हनी ट्रैप से बुझी बदले की आग – भाग 1

पश्चिमी दिल्ली के मादीपुर इलाके में रहने वाला 28 वर्षीय मेहताब प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता  था. वह रात 9-10 बजे तक अकसर घर आ जाता था. 3 अगस्त, 2014 को नियत समय पर न तो वह घर आया और न ही उस का फोन मिल रहा था. इस से घर वाले बहुत परेशान हो गए. बड़े भाई मेहराज खान ने मेहताब के जानने वाले कई लोगों को फोन किया लेकिन किसी से भी उस के बारे में जानकारी नहीं मिली.

उस समय आधी रात बीत चुकी थी. इतनी रात में उसे कहां ढूंढा जाए, यह बात वह समझ नहीं पा रहे थे. मेहताब की चिंता में घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. अगले दिन 4 अगस्त को मेहराज खान पुलिस चौकी मादीपुर पहुंच गया. चौकी इंचार्ज पवन कुमार दहिया को छोटे भाई के गायब होने की बात बता कर उस की गुमशुदगी लिखा दी.

मेहताब की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद चौकी इंचार्ज पवन कुमार दहिया ने इस की जांच हेडकांस्टेबल सतीश कुमार को करने के निर्देश दिए. सतीश कुमार ने सब से पहले मेहताब का हुलिया बताते हुए गुमशुदगी की सूचना दिल्ली के समस्त थानों में वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी. इस के बाद उन्होंने आसपास के अस्पतालों में भी संपर्क कर यह जानने की कोशिश की कि करीब 28 साल का कोई दुर्घटना का शिकार व्यक्ति दाखिल तो नहीं हुआ है.

उन्होंने मेहताब के घर वालों से भी बात की और पूछा कि मेहताब का किसी से कोई लड़ाईझगड़ा तो नहीं चल रहा. घर वालों ने पुलिस को बता दिया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी.

पुलिस अपने तरीके से मेहताब को तलाशती रही. उसे गायब हुए महीना से ज्यादा बीत चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. मेहताब के घर वाले पुलिस पर अंगुली उठाने लगे.

उन्होंने पंजाबी बाग इलाके के एसीपी हरचरण वर्मा से मुलाकात कर मेहताब खान के गायब होने और जांच अधिकारी की निष्क्रियता की बात बताई. मादीपुर पुलिस चौकी थाना पंजाबी बाग के अंतर्गत आती है. इसलिए एसीपी हरचरण वर्मा ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश पंजाबी बाग के थानाप्रभारी ईश्वर सिंह को दिए.

मेहराज की शिकायत पर 12 सितंबर, 2014 को पंजाबी बाग थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 (अपहरण) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया गया और जांच एसआई अनूप कुमार को सौंप दी गई.

मेहताब के महीने भर से गायब होने की जानकारी पश्चिमी दिल्ली के अतिरिक्त आयुक्त रणवीर सिंह को मिली तो उन्होंने एसीपी हरचरण वर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर राजीव विमल, एसआई पवन कुमार दहिया, अनूप कुमार, हेडकांस्टेबल सतीश कुमार, सुजीत, कुलदीप, महिला कांस्टेबल अंजूबाला आदि को शामिल किया गया.

रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस ने मेहताब के फोन की कालडिटेल्स निकलवाई. कालडिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि जिस दिन मेहताब गायब हुआ था, उसी दिन उस के मोबाइल पर आइडिया कंपनी के एक नंबर से सुबह साढ़े 10 बजे काल आई थी.

इस के अलावा इसी नंबर पर मेहताब की 10-15 बार रोजाना बात होती थी. इस से यह लगा कि मेहताब के उस व्यक्ति से नजदीकी संबंध रहे होंगे तभी तो उस से इतनी बात होती थी.

पुलिस अब उस शख्स से मिलना चाहती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर को मिलाया तो वह भी स्विच्ड औफ मिला. संबंधित फोन कंपनी से फोनधारक का पता निकलवाया तो पता चला कि वह नंबर बिहार के तौहीर नाम के व्यक्ति की आईडी पर लिया गया था और यह नंबर 28 जून को एक्टिवेट हुआ था. पुलिस ने जब जांच की तो बिहार का यह पता फरजी पाया गया.

इस जांच में पुलिस टीम को यह भी जानकारी मिली कि उक्त फोन नंबर 86750501491**** आईएमईआई नंबर के फोन में चल रहा था. पुलिस टीम ने अब यह जानने की कोशिश की कि इस आईएमईआई नंबर के फोन में 28 जून, 2014 से पहले किस नंबर का सिम एक्टिव था.

पुलिस टीम इस काम में दिनरात एक करते हुए जुटी हुई थी. टीम को जांच में यह पता लग गया कि 28 जून से पहले उस फोन में किस नंबर का सिम काम कर रहा था. जांच में पता चला कि वह नंबर दिल्ली के वजीराबाद गांव के रहने वाले आसिफ खान पुत्र ईनाम खान के नाम से लिया गया था.

आसिफ खान से पूछताछ करने के बाद पुलिस उस शख्स तक पहुंच सकती थी जिस की मेहताब खान से रोजाना 10-15 बार बातें होती थीं. आसिफ के पास जाने से पहले इंसपेक्टर राजीव विमल ने मेहताब के भाई मेहराज से पूछा कि क्या वह वजीराबाद गांव में रहने वाले किसी आसिफ खान नाम के व्यक्ति को जानता है?

आसिफ का नाम सुनते ही मेहराज चौंक गया. आसिफ को भला वह कैसे भूल सकता था. उस ने आसिफ की पूरी कहानी इंसपेक्टर राजीव विमल को सुना दी. उस से पता चला कि मेहताब आसिफ खान का दूर के रिश्ते का चचेरा भाई है. आसिफ पहले मादीपुर में ही रहता था.

करीब 3 साल पहले की बात है. मेहताब के चचेरे भाई शाने आलम की बहन मुमताज का आसिफ के भतीजे रवीश खान से चक्कर चल गया था. कुछ दिनों बाद वह मुमताज को ले कर भाग गया. यह बात मेहताब और उस के भाइयों को पता चली तो वे सब शिकायत करने आसिफ खान के घर पहुंचे. शाने आलम और मेहताब गुस्से में थे. शिकायत के दौरान ही दोनों ओर से गरमागरमी हो गई. तब उन लोगों ने आसिफ खान की जम कर पिटाई की.

जिस तरह मोहल्ले में आसिफ की बेइज्जती हुई उसे देखते हुए उस ने वहां रहने का विचार ही छोड़ दिया. उस ने अपना मादीपुर का मकान बेच दिया और दिल्ली के ही वजीराबाद गांव में मकान खरीद कर रहने लगा. वहीं पर वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करने लगा. तब से वह वजीराबाद में ही रह रहा है. उधर मुमताज और रवीश खान ने भी निकाह कर लिया.

मेहराज से बात करने के बाद इंसपेक्टर राजीव विमल को लगा कि कहीं अपमान का बदला लेने के लिए आसिफ ने मेहताब के साथ कोई साजिश तो नहीं रची.

एआई से खुली मर्डर मिस्ट्री

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 3

बलवंत के अलग होते ही मिली उर्फ एंजल राय पूरी तरह से आजाद हो गई. वह इंदौर के बड़े बड़े मौल में जाती और वहां बड़े घरों के लड़कों को फांस कर उन्हें खुश करती. बदले में उन से मोटी रकम ऐंठती. इस तरह वह हाईप्रोफाइल कालगर्ल बन गई. धीरेधीरे तमाम लड़के उस के परमानेंट ग्राहक बन गए, जिस से अब उसे मौल के भी चक्कर नहीं लगाने पड़ते थे.

लेकिन छोटी ग्वालटोली में जहां वह रहती थी, वहां उस के ग्राहकों को आनेजाने में असुविधा होती थी, इसलिए उस ने सुखलिया के वीड़ानगर, प्राइम सिटी में एक बढि़या फ्लैट किराए पर ले लिया. अब वह अपने ग्राहकों को अय्याशी के लिए इसी फ्लैट पर बुलाने लगी.

अकेली औरत पर लोग वैसे भी तरहतरह की शंकाएं करते हैं. अगर उस के यहां आनेजाने वालों का तांता लगा हो तो आसपास वालों को अंगुली उठाते देर नहीं लगती. यह बात मिली को पता थी, इसलिए उसे एक ऐसे साथी की जरूरत थी, जो उस के साथ रह सके. उस ने तलाश की तो जल्दी ही उसे एक ऐसा साथी मिल गया. नीमच से नौकरी की तलाश में इंदौर आए नंदकिशोर से उस की मुलाकात हुई तो उस ने उसे अपने साथ रख लिया. इस तरह उसे एक साथी मिल गया.

इस के बाद मिली ने इंदौर के अरबिट मौल में चलने वाले पब में डांसर की नौकरी कर ली. वहां से उसे वेतन तो मिलता ही था, ग्राहक भी आसानी से मिल जाते थे. सतीश ततवादी से भी उस की मुलाकात इसी पब में हुई थी. सतीश इस पब में अक्सर शराब पीने आता था.

