Social News : जेवरों से लदी महिला को फसाता था पत्रकार

Social News : तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार ने अंजना को विश्वास में ले कर न सिर्फ उस का शारीरिक शोषण किया, बल्कि उस से मोटी रकम भी ऐंठ ली. इस शातिर पत्रकार ने अंजना को ही नहीं बल्कि कई और महिलाओं को अपने झांसे में ले कर…

बात 17 मई, 2018 की है. मध्य प्रदेश के उज्जैन रेंज के आईजी राकेश गुप्ता अपने औफिस में विभागीय कार्य निपटा रहे थे, तभी अंजना नाम की एक युवती उन के पास अपनी शिकायत ले कर पहुंची. अंजना उज्जैन के ही पटेल नगर में अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती थी. जो शिकायत ले कर वह आईजी साहब के पास पहुंची थी, वह शिकायत इलैक्ट्रौनिक मीडिया के एक तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ थी.

महिला ने आरोप लगाया कि उज्जैन के सेठी नगर के रहने वाले जगदीश परमार ने न सिर्फ उस के साथ बलात्कार किया बल्कि उस से लाखों रुपए भी ठगे हैं. चूंकि मामला गंभीर और नारी अपराध से जुड़ा था, इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मामले को गंभीरता से लेते हुए उस की प्रारंभिक जांच कराई तो उस के आरोपों में सच्चाई नजर आई. इस के बाद उन के निर्देश पर एडीशनल एसपी रंजन भट्टाचार्य खुद अंजना को ले कर महिला थाने पहुंचे. वहां पर अंजना की तरफ से जगदीश परमार के खिलाफ भादंवि की धारा 376, 384, 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई. इस के बाद महिला थानाप्रभारी रेखा वर्मा ने सरकारी अस्पताल में रात में ही अंजना का मैडिकल परीक्षण कराया.

चूंकि यह काररवाई आईजी साहब के निर्देश पर की गई थी इसलिए एडीशनल एसपी ने की गई काररवाई की जानकारी आईजी राकेश गुप्ता को दे दी. पुलिस को अगली काररवाई पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ करनी थी. चूंकि जगदीश परमार के जिले के अधिकांश अधिकारियों के साथ अच्छे संबंध थे, इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने उस की गिरफ्तारी के लिए एक विशेष टीम का गठन करने के बाद टीम को स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि उस की गिरफ्तारी में कोई भी कोताही न बरती जाए.

विशेष टीम ने सेठीनगर में स्थित जगदीश परमार के घर दबिश दी, लेकिन शायद उसे इस बात की भनक लग चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के पहुंचने से पहले ही भूमिगत हो चुका था. तब एसपी सचिन अतुलकर ने क्राइम ब्रांच के एडीशनल एसपी प्रमोद सोनकर व महिला थाने की प्रभारी रेखा वर्मा को उस की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंपी. दोनों अधिकारियों ने जगदीश के छिपने के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिशें डालीं. लेकिन उस का पता नहीं चल सका. लेकिन जगदीश को अपने साथियों की मदद से पुलिस काररवाई की सारी जानकारी मिल रही थी.

पत्रकारिता की ओट ले कर जगदीश परमार ने पिछले कुछ सालों में जिले के अनेक अधिकारियों के बीच अपनी जो पहचान बना रखी थी, उसे देखते हुए उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पुलिस उस के खिलाफ ऐसी काररवाई भी कर सकती है. पुलिस काररवाई को देखते हुए जगदीश समझ गया था कि अब उस का बच पाना (Social News) मुश्किल है, इसलिए 2 दिन बाद ही उस ने खुद महिला थाने पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया. उसे गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने सब से पहले उस का मोबाइल फोन और लैपटाप बरामद कर लिया.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करता रहा लेकिन बाद में उस ने अंजना के साथ अपने संबंध होना तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उस ने ब्लैकमेलिंग और बलात्कार की बात से इनकार किया. उस का कहना था कि हम दोनों के बीच संबंध पूरी तरह आपसी सहमति से बने थे. अंजना ने उसे जो लाखों रुपए दिए थे, उस के सबूत वह पुलिस को सौंप चुकी थी. उन सबूतों के आधार पर पुलिस ने जब जगदीश से पूछताछ की तो वह इस आरोप को झुठला नहीं सका. वह पुलिस की कार्यप्रणाली से वाकिफ था.

वह जानता था कि पुलिस किसी न किसी तरह सच्चाई उगलवा ही लेती है. लिहाजा उस ने झूठ बोलने के बजाय सच्चाई पुलिस को बता दी. इस के बाद वाहन चोर से पत्रकार बने जगदीश परमार के ब्लैकमेलर बनने की कहानी इस प्रकार सामने आई—

जगदीश परमार मूलरूप से बड़नगर तहसील में खरसोद कला गांव का रहने वाला था. बचपन से ही वह शातिर और तिकड़मी था, जिस के कारण घर वाले इस से खासे परेशान रहते थे. उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा था और गलत बच्चों की संगति में पड़ गया, जिस से वह फेल हो गया. तब उस के पिता ने उसे गुस्से में डांट कर घर से निकल जाने को कह दिया तो जगदीश सचमुच में घर छोड़ कर इंदौर भाग आया. इंदौर के खजराना इलाके में वह पहुंचा तो उस की मुलाकात शाकिर नाम के युवक से हुई. शाकिर एक जानामाना वाहन चोर था, इसलिए जगदीश भी उस के साथ मिल कर वाहन चोरी करने लगा. इस मामले में वह पहली बार पंडरीनाथ पुलिस के हाथ लग गया.

पुलिस ने कानूनी काररवाई कर के उसे जेल भेज दिया. वह 3 महीने जेल में रहा. गैंग के लोगों ने ही उस की जमानत कराई. उसे लगा कि यह गलत काम उस के लिए ठीक नहीं है. तब वह अपने गांव पहुंच गया और घर जा कर अपने पिता से माफी मांगते हुए वह उन के कदमों में गिर गया. पिता का दिल पिघल गया और उन्होंने उसे घर में पनाह दे दी. जगदीश को तिकड़म की कमाई खाने की आदत पड़ चुकी थी, इसलिए उस ने गांव में गैस सिलेंडर की कालाबाजारी करनी शुरू कर दी. लेकिन इतने से उस का मन नहीं भर रहा था. वह जल्द मोटी कमाई करने के चक्कर में था.

फिर कुछ दिनों बाद गांव के ही एक आदमी के साथ मिल कर वह सट्टा लगवाने का काम करने लगा. जिस के चलते जगदीश परमार का नाम पूरे इलाके में मशहूर हो गया. उस का यह धंधा भी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. थाना भाटपचाला पुलिस को इस की जानकारी हुई तो तत्कालीन थानाप्रभारी धर्मेंद्र तोमर ने उसे गिरफ्तार कर के उस का पूरे गांव में जुलूस निकाला. इस से पूरे गांव में उस की बहुत बदनामी हुई. जगदीश की जिंदगी में यह वह मोड़ था जब उसे लगा कि अपराध की दुनिया में जमे रहने के लिए पुलिस से संबंध बनाना जरूरी है. इस के लिए उस ने पत्रकारिता का रास्ता चुना.

जगदीश ने उज्जैन से प्रकाशित होने वाले एक छोटे से अखबार में संपर्क बना कर उस के लिए काम करना शुरू कर दिया. इस के बाद उस ने पुलिस अधिकारियों से दोस्ती की और उन के लिए मुखबिरी और दलाली करने लगा. फिर इन संबंधों की ओट में वह लोगों को ब्लैकमेल करने लगा. बताया जाता है कि कुछ समय पहले जगदीश ने महिदपुर की एक महिला को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी. उस महिला की शिकायत पर उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद जगदीश ने उज्जैन को अपना ठिकाना बनाया. यहां आ कर वह अफसरों की चाटुकारिता करने लगा.

बताते हैं कि वह पहले अफसरों को लाभ पहुंचा कर बाद में खुद उन से फायदा उठाने की नीति पर काम करता था इसलिए जल्द ही वह सभी विभागों में अधिकारियों का कृपापात्र बन गया. उज्जैन आ कर उस ने एक लोकल न्यूज चैनल में बात की और वहां कैमरामैन बन गया. इस के साथ वह अफसरों के लिए दलाली कर अपना उल्लू सीधा करने लगा. कहानी की दूसरी किरदार अंजना की कहानी भी काफी उतारचढ़ाव भरी है. पटेल नगर में रहने वाली अंजना की आंखें किशोरावस्था में ही मोहल्ले के रहने वाले संजय से लड़ गई थीं.

अति संपन्न किसान परिवार से संबंध रखने वाला संजय उतना ही स्मार्ट था जितनी कि खूबसूरत अंजना थी, इसलिए दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी और प्यार में बदल गई. अंजना उस समय बीकौम कर रही थी. बीकौम की डिग्री पूरी होते ही दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. बाद में इन के 2 बच्चे हुए. अंजना की जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी कि अचानक शराब ने उस के खुशहाल जीवन में जहर घोल दिया. संजय को दोस्तों के साथ शराब पीने की ऐसी लत लगी कि वह दिनरात शराब के नशे में डूबा रहने लगा. अंजना ने उसे रोकने की कोशिश की तो संजय उस के साथ मारपीट करने लगा. अंजना के लिए यह बात किसी अजूबे से कम नहीं थी क्योंकि कभी उस के लिए जान देने की बातें करने वाला संजय उस पर हाथ जो उठाने लगा था. ऐसे में अंजना अपने पति को रास्ते पर लाने के प्रयास करने लगी.

जाहिर है कि उज्जैन में लोगों के संकट के समय सब से पहले महाकाल ही याद आते हैं, इसलिए अंजना नियमित रूप से महाकाल के दरबार में प्रार्थना करने के लिए जाने लगी. दुर्भाग्य से खबरों के जुगाड़ में जगदीश परमार अकसर इस मंदिर में मौजूद रहता था. जगदीश ने 1-2 बार अंजना को मंदिर में भगवान के सामने आंसू बहाते देखा था. दूसरे अंजना के शरीर पर कीमती जेवर देख कर वह समझ गया कि पार्टी पैसे वाली होने के साथसाथ परेशान हालत में है. इसलिए आसानी से इसे जाल में फंसाया जा सकता है. यह बात 2 साल पहले की है.

इस के बाद जगदीश ने अंजना को फांसने के लिए उस के चारों तरफ जाल बुनना शुरू कर दिया. एक दिन मंदिर में काफी भीड़ थी, अपना प्रभाव जमाने के लिए जगदीश खुद अंजना के पास पहुंचा और बोला, ‘‘मैं देख रहा हूं कि आप बहुत परेशान हैं. आइए, मैं आप को दर्शन करवा देता हूं. आप शायद मुझे नहीं जानतीं लेकिन मैं ने अकसर आप को यहां आंसू बहाते देखा है. मैं एक पत्रकार हूं, इस वजह से आप को आसानी से दर्शन करवा सकता हूं. आप को परेशान देख कर शायद महाकाल ने ही मुझे आप की मदद के लिए भेज दिया है.’’

जगदीश की बातों से अंजना काफी प्रभावित हुई और उसी समय उस के साथ हो गई. तब जगदीश ने वीआईपी गेट से ले जा कर अंजना को महाकाल के दर्शन करवा दिए. इस के बाद जगदीश अंजना को अकसर मंदिर में मिलता और वीआईपी गेट से अंदर ले जा कर उसे दर्शन करा देता. इस से कुछ ही दिनों में दोनों के बीच दोस्ताना ताल्लुकात बन गए. जब जगदीश को भरोसा हो गया कि लोहा चोट करने योग्य गरम हो चुका है तो उस ने एक दिन अंजना से पूछा, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप की परेशानी क्या है, जिस के लिए आप रोज महाकाल के दरबार में हाजिरी लगा रही हैं?’’

