कमरे का सीन देखकर पुलिस शौक्ड

गुलशबा जिस स्थिति में मनोज को मिली थी, वह चाहता तो उस का फायदा उठाकर भटकने के लिए छोड़ देता. लेकिन उसने न केवल गुलशबा से शादी की, बल्कि उस के लिए धर्म बदल कर कैफ भी बन गया. इस के बावजूद उसे मिली मौत. वह भी गुलशबा और उस के प्रेमी रिजवान कुरैशी के हाथों. 6 जनवरी, 2018 को महानगर मुंबई से सटे ठाणे जनपद के तालुका भिवंडी स्थित कसाईवाड़ा का रहने वाला

शादाब कुरैशी अपना धंधा बंद कर जब घर पहुंचा तो उसे जो खबर मिली, उसे सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. फोन पर उस की बुआ के बेटे रिजवान कुरैशी ने बताया कि 3-4 दिन पहले 4-5 लोगों ने उस के बहन बहनोई के घर में घुस कर उन के साथ मारपीट की और उस के बहनोई की हत्या कर के उस की बहन गुलशबा को अगवा कर ले गए.

मैं मौके पर मौजूद था. मैंने जब उन का विरोध किया तो उन्होंने मारपीट कर मुझे भी घायल कर दिया. गुलशबा अपने पति मनोज सोनी उर्फ कैफ के साथ नायगांव परिसर स्थित बिट्ठलनगर के फ्लैट में रहती थी. इस के पहले कि शादाब कुरैशी रिजवान से इस बारे में कोई बात पूछता, फोन कट गया. कई बार कोशिश के बाद भी जब रिजवान से संपर्क नहीं हो पाया तो सच्चाई जानने के लिए शादाब बहन के फ्लैट पर पहुंच गया.

फ्लैट के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी, अंदर से थोड़ी बदबू भी आ रही थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह फ्लैट 3-4 दिनों से बंद पड़ा है. उन्होंने फोन कर के उस फ्लैट के मालिक को बुला लिया था. मामला संदिग्ध था, इसलिए मकान मालिक ने मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने को दे दी थी.

रात करीब एक बजे थाना शांतिनगर के थानाप्रभारी किशोर जाधव अपने सहायक पीआई मनजीत सिंह बग्गा, एसआई जी.के. वाघ, दिनेश लोखंडे, एएसआई डी.के. सोनवणे, सिपाही सुनील इंथापे, टी.बी. वड़ को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने देखा कि गुलशबा के फ्लैट पर ताला लटका हुआ था. चूंकि उस ताले की चाबी किसी के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताले को तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही अंदर से तेज बदबू का झोंका आया, जिस से वहां खड़े लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया.

नाक पर रूमाल रख कर पुलिस टीम जब कमरे में गई तो वहां का नजारा देख कर स्तब्ध रह गई. फर्श पर खून के जमे हुए धब्बे नजर आ रहे थे, जो सूख कर काले पड़ गए थे.

दरवाजे के पीछे कपड़ों का एक पुलिंदा रखा हुआ था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर बाहर आ गया था. उस पुलिंदे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लाश का धड़ और सिर दोनों अलगअलग थे. शादाब कुरैशी ने उस लाश की शिनाख्त अपने बहनोई मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ के रूप में की.

लाश देखकर लग रहा था कि उस की हत्या 3-4 दिन पहले की गई होगी,जिस से शव में सड़न पैदा हो गई थी. थानाप्रभारी किशोर जाधव ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. खबर पाते ही ठाणे जिले के डीसीपी मनोज पाटिल, एसीपी मुजावर तत्काल मौकाएवारदात पर आ गए. उन्होंने भी मृतक के साले शादाब और अन्य लोगों से पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिवंडी के आईजीएस अस्पताल भेज दिया. इसके बाद पुलिस ने शादाब कुरैशी की तरफ से हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के मामले की जांच सहायक पीआई मंजीत सिंह बग्गा को सौंप दी. शादाब ने शक अपनी बुआ के बेटे रिजवान पर ही जताया था. फुफेरे भाई के अलावा रिजवान रिश्ते में शादाब का साला भी था.

संदेह के दायरे में रिजवान कुरैशी शुरुआती जांच में रिजवान कुरैशी पुलिस के रडार पर आ गया था. उस ने जिस प्रकार से मामले की जानकारी शादाब कुरैशी को दी थी, वह आधीअधूरी थी. इस के अलावा मृतक के तीनों बच्चे अपने नानी के घर सहीसलामत थे. बच्चों की मां गुलशबा खुद उन्हें बच्चों को मायके छोड़ कर आई थी. ऐसे में गुलशबा के अपहरण का तो सवाल नहीं उठता था. एपीआई मंजीत सिंह बग्गा के निर्देशन में पुलिस टीम उस के घर गई तो वह घर से गायब मिला.

पुलिस ने जब रिजवान कुरैशी के बारे में गहराई से जांचपड़ताल की तो पता चला कि रिजवान कुरैशी का चरित्र ठीक नहीं है. मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने गुलशबा को भी जांच के घेरे में शामिल कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने रिजवान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में यह जानकारी मिल गई कि रिजवान की किनकिन लोगों से बात होती थी. पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ के बाद पुलिस को रिजवान के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना मिल गई.

इसके बाद एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने एसआई दिनेश लोखंडे, कांस्टेबल सुनील इंथापे, टी.बी. वड़, के.टी. मोहिते की एक टीम बना कर उन्हें रिजवान कुरैशी और गुलशबा की गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया.

10 जनवरी, 2018 को यह टीम उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली पहुंच गई. वहां दबिश दे कर पुलिस ने रिजवान और गुलशबा को गिरफ्तार कर लिया. वे दोनों अपने एक जानकार के यहां छिपे हुए थे. पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर थाना शांतिनगर ले आई.

थानाप्रभारी किशोर जाधव ने उन दोनों से मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने थोड़ी सख्ती के बाद कैफ की हत्या करने की बात स्वीकारते हुए जो कहानी बताई वह एहसान फरामोशी की सारी हदें पार कर देने वाली थी—

इंसानियत का तकाजा करीब 10 साल पहले 28 वर्षीय गुलशबा कुरैशी मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को उत्तर प्रदेश के आगरा दिल्ली हाईवे पर काफी दयनीय हालत में भटकती हुई मिली थी. मनोज उस हाइवे पर कटलरी की दुकान लगाता था. उस समय गुलशबा की स्थिति बहुत खराब थी, उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. लग रहा था जैसे वह कई दिनों से भूखी है.

वह मनोज कुमार सोनी के पास आ कर ऐसे गिर गई, जैसे बेहोश हो गई हो. उस की हालत देख मनोज कुमार घबरा गया. उस ने उसे अपनी दुकान के पास ही लिटाया और उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. कुछ देर बाद गुलशबा को होश आया तो उस ने उसे पानी पिलाया. पानी पीते ही उस की चेतना धीरेधीरे लौट आई.

इसके बाद गुलशबा ने मनोज को अपनी आपबीती बताई. गुलशबा ने उसे बताया कि वह मुंबई की रहने वाली है और वहीं के एक युवक से प्यार करती थी. वह युवक उसे घुमाने के लिए दिल्ली लाया था. दिल्ली के एक होटल में वे दोनों कई दिनों तक साथ रहे.

फिर वह युवक उसे होटल में छोड़ कर कहीं चला गया. होटल वालों ने उसे धक्के मार कर निकाल दिया. किसी तरह वह भटकती हुई यहां तक पहुंची है. अब वह अपने घर वापस नहीं लौट सकती क्योंकि घर वाले उस से बहुत नाराज हैं.

गुलशबा की आपबीती सुनने के बाद मनोज कुमार को उस से सहानुभूति हो गई. उस ने उसे धीरज बंधाया और अपनी दुकान बंद कर के खाना खिलाने के लिए एक होटल पर ले गया. बाद में वह उसे ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आया और कहा, ‘‘देखो, अब तुम जहां जाना चाहती हो, चली जाओ. मैं तुम्हारी टिकट का बंदोबस्त कर दूंगा. अच्छा यही होगा कि तुम अपने मांबाप के पास लौट जाओ. उन से माफी मांग लेना. मुझे यकीन है कि वे तुम्हें माफ कर देंगे.’’

लेकिन गुलशबा ने मनोज कुमार सोनी की बात नहीं मानी. वह बोली, ‘‘मैं अब क्या मुंह ले कर उन के पास जाऊंगी. शायद वे मुझे माफ कर भी दें लेकिन समाज में हमारी क्या इज्जत रहेगी. ऐसी स्थिति में मैं वहां नहीं जाऊंगी.’’

गुलशबा की यह बात सुन कर मनोज कुमार थोड़ा गंभीर हो गया. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अगर तुम वहां नहीं जाना चाहती हो तो यह बताओ कि तुम्हारा और कोई रिश्तेदार है, जिस के यहां तुम जाना चाहोगी. मैं वहां जाने का बंदोबस्त कर दूंगा.’’

‘‘अब मेरा कोई नहीं है. मैं कहीं नहीं जाना चाहती. मेरे नसीब में जो लिखा है, वह होगा.’’ कहते हुए गुलशबा ने अपना सिर झुका लिया.

गुलशबा के इस उत्तर से मनोज कुमार सोनी एक अजीब स्थिति में फंस गया था. अगर वह कहीं जाना नहीं चाहती तो उस का क्या होगा. एक अकेली अंजान औरत के लिए शहर सुरक्षित नहीं था. उस के साथ कुछ भी हो सकता था.

काफी समझाने के बाद भी जब गुलशबा कहीं जाने के लिए राजी नहीं हुई तो मजबूरन मनोज कुमार यह सोच कर उसे अपने घर ले आया कि मौका देख कर उसे उस के मातापिता के पास भेज देगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मनोज कुमार के घर आने के बाद गुलशबा कुछ दिनों तक तो उदास रही फिर धीरेधीरे उस के चेहरे की उदासी घटने लगी. वक्त के साथ मनोज कुमार के साथ घुलमिल गई. मनोज कुमार अपने घर में अकेला रहता था. गुलशबा ने मनोज के घर के सारे कामकाज संभाल लिए थे.

30 वर्षीय मनोज कुमार सोनी राजस्थान के रहने वाले जगदीश प्रसाद सोनी का बेटा था. रोजीरोटी के लिए वह दिल्लीआगरा हाइवे पर कटलरी की दुकान चलाता था. वह दुकान का सारा सामान मुंबई से लाता था और आगरा घूमने आने वाले सैलानियों को बेचता था, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाया करती थी.

गुलशबा को अपने प्रति समर्पित देख कर अविवाहित मनोज कुमार सोनी का भी झुकाव उस की तरफ हो गया. वे दोनों अब एकदूसरे की जरूरतें महसूस करने लगे थे, जिस के चलते उन के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. मन के साथसाथ तन का भी मिलन हो जाने के बाद दोनों अब सोतेजागते अपने जीवन के सतरंगी सपने सजाने लगे. मनोज गुलशबा से शादी करना चाहता था. लेकिन उन के बीच समाज और धर्म की दीवार खड़ी थी.

गुलशबा की तरफ से तो रास्ता साफ था लेकिन मनोज कुमार सोनी के घर वालों को यह रिश्ता पसंद नहीं था. उन की भी समाज में इज्जत थी. मनोज ने घर वालों की बातों को दरकिनार करते हुए खुद मुसलिम धर्म अपना कर गुलशबा से निकाह कर लिया. उस ने अपना नाम बदल कर कैफ रख लिया था.

गुलशबा से शादी कर के मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ खुश था. गुलशबा को भी अचानक में ही सही, पर एक ऐसा पति मिल गया था जो उस का हर तरह से पूरा ध्यान रख रहा था. मनोज रातदिन मेहनत कर के पत्नी को अपनी क्षमता के अनुसार सुखसुविधाएं दे रहा था.

पति के प्यार में गुलशबा भी अपनी बीती जिंदगी के पलों को भुला कर अपनी गृहस्थी में रम गई थी. दोनों के जीवन के 8 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच गुलशबा 2 बच्चों की मां बन गई. कुल मिला कर उस की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मनोज के कहने पर गुलशबा ने अपने मायके वालों से भी बातचीत करनी शुरू कर दी थी, जिससे उस के उन से भी संबंध सामान्य हो गए थे. बेटी खुश थी, उस का जीवन सुखी था, इस से ज्यादा एक मातापिता को और क्या चाहिए. मायके वालों का उस के पास आनाजाना शुरू हो गया.

8 सालों तक एक ही जगह पर रह कर जब गुलशबा का मन भर गया तो वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. गुलशबा चाहती थी कि उस का पति मुंबई में ही अपना धंधा शुरू कर के वहीं रहे तो वह मायके वालों के करीब आ जाएगी.

यही सोच कर उस ने एक दिन कैफ को समझाते हुए कहा, ‘‘जो काम तुम आगरा में करते हो, वही काम मुंबई में भी कर सकते हो. और फिर तुम सामान तो मुंबई से ही लाते हो. सामान लाने में खर्च भी होता है. मुंबई में काम करने से यह खर्चा भी बचेगा.’’ मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को पत्नी का सुझाव अच्छा लगा. फिर वह सन 2016 में आगरा वाली दुकान किराए पर दे कर अपने परिवार के साथ मुंबई चला गया और अपनी ससुराल के नजदीक नायगांव में किराए का घर ले कर रहने लगा.

बेटी के नजदीक आने पर मायके वाले भी खुश हुए क्योंकि उन का जब भी मन होता गुलशबा से मिलने के लिए आते रहते थे. मुंबई में गुलशबा ने एक बच्ची को जन्म दिया, जिस का नामकरण काफी धूमधाम से हुआ. जहां गुलशबा अपने मायके वालों के करीब रह कर खुश थी, वहीं मनोज उर्फ कैफ थोड़ा चिंतित और परेशान था. इस की वजह यह थी कि मुंबई में उस का कारोबार ठीक नहीं चल पा रहा था. आगरा की दुकान भी बंद हो चुकी थी.

मनोज चाहता था लौटना पर गुलशबा नहीं मानी यह सब सोच कर मनोज ने आगरा वापस लौटने का फैसला कर लिया पर गुलशबा मुंबई छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति को कह दिया कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ अकेली ही मुंबई में रह लेगी, क्योंकि उस के मायके वाले पास में हैं. मनोज ने भी उस की बात मान ली. पत्नी और बच्चों की तरफ से चिंतामुक्त हो कर मनोज आगरा लौट आया. वापस लौट कर उस ने अपना व्यवसाय फिर से जमा लिया.

