बेटे ने मा को प्रेमप्रसंग के चक्कर में मौत के घाट उतारा

कभी कभी मांबाप भी ऐसे काम कर जाते हैं जिस से बच्चों का सिर समाज में शर्म से झुक जाता है, नन्हकी और सुरेंद्र ने भी कुछ ऐसा ही किया. फिर मां नन्हकी को सजा देने के चक्कर में मिथलेश एक ऐसा अपराध कर बैठा कि…

बा त 15 अक्तूबर, 2017 की है. हलिया के थानाप्रभारी विनोद दुबे कहीं जाने के लिए औफिस से निकलने वाले थे, उसी समय इलाके का चौकीदार उन के पास पहुंचा. उस ने बताया, ‘‘सर, मटिहारी जंगल
के पनिहरवा नाले में 2 लाशें पड़ी हैं, जिस में एक लाश किसी महिला की और दूसरी किसी आदमी की है.’’

2-2 लाशें मिलने की बात सुनते ही थानाप्रभारी के कदम वहीं के वहीं रुक गए. वह तुरंत जीप से उतर कर चौकीदार से लाशों के बारे में कुछ और जानकारी लेने लगे. इस के बाद थानाप्रभारी जिस जगह के लिए रवाना होने वाले थे, वहां जाने का कार्यक्रम उन्होंने स्थगित कर दिया और पुलिस टीम के साथ उस जगह की तरफ निकल पड़े, जहां लाशें पड़ी थीं. चौकीदार को भी उन्होंने जीप में बैठा लिया.

कुछ ही देर में उन की जीप पनिहरवा नाले के पास पहुंच गई. चौकीदार जंगली झाडि़यों के बीच पथरीली राहों से होता हुआ जंगलों, पहाड़ों से हो कर बहने वाले नाले के उस स्थान पर पहुंच गया, जहां से वे लाशें साफसाफ दिख रही थीं.

चौकीदार अंगुली से इशारा करते हुए बोला, ‘‘देखिए साहब, वे हैं दोनों ही लाशें.’’
थानाप्रभारी विनोद दुबे ने देखा तो नाले के किनारे झाडि़यों से लगी 2 अर्धनग्न लाशें पानी पर तैर रही थीं, जिन में से एक के शरीर पर कपड़े के नाम पर ब्लाउज और पेटीकोट तथा दूसरे पर बनियान व लंगोट था.

दोनों का चेहरा भी झुलसा हुआ दिख रहा था. तब तक वहां कुछ चरवाहे भी आ गए थे. उन की मदद से थानाप्रभारी ने दोनों लाशों को नाले से बाहर निकलवाया. फिर लाश मिलने की सूचना उच्चाधिकारियों को देते हुए आवश्यक काररवाई में जुट गए.

जंगल के नाले में 2 लाशें मिलने की सूचना आसपास के गांव वालों को हुई तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुटने लगी. लाशों का निरीक्षण करने के बाद पता चला कि उन पर किसी धारदार हथियार से वार करने के बाद उन्हें जलाने की कोशिश की गई थी. इस से उन का चेहरा झुलस गया था. इसीलिए वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति उन की शिनाख्त नहीं कर सका.

लाश देख कर लग रहा था कि दोनों की हत्या शायद 2-3 दिन पहले की गई होगी. लाशें नाले में इसलिए फेंकी होंगीं ताकि बह कर कहीं दूर चली जाएं, लेकिन वे नाले के किनारे झाड़ी में फंस गईं. पुलिस ने उन चरवाहों से भी पूछताछ की लेकिन वह भी कुछ नहीं बता पाए.

बहरहाल, पुलिस के सामने एक बड़ा सवाल यह था कि वे दोनों कौन और कहां के रहने वाले थे तथा किन
परिस्थितियों में उन की हत्या की गई थी. इन तमाम सवालों का जवाब पाने के लिए थानाप्रभारी ने आसपास का गहनता से निरीक्षण किया तो नाले से कुछ ही दूरी पर बरगद के पेड़ के नीचे एक चूल्हा मिला.

चूल्हे के पास में ही तेल ही शीशी और शराब की खाली बोतलें मिलीं. वहां रखे एक भगौने में पके हुए कुछ चावल भी थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि वहां पर खानापीना भी हुआ था. पास में ही झाडि़यों के बीच एक साइकिल पड़ी दिखी, जहां साइकिल पड़ी थी, उस के आसपास की मिट्टी खून से सनी हुई थी. कुछ मीटर की दूरी पर इंसानी कलेजा दिखाई दिया, जिसे देख पुलिस भी सिहर उठी.

घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद पुलिस ने कयास लगाया कि इन दोनों की हत्या के पीछे शायद प्रतिशोध की भावना रही होगी. पुलिस इसी दृष्टिकोण पर आगे बढ़ने की सोच ही रही थी कि तभी एक युवक हांफता हुआ वहां आया और आदमी के शव को देखते ही दहाड़ें मार कर रोने लगा. बाद में उस ने बताया कि वह लाश उस के चाचा सुरेंद्र बहादुर सिंह की है. वह हलिया वन रेंज के कंपार्टमेंट-3 में बतौर वनरक्षक तैनात थे.

उस ने बताया कि 13 अक्तूबर से ही चाचा का कोई पता नहीं चल पा रहा था. युवक ने यह भी बताया कि जिस महिला की लाश मिली है, वह हलिया थाने के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी उर्फ घिरजिया है. यह वन विभाग में ही दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थी.

दोनों शवों की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी विनोद दुबे ने थोड़ी राहत की सांस ली. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी दिन संजय सिंह की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस आगे की काररवाई में जुट गई.

एसपी आशीष तिवारी ने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए थानाप्रभारी विनोद दुबे के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में अदलहाट के थानाप्रभारी विजय प्रताप सिंह, इंटेलिजेंस विंग के प्रभारी रामस्वरूप वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी मनोज कुमार ठाकुर, एसआई रामजी यादव, कांस्टेबल बृजेश सिंह, वीरेंद्र कुमार सरोज, संदीप राय, रजनीश सिंह, संतोष कुमार यादव आदि को शामिल किया गया.

इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. वनकर्मियों में भय व्याप्त हो गया था. पुलिस जहां दोनों की हत्या के खुलासे में जुटी थी, वहीं दोनों की हत्या को ले कर क्षेत्र में तरहतरह की चर्चाएं भी होने लगी थीं. आशंका जताई जा रही थी कि दोनों की हत्या कहीं प्रेमप्रपंच को ले कर तो नहीं की गई.

वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना था कि वनरक्षक सुरेंद्र जंगल में काफी लंबे समय से काम कर रहा था. उसे अवैध खनन, वन भूमि पर कब्जा करने, तेंदू पत्ता तोड़ने वालों या जंगली जानवरों का शिकार करने वालों के बारे में अच्छीखासी जानकारी थी, सो कहीं ऐसा तो नहीं कि उस की हत्या इन्हीं में से किसी ने कराई हो.

पुलिस टीम इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए कदम बढ़ा रही थी, लेकिन एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस टीम के हाथ कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लग पाया, जिस से जांच आगे बढ़ सके. करीब डेढ़ महीना बीतने के बाद भी पुलिस को निराशा ही मिली थी.

पुलिस ने दिनरात एक कर के हरेक छोटे बड़े पहलू पर गौर किया. इतना ही नहीं पुलिस जंगलों की हर एक गतिविधि पर भी ध्यान गड़ाए हुए थी. घटनास्थल के पास मिले खाने पीने आदि के सामान से पुलिस को यही आशंका थी कि हत्या में किसी खास करीबी का हाथ हो सकता है. इसी बीच पुलिस टीम को कुछ अहम सुराग मिल गए, जिस से उसे आगे बढ़ने की कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दे गई.

हत्याकांड की छानबीन में जुटी पुलिस टीम को सर्विलांस के जरिए पता चला कि घटना वाले दिन मौके पर 2
मोबाइल नंबरों की लोकेशन साथ साथ थी. पुलिस टीम ने जब उन नंबरों पर काम करना शुरू किया तो पता चला कि एक नंबर तो मृतक सुरेंद्र का था, जबकि दूसरा नंबर मृतका नन्हकी देवी के बेटे मिथलेश का था. पुलिस ने मिथलेश की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि उस की लक्ष्मण कोल नाम के व्यक्ति से भी बात हुई थी.

इस के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि लक्ष्मण कोल नन्ही देवी का समधी (बेटी का ससुर) था, जो हलिया थाने के ही गांव पोखड़ौर में रहता था. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने बिना देर किए दोनों के घरों पर दबिश दी. मिथलेश तो नहीं मिला लेकिन पुलिस ने 25 दिसंबर, 2017 को लक्ष्मण कोली को पोखड़ौर के हर्रा जंगल की नहर पुलिया के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो पुलिस के डर से उस ने स्वीकार कर लिया कि सुरेंद्र और नन्हकी की हत्या में उस के अलावा नन्हकी का बेटा मिथलेश भी शामिल था. उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार रही—

उत्तर प्रदेश का मीरजापुर जिला मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. इस जिले का हलिया थाना मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है. यह क्षेत्र दूरदूर तक फैले घने जंगलों, पहाड़ों से घिरा हुआ है. मध्य प्रदेश के रीवा जिले का हनुमना थाना भी मीरजापुर जिले की सीमा से लगा हुआ है.

हनुमना थानाक्षेत्र भी घने जंगलों से घिरा है. दोनों ही राज्यों के इन वन रेंज क्षेत्रों के अलग अलग कंपार्टमेंट में
वनरक्षकों की तैनाती की गई है, ये वनरक्षक वन्यजीवों से ले कर वनों की रखवाली करने के साथ हर छोटी बड़ी सूचनाओं से विभाग को अवगत कराते रहते हैं.

हलिया थाना क्षेत्र का पूरा इलाका घने जंगलों, पहाड़ों के साथ जंगली जीवजंतुओं से भी पटा है. इसी के साथ तेंदू पत्तों का भी यहां तुड़ान होता है, जिस से सरकार को भारीभरकम राजस्व की प्राप्ति होती है. इस क्षेत्र के गांव भटवारी कलां का रहने वाला 53 वर्षीय सुरेंद्र बहादुर सिंह भी वनरक्षक के पद पर तैनात था. इसी रेंज में क्षेत्र के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी भी दिहाड़ी मजदूर के रूप में तेंदू पत्ते तोड़ती थी.

बेटेबहू वाली नन्हकी देवी कुछ अरसा पहले पति की मौत हो जाने के बाद नीरस जिंदगी जी रही थी. भरापूरा परिवार होने के बाद भी उसे अकेलापन महसूस होता था. कुछ यही हाल सुरेंद्र का भी था. भले ही नन्हकी देवी 48 साल की थी, लेकिन उस के गठीले शरीर को देख कर नहीं लगता था कि वो 48 साल की है. जंगलों में काम करने के दौरान वह सुरेंद्र सिंह के काफी करीब आ गई थी.

इस में सहायक बना जंगलों का एकांत, जहां कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. दोनों में नजदीकियां बढ़ीं तो दिलों के साथ देह का भी मिलन होते देर नहीं लगी.

दोनों का दैहिक मिलन हुआ तो अकसर जंगल में ही उन का खानापीना भी होने लगा था. यह बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. गांव वालों के जरिए यह बात नन्हकी के बेटे मिथलेश के कानों तक भी पहुंच गई.
पहले तो उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ कि उस की मां ऐसा कर सकती है. लेकिन बाद में मिथलेश ने अपनी मां के बारे में उड़ रही अफवाहों पर ध्यान देना शुरू किया तो कानों सुनी बातों में उसे सच्चाई नजर आने लगी.

मां की वजह से पूरे गांव में परिवार की बदनामी हो रही थी. मिथलेश ने इस बारे में मां को समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी तो मिथलेश ने एक योजना बना ली. अपनी और परिवार की इज्जत का वास्ता देते हुए उस ने अपनी बहन के ससुर लक्ष्मण कोल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. लक्ष्मण गांव पोखड़ौर में रहते थे.

योजना के मुताबिक मिथलेश ने 13 अक्तूबर, 2017 को जंगल में बहन के ससुर के साथ मिल कर दावत के बहाने अपनी मां के अलावा सुरेंद्र सिंह को भी बुला लिया. अपनी मां से मिथलेश ने मछली पकवाई. वह शराब पहले से ही ले आया था. मिथलेश की मां भी शराब पीती थी. लक्ष्मण ने अपनी समधिन नन्हकी और उस के प्रेमी सुरेंद्र को खूब शराब पिलवाई जबकि खुद कम पी.

नन्हकी और सुरेंद्र जब नशे में हो गए तो सुरेंद्र पनिहरवा नाले के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे लेट गया. उसे पेड़ के नीचे लेटा देख मिथलेश ने पीछे से फावड़े से उस की गरदन पर वार किया. एक ही वार में उस का काम तमाम हो गया. उस की चीख सुन कर नन्हकी वहां से चिल्लाते हुए जान बचाने की गरज से भागने को हुई तो मिथलेश और लक्ष्मण ने उसे पकड़ कर गिरा दिया. फिर फावड़े से प्रहार कर के उसे भी मौत के घाट उतार दिया.

दोनों की सांसें जब थम गईं तो मिथलेश ने फावड़े से सुरेंद्र के सीने पर वार कर के उस का कलेजा निकाल लिया और उसे काट कर फेंक दिया. कोई उन दोनों लाशों को पहचान न सके, इसलिए उन के कपड़े उतार कर मुंह पर रख कर आग लगा दी.

हत्या करने के बाद दोनों शव वहीं नाले में फेंक दिए. सुरेंद्र की साइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त दोनों फावड़े कुछ दूर पर झाडि़यों में छिपा कर वे दोनों वहां से भाग निकले.

पुलिस के अनुसार, घटना के दूसरे दिन जब सुरेंद्र अपने घर नहीं पहुंचा तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की लेकिन कोई पता न चलने पर वे लोग नन्हकी के घर भी गए, क्योंकि कई बार देर हो जाने पर सुरेंद्र नन्हकी के घर जा कर रुक जाता था. लेकिन वहां दोनों के न मिलने से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

नातेरिश्तेदारों के यहां भी घर सुरेंद्र को तलाशा पर उस का कोई पता नहीं चल पाया तो घर वाले थाना हलिया जा कर उस की गुमशुदगी लिखवाने वाले ही थे कि नाले में लाश मिलने की खबर पा कर सुरेंद्र का भतीजा संजय वहां पहुंच गया. उस ने अपने चाचा के अलावा नन्हकी की लाश भी पहचान ली.

पुलिस ने लक्ष्मण को गिरफ्तार करने के बाद उसे 25 दिसंबर, 2017 को पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के मीडिया के समक्ष पेश किया. लक्ष्मण द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दूसरी ओर एसपी मीरजापुर आशीष तिवारी ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को शाबाशी देते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की. दूसरा फरार अभियुक्त मिथलेश पुलिस को चकमा देता फिर रहा था, लेकिन पुलिस के बढ़ते दबाव को देखते हुए उस ने भी अंतत: न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

कहानी लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों की जमानत नहीं हो सकी थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के झाल में फसाकर करता था बलात्कार

 

इमरान भले ही बड़ा बिजनैसमैन था, लेकिन अंदर से शैतान था. उस ने पहले सुहाना का शोषण कर के उसे धोखा दिया और अरसे बाद उस की बेटी अदीना, जो इमरान की नाजायज औलाद थी, को फंसाने लगा. लेकिन वह आगे बढ़ पाता इस से पहले ही…

य ह एक अजीबोगरीब केस है, दर्दभरी दास्तान. आप सुनेंगेपढ़ेंगे तो दुख आप को भी होगा. पढि़ए और सोचिए, मैं गलत था या सही. फैसला आप को करना है.

मकतूल एक दौलतमंद और रसूख वाला आदमी था जबकि कातिल 2 औरतें थीं. मां सुहाना और बेटी अदीना. सुहाना की उम्र करीब 38 साल थी और अदीना की 19 साल. वह बेहद हसीन व शोख लड़की थी. उस के चेहरे पर गजब की मासूमियत थी.

सुहाना भी खूबसूरत औरत थी, लेकिन उस के चेहरे पर उदासी और आंखों में समंदर की गहराई थी. दोनों मांबेटी कोर्ट में मुसकराती हुई आती थीं और बड़े फख्र से कहती थीं कि उन्होंने इमरान हसन को कत्ल किया है. अदीना कहती थी, ‘‘मैं ने एक ठोस डंडे से उस की पिंडलियों पर वार किए थे. वह नीचे गिर पड़ा.’’
सुहाना कहती थी, ‘‘जब वह नीचे गिरा तो मैं ने उसी ठोस डंडे से उस के सीने पर मारना शुरू किया, इस से उस की पसलियां टूटने की आवाज आने लगी. फिर मैं ने अपनी अंगुलियों के नाखून उस की दोनों आंखों में उतार दिए.’’

मांबेटी दोनों बड़े फख्र से ये कारनामा सुनाती थीं और मैं भी उन के गुरूर को सही समझता था. लाश बुरी हालत में मिली थी. डंडे से उस का सिर फोड़ दिया गया था. मैं जानता था, मासूम चेहरे वाली इन मांबेटी को कड़ी सजा मिलेगी. पर उन के चेहरे पर डर या वहशत नहीं थी. वे दोनों बड़े सुकून और इत्मीनान से बैठी रहती थीं. इस के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी थी. मैं आप को वही कहानी सुनाऊंगा, जो मुझे सुहाना ने कोर्ट के अंदर सुनाई थी.

आप यह सोच कर सुहाना की कहानी सुनें कि आप ही उस का इंसाफ करने वाले जज हैं. सुहाना ने मुझे बताया, ‘‘मेरी मां का नाम नसीम था. हमारा घर पुराना पर अच्छा था. घर में हम 3 लोग थे. मैं मेरी मां और मेरे अब्बू. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. हमारे रिश्तेदार और अब्बू के दोस्त आते रहते थे. अब्बू काफी मिलनसार थे.

बदनसीबी कहिए या कुछ और, अब्बू बीमार पड़ गए. 3 दिन अस्पताल में भरती रहे और चौथे दिन चल बसे. हम लोगों की दुनिया अंधेरी हो गई. कुछ दिनों तक दोस्तों व रिश्तेदारों ने साथ निभाया, लेकिन फिर सब अपनीअपनी राह लग गए. अब मैं बची थी और मेरी मजबूर मां. न कोई मददगार न सिर पर हाथ रखने वाला.

उस वक्त मैं बीए के पहले साल में थी, पर अब पढ़ाई जारी रखने जैसे हालात नहीं बचे थे. पड़ोसी भी शुरू में मोहब्बत से पेश आए लेकिन धीरेधीरे सब ने निगाहें फेर लीं. गनीमत यही थी कि हमारा घर अपना था. सिर छिपाने को आसरा था हमारे पास, पर खाने के लाले पड़ने लगे थे.

अम्मा ने घरों में काम करने की बात की, पर मुझ से यह बरदाश्त नहीं हुआ. मैं ने अम्मा को बहुत समझाया और खुद नौकरी करने की बात की. मैं इंग्लिश मीडियम से पढ़ी थी, मेरी अंगरेजी और मैथ्स बहुत अच्छा था. बहुत कोशिश करने पर मुझे एक औफिस में जौब मिल गई. वेतन ज्यादा तो नहीं था, पर गुजारा किया जा सकता था.

शुरू में लोगों ने बातें बनाईं कि खूबसूरती के चलते यह नौकरी मिली है. अम्मा बहुत डरती, घबराती, लोगों की बातों से दहशत खाती. मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘अम्मा, लोग सिर्फ बातें बनाते हैं. वे हमें खिलाने नहीं आएंगे. हमें अपना बोझ खुद उठाना है. लोगों को भौंकने दें.’’

अम्मा को बात समझ में आ गई. फिर भी उन्होंने नसीहत दी, ‘‘बेटी, दुनिया बहुत बुरी है. तुम बहुत मासूम और नासमझ हो. फूंकफूंक कर कदम रखना, हर मोड़ पर इज्जत के लुटेरे बैठे हैं.’’
मैं ने उन्हें दिलासा दी, ‘‘अम्मी, आप फिक्र न करें, मैं अपना भलाबुरा खूब समझती हूं. जिस फर्म में मैं काम करती हूं, वहां भेडि़ए नहीं, बहुत नेक और भले लोग हैं.’’

एकाउंटेंट अली रजा बूढ़े आदमी थे. बहुत ही सीधे व मोहब्बत करने वाले. मुझे नौकरी दिलाने में भी उन्होंने मेरी मदद की थी और पहले दिन से ही मुझे गाइड करना और सिखाना भी शुरू कर दिया था. वैसे मैं काफी जहीन थी. जल्द ही सारा काम बहुत अच्छे से करने लगी.

औफिस में सभी लोग अली रजा साहब की बहुत इज्जत करते थे. हां, फर्म के बौस इमरान हसन से मेरी अब तक मुलाकात नहीं हुई थी. सुना था, बहुत रिजर्व रहते हैं. काम से काम रखने वाले व्यक्ति हैं.
फर्म के लोग मालिक इमरान हसन से खुश थे. सब उन की तारीफ करते थे. मुझे वहां काम करते एक महीना हो गया था.

पहली तनख्वाह मिली तो अम्मा बड़ी खुश हुईं. तनख्वाह इतनी थी कि हम मांबेटी का गुजारा आसानी से हो जाता और थोड़ा बचा भी सकते थे. फर्म में 4-5 लड़कियां और भी थीं. उन से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. बौस पिछले दरवाजे से आतेजाते थे, इसलिए उन से मेरा कभी आमनासामना नहीं हुआ.

एक दिन एक कलीग रशना की सालगिरह थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे अपने घर आने की दावत दी. इस प्रोग्राम में बौस समेत औफिस के सभी लोग जाने वाले थे. मुझे भी वादा करना पड़ा. अम्मा से इजाजत लेने में मुश्किल हुई, क्योंकि वह मेरे अकेले जाने से परेशान थीं. रशना के यहां पहुंचने पर मेरा शानदार वेलकम हुआ. वहां बहुत धूमधाम थी. केक काटा गया. पार्टी भी बढि़या थी.

मैं अपनी प्लेट ले कर एक कोने में खड़ी थी. उसी वक्त एक गंभीर नशीली आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘आप कैसी हैं मिस सुहाना?’’

मैं ने सिर उठा कर सामने देखा. एक बेहद हैंडसम यूनानी हुस्न का शाहकार सामने खड़ा था. शानदार पर्सनैलिटी, तीखे नैननक्श, ऊंची नाक, नशीली आंखें. मैं बस देखती रह गई. मेरी आवाज नहीं निकल सकी. रशना ने कहा,

‘‘सुहाना, बौस तुम से कुछ पूछ रहे हैं.’’
मैं जैसे होश में आ गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ठीक हूं सर.’’
‘‘हमारी फर्म में कोई परेशानी तो नहीं है?’’
‘‘नहीं सर, कोई प्रौब्लम नहीं है. सब ठीक है.’’