अब तक अंजना जगदीश को भला आदमी समझने लगी थी, इसलिए उस ने किशोरावस्था में हुए प्यार से ले कर अब तक की अपनी सारी कहानी उसे बता दी. तब जगदीश बोला, ‘‘आप की समस्या सुन कर अब मुझे विश्वास हो गया कि सचमुच ही महाकाल ने आप की सहायता के लिए ही मुझे आप से मिलवाया है.’’

‘‘वो कैसे?’’ अंजना ने पूछा.

‘‘वो ऐसे कि मक्सी रोड पर एक नशा मुक्ति केंद्र है. वहां मेरी अच्छी पकड़ है. आप चिंता न करें, मैं वहां से आप के पति का नशा छुड़ाने का इलाज करवा दूंगा, जिस से वह बिलकुल ठीक हो जाएंगे.’’ जगदीश ने कहा.

‘‘अगर ऐसा है तो मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अहसान भले ही अगले दिन भूल जाना, लेकिन हम दोनों की दोस्ती जिंदगी भर याद रखना. सच मानिए, मेरी जिंदगी में अब तक आप के जैसा कोई दोस्त नहीं आया, इसलिए मैं आप को खोना नहीं चाहता.’’ जगदीश परमार ने अंजना को अपनी गिरफ्त में ले भावुक हो कर कहा.

बात ही जगदीश ने ऐसी कही थी कि अंजना भी भावुक हो गई और उस ने जगदीश से जिंदगी भर यह दोस्ती निभाने का वादा कर लिया. इस के अगले दिन वह अंजना को अपने साथ नशा मुक्ति केंद्र ले गया, जहां उस ने अपनी पत्रकारिता का प्रभाव दिखा कर अंजना को उस के पति का नशा छुड़ाने की दवा दिलवा दी. अब तक अंजना जगदीश परमार पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी थी. जगदीश को इसी मौके का इंतजार था, इसलिए उस ने 2 जुलाई, 2016 को अंजना को अपने घर दवाई लेने बुलाया. अंजना बिना किसी संकोच के जगदीश के घर पहुंच गई जो उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई.

जगदीश को अब अपनी हसरतें पूरी करनी थीं. उस ने अंजना को अपने घर में कैद करने के बाद डराधमका कर उस के साथ न केवल बलात्कार किया, इस की वीडियो भी बना ली और अंजना के निर्वस्त्र फोटो भी अपने मोबाइल फोन में कैद कर लिए. इतना ही नहीं, इस बात का जिक्र किसी से करने पर उसे व उस के बच्चों को जान से मारने की धमकी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि उस ने मुंह खोला तो उस के अश्लील फोटो और वीडियो पूरे उज्जैन में वायरल कर देगा. अंजना को जगदीश से इतने बड़े धोखे की उम्मीद नहीं थी. वह जगदीश को उस के पाप की सजा दिलाना चाहती थी, लेकिन उस की धमकी से डर कर वह चुप रही.

अंजना को इस घटना का इतना सदमा लगा कि वह इस के बाद 15 दिन तक मंदिर भी नहीं गई. उस का सोचना था कि न वह मंदिर जाएगी और न उस धोखेबाज से उस की मुलाकात होगी. लेकिन जगदीश का काम अभी पूरा कहां हुआ था. वह अंजना का तन तो लूट चुका था, धन लूटना तो अभी बाकी था इसलिए कुछ दिनों बाद उस ने अंजना को फोन कर अकेले में मिलने के लिए बुलाया. इतना ही नहीं, उस ने साथ में बड़ी रकम भी लाने को कहा. अंजना ने मना किया तो जगदीश ने उसे अश्लील वीडियो और फोटो वायरल करने की धमकी दी. जिस से न चाहते हुए भी उसे उस के द्वारा मांगी गई रकम ले कर उस से मिलने के लिए जाना पड़ा. उस से पैसे लेने के बाद जगदीश ने एक बार फिर अंजना के साथ बलात्कार किया.

अंजना ने पुलिस को बताया कि पिछले 22 महीनों में जगदीश ने कई बार उस का यौनशोषण किया. उस ने यह भी बताया कि अब तक वह उसे 10 लाख रुपए और अपने जेवर भी दे चुकी है. अब घर से पैसे दे पाना संभव नहीं था, लेकिन वह उस के तन से तो खिलवाड़ कर ही रहा था साथ में लगातार ब्लैकमेल भी कर रहा था. अंजना ने बताया कि उस ने जगदीश को सारी स्थिति बता दी थी कि अब किसी स्थिति में वह उसे और पैसे नहीं दे सकती, लेकिन जगदीश के मन में इतना जहर भरा था कि वह हर हाल में उस से पैसे चाहता था.

इसी दौरान अंजना को पता चला कि जगदीश उस की तरह और भी कई लड़कियों का शारीरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक शोषण कर रहा है, तब उस ने उस के खिलाफ कानून की मदद लेने का फैसला किया. और फिर इस के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए वह शिकायत ले कर आईजी राकेश गुप्ता के पास पहुंची थी. इस संबंध में जांच अधिकारी रेखा वर्मा का कहना है कि तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ पुख्ता सबूत इकट्ठे हो गए हैं. उस का मोबाइल और लैपटाप भी बरामद कर के जांच के लिए भेज दिया गया है.

जगदीश परमार से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के पुलिस ने उसे न्यायिक हिरासत में पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और कथा में अंजना नाम परिवर्तित है.

 

भारत का एक द्वीप जहां मिलती है मौत

दुनिया के लगभग सभी देशों में लाखों करोड़ों आदिवासी रहते हैं. ये आदिवासी आदिकाल में कबीलों में रहते थे. कबीलों से ही इन की पहचान होती थी. आज भी कई देशों में आदिवासी कबीलों में रहते हैं. विकसित और विकासशील देशों में रहने वाले कई कबीलों के आदिवासी आज भी रेल, बस जैसी साधारण उपयोग की वस्तुओं से ले कर सांसारिक हलचल से अनजान हैं.

कबीलों में रहने वाले आदिवासियों के अपने नियम कानून होते हैं. इन का रहन सहन, खानपान, रीतिरिवाज वगैरह आदिकाल से चले आ रहे हैं. उन में अब तक कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.

इन की पूरी दुनिया और रोजीरोटी अपने कबीले तक ही सीमित होती है. इन में कई कबीलों के आदिवासी हिंसक भी होते हैं. हालांकि इन के पास कोई आधुनिक हथियार नहीं होते, तीरकमान और भाले ही इन के पुरातन हथियार हैं. इन्हीं अस्त्रशस्त्रों से ये लोग अपनी रक्षा और भोजन के लिए जानवरों का शिकार करते हैं.

विज्ञान और इंटरनेट के इस युग में आदिवासियों की कई प्रजातियां पढ़ना लिखना तक नहीं जानतीं. न तो इन की पुलिस है और न ही कोई सरकार या संविधान. कबीले का कानून ही इन के लिए गीता, रामायण और बाइबिल की तरह संविधान है. ये आदिवासी बीमार होने पर न तो किसी अस्पताल में जाते हैं और न ही किसी डाक्टर के पास. कबीले के सरदार और पंच पटेल बीमारों की दवादारू करते हैं.

ऐसा ही एक द्वीप भारत के नक्शे पर है, अंडमान निकोबार. इस आइलैंड पर सेंटनल आदिवासी रहते हैं. यह आइलैंड नवंबर, 2018 में दुनिया भर में एकाएक सुर्खियों में आ गया.

नवंबर के तीसरे हफ्ते में इस आइलैंड पर रहने वाले सेंटनल आदिवासियों ने एक अमेरिकी पर्यटक जौन एलेन चाउ की तीर मार कर हत्या कर दी. करीब 12 साल बाद अमेरिकी पर्यटक एलेन के रूप में कोई बाहरी दुनिया का आदमी इस आइलैंड पर पहुंचा था.

इस से पहले 2004 में ये आदिवासी उस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए थे, जब इन्होंने इस आइलैंड के ऊपर से गुजर रहे भारतीय वायुसेना के हेलीकौप्टर पर तीर बरसाए थे. इस के बाद 2006 में सेंटनल आदिवासियों ने अपने आइलैंड पर गलती से पहुंच गए 2 मछुआरों को मार डाला था.

अमेरिकी पर्यटक जौन एलेन चाउ ने अपनी मौत से एक दिन पहले ट्रैवल डायरी में इस आइलैंड के बारे में काफी कुछ लिखा था.

जौन ने डायरी में अपने मातापिता के नाम लिखा था, ‘आप सोचेंगे कि मैं पागल हूं. लेकिन मैं जो कर रहा हूं, वह जीसस की इच्छा है. हो सकता है कल मुझे गोली लग जाए. इस के लिए जीसस या मुझ पर हमला करने वाले पर गुस्सा मत करना.’

जौन ने डायरी में आगे लिखा कि आज मैं मछुआरों की मदद से सेंटनल आदिवासियों वाले आइलैंड तक पहुंचा था. मछुआरों ने मुझे वहां जाने से मना भी किया था, लेकिन मैं अपनी बाइबिल ले कर आइलैंड पर उतर गया. जीसस मेरे साथ हैं.

मौत से पहले दिन की घटना का पूरा विवरण डायरी में लिखते हुए जौन ने कहा कि आइलैंड पर पहुंचते ही कुछ आदिवासियों ने मुझे घेर लिया. उन के हाथों में तीरकमान थे. वे कुछ बोल नहीं रहे थे. केवल मेरी ओर बढ़ते जा रहे थे. मैं ने उन से कहा, ‘मैं आप से प्यार करता हूं. जीसस आप से प्यार करते हैं.’

जौन ने आगे लिखा, ‘मेरी बात पूरी होने से पहले ही करीब 10 साल के बच्चे ने मुझे पहला तीर मारा. तीर मेरी बाइबिल पर लगा. मैं वहां से भागा तो आदिवासी चिल्लाते हुए मेरे पीछे भागे. उन्होंने कुछ तीर भी चलाए. उन में से एक शख्स उन आदिवासियों के लीडर जैसा लग रहा था. बाकी लोग उस की बात मान कर मुझ पर हमला कर रहे थे. मुझे कुछ चोटें लगीं, लेकिन मैं बच कर निकल आया. मैं कल फिर वहां जाऊंगा.’

जौन एलेन चाउ अगले दिन अकेले ही फिर इस आइलैंड पर पहुंच गए, लेकिन इस बार वे वापस नहीं लौटे. सेंटनल आदिवासियों ने तीरों से उन की हत्या कर दी. बाद में मछुआरों ने देखा कि आदिवासी उस अमेरिकी पर्यटक के गले में रस्सी डाल कर खींच रहे थे.

सेंटनल आदिवासियों द्वारा की गई अमेरिकी पर्यटक की हत्या की खबर पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गई. वारदात के दूसरे दिन जौन एलेन का शव ढूंढने के लिए एक हेलीकौप्टर भी इस आइलैंड के ऊपर पहुंचा तो आदिवासियों ने उस पर भी तीर बरसाए. लिहाजा हेलीकौप्टर वापस लौट आया.

इस के 2-3 दिन बाद पोर्ट ब्लेयर की पुलिस जौन एलेन चाउ का शव तलाश करने के लिए नाव से नौर्थ सेंटनल द्वीप के लिए रवाना हुई. पुलिस टीम ने दूरबीन से आइलैंड का नजारा देखा तो वहां तीरकमान के साथ आदिवासी दिखे. टकराव की स्थिति को भांप कर पुलिस दल वापस लौट आया.

इस बीच भारत सरकार की ओर से अमेरिकी पर्यटक का शव तलाशने के प्रयासों पर आदिवासियों के अधिकारियों के लिए काम करने वाली लंदन की संस्था सर्वाइवल इंटरनैशनल के डाइरेक्टर स्टीफन कौरी ने ऐतराज जताया.

उन्होंने जौन एलेन चाउ का शव ढूंढने के खतरनाक प्रयास बंद करने का आग्रह करते हुए कहा कि यह प्रयास भारतीय अथौरिटीज के साथसाथ सेंटनल आदिवासियों के लिए भी खतरनाक हो सकते हैं. अगर आदिवासियों को कोई बाहरी बीमारी लग गई तो वह पूरी तरह खत्म हो जाएंगे. पहले भी सेंटनल आदिवासियों ने ऐसे प्रयासों के खिलाफ बल प्रयोग किया था.

