद हो चुके ये चारों लोग बहुत परेशानी में थे. आखिर चारों ने मिल कर योजना बनाई कि क्यों न हाफिज मुबीन के भांजे जीशान का अपहरण कर लिया जाए. जीशान भी खाली समय में मामा के साथ दरगाह पर बैठता था. फिरौती के बदले उस से सट्टे का नंबर मालूम करेंगे. भांजे की वजह से हाफिज सट्टे का सही नंबर बता देगा. योजना के अनुसार, रशीद का बेटा मोहम्मद सुहैल, फराज के साथ 16 अगस्त, 2018 को अपनी बाइक से हाफिज मुबीन के गांव चमरौआ पहुंचा. योजना के अनुसार, फराज चमरौआ से पहले दलपतपुर पुलिस चौकी के पास बाइक से उतर गया था.

दिन के करीब सवा 4 बजे अभियुक्त सुहैल बाइक से चमरौआ गांव पहुंचा. उस समय हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं था. सुहैल ने हाफिज मुबीन के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि वह किसी काम से मुरादाबाद गए हैं. उस के बाद सुहैल हाफिज मुबीन के घर पहुंचा. घर के बाहर जीशान मिला. सुहैल ने जीशान से पूछा कि हाफिज जी हैं तो जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर गए हुए हैं. सुहैल ने जीशान से कहा कि मुझे दरगाह तक छोड़ दो, मैं ने दरगाह नहीं देखी. मैं फिर तुम्हें यहीं छोड़ जाऊंगा. जीशान घर पर मौजूद महिलाओं से पूछ कर उस की बाइक पर बैठ कर चला गया. सुहैल को दरगाह जाना ही नहीं था. उस ने अपने साथियों के साथ पहले से जो योजना बना रखी थी, उस योजना को अंजाम देना था, इसलिए दरगाह के बजाए सुहैल किसी बहाने से हाइवे की तरफ मुड़ कर दलपतपुर की तरफ ले गया. क्योंकि वहां पहले से ही उस का साथी फराज उस का इंतजार कर रहा था.

वह जीशान को फराज के पास ले गया. फराज ने जीशान से कहा कि हाफिज जी चंदर के ढाबे पर हैं, तो वहीं बुला रहे हैं. चंदर का ढाबा भी वहां से करीब एक किलोमीटर दूर था. इलाके में वह ढाबा मशहूर था, जीशान भी कई बार वहां जा चुका था. सुहैल बाइक चला रहा था. बीच में जीशान बैठा था, उस के पीछे फराज बैठा था. वे बाइक को मुरादाबाद की तरफ ले गए. जब चंदर का ढाबा निकला तो जीशान ने कहा कि ढाबा तो पीछे छूट गया. उसी समय फराज ने जानवर काटने वाली छुरी निकाल कर जीशान को दिखाते हुए कहा कि चुपचाप बैठा रह, नहीं तो एक ही बार में गरदन अलग हो जाएगी. तू हमारे साथ चल. हमें तेरे मामू से सट्टे का नंबर पूछना है. उस के बाद तुझे छोड़ देंगे.

सुहैल और फराज जीशान को रामपुर तिराहे से हो कर रामगंगा नदी पुल पार कर के जामा मसजिद के पास बरबलान चामुंडा वाली गली में ले गए. वहीं पर सुहैल का घर था. जीशान के हाथपैर बांध कर सुहैल के घर में डाल दिया गया. 16 अगस्त, 2018 की रात 9 बजे सुहैल के पिता रशीद ने हाफिज मुबीन को फोन कर के बताया कि तेरा भांजा जीशान हमारे पास है. तू पैसे वाले और लोगों को सट्टे का ठीक नंबर बताता है और हमें गलत नंबर बता कर तूने हमें बरबाद कर दिया है. अगर अपने भांजे को सहीसलामत देखना चाहता है, तो सट्टे का सटीक नंबर बता दे. हम इंतजार कर रहे हैं.

फोन आने के बाद हाफिज मुबीन व उन का परिवार सकते में आ गया. हाफिज मुबीन ने फोन करने वालों को समझाया कि अब मैं सट्टे का नंबर नहीं दे सकता क्योंकि मैं दरगाह से घर आ गया हूं. कल बता दूंगा. जीशान के अपहरण की बात सुन कर मुबीन के परिवार में रोनाधोना शुरू हो गया. पूरे गांव में जीशान के अपहरण की खबर फैल चुकी थी. उधर अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसे जीशान का बुरा हाल था. वह कह रहा था कि अगर आप ने मेरे मामा से सट्टे का नंबर पूछ लिया हो तो मुझे गांव छोड़ दो. अपहर्त्ताओं ने उसे बताया कि अभी तेरे मामा ने सट्टे का नंबर नहीं बताया है. जीशान का धैर्य जवाब दे रहा था. उस ने रशीद से कहा कि अंकल मैं आप को पहचानता हूं, आप कई बार दरगाह पर सट्टे का नंबर लेने आते रहे हैं. मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है? मैं आप के बारे में हाफिज जी को बता दूंगा कि आप मुझे पकड़ कर ले यहां आए हैं.

इस के बाद उन चारों ने आपस में सलाह किया कि अगर जीशान ने मुंह खोल दिया तो सभी सलाखों के पीछे होंगे. उसी समय उन्होंने फैसला कर लिया कि इस का काम तमाम कर देना चाहिए. फिर 16 अगस्त की रात करीब 10 बजे रशीद घर में रखी मांस काटने वाली छुरी ले आया. उस के आते ही सुहैल, फराज और फैजान ने जीशान के हाथपैर, बाल पकड़े और रशीद ने छुरे से उस का गला रेत दिया. रशीद जीशान के गले पर तब तक छुरी चलाता रहा, जब तक सिर शरीर से अलग नहीं हो गया था. फिर चारों जीशान का धड़ बोरे में रख कर पास बह रही रामगंगा नदी के किनारे डाल आए. उस के बाद सुहैल ने हाफिज मुबीन को फिर फोन किया और सट्टे का सही नंबर मांगा.

19 अगस्त, 2018 को थाना मुगलपुरा की पुलिस ने रामगंगा नदी के किनारे एक बोरे में सिरकटी लाश बरामद की, जिस की उस दिन शिनाख्त नहीं हो सकी. पुलिस ने अभियुक्तों के पास से जीशान के जूते, घड़ी, वारदात में इस्तेमाल की गई छुरी और बाइक बरामद कर ली. चारों मुलजिमों को 26 अगस्त, 2018 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

MP Crime : चचेरी बहन ने फर्जी टैक्स अधिकारी बनकर भाई से वसूले 6 लाख रुपए

MP Crime : चचेरीकुछ लोग समझते हैं कि पुलिस, सीबीआई या इनकम टैक्स अफसर बन कर पैसे वालों से आसानी से पैसा ऐंठा जा सकता है. रौबदाब तो रहता ही है, लेकिन वे असली नकली के फर्क को भूल जाते हैं और यहीं…    

टना मध्य प्रदेश (MP Crime) के ग्वालियर जिले की है. घाटीगांव, ग्वालियर के सर्राफा बाजार में कमल किशोर कीनयन ज्योति ज्वैलर्सके नाम से ज्वैलरी शौप है. कमल किशोर ग्वालियर के लश्कर क्षेत्र में रहते हैं. 10 अक्तूबर को कमल के चाचा विष्णु सोनी का उस के पास फोन आया. चाचा ने बताया कि देविका इनकम टैक्स विभाग में अधिकारी बन गई है. इतना ही नहीं, देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य को भी इनकम टैक्स विभाग में अच्छी नौकरी लगवा दी है. चचेरी बहन देविका और आदित्य के इनकम टैक्स विभाग में अफसर बनने पर कमल किशोर बहुत खुश हुआ. देविका विष्णु सोनी की एकलौती बेटी थी. विष्णु आटो चलाता था. उस की ग्वालियर के पास गुना में कुछ जमीन थी, जो उस ने बंटाई पर दे रखी थी.

देविका ने ग्वालियर के ही रहने वाले अपने जिस फुफेरे भाई आदित्य को अपने विभाग में नौकरी पर लगवाया था, वह सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत परेशान था. उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी जब उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दूध की डेयरी खोल ली थी. इस के साथ ही विष्णु सोनी ने कमल किशोर को जो बात बताई, वह चौंकाने वाली थी. विष्णु ने बताया कि देविका बता रही थी कि इनकम टैक्स विभाग तुम्हारे ज्वैलरी शोरूम पर रेड (छापेमारी) की तैयारी कर रहा है. इस बारे में चाहो तो देविका से बात कर लेना. इस के बाद कमल किशोर ने देविका और फुफेरे भाई आदित्य से बात की. इस पर देविका और आदित्य ने कहा कि बात तो सही है. आप के शोरूम पर रेड का आदेश आने वाला है. देविका ने कमल को बताया कि अगर ऐसा होता है तो वह उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

 रेड की सूचना की पुष्टि हो जाने पर कमल किशोर की चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. वैसे कमल किशोर का बहीखाता, हिसाबकिताब सही था. फिर भी उस ने हिसाबकिताब बारीकी से सही करने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन इस के पहले ही 21 अक्तूबर की दोपहर में उस की चचेरी बहन देविका और भाई आदित्य सोनी 5 व्यक्तियों की टीम ले कर सर्राफा मार्केट स्थित उस के ज्वैलरी शोरूम पर छापेमारी करने पहुंच गए. इस टीम ने बारीकी से ज्वैलरी खरीदने और बेचने के बिल चैक किए. 6 घंटे तक चली काररवाई में उन्होंने कमल के खातों में कई कमियां निकाल दीं, जिस की उन्होंने 18 लाख रुपए की पेनल्टी लगाई.