मैं बौस को देख कर हैरान रह गई. कितने खूबसूरत, कितने शानदार पर उतने ही मिलनसार और विनम्र. अभी खाना चल ही रहा था कि बादल घिरने लगे. जब मैं घर जाने के लिए खड़ी हुई तो अच्छीखासी बारिश होने लगी. रशना भी सोच में पड़ गई. जब हम बाहर निकले तो बौस इमरान साहब कहने लगे, ‘‘सुहाना, अभी टैक्सी मिलना मुश्किल है. तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें तुम्हारे घर ड्रौप कर दूंगा.’’

रशना ने फोर्स कर के मुझे उन की कार में बिठा दिया. मैं सकुचाते हुए बैठ गई. मैं जिंदगी में इतने खूबसूरत मर्द के साथ पहली बार बैठी थी. मेरा दिल अजीब से अंदाज से धड़क रहा था. मैं ने कहा, ‘‘सर, आप ने मेरे लिए बेवजह तकलीफ उठाई. आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

इमरान साहब हंस पड़े, फिर कहा, ‘‘नहीं भई, हम इतने अच्छे इंसान नहीं हैं. अगर तुम भीग जाती तो बीमार पड़ जातीं. 2-3 दिन हमारे औफिस को इतनी अच्छी वर्कर से महरूम रहना पड़ता और फिर ये मेरा फर्ज भी तो है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप बेहद शरीफ इंसान हैं, बहुत नेक और बहुत खयाल रखने वाले.’’
उन्होंने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप को मुझ पर यकीन है तो मेरी एक बात मानेंगी?’’
‘‘जी कहिए, आप क्या चाहते हैं?’’
‘‘सामने एक अच्छा रेस्टोरेंट है, वहां एक कप कौफी पी जाए.’’

मैं सोच में पड़ गई, ‘‘मैं कभी ऐसे होटल में नहीं गई. मुझे वहां के तौरतरीके नहीं आते. मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ मैं ने कहा. इमरान साहब बोले, ‘‘कोई बात नहीं, हालात सब सिखा देते हैं. आप की इस बात ने मेरी नजरों में आप की इज्जत और भी बढ़ा दी. क्योंकि आप ने मुझ से अपनी हालत छिपाई नहीं, यह अच्छी बात है.’’

उन्होंने कार रेस्टोरेंट के सामने रोक दी. हम अंदर गए, बहुत शानदार हौल था. वहां का माहौल खुशनुमा था. मैं इस से पहले कभी किसी होटल में नहीं गई थी. इमरान साहब ने कौफी का और्डर दिया, फिर मेरे काम की, मेरे मिजाज की तारीफ करते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘अच्छा ये बताइए, आप मेरे बारे में क्या सोचती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘आप ने पार्टी में मुझे मेरा नाम ले कर पुकारा था, आप तो मुझ से मिले भी नहीं थे?’’
‘‘आप के सवाल में बड़ी मासूमियत है. आप मेरे औफिस में काम करती हैं और एक अच्छा बौस होने के नाते मुझे अपने साथियों के बारे में पूरी जानकारी रखना चाहिए. मैं तो यह भी जानता हूं कि आप औफिस की दूसरी लड़कियों से अलग हैं. अपने काम से काम रखने वाली.’’

मैं हैरान रह गई. हम कौफी पी कर बाहर आ गए. वह कहने लगे, ‘‘बहुत शुक्रिया, आप ने अपना समझ कर मुझ पर यकीन किया. आज तो आप से ज्यादा बातें न हो सकीं. खैर, अगली मुलाकात में बातें होंगी.’’

मैं देर होने से अम्मा के लिए परेशान थी. मैं ने सोच लिया था कि उन्हें इमरान साहब के बारे में कुछ नहीं बताऊंगी वरना उन की नींद उड़ जाएगी. मेरा घर आ गया. मैं ने गली के बाहर ही गाड़ी रुकवाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे यहीं उतार दें.’’

‘‘मैं आप की मजबूरी समझता हूं. मैं तो चाहता था कि आप को आप के दरवाजे पर ही उतारूं.’’
मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.

दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.

कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?

उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’

मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.

करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’

मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’ मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’

इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’
‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’

‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’
‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’

उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.
शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’

मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’

मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’
‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.

वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.
जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा.

उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’
‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’
‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’

वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’

‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’

मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.
दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’
‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’ फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.

‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’
‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’
‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’
‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’
शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’

इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’
इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’

मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’ अम्मा को इत्मीनान हो गया.

दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’

मेरा दिल जोरमैं ने शरमा कर कहा से धड़क रहा था. , ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’

‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’
‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’
‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’

मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’
‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’
‘‘रजा साहब बाकायदा मेरा रिश्ता ले कर तुम्हारी अम्मा के पास जाएंगे. तुम्हारी अम्मा को राजी कर लेंगे, पर पहले तुम्हारी मंजूरी जरूरी है.’’

मैं उन के कदमों में झुक गई. उन्होंने मुझे उठा कर सीने से लगा लिया. मेरे तड़पते दिल व प्यासी रूह को जैसे सुकून मिल गया. हम दोनों रोज मिलने लगे पर दुनिया से छिप कर. मैं तो अपने महबूब को पा कर जैसे पागल हो गई थी.

सब से बड़ी खुशी की बात यह थी कि उन्होंने अपनी मोहब्बत का इजहार शादी के पैगाम के बाद किया था. वह कहते थे, ‘‘सुहाना, मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी देना चाहता हूं.’’ और मैं कहती, ‘‘बस थोड़ा सा इंतजार मेरे महबूब.’’
‘‘जैसी तुम्हारी मरजी.’’ कह कर वह चुप हो जाते.

अब हालात बदल गए थे. मैं औफिस में उन के करीब रहती, हमारे बीच में बहुत से फैसले हो गए थे. मां की आंखों की रोशनी चली गई थी. हमारी मोहब्बत तूफान की तरह बढ़ रही थी. मैं अपनी मां की नसीहत, अपनी मर्यादा भूल कर सारी हदें पार कर गई. औफिस के बाद हम काफी वक्त साथ गुजारते. इमरान साहब ने मुझे कीमती जेवर, महंगे तोहफे और कार देनी चाही, पर मैं ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ये सब मैं शादी के बाद कबूल करूंगी.

मैं ने उन पर अपना सब कुछ निछावर कर दिया. एक गरीब लड़की को ऐसा खूबसूरत और चाहने वाला मर्द मिले तो वह कहां खुद पर काबू रख सकती है. मैं शमा की तरह पिघलती रही, लोकलाज सब भुला बैठी.

अली रजा साहब उन दिनों छुट्टी पर गए हुए थे. मैं ने इमरान हसन से कहा, ‘‘अब आप अम्मा से मेरे रिश्ते के लिए बात कर लीजिए. आप अम्मा के पास कब जाएंगे?’’
‘‘जब तुम कहोगी, तब चले जाएंगे.’’
‘‘अच्छा, परसों चले जाइएगा.’’
‘‘जानेमन, अभी अली रजा साहब छुट्टी पर हैं. वह आ जाएं, कोई बुजुर्ग भी तो साथ होना चाहिए.’’

मैं खामोश हो गई. अब वही मेरी जिंदगी थे. दिन गुजरते रहे वह अम्मा के पास न गए. अली रजा साहब भी पता नहीं कितनी लंबी छुट्टी पर गए थे. धीरेधीरे इमरान साहब का रवैया मेरे साथ बदलता जा रहा था. अली रजा साहब छुट्टी से वापस आ गए. मैं ने इमरान साहब से कहा, ‘‘आप कुछ उलझेउलझे से नजर आते हैं. क्या बात है?’’

‘‘कुछ बिजनैस की परेशानियां हैं. लाखों का घपला हो गया है. मुझे देखने के लिए बाहर जाना पड़ेगा.’’
‘‘आप अम्मा से मिल लेते तो बेहतर था.’’
‘‘हां, उन से भी मिल लेंगे, पहले ये मसला तो देख लें. लाखों का नुकसान हो गया है.’’
उन का लहजा रूखा और सर्द था. उन्होंने मुझ से कभी इस तरह बात नहीं की थी. मैं परेशान हो गई. रात भर बेचैन रही. मैं ने फैसला कर लिया कि सवेरे अली रजा साहब से कहूंगी कि वह इमरान साहब को ले कर अम्मा के पास मेरे रिश्ते के लिए जाएं. वह मुझे बहुत मानते हैं, वह जरूर ले जाएंगे.

दूसरे दिन मैं इमरान के औफिस में बैठी उन का इंतजार कर रही थी. 12 बजे तक वह नहीं आए, मैं अली रजा साहब के पास गई और उन से पूछा, ‘‘सर, अभी तक बौस नहीं आए?’’
अली रजा साहब बोले, ‘‘वह तो कल रात को फ्लाइट से स्वीडन चले गए.’’
मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह मुझे बिना बताए बाहर चले गए. मुझ से मिले भी नहीं.

‘‘मेरे लिए कुछ कह गए हैं?’’
‘‘हां, इमरान साहब की वापसी का कोई यकीन नहीं है. 7-8 महीने या साल-2 साल भी लग सकते हैं. कारोबार वहीं से चलता है. उन्हें वहां का बिगड़ा हुआ इंतजाम संभालना है. आप अपनी सीट पर वापस आ जाइए.’’ अली रजा साहब ने सपाट लहजे में कहा.
मुझे चक्कर सा आ गया. मैं ने एक हफ्ते की छुट्टी ली और घर आ गई.

कुदरत के भी अजीब खेल हैं. मां की रोशनी इसलिए छिन गई थी ताकि वह मेरी यह हालत न देख सकें. मैं अपने कमरे में पड़ी रहती, रोती रहती. मुझे एक पल का चैन नहीं था. पलपल मर रही थी मैं.
एक हफ्ते बाद एक उम्मीद ले कर औफिस पहुंची. शायद कोई अच्छी खबर आई हो. मैं ने अली रजा साहब से पूछा,

‘‘इमरान साहब की कोई खबर आई?’’
‘‘हां आई, ठीक हैं. औफिस के बारे में डिसकस करते रहे. क्या तुम्हें उन का इंतजार है?’’
‘‘जी, मैं उन की राह देख रही हूं.’’
‘‘बेकार है, जब वे आएंगे तो तुम्हें भूल चुके होंगे.’’

मेरी आंखों से आंसू बह निकले. उन्होंने दुख से कहा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता तुम्हें क्या कहूं? तुम जैसी मासूम व बेवकूफ लड़कियां आंखें बंद कर के भेडि़ए के सामने पहुंच जाती हैं. तुम्हारे घर वाले लड़कियों को अक्ल व दुनियादारी की बात क्यों नहीं सिखाते? तुम्हें यह क्यों नहीं समझाया गया, जहां तुम जा रही हो, वे लोग कैसे हैं. उन का स्टाइल क्या है. वहां तुम जैसी लड़कियों की क्या कीमत है. सब जानते हैं, ये अमीरजादे साथ नहीं निभाते, बस कुछ दिन ऐश करते हैं. पर तुम लोग उन्हें जीवनसाथी समझ कर खुद को लुटा देती हो.’’

मैं सिसकने लगी, ‘‘रजा साहब, मैं ने ये सब जानबूझ कर नहीं किया, दिल के हाथों मजबूर थी. उन की झूठी मोहब्बत को सच्चाई समझ बैठी.’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘सुहाना, अगर तुम अपनी इज्जत गंवा चुकी हो तो चुप हो जाओ, चिल्लाने से कुछ हासिल नहीं होगा. वह लौट करनहीं आएगा, ऐसा वह कई लड़कियों के साथ पहले भी कर चुका है. अब तुम अपने फ्यूचर की  फिक्र करो. बाकी सब भूल जाओ.’’

सुहाना अपनी कहानी सुनाते हुए बोली, ‘‘मैं ने सब समझ लिया. वक्त से पहले अपनी बरबादी को स्वीकार कर लिया. मेरे पास सिवा पछताने के और कुछ नहीं बचा था. मैं ने औफिस जाना छोड़ दिया. मां से बहाना कर दिया. उन्होंने ज्यादा पूछताछ की तो झिड़क दिया.’’

वक्त गुजरता रहा. मां चुप सी हो गईं. गुजरबसर जैसेतैसे हो रही थी. चंद माह गुजर गए और फिर पड़ोसियों ने मां से कह दिया. अम्मा ने मुझे टटोल कर देखा और एक दर्दभरी चीख के साथ बेहोश हो कर नीचे गिर गई. सदमा इतना बड़ा था कि वह बरदाश्त न कर सकी और फिर कभी नहीं उठ सकीं.

पेट में पलती औलाद ने मुझे खुदकशी करने न दी. फिर मेरी बदनसीब बेटी अदीना पैदा हो गई. मेरे जिस्म का एक टुकड़ा मेरी गोद में था. मैं ने अपना घर बेच दिया, एक गुमनाम मोहल्ले में एक कमरा खरीद कर रहने लगी. मैं ने अपनी पुरानी सब बातें भुला दीं. मकान से अच्छी रकम मिली थी. फिर मैं थोड़ाबहुत सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी.

हम मांबेटी की अच्छी गुजर होने लगी. मैं ने अपनी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश की. उसे दुनिया की हर ऊंचनीच समझाई. उस से वादा लिया कि वह मुझ से कोई बात नहीं छिपाएगी. अदीना बेइंतहा हसीन निकली. मैं ने उसे अच्छी तालीम दिलाई. वह बीएससी कर रही थी. एक दिन वह मुझ से कहने लगी, ‘‘मम्मी, मेरी एक बात मानोगी?’

’‘कहो.’’
‘‘मैं नौकरी करना चाहती हूं. मेरे एग्जाम भी पूरे हो गए हैं. रिजल्ट भी जल्द आएगा.’’
‘‘नहीं बेटी, नौकरी ढूंढना और करना बड़ा कठिन है.’’
‘‘मम्मी, मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई है.’’
‘‘कहां मिल गई नौकरी तुम्हें?’’
‘‘एक प्राइवेट फर्म है. फर्म के मालिक ने मुझे खुद नौकरी का औफर दिया है. मेरी इमरान साहब से कालेज के फंक्शन में मुलाकात हुई थी. वह चीफ गेस्ट थे. इतने नेक और सादा मिजाज आदमी हैं कि देख कर आप दंग रह जाएंगी.’’
‘‘कौन?’’ मुझे जैसे बिच्छू ने डंक मारा.

‘‘इमरान हसन साहब. बड़े हमदर्द इंसान हैं.’’ अदीना उन के बारे में पता नहीं क्याक्या बोलती रही. मुझे लगा, मेरे चारों तरफ जहन्नुम की आग दहक रही हो. फिर मैं ने खुद पर काबू पाया और कुछ सोच कर अदीना को नौकरी की इजाजत दे दी.

वह मेरी हां सुन कर खुशी से खिल उठी. साथ ही मैं ने एक काम किया. चुपचाप उस का पीछा करना शुरू कर दिया. मैं ने इमरान हसन को देखा, वह उतना ही खूबसूरत डैशिंग और खतरनाक था.
उम्र की अमीरी ने उसे और ग्रेसफुल बना दिया था. मैं उस के एकएक रूप एकएक चाल से वाकिफ थी. फिर मैं ने अदीना को अपनी गमभरी दास्तान सुनाई. वह कांप उठी, उस ने चीख कर पूछा, ‘‘ममा, कौन था वह कमीना बेदर्द इंसान?’’

‘‘मैं खुद उस बेगैरत की तलाश में हूं.’’
‘‘काश! वह मिल जाए.’’ अदीना ने गुर्राते हुए कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या करेगी तू उस का?’’
‘‘खुदा की कसम है मम्मी, मैं उसे जान से मार डालूंगी. ऐसा हाल करूंगी कि दुनिया देखेगी.’’

मुझे सुकून मिल गया, मैं ने अदीना की परवरिश इसी तरह की थी. ऐसा ही बनाया था उसे. मेरी निगरानी जारी थी. मैं चुपचाप उस का पीछा करती रही. उस दिन भी मैं अदीना से ज्यादा दूर नहीं थी, जब वह अदीना को अपनी शानदार कार में कहीं ले जा रहा था. वह अदीना को अपने घर ले गया. मैं भी छिप कर अंदर आ गई और दरवाजे के पीछे खड़ी हो गई.

मैं सारे रास्तों से वाकिफ थी. घर सुनसान पड़ा था. हलका अंधेरा था. मेरे कानों में इमरान हसन की नशीली आवाज पड़ी, ‘‘अदीना, तुम मेरी जिंदगी में बहार बन कर आई हो. मैं ने सारी जिंदगी तुम जैसी हसीना की तलाश में तनहा गुजार दी.’’

‘‘सर, ये आप क्या कह रहे हैं. मैं तो आप पर बहुत ऐतमाद करती थी. आप पर बहुत भरोसा है मुझे.’’
‘‘हां ठीक है, पर मोहब्बत तो उफनती नदी है. उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. तुम्हारी चाहत मेरी रगरग में समा गई है. मेरी जान, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘सर, ये आप गलत कर रहे हैं. आप मुझे यहां यह कह कर लाए थे कि कुछ लेटर्स भेजने हैं.’’
‘‘ये मेरा घर है और तुम अपनी मरजी से मेरे घर आई हो. अब यहां जो कुछ होगा, उस में तुम्हारी रजा भी समझी जाएगी. इस में मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर तुम बदनाम हो जाओगी. लोग कहेंगे तुम मेरे सूने घर में क्यों आई थीं?’’

‘‘सर, आप मुझे काम के बहाने लाए थे.’’
‘‘कौन सुनेगा, तुम्हारी बकवास.’’ वह हंस कर आगे बढ़ा. उसी वक्त मैं अंदर दाखिल हो गई. मैं ने कहा, ‘‘अदीना, यही है वह आदमी जिस की कहानी मैं ने तुम्हें सुनाई थी. यही है वह वहशी दरिंदा, जिस ने मेरी इज्जत लूटी थी.’’

इमरान मुझे देख कर हैरान रह गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘इमरान, ये तेरी बेटी है. तेरा गुनाह है.’’
फिर हम दोनों मसरूफ हो गए. अदीना ने अपना वादा निभाया. उसे कोने में रखा डंडा मिल गया. हम ने अपना इंतकाम लिया. इज्जत के लुटेरे उस शैतान को हम ने खत्म कर दिया. हम ने बहुत बड़ा नेक काम किया है और कई लड़कियों की इज्जत बचाई है. भले ही आप हमें सजा दीजिए, हमें मंजूर है. सुहाना चुप हो गई.

यह मेरी जिंदगी का सब से संगीन केस था. मैं बड़ी उलझन में था. अदालत में मैं सरकारी वकील की हैसियत से खड़ा था. मुझे इन मांबेटी पर संगीन जुर्म साबित करना था. उन के खिलाफ बोलना था, पर मेरा जमीर इस बात पर राजी नहीं था. मेरा दिल कहता था कि मैं यह मुकदमा हार जाऊं.

मुझे नहीं मालूम मैं ये मुकदमा ठीक से लड़ पाऊंगा या नहीं. मेरी जबान जैसे गूंगी हो गई थी. मैं अपनी बात कह नहीं पा रहा था. जुबान लड़खड़ा रही थी. और सचमुच मैं यह मुकदमा हार गया. मांबेटी सजा से बच गईं. मैं सही था या नहीं, कह नहीं सकता. आप खुद फैसला कीजिए. द्य

तांत्रिकों ने इलाज के नाम पर युवती को डेढ़ महीने कमरे में बंद रखा

आज के युग में तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने और ठगने वाले तथाकथित तांत्रिक समाज में कोढ़ की तरह हैं. आश्चर्य की बात यह है कि इन के छलावे में पढ़ेलिखे लोग भी आ जाते हैं. ताराचंद और उन की पत्नी उर्मिला बहकावे में न आए होते तो आज उन की बेटी जिंदा होती.

‘‘भै या, दरवाजा खोलो.’’ गेट की कुंडी खटखटाते हुए मोहिनी ने तेज आवाज में कहा.
घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो मोहिनी ने और तेज आवाज लगाते हुए एक बार फिर दरवाजे की कुंडी खटखटाई. इस बार घर के अंदर से किसी पुरुष की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘भैया, मैं हूं.’’ मोहिनी ने बाहर से जवाब दिया.
इस के बाद घर के अंदर से किसी के चल कर आने की पदचाप सुनाई दी तो मोहिनी आश्वस्त हो गई.
दरवाजा श्याम सिंह ने खोला. गेट पर छोटी बहन मोहिनी को देख कर उस ने पूछा, ‘‘मोहिनी, रात को आने की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई. घर पर मम्मीपापा तो सब ठीक हैं न?’’

‘‘भैया, मम्मीपापा तो सब ठीक हैं, लेकिन बड़ी दीदी ठीक नहीं हैं.’’ मोहिनी ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘भैया, अंदर चलो. मैं सारी बात बताती हूं.’’ मोहिनी श्याम सिंह को घर के अंदर ले गई.
श्याम सिंह ने पहले घर का दरवाजा बंद किया, फिर मोहिनी को ले कर अपने कमरे में आ गया. मोहिनी से कमरे में बिछी चारपाई पर बैठने को कह कर वह उस के लिए मटके से पानी का गिलास भर कर ले आया.

गिलास मोहिनी के हाथ में देते हुए श्याम सिंह ने कहा, ‘‘मोहिनी, तुम पहले पानी पी लो, फिर बताओ ऐसी क्या बात हुई, जिसे ले कर तुम परेशान हो.’’
मोहिनी एक ही बार में पूरा पानी पी गई. फिर लंबी सांस ले कर कुछ देर चुपचाप बैठी रही. मोहिनी को चुप बैठा देख श्याम सिंह बेचैन हो गया. उस ने मोहिनी के सिर पर स्नेह से हाथ रख कर पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है?’’

चुप बैठी मोहिनी की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘भैया, आप को यह तो पता ही है कि अनीता दीदी बहुत दिनों से बीमार थीं. दीदी 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन ज्यादा बीमार हो गईं. फिर अगले दिन बेहोश हो गई थीं. उस दिन के बाद से मैं ने दीदी को नहीं देखा, पता नहीं वह जिंदा भी हैं या नहीं?’’
श्याम सिंह ने बहन की आंखों में डबडबा आए आंसू पोंछ कर उस के इस शक की वजह पूछी.