कहा जाता है कि हजारों साल से दुनिया भर से कट कर इस आइलैंड पर रह रहे आदिवासियों ने बाहरी लोगों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगा रखी है.

दूसरी ओर दिल्ली में रहने वाले 85 वर्षीय भारत के मानवशास्त्री त्रिलोकनाथ पंडित उर्फ टी.एन. पंडित का दावा है कि वे दुनिया में एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जो इस जनजाति से दोस्ताना संबंध बनाने में कामयाब रहे.

पंडित का कहना है कि उन्होंने 1966 से 1991 के बीच कई बार इस द्वीप की यात्रा की थी. उन की बात पर भरोसा किया जाए तो सेंटनल आदिवासी दुनिया के लोगों की बीमारियों से दूर रहना चाहते हैं, इसलिए वे किसी भी बाहरी आदमी को अपने आइलैंड पर नहीं आने देते.

टी.एन. पंडित के अनुसार, इस जनजाति के हिंसक होने का कारण इतिहास में छिपा है. सन 1858 में अंगरेजों ने इस आइलैंड के आदिवासियों को भी निशाना बनाया था.

उस समय यहां के आदिवासियों ने तीरकमान और भालों से अंगरेजों का मुकाबला किया था. बाद में अंगरेज तो वहां से चले गए, लेकिन उन की बीमारियों के विषाणु इस आइलैंड पर रह गए. इस के बाद से ये सेंटनल आदिवासी बाहरी दुनिया के विरोधी बन गए.

इस आइलैंड पर ये आदिवासी न तो कोई खेती करते हैं और न ही कोई जानवर पालते हैं. ये लोग अपने आइलैंड पर पैदा होने वाले फल, शहद, कंदमूल, सूअर, कछुआ, मछली आदि खाते हैं. इन्होंने अब तक नमक और शक्कर का स्वाद भी नहीं चखा है. ये लोग आग जलाना भी नहीं जानते. इन के समूह का कोई मुखिया भी नहीं है.

ये लोग तीरकमान, भाला, टोकरी व झोपड़ी आदि बनाते हैं. द्वीप समूह की जनजातियों के लोग नजदीक के रिश्ते में शादी नहीं करते. इन आदिवासियों में अगर किसी की मृत्यु झोपड़ी में हो जाती है तो उस झोपड़ी में कोई नहीं रहता. मृतक को उसी झोपड़ी में दफना देते हैं और रहने के लिए दूसरी झोपड़ी बना लेते हैं. बीमार होने पर ये लोग जड़ी बूटियों और पूजापाठ का सहारा लेते हैं.

पंडित का कहना है कि जब वे सेंटनल आइलैंड गए तो वहां के आदिवासियों ने उन्हें अपनी जमीन पर पैर भी नहीं रखने दिए. उन्होंने उन से नारियल लिए और आइलैंड से बाहर समुद्र में उतार कर जाने को कह दिया.

दो दूल्हों की अनोखी शादी

शादी हमेशा विपरीत लिंगी यानी लड़का या लड़की के बीच होती है. लेकिन 30 मार्च, 2019 को  अमेरिका के टेक्सास (Texas) प्रांत के किलीन शहर में एक ऐसी अनोखी शादी (Gay Couple Wedding) हुई, जिस की खबर सुन कर लोग आश्चर्यचकित रह गए.

पारंपरिक रूप से हुई इस शादी में बैंडबाजा, बारात, मंडप, नाचनागाना, मस्ती, विदाई, तरहतरह के व्यंजन सब कुछ था, लेकिन नहीं थी तो दुलहन. इस शादी में 2 दूल्हे अलगअलग घोडि़यों पर सवार हो कर आए थे. लग रहा था जैसे 2 बारातें हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी. हकीकत तब सामने आई जब दोनों दूल्हों ने पारंपरिक रस्मों के बाद अग्नि के 7 फेरे लिए. पता चला दोनों ही एकदूसरे के हसबैंड भी हैं और दुलहन भी.

यह अनोखी शादी करने वाले वैभव और पराग (Vaibhav And Parag) एनआरआई हैं. वैभव एक रिसर्चर हैं और पब्लिक हेल्थ इशूज पर काम कर रहे हैं. जबकि पराग यूएस के प्रेसिडेंट ओबामा की एडमिनिस्ट्रैशन टीम के सदस्य रहे  हैं और वर्तमान में वह मास्टरकार्ड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हैं.

दोनों ही न्यूयार्क में रहते हैं. वैभव और पराग दोनों ही उच्च शिक्षित हैं और अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं. जाहिर है उन्हें शादी के लिए अच्छे परिवारों की लड़कियां मिल सकती थीं. लेकिन ऐसी क्या वजह रही जो दोनों ने लड़कियों के बजाए आपस में ही शादी कर ली.

वैभव दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार में पलाबढ़ा था. यहीं पर उस की पढ़ाई हुई. उस के परिवार में कई चाचाचाची, चचेरे भाईबहन वगैरह थे. वैभव दिखने में तो अन्य लड़कों की तरह सामान्य था लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो वह खुद को दूसरे लड़कों से अलग महसूस करने लगा.

उस की चाल और बात करने के तरीके को देख कर क्लास के अन्य लड़के उस की मजाक उड़ाते थे. दूसरे लड़के टोंट कसते तो उसे उन पर गुस्सा आता, लेकिन वह चुप रह जाता था. क्लास में हर साल मौनिटर चुने जाते थे. जिस में एक मौनिटर मेल होता था और एक फीमेल.

उस समय वैभव सिर झुका कर बैठा रहता था क्योंकि जब फीमेल मौनिटर को नामिनेट करने की बारी आती तो क्लास के कुछ बच्चे वैभव का नाम ले कर चिल्लाते थे. तभी क्लास के बाकी बच्चे और टीचर हंसने लगते थे. उस समय वैभव की आंखें आंसुओं से भर जाती थीं. जैसे जैसे वैभव की उम्र बढ़ रही थी, उस की चिंता भी बढ़ती जा रहा थी.

ऐसी मनोस्थिति में वैभव ने अपनी पढ़ाई को डिस्टर्ब नहीं होने दिया. वह जब 12 साल का हुआ तो उस का झुकाव लड़कों की तरफ ज्यादा होने लगा. तभी उसे अहसास हुआ कि वह गे है. उस की यह समस्या ऐसी थी जिस के बारे में वह किसी से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. वह बहुत कंफ्यूजन में था.

उस वक्त वैभव को बहुत ज्यादा जानकारी तो नहीं थी लेकिन वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि उस की बात को कोई स्वीकार नहीं कर पाएगा. इसलिए शर्म और झिझक की वजह से वह अपनी समस्या को लोगों से छिपाता रहा. एक तरह से वह दोहरी जिंदगी जीता रहा था.

वह लोगों के सामने खुद को सामान्य लड़का दिखाना चाहता था, इसलिए लड़कियों के साथ न चाहते हुए भी दोस्ती करने लगा. वह उन के साथ चैटिंग भी करता यानी वह दोस्तों के सामने हेट्रोसेक्सुअल होने का दिखावा करता. लेकिन अंदर ही अंदर उसे खुद से नफरत होती थी. इस दौरान वह धार्मिक भी हो गया. मंदिर में जा कर वह खुद को नौरमल बनाने की प्रार्थना करता.

वैभव कालेज की पढ़ाई करने के लिए जब बेंगलुरु गया तो वहां कालेज के दोस्त उस से बात करते तो वह झूठ कह देता कि दिल्ली में उस की गर्लफ्रैंड है. ऐसे ही जब वह दिल्ली आता तो दिल्ली के दोस्तों से कह देता कि बेंगलुरु में उस की गर्लफ्रैंड है.

इस तरह वह दोहरी जिंदगी जी रहा था. लेकिन दोस्तों के इस तरह के सवाल उस का पीछा नहीं छोड़ रहे थे कि तुम क्रिकेट क्यों नहीं खेलते. तुम लड़कियों की तरह क्यों चलते हो? क्या तुम मर्दों की तरह लड़ सकते हो?

हालांकि दोस्तों के द्वारा पूछे गए इन सवालों में सच्चाई थी, लेकिन वह अपने अंदर की सच्चाई अपने मातापिता को भी नहीं बता पा रहा था. इस बात को छिपा कर जीना उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था. वैभव ने पराग को पहली बार एक गे प्राइड परेड में डांस करते देखा था. तभी से वह उस से इम्प्रैस हो गया था. इस के बाद उस ने पराग की फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वेस्ट का मैसेज भेजा. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती हो गई. पराग यूएस में रहता था.

पराग भी वैभव की तरह गे था. दोनों में फर्क इतना था कि देश के कल्चर और पारिवारिक संस्कारों को देखते हुए वैभव ने अपने गे होने की बात अपने मांबाप तक से नहीं बताई, जबकि यूएस में पलेबढ़े पराग ने यह बात अपने मांबाप से बता दी थी.

वैसे शुरुआत में पराग ने भी वैभव  की तरह दोहरी जिंदगी जी थी. वह भी अपनी सैक्सुअल ओरिएंटेशन लोगों से छिपाता रहा. लेकिन वह चूंकि यूएस कल्चर में बड़ा हुआ था. धीरेधीरे उसे वहां के कल्चर में घुलीमिली गे पुरुर्षों की कहानियां सामने आने लगी थी.

जल्दी ही पराग को यह जानकारी भी मिल गई कि ऐसे लोगों का एक नाम और कम्युनिटी भी है. जब वह कालेज में पहुंचा तो यूएस में गार्डन गे राइट्स मूवमेंट बढ़ने लगा था. सन 1999 में पराग जब कालेज के फाइनल ईयर में था तब उस ने अपने मातापिता को इस बारे में बता दिया था.

बेटे के मुंह से सच्चाई सुन कर वे दोनों जैसे सदमे में आ गए थे. क्योंकि वे लोग किसी अच्छी लड़की से उस की शादी करने के बारे में सोच रहे थे. लेकिन पिता ने बेटे की खुशी पर अपनी सोच थोपना जरूरी नहीं समझा. इसलिए उन्होंने पराग को तुरंत गले लगा लिया.

इतना ही नहीं, उस का उन्होंने हर कदम पर साथ देने का आश्वासन दिया. उन्होंने अपने परिवार और सभी करीबी लोगों को एक लैटर लिखा, जिस में उन्होंने अपने बेटे का यह सच उजागर किया. साथ ही बताया कि उन्हें अपने बेटे पर फख्र है और वह उसे बहुत प्यार करते हैं, पिता का यह सपोर्ट पा कर पराग भी बेहद खुश था.

इधर सोशल साइट पर पराग और वैभव की दोस्ती बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे को गहराई से जानना पहचानना चाहते थे. फलस्वरूप दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. वैभव ने पराग के साथ डेटिंग शुरू कर दी.

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वैभव की जिंदगी में आया पराग

अब तक की बातचीत से वैभव जान गया था कि पराग अपनी सैक्सुअल ओरिएंटेशन को छिपाता नहीं है. अगर उसे पराग के साथ रिश्ता रखना है तो वह छिप कर नहीं रहेगा. वैभव सोशल मीडिया के माध्यम से पराग को अपनी फोटो भी भेज चुका था.

इसी बीच किसी तरह वैभव के घर वालों को पता चल गया कि वैभव का अपने दोस्त पराग के साथ कुछ चल रहा है. घर वालों ने इस बारे में वैभव से कुछ पूछा तो नहीं था लेकिन उन की बातों से वैभव को कुछ भनक  जरूर मिल गई थी. इस बारे में वैभव ने पराग को बताया तो उस ने कहा कि इस से पहले कि पैरेंट्स को यह जानकारी कहीं और से पता चले, बेहतर होगा वे लोग इस हकीकत को तुम्हारे मुंह से सुनें.