मिली के अनुसार सतीश शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था, इसलिए उस की नजरें मिली पर जम गई थीं. मिली को ऐसे लोगों की जरूरत ही रहती थी, इसलिए उस ने उस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. इस के बाद सतीश अकसर मिली के फ्लैट पर जाने लगा, जहां वह मोटी रकम खर्च कर के शराब और शबाब का आनंद लेने लगा.

मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले सतीश ततवादी एमबीए कर के नौकरी की तलाश में इंदौर आया तो वहां उसे सैटिसफैक्शन फर्नीचर कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई थी. सूझबूझ और मेहनत से काम करने की बदौलत सतीश को जल्दी ही ठीकठाक वेतन तो मिलने ही लगा था, कंपनी ने तमाम सुविधाएं भी दे दी थीं.

सतीश को ठीकइाक वेतन मिलने लगा तो सतीश ने इंदौर की सिंगापुर सुपरसिटी जैसी पौश कालोनी में घर खरीद लिया और पूरे परिवार के साथ उसी में रहने लगा. मधुभाषी और मिलनसार होने की वजह से सतीश जल्दी ही मालिकों का ही नहीं, साथ काम करने वाले कर्मचारियों का भी चहेता बन गया था.

सतीश मिली के रूपजाल और अदाओं में कुछ इस तरह उलझा कि अक्सर शाम को उस के फ्लैट पर जाने लगा. यह बात मिली के साथ रहने वाले नंदकिशोर को अच्छी नहीं लगती थी, क्योंकि मिली अब उसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आ रही थी. वह उस से शादी करना चाहता था. यही वजह थी कि सतीश अब उसे फूटी आंख नहीं सुहाता था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा.

दूसरी ओर मिली को भी नंदकिशोर की सच्चाई का पता चल गया था. इसलिए वह उस से छुटकारा पाना चाहती थी. मिली को कहीं से पता चल गया था कि नंदकिशोर शादीशुदा ही नहीं है, बल्कि 3 बच्चों का बाप भी है. भला ऐसे आदमी से वह कैसे शादी करती. लेकिन उस से पीछा छुड़ाना मिली के लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि वह उस की सारी पोलपट्टी जानता था.

नंदकिशोर को सतीश से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने उस की हत्या का इरादा बना लिया. लेकिन यह काम मिली की मदद के बिना नहीं हो सकता था. इसलिए उस ने अपने मन की बात मिली से कही. इस अपराध  में नंदकिशोर का साथ देने के लिए मिली तैयार हो गई, क्योंकि वह नंदकिशोर से छुटकारा पाना चाहती थी.

उस का सोचना था कि सतीश की हत्या के आरोप में नंदकिशोर जेल चला जाएगा तो उसे अपने आप नंदकिशोर से छुटकारा मिल जाएगा. यही सोच कर उस ने नंदकिशोर के साथ मिल कर सतीश की हत्या की योजना बना डाली.

योजना के अनुसार, 20 अगस्त, 2014 को मिली ने सतीश को फोन कर के अपने घर बुला लिया. सतीश को ऐसे मौके की हमेशा तलाश रहती थी, इसलिए मिली की ओर से दावत मिलते ही वह शराब की बोतल और खानेपीने का सामान ले कर घर में मीटिंग की बात बता कर मिली के घर अय्याशी करने पहुंच गया.

नंदकिशोर को वह पहचानता ही था. मिली ने सतीश को उसे अपना भाई बता रखा था. सतीश के पहुंचते ही शराब की बोतल खुल गई और पीनापिलाना शुरू हो गया. सतीश को नशा चढ़ा तो उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस शैतान को शांत करने के लिए वह मिली से छेड़छाड़ करने लगा.

नंदकिशोर सतीश से वैसे ही नफरत करता था. उस दिन वह उसे खत्म करने की योजना बनाए बैठा था. इसलिए उस ने सतीश को दबोच लिया. योजना के अनुसार उस ने सतीश को ज्यादा शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया था, इसलिए वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं था. उस ने पायजामे का नाड़ा सतीश के गले में लपेट कर कसना शुरू कर दिया.

नंदकिशोर सतीश का गला घोंट रहा था तो शातिर मिली अपनी योजना के अनुसार मोबाइल से उस की वीडियो रिकौर्डिंग कर रही थी. सतीश की मौत हो गई तो लाश को ठिकाने लगाने के लिए नंदकिशोर ने उसे कंबल में लेपट कर रस्सी से बांध दिया. इस के बाद लाश को उठा कर नीचे लाने के बजाय उस ने उसे सीढि़यों के पास रख कर पैर से लुढ़का दिया.

मिली ने नंदकिशोर की इस हरकत की भी वीडियो रिकौर्डिंग कर ली थी. मिली ने यह वीडियो रिकौर्डिंग इसलिए की थी कि वह इसे पुलिस को दिखा कर नंदकिशोर को जेल भिजवा देगी.

इस के बाद उन्होंने सतीश की लाश को उसी की वैगनआर कार में रखा और धर्मपुरी (सांवरे क्षेत्र) उज्जैन होते हुए आगे बढ़ गए. लाश उन्होंने नागदा जंक्शन के थाना बिरमाग्राम के गांव डाबरी में एक पुलिया के पास फेंक दी थी. एक टोल नाके पर टैक्स देने की वजह से उन की कार का नंबर नोट हो गया था. इस के बाद उन्होंने कार की दोनों नंबर प्लेटें तोड़ कर फेंक दी थीं.

बिना नंबर की कार से वे सड़क से नहीं जा सकते थे. इसलिए वे जंगल के रास्ते से नीमच पहुंचे. सतीश का पर्स उन्होंने पहले ही निकाल लिया था. पैसे नंदकिशोर ने अपनी जेब में रख लिए. एटीएम तथा पेनकार्ड इंद्रानगर स्थित अपने घर में रख दिए. बाकी के कागज, खाली पर्स, घड़ी और मोबाइल फोन रास्ते में एक नदी में फेंक दिए.

रिमांड के दौरान पुलिस ने नीमच स्थित नंदकिशोर के घर से सतीश का एटीएम और पेनकार्ड बरामद कर लिया था. मिली ने सतीश की हत्या का जो वीडियो रिकौर्डिंग की थी, सुबूत के लिए पुलिस ने उस की सीडी बनवा ली थी. दूसरे को फंसाने के लिए अपराध में साथ देने वाली मिली को शायद यह पता नहीं था कि अपराध में साथ देने वाला भी अपराधी माना जाता है.

पुलिससिया काररवाई पर नजर रखने के लिए नंदकिशोर और मिली रोज अखबार पढ़ते थे. धीरेधीरे उन के पैसे खत्म हो गए तो वे इंदौर पैसे लेने जा रहे थे, तभी पकड़े गए. रिमांड अवधि खत्म होने पर दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सतीश के घर वाले उस की मौत से दुखी तो हैं ही, जिस तरह से वह मारा गया, उस से शर्मिंदा भी हैं. सभी अंदर ही अंदर घुट रहे हैं कि आसपड़ोस वालों को कैसे मुंह दिखाएं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 2

नागदा पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि इंदौर से धर्मपुरी, उज्जैन और नीमच हो कर नागदा जंक्शन तक कई टोल नाके पड़ते थे. इन नाकों पर सतीश की वैगनआर का नंबर तो दर्ज था, पर फुटेज साफ नहीं थी. इस इलाके में काफी अफीम पैदा होती है, इसलिए यहां स्मग्लर सक्रिय रहते हैं. ये लोग टोल नाके से बचने के लिए जंगल के रास्तों से निकल जाते हैं. अगर सतीश की कार ऐसे किसी रास्ते से गई होती तो टोल नाके पर उस का नंबर दर्ज नहीं होता.

पुलिस की सब से बड़ी परेशानी यह थी कि उसे सतीश की वैगनआर नहीं मिल रही थी. जबकि इस बात की पूरी संभावना थी कि हत्या के बाद हत्यारों ने उसे कहीं न कहीं जरूर छोड़ा होगा. दूसरे सतीश की हत्या का कारण भी पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था.

29 अगस्त को गणेश चतुर्थी थी. त्योहार की वजह से उस दिन इंदौर के बाजारों में कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. त्योहार की ही वजह से पुलिस ने जगहजगह चैकिंग नाके लगा रखे थे. एक नाके से एक वैगनआर गुजरी तो पुलिस ने उसे चैकिंग के लिए रोक लिया. कार में 30 साल के आसपास का एक युवक और 24-25 साल की एक युवती बैठी थी. पुलिस देख कर दोनों सकपका गए. जांच में पता चला कि चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है. ऊपर से कार की आगे और पीछे की दोनों नबर प्लेटें भी गायब थीं.