‘‘मुझे शक इसलिए है कि घर में जिन तांत्रिकों ने डेरा जमा रखा है, वे मुझे दीदी के कमरे में जाने तक नहीं देते. दीदी के कमरे से बदबू आती है, लेकिन तांत्रिक दिन भर अगरबत्ती जलाए रखते हैं और इत्र छिड़कते रहते हैं ताकि बदबू न आए.’’

बहन की बातें सुन कर श्याम सिंह चिंता में पड़ गया. उसे पता था कि उस की बड़ी बहन अनीता बीमार रहती है और कुछ तांत्रिक उस का इलाज करने के नाम पर लंबे समय से घर में डेरा जमाए हुए हैं. उन तांत्रिकों ने उस के मातापिता को भी अपने जाल में कुछ इस तरह फंसा रखा था कि वे उन के कहे अनुसार ही चलते थे.

श्याम सिंह ने मोहिनी से पूछा, ‘‘मम्मीपापा को इस बात का पता है या नहीं कि दीदी के कमरे से बदबू आ रही है?’’
‘‘भैया, तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर मम्मीपापा को अंधविश्वास में इतना डुबो दिया है कि वे उन की बातों से आगे कुछ नहीं सोचतेसमझते.’’ मोहिनी ने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अब तो तांत्रिक मम्मीपापा को भी दीदी के कमरे में नहीं जाने देते.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद मोहिनी ने कहा, ‘‘भैया, कुछ करो वरना वे तांत्रिक मम्मीपापा और मुझे भी मार देंगे.’’
‘‘तू चिंता मत कर, हम अभी थाने चलते हैं और उन तांत्रिकों की करतूत पुलिस को बता देते हैं.’’
यह बीती 27 फरवरी की रात करीब 9-10 बजे की बात है. श्याम सिंह छोटी बहन मोहिनी को साथ ले कर गंगापुर सिटी थाने जा पहुंचा.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर को श्याम सिंह ने सारी बातें बताईं. मामला गंभीर था. ड्यूटी अफसर ने सूचना दे कर थानाप्रभारी दीपक ओझा को बुलवाया.
थानाप्रभारी ओझा ने श्याम सिंह से पूरी बात पूछी और लिखित में शिकायत देने को कहा. श्याम सिंह ने पुलिस को लिखित शिकायत दे दी. थानाप्रभारी ओझा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी नरेंद्र शर्मा को सारी जानकारी दी.

इस पर डीएसपी ने कहा कि वे गंगापुर सिटी थाने आ रहे हैं और अभी तुरंत काररवाई करेंगे.
कुछ ही देर में डीएसपी नरेंद्र शर्मा थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी दीपक ओझा से सारा मामला समझ कर शर्मा ने कहा कि यह एक लड़की के जीवनमरण से जुड़ा मामला है. पता नहीं कि वह लड़की जिंदा भी है या नहीं.

इसलिए हमें अभी रात में ही काररवाई करनी होगी. उन्होंने थानाप्रभारी को तुरंत एक टीम तैयार करने को कहा. इसी के साथ उन्होंने श्याम सिंह को बुला कर उस से तांत्रिकों के बारे में कुछ सवाल पूछे. इतनी देर में पुलिस टीम तैयार हो गई. तब तक रात के करीब 11 बज गए थे. डीएसपी नरेंद्र शर्मा के नेतृत्व में गंगापुर सिटी थानाप्रभारी दीपक ओझा अपनी टीम के साथ श्याम सिंह और मोहिनी को साथ ले कर उन के बताए पते पर रवाना हो गए.

10-15 मिनट में पुलिस टीम इंद्रा मार्केट पहुंच गई. मोहिनी अपने मातापिता के साथ इसी मार्केट में बने मकान में रहती थी. श्याम सिंह ने इंद्रा मार्केट में एक जगह पुलिस टीम को रोक कर एक मकान की ओर इशारा कर के बताया कि यह हमारा मकान है.

पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटक रहा था. पुलिस को पता लगा कि घर के लोग और तांत्रिक अंदर ही हैं. इस पर पुलिस टीम ने पड़ोस के मकान से हो कर उस घर में प्रवेश किया. पुलिस टीम जब घर के अंदर पहुंची तो हैरान रह गई. एक कमरे में जमीन पर लगे बिस्तर पर अनीता की लाश पड़ी थी. उस की लाश पर चादर डाली हुई थी. अनीता के शरीर पर कपड़े भी नहीं थे. शरीर पर कई जगह पट्टियां बंधी हुई थीं.

घर में 6 लोग मौजूद थे. इन में मोहिनी के पिता ताराचंद राजपूत और मां उर्मिला देवी के अलावा 4 तांत्रिक थे. पुलिस ने ताराचंद और उस की पत्नी उर्मिला से पूछताछ की तो पता चला कि तांत्रिक उन्हें लगातार डरातेधमकाते रहे, उन्होंने अनीता का इलाज नहीं करवाने दिया. तांत्रिक उन से कहते रहे कि अनीता जीवित है और जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

इस के लिए तांत्रिक कमरे में तंत्रमंत्र का नाटक करते रहे. पुलिस रात को ही अनीता के पिता ताराचंद राजपूत, मां उर्मिला के अलावा चारों तांत्रिकों को पकड़ कर गंगापुर सिटी थाने ले आई. पुलिस ने मकान सीज कर के वहां पुलिस कांस्टेबल तैनात कर दिया.

थाने ला कर चारों तांत्रिकों से पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि उस दिन रात घिरते ही मोहिनी मौका देख कर बिना किसी को बताए घर से निकल गई थी. वह अपने भाई श्याम सिंह को तांत्रिकों की करतूत बताने के लिए गई थी. तांत्रिकों को जब पता चला कि मोहिनी घर से गायब है तो एक तांत्रिकसपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा उस की तलाश में घर से निकला.

जाते समय गजेंद्र ने घर के बाहर से ताला लगा दिया था. इसी वजह से वह मौके पर नहीं मिला. बाद में वह फरार हो गया था. पुलिस ने 28 फरवरी को अनीता के मातापिता और चारों तांत्रिकों को गैरइरादतन हत्या और आपराधिक षडयंत्र की धाराओं में गिरफ्तार कर लिया. इन तांत्रिकों में सपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा की पत्नी मंजू, मथुरा निवासी बंटी उर्फ संदीप शर्मा, महूकलां निवासी नीटू चौधरी और धूलवास निवासी गोपाल सिंह शामिल थे.

उसी दिन पुलिस ने विधिविज्ञान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की टीम बुला कर मौके की जांचपड़ताल कराई. इस के बाद अनीता का शव सिविल अस्पताल पहुंचाया गया. शव का पोस्टमार्टम अस्पताल में 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराया गया. मैडिकल बोर्ड में डा. बी.एल. बैरवा, डा. कपिल जायसवाल और डा. मनीषा गोयल शामिल थीं.

बाद में डा. बी.एल. बैरवा ने बताया कि शव काफी दिनों पुराना था. जांच के लिए विसरा ले कर विधिविज्ञान
प्रयोगशाला भेजा गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने अनीता का शव अंतिम संस्कार के लिए उस के भाई को सौंप दिया.

पुलिस की पूछताछ और जांचपड़ताल में अंधविश्वास की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—
रणथंभौर अभयारण्य बाघों की शरणस्थली के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है. यह बाघ अभयारण्य राजस्थान के सवाई माधोपुर में है. इसी सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी है. गंगापुर सिटी के इंद्रा मार्केट में ताराचंद राजपूत अपनी पत्नी उर्मिला और परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में 3 बेटे श्याम सिंह, गोविंद और नरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं अनीता और मोहिनी.

अनीता कई साल पहले से बीमार रहती थी. ताराचंद ने बेटी का इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. ताराचंद पुराने विचारों के आदमी थे. कुछ लोगों ने उन्हें सयानेभोपों से बेटी का इलाज कराने की बात कही. उस दौरान तांत्रिक गजेंद्र और उस के साथी गोपाल सिंह, नीटू चौधरी और बंटी उर्फ संदीप शर्मा ताराचंद के संपर्क में आए. इन लोगों ने अनीता पर भूतप्रेत का साया बताया और ताराचंद के घर पर ही आ कर तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करते रहे.

उन्होंने अपने अंधविश्वासताराचंद को इस कदर वशीभूत कर लिया कि उस की सोचनेसमझने की शक्तिकमजोर पड़ती गई. ताराचंद पूरी तरह उन तांत्रिकों के चंगुल में फंस गया. 

कुछ दिन पहले इन तांत्रिकों ने ताराचंद से कहा कि अनीता अब बिलकुल ठीक हो गई है. साथ ही उसे यह भी बताया कि तंत्रमंत्र से उन्होंने अनीता के शरीर में देवी का प्रवेश करवा दिया है. इस के बाद इन तांत्रिकों ने अनीता को मोहरा बना कर ताराचंद के मकान के एक कमरे में मंदिर बना दिया. उस मंदिर में उन्होंने अनीता को एक गद्दी पर बैठा दिया.

बाद में ये तांत्रिक अनीता के शरीर में देवी होने की बात प्रचारित करके तंत्रमंत्र से दूसरे लोगों का इलाज करने लगे. गांवदेहात के नासमझ लोग बहकावे में आ कर ताराचंद के मकान पर इन तांत्रिकों के पास आने लगे. ये लोग इलाज करने के बहाने लोगों से किसी न किसी रूप में जेवर व पैसा आदि वसूलने लगे.

अपने घर में तांत्रिकों का डेरा देख कर ताराचंद के बेटे विरोध करने लगे. उन्होंने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं माने. तीनों बेटे बड़े हो गए थे. अनीता भी बड़ी थी.
पहले बीमार रहने और फिर तांत्रिकों के चक्कर में पड़ने की वजह से उस की शादी की उम्र भी निकल गई थी. बड़ी बहन की शादी नहीं होने और मातापिता के लगातार उन तांत्रिकों पर बढ़ते विश्वास के कारण घर में कलह रहने लगी.

रोजरोज की कलह से तंग आ कर तीनों भाई अलगअलग रहने लगे. उन्होंने अपने मातापिता का मकान छोड़ दिया. इन में 2 भाई श्याम सिंह और गोविंद गंगापुर सिटी में ही नहर रोड पर रहने लगे थे. तीसरा भाई नरेंद्र हरियाणा के बल्लभगढ़ में जा कर रहने लगा था. बड़ी बेटी अनीता और छोटी बेटी मोहिनी मातापिता के साथ इंद्रा मार्केट में अपने मकान में ही रहती रहीं.

तांत्रिकों ने ताराचंद को पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले रखा था. अनीता के बहाने उन्हें लोगों को ठगने का ठिकाना मिल गया था. हालांकि इन सभी तांत्रिकों के अपने घरपरिवार थे, लेकिन ये दिनरात ताराचंद के मकान पर जब चाहे आतेजाते रहते थे.

इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर अनीता ज्यादा बीमार हो गई. इन तांत्रिकों ने ताराचंद और उस की पत्नी को डरा दिया कि अगर उसे अस्पताल ले गए तो यह मर जाएगी. इस का इलाज हम ही करेंगे.
ताराचंद पहले से ही तांत्रिकों के अंधविश्वास में डूबा हुआ था. अनीता की मां उर्मिला भी उन तांत्रिकों को बेटी पर तंत्रमंत्र करने से मना नहीं कर सकी. तांत्रिकों ने अनीता पर तंत्रमंत्र किया, लेकिन अगले ही दिन यानी 15 जनवरी को अनीता की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. वह बेहोश हो गई.

इस के बाद उन तांत्रिकों ने अनीता को एक कमरे में बंद कर दिया और तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करने की बात कहते रहे. उस कमरे में केवल ये तांत्रिक ही आतेजाते थे. ये लोग दूसरे लोगों को उस कमरे में नहीं जाने देते थे.

ताराचंद और उर्मिला के बहुत जिद करने पर उन्हें कभीकभार उस कमरे में जाने देते थे. मोहिनी को भी वे लोग अनीता के कमरे में नहीं जाने देते थे. तांत्रिक मोहिनी को घर से बाहर भी नहीं निकलने देते थे.
ताराचंद या उर्मिला जब उस कमरे में जाते तो अनीता उन्हें बिस्तर पर लेटी ही मिलती. कमरे में दिनरात अगरबत्ती जलती रहती थीं. कमरा इत्र की खुशबू से महकता रहता था. तांत्रिक कहते थे कि अनीता जीवित है,

लेकिन अभी वह तुम से बात नहीं कर सकती. कुछ दिन ठहर जाओ, वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी, तब बात कर लेना. ताराचंद और उर्मिला उन तांत्रिकों की बातों पर भरोसा कर के चुप रह जाते थे.

मोहिनी उसी घर में रह रही थी. वह नहीं समझ पा रही थी कि बहन अगर जीवित है तो कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती? उसे बहन से मिलने क्यों नहीं दिया जाता? कुछ दिनों से उसे अनीता के कमरे से दुर्गंध आने लगी थी. कई बार वह उस कमरे में जाने की कोशिश करती, लेकिन तांत्रिक उसे रोक देते थे. उस कमरे में लगातार सुगंधित अगरबत्ती जलने और इत्र का छिड़काव होने से दुर्गंध इतनी ही थी कि घर में लेगों को महसूस हो जाए. घर से बाहर तक दुर्गंध नहीं जा रही थी.

लगातार कई दिनों तक बदबू आने से मोहिनी को शक हुआ कि दाल में जरूर कुछ काला है. उसे सब से ज्यादा चिंता अपनी बहन अनीता की थी, इसीलिए 27 फरवरी की रात मौका मिलते ही वह घर से निकल कर सीधे नहर रोड स्थित अपने भाई श्याम सिंह के घर पहुंच गई थी.

भाई को तांत्रिकों की सारी करतूतें बता कर उस ने अपना शक जाहिर कर दिया था. इस के बाद श्याम सिंह ने कोतवाली थाने पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस ने उस के मातापिता सहित चारों तांत्रिकों को गिरफ्तार कर लिया.

करीब 35 साल की बीमार युवती को इलाज के नाम पर डेढ़ महीने तक कमरे में बंद रखने और इस बीच उस की मौत हो जाने के बाद उस का शव घर में ही रख कर तंत्रमंत्र करने वाले तांत्रिकों को डर था कि मोहिनी उन का भेद खोल सकती है.

इसलिए वे उसे घर से बाहर नहीं निकलने देते थे. एक दिन मोहिनी ने उन तांत्रिकों से अनीता की मौत की आशंका जताई तो उन्होंने पिस्तौल दिखा कर उसे डरायाधमकाया कि उस ने अगर इस बारे में किसी से जिक्र किया तो अच्छा नहीं होगा.

तांत्रिकों ने अनीता के मातापिता और बहन मोहिनी को उन के ही घर में एक तरह से कैद कर के रखा हुआ था. उन के बाहर आनेजाने, किसी को फोन करने, मिलनेजुलने और बाहर की दुनिया से किसी तरह का संबंध रखने की सख्त मनाही थी.

तांत्रिकों व उन के साथियों का 24 घंटे उन पर अघोषित पहरा रहता था.
तांत्रिक और उन के साथी अपने लिए कोई सामान खरीदने बाहर जाते तो वे घर के बाहर ताला लगा कर जाते थे ताकि बाहर का कोई आदमी अंदर न आ सके और अंदर से कोई बाहर न जा सके.

पुलिस ने तांत्रिकों से पूछताछ के बाद नीटू चौधरी की निशानदेही पर ताराचंद के मकान में उस कमरे से एक पिस्तौल और 8 जिंदा कारतूस बरामद किए, जिस कमरे में तांत्रिकों ने मंदिर बना रखा था. इसी कमरे की तलाशी में पुलिस को लाखों रुपए के जेवरात भी मिले. ये जेवरात ताराचंद और उस के परिवार के नहीं थे, बल्कि तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों से ठगे थे. पुलिस ने अवैध हथियार मिलने पर नीटू चौधरी और फरार गजेंद्र शर्मा के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत अलग मामला दर्ज किया.

कथा लिखे जाने तक एक तांत्रिक गजेंद्र शर्मा फरार था. गिरफ्तार किए गए चारों तांत्रिक और मृतका अनीता के मातापिता अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में जेल में थे. गंगापुर सिटी थाने के सबइंसपेक्टर महेंद्र राठी इस मामले की जांच कर रहे थे.

यह विडंबना ही है कि विज्ञान के इस युग में तंत्रमंत्र के नाम पर ठगों ने अपना ऐसा जाल बिछा रखा है कि नासमझ और गांवदेहात को छोडि़ए, पढ़ेलिखे और अमीर लोग भी अंधविश्वास में फंस कर इन के बहकावे में आ जाते हैं. लेकिन यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है कि करीब एकडेढ़ महीने तक मृत युवती के शव को जीवित करने के नाम पर तांत्रिक कथित तौर पर जादूटोना करते रहे. दूसरों का भविष्य बताने वाले इन तांत्रिकों को खुद के भविष्य का पता नहीं था कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा.

हाथरस में धार्मिक सत्संग लाशें हैं पर अपराधी कहां

लोगों को धर्म के नाम पर बेवकूफ बना कर राजनीतिक पार्टियां और धर्मगुरु हमेशा अपना उल्लू सीधा
करते रहे हैं. स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि ने अपने सत्संग में अनुयायियों से ऐसा क्या कह दिया था
कि थोड़ी ही देर में सत्संग स्थल के पास 121 लाशें बिछ गईं.

चकाचक सफेद शर्ट, सफेद पैंट, सफेद मोजे और सफेद जूते पहने क्लीन शेव वाले शख्स को लोग भोले
बाबा के नाम से जानते थे. वह 2 जुलाई, 2024 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले के फुलराई में
आयोजित होने वाले एक सत्संग कार्यक्रम में शामिल हुआ था. वहां वह सफेद टोयोटा फोर्चुनर में सवार
हो कर आया था, जिस की सीटें भी सफेद रंग की थीं.

कार के साथ मोटरसाइकिलों और कारों का एक बड़ा काफिला भी आया था. उस की कार दूसरे वाहनों के
काफिले के साथ जैसे ही एटा की ओर जीटी रोड पर दाएं मुड़ी, हजारों की संख्या में उमड़े अनुयायी उस
ओर दौड़ पड़े.

वह शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वयंभू विश्वहरि बाबा उर्फ भोले बाबा था, जिस के सत्संग की उत्तर प्रदेश
में काफी चर्चा होती है. हजारों की संख्या में दूरदराज से आए लोगों की नजरों में वह व्यक्ति ईश्वरीय
शक्तियों वाला था. लोग अपनी गरदन उचका कर एक झलक पाने की कोशिश में लगे रहे. उन के बीच
होड़ मची रही, लेकिन उस की गाड़ी काफिले की गाडिय़ों के साथ धूल उड़ाती हुई सत्संग स्थल पर पहुंच
गई.

 


वह शख्स सारी सुरक्षाव्यवस्था के साथ भव्य सत्संग स्थल के मंच तक पहुंचा. भीतर बड़े पंडाल में हजारों
लोग पहले से बैठे थे. उन में औरतों की संख्या काफी थी. उमस भरी गरमी में कुछ लोग तेज चल रहे
पंखों की हवा में थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे, जबकि काफी लोग गरमी से बेचैन भी थे. हालांकि एक
दिन पहले बारिश हुई थी, तापमान में थोड़ी कमी होने के बावजूद वातावरण में उमस थी.

सत्संग में प्रवचन की शुरुआत उसी बड़े टेंट में होने वाली थी. इस के लिए आयोजन कमेटी बनी थी.
सत्संग आयोजित करने वाली कमेटी ने स्थानीय पुलिस से 80 हजार लोगों की परमिशन ली थी, लेकिन
वहां पर 300 फीट लंबा और 300 फीट चौड़ा टेंट लगा था, जिस में 60 हजार लोग ही समा सकते थे.

नतीजा कई बार भीड़ बेकाबू होने की हालत में हो जाती थी, जिसे वहां मौजूद वालेंटियर बड़ी मुश्किल से
संभाल पा रहे थे. करीब 2 दरजन पुलिसकर्मी भी मौजूद थे, जो टेंट के बाहर की ट्रैफिक व्यवस्था संभालने
में लगे हुए थे. भीड़ के हालात को देख कर लगता था कि मानो वहां भीड़ लाखों में थी. जो टेंट के भीतर
से ले कर बाहर तक फैली हुई थी.

सत्संग के दौरान किसी के भी आयोजन पंडाल में मोबाइल ले जाने पर पाबंदी थी. वीडियो बनाने पर भी पूरी तरह से रोक थी. फिर भी कोई चोरीछिपे वीडियो बनाने लगता तो सेवादार उसे सख्ती से मना कर देते थे. यहां तक कि उन का मोबाइल तक जब्त करने की चेतावनी देते थे.

बीते साल नवंबर से बदायूं, मैनपुरी भोगांव, धौलपुर, ग्वालियर, बिछवा और फिर हाथरस के मुगलगढ़ी में
इसी बाबा के सत्संग हो चुके थे. हर जिले के लिए बाबा ने अलग कमेटी बना रखी थी और यही कमेटी
ही सत्संग का आयोजन करती रही है.

बताया जाता है कि सत्संग के टेंट के बाहर करीब 3 लाख से ऊपर भीड़ थी. लोगों के आने का सिलसिला
जारी था. भीतर तो लोगों की संख्या 80 हजार से कहीं ज्यादा की थी. सभी वहां के इंतजाम से खुश नहीं
थे, किंतु 'भोले बाबा’ की अंधभक्ति के आगे किसी को कोई शिकायत नहीं थी.

बाबा के चरणों की धूल से कैसे लगा लाशों का ढेर 2 जुलाई, 2024 को मंगलवार का दिन था, जो हिंदू धर्मार्थियों की नजर में विशेष दिन के तौर पर माना जाता है. दोपहर के 12 बजे थे. भोले बाबा का सत्संग शुरू हो चुका था. करीब आधे घंटे बाद साढ़े 12 बजे स्वयंभू साकार नारायण हरिबाबा पंडाल में पहुंचा. उस के पहुंचते ही भीड़ भी उत्साहित हो गई. भीड़ उस का जय जयकारा करने लगी.

कुछ लोग उस के पास जाने के लिए मंच तक जाने की कोशिश करने लगे तो कुछ लोग अपनी समस्या
सुनाने के लिए अपनी जगह पर ही खड़े हो कर गुहार करने लगे. भीड़ को संभालने के लिए आयोजकों ने
निजी सिक्योरिटी गार्डों की व्यवस्था कर रखी थी.

वे फौजी की तरह ट्रैफिक संभालने से ले कर, पीने के पानी, शौचालय और दूसरे इंतजाम देख रहे थे. उन
की नजर उन लोगों पर अधिक थी, जो सत्संग में मोबाइल से वीडियो बनाने लगते थे. जो भी व्यक्ति
वीडियो बना रहा होता, उस पर बाबा के प्राइवेट सुरक्षकर्मी लाठी बरसाने से भी पीछे नहीं हटते थे.