कुछ दिनों बाद उस का धंधा पहले की तरह चलने लगा. वह अपने धंधे में व्यस्त हो गया तो गुलशबा अपनी गृहस्थी में. लेकिन वक्त का पहिया कुछ इस प्रकार से घूमा कि उन का सुखमय परिवार तिनके की तरह बिखर गया. अपने कारोबार में मनोज कुमार उर्फ कैफ कुछ इस तरह उलझा कि अपनी पत्नी गुलशबा के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाता था. वह साल में 2-4 बार ही गुलशबा को वक्त दे पाता था, जिस के कारण उस के और पत्नी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं.

मनोज कुमार का समय तो उस के कामों में निकल जाता था, लेकिन गुलशबा को उस की याद आती थी. वह अधिक दिनों तक पति की इन दूरियों को बरदाश्त नहीं कर पाई, लिहाजा 27 वर्षीय रिजवान कुरैशी से उस के नाजायज संबंध बन गए. रिजवान गुलशबा के भाई शादाब कुरैशी का साला था, जिस का गुलशबा के यहां आनाजाना लगा रहता था.

रिजवान से अवैध संबंध बन जाने के बाद गुलशबा ने पति की चिंता करनी बंद कर दी. बल्कि जब कभी पति से फोन पर बात होती तो वह उस से कह देती कि यहां की कोई चिंता मत करो और अपने काम पर ध्यान दो. पत्नी की चहकती बातों से मनोज को लगता कि गुलशबा खुश है. इस तरह गुलशबा पति के भरोसे का खून करती रही.

पत्नी के अवैध संबंधों की खबर किसी तरह मनोज के पास पहुंची तो उस के होश उड़ गए. उस ने सोचा भी न था कि जिस गुलशबा को वह रोड से उठा कर अपने घर लाया, जिस की खातिर उस ने अपना धर्म बदला, अपने घर वालों तक से बगावत की, जिसे उस ने जीने का सहारा दिया, उसे सारे ऐशोआराम दिए, वह उस के एहसानों का बदला इस प्रकार से चुकाएगी.

इस बात की सच्चाई की तह में जाने के लिए मनोज कुमार जब मुंबई गया तो उसे पत्नी का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. उस के पहुंचने पर पत्नी जिस तरह खुश हो जाती थी, उसे उस के चेहरे पर वह खुशी देखने को नहीं मिली. पत्नी के हावभाव से वह इतना तो समझ ही गया था कि उस के पास पत्नी और रिजवान कुरैशी के बारे में जो खबर पहुंची थी, वह कोई कोरी अफवाह नहीं थी.

इस के बाद वह खबर की पुष्टि में लग गया. इस के लिए वह सूत्र तलाशने लगा. उस ने पड़ोसियों और अपने बच्चों से बात की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि रिजवान गुलशबा से मिलने अकसर आता रहता है. कभीकभी तो वह उस के फ्लैट पर भी रुक जाता था.

इस बारे में उस ने गुलशबा से बात की तो वह सरासर झूठ बोल गई. उस ने कहा कि उस की पड़ोसियों से बनती नहीं है, इसलिए वे सब उसे बदनाम कर रहे हैं. रिजवान तो उस का भाई जैसा है.

अपनी नौटंकी से कुछ समय के लिए तो गुलशबा ने पति को अपने झांसे में ले लिया. लेकिन 2-4 दिन में ही उस की हकीकत मनोज के सामने आ गई. मनोज ने पत्नी को रिजवान के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. तब मनोज ने गुलशबा की जम कर पिटाई की.

पोल खुल जाने के बाद गुलशबा को बेइज्जती महसूस हुई. यह बात उस के मायके वालों को भी पता लग गई. इस सच्चाई का पता लग जाने के बाद मनोज पत्नी को मुंबई में अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने गुलशबा और बच्चों को आगरा ले जाने का फैसला कर लिया.

उस ने पत्नी से कहा कि अब हम आगरा में रहेंगे. पर गुलशबा ने मुंबई छोड़ कर जाने से मना कर दिया. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी हुआ. मनोज उसे ले जाने की जिद पर अड़ा था. गुलशबा ने रिजवान को फोन कर बता दिया कि मनोज उसे आगरा ले जाने की जिद कर रहा है और वह यहां से जाना नहीं चाहती. इस बारे में वह कुछ करे. रिजवान भी नहीं चाहता था कि गुलशबा वहां से जाए, इसलिए गुलशबा को ले कर वह परेशान हो उठा.

लिखी गई हत्या की पटकथा  किसी तरह से उस ने गुलशबा से मुलाकात की और मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को अपने बीच से हटाने की योजना तैयार कर ली. फिर अपनी योजना के अनुसार 2 जनवरी, 2018 की दोपहर में वह मनोज कुमार सोनी के फ्लैट पर पहुंच गया. जिस समय वह फ्लैट में आया, उस समय मनोज खाना खा कर सो रहा था. बच्चे घर के बाहर खेलने के लिए गए हुए थे.

मौका अच्छा था. वह गुलशबा के साथ उस के कमरे में गया और उस पर हमला कर दिया. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका. अपनी जान बचाने के लिए मनोज रिजवान से भिड़ गया, जिस में रिजवान कुरैशी जख्मी हो गया.

अपने पति को रिजवान कुरैशी पर भारी होते देख गुलशबा ने रिजवान कुरैशी की मदद की. उस ने पति के दोनों हाथ पकड़ लिए, तभी झट से रिजवान ने मनोज का गला रेत दिया. मनोज नीचे गिर गया तो रिजवान ने उस का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद दोनों ने उस के धड़ और सिर को कपड़ों के पुलिंदे में बांध कर दरवाजे के पीछे छिपा दिया. फिर उन्होंने कमरे की सफाई की.

शाम होतेहोते गुलशबा अपने तीनों बच्चों को अपने मायके में छोड़ कर फ्लैट पर आ गई. फिर घर के दरवाजे पर ताला लगा कर वह रिजवान कुरैशी के साथ उत्तर प्रदेश निकल गई, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस के पहले रिजवान कुरैशी ने पुलिस और घर वालों का ध्यान भटकाने के लिए शादाब कुरैशी और अपने सारे रिश्तेदारों को एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

थानाप्रभारी किशोर जाधव और एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने गिरफ्तार रिजवान कुरैशी और गुलशबा से विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त न्यायिक हिरासतऌ में थे. आगे की जांच एपीआई मंजीत सिंह बग्गा कर रहे थे.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चीखती रही बेटी अम्मी दबाती रही गला

चित्रकूट में खंभे पर लटकी मिली लाश को देख कर लोग ही नहीं, पुलिस भी हैरान थी. मकर संक्रांति के मेले के चलते मृतका लड़की की पहचान होना संभव नहीं लग रहा था, लेकिन पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्यारे पकड़े गए.

ध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को जोड़ने वाली धार्मिक नगरी चित्रकूट में यों तो साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन तीजत्यौहार के दिनों में भक्तों का जो रेला यहां उमड़ता है, उसे संभालने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे में यदि व्यवस्था में जरा सी चूक हो जाए तो पुलिस प्रशासन के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. लिहाजा पुलिस प्रशासन भीड़भाड़ वाले दिनों में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि व्यवस्था और सुविधाओं में कोई कमी रह जाए.

 इस साल भी जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही चित्रकूट में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिन का इंतजार पंडेपुजारियों के अलावा स्थानीय व्यापारी भी करते हैं. कहा जाता है कि मकर संक्रांति की डुबकी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाती है और यदि डुबकी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय लगाई जाए तो हजार गुना ज्यादा पुण्य मिलता है.

14 जनवरी, 2018 को मकर संक्रांति की डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग चित्रकूट पहुंच चुके थे. श्रद्धालु अपनी हैसियत के मुताबिक लौज, धर्मशाला मंदिर प्रांगणों में ठहरे हुए थे. वजह कुछ भी हो पर यह बात दिलचस्प है कि चित्रकूट आने वालों में बहुत बड़ी तादाद मामूली खातेपीते लोगों यानी गरीबों की रहती है. उन्हें जहां जगह मिल जाती है, ठहर जाते हैं और डुबकी लगा कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं.

चित्रकूट में दरजनों प्रसिद्ध मंदिर और घाट हैं, जिन का अपना अलगअलग महत्त्व है. हर एक मंदिर और घाट की कथा सीधे राम से जुड़ी है. कहा यह भी जाता है कि चित्रकूट में राम और तुलसीदास की मुलाकात हुई थी. इन्हीं सब बातों की वजह से यहां लगने वाले मेले में देश के दूरदराज के हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

मेले में आए लोग श्री कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी जरूर करते हैं. लगभग 7 किलोमीटर की यह पदयात्रा करीब 4 घंटे में पूरी हो जाती है. 14 जनवरी को भी श्रद्धालु श्री कामदगिरि की परिक्रमा कर रहे थे, तभी कुछ ने यूं ही जिज्ञासावश पहाड़ी के नीचे झांका तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. इसकी ह यह थी कि पहाड़ी के नीचे की तरफ लगे बिजली के एक खंभे पर एक लड़की की लाश लटकी थी. शोर हुआ तो देखते ही देखते परिक्रमा करने वाले लोग वहां रुक कर लाश देखने लगे.

वजह  पुलिस को बुलाने या सूचना देने के लिए किसी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. क्योंकि भीड़ जमा होने पर परिक्रमा पथ पर तैनात पुलिस वाले खुद ही वहां पहुंच गए. पुलिस वालों ने जब खंभे पर लटकी लड़की की लाश देखी तो उन्होंने तुरंत इस की खबर आला अफसरों को दी. कुछ ही देर में थाना नयापुरा के थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस लाश उतरवाने में लग गई.

पुलिस काररवाई के चलते भीड़ यह निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि लड़की अपने घर वालों के साथ आई होगी और खाईं में गिर गई होगी. लेकिन पुलिस ने जब खंभे से लाश उतारी तो न केवल पुलिस वाले बल्कि मौजूद भीड़ भी हैरान रह गई. क्योंकि तकरीबन 11-12 साल की लग रही उस लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था.

मुंह में कपड़ा ठूंसा होने पर मामला सीधेसीधे हत्या का लगने लगा. पुलिस भी यह मानने लगी कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी होगी. क्योंकि अभी तक आसपास के किसी थाने से किसी लड़की की गुमशुदगी की खबर नहीं आई थी.

चित्रकूट में लड़की की लाश मिलने की खबर आग की तरह फैली तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट गई, जिस में बताया गया कि उस लड़की की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 और 201 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

उस वक्त चित्रकूट में बाहरी लोगों की भरमार थी. इसी वजह से लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर भी पुलिस कोशिश में लग गई कि शायद कोई सुराग मिल जाए. अब तक की जांच से यह स्पष्ट हो गया था कि मृतका चित्रकूट की हो कर कहीं बाहर की रही होगी.

इस तरह के ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए केवल चुनौती बल्कि सरदर्द भी बन जाते हैं. इस मामले में भी यही हो रहा था. हत्यारों तक पहुंचने के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी

पुलिस वालों ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज देखने का फैसला लिया, लेकिन यह भी आसान काम नहीं था, क्योंकि मकर संक्रांति के वक्त चित्रकूट में सैकड़ों कैमरे लगे हुए थे. यह जरूरी नहीं था कि सभी फुटेज देखने के बाद भी इतनी भीड़भाड़ में वह लड़की दिख जाए. पर सीसीटीवी फुटेज देखने के अलावा पुलिस के पास कोई और रास्ता भी नहीं था.

चित्रकूट में इस हत्या की चर्चा तेज होने लगी तो सतना के एसपी राजेश हिंगणकर ने मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने जांच में जुटी पुलिस के साथ बैठक की और कुछ दिशानिर्देश दिए. पुलिस टीम के लिए यह काम भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा था. पुलिस टीम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई.

12 जनवरी, 2018 की एक फुटेज में एक युवक और युवती के साथ वह लड़की दिखी तो पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं

उत्साहित हो कर पुलिस ने और फुटेज खंगालीं तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिस लड़की की लाश पुलिस ने बरामद की थी, वह वही थी जो फुटेज में युवकयुवती के साथ थी. यह फुटेज जानकीकुंड अस्पताल की थी, जहां युवक युवती मरीजों वाली लाइन में लगे थे.

उस दिन स्नान के लिए वहां लाखों लोग आए थे. इसलिए यह पता लगाना आसान नहीं था कि वह युवक और युवती कहां के रहने वाले थे, इसलिए पुलिस ने ये फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिए, जिस से उन तक जल्द से जल्द पहुंचा जा सके

फुटेज सोशल मीडिया पर डालने के बाद भी पुलिस को उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर हत्यारे का सुराग देने पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया. इसी दौरान पुलिस वालों ने जानकीकुंड अस्पताल के रजिस्टर की जांच भी शुरू कर दी थी.

अस्पताल में आए मरीज का नामपता जरूर लिखा जाता है लेकिन हजारों की भीड़ में यह पता लगा पाना मुश्किल काम था कि जो चेहरे कैमरे में दिख रहे थे, उन के नाम क्या थे. इस के बाद भी पुलिस वाले नामपते छांटछांट कर अंदाजा लगाने में लगे रहे कि वे कौन हो सकते हैं. इस प्रक्रिया में 25 दिन निकल चुके थे और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग रही थी.

चित्रकूट के लोगों की दिलचस्पी भी अब मामले में बढ़ने लगी थी. उन्हें सस्पेंस इस बात को ले कर था कि देखें पुलिस कैसे हत्यारों तक पहुंचती है और पहुंच भी पाती है या नहीं.

अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज जिन नामों पर पुलिस ने शक किया और जांच की, उन में एक नाम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विजय और उस की पत्नी आरती का भी था. एसपी के निर्देश पर एक पुलिस टीम विजय के गांव ऐंझी पहुंच गई.

विजय से सीधे पूछताछ करने के बजाय पुलिस ने पहले उस के बारे में जानकारी हासिल की तो एक जानकारी यह मिली कि उस की 10-11 साल की एक बेटी नेहा भी थी, जो लगभग एक महीने से नहीं दिख रही है.