पूछताछ में जब दोनों ठीक से जवाब नहीं दे सके तो उन्हें थाने ले आया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो युवक ने अपना नाम नंदकिशोर और युवती ने अपना नाम मिली उर्फ एंजल राय बताया. वैगनआर कार के गायब होने की जानकारी सभी थानों की पुलिस को थी, इसलिए बिना नंबर की वैगनआर पर सवार नंदकिशोर और मिली से थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने जब उस कार के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के बता दिया कि यह कार सतीश ततवादी की है, जिस की हत्या हो चुकी है.

इस के बाद कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने सतीश ततवादी की वैगनआर मिलने की सूचना थाना नागदा पुलिस को दी तो थाना नागदा की एक पुलिस टीम थाना लसूडि़या पहुंची और नंदकिशोर तथा मिली उर्फ एंजल राय को हिरासत में ले कर थाना नागदा ले गई.

थाना नागदा में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में नंदकिशोर और मिली से सतीश ततवादी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई तो नंदकिशोर ने तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन मिली ने मुसकराते हुए अपना अपराध स्वीकार कर के सतीश की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. मिली द्वारा सुनाई गई सतीश ततवादी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के बैतूल की रहने वाली मिली के 11 साल की होते होते उस के मातापिता एकएक कर के गुजर गए थे. मातापिता की मौत के बाद उस का ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो उसे सहारा देता. इसलिए उसे किसी ने अनाथाश्रम पहुंचा दिया, वहां से वह भोपाल के चाइल्ड केयर सेंटर आ गई.

वहीं से मिली ने पढ़ाई की और डांस सीखा. डांस में उस ने अच्छी तरह महारत हासिल कर ली तो उस ने इसे ही रोजीरोटी का जरिया बनाना चाहा. वह टीवी देखती ही रहती थी. उन दिनों सोनी चैनल पर डांस का रियलटी शो बूगीवूगी आता था. डांस सीखने वालों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय था. इस के अलावा अन्य लोग भी इस कार्यक्रम में काफी रुचि लेते थे. खास कर बच्चे इसे बहुत पसंद करते थे. मिली भी डांस सीख रही थी. इसलिए वह भी इस कार्यक्रम को देखती थी.

मिली खूबसूरत और आकर्षक तो थी ही, चंचल और तेजतर्रार भी थी. उस की भी इच्छा बूगीवूगी में भाग लेने की होती थी. यही वजह थी कि उस ने अपने नृत्य के कुछ चित्रों के साथ फार्म भर कर बूगीवूगी में भेज दिया. वह सुंदर भी थी और डांस में पारंगत भी, बूगीबूगी में उस का चयन हो गया. अब तक मिली 18 साल की हो चुकी थी.

वह मुंबई पहुंच गई. बूगीवूगी में उस ने अपना ऐसा जौहर दिखाया कि उस साल की वह ‘विनर’ घोषित की गई.

मिली मुंबई में ही रह कर काम तलाश करने लगी. लेकिन उसे कहीं चांस नहीं मिला. धीरेधीरे पैसे खत्म हो गए और कहीं काम नहीं मिला तो वह इंदौर वापस आ गई. बूगीबूगी का विनर होने पर उसे जो पैसे इनाम में मिले थे, वह मुंबई में ही काम की तलाश में खर्च हो गए थे. अब वह बच्ची भी नहीं रही थी कि चाइल्ड केयर सेंटर में रह लेती. इसलिए इंदौर आ कर सब से पहले उस ने ग्वालटोली मोहल्ले में किराए पर मकान ले कर रहने की व्यवस्था की. इस के बाद गुजरबसर के लिए वह बच्चों तथा लड़कियों को डांस सिखाने लगी. इस काम से उस की ठीकठाक कमाई होने लगी, जिस से वह ठाठ से रहने लगी.

मिली अब तक जवान हो चुकी थी. लेकिन उस का कोई ऐसा अपना नहीं था, जिस से वह अपना सुखदुख बांट सकती. अकेली होने की वजह से कभीकभी उसे घुटन सी होने लगती थी. अब उसे एक ऐसे साथी की जरूरत महसूस हो रही थी, जो उस की भावनाओं को समझे और उस की हर तरह से मदद भी करे. उस की यह तलाश जल्दी ही पूरी हुई. उसे साथी के रूप में बलवंत सिंह तोमर मिल गया. बलवंत अच्छा आदमी था. इसलिए मिली ने उस से प्यार ही नहीं किया, बल्कि उसे जीवनसाथी भी बना लिया.

लेकिन ज्यादा दिनों तक बलवंत सिंह तोमर की मिली से निभ नहीं पाई. इस की वजह यह थी कि मिली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. डांस कार्यक्रम में भाग लेने की वजह से उस की सोच तो बदल ही गई थी, रहनसहन भी बदल गया था. इसलिए उस के खर्च भी अनापशनाप हो गए थे, जो अब डांस सिखाने से पूरे नहीं हो रहे थे. ऐसे में पैसे कमाने के उस ने अन्य रास्ते खोज लिए. निश्चित था, वे रास्ते ठीक नहीं रहे होंगे, इसलिए बलवंत ने उस से किनारा कर लिया.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में – भाग 1

इंदौर के निपानिया स्थित ‘सैटिसफैक्शन फर्नीचर’ बहुत बड़ा फर्नीचर शोरूम है. इंदौर के ही लोटस विला, सुपर सिटी निवासी सतीश ततवादी इसी फर्नीचर शोरूम में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर तैनात थे, मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव का होने की वजह से उन के साथ के कर्मचारी उन की बड़ी इज्जत करते थे. उन के परिवार में मातापिता और 2 भाइयों के अलावा पत्नी श्रेया और 14 साल की बेटी ईशा को मिलाकर 7 सदस्य थे. उन का पूरा परिवार एक साथ रहता था.

20 अगस्त को सतीश ततवादी घर पर लंच कर के अपनी कार से शोरूम पर जाने के लिए निकले. जातेजाते उन्होंने पत्नी श्रेया से कहा, ‘‘आज फैक्ट्री में एक मीटिंग है, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. हो सकता है 10, साढ़े 10 बज जाएं.’’

रात को साढ़े 10 बजे तक सतीश घर नहीं लौटे तो श्रेया ने फोन किया, लेकिन फोन पति के बजाय किसी और ने रिसीव किया. श्रेया की आवाज सुन कर उस ने कहा, ‘‘मैं साहब का पीए मुकाती बोल रहा हूं. साहब अभी बिजी हैं. हम लोग इस वक्त उज्जैन में हैं, बाद में बात करना.’’

श्रेया की बात सुने बिना ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह बात श्रेया को इसलिए अजीब लगी, क्योंकि सतीश का कोई पीए नहीं था. उन्होंने दोबारा फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद घर वालों ने दर्जनों बार सतीश का नंबर मिलाया, पर वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

इस से परिवार के सभी लोगों के मन में तरहतरह की शंकाए सिर उठाने लगीं. वजह यह कि न तो सतीश ने उज्जैन जाने के बारे में कुछ बताया था और न कभी वह अपना मोबाइल बंद रखते थे.

रात भर फोन मिलाते रहने के बावजूद सतीश से किसी की बात नहीं हुई. ततवादी परिवार की वह रात आंखोंआंखों में कटी. जैसेतैसे रात गुजरी. सुबह होते ही सतीश के पिता रामकृष्ण ततवादी अपने दोनों बेटों संतोष और संजय को साथ ले कर अपने क्षेत्र के थाना लसूडि़या जा पहुंचे. वहां उन्होंने थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार को सारी बात बता कर सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया था कि सतीश फैक्ट्री में होने वाली किसी मीटिंग में शामिल होने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी श्री गहरवार ने उन लोगों को यह आश्वासन दे कर घर लौटा दिया कि वह इस मामले की जांच पूरी तत्परता से करेंगे. श्री गहरवार छानबीन के लिए अपनी टीम के साथ फर्नीचर की उस फैक्ट्री में गए. वहां के कर्मचारियों से उन्हें पता चला कि वहां ऐसी कोई मीटिंग थी ही नहीं, साथ ही यह भी कि उस दिन सतीश वहां आए ही नहीं थे. इस का मतलब सतीश झूठ बोल कर घर से निकले थे और उन के साथ कोई घटना घट गई थी.

थानाप्रभारी कुंवर नरेंद्र सिंह गहरवार ने थाने लौट कर सतीश ततवादी के हुलिए सहित यह सूचना जिले के सभी थानों को भेज दी.

21 अगस्त, 2014 की सुबह थाना बिरलाग्राम के गांव डाबरी का एक आदमी जंगल की ओर गया तो उस ने पुलिया के पास एक लाश पड़ी देखी. लाश कंबल में लिपटी हुई थी. वह व्यक्ति दौड़ादौड़ा थाना बिरलाग्राम गया और यह बात थानाप्रभारी नरेंद्र यादव को बताई.

नरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ जिस समय घटनास्थल पर पहुंचे, उस समय साढ़े 11 बजे थे. सूचना सही थी. मृतक 40-41 साल का हट्टाकट्टा व्यक्ति था. पुलिस ने लाश के आसपास का सारा इलाका छान मारा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. पुलिस ने लाश का पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मृतक के शव से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. अलबत्ता पहचान के लिए पुलिस ने लाश के फोटो जरूर करा लिए थे. इस के बाद थानाप्रभारी नरेंद्र यादव ने अन्य थानों में पहचान के लिए लाश के फोटो वाट्सएप पर भिजवा दिए.

थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने वाट्सएप पर आया लाश का फोटो देखा तो सतीश के भाई संजय और संतोष को थाने बुला लिया. दोनों भाइयों ने थानाप्रभारी के मोबाइल पर आया लाश का फोटो देखा तो चीखचीख कर रोने लगे. वह उन के भाई सतीश की लाश का फोटो था. थानाप्रभारी ने उन्हें बताया कि वह फोटो जिला नागदा जंक्शन के थाना बिरलाग्राम से आया है. अत: लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें वहीं जाना होगा.

सतीश के पिता रामकृष्ण अपने दोनों बेटों संजय और संतोष को साथ ले कर किराए की कार से थाना बिरलाग्राम जा पहुंचे. वहां से वह पुलिस के साथ नागदा जंक्शन गए. तब तक लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. बापबेटों ने शव को पहचान लिया. लाश सतीश की ही थी. लिखापढ़ी के बाद लाश रामकृष्ण ततवादी को सौंप दी गई. इस के बाद सतीश की हत्या का केस थाना बिरलाग्राम में दर्ज हो गया था.

सतीश के शव को इंदौर लाया गया तो उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. पूरे सेक्टर में सन्नाटा छाया था. सतीश की पत्नी श्रेया और बेटी ईशा अर्द्धबेहोशी के आलम में थीं. बहरहाल, उसी दिन सतीश का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सतीश की हत्या की खबर मिलने के बाद थाना बिरलाग्राम और थाना लसूडि़या की पुलिस मिल कर जांचपड़ताल में लग गई. इस के लिए पुलिस ने सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. सतीश ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन इंदौर जिले के गांव छोटा धर्मपुरी, उज्जैन, नीमच और नागदा की आ रही थी. यानी घटना के दिन वह नंबर कई जगहों पर रहा था.

चूंकि सतीश अपनी वैगनआर कार से गए थे, इसलिए पुलिस ने टोल नाकों से फुटेज निकलवा कर चेक की. लेकिन रात के अंधेरे की वजह से फुटेज में कुछ भी साफ नजर नहीं आया.

सतीश की काल डिटेल्स में 2 आखिरी नंबर संदिग्ध थे. नागदा पुलिस ने साइबर क्राइम सेल उज्जैन से उन नंबरों की जांच कराई तो उन में एक नंबर छोटी ग्वालटोली इंदौर में रहने वाली मिली उर्फ एंजल राय का निकला. थाना लसूडि़या के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह गहरवार ने मिली उर्फ एंजल राय के पते पर छानबीन की तो वह लापता मिली. मतलब उस ने अपना ठिकाना बदल लिया था. नरेंद्र सिंह ने यह सूचना नागदा पुलिस को दे दी.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 3

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह पुलिस वालों के साथ वैवाहिक कार्यक्रमों में शामिल हो गए. पुलिस वाले भले ही बाराती बने थे, लेकिन वे वहां आए अन्य लोगों से अलग लग रहे थे. शायद इसीलिए एक आदमी ने अपनी स्थानीय भाषा में पूछा, ‘या कुण (तुम कौन हो)?’

थानाप्रभारी साथी पुलिस वालों को ले कर एक किनारे आ गए, जहां उन पर कोई ध्यान न दे सके. वह वहीं से हरि सिंह पर नजर रखे हुए थे. हरि सिंह लघुशंका के लिए बाहर आया तो शिवपाल सिंह ने उसे दबोच लिया. इस तरह पकड़े जाने से वह घबरा गया.

हरि सिंह शोर मचाता, उस के पहले ही थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने रिवाल्वर सटा कर कहा, ‘‘हम पुलिस वाले हैं. अगर तुम ने शोर मचाया तो तुरंत गोली चल जाएगी. उस के बाद क्या होगा, तुम जानते ही हो.’’

हरि सिंह सन्न रह गया. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो अनिता का मोबाइल उस के पास से मिल गया. पुलिस उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बिठा कर थाना ठीकरी ले आई.

रात होने की वजह से पुलिस का यह काम आसानी से हो गया था. इंदौर ला कर हरि सिंह को अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ और लूटा गया सामान तथा हथियार बरामद कराने के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

थाने में की गई पूछताछ में हरि सिंह ने दोनों बहनों की हत्या और लूटपाट का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने उस सामान के बारे में भी बता दिया, जो वह शकुंतला के घर से लूट कर लाया था. इस के बाद थाना पलासिया पुलिस थाना ठीकरी पुलिस के साथ हरि सिंह के घर पहुंची, जहां उस के बेटे की शादी हो रही थी.

पुलिस ने जब उस के घर वालों और गांव वालों को उस के कारनामे बारे में बताया तो सब ने नफरत से उस की ओर से मुंह मोड़ लिया.

हरि सिंह ने दरवाजे के पीछे से एक झोला ला कर दिया, जिस में उस ने शकुंतला और अनिता के घर से चोरी किया गया सामान रख कर छिपा रखा था. सामान बरामद कराते समय हरि सिंह रो पड़ा. क्योंकि अनिता की जिस सोने की चेन को उस ने बेटे को पहनाने के लिए चुराई थी, वह उसे पहना नहीं सका. जिस शौक के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, वह पूरा नहीं हो सका.

पुलिस ने जब उस से उस हथियार के बारे में पूछा, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी तो उस ने बताया कि वह तो इंदौर में है.

इस तरह 6 दिन की मशक्कत के बाद पुलिस ने शकुंतला और अनिता के हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया. हरि सिंह को इंदौर लाया गया तो उस ने बाणगंगा के एक मकान से वह रौड बरामद करा दी, जिस से उस ने दोनों बहनों की हत्या की थी. वहां हरि सिंह का एक और राज खुला. जिस मकान से उस ने रौड बरामद कराई थी, उस में एक महिला भी थी. हरि सिंह ने उसे अपनी दूसरी पत्नी बताया था.

हरि सिंह के बताए अनुसार, लगभग 15 साल पहले जब वह अपना गांव छोड़ कर रोजी रोजगार के लिए इंदौर आया था तो वहां वह एक कारखाने में काम करने लगा था. उसी कारखाने में वह औरत भी काम करती थी.

दोनों में जानपहचान हुई और फिर प्यार, उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. शादी के बाद उस ने कारखाने की वह नौकरी छोड़ दी और वेल्डिंग की मशीन खरीद कर साइकिल से घूम घूम कर वेल्डिंग का काम करने लगा. इस काम से वह ठीक ठाक कमा लेता था.

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      हरि सिंह

किसी परिचित के माध्यम से पिछले साल हरि सिंह ने शकुंतला के यहां एक टीन शेड में वेल्डिंग का काम किया था. इसलिए दोनों बहनें उसे पहचानने लगी थीं. उस दिन यानी 1 मई को वह आवाज लगाते हुए बख्तावरनगर में घूम रहा था तो शकुंतला ने उसे कूलर के स्टैंड में वेल्डिंग के लिए बुला लिया था.

कूलर पहली मंजिल पर था. हरि सिंह वहां पहुंचा तो अनिता के गले में मोटी सी सोने की चैन देख कर उस की नीयत खराब हो गई. इस से उसे लगा कि इन के घर में काफी गहने होंगे. उसे यह तो पता ही था कि इस घर में मात्र 2 महिलाएं ही रहती हैं, इसलिए उसे लगा कि यहां वह आसानी से लूटपाट कर सकता है.

अपना रास्ता साफ करने के लिए उस ने पहले वेल्डिंग के दौरान करंट लगने की बात कह कर वहां खेल रही तीनों लड़कियों को हटा दिया. बच्चे चले गए तो अनिता के गहने छीनने के इरादे से उस ने उसे पकड़ना चाहा.

अनिता जवान थी और तेजतर्रार भी. हरि सिंह का इरादा भांप कर उस ने उस का मुंह नोच लिया. तब तक हरि सिंह ने उसे पकड़ लिया था. अनिता शोर न मचा सके, इस के लिए उस ने उस का मुंह दबा दिया. उसी बीच अनिता ने उस के बाल पकड़ कर खींचे तो वह तिलमिला उठा.

हरि सिंह को लगा कि अब मामला बिगड़ने वाला है तो उस ने साथ लाए लोहे के रौड से अनिता के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में अनिता गिर कर बेहोश हो गई. इस के बाद हरि सिंह ने लगातार कई वार कर के अनिता को खत्म कर दिया.

उस समय शकुंतला भूतल पर कोई काम कर रही थी. खटरपटर होते सुन वह ऊपर पहुंची तो हरि सिंह दरवाजे की ओट में छिप गया. जैसे ही वह कमरे में घुसीं, उस ने उसी रौड से उन के ऊपर भी हमला कर दिया.