थोड़ी देर में ही करीब 12.45 बजे बाबा का प्रवचन शुरू हुआ. उस के प्रवचन का दौर करीब एक घंटे तक
चला. इस दरम्यान बाबा ने जीवन जीने के तौरतरीके से ले कर समाज की मौजूदा हालात और देशदुनिया
की भी बातें कीं.

अंधभक्त बने अनुयायी बीचबीच में बाबा की जयजयकार लगाने से भी नहीं चूकते थे. इसी प्रवचन के
दौर में बाबा ने प्रलय की भी बात कही. रोग निदान के लिए अपने चरणों की धूल ललाट पर लगाने का
उपाय बता दिया.

बाबा पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं की नजरों के सामने था, जबकि बाहर उमड़ी भीड़ बाबा की झलक पाने को बेताब थी. जैसे ही बाहर खड़े लोग पंडाल में घुसने की कोशिश करते, सुरक्षकर्मी उन्हें धकेल देते. कुछ लोग संभलते, लेकिन कई लडख़ड़ा जाते थे.

 

आरती शुरू होते ही बाबा के अनुयायियों के बीच हलचल होने लगी. उन की गहमागहमी से पंडाल के
भीतर का माहौल थोड़ा अराजक भी हो गया. लोग अपनी जगह से उठ कर बाबा के करीब जाने की
कोशिश करने लगे. कई लोग आरती में करीब से शामिल होने की कोशिश में लग गए. उन्हें काबू में
करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने एक बार फिर से कस कर मोर्चा संभाल लिया…डंडे बरसाए.

आरती के खत्म होते ही अपराह्नï 2 बजे बाबा ने सत्संग समाप्ति की घोषणा कर दी. इस घोषणा के
साथ ही बाबा के निजी सुरक्षाकर्मियों ने कार्यक्रमस्थल की सारी व्यवस्था को पूरी तरह से अपने कब्जे में
ले लिया, लेकिन तब तक भीड़ में उतावलापन काफी बढ़ गया था. इस का एक कारण था बाबा द्वारा की
गई अंतिम घोषणा— 'आप सभी मेरी चरण धूल ले कर घर जाएं!’

इस के बाद तो भीड़ को संभालने में सुरक्षाकर्मियों को भी पसीना निकल आया. उन में कई बाबा की
सुरक्षा में जुट गए तो कुछ लाठियां भांजने लगे.

भीड़ में अफरातफरी मच गई थी. लोग बाबा की चरण धूल लेने के लिए उस की तरफ बढऩे लगे. लोगों
को संभालने के लिए न तो बाबा के निजी सुरक्षाकर्मी और न ही यूपी के पुलिसकर्मी पर्याप्त थे. बाबा के
प्रवचनों की अंतिम लाइन बाहर उतावली भीड़ ने सुनी.

इसी बीच करीब सवा 2 बजे बाबा सुरक्षित दरवाजे से अपनी गाड़ी में जा बैठा. करीब ढाई बजे बाबा का
काफिला निकल पड़ा. किंतु जैसे ही काफिला निकला, बाहर की भीड़ को रोक दिया गया. इस दौरान बाबा
के चरणों की धूल लेने के चक्कर में अनुयायी अनियंत्रित हो गए. भगदड़ मच गई.

सड़क के किनारे गड्ढे थे, जिस में बारिश का पानी और कीचड़ थी. जहां मैदानी भाग था, वहां की जमीन
भी जगहजगह गीली थी. बाबा का काफिला तेजी से बढ़ता चला गया, जबकि भीड़ में मची भगदड़ से कई
लोग वहीं गिर गए.

एक बार जो गिरा, गीली मिट्टी में फिसल गया और दोबारा उठ नहीं पाया. तब तक उस पर दूसरे लोग
गिर गए. यानी लोग गिरते रहे, मरते रहे और बाबा के कारिंदे गाडिय़ों से भागते रहे. किसी ने भी रुक
कर हालात को जानने की कोशिश नहीं की. …और मृतकों की संख्या हो गई 121 महिलाएं और पुरुषों की भीड़ एकदूसरे पर गिरने लगी.

बाबा का काफिला निकालने के दौरान सेवादारों की जबरदस्त बंदिशें थीं. जिस ने भी उन की बंदिशें तोड़ कर बाबा तक पहुंचने की कोशिश की, वह भगदड़ की मौत के ढेर में जा धंसा. कोई धक्के से गिरा तो कोई फिसल कर. किसी का सीना कुचला तो किसी का सिर.

इस हृदयविदारक हादसे की खबर कुछ मिनटों में ही सोशल साइटों के जरिए सुर्खियां बन गई.
मीडियाकर्मी सक्रिय हो गए. इस हादसे में पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही की चौतरफा चर्चा होने
लगी. इस हादसे में बड़ी संख्या में लोग घायल भी हो गए थे. उन्हें दोपहर सवा 3 बजे शव सीएचसी व
ट्रामा सेंटर पर ले जाया गया.

वहां 38 घायलों को उपचार के बजाय रेफर करने की औपचारिकता पूरी की गई. इन में से कुछ घायलों
को अलीगढ़, कुछ को हाथरस और कुछ को आगरा रेफर कर दिया गया. अस्पतालों में इमरजेंसी परिसर
में घायलों और मृतकों की लाशों का अंबार लग गया. देखते ही देखते उन की संख्या 100 को पार गई. जिन की संख्या 121 तक जा पहुंची.

इस दुखद घटना का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गूगल में सब से अधिक सर्च किए जाने
वाले विकिपीडिया पर यह '2024 उत्तर प्रदेश भगदड़’ के रूप में दर्ज हो गई. इस हादसे को ले कर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभाल लिया. यूपी पुलिस ने ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी, जिस
के अंजाम भी निकले.

घटना के 2 दिन बाद पुलिस ने 4 जुलाई को 6 अभियुक्तों की गिरफ्तारी कर ली, जिन में सत्संग
आयोजन समिति से जुड़े 4 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं. गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों में राम लडैते
यादव (मैनपुरी), मंजू यादव (हाथरस), उपेंद्र सिंह यादव (फिरोजाबाद), मंजू देवी यादव (हाथरस), मेघ सिंह
(हाथरस) और मुकेश कुमार (हाथरस) शामिल हैं. ये सभी सेवादार हैं.

इस के साथ ही पुलिस ने मुख्य आयोजक देवप्रकाश मधुकर की गिरफ्तारी पर एक लाख रुपए का इनाम
घोषित कर दिया. बाद में इस की भी दिल्ली से गिरफ्तारी हो गई.

इन पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैरइरादतन हत्या), धारा 110 (गैरइरादतन हत्या का प्रयास),
धारा 126 (2) (गलत तरीके से रोकना), धारा 223 (लोकसेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन), धारा 238
(अपराध के साक्ष्य को गायब करना) का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

जांच दर जांच, बाबा पर क्यों नहीं आई आंच
हाथरस सत्संग हादसे को ले कर न केवल ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां हुईं, बल्कि 7 दिनों के भीतर 4 तरह की
जांच पूरी कर ली गई. हालांकि कथा लिखे जाने तक सूरजपाल उर्फ भोले बाबा पर किसी तरह की गाज
नहीं गिरी. उस पर कोई आंच नहीं आई. जबकि गिरफ्तार सभी आरोपियों पर धाराएं भी बढ़ा दी गईं.
सभी आरोपियों को 16 जुलाई, 2024 को पुलिस सुरक्षा के बीच हाथरस कोर्ट में पेश किया गया. इस की
विवेचना के लिए एसआईटी गठित कर दी गई.

एसआईटी की जांच रिपोर्ट के बाद प्रशासनिक स्तर पर 6 अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित कर
दिया गया. इस में एसडीएम, सीओ, इंसपेक्टर और 2 चौकी इंचार्ज शामिल हैं. इस की जांच मुख्यमंत्री के
निर्देश पर न्यायिक आयोग के जिम्मे है.

हादसे की 4 तरह से जांच की गई. सभी में भगदड़ की वजह एक जैसी सामने आई, फिर भी सूरजपाल
(साकार विश्वहरि) उर्फ भोले बाबा को किसी ने दोषी नहीं ठहराया. सत्संग के बाद मची भगदड़ से हुई
121 मौतों के लिए प्रशासनिक अफसरों को जिम्मेदार माना गया.

उन के साथसाथ सेवादारों पर साक्ष्य छिपाने, भीड़ अधिक एकत्रित करने आदि के आरोप लगे. चरण रज
लेने के लिए लोगों का दौडऩा, सेवादारों द्वारा भीड़ रोकना, धक्कामुक्की करना, निकास के लिए एक गेट
होना आदि भी जांच का आधार बना. यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ वाली जगह
का खुद भी निरीक्षण किया है.

4 जांच रिपोर्टों में पहली रिपोर्ट पुलिस की थी, दूसरी एसडीएम की, तीसरी एसआईटी की और चौथी
न्यायिक रिपोर्ट है. एक नजर डालें कि 2 जुलाई, 2024 को जीटी रोड 91 से लगे 6-7 लोगों के 150 बीघा
खेत में आयोजन और हादसे के संबंध में कौन रिपोर्ट क्या कहती है?

पुलिस की रिपोर्ट: हादसे के बाद सिकंदराराऊ कोतवाली के अंतर्गत पोरा चौकी प्रभारी ब्रजेश पांडे की ओर से मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर व अन्य के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, 110, 126 (2), 223, 238 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, जिस में 80 हजार लोगों की अनुमति लेने और 2 लाख
से अधिक भीड़ आने, चरण रज लेने व दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ को सेवादारों द्वारा भीड़ रोकने,
धक्कामुक्की करने के चलते हादसा होने व साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया था.

यह जांच रिपोर्ट 5 जुलाई, 2024 को गिरफ्तार 6 लोगों से पूछताछ के आधार पर तैयार की गई. उन्होंने
बताया कि चरण रज के लिए बाबा के अनुयायी दौड़ पड़े थे. जांच में आपराधिक षडयंत्र की आशंका
जताई गई. 6 जुलाई को मुख्य आयोजक मधुकर सहित 3 लोग गिरफ्तार किए गए. उन से पूछताछ में
राजनीतिक फंडिंग की बात भी सामने आई. कथा लिखे जाने तक इस की अलग से जांच जारी थी.

जांच में यह भी मालूम हुआ कि साकार हरि यानी सूरजपाल की मुख्य आयोजक से घटना वाले दिन 4
बार फोन पर बात हुई. इस मामले में 7 जुलाई को 2 लोग गिरफ्तार किए गए, जबकि 65 से अधिक
निशाने पर थे. इस के लिए 12 टीमें प्रदेश के अलावा हरियाणा, दिल्ली एनसीआर, राजस्थान, मध्य प्रदेश
में लगा दी गई थीं. इन से संबंधित 200 से अधिक मोबाइल नंबर सर्विलांस पर थे.

प्रशासन की रिपोर्ट: दूसरी जांच रिपोर्ट प्रशासन की थी, जो घटना के बाद रात को ही एसडीएम रवेंद्र
कुमार द्वारा डीएम को सौंप दी गई थी. शासन तक भेजी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्संग के
पंडाल में 2 लाख से अधिक की भीड़ थी. साकार विश्वहरि दोपहर लगभग साढ़े 12 बजे पंडाल में पहुंचा
और एक घंटे तक कार्यक्रम चला.

लगभग 1.40 बजे उस का काफिला पंडाल से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग-91 (जीटी रोड) पर एटा की ओर
जाने के लिए बढ़ गया था. जिस रास्ते से वह निकल रहा था, उस रास्ते की और सत्संगी महिलापुरुष
दर्शन, चरण स्पर्श एवं आशीर्वाद के लिए दौड़ पड़े थे. वे बाबा की चरण रज को माथे पर लगाने लगे थे.

यहां तक कि डिवाइडर पर खड़े लोग कूदकूद कर बाबा के दर्शन के लिए वाहन की और दौडऩे लगे थे.
उन्हें रोकने के लिए बाबा के साथ उन के निजी सुरक्षाकर्मी (ब्लैक कमांडो) और सेवादारों ने पूरी ताकत
लगा दी थी. वे श्रद्धालुओं को बाबा के पास जाने से रोकना चाहते थे. इस के बाद उन्होंने धक्कामुक्की
शुरू कर दी, जिस से कुछ लोग नीचे गिर पड़े. तब भी भीड़ नहीं मानी और अफरातफरी का माहौल बन
गया.

कई लोग कार्यक्रम स्थल के सामने सड़क के दूसरी ओर खुले खेत की तरफ भागे. जहां सड़क से खेत की
ओर उतरने के दौरान अधिकांश लोग फिसल कर गिर गए. इस के बाद वे फिर से उठ नहीं पाए.
एसआइटी की प्रारंभिक रिपोर्ट: मुख्यमंत्री के निर्देश पर घटना वाले दिन ही एसआईटी गठित कर दी गई
थी. इस में एडीजी (आगरा जोन) अनुपम कुलश्रेष्ठ और मंडलायुक्त (अलीगढ़) चैत्रा वी. को जांच करने

की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इन्होंने पहली रिपोर्ट 24 घंटे में मुख्यमंत्री को सौंप दी थी, जिस में सेवादारों
को दोषी ठहराया गया. साथ ही किसी षडयंत्र की आशंका भी जताई गई.

इस रिपोर्ट में डीएम, एसपी सहित 100 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए गए. बयानों में चरणरज लेने
के कारण भगदड़ की बात कही गई. इस के साथ ही सेवादारों द्वारा धक्कामुक्की और निकासी के लिए
एक गेट होनेे को बड़ा कारण बताया गया.

न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट: इस हादसे की महत्त्वपूर्ण न्यायिक जांच आयोग द्वारा की गई थी. इस
के लिए आयोग 6 जुलाई को हाथरस पहुंचा था. आयोग से सदस्यों ने अधिकारियों के साथ बैठक के बाद
घटनास्थल का मुआयना भी किया था. इस के बाद एसपी, डीएम सहित अन्य अधिकारियों के बयान दर्ज
किए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में 5 घंटे तक 34 लोगों के बयान दर्ज किए गए थे. इन
में चश्मदीद, मीडियाकर्मी व अन्य लोग शामिल हुए थे. इन लोगों ने भी घटना की वजह चरण रज लेना
बताई. सेवादारों के मौके से भाग जाने और धक्कामुक्की की बात भी कही. इस के बाद दल लखनऊ
रवाना हो गया. न्यायिक जांच आयोग का गठन पूर्व न्यायाधीश बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में
किया गया था.

स्वयंभू बाबा ने दिया बेशर्मी का बयान
सभी जांच रिपोर्टों में हादसे का महत्त्वपूर्ण कारण सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के चरण रज ही बताया गया.
हादसे के करीब 3 हफ्तों के बाद सूरजपाल उर्फ भोले बाबा 17 जुलाई को वीडियो के जरिए लोगों के
सामने आया. वीडियो में उस ने हादसे के बारे में जो बातें कहीं, वह घटना को ले कर की गई बेहद
अतिसंवेदनशील टिप्पणी मानी गई.

वह वीडियो समाचार एजेंसी एएनआई की थी, जिस में उस ने कहा कि 2 जुलाई की घटना के बाद मैं
बेहद दुखी हूं, लेकिन जो होना तय है उसे कौन रोक सकता है? जो आया है उसे एक न एक दिन जाना ही
है.

इस वीडियो में भी भोले बाबा सफेद कपड़ों में लाल टीका लगाए नजर आया. उस की उम्र 60 साल से
अधिक बताई जाती है. धूप का महंगा चश्मा पहनता है और महंगी टाई के साथ सूटबूट में रहता है. उसे
उत्तर भारत और उस के बाहर अपने अनुयायियों के बीच एक पंथ का दरजा प्राप्त है.

उस के कई अनुयायी मानते हैं कि वह लाइलाज रोगों के तुरंत इलाज करने में सक्षम है और उस की एक
झलक मात्र से ही घातक बीमारियों से पीडि़त लोग स्वस्थ हो सकते हैं. साथ ही लोगों का यह भी मानना
है कि वह लोगों को आर्थिक संकट से भी बाहर निकाल सकता है. उस के प्रवचन और दर्शन मात्र से ही
पैसे की तंगी दूर हो जाती है.

देश के सब से अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कासगंज जिले के बहादुर नगर गांव में एक
दलित जाटव परिवार में सूरजपाल के रूप में उस का जन्म हुआ था. बाबा बनने से पहले वह एक पुलिस
कांस्टेबल था.

उस की पत्नी प्रेमवती को 'माताजी’ बुलाया जाता है, वह भी पति के मंच पर दिखाई देती है. वह सत्संग के सिलसिले में यात्राएं करती रहती है. बताते हैं कि बाबा के नाम पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य जगहों पर कई आश्रम खुले हैं. बाबा की देखरेख में कम से कम 24 आश्रम हैं, जिन में से
मैनपुरी का आश्रम 12 एकड़ के भूखंड पर है. यहां 6 कमरे विशेष रूप से उस के और उस की पत्नी के
लिए बनाए गए हैं.

इसी तरह के कासगंज के बहादुर नगर गांव में भी उस का एक आश्रम है. यहां भी 6 कमरे विशेष
उपयोग के लिए बनाए गए हैं. इस की देखभाल करने वाला व्यक्ति राजपाल सिंह खुद को बाबा का सेवक
बताता है.

इस आश्रम में अनुयायियों और कर्मचारियों के रहने की अच्छी व्यवस्था है. यहीं बनी बाबा के लिए बनी
भव्य इमारत में सभी के लिए प्रवेश वर्जित है. आश्रम के स्वयंसेवकों के अनुसार बाबा पिछली बार 30
मई, 2014 को सत्संग के लिए इस गांव आए थे.

स्वयंसेवकों की मानें तो बाबा जब भी यहां आता है, लोग बड़ी संख्या में आ जाते हैं. बाबा से मिलने वालों
का तांता लगा होता है. और तो और वे जब यहां नहीं होते हैं, तब भी लोग आश्रम में आते रहते हैं.
आश्रम के स्वयंसेवक का कहना है कि वह कहने को जाटव है, लेकिन यादव समुदाय से आता है.

स्वयंसेवक बाबा की तारीफ करने से जरा भी नहीं चूकता है. उस ने मीडिया के सामने उस की खूब
तारीफों के पुल बांधे. बताया कि वह विभिन्न जाति समूहों और धर्मों के अनुयायियों को आकर्षित कर
लेता है.

बाबा को उस के भक्त 'नारायण साकार हरि’ और 'प्रभुजी’ कहते हैं. एक सेवक का कहना है कि बाबा का
कोई स्थायी निवास नहीं है, इसलिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं. बाबा का एक आश्रमग्वालियर में भी है, जिस की ऊंची सफेद दीवारों के पीछे बड़े खुले स्थान हैं. भक्त एकदूसरे को 'नारायण साकार हरि’ कह कर अभिवादन करते हैं.

मैनपुरी के आश्रम में करीब 26 स्वयंसेवक रहते हैं, जो अपनाअपना गांव छोड़ कर इस गांव में आ कर
बस गए हैं. वे दूसरेदूसरे काम करते हैं, लेकिन आश्रम चलाने में भी मदद करते हैं. इन में पीलीभीत का
एक सिख किसान कुलवंत सिंह भी शामिल है, जिस ने पहली बार 2014 में बाबा को देखा था और 5 साल
बाद इस सुदूर गांव में आ कर बस गया. उस का कहना है कि आश्रम में आने के बाद से उस के परिवार
का जीवन बदल गया.

स्वयंभू बाबा ने खुद को क्यों रखा प्रचार से अलग अन्य बाबाओं की तरह सूटबूट टाई बांधने वाले भोले बाबा ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है. वह चाहे कपड़े और पहनावे से हो या फिर ईश्वर की तरह दिखने की हो. जैसे वह अपनी अंगुलियों में एक चक्र घुमाता है. ऐसा कर वह जादू के करतब दिखाता है. इस तरह से एकत्रित भीड़ का मनोरंजन भी हो जाता है.

उस की कुछ बातें अन्य धर्मगुरुओं से अलग करती हैं. जैसे वह प्रचार के लिए टेलीविजन या सोशल
मीडिया का सहारा नहीं लेता है. एक आध्यात्मिक गुरु के तौर पर, उस की औनलाइन मौजूदगी सीमित है.
उस का यूट्यूब चैनल भी है, लेकिन पिछले 2 दशकों में वह काफी हद तक मौखिक प्रचार की वजह से
लोकप्रिय हुआ है.

कासगंज में बाबा के निवास पर बड़े दरवाजे लगे हैं, जो एक किले के प्रवेश द्वार की तरह दिखता है. उस
के शिखर पर एक कमल की बड़ी प्रतिमा बनी है. हलके गुलाबी रंग की पतलून, शर्ट और टोपी पहने 3
सेवादार वहां लगाए गए हैं. वे वहां की निगरानी करते हैं और आसपास सड़क तक की सफाई करते हैं. वे
आश्रम में 7 दिनों तक स्वैच्छिक सेवा करते हैं. वहां उन्हें 2 बार सादा शाकाहारी भोजन दाल, रोटी और
एक सब्जी मिलती है.

उन में एक 50 वर्षीय किसान राम अवतार है, जो करीब 80 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने
वाला है. उस ने बाबा को पहली बार 2004 में तब सुना था जब एक समागम में शामिल हुआ था. उस के
बाद उस ने वरदी खरीदी और यहां स्वैच्छिक सेवा शुरू कर दी. इसी तरह से दूसरा सेवादार प्रताप सिंह
85 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद का है. वह आश्रम में 18 साल की उम्र से ही है.

उस का कहना है कि बाबा भक्तों से कुछ नहीं लेते. उस के आश्रम में कोई दानपात्र नहीं है. बाबा का
कहना है कि जो भी बुरा है, वह तुम्हारे अंदर है और सभी को ईश्वर से जुडऩे के लिए कहते हैं. यही बात
उन के दिमाग में बैठ गई और वह सेवादार बन गया.इसी तरह से एक अन्य सेवक राकेश कुमार महाराष्ट्र के कुर्ला का रहने वाला है. वह बाबा के सत्संग देने के लहजे से प्रभावित हो कर आश्रम का स्वैच्छिक सेवादार बन गया है.

बाबा अपनी यात्राओं के लिए जिन कारों का इस्तेमाल करता है, वे अकसर सत्संग के आयोजकों द्वारा
भेजी जाती हैं, लेकिन वह बाबा की पसंद के हिसाब से बनाई गई होती हैं, सभी सफेद रंग की होती हैं.
बाबा के आश्रम में किसी भी देवीदेवता की तसवीर या मूर्ति नहीं लगी होती है. यहां तक कि बाबा की
खुद की भी तसवीर नहीं होती है.