पराग और वैभव की पहली मुलाकात काफी इंट्रैस्टिंग थी. बिलकुल किसी बौलीवुड फिल्म की तरह. दरअसल इस बीच वैभव भी अमेरिका चला गया था. 12 जून, 2012 को दोनों वाशिंगटन डीसी के एक थाई रेस्टोरेंट में पहली बार मिले. हालांकि उस रेस्टोरेंट का खाना उन्हें बहुत खराब लगा, लेकिन उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो 6 घंटे चला. दोनों ही एकदूसरे के दीवाने से हो गए. उस दौरान दोनों ने कुछ बौलीवुड गाने भी गुनगुनाए. इस पहली मुलाकात में ही दोनों जान गए थे कि दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

चूंकि पराग अपने बारे में 10 साल पहले अपने मातापिता को सब कुछ बता चुका था इसलिए उस ने वैभव को कुछ टिप्स दिए. उस ने कहा कि मातापिता को तब बताओ जब वे तुम्हारे किसी एचीवमेंट पर बहुत खुश हों और प्राउड फील कर रहे हों. इस के बाद वैभव मौके का इंतजर करने लगा. यह बात सन 2013 की है.

वैभव ने तय कर लिया कि वह अपने गे होने की बात सन 2013 की गरमियों की छुट्टियों में मांबाप को जरूर बता देगा. इत्तफाक से वैभव को विश्व स्वास्थ्य संगठन  (डब्ल्यूएचओ) के जेनेवा, स्विट्जरलैंड की फैलोशिप के चुन लिया गया.

वैभव के इस अचीवमेंट पर उस के मातापिता और परिवार के अन्य लोग फूले नहीं समा रहे थे. इतना ही नहीं उस के पैरेट्ंस उस से मिलने के लिए स्विटजरलैंड पहुंच गए. वैभव ने उन्हें वहां खूब घुमाया फिराया. लेकिन इस दौरान भी वह मन की बात पेरेंट्स से नहीं कह सका.

मातापिता के सामने आई बेटे की सच्चाई

20 जुलाई, 2013 को वैभव के पैरेंट्स होटल में जब वापस जाने के लिए तैयारी कर रहे थे तब उन्हें जाते देख कर वैभव इमोशनल हो कर रोने लगा. जवान बेटे को इस तरह देख कर पिता ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है बेटा, तुम परेशान क्यों हो?’’

‘‘पापा मैं कुछ बताना चाहता हूं.’’ वैभव अपनी हथेलियों से आंसू पोंछते हुए बोला.

‘‘बोलो, क्या बात है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘पापा बात यह है कि मुझे लड़कियां पसंद नही हैं. मैं शादी नहीं करना चाहता.’’ वैभव ने बताया.

‘‘कोई बात नहीं बेटा, बहुत से लोग हैं जो शादी नहीं करते. लेकिन इस में परेशान होने वाली क्या बात है. मन जब नहीं कर रहा तो मत करना शादी.’’ मां ने कहा.

‘‘बात इतनी सी नहीं है मां, दरअसल मैं गे हूं और मुझे लड़के अच्छे लगते हैं. मैं उन की तरफ ही आकर्षित होता हूं.’’ वैभव के मुंह से इतना सुन कर जैसे दोनों के होश उड़ गए. मां वो बुत ही बन गई.

पिता कुछ देर बाद आए. वह बोले, ‘‘बेटा चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा. हम तुम्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे.’’

वैभव के मातापिता की चिंता भी जायज थी, क्योंकि वह उन का होनहार बेटा था. वे उस की शादी के तमाम सपने मन में संजोय हुए थे. बेटे को समझाने के मकसद से उस दिन वे लोग होटल से नहीं गए. रात भर वह वैभव को समझाते रहे लेकिन वैभव ने भी उन से इस तरह बात की जैसे कि उसे किसी डाक्टर की जरूरत नहीं है. उस ने उन्हें अपने मन की बातें सहज रूप से बता दीं. वह रात भर नहीं सोए और इसी टौपिक पर बातें करते रहे.

बातचीत के बाद पिता ने वैभव से कहा, ‘‘बतौर पैरेंट्स हम फेल हो गए बेटा.’’

‘‘मैं गे हूं इसलिए.’’ वैभव ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि तुम्हें सच बताने में इतने साल लग गए और तुम सब कुछ अकेले ही झेलते रहे.’’ कह कर पिता ने वैभव को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है. यह कुछ ऐसा है जिस पर किसी का जोर नहीं है और न ही इसे बदला जा सकता है. इसलिए तुम्हारी खुशी में मैं तुम्हारे साथ हूं्.’’

पिता की बातों और प्यार से वैभव के सिर से जैसे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था. इस के बाद वह एक बच्चे की तरह चैन की नींद सोया. अगले दिन वैभव ने यह जानकारी पराग को दी तो वह भी बहुत खुश हुआ. इस के बाद दोनों ने मुलाकात करने का कार्यक्रम बनाया.

पराग की योजना

सितंबर, 2016 में पराग का 40वां बर्थडे था. बर्थडे पर दोनों ने न्यू मेक्सिको का एक ट्रिप प्लान किया. लेकिन इस ट्रिप पर पराग ने पहले से ही एक सरप्राइज प्लान कर रखा था, उस की जानकारी वैभव को नहीं थी. वह प्लान था वैभव को प्रपोज करने का.

निश्चित तारीख पर वैभव पराग के साथ न्यू मेक्सिको की ट्रिप पर चला गया. उसी दौरान पराग ने फेसबुक लाइव के साथ वैभव के सामने इंगेजमेंट का प्रपोजल रखा. वैभव ने उस का प्रपोजल स्वीकार कर लिया. फिर क्या था उसी समय दोनों ने एकदूसरे को इंगेजमैंट रिंग पहनाई और जीवन भर साथ रहने का कमिटमेंट किया. फेसबुक लाइव के माध्यम से दुनिया के हजारों लोग इस के गवाह बने.

इंगेजमेंट हो जाने के बाद दोनों का मिलने मिलाने का कार्यक्रम चलता रहा. दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं था. इसलिए उन्होंने उन से कह दिया कि वे अपनी लाइफ उसी तरह से जिएं जिस में उन्हें खुशी मिलती हो.

पराग और वैभव जिम्मेदार पदों पर नौकरी करते थे और अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान दे रहे थे. वैभव ने बताया कि सेक्शन 377 पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला उस जैसे लोगों के लिए ऐतिहासिक था. न्यूयार्क में उस रात वह 2 बजे तक जागा था. जैसे ही फैसला आया. उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. उसे लगा कि उस के देश ने भी उसे स्वीकार कर लिया है. इस के करीब ढाई साल बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया.

इस के लिए 30 मार्च, 2019 शादी की तारीख निश्चित कर दी गई. दोनों के घर वाले, दोस्त, रिश्तेदार आदि इस अनोखी शादी में शामिल होने के लिए अमेरिका के किलीन शहर पहुंच गए थे. उन्होंने शादी की सभी तैयारियां कर ली थीं. 29-30 मार्च को 3 मुख्य इवेंट्स रखे गए. पहला संगीत और गरबा का था. मेंहदी के लिए आर्टिस्ट भी बुलवा लिए थे, और बौलीवुड थीम में फोटोशूट का भी इंतजाम कर रखा था.

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हो गई शादी

संगीत कार्यक्रम में परिवार के लोगों और दोस्तों ने डांस परफोमैंस भी दिए जो उन्होंने पहले से ही तैयार कर रखे थे. पराग को सरप्राइज देने के लिए वैभव ने भी बेहतरीन डांस फरफोर्मेंस दिया. अंत में जब ग्रुप परफार्मेंस हुआ तो दोनों के पेरेंट्स भी डांस करने के लिए आ गए. फिर 30 मार्च, 2019 को दोनों की शादी भी पारंपरिक तरीके से हो गई.

इस शादी में पराग और वैभव दूल्हे के रूप में सज कर अलगअलग घोड़े वाले रथ पर सवार हो कर कार्यक्रम स्थल पर विपरीत दिशा से एक साथ पहुंचे.

दूल्हे 2 थे तो बारात भी 2 थीं. कार्यक्रम स्थल पर दोनों की मांओं ने रीतिरिवाज के साथ अपने बेटे और दामाद का तिलक कर आरती उतारी और उन का स्वागत किया. वैसे तो यह शादी पूरे रीतिरिवाज से हुई थी पर इस में इतना फर्क था कि आम शादियां जेंडर स्पेसिफिक होती हैं. लेकिन यहां कुछ रस्में बदल कर जेंडर न्यूट्रल कर दीं. जयमाला भी हुई.

दोनों ने अग्नि के 2-2 फेरे लिए, पहला फेरा प्यार का और दूसरा धर्म का. दुलहन नहीं तो यहां पर पारंपरिक कन्यादान को वरदान में बदल लिया गया. बाद में रिसेप्शन हुआ. उस मौके पर वैभव और पराग ने अपनी पसंद के बौलीवुड गानों पर डांस किया. कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों ने दोनों को आशीर्वाद दिया.

पराग और वैभव का कहना है कि मंडप तक पहुंचने में बड़ी रुकावटों का सामना किया था, खुशकिस्मती से वह उन सब से जीत गए. लेकिन लाखों लेस्बियन, गे, बाई सैक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए दुनियाभर में अभी भी रुकावटें बाकी हैं. इस संसार में हर कोई प्यार का हकदार है तो इन सब के साथ इतनी नाइंसाफी क्यों?

कैसे डूबी टाइटन पनडुब्बी

दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो चांद या मंगल पर जाना चाहते हैं यानी अंतरिक्ष में घूमना चाहते हैं तो ऐसे भी तमाम लोग हैं, जो यह जानना चाहते हैं कि आखिर समुद्र के अंदर क्या है? शायद इसी वजह से आज ऐसी कई कंपनियां बन गई हैं, जो इस तरह का टूरिज्म आयोजित करने लगी हैं. ऐसी ही एक कंपनी है ओशनगेट, जिस ने समुद्र के अंदर की दुनिया दिखाने के लिए एक पनडुब्बी बनाई थी, जिस का नाम था ‘टाइटन’.

टाइटन पनडुब्बी कैप्सूल के आकार की थी. इसलिए लोग इसे कैप्सूल या टाइटन सबमर्सिबल भी कहते थे. इस का कद ट्रक के बराबर था. यह 22 फुट लंबी और 9.2 फुट चौड़ी थी. इस की बाहरी परत 5 इंच मोटी थी. यह कार्बन फाइबर से बनी थी. इस के अंदर कोई सीट वगैरह नहीं थी. इस में बाहर देखने के लिए सामने शीशा लगा था.

इस में जाने वाले अंदर बैठ जाते थे तो इसे बाहर से बंद किया जाता था. यानी इसे अंदर से न तो बंद किया जा सकता था और न ही अंदर से खोला जा सकता था. इस की यात्रा 8 घंटे की होती थी, इसलिए इस में सवार यात्रियों के लिए इस के अंदर ही आक्सीजन की व्यवस्था की जाती थी.

टाइटैनिक टूरिज्म के तहत टाइटैनिक का मलबा दिखाने ले जाने के लिए कंपनी 2 करोड़ रुपए से अधिक किराया लेती थी. यह पनडुब्बी समुद्र में शोध और सर्वे के भी काम आती थी. इसे पानी में उतारने और औपरेट करने के लिए पोलर प्रिंस वेसल जहाज का इस्तेमाल किया जाता था. इस पनडुब्बी की खास बात यह थी कि यह 13 हजार फुट से अधिक गहराई तक गोता लगा सकती थी, जबकि टाइटेनिक का मलबा 12 हजार फुट की गहराई पर पड़ा है.

साल 1985 में कनाडा के न्यूफाउंडलैंड के पास टाइटैनिक जहाज का मलबा मिला था. जहाज डूबने के 70 साल बाद भी टाइटैनिक का जादू लोगों के सिर से उतरा नहीं था. लोग इस की कहानियां आज भी कहते हैं. जब टाइटैनिक पर फिल्म बनी तो इस का मलबा चर्चा में आया. लोगों में इस का मलबा देखने की उत्सुकता जागी तो इस का फायदा अमेरिका की ओशनगेट कंपनी ने उठाया और साल 2021 में टाइटैनिक टूरिज्म की शुरुआत हुई.