पुलिस ने चित्रकूट से लड़की की जो लाश बरामद की थी, उस की उम्र भी 10-12 साल थी. यह समानता मिलने पर पुलिस की जिज्ञासा बढ़ गई. इस के बाद पुलिस विजय के घर पहुंच गई. उस समय उस की पत्नी आरती भी घर पर मौजूद थी. पुलिस ने जब उन दोनों से उन की बेटी नेहा के बारे में पूछा तो वह बोले कि उन की कोई बेटी नहीं थी, केवल एक बेटा ही है. 

उन की बातों से लग रहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उनके पड़ोसियों ने बता दिया था कि इन की 10-11 साल की एक बेटी नेहा थी, जो पता नहीं कहां चली गई है. इसी शक के आधार पर पुलिस विजय और उस की पत्नी आरती को चित्रकूट ले आई.

थाने में उन दोनों से जब पूछताछ शुरू हुई तो दोनों साफ मुकर गए कि उन की कोई बेटी भी है. तब पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी फुटेज दिखाई, जिस में उन के साथ 10-11 साल की बच्ची थी. फुटेज देखते ही दोनों बगले झांकने लगे. उसी समय दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और चंद मिनटों में ही बेटी की हत्या का राज उगल दिया.

पुलिस वाले यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि आरती का असली नाम सबीना शेख है और वह मुसलमान है. सबीना की शादी सन 2006 में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के ही निवासी जाहिद अली से हुई थी. जाहिद से उसे 2 बच्चे हुए, पहली बेटी सिमरन और दूसरा बेटा साजिद जो 5 साल का है

सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उस के साथ उस की कभी पटरी नहीं बैठी, क्योंकि सबीना किसी और को चाहती थी.

दरअसल सबीना और विजय एकदूसरे को बचपन से चाहते थे, लेकिन सबीना की शादी घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ जाहिद से कर दी थी, इसलिए सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उसे वह दिल से नहीं चाहती थी

उस ने तो अपने दिल में विजय को बसा रखा था. जब दिल नहीं मिले तो उन के बीच बातबेबात झगड़ा रहने लगा. अपनी कलह भरी जिंदगी सुकून से गुजारने की गरज से सबीना ने शादी के 9 साल बाद विजय को टटोला. उसे यह जान कर खुशी हुई कि विजय उसे आज भी पहले की तरह चाहता है और उसे बच्चों सहित अपनाने को तैयार है.

बस फिर क्या था बगैर कुछ सोचेसमझे एक दिन वह पति को बिना बताए विजय के साथ भाग गई. यह सन 2015 की बात है.  योजनाबद्ध तरीके से दोनों भाग कर ऐंझी गांव आ कर रहने लगे. सबीना अपने बच्चों को भी साथ ले आई थी, जिस पर विजय को कोई ऐतराज नहीं था. 

अपने पुराने और पहले आशिक के साथ रह कर सबीना खुश थी. उधर जाहिद ने भी बीवी के गायब होने पर कोई भागदौड़ नहीं की, क्योंकि वह तो खुद सबीना से छुटकारा पाना चाहता था. सबीना अब हिंदू के साथ रह रही थी, इसलिए उस ने खुद का नाम आरती सिंह, बेटी सिमरन का नाम नेहा सिंह और बेटे साजिद का नाम बदल कर आशीष सिंह रख लिया था.

नए पति के साथ खुशीखुशी रह रही सबीना को थोड़ाबहुत डर अपने मायके वालों से लगता था कि अगर उन्हें पता चला तो वे जरूर फसाद खड़ा कर सकते हैं. साजिद उर्फ आशीष ने तो विजय को पापा कहना शुरू कर दिया था, लेकिन सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थी. सिमरन उर्फ नेहा चूंकि 10-11 साल की हो चुकी थी, इसलिए वह दुनियाजहान को समझने लगी थी. उस का दिल और दिमाग दोनों विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थे.

आरती की बड़ी इच्छा थी कि नेहा विजय को पापा कहे. इस बाबत शुरू में तो आरती और विजय ने उसे बहुत बहलायाफुसलाया, लेकिन इस्लामिक माहौल में पली सिमरन हमेशा विजय को मामू ही कहती थी. जब इस संबोधन पर सबीना ने सख्ती से पेश आना शुरू किया तो वह सिमरन के इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब वह नहीं दे पाई कि आप ही तो कहती थीं कि ये मामू हैं, अब इन्हें पापा कैसे कह दूं. मेरे अब्बू तो दूसरे गांव में रहते हैं. चीखती रही बेटी मां दबीती रही गला

इस से विजय और सबीना की परेशानी बढ़ने लगी थी. वजह मामू और अब्बा के मुद्दे पर सिमरन बराबरी से विवाद और तर्क करने लगी थी. दोनों को डर था कि यह उजड्ड और बातूनी लड़की कभी भी उन का राज खोल सकती है क्योंकि गांव में कोई इन की असलियत नहीं जानता था. अगर गांव वाले सच जान जाएंगे तो धर्म के ठेकेदार इन का रहना और जीना मुहाल कर देते.

जब लाख समझाने और धमकाने से भी बात नहीं बनी यानी सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं हुई तो खुद सबीना ने विजय को इशारा किया कि इस से तो अच्छा है कि सिमरन का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए. विजय भी इस के लिए तैयार हो गया.

दोनों ने मकर संक्रांति पर चित्रकूट जाने की योजना बनाई और सिमरन से कहा कि वहां तुम्हारी आंखों की जांच भी करा देंगे. सिमरन जिद्दी जरूर थी, पर इतनी समझदार अभी नहीं हुई थी कि सगी मां के मन में पनप रही खतरनाक साजिश को भांप पाती.

12 जनवरी, 2018 को चित्रकूट कर दोनों ने जानकीकुंड अस्पताल में सिमरन उर्फ नेहा की आंखों की फ्री जांच करवाई और उस दिन उन्होंने विभिन्न मंदिरों में दर्शन किए. 13 जनवरी, 2018 को इस अंतरधर्मीय परिवार ने चित्रकूट में परिक्रमा की और रात में नरसिंह मंदिर के प्रांगण में कर सो गए

2 दिन घूमनेफिरने के बाद थकेहारे दोनों बच्चे तो जल्द सो गए, लेकिन दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीते विजय और आरती उर्फ सबीना की आंखों में नींद नहीं थी. रात 12 बजे के लगभग दोनों ने गहरी नींद में सोई नेहा उर्फ सिमरन का गला मफलर से घोंट डाला. 

उस के मर जाने की तसल्ली होने के बाद दोनों यह सोच कर लाश को झाडि़यों में फेंक आए कि सिमरन की लाश को जल्द ही चीलकौए और जानवर नोचनोच कर खा जाएंगे और उन के जुर्म की भनक किसी को भी नहीं लगेगी. लाश खाईं में गिराने के बाद वे दोनों बेटे को ले कर गाजियाबाद भाग गए और कुछ दिन इधरउधर भटकने के बाद ऐंझी पहुंच गए.

पहाड़ी से लाश गिराते समय इत्तफाक से नेहा की लाश का बायां पांव खंभे में उलझ गया और लाश लटकी रह गई. 9 फरवरी, 2018 को जब सारे राज खुले तो हर किसी ने इसे वासना के लिए ममता का गला घोंटने वाली शर्मनाक वारदात कहा. बात सच भी थी, जिस का दूसरा पहलू सबीना और विजय की यह बेवकूफी थी कि वे नाम बदल कर चोरीछिपे रह रहे थे

सबीना जाहिद से तलाक ले कर सीना ठोंक कर विजय से शादी करती तो शायद सिमरन भी विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लेती, पर इसे इन दोनों की बुजदिली ही कहा जाएगा कि धर्म और समाज के दबाव से लड़ने के बजाय उन्होंने एक मासूम की हत्या कर के अपनी जिंदगी खुशहाल बनने का ख्वाब देख डाला. कथा संकलन तक दोनों जेल में थे. द्य

 

ताऊ ही था असली खलनायक

जाले के ताऊ ने उसे नामी बदमाश बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया. बाद में जाले और लाले इलाके के बड़े बदमाश बन गए. फिर ऐसा क्या हुआ कि जाले और उस के ताऊ को घुटघुट कर मरने के लिए मजबूर होना पड़ा

अदालत ने जाले के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया, जिस का मुझे बहुत दुख था. 2 लोगों का हत्यारा मौत की सजा से कैसे बच गया, यह सवाल मुझे बारबार सताता था. लेकिन कुछ दिन बाद ही मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया.

मलिक साहब एक वकील थे, जो अमेरिका जा कर बस गए थे. जब वह स्वदेश आए तो उन से उन की वकालत के दिनों के केसों में सब से रोचक केस सुनाने के लिए कहा गया.

यह कहानी उन्हीं के कथनानुसार है. उन्होंने बताया, ‘मेरे गुरु लाहौर के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन के पास फौजदारी मुकदमों की लाइन लगी रहती थी. बड़ेबड़े मुकदमे वह खुद लिया करते थे और छोटेमोटे चोरीडकैती वगैरह के मुकदमे मुझे दिया करते थे. मैं बहुत मेहनत से काम करता था, इसलिए जल्दी ही मेरी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी थी.

मेरे 2 क्लायंट थे, जो अकसर छोटेमोटे अपराध किया करते थे. एक का नाम जाले था, जो खातेपीते घराने का था. उसे खानेकमाने की कोई चिंता नहीं थी. जबकि दूसरे का नाम लाले था. वह था तो गरीब घर का, लेकिन उस का शरीर पहलवानों जैसा था

उस के डीलडौल की वजह से उस से कोई पंगा नहीं लेता था. दोनों मेरे पक्के क्लायंट थे और अपना हर केस मुझे ही देते थे. कभीकभी तो दोनों मेरी फीस भी एडवांस में दे देते थे. वे कहते थे, ‘‘वकील साहब, रख लो. अगर कभी हम किसी केस में फंसे तो इसे अपनी फीस समझ लेना.’’

जाले खातेपीते घराने का था और उस की पीठ पर उस के ताऊ का हाथ था. ताऊ की कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताऊ की पूरी संपत्ति और कारोबार उसे ही मिलना था. वह अकसर जुआ खेला करता था, इसलिए पैसे से तंग रहता थाइस के लिए कई बार वह घटिया हरकतें भी करता था. मसलन, जैसे छोटे बच्चों से पैसे छीन लेना, किसी छोटी बच्ची के कानों से सोने की बालियां उतार लेना.

दूसरी ओर लाला यानी लाले मेहनतमजदूरी करता था. जुआ वह भी खेलता था. जब पैसे नहीं होते थे तो वह अपने मांबाप या विवाहिता बहन से बहाने से पैसे मांग लेता था. जब कहीं से पैसे नहीं मिलते थे तो वह कहीं हाथ मार कर अपना शौक पूरा कर लेता था. सब उस से डरते थे और उसे लाला पहलवान कह कर बुलाते थे

गर्मियों में जब मैं रोज अपने औफिस के लिए निकलता तो अपने भाई की दूध की दुकान पर जरूर जाता था. वहां मैं पिस्ता, बादाम और खोए का ठंडा दूध पी कर जाता था. एक दिन मैं दूध पी रहा था तो लाले वहां गया

उस ने बोस्की का सूट और बढि़या जूते पहन रखे थे और बहुत खुश था. उस ने मुझे देखते ही जोर से कहा, ‘‘अरे वकील साहब आप?’’ फिर जेब से बहुत सारे नोट निकाल कर बोला, ‘‘लो साल भर की फीस इकट्ठी ही एडवांस में ले लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘लाले, इतना रुपया कहां से आया, क्या कहीं लंबा हाथ मारा है?’’

वह बोला, ‘‘मलिक साहब, कल रात ताश के पत्ते मेरे ऊपर मेहरबान थे, बाजी पर बाजी जीतता गया. अब खूब मौज करूंगा. आप भी एडवांस फीस ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.’’ 

  मैं ने उस का दिल रखने के लिए थोड़े से पैसे ले कर कह दिया, ‘‘ठीक है, खूब मौजमस्ती करो.’’

इस के एक हफ्ते बाद मोहल्ले में सुबहसवेरे शोर हुआ तो मेरी आंखें खुल गईं. जा कर पता किया तो पता चला कि लाले की हत्या हो गई है. यह जानकारी भी मिली कि उस की हत्या जाले ने की है. मुझे यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे. इस के अलावा लाले वैसे भी इतना ताकतवर था कि वह 2-3 के बस में नहीं आ सकता था. उसे जाले जैसा कमजोर आदमी नहीं मार सकता था.

  

जहां उस की हत्या हुई थी, वह जगह मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. मैं घटनास्थल पर पहुंचा. वहां लोगों ने बताया कि रात दोनों ने जुआ खेला था और दोनों हारजीत पर लड़ पड़े. जाले ने चाकू निकाल कर लाले को भोंक दिया और वह मर गया

लाले की लाश घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पड़ी थी. चाकू लगने से वह भागा होगा, इसलिए खून की लकीर जमीन पर पड़ी थी. लगता था, उसे पहले खूब शराब पिलाई गई होगी, जिस से उसे आसानी से मारा जा सके. वैसे तो दोनों मेरे क्लाइंट थे, लेकिन लाले के घर वालों ने पहले मुझे अपना वकील कर लिया और जाले के घर वालों ने एक मशहूर वकील किया. मुझे लाले के मरने का बड़ा दुख था, उस की सब बुराइयों के बावजूद मैं उसे पसंद करता था. मुझे उस की वह बात याद रही थी कि वकील साहब पैसे एडवांस में ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.

हो सकता है, उस से यह बात उस की मौत कहलवा रही हो. लाले की पार्टी गरीब थी, उस की ओर से मुकदमा उस के पिता लड़ रहे थे. जाले की पार्टी धनी थी, उस की ओर से उस का ताऊ मुकदमा लड़ रहा था, जो बहुत पैसे वाला था. उस ने जाले को खुली छूट दे रखी थी, जो मरजी आए करो पर बड़ा बदमाश बन कर दिखाओ. वह उस के लिए बहुत पैसे खर्च कर रहा था.