कमल किशोर के सभी खाते लगभग सही थे, परंतु पेनल्टी की इतनी बड़ी राशि सुन कर वह चिंता में पड़ गया. ऐसे में देविका और आदित्य ने मदद के लिए आगे कर 6 लाख रुपए में समझौता करने की बात कही. कमल किशोर के पास उस वक्त 60 हजार रुपए थे. देविका ने 60 हजार रुपए ले कर बाकी के 5 लाख 40 हजार रुपए का अगले दिन इंतजाम करने को कहा. इस के बाद पूरी टीम वहां से चली गई. देविका के जाने के बाद कमल किशोर ने इस मामले पर गौर से सोचा तो उसे इनकम टैक्स विभाग का छापेमारी का यह तरीका कुछ समझ में नहीं आया

उसे यह भी शक होने लगा कि अगर देविका किसी तरह इनकम टैक्स अधिकारी बन भी गई तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आदित्य को भी अपने विभाग में अफसर बनवा दे. क्योंकि सरकारी नौकरी पाने की भी एक प्रक्रिया होती है, जो कई महीनों में पूरी होती है. फिर इतनी जल्दी आदित्य को नौकरी कैसे मिल गईशक की दूसरी वजह यह भी थी कि अगले दिन से ही कमल किशोर के पास आदित्य और देविका के 5 लाख 40 हजार रुपए जमा करने के लिए फोन आने लगे. इस बारे में उस ने कुछ व्यापारियों से बात की तो उन्हें भी छापेमारी की यह काररवाई संदिग्ध लगी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस से करने की सलाह दी. इस के बाद कमल किशोर ने ग्वालियर के भारीपुर थाने में जा कर टीआई प्रशांत यादव से मुलाकात की और उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

कमल किशोर की बात सुन कर टीआई भी समझ गए कि यह किसी ठग गिरोह की करतूत हो सकती है, इसलिए उन्होंने तत्काल इस की जानकारी एसडीपीओ (थाटीपुर) प्रवीण अस्थाना के अलावा एसपी नवनीत भसीन को दे दी. उक्त अधिकारियों के निर्देशानुसार टीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. टीआई प्रशांत यादव ने देविका, आदित्य के मोबाइल नंबरों पर फोन लगा कर उन्हें थाने आने को कहा. लेकिन वह थाने नहीं आए. जवाब में देविका ने टीआई से कहा कि छापेमारी के सारे कागजात हम ने एसपी औफिस और कलेक्टर औफिस में जमा कर दिए हैं, इसलिए वे थाने कर बयान दर्ज करवाना जरूरी नहीं समझते.

इस बात से पुलिस को विश्वास हो गया कि कमल किशोर के साथ ठगी हुई है. क्योंकि इनकम टैक्स द्वारा की गई छापेमारी के कागजात एसपी या कलेक्टर औफिस जमा कराने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए पुलिस बारबार देविका और उन की टीम को फोन कर के थाने आने के लिए दबाव बनाने लगीइस के 3 दिन बाद 24 अक्तूबर, 2019 को देविका आदित्य अपने साथियों इसमाइल, भूपेंद्र, गुरमीत उर्फ जिम्मी के साथ थाने पहुंच गए. इन पांचों से पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की. सब से की गई पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि कमल किशोर के शोरूम पर छापेमारी करने वाले देविका और अन्य लोग फरजी आयकर अधिकारी थे, जिन्होंने बड़े शातिराना ढंग से अपना गिरोह बनाया था. पुलिस ने पांचों को गिरफ्तार कर दूसरे दिन अदालत में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

करीब 6 महीने पहले देविका काम की तलाश में दिल्ली गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात जुबैर नाम के एक युवक से हुई. जुबैर ने उसे अपना परिचय सीबीआई के अंडरकवर एजेंट के रूप में दिया. देविका नहीं जानती थी कि अंडरकवर एजेंट क्या होता है. वह तो सीबीआई के नाम से ही प्रभावित हो गई थी. अपनी बातों के प्रभाव से जुबैर ने जल्द ही देविका को शीशे में उतार लिया, जिस के बाद दोनों की अलगअलग होटलों में मुलाकात होने लगी. जुबैर शातिर था. उस के कहने पर देविका ने अपने नाम से एक मोबाइल और एक सिमकार्ड खरीद कर उसे दे दिया. जुबैर हमेशा उसी नंबर से देविका से बात करता था.

दोनों की दोस्ती बढ़ी तो जुबैर ने उसे इनकम टैक्स अधिकारी बनाने का सपना दिखाया. फिर देविका से मोटी रकम ले कर उस ने उसे आयकर विभाग में आयकर अधिकारी के पद पर जौइनिंग का लेटर दे दिया. साथ ही पूरा काम समझा कर वापस ग्वालियर भेज दिया. साथ ही यह निर्देश भी दिया कि वह वहां जा कर पूरी टीम गठित कर ले. ग्वालियर कर देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य सोनी को अपनी टीम में शामिल किया. फिर आदित्य ने टोपी बाजार में चश्मे की दुकान चलाने वाले गुरमीत उर्फ जिम्मी को सीधे इनकम टैक्स अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया

बाद में देविका ने बरई थाना परिहार में रहने वाले मोटर वाइंडिंग मैकेनिक इसमाइल खां को इनकम टैक्स इंसपेक्टर और भूपेंद्र कुशवाह को सीबीआई अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया. इस तरह एक महीने में ही ग्वालियर में पूरी टीम खड़ी करने के बाद देविका ने इस की जानकारी जुबैर को दी तो उस ने देविका को अकेले मिलने के लिए दिल्ली बुलाया. देविका 2 दिन दिल्ली स्थित एक होटल में रही. तभी देविका ने जुबैर को बताया कि उस के ताऊ के बेटे कमल किशोर की ज्वैलरी की दुकान है, अगर वहां छापा मारा जाए तो मोटी रकम हाथ लग सकती है. जुबैर ने देविका को समझा दिया कि छापा किस तरह मारना है और कैसे मोटी रकम ऐंठनी है

देविका दिल्ली से ग्वालियर लौटी तो कमल किशोर की दुकान में छापा मारने की तैयारी करने लगी. फिर उस ने अपनी टीम के साथ 21 अक्तूबर को कमल किशोर की दुकान पर छापेमारी की. 18 लाख की पेनल्टी का डर दिख कर उस ने कमल से 6 लाख में समझौता कर के 60 हजार रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद वह कमल किशोर से 5 लाख 40 हजार रुपए की मांग करती रहीजिम्मी के पास से पुलिस ने कमल किशोर से ठगे गए रुपयों में से 4 हजार रुपए बरामद किए. जिम्मी ने बताया कि बाकी रुपए उन्होंने घूमनेफिरने पर खर्च कर दिए थे. छापेमारी के बाद सभी लोग किराए की इनोवा कार ले कर दिल्ली गए, जहां वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके. यहां एक दिन रुकने के बाद मथुरा आए और गिरराजजी की परिक्रमा की. फिर वापस मोहना में देविका के घर गए.

पुलिस ने पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

 

Lucknow Crime : शेल्टर होम में लड़कियों के साथ जबरन कराया जाता देह व्यापार

Lucknow Crime : शेल्टर होम वृद्ध, अनाथ बच्चों, बेसहारा महिलाओं वगैरह के लिए बनाए जाते हैं, जिन्हें सरकार से प्रोजेक्टों के नाम पर मोटा पैसा मिलता है, लेकिन इन शेल्टर होम्स के अंदर की सच्चाई कुछ और ही होती है. देवरिया का शेल्टर होम भी…  

5 अगस्त, 2018 की दोपहर का समय था. उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर के स्टेशन रोड स्थित एक शेल्टर होम से निकल कर 15 साल की एक लड़की शहर कोतवाली पहुंची. वह पहली बार किसी थाने में आई थी, इसलिए उसे यह समझ नहीं रहा था कि किस से क्या बात करे. उस ने मन को पक्का कर लिया था कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बात पुलिस को बता कर ही रहेगी. थाने में घुसते ही कुरसी पर बैठे जो अधिकारी दिखे वह उन के पास ही पहुंच गई. वह थानाप्रभारी थे. उस लड़की ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘अंकल, हम जिस शेल्टर होम में रहते हैं, उस में क्याक्या होता है, हम आप से बताना चाहते हैं.’’

थानाप्रभारी ने उसे पूरी बात बताने को कहा तो वह आगे बोली, ‘‘अंकल, हफ्ते के आखिरी दिनों में शेल्टर होम से लड़कियों को जबरदस्ती अनजान लोगों के साथ लाल और नीली बत्ती लगी गाडि़यों में भेजा जाता है, जहां उन का यौनशोषण होता है.