हालांकि बाबा ने पिछले 2 दशकों में लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता प्रचलित कहानियों के जरिए बनाई है. लोगों की बीमारियां, परेशानियां ठीक करने और अन्य चमत्कार करने के उस के ईसा मसीह जैसे कारनामे शामिल हैं. इस में कोई संदेह नहीं कि बाबा का प्रभाव बढ़ रहा है और इस का अंदाजा सत्संग में आने वाले लोगों की संख्या से चलता है.

बाबा का अपने सगे भाई से क्यों हुआ था झगड़ा
बाबा के वकील ए.पी. सिंह ने दावा किया कि हाथरस में सत्संग में हुई हालिया दुर्घटना के पीछे ऐसे लोग
और समूह जिम्मेदार हैं, जो बाबा के बढ़ते प्रभाव से नफरत करते हैं. उन का कहना है कि गुरु को
बदनाम करने के लिए बदमाशों ने वहां मौजूद लोगों पर जहरीला पदार्थ छिड़क दिया था.

हाथरस हादसे में बाबा ने ए.पी. सिंह को अपना वकील नियुक्त किया है. ए.पी. सिंह 2012 के निर्भया
गैंगरेप मामले में 2 आरोपियों के वकील थे.

सूरजपाल उर्फ बाबा भी 2000 में एक किशोरी के शव के साथ भागने के चलते मुसीबत में पड़ गया था.
तब उस ने दावा किया कि वह उसे वापस जीवित कर सकता है. तब वह बाबा नहीं, सूरजपाल था.
उस के बाद उस के भोले बाबा बनने की दिलचस्प यात्रा शुरू हो गई थी. खुद को भगवान मानने वाले
सूरजपाल ने अपने परिवार से सारे संबंध तोड़ लिए थे. बाबा के भाई उस गांव में आश्रम की दीवार से
बमुश्किल 20 मीटर की दूरी पर रहते हैं, जहां उस का जन्म हुआ था.

हाथरस में हुई मौतों के बाद बाबा ने एक वीडियो के जरिए संवेदना जताई थी. उस में यह कहते हुए
दिखाई दिया कि उसे पीडि़तों के परिजनों के लिए दुख है और वह किसी भी पूछताछ में पुलिस के साथ सहयोग करेगा.

उस के बाद 6 जुलाई को एएनआई द्वारा जारी एक वीडियो में उस ने कहा, '2 जुलाई की घटना के बाद मैं बहुत दुखी हूं. भगवान हमें इस दर्द को सहने की शक्ति दे. कृपया सरकार और प्रशासन पर भरोसा
रखें. मुझे विश्वास है कि जिस ने भी अराजकता फैलाई है, उसे बख्शा नहीं जाएगा. अपने वकील ए.पी.
सिंह के माध्यम से मैं ने समिति (ट्रस्ट) के सदस्यों से अनुरोध किया है कि वे शोकाकुल परिवारों और
घायलों के साथ खड़े रहें और जीवन भर उन की मदद करें.’

उल्लेखनीय है कि सूरजपाल उर्फ बाबा श्रीनारायण साकार हरि चैरिटेबल ट्रस्ट का अध्यक्ष है, जिसे पहले
मानव सेवा आश्रम कहा जाता था. कासगंज में उस के आश्रम से 50 मीटर से भी कम दूरी पर बाबा का
छोटा सा घर है, जिस में खुली नालियों वाली एक संकरी गली के किनारे अंधेरे कमरे हैं. यहीं वह अपने 2
भाइयों और 3 बहनों के साथ पलाबढ़ा. वहां अब केवल उस का भाई, जिस के साथ बाबा का कई साल
पहले झगड़ा हो गया था, अपने परिवार के साथ रहता है. उस की बड़ी भतीजी आरती उस के बारे में बात
करने से इनकार करती है.

बाबा के एक भाई भगवान दास की 2016 में मृत्यु हो गई, जबकि उस का छोटा भाई राकेश उस का
करीबी है और बाबा के ट्रस्ट का हिस्सा है. उस की बहन सोनकली का कहना है कि किशोरावस्था में बाबा
को जादू में रुचि थी और उन्होंने चमत्कार किए थे.

सूरजपाल 1970 में पहले पहले उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल भरती हुआ था. अगस्त 1995 में उसे आगरा में स्थानीय पुलिस खुफिया विभाग से जोड़ा गया था. जुलाई, 1994 से अगस्त 1995 तक वह इटावा में तैनात था. उस के बाद उस का तबादला आगरा कर दिया गया था.

18 साल की नौकरी के बाद उस ने वीआरएस ले लिया और और अपने गांव में ही झोपड़ी बना कर रहने लगा था. हालांकि बाबा पर भी कोई एकदो नहीं, बल्कि 5 मुकदमे चल रहे हैं. नौकरी के दौरान उस पर 1997 में यौन शोषण की एफआईआर दर्ज की गई थी. उसे जेल जाना पड़ा था. जेल से छूटने के बाद नौकरी छोड़ दी और स्वयंभू साकार विश्वहरि बन कर सत्संग करने लगा. उस पर दर्ज मुकदमे आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हैं.

सत्संग के दौरान मंच पर उस के साथ बैठी महिला को देख कर भी तरहतरह की चर्चा होती है. अधिकतर
लोग उस महिला को पत्नी बताते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि वह उस की मामी है.

लोगों में चर्चा है कि सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि के ट्रस्ट द्वारा कुछ नेताओं और पुलिस
अधिकारियों के अवैध पैसों को वैध बनाया जाता था, इसलिए पुलिस और सफेदपोश उसे बचाने में जुटे हुए
हैं.

50 लाख के लिए दिनदाहड़े बड़े अफसर का अपहरण

50 लाख की फिरौती के लिए किडनैपर सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा को किडनैप कर
गुप्तस्थान पर ले जा रहे थे. फिरौती की रकम हासिल करने के बाद उन का मकसद वसावा की हत्या
करना था. क्या बदमाश अपनी योजना में सफल हो पाए?

पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा अपहरण की सूचना प्रसारित होते ही पूरे जिले के सभी थानों की पुलिस के साथ
पीसीआर वाले और लोकल क्राइम ब्रांच भी अलर्ट हो गई. घटना गुजरात की राजधानी गांधीनगर के थाना
चीलोड़ा के अंतर्गत घटी थी, इसलिए थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ तुरंत
घटनास्थल पर पहुंच गए. लेकिन उन के पहुंचने के पहले ही वहां एक पीसीआर वैन पहुंच चुकी थी.

अपहरण गियोड स्थित मंदिर के पास हुआ था. मंदिर के पास खड़े कुछ लोगों ने अपहरण होते हुए देखा
था, इस के साथ सामने से आ रही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी के 2 कर्मचारियों ने भी देखा था.
गुजरात के जिला पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर रमणलाल वसावा तबीयत खराब होने की वजह
से 3 दिनों से छुट्टी ले कर गांधीनगर स्थित अपने घर पर ही थे. 25 मई, 2024 की दोपहर को वह
हिम्मतनगर के किसी डाक्टर को दिखाने के लिए अपनी कार से घर से निकले.

 

वह गांधीनगर से थोड़ी दूर गियोड मंदिर के पास पहुंचे थे कि पीछे से आ रही एक सफेद और दूसरी
आसमानी रंग की कार ने उन्हें घेर कर रोक लिया. सफेद रंग की कार से 3 लोग उतरे और रमणलाल
वसावा को उन की कार से जबरदस्ती खींच कर उतारा और अपनी कार में बैठा कर ले गए.

वहां खड़े कुछ लोगों ने यह देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ तो गड़बड़ है. उन्होंने
तुरंत इस घटना की सूचना फोन द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

रमणलाल वसावा की कार घटनास्थल पर ही खड़ी थी. इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी ने जब उस कार की
तलाशी ली तो उस में से रमणलाल वसावा के नाम का आधार कार्ड तथा इलेक्शन कार्ड मिला.
बगल की सीट पर 2 फाइलें रखी थीं. ए.एस. अंसारी ने जब उन फाइलों को उठा कर देखा तो उन में वह सहायक उद्योग कमिश्नर, पालनपुर लिखा था. इस से पता चला कि जिन रमणलाल वसावा का अपहरण हुआ था, वह पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर थे. यानी वह क्लास वन अफसर थे. यह पता चलते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.

इंसपेक्टर अंसारी ने तुरंत अपने परिचित पुलिस अधिकारियों को फोन कर के पूछा तो उन लोगों ने
बताया कि रमणलाल वसावा पालनपुर में सहायक उद्योग कमिश्नर हैं, जो इसी 30 जून को रिटायर होने
वाले हैं.

जब स्पष्ट हो गया कि जिस व्यक्ति का किडनैप हुआ है, वह पालनपुर के सहायक उद्योग कमिश्नर हैं
तो एसएचओ ने फोन द्वारा जिले के सभी पुलिस अधिकारियों को भी यह बात बता दी. अभी वह
घटनास्थल की ही जांच कर रहे थे कि एसपी और लोकल क्राइम ब्रांच की एक टीम इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के नेतृत्व में पहुंच गई.
इस के बाद इंसपेक्टर हार्दिक सिंह ने रमणलाल वसावा की कार के नंबर के आधार पर उन के घर का
पता मालूम किया और उन के घर वालों से संपर्क किया तो घर वालों ने बताया कि उन्हें लग रहा था कि
इधर 2 दिनों से कोई उन के घर की रेकी कर रहा था. इस के अलावा अलगअलग नंबरों से फोन कर के
रमणलाल वसावा को धमकी भी दी जा रही थी.

पुलिस को वे नंबर मिल गए थे, जिन नंबरों से रमणलाल वसावा को धमकी दी जा रही थी. धमकी देने
वाले उन से 50 लाख रुपए की रंगदारी मांग रहे थे. कुल 3 नंबरों से वसावा को धमकी दी गई थी.
पुलिस ने टेक्निकल सर्विलांस से उन तीनों नंबरों की लोकेशन पता कराई.

इन में से एक नंबर की लोकेशन प्रांतिज और वीसनगर की ओर जाती मिली. लेकिन प्रांतिज टोलनाका
की सीसीटीवी फुटेज चैक की गई तो उस में किडनैपर्स की कार दिखाई नहीं दी. इस से पुलिस को
समझते देर नहीं लगी कि किडनैपर मेनरोड से न जा कर बीच के रास्तों का उपयोग कर रहे हैं. पुलिस
को जो 3 नंबर मिले थे, उन तीनों नंबरों की अलगअलग लोकेशन आ रही थी.

एक की लोकेशन धोलेरा की आ रही थी तो दूसरे की लोकेशन गांधीनगर की थी, जबकि तीसरे की
लोकेशन वीसनगर माणसा रोड की थी. पुलिस को लगा कि आरोपी प्रांतिज तो नहीं गए होंगे. उन्होंने
जरूर बीच का रास्ता चुना होगा. इसलिए अन्य नंबरों को ट्रेस करने के बजाय पुलिस ने वीसनगर की
ओर जाने वाले नंबर पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया. क्योंकि इस नंबर की लोकेशन लगातार बदल रही
थी.

इस तरह से की पुलिस ने प्लानिंग अब तक पुलिस की कई टीमें बना कर रमणलाल वसावा की खोज में लगा दी गई थीं. इन टीमों को अलगअलग काम सौंप दिया गया था. पर किसी भी टीम की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

तभी क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार के मन में आया कि वह पुलिस की सरकारी जीप का उपयोग करने के बजाय अगर अपनी कार से बदमाशों का पीछा करें तो ज्यादा ठीक रहेगा. इस की वजह यह थी कि पुलिस जीप देख कर आरोपी अलर्ट हो जाते. जबकि निजी कार से उन्हें पता न चलेगा कि
कार किस की है और उस में कौन बैठा है.

हार्दिक सिंह परमार ने एसआई आर.जी. देसाई और के.के. पाटडिया को अपनी कार में बैठाया और
बदमाशों की खोज में निकल पड़े. उन्हें पूरा विश्वास था कि जिस मोबाइल नंबर की लोकेशन वीसनगर
की ओर की मिली है, उसी नंबर वालों के साथ रमणलाल वासवा हैं. इसलिए उन्होंने क्राइम ब्रांच के
इंसपेक्टर डी.बी. वाला से हर 2 मिनट पर उस नंबर की लोकेशन भेजने के लिए कहा.

दूसरी ओर थाना चीलोड़ा के एसएचओ ए.एस. अंसारी अपनी टीम के साथ कार में मिले आधार कार्ड और
इलेक्शन कार्ड में लिखे पते के आधार पर उन के घर पहुंचे तो वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने बताया कि
उन के पति अस्पताल जा रहे थे, तभी उन का अपहरण हुआ था. अन्य जानकारी ले कर एसएचओ
ए.एस. अंसारी उन्हें अपने साथ ले कर थाने आ गए थे.

जब रमीलाबेन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 30 जून को आर.के. वसावा रिटायर होने वाले
हैं. उन की तबीयत खराब थी, इसलिए वह चीलोड़ा हो कर दवा लेने जा रहे थे. उन के बेटे की अभी कुछ
दिनों पहले ही मौत हो गई थी. ससुर भी बीमार हैं. उन की दवा चल रही है. इसलिए वसावा काफी टेंशन
में थे.

कुछ दिनों से उन के पास अज्ञात लोगों के फोन आ रहे थे कि वे आर.के. वसावा से मिलना चाहते हैं. पर
वह उन से मिलने से मना कर रहे थे. क्योंकि वे उन्हें फोन कर के 50 लाख रुपए मांग रहे थे. एक तरह
से वे उन्हें ब्लैकमेल कर रहे थे. रिटायरमेंट के समय कोई इश्यू न खड़ा हो, इसलिए वसावा उन से 30
जून या पहली जुलाई को मिलने के लिए कह रहे थे. जबकि वे उन से तुरंत मिलने की जिद कर रहे थे.

किडनैप के एक दिन पहले 2 लोग उन के घर की रेकी कर रहे थे. उस समय रमीलाबेन घर में अकेली थीं. उन दोनों में से एक व्यक्ति ने उन से आर.के. वसावा के बारे में पूछा भी था. उन्होंने मना किया तो उन लोगों ने रमीलाबेन को धमकी दी थी कि देख लेना वे उन्हें सुबह थाने जाने के लिए मजबूर कर देंगे. वह उन की कार का फोटो लेने के लिए मोबाइल फोन लेने अंदर गईं, उसी बीच वे दोनों व्यक्ति वहां से भाग गए थे.

रमीलाबेन ने आगे बताया था कि किसी भीखाभाई भरवार का फोन अकसर उन के पति के पास आता
था. लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उन का किडनैप हो जाएगा.

एसपी ने पुलिस की अलगअलग टीमें बनाई थीं और थाना कलोल, माणसा, हिम्मतनगर और ऊझा पुलिस
से कह कर नाकाबंदी करवा दी थी. अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस को भी सूचना दे दी गई थी,
क्योंकि किडनैपर अहमदाबाद की ओर भी भाग सकते थे.

पुलिस चूहे बिल्ली का खेल और किडनैपरों में चला

इंसपेक्टर डी.डी. वाला किडनैपर्स का पीछा कर रहे इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार को पलपल की लोकेशन दे रहे थे. एसआई के.के. पाटडिया के हाथ में मोबाइल था. वह हार्दिक सिंह परमार को लगातार गाइड करते हुए यह भी बता रहे थे कि बदमाशों और उन के बीच कितना अंतर है. जबकि एसआई आर.जी. देसाई दाहिनी ओर से आने वाली गाडिय़ों पर नजर रख रहे थे.

लोकेशन ट्रैस करते करते एक समय ऐसा आ गया, जब बदमाशों की कार और हार्दिक सिंह परमार की टीम की कार के बीच मात्र 8 मिनट का अंतर रह गया. इस के बाद तो पुलिस की यह टीम एकदम से
सावधान हो गई.

इंसपेक्टर परमार ने एसआई देसाई से कहा, ''देसाई साहब, अब आप सामने से आने वाली हर कार पर नजर रखिएगा. इन में अगर कोई काले कांच वाली या फिर जिस तरह की कार के बारे में हमें बताया गया है, उस तरह की कार दिखाई दे तो तुरंत बताइएगा.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार अपनी कार खुद ही चला रहे थे. इस के अलावा इंसपेक्टर ए.एस. अंसारी
को भी बदमाशों की वीसनगर, गोझारिया और माणसा जैसे स्थानों की जो लोकेशन मिल रही थी, उस की
जानकारी थाना चीलोड़ा, कलोल, माणसा पुलिस को देने के साथ क्राइम ब्रांच पुलिस को भी दी जा रही थी,
जिस से पुलिस की अलगअलग टीमों ने जगहजगह नाकाबंदी कर दी थी.

बदमाशों की कार और उस का पीछा कर रही इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की कार के बीच का अंतर
लगातार घटता जा रहा था. जिस की वजह से इंसपेक्टर परमार और उन के साथी पूरी तरह से सावधान
हो गए थे. इस का एक कारण यह भी था कि बदमाश सामने से आ रहे थे. 2 मिनट बाद उन की कार
की बगल से काले कांच वाली एक कार निकली.

इंसपेक्टर परमार को लगा कि शायद बदमाशों की कार यही है. क्योंकि लोकेशन के आधार पर बदमाशों
की कार उन की कार के एकदम नजदीक दिखाई दी थी. उन्होंने तुरंत यूटर्न लिया और उस काले कांच
वाली कार के पीछे अपनी कार लगा दी.

लगभग 15 मिनट तक उस कार का पीछा करते हुए इंसपेक्टर परमार ने उन की कार को ओवरटेक
किया. ओवरटेक करते हुए उन्होंने देखा कि कार के सभी शीशे बंद थे. कार भीखा भरवार (रघु देसाई उर्फ
रघु भरवार) चला रहा था. इंसपेक्टर परमार ने अपनी कार बदमाशों की कार के बगल लगाई तो बदमाशों
ने अपनी कार का शीशा थोड़ा खोल कर यह देखना चाहा कि इस कार में कौन हैं.

तभी इंसपेक्टर परमार की कार में बैठे एसआई के.के. पाटडिया ने कार का पूरा शीशा खोल कर बदमाशों
से कहा, ''हम पुलिस वाले हैं. तुम लोगों के लिए यही अच्छा होगा कि तुम लोग कार रोक दो.’’
बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस वाले उन के पीछे लगे हैं तो उन की जैसे जान निकल गई. वे
किसी भी तरह पुलिस के हाथ नहीं आना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कार की स्पीड लगभग 140
किलोमीटर प्रति घंटे की कर दी.

जैसे ही उस कार की रफ्तार एकदम से बढ़ी तो पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि इसी कार में
बदमाश हैं. फिर तो इंसपेक्टर परमार ने उस कार के पीछे अपनी कार लगा दी. बदमाश जिस तरह तेजी से कार चला रहे थे, उस से पुलिस समझ गई कि ये लोग कोई न कोई गलती जरूर करेंगे. आगे एक चौराहा था, जिस पर पुलिस ने नाकाबंदी कर रखी थी. बदमाशों और उस के पीछे लगी पुलिस की कार बहुत तेज गति में चल रही थीं.

आगे बदमाशों की कार थी. उन्होंने बैरिकेड्स उड़ा दिए. बैरिकेड्स के आसपास खड़े सिपाही अगर पीछे न
हटते तो वह कार उन के ऊपर चढ़ा देते.

निजी कार होने की वजह से नाकाबंदी पर खड़े पुलिस वालों को पता नहीं चला कि उस कार से पुलिस
वाले बदमाशों का पीछा कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने इंसपेक्टर परमार की कार रोकने की कोशिश की, पर
वह रुके नहीं. क्योंकि अगर वह कार रोक कर पुलिस वालों को अपना परिचय देने लगते तो तब तक
बदमाश बहुत दूर निकल जाते और उन की आंखों से ओझल हो जाते. इसलिए वह अपना परिचय देने के
बजाय बदमाशों का पीछा करते रहे.

पुलिस ने क्यों ठोंकी किडनैपर्स की कार

संयोग से थोड़ा आगे जाने पर माणसा रोड पर रेलवे फाटक बंद था. बदमाशों ने दूर से ही देख लिया कि
रेलवे फाटक बंद है, इसलिए उन्होंने अपनी कार की रफ्तार धीमी कर ली. क्योंकि वे आगे जा कर फाटक
पर फंस सकते थे. इसलिए वे यूटर्न ले कर पीछे लौटना चाहते थे. इंसपेक्टर परमार कट टू कट अपनी
कार चला रहे थे. आगे फाटक पर ट्रैफिक था. वह बदमाशों को घेरना चाहते थे, जिस से बदमाश पीछे की
ओर न भाग सकें.

फाटक से थोड़ा पहले एक खुली जगह से बदमाशों ने यूटर्न लिया. इंसपेक्टर परमार के पास कोई विकल्प
नहीं था. अगर बदमाश यूटर्न ले कर निकल जाते तो वे किस रास्ते से निकल जाते, पता करना मुश्किल हो जाता.
इसलिए इंसपेक्टर परमार ने तुरंत फैसला लिया. उन्होंने कार में बैठे अपनी साथियों से कहा, ''इन्हें रोकने
के लिए अपनी कार इन की कार से भिड़ानी पड़ेगी. इसलिए आप लोग अपनी सीट बेल्ट टाइट कर
लीजिए.’’

इतना कह कर इंसपेक्टर परमार ने जानबूझ कर अपनी कार से बदमाशों की कार में पीछे से जोर से
टक्कर मारी. इंसपेक्टर परमार की कार का अगला हिस्सा बदमाशों की कार के पिछले टायर से जा लगा,
जिस से बदमाशों की कार का पिछला टायर फट गया.

इंसपेक्टर परमार उन की कार को ठेलते हुए सड़क के किनारे तक ले गए. टायर फटने से इंसपेक्टर
परमार समझ गए कि अब बदमाश ज्यादा दूर नहीं भाग सकेंगे.

टक्कर मारने से इंसपेक्टर परमार की कार का भी अगला भाग टूट कर झूल गया था. फिर भी वह उन
का पीछा करते रहे. टायर फट जाने के बावजूद बदमाशों ने लगभग डेढ़ किलोमीटर तक कार भगाई. अंत
में उन्होंने एक जगह सड़क किनारे कार रोकी और उस में से 3 लोग उतर कर भागे. निश्चित था कि वे
आरोपी थे.

इसलिए इंसपेक्टर परमार ने भी अपनी कार रोकी और एक एसआई को कार की तलाशी लेने और पीडि़त
आर.के. वसावा को संभालने के लिए कह कर वह एक आरोपी के पीछे दौड़े. दूसरे आरोपी के पीछे दूसरे
एसआई को लगा दिया था. चौथा कोई नहीं था, इसलिए एक आरोपी भाग निकला.

