कौन समझेगा इनके दर्द को?

भोपाल के करोंद इलाके में रहने वाली 20 वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के पिता की मौत एक साल पहले हुई थी. पिता के साथसाथ आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया तो घर में फांकों की नौबत आ गई. खुद रानी ही नहीं बल्कि उस के 8 भाईबहन भी एक वक्त भूखे सोने को मजबूर हो गए. बड़े भाई ने प्राइवेट नौकरी कर ली पर उसे इतनी पगार नहीं मिलती थी कि घर के सभी सदस्य भर पेट खाना खा सकें.

ऐसे में रानी को लगा कि उसे भी कुछ काम करना चाहिए. सोचविचार कर वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकली. रानी खूबसूरत भी थी और जवान भी, लेकिन नामसमझ नहीं थी. नौकरी के नाम पर हर किसी ने उस से जो चाहा, वह थी उस की जवानी. जहां भी वह काम मांगने जाती, मर्दों की निगाह उस के गठीले जिस्म पर रेंगने लगती थी. कम पढ़ीलिखी रानी को पहली बार समझ आया कि किसी भी अकेली जरूरतमंद लड़की के लिए सफेदपोश लोगों से अपनी आबरू सलामत रख पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

काम की तलाश में दरबदर घूमने के बाद जब वह शाम को थकीहारी घर लौटती तो भाईबहनों के लटके, भूखे और मुरझाए चेहरे उस की चाल देख कर ही नाउम्मीद हो उठते थे. वे समझ जाते थे कि आज भी खाली पेट पानी पी कर सोना पड़ेगा. भाई की पगार से मुश्किल से 10-12 दिन का ही राशन आ पाता था. घर के दीगर खर्चे भी खींचतान कर चलते थे.

नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों ने तो पिता की मौत के साथ ही नाता तोड़ लिया था. रानी अब उन लोगों की ज्यादा गलती नहीं मानती, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पैसा ही सब कुछ है. जबकि पैसा उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितना आसान सोच कर लगता है. यह दुनिया बड़ी हिसाब किताब वाली है, जो पैसे देता है वह बदले में कुछ न कुछ चाहता भी है.

एक असहाय बेसहारा लड़की के पास देने के लिए जो कुछ होता है, वह रानी ने अपनी कीमत पर देना शुरू किया तो उस पर पैसा बरसने लगा.

भूख से बिलबिलाते जिन भाईबहनों को देख रानी का कलेजा मुंह को आ जाता था, उन के पेट उस की कमाई से भरने लगे तो रानी को सुकून देने वाला अहसास हुआ. घर में अब खानेपीने की कमी नहीं थी.

न तो बड़े भाई ने पूछा, न ही किसी और ने. फिर भी समझ हर किसी ने लिया कि रानी कैसे और कहां से इतना पैसा लाती है कि उस के पास महंगे कपड़े और मेकअप का सामान आने लगा है.

काम की तलाश के दौरान रानी को कई तरह के तजुरबे हुए थे. तमाम नए लोगों से उस की जानपहचान भी हो गई थी. उन में से एक था कपिल नाम का शख्स, जिस ने बहुत अपनेपन से उसे यह समझाने में कामयाबी पा ली थी कि यूं अकेली काम की तलाश में दरदर भटकोगी तो लोग नोच खाएंगे. इस से तो बेहतर है कि लोग जो चाहते हैं, उसे बेचना शुरू कर दो. इस से जल्द ही मालामाल हो जाओगी.

कपिल उसे भरोसे का और समझदार आदमी लगा तो उस ने मरती क्या न करती की तर्ज पर देह व्यापार के लिए हामी भर दी. कपिल अपने वादे पर खरा उतरा और देखते ही देखते वह हजारों में खेलने लगी.

बीती 29 दिसंबर को कपिल ने उसे बताया कि टीकमगढ़ से उस के कुछ दोस्त आने वाले हैं और एक दिन रात के एवज में उसे इतनी रकम देंगे, जितनी वह महीने भर में कमा पाती है.

सौदा 14 हजार रुपए में तय हुआ. हालांकि कपिल और उस के दोस्तों की बेताबी देख रानी ज्यादा पैसे मांग रही थी. लेकिन कपिल इस से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ तो वह इतने में ही मान गई. उस के लिए यह सौदा घाटे का नहीं था.