‘‘यही नहीं, जब कोई लड़की उन की बात मानने से इनकार करती है तो उसे परेशान किया जाता है, उस पर जुल्म ढाए जाते हैं. लड़कियां रात भर बाहर रहती हैं और सुबह मुंहअंधेरे उन्हीं गाडि़यों से शेल्टर होम लौट आती हैं.

‘‘जो लड़कियां मैडम के कहे अनुसार काम करती हैं, उन से मैडम खुश रहती हैं और उन के साथ अच्छा व्यवहार करती हैं. लड़कियों को लगता है कि मैडम की बात और उन की पहुंच बहुत ऊपर तक है, इसलिए वे उन से डरती हैं.’’

उस लड़की की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी को मामला गंभीर दिखाई दिया. वह लड़की जो थाने आई थी, मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह, देवरिया की थी. इस संस्था के गोरखपुर और सलेमपुर में भी शेल्टर होम हैं. इस की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी हैंशेल्टर होम की ऐसी ही घटना बिहार के मुजफ्फरपुर में घटी थी, जिस की पूरे देश में किरकिरी हो रही थी. इस घटना से बिहार सरकार भी बैकफुट पर थी, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी तुरंत एसपी रोहन पी. कनय को दी. एसपी ने पहले इस मामले की जांच के आदेश दिए. उसी शाम को थाना पुलिस जब मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह पहुंची तो वहां कई लड़कियां और बच्चे गायब मिले.  

यह जानकारी जब देवरिया पुलिस ने लखनऊ में बैठे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो सभी के होश उड़ गए. क्योंकि संस्था की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी एक जानीमानी शख्सियत थी. उस के पति मोहन त्रिपाठी और बेटी लता त्रिपाठी भी संस्था चलाने में सहयोग करते थे. गिरिजा त्रिपाठी पहले हाउसवाइफ थी, जबकि पति भटनी शुगर मिल में काम करता था. पति के वेतन से ही किसी तरह घर का खर्च चलता था. ऐसे में गिरिजा त्रिपाठी ने सामान्य औरतों की तरह घर पर ही कपड़े सिलने का काम शुरू किया, जो वक्त के साथ सिलाई सेंटर बन गया.

पति की नौकरी जाने के बाद उस ने सन 1993 में चिटफंड कंपनी खोली. बाद में इसी कंपनी का प्रारूप बदल कर एनजीओ बना दिया गया. वैसे गिरिजा त्रिपाठी रूपई गांव की रहने वाली थी. उस की ससुराल पड़ोस के ही नूनखार गांव में थी. सन 2003 के करीब गिरिजा त्रिपाठी की संस्था को शेल्टर होम खोलने का प्रोजेक्ट मिला. सरकार ने इस के लिए बजट भी देना शुरू कर दियाधीरेधीरे गिरिजा त्रिपाठी ने शासन और प्रशासन में गहरी पैठ बना ली, जिस का फायदा उठाते हुए उस ने देवरिया के अलावा गोरखपुर और सलेमपुर में भी वृद्धाश्रम खोल लिया. रजना बाजार और उसरा के पास भी संस्था के नाम से उस ने काफी प्रौपर्टी खरीद ली.

उत्तर प्रदेश सरकार की कई योजनाओं के संचालन के काम भी गिरिजा त्रिपाठी की संस्था मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह को मिलने लगे, इस में सरकार की महत्त्वाकांक्षी पालन गृह योजना भी थी. इस के अलावा योगी सरकार ने जब सामूहिक विवाह योजना का काम शुरू किया तो इन लोगों को उस में भी जगह मिल गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी बच्चों को गोद देने का भी एक सेंटर चलाती थी, जो बाल कल्याण समिति के अधीन काम करता था. वहां से बच्चों को गोद दिया जाता था. किसी वजह से 23 जून, 2017 के बाद इस संस्था की मान्यता रद्द कर दी गई थी. इस के बावजूद यहां पर शेल्टर होम के लिए लड़कियां और बच्चे लाए जा रहे थे.

कई लड़कियां ऐसी थीं, जिन्होंने घर से भाग कर शादी की थी. ऐसे मामलों में पुलिस लड़के को जेल भेजने के बाद लड़की को शेल्टर होम भेज देती है. पता चला कि शेल्टर होम में ऐसी लड़कियों को डराधमका कर उन से जिस्मफरोशी कराई जाती थीपुलिस ने ऐसी बालिग लड़कियों को उन के मांबाप के पास भेजने की कोशिश की, लेकिन उन लड़कियों ने यह सोच कर घर जाने से मरा कर दिया कि अगर घरपरिवार वालों को पता चला कि वे गलत काम करती हैं तो उन की बदनामी तो होगी ही, साथ ही जेल से आने के बाद उन का पति भी साथ रखने से मना कर देगा.

कई लड़कियों ने बताया कि उन से घरेलू नौकर का काम कराने के लिए भी दूसरी जगह भेजा जाता था. पुलिस के पास जो लड़की शिकायत दर्ज कराने आई थी, उस का नाम नीता (परिवर्तित नाम) था. वह भी घर से भाग कर आई थी और गरीब घर की थी. उस के घर वालों को खाने तक के लाले पड़े थे. नीता इस संस्था में करीब 3 महीने पहले ही आई थी. जब उसे रात को कार से कहीं भेजा गया तो वह मौका पा कर भाग निकली और पुलिस तक पहुंच गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी का रसूख देवरिया, गोरखपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक था. वह हर सरकार में सत्ता के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों तक अपनी पहुंच रखती थी. इसी वजह से संस्था की मान्यता रद्द होने के बावजूद उस के शेल्टर होम में लड़कियां भेजी जाती रहीं

पुलिस खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार हरकत में आई और पुलिस की उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. एसआईटी जांच की अगुवाई की जिम्मेदारी एडीजी संजय सिंघल को सौंपी गई. जांच में 2 महिला आईपीएस अधिकारियों पूनम और भारती सिंह के अलावा सीओ अर्चना सिंह, इंसपेक्टर ब्रजेश सिंह आदि को भी शामिल किया गया. पुलिस और प्रोबेशन विभाग अलगअलग जांच करने में जुट गए. पुलिस ने संस्था के खिलाफ अलगअलग मामलों में भादंवि की धारा 188, 189, 310, 343, 354, 504, 506 के साथ 7/8 पोक्सो एक्ट और जेजे एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया. सरकार के साथ हाईकोर्ट ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया.

पुलिस की एसआईटी ने जांच के काम को जिस तरह से आगे बढ़ाया, उस में कई ऐसे प्रमाण मिले, जिस से पता चला कि शेल्टर होम में तमाम तरह की गड़बडि़यां थीं. सैक्स रैकेट तो बस उस का एक हिस्सा भर था. इस के अलावा चाइल्ड लेबर और बच्चों को गोद दिए जाने के भी तमाम मामले थे. गिरिजा ने अपने बेटे, बहू और बेटियों को भी संस्था से जोड़ रखा था. जांच कर रही पुलिस टीम के पास अलगअलग तरह की शिकायतें रही थीं. कई परिवारों की लड़कियां गायब थीं और कुछ के नाम ही दर्ज नहीं थे. ऐसे में वहां पर सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल काम था.

पुलिस ने देवरिया के साथ गोरखपुर की चाणक्यपुरी कालोनी में ओल्ड एज होम का पता लगाया. गोरखपुर के इस शेल्टर होम को गिरिजा की दूसरी बेटी कनकलता देख रही थी. वह जिले के प्रोबेशन विभाग में थी. गोरखपुर प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि ओल्ड एज होम में लड़कियों का आनाजाना तो नहीं थागोरखपुर के डीएम विजयेंद्र पांडियन और एसएसपी शलभ माथुर ने अपनी देखरेख में जांच आगे बढ़ाई. यहां पुलिस ने कई लोगों को पकड़ा भी. यह होम बिना मान्यता के चल रहा था. आरोप तो यह भी है कि यहां देवरिया से ला कर लड़कियों को रखा जाता था.

देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में सरकार ने जिले के आला अफसरों को बदल दिया. बस्ती की रहने वाली एक लड़की ने बताया कि उसे धमकी दे कर शेल्टर होम से बाहर ले जाया जाता था. डराया जाता था कि अगर तुम बाहर नहीं गई तो तुम्हारे पति को मरवा देंगे. इस लड़की ने बताया कि शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियां थीं, जो प्रेम विवाह करने के बाद यहां रह रही थीं. उन का भी शोषण होता था. उत्तर प्रदेश महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि इस में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका ठीक नहीं पाई गई. जब सन 2017 से इस शेल्टर होम की मान्यता नहीं थी तो वहां पर लड़कियों को पुलिस क्यों भेज रही थी?