करीब सौ मीटर दौड़ा कर पुलिस ने एक किडनैपर को पकड़ लिया, दूसरा किडनैपर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जा कर पकड़ा गया. तीसरे आरोपी का पीछा करने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह खेतों के बीच से होता हुआ भाग गया.

जिस समय बदमाश पकड़े गए थे, उस समय शाम के 5 बज रहे थे. जबकि बदमाशों ने आर.के. वसावा
को धमकी दी थी कि अगर 5, साढ़े 5 बजे तक उन्हें 50 लाख रुपए नहीं मिले तो वे कच्छ के रण में ले
जा कर उन की हत्या कर देंगे. उन्होंने आर.के. वसावा के साथ मारपीट भी की थी, लेकिन उन्हें कोई
गंभीर चोट नहीं पहुंचाई थी.

पुलिस ने जब उन्हें किडनैपर्स से मुक्त कराया था तो वह काफी नर्वस थे. वह कार के बगल खड़े थे. जब
पुलिस ने उन से पूछा कि अपहरण किस का हुआ है तो वह धीरे से बोले, ''साहब, मेरा हुआ है.’’

पुलिस के हत्थे ऐसे चढ़े किडनैपर्स

इस के बाद इंसपेक्टर परमार ने आर.के. वसावा को अपनी बगल वाली यानी ड्राइवर की बगल वाली सीट
पर बैठा कर कहा, ''अब आप रिलैक्स हो जाइए, शांति रखिए, अब आप को कुछ नहीं होगा. पुलिस आ गई है.’’

फिर बदमाशों की कार को वहीं छोड़ कर इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार की टीम आर.के. वसावा और
पकड़े गए दोनों बदमाशों को ले कर थाना चीलोडा पहुंची. आरोपियों की कार से कोई हथियार नहीं मिला
था. पुलिस के पास हथियार थे, लेकिन उन्हें चलाने की जरूरत नहीं पड़ी थी.

थाने में बैठी आर.के. वसावा की पत्नी रमीलाबेन ने जब पति को पुलिस की कार से उतरते देखा तो वह
जोरजोर से रोने लगीं. कुछ समय पहले ही उन के जवान बेटे की मौत हुई थी. उस दिन पति मौत के
मुंह से निकल कर लौटे थे, इसलिए वह अपने दिल के दर्द को आंसुओं में बहा देना चाहती थीं.

आर.के. वसावा ने पत्नी को सीने से लगा कर कहा, ''पुलिस वालों का आभार मानो कि तुम्हारा सुहाग जिंदा वापस आ गया वरना बदमाश हमें जिंदा नहीं छोडऩे वाले थे. पैसा पाने के बाद भी वे मुझे मार
देते.’’

इंसपेक्टर हार्दिक सिंह परमार ने पकड़े गए दोनों बदमाशों को थाना चीलोड़ा पुलिस के हवाले कर दिया
था. पकड़े गए दोनों आरोपियों के नाम भीखा भरवार और रोहित ठाकोर थे.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि यह पूरी योजना भावनगर के बुधा भरवार की बनाई थी. योजना बना
कर आर.के. वसावा से 50 लाख रुपए वसूलने की जिम्मेदारी बुधा भरवार ने भीखा भरवार को सौंपी थी.

उस ने भीखा से कहा था कि उस ने बहुत पैसा कमाया है. इसलिए उस से कम से कम 50 लाख रुपए
लेने हैं. रुपए मिलने पर आपस में बांट लिए जाएंगे.

50 लाख लेने के बाद थी मारने की योजना
पकड़े गए आरोपियों में भीखा भरवार गुजरात की राजधानी गांधीनगर के गोकुलपुरा का रहने वाला था.
वह जमीन खरीदने और बेचने का काम करता था. वही सहायक उद्योग कमिश्नर आर.के. वसावा को
फोन कर के धमकी देता था और रुपए मांगता था.

भीखा के साथ पकड़ा गया रोहित ठाकोर चाय की दुकान चलाता था. इस के पहले भी पुलिस ने उसे लोहे
की चोरी में जेल भेजा था. उस से कहा गया था कि उसे एक साहब के पास जा कर बात करनी है और
उन्हें अपने साथ ले जाना है. किडनैपरों में शामिल रायमल ठाकोर मजदूरी करता था. वही पुलिस के
चंगुल से बच निकला था. इस के अलावा इन के साथ नवघण भरवार, बुधा भरवार, निमेश परमार और
एक अन्य आरोपी हितेश था.

किडनैप के इस मामले में भावनगर का बुधा भरवार मुख्य आरोपी था. जबकि आर.के. वसावा के किडनैप
की योजना भीखा भरवार की थी, जिस के लिए उस ने अपने गैंग में 5 लोगों को शामिल किया था.
भीखा भरवार के नेतृत्व में सभी रोहित ठाकोर की चाय की दुकान पर इकट्ठा होते थे और वहीं योजना
बनती थी कि कैसे रेकी करना है, किस तरह किडनैप कर के रुपए वसूलना है.

 

आर.के. वसावा को डराने के लिए भीखा भरवार फोन कर के कहता था कि उन की एक फाइल उस के
पास है. वह रिटायर होने वाले हैं. अगर उन की फाइल खुल गई तो वह फंस जाएंगे, जिस से उन्हें सरकार
की ओर से मिलने वाला पैसा भी फंस जाएगा और उन की पेंशन भी रुक सकती है. जबकि पुलिस को
किडनैपरों के पास से ऐसी कोई फाइल नहीं मिली थी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया था, जहां से उन्हें 8 दिनों के पुलिस
रिमांड पर भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने इन्हीं दोनों आरोपियों की मदद से एकएक कर के अन्य
सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.
किसी को पुलिस ने फोन सर्विलांस की मदद से पकड़ा था तो किसी को मुखबिरों की मदद से. बहरहाल,
आर.के. वसावा को ब्लैकमेल करने और उन का किडनैप कर रंगदारी मांगने वाले सभी आरोपी जेल पहुंच
गए थे.

एक गलती ने फर्जी IAS पूजा खेड़कर को कहीं का न छोड़ा

महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर का फरजीवाड़ा उजागर होने के बाद इन दिनों पूरे देश में संघ
लोक सेवा आयोग (यूपीएसपी) में चयन को ले कर भी बहस छिड़ी हुई है. यूपीएसपी और डिपार्टमेंट औफ
पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) से ले कर कई सरकारें अपने स्तर पर विकलांगता कोटे से आईएएस बने
अधिकारियों की जांच करने में जुट गई हैं. गुजरात में 4 आईएएस के खिलाफ जांच शुरू हो गई है.

ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर के फरजीवाड़े का कभी पता ही नहीं चलता, अगर वह लाइमलाइट से दूर रहती और उस के चर्चे सोशल मीडिया पर वायरल नहीं होते. दरअसल, पूजा खेडकर का मामला तब सुर्खियों में आया, जब सोशल मीडिया पर सब से पहले महाराष्ट्र के बीड जिले में रहने वाले वैभव कोकट ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट लिखी.

वैभव को सामाजिक और राजनीतिक मुद्ïदों पर लिखना अच्छा लगता है. खुद को नास्तिक कहने वाले
वैभव पूर्व में एक जनसंपर्क कंपनी में भी काम कर चुके हैं. एक्स पर उन के 31 हजार से ज्यादा फालोअर्स हैं.

वैभव ने 6 जुलाई को 'एक्स’ पर एक फोटो के साथ पूजा खेडकर के बारे में जानकारी पोस्ट की थी.
वैभव कोकट ने अपनी पहली एक्स पोस्ट में लिखा था कि प्रोबेशनरी आईएएस औडी कारों का उपयोग
कर रहे हैं. नियम कहता है कि निजी वाहन पर 'महाराष्ट्र सरकार’ का साइनबोर्ड लगाना अनुचित है.

लेकिन पुणे कलेक्टरेट में प्रोबेशन पर चल रही 2022 बैच की आईएएस डा. पूजा खेडकर ने महाराष्ट्र
सरकार की वीआईपी नंबर वाली निजी औडी कार ली.

इस के अलावा इस प्राइवेट कार में नीली बत्ती भी लगी हुई थी. पुणे कलेक्टर औफिस में हमेशा इस बात
की चर्चा होती रहती है कि आखिर ये बड़ा अधिकारी कौन है, जो औडी कंपनी की लोगो और लैंप वाली
लग्जरी कार ले कर औफिस आता है.

खास बात यह है कि ये औफिसर मैडम दिन में भी अपनी कार की लाइटें जलाए रखती हैं. इन अधिकारी मैडम के कारनामे सिर्फ कार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि जब वरिष्ठ अधिकारी सुहास दिवासे सरकारी काम के लिए मुंबई मंत्रालय गए तो इस अधिकारी महोदया ने उन के औफिस पर कब्जा कर लिया और वरिष्ठों के औफिस का सामान बाहर निकलवा दिया. वहां अपना औफिस बनाया और अपने नाम का एक बोर्ड भी लगाया.

मैडम को रुतबा दिखाना क्यों पड़ा भारी वैभव ने अपनी पहली पोस्ट में आगे लिखा था कि पुणे के कलेक्टर सुहास दिवासे ने इस व्यवहार को लेकर अपर मुख्य सचिव मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजी है और इस रिपोर्ट में कलेक्टर ने अधिकारी मैडम की जिद का जिक्र किया है कि मेरा कार्यालय कलेक्टर के कार्यालय के बगल में होना चाहिए और मुझेएक कांस्टेबल चाहिए और मुझे सरकारी कार चाहिए.

अधिकारी मैडम के पिता भी कलेक्टर कार्यालय आते हैं और वहां के कर्मचारियों व अधिकारियों से कहते
हैं कि तुम सब मेरी बेटी को परेशान कर रहे हो, तुम्हें जीवन भर ऐसा पद कभी नहीं मिलेगा. धमकी भी
देते हैं कि अगर तुम मेरी बेटी को परेशान करोगे तो भविष्य में तुम्हें भी भुगतना पड़ेगा.

यहां तक कि अधिकारी महोदया को भी वह कार्यालय पसंद नहीं आया, जिस की मरम्मत अत्यधिक
आग्रह से की गई थी. जबकि ट्रेनिंग पर रहने वाले अधिकारियों को कार, सुरक्षा या कार्यालय आदि
सुविधाएं उपलब्ध कराने का कोई सरकारी प्रावधान नहीं है.

 

वैभव कोकट ने पत्र में आगे लिखा था कि जिलाधिकारी सुहास दिवासे ने पूजा खेडकर के जिद्दी व
अवांछित व्यवहार को देख कर उन से पदभार ने उन्हें अपर जिलाधिकारी वापस लेने का संकेत दिया था.
जिस पर पूजा खेडकर ने उन्हें वाट्सऐप मैसेज भेज कर कहा कि ये मेरा अपमान है.

प्रोबेशन पर चल रही पूजा खेडकर का आचरण एक प्रशासनिक अधिकारी के अनुरूप था ही नहीं. जिला
कलेक्टर ने मंत्रालय के सचिव को भेजी अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि जिले में सरकारी कामकाज
को सुचारु रूप से चलाने के लिए और सघन प्रशिक्षण के लिए पूजा खेडकर का जिला बदला जाना
चाहिए. रिपोर्ट में पुणे कलेक्टर ने जो लिखा था, वैभव कोकट ने उस का जिक्र करते हुए ही लिखा था.

वैभव कोकट की यह पोस्ट देखते ही देखते वायरल हो गई. मीडिया ने भी इस पोस्ट का संज्ञान लिया.
समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित होने लगी. टीवी चैनलों में डिबेट होने लगी. वैभव के पास सामाजिक
कार्यकर्ताओं और आरटीआई कार्यकर्ताओं के फोन आने लगे. वैभव को पूजा खेडकर के बारे में बहुत सारी
जानकारी मिलने लगी और गड़े मुरदे उखडऩे लगे.

मामले के तूल पकड़ते ही महाराष्ट्र सरकार ने पूजा खेडकर के खिलाफ जांच शुरू करा दी. जांच शुरू हुई
तो पूजा खेडकर के आईएएस बनने के लिए किए गए फरजीवाड़े भी सामने आने लगे. ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर प्रकरण ने देश की प्रशासनिक सेवा की कई संस्थाओं के कारनामों को एक साथ उजागर कर दिया है. लालबहादुर शास्त्री अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही पूजा खेडकर की यह ट्रेनिंग अगले साल जुलाई में पूरी होनी थी.

इस दौरान उसे फील्ड ट्रेनिंग के लिए असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में पुणे भेजा गया. वहां जाते ही उस ने
सभी नियमकायदे और नैतिकता को ताक पर रख ऐसेऐसे काम किए, जो देश की पूरी प्रशासनिक सेवा के
लिए कलंक कहे जा सकते हैं.

उस ने वहां जाते ही नीली बत्ती लगी सरकारी गाड़ी, एक अलग औफिस, घर और चपरासी इत्यादि की मांग
की. यहां तक कि अपनी निजी औडी गाड़ी पर खुद ही अवैध रूप से नीली बत्ती भी लगवा ली, जबकि उस
गाड़ी के खिलाफ यातायात नियमों के उल्लंघन के दरजन भर मामले दर्ज हैं और जुरमाना तक बकाया है.

आईएएस अधिकारी बनने के बाद उस पर ऐसा नशा छाया कि पुणे में तैनात एक अन्य अफसर के
कार्यालय से जबरन उन का नाम हटा कर अपनी नेम प्लेट लगा दी. बहरहाल, पूजा खेडकर का मामला सामने आने के बाद संघ लोक सेवा आयोग की तरफ से एक कमेटी का गठन कर जांच शुरू हुई तो एक के बाद एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई, जिस से एक आईएएसकी कलंक कथा कहें तो गलत नहीं होगा.

सब से पहले पूजा खेडकर के बारे में जान लेना जरूरी होगा. पूजा खेडकर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले
की पाथर्डी तहसील के नौकरशाहों और राजनेताओं के परिवार से है. पूजा खेडकर ने पुणे में स्थित श्रीमती
काशीबाई नवले मैडिकल कालेज से एमबीबीएस किया है.

कई मीडिया रिपोट्र्स में उसे एंडोक्रिनोलौजिस्ट बताया जा रहा है. पूजा के पिता दिलीपराव खेडकर
महाराष्ट्र पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रिटायर्ड अधिकारी हैं. उस के नाना जगन्नाथ बुधवंत वंजारी समुदाय के
पहले आईएएस अफसर थे. पूजा की मां मनोरमा भलगांव की सरपंच है. एक गलती ने पूजा को कहीं का न छोड़ा अब बात करते हैं पूजा के फरजीवाड़े की. एक पुरानी कहावत के बारे में सुना ही होगा कि मुजरिम
कितना भी शातिर क्यों न हो, एक गलती जरूर करता है. उसी एक गलती की वजह से उस का सारा भांडा फूट जाता है.

पूजा खेडकर ने भी ऐसी ही एक गलती की थी, जो चंद रोज पहले तक आईएएस की ट्रेनिंग कर रही थी. उस का हर तरफ जलवा ही जलवा था. आईएएस मैडम की शान में पीछे खड़े पुलिस वाले, नीली बत्ती वाली कार और नंबर प्लेट के ऊपर लिखा महाराष्ट्र सरकार, उस का भौकाल देख कर आम लोग सहम जाते थे.

लेकिन उसे सरकारी नीली बत्ती वाली गाड़ी का इस कदर शौक था कि उसे पाने के लिए कुछ दिनों का इंतजार नहीं कर सकी और यही उस पर भारी पड़ गया.

बस इसी नीली बत्ती ने उस की बत्ती ऐसी गुल कर दी कि आईएएस मैडम साहिबा को अब जेल जाने से
कोई रोक ही नहीं सकता. यूपीएससी की जांच में पता चला है कि पूजा ने परीक्षा में चयन के लिए नियमों के तहत मान्य अधिकतम सीमा से भी अधिक बार परीक्षा दी और उस का लाभ उठाया है.

यूपीएससी जांच से यह भी पता चला है कि पूजा खेडकर ने अपना नाम, अपने पिता और माता का नाम,
अपनी फोटो, हस्ताक्षर, अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता बदल कर अपनी फरजी पहचान बना कर निर्धारित सीमा से अधिक प्रयास कर धोखाधड़ी की.

यूपीएससी ने उस के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का फैसला किया है. इस के तहत थाने में
एफआईआर कराई गई है. सिविल सेवा परीक्षा 2022 के नियमों के तहत उस की उम्मीदवारी रद्ïद करने
और भविष्य की परीक्षाओं में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कारण बताओ नोटिस भी जारी
किया गया है.

यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) की इस जांच से साफ हो गया है कि आईएएस बनने के
लिए पूजा खेडकर ने तमाम तरह की धोखाधड़ी की है. दरअसल, यूपीएससी के एग्जाम में बैठने के लिए
अलगअलग कैटेगरी के तहत उम्मीदवारों को अलगअलग मौके मिलते हैं.

मसलन, जनरल कैटेगरी का कोई भी उम्मीदवार 32 साल की उम्र से पहले तक कुल 6 बार यूपीएससी का
एग्जाम दे सकता है. ओबीसी कैटेगरी के तहत 35 साल की उम्र तक कुल 9 बार इम्तिहान देने की छूट
है. जबकि एससी और एसटी कोटा के तहत 37 साल की उम्र तक यूपीएससी के इम्तिहान में बैठा जा
सकता है.

पूजा खेडकर ने एग्जाम क्लीयर करने के लिए तय सीमा से ज्यादा बार इम्तिहान दिया है. इस के लिए
हर बार उस ने नए नाम और नई पहचान का सहारा लिया. यहां तक कि एग्जाम में बैठने के लिए अपने
मांबाप का नाम तक बदल डाला. लेकिन ये धोखाधड़ी तो कुछ भी नहीं है. असली फरजीवाड़ा तो कुछ
और ही है.

दरअसल, पूजा ने साल 2022 में यूपीएससी का एग्जाम क्लीयर किया था. आल इंडिया रैंक था- 841. चूंकि
वो इम्तिहान में ओबीसी नौन क्रीमीलेयर के कोटे से बैठी थी और साथ ही दिव्यांगता के कोटे से आई थी,
लिहाजा 841 रैंक के बावजूद उसे आईएएस की कैटेगरी में रखा गया था.

इस के बाद में ट्रेनिंग के लिए सभी कामयाब छात्रों के साथ पूजा खेडकर भी मसूरी के लाल बहादुर
शास्त्री प्रशासन अकादमी पहुंची. 2 साल की ट्रेनिंग में अब कुछ महीने ही बचे थे. इसी बीच उसे ट्रेनी
आईएएस अफसर के तौर पर असिस्टेंट कलेक्टर बना कर पुणे कलेक्टरेट औफिस में तैनाती दे दी गई.
बस यहीं से असली कहानी शुरू हुई.

हुआ यूं कि पुणे के कलेक्टर के औफिस में तैनाती का लेटर मिलते ही पूजा ने कलेक्टर के औफिस
इंचार्ज को पहले फोन किया और फिर वाट्सऐप मैसेज. उस ने कहा कि वो वहां चार्ज लेने आ रही है,
इसलिए उस के लिए सभी जरूरी व्यवस्थाएं कर दी जाएं.

मसलन, नीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी, बंगला, सुरक्षा के लिए कांस्टेबल और बाकी सरकारी इंतजाम कर
दिया जाए. लेकिन मैडम के कहने पर भी कुछ हुआ नहीं. लिहाजा तय तारीख पर मैडम कलेक्टर औफिस
पहुंची.

शायद उसे पता था कि उस दिन कलेक्टर सुहास दिवासे शहर में नहीं हैं. कलेक्टर औफिस पहुंचते ही उस
ने उन के कमरे पर कब्जा कर लिया. उन की नेमप्लेट हटा कर अपनी नेमप्लेट लगवा ली. कुरसी सोफा
फरनीचर सब बाहर कर दिया. लेटरहेड से ले कर विजिटिंग कार्ड तक छप चुके थे. मैडम पहुंची भी पूरी
टशन में थी. नीली बत्ती वाली औडी कार से.

इस तरह कानून के शिकंजे में फंसता गया पूरा परिवार उस कार के पीछे बाकायदा महाराष्ट्र सरकार भी लिखवा रखा था. अब यहां तक तो ठीक था. लेकिन अब अगले दिन जैसे ही कलेक्टर साहब दफ्तर पहुंचे, अपने ही कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए.

पता किया तो मैडम के बारे में पता चला. वो इस बात पर हैरान थे कि एक ट्रेनी आईएएस अफसर सीधे
कलेक्टर का चार्ज कैसे ले सकती हैï?

बात और शिकायत मुंबई में बैठे चीफ सेक्रेटरी साहब तक पहुंची. जांच हुई तो पता चला कि शिकायत
सही है. आननफानन में मुंबई से नया आदेश निकला और मैडम को पुणे से वाशिम ट्रांसफर कर दिया
गया. यहां मामला अब भी दब गया होता.

लेकिन अब मैडम के साथ जो कुछ कलेक्टर औफिस में हुआ था, वो जानकारी घर तक पहुंच गई. मैडम
की मम्मी मनोरमा को भी गुस्सा आ गया. कुछ लोकल अखबारों में बेटी की फोटो और खबर भी छप
चुकी थी. मैडम की मम्मी अब मीडिया को ही धमकाने लगी.

अब मीडिया भी कहां उस के रुआब में आने वाली थी. मीडिया वालों ने खोद कर मैडम की मम्मी
मनोरमा का चंबल की रानी वाला वो फोटो और वीडियो ढूंढ निकाला, जिस में वो हाथ में पिस्टल लहराते
किसी को धमका रही थी. ये मामला और तूल पकड़ गया. अब मम्मी के बाद बचे पापा तो पता चला कि
बेटी की तरह पापा दिलीप खेडकर भी कभी आईएएस अफसर थे.

नौकरी से रिटायर होतेहोते दिलीप खेडकर 40 करोड़ से ज्यादा की संपति के मालिक बन बैठे. इतना पैसा
आया था तो सोचा कि सत्ता का सुख भी भोग लूं. इसलिए अभी इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भी कूद पड़े. चुनाव तो हार गए, पर चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को सौंपी संपत्ति का ब्यौरा अब खुद उन
के साथसाथ उन की आईएएस बेटी के गले पड़ गया.

चूंकि संपत्ति के ब्यौरे में अपने अलावा उन्होंने पत्नी और बेटी की भी जानकारी दी थी तो पता चला कि
पूरा परिवार आधा अरबपति है. जिस बेटी ने ओबीसी नौन क्रीमी लेयर के कोटे से यूपीएससी का
इम्तिहान पास किया, उस के नाम 17 से 20 करोड़ की संपत्ति है.