साल की दूसरी आखिरी शाम यानी 30 दिसंबर को जब पूरी दुनिया नए साल के जश्न की तैयारियों में लगी थी, तब रानी कपिल के बताए मिसरोद इलाके के शीतलधाम अपार्टमेंट के फ्लैट पर पहुंच गई, जहां कपिल सहित 3 और मर्द बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. रानी तो यही सोचसोच कर खुश थी कि एक झटके में 14 हजार रुपए मिल जाएं तो वह 2-4 दिन घर पर आराम करेगी और भाईबहनों के साथ वक्त बिताएगी.

रात भर चारों ने जैसेजैसे चाहा, वैसेवैसे उस ने उन्हें खुश किया, पर साल की आखिरी सुबह रानी पर भारी पड़ी. सुबहसुबह ही मिसरोद पुलिस ने दबिश दे कर देह व्यापार के इलजाम में उन पांचों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

ऐसे पुलिस छापों के बारे में रानी ने काफी कुछ सुन रखा था पर वास्ता पहली बार पड़ा था. थाने में जैसे ही उसे मीडिया वालों से बात करने का मौका मिला तो उस ने अपनी गरीबी और बदहाली की दास्तां बयां कर दी, जिस से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई.

रानी कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं थी जो अपनी मजबूरियों के चलते अपना और अपने घर वालों का पेट पालने के लिए देह व्यापार की दलदल में उतरी थी. ऐसी लड़कियों की तादाद अकेले भोपाल में 25 हजार से ऊपर आंकी जाती है, जो पार्टटाइम या फुलटाइम यह धंधा करती हैं.

पिछले साल अक्तूबर में भोपाल के ही एक मसाजपार्लर में पड़े छापे में 2 और लड़कियों की आपबीती रानी से ज्यादा जुदा नहीं है. 24 वर्षीय मधु (बदला नाम) इस मसाजपार्लर में ग्राहकों की मालिश करती थी. सच यह भी है कि ग्राहक खुद पहल करता था तो वाजिब दाम पर वह जिस्म बेचने को भी तैयार हो जाती थी.

मधु छापे वाले दिन थाने में खड़ी थरथर कांप रही थी. उसे चिंता अपनी कम अपने अपाहिज पिता की ज्यादा थी, जिन्हें रोजाना शाम को दवा और खाना वही देती थी. रानी की तरह ही झोपड़ेनुमा मकान में रहने वाली मधु अपने अपाहिज पिता के इलाज और पेट भरने के लिए इस धंधे में आई थी, जिसे अपने धंधे की बाबत किसी से न कोई गिलाशिकवा था और न ही वह इसे गलत मानती थी.

इसी छापे में पकड़ी गई 26 वर्षीय सुचित्रा (बदला नाम) को उस के शौहर ने छोड़ दिया था. मायके वालों ने कुछ दिन तो उसे रखा पर शौहर से सुलह की गुंजाइश खत्म होते देख उसे आए दिन ताने दिए जाने लगे.

खुद सुचित्रा को भी लग रहा था कि उसे किसी दूसरे पर बोझ नहीं बनना चाहिए. लिहाजा वह भी रानी और मधु की तरह जोशजोश में काम की तलाश में निकल पड़ी. 4 हजार रुपए महीने की पगार पर एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी मिली, पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि नौकरी तो कहने भर की है. अगर वक्त पर पैसा चाहिए तो जैसा ब्यूटीपार्लर चलाने वाली कह रही है, वैसा करना पड़ेगा. इस के बाद उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस पर घर वालों ने फिर ऐतराज जताया तो उस ने भी मसाजपार्लर में नौकरी कर ली, जहां उसे 15 हजार रुपए देने की बात कही गई थी. 15 हजार रुपए के एवज में क्याक्या करना है, यह बात सुचित्रा से छिपी नहीं थी. लिहाजा वह मालिश के साथसाथ बाकी सब भी करने लगी, जिस से उसे 10-12 हजार रुपए मिलने लगे थे. अब घर वालों की शिकायतें दूर हो गई थीं, पर जब छापे में वह पकड़ी गई तो उन्होंने उस से कन्नी काट ली.

मधु और सुचित्रा को थाने में पुलिस अफसर लताड़ती रहीं कि ऐसी ही लड़कियों ने औरतों को बदनाम कर रखा है, जो दूसरे कामधंधों के बजाय देहव्यापार करने लगती हैं.

उस वक्त तो दोनों चुप रहीं पर बाद में बताया कि ये लोग हमारा दर्द नहीं समझेंगी. हम ने पहले ईमानदारी से ही कोशिश की थी. इज्जत से नौकरी करना चाहा था, लेकिन हर जगह हम पर सैक्स के लिए या तो दबाव बनाया गया था या फिर लालच दिया गया.