सरकार ने सूचना मिलते ही कड़े कदम उठाए हैं. देवरिया के शेल्टर होम को सन 2010 में मान्यता दी गई थी. उसी समय बाल संरक्षण, बालिका संरक्षण महिला संरक्षण के प्रोजेक्ट दिए गए थे. रीता बहुगुणा ने कहा कि विपक्ष के जो लोग देवरिया कांड की आलोचना कर रहे हैं, उन के कार्यकाल में ही ऐसी संस्थाओं को लाइसैंस दिया गया था. ऐसे में विपक्ष बेकार का मुद्दा बना रहा है. योगी सरकार ने इस मामले पर त्वरित काररवाई कर के कड़ा संदेश दिया है. शेल्टर होम की जांच कर रही एसआईटी टीम 20 अगस्त को शेल्टर होम की अधीक्षिका कंचनलता को जांच के लिए साथ ले गई. बालगृह भवन में प्रवेश करते समय अंदर की बिजली गुल थी. कमरों में अंधेरा छाया हुआ था. उन्हीं बंद कमरों में लड़कियों को रखा जाता था. एसआईटी ने कई तथ्य जुटाए.

सुबह जांच करने गई टीम ने शाम 5 बजे तक जांच की और मिली सामग्री अपने कब्जे में ले ली. एसआईटी ने गिरिजा त्रिपाठी के परिवार की लाल रंग की बत्ती लगी कार को जब्त कर लियाजांच में पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है, जिस के बाद 100 से अधिक एसआई जांच में फंस सकते हैं. टीम ने लड़कियों के कपड़े, खिलौने, बिस्तर की भी जांच की. शेल्टर होम के कार्यालय में टंगी फोटो से यह पता चला कि कौनकौन से लोग यहां कार्यक्रमों में आते रहे हैं. पुलिस उन से भी पूछताछ कर सकती है. दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने लड़कियों के नाम सार्वजनिक करने वालों को भी गलत बताया और पूछा कि जब कोर्ट ने लड़कियों को किसी से मिलने देने से मना किया था तो प्रशासन ने लड़कियों की गोपनीयता का खयाल क्यों नहीं रखा.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डी.बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा इस केस को सुन रहे हैं. जांच और कोर्ट के फैसले के बाद ही शेल्टर होम का सच सामने सकेगापूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि शेल्टर होम जिस मकसद से बने हैं, उन को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में कोई कोई पारदर्शी व्यवस्था प्रशासन और सरकार को बनानी चाहिए, तभी ये जरूरतमंदों को सहयोग कर सकेंगे.

Inspector ने फेसबुक के जरिए पकड़ा शातिर चोर

इंसपेक्टर (Inspector) अनिरुद्ध सिंह जानते थे कि लड़की के नाम पर बड़ेबड़े फिसल जाते हैं. जबकि आरिफ तो अभी लड़का है. उन्होंने लड़की के नाम से उस के फेसबुक पर प्यार का संदेश भेजा तो सचमुच आरिफ फिसल गया और उन की गिरफ्त में आ गया. बिहार के शहर पटना के मोहल्ला राजापुर के रहने वाले राकेश रंजन को जब भी कामधंधे से

फुरसत मिलती, वह इस का सदुपयोग देश के किसी न किसी पर्यटकस्थल पर जाने के रूप में करते. काफी दिनों से वह जम्मूकश्मीर जा कर वहां वैष्णो देवी के मंदिर का दर्शन करने की सोच रहे थे, इसलिए बरसात खत्म होते ही उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जम्मूकश्मीर जाने की तैयारी कर के ट्रेन से आनेजाने का टिकट करा लिया. अपनी पूर्व तैयारी के हिसाब से राकेश रंजन जम्मूकश्मीर पहुंच गए और वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन कर के आराम से घूमेफिरे. 15 सितंबर, 2013 को हिमगिरि एक्सप्रेस से उन का वापसी का टिकट था. जम्मू से चल कर हावड़ा तक जाने वाली हिमगिरि एक्सपे्रस जम्मू से रात पौने 11 बजे चलती थी.

राकेश रंजन खाना वगैरह खा कर समय से स्टेशन पर पहुंच गए और सीधे अपने कोच में जा कर पहले से आरक्षित बर्थ पर आराम से लेट गए. जम्मू से लखनऊ तक का उन का सफर आराम से बीता. अगले दिन 16 सितंबर की शाम 4 बजे के आसपास टे्रन लखनऊ पहुंची तो कुछ यात्री उतरे तो कुछ सवार हुए. सवार होने वाले यात्रियों में राकेश रंजन की बगल वाली खाली हुई सीट पर एक युवक आ कर बैठ गया. उस की ऊपर वाली बर्थ थी. वह बातचीत बड़ी शालीनता से कर रहा था, इसलिए जल्दी ही राकेश रंजन उस से हिलमिल गए. दोनों में बातचीत होने लगी.

युवक ने अपना नाम मोहम्मद आरिफ खां बताया. आगे बातचीत में उस ने बताया कि उस के पिता फिरोज खां सेना में सूबेदार मेजर हैं, जो जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में तैनात हैं. वह वाराणसी का रहने वाला है और दिल्ली में रह कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है. आरिफ बातें बहुत अच्छे ढंग से कर रहा था, इसलिए राकेश रंजन उस से काफी देर तक बातें करते रहे. बातें करतेकरते ही कब 8 बज गए, उन्हें पता ही नहीं चला. हिमगिरि एक्सप्रेस वाराणसी रात के 9 बजे के आसपास पहुंचती थी. राकेश रंजन को रात में ही ट्रेन से उतरना था, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह जल्दी सो जाएंगे तो रात में जागने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी.

इसीलिए वाराणसी आने से पहले ही उन्होंने खाना मंगा कर खा लिया और अपनी बर्थ पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगे. आरिफ भी कुछ देर तक कोई पत्रिका पलटता रहा, उस के बाद लाइट बंद कर के लेट गया. रात 11 बजे के आसपास ट्रेन बक्सर पहुंच रही थी तो राकेश रंजन को पेशाब लगी. वह पेशाब कर के लौटे तो बर्थ पर लेटने से पहले एक बार अपना सामान चैक करने लगे. सारा सामान यथास्थान रखा था, लेकिन उन्हें लगा कि उन के सामान से उन का एक बैग गायब है. वह सीट के नीचे और अगलबगल बैग को तलाशने लगे, लेकिन बैग उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया. बैग कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि कोई उन का बैग उठा ले गया है.

राकेश रंजन ने यह सोच कर एसी बोगी बर्थ आरक्षित कराई थी कि रास्ते में उन्हें कोई दिक्कत न उठानी पड़े और सामान भी सुरक्षित रहे. क्योंकि एसी डिब्बों में फालतू लोगों का आनाजाना न के बराबर होता है. एसी कोच में वही यात्री चढ़ते हैं, जिन की बर्थ कनफर्म होती है. राकेश जहां स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे, वहीं से उन का बैग चोरी हो गया था.

एसी डिब्बों में प्लेटफार्म का शोरगुल भी नहीं सुनाई देता, इसलिए राकेश रंजन अपनी बर्थ पर आराम से सोए रहे थे. ट्रेन मुगलसराय स्टेशन से कब छूटी थी, उन्हें यह भी पता नहीं चला था. मुगलसराय स्टेशन से गाड़ी के चलने के लगभग घंटे भर बाद राकेश रंजन को पेशाब लगा था. तब उन की आंख खुली थी. जितनी देर उन्होंने पेशाब करने में लगाया था, बस उतनी ही देर के लिए वह अपने सामान के पास से हटे थे. जाते समय उन्होंने अपना सामान नहीं देखा था, इसलिए वह दुविधा में फंसे थे कि उन का बैग पहले गायब हुआ था या बाद में.

उसी बैग में उन का सारा कीमती जरूरी सामान था, इसलिए वह परेशान हो उठे थे. कीमती सामान का मतलब, 3 बैंकों के डेबिट कार्ड और 5-6 हजार रुपए नकद के अलावा कुछ जरूरी कागजात भी थे. संकट के उस समय राकेश रंजन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बैग को कहां तलाशें, उस के बारे में किस से पूछें? उस समय रात के 11 बज रहे थे, डिब्बे के अन्य यात्री अपनीअपनी सीटों पर आराम से सो रहे थे. इसलिए वह बैग के बारे में किसी भी यात्री से पूछने में झिझक रहे थे. लेकिन बैग गायब होने से परेशान राकेश रंजन का मन नहीं माना और उन्होंने अपने कूपे के यात्रियों को जगा कर बैग के बारे में पूछा.

इस पूछताछ में उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. सभी ने एक ही जवाब दिया, ‘मैं तो सो रहा था.’ आपस में बात चली तो लखनऊ से चढ़े मोहम्मद आरिफ खां पर सब का ध्यान गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह मुगलसराय में उतरा था. कहीं वही तो बैग ले कर नहीं उतर गया. उस समय संदेह व्यक्त करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी. कूपे के यात्रियों ने राकेश रंजन को सलाह दी कि अगले स्टेशन पर उतर कर वह जीआरपी थाने में बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दें. ट्रेन का अगला स्टेशन बक्सर था.

लेकिन वहां ट्रेन केवल 2 मिनट के लिए रुकती थी. इतने कम समय में ट्रेन से उतर कर जीआरपी थाने तक जा कर रिपोर्ट दर्ज करा कर डिब्बे तक वापस आना संभव नहीं था. तब किसी सहयात्री ने सलाह दी कि वह अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट पटना में उतर कर आराम से वहां के जीआरपी थाने में दर्ज कराएं, वहां उन के पास समय ही समय रहेगा, क्योंकि उन्हें वहीं उतरना है. केश रंजन को यह सुझाव ठीक लगा. इसलिए उन्होंने पटना पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराने का निर्णय लिया. वह लेट तो गए, लेकिन अब उन्हें नींद कहां आ रही थी, करवट बदलते हुए वह पटना जंक्शन आने का इंतजार करने लगे. हिमगिरि एक्सपे्रस 16/17 सितंबर की रात डेढ़ बजे के आसपास पटना पहुंचती थी. लेकिन उस दिन ट्रेन कुछ लेट थी, इसलिए ढाई बजे के बाद पहुंची.