शकुंतला का भी खेल खत्म हो गया तो उस ने दोनों लाशों को घसीट कर बाथरूम में नीचे ऊपर रख दिया. इस के बाद उस ने जल्दी जल्दी अलमारियां बक्से वगैरह तोड़ कर जो हाथ लगा, उसे कब्जे में किया और अनिता का कीमती मोबाइल ले कर भाग निकला. फिर वही मोबाइल उस की गिरफ्तारी की वजह बना.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 2

इस के बाद पुलिस ने पंफलेट में छपे मोबाइल नंबर और पते के आधार पर कूलर बनाने वाले को पकड़ लिया. वह पास के ही तिलक नगर का रहने वाला था. उस से पूछताछ की गई तो उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. इस के बाद उस की शिनाख्त उन लड़कियों से कराई गई तो उन्होंने भी कहा कि यह वह आदमी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने सामने वाले घर में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. उस में लाल रंग की शर्ट पहने एक आदमी साइकिल ले कर जाता हुआ दिखाई दिया. उस की साइकिल के पीछे एक बाक्स जैसा कुछ बंधा था. लड़कियों ने बताया था कि शकुंतला बुआ के घर आने वाला आदमी लाल रंग की शर्ट पहने था. वह आया भी साइकिल से था और उस की साइकिल में वेल्डिंग करने वाली मशीन बंधी थी.

पुलिस को लगा कि यही आदमी हो सकता है, जो मृतका बहनों के यहां कूलर बनाने आया था. लेकिन फुटेज में उस का चेहरा स्पष्ट नहीं था, इसलिए यह फुटेज पुलिस के किसी काम की नहीं निकली थी. थाना पलासिया पुलिस ने लूट और शकुंतला मिश्रा एवं अनिता दुबे की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिता के गायब मोबाइल को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

पुलिस ने उस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में आखिरी फोन उन्हीं के विभाग के एक चपरासी को किया गया था. चपरासी को बुला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘मैडम ने ही मुझे फोन कर के बुलाया था. दरअसल मेरी साइकिल चोरी हो गई थी. तब मैडम ने कहा था कि उन के यहां एक पुरानी साइकिल पड़ी है. उसी को देने के लिए उन्होंने बुलाया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उन्होंने मुझे छुट्टी की अर्जी भी दी थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें बुखार है, इसलिए वह औफिस नहीं आएंगी.’’

पूछताछ के बाद पुलिस ने चपरासी के बारे में उस के औफिस में पता किया तो पता चला कि वह सच कह रहा था. उस दिन वह पूरे समय औफिस में ही रहा था. छुट्टी के बाद वह घर चला गया था. हत्या की खबर मिलने पर वह आया भी था.

पड़ोसियों के अनुसार दोनों बहनों का व्यवहार बहुत अच्छा था. दोनों ही बहनें सब से हिलमिल कर रहती थीं. कालोनी के सभी बच्चे उन्हें बुआ कहते थे. इस की वजह यह थी कि उन के मायके वाले भी उसी कालोनी में रहते थे. पुलिस ने यह भी पता किया था कि कहीं प्रौपर्टी का कोई झंझट तो नहीं था. लेकिन इस मामले में भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. क्योंकि उन के घर वाले इतने संपन्न थे कि वे उन की संपत्ति से कोई मतलब नहीं रखते थे.

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संयोग से 1 मई को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इंदौर में ही थे. वह मजदूर दिवस के अवसर पर किसी कार्यक्रम में भाग लेने आए थे. इस लूटपाट और 2-2 हत्याओं की सूचना उन्हें मिली तो वह पुलिस अधिकारियों पर काफी नाराज हुए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के आदेश दिए.

हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने अनिता के मोबाइल फोन का सहारा लिया. उसे तत्काल सर्विलांस पर लगवा दिया गया. वह फोन कभी बंद हो रहा था तो कभी चालू. एक बार फोन की लोकेशन इंदौर के बाणगंगा इलाके की मिली. लेकिन जल्दी ही फोन का स्विच औफ हो गया, इसलिए पुलिस कोई काररवाई नहीं कर पाई. इस के बाद फोन की लोकेशन निमाड़ जिले के ठीकरी कस्बे की मिली.

जब सर्विलांस के माध्यम से हत्यारे तक नहीं पहुंचा जा सका तो पुलिस ने दूसरी तकनीक अपनाई. यह तकनीक थी पीएसटीएन (पब्लिक स्विच्ड टेलीकौम नेटवर्क). पुलिस ने इस तकनीक से पता किया कि उस समय (एक निश्चित समय में) वहां कितने मोबाइल चल रहे थे. सर्विलांस के माध्यम से अनिता के मोबाइल की आखिरी  लोकेशन निमाड़ जिले के थाना ठीकरी की मिली थी.

पुलिस को लगा कि अनिता का मोबाइल ठीकरी के आसपास का ही कोई आदमी ले गया है. और जो भी वह फोन ले गया है, उसी आदमी ने इस वारदात को अंजाम दिया है. उस आदमी के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने अनिता के घर के पास घटना के समय संचालित होने वाले मोेबाइल फोनों के नंबर निकलवाए. पता चला कि वारदात के समय यानी 3 घंटे के बीच वहां से 3 लाख फोन संचालित हुए थे.

इस के बाद पुलिस ने ठीकरी के टावर से होने वाले मोबाइल नंबरों को निकलवाए. इस के बाद दोनों सूचियों की स्कैनिंग की गई. इन में अनिता के मोबाइल नंबर के अलावा पुलिस को ऐसा मोबाइल नंबर मिला, जो दोनों सूचियों में था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर ठीकरी के पास घटवा गांव रहने वाले हरि सिंह का था. इस के बाद पुलिस ने हरि सिंह के बारे में पता किया. अब पुलिस को उसे गिरफ्तार करना था. थाना पलासिया की एक टीम उसे गिरफ्तार करने के लिए निमाड़ के लिए रवाना हो गई.

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह ने स्थानीय थाना ठीकरी पुलिस और पटवारी से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वहां वर्दी में जाने पर मामला बिगड़ सकता है. गांव वाले उसे बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. उस स्थिति में उसे पकड़ा नहीं जा सकता. फिर जब उस के यहां विवाह समारोह चल रहा हो तो पुलिसिया काररवाई और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती थी.

इस स्थिति में थानाप्रभारी शिवपाल सिंह 4 सिपाहियों के साथ पुलिस वर्दी उतार कर बाराती बन कर गांव घटवा जा पहुंचे. हरि सिंह की पहचान के लिए वे अपने साथ बगल के गांव का एक आदमी ले आए थे.

उस आदमी ने जिस आदमी को हरि सिंह बताया, वह लाल रंग की शर्ट पहने था. कैमरे की फुटेज में पुलिस को साइकिल लिए जो आदमी दिखाई दिया था, वह भी लाल रंग की शर्ट पहने था. बाराती बनी पुलिस उस के पीछे लग गई.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 1

मध्य प्रदेश के इंदौर का बख्तावर नगर एक ऐसा इलाका है, जहां ज्यादातर धनाढ्य लोग रहते हैं. यहां रहने वाले वे लोग हैं, जो सरकारी नौकरियों में हैं या फिर रिटायर हो चुके हैं. पौश होने की वजह से यह इलाका शांत रहता है. नौकरीपेशा होने की वजह से यहां रहने वाले लोग एकदूसरे की हर तरह से मदद करने को भी तैयार रहते हैं.

1 मई, 2014 की दोपहर के 2 बजे के आसपास दिव्य मिश्रा अपनी बुआ शकुंतला मिश्रा के यहां पहुंचा तो मकान का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था. उसे यह देख कर हैरानी हुई, क्योंकि उस की बुआ का घर कभी इस तरह खुला नहीं रहता था. वह दरवाजा तभी खोलती थीं, जब आने वाले को दरवाजे में लगी जाली से देख कर पहचान लेती थीं.

62 वर्षीया शकुंतला मिश्रा उस मकान में अपनी बहन अनिता दुबे के साथ रहती थीं. उन के पति विक्रम मिश्रा की बहुत पहले एक सड़क हादसे में मौत हो चुकी थी. पति की मौत के समय वह गर्भवती थीं. पति की मौत का सदमा उन्हें इतना गहरा था कि गर्भ में पल रही बेटी की भी मौत हो गई थी. इस के बाद उन्हें मृतक आश्रित कोटे से पति की जगह वन विभाग में नौकरी मिल गई थी. अब वह उस से भी रिटायर हो चुकी थीं.

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पति की मौत के बाद उस घर में शकुंतला अपनी मौसेरी बहन अनिता दुबे के साथ रहती थीं. अनिता उन्हीं के साथ रह कर पढ़ीलिखी थी. बाद में उसे नौकरी मिल गई. साथ रहते हुए उसे अपनी मौसेरी बहन से इतना लगाव हो गया था कि उस ने भी शादी नहीं की थी.