सुचित्रा बताती है कि कोई लड़की नहीं चाहती कि वह इस पेशे में आए लेकिन समाज मर्दों का है और वे एक ही चीज चाहते हैं. हर कोई हमारी मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है और हम उन की मंशा पूरी न करें तो नौकरी से निकाल दिया जाता है. कोई हमें बहनबेटियों की तरह इज्जत नहीं देता, जिस की हम उम्मीद भी नहीं करतीं.

मधु और सुचित्रा को मसाजपार्लर महफूज लगा, जहां देहव्यापार करना मजबूरी या दबाव की बात नहीं थी बल्कि मरजी की बात थी. यहां मालिश कराने काफी बड़ी हस्तियां आती हैं और थोड़ी देर की मौजमस्ती के एवज में 2-4 हजार रुपए ऐसे दे जाती हैं, जैसे पैसा वाकई हाथ का मैल हो.

ये तीनों फिर पुराने धंधे में आ गई हैं. पैसा इन की जरूरत भी है और मजबूरी भी. दूसरी तरफ ये मर्दों की जरूरत हैं जो इन पर पैसा न्यौछावर करने को तैयार बैठे रहते हैं.

देहव्यापार को बुरी नजर से क्यों देखा जाता है और इसे सिर्फ बुरी नजर से क्यों नहीं देखा जाना चाहिए, इस पर आए दिन बहस होती रहती हैं और आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मधु, रानी और सुचित्रा का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता. अगर वे इस पेशे में नहीं आतीं तो मुफ्त में लुटतीं और इस के बाद भी खाली पेट रहतीं.

रानी अपने भाईबहनों को भूख से तिलमिलाते नहीं देख पा रही थी तो इस में उस का कोई कसूर नहीं. मधु अपने पिता के लिए मसाजपार्लर में काम कर रही थी और सुचित्रा के निकम्मे और नशेड़ी पति को कोई दोषी नहीं ठहरा रहा था, जिस ने धक्के दे कर बीवी को घर से बाहर कर के दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया था. ऐसे में तय कर पाना मुश्किल है कि ये लड़कियां फिर और क्या करतीं?

बेटी बनी मां बाप की शादी की गवाह

25 अक्तूबर, 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

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दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

ऐसे परवान चढ़ा दोनों का प्यार

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपने अपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाता धमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसा वैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

पुलिस को महीनों बाद भी न मिला दोनों का सुराग

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया. अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक उस की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मांबाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने कराया दोनों का विवाह

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

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हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क हैं. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित है. अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

क्या दूसरी शादी करना जुर्म है?

केस-1

पेशे से वीडियोग्राफर 32 वर्षीय सुरेंद्र सिंह दांगी मूलत: सीहोर जिले का रहने वाला था और नौकरी के सिलसिले में भोपाल के शंकराचार्य नगर में किराए के मकान में रहता था. शादीविवाह में वीडियोग्राफी से उसे खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन दूसरों की खुशियों के माहौल को कैमरे में कैद करने वाले सुरेंद्र सिंह की अपनी जिंदगी नर्क जैसी बनी हुई थी.

पहली बीवी की मौत के बाद उस ने अपने गांव दोराहा की ही एक लड़की सविता (परिवर्तित नाम) से शादी कर ली थी. जिस से 2 साल पहले उसे एक बेटी भी हुई थी. बेटी हुई तो सुरेंद्र को मानो जीने का मकसद मिल गया, लेकिन वह चाह कर भी पहली बीवी को नहीं भूल पा रहा था.

इस पर आए दिन उस की तनातनी सविता से होने लगी थी. अंतत: नाराज सविता उसे अकेला छोड़ कर बेटी को ले कर मायके चली गई तो तनाव में जी रहे सुरेंद्र ने बीते 1 अक्तूबर को फांसी का फंदा लगा कर जान दे दी.

मरने से पहले उस ने अपने सुसाइड नोट में सविता को लिखा कि मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि कभी सही और गलत का फैसला नहीं कर पाया. अब मुझे पता चला है कि तुम ने कभी मुझे प्यार ही नहीं…मैं तुम से नफरत करता हूं.

केस-2

56 साल के सुरेश सिंह भोपाल के ही कमलानगर इलाके में रहते थे. वे केंद्र सरकार के एक महकमे के मुलाजिम थे. सुरेश की पहली बीवी सीमा की मौत सन 2002 में हो गई थी, जिस से उन्हें एक बेटा भी था. साल 2004 में उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी. दूसरी बीवी का नाम भी इत्तफाक से सीमा ही था.