पटना प्लेटफार्म पर उतर कर राकेश रंजन सीधे थाना जीआरपी पहुंचे और थानाप्रभारी से मिल कर अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थानाप्रभारी ने उन से चोरी गए बैग के बारे में पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. राकेश रंजन की यह रिपोर्ट 17 सितंबर, 2013 की सुबह 3 बजे के आसपास भादंवि की धारा 379 के तहत पटना के थाना जीआरपी में दर्ज हुई थी. इस के बाद इस रिपोर्ट को जांच के लिए बक्सर के जीआरपी थाना पुलिस को भेज दिया गया, क्योंकि राकेश रंजन का बैग बक्सर सीमाक्षेत्र में चोरी हुआ था. 19 सितंबर को बक्सर के थाना जीआरपी के सबइंसपेक्टर शंकरराम को राकेश रंजन द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट जांच के लिए मिली तो उन्होंने तुरंत राकेश रंजन को फोन किया. पूछताछ में पता चला कि राकेश रंजन के चोरी गए डेबिट कार्ड से अब तक 90 हजार रुपए की खरीदारी हो चुकी थी.

सबइंसपेक्टर (Inspector) शंकरराम समझ गए कि चोर शातिर और चालाक ही नहीं, मंझा हुआ खिलाड़ी भी है. उसे पता है कि किस चीज का उपयोग कैसे हो सकता है. शंकरराम ने जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि चोरी के 24 घंटे के अंदर ही चोर ने डेबिट कार्ड से 90 हजार रुपए की खरीदारी कर ली थी. यह खरीदारी उत्तर प्रदेश के जिला चंदौली के शहर मुगलसराय के एक शोरूम से की गई थी. जांच के लिए सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय स्थित उस शोरूम में पहुंचे और जब उन्होंने वहां पूछताछ की तो पता चला कि युवक ने उस डेबिट कार्ड से सैमसंग के 2 स्मार्ट मोबाइल फोन और कुछ कपड़े खरीदे थे.

खरीदारी के दौरान खरीदार को अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर के साथ पता लिखाना जरूरी होता है, इसलिए शंकरराम को पता था कि चोर का पता, मोबाइल नंबर और ईमेल आर्डडी मिल ही जाएगी. सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम के मैनेजर से मिल कर खरीदार का विवरण मांगा तो मैनेजर ने खरीदार द्वारा दी गई ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता उन्हें दे दिया. शोरूम से मिली जानकारी के अनुसार खरीदार वाराणसी के थाना कैंट के मोहल्ला खजुरी (फुलवरिया) का रहने वाला था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम से ही मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन किया तो पता चला फोन बंद है. इस का मतलब चोर ने मोबाइल नंबर गलत दिया था. अब उस के द्वारा दिए गए पते का सहारा था. सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय से वाराणसी आ गए और चोर द्वारा दिए गए पते पर पहुंच कर उस के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस का मतलब आरिफ ने पता भी गलत लिखाया था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने खजुरी (फुलवरिया) इलाके में घूमघूम कर तमाम लोगों से आरिफ खां के बारे में पूछताछ की. लेकिन कोई भी उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. जब आरिफ के बारे में वहां कोई जानकारी नहीं मिली तो शंकरराम निराश हो कर थाना कैंट पहुंचे और थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह से मिल कर उन्हें पूरी बात बता कर अनुरोध किया कि उस चोर को पकड़वाने में वह उन की मदद करें. पूरी बात सुनने के बाद इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने राकेश रंजन का पता और मोबाइल नंबर नोट कर के बक्सर पुलिस को मदद का आश्वासन दे कर वापस भेज दिया. इस के बाद वह मामले की जांच में लग गए.

जांच आगे बढ़ाई तो उन्हें भी पता चला कि चोर ने मुगलसराय के एक शोरूम से सैमसंग के 2 स्मार्ट फोन और कपड़े खरीदे थे. उन्होंने शोरूम जा कर मैनेजर से खरीदार के बारे में पूछताछ की तो उस ने खरीदार का जो हुलिया बताया, वह राकेश रंजन द्वारा बताए आरिफ के हुलिए से बिलकुल मिलता था. अनिरुद्ध सिंह को पता था कि आरिफ ने जो पता दिया है, वह फरजी है, इसलिए वहां जाना बेकार है. उन्होंने खुद न जा कर अपने मुखबिरों को खजुरी इलाके में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने आरिफ द्वारा दी गई ईमेल आईडी के अनुसार उस के नाम से फेसबुक पर सर्च किया तो कैंट निवासी आरिफ का फेसबुक एकाउंट दिखाई दे गया.

उस में आरिफ का फोटो लगा था, इसलिए उन्होंने पहचान लिया कि यही वह आरिफ, जिस की उन्हें तलाश है. इस तरह उन्होंने असली आरिफ को खोज निकाला. दरअसल फेसबुक में बैकग्राउंड में वाराणसी के मानसिक चिकित्साल्य की फोटो लगी थी, इसी से पहचानने में उन्हें आसानी हो गई थी. इस के बाद आरिफ तक पहुंचने की उन्होंने एक अलग ही तरकीब सोची. उन्होंने एक लड़की का फोटो लगा कर जोया के नाम से फरजी प्रोफाइल बनाई और आरिफ को दोस्ती का पैगाम भेज दिया. आरिफ ने जोया के पैगाम को स्वीकार कर लिया तो उसे अपने जाल में फंसाने के लिए अनिरुद्ध सिंह उसे प्रेम भरे संदेश भेजने लगे. चैटिंग के दौरान उन्होंने उसे संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मुझे तुम से प्रेम हो गया है.’’

‘‘ऐसा ही कुछ मैं भी महसूस कर रहा हूं.’’ जवाब में आरिफ ने लिखा.

‘‘लेकिन आरिफ, मैं दिल्ली में रहती हूं. तुम कहां रहते हो?’’

‘‘मैं तो वाराणसी में रहता हूं. मैं यहां बीएचयू से इंजीनियरिंग कर रहा हूं. तुम दिल्ली में क्या करती हो? आरिफ ने अपने बारे में झूठा मैसेज भेज कर उस के बारे में पूछा.’

‘‘वाराणसी में तुम कहां रहते हो? मैं दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं.’’

‘‘वाराणसी में मैं हौस्टल में रहता हूं.’’

‘‘तुम दिल्ली आ सकते हो?’’

सोच तो रहा हूं. लेकिन कालेज से छुट्टी नहीं मिल रही है.’’ आरिफ ने जोया को फिर झूठा मैसेज भेजा.

‘‘छुट्टी तो मुझे भी नहीं मिल रही है. लेकिन मैं तुम से मिलना चाहती हूं, इसलिए किसी भी तरह छुट्टी ले लूंगी. क्योंकि अब तुम से मिले बिना रहा नहीं जा रहा है.’’

‘‘जोया, मुझे भी लगता है कि अब मेरी जिंदगी तुम्हारे बिना अधूरी है.’’

‘‘फिर भी मुझ से मिलने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है.’’

‘‘जोया कभीकभी ऐसी मजबूरियां आ जाती हैं कि आदमी चाह कर भी मन की नहीं कर पाता.’’

‘‘खैर, मैं तो अपने मन की करूंगी. क्योंकि मुझे तुम से मिलना है और वाराणसी घूमना है. क्या तुम मुझे वाराणसी घुमाओगे?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम आओ तो मैं तुम्हें पूरी वाराणसी घुमाऊंगा.’’

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा, क्योंकि तुम ने कहा था न कि मुझे कालेज से छुट्टी नहीं मिलती.’’

‘‘जोया, तुम आओ तो सही, देखो मैं तुम्हारे लिए कैसे समय निकालता हूं.’’

चैटिंग के दौरान आरिफ ने जोया का मोबाइल नंबर भी मांगा था. लेकिन उसे नंबर कैसे दिया जाता, इसलिए नंबर देने से मना कर दिया गया. उसे संदेश भेजा गया, ‘‘आरिफ, मैं वाराणसी आऊंगी, तब खूब बातें होंगी. तभी नंबर भी दे दूंगी. पहले नंबर दे कर मैं बातें करने की उत्सुकता खत्म नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस का मतलब आग दोनों ओर लगी है.’’

‘‘मैं आऊंगी, तब मिल कर तनमन की इस आग को बुझाएंगे.’’

आरिफ ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जोया यहां तक पहुंच जाएगी. दरअसल अनिरुद्ध सिंह आरिफ को उत्तेजित कर के उसे अपने जाल में फंसाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अगला संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मैं तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘तो वाराणसी आ जाओ. मैं भी तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘आरिफ, मैं वाराणसी में 2-3 दिन रहना चाहती हूं.’’