अनिता दुबे शिक्षा विभाग में संचालक थीं. दोनों ही बहनों की कोई औलाद नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति एकदूसरे के नाम कर रखी थी. उन के पास पड़ोस वालों से काफी अच्छे संबंध थे. मोहल्ले के सभी बच्चे उन्हें बुआ कहते थे. कभी कोई उन के चरित्र पर अंगुली नहीं उठा सका था, इसलिए सब उन की काफी इज्जत करते थे.

मकान मे उन के साथ कोई मर्द नहीं रहता था, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से वे हमेशा अपना दरवाजा बंद रखती थी. शकुंतला मिश्रा के पिता दूरसंचार विभाग में डाइरैक्टर के पद से रिटायर हुए थे. वह भी परिवार के साथ बख्तावरनगर में ही रहते थे.

दिव्य ने बुआ के घर का बाहरी दरवाजा खुला देखा तो उसे काफी हैरानी हुई थी. वह अंदर पहुंचा तो उसे कोई नहीं दिखाई दिया, किसी की आवाज भी सुनाई नहीं दी. घर में सन्नाटा पसरा था. उस ने आवाज भी दी, तब भी कोई जवाब नहीं मिला. थोड़ी देर वह असमंजस की स्थिति में खड़ा रहा, उस के बाद वह पहली मंजिल की सीढि़यां चढ़ने लगा.

ऊपर पहुंच कर उस ने देखा, कमरे की लकड़ी की अलमारियां खुली पड़ी थीं और उन का सारा सामान बिखरा पड़ा था. किसी अनहोनी से उस का दिल धड़कने लगा. तभी उस की नजर फर्श पर पड़ी तो उसे खून फैला दिखाई दिया. खून देख कर वह घबरा गया. उस ने तुरंत अपने दोस्तों और घर वालों को फोन कर दिया. दोस्त और घर वाले भी वहीं रहते थे, थोड़ी ही देर में सब आ गए.

फर्श पर घसीटने के निशान थे. निशान के अनुसार सभी बाथरूम में पहुंचे तो वहां शकुंतला और अनिता के शव एक दूसरे के ऊपर पड़े थे. स्थिति देख कर लोगों को समझते देर नहीं लगी कि लूटपाट के लिए लुटेरों ने दोनों की हत्या कर दी थी. तुरंत घटना की सूचना थाना पलासिया पुलिस को दी गई.

सूचना देने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. एक तो पौश इलाके का मामला था, दूसरे मृतका ही नहीं, उन के सारे नाते रिश्तेदार उच्च सरकारी पदों पर थे, इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने पुलिस उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी. सुबूत जुटाने के लिए फोरैंसिक एक्स्पर्ट डा. सुधीर शर्मा को भी घटनास्थल पर बुला लिया गया था.

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डा. सुधीर शर्मा ने घटनास्थल एवं लाशों के निरीक्षण में पाया कि मृतका अनिता एवं हत्यारे के बीच जम कर संघर्ष हुआ था. क्योंकि उस के नाखून में हत्यारे की त्वचा एवं सिर के बाल मिले थे. उन्होंने उसे सुरक्षित कर लिया था. हत्यारे ने दोनों के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के उन्हें मारा था. उन के शरीर के कुछ गहने भी गायब थे. पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों की पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया था.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा था कि कूलर खुला पड़ा था. शायद वह रिपेयरिंग के लिए खोला गया था. अलमारियों के सामान के बिखरे होने से साफ था कि मामला लूटपाट का था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पता चला था कि कीमती गहने तो लौकर में रखे थे, रोजाना उपयोग में लाए जाने वाले गहने ही घर में थे. उन में से कितना गया था और उन की कीमत क्या रही होगी, यह कोई नहीं बता सका था. लेकिन इतना जरूर बताया गया था कि शकुंतला का मोबाइल तो है, जबकि अनिता का मोबाइल गायब है.

निरीक्षण में थानाप्रभारी शिवपाल सिंह ने देखा था कि दोनों लाशों के हाथों की अंगूठियां जस की तस थीं. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि लुटेरा पेशेवर नहीं था. घर की सभी अलमारियों, बक्सों और लौकर के ताले टूटे पड़े थे. इस का मतलब लुटेरे के हाथ जो लगा था. उसे ले कर वह भाग निकला था. क्योंकि तलाशी में करीब 50 पर्स पाए गए थे और हर पर्स में कोई न कोई गहना और कुछ नकद रुपए मिले थे.

कूलर रिपेयर करने वाले का एक पंफलेट मिला था, कूलर भी खुला पड़ा था. इस से पुलिस को लगा कि कहीं कूलर बनाने वाले ने ही तो इस घटना को अंजाम नहीं दिया. पुलिस ने उस पंफलेट को अपने कब्जे में ले लिया. क्योंकि पुलिस का यह अंदाजा सही निकला.

दरअसल पड़ोस की छोटी छोटी 3 लड़कियों ने बताया था कि घटना से पहले वे वहां खेल रही थीं तो कूलर बनाने वाले ने उन्हें यह कह कर घर भेज दिया था कि कहीं करंट न लग जाए. इस बात से पुलिस की आशंका को बल मिला.

अजमेर डिस्कॉम में करोड़ों का घोटाला करने वाली ब्यूटी क्वीन

अजमेर विद्युत वितरण निगम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन कई दिनों से परेशान  थीं. वह कर्मचारियों के वेतन, कैश वाउचर, चैक आदि का हिसाब रखती थीं. उन की परेशानी का कारण यह था कि कई वाउचर नहीं मिल रहे थे.

इस के अलावा कर्मचारियों की वेतन स्लिप और उन के बैंक खातों में जमा हो रही राशि में भी अंतर आ रहा था. शीतल की नजर में कई ऐसे बैंक खाते भी आए, जिन में निगम की ओर से वेतन जमा कराया जा रहा था. लेकिन उन खाताधारक कर्मचारियों का कोई रिकौर्ड नहीं मिल रहा था. शीतल जैन इस औफिस में कुछ समय पहले ही आई थीं.

कर्मचारियों की हाजिरी देख कर उन का मासिक वेतन बनाना, बिल वाउचर और कैश का हिसाबकिताब रखना उन के लिए कोई नई बात नहीं थी. न ही पहले इस काम में उन से कोई गड़बड़ हुई थी, लेकिन उन्हें यहां का काम समझ नहीं आ रहा था.

वह रोजाना कर्मचारियों का रजिस्टर ले कर बैठतीं और उन के वेतन के हिसाबकिताब देखतीं, उन्हें हर जगह भारी गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी वह यह नहीं समझ पाईं कि यह गड़बडि़यां किस ने, कैसे और क्यों कीं.

अलबत्ता यह बात उन की समझ में आ गई थी कि राजस्थान सरकार की अजमेर बिजली वितरण कंपनी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा, बल्कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही हैं. यह गड़बड़ी किस स्तर पर हो रही हैं, यह पता जांच के बाद ही चल सकता था.

शीतल ने इस गड़बड़ी की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देने का फैसला किया. यह दिसंबर 2018 की बात है.

एक दिन उन्होंने एक सहायक लेखाधिकारी के साथ अजमेर बिजली वितरण निगम यानी अजमेर डिस्काम के प्रबंध निदेशक बी.एम. भामू और डायरैक्टर फाइनैंस एस.एम. माथुर के पास पहुंच कर उन्हें इस बारे में बताया.  साथ ही उन्हें कुछ सबूत भी दे दिए. सरकारी रकम में गड़बड़ी के सबूत देख कर भामू साहब और माथुर साहब को यकीन हो गया कि अजमेर डिस्काम में बड़ा घपला हो रहा है.

डायरेक्टर फाइनैंस माथुर ने 3 अधिकारियों की जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी में मुख्य लेखाधिकारी एम.के. जैन, बी.एल. शर्मा और सहायक लेखाधिकारी मनीष मेठानी को शामिल किया गया. तीनों अधिकारियों ने अजमेर डिस्काम मुख्यालय और हाथीभाटा पावर हाउस कार्यालय में कई दिनों तक जांचपड़ताल की.

प्रारंभिक जांच में पता चला कि अजमेर डिस्काम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी अन्नपूर्णा सैन ने फरजी दस्तावेज तैयार कर कर्मचारियों के वेतन और बिलों में 96 लाख 36 हजार रुपए का गबन किया है. विस्तृत औडिट में यह राशि बढ़ने की आशंका जताई गई.

गबन का मामला सामने आने पर 17 दिसंबर, 2018 को अन्नपूर्णा सैन को निलंबित कर दिया गया. निलंबन काल में उस का स्थानांतरण नागौर स्थित मुख्यालय में कर दिया गया. इसी के साथ अजमेर डिस्काम प्रशासन ने अन्नपूर्णा के खिलाफ अजमेर के क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

डिस्काम कर्मचारियों का वेतन सीधे उन के बैंक खातों में जाता है. इस के लिए अजमेर डिस्काम की ओर से हर महीने भारतीय स्टेट बैंक की केसरगंज शाखा में कर्मचारियों के नाम, उन के वेतन बिल की राशि और बैंक खाता संख्या की सूची औनलाइन भेजी जाती है. इसी से कर्मचारियों को तनख्वाह मिलती थी.