शादी के बाद से ही इन मियांबीवी में खटपट होने लगी थी. सीमा का दुखड़ा यह था कि शौहर के पास खासी जायदाद और पैसा है, जिस में से वे उसे कुछ नहीं दे रहे. सुरेश बेटे पर ज्यादा ध्यान देते थे जो जबलपुर के एक इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था.

सीमा आए दिन पति से पैसा और जायदाद अपने नाम कर देने की जिद पर अड़ी रहती थी. जैसे ही उसे पता चला कि सुरेश ने अपने जीपीएफ की 80 फीसदी रकम पहली बीवी से पैदा हुए बेटे के नाम कर दी है तो वह मारे गुस्से के आपा खो बैठी और भोपाल आ कर उन से झगड़ने लगी.

ऐसे ही एक झगड़े में उस ने बीती 28 अगस्त की अलसुबह शौहर की हत्या कर दी और अपना जुर्म छिपाने के लिए पड़ोसियों से यह बताया कि सुरेश की मौत सांप के काटने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि सुरेश की मौत गला दबाने से हुई थी. आखिर सीमा को अपना जुर्म स्वीकार करना पड़ा. पुलिस हिरासत में होते हुए भी वह पति पर ये आरोप लगाती रही कि उस ने उसे पाईपाई का मोहताज बना दिया था और जायदाद में से कुछ नहीं दिया था.

इन दोनों ही मामलों में मर्दों ने दूसरी शादी की थी, जोकि कतई गुनाह नहीं था. लेकिन एक बड़ी दिक्कत यह थी कि दूसरी बीवी से इन की पटरी नहीं बैठी थी. इस की एक अहम वजह यह भी थी कि ये दोनों पहली बीवी को भूल नहीं पा रहे थे और पहली बीवी की चाहत को अलग तरीके से जाहिर कर रहे थे. सुरेश अपने बेटे से लगाव के जरिए तो सुरेंद्र पहली बीवी की यादों के सहारे.

गुनाह या गलती

यह एक गलती थी, क्योंकि दूसरी बीवी कतई नहीं चाहती कि उस का शौहर उस का ध्यान न रख कर किसी भी तरह पहली बीवी को इतना याद करता रहे कि उसे अपनी अहमियत दोयम दरजे की और जिस्मानी जरूरत पूरी करने की गुडि़या सरीखी लगने लगे. ऐसे में उन्होंने वही किया, जो ज्यादा से ज्यादा वे कर सकती थीं. सविता अपने जज्बाती शौहर को अकेला छोड़ कर मायके चली गई तो सीमा ने पति का काम ही तमाम कर डाला.

ये मामले तो वे थे, जिन में शौहर की पहली बीवी मर चुकी थी पर उन मामलों में भी जिंदगी दुश्वार हो जाती है जब शौहर पहली बीवी से तलाक ले कर दूसरी शादी करता है और बारबार उस का जिक्र दूसरी बीवी से कर के उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है. ऐसे में दूसरी का कलपना कुदरती बात है.

एक दास्तां

भोपाल के ही एक सरकारी स्कूल की 44 वर्षीय टीचर निर्मला (बदला नाम) का कहना है कि उस की उम्र 40 साल की थी, जब उस ने एक सरकारी मुलाजिम नरेश (बदला नाम) से शादी की थी. नरेश का अपनी पहली बीवी से तलाक हुआ था. चूंकि निर्मला की उम्र बढ़ रही थी, इसलिए घर वालों ने तलाकशुदा से उस का रिश्ता तय कर दिया था.

बकौल निर्मला शादी के 2 साल तो ठीकठाक गुजरे. इस दौरान अकसर नरेश पहली बीवी के बारे में बताता रहता था कि वह कितनी झगड़ालू, जालिम, बेगैरत और बिगड़े चालचलन की थी, जिस के चलते उस की जिंदगी नर्क बन गई थी. शौहर की आपबीती सुन कर निर्मला को उस से हमदर्दी होती थी और वह हर मुमकिन कोशिश करती थी कि उसे इतना प्यार दे कि वह पहली बीवी और ज्यादतियों को भूल जाए.

भले ही निर्मला की शादी देर से हुई थी, पर शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के अपने अरमान और ख्वाहिशें थीं. दोनों की पगार अच्छी थी, इसलिए वह चाहती थी कि वह और नरेश अच्छी जिंदगी जिएं. प्यारमोहब्बत की बातें करें, गृहस्थी जमाएं और घूमेंफिरें. पर नरेश अकसर पहली बीवी की कहानी ले कर बैठ जाता था, जिस से कुछ ही दिनों में उसे खीझ होने लगी थी.