इस संदेश पर आरिफ खुशी से फूला नहीं समाया. उस ने संदेश में लिखा, ‘‘अरे भाई, आओगी, तभी तो 2-3 दिन रहोगी.’’

‘‘सही बात तो यह है कि मैं ने अपना रिजर्वेशन करा लिया है. मैं 30 सितंबर को वाराणसी पहुंच जाऊंगी. बताओ, तुम कहां मिलोगे?’’

‘‘वाराणसी में मैं तुम से जेएचवी मौल में दोपहर 11 बजे मिलूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं तुम्हें पहचानूंगी कैसे?’’

‘‘मेरी प्रोफाइल में जो फोटो लगा है, उस से तुम मुझे पहचान नहीं सकती?’’

‘‘उस से तो पहचान लूंगी.’’ अनिरुद्ध सिंह ने संदेश भेजा.

आरिफ भी जोया से मिलने के लिए आतुर था. इसलिए उसे 30 सितंबर का बेचैनी से इंतजार था. आखिर 30 सितंबर आ गया. जोया ने 11 बजे जेएचवी मौल में मिलने को कहा था, इसलिए आरिफ समय से पहले ही वहां पहुंच गया. अनिरुद्ध सिंह भी समय से पहले ही बिना वर्दी के अपने 2 सहयोगियों के साथ जीएचवी मौल पहुंच गए थे. आरिफ को देखते ही उन्होंने उसे पहचान लिया. इसीलिए जैसे ही वह गेट के अंदर घुसा, उन्होंने उसे दबोच लिया. पहले तो उस ने अनिरुद्ध सिंह और उन के साथियों को रौब में लेने की कोशिश की, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने अपनी असलियत बता कर उस की भी सच्चाई बताई तो वह शांत हो गया. अनिरुद्ध सिंह उसे थाना कैंट ले आए.

थाने आ कर भी आरिफ पहले अपनी पहचान छिपाते हुए पुलिस को बरगलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने उसे बताया कि जोया बन कर वही उस से चैटिंग कर रहे थे, तब वह काबू में आ गया. इस के बाद उस ने राकेश रंजन के बैग चुराने का अपना अपराध स्वीकार कर के अपनी पूरी कहानी उन्हें सुना दी. मोहम्मद आरिफ खां वाराणसी के खजुरी के रहने वाले फिरोज खां का बेटा था. सेना में सूबेदार मेजर फिरोज खां की ड्यूटी इस समय जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में है. उस की पढ़ाई कैंट के आर्मी पब्लिक स्कूल में शुरू हुई थी. वहां से हाईस्कूल पास करने के बाद उस ने मुगलसराय के एक इंटर कालेज में दाखिला लिया, जहां उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि वह इंटर में 3 बार फेल हुआ. इस के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी.

कालेज के उन्हीं आवारा दोस्तों के साथ रह कर आरिफ छोटीमोटी चोरियां करने लगा. लेकिन ये चोरियां ऐसी थीं, शायद उन की रिपोर्टें नहीं लिखाई गईं. इसलिए पुलिस से उस का कभी सामना नहीं हुआ. 17 सितंबर को वह लखनऊ से हिमगिरि एक्सप्रेस पर चढ़ा तो बातोंबातों में राकेश रंजन से उस की दोस्ती हो गई. पहले उस का चोरी का कोई इरादा नहीं था. लेकिन खाना खा कर राकेश रंजन सो गए तो पत्रिका पलटते हुए उस की नजर राकेश के बैग पर पड़ी. उसी समय उस की नीयत खराब हो गई. तब उस ने तय कर लिया कि कैसे भी हो, उसे इस बैग पर हाथ साफ करना है.

आरिफ का टिकट वाराणसी तक ही था. लेकिन तब तक कूपे के लोग जाग रहे थे. इसलिए आरिफ का काम नहीं हो सका. तब उस ने सोचा कि वह मुगलसराय तक चला जाए, शायद तब तक लोग सो ही जाएं. मुगलसराय वाराणसी से ज्यादा दूर भी नहीं है. वहां से कभी भी वाराणसी आया जा सकता है. मुगलसराय तक सचमुच सब लोग सो गए. जैसे ही मुगलसराय में ट्रेन रुकी, आरिफ राकेश रंजन का बैग ले कर उतर गया. मुगलसराय से उस ने खरीदारी इसलिए की थी, जिस से पुलिस को लगे कि वह मुगलसराय का रहने वाला है. लेकिन सामान खरीदते समय उस ने भले ही पता गलत दिया था, लेकिन वाराणसी का दे कर गलती तो की ही. इस के अलावा उस ने इस से भी बड़ी गलती अपना सही ईमेल दे कर की.

आरिफ ने अपराध स्वीकार कर लिया तो अनिरुद्ध सिंह ने उस से राकेश रंजन का सामान बरामद कर के उस की गिरफ्तारी की सूचना सबइंसपेक्टर शंकरराम को दे दी. वह उसी दिन   वाराणसी आ गए और चीफ ज्युडीशियल मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर बक्सर ले कर चले गए. कथा लिखे जाने तक आरिफ की जमानत नहीं हुई थी, वह बक्सर की जिला जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rajasthan Crime : चमत्कारी संदूक के लालच में गंवाए 40 लाख

Rajasthan Crime : अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

जयप्रकाश शर्मा केकड़ी उपखंड में सब्जी मंडी क्षेत्र में रहता था. यहां उस का जो निवास स्थान था, वह किसी तांत्रिक के साधनास्थल सा दिखाई देता था. कमरे में यज्ञकुंड था, उस के अंदर हर वक्त लकडि़यां जलती रहतीं, कमरा धुएं से काला स्याह और अजीब महक वाला बन गया था.

सुगंधित धूप अगरबत्तियां जगहजगह खोंस कर जलाई जाती रही होंगी, उन के अधजले टुकड़ों के ढेर लगे हुए थे, जाने कभी वहां सफाई की जाती थी या नहीं. कमरे के बीच में बने यज्ञकुंड की धूनी के सामने जयप्रकाश का आसन बिछा रहता.

जयप्रकाश शर्मा वहीं बैठ कर अपनी तंत्रमंत्र साधना की कथित दुकान चलाता था.

प्रेम वशीकरण, टोनाटोटका, बिछुड़ों को मिलाना, गड़े धन की जानकारी, सौतन से छुटकारा जैसे काम करने का जयप्रकाश शर्मा के पास जैसे ठेका था. केकड़ी उपखंड में वह तांत्रिक जय शर्मा के नाम से विख्यात हो गया था. उस के साधनास्थल पर परेशान, किसी समस्या से त्रस्त पुरुषों, औरतों का जमावड़ा लगा रहता था.

जयप्रकाश के द्वारा वह अपनी समस्या का समाधान करवाने आते थे, उन्हें कितना फायदा होता था, यह वह खुद नहीं जानते थे. वह जयप्रकाश शर्मा से तंत्र क्रिया करवाते और मोटा चढ़ावा चढ़ा कर लौट जाते. वह कभी शिकायत ले कर जयप्रकाश या किसी अन्य के पास नहीं गए कि उन्हें लाभ नहीं हुआ है, ऐसी बातों के लिए उन्हें पुलिस से फटकार मिलने का डर बना रहता और लोगों से जगहंसाई का.

अंधविश्वास भरी इन बातों का आज 21वीं सदी में कोई स्थान नहीं था. फिर भी अंधविश्वासियों की वजह से जयप्रकाश शर्मा की दुकान चल रही थी. वह दोनों हाथों से पैसे बटोर रहा था.

लोग यह समझते थे कि जयप्रकाश के पास हवा में ताबीज पकड़ने, लड्डू या 5-5 सौ के नोट पैदा करने जैसे चमत्कारी गुण हैं. वह यह सब किस विधि से करता है, कोई नहीं जानता था. लोग बेवकूफ बन रहे थे और वह बना रहा था. जयप्रकाश शर्मा की नजर में अब मोटा मुरगा चढ़ गया था. वह मुरगा था अशोक मीणा.

जयप्रकाश ने अशोक मीणा को पूर्णिमा के दिन अपने हाथ की सफाई दिखा कर प्रभावित कर दिया था. अशोक मीणा चमत्कृत था. वह जयप्रकाश को कोई सिद्ध पुरुष मानने लगा था. अशोक मीणा नियमित रूप से ब्यावर के दीदारनाथ आश्रम में जाता था, जयप्रकाश शर्मा भी उस के पीछे दीदारनाथ आश्रम पहुंचने लगा.

जयप्रकाश अशोक मीणा को रोज नएनए चमत्कार दिखा कर प्रभावित करता. अशोक उस के चमत्कार देख कर हैरत में पड़ जाता था. उस का झुकाव अब जयप्रकाश शर्मा की तरफ हो गया था. वह जयप्रकाश का आदर करने लगा. एक दिन मौका देख कर जयप्रकाश ने उसे अपने साधनास्थल पर बुला लिया.

अपने सामने उसे बैठने को आसन दिया. अशोक मीणा उस के साधनास्थल को हैरत से देख रहा था.

‘‘इस साधनास्थल पर सब कुछ अलौकिक है अशोक मीणा, मैं ने कठोर परिश्रम कर के कुछ सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन मैं अभी गुरु शिवनाथ के मुकाबले बौना ही हूं.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘यह गुरु शिवनाथ कौन है?’’