इस संपत्ति से लाखों रुपए किराया भी आता है. अब यूपीएससी के इम्तिहान में बैठने वाले नौन क्रीमी
लेयर के छात्रों का पैमाना यह है कि उन की आमदनी सालाना 8 लाख से कम होनी चाहिए तो नीली
बत्ती की छटपटाहट में करोड़ों की संपत्ति सामने आ गई.

सवाल उठने लगे कि गरीबी का ये कौन सा कोटा है, जो करोड़पतियों के हिस्से आता है. अब बात निकल
चुकी थी तो दूर तक जानी ही थी. अब मीडिया और मीडिया के कैमरे पूजा के खानदान की तरफ घूम
चुके थे. जांच शुरू हुई तो पता चला कि पूजा की मां का भी विवादों से पुराना नाता है.

इसी बीच उस का पिस्टल लहराता एक वीडियो वायरल हो गया. जांच करने पर पता चला कि ये वीडियो
2023 का था. मनोरमा के पति दिलीप राव खेडकर ने 25 एकड़ की एक जमीन पूणे के मुल्शी तहसील में
ली थी. उसी पर कब्जे के दौरान खेडकर परिवार ने आसपास की जमीन को हड़पने की कोशिश की थी.

किसानों ने जब इस का विरोध किया तो मनोरमा खेडकर ने अपने बाउंसर्स के साथ पिस्टल लहराते हुए
किसानों को धमकाया था. पुणे पुलिस ने इसी वीडियो के आधार पर मनोरमा खेडकर के खिलाफ मुकदमा
दर्ज कर लिया. बेटी के विवाद में फंसने और अपना पुराना वीडियो वायरल होने के बाद मनोरमा खेडक को अपने ऊपर गाज गिरने की आशंका हो गई थी,

लिहाजा वह फरार हो गई. लेकिन पुलिस तो पुलिस ठहरी. ढूंढ और सूंघ कर निकाल ही लिया. अब मां गिरफ्तार है और जेल में है.बीवी और बेटी की हरकतों से बाप को अंदाजा हो चुका था कि देरसवेर मेरा भी नंबर आएगा. लिहाजा गिरफ्तारी से बचने के लिए वो अदालत पहुंच गए.

अंतरिम जमानत मांगने के लिए. बेटी की वजह से बाप की जायदाद जब जमाने के सामने आई तो
अहसास हो चुका था कि नौकरी से इतनी कमाई और इतनी संपत्ति तो ईमानदारी से कमाई ही नहीं जा
सकती. लिहाजा अब उन की भी फाइल खुल चुकी थी. आईएएस रहते हुए उन्होंने कितनी रिश्वत खाई,
अब उस की जांच हो रही है.

दिव्यांग कोटे का कैसे लिया फायदा ये तो रही मांबाप की कहानी, अब जरा आईएएस मैडम की सुन लीजिए. नाम, पता, जाति, मांबाप, फोन नंबर, ईमेल आईडी, इन सब का फरजीवाड़ा छोडि़ए, मैडम के ऊपर जिस सब से बड़े फरजीवाड़े का आरोप है, वो है खुद को दिव्यांग बताने का.

दरअसल, यूपीएससी एग्जाम में बैठने के दौरान पूजा खेडकर ने खुद के दिव्यांग होने का एक सर्टिफिकेट
दिया था. इस मैडिकल सर्टिफिकेट के मुताबिक उसे मानसिक दिक्कत है और नजरें कमजोर. रोशनी जा
रही है. मानसिक दिक्कत के बारे में उस ने बताया कि उसे चीजें याद नहीं रहतीं. यूपीएससी में ऐसे छात्रों
के लिए बाकायदा दिव्यांग कोटा होता है.

यहां तो मैडम पूजा के पास कोटा के 2-2 हथियार थे. एक ओबीसी नौन क्रीमी लेयर का हथियार और दूसरा दिव्यांगता का. इन दोनों हथियारों के बलबूते पर उस ने यूपीएससी का एग्जाम क्लीयर किया और 2022 में आल इंडिया रैंक 841 के साथ आईएएस बन गई.

हालांकि लिखित परीक्षा और इंटरव्यू को मिला कर पूजा के जो कुल नंबर आए थे, अगर वही नंबर किसी
जनरल कैटेगरी के स्टूडेंट के आते तो सवाल ही नहीं था कि वो आईएएस बन पाता. आईएएस बनते ही
मैडम अब मसूरी पहुंच गई. ट्रेनिंग शुरू हो गई, लेकिन यूपीएससी के भी अपने कुछ कायदेकानून हैं.

यूपीएससी चाहता था कि पोस्टिंग से पहले पूजा दिव्यांगता की अपनी सारी रिपोर्ट सौंप दे. इस के लिए
यूपीएससी ने बाकायदा एम्स में उस की जांच कराने का फैसला किया. ये रुटीन जांच थी. यूपीएससी सिर्फ सरकारी अस्पतालों की रिपोर्ट को ही मानता है. इस रिपोर्ट के जरिए इस बात की तस्दीक करना चाहता था कि पूजा को सचमुच मानसिक बीमारी है और उस की नजरें कमजोर हैं.

पूजा के मैडिकल टेस्ट के लिए यूपीएससी ने कुल 6 बार एम्स में डाक्टरों से अपौइंटमेंट लिया. लेकिन वो
हर बार बहाना बना कर टेस्ट से बचती रही. पहली बार 22 अप्रैल, 2022 को उसे टेस्ट के लिए कहा गया.
पूजा खेडकर ने कोरोना का बहाना बना कर जाने से इनकार कर दिया.

इस के बाद 26 मई, 2022 को दूसरी बार एम्स जाने को कहा गया. वो तब भी नहीं गई. फिर पहली जुलाई, 2022, 26 अगस्त 2022, 2 सितंबर 2022 और 25 नवंबर, 2022 को भी टेस्ट के लिए एम्स जाने को कहा गया.

इस दौरान उस का एमआरआई भी किया जाना था, ताकि ये पता किया जा सके कि उस की रोशनी जाने
की वजह क्या है. लेकिन वो बारबार यूपीएससी के कहने के बावजूद टेस्ट के लिए नहीं गई. कुछ वक्त
बाद उस ने एक प्राइवेट अस्पताल का मैडिकल सर्टिफिकेट यूपीएससी को सौंप दिया. यूपीएससी ने वह
सर्टिफिकेट मानने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद यूपीएससी ने पूजा का मामला कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के पास भेज दिया.
कैट ने भी पूजा की दिव्यांगता को ले कर प्राइवेट हौस्पिटल के मैडिकल सर्टिफिकेट को मानने से इनकार
कर दिया. कायदे से इस के बाद पूजा की कहीं तैनाती नहीं होनी चाहिए थी.

लेकिन हैरतअंगेज तौर पर इसी साल जून में उस को महाराष्ट्र कैडर देते हुए पुणे में ट्रेनी आईएएस अफसर के तौर पर असिस्टेंट कलेक्टर बना कर भेज दिया गया.उस की इस तैनाती का फरमान डीओपीटी यानी डिपार्टमेंट औफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग की तरफ से जारी किया गया था. डीओपीटी सीधे प्रधानमंत्री के अधीन आता है.

अब सवाल यह है कि जब पूजा खेडकर ने दिव्यांगता का सबूत यूपीएससी के सामने रखा ही नहीं.
यूपीएससी के बारबार कहने पर मैडिकल टेस्ट कराया ही नहीं, जिस के रिपोर्ट को मानने से कैट तक ने
इनकार कर दिया. उस पूजा को पोस्टिंग कैसे दे दी गई?

जानकारों की मानें तो यहां गलती यूपीएससी से नहीं, बल्कि डीओपीटी से हुई है. क्या डीओपीटी में पूजा
या उस के परिवार का कोई जानकार बैठा है? इस की जांच भी होनी चाहिए. वैसे जांच की शुरुआत हो
चुकी है. यूपीएससी के हुक्म पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पूजा के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता
और आईटी ऐक्ट की धारा 318 (4), धारा 336 (3) और धारा 340 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज की.

बता दें कि ये सभी धाराएं धोखाधड़ी, फरजी डाक्यूमेंट्स के जरिए जालसाजी और जाली डाक्यूमेंट्स का
वास्तविक तौर पर इस्तेमाल करने से जुड़ी हैं. अगर पूजा खेडकर विभागीय जांच में दोषी पाई जाती है
तो उस पर कानूनी काररवाई की जाएगी. उस के खिलाफ एक चार्जशीट बन सकती है, जो चीफ सेक्रेटरी
को सौंपी जाएगी. उस के खिलाफ यूपीएससी की एफआईआर में उस के नाम को ले कर भी जिक्र किया
गया है.

यूपीएससी की तरफ से पूजा खेडकर का असली नाम मिस पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर बताया गया है.
यूपीएससी ने इसी नाम से पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई है. इस के अलावा यूपीएससी के नोटिस
में पूजा खेडकर की प्राइवेट औडी कार का भी जिक्र किया गया है. बता दें कि दस्तावेजों में पूजा खेडकर
ने पहले अपने नाम के आगे डाक्टर लिखा था, जिसे बाद में हटा दिया था.

पुलिस ने जिन धाराओं के तहत केस दर्ज किया है, उन के तहत गिरफ्तारी तय है. यूपीएससी ने भी साफ
कर दिया है कि उस ने धोखाधड़ी और फरजीवाड़ा किया है. इसीलिए उसे कारण बताओ नोटिस दिया गया
है. जवाब आते ही न सिर्फ पूजा का रिजल्ट रद्ïद होगा, बल्कि उस के नाम के आगे या पीछे लगा
आईएएस का तमगा भी हट जाएगा.

यानी कुल मिला कर जिस आईएएस के तमगे के साथ नीली बत्ती वाली गाड़ी पाने की बेसब्री में पूजा
खेडकर ने एक छोटी सी गलती की थी, वही छोटी सी गलती उसे कहां से कहां पहुंचा गई. वो कुछ दिन
सब्र कर लेती तो क्या पता ये सारा फरजीवाड़ा कभी सामने ही न आ पाता.

एक और पूर्व आईएएस अधिकारी फंसा विवादों में पूजा खेडकर के बाद विवादों में घिरे इस आईएएस अधिकारी का नाम अभिषेक सिंह है और उस पर यूपीएससी को फरजी विकलांगता प्रमाणपत्र देने का आरोप है. अभिषेक सिंह 2011 बैच का आईएएस अधिकारी है, जिस ने अक्तूबर 2023 में इस्तीफा दे दिया था.

अभिषेक सिंह का चयन संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में दिव्यांग कोटे से हुआ था. उसे
लोकोमोटिव डिसऔर्डर (चलने में असमर्थता) का पता चला था. लेकिन पिछले साल 2023 में अभिषेक
सिंह ने ऐक्टिंग करिअर के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

अभिषेक सिंह ने आईएएस की नौकरी छोड़ कर बौलीवुड की राह पकड़ ली है. अभिषेक सिंह की पत्नी
दुर्गा शक्ति नागपाल भी आईएएस हैं, जो वर्तमान में लखीमपुर खीरी की डीएम हैं.

हाल ही में अभिषेक सिंह के जिम और डांस के वीडियो वायरल हुए हैं. इस के बाद सवाल उठने लगे हैं
कि दिव्यांगता के आरक्षण से उस का चयन कैसे हो गया. अभिषेक सिंह ने इस दावे को खारिज किया
और लोगों से अपील की कि उस के बारे में झूठ फैलाना बंद किया जाए.

अभिषेक सिंह ने पूजा खेडकर मामले को ले कर सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था और
प्रशासनिक चयन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता की मांग की थी. लेकिन फिर सोशल मीडिया यूजर्स ने उस
की ही पसंद पर सवाल उठाए. उस पर यूपीएससी में फरजी विकलांगता प्रमाण पत्र दे कर यूपीएससी में
लाभ पाने का भी आरोप लगा.

पिता रिश्वत के आरोप में हुए थे सस्पेंड महाराष्ट्र कैडर की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर विवादों में बुरी तरह घिर गई है. पूजा के कारनामों के बाद उस की मां मनोरमा खेडकर के कारनामे सामने आए थे, अब पूजा के पिता दिलीप खेडकर को ले कर भी नएनए खुलासे हो रहे हैं. दिलीप खेडकर अभी तक 2 बार सस्पेंड हो चुके हैं.

महाराष्ट्र सिविल सेवा (आचरण) नियम 1979 के नियम 3 (1) और महाराष्ट्र सिविल सेवा (अनुशासन और
अपील) नियम, 1979 के नियम संख्या 4 की उपधारा 1 (ए) के साथ ही महाराष्ट्र जल (प्रदूषण की
रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1983 के नियमों के तहत क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर को 24
फरवरी, 2020 से विभागीय जांच के अधीन निलंबित कर दिया था.

जब दिलीप खेडकर मुंबई के क्षेत्रीय कार्यालय में क्षेत्रीय अधिकारी के रूप में कार्यरत थे, तब करीब 300-
400 छोटे उद्यमियों ने शिकायत की थी कि दिलीप खेडकर मुंबई क्षेत्र में कई व्यवसाय मालिकों और
प्रतिष्ठानों के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा कर रहे थे और उन से अवैध तरीके से जबरन वसूली कर रहे
थे. 6 अक्तूबर, 2015 को मुख्यमंत्री से शिकायत की गई थी.

उक्त शिकायत बोर्ड में दर्ज कर ली गई.पुणे के सुप्रभा पौलिमर एंड पैकेजिंग ने 13 मार्च, 2019 को शिकायत की थी, इस में कहा गया था कि क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर ने 20 लाख रुपए की मांग की है, समझौता राशि 13 लाख बताई गई.

इस शिकायत की प्रारंभिक जांच का आदेश मुख्यालय के माध्यम से दिया गया था. दिलीप खेडकर जब कोल्हापुर के क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत थे, तब बोर्ड को कोल्हापुर मिल और टिंबर मर्चेंट द्वारा डीएसपी (भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, कोल्हापुर) से पहली मार्च, 2018 को की गई शिकायत की प्रति प्राप्त हुई.

इस शिकायत में उद्यमी से पैसे की मांग की गई थी और बिजलीपानी की आपूर्ति बहाल करने के लिए रुपए की मांग की गई. इतना ही नहीं, नोटिस वापस लेने के लिए 25 हजार और 50 हजार रुपए की मांग की गई है.

सतारा के सोना अलायज प्राइवेट लिमिटेड ने 15 मार्च, 2019 को पत्र के माध्यम से शिकायत दी थी. इस
में कहा गया था कि 50 हजार रुपए की मांग की गई थी, दिलीप खेडकर ने उन्हें परेशान किया, क्योंकि
संबंधित उद्योग ने उक्त राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया.

क्षेत्रीय अधिकारी दिलीप खेडकर का कोल्हापुर से मैत्री कक्ष, महाराष्ट्र, लघु उद्योग विकास निगम, मुंबई में
ट्रांसफर कर दिया गया था, लेकिन दिलीप खेडकर ने पद ग्रहण नहीं किया और बिना अनुमति के 6 से 7
महीने तक अनुपस्थित रहे.

वहीं, एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के शीर्ष सूत्रों ने बताया था कि ऐसे संकेत मिले हैं कि ट्रेनी आईएएस
पूजा खेडकर के पिता दिलीप खेडकर ने महाराष्ट्र सरकार में अपनी सेवा के दौरान आय से अधिक संपत्ति
अर्जित की थी. वह साल 2020 में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे.

 

राजा जयकेशी की पुत्री को तसवीर देखकर हो गया था प्यार

राजा जयकेशी की पुत्री राजकुमारी मयणल्ला को सोलंकी वंश के राजा कर्णदेव की फोटो देख कर ही प्यार
हो गया था, लेकिन कर्णदेव ने उस से विवाह करने को मना कर दिया था. आखिर मयणल्ला ने ऐसे
क्या क्या जतन किए कि राजा कर्णदेव को उस से विवाह करने के लिए मजबूर होना पड़ा?

दक्षिण भारत के उस समय के चंद्रपुर के कदंब वंश के एक राजा थे जयकेशी. उन की मयणल्ला नामक
एक पुत्री थी. गुजरात में सोलंकी वंश के राजा कर्णदेव प्रथम का राज्य था. कर्णदेव भी अपने पूर्वज
मूलराज प्रथम, भीमदेव प्रथम की तरह प्रतापी राजा था. उस के समय में भी गुजरात की ख्याति दक्षिण
तक फैली हुई थी. वहां स्थित सोमनाथ का शिवमंदिर प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध था.

भारत भर के श्रद्धालु सोमनाथ मंदिर का दर्शन करने आते थे. राजकुमारी मयणल्ला उन यात्रियों से
सोमनाथ मंदिर की भव्यता और राजा कर्णदेव के स्वरूप व ख्याति की बातें सुना करती थी. राजा कर्णदेव
की एक तसवीर देख कर राजकुमारी मयणल्ला उस पर मोहित हो गई और उसे अपने पति रूप में पाने
की ठान ली.

राजा कर्णदेव के शासन काल से पहले से ही सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले यात्रियों से यात्री
कर लिया जाता था. राजकुमारी मयणल्ला नहीं चाहती थी कि भक्तों से यह कर लिया जाए.
गुजरात को और अधिक शक्तिशाली, समृद्ध बना कर इस यात्री कर को समाप्त करने की चाह उस में
जागी.

यह तभी संभव था, जब वह गुजरात की साम्राज्ञी बने. वह एक शक्तिशाली और सर्वगुणसंपन्न भावी राजा
की माता बने. राजकुमारी ने अपने पिता राजा जयकेशी के सामने विवेक व विनयपूर्वक अपनी इच्छा
व्यक्त की.

अपनी पुत्री के गुण संस्कार राजा को पता थे. राजा ने पुत्री की इच्छापूर्ति के लिए एवं राजकीय संबंध
सुदृढ़ बनाने की इच्छा से अपनी सहमति दे दी.

पिता जयकेशी से आशीर्वाद ले कर राजकुमारी मयणल्ला अपनी कुछ दासियों, सेवक और कुछ अंगरक्षकों
को ले कर गुजरात की राजधानी पाटण की ओर चल पड़ी. उत्तरदक्षिण की सीमा, नर्मदा नदी को पार कर
के राजकुमारी का कारवां कुछ महीने बाद पाटण के पास सरस्वती नदी के किनारे आ पहुंचा.

पाटण नगर के पास दुर्लभ तालाब के पाए सुरम्य उद्यान में राजकुमारी के काफिले ने पड़ाव डाला.
उद्यान के बगल में ही कुछ शामियाने लगाए गए. उद्यान सुंदर और सुरम्य था, जो हरी घास, रंगबिरंगे
फूलों के पौधों, पेड़, लताओं से मनोहारी था. उद्यान में मोर, कोयल और तरहतरह के परिंदे किलकिलाहट
कर रहे थे.

चांदनी रात में उस उद्यान की परछाई दुर्लभ सरोवर (झील) में जो दिखती थी, वह झील की शोभा में
चारचांद लगा देती थी. उस उद्यान में राजकुमारी मयणल्ला अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रतीक्षा में
दिन बिता रही थी.

राजा भीमदेव प्रथम की महारानी और राजा कर्णदेव की माता रानी उदयमति शिल्प और स्थापत्य की
बेजोड़ बावड़ी का निर्माण करवा रही थीं, जो उस उद्यान और झील के पास ही थी. राजमाता उदयमति उद्यान की सैर करने व बावड़ी का निरीक्षण करने समयसमय पर आया करती थीं.

उस उद्यान के पास लगे शामियानों को राजमाता उदयमति ने देखा. दासी को भेज कर पता लगवाया तो
पता चला कि यह शिविर चंद्रपुर की राजकुमारी मयणल्ला का है. दक्षिण में चंद्रपुरी का राजा जयकेशी भी एक प्रतापी राजा था. राजमाता उदयमति राजकुमारी के शिविर में उस से मिलने गईं. राजकुमारी मयणल्ला ने बड़े आदर के साथ राजमाता का सत्कार व अभिवादन किया. राजमाता नायकेशी के विवेक, विनय और शिष्टाचार से बेहद प्रभावित हुईं.

राजमाता ने राजकुमारी का चंद्रपुर से सीधे ही पाटण आने का प्रयोजन पूछा. राजकुमारी ने बिना संकोच
किए व विनयपूर्वक अपनी कामना का जिक्र किया.

राजकुमारी मयणल्ला ने राजमाता से निवेदन किया कि मैं महाराजा कर्णदेव से विवाह कर के आप की
पुत्रवधू बनना चाहती हूं. महाराज से एक वीर पुत्र प्राप्त करने के बाद मैं उस पुत्र को वीर, अजेय, योद्धा, सद्ïगुणी, सर्वगुणसंपन्न, संस्कारी, न्यायी, नीतिवान सुशासक बनाना चाहती हूं. मुझे लगता है कि आप के प्रतापी पुत्र महाराज कर्णदेव से एक प्रतापी पुत्र पा कर ही मेरी यह इच्छा पूरी हो सकती है.

राजा कर्णदेव भी उद्यान और दुर्लभ सरोवर की सैर करने और निर्माणाधीन बावड़ी का निरीक्षण करने के
लिए वहां आया करते थे. कर्णदेव ने उद्यान के बगल में ही लगे दक्षिण के चंद्रपुर राज्य के शिविर को
देख कर अपने सिपाही भेज कर जांच करवाई कि यह शिविर यहां क्यों लगाया गया है और शिविर में
कौन है.

सिपाहियों ने तलाश कर के राजा कर्णदेव को बताया कि यह शिविर चंद्रपुर के राज्य का है और शिविर में
वहां के राजा जयकेशी की पुत्री राजकुमारी मयणल्ला है. राजा कर्णदेव ने अपनी विश्वासप्राप्त सेविकाओं को राजकुमारी के शिविर में भेज कर यह पता लगाया कि यह राज परिवार के किसी पुरुष को साथ लिए बिना यहां अकेली ही क्यों आई है.

राजकुमारी ने उन सेविकाओं को बताया कि वह राजा कर्णदेव के साथ स्वयं अपने विवाह हेतु आई है. यह
पाटण और चंद्रपुर दोनों राज्यों का वैवाहिक संबंध स्थापित कर दोनों राज्यों के राजनैतिक संबंधों को
सुदृढ़ करना चाहती है. वह राजा कर्णदेव के रूप और कीर्ति से प्रभावित हो कर यहां स्वयं ही आई है.
उसे मालूम है कि पाटण में किसी भी नारी को कोई भय नहीं है, उस के मानसम्मान में कोई खोट नहीं
है. इसलिए वह अपनी सेविकाओं और कुछ सेवकों को साथ ले कर अकेली ही आई है.