प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने रोकडि़या के पद पर रहते हुए 378 कर्मचारियों के वेतन बिलों में काटछांट की थी. उस ने डिस्काम की ओर से अपने परिवार और रिश्तेदारों के बैंक खातों के नंबर भी बैंक को भेजी जाने वाली सूची में शामिल कर दिए थे.

वह कर्मचारियों की संख्या और तनख्वाह की राशि बढ़ा देती थी. बैंक डिस्काम की वेतन शीट के आधार पर खातों में राशि डाल देती थी. इस तरह फरजीवाड़े से डिस्काम कर्मचारियों के वेतन की रकम अन्नपूर्णा के जानकारों के बैंक खातों में पहुंच रही थी. अन्नपूर्णा इस गबन का खुलासा होने से पहले 14 नवंबर से ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर छुट्टी पर चल रही थी. दरअसल, अन्नपूर्णा को अपना भांडा फूटने का अहसास नवंबर में ही हो गया था, इसलिए वह छुट्टी पर चली गई थी.

आगे बढ़ने से पहले उस अन्नपूर्णा की कहानी जानना जरूरी है, जिस ने अपनी खूबसूरती का जाल बिछा कर अजमेर डिस्काम में सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का गबन किया. अन्नपूर्णा की खूबसूरती पर फिदा अधिकारी आंखें मूंदे रहे. किसी अधिकारी ने कभी उस के तैयार किए कागजातों को जांचने की जरूरत महसूस नहीं की.

अजमेर शहर के चंदवरदाई नगर, रामगंज के रहने वाले वीरेंद्र सैन की बेटी अन्नपूर्णा की शादी अजमेर जिले के किशनगढ़ शहर में साधारण सैलून चलाने वाले युवक से हुई थी. अन्नपूर्णा पढ़ीलिखी थी. वह हाईप्रोफाइल तरीके से जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उस के पति के सैलून से इतनी आमदनी नहीं थी कि उस के सपने साकार हो पाते.

फलस्वरूप घर में विवाद होने लगे. इस से उन के दांपत्य जीवन में दरार आने लगी. विवाद बढ़ा तो अन्नपूर्णा ने तलाक लेने का फैसला कर लिया. बाद में पतिपत्नी का तलाक हो गया. अन्नपूर्णा अपने पिता के घर आ गई. उस का भाई गौरव सैन रेलवे में लोको पायलट है.

बाद में अन्नपूर्णा ने परित्यक्ता कोटे से अजमेर बिजली वितरण निगम में 2012 में नौकरी हासिल कर ली. उस की पहली नियुक्ति कौमर्शियल असिस्टेंट के पद पर हुई. उसे अजमेर डिस्काम मुख्यालय में रोकडि़या और संस्थापन शाखा में रोकडि़या का काम सौंपा गया.

अन्नपूर्णा खूबसूरत थी, जब वह नौकरी में आई, तो बिलकुल भोलीभाली नजर आती थी. उस समय वह साड़ी पहनती थी और साधारण बन कर रहती थी.

डिस्काम में सर्विस रिकौर्ड में लगी अन्नपूर्णा की पासपोर्ट साइज फोटो उस की मासूमियत बयां करती थी. लेकिन वह ऐसी थी नहीं. वह महत्त्वाकांक्षी तो थी ही, सपने कैसे पूरे हो सकते हैं, यह बात भी जान गई थी.

डिस्काम की नौकरी करते हुए उसे अपने सपने पूरे होते नजर आने लगे. सपनों को पंख लगे, तो अन्नपूर्णा ने दूसरी शादी कर ली. उस की दूसरी शादी सुमित चौधरी से हुई. सुमित गुड़गांव में प्राइवेट नौकरी करता है. अन्नपूर्णा के एक दिव्यांग बेटा और एक बेटी है.

सरकारी नौकरी करते हुए अपने सपने पूरे करने के लिए उस ने अपनी खूबसूरती का जाल फैलाना शुरू किया. चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही, मेकअप करने के बाद वह मनचलों के दिलों पर भी गाज गिराने की क्षमता रखती थी.

अन्नपूर्णा की खूबसूरती से प्रभावित कई अधिकारी और कर्मचारी उस की ओर आकर्षित होने लगे. वह अधिकारियों और कर्मचारियों से नजदीकियां बढ़ाती रही. इसी के साथ वह अपने सपनों की उड़ान भरने के तरीके भी सोचती रही.

अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने के लिए सीधे तौर पर 4 सहायक लेखाधिकारी थे और इन सहायक लेखाधिकारियों पर लेखाधिकारी, फिर मुख्य लेखाधिकारी और इन से भी बड़े अफसर थे. लेकिन किसी अधिकारी ने कभी अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की. अधिकारी उस के बनाए वेतन बिलों, बिल, वाउचर, चैक और रोकड़ के हिसाब पर आंख बंद कर के हस्ताक्षर कर देते थे.

अन्नपूर्णा ने इसी का फायदा उठाया. जब उस ने देखा कि कोई अधिकारी उस के बनाए कागजातों की जांच नहीं करता, तो उस ने अप्रैल 2017 से अजमेर डिस्काम के साथ गबन का खेल शुरू किया. यह सिलसिला अक्टूबर 2018 तक चलता रहा.

इस बीच, अन्नपूर्णा ने मुंबई में आयोजित प्रतियोगिता में मिसेज राजस्थान-2017 और मिसेज इंडिया मोस्ट एंटरटेनिंग-2017 का खिताब हासिल किया. यह प्रतियोगिता 2017 में 26 से 30 जून तक मुंबई के मड आइलैंड स्थित एक रिसोर्ट में हुई थी. इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में पूरे देश से करीब 200 प्रतियोगी पहुंचे थे. इन में राजस्थान की 5 महिलाएं भी शामिल थीं.

प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में फिल्म अभिनेता राज बब्बर, जयाप्रदा, टीवी कलाकार युवराज, किश्वर, पूनम झंवर व जय मदन आदि शामिल थे. राष्ट्रीय नाई महासभा ने अन्नपूर्णा की इस उपलब्धि को उल्लेखनीय बताया था. अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन नाई महासभा के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

मिसेज राजस्थान का ताज पहनने के बाद अन्नपूर्णा का अपने औफिस में रुतबा और भी बढ़ गया था. उस की खूबसूरती की चर्चाएं भी होने लगी थीं. इसी खूबसूरती की चमक दिखा कर वह अधिकारियों के नजदीक बनी रही और डिस्काम को चपत लगाती रही. अफसरों की चहेती होने के कारण वह अपनी मनमर्जी से दफ्तर आती और जाती थी. वह छुट्टियां ले कर पति के पास गुड़गांव भी जाती रहती थी.

अनापशनाप पैसा आने लगा, तो वह उसी तरह से खर्च भी करने लगी. उस के फैशन स्टाइल और रहनसहन के तौरतरीके बदल गए. वह अपने पति से मिलने के लिए अजमेर से हवाई जहाज से गुड़गांव जाने लगी. वह मौडलिंग करने के प्रयास में भी जुटी हुई थी. इस के लिए वह हवाई जहाज से मुंबई और दिल्ली भी आतीजाती थी. वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती थी.

गबन की राशि से अन्नपूर्णा ने होंडा सिटी जैसी महंगी गाड़ी खरीदी. उस ने कुछ जमीनों में भी निवेश किया. कहा जाता है कि उस ने अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की मोटी राशि भी चुकाई. परिवार के विवाह में भी उस ने काफी पैसा खर्च किया.

अन्नपूर्णा ने कर्मचारी नेता और सेवानिवृत्त लेखाधिकारी रामवतार अग्रवाल के साथ मिल कर अजमेर में स्टीफन चौराहे पर ब्यूटी सैलून भी खोला था. उस ने अग्रवाल को काफी आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया. वह अग्रवाल के एटीएम कार्ड से खरीदारी करती थी. आपसी विवादों के कारण बाद में यह सैलून बंद हो गया.

इस के बाद अन्नपूर्णा ने अमित वर्मा नामक युवक के साथ मिल कर अजमेर के पंचशील में ‘द रिपेयर’ नाम से दूसरा सैलून खोला. वह अमित के साथ महंगी कार में घूमती थी. गबन का मामला सामने के बाद जब से अन्नपूर्णा गायब हुई, तब से यह सैलून भी बंद है.

अन्नपूर्णा अजमेर डिस्काम के कर्मचारियों की संस्था राजस्थान राज्य विद्युत वितरण सहकारी बचत एवं साख समिति लिमिटेड की कोषाध्यक्ष बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने अगस्त 2018 में सोसायटी के डायरेक्टर पद का चुनाव लड़ा. इस में वह जीत भी गई थी, लेकिन किसी भी पैनल का स्पष्ट बहुमत नहीं आने से वह कोषाध्यक्ष नहीं बन सकी थी.