‘‘यह विश्व के महान तंत्रमंत्र ज्ञाता हैं, अपनी कठोर साधना से मेरे गुरु शिवनाथ ने अनेक जिन्न, खबीश, प्रेत और चंडाल अपने वश में कर लिए हैं. वह उन से हर प्रकार का काम लेते हैं. किसी की कैसी भी समस्या हो, उन को वह चुटकी में हल कर देते हैं.’’ जयप्रकाश ने बता कर अशोक मीणा की तरफ देखा, ‘‘मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने जा रहा हूं, जो मेरे और गुरु शिवनाथ के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं जानता, चूंकि तुम मेरे खास बन गए हो, इसलिए सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं. थोड़ा आगे सरक आओ.’’

अशोक मीणा अपनी जगह से आगे सरका. उस के मन में वह खास बात जान लेने की जिज्ञासा थी.

‘‘अशोक, मेरे गुरु शिवनाथ ने अपने जिन्नों की मदद से रानी हलीमा का वह चमत्कारी बक्सा हासिल कर लिया है, जिस में से सोना, चांदी और नोट निकलते हैं.’’

‘‘भला बक्सा नोट, सोनाचांदी कैसे निकाल सकता है? क्या उस में पहले यह सब डालना पड़ता है?’’ अशोक ने आतुरता से पूछा.

‘‘नहीं अशोक. उस बक्से से अपनी इच्छा से जो मांगो, वह निकल आता है.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है.’’

जयप्रकाश हंसा, ‘‘तांत्रिक की किसी चमत्कार और शक्ति को नकारा नहीं जा सकता अशोक. मैं तुम्हें अपने गुरु शिवनाथ के पास ले कर चलूंगा, तुम अपनी आंखों से उस बक्से का चमत्कार देख लेना.’’

‘‘कब चलेंगे आप?’’ अशोक मीणा ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जब तुम चाहोगे.’’

‘‘मैं तो आज ही चलना चाहता हूं.’’

जयप्रकाश उस का उतावलापन देख कर मुसकराया फिर वह किसी गहरी सोच में डूब गया.

कक्ष में गहरी खामोशी छा गई.

कुछ देर बाद जयप्रकाश ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अशोक, मैं सोच रहा हूं कि बक्सा अपने गुरु से तुम्हें दिलवा दूं.’’

‘‘क्या वह बक्सा दे देंगे?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं कहूंगा तो वह इंकार नहीं कर सकेंगे.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया.

‘‘सोचो, यदि वह बक्सा तुम्हें मिल गया तो तुम दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बन जाओगे.’’

अशोक मीणा की आंखों में तीखी चमक उभरी, ‘‘काश! ऐसा हो जाए.’’

‘‘हो जाएगा. मैं तुम्हारा भला चाहता हूं इसलिए हर सूरत में मैं वह बक्सा तुम्हें दिलवाऊंगा, लेकिन…’’ अपनी बात अधूरी छोड़ी जयप्रकाश ने.

‘‘लेकिन क्या महाराज, कोई अड़चन हो तो मुझे निस्संकोच बताइए.’’

‘‘तुम्हें कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

‘‘कर दूंगा. बताइए, कितना खर्च करना होगा?’’

‘‘तुम एक लाख रुपया मेरे एकाउंट में जमा करवा दो, ये रुपए एक सिक्योरिटी के रूप में मेरे पास रहेंगे. तुम्हें मैं वह बक्सा दिलवा रहा हूं, जिस में से तुम रोज लाखों रुपए, सोनाचांदी प्राप्त कर सकोगे. समझ रहे हो न मेरी बात?’’

‘‘मैं एक लाख रुपया आज ही आप के एकाउंट में डाल देता हूं.’’ अशोक मीणा ने बगैर किसी हिचक के कहा, ‘‘आप तो अपने गुरु के पास मुझे ले चलिए.’’

‘‘मेरे गुरु महाराष्ट्र में शाहपुरा (ठाणे) में रहते हैं, वहां चलने में जो खर्चा होगा, वह तुम्हें ही करना होगा.’’

‘‘ठीक है महाराज. सारा खर्च मैं ही करूंगा, आप आज ही टिकट का रिजर्वेशन करवा लीजिए. मैं आप के बैंक एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए डाल देता हूं. आप अपना एकाउंट नंबर मुझे दे दीजिए.’’

जयप्रकाश ने उसे अपना एकाउंट नंबर लिख कर दे दिया. अशोक मीणा वह नंबर ले कर उस साधनास्थल से बाहर निकला तो उस के मन में बेहद उत्साह और चेहरे पर खुशी थी.

अशोक मीणा ने एक घंटे बाद ही जयप्रकाश शर्मा के एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए जमा करवा दिए.

तीसरे दिन जयप्रकाश शर्मा अपने साथ अशोक मीना को ले कर ठाणे के शाहपुरा में अपने गुरु शिवनाथ के यहां पहुंच गया.

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में (Rajasthan Crime) एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

Social Story : 6 दिन की जिंदा बेटी को दफनाने जा रहा था पकड़ा गया

Social Story : राजेश बेटी के जन्म पर बहुत खुश था. उस की तबीयत खराब होने पर वह उसे ले कर कई अस्पतालों में भी गया. लेकिन उसी दौरान ऐसी न जाने क्या बात हुई कि वह अपनी 6 दिन की बेटी को जिंदा दफनाने को मजबूर हो गया?

जनवरी, 2014 को मुरादाबाद जिले के गुरेठा गांव में 2 व्यक्ति पहुंचे. उन में से एक की गोद में एक बच्चा था. वह बोला, ‘‘तीर्थांकर महावीर मैडिकल कालेज में मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था. बच्ची मर गई है. अब इसे दफनाना है. दफनाने के लिए हमें फावड़ा चाहिए. हमें श्मशान बता दो, इस बच्ची को हम वहां दफना देंगे.’’

ऐसे दुख में लोग हर तरह से सहयोग करने की कोशिश करते हैं. इसलिए फावड़ा आदि ले कर गांव के कई लोग उन दोनों के साथ गांव के पास ही बहने वाली गांगन नदी की ओर चल दिए. गांव का एक आदमी दुकान से बच्ची के लिए कफन भी खरीद लाया. गांगन नदी के आसपास के गांवों के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे स्थित श्मशान में करते थे. इसलिए वे भी बच्ची को कफन में लपेट कर नदी की तरफ चल दिए. नदी किनारे पहुंच कर गांव के एक आदमी ने बच्ची की लाश को दफनाने के लिए एक गड्ढा भी खोद दिया. वह उसे दफनाने ही वाले थे कि उसी समय बच्ची रोने लगी.

बच्ची के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए क्योंकि उस बच्ची को तो उन दोनों लोगों ने मरा हुआ बताया था. बच्ची के जीवित होने पर उस के पिता और साथ आए युवक को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घबरा रहे थे. उन के चेहरे देख कर गांव वालों को शक हो गया. वे समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. लिहाजा उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और हकीकत जानने की कोशिश करने लगे. लेकिन वे यही कहते रहे कि डाक्टर ने बच्ची को मृत बताया था. इस के बाद ही तो वे उसे दफनाने के लिए आए थे. यह बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही थी.

शोरशराबा सुन कर आसपास खेतों में काम करने वाले लोग भी वहां पहुंच गए. भीड़ बढ़ती देख वे दोनों वहां से भागने का मौका ढूंढ़ने लगे. लोगों ने उन्हें दबोच लिया और उसी समय पाकबड़ा थाने में फोन कर दिया. सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजेंद्र यादव सबइंसपेक्टर सहदेव सिंह के साथ श्मशान घाट पहुंच गए. उन्होंने दोनों लोगों से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम राजेश और दूसरे ने दिनेश बताया. उन्होंने जब बच्ची को देखा तो वह जीवित थी. वह 5-6 दिनों की लग रही थी. पता चला कि वह राजेश की बेटी है और दूसरा युवक उस का साला है. पास में ही तीर्थंकर महावीर मैडिकल कालेज था. पुलिस ने उस बच्ची को अविलंब मैडिकल कालेज में भरती करा दिया जिस से उस की जान बच सके.

डाक्टरों ने जब उस बच्ची को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि वह बच्ची वहीं पैदा हुई थी और उस की मां उस समय वहीं भरती थी. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची को उस का पिता राजेश जीवित अवस्था में ही ले गया था, उस के मरने का तो सवाल ही नहीं है. मामला गंभीर लग रहा था इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र यादव को दे दी. उधर डाक्टरों ने भी बच्ची को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया. नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र भी थाना पाकबड़ा पहुंच गए. थानाप्रभारी ने उन के सामने राजेश से जब पूछताछ की तो बच्ची को जिंदा दफन करने की एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

राजेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के हाफिजगंज का रहने वाला था. वह मोटर मैकेनिक का काम करता था. पिता रामभरोसे को जब लगा कि राजेश अपना घर चलाने लायक हो गया है तो उन्होंने बरेली के ही नवाबगंज में रहने वाले मुक्ता प्रसाद की बेटी सुनीता से उस की शादी कर दी. शादी हो जाने के बाद राजेश के खर्चे बढ़ गए थे इसलिए राजेश कहीं दूसरी जगह अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. इसी दौरान उत्तरांचल के रुद्रपुर शहर स्थित एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. उस फैक्ट्री में बाइकों की चेन बनती थीं. कुछ दिनों बाद राजेश पत्नी सुनीता को भी रुद्रपुर ले गया. वहां हंसीखुशी के साथ उन का जीवन चल रहा था. इसी दौरान सुनीता गर्भवती हो गई. इस से पतिपत्नी दोनों ही खुश थे. पहली बार मां बनने पर महिला को कितनी खुशी होती है, इस बात को सुनीता महसूस कर रही थी.