यह टूरिज्म कनाडा के न्यूफाउंडलैंड से शुरू होता था और वहीं जा कर खत्म होता था. इस यात्रा के लिए जाने वालों को एक महीने पहले से ही तैयार किया जाता था. टाइटन पनडुब्बी लोगों को 19 हजार फुट की गहराई तक ले जाती थी. ओशनगेट की वेबसाइट पर जा कर कोई भी टाइटैनिक टूरिज्म के लिए अपना स्लौट बुक कर सकता था.

लेकिन इस के लिए कुछ शर्तें तय की गई थीं. जैसे कि यात्रा पर जाने वाले की उम्र 18 साल से अधिक होनी चाहिए. यह यात्रा कनाडा से शुरू होती थी, इसलिए वहां जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा होना चाहिए. एक सप्ताह तक पनडुब्बी में रहने की क्षमता होनी चाहिए. पानी के अंदर किसी भी परिस्थिति से निपटने में सक्षम होना चाहिए. 6 फुट की सीढ़ी तेजी से चढ़ सके और 10 किलोग्राम वजन उठाने की सामथ्र्य भी होनी चाहिए.

इसी पनडुब्बी से 5 लोग टाइटैनिक जहाज को, जो 111 साल पहले समुद्र में डूब गया था, उस का मलबा देखने के लिए 16 जून, 2023 को निकले थे. उन का यह पूरा ट्रिप 8 दिनों का था.

5 अरबपति गए टाइटैनिक जहाज का मलबा देखने

16 जून, 2023 को इस यात्रा के लिए पहले से ही बुकिंग थी. इसमें जाने वाला कोई साधारण आदमी तो हो नहीं सकता था, क्योंकि जिस का किराया ही 2 करोड़ रुपए से अधिक हो, उस में साधारण आदमी कैसे यात्रा कर सकता है. तो इस पनडुब्बी में यात्रा करने वाले सभी अरबपति लोग थे. इन में से एक थे ब्रिटिश बिजनैसमैन हैमिश हार्डिंग, दूसरे पाकिस्तानी-ब्रिटिश बिजनैसमैन शहजादा दाऊद और तीसरा उन का बेटा सुलेमान, चौथे फ्रेंच डाइवर पौल हेनरी और पांचवे ओशनगेट कंपनी के सीईओ स्टौकटन रश. यही स्टौकटन रश ही पनडुब्बी के पायलट थे.

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सफर की शुरुआत 16 जून को कनाडा के पोर्ट न्यूफाउंडलैंड से हुई थी. वहां से ये लोग एक समुद्री जहाज पर सवार हो कर लगभग 7 सौ किलोमीटर का सफर तय कर के उस जगह पहुंच गए थे, जहां टाइटनिक जहाज का मलबा समुद्र की तलहटी में पड़ा था. यहां तक पहुंचने में उन्हें 2 दिन का समय लगा था. ये लोग वहां 18 जून को पहुंचे थे.

वहां पहुंच कर भारतीय समय के अनुसार शाम के साढ़े 5 बजे और वहां के समय के अनुसार सुबह के 8 बजे टाइटन पनडुब्बी में चारों यात्रियों को बैठा कर बाहर से बंद कर दिया गया. क्योंकि इस पनडुब्बी की बनावट ही ऐसी थी कि इसे बाहर से ही बंद किया और खोला जा सकता था. इस के अंदर बैठे लोग इसे न तो अंदर से खोल सकते थे और न बंद कर सकते थे.

इस तरह पांचों लोगों को पनडुब्बी में बैठा कर समुद्र में उतार दिया गया. समुद्र में उतरते ही पनडुब्बी तेजी से टाइटैनिक जहाज के मलबे की ओर बढ़ी. समुद्र की सतह से टाइटैनिक जहाज का मलबा करीब 4 हजार मीटर यानी 12,500 फुट नीचे समुद्र की तलहटी में है.

पनडुब्बी को वहां तक पहुंचने में करीब 2 घंटे लगते थे. उसी तरह इसे ऊपर आने में भी 2 घंटे का समय लगता था. यह पनडुब्बी 4 घंटे समुद्र के अंदर टाइटैनिक के मलबे के आसपास घूमती रहती थी, जिस से उस से गए टूरिस्ट आराम से टाइटैनिक का मलबा देख सकें और फोटो आदि खींच सकें. इस तरह देखा जाए तो इस पनडुब्बी का सफर 8 घंटे का था.

पनडुब्बी और जहाज का टूट गया संपर्क

जहाज पनडुब्बी को समुद्र में उतार कर वहीं घूमता रहता था, क्योंकि उस के वापस आने पर उसे पोर्ट तक लाना भी होता था. पनडुब्बी के समुद्र में उतरने के 1 घंटा 45 मिनट बाद यानी 9 बज कर 45 मिनट पर अचानक ऊपर खड़े जहाज पोलर प्रिंस से पनडुब्बी का संपर्क टूट गया था.

ऊपर जहाज में बैठे लोगों ने पनडुब्बी में बैठे लोगों से संपर्क करने की बहुत कोशिश की, पर उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. पनडुब्बी के अंदर बैठे लोग कुछ कर नहीं सकते थे. वे तो पूरी तरह ऊपर जहाज में बैठे लोगों के भरोसे थे. उस समय यह अनुमान लगाया गया था कि पनडुब्बी में केवल 4 दिन का ही औक्सीजन है.

जहाज में बैठे लोग जब संपर्क नहीं जोड़ पाए तब वे पनडुब्बी के वापस आने का इंतजार करने लगे. पनडुब्बी सुबह के 8 बजे समुद्र में नीचे गई थी. उसे 8 घंटे बाद वापस आना था यानी वहां के समय से उसे शाम के 3, साढ़े 3 बजे के बीच वापस आना था. लेकिन वह वापस नहीं आई. तब जहाज में बैठे लोगों को चिंता हुई. सभी परेशान होने लगे कि आखिर पनडुब्बी वापस क्यों नहीं आई?

इस के बाद जहाज पर आए लोगों ने कनाडा और यूएस के कोस्ट गार्ड (तट रक्षक) को सूचना दी. कोस्ट गार्ड आए और सर्च औपरेशन शुरू हुआ. उन के वहां आतेआते रात हो गई थी, लेकिन वे रात को भी पनडुब्बी की तलाश में लगे रहे.

टाइटन पनडुब्बी का क्या हुआ, उस से गए यात्री बाहर आए या नहीं, यह जानने से पहले आइए थोड़ा उस टाइटैनिक जहाज के बारे में जान लें, जिस का मलबा देखने ये पांचों अरबपति गए थे.

टाइटैनिक अपने समय का सब से बड़ा जहाज था. इसे उस समय का सब से अच्छा और न डूबने वाला जहाज कहा गया था. इस में दुनिया की तमाम सुविधाओं का ध्यान रखा गया था. इस का निर्माण ब्रिटिश शिपिंग कंपनी व्हाइट स्टार लाइन ने किया था. इस का निर्माण कार्य 31 मार्च, 1909 को शुरू हुआ था तो 31 मई, 1911 को इस विशाल जहाज को लोगों के सामने पेश किया गया था.  इसे देखने के लिए करीब 10 हजार लोग इकट्ठा हुए थे.

उस समय इसे तैरते हुए शहर की उपाधि दी गई थी. कहा जाता है कि इस की ऊंचाई करीब 17 मंजिला बिल्डिंग के बराबर थी. यह भाप से चलने वाला जहाज था. इस की लंबाई फुटबाल के 3 मैदानों के बराबर थी. जहाज में रोजाना 800 टन कोयले की खपत होती थी. इस की सीटी तो 11 मील दूर तक सुनी जा सकती थी. इस जहाज में हर सुखसुविधा उपलब्ध थी.

ब्रिटेन के साउथंप्टन से न्यूयार्क सिटी के लिए टाइटैनिक 10 अप्रैल, 1912 को सफर पर निकला था. यात्रा के 4 दिनों बाद यानी 14 अप्रैल को रात 11 बज कर 40 मिनट पर यह एक हिमशिला (बर्फ का बहुत बड़ा टुकड़ा) से टकरा गया था, जिस से इस के 2 टुकड़े हो गए थे. इस के बाद यह पूरा जहाज करीब 2 घंटे में डूब गया था. उस समय इस जहाज में 2,224 लोग सवार थे. इस हादसे में करीब 15 सौ लोगों की मौत हो गई थी. सिर्फ 706 लोगों को बचाया जा सका था.

अलगअलग शख्सियत थे टाइटन में डूबने वाले

इसी जहाज के मलबे को देखने के लिए टाइटन पनडुब्बी में 5 लोग सवार थे, जिस में ब्रिटिश बिजनैसमैन हैमिश हार्डिंग 58 साल के थे. इन का जन्म 24 जून, 1964 को ब्रिटेन में हुआ था. यह संयुक्त अरब अमीरात में ब्रिटिश व्यापारी थे. इस के अलावा यह खोजी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री भी थे.

यह हार्डिंग ऐक्शन ग्रुप के संस्थापक और अंतरराष्ट्रीय विमान ब्रोकरेज कंपनी ‘ऐक्शन एविएशन’के अध्यक्ष थे. यह कंपनी चार्टर्ड विमान खरीदने और बेचने का काम करती है. इस का हेडऔफिस दुबई में है. भारत में चीता लाने में इन्होंने काफी मदद की थी. इन की अपनी लग्जरी टूरिस्ट कंपनी भी है.

फ्रैंच डाइवर पौल हेनरी जार्जियोले. इन का तो शौक ही नईनई चीजों की खोज करना था. यह पहले फ्रैंच नेवी में थे. यह नौसेना में कमांडर थे. इन्हें तो मिस्टर टाइटैनिक नाम से ही जाना जाता था. वह टाइटैनिक के बारे में करीब 35 सालों से शोध कर रहे थे. इस के पहले भी यह टाइटैनिक पर जाने वाले अभियानों का हिस्सा रहे हैं. 1987 में जब टाइटेनिक का कुछ हिस्सा लाया गया था, तब उस टीम में भी पौल भी शामिल थे.

पाकिस्तानी-ब्रिटिश बिजनैसमैन शहजादा दाऊद 48 साल के थे. यह कंग्लोमरेट एग्रो कारपोरेशन के अध्यक्ष थे. यह कंपनी खाद बनाती है. यह अपनी बीवी क्रिस्टीन और बच्चों अलीना और सुलेमान के साथ साउथ वेस्ट लंदन में रहते थे. लेकिन इधर एक महीने से इन का परिवार कनाडा में रह रहा था.

शहजादा दाऊद फाउंडेशन (नौन प्राफिटेबल संस्था) और कैलिफोर्निया की रिसर्च आर्गेनाइजेशन एसईटीआई के लिए भी काम करते थे. वह अलगअलग प्राकृतिक जगहों पर घूमने और रहस्यों को उजागर करने के शौकीन थे. शहजादा दाऊद का परिवार पाकिस्तान के सब से रसूखदार परिवारों में एक है. उन का नेटवर्थ 350 मिलियन डालर यानी भारतीय रुपयों में 2868 करोड़ रुपए से ज्यादा है.

उन का बेटा सुलेमान 19 साल का था. उस ने अभी जल्दी ही पढ़ाई खत्म की थी. वह साइंस फिक्शन का बहुत बड़ा शौकीन था.

स्टौकटन रश ओशनगेट कंपनी के फाउंडर भी थे और सीईओ भी. यही इस पनडुब्बी के पायलट भी थे. यही इस अभियान को कमांड कर रहे थे. रश कंपनी के फाइनेंशियल और इंजीनियरिंग के काम को देखते थे. उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के बर्कले हास स्कूल औफ बिजनैस से एमबीए किया था. इन की पत्नी वेंडी रश के परदादा और परदादी 1912 में टाइटैनिक दुर्घटना में मारे गए थे. वे दोनों टाइटैनिक पर सवार सब से धनी यात्रियों में से थे.

अमेरिकी और कनाडाई एजेंसियां उतरीं सर्च अभियान में

टाइटन पनडुब्बी वापस नहीं आई तो कनाडा और अमेरिका के कोस्ट गार्डों ने पनडुब्बी को खोजने का औपरेशन शुरू कर दिया था. सर्च औपरेशन में 10 जहाज, पनडुब्बियों को शामिल किया गया था. इस के अलावा फ्रांस ने अपना अंडरवाटर रोबोट भी उतारा था.

पनडुब्बी से जब संपर्क टूटा था, तब वह अमेरिकी तट से 900 नौटिकल मील दूर केप कोड के पूर्व में थी. इस खोजी और बचाव अभियान में अमेरिकी और कनाडाई एजेंसियों के अलावा गहरे समुद्र में उतरने वाली व्यावसायिक कंपनियां भी लगी थीं, जो सैन्य विमानों, पनडुब्बियों और सोनार बौय मशीनों से पनडुब्बी को खोज रहे थे. इस में कई निजी जहाज भी मदद कर रहे थे. रेस्क्यू टीम समुद्र में 7,600 स्क्वायर मील के एरिया में सर्चिंग कर रही थी. पानी में सोनार बौय भी छोड़े गए थे, जो पानी में 13 हजार फुट की गहराई तक मौनिटरिंग करने में सक्षम होते हैं.

आखिर इस सर्च औपरेशन में कनाडाई जहाज होराइजन आर्कटिक को सफलता मिली. वह अपने साथ रिमोट औपरेटेड वाहन लाया था. उसी की मदद से पनडुब्बी का मलबा खोजा गया. पनडुब्बी का यह मलबा समुद्र में 12,500 फुट की गहराई में टाइटैनिक के मलबे से करीब 16 सौ फुट की दूरी पर 22 जून, 2023 को यानी गायब होने के 4 दिन बाद मिला था. मलबा मिलने के बाद साफ हो गया था कि टाइटन पनडुब्बी में सवार पांचों अरबपतियों की मौत हो गई है. समुद्र में इतने नीचे जाना और बचाव कार्य को अंजाम देना आज की विकसित प्रौद्योगिकी के बावजूद टेढ़ी खीर है.

टाइटन पनडुब्बी की आखिरी लोकेशन टाइटनिक जहाज के पास ही दर्ज की गई थी. लापता होने के कुछ देर बाद रडार पर विस्फोट से जुड़े कुछ सिग्नल भी मिले थे. यह जानकरी तुरंत कमांडर को शेयर की गई थी, जिस से सर्च औपरेशन में मदद मिली. इस मलबे से पता चला कि यह हादसा कैटास्टौफिक इंप्लोजन की वजह से हुआ था.

बताया जाता है कि कैटास्टौफिक इंप्लोजन तब होता है, जब किसी पनडुब्बी पर इतना दबाव बन जाए कि वह फट जाए. कहा जाता है कि मलबे में मानव अवशेष मिले थे. इस की सही जानकारी तो मैडिकल जांच के बाद ही मिलेगी. इस से साफ हो गया है कि मलबा देखने जाने वालों के शव अब नहीं मिल सकेंगे.

बहुत चुनौतीपूर्ण है टाइटन का सफर

अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि जब पनडुब्बी समुद्र में अंदर जाती है तो क्या होता है, उस के अंदर बैठे लोगों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना होता है?

समुद्र इतना विशाल है कि वह अपने आप में पूरी एक दुनिया है. आज तक वैज्ञानिक समुद्र के बारे में 5 प्रतिशत ही जान पाए हैं. टाइटैनिक का मलबा समुद्र में जहां पड़ा है, वहां की गहराई 12,500 फुट है. वहां जाने के लिए मनुष्य को इतने सारे खतरों का सामना करना पड़ता है कि मनुष्य को सोचने का भी वक्त नहीं मिलता कि वे कब हादसे का शिकार हो जाते हैं.

समुद्र में सूर्य का प्रकाश 600 फुट की गहराई तक ही पहुंच पाता है. इस के बाद जैसे दुनिया से संपर्क खत्म हो जाती है. इस के बाद मनुष्य अपने हिसाब से खोज करता है. औक्सीजन सिलेंडर के जरिए मनुष्य 1,575 फुट की गहराई तक ही अंडरवाटर रेस्क्यू कर पाया है. इस के बाद मनुष्य को पनडुब्बी का सहारा लेना पड़ता है.

समुद्र इतना गहरा है कि इस में दुनिया की सब से ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा भी समा सकता है. समुद्र में 3,300 फुट की गहराई पर एकदम अंधेरा हो जाता है. वहां जमा देने वाली ठंड होती है. समुद्र के अंदर जाने पर समुद्री जीवों का भी सामना करना पड़ता है. ऊपरी सतह पर बहुत सारी मछलियां और समुद्री जीव होते हैं. समुद्र के अंदर 4,500 फुट की गहराई पर जाने पर विशाल आक्टोपस का सामना करना पड़ता है.

यहां यह ध्यान देना पड़ता है कि पनडुब्बी के पीछे कोई समुद्री जीव तो नहीं आ रहा. 7,000 फुट के नीचे व्हेल जोन शुरू होता है, जिसे समुद्र का राजा कहा जाता है. जानकारी के अनुसार समुद्र में 7,000 से 8,000 फुट की गहराई में व्हेल रहती हैं.

10,000 फुट की गहराई पर न सूर्य प्रकाश देखने को मिलेगा, न कोई समुद्री जीव. केवल पनडुब्बी में सवार लोग ही होंगे. तब स्थिति बड़ी भयावह होती होगी. जो पनडुब्बी नीचे जा रही होती होगी, उस पर पानी का दबाव भी बहुत ज्यादा हो चुका होता है.

अटलांटिक महासागर में 12,500 फुट की गहराई पर टाइटैनिक का मलबा पड़ा है, जिसे देखने के लिए लोग पनडुब्बी से जाते हैं. यहीं पर टाइटन पनडुब्बी में विस्फोट हुआ है. इस जगह को बहुत खतरनाक माना जाता है. इसे मिडनाइट जोन कहा जाता है. क्योंकि यहां घुप्प अंधेरा होता है. यहां जमा देने वाली ठंड होती है. पानी के तेज बहाव के कारण यहां तेज करंट भी बनता है. टाइटन पनडुब्बी समुद्र में 13,123 फुट नीचे तक जा सकती थी. बताया जाता है कि किसी तकनीकी खराबी की वजह से यह हादसा हुआ है.

लड़की से लड़का क्यों बनी स्वाति?

यह कहानी स्वाति से शिवाय बने (Swati to Shivaay) 35 साल के एक सौफ्टवेयर इंजीनियर की है, जिन्होंने 3 साल की लंबी मशक्कत के बाद अपना जेंडर फीमेल (Gender Change) से बदल कर मेल करवा लिया.

स्वाति का फ्रस्ट्रेशन तब और बढ़ गया, जब आठवीं क्लास में आते ही उसे पीरियड शुरू हो गए. वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगी. उसे अपने शरीर से ही नफरत होने लगी थी. हायर सेकेंडरी पास होते ही, घर वालों ने उस की शादी के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया.

एकदो रिश्ते आए भी, मगर उस की हेयर स्टाइल और कपड़े देख कर वे हैरान रह जाते.  एक दिन उस की मम्मी उर्मिला ने उसे पास बिठाया और उस के सिर पर हाथ रखते हुएकहा, ”देख स्वाति, अब तो तू बड़ी हो रही है. अपने बाल बढ़ा ले और लड़के वाले कपड़े पहनना छोड़ दे.’’

मगर स्वाति इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने मम्मी से दोटूक कह दिया, ”देखो मम्मी, मुझे बारबार टोका मत करो, मैं तो लड़के के रूप में ही अच्छी हूं.’’

घर में सब से लाडली होने के कारण कोई भी उस से कुछ भी कहने के बजाय खामोश हो जाता. मगर आसपास रहने वाले लोग स्वाति के घर वालों को ताना देने लगे थे, इस से स्वाति का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

बचपन से ही स्वाति शरीर से भले ही लड़की थी, मगर उसे अपना वह शरीर कतई पसंद नहीं था. उस के बाल, कपड़े इस तरह के थे कि कोई अनजान व्यक्ति उसे लड़का ही समझता था. लड़कियों के स्कूल में पढऩे जाने पर जब उसे यूनिफार्म में सलवार कमीज पहनने को मजबूर किया जाता तो वह स्कूल से बंक मारने लगी.

स्वाति ने बताया कि उस की आत्मा यही कहती थी कि ‘मैं वह नहीं हूं, जो दिखाई देती हूं. मेरा दिमाग और शरीर एकदूसरे से मेल नहीं खाते थे. कभीकभी मुझे अपने ही शरीर से चिढ़ सी होने लगी थी.’

आखिरकार एक दिन खुद को मजबूत करते हुए स्वाति ने घर वालों से बात की. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया, ”तुम मुझे भले ही लड़की समझते हो, मगर मुझे फीलिंग लड़कों वाली आती है. मैं तो अपना जेंडर चेंज करा कर लड़का बनना चाहता हूं.’’

इतना सुन कर घर वालों की स्थिति और खराब हो गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़की के साथ क्या किया जाए. स्वाति के रंगढंग देख उस के पापा पवन ने पत्नी उर्मिला से कहा, ”देखो, ये लड़की समाज में हमारी बदनामी करने पर तुली हुई है.’’

उर्मिला यह कह कर अपने पति को समझा देती कि ‘स्वाति अभी नादान है. उम्र के साथ सब कुछ समझ जाएगी.’

ताप्ती नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Baitul) में संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी और पत्नी उर्मिला सूर्यवंशी की 4 बेटियों और एक बेटे में स्वाति सब से छोटी थी.

बैतूल (Baitul) के सिविल लाइंस इलाके की संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी मसाले और सब्जी का बिजनैस करते थे. एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद घर की जिम्मेदारी पत्नी उर्मिला पर आ गई. उर्मिला ने अपने बेटे बेटियों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आज उन की 2 बड़ी बेटियां श्रद्धा और संगीता हौस्पिटल में एकाउंटेंट हैं, जबकि छोटी बेटी बबीता एक नर्स है. बड़ा बेटा कृष्णा सरकारी स्कूल में टीचर है.

स्वाति स्कूल में भी पहनती थी लड़कों के कपड़े

स्वाति का जन्म 6 मार्च, 1988 को हुआ था. उस की स्कूली शिक्षा बैतूल के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, स्वाति को अपने शरीर को ले कर अजीब सी फीलिंग आने लगी. 8वीं पास होतेहोते एक दिन लगा कि उसे शरीर लड़की का जरूर दे दिया है, लेकिन वह लड़की नहीं है. क्योंकि उसे भगवान ने मुझे गलत बौडी दे दी. हर काम लड़कों वाले करना पसंद थे.

मसलन लड़कों जैसे रहना, कपड़े पहनना अच्छा लगता था. गेम भी लड़कों वाले ही खेलती थी. यहां तक कि यदि उसे कोई लड़कियों की तरह संबोधन से बुलाता तो उसे बहुत बुरा लगता था. पवन सूर्यवंशी का पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला था. इस वजह से घर के सभी लोगों ने उसे शिवाय कहना शुरू कर दिया. उस के बाद तो सभी उसे शिवाय के नाम से ही पुकारने लगे.

घर वालों ने जब स्वाति का एडमिशन 9वीं क्लास में गल्र्स स्कूल में करा दिया तो वहां ड्रेस के रूप में सलवारकमीज चलती थी. उसे यह पहनना पसंद नहीं था. यही वजह थी कि वह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी. जिस दिन ड्रेस चेंज होती थी, सिर्फ उसी दिन स्कूल जाती थी. इसी जद्दोजहद में दिन बीतते गए और स्वाति 12वीं में पहुंच गई.

रहनसहन, कपड़े और लड़कों के साथ खेलने की वजह से घर वालों का दबाव बढऩे लगा था जोकि स्वाति को कतई पसंद नहीं था. अब स्वाति में लड़कियों के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन भी होने लगे थे.

पीरियड की शुरुआत और अपनी छाती पर आए उभार देख कर उसे अच्छा नहीं लगता था. इस कारण उस का फ्रस्ट्रेशन और बढऩे लगा था. उसे अपने शरीर से चिढ़ होने लगी थी. स्वाति को यह सब रास नहीं आ रहा था और वह इस से डिप्रेशन में जाने लगी थी.

स्वाति का रुझान बचपन से ही बास्केट बाल खेल के प्रति रहा था. ऐसे में स्कूल में पढ़ते समय जब स्वाति लड़कियों के साथ बास्केट बाल खेलती तो उसे अजीब सा लगता था. तब उन के कोच रविंद्र गोटे स्वाति को लड़कों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

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बास्केट बाल गेम लड़कियों के ज्यादा खेलने की वजह से स्वाति उर्फ शिवाय बाद में फुटबाल खेलने लगी. बड़ी होने पर स्वाति को पुलिस में रहे कोच संजय ठाकुर ने काफी प्रोत्साहित किया. संजय ठाकुर उसे लड़कों जैसी फिटनैस रखने और सभी खेलों में भाग लेने के लिए कहते थे.

कोच संजय ठाकुर उस के खेल से प्रभावित हो कर अकसर यही कहते थे, ”स्वाति, तुझे तो लड़का होना चाहिए था, कुदरत ने तुझे लड़की क्यों बना दिया.’’  बस यही बात उस समय स्वाति को कचोटने लगी थी.

2006 में गवर्नमेंट गल्र्स स्कूल बैतूल से हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करने के बाद स्वाति ने भोपाल के कालेज से 2010 में बीसीए पास कर लिया. बीसीए की पढ़ाई के दौरान उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उस समय स्वाति से यह सब सहन नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने फैसला किया कि वह अपना जेंडर जरूर चेंज कराएगी.

उस ने इस के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इंटरनेट पर उस ने  खूब सर्च किया और बहुत सारी जानकारी हासिल की. वह जेंडर चेंज के लिए 2010 से 2015 तक लगातार कई तरह की जानकारियां जुटाती रही.

बौडी बिल्डर आर्यन पाशा से हुई प्रभावित

स्वाति ने यूट्यूब पर आर्यन पाशा का एक वीडियो देखा था, जिसे देख कर उसे मालूम हुआ कि आर्यन पाशा का जन्म 1991 में नायला नाम की एक लड़की के रूप में हुआ था. आर्यन पाशा की मां को सब से पहले पता चला कि वह एक महिला शरीर में फंसा हुआ लड़का था.

जब वह 16 वर्ष का था तो पाशा की मां ने उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी(Gender Change Surgery) के बारे में बताया. 2011 में जब पाशा सिर्फ 19 साल का था, तब उस ने दिल्ली एनसीआर के एक अस्पताल में सर्जरी के द्वारा अपना जेंडर चेंज कराया.

इस बदलाव के बाद उस ने 12वीं कक्षा में अपने स्कूल में टौप किया, फिर उस ने अपने सभी दस्तावेजों में खुद को ‘पुरुष’ के रूप में पहचाना और यहां तक कि अपने लिए एक नया नाम आर्यन भी लिया.

स्नातक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश से इनकार करने के बाद अंतत: उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की. आर्यन बाद में बौडी बिल्डर बना और पुरुष वर्ग में बौडी बिल्डिंग इवेंट मसल मेनिया में प्रतिस्पर्धा करने वाला पहला भारतीय ट्रांसमैन बन गया. वह पोडियम पर दूसरे स्थान पर रहा.

इस के बाद स्वाति एक्सपर्ट डाक्टर से भी मिली और डाक्टर से बात कर यह जाना कि इस की सर्जरी की क्या प्रक्रिया है. जब सारी बातें साफ हो गईं तो उस ने उन लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अपना जेंडर चेंज करवाया था.

स्वाति ने इस के लिए आर्यन पाशा और राजवीर सिंह जैसे जेंडर चेंज करने वाले लोगों से मुलाकात की. इस के बाद अपने इरादे मजबूत कर लिए तो एक दिन सारी बातें घर वालों के सामने रख दीं और उन्हें जेंडर चेंज करवाने के लिए मनाना शुरू किया.

पहले तो घर वालों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. उस के पीछे आर्थिक स्थिति का कमजोर होना तो था ही, समाज में नकारात्मक सोच का डर भी घर वालों को था. यही वजह रही कि घर वालों ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. उस वक्त स्वाति के लिए शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

3 साल का वक्त लगा जेंडर बदलने में

यह बात उस के तनाव को और बढ़ा रही थी. उस ने घर वालों को काफी मनाया समझाया और कुछ ऐसे लोगों से घर वालों की मुलाकात कराई, जो जेंडर चेंज कराने के बाद अपना पारिवारिक जीवन बेहतर ढंग से जी रहे थे.

राजवीर सिंह से मुलाकात और काफी कोशिशों के बाद मम्मीपापा के सोचने का नजरिया बदला. इस काम में स्वाति की 3 बहनों ने भी काफी सपोर्ट किया. आखिरकार लंबी मशक्कत के बाद घर वाले  जेंडर चेंज करवाने के लिए राजी हुए.

शिवाय को बाइक चलाने का भी शौक है. अब जेंडर चेंज सर्जरी करा कर स्वाति से शिवाय सूर्यवंशी बन गया है. जेंडर चेंज के बारे में जब हम ने शिवाय से बातचीत की तो खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आया.

लंबी बातचीत में शिवाय (स्वाति) ने बताया कि एक बार यूट्यूब पर आर्यन पाशा को देखा था, आर्यन लड़की से लड़का बना और फिर बौडी बिल्डर बन गया. यह वीडियो मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा और इस के बाद मैं ने भी लड़का बनने की ठान ली.

जेंडर चेंज सर्जरी की शुरुआत 2020 में हुई थी. दिल्ली के एक निजी हौस्पिटल में उस ने 3 स्टेप में सर्जरी कराई है. जानेमाने सर्जन डा. नरेंद्र कौशिक ने उस की सर्जरी की थी.

पहली सर्जरी 2020 में जब शुरू हुई तो साइकोलौजिस्ट डा. राजीव ने मानसिक टेस्ट किया और डा. अरविंद कुमार ने हारमोंस थैरेपी की थी, जिस में हारमोंस चेंज होते हैं. इस थैरेपी के कुछ दिनों बाद ही वाइस चेंज होने लगी थी और चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं.

वहीं दूसरी टौप सर्जरी में शिवाय के दोनों ब्रेस्ट को बौडी से रिमूव किया गया था. थर्ड सर्जरी में बौटम पार्ट की सर्जरी की गई थी. इस सर्जरी के दौरान यूट्रस निकाला गया और सब से लास्ट में पेनिस डेवलप किया गया था. हर सर्जरी के बाद 3 माह का आराम करना होता था. शिवाय ने हर सर्जरी के बाद 5 से 6 महीने का गैप लिया.

अभी कुछ महीने पहले ही शिवाय की चौथी सर्जरी हुई थी, जिस में स्किन टाइट करवाई गई है. इस के बाद आराम किया और अब नवंबर 2023 से इंदौर में रह कर फिर से अपना जौब शुरू कर दिया है. पूरी सर्जरी में लगभग 10 लाख रुपए खर्च हुए थे.

शिवाय ने बताया कि वह पहले ही सर्जरी कराना चाहता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से सर्जरी नहीं करा पाया.

शिवाय सूर्यवंशी ने बताया, ”सर्जरी करवा कर मैं बहुत खुश हूं. अब लगता है कि मुझे जो शरीर चाहिए था, वह मिल गया है.’’

दस्तावेजों में लिंग बदलवाना नहीं था आसान

शिवाय के परिवार में भी लोग खुश हैं.  शिवाय के बड़े भाई कृष्णा सूर्यवंशी ने बताया, ”पहले जरूर हम ने इस का विरोध किया था, लेकिन बाद में पूरे परिवार ने सहयोग किया.  अब उन्हें एक भाई और मिल गया है, जिस से उन्हें काफी मदद मिल रही है. हम पहले 5 भाईबहन थे. स्वाति सब से छोटी बहन थी. अब स्वाति के शिवाय बनने से 3 बहन और 2 भाई हो गए हैं.’’

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जेंडर चेंज करवाने के बाद सब से चुनौतीपूर्ण काम पहचान दस्तावेजों में नाम व जेंडर बदलने का था. इस के लिए स्वाति से शिवाय बन कर सब से पहले बैतूल कलेक्टर के समक्ष उपस्थित हो कर आवेदन किया.

कलेक्टर औफिस से जारी किए गए पत्र के साथ शिवाय सूर्यवंशी ने बोर्ड औफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल जहां से बीसीए किया और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर जहां से एमबीए किया था, वहां आवेदन किया. आवेदन के साथ उस ने जेंडर चेंज सर्जरी के समस्त डाक्यूमेंट्स भी पेश किए.

इस आधार पर हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल परीक्षा की मार्कशीट जो स्वाति नाम से बनी है, वहीं अब स्वाति का नाम परिवर्तित हो कर शिवाय हो गया है. जेंडर फीमेल से मेल हो गया है. इसी तरह बीसीए, एमबीए की मार्कशीट के साथ आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक और वोटर आईडी कार्ड में भी उस का नाम बदल कर अब शिवाय सूर्यवंशी हो गया है.

शिवाय के सभी दस्तावेज पहले स्वाति सूर्यवंशी नाम से थे, लेकिन सर्जरी के बाद उस के सभी दस्तावेजों में भी नाम बदल चुका है. शिवाय ने अब ऐसे लोगों को, जो जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराना चाहते हैं, उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया है. शिवाय एमपी वाला चैनल बनाया है. बहुत सारे लोग इस संबंध में पूछताछ करते हैं शिवाय ने बताया कि अधिकांश लोग लड़का से लड़की बनना पसंद करते हैं.

जेंडर चेंज करने वाले माहिर डाक्टर बताते हैं कि जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का औपरेशन कराते हैं. इस बीमारी में लड़का, लड़की की तरह और लड़की, लड़के की तरह जीना चाहती है. एक का लड़के से लड़की बनना और दूसरे का लड़की से लड़का बनना जिसे मैडिकल टर्म में ‘जेंडर डिस्फोरिया’ या बौडी वर्सेस सोल कहते हैं. यानी शरीर और आत्मा की लड़ाई.

आसान नहीं होता जेंडर चेंज कराना

कई लड़के और लड़कियों में 12 से 16 साल के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने मातापिता को इन बदलावों के बारे में बताने से डरते हैं.

आज भी समाज में कई ऐसे लड़केलड़कियां हैं, जो इस समस्या के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इस बात को किसी से बताने से डरते हैं. लेकिन जो हिम्मत जुटा कर कदम उठाते हैं. वे जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराने का फैसला लेते हैं.

हालांकि जेंडर चेंज कराने वालों को समाज में एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है और उन से लोग कई तरह के सवालजवाब भी करते हैं.

सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी या फिर जेंडर चेंज सर्जरी कराना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है. इस का खर्च भी लाखों रुपए में है और इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है. यह सर्जरी हर जगह उपलब्ध भी नहीं है. कुछ मैट्रो सिटी के अस्पतालों में ही ऐसे सर्जन मौजद हैं, जो सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी को कर सकते हैं.

सैक्स चेंज कराने के इस औपरेशन के कई लेवल होते हैं. यह प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है. फीमेल से मेल बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. मेल से फीमेल बनने में 18 चरण होते हैं.

सर्जरी को करने से पहले डाक्टर यह भी देखते हैं कि लड़का और लड़की इस के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं. इस के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है. इस के साथ ही यह भी देखा जाता है कि शरीर में कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.

जेंडर चेंज कराने की प्रक्रिया में सब से पहले डाक्टर एक मानसिक टेस्ट करते हैं. मानसिक टेस्ट में फिट होने के बाद इलाज के लिए हारमोंस थेरेपी शुरू की जाती है. यानी जिस लड़के को लड़की वाले हारमोंस की जरूरत है, वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उस के शरीर में पहुंचाए जाते हैं.

इस इंजेक्शन के करीब 3 से 4 डोज देने के बाद बौडी में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं. फिर इस का प्रोसीजर शुरू किया जाता है.

दूसरे चरण में पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे की शेप को बदला जाता है. महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है.

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उस के शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं. इस में ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है. ब्रेस्ट के लिए अलग से 3 से 4 घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है. यह सर्जरी 4 से 5 महीने के गैप के बाद ही की जाती है.

जेंडर चेंड सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कई डाक्टर शामिल होते हैं. इस में मनोरोग विशेषज्ञ, सर्जन, गायनेकोलौजिस्ट और एक न्यूरो सर्जन भी मौजूद रहता है. डाक्टर बताते हैं कि यह सर्जरी 21 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही की जाती है. इस से कम उम्र में मातापिता की ओर से लिखित में सहमति लेने के बाद ही औपरेशन किया जाता है.

डाक्टर से होने वाली है शिवाय की शादी

जिस स्वाति के लिए घर वाले शादी के लिए लड़का देख रहे थे, जेंडर बदलने के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर शिवाय सूर्यवंशी अब एक डाक्टर से शादी करने जा रहा है. जेंडर चेंज करवाने के दौरान ही शिवाय की मुलाकात इंदौर की रहने वाली एक लड़की से हौस्पिटल में हुई थी, जो बीएएमएस का कोर्स कंपलीट कर चुकी है और उस का खुद का क्लीनिक भी है.

सर्जरी के दौरान शिवाय को अपनी मंगेतर से काफी सपोर्ट मिला था. दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से काफी खुश हैं. शिवाय की यह अरेंज कम लव मैरिज होगी. कुछ ही दिनों बाद शिवाय मंगेतर के साथ परिणय सूत्र में बंधने जा रहा है. शिवाय ने बाद में महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी से एमएससी (आईटी) पास करने के साथ सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का कोर्स किया  है. फिलहाल वह विदेशी कंपनियों के कुछ प्रोजैक्ट को फ्रीलांस के तौर पर कर रहा है. इस के अलावा शिवाय आलमाइटी सोल्यूशन सौफ्टवेयर कंपनी को भी अपनी सेवाएं दे रहा है.

शिवाय के पास हर दिन उन लोगों के फोन आते हैं, जो जेंडर चेंज तकनीक की जानकारी हासिल करना चाहते हैं. शिवाय ऐसे लोगों से खुशमिजाज हो कर बात करता है और लोगों की जेंडर सर्जरी संबधी जिज्ञासाओं का समाधान भी करता है.

यूट्यूब चैनल से दिया जा रहा है संदेश

एक छोटे से नगर में रह कर जेंडर चेंज कराने वाले शिवाय ने बताया कि उस के पास रोज ही ऐसे नौजवानों के फोन काल आते हैं, जो इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. शिवाय ऐसे युवाओं को फोन पर ही मार्गदर्शन करता है.

अपने चैनल के माध्यम से शिवाय जेंडर चेंज सर्जरी के साथ ही दस्तावेजों में नामपता बदलने की जानकारी भी विस्तार से देता है. उस के चैनल को बड़ी संख्या में युवा फालो भी कर रहे हैं.

शिवाय ने बताया कि इस तरह की समस्याओं से परेशान युवक युवतियां घुटघुट कर जीते हैं. घर वाले उन की फीलिंग्स को नहीं समझते और निराश हो कर युवक युवतियां आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं.

शिवाय का कहना है कि इस तरह की समस्या का सामना करने वाले नौजवान युवकयुवतियां डरने के बजाय अपना आत्मविश्वास जगाएं और बिना संकोच किए अपने घर वालों से बातचीत कर अपना जेंडर चेंज करा सकते हैं. आजकल तो सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ उठा कर भी जेंडर चेंज सर्जरी कराई जा सकती है.

—कथा शिवाय सूर्यवंशी से की गई लंबी बातचीत पर आधारित

आशू की अजीब दास्तान : दो बूंद प्यार की चाहत

आशू यानी आशीष कुमार जब सजधज कर निकलता है तो युवक ही नहीं, बड़ेबूढ़े भी उसे देखते रह जाते हैं. उस के रूप सौंदर्य पर लोग इस कदर मोहित हो जाते हैं कि उसे जीवनसाथी के रूप में पाने की कल्पना करने लगते हैं. यही नहीं, जब वह कातिल अदाओं के साथ स्टेज पर नृत्य करता है तो नवयुवकों के साथ बुड्ढे भी बहकने लगते हैं.

आशू के इन गुणों को देख कर लगता है कि वह कोई लड़की है. लेकिन ऊपर जो नाम लिखा है, उस से साफ पता चलता है कि वह लड़की नहीं, लड़का है. इलाहाबाद का बहुचर्चित डांसर एवं ब्यूटीशियन आशीष कुमार उर्फ आशू बेटे के रूप में पैदा हुआ था, इसीलिए घर वालों ने उस का नाम आशीष कुमार रखा था. बाद में सभी उसे प्यार से आशू कहने लगे थे. लेकिन लड़का होने के बावजूद उस का रूपसौंदर्य ही नहीं, उस में सारे के सारे गुण लड़कियों वाले हैं.

आशू का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के मोहल्ला जीटीबीनगर में रहने वाले विनोद कुमार शर्मा के घर हुआ था. पिता इलाहाबाद में ही व्यापार कर विभाग में बाबू थे. परिवार शिक्षित, संस्कारी और संपन्न था. 4 भाइयों और 2 बहनों में तीसरे नंबर का आशू पैदा भले ही बेटे के रूप में हुआ था, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस में लड़कियों वाले गुण उभरते गए. उस के हावभाव, रहनसहन एवं स्वभाव सब कुछ लड़कियों जैसा था. वह लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ खेलता, उन की जैसी बातें करता.

जब कभी उसे मौका मिलता, वह अपनी बहनो के कपड़े पहन कर लड़कियों की तरह मेकअप कर के आईने में स्वयं को निहारता.  मां और बहनों ने कभी उसे रोका तो नहीं, लेकिन उस के भविष्य को ले कर वे चिंतित जरूर थीं.

आशू जिन दिनों करेली के बाल भारती स्कूल में कक्षा 6 में पढ़ता था, स्कूल के वार्षिकोत्सव में पहली बार उसे नृत्य के लिए चुना गया. कार्यक्रम के दौरान जब आशू को लड़की के रूप में सजा कर स्टेज पर लाया गया तो लोग उसे देखते रह गए. लड़की के रूप में उस ने नृत्य किया तो उस का नृत्य देख कर लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

इस के बाद मोहल्ले में ही नहीं, शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आशू को नृत्य के लिए बुलाया जाने लगा. चूंकि उस समय आशू बच्चा था, इसलिए घर वाले उसे उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं करते थे. लेकिन आशू बड़ा हुआ तो लोग उस के हावभाव को ले कर उस के पिता और भाइयों के सामने अशोभनीय ताने मारने लगे, जिस से उन्हें ठेस लगने लगी.

आखिकार एक दिन आशू को ले कर घर में हंगामा खड़ा हो गया. पिता और भाइयों ने उस से साफ कह दिया कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे, कहीं किसी कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन आशू स्वयं को रोक नहीं पाया. मौका मिलते ही वह कार्यक्रमों में भाग लेने पहुंच जाता.

आशू की हरकतों से घर वाले स्वयं को बेइज्जत महसूस करते थे. लोग उसे ले कर तरहतरह की चर्चा करते थे. कोई उसे किन्नर कहता था तो कोई शारीरिक रूप से लड़की कहता. जब बात बरदाश्त से बाहर हो गई तो घर वालों ने कक्षा 8 के बाद उस की पढ़ाई छुड़ा दी.

अब तक आशू काफी समझदार हो चुका था. पढ़ाई छुड़ा दिए जाने के बाद वह घर में बैठबैठे बोर होने लगा. घर में सिर्फ मां और बहनें ही उस से बातें करती थीं, वही उस की पीड़ा को भी समझती थीं. क्योंकि वे स्त्री थीं. वे हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश करती थीं.

वक्त गुजरता रहा. पिता और भाई भले ही आशू के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे, लेकिन मां उस के भविष्य को ले कर चिंतित थी. उस ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए पति से गंभीरता से विचार किया. अंतत: काफी सोचविचार के बाद आशू की पसंद के अनुसार उसे नृत्य और ब्यूटीशियन का कोर्स कराने का फैसला लिया गया.

आशू को नृत्यं एवं ब्यूटीशियन की कोचिंग कराई गई. चूंकि उस में नृत्य एवं ब्यूटीशियन का काम करने की जिज्ञासा थी, इसलिए जल्दी ही वह इन दोनों कामों में निपुण हो गया. इस के बाद उस ने अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. इस काम में आशू ने पैसे के साथसाथ अच्छी शोहरत भी कमाई.

घर वाले आशू के इस काम से खुश तो नहीं थे, लेकिन विरोध भी नहीं करते थे. वह जब तक घर पर रहता, पिता और भाइयों से डराडरा रहता, क्योंकि वे उस के लड़की की तरह रहने से घृणा करते थे. आशू बड़ा हो गया. लेकिन खुशियां और आनंद उस के लिए सिर्फ देखने की चीजें थीं, क्योंकि वह घर में घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर था.

आशू चूंकि अपने गुजरबसर भर के लिए कमाने लगा था, इसलिए खुशियां और आनंद पाने के लिए वह अपना घर छोड़ने के बारे में सोचने लगा. क्योंकि वह पिता और भाइयों की उपेक्षा एवं घृणा से त्रस्त हो चुका था. मजबूर हो कर 7 साल पहले आशू ने दिल मजबूत कर के घर छोड़ दिया और कैंट मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर आजादी के साथ रहने लगा. आशू के लिए यह एक नया अनुभव था.

आजाद होने के बाद आशू में लड़की होने की कसक पैदा होने लगी. कहा जाता है कि मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है. आशू के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस की भी कमर लड़कियों की तरह पतली होने लगी और नीचे के हिस्से भरने लगे. उस का रूपसौंदर्य औरतों की तरह निखरने लगा. कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से औरत लगने लगा.

आशू को लड़कियों जैसा ऐसा रूप मिला था कि वह जब कभी स्टेज पर नृत्य करता लोग देखते रह जाते थे. आज स्थिति यह है कि वह इलाहाबाद शहर का मशहूर डांसर माना जाता है. इस समय वह अतरसुइया में रहता है. वह जो कमाता है, उस का अधिकांश हिस्सा समाजसेवा पर खर्च करता है. यही वजह है कि लोग उसे सम्मान की नजरों से देखते हैं.

आशू उपेक्षित एवं तिरस्कृत गरीब परिवार के लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में उन की आर्थिक मदद तो करता ही है, अपने ‘जया बच्चन नृत्य एवं संगीत स्कूल’ में नि:शुल्क नृत्य भी सिखाता है. उस के इस स्कूल में 25 लड़के एवं 20 लड़कियां नृत्य सीख रही हैं. इस के अलावा वह लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्यूटीशियन का कोर्स भी कराता है.

आशू को सब से बड़ा दुख इस बात का है कि परिवार में इतने लोगों के होते हुए भी वह अकेला है. जबकि दुखसुख बांटने के लिए एक साथी की जरूरत होती है. लेकिन उस की स्थिति ऐसी है कि वह किसी को अपना साथी नहीं बना सकता. औरत के लिए मर्द तो मर्द के लिए औरत के प्यार की जरूरत होती है, लेकिन आशू का तन मर्द का है तो मन औरत का. ऐसे में उसे न तो मर्द का प्यार मिल पा रहा है, न औरत का.