वैसे तो राजकुमारी मयणल्ला कुशल बुद्धिशाली, राजनैतिक समझ वाली, प्रभावशाली और महत्त्वाकांक्षी थी,
लेकिन दक्षिण की होने के कारण स्वाभाविक रूप से कुछ सांवले रंग की थी. जबकि राजा कर्णदेव कामदेव
के समान बहुत स्वरूपवान था. जिस से उस ने मयणल्ला के प्रस्ताव को अस्वीकार किया और उस में
कोई रुचि नहीं दिखाई.

समय बीतता गया. राजा कर्णदेव अपने निर्णय पर दृढ़ था. उस ने राजकुमारी के प्रति बेरुखी ही दिखाई.
इधर राजकुमारी भी अपने निर्णय पर दृढ़ थी कि वह विवाह तो कर्णदेव से ही करेगी. आखिर उस ने
राजमाता उदयमति की सहायता लेने का निश्चय किया.

जब राजमाता उद्यान की सैर करने आईं तो राजकुमारी ने अपनी विश्वस्त सेविका को राजमाता के पास
भेज कर अपने मिलने की अनुमति मांगी. राजमाता भी राजकुमारी की बहुत इज्जत करती थीं, वह स्वयं
राजकुमारी के शिविर में उस से मिलने आईं.

राजकुमारी ने राजमाता के चरण छू कर उन का अभिवादन किया. राजमाता के बैठने के लिए उन के
योग्य आसन दिया. राजमाता राजकुमारी की इच्छा जानती ही थीं, फिर भी उन्होंने राजकुमारी के फिर से
मिलने का कारण जानना चाहा.

राजकुमारी ने राजमाता उदयमति को अपनी मनोकामना पुन: व्यक्त करते हुए राजमाता से प्रार्थना की
कि वह विवाह करेगी तो राजा कर्णदेव से ही करेगी, वरना वह अग्निस्नान कर लेगी. यह उस की दृढ़
प्रतिज्ञा है. क्षत्रिय कन्या एक बार जिसे अपना पति मान लेती है तो वह उस से ही विवाह करती है, दूसरे
तो उस के लिए भाई और पिता समान ही होते हैं.

राजमाता से उस ने प्रार्थना की कि मैं अपनी प्रतिज्ञा आप की सहायता से ही पूर्ण कर सकती हूं. आप
मुझे जीवित रखना चाहती हैं और पाटण व चंद्रपुर को निकट ला कर शक्तिशाली बनाना चाहती हैं तो
मेरी पूरी सहायता कीजिए.

राजमाता उदयमति जूनागढ़ (सोरठ) के चुड़ासमा राजवंश की थीं. वह गहरी राजनीतिक सूझ वाली थीं. वह
स्वयं भी महत्त्वाकांक्षी थीं. वह चाहती थीं कि उन का पुत्र भी अपने पुरखों की तरह शक्तिशाली, सुशासक
व प्रसिद्ध राजा बने.

उन्होंने राजकुमारी मयणल्ला को विश्वास दिलाया कि वह अवश्य उस की सहायता करेगी. यदि राजा
कर्णदेव मयणल्ला के साथ विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार करेगा तो वह स्वयं भी राजकुमारी के साथ
अग्निस्नान करेंगी. राजमाता राजकुमारी को यह दृढ़विश्वास दिला कर राजमहल चली गईं.

राजमहल आ कर राजमाता ने अपने राज्य के महामात्य मुंजाल मेहता से राजा कर्णदेव और मयणल्ला
देवी के विवाह के संबंध में परामर्श किया. उस ने भी राजमाता के विचार का समर्थन किया. महामात्य
मुंजाल बड़ा मुत्सदी (मुगलकाल का सरकारी पद) था.

उस ने राजा कर्णदेव को मयणल्ला के साथ विवाह करने के लिए राजी कर लिया. आखिर नारी की दृढ़ शक्ति, दृढ प्रतिज्ञा के आगे राजा को झुकना पड़ा, क्योंकि उन की प्रतिज्ञा राजा और राज्य के हित में थी. राजा कर्णदेव और मयणल्ला का विवाह संपन्न हुआ. अब महारानी मयणल्ला महारानी मीनल देवी के नाम से बुलाई जाने लगी.

समय बीतते महारानी मीनल देवी ने शुभ मुहूर्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम जयसिंह रखा
गया, जो बड़ा प्रतापी राजा सिद्ध हुआ. गुजरात की लोकभाषा में वह 'सधराजेसंगÓ के नाम से प्रसिद्ध
हुआ.

बाल राजकुमार जयसिंह देव एक दिन अपने बाल मित्रों के साथ खेलखेल में ही राज सिंहासन पर बैठ
गया. ज्योतिषियों ने बताया कि यह शुभ मुहूर्त है, जिस से राज्य की उन्नति होगी. इसलिए राजा कर्णदेव
ने बाल राजकुमार का उसी मुहूर्त में राज्याभिषेक कर दिया.

अब पाटण-गुजरात का राजा नाबालिग उम्र में ही जयसिंह देव हुआ. इस के बाद कुछ ही वर्ष में राजा
कर्णदेव ने देह त्याग दी. अब राज्य की धुरी राजमाता मीनल देवी ने संभाल ली. वह बाल राजा जयसिंह
देव के नाम से महामात्य शांतनु और मुंजाल मेहता की सहायता से शासन करने लगी.

राजमाता मीनलदेवी ने बाल राजा जयसिंह को मल्ल विद्या, गज विद्या, शस्त्र विद्या तथा नीति शास्त्र
और सुशासन प्रणाली में पारंगत बनने की शिक्षा दिलाई. राज्य विस्तार के साथसाथ सुशासन करना,
प्रजाहित का ध्यान रखना, लोक कल्याण के कार्य करना, प्रजा के दुख की जानकारी लेना जैसे आदर्श राजा
के गुणों की शिक्षा दी थी.

आदर्श पर चलने के लिए और सुशासन देने के लिए राजा को स्वयं बलवान बनना चाहिए और राज्य में
छोटीबड़ी, अच्छीबुरी घटनाओं की भेष बदल कर, छिपे भेष में जानकारी लेनी चाहिए.

इस प्रकार राजमाता मीनल देवी ने अपने बाल राजा को आदर्श राजा के सभी सुसंस्कार दिए और इसी
कारण राजा जयसिंह हर कार्य को, जो उस ने निश्चित किया या इरादा रखा, उसे सिद्ध कर के दिखाया.
उस का शासन काल गुजरात का स्वर्ण युग रहा.

बाल राजा जयसिंह की युवावस्था प्राप्त होने तक शासन चलाना इतना आसान नहीं था. कर्णदेव की मृत्यु
के बाद उस के सौतेले भाई क्षेमराज के पुत्र देव प्रसाद ने जयसिंह को नाबालिग समझ कर राजकार्य में
हस्तक्षेप करने का प्रयास किया. लेकिन राजमाता मीनल देवी ने मंत्री शांतनु की सहायता से उसे विफल
कर दिया.

राजमाता के प्रभाव के कारण अपनी असफलता पर देव प्रसाद ने अग्नि स्नान कर लिया. देव प्रसाद के
नाबालिग पुत्र त्रिभुवन पाल को राजमाता ने अपने महल में बुला लिया और उस का लालनपालन किया.
जयसिंह उसे अपने सगे भाई की तरह चाहता था.

राजा कर्णदेव की मृत्यु के बाद उस का मामा मदनपाल जो जूनागढ़ का था, राजधानी पाटण में ही रहता
था, स्वच्छंदी हो गया. राजा जयसिंह किशोर होने के कारण मदनपाल राजकाज में दखल करता था. प्रजा
को परेशान करता था और निरपराधी को भी दंडित करता था. उस की ऐसी हरकतें कुछ ज्यादा बढ़ गई
थीं.

एक बार पाटण के उत्तम वैद्य को अपना इलाज कराने के बहाने अपने निवास पर बुला कर कैद कर
लिया और 32 हजार मोहरें ले कर उस को मुक्त किया. जब युवा राजा जयसिंह को इस की खबर मिली
तो राजमाता मीनल देवी से सलाह कर शांतनु मंत्री की सहायता से मदनपाल की हत्या करवा दी.

राजमाता मीनल देवी और राजा जयसिंह अपने सगेसंबंधियों से अधिक अपनी प्रजा का हित देखते थे.
गुजरात राज्य की पश्चिमी सीमा पर अरब सागर के किनारे प्रसिद्ध सोमनाथ का मंदिर है.

राजमाता ने कई लोगों को मंदिर के दर्शन किए बिना निराश हो कर वापस लौटते देखा. उन से पूछा तो
पता चला कि वे यात्री कर न चुका पाने के कारण बिना दर्शन ही वापस लौट रहे हैं.

राजमाता ने सोचा कि मेरे राज्य की प्रजा यात्री कर न चुका सकने के कारण बिना दर्शन किए निराश हो कर वापस जा रही है तो मैं कैसे मंदिर के दर्शन कर सकती हूं. मैं राजमाता हूं तो क्या हुआ, भगवान के सामने तो राजा और प्रजा दोनों ही समान हैं.

राजकार्य की व्यवस्था कर के कुछ ही दिनों बाद राजा जयसिंह देव भी अपने कुछ सैनिकों को साथ ले
कर सोमनाथ की यात्रा के लिए निकल पड़ा, जब वह सोमनाथ के निकट पहुंचा तो उस ने राजमाता के
काफिले का शिविर देखा. शिविर में जा कर राजा ने राजमाता से भेंट की तो उसे मालूम हुआ कि
राजमाता सोमनाथ मंदिर में दर्शन किए बिना ही वापस पाटण लौट रही है.

राजा के पूछने पर राजमाता ने कहा कि जब अपने राज्य की प्रजा और अन्य राज्यों की प्रजा बिना यात्री
कर दिए मंदिर में दर्शन नहीं कर सकती तो मैं कैसे दर्शन कर सकती हूं. तुम यदि सभी के लिए यात्री
कर समाप्त कर दो, तभी मैं भी दर्शन करूंगी.

पाटण राज्य की आय में सोमनाथ के यात्री कर का बहुत बड़ा योगदान था, फिर भी राजमाता के अनुरोध
पर राजा जयसिंह देव ने यात्री कर समाप्त कर दिया. यह राजमाता मीनल देवी के दिल में प्रजा के प्रति
प्रेम और न्याय को दर्शाता है. ऐसे तो राजमाता मीनल देवी ने कई तालाब और मंदिरों का निर्माण
करवाया था, लेकिन धोलका का मलाव तालाब राजमाता की न्यायप्रियता का उत्तम उदाहरण है.

धोलका (गुजरात) के पास राजमाता एक तटबंधी तालाब का निर्माण करवा रही थी. तालाब गोलाकार
बनाना था. लेकिन उस तालाब की सीमा में एक गणिका का छोटा सा निवास स्थान आता था.
राजमाता ने निवास स्थान बदलने के लिए गणिका को मुंहमांगी कीमत देने का औफर दिया, लेकिन
गणिका वह जमीन देना नहीं चाहती थी.

राज्य जबरदस्ती भी वह जमीन ले सकता था, लेकिन राजा जयसिंह देव ने ऐसा नहीं किया और तालाब की उतनी गोलाई छोड़ दी, यह थी राजमाता की न्यायप्रियता. आज भी वह तालाब मौजूद है. और कहा जाता है कि न्याय देखना हो तो धोलका का मलाव तालाब देखो.

एक जनश्रुति के अनुसार जूनागढ़ के राजा राव नवगण को राजा जयसिंह देव ने युद्ध में पराजित कर
दिया था, उसे मुंह में तिनका लेने को मजबूर कर दिया था. इसलिए राजा नवगण ने पाटण के द्वार को
तोडऩे की प्रतिज्ञा की थी. वह तो अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सका, लेकिन उस के बाद उस के पुत्र राजा
राव खेंगार ने पाटण का द्वार तोड़ा था.

उस समय राजा जयसिंह देव मालवा गया हुआ था. अपने साथ राव खेंगार उस कन्या को भी ले गया,
जिस के साथ सिद्धराज जयसिंह देव का विवाह होने वाला था. हालांकि वह कन्या और राव खेंगार
एकदूसरे के साथ प्रणय संबंध में बंधे थे. जूनागढ़ आ कर राव खेंगार ने उस कन्या से विवाह कर लिया,
जिस का नाम सोनल देवी था. जो जनश्रुति में राणक देवड़ी के नाम से पुकारी जाने लगी.

जयसिंह को जब मालवा से लौटने पर समाचार मिला तो वह गुस्से में लालपीला हो गया. राजा जयसिंह
ने जूनागढ़ पर आक्रमण किया. लंबे समय तक के घेरे के बाद जयसिंह दुर्ग में प्रवेश करने में सफल
हुआ. राजा राव खेंगार और राजा जयसिंह के घमासान युद्ध में राव खेंगार मारा गया. जयसिंह देव
राणक देवड़ी को ले कर पाटण आने को निकल पड़ा.

पाटण में राजमाता मीनल देवी को यह खबर मिली तो राजमाता उसे रोकने के लिए कुछ सैनिकों को ले
कर जूनागढ़ की ओर निकल पड़ी, क्योंकि वह जानती थी कि राणक देवी महासती है और यदि वह राजा
जयसिंह को श्राप देगी तो महाअनर्थ होगा. बढवाण में दोनों काफिले मिले.

राजमाता ने राणक देवी पर जबरदस्ती न करने के लिए जयसिंह को मना लिया. राजमाता मीनल देवी ने
राणक देवी से मिल कर उस की इच्छा जानी. राणक देवी ने अपने पति राव खेंगार का सिर अपनी गोद
में ले कर सती होने को कहा. राजमाता ने राव खेंगार का सिर मंगवाया. राणक देवी अपने पति का सिर
ले कर बढवाण के पास भोगावो नदी के तट पर सती हुई. उस का मंदिर आज भी वहां मौजूद है.

राजमाता मीनल देवी और उस के पुत्र सिद्धराज जयसिंह देव की न्यायप्रियता की अनेक कथाएं गुजरात
के लोक साहित्य में पढऩे और सुनने में आती हैं. माता मीनल देवी ने जयसिंह में महान योद्धा, कुशल
सेनापति, सर्वधर्म समभाव, न्यायप्रियता और प्रजा हितैषी के गुण कूटकूट कर भरे थे.

राज्यारोहण से ले कर आने वाली चुनौतियां माता और मंत्रियों की सहायता से सफलतापूर्वक पार कीं, जिस
से वह गुजरात का महान प्रतापी राजा सिद्ध हुआ और उस का राज्यकाल गुजरात का स्वर्ण युग
कहलाया. राजकुमारी मयणल्ला ने जो प्रतिज्ञा की थी. वह कर्णदेव से विवाह कर पूरी की.
कीवर्ड (स्टोरी)

ऐतिहासिक कहानी, राजकुमारी मयणल्ला, राजा जयकेशी, कर्णदेव, सोलंकी वंश, कदंब वंश, जयसिंह देव,
सोमनाथ मंदिर, गुजरात, रानी उदयमति, पाटण

आशू की अजीब दास्तान : दो बूंद प्यार की चाहत

आशू यानी आशीष कुमार जब सजधज कर निकलता है तो युवक ही नहीं, बड़ेबूढ़े भी उसे देखते रह जाते हैं. उस के रूप सौंदर्य पर लोग इस कदर मोहित हो जाते हैं कि उसे जीवनसाथी के रूप में पाने की कल्पना करने लगते हैं. यही नहीं, जब वह कातिल अदाओं के साथ स्टेज पर नृत्य करता है तो नवयुवकों के साथ बुड्ढे भी बहकने लगते हैं.

आशू के इन गुणों को देख कर लगता है कि वह कोई लड़की है. लेकिन ऊपर जो नाम लिखा है, उस से साफ पता चलता है कि वह लड़की नहीं, लड़का है. इलाहाबाद का बहुचर्चित डांसर एवं ब्यूटीशियन आशीष कुमार उर्फ आशू बेटे के रूप में पैदा हुआ था, इसीलिए घर वालों ने उस का नाम आशीष कुमार रखा था. बाद में सभी उसे प्यार से आशू कहने लगे थे. लेकिन लड़का होने के बावजूद उस का रूपसौंदर्य ही नहीं, उस में सारे के सारे गुण लड़कियों वाले हैं.

आशू का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के मोहल्ला जीटीबीनगर में रहने वाले विनोद कुमार शर्मा के घर हुआ था. पिता इलाहाबाद में ही व्यापार कर विभाग में बाबू थे. परिवार शिक्षित, संस्कारी और संपन्न था. 4 भाइयों और 2 बहनों में तीसरे नंबर का आशू पैदा भले ही बेटे के रूप में हुआ था, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस में लड़कियों वाले गुण उभरते गए. उस के हावभाव, रहनसहन एवं स्वभाव सब कुछ लड़कियों जैसा था. वह लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ खेलता, उन की जैसी बातें करता.

जब कभी उसे मौका मिलता, वह अपनी बहनो के कपड़े पहन कर लड़कियों की तरह मेकअप कर के आईने में स्वयं को निहारता.  मां और बहनों ने कभी उसे रोका तो नहीं, लेकिन उस के भविष्य को ले कर वे चिंतित जरूर थीं.

आशू जिन दिनों करेली के बाल भारती स्कूल में कक्षा 6 में पढ़ता था, स्कूल के वार्षिकोत्सव में पहली बार उसे नृत्य के लिए चुना गया. कार्यक्रम के दौरान जब आशू को लड़की के रूप में सजा कर स्टेज पर लाया गया तो लोग उसे देखते रह गए. लड़की के रूप में उस ने नृत्य किया तो उस का नृत्य देख कर लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

इस के बाद मोहल्ले में ही नहीं, शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आशू को नृत्य के लिए बुलाया जाने लगा. चूंकि उस समय आशू बच्चा था, इसलिए घर वाले उसे उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं करते थे. लेकिन आशू बड़ा हुआ तो लोग उस के हावभाव को ले कर उस के पिता और भाइयों के सामने अशोभनीय ताने मारने लगे, जिस से उन्हें ठेस लगने लगी.

आखिकार एक दिन आशू को ले कर घर में हंगामा खड़ा हो गया. पिता और भाइयों ने उस से साफ कह दिया कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे, कहीं किसी कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन आशू स्वयं को रोक नहीं पाया. मौका मिलते ही वह कार्यक्रमों में भाग लेने पहुंच जाता.

आशू की हरकतों से घर वाले स्वयं को बेइज्जत महसूस करते थे. लोग उसे ले कर तरहतरह की चर्चा करते थे. कोई उसे किन्नर कहता था तो कोई शारीरिक रूप से लड़की कहता. जब बात बरदाश्त से बाहर हो गई तो घर वालों ने कक्षा 8 के बाद उस की पढ़ाई छुड़ा दी.

अब तक आशू काफी समझदार हो चुका था. पढ़ाई छुड़ा दिए जाने के बाद वह घर में बैठबैठे बोर होने लगा. घर में सिर्फ मां और बहनें ही उस से बातें करती थीं, वही उस की पीड़ा को भी समझती थीं. क्योंकि वे स्त्री थीं. वे हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश करती थीं.

वक्त गुजरता रहा. पिता और भाई भले ही आशू के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे, लेकिन मां उस के भविष्य को ले कर चिंतित थी. उस ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए पति से गंभीरता से विचार किया. अंतत: काफी सोचविचार के बाद आशू की पसंद के अनुसार उसे नृत्य और ब्यूटीशियन का कोर्स कराने का फैसला लिया गया.

आशू को नृत्यं एवं ब्यूटीशियन की कोचिंग कराई गई. चूंकि उस में नृत्य एवं ब्यूटीशियन का काम करने की जिज्ञासा थी, इसलिए जल्दी ही वह इन दोनों कामों में निपुण हो गया. इस के बाद उस ने अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. इस काम में आशू ने पैसे के साथसाथ अच्छी शोहरत भी कमाई.

घर वाले आशू के इस काम से खुश तो नहीं थे, लेकिन विरोध भी नहीं करते थे. वह जब तक घर पर रहता, पिता और भाइयों से डराडरा रहता, क्योंकि वे उस के लड़की की तरह रहने से घृणा करते थे. आशू बड़ा हो गया. लेकिन खुशियां और आनंद उस के लिए सिर्फ देखने की चीजें थीं, क्योंकि वह घर में घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर था.

आशू चूंकि अपने गुजरबसर भर के लिए कमाने लगा था, इसलिए खुशियां और आनंद पाने के लिए वह अपना घर छोड़ने के बारे में सोचने लगा. क्योंकि वह पिता और भाइयों की उपेक्षा एवं घृणा से त्रस्त हो चुका था. मजबूर हो कर 7 साल पहले आशू ने दिल मजबूत कर के घर छोड़ दिया और कैंट मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर आजादी के साथ रहने लगा. आशू के लिए यह एक नया अनुभव था.

आजाद होने के बाद आशू में लड़की होने की कसक पैदा होने लगी. कहा जाता है कि मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है. आशू के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस की भी कमर लड़कियों की तरह पतली होने लगी और नीचे के हिस्से भरने लगे. उस का रूपसौंदर्य औरतों की तरह निखरने लगा. कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से औरत लगने लगा.

आशू को लड़कियों जैसा ऐसा रूप मिला था कि वह जब कभी स्टेज पर नृत्य करता लोग देखते रह जाते थे. आज स्थिति यह है कि वह इलाहाबाद शहर का मशहूर डांसर माना जाता है. इस समय वह अतरसुइया में रहता है. वह जो कमाता है, उस का अधिकांश हिस्सा समाजसेवा पर खर्च करता है. यही वजह है कि लोग उसे सम्मान की नजरों से देखते हैं.

आशू उपेक्षित एवं तिरस्कृत गरीब परिवार के लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में उन की आर्थिक मदद तो करता ही है, अपने ‘जया बच्चन नृत्य एवं संगीत स्कूल’ में नि:शुल्क नृत्य भी सिखाता है. उस के इस स्कूल में 25 लड़के एवं 20 लड़कियां नृत्य सीख रही हैं. इस के अलावा वह लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्यूटीशियन का कोर्स भी कराता है.

आशू को सब से बड़ा दुख इस बात का है कि परिवार में इतने लोगों के होते हुए भी वह अकेला है. जबकि दुखसुख बांटने के लिए एक साथी की जरूरत होती है. लेकिन उस की स्थिति ऐसी है कि वह किसी को अपना साथी नहीं बना सकता. औरत के लिए मर्द तो मर्द के लिए औरत के प्यार की जरूरत होती है, लेकिन आशू का तन मर्द का है तो मन औरत का. ऐसे में उसे न तो मर्द का प्यार मिल पा रहा है, न औरत का.