इस बाबत उस ने शौहर को समझाया कि जो हुआ उसे भूल जाओ, अब क्या फायदा. अब क्यों न हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करें. लेकिन नरेश अपने गुजरे कल से बाहर नहीं आ पा रहा था, जिस से आए दिन कलह होने लगी. जब भी निर्मला रोमांटिक मूड में होती थी और नरेश को लुभाती थी, तब वह पहली बीवी का पुराण खोल कर बैठ जाता था, जिस से उस का मूड औफ हो जाता था.

निर्मला ने अपनी तरफ से ईमानदारी से कोशिश की थी, लेकिन यहां नरेश गलती करते अनजाने में उस से ज्यादती कर रहा था. वह बीवी के जज्बातों, जरूरतों, ख्वाहिशों और अरमानों को समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसे में एक दिन निर्मला ने गुस्से में कह ही दिया कि जब उसे नहीं भूल पा रहे तो मुझ से शादी क्यों की.

इस से नरेश की मर्दानगी को ठेस लगी और वह यह सोचते हुए फिर मायूस रहने लगा कि पहली बीवी ने तो ज्यादती की ही थी, अब दूसरी भी उसे नहीं समझ रही. उस की नजर में दूसरी बीवी की जिम्मेदारी यह थी कि वह अपने अरमानों का गला घोंट कर उस की रामायण सुनती रहे, तभी अच्छी है.

दरअसल, होता यह है कि अकसर मर्द की दूसरी शादी उस औरत से होती है जो पहली बार शादी करती है. इसलिए उस की ख्वाहिशें अलग होती हैं जबकि इस के उलट शौहर के लिए यह नई बात नहीं होती. दूसरी बीवी उस के लिए जिस्मानी जरूरत पूरी करने का जरिया भर होती है, जिस से वह उसे समझ नहीं पाता और दूसरी शादी भी टूटने के कगार पर पहुंच जाती है.

समाज और परिवार के दबाव के चलते न भी टूटे तो दोनों एक छत के नीचे अजनबी बन कर रह जाते हैं. शौहर और बीवी दोनों यह सोच कर जिंदगी का लुत्फ नहीं उठा पाते कि शादी कर के आखिर उन्हें क्या मिला.

शौहर ध्यान दें

अगर मर्द दूसरी शादी करे तो एक अच्छी और नई जिंदगी के लिए यह जरूरी है कि वह इन बातों पर ध्यान दे —

  •      दूसरी बीवी केवल जिस्मानी जरूरतें पूरी करने का जरिया नहीं है, यह सोच कर उसे ही सब कुछ माने और       उस की ख्वाहिशों और अरमानों को पूरा करने की कोशिश करने की कोशिश करे.
  •      यदि पहली बीवी के बच्चे हों तो दूसरी बीवी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, उसे उस के तमाम हक       देना जरूरी है.
  •      उस के सामने बारबार पहली बीवी की याद या जिक्र नहीं करते रहना चाहिए, इस से उसे खीझ ही               होगी.
  •      अगर पहली बीवी से औलाद है तो उसे शादी के बाद किसी भरोसेमंद रिश्तेदार के यहां या फिर हौस्टल       में रखने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन बीवी उस का पूरा ध्यान रखे तो ऐसा करना जरूरी भी नहीं      और इस बाबत उस का शुक्रगुजार होना चाहिए.
  •      अगर उम्र 40 के लगभग हो जाए और बच्चे 8-10 साल के हों तो दूसरी शादी करने से बचना चाहिए.           आमतौर पर दूसरी बीवी उतना ध्यान बच्चे का नहीं रख पाती, जितनी यानी सगी मां की तरह उस से             उम्मीद की जाती है.
  •      खुद को दूसरी बीवी के मुताबिक ढालने की कोशिश करना चाहिए.
  •      उस की जरूरतों और पैसों का पूरा खयाल रखना चाहिए.

जरूरी नहीं कि हर दूसरी शादी नाकाम हो, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर नई जिंदगी को खुशनुमा बनाएं. इसलिए बीवी को भी चाहिए कि वह शौहर को इस बात का अहसास न कराए कि उस ने दूसरी शादी कर के उस पर कोई अहसान किया है.

पहली बीवी को ले कर शौहर पर ताने मारते रहना भी अक्ल की नहीं, बल्कि कलह को न्यौता देने वाली बात है. दूसरी बीवी को कोशिश यह करनी चाहिए कि वह धीरेधीरे पति का दिल जीते और उसे पुरानी जिंदगी से बाहर निकलने में मदद करे. बेशक यह बेहद कठिन और सब्र वाला काम है, लेकिन बिना इस के शादी कामयाब भी नहीं होती.