मैं ने मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी. चश्मदीद गवाह एक ही था और वह जाले की बिरादरी का था. मुझे यकीन नहीं था कि वह जाले के खिलाफ गवाही देगा. ऐसा ही हुआ. उस ने गवाही देने से साफ मना कर दिया. बाद में पता चला कि जाले के ताऊ ने उसे गवाही देने के लिए पैसे दिए थे और जाले की बहन से उस का रिश्ता भी कर दिया था. मुकदमा चला, गवाह मिलने की वजह से जाले साफ छूट गया.

लाले के मांबाप बहुत गरीब थे. मुकदमा हार कर घर बैठ गए. बाद में वे दोनों जवान बेटे के गम में मर गए. जाले जेल से रिहा हो कर घर गया. पूरे मोहल्ले में उस की धाक जम गई. जब भी जाले का और मेरा सामना होता था तो वह मुझ से बड़े घमंड से कहता था, ‘‘आप ने लाले का मुकदमा लड़ कर अच्छा नहीं किया.’’

एक हत्या कर के उस की हिम्मत बढ़ गई और वह चरस, गांजे का कारोबार करने लगा. इलाके में अपनी धाक जमाने के लिए वह अपराध करने लगा था. अब उस ने मुझे अपना वकील भी करना छोड़ दिया था.

उस इलाके में एक और जेबकतरा था, जो बहुत बड़ा बदमाश था. उस की जाले से दोस्ती हो गई और दोनों मिल कर बदमाशी करने लगे. उन्होंने दुकानदारों से हफ्तावसूली शुरू कर दी थी. एक दिन जब वे हफ्तावसूली कर रहे थे तो दोनों की एक दुकानदार से लड़ाई हो गई

दुकानदार भी दो थे, दोनों ने हफ्ता देने से मना कर दिया. वे दोनों बहुत दिलेर थे. चारों में जबरदस्त लड़ाई हुई. दोनों ओर से चाकूछुरियां चलीं, जिस में एक दुकानदार और जाले का साथी मारे गए. जाले भी घायल हो गया और वहां से फरार हो गया. 

एक दुकानदार ने जाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जाले ने भी अपने साथी की हत्या के लिए मुकदमा दर्ज कराना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कारण यह था कि लड़ाई उन की दुकान पर हुई थी और जाले उस का साथी एक मील चल कर वहां लड़ने आए थे.

 फौजदारी मुकदमों के लिए मैं बहुत मशहूर था, इसलिए उस दुकानदार ने मुझे अपना वकील कर लिया. एक बार फिर मैं जाले के खिलाफ मुकदमा लड़ने लगा. जाले के ताऊ ने लाहौर का एक मशहूर महंगा वकील कर लिया था. जाले जेल चला गया. जाले हर पेशी पर बड़े घमंड से आया करता था. वह मेरी ओर गुस्से से देखता था और इशारों में मुझे धमकियां भी देता था.

जाले के घर वाले भी मुझे धमकियां देने लगे, जिस से डर कर मैं मुकदमा लड़ूं. मैं ने मन लगा कर मेहनत की, जिस से मेरे क्लाइंट बहुत खुश थे. केस सैशन में चला. मेरे गवाहों ने बहुत अच्छी गवाही दी. जाले के वकील ने एक गवाह पेश किया, जो हिस्ट्रीशीटर था. वह ठीक से गवाही नहीं दे पाया. जाले का वकील बहुत परेशान था. हर बड़े वकील को अपने केस की चिंता होती है. उस ने जाले को शक का लाभ ले कर उसे बरी कराने या फांसी से बचाने की तरकीब सोची.

हर अदालत में पुलिस का एक व्यक्ति होता है, जो थानों से मिली हर केस की सभी फाइलें अपने पास रखता है और अदालत तक पहुंचाता है. जब मुकदमा दायर हो जाता है तो उस मुकदमे की दूसरी फाइल उस के पास रहती है, जिसे पुलिस फाइल कहते हैं. उस में विवेचना अधिकारी की हर दिन की काररवाई दर्ज की जाती है. अधिकतर वकील उस फाइल को देख नहीं पाते, लेकिन जो होशियार वकील होते हैं, उस फाइल से अपने मतलब की बहुत सी चीजें निकाल लेते हैं.

जाले के वकील ने जाले के ताऊ से कह कर एक नई डाक्टरी रिपोर्ट लगवा दी जो असल रिपोर्ट से अलग थी. दोनों रिपोर्टों में भिन्नता के कारण अपराधी को शक का लाभ मिल सकता था.

मैं अदालत जाने से पहले उस पुलिस फाइल को जरूर देखता था. मैं ने वह रिपोर्ट देखी तो मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई. मैं ने पुलिस वाले से पूछा तो उस ने बताया कि उसे पता नहीं लेकिन फाइल थानेदार ने मंगवाई थी. मैं ने तुरंत अपने क्लायंट से कहा, ‘‘समय रहते कुछ करना है तो कर लो.’’

वे लोग भी बहुत होशियार थे. उन्होंने पुलिस वाले को अच्छी रकम दे कर वह रिपोर्ट निकलवा दी.पेशी के दिन जाले का वकील और थानेदार बड़े भरोसे से अदालत में आए. पहले विवेचना अधिकारी के बयान हुए. वकील बहुत खुश था कि उस रिपोर्ट की बिनाह पर वे लोग मुकदमा जीत जाएंगे. थानेदार और वकील ने पूरी फाइल देख ली, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं मिली. दोनों को पसीना आ गया कि वह रिपोर्ट कहां गई. शोर इसलिए नहीं कर सकते थे कि अदालत के पास जो रिपोर्ट थी, वह असली थी.

मैं ने लोहा गरम देख कर चोट की, ‘‘योर औनर, ऐसी कोई रिपोर्ट तो थी और है. नई रिपोर्ट कोई डाक्टर बना कर भी नहीं दे सकता, इसलिए यह पूरा मामला ही झूठ का पुलिंदा है.’’

जाले का वकील कोई सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी. मेरे क्लाइंट बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरी जेब में बहुत मोटी रकम डाल दी. मैं ने मना किया तो वे कहने लगे कि केस हाईकोर्ट में तो जाना ही है, और इसे आप ही लड़ेंगे.

केस हाईकोर्ट में गया. मेरे क्लायंट ने एक और महंगा वकील कर लिया. हम दोनों ने मिल कर मुकदमा लड़ा. यहां भी हम जीत गए. लेकिन अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. जाले को उस की करनी की सजा मिल गई, लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि 2 आदमियों का हत्यारा फांसी से बच गया. लेकिन यह दुनिया की अदालत का फैसला था, अभी कुदरत का फैसला बाकी था. कुदरत की ओर से जो सजा उसे मिलनी थी, उस के लिए जाले का जिंदा रहना जरूरी था.

लाले के मातापिता मरते दम तक जाले को कोसते रहे. दूसरी ओर उस दुकानदार के घर वाले और भी कई लोग थे, जो उसे कोस रहे थे. कहते हैं, कमजोर की हाय आसमान से टकराती है और इस का नतीजा बड़ा भयानक होता है.

एक दिन खबर आई कि जाले जेल में अंधा हो गया है. यह बात यकीन करने के काबिल नहीं थी, क्योंकि वह 26-27 साल का गबरू जवान था, उसे कोई बीमारी भी नहीं थी. जेल के डाक्टरों ने बहुत बारीकी से उस की आंखों को टेस्ट किया, लेकिन उन की समझ में बीमारी नहीं आई. एक डाक्टर ने कहा, ‘‘यह बीमारी हमारी समझ से बाहर है. आंखें भलीचंगी हैं, उन में कोई खराबी नहीं लेकिन अचरज की बात है कि आंखों की रोशनी कैसे चली गई.’’

जाले की दुनिया अंधेरी हो गई थी, जबकि वह लोगों की दुनिया में अंधेरा फैलाता रहा था. जेल अधिकारियों ने बड़ेबड़े आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, लेकिन किसी की समझ में बीमारी नहीं आई. अब अंधे जाले के लिए जेल का जीवन और भी कठिन हो गया. अब वह कुछ नहीं कर सकता था. हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर था. वह रोरो कर अपने गलत कर्मों की माफी मांगता था

  

लेकिन लगता था कि बेकसूर लोगों की बददुआएं अभी और असर दिखाने वाली थीं. कुछ दिनों बाद खबर आई कि जाले जेल में गूंगा हो गया है. इस बीमारी का भी बहुत इलाज हुआ, लेकिन सब बेकार. उस के बाद खबर आई कि जाले चलनेफिरने से भी बेकार हो गया. जाले को जेल के अस्पताल भेज दिया गया. सभी डाक्टर इस बात पर हैरान थे कि भलाचंगा आदमी गूंगा, लंगड़ा, अंधा कैसे हो गया?

जेल के दूसरे बंदी उसे देख कर कानों को हाथ लगाते थे. अब वह अपाहिज हुआ अस्पताल में पड़ा रहता था. बोल सकता था, हाथपैर चला सकता था. जेल के डाक्टरों ने जेल अधिकारियों से बात की और उस के घर वालों से संपर्क किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस की रिहाई का प्रार्थनापत्र डाल दिया, जो जेल के डाक्टरों की संस्तुति पर मंजूर हो गया.

वह जेल से रिहा हो कर अपने घर गया. वह पेशाब शौच बिस्तर पर ही कर देता था. कुछ ही दिनों में उस के घर वाले उस से तंग गए और उस की चारपाई घर से बाहर रख दी. उस की साफसफाई के लिए एक सफाई कर्मचारी को लगा दिया गया.

हर आनेजाने वाला उसे देख कर कानों को हाथ लगाता था. वह वही जाले था, जो कभी सब के सामने अकड़ कर चलता था. आज वह अपने मुंह से मक्खी भी नहीं उड़ा सकता था. घर के लोग उस के मरने की दुआएं करने लगे थे. एक दिन सब की दुआ काम आई और वह अपनी जिंदगी की कैद से आजाद हो गया.

क्या यहां पर कर कहानी खत्म हो गई? नहीं, अभी एक और गुनहगार बचा हुआ था, जो कानून और दुनिया वालों की नजरों से छिपा हुआ था. वह अपने आप में संतुष्ट था कि उस की ओर किसी का ध्यान नहीं गया

वह व्यक्ति जाले को बहुत बड़ा बदमाश बनाना चाहता था. उसे बदमाश बनाने में उस ने अपना धन लगाया. वह था, उस का ताऊ. एक दिन उस की पिंडली पर एक छोटा सा घाव हो गया, जो ठीक नहीं हुआ और डाक्टरों ने उस की पिंडली से टांग काट दी

वह घाव फिर घुटने तक पहुंच गया और फिर उस की रान से टांग काटनी पड़ी. यह भी चलनेफिरने में अक्षम हो गया थाचारपाई पर पड़ा रहता था. रातदिन बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था. अंत में एक दिन वह भी दुनिया से चला गया.

बिना एटीएम कार्ड के रकम निकाल ले गए अपराधी

 साइबर ठग बैंक कस्टमर्स के डेबिट या क्रैडिट कार्ड की क्लोनिंग कर के उन के खाते से पैसा निकाल लेते हैं. क्लोनिंग के लिए उन्हें कई तरह के अत्याधुनिक उपकरणों का सहारा लेना होता है, जिन्हें पैसा निकालने पहुंचे कस्टमर देख नहीं पाते. ऐसे मामले में कस्टमर्स कुछ सतर्कता बरतें तो ठगी से बचा सकता है.

इसी 25 फरवरी की बात है, दोपहर का समय था. जयपुर के महेशनगर पुलिस थाने में ड्यूटी अफसर अपनी सीट पर बैठे थे, तभी करीब 22-24 साल का  एक युवक थाने पहुंचा. वह सीधा ड्यूटी अफसर के पास पहुंचा और अपना परिचय दे कर बोला, ‘‘सर, मेरा नाम महेशराज मीणा है और मैं महेशनगर में रहता हूं.’’

 ‘‘बताइए, थाने कैसे आना हुआ?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा‘‘साहब, मेरे बैंक खाते से 15 हजार रुपए निकाल लिए गए, जबकि एटीएम कार्ड मेरे पास है.’’ महेशराज ने घबराए लहजे में कहा, ‘‘साहब, मेरे मोबाइल पर ट्रांजैक्शन का मैसेज आया, तब पता चला कि मेरे खाते से पैसे निकल गए हैं.’’

ड्यूटी अफसर ने महेशराज को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे पास मैसेज कब आया?’’  ‘‘साहब, मैसेज तो आज ही आया है.’’ महेशराज ने कहा, ‘‘आश्चर्य की बात यह है कि आज मैं किसी एटीएम से पैसे निकालने भी नहीं गया, फिर भी मेरे एकाउंट से 15 हजार रुपए निकल गए.’’

ड्यूटी अफसर महेशराज से उस के खाते से पैसे निकलने के बारे में जानकारी ले रहे थे, इसी दौरान 2-3 और लोग थाने पहुंच गए. ड्यूटी अफसर ने उन लोगों के आने का कारण पूछा तो पता चला महेश की तरह उन के एकाउंट से भी पैसे निकल गए हैं.

थाने पहुंचे दिनेश कुमार ने बताया कि उस के खाते से 20 हजार रुपए निकाल लिए गए हैं. चंद्रलता नवल ने 40 हजार रुपए निकलने की बात बताई. अर्जुन अग्रवाल के खाते से भी 30 हजार रुपए निकाले गए थे.

ड्यूटी अफसर इन लोगों से बातचीत कर ही रहे थे कि 2 लोग और थाने पहुंच गए. इन में कमलेश कुमारी मीणा ने बताया कि उस के खाते से 10 हजार रुपए निकाले गए हैं जबकि प्रदीप ने 20 हजार रुपए निकलने की बात कही. इस तरह उस दिन 3-4 घंटे में ही 10-11 लोग इस तरह की शिकायत ले कर थाने पहुंचे कि उन के खाते से बिना एटीएम कार्ड के रकम निकाल ली गई. ड्यूटी अफसर ने इन लोगों से अलगअलग बात कर के तह में जाने की कोशिश की तो पता चला कि इन लोगों के खाते से रकम दिल्ली में निकाली गई थी. 

यह बात भी सामने आई कि ये सभी ट्रांजैक्शन उस दिन दोपहर 1 से 2 बजे के बीच हुए थे. पीडि़त लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने कुछ दिनों पहले महेशनगर फाटक और 80 फुटा रोड पर लगे 3 एटीएम से पैसे निकाले थे. इस के बाद एटीएम से कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया था.

ड्यूटी अफसर को मामला गंभीर लगा. उन्होंने थानाप्रभारी जयसिंह और अपने उच्चाधिकारियों को इस तरह के मामले होने की सूचना दी. इसी के साथ पुलिस ने सभी पीडि़तों से लिखित में रिपोर्ट ले ली. पुलिस ने इन लोगों को जल्द से जल्द अपने एटीएम कार्ड ब्लौक करवाने की भी हिदायत दी, ताकि उन के खाते से और रकम निकाली जा सके.

उस दिन शाम तक 10 ऐसे पीडि़तों ने महेशनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई. इन लोगों के खातों से करीब ढाई लाख रुपए निकाले गए थे. इस में 3 हजार रुपए से ले कर 40 हजार रुपए तक की रकम शामिल थी. इन पीडि़तों में 2 बैंक कर्मचारी भी शामिल थे. भारतीय स्टेट बैंक में सहायक चेतराम मीणा के खाते से दिल्ली में आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से 30 हजार रुपए निकाल लिए गए थे. बैंक कर्मचारी अतेंद्र मीणा के खाते से भी 30 हजार रुपए निकाले गए थे.

जयपुर पुलिस कमिश्नरेट की क्राइम ब्रांच भी सक्रिय हो गई. महेशनगर थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच ने पीडि़तों से बातचीत की तो यह बात साफ हो गई कि इन वारदातों को एटीएम कार्ड की क्लोनिंग कर के अंजाम दिया गया था. क्योंकि सारे पीडि़त जयपुर के थे. वे दिल्ली गए भी नहीं थे और दिल्ली के एटीएम से उन के खातों से पैसे निकाल लिए गए थे.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू भी नहीं की थी कि अगले दिन यानी 26 फरवरी को सुबह से ही महेशनगर थाने पर लोगों का जमावड़ा होने लगा. ये लोग भी अपने खाते से रकम निकाले जाने की शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचे थे. उस दिन शाम तक 28 पीडि़त और सामने गए. इन में राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक सुशील शर्मा के खाते से 3 बार में 10-10 हजार रुपए निकाले गए थे. चार्टर्ड एकाउंटेंट गजेंद्र शर्मा ने पुलिस को बताया कि उन्होंने 21 फरवरी को जयपुर के किशनपोल बाजार स्थित पीएनबी के एटीएम से 5 हजार रुपए निकाले थे. इस के 3 घंटे बाद ही उन के खाते से 10,500 रुपए निकालने का मैसेज गया.

सीए गजेंद्र शर्मा के भाई देवेंद्र शर्मा के खाते से 4 बार में 38 हजार रुपए निकाल लिए गए थे. इन के अलावा मीना कंवर के खाते से 16 हजार, देवेंद्र सिंह के खाते से 25 हजार, चंद्रप्रकाश शर्मा के खाते से 40 हजार, रामप्रताप शर्मा के खाते से 30 हजार, सरमया थौमस के खाते से 40 हजार, मयंक गौड़ के खाते से 18,500, चुन्नीलाल गुप्ता के खाते से 40 हजार रुपए निकाले गए इस के अलावा सुशीला तंवर के खाते से 40 हजार, सुशील कुमार राज के खाते से 30 हजार, सुशीला राठौड़ के खाते से 5 हजार, अजय कुमार के खाते से 2 हजार, योगेंद्र कुमार के खाते से 26500, दुर्गेश दवे के खाते से 5 हजार, लख्मीचंद के खाते से 40 हजार, राखी सिंह के खाते से 30 हजार, ललतेश सिंह के खाते से 70 हजार और रामअवतार बुनकर के खाते से 40 हजार रुपए सहित अन्य कई लोगों के खातों से भी पैसे निकाले गए थे.

2 दिन में 38 लोगों के बैंक खातों से रकम निकाले जाने से पुलिस भी हैरान थी. पुलिस ने जांच शुरू की तो सामने आया कि बदमाशों ने महेशनगर में 80 फुटा रोड पर एसबीआई, पीएनबी और इंडसइंड बैंक के एटीएम में स्किमर लगाए थे. ये स्किमर 24 फरवरी तक लगे हुए थे, क्योंकि उन्हीं एटीएम कार्ड धारकों के पैसे निकाले गए, जिन्होंने एक सप्ताह के भीतर इन एटीएम से ट्रांजैक्शन किया था. इन से डाटा चोरी कर 2 दिन में करीब 40 लोगों के खातों से 7 लाख रुपए से ज्यादा निकाल लिए गए थे. जांच में पता चला कि बदमाशों ने क्लोन कार्ड से दिल्ली में जनकपुरी व पालम इलाके में रकम निकाली थी. 

पुलिस ने उन तीनों एटीएम के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज बैंक प्रबंधकों से मांगी. इस के अलावा सभी पीडि़तों से उन के एटीएम कार्ड के पासवर्ड बदलने को भी कहा. पीडि़तों के संबंधित बैंक खातों का स्टेटमेंट, उन्होंने 2 महीने में किसकिस एटीएम से पैसे निकाले थे, आदि की जानकारी एकत्र की. बदमाशों ने दिल्ली में जिसजिस एटीएम से रकम निकाली, उन की वीडियो फुटेज हासिल करने के लिए एक टीम दिल्ली भेजने का निर्णय लिया गया

लगातार पीडि़तों के सामने आने से यह संख्या बढ़ती जा रही थी. करीब एक सप्ताह में ही जयपुर के महेशनगर, जवाहर सर्किल, बजाजनगर ज्योतिनगर पुलिस थाने में इस तरह की वारदात के 88 मामले दर्ज हो गए. इन में पीडि़तों से 27 लाख 32 हजार रुपए से ज्यादा की धोखाधड़ी की गई थी.

जयपुर काफी समय से साइबर ठगों के निशाने पर रहा है. दिल्ली, नोएडा, झारखंड छत्तीसगढ़ के ठग आए दिन बैंक अधिकारी या बीमा अधिकारी बन कर अथवा अन्य कोई प्रलोभन दे कर लोगों के बैंक खातों से ठगी करते रहे हैं.

नोटबंदी के बाद कैशलेस का प्रचलन बढ़ने से साइबर ठगों को अपना शिकार ढूंढने में आसानी हो गई है. जयपुर कमिश्नरेट में सन 2011 में साइबर क्राइम के केवल 88 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2012 में यह संख्या घट कर 74 रह गई. इस के बाद 2013 में साइबर क्राइम के 123, सन 2014 में 373, सन 2015 में 574, सन 2016 में 531 और 2017 में 643 मामले दर्ज हुए.

अब साइबर क्राइम का नया रूप सामने गया था. एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के जरिए फरजी एटीएम कार्ड तैयार कर के इतनी बड़ी संख्या में लोगों से धोखाधड़ी के सामने आने पर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल चिंतित हो उठे. उन्होंने अपने मातहत अधिकारियों की बैठक बुलाई और बदमाशों का जल्द से जल्द पता लगाने को कहा.

कमिश्नर अग्रवाल ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन और पुलिस उपायुक्त (अपराध) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मुकेश चौधरी, महेश नगर थानाप्रभारी जय सिंह, महेश नगर थाने के सबइंसपेक्टर सुनील, क्राइम ब्रांच के सबइंसपेक्टर धर्म सिंह और मनोज कुमार के साथ कई कांस्टेबलों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने संबंधित बैंकों से रिकौर्ड हासिल किया. एटीएम बूथों की सीसीटीवी फुटेज जांची. आवश्यक तकनीकी जांचपड़ताल के बाद एक टीम दिल्ली भेजी गई. इस के अलावा पुलिस ने देश भर में ऐसे गिरोहों की जानकारी जुटाई, जो एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के अपराध से जुड़े रहे हैं.

इस में पता चला कि एक गिरोह के बदमाशों ने पिछले साल देहरादून में एटीएम कार्ड के क्लोन बना कर जयपुर से रुपए निकाले थे. इस मामले में देहरादून एसटीएफ ने गिरोह के मास्टरमाइंड रामवीर को सितंबर 2017 में पुणे से गिरफ्तार किया था. रामवीर हरियाणा के बहादुरगढ़ का रहने वाला था. इस गिरोह में महिलाएं भी थीं.

उधर जयपुर से दिल्ली गई पुलिस टीम ने उन एटीएम की वीडियो फुटेज हासिल की, जिन से जयपुर के लोगों के एटीएम कार्ड की क्लोनिंग कर के रकम निकाली गई थी. इन फुटेज के आधार पर पुलिस ने 7 मार्च को दिल्ली से 3 विदेशी साइबर ठगों को पकड़ लिया

इन में रोमानिया के काटनेस्कू, डुयिका बोगडन निकोलेई और सियोबानू शामिल थे. ये तीनों पर्यटक वीजा पर दिल्ली आए थे और वापस रोमानिया जाने की तैयारी में थे.

दरअसल, पुलिस को जयपुर में एटीएम की वीडियो फुटेज में हेलमेट पहने लोग स्किमर लगाते नजर आए थे. इन फुटेज में उन के चेहरे नहीं दिख रहे थे. हां, शरीर का अंदाजा हो रहा था. दिल्ली में पुलिस ने जो वीडियो फुटेज हासिल किए, उन में इन के चेहरे साफ दिखाई दिए. चेहरों से पता चला कि ये बदमाश विदेशी हैं. इस पर पुलिस ने वीजा खंगाले तो फोटो और वीडियो फुटेज से इन का मिलान हो गया. इस के बाद पुलिस ने इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इन तीनों विदेशी साइबर ठगों से करीब 53 लाख 50 हजार रुपए नकदी के अलावा क्लोनशुदा विभिन्न बैंकों के 5 एटीएम कार्ड, एक मल्टीपरपज कार्ड रीडर, एक हौटस्पौट, एक स्पाई कैमरा, एक माइक्रो चिप, एक लैपटौप, 4 काले रंग के मास्क, एक कैप, 2 पासपोर्ट आईडी, 4 मोबाइल फोन आदि बरामद किए.

इन विदेशी ठगों से पूछताछ में पुलिस को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा, क्योंकि ये केवल टूटीफूटी अंगरेजी बोलते थे. सख्ती करने परआई डोंट नो आई डोंट नोकह कर चुप हो जाते थे.

पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है

रोमानिया के रहने वाले काटनेस्कू, डुयिका बोगडन निकोलेई और सियोबानू अलगअलग समय पर दिल्ली आए थे. सब से पहले डुयिका बोगडन निकोलेई सितंबर में दिल्ली आया. इस के बाद काटनेस्कू दिसंबर में और बाद में सियोबानू दिल्ली पहुंचा. इन्होंने दिल्ली में ग्रेटर कैलाश में 7 हजार रुपए महीने के किराए पर एक फ्लैट लिया. दिल्ली में इन के साथ एक महिला मित्र भी थी.

दिल्ली में इन्होंने तुर्की के बदमाशों से स्किमिंग डिवाइस खरीदी थी. दिल्ली से ये लोग कई दूसरे शहरों में भी वारदात करने के लिए गए. बीच में डुयिका बोगडन निकोलेई करीब एक महीने तक मुंबई और 3 सप्ताह तक आगरा में ठहरा. तीनों साथी दिल्ली में कुछ दिन रुके. फिर महिला मित्र को छोड़ कर ये जयपुर गए.

जयपुर में त्रिवेणीनगर में इन्होंने इंटरनेट पर बुकिंग करा कर 22 हजार रुपए महीने के किराए पर एक अपार्टमेंट में फ्लैट लिया. मकान मालिक ने सीआईडी के लिए सी फार्म पर इस की औनलाइन जानकारी दी थी. जयपुर में घूमने के लिए इन्होंने एमआई रोड से 300 रुपए प्रतिदिन किराए पर 2 एक्टिवा स्कूटी लीं

जयपुर में घूम कर इन्होंने एटीएम बूथों को चिह्नित किया. चिह्नित किए गए एटीएम बूथों पर अलसुबह जा कर इन्होंने स्किमर और कैमरे लगा दिए. एटीएम मशीन पर जहां कार्ड स्वाइप किया जाता है, वहां इन्होंने एक चिप लगाई और जहां पर पिन नंबर लिया जाता है, उस जगह के ऊपर माइक्रो कैमरे फिट किए. इन बदमाशों ने एटीएम बूथ पर स्किमर कैमरे लगाते समय अपने चेहरों पर हेलमेट लगा रखे थे. इस से इन के चेहरे वीडियो फुटेज में नजर नहीं आए.

जब कोई उपभोक्ता एटीएम बूथ में एटीएम कार्ड को स्वाइप करता तो चिप उसे पढ़ लेती थी और उस कार्ड की सारी जानकारी चिप में चली जाती थी. जब रुपए निकालने के लिए पिन नंबर डाला जाता था तो पासवर्ड वाली जगह के ऊपर लगे माइक्रो कैमरे से ठगों को उस एटीएम कार्ड का पिन नंबर पता चल जाता था. बाद में वे एटीएम कार्ड का क्लोन बना कर दूसरी जगह के किसी एटीएम से रकम निकाल लेते थे.

इन ठगों ने फरवरी के पहले सप्ताह में जयपुर में महेशनगर, जवाहर सर्किल, बजाज नगर और ज्योतिनगर में 8 एटीएम बूथों पर स्किमर और माइक्रो कैमरे लगाए थे. 20 फरवरी के आसपास ये लोग जयपुर में एटीएम बूथों पर लगाए स्किमर व माइक्रो कैमरे निकाल कर दिली चले गए.

दिल्ली में इन्होंने स्किमर व माइक्रो कैमरे से डाटा निकाल कर एटीएम कार्ड की क्लोनिंग की. इस के बाद विभिन्न स्थानों पर अलगअलग बैंकों के एटीएम से उन फरजी एटीएम कार्ड के जरिए लोगों के बैंक खातों से रकम निकाल ली.

इन साइबर ठगों ने पूछताछ में बताया कि वे 12 मार्च को रोमानिया जाने वाले थे. इस से पहले वे बैंक खातों से फरजीवाड़े से निकाली गई 50 लाख रुपए से ज्यादा की रकम को बिटकौइन में बदलनी थी, ताकि दिल्ली एयरपोर्ट पर इतनी बड़ी रकम के साथ पकड़े जाएं. इन्होंने यूरोप समेत 6 देशों में कार्ड क्लोनिंग कर लोगों के बैंक खातों से रकम निकालने की बात बताई. भारत में इन्होंने जयपुर के अलावा आगरा मुंबई में वारदात करने की बात भी कही है. पुलिस इन मामलों की पुष्टि करने में जुटी है.

गिरफ्तार सियोबानू के खिलाफ रोमानिया में हत्या समेत कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. जयपुर पुलिस ने रोमानिया के दूतावास को ये सारी जानकारियां दे कर तीनों आरोपियों का आपराधिक ब्यौरा भी मंगाया गया है.

गिरफ्तारी के बाद रिमांड अवधि के दौरान इन तीनों विदेशी साइबर ठगों से जयपुर के अशोक नगर में पूछताछ की जा रही थी. इस बीच एक दिन आरोपी डुयिका बोगडन निकोलेई ने पुलिस की मौजूदगी में थाने से भागने का प्रयास किया. हालांकि पुलिस ने उसे तुरंत दबोच लिया. इस संबंध में अशोक नगर थाने के रोजनामचे में रपट लिखी गई.

इन ठगों से बरामद 53 लाख रुपए में से करीब 28 लाख रुपए की ठगी के मामले जयपुर के विभिन्न थानों में दर्ज हैं. जयपुर पुलिस ने आगरा मुंबई पुलिस से इस तरह की ठगी के मामलों की जानकारी मांगी थी, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. अगर जल्दी ही किसी राज्य की पुलिस ने कोई दावा नहीं किया तो बाकी के 25 लाख रुपए की राशि अदालत से आदेश ले कर सरकारी खजाने में जमा कराई जाएगी

हालांकि जयपुर पुलिस ने साइबर ठगों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली, लेकिन देश भर में ऐसे पचासों गिरोह सक्रिय हैं, जो रोजाना किसी किसी तरीके से लोगों के बैंक खातों से पैसे निकाल रहे हैं. ऐसे मामलों में उपभोक्ताओं को ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है.

भारत में एटीएम कार्ड क्लोनिंग के अभी बहुत कम मामले सामने आए हैं. चिंता की बात यह है कि ऐसे गिरोह से महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं. पिछले साल देहरादून में 97 लोगों के एटीएम क्लोनिंग के आरोप में पकड़े गए साइबर ठगों के गिरोह में हरियाणा के सोनीपत की अनिल कुमारी भी शामिल थी. इस गिरोह ने जयपुर में रकम निकाली थी. जयपुर पुलिस द्वारा पकड़े गए विदेशी साइबर ठगों के साथ भी उन की महिला मित्र थी. हालांकि अभी उस महिला की आपराधिक संलिप्तता सामने नहीं आई है. फिर भी पुलिस उस की तलाश कर रही है.

साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक क्रैडिट डेबिट कार्ड पर एक चुंबकीय पट्टी होती है, जिस में खाताधारक और उस के खाते की डिटेल की कोडिंग होती है. इस मैगनेट टेप से डाटा कौपी करने की प्रक्रिया को स्किमिंग कहते हैं

इस के लिए इलैक्ट्रौनिक डिवाइस स्किमर लगा कर चुंबकीय पट्टी में दर्ज जानकारी कौपी हो जाती है. इस से एटीएम कार्ड का क्लोन तैयार किया जाता है. रिजर्व बैंक ने पिछले साल जुलाई में औनलाइन बैंकिंग लेनदेन में ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी से संबंधित नियमों में बदलाव किया था. इस के मुताबिक कार्ड क्लोनिंग से संबंधित मामलों में बैंक नुकसान की भरपाई करने के लिए जिम्मेदार है

कार्ड क्लोनिंग का पता चलने पर होम ब्रांच को सूचना दे कर 3 दिन में पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएं. बैंक में स्टैंडर्ड औपरेटिंग प्रोसीजर फौर्म भरें. इस फौर्म पर बैंक की कमेटी नुकसान की भरपाई का फैसला लेगी. औनलाइन फ्रौड से बचने के लिए बीमा भी करा सकते हैं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

  

अश्लील वीडियो ने लिखी मौत की कहानी

 

शादीशुदा संदीप ने राहों में खुद कांटे बोए थे. उसे उम्मीद थी कि वे कांटे दूसरों को चुभेंगे. उसे क्या पता था कि वे कांटे जहरीले बन कर उस की जान ले लेंगे.

21मार्च, 2018 की प्रात: 9 बजे कानपुर के बर्रा थाने के प्रभारी भास्कर मिश्रा को गहोई निवासी बबलू भदौरिया ने सूचना दी कि पांडु नदी पर बने काठ पुल के नीचे एक युवक की लाश तैर रही है. मिश्रा को मामला गंभीर लगा. अपने उच्चाधिकारियों को लाश की जानकारी दे कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

पांडु नदी (काठ पुल) थाना बर्रा से करीब 3 किलोमीटर दूर है. भास्कर मिश्रा को वहां पहुंचने में आधा घंटा लगा. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. लोग पुल से झांकझांक कर नदी में तैरते शव को देख रहे थे. कोई कह रहा था कि युवक की मौत डूबने से हुई है तो कोई आत्महत्या करने की बात कह रहा था. कुछ लोग ऐसे भी थे, जो हत्या की आशंका भी जता रहे थे.

थानाप्रभारी भास्कर मिश्रा ने युवक के तैरते हुए शव को गौर से देखा तो गले में बंधे दुपट्टे से वह समझ गए कि युवक की हत्या की गई है. साथी पुलिसकर्मियों ने भी उन की हां में हां मिलाई. मिश्रा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा तथा सीओ (गोविंदनगर) सैफुद्दीन बेग भी वहां आ गए.

उन्होंने मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने नदी से लाश बाहर निकलवा कर उस का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की उम्र करीब 30 वर्ष रही होगी. वह नीले रंग की शर्ट व पैंट पहने था. युवक का गला रेतने के अलावा उस के सीने को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. सिर पर भी कई घाव थे और उस के गले में स्टोल (दुपट्टा) बंधा था.

एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा ने मृतक की जामातलाशी कराई तो उस के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ.थानाप्रभारी को यह देख कर जरूर ताज्जुब हुआ कि मृतक उल्टा अंडरवियर पहने था. उन्हें लगा कि संभवत: यह प्रेमिल संबंधों में हुई हत्या का मामला रहा होगा. उस की हत्या कहीं और की गई होगी और शव को यहां फेंक दिया गया होगा.

अब तक शव को सैकड़ों लोग देख चुके थे, लेकिन कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर पाया था. इस से यही लगा कि मृतक युवक यहां का नहीं है. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश को मोर्चरी में रखवा दिया. साथ ही अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उस के हुलिए की सूचना वायरलैस से कानपुर नगर व कानपुर देहात के थानों को दे दी.

उसी रोज शाम 4 बजे थानाप्रभारी भास्कर मिश्रा थाने में आए तो 2 लोग उन की प्रतीक्षा में वहां बैठे मिले. उन में से अधेड़ उम्र का व्यक्ति बोला, ‘‘सर, मेरा नाम महेंद्र सिंह है और यह मेरा बड़ा बेटा कुलदीप है. मैं घाटमपुर कस्बा के जवाहर नगर मोहल्ले में रहता हूं. मेराछोटा बेटा संदीप सिंह दिल्ली में नौकरी करता है और अपनी पत्नी व बच्चों के
साथ वहीं रहता है.

‘‘संदीप 19 मार्च को दोपहर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन द्वारा कानपुर के लिए रवाना हुआ और रात 10 बजे कानपुर स्टेशन पर उतरा था. इस बीच वह बराबर वीडियो कालिंग द्वारा अपनी पत्नी रेनू के संपर्क में रहा. नौबस्ता थाना के अंतर्गत आशानगर में हमारा मकान बन रहा है. इसी मकान में संदीप को आना था.

लेकिन जब वह मकान में नहीं पहुंचा और उस का मोबाइल भी बंद हो गया तो हम ने उस की खोजबीन शुरू की. ‘‘बहू को जानकारी दी तो वह भी घबरा कर दिल्ली से कानपुर आ गई. जब संदीप का कुछ भी पता नहीं चला तो हम संदीप की गुमशुदगी दर्ज कराने थाना नौबस्ता गए. वहां से पता चला कि बर्रा थाना क्षेत्र में एक युवक की लाश मिली है.

हम उस लाश का फोटो देखना चाहते हैं कि वह किस की है.’’ थानाप्रभारी ने पांडु नदी से जो लाश बरामद की थी, उस के फोटो उन के मोबाइल फोन में थे. उन्होंने वे फोटो महेंद्र सिंह को दिखाए तो फोटो देखते ही वह फफक कर रो पड़े. उन्हें देख कर उन का बेटा कुलदीप सिंह भी रोने लगा. वह लाश संदीप की ही थी. संदीप की हत्या की खबर जैसे ही घर पहुंची तो घर में कोहराम मच गया. घर पर रिश्ते नातेदारों की भीड़ जुटने लगी.

थानाप्रभारी ने संदीप सिंह की हत्या के बाबत महेंद्र सिंह से पूछा तो वह बोले, ‘‘सर, हमारी किसी से कोई रंजिश नहीं है. मुझे तो लगता है कि संदीप की हत्या लूट के इरादे से हुई है.’’

लुटेरों द्वारा लूट की बात थानाप्रभारी को हजम नहीं हुई, क्योंकि लुटेरे इस तरह निर्मम हत्या नहीं करते. हत्या का कारण उन्हें कुछ और ही नजर आया. एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा के निर्देश पर पुलिस ने सब से पहले मृतक संदीप की पत्नी रेनू सिंह से पूछताछ की. रेनू ने बताया, ‘‘वह 19 मार्च की दोपहर पौने एक बजे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से कानपुर जाने के लिए ट्रेन में बैठे थे.

उन के पास 25 हजार रुपए नकद, गले में सोने की चेन, सोने की 2 अंगूठियां तथा महंगा मोबाइल फोन था. ‘‘शाम साढ़े 4 बजे उन्होंने मुझे वीडियो कालिंग की और बताया कि वह गाजियाबाद से आगे हैं. रात 9.55 बजे उन्होंने मुझे बताया कि वह कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर उतर गए हैं और टैंपो से आशानगर जा रहे हैं.

‘‘रात पौने 12 बजे उन्होंने फिर मुझे वीडियो काल कर के बताया कि वह नौबस्ता सब्जीमंडी पहुंच गए हैं. सवारी न मिलने से पैदल ही आशानगर स्थित निर्माणाधीन मकान की ओर जा रहे हैं. इस के बाद उन से कोई बातचीत नहीं हुई.’’
रेनू सिंह ने आगे बताया, ‘‘मैं ने फिर सुबह के समय उन से बात करनी चाही तो उन का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

इस के बाद मैं ने ससुरजी को सारी जानकारी दी तो उन्होंने बताया कि संदीप न तो घर पहुंचा है और न ही बन रहे मकान पर. बेचैनी बढ़ी तो मैं कानपुर आ गई. यहां आ कर पता चला कि उन की किसी ने हत्या कर दी है’’

रेनू ने यह भी बताया कि वह पति के साथ सुखमय जीवन बिता रही थी. उस के पति की हत्या किस ने और क्यों की, उसे इस की जानकारी नहीं है. काल डिटेल्स ने दिखाई जांच की राह मृतक संदीप की पत्नी व परिवार के अन्य सदस्य रंजिश से इनकार कर रहे थे. लूट की घटना थानाप्रभारी को हजम नहीं हो रही थी. हकीकत जानने के लिए उन्होंने संदीप के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि उस दौरान संदीप की अपनी पत्नी के अलावा एक और नंबर पर बात हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर का पता लगाया तो वह नंबर तिलसड़ा (घाटमपुर) की नेहा सिंह का निकला. यह पता चलते ही थानाप्रभारी को कहानी में प्रेमप्रसंग वाली बात नजर आने लगी. इस के बाद पुलिस ने नेहा सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि 19 मार्च, 2018 की शाम नेहा ने एक नंबर पर एसएमएस भेजा था, जिस में उस ने लिखा था, ‘आ जाना, आज उसे उल्टा करूंगी.’

जिस नंबर पर उस ने वह एसएमएस भेजा था, वह नंबर पटेलनगर, कालपी (उरई) निवासी प्रवीण कुमार श्रीवास्तव का निकला. थानाप्रभारी भास्कर मिश्रा ने पुलिस टीम के साथ 22 मार्च, 2018 की रात प्रवीण कुमार के यहां दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया.

कालपी से कानपुर आतेआते प्रवीण कुमार ने रास्ते में ही सच्चाई बता दी. उस ने संदीप की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रवीण ने बताया कि बर्रा विश्व बैंक निवासी नेहा सिंह के कहने पर उस ने अपने दोस्त देवेंद्र नागर के साथ मिल कर नेहा सिंह के घर पर ही संदीप की हत्या की थी और शव को कार में रख कर पांडु नदी में फेंक दिया था.

प्रवीण कुमार की निशानदेही पर पुलिस ने नेहा सिंह और देवेंद्र नागर को उन के बर्रा स्थित घर से हिरासत में ले लिया. नेहा सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने आला कत्ल हंसिया, लूटी गई नकदी, मोबाइल फोन, सोने की चेन, 2 अंगूठियां तथा बैग भी बरामद कर लिया.

संदीप से लूटे गए पैसों में से प्रवीण कुमार ने 3 पैंटशर्ट खरीदी थी. पुलिस ने वह भी बरामद कर लीं. हत्या में प्रयुक्त कार को भी पुलिस ने बरामद कर लिया. पुलिस द्वारा अभियुक्तों से की गई पूछताछ में नाजायज रिश्तों की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.हंसतेखेलते परिवार के दरवाजे पर मौत की दस्तक उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर से करीब 30 किलोमीटर दूर एक बड़ी आबादी वाला कस्बा घाटमपुर है. तहसील होने के
कारण हर रोज यहां खूब चहलपहल रहती है. इसी कस्बे के जवाहरनगर मोहल्ले में महेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 2 बेटे संदीप, कुलदीप और 2 बेटियां थीं.
महेंद्र सिंह प्रतिष्ठित और धनाढ्य व्यक्ति थे. राजनैतिक लोगों में भी उन की अच्छी पहुंच थी. दोनों बेटियों की वह अच्छे परिवारों में शादी कर चुके थे. भाईबहनों में संदीप सब से छोटा था. वह पढ़ाईलिखाई में तेज था. इंटरमीडिएट पास करने के बाद उस ने इलैक्ट्रिकल से पौलिटेक्निक का डिप्लोमा किया था. इस के बाद उस ने सरकारी नौकरी की कोशिश की लेकिन असफल रहा.

जब नौकरी नहीं मिली तो संदीप ने अपने पिता से कानपुर में कोई दुकान खोलने की इच्छा जाहिर की. थोड़े प्रयास के बाद उन्हें नौबस्ता के चित्रा डिग्री कालेज के पास एक दुकान किराए पर मिल गई. चूंकि संदीप ने इलैक्ट्रिकल से डिप्लोमा किया था, अत: उस ने बिजली के सामान की दुकान खोल ली. कुछ ही समय में उस की दुकान ठीकठाक
चलने लगी.

दुकान पर ही एक रोज उस की मुलाकात रेनू से हुई. उस रोज वह दुकान पर अपनी प्रैस ठीक कराने आई थी. 20 वर्षीय रेनू बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में वह संदीप के दिल में रचबस गई. वह संदीप की दुकान से कुछ ही दूर स्थित कच्ची बस्ती में रहती थी. उस के मातापिता की मौत हो चुकी थी. उस का एक भाई अजय था, वह उसी के साथ रहती थी. अजय टैंपो चलाता था.

संदीप ने रेनू का फोन नंबर ले लिया, जिस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस से बात करता रहता था. लगातार बात होने से संदीप और रेनू के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. संदीप भी सजीला व हृष्टपुष्ट युवक था. रेनू भी उसे चाहने लगी थी. चाहत दोनों ओर से बढ़ी तो दोनों घूमनेफिरने भी जाने लगे. एक दिन बाजार बंदी के दिन संदीप रेनू को मोतीझील पार्क ले गया. वहीं पर बातचीत के दौरान संदीप ने रेनू से अपने प्यार का इजहार कर दिया.

रेनू संदीप के चेहरे पर एक गहरी नजर डाल कर बोली, ‘‘संदीप, प्यार तो मैं तुम से करती हूं, लेकिन मुझे डर लग रहा है.’’ ‘‘कैसा डर?’’ संदीप ने पूछा.
‘‘यही कि तुम मुझे मंझधार में तो नहीं छोड़ दोगे?’’
‘‘कैसी बात करती हो रेनू, तुम तो मेरे दिल में बसी हो. मैं वादा करता हूं कि मैं तुम्हारे हर सुखदुख में साथ दूंगा और जीवन भर साथ निभाऊंगा.’’

रेनू और संदीप का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि उसी दौरान किसी तरह उन के घर वालों को इस की भनक लग गई. यह रिश्ता न तो रेनू के भाई अजय को मंजूर था और न ही संदीप के पिता महेंद्र सिंह को. पर संदीप और रेनू एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे, इसलिए घर वालों के विरोध के चलते दोनों भाग गए.

इस पर रेनू के भाई अजय ने इस की रिपोर्ट थाना नौबस्ता में दर्ज करा दी.
नौबस्ता पुलिस संदीप के पिता और भाई को पकड़ लाई. इस की भनक जब संदीप और रेनू को लगी तो दोनों थाने में हाजिर हो गए. उन के आने पर पुलिस ने दोनों पक्षों का समझौता करा दिया. इस के बावजूद दोनों ने आर्यसमाज पद्धति से विवाह कर लिया. विवाह के बाद दोनों हंसीखुशी जीवन व्यतीत करने लगे.

प्यार की मिठास बदलने लगी कड़वाहट में रेनू की शादी को अभी एक साल ही बीता था कि संदीप के जीवन में एक और लड़की नेहा सिंह आ गई. नेहा सिंह
मूलरूप से हमीरपुर के बंडा गांव की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. नेहा के पिता हाकिम सिंह खेतीकिसानी करते थे. वह साधारण परिवार से थे. उन की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी.

इसी बंडा गांव में संदीप का ननिहाल था. संदीप कभीकभी ननिहाल जाता था. उस के मामा और नेहा का घर अगलबगल था. दोनों परिवारों में घनिष्ठता भी थी. इसलिए नेहा का आनाजाना बना रहता था. एक बार जब संदीप ननिहाल गया तो सजीधजी नेहा से उस की आंखें चार हुईं. नेहा भी संदीप को देख कर प्रभावित हुई. फिर दोनों में
बातचीत होने लगी.

जल्द ही बातचीत प्यार में बदल गई. बाद में उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.
इधर संदीप और नेहा के प्यार की भनक हाकिम सिंह को लगी तो उन्होंने आननफानन में नेहा का विवाह कानपुर केतिलसड़ा गांव निवासी रणवीर सिंह के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद भी संदीप ने नेहा का पीछा नहीं छोड़ा और वह उस की ससुराल भी जाने लगा. नेहा के पति रणवीर सिंह ने विरोध जताया तो नेहा ने उसे रिश्तेदार बता कर पति का विरोध दबा दिया.

उन्हीं दिनों संदीप सिंह की दिल्ली में रिलायंस कंपनी में इलैक्ट्रिशियन के पद पर नौकरी लग गई. वह पत्नी रेनू के साथ पुरानी दिल्ली (दाईवाड़ा) में किराए के मकान में रहने लगा. दूर व व्यस्त रहने के कारण संदीप का नेहा से मिलना बंद हो गया. दिल्ली में संदीप व रेनू हंसीखुशी से रहने लगे. अब तक रेनू 2 बच्चों की मां बन चुकी थी.

इधर नेहा ने भी शादी के एक साल बाद एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद नेहा ने पति रणवीर सिंह पर दबाव डाला कि वह शहर जा कर कोई नौकरी करे ताकि पैसा आए. रणवीर सिंह ने पत्नी की बात मान कर कोशिश की तो एक दोस्त की मार्फत उसे गाजियाबाद की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. कुछ महीने बाद नेहा भी पति के साथ गाजियाबाद में रहने लगी.

बाद में संदीप को जब पता चला कि नेहा अपने पति के साथ गाजियाबाद में रह रही है, तो उस की बांछें खिल उठीं. एक रोज वह नेहा के कमरे पर जा पहुंचा. दोनों एकदूसरे को देख चहक उठे. पुरानी यादें ताजा हो गईं. मिलन की प्यास जागी तो दोनों खुद को रोक नहीं सके.

इस के बाद तो यह आए दिन का सिलसिला बन गया. रणवीर ड्यूटी पर जाता तो संदीप आ जाता. फिर दोनों मौजमस्ती करते. इसी दरम्यान एक रोज संदीप ने धोखे से नेहा का अश्लील वीडियो बना लिया और आपत्तिजनक स्थिति के फोटो भी मोबाइल में कैद कर लिया.

कुछ समय बाद नेहा को संदीप का आनाजाना खलने लगा. उस ने विरोध जताया तो संदीप ने उस का अश्लील वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी. इस पर नेहा डर गई और संदीप उस का शारीरिक शोषण करता रहा. रणवीर ने लगभग 4 साल तक गाजियाबाद में नौकरी की. बाद में उस की नौकरी छूट गई तो वह अपने गांव तिलसड़ा आ गया.

नेहा का बेटा 5 साल का हो चुका था. वह उसे गांव के प्राइमरी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहती थी. बेटे को शहर में पढ़ाने के लिए नेहा ने पति पर दबाव डाला तो रणवीर ने कानपुर शहर में बर्रा विश्व बैंक के बी ब्लौक में एक कमरा किराए पर ले लिया और नेहा के साथ रहने लगा.

यह मकान सपा नेता वैभव मिश्रा का था. वह बर्रा में ही अपने दूसरे मकान में परिवार सहित रहते थे. किराए के मकान में आ कर नेहा ने अपने बेटे का दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा दिया. किराए के इसी मकान में नेहा की मुलाकात प्रवीण कुमार श्रीवास्तव से हुई. वह मूलरूप से पटेलनगर, कालपी का रहने वाला था और डी ब्लौक बर्रा में किराए पर रहता था. प्रवीण कुमार सपा नेता वैभव मिश्रा का ड्राइवर था. इस के अलावा वह मकान का किराया भी वसूलता था.

नेहा को मिला नया प्रेमी चंचल व हंसमुख नेहा से प्रवीण की जल्द ही दोस्ती हो गई. दोस्ती प्यार में बदली, फिर दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. इस के बाद वह नेहा की हर तरह से मदद करने लगा. नेहा का पति रणवीर सिंह किसान था. कभी वह नेहा के साथ रहता तो कभी महीनों तक गांव में, जिस से प्रवीण को नेहा से मिलने में कोई बाधा नहीं होती थी.

संदीप सिंह नेहा की टोह में लगा रहता था. वह अय्याश प्रवृत्ति का था. उसे जब पता चला कि नेहा अब बर्रा विश्व बैंक कालोनी में रहने लगी है तो वह वहां भी आने लगा और नेहा का शारीरिक शोषण करने लगा. नेहा जब उस का फोन रिसीव नहीं करती तो वह विभिन्न नंबरों से काल करता. नेहा जब फोन रिसीव कर लेती तो वह उसे भद्दीभद्दी
गालियां देता और अश्लील फोटो नातेरिश्तेदारों व घर वालों को भेजने की धमकी देता.

दरअसल नेहा के पास स्मार्टफोन नहीं था. संदीप ने फेसबुक पर उस के नाम की आईडी बना रखी थी, जिसे वह खुद ही अपडेट करता था. अकसर वह सोशल साइट पर नेहा की फोटो के साथ किसी न किसी रिश्तेदार का फोन नंबर डाल
कर घर वालों को परेशान करता रहता था. संदीप ने नेहा के मौसेरे भाई को नेहा की अश्लील फोटो भेज भी दी थी.

शारीरिक शोषण और संदीप की गंदी हरकतों से आजिज आ कर नेहा ने अपने नए प्रेमी प्रवीण कुमार श्रीवास्तव को अपनी व्यथा सुनाई और संदीप से निजात दिलाने की बात कही. इस पर प्रवीण ने नेहा को बातचीत के जरिए समस्या को सुलझाने की सलाह दी.

पहली मार्च को होली थी. संदीप होली मनाने पत्नी और बच्चों के साथ दिल्ली से अपने घर घाटमपुर आया. इन दिनों संदीप के पिता महेंद्र सिंह नौबस्ता (कानपुर) के आशानगर में नया मकान बनवा रहे थे. संदीप इसी निर्माणाधीन मकान में कई रोज रह कर देखरेख करता था.

8 मार्च को संदीप ने नेहा सिंह से बात करने के लिए उस का फोन नंबर मिलाया. लेकिन नेहा ने फोन रिसीव नहीं किया. कई बार प्रयास के बाद नेहा ने फोन रिसीव किया तो वह नाराज हुआ और कर्रही (बर्रा) में मिलने को कहा. नेहा मिलने आई तो संदीप ने उसे गालियां दीं और फोन न उठाने तथा मिलने से इनकार करने पर 2 थप्पड़ भी जड़ दिए.
नेहा तमतमा कर घर चली गई और संदीप पत्नीबच्चों के साथ दिल्ली चला गया.

चोट खाई नागिन बन गई नेहा अपमानित नेहा ने प्रेमी प्रवीण कुमार से संपर्क किया और संदीप द्वारा बेइज्जत करने और थप्पड़ मारने की बात बताई. नेहा ने कहा कि संदीप की ज्यादतियां अब बरदाश्त नहीं होतीं. अत: उसे रास्ते से हटाना ही होगा, जिस के लिए
तुम्हें साथ देना होगा.

अगर तुम ने साथ नहीं दिया तो आज के बाद मुझ से बात नहीं करना. प्रेमिका की जिद पर प्रवीण कुमार संदीप को रास्ते से हटाने को राजी हो गया. साथ देने के लिए उस ने अपने दोस्त बर्रा निवासी देवेंद्र नागर को भी राजी कर लिया.

18 मार्च, 2018 को संदीप ने दिल्ली से नेहा को फोन किया कि वह 19 मार्च को कानपुर आ रहा है, उसे मिलना होगा. इस पर नेहा ने जवाब दिया कि बेटे शुभम के पेपर 15 मार्च को खत्म हो गए हैं. अब वह अपनी ससुराल तिलसड़ा (घाटमपुर) में है, इसलिए मिलना संभव नहीं है. इस पर संदीप ने उस के फोटो और वीडियो वायरल करने की धमकी
दी. धमकी से नेहा डर गई और बर्रा विश्व बैंक कालोनी स्थित मकान में मिलने का वादा कर लिया.

संदीप के शहर आने की जानकारी पर नेहा 19 मार्च की दोपहर ससुराल से कानपुर आ गई. किराए के मकान पर पहुंचने के बाद नेहा ने प्रवीण कुमार को मैसेज किया कि संदीप आ रहा है. आ जाना, आज उसे उल्टा करना है. मैसेज पढ़ कर प्रवीण अपने दोस्त देवेंद्र के साथ रात 9 बजे नेहा के कमरे पर पहुंच गया. नेहा ने दोनों को छत पर बैठा दिया.

इधर 19 मार्च को संदीप रात 10 बजे दिल्ली से कानपुर आया. इस बीच वह पिता, पत्नी व प्रेमिका के संपर्क में रहा. रास्ते में उस ने खाने का सामान व शराब की बोतल खरीदी, फिर रात 12 बजे के आसपास नेहा के घर पहुंच गया.

नेहा ने संदीप के साथ खाना खाया और उसे शराब पिलाई. इस के बाद संदीप ने बदन से सारे कपड़े उतारे और नेहा के शरीर से खेलने लगा. शारीरिक भूख मिटाने के बाद संदीप अंडरवियर में ही पलंग पर लेट गया और कुछ ही देर में
खर्राटे भरने लगा.

उचित मौका देख कर नेहा ने छत पर बैठे प्रवीण व उस के दोस्त देवेंद्र नागर को कमरे में बुला लिया. तीनों मिल कर संदीप का गला स्टोल (दुपट्टे) से कसने लगे तो वह हाथपैर चलाने लगा. तभी नेहा हंसिया ले आई और उस ने संदीप के सिर, गले व दिल पर कई वार किए. प्रवीण ने भी संदीप को हंसिए से गोदा जिस से उस की मौत हो गई.