लगभग डेढ़ हजार कर्मचारियों की इस सोसायटी का सालाना टर्नओवर करीब 60 करोड़ रुपए है. गबन का मामला सामने आने के बाद सोसायटी से जुड़े कर्मचारी इस बात को ले कर संतोष जता रहे हैं कि वे अन्नपूर्णा के कारनामे से बच गए. संभव था कि इस सोसायटी में भी हेराफेरी हो जाती.

अन्नपूर्णा ने इस सोसायटी से 6 लाख रुपए का हाउसिंग लोन भी लिया था. इस में से अभी 4 लाख रुपए से ज्यादा बकाया है. सोसायटी ने अब अन्नपूर्णा के नाम से उस के घर नोटिस भेज कर बकाया राशि जमा कराने को कहा है.

अजमेर डिस्काम प्रशासन ने विस्तार से जांच कराई, तो अधिकारी हैरान रह गए. जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2018 तक लगभग 2 करोड़ 28 लाख रुपए का गबन किया था. उस ने गबन की यह राशि करीब 65 संदिग्ध बैंक खातों में जमा करवाई थी.

डिस्काम के अधिकारियों ने बैंक से इन खाताधारकों की जानकारी ली है. इन में अधिकांश खाताधारक राजस्थान के और कुछ मध्य प्रदेश के हैं. पुलिस को इन खातों की सूची भी सौंपी गई है.

जांच में पता चला कि अन्नपूर्णा सैन ने 2017 के अप्रैल महीने में सब से पहले 30 हजार रुपए का गबन किया. उस ने मई में 2 लाख 49 हजार, जून में 11 लाख 35 हजार, जुलाई में 7 लाख 80 हजार, अगस्त में 25 लाख 63 हजार, सितंबर में 33 लाख 46 हजार, नवंबर में 7 लाख 68 हजार और दिसंबर में 9 लाख 21 हजार रुपए की हेराफेरी की.

अक्टूबर 2017 में कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई. वर्ष 2018 के जनवरी महीने में उस ने 15 लाख 71 हजार, फरवरी में 9 लाख 43 हजार, मार्च में 12 लाख 41 हजार, अप्रैल में 9 लाख 79 हजार, मई में 6 लाख 11 हजार, जून में 11 लाख 16 हजार, जुलाई में 16 लाख 18 हजार, अगस्त में 6 लाख 70 हजार, सितंबर में 20 लाख 88 हजार और अक्टूबर में 15 लाख 30 हजार रुपए का गबन किया.

अन्नपूर्णा का तबादला 27 जून, 2018 को पंचशील स्थित अजमेर डिस्काम मुख्यालय से हाथीभाटा में अधीक्षण अभियंता कार्यालय में हो गया था. अधीक्षण अभियंता ने उसे अजमेर शहर सर्किल में रोकडि़या के पद पर लगा दिया. हाथीभाटा में भी उस ने 4 महीने गबन किया. इस बीच डिस्काम ने उसे पदोन्नति दे कर सहायक प्रशासनिक अधिकारी बना दिया.

इधर, पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद 13 जनवरी 2019 को अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन और मामा नरेश कुमार सैन को सह आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

मामा नरेश अजमेर में न्यू कालोनी सुभाष नगर का रहने वाला है. अन्नपूर्णा ने अपने पिता के खाते में 52 लाख 78 हजार 447 रुपए फरजी तरीके से जमा कराए थे. जबकि मामा नरेश के खाते में 2 लाख 73 हजार 336 रुपए जमा करवाए गए थे.

यह सारी राशि इन्होंने समयसमय पर पहले ही निकलवा ली थी. पुलिस ने संबंधित बैंकों से इन के खातों में हुए लेनदेन का ब्यौरा हासिल किया है. यह भी जानकारी जुटाई जा रही है कि इन आरोपियों के किसी अन्य बैंक में तो खाते नहीं हैं. अदालत ने दोनों आरोपियों को अगले दिन न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

अजमेर डिस्काम प्रशासन की ओर से कराई गई विस्तृत औडिट की रिपोर्ट आने के बाद 17 जनवरी को लेखा विभाग से जुड़े 16 अधिकारियों और कर्मचारियों को चार्जशीट थमा दी गई.

डिस्काम की सचिव प्रशासन नेहा शर्मा ने पंचशील स्थित मुख्यालय में अन्नपूर्णा सैन, वरिष्ठ लेखा अधिकारी जितेंद्र मकवाना, लेखा अधिकारी सुरभि पारीक, अशोक तिवाड़ी, सहायक लेखाधिकारी पल्लवी मीणा, तृप्ति तुनगरिया, नीता कृष्णानी, मिंटू जोधा, कनिष्ठ लेखाकार आशीष शर्मा, चंद्रप्रकाश, कीर्ति वर्मा और हाथीभाटा पावर हाउस में पवन कुमार शर्मा, आर.सी. पारीक, रजनी यादव, स्वाति अग्रवाल और शीतल जैन को आरोपपत्र दिए गए हैं.

गबन को उजागर करने वाली सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन को भी डिस्काम प्रबंधन ने काम में अनदेखी का दोषी मान कर आरोप पत्र दिया है. प्रबंधन का कहना है कि एक निश्चित अवधि तक शीतल जैन की ओर से जांच नहीं की गई.

अजमेर डिस्काम के एक कर्मचारी की मौत भी अन्नपूर्णा के गबन के मामले से जुड़ी होने की चर्चा है. इसी साल जनवरी की 13 तारीख को डिस्काम कर्मचारी प्रशांत की लाश आनासागर झील में तैरती मिली थी. उस समय प्रशांत की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हुए थे. अन्नपूर्णा के गबन में उस के पिता और मामा की गिरफ्तारी भी इसी दिन हुई थी.

बाद में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने प्रशांत के खाते में 3 लाख रुपए ट्रांसफर किए थे. प्रशांत की तनख्वाह 38 हजार 400 रुपए थी. अन्नपूर्णा ने उस के वेतन के शुरू में 3 का अंक और जोड़ दिया था. इस से एक बार प्रशांत के खाते में वेतन के रूप में 3 लाख 38 हजार 400 रुपए आ गए थे.

प्रशांत ने इस बारे में अन्नपूर्णा से एक बार पूछा था, तो उस ने बाद में बताने की कह कर उसे टाल दिया था. बाद में प्रशांत ने वह पैसे दूसरे काम में इस्तेमाल कर लिए. गबन की जांच होने पर प्रशांत के खाते में भी ज्यादा राशि जमा होने की बात सामने आई, तो वह परेशान हो गया.

माना जा रहा है कि अन्नपूर्णा के पिता और मामा की गिरफ्तारी से वह डिप्रेशन में आ गया और उस ने आनासागर झील में कूद कर जान दे दी. हालांकि प्रशांत की मौत के कारणों का खुलासा नहीं हुआ.

पुलिस ने गबन की आरोपी अन्नपूर्णा को गिरफ्तार करने के लिए बारबार कई जगह दबिश दी, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस की गिरफ्त से बाहर थी. डिस्काम प्रशासन की ओर से अन्नपूर्णा को नौकरी से बर्खास्त करने की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.

बहरहाल, अन्नपूर्णा को पुलिस देरसवेर गिरफ्तार कर ही लेगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बिजली निगम की सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की गबन की राशि की वसूली कैसे होगी? अन्नपूर्णा ने जिन खातों में गबन की राशि जमा कराई, उन में अब बहुत थोड़ाथोड़ा पैसा ही बाकी है. इन खातों से अधिकांश पैसा निकाला जा चुका है. यह पैसा किस ने निकाला, यह पुलिस की जांच का विषय है.

बैंक व वित्तीय मामलों के जानकार विधिवेत्ताओं का कहना है कि डिस्काम कानूनी रूप से गबन की राशि अन्नपूर्णा की व्यक्तिगत नामित संपत्तियों से ही वसूल सकता है. इस के अलावा उस की नौकरी के दौरान कटे जीपीएफ व अन्य जमा स्कीमों से भी रकम वसूली जा सकती है, लेकिन अन्नपूर्णा की नौकरी केवल 6-7 साल की है. इस अवधि में उस की जमा राशियां 10 लाख रुपए से कम होंगी.

पुलिस अगर गबन की राशि का उपयोग करने वाले उस के रिश्तेदारों व अन्य परिचितों के खिलाफ सख्त काररवाई कर अदालत में मामला पेश करे, तो उन से भी वसूली की काररवाई हो सकती है.

अजमेर डिस्काम प्रबंधन अभी यह जांच कर रहा है कि सिस्टम में लूपहोल कहां रही, जिस से गबन का मौका मिला. साथ ही सैलरी सिस्टम में भी बदलाव किया जा रहा है. अब डीओआईटी द्वारा तैयार सौफ्टवेयर लागू किया जाएगा. डिस्काम में स्पैशल औडिट भी कराई जाएगी.

हिना की शातिर चाल