राजेश भी सुनीता की ठीक से देखभाल कर रहा था. सुनीता को 7 महीने चढ़ गए. अब सुनीता को कुछ परेशानी होने लगी थी. क्योंकि डाक्टर ने भी सुनीता को कुछ ऐहतियात बरतने की हिदायत दे रखी थी. सावधानी बरतने के बाद भी अचानक एक दिन सुनीता को प्रसव पीड़ा हुई. जिस डाक्टर से सुनीता का इलाज चल रहा था, राजेश पत्नी को तुरंत उसी डाक्टर के पास ले गया. सुनीता का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने स्थिति गंभीर बताई क्योंकि सुनीता के पेट में Social Story 7 महीने का बच्चा था. यदि वह आठ साढ़े आठ महीने से ऊपर का होता तो डिलीवरी कराई जा सकती थी, समय से 2 महीने पहले डिलीवरी कराना उस डाक्टर की नजरों में मुनासिब नहीं था.

ऐसी हालत में सुनीता को किसी अच्छे अस्पताल या नर्सिंगहोम में ले जाना जरूरी था. रुद्रपुर में कई नर्सिंगहोम ऐसे थे जहां सुनीता को ले जाया जा सकता था लेकिन वे महंगे होने की वजह से राजेश के बजट से बाहर थे. लिहाजा वह पत्नी को ले कर मुरादाबाद आ गया और उसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करा दिया. वहां 4 जनवरी, 2014 को सुनीता ने एक बेटी को जन्म दिया. बच्ची 7 महीने में पैदा हुई थी इसलिए वह बेहद कमजोर थी. उसे इनक्यूबेटर में रखा जाना बहुत जरूरी था लेकिन मैडिकल कालेज में जो इनक्यूबेटर थे, उन में पहले से ही दूसरे बच्चे रखे हुए थे.

ऐसी स्थिति में मैडिकल कालेज के जौइंट डाइरैक्टर डा. विपिन कुमार जैन ने राजेश को सलाह दी कि वह अपनी बच्ची को किसी अन्य नर्सिंगहोम या अस्पताल या फिर दिल्ली ले जाए. क्योंकि बच्ची की हालत ठीक नहीं है. उधर इतनी कमजोर बच्ची को देख कर वार्ड में भरती मरीजों के तीमारदारों ने राजेश के मुंह पर ही कह दिया कि ये बच्ची बचेगी नहीं और यदि बच भी गई तो पूरी जिंदगी अपंग रहेगी. लेकिन राजेश ने उन की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बेटी की जान बचाने के लिए राजेश उसे ले कर मुरादाबाद के साईं अस्पताल पहुंचा. राजेश के साथ उस का साला दिनेश भी था. साईं अस्पताल में बच्ची को भरती करने से पहले 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया. उस के पास उस समय इतने रुपए नहीं थे.

राजेश ने अस्पतालकर्मियों से कहा भी कि वह पैसे बाद में जमा करा देगा, पहले बेटी का इलाज तो शुरू करो. लेकिन उस के अनुरोध को उन्होंने अनसुना कर दिया. राजेश बेटी को हर हाल में बचाना चाहता था. इसलिए उस ने अपने कई सगेसंबंधियों और रिश्तेदारों को फोन कर के अपनी स्थिति बताई और उन से पैसे मांगे लेकिन किसी ने भी उस की सहायता करने के बजाए कोई न कोई बहाना बना दिया. राजेश बहुत परेशान हो गया था. ऐसी हालत में उस की समझ मेें नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. चारों ओर से हताश हो चुके राजेश के कानों में तीमारदारों के शब्द गूंज रहे थे कि बच्ची जिंदा नहीं बचेगी और अगर बच भी गई तो विकलांग रहेगी. निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहे राजेश ने सोचा कि जब बच्ची पूरी जिंदगी विकलांग रहेगी तो इस की जान बचाने से क्या फायदा? इस से अच्छा तो यही है कि ये मर जाए.

इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.  दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि Social Story बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

गड्ढा खोदने के लिए उन के पास कोई चीज नहीं थी इसलिए वह फावड़ा मांगने के लिए गुरेठा गांव पहुंचे.  ऐसी हालत में गांव वालों ने उन की सहायता करना मुनासिब समझा और उन के साथ गांगन नदी के किनारे उस जगह पर पहुंच गए जहां लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था. उस की नन्हीं सी जान की आंखें ठीक से खुली भी नहीं थीं. दुनियादारी से तो उसे कोई मतलब भी नहीं था. मां की गोद से पिता के मजबूत हाथों में वह इसलिए आई थी कि वह उस का इलाज कराएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि कन्यादान करने वाले हाथ ही उसे जिंदा दफनाने के लिए आगे बढ़ेंगे. लेकिन जैसे ही उसे गड्ढे में ठंडी रेत पर लिटाया गया वह हाथपैर चलाते हुए जोरजोर से रोने लगी. जैसे वह रोतेरोते अपने जन्मदाता से पूछ रही हो कि मेरा कुसूर क्या है. मुझे मत मारो. एक दिन मैं ही तुम्हारा सहारा बनूंगी और घर में उजियारा फैलाऊंगी. लेकिन उस समय पिता की संवेदनशीलता नदारद हो चुकी थी.

अचानक बच्ची की आवाज सुन कर राजेश और दिनेश घबरा गए. वे सोचने लगे कि काश ये 2 मिनट और न रोती तो…

बहरहाल, उस की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए और उन्होंने पुलिस बुला ली. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने उस बच्ची को तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करवा दिया था. वहां उसे इनक्यूबेटर में रख दिया गया था. उस की हालत में भी सुधार होने लगा था. उधर सुनीता को इस बात का पता नहीं था कि उस ने जिस बच्चे को जन्म दिया, उस की हत्या की कोशिश करने वाला उस का पति जेल में है. इलाके के लोगों को जब एक पिता के यमराज बनने की जानकारी हुई तो लोग बच्ची की लंबी उम्र के लिए दुआएं करने लगे. बच्ची के इलाज के लिए कई लोगों ने अस्पताल में पैसे भी जमा कराए लेकिन एक सप्ताह बाद ही उस बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

वैसे यहां एक बात बताना जरूरी है कि राजेश की नीयत बेटी की हत्या करने की नहीं थी बल्कि वह तो उस की सुरक्षा के लिए ही मैडिकल कालेज लाया था और मैडिकल कालेज के डाक्टर के कहने पर वह बेटी को ले कर कई अस्पतालों में घूमा भी. उस की मजबूरी यह थी कि इलाज के लिए उस के पास पैसे नहीं थे और जिन संबंधियों और रिश्तेदारों से उस ने मदद की गुहार लगाई, उन्होंने भी मुंह मोड़ लिया था, जिस से वह निराश और हताश हो चुका था. अस्पताल के वार्ड में मरीजों के तीमारदारों ने बच्ची के बारे में गलत धारणाएं राजेश के मन में भर दी थीं. इन्हीं धारणाओं ने उसे यमराज बनने के लिए मजबूर किया. इन्हीं बातों ने उस की संवेदनशीलता को हर लिया था. कहते हैं कि मां का दूसरा रूप मामा होता है लेकिन उस समय दिनेश का दिल भी नहीं पसीजा था. वह भी कंस मामा बन गया था.

पिता से यमराज बनने के हालात राजेश के सामने चाहे जो भी रहे हों लेकिन इस में अकेला वही दोषी नहीं है. इस में दोष उन लोगों का भी है जिन्होंने उसे इस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर किया. वह इतना संवेदनहीन हो गया था कि जीवित बेटी को कब्र में रखते समय उस के हाथ तक नहीं कांपे. बेटियों पर खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बेटे की चाहत में तमाम लोग उन्हें कोख में ही खत्म करा देते हैं. हम भले ही 21वीं सदी में पहुंचने की बात कर रहे हों लेकिन सोच अभी भी वही Social Story पुरानी है तभी तो भ्रूण हत्याओं में कमी नहीं आ रही. इस का उदाहरण यह है कि जहां सन 1990 में प्रति 1000 पुरुषों के अनुपात में 906 महिलाएं थीं, सन 2005 में इतने ही पुरुषों के अनुपात में केवल 836 महिलाएं रह गई थीं.

बात 2014 की करें तो अब यह आंकड़ा 1000 पुरुषों पर 940 स्त्रियों का है. कह सकते हैं कि लोगों में काफी हद तक जागृति आई है और भ्रूण हत्याओं का ग्राफ गिरा है. यह खुशी की बात है. लेकिन इस मामले को देख कर लगता है कि हमें अभी भी पुरुष की सोच को बदलने की जरूरत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित