50 लाख के लिए दिनदाहड़े बड़े अफसर का अपहरण

50 लाख की फिरौती के लिए किडनैपर सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा को किडनैप कर
गुप्तस्थान पर ले जा रहे थे. फिरौती की रकम हासिल करने के बाद उन का मकसद वसावा की हत्या
करना था. क्या बदमाश अपनी योजना में सफल हो पाए?

पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा अपहरण की सूचना प्रसारित होते ही पूरे जिले के सभी थानों की पुलिस के साथ
पीसीआर वाले और लोकल क्राइम ब्रांच भी अलर्ट हो गई. घटना गुजरात की राजधानी गांधीनगर के थाना
चीलोड़ा के अंतर्गत घटी थी, इसलिए थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ तुरंत
घटनास्थल पर पहुंच गए. लेकिन उन के पहुंचने के पहले ही वहां एक पीसीआर वैन पहुंच चुकी थी.

अपहरण गियोड स्थित मंदिर के पास हुआ था. मंदिर के पास खड़े कुछ लोगों ने अपहरण होते हुए देखा
था, इस के साथ सामने से आ रही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी के 2 कर्मचारियों ने भी देखा था.
गुजरात के जिला पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा तबीयत खराब होने की वजह
से 3 दिनों से छुट्टी ले कर गांधीनगर स्थित अपने घर पर ही थे. 25 मई, 2024 की दोपहर को वह
हिम्मतनगर के किसी डाक्टर को दिखाने के लिए अपनी कार से घर से निकले.

 

वह गांधीनगर से थोड़ी दूर गियोड मंदिर के पास पहुंचे थे कि पीछे से आ रही एक सफेद और दूसरी
आसमानी रंग की कार ने उन्हें घेर कर रोक लिया. सफेद रंग की कार से 3 लोग उतरे और रमणलाल
वसावा को उन की कार से जबरदस्ती खींच कर उतारा और अपनी कार में बैठा कर ले गए.

वहां खड़े कुछ लोगों ने यह देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ तो गड़बड़ है. उन्होंने
तुरंत इस घटना की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

रमणलाल वसावा की कार घटनास्थल पर ही खड़ी थी. इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी ने जब उस कार की
तलाशी ली तो उस में से रमणलाल वसावा के नाम का आधार कार्ड तथा इलेक्शन कार्ड मिला.
बगल की सीट पर 2 फाइलें रखी थीं. ए.एस. अंसारी ने जब उन फाइलों को उठा कर देखा तो उन में वह सहायक उद्योग कमिश्नर, पालनपुर लिखा था. इस से पता चला कि जिन रमणलाल वसावा का अपहरण हुआ था, वह पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर थे. यानी वह क्लास वन अफसर थे. यह पता चलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.

इंसपेक्टर अंसारी ने तुरंत अपने परिचित पुलिस अधिकारियों को फोन कर के पूछा तो उन लोगों ने
बताया कि रमणलाल वसावा पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर हैं, जो इसी 30 जून को रिटायर होने
वाले हैं.

जब स्पष्ट हो गया कि जिस व्यक्ति का किडनैप हुआ है, वह पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर हैं
तो एसएचओ ने फोन द्वारा जिले के सभी पुलिस अधिकारियों को भी यह बात बता दी. अभी वह
घटनास्थल की ही जांच कर रहे थे कि एसपी और लोकल क्राइम ब्रांच की एक टीम इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के नेतृत्व में पहुंच गई.
इस के बाद इंसपेक्टर हार्दिक सिंह ने रमणलाल वसावा की कार के नंबर के आधार पर उन के घर का
पता मालूम किया और उन के घर वालों से संपर्क किया तो घर वालों ने बताया कि उन्हें लग रहा था कि
इधर 2 दिनों से कोई उन के घर की रेकी कर रहा था. इस के अलावा अलगअलग नंबरों से फोन कर के
रमणलाल वसावा को धमकी भी दी जा रही थी.

पुलिस को वे नंबर मिल गए थे, जिन नंबरों से रमणलाल वसावा को धमकी दी जा रही थी. धमकी देने
वाले उन से 50 लाख रुपए की रंगदारी मांग रहे थे. कुल 3 नंबरों से वसावा को धमकी दी गई थी.
पुलिस ने टेक्निकल सर्विलांस से उन तीनों नंबरों की लोकेशन पता कराई.

इन में से एक नंबर की लोकेशन प्रांतिज और वीसनगर की ओर जाती मिली. लेकिन प्रांतिज टोलनाका
की सीसीटीवी फुटेज चैक की गई तो उस में किडनैपर्स की कार दिखाई नहीं दी. इस से पुलिस को
समझते देर नहीं लगी कि किडनैपर मेनरोड से न जा कर बीच के रास्तों का उपयोग कर रहे हैं. पुलिस
को जो 3 नंबर मिले थे, उन तीनों नंबरों की अलगअलग लोकेशन आ रही थी.

एक की लोकेशन धोलेरा की आ रही थी तो दूसरे की लोकेशन गांधीनगर की थी, जबकि तीसरे की
लोकेशन वीसनगर माणसा रोड की थी. पुलिस को लगा कि आरोपी प्रांतिज तो नहीं गए होंगे. उन्होंने
जरूर बीच का रास्ता चुना होगा. इसलिए अन्य नंबरों को ट्रेस करने के बजाय पुलिस ने वीसनगर की
ओर जाने वाले नंबर पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया. क्योंकि इस नंबर की लोकेशन लगातार बदल रही
थी.

इस तरह से की पुलिस ने प्लानिंग अब तक पुलिस की कई टीमें बना कर रमणलाल वसावा की खोज में लगा दी गई थीं. इन टीमों को अलगअलग काम सौंप दिया गया था. पर किसी भी टीम की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

तभी क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के मन में आया कि वह पुलिस की सरकारी जीप का उपयोग करने के बजाय अगर अपनी कार से बदमाशों का पीछा करें तो ज्यादा ठीक रहेगा. इस की वजह यह थी कि पुलिस जीप देख कर आरोपी अलर्ट हो जाते. जबकि निजी कार से उन्हें पता न चलेगा कि
कार किस की है और उस में कौन बैठा है.

हार्दिक सिंह परमार ने एसआई आर.जी. देसाई और के.के. पाटडिया को अपनी कार में बैठाया और
बदमाशों की खोज में निकल पड़े. उन्हें पूरा विश्वास था कि जिस मोबाइल नंबर की लोकेशन वीसनगर
की ओर की मिली है, उसी नंबर वालों के साथ रमणलाल वासवा हैं. इसलिए उन्होंने क्राइम ब्रांच के
इंसपेक्टर डी.बी. वाला से हर 2 मिनट पर उस नंबर की लोकेशन भेजने के लिए कहा.

दूसरी ओर थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ कार में मिले आधार कार्ड और
इलेक्शन कार्ड में लिखे पते के आधार पर उन के घर पहुंचे तो वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने बताया कि
उन के पति अस्पताल जा रहे थे, तभी उन का अपहरण हुआ था. अन्य जानकारी ले कर एसएचओ
ए.एस. अंसारी उन्हें अपने साथ ले कर थाने आ गए थे.

जब रमीलाबेन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 30 जून को आर.के. वसावा रिटायर होने वाले
हैं. उन की तबीयत खराब थी, इसलिए वह चीलोड़ा हो कर दवा लेने जा रहे थे. उन के बेटे की अभी कुछ
दिनों पहले ही मौत हो गई थी. ससुर भी बीमार हैं. उन की दवा चल रही है. इसलिए वसावा काफी टेंशन
में थे.

कुछ दिनों से उन के पास अज्ञात लोगों के फोन आ रहे थे कि वे आर.के. वसावा से मिलना चाहते हैं. पर
वह उन से मिलने से मना कर रहे थे. क्योंकि वे उन्हें फोन कर के 50 लाख रुपए मांग रहे थे. एक तरह
से वे उन्हें ब्लैकमेल कर रहे थे. रिटायरमेंट के समय कोई इश्यू न खड़ा हो, इसलिए वसावा उन से 30
जून या पहली जुलाई को मिलने के लिए कह रहे थे. जबकि वे उन से तुरंत मिलने की जिद कर रहे थे.

किडनैप के एक दिन पहले 2 लोग उन के घर की रेकी कर रहे थे. उस समय रमीलाबेन घर में अकेली थीं. उन दोनों में से एक व्यक्ति ने उन से आर.के. वसावा के बारे में पूछा भी था. उन्होंने मना किया तो उन लोगों ने रमीलाबेन को धमकी दी थी कि देख लेना वे उन्हें सुबह थाने जाने के लिए मजबूर कर देंगे. वह उन की कार का फोटो लेने के लिए मोबाइल फोन लेने अंदर गईं, उसी बीच वे दोनों व्यक्ति वहां से भाग गए थे.

रमीलाबेन ने आगे बताया था कि किसी भीखाभाई भरवार का फोन अकसर उन के पति के पास आता
था. लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उन का किडनैप हो जाएगा.

एसपी ने पुलिस की अलगअलग टीमें बनाई थीं और थाना कलोल, माणसा, हिम्मतनगर और ऊझा पुलिस
से कह कर नाकाबंदी करवा दी थी. अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस को भी सूचना दे दी गई थी,
क्योंकि किडनैपर अहमदाबाद की ओर भी भाग सकते थे.

पुलिस चूहे बिल्ली का खेल और किडनैपरों में चला

इंसपेक्टर डी.डी. वाला किडनैपर्स का पीछा कर रहे इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार को पलपल की लोकेशन दे रहे थे. एसआई के.के. पाटडिया के हाथ में मोबाइल था. वह हार्दिक सिंह परमार को लगातार गाइड करते हुए यह भी बता रहे थे कि बदमाशों और उन के बीच कितना अंतर है. जबकि एसआई आर.जी. देसाई दाहिनी ओर से आने वाली गाडिय़ों पर नजर रख रहे थे.

लोकेशन ट्रैस करते करते एक समय ऐसा आ गया, जब बदमाशों की कार और हार्दिक सिंह परमार की टीम की कार के बीच मात्र 8 मिनट का अंतर रह गया. इस के बाद तो पुलिस की यह टीम एकदम से
सावधान हो गई.

इंसपेक्टर परमार ने एसआई देसाई से कहा, ''देसाई साहब, अब आप सामने से आने वाली हर कार पर नजर रखिएगा. इन में अगर कोई काले कांच वाली या फिर जिस तरह की कार के बारे में हमें बताया गया है, उस तरह की कार दिखाई दे तो तुरंत बताइएगा.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार अपनी कार खुद ही चला रहे थे. इस के अलावा इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी
को भी बदमाशों की वीसनगर, गोझारिया और माणसा जैसे स्थानों की जो लोकेशन मिल रही थी, उस की
जानकारी थाना चीलोड़ा, कलोल, माणसा पुलिस को देने के साथ क्राइम ब्रांच पुलिस को भी दी जा रही थी,
जिस से पुलिस की अलगअलग टीमों ने जगहजगह नाकाबंदी कर दी थी.

बदमाशों की कार और उस का पीछा कर रही इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की कार के बीच का अंतर
लगातार घटता जा रहा था. जिस की वजह से इंसपेक्टर परमार और उन के साथी पूरी तरह से सावधान
हो गए थे. इस का एक कारण यह भी था कि बदमाश सामने से आ रहे थे. 2 मिनट बाद उन की कार
की बगल से काले कांच वाली एक कार निकली.

इंसपेक्टर परमार को लगा कि शायद बदमाशों की कार यही है. क्योंकि लोकेशन के आधार पर बदमाशों
की कार उन की कार के एकदम नजदीक दिखाई दी थी. उन्होंने तुरंत यूटर्न लिया और उस काले कांच
वाली कार के पीछे अपनी कार लगा दी.

लगभग 15 मिनट तक उस कार का पीछा करते हुए इंसपेक्टर परमार ने उन की कार को ओवरटेक
किया. ओवरटेक करते हुए उन्होंने देखा कि कार के सभी शीशे बंद थे. कार भीखा भरवार (रघु देसाई उर्फ
रघु भरवार) चला रहा था. इंसपेक्टर परमार ने अपनी कार बदमाशों की कार के बगल लगाई तो बदमाशों
ने अपनी कार का शीशा थोड़ा खोल कर यह देखना चाहा कि इस कार में कौन हैं.

तभी इंसपेक्टर परमार की कार में बैठे एसआई के.के. पाटडिया ने कार का पूरा शीशा खोल कर बदमाशों
से कहा, ''हम पुलिस वाले हैं. तुम लोगों के लिए यही अच्छा होगा कि तुम लोग कार रोक दो.’’
बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस वाले उन के पीछे लगे हैं तो उन की जैसे जान निकल गई. वे
किसी भी तरह पुलिस के हाथ नहीं आना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कार की स्पीड लगभग 140
किलोमीटर प्रति घंटे की कर दी.

जैसे ही उस कार की रफ्तार एकदम से बढ़ी तो पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि इसी कार में
बदमाश हैं. फिर तो इंसपेक्टर परमार ने उस कार के पीछे अपनी कार लगा दी. बदमाश जिस तरह तेजी से कार चला रहे थे, उस से पुलिस समझ गई कि ये लोग कोई न कोई गलती जरूर करेंगे. आगे एक चौराहा था, जिस पर पुलिस ने नाकाबंदी कर रखी थी. बदमाशों और उस के पीछे लगी पुलिस की कार बहुत तेज गति में चल रही थीं.

आगे बदमाशों की कार थी. उन्होंने बैरिकेड्स उड़ा दिए. बैरिकेड्स के आसपास खड़े सिपाही अगर पीछे न
हटते तो वह कार उन के ऊपर चढ़ा देते.

निजी कार होने की वजह से नाकाबंदी पर खड़े पुलिस वालों को पता नहीं चला कि उस कार से पुलिस
वाले बदमाशों का पीछा कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने इंसपेक्टर परमार की कार रोकने की कोशिश की, पर
वह रुके नहीं. क्योंकि अगर वह कार रोक कर पुलिस वालों को अपना परिचय देने लगते तो तब तक
बदमाश बहुत दूर निकल जाते और उन की आंखों से ओझल हो जाते. इसलिए वह अपना परिचय देने के
बजाय बदमाशों का पीछा करते रहे.

पुलिस ने क्यों ठोंकी किडनैपर्स की कार

संयोग से थोड़ा आगे जाने पर माणसा रोड पर रेलवे फाटक बंद था. बदमाशों ने दूर से ही देख लिया कि
रेलवे फाटक बंद है, इसलिए उन्होंने अपनी कार की रफ्तार धीमी कर ली. क्योंकि वे आगे जा कर फाटक
पर फंस सकते थे. इसलिए वे यूटर्न ले कर पीछे लौटना चाहते थे. इंसपेक्टर परमार कट टू कट अपनी
कार चला रहे थे. आगे फाटक पर ट्रैफिक था. वह बदमाशों को घेरना चाहते थे, जिस से बदमाश पीछे की
ओर न भाग सकें.

फाटक से थोड़ा पहले एक खुली जगह से बदमाशों ने यूटर्न लिया. इंसपेक्टर परमार के पास कोई विकल्प
नहीं था. अगर बदमाश यूटर्न ले कर निकल जाते तो वे किस रास्ते से निकल जाते, पता करना मुश्किल हो जाता.
इसलिए इंसपेक्टर परमार ने तुरंत फैसला लिया. उन्होंने कार में बैठे अपनी साथियों से कहा, ''इन्हें रोकने
के लिए अपनी कार इन की कार से भिड़ानी पड़ेगी. इसलिए आप लोग अपनी सीट बेल्ट टाइट कर
लीजिए.’’

इतना कह कर इंसपेक्टर परमार ने जानबूझ कर अपनी कार से बदमाशों की कार में पीछे से जोर से
टक्कर मारी. इंसपेक्टर परमार की कार का अगला हिस्सा बदमाशों की कार के पिछले टायर से जा लगा,
जिस से बदमाशों की कार का पिछला टायर फट गया.

इंसपेक्टर परमार उन की कार को ठेलते हुए सड़क के किनारे तक ले गए. टायर फटने से इंसपेक्टर
परमार समझ गए कि अब बदमाश ज्यादा दूर नहीं भाग सकेंगे.

टक्कर मारने से इंसपेक्टर परमार की कार का भी अगला भाग टूट कर झूल गया था. फिर भी वह उन
का पीछा करते रहे. टायर फट जाने के बावजूद बदमाशों ने लगभग डेढ़ किलोमीटर तक कार भगाई. अंत
में उन्होंने एक जगह सड़क किनारे कार रोकी और उस में से 3 लोग उतर कर भागे. निश्चित था कि वे
आरोपी थे.

इसलिए इंसपेक्टर परमार ने भी अपनी कार रोकी और एक एसआई को कार की तलाशी लेने और पीडि़त
आर.के. वसावा को संभालने के लिए कह कर वह एक आरोपी के पीछे दौड़े. दूसरे आरोपी के पीछे दूसरे
एसआई को लगा दिया था. चौथा कोई नहीं था, इसलिए एक आरोपी भाग निकला.

करीब सौ मीटर दौड़ा कर पुलिस ने एक किडनैपर को पकड़ लिया, दूसरा किडनैपर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जा कर पकड़ा गया. तीसरे आरोपी का पीछा करने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह खेतों के बीच से होता हुआ भाग गया.

जिस समय बदमाश पकड़े गए थे, उस समय शाम के 5 बज रहे थे. जबकि बदमाशों ने आर.के. वसावा
को धमकी दी थी कि अगर 5, साढ़े 5 बजे तक उन्हें 50 लाख रुपए नहीं मिले तो वे कच्छ के रण में ले
जा कर उन की हत्या कर देंगे. उन्होंने आर.के. वसावा के साथ मारपीट भी की थी, लेकिन उन्हें कोई
गंभीर चोट नहीं पहुंचाई थी.

पुलिस ने जब उन्हें किडनैपर्स से मुक्त कराया था तो वह काफी नर्वस थे. वह कार के बगल खड़े थे. जब
पुलिस ने उन से पूछा कि अपहरण किस का हुआ है तो वह धीरे से बोले, ''साहब, मेरा हुआ है.’’

पुलिस के हत्थे ऐसे चढ़े किडनैपर्स

इस के बाद इंसपेक्टर परमार ने आर.के. वसावा को अपनी बगल वाली यानी ड्राइवर की बगल वाली सीट
पर बैठा कर कहा, ''अब आप रिलैक्स हो जाइए, शांति रखिए, अब आप को कुछ नहीं होगा. पुलिस आ गई है.’’

फिर बदमाशों की कार को वहीं छोड़ कर इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की टीम आर.के. वसावा और
पकड़े गए दोनों बदमाशों को ले कर थाना चीलोडा पहुंची. आरोपियों की कार से कोई हथियार नहीं मिला
था. पुलिस के पास हथियार थे, लेकिन उन्हें चलाने की जरूरत नहीं पड़ी थी.

थाने में बैठी आर.के. वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने जब पति को पुलिस की कार से उतरते देखा तो वह
जोरजोर से रोने लगीं. कुछ समय पहले ही उन के जवान बेटे की मौत हुई थी. उस दिन पति मौत के
मुंह से निकल कर लौटे थे, इसलिए वह अपने दिल के दर्द को आंसुओं में बहा देना चाहती थीं.

आर.के. वसावा ने पत्नी को सीने से लगा कर कहा, ''पुलिस वालों का आभार मानो कि तुम्हारा सुहाग जिंदा वापस आ गया वरना बदमाश हमें जिंदा नहीं छोडऩे वाले थे. पैसा पाने के बाद भी वे मुझे मार
देते.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार ने पकड़े गए दोनों बदमाशों को थाना चीलोड़ा पुलिस के हवाले कर दिया
था. पकड़े गए दोनों आरोपियों के नाम भीखा भरवार और रोहित ठाकोर थे.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि यह पूरी योजना भावनगर के बुधा भरवार की बनाई थी. योजना बना
कर आर.के. वसावा से 50 लाख रुपए वसूलने की जिम्मेदारी बुधा भरवार ने भीखा भरवार को सौंपी थी.

उस ने भीखा से कहा था कि उस ने बहुत पैसा कमाया है. इसलिए उस से कम से कम 50 लाख रुपए
लेने हैं. रुपए मिलने पर आपस में बांट लिए जाएंगे.

50 लाख लेने के बाद थी मारने की योजना
पकड़े गए आरोपियों में भीखा भरवार गुजरात की राजधानी गांधीनगर के गोकुलपुरा का रहने वाला था.
वह जमीन खरीदने और बेचने का काम करता था. वही सहायक उद्योग कमिश्नर आर.के. वसावा को
फोन कर के धमकी देता था और रुपए मांगता था.

भीखा के साथ पकड़ा गया रोहित ठाकोर चाय की दुकान चलाता था. इस के पहले भी पुलिस ने उसे लोहे
की चोरी में जेल भेजा था. उस से कहा गया था कि उसे एक साहब के पास जा कर बात करनी है और
उन्हें अपने साथ ले जाना है. किडनैपरों में शामिल रायमल ठाकोर मजदूरी करता था. वही पुलिस के
चंगुल से बच निकला था. इस के अलावा इन के साथ नवघण भरवार, बुधा भरवार, निमेश परमार और
एक अन्य आरोपी हितेश था.

किडनैप के इस मामले में भावनगर का बुधा भरवार मुख्य आरोपी था. जबकि आर.के. वसावा के किडनैप
की योजना भीखा भरवार की थी, जिस के लिए उस ने अपने गैंग में 5 लोगों को शामिल किया था.
भीखा भरवार के नेतृत्व में सभी रोहित ठाकोर की चाय की दुकान पर इकट्ठा होते थे और वहीं योजना
बनती थी कि कैसे रेकी करना है, किस तरह किडनैप कर के रुपए वसूलना है.

 

आर.के. वसावा को डराने के लिए भीखा भरवार फोन कर के कहता था कि उन की एक फाइल उस के
पास है. वह रिटायर होने वाले हैं. अगर उन की फाइल खुल गई तो वह फंस जाएंगे, जिस से उन्हें सरकार
की ओर से मिलने वाला पैसा भी फंस जाएगा और उन की पेंशन भी रुक सकती है. जबकि पुलिस को
किडनैपरों के पास से ऐसी कोई फाइल नहीं मिली थी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया था, जहां से उन्हें 8 दिनों के पुलिस
रिमांड पर भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने इन्हीं दोनों आरोपियों की मदद से एकएक कर के अन्य
सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.
किसी को पुलिस ने फोन सर्विलांस की मदद से पकड़ा था तो किसी को मुखबिरों की मदद से. बहरहाल,
आर.के. वसावा को ब्लैकमेल करने और उन का किडनैप कर रंगदारी मांगने वाले सभी आरोपी जेल पहुंच
गए थे.

एक गलती ने फर्जी IAS पूजा खेड़कर को कहीं का न छोड़ा

महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर का फरजीवाड़ा उजागर होने के बाद इन दिनों पूरे देश में संघ
लोक सेवा आयोग (यूपीएसपी) में चयन को ले कर भी बहस छिड़ी हुई है. यूपीएसपी और डिपार्टमेंट औफ
पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) से ले कर कई सरकारें अपने स्तर पर विकलांगता कोटे से आईएएस बने
अधिकारियों की जांच करने में जुट गई हैं. गुजरात में 4 आईएएस के खिलाफ जांच शुरू हो गई है.

ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर के फरजीवाड़े का कभी पता ही नहीं चलता, अगर वह लाइमलाइट से दूर रहती और उस के चर्चे सोशल मीडिया पर वायरल नहीं होते. दरअसल, पूजा खेडकर का मामला तब सुर्खियों में आया, जब सोशल मीडिया पर सब से पहले महाराष्ट्र के बीड जिले में रहने वाले वैभव कोकट ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट लिखी.

वैभव को सामाजिक और राजनीतिक मुद्ïदों पर लिखना अच्छा लगता है. खुद को नास्तिक कहने वाले
वैभव पूर्व में एक जनसंपर्क कंपनी में भी काम कर चुके हैं. एक्स पर उन के 31 हजार से ज्यादा फालोअर्स हैं.

वैभव ने 6 जुलाई को 'एक्स’ पर एक फोटो के साथ पूजा खेडकर के बारे में जानकारी पोस्ट की थी.
वैभव कोकट ने अपनी पहली एक्स पोस्ट में लिखा था कि प्रोबेशनरी आईएएस औडी कारों का उपयोग
कर रहे हैं. नियम कहता है कि निजी वाहन पर 'महाराष्ट्र सरकार’ का साइनबोर्ड लगाना अनुचित है.

लेकिन पुणे कलेक्टरेट में प्रोबेशन पर चल रही 2022 बैच की आईएएस डा. पूजा खेडकर ने महाराष्ट्र
सरकार की वीआईपी नंबर वाली निजी औडी कार ली.

इस के अलावा इस प्राइवेट कार में नीली बत्ती भी लगी हुई थी. पुणे कलेक्टर औफिस में हमेशा इस बात
की चर्चा होती रहती है कि आखिर ये बड़ा अधिकारी कौन है, जो औडी कंपनी की लोगो और लैंप वाली
लग्जरी कार ले कर औफिस आता है.

खास बात यह है कि ये औफिसर मैडम दिन में भी अपनी कार की लाइटें जलाए रखती हैं. इन अधिकारी मैडम के कारनामे सिर्फ कार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि जब वरिष्ठ अधिकारी सुहास दिवासे सरकारी काम के लिए मुंबई मंत्रालय गए तो इस अधिकारी महोदया ने उन के औफिस पर कब्जा कर लिया और वरिष्ठों के औफिस का सामान बाहर निकलवा दिया. वहां अपना औफिस बनाया और अपने नाम का एक बोर्ड भी लगाया.

मैडम को रुतबा दिखाना क्यों पड़ा भारी वैभव ने अपनी पहली पोस्ट में आगे लिखा था कि पुणे के कलेक्टर सुहास दिवासे ने इस व्यवहार को लेकर अपर मुख्य सचिव मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजी है और इस रिपोर्ट में कलेक्टर ने अधिकारी मैडम की जिद का जिक्र किया है कि मेरा कार्यालय कलेक्टर के कार्यालय के बगल में होना चाहिए और मुझेएक कांस्टेबल चाहिए और मुझे सरकारी कार चाहिए.

अधिकारी मैडम के पिता भी कलेक्टर कार्यालय आते हैं और वहां के कर्मचारियों व अधिकारियों से कहते
हैं कि तुम सब मेरी बेटी को परेशान कर रहे हो, तुम्हें जीवन भर ऐसा पद कभी नहीं मिलेगा. धमकी भी
देते हैं कि अगर तुम मेरी बेटी को परेशान करोगे तो भविष्य में तुम्हें भी भुगतना पड़ेगा.

यहां तक कि अधिकारी महोदया को भी वह कार्यालय पसंद नहीं आया, जिस की मरम्मत अत्यधिक
आग्रह से की गई थी. जबकि ट्रेनिंग पर रहने वाले अधिकारियों को कार, सुरक्षा या कार्यालय आदि
सुविधाएं उपलब्ध कराने का कोई सरकारी प्रावधान नहीं है.

 

वैभव कोकट ने पत्र में आगे लिखा था कि जिलाधिकारी सुहास दिवासे ने पूजा खेडकर के जिद्दी व
अवांछित व्यवहार को देख कर उन से पदभार ने उन्हें अपर जिलाधिकारी वापस लेने का संकेत दिया था.
जिस पर पूजा खेडकर ने उन्हें वाट्सऐप मैसेज भेज कर कहा कि ये मेरा अपमान है.

प्रोबेशन पर चल रही पूजा खेडकर का आचरण एक प्रशासनिक अधिकारी के अनुरूप था ही नहीं. जिला
कलेक्टर ने मंत्रालय के सचिव को भेजी अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि जिले में सरकारी कामकाज
को सुचारु रूप से चलाने के लिए और सघन प्रशिक्षण के लिए पूजा खेडकर का जिला बदला जाना
चाहिए. रिपोर्ट में पुणे कलेक्टर ने जो लिखा था, वैभव कोकट ने उस का जिक्र करते हुए ही लिखा था.

वैभव कोकट की यह पोस्ट देखते ही देखते वायरल हो गई. मीडिया ने भी इस पोस्ट का संज्ञान लिया.
समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित होने लगी. टीवी चैनलों में डिबेट होने लगी. वैभव के पास सामाजिक
कार्यकर्ताओं और आरटीआई कार्यकर्ताओं के फोन आने लगे. वैभव को पूजा खेडकर के बारे में बहुत सारी
जानकारी मिलने लगी और गड़े मुरदे उखडऩे लगे.

मामले के तूल पकड़ते ही महाराष्ट्र सरकार ने पूजा खेडकर के खिलाफ जांच शुरू करा दी. जांच शुरू हुई
तो पूजा खेडकर के आईएएस बनने के लिए किए गए फरजीवाड़े भी सामने आने लगे. ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर प्रकरण ने देश की प्रशासनिक सेवा की कई संस्थाओं के कारनामों को एक साथ उजागर कर दिया है. लालबहादुर शास्त्री अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही पूजा खेडकर की यह ट्रेनिंग अगले साल जुलाई में पूरी होनी थी.

इस दौरान उसे फील्ड ट्रेनिंग के लिए असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में पुणे भेजा गया. वहां जाते ही उस ने
सभी नियमकायदे और नैतिकता को ताक पर रख ऐसेऐसे काम किए, जो देश की पूरी प्रशासनिक सेवा के
लिए कलंक कहे जा सकते हैं.

उस ने वहां जाते ही नीली बत्ती लगी सरकारी गाड़ी, एक अलग औफिस, घर और चपरासी इत्यादि की मांग
की. यहां तक कि अपनी निजी औडी गाड़ी पर खुद ही अवैध रूप से नीली बत्ती भी लगवा ली, जबकि उस
गाड़ी के खिलाफ यातायात नियमों के उल्लंघन के दरजन भर मामले दर्ज हैं और जुरमाना तक बकाया है.

आईएएस अधिकारी बनने के बाद उस पर ऐसा नशा छाया कि पुणे में तैनात एक अन्य अफसर के
कार्यालय से जबरन उन का नाम हटा कर अपनी नेम प्लेट लगा दी. बहरहाल, पूजा खेडकर का मामला सामने आने के बाद संघ लोक सेवा आयोग की तरफ से एक कमेटी का गठन कर जांच शुरू हुई तो एक के बाद एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई, जिस से एक आईएएसकी कलंक कथा कहें तो गलत नहीं होगा.

सब से पहले पूजा खेडकर के बारे में जान लेना जरूरी होगा. पूजा खेडकर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले
की पाथर्डी तहसील के नौकरशाहों और राजनेताओं के परिवार से है. पूजा खेडकर ने पुणे में स्थित श्रीमती
काशीबाई नवले मैडिकल कालेज से एमबीबीएस किया है.

कई मीडिया रिपोट्र्स में उसे एंडोक्रिनोलौजिस्ट बताया जा रहा है. पूजा के पिता दिलीपराव खेडकर
महाराष्ट्र पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रिटायर्ड अधिकारी हैं. उस के नाना जगन्नाथ बुधवंत वंजारी समुदाय के
पहले आईएएस अफसर थे. पूजा की मां मनोरमा भलगांव की सरपंच है. एक गलती ने पूजा को कहीं का न छोड़ा अब बात करते हैं पूजा के फरजीवाड़े की. एक पुरानी कहावत के बारे में सुना ही होगा कि मुजरिम
कितना भी शातिर क्यों न हो, एक गलती जरूर करता है. उसी एक गलती की वजह से उस का सारा भांडा फूट जाता है.

पूजा खेडकर ने भी ऐसी ही एक गलती की थी, जो चंद रोज पहले तक आईएएस की ट्रेनिंग कर रही थी. उस का हर तरफ जलवा ही जलवा था. आईएएस मैडम की शान में पीछे खड़े पुलिस वाले, नीली बत्ती वाली कार और नंबर प्लेट के ऊपर लिखा महाराष्ट्र सरकार, उस का भौकाल देख कर आम लोग सहम जाते थे.

लेकिन उसे सरकारी नीली बत्ती वाली गाड़ी का इस कदर शौक था कि उसे पाने के लिए कुछ दिनों का इंतजार नहीं कर सकी और यही उस पर भारी पड़ गया.

बस इसी नीली बत्ती ने उस की बत्ती ऐसी गुल कर दी कि आईएएस मैडम साहिबा को अब जेल जाने से
कोई रोक ही नहीं सकता. यूपीएससी की जांच में पता चला है कि पूजा ने परीक्षा में चयन के लिए नियमों के तहत मान्य अधिकतम सीमा से भी अधिक बार परीक्षा दी और उस का लाभ उठाया है.

यूपीएससी जांच से यह भी पता चला है कि पूजा खेडकर ने अपना नाम, अपने पिता और माता का नाम,
अपनी फोटो, हस्ताक्षर, अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता बदल कर अपनी फरजी पहचान बना कर निर्धारित सीमा से अधिक प्रयास कर धोखाधड़ी की.

यूपीएससी ने उस के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का फैसला किया है. इस के तहत थाने में
एफआईआर कराई गई है. सिविल सेवा परीक्षा 2022 के नियमों के तहत उस की उम्मीदवारी रद्ïद करने
और भविष्य की परीक्षाओं में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कारण बताओ नोटिस भी जारी
किया गया है.

यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) की इस जांच से साफ हो गया है कि आईएएस बनने के
लिए पूजा खेडकर ने तमाम तरह की धोखाधड़ी की है. दरअसल, यूपीएससी के एग्जाम में बैठने के लिए
अलगअलग कैटेगरी के तहत उम्मीदवारों को अलगअलग मौके मिलते हैं.

मसलन, जनरल कैटेगरी का कोई भी उम्मीदवार 32 साल की उम्र से पहले तक कुल 6 बार यूपीएससी का
एग्जाम दे सकता है. ओबीसी कैटेगरी के तहत 35 साल की उम्र तक कुल 9 बार इम्तिहान देने की छूट
है. जबकि एससी और एसटी कोटा के तहत 37 साल की उम्र तक यूपीएससी के इम्तिहान में बैठा जा
सकता है.

पूजा खेडकर ने एग्जाम क्लीयर करने के लिए तय सीमा से ज्यादा बार इम्तिहान दिया है. इस के लिए
हर बार उस ने नए नाम और नई पहचान का सहारा लिया. यहां तक कि एग्जाम में बैठने के लिए अपने
मांबाप का नाम तक बदल डाला. लेकिन ये धोखाधड़ी तो कुछ भी नहीं है. असली फरजीवाड़ा तो कुछ
और ही है.

दरअसल, पूजा ने साल 2022 में यूपीएससी का एग्जाम क्लीयर किया था. आल इंडिया रैंक था- 841. चूंकि
वो इम्तिहान में ओबीसी नौन क्रीमीलेयर के कोटे से बैठी थी और साथ ही दिव्यांगता के कोटे से आई थी,
लिहाजा 841 रैंक के बावजूद उसे आईएएस की कैटेगरी में रखा गया था.

इस के बाद में ट्रेनिंग के लिए सभी कामयाब छात्रों के साथ पूजा खेडकर भी मसूरी के लाल बहादुर
शास्त्री प्रशासन अकादमी पहुंची. 2 साल की ट्रेनिंग में अब कुछ महीने ही बचे थे. इसी बीच उसे ट्रेनी
आईएएस अफसर के तौर पर असिस्टेंट कलेक्टर बना कर पुणे कलेक्टरेट औफिस में तैनाती दे दी गई.
बस यहीं से असली कहानी शुरू हुई.

हुआ यूं कि पुणे के कलेक्टर के औफिस में तैनाती का लेटर मिलते ही पूजा ने कलेक्टर के औफिस
इंचार्ज को पहले फोन किया और फिर वाट्सऐप मैसेज. उस ने कहा कि वो वहां चार्ज लेने आ रही है,
इसलिए उस के लिए सभी जरूरी व्यवस्थाएं कर दी जाएं.

मसलन, नीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी, बंगला, सुरक्षा के लिए कांस्टेबल और बाकी सरकारी इंतजाम कर
दिया जाए. लेकिन मैडम के कहने पर भी कुछ हुआ नहीं. लिहाजा तय तारीख पर मैडम कलेक्टर औफिस
पहुंची.

शायद उसे पता था कि उस दिन कलेक्टर सुहास दिवासे शहर में नहीं हैं. कलेक्टर औफिस पहुंचते ही उस
ने उन के कमरे पर कब्जा कर लिया. उन की नेमप्लेट हटा कर अपनी नेमप्लेट लगवा ली. कुरसी सोफा
फरनीचर सब बाहर कर दिया. लेटरहेड से ले कर विजिटिंग कार्ड तक छप चुके थे. मैडम पहुंची भी पूरी
टशन में थी. नीली बत्ती वाली औडी कार से.

इस तरह कानून के शिकंजे में फंसता गया पूरा परिवार उस कार के पीछे बाकायदा महाराष्ट्र सरकार भी लिखवा रखा था. अब यहां तक तो ठीक था. लेकिन अब अगले दिन जैसे ही कलेक्टर साहब दफ्तर पहुंचे, अपने ही कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए.

पता किया तो मैडम के बारे में पता चला. वो इस बात पर हैरान थे कि एक ट्रेनी आईएएस अफसर सीधे
कलेक्टर का चार्ज कैसे ले सकती हैï?

बात और शिकायत मुंबई में बैठे चीफ सेक्रेटरी साहब तक पहुंची. जांच हुई तो पता चला कि शिकायत
सही है. आननफानन में मुंबई से नया आदेश निकला और मैडम को पुणे से वाशिम ट्रांसफर कर दिया
गया. यहां मामला अब भी दब गया होता.

लेकिन अब मैडम के साथ जो कुछ कलेक्टर औफिस में हुआ था, वो जानकारी घर तक पहुंच गई. मैडम
की मम्मी मनोरमा को भी गुस्सा आ गया. कुछ लोकल अखबारों में बेटी की फोटो और खबर भी छप
चुकी थी. मैडम की मम्मी अब मीडिया को ही धमकाने लगी.

अब मीडिया भी कहां उस के रुआब में आने वाली थी. मीडिया वालों ने खोद कर मैडम की मम्मी
मनोरमा का चंबल की रानी वाला वो फोटो और वीडियो ढूंढ निकाला, जिस में वो हाथ में पिस्टल लहराते
किसी को धमका रही थी. ये मामला और तूल पकड़ गया. अब मम्मी के बाद बचे पापा तो पता चला कि
बेटी की तरह पापा दिलीप खेडकर भी कभी आईएएस अफसर थे.

नौकरी से रिटायर होतेहोते दिलीप खेडकर 40 करोड़ से ज्यादा की संपति के मालिक बन बैठे. इतना पैसा
आया था तो सोचा कि सत्ता का सुख भी भोग लूं. इसलिए अभी इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भी कूद पड़े. चुनाव तो हार गए, पर चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को सौंपी संपत्ति का ब्यौरा अब खुद उन
के साथसाथ उन की आईएएस बेटी के गले पड़ गया.

चूंकि संपत्ति के ब्यौरे में अपने अलावा उन्होंने पत्नी और बेटी की भी जानकारी दी थी तो पता चला कि
पूरा परिवार आधा अरबपति है. जिस बेटी ने ओबीसी नौन क्रीमी लेयर के कोटे से यूपीएससी का
इम्तिहान पास किया, उस के नाम 17 से 20 करोड़ की संपत्ति है.

इस संपत्ति से लाखों रुपए किराया भी आता है. अब यूपीएससी के इम्तिहान में बैठने वाले नौन क्रीमी
लेयर के छात्रों का पैमाना यह है कि उन की आमदनी सालाना 8 लाख से कम होनी चाहिए तो नीली
बत्ती की छटपटाहट में करोड़ों की संपत्ति सामने आ गई.

सवाल उठने लगे कि गरीबी का ये कौन सा कोटा है, जो करोड़पतियों के हिस्से आता है. अब बात निकल
चुकी थी तो दूर तक जानी ही थी. अब मीडिया और मीडिया के कैमरे पूजा के खानदान की तरफ घूम
चुके थे. जांच शुरू हुई तो पता चला कि पूजा की मां का भी विवादों से पुराना नाता है.

इसी बीच उस का पिस्टल लहराता एक वीडियो वायरल हो गया. जांच करने पर पता चला कि ये वीडियो
2023 का था. मनोरमा के पति दिलीप राव खेडकर ने 25 एकड़ की एक जमीन पूणे के मुल्शी तहसील में
ली थी. उसी पर कब्जे के दौरान खेडकर परिवार ने आसपास की जमीन को हड़पने की कोशिश की थी.

किसानों ने जब इस का विरोध किया तो मनोरमा खेडकर ने अपने बाउंसर्स के साथ पिस्टल लहराते हुए
किसानों को धमकाया था. पुणे पुलिस ने इसी वीडियो के आधार पर मनोरमा खेडकर के खिलाफ मुकदमा
दर्ज कर लिया. बेटी के विवाद में फंसने और अपना पुराना वीडियो वायरल होने के बाद मनोरमा खेडक को अपने ऊपर गाज गिरने की आशंका हो गई थी,

लिहाजा वह फरार हो गई. लेकिन पुलिस तो पुलिस ठहरी. ढूंढ और सूंघ कर निकाल ही लिया. अब मां गिरफ्तार है और जेल में है.बीवी और बेटी की हरकतों से बाप को अंदाजा हो चुका था कि देरसवेर मेरा भी नंबर आएगा. लिहाजा गिरफ्तारी से बचने के लिए वो अदालत पहुंच गए.

अंतरिम जमानत मांगने के लिए. बेटी की वजह से बाप की जायदाद जब जमाने के सामने आई तो
अहसास हो चुका था कि नौकरी से इतनी कमाई और इतनी संपत्ति तो ईमानदारी से कमाई ही नहीं जा
सकती. लिहाजा अब उन की भी फाइल खुल चुकी थी. आईएएस रहते हुए उन्होंने कितनी रिश्वत खाई,
अब उस की जांच हो रही है.

दिव्यांग कोटे का कैसे लिया फायदा ये तो रही मांबाप की कहानी, अब जरा आईएएस मैडम की सुन लीजिए. नाम, पता, जाति, मांबाप, फोन नंबर, ईमेल आईडी, इन सब का फरजीवाड़ा छोडि़ए, मैडम के ऊपर जिस सब से बड़े फरजीवाड़े का आरोप है, वो है खुद को दिव्यांग बताने का.

दरअसल, यूपीएससी एग्जाम में बैठने के दौरान पूजा खेडकर ने खुद के दिव्यांग होने का एक सर्टिफिकेट
दिया था. इस मैडिकल सर्टिफिकेट के मुताबिक उसे मानसिक दिक्कत है और नजरें कमजोर. रोशनी जा
रही है. मानसिक दिक्कत के बारे में उस ने बताया कि उसे चीजें याद नहीं रहतीं. यूपीएससी में ऐसे छात्रों
के लिए बाकायदा दिव्यांग कोटा होता है.

यहां तो मैडम पूजा के पास कोटा के 2-2 हथियार थे. एक ओबीसी नौन क्रीमी लेयर का हथियार और दूसरा दिव्यांगता का. इन दोनों हथियारों के बलबूते पर उस ने यूपीएससी का एग्जाम क्लीयर किया और 2022 में आल इंडिया रैंक 841 के साथ आईएएस बन गई.

हालांकि लिखित परीक्षा और इंटरव्यू को मिला कर पूजा के जो कुल नंबर आए थे, अगर वही नंबर किसी
जनरल कैटेगरी के स्टूडेंट के आते तो सवाल ही नहीं था कि वो आईएएस बन पाता. आईएएस बनते ही
मैडम अब मसूरी पहुंच गई. ट्रेनिंग शुरू हो गई, लेकिन यूपीएससी के भी अपने कुछ कायदेकानून हैं.

यूपीएससी चाहता था कि पोस्टिंग से पहले पूजा दिव्यांगता की अपनी सारी रिपोर्ट सौंप दे. इस के लिए
यूपीएससी ने बाकायदा एम्स में उस की जांच कराने का फैसला किया. ये रुटीन जांच थी. यूपीएससी सिर्फ सरकारी अस्पतालों की रिपोर्ट को ही मानता है. इस रिपोर्ट के जरिए इस बात की तस्दीक करना चाहता था कि पूजा को सचमुच मानसिक बीमारी है और उस की नजरें कमजोर हैं.

पूजा के मैडिकल टेस्ट के लिए यूपीएससी ने कुल 6 बार एम्स में डाक्टरों से अपौइंटमेंट लिया. लेकिन वो
हर बार बहाना बना कर टेस्ट से बचती रही. पहली बार 22 अप्रैल, 2022 को उसे टेस्ट के लिए कहा गया.
पूजा खेडकर ने कोरोना का बहाना बना कर जाने से इनकार कर दिया.

इस के बाद 26 मई, 2022 को दूसरी बार एम्स जाने को कहा गया. वो तब भी नहीं गई. फिर पहली जुलाई, 2022, 26 अगस्त 2022, 2 सितंबर 2022 और 25 नवंबर, 2022 को भी टेस्ट के लिए एम्स जाने को कहा गया.

इस दौरान उस का एमआरआई भी किया जाना था, ताकि ये पता किया जा सके कि उस की रोशनी जाने
की वजह क्या है. लेकिन वो बारबार यूपीएससी के कहने के बावजूद टेस्ट के लिए नहीं गई. कुछ वक्त
बाद उस ने एक प्राइवेट अस्पताल का मैडिकल सर्टिफिकेट यूपीएससी को सौंप दिया. यूपीएससी ने वह
सर्टिफिकेट मानने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद यूपीएससी ने पूजा का मामला कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के पास भेज दिया.
कैट ने भी पूजा की दिव्यांगता को ले कर प्राइवेट हौस्पिटल के मैडिकल सर्टिफिकेट को मानने से इनकार
कर दिया. कायदे से इस के बाद पूजा की कहीं तैनाती नहीं होनी चाहिए थी.

लेकिन हैरतअंगेज तौर पर इसी साल जून में उस को महाराष्ट्र कैडर देते हुए पुणे में ट्रेनी आईएएस अफसर के तौर पर असिस्टेंट कलेक्टर बना कर भेज दिया गया.उस की इस तैनाती का फरमान डीओपीटी यानी डिपार्टमेंट औफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग की तरफ से जारी किया गया था. डीओपीटी सीधे प्रधानमंत्री के अधीन आता है.

अब सवाल यह है कि जब पूजा खेडकर ने दिव्यांगता का सबूत यूपीएससी के सामने रखा ही नहीं.
यूपीएससी के बारबार कहने पर मैडिकल टेस्ट कराया ही नहीं, जिस के रिपोर्ट को मानने से कैट तक ने
इनकार कर दिया. उस पूजा को पोस्टिंग कैसे दे दी गई?

जानकारों की मानें तो यहां गलती यूपीएससी से नहीं, बल्कि डीओपीटी से हुई है. क्या डीओपीटी में पूजा
या उस के परिवार का कोई जानकार बैठा है? इस की जांच भी होनी चाहिए. वैसे जांच की शुरुआत हो
चुकी है. यूपीएससी के हुक्म पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पूजा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता
और आईटी ऐक्ट की धारा 318 (4), धारा 336 (3) और धारा 340 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज की.

बता दें कि ये सभी धाराएं धोखाधड़ी, फरजी डाक्यूमेंट्स के जरिए जालसाजी और जाली डाक्यूमेंट्स का
वास्तविक तौर पर इस्तेमाल करने से जुड़ी हैं. अगर पूजा खेडकर विभागीय जांच में दोषी पाई जाती है
तो उस पर कानूनी काररवाई की जाएगी. उस के खिलाफ एक चार्जशीट बन सकती है, जो चीफ सेक्रेटरी
को सौंपी जाएगी. उस के खिलाफ यूपीएससी की एफआईआर में उस के नाम को ले कर भी जिक्र किया
गया है.

यूपीएससी की तरफ से पूजा खेडकर का असली नाम मिस पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर बताया गया है.
यूपीएससी ने इसी नाम से पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई है. इस के अलावा यूपीएससी के नोटिस
में पूजा खेडकर की प्राइवेट औडी कार का भी जिक्र किया गया है. बता दें कि दस्तावेजों में पूजा खेडकर
ने पहले अपने नाम के आगे डाक्टर लिखा था, जिसे बाद में हटा दिया था.

पुलिस ने जिन धाराओं के तहत केस दर्ज किया है, उन के तहत गिरफ्तारी तय है. यूपीएससी ने भी साफ
कर दिया है कि उस ने धोखाधड़ी और फरजीवाड़ा किया है. इसीलिए उसे कारण बताओ नोटिस दिया गया
है. जवाब आते ही न सिर्फ पूजा का रिजल्ट रद्ïद होगा, बल्कि उस के नाम के आगे या पीछे लगा
आईएएस का तमगा भी हट जाएगा.

यानी कुल मिला कर जिस आईएएस के तमगे के साथ नीली बत्ती वाली गाड़ी पाने की बेसब्री में पूजा
खेडकर ने एक छोटी सी गलती की थी, वही छोटी सी गलती उसे कहां से कहां पहुंचा गई. वो कुछ दिन
सब्र कर लेती तो क्या पता ये सारा फरजीवाड़ा कभी सामने ही न आ पाता.

एक और पूर्व आईएएस अधिकारी फंसा विवादों में पूजा खेडकर के बाद विवादों में घिरे इस आईएएस अधिकारी का नाम अभिषेक सिंह है और उस पर यूपीएससी को फरजी विकलांगता प्रमाणपत्र देने का आरोप है. अभिषेक सिंह 2011 बैच का आईएएस अधिकारी है, जिस ने अक्तूबर 2023 में इस्तीफा दे दिया था.

अभिषेक सिंह का चयन संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में दिव्यांग कोटे से हुआ था. उसे
लोकोमोटिव डिसऔर्डर (चलने में असमर्थता) का पता चला था. लेकिन पिछले साल 2023 में अभिषेक
सिंह ने ऐक्टिंग करिअर के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

अभिषेक सिंह ने आईएएस की नौकरी छोड़ कर बौलीवुड की राह पकड़ ली है. अभिषेक सिंह की पत्नी
दुर्गा शक्ति नागपाल भी आईएएस हैं, जो वर्तमान में लखीमपुर खीरी की डीएम हैं.

हाल ही में अभिषेक सिंह के जिम और डांस के वीडियो वायरल हुए हैं. इस के बाद सवाल उठने लगे हैं
कि दिव्यांगता के आरक्षण से उस का चयन कैसे हो गया. अभिषेक सिंह ने इस दावे को खारिज किया
और लोगों से अपील की कि उस के बारे में झूठ फैलाना बंद किया जाए.

अभिषेक सिंह ने पूजा खेडकर मामले को ले कर सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था और
प्रशासनिक चयन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता की मांग की थी. लेकिन फिर सोशल मीडिया यूजर्स ने उस
की ही पसंद पर सवाल उठाए. उस पर यूपीएससी में फरजी विकलांगता प्रमाण पत्र दे कर यूपीएससी में
लाभ पाने का भी आरोप लगा.

पिता रिश्वत के आरोप में हुए थे सस्पेंड महाराष्ट्र कैडर की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर विवादों में बुरी तरह घिर गई है. पूजा के कारनामों के बाद उस की मां मनोरमा खेडकर के कारनामे सामने आए थे, अब पूजा के पिता दिलीप खेडकर को ले कर भी नएनए खुलासे हो रहे हैं. दिलीप खेडकर अभी तक 2 बार सस्पेंड हो चुके हैं.

महाराष्ट्र सिविल सेवा (आचरण) नियम 1979 के नियम 3 (1) और महाराष्ट्र सिविल सेवा (अनुशासन और
अपील) नियम, 1979 के नियम संख्या 4 की उपधारा 1 (ए) के साथ ही महाराष्ट्र जल (प्रदूषण की
रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1983 के नियमों के तहत क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर को 24
फरवरी, 2020 से विभागीय जांच के अधीन निलंबित कर दिया था.

जब दिलीप खेडकर मुंबई के क्षेत्रीय कार्यालय में क्षेत्रीय अधिकारी के रूप में कार्यरत थे, तब करीब 300-
400 छोटे उद्यमियों ने शिकायत की थी कि दिलीप खेडकर मुंबई क्षेत्र में कई व्यवसाय मालिकों और
प्रतिष्ठानों के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा कर रहे थे और उन से अवैध तरीके से जबरन वसूली कर रहे
थे. 6 अक्तूबर, 2015 को मुख्यमंत्री से शिकायत की गई थी.

उक्त शिकायत बोर्ड में दर्ज कर ली गई.पुणे के सुप्रभा पौलिमर एंड पैकेजिंग ने 13 मार्च, 2019 को शिकायत की थी, इस में कहा गया था कि क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर ने 20 लाख रुपए की मांग की है, समझौता राशि 13 लाख बताई गई.

इस शिकायत की प्रारंभिक जांच का आदेश मुख्यालय के माध्यम से दिया गया था. दिलीप खेडकर जब कोल्हापुर के क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत थे, तब बोर्ड को कोल्हापुर मिल और टिंबर मर्चेंट द्वारा डीएसपी (भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, कोल्हापुर) से पहली मार्च, 2018 को की गई शिकायत की प्रति प्राप्त हुई.

इस शिकायत में उद्यमी से पैसे की मांग की गई थी और बिजलीपानी की आपूर्ति बहाल करने के लिए रुपए की मांग की गई. इतना ही नहीं, नोटिस वापस लेने के लिए 25 हजार और 50 हजार रुपए की मांग की गई है.

सतारा के सोना अलायज प्राइवेट लिमिटेड ने 15 मार्च, 2019 को पत्र के माध्यम से शिकायत दी थी. इस
में कहा गया था कि 50 हजार रुपए की मांग की गई थी, दिलीप खेडकर ने उन्हें परेशान किया, क्योंकि
संबंधित उद्योग ने उक्त राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया.

क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर का कोल्हापुर से मैत्री कक्ष, महाराष्ट्र, लघु उद्योग विकास निगम, मुंबई में
ट्रांसफर कर दिया गया था, लेकिन दिलीप खेडकर ने पद ग्रहण नहीं किया और बिना अनुमति के 6 से 7
महीने तक अनुपस्थित रहे.

वहीं, एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के शीर्ष सूत्रों ने बताया था कि ऐसे संकेत मिले हैं कि ट्रेनी आईएएस
पूजा खेडकर के पिता दिलीप खेडकर ने महाराष्ट्र सरकार में अपनी सेवा के दौरान आय से अधिक संपत्ति
अर्जित की थी. वह साल 2020 में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे.

 

राजा जयकेशी की पुत्री को तसवीर देखकर हो गया था प्यार

राजा जयकेशी की पुत्री राजकुमारी मयणल्ला को सोलंकी वंश के राजा कर्णदेव की फोटो देख कर ही प्यार
हो गया था, लेकिन कर्णदेव ने उस से विवाह करने को मना कर दिया था. आखिर मयणल्ला ने ऐसे
क्या क्या जतन किए कि राजा कर्णदेव को उस से विवाह करने के लिए मजबूर होना पड़ा?

दक्षिण भारत के उस समय के चंद्रपुर के कदंब वंश के एक राजा थे जयकेशी. उन की मयणल्ला नामक
एक पुत्री थी. गुजरात में सोलंकी वंश के राजा कर्णदेव प्रथम का राज्य था. कर्णदेव भी अपने पूर्वज
मूलराज प्रथम, भीमदेव प्रथम की तरह प्रतापी राजा था. उस के समय में भी गुजरात की ख्याति दक्षिण
तक फैली हुई थी. वहां स्थित सोमनाथ का शिवमंदिर प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध था.

भारत भर के श्रद्धालु सोमनाथ मंदिर का दर्शन करने आते थे. राजकुमारी मयणल्ला उन यात्रियों से
सोमनाथ मंदिर की भव्यता और राजा कर्णदेव के स्वरूप व ख्याति की बातें सुना करती थी. राजा कर्णदेव
की एक तसवीर देख कर राजकुमारी मयणल्ला उस पर मोहित हो गई और उसे अपने पति रूप में पाने
की ठान ली.

राजा कर्णदेव के शासन काल से पहले से ही सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले यात्रियों से यात्री
कर लिया जाता था. राजकुमारी मयणल्ला नहीं चाहती थी कि भक्तों से यह कर लिया जाए.
गुजरात को और अधिक शक्तिशाली, समृद्ध बना कर इस यात्री कर को समाप्त करने की चाह उस में
जागी.

यह तभी संभव था, जब वह गुजरात की साम्राज्ञी बने. वह एक शक्तिशाली और सर्वगुणसंपन्न भावी राजा
की माता बने. राजकुमारी ने अपने पिता राजा जयकेशी के सामने विवेक व विनयपूर्वक अपनी इच्छा
व्यक्त की.

अपनी पुत्री के गुण संस्कार राजा को पता थे. राजा ने पुत्री की इच्छापूर्ति के लिए एवं राजकीय संबंध
सुदृढ़ बनाने की इच्छा से अपनी सहमति दे दी.

पिता जयकेशी से आशीर्वाद ले कर राजकुमारी मयणल्ला अपनी कुछ दासियों, सेवक और कुछ अंगरक्षकों
को ले कर गुजरात की राजधानी पाटण की ओर चल पड़ी. उत्तरदक्षिण की सीमा, नर्मदा नदी को पार कर
के राजकुमारी का कारवां कुछ महीने बाद पाटण के पास सरस्वती नदी के किनारे आ पहुंचा.

पाटण नगर के पास दुर्लभ तालाब के पाए सुरम्य उद्यान में राजकुमारी के काफिले ने पड़ाव डाला.
उद्यान के बगल में ही कुछ शामियाने लगाए गए. उद्यान सुंदर और सुरम्य था, जो हरी घास, रंगबिरंगे
फूलों के पौधों, पेड़, लताओं से मनोहारी था. उद्यान में मोर, कोयल और तरहतरह के परिंदे किलकिलाहट
कर रहे थे.

चांदनी रात में उस उद्यान की परछाई दुर्लभ सरोवर (झील) में जो दिखती थी, वह झील की शोभा में
चारचांद लगा देती थी. उस उद्यान में राजकुमारी मयणल्ला अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रतीक्षा में
दिन बिता रही थी.

राजा भीमदेव प्रथम की महारानी और राजा कर्णदेव की माता रानी उदयमति शिल्प और स्थापत्य की
बेजोड़ बावड़ी का निर्माण करवा रही थीं, जो उस उद्यान और झील के पास ही थी. राजमाता उदयमति उद्यान की सैर करने व बावड़ी का निरीक्षण करने समयसमय पर आया करती थीं.

उस उद्यान के पास लगे शामियानों को राजमाता उदयमति ने देखा. दासी को भेज कर पता लगवाया तो
पता चला कि यह शिविर चंद्रपुर की राजकुमारी मयणल्ला का है. दक्षिण में चंद्रपुरी का राजा जयकेशी भी एक प्रतापी राजा था. राजमाता उदयमति राजकुमारी के शिविर में उस से मिलने गईं. राजकुमारी मयणल्ला ने बड़े आदर के साथ राजमाता का सत्कार व अभिवादन किया. राजमाता नायकेशी के विवेक, विनय और शिष्टाचार से बेहद प्रभावित हुईं.

राजमाता ने राजकुमारी का चंद्रपुर से सीधे ही पाटण आने का प्रयोजन पूछा. राजकुमारी ने बिना संकोच
किए व विनयपूर्वक अपनी कामना का जिक्र किया.

राजकुमारी मयणल्ला ने राजमाता से निवेदन किया कि मैं महाराजा कर्णदेव से विवाह कर के आप की
पुत्रवधू बनना चाहती हूं. महाराज से एक वीर पुत्र प्राप्त करने के बाद मैं उस पुत्र को वीर, अजेय, योद्धा, सद्ïगुणी, सर्वगुणसंपन्न, संस्कारी, न्यायी, नीतिवान सुशासक बनाना चाहती हूं. मुझे लगता है कि आप के प्रतापी पुत्र महाराज कर्णदेव से एक प्रतापी पुत्र पा कर ही मेरी यह इच्छा पूरी हो सकती है.

राजा कर्णदेव भी उद्यान और दुर्लभ सरोवर की सैर करने और निर्माणाधीन बावड़ी का निरीक्षण करने के
लिए वहां आया करते थे. कर्णदेव ने उद्यान के बगल में ही लगे दक्षिण के चंद्रपुर राज्य के शिविर को
देख कर अपने सिपाही भेज कर जांच करवाई कि यह शिविर यहां क्यों लगाया गया है और शिविर में
कौन है.

सिपाहियों ने तलाश कर के राजा कर्णदेव को बताया कि यह शिविर चंद्रपुर के राज्य का है और शिविर में
वहां के राजा जयकेशी की पुत्री राजकुमारी मयणल्ला है. राजा कर्णदेव ने अपनी विश्वासप्राप्त सेविकाओं को राजकुमारी के शिविर में भेज कर यह पता लगाया कि यह राज परिवार के किसी पुरुष को साथ लिए बिना यहां अकेली ही क्यों आई है.

राजकुमारी ने उन सेविकाओं को बताया कि वह राजा कर्णदेव के साथ स्वयं अपने विवाह हेतु आई है. यह
पाटण और चंद्रपुर दोनों राज्यों का वैवाहिक संबंध स्थापित कर दोनों राज्यों के राजनैतिक संबंधों को
सुदृढ़ करना चाहती है. वह राजा कर्णदेव के रूप और कीर्ति से प्रभावित हो कर यहां स्वयं ही आई है.
उसे मालूम है कि पाटण में किसी भी नारी को कोई भय नहीं है, उस के मानसम्मान में कोई खोट नहीं
है. इसलिए वह अपनी सेविकाओं और कुछ सेवकों को साथ ले कर अकेली ही आई है.

वैसे तो राजकुमारी मयणल्ला कुशल बुद्धिशाली, राजनैतिक समझ वाली, प्रभावशाली और महत्त्वाकांक्षी थी,
लेकिन दक्षिण की होने के कारण स्वाभाविक रूप से कुछ सांवले रंग की थी. जबकि राजा कर्णदेव कामदेव
के समान बहुत स्वरूपवान था. जिस से उस ने मयणल्ला के प्रस्ताव को अस्वीकार किया और उस में
कोई रुचि नहीं दिखाई.

समय बीतता गया. राजा कर्णदेव अपने निर्णय पर दृढ़ था. उस ने राजकुमारी के प्रति बेरुखी ही दिखाई.
इधर राजकुमारी भी अपने निर्णय पर दृढ़ थी कि वह विवाह तो कर्णदेव से ही करेगी. आखिर उस ने
राजमाता उदयमति की सहायता लेने का निश्चय किया.

जब राजमाता उद्यान की सैर करने आईं तो राजकुमारी ने अपनी विश्वस्त सेविका को राजमाता के पास
भेज कर अपने मिलने की अनुमति मांगी. राजमाता भी राजकुमारी की बहुत इज्जत करती थीं, वह स्वयं
राजकुमारी के शिविर में उस से मिलने आईं.

राजकुमारी ने राजमाता के चरण छू कर उन का अभिवादन किया. राजमाता के बैठने के लिए उन के
योग्य आसन दिया. राजमाता राजकुमारी की इच्छा जानती ही थीं, फिर भी उन्होंने राजकुमारी के फिर से
मिलने का कारण जानना चाहा.

राजकुमारी ने राजमाता उदयमति को अपनी मनोकामना पुन: व्यक्त करते हुए राजमाता से प्रार्थना की
कि वह विवाह करेगी तो राजा कर्णदेव से ही करेगी, वरना वह अग्निस्नान कर लेगी. यह उस की दृढ़
प्रतिज्ञा है. क्षत्रिय कन्या एक बार जिसे अपना पति मान लेती है तो वह उस से ही विवाह करती है, दूसरे
तो उस के लिए भाई और पिता समान ही होते हैं.

राजमाता से उस ने प्रार्थना की कि मैं अपनी प्रतिज्ञा आप की सहायता से ही पूर्ण कर सकती हूं. आप
मुझे जीवित रखना चाहती हैं और पाटण व चंद्रपुर को निकट ला कर शक्तिशाली बनाना चाहती हैं तो
मेरी पूरी सहायता कीजिए.

राजमाता उदयमति जूनागढ़ (सोरठ) के चुड़ासमा राजवंश की थीं. वह गहरी राजनीतिक सूझ वाली थीं. वह
स्वयं भी महत्त्वाकांक्षी थीं. वह चाहती थीं कि उन का पुत्र भी अपने पुरखों की तरह शक्तिशाली, सुशासक
व प्रसिद्ध राजा बने.

उन्होंने राजकुमारी मयणल्ला को विश्वास दिलाया कि वह अवश्य उस की सहायता करेगी. यदि राजा
कर्णदेव मयणल्ला के साथ विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार करेगा तो वह स्वयं भी राजकुमारी के साथ
अग्निस्नान करेंगी. राजमाता राजकुमारी को यह दृढ़विश्वास दिला कर राजमहल चली गईं.

राजमहल आ कर राजमाता ने अपने राज्य के महामात्य मुंजाल मेहता से राजा कर्णदेव और मयणल्ला
देवी के विवाह के संबंध में परामर्श किया. उस ने भी राजमाता के विचार का समर्थन किया. महामात्य
मुंजाल बड़ा मुत्सदी (मुगलकाल का सरकारी पद) था.

उस ने राजा कर्णदेव को मयणल्ला के साथ विवाह करने के लिए राजी कर लिया. आखिर नारी की दृढ़ शक्ति, दृढ प्रतिज्ञा के आगे राजा को झुकना पड़ा, क्योंकि उन की प्रतिज्ञा राजा और राज्य के हित में थी. राजा कर्णदेव और मयणल्ला का विवाह संपन्न हुआ. अब महारानी मयणल्ला महारानी मीनल देवी के नाम से बुलाई जाने लगी.

समय बीतते महारानी मीनल देवी ने शुभ मुहूर्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम जयसिंह रखा
गया, जो बड़ा प्रतापी राजा सिद्ध हुआ. गुजरात की लोकभाषा में वह 'सधराजेसंगÓ के नाम से प्रसिद्ध
हुआ.

बाल राजकुमार जयसिंह देव एक दिन अपने बाल मित्रों के साथ खेलखेल में ही राज सिंहासन पर बैठ
गया. ज्योतिषियों ने बताया कि यह शुभ मुहूर्त है, जिस से राज्य की उन्नति होगी. इसलिए राजा कर्णदेव
ने बाल राजकुमार का उसी मुहूर्त में राज्याभिषेक कर दिया.

अब पाटण-गुजरात का राजा नाबालिग उम्र में ही जयसिंह देव हुआ. इस के बाद कुछ ही वर्ष में राजा
कर्णदेव ने देह त्याग दी. अब राज्य की धुरी राजमाता मीनल देवी ने संभाल ली. वह बाल राजा जयसिंह
देव के नाम से महामात्य शांतनु और मुंजाल मेहता की सहायता से शासन करने लगी.

राजमाता मीनलदेवी ने बाल राजा जयसिंह को मल्ल विद्या, गज विद्या, शस्त्र विद्या तथा नीति शास्त्र
और सुशासन प्रणाली में पारंगत बनने की शिक्षा दिलाई. राज्य विस्तार के साथसाथ सुशासन करना,
प्रजाहित का ध्यान रखना, लोक कल्याण के कार्य करना, प्रजा के दुख की जानकारी लेना जैसे आदर्श राजा
के गुणों की शिक्षा दी थी.

आदर्श पर चलने के लिए और सुशासन देने के लिए राजा को स्वयं बलवान बनना चाहिए और राज्य में
छोटीबड़ी, अच्छीबुरी घटनाओं की भेष बदल कर, छिपे भेष में जानकारी लेनी चाहिए.

इस प्रकार राजमाता मीनल देवी ने अपने बाल राजा को आदर्श राजा के सभी सुसंस्कार दिए और इसी
कारण राजा जयसिंह हर कार्य को, जो उस ने निश्चित किया या इरादा रखा, उसे सिद्ध कर के दिखाया.
उस का शासन काल गुजरात का स्वर्ण युग रहा.

बाल राजा जयसिंह की युवावस्था प्राप्त होने तक शासन चलाना इतना आसान नहीं था. कर्णदेव की मृत्यु
के बाद उस के सौतेले भाई क्षेमराज के पुत्र देव प्रसाद ने जयसिंह को नाबालिग समझ कर राजकार्य में
हस्तक्षेप करने का प्रयास किया. लेकिन राजमाता मीनल देवी ने मंत्री शांतनु की सहायता से उसे विफल
कर दिया.

राजमाता के प्रभाव के कारण अपनी असफलता पर देव प्रसाद ने अग्नि स्नान कर लिया. देव प्रसाद के
नाबालिग पुत्र त्रिभुवन पाल को राजमाता ने अपने महल में बुला लिया और उस का लालनपालन किया.
जयसिंह उसे अपने सगे भाई की तरह चाहता था.

राजा कर्णदेव की मृत्यु के बाद उस का मामा मदनपाल जो जूनागढ़ का था, राजधानी पाटण में ही रहता
था, स्वच्छंदी हो गया. राजा जयसिंह किशोर होने के कारण मदनपाल राजकाज में दखल करता था. प्रजा
को परेशान करता था और निरपराधी को भी दंडित करता था. उस की ऐसी हरकतें कुछ ज्यादा बढ़ गई
थीं.

एक बार पाटण के उत्तम वैद्य को अपना इलाज कराने के बहाने अपने निवास पर बुला कर कैद कर
लिया और 32 हजार मोहरें ले कर उस को मुक्त किया. जब युवा राजा जयसिंह को इस की खबर मिली
तो राजमाता मीनल देवी से सलाह कर शांतनु मंत्री की सहायता से मदनपाल की हत्या करवा दी.

राजमाता मीनल देवी और राजा जयसिंह अपने सगेसंबंधियों से अधिक अपनी प्रजा का हित देखते थे.
गुजरात राज्य की पश्चिमी सीमा पर अरब सागर के किनारे प्रसिद्ध सोमनाथ का मंदिर है.

राजमाता ने कई लोगों को मंदिर के दर्शन किए बिना निराश हो कर वापस लौटते देखा. उन से पूछा तो
पता चला कि वे यात्री कर न चुका पाने के कारण बिना दर्शन ही वापस लौट रहे हैं.

राजमाता ने सोचा कि मेरे राज्य की प्रजा यात्री कर न चुका सकने के कारण बिना दर्शन किए निराश हो कर वापस जा रही है तो मैं कैसे मंदिर के दर्शन कर सकती हूं. मैं राजमाता हूं तो क्या हुआ, भगवान के सामने तो राजा और प्रजा दोनों ही समान हैं.

राजकार्य की व्यवस्था कर के कुछ ही दिनों बाद राजा जयसिंह देव भी अपने कुछ सैनिकों को साथ ले
कर सोमनाथ की यात्रा के लिए निकल पड़ा, जब वह सोमनाथ के निकट पहुंचा तो उस ने राजमाता के
काफिले का शिविर देखा. शिविर में जा कर राजा ने राजमाता से भेंट की तो उसे मालूम हुआ कि
राजमाता सोमनाथ मंदिर में दर्शन किए बिना ही वापस पाटण लौट रही है.

राजा के पूछने पर राजमाता ने कहा कि जब अपने राज्य की प्रजा और अन्य राज्यों की प्रजा बिना यात्री
कर दिए मंदिर में दर्शन नहीं कर सकती तो मैं कैसे दर्शन कर सकती हूं. तुम यदि सभी के लिए यात्री
कर समाप्त कर दो, तभी मैं भी दर्शन करूंगी.

पाटण राज्य की आय में सोमनाथ के यात्री कर का बहुत बड़ा योगदान था, फिर भी राजमाता के अनुरोध
पर राजा जयसिंह देव ने यात्री कर समाप्त कर दिया. यह राजमाता मीनल देवी के दिल में प्रजा के प्रति
प्रेम और न्याय को दर्शाता है. ऐसे तो राजमाता मीनल देवी ने कई तालाब और मंदिरों का निर्माण
करवाया था, लेकिन धोलका का मलाव तालाब राजमाता की न्यायप्रियता का उत्तम उदाहरण है.

धोलका (गुजरात) के पास राजमाता एक तटबंधी तालाब का निर्माण करवा रही थी. तालाब गोलाकार
बनाना था. लेकिन उस तालाब की सीमा में एक गणिका का छोटा सा निवास स्थान आता था.
राजमाता ने निवास स्थान बदलने के लिए गणिका को मुंहमांगी कीमत देने का औफर दिया, लेकिन
गणिका वह जमीन देना नहीं चाहती थी.

राज्य जबरदस्ती भी वह जमीन ले सकता था, लेकिन राजा जयसिंह देव ने ऐसा नहीं किया और तालाब की उतनी गोलाई छोड़ दी, यह थी राजमाता की न्यायप्रियता. आज भी वह तालाब मौजूद है. और कहा जाता है कि न्याय देखना हो तो धोलका का मलाव तालाब देखो.

एक जनश्रुति के अनुसार जूनागढ़ के राजा राव नवगण को राजा जयसिंह देव ने युद्ध में पराजित कर
दिया था, उसे मुंह में तिनका लेने को मजबूर कर दिया था. इसलिए राजा नवगण ने पाटण के द्वार को
तोडऩे की प्रतिज्ञा की थी. वह तो अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सका, लेकिन उस के बाद उस के पुत्र राजा
राव खेंगार ने पाटण का द्वार तोड़ा था.

उस समय राजा जयसिंह देव मालवा गया हुआ था. अपने साथ राव खेंगार उस कन्या को भी ले गया,
जिस के साथ सिद्धराज जयसिंह देव का विवाह होने वाला था. हालांकि वह कन्या और राव खेंगार
एकदूसरे के साथ प्रणय संबंध में बंधे थे. जूनागढ़ आ कर राव खेंगार ने उस कन्या से विवाह कर लिया,
जिस का नाम सोनल देवी था. जो जनश्रुति में राणक देवड़ी के नाम से पुकारी जाने लगी.

जयसिंह को जब मालवा से लौटने पर समाचार मिला तो वह गुस्से में लालपीला हो गया. राजा जयसिंह
ने जूनागढ़ पर आक्रमण किया. लंबे समय तक के घेरे के बाद जयसिंह दुर्ग में प्रवेश करने में सफल
हुआ. राजा राव खेंगार और राजा जयसिंह के घमासान युद्ध में राव खेंगार मारा गया. जयसिंह देव
राणक देवड़ी को ले कर पाटण आने को निकल पड़ा.

पाटण में राजमाता मीनल देवी को यह खबर मिली तो राजमाता उसे रोकने के लिए कुछ सैनिकों को ले
कर जूनागढ़ की ओर निकल पड़ी, क्योंकि वह जानती थी कि राणक देवी महासती है और यदि वह राजा
जयसिंह को श्राप देगी तो महाअनर्थ होगा. बढवाण में दोनों काफिले मिले.

राजमाता ने राणक देवी पर जबरदस्ती न करने के लिए जयसिंह को मना लिया. राजमाता मीनल देवी ने
राणक देवी से मिल कर उस की इच्छा जानी. राणक देवी ने अपने पति राव खेंगार का सिर अपनी गोद
में ले कर सती होने को कहा. राजमाता ने राव खेंगार का सिर मंगवाया. राणक देवी अपने पति का सिर
ले कर बढवाण के पास भोगावो नदी के तट पर सती हुई. उस का मंदिर आज भी वहां मौजूद है.

राजमाता मीनल देवी और उस के पुत्र सिद्धराज जयसिंह देव की न्यायप्रियता की अनेक कथाएं गुजरात
के लोक साहित्य में पढऩे और सुनने में आती हैं. माता मीनल देवी ने जयसिंह में महान योद्धा, कुशल
सेनापति, सर्वधर्म समभाव, न्यायप्रियता और प्रजा हितैषी के गुण कूटकूट कर भरे थे.

राज्यारोहण से ले कर आने वाली चुनौतियां माता और मंत्रियों की सहायता से सफलतापूर्वक पार कीं, जिस
से वह गुजरात का महान प्रतापी राजा सिद्ध हुआ और उस का राज्यकाल गुजरात का स्वर्ण युग
कहलाया. राजकुमारी मयणल्ला ने जो प्रतिज्ञा की थी. वह कर्णदेव से विवाह कर पूरी की.
कीवर्ड (स्टोरी)

ऐतिहासिक कहानी, राजकुमारी मयणल्ला, राजा जयकेशी, कर्णदेव, सोलंकी वंश, कदंब वंश, जयसिंह देव,
सोमनाथ मंदिर, गुजरात, रानी उदयमति, पाटण

आशू की अजीब दास्तान : दो बूंद प्यार की चाहत

आशू यानी आशीष कुमार जब सजधज कर निकलता है तो युवक ही नहीं, बड़ेबूढ़े भी उसे देखते रह जाते हैं. उस के रूप सौंदर्य पर लोग इस कदर मोहित हो जाते हैं कि उसे जीवनसाथी के रूप में पाने की कल्पना करने लगते हैं. यही नहीं, जब वह कातिल अदाओं के साथ स्टेज पर नृत्य करता है तो नवयुवकों के साथ बुड्ढे भी बहकने लगते हैं.

आशू के इन गुणों को देख कर लगता है कि वह कोई लड़की है. लेकिन ऊपर जो नाम लिखा है, उस से साफ पता चलता है कि वह लड़की नहीं, लड़का है. इलाहाबाद का बहुचर्चित डांसर एवं ब्यूटीशियन आशीष कुमार उर्फ आशू बेटे के रूप में पैदा हुआ था, इसीलिए घर वालों ने उस का नाम आशीष कुमार रखा था. बाद में सभी उसे प्यार से आशू कहने लगे थे. लेकिन लड़का होने के बावजूद उस का रूपसौंदर्य ही नहीं, उस में सारे के सारे गुण लड़कियों वाले हैं.

आशू का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के मोहल्ला जीटीबीनगर में रहने वाले विनोद कुमार शर्मा के घर हुआ था. पिता इलाहाबाद में ही व्यापार कर विभाग में बाबू थे. परिवार शिक्षित, संस्कारी और संपन्न था. 4 भाइयों और 2 बहनों में तीसरे नंबर का आशू पैदा भले ही बेटे के रूप में हुआ था, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस में लड़कियों वाले गुण उभरते गए. उस के हावभाव, रहनसहन एवं स्वभाव सब कुछ लड़कियों जैसा था. वह लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ खेलता, उन की जैसी बातें करता.

जब कभी उसे मौका मिलता, वह अपनी बहनो के कपड़े पहन कर लड़कियों की तरह मेकअप कर के आईने में स्वयं को निहारता.  मां और बहनों ने कभी उसे रोका तो नहीं, लेकिन उस के भविष्य को ले कर वे चिंतित जरूर थीं.

आशू जिन दिनों करेली के बाल भारती स्कूल में कक्षा 6 में पढ़ता था, स्कूल के वार्षिकोत्सव में पहली बार उसे नृत्य के लिए चुना गया. कार्यक्रम के दौरान जब आशू को लड़की के रूप में सजा कर स्टेज पर लाया गया तो लोग उसे देखते रह गए. लड़की के रूप में उस ने नृत्य किया तो उस का नृत्य देख कर लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

इस के बाद मोहल्ले में ही नहीं, शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आशू को नृत्य के लिए बुलाया जाने लगा. चूंकि उस समय आशू बच्चा था, इसलिए घर वाले उसे उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं करते थे. लेकिन आशू बड़ा हुआ तो लोग उस के हावभाव को ले कर उस के पिता और भाइयों के सामने अशोभनीय ताने मारने लगे, जिस से उन्हें ठेस लगने लगी.

आखिकार एक दिन आशू को ले कर घर में हंगामा खड़ा हो गया. पिता और भाइयों ने उस से साफ कह दिया कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे, कहीं किसी कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन आशू स्वयं को रोक नहीं पाया. मौका मिलते ही वह कार्यक्रमों में भाग लेने पहुंच जाता.

आशू की हरकतों से घर वाले स्वयं को बेइज्जत महसूस करते थे. लोग उसे ले कर तरहतरह की चर्चा करते थे. कोई उसे किन्नर कहता था तो कोई शारीरिक रूप से लड़की कहता. जब बात बरदाश्त से बाहर हो गई तो घर वालों ने कक्षा 8 के बाद उस की पढ़ाई छुड़ा दी.

अब तक आशू काफी समझदार हो चुका था. पढ़ाई छुड़ा दिए जाने के बाद वह घर में बैठबैठे बोर होने लगा. घर में सिर्फ मां और बहनें ही उस से बातें करती थीं, वही उस की पीड़ा को भी समझती थीं. क्योंकि वे स्त्री थीं. वे हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश करती थीं.

वक्त गुजरता रहा. पिता और भाई भले ही आशू के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे, लेकिन मां उस के भविष्य को ले कर चिंतित थी. उस ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए पति से गंभीरता से विचार किया. अंतत: काफी सोचविचार के बाद आशू की पसंद के अनुसार उसे नृत्य और ब्यूटीशियन का कोर्स कराने का फैसला लिया गया.

आशू को नृत्यं एवं ब्यूटीशियन की कोचिंग कराई गई. चूंकि उस में नृत्य एवं ब्यूटीशियन का काम करने की जिज्ञासा थी, इसलिए जल्दी ही वह इन दोनों कामों में निपुण हो गया. इस के बाद उस ने अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. इस काम में आशू ने पैसे के साथसाथ अच्छी शोहरत भी कमाई.

घर वाले आशू के इस काम से खुश तो नहीं थे, लेकिन विरोध भी नहीं करते थे. वह जब तक घर पर रहता, पिता और भाइयों से डराडरा रहता, क्योंकि वे उस के लड़की की तरह रहने से घृणा करते थे. आशू बड़ा हो गया. लेकिन खुशियां और आनंद उस के लिए सिर्फ देखने की चीजें थीं, क्योंकि वह घर में घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर था.

आशू चूंकि अपने गुजरबसर भर के लिए कमाने लगा था, इसलिए खुशियां और आनंद पाने के लिए वह अपना घर छोड़ने के बारे में सोचने लगा. क्योंकि वह पिता और भाइयों की उपेक्षा एवं घृणा से त्रस्त हो चुका था. मजबूर हो कर 7 साल पहले आशू ने दिल मजबूत कर के घर छोड़ दिया और कैंट मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर आजादी के साथ रहने लगा. आशू के लिए यह एक नया अनुभव था.

आजाद होने के बाद आशू में लड़की होने की कसक पैदा होने लगी. कहा जाता है कि मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है. आशू के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस की भी कमर लड़कियों की तरह पतली होने लगी और नीचे के हिस्से भरने लगे. उस का रूपसौंदर्य औरतों की तरह निखरने लगा. कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से औरत लगने लगा.

आशू को लड़कियों जैसा ऐसा रूप मिला था कि वह जब कभी स्टेज पर नृत्य करता लोग देखते रह जाते थे. आज स्थिति यह है कि वह इलाहाबाद शहर का मशहूर डांसर माना जाता है. इस समय वह अतरसुइया में रहता है. वह जो कमाता है, उस का अधिकांश हिस्सा समाजसेवा पर खर्च करता है. यही वजह है कि लोग उसे सम्मान की नजरों से देखते हैं.

आशू उपेक्षित एवं तिरस्कृत गरीब परिवार के लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में उन की आर्थिक मदद तो करता ही है, अपने ‘जया बच्चन नृत्य एवं संगीत स्कूल’ में नि:शुल्क नृत्य भी सिखाता है. उस के इस स्कूल में 25 लड़के एवं 20 लड़कियां नृत्य सीख रही हैं. इस के अलावा वह लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्यूटीशियन का कोर्स भी कराता है.

आशू को सब से बड़ा दुख इस बात का है कि परिवार में इतने लोगों के होते हुए भी वह अकेला है. जबकि दुखसुख बांटने के लिए एक साथी की जरूरत होती है. लेकिन उस की स्थिति ऐसी है कि वह किसी को अपना साथी नहीं बना सकता. औरत के लिए मर्द तो मर्द के लिए औरत के प्यार की जरूरत होती है, लेकिन आशू का तन मर्द का है तो मन औरत का. ऐसे में उसे न तो मर्द का प्यार मिल पा रहा है, न औरत का.