संदीप को मौत के घाट उतारने के बाद नेहा और उस के प्रेमी प्रवीण ने उस के गले से सोने की चेन और अंगुलियों से दोनों अंगूठियां उतार लीं. पैंट की तलाशी ली तो जेब में पैसे मिले, जो निकाल लिए. फिर संदीप को अंडरवियर पहनाया जो जल्दबाजी में उल्टा पहना दिया गया. फिर पैंटशर्ट पहनाई और लाश चादर में लपेट दी.

शव को ठिकाने लगाने के लिए प्रवीण कुमार रात 3 बजे अपने मालिक वैभव मिश्रा के घर पहुंचा और बताया कि उस की बहन की तबीयत ज्यादा खराब है, उसे अस्पताल पहुंचाना है. अत: कार की चाबी चाहिए. वैभव मिश्रा ने पहले तो इनकार किया. लेकिन पत्नी के कहने पर कार की चाबी दे दी. कार ले कर प्रवीण कुमार नेहा के कमरे पर आया और संदीप के शव को कार में रख कर तीनों पांडु नदी के काठ पुल पर पहुंचे और शव को पुल के नीचे फेंक दिया. लाश फेंक कर वे वापस लौट आए.

इधर 21 मार्च को गहोई निवासी बबलू भदौरिया ने पांडु नदी में एक युवक की लाश पानी पर तैरती देखी तो उस ने बर्रा थानाप्रभारी को सूचना दे दी. थानाप्रभारी भास्कर मिश्रा ने तीनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद 23 मार्च, 2018 को कानपुर कोर्ट में सीएमएम की
अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पेट पालने के लिए जिस्म का धंधा करना पड़ा

 

कालगर्ल के धंधे में कई तरह की लड़कियां आती हैं. मजबूर भी और पैसे की भूखी भी. कुछ को इस गलीज पेशे में लाया जाता है तो कुछ आने को मजबूर हो जाती हैं. कई लड़कियां ऐसी भी होती हैं, जिन के सामने इस के अलावा कोई रास्ता होता ही नहीं, लेकिन उन के दर्द को…

भो पाल के करोंद इलाके में रहने वाली 20 वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के पिता की मौत
एक साल पहले हुई थी. पिता के साथसाथ आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया तो घर में फांकों की नौबत आ गई.

खुद रानी ही नहीं बल्कि उस के 8 भाईबहन भी एक वक्त भूखे सोने को मजबूर हो गए. बड़े भाई ने प्राइवेट नौकरी कर ली पर उसे इतनी पगार नहीं मिलती थी कि घर के सभी सदस्य भर पेट खाना खा सकें.
ऐसे में रानी को लगा कि उसे भी कुछ काम करना चाहिए. सोचविचार कर वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकली.

रानी खूबसूरत भी थी और जवान भी, लेकिन नामसमझ नहीं थी. नौकरी के नाम पर हर किसी ने उस से जो
चाहा, वह थी उस की जवानी. जहां भी वह काम मांगने जाती, मर्दों की निगाह उस के गठीले जिस्म पर रेंगने लगती थी. कम पढ़ीलिखी रानी को पहली बार समझ आया कि किसी भी अकेली जरूरतमंद लड़की के लिए सफेदपोश लोगों से अपनी आबरू सलामत रख पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

काम की तलाश में दरबदर घूमने के बाद जब वह शाम को थकीहारी घर लौटती तो भाईबहनों के लटके, भूखे और मुरझाए चेहरे उस की चाल देख कर ही नाउम्मीद हो उठते थे. वे समझ जाते थे कि आज भी खाली पेट पानी पी कर सोना पड़ेगा. भाई की पगार से मुश्किल से 10-12 दिन का ही राशन आ पाता था. घर के दीगर खर्चे भी खींचतान कर चलते थे.

नातेरिश्तेदारों और जानपहचान वालों ने तो पिता की मौत के साथ ही नाता तोड़ लिया था. रानी अब उन लोगों की ज्यादा गलती नहीं मानती, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पैसा ही सब कुछ है. जबकि पैसा उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितना आसान सोच कर लगता है. यह दुनिया बड़ी हिसाबकिताब वाली है, जो पैसे देता है वह बदले में कुछ न कुछ चाहता भी है.

एक असहाय बेसहारा लड़की के पास देने के लिए जो कुछ होता है, वह रानी ने अपनी कीमत पर देना शुरू किया तो उस पर पैसा बरसने लगा. भूख से बिलबिलाते जिन भाईबहनों को देख रानी का कलेजा मुंह को आ जाता था, उन के पेट उस की कमाई से भरने लगे तो रानी को सुकून देने वाला अहसास हुआ. घर में अब खानेपीने की कमी नहीं थी.

न तो बड़े भाई ने पूछा, न ही किसी और ने. फिर भी समझ हर किसी ने लिया कि रानी कैसे और कहां से इतना पैसा लाती है कि उस के पास महंगे कपड़े और मेकअप का सामान आने लगा है. काम की तलाश के दौरान रानी को कई तरह के तजुरबे हुए थे. तमाम नए लोगों से उस की जानपहचान भी हो गई थी.
उन में से एक था कपिल नाम का शख्स, जिस ने बहुत अपनेपन से उसे यह समझाने में कामयाबी पा ली थी कि यूं अकेली काम की तलाश में दरदर भटकोगी तो लोग नोच खाएंगे. इस से तो बेहतर है कि लोग जो चाहते हैं, उसे बेचना शुरू कर दो. इस से जल्द ही मालामाल हो जाओगी.

कपिल उसे भरोसे का और समझदार आदमी लगा तो उस ने मरती क्या न करती की तर्ज पर देह व्यापार के लिए हामी भर दी. कपिल अपने वादे पर खरा उतरा और देखते ही देखते वह हजारों में खेलने लगी.
बीती 29 दिसंबर को कपिल ने उसे बताया कि टीकमगढ़ से उस के कुछ दोस्त आने वाले हैं और एक दिन रात के एवज में उसे इतनी रकम देंगे, जितनी वह महीने भर में कमा पाती है.

सौदा 14 हजार रुपए में तय हुआ. हालांकि कपिल और उस के दोस्तों की बेताबी देख रानी ज्यादा पैसे मांग रही थी. लेकिन कपिल इस से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ तो वह इतने में ही मान गई. उस के लिए यह सौदा घाटे का नहीं था.

अभी तक हफ्ते में 2-3 ग्राहक ही मिलते थे. वे भी उस के अंगों को टटोलने के बाद एक रात के 2-3 हजार रुपए देने के लिए महज इसलिए तैयार हो जाते थे कि रानी के जिस्म में कसावट थी. नहीं तो खुद रानी को भी पता चल गया था कि सौ दो सौ रुपए में ही भोपाल में कालगर्ल आसानी से मिल जाती है.

साल की दूसरी आखिरी शाम यानी 30 दिसंबर को जब पूरी दुनिया नए साल के जश्न की तैयारियों में लगी थी, तब रानी कपिल के बताए मिसरोद इलाके के शीतलधाम अपार्टमेंट के फ्लैट पर पहुंच गई, जहां कपिल सहित 3 और मर्द बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. रानी तो यही सोचसोच कर खुश थी कि एक झटके में 14 हजार रुपए मिल जाएं तो वह 2-4 दिन घर पर आराम करेगी और भाईबहनों के साथ वक्त बिताएगी.

रात भर चारों ने जैसेजैसे चाहा, वैसेवैसे उस ने उन्हें खुश किया, पर साल की आखिरी सुबह रानी पर भारी पड़ी. सुबहसुबह ही मिसरोद पुलिस ने दबिश दे कर देह व्यापार के इलजाम में उन पांचों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

ऐसे पुलिस छापों के बारे में रानी ने काफी कुछ सुन रखा था पर वास्ता पहली बार पड़ा था. थाने में जैसे ही उसे मीडिया वालों से बात करने का मौका मिला तो उस ने अपनी गरीबी और बदहाली की दास्तां बयां कर दी, जिस से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई.

रानी कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं थी जो अपनी मजबूरियों के चलते अपना और अपने घर वालों का पेट पालने के लिए देह व्यापार की दलदल में उतरी थी. ऐसी लड़कियों की तादाद अकेले भोपाल में 25 हजार से ऊपर आंकी जाती है, जो पार्टटाइम या फुलटाइम यह धंधा करती हैं.

पिछले साल अक्तूबर में भोपाल के ही एक मसाजपार्लर में पड़े छापे में 2 और लड़कियों की आपबीती रानी से ज्यादा जुदा नहीं है. 24 वर्षीय मधु (बदला नाम) इस मसाजपार्लर में ग्राहकों की मालिश करती थी. सच यह भी है कि ग्राहक खुद पहल करता था तो वाजिब दाम पर वह जिस्म बेचने को भी तैयार हो जाती थी.

मधु छापे वाले दिन थाने में खड़ी थरथर कांप रही थी. उसे चिंता अपनी कम अपने अपाहिज पिता की ज्यादा थी, जिन्हें रोजाना शाम को दवा और खाना वही देती थी. रानी की तरह ही झोपड़ेनुमा मकान में रहने वाली मधु अपने अपाहिज पिता के इलाज और पेट भरने के लिए इस धंधे में आई थी, जिसे अपने धंधे की बाबत किसी से न कोई गिलाशिकवा था और न ही वह इसे गलत मानती थी.

इसी छापे में पकड़ी गई 26 वर्षीय सुचित्रा (बदला नाम) को उस के शौहर ने छोड़ दिया था. मायके वालों ने कुछ दिन तो उसे रखा पर शौहर से सुलह की गुंजाइश खत्म होते देख उसे आए दिन ताने दिए जाने लगे.
खुद सुचित्रा को भी लग रहा था कि उसे किसी दूसरे पर बोझ नहीं बनना चाहिए. लिहाजा वह भी रानी और मधु की तरह जोशजोश में काम की तलाश में निकल पड़ी. 4 हजार रुपए महीने की पगार पर एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी मिली,

पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि नौकरी तो कहने भर की है. अगर वक्त पर पैसा चाहिए तो जैसा ब्यूटीपार्लर चलाने वाली कह रही है, वैसा करना पड़ेगा. इस के बाद उस ने नौकरी छोड़ दी. इस पर घर वालों ने फिर ऐतराज जताया तो उस ने भी मसाजपार्लर में नौकरी कर ली, जहां उसे 15 हजार रुपए देने की बात कही गई थी. 15 हजार रुपए के एवज में क्याक्या करना है, यह बात सुचित्रा से छिपी नहीं थी. लिहाजा वह मालिश के साथसाथ बाकी सब भी करने लगी, जिस से उसे 10-12 हजार रुपए मिलने लगे थे. अब घर वालों की शिकायतें दूर हो गई थीं, पर जब छापे में वह पकड़ी गई तो उन्होंने उस से कन्नी काट ली.

मधु और सुचित्रा को थाने में पुलिस अफसर लताड़ती रहीं कि ऐसी ही लड़कियों ने औरतों को बदनाम कर रखा है, जो दूसरे कामधंधों के बजाय देहव्यापार करने लगती हैं. उस वक्त तो दोनों चुप रहीं पर बाद में बताया कि ये लोग हमारा दर्द नहीं समझेंगी. हम ने पहले ईमानदारी से ही कोशिश की थी. इज्जत से नौकरी करना चाहा था, लेकिन हर जगह हम पर सैक्स के लिए या तो दबाव बनाया गया था या फिर लालच दिया गया.

सुचित्रा बताती है कि कोई लड़की नहीं चाहती कि वह इस पेशे में आए लेकिन समाज मर्दों का है और वे एक ही चीज चाहते हैं. हर कोई हमारी मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है और हम उन की मंशा पूरी न करें तो नौकरी से निकाल दिया जाता है. कोई हमें बहनबेटियों की तरह इज्जत नहीं देता, जिस की हम उम्मीद भी नहीं करतीं.

मधु और सुचित्रा को मसाजपार्लर महफूज लगा, जहां देहव्यापार करना मजबूरी या दबाव की बात नहीं थी बल्कि मरजी की बात थी. यहां मालिश कराने काफी बड़ी हस्तियां आती हैं और थोड़ी देर की मौजमस्ती के एवज में 2-4 हजार रुपए ऐसे दे जाती हैं, जैसे पैसा वाकई हाथ का मैल हो.

ये तीनों फिर पुराने धंधे में आ गई हैं. पैसा इन की जरूरत भी है और मजबूरी भी. दूसरी तरफ ये मर्दों की जरूरत हैं जो इन पर पैसा न्यौछावर करने को तैयार बैठे रहते हैं.

देहव्यापार को बुरी नजर से क्यों देखा जाता है और इसे सिर्फ बुरी नजर से क्यों नहीं देखा जाना चाहिए, इस पर आए दिन बहस होती रहती हैं और आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मधु, रानी और सुचित्रा का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता. अगर वे इस पेशे में नहीं आतीं तो मुफ्त में लुटतीं और इस के बाद भी खाली पेट रहतीं.

रानी अपने भाईबहनों को भूख से तिलमिलाते नहीं देख पा रही थी तो इस में उस का कोई कसूर नहीं. मधु अपने पिता के लिए मसाजपार्लर में काम कर रही थी और सुचित्रा के निकम्मे और नशेड़ी पति को कोई दोषी नहीं ठहरा रहा था,

जिस ने धक्के दे कर बीवी को घर से बाहर कर के दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया था. ऐसे में तय कर पाना मुश्किल है कि ये लड़कियां फिर और क्या करतीं?

बेटे ने मा को प्रेमप्रसंग के चक्कर में मौत के घाट उतारा

कभी कभी मांबाप भी ऐसे काम कर जाते हैं जिस से बच्चों का सिर समाज में शर्म से झुक जाता है, नन्हकी और सुरेंद्र ने भी कुछ ऐसा ही किया. फिर मां नन्हकी को सजा देने के चक्कर में मिथलेश एक ऐसा अपराध कर बैठा कि…

बा त 15 अक्तूबर, 2017 की है. हलिया के थानाप्रभारी विनोद दुबे कहीं जाने के लिए औफिस से निकलने वाले थे, उसी समय इलाके का चौकीदार उन के पास पहुंचा. उस ने बताया, ‘‘सर, मटिहारी जंगल
के पनिहरवा नाले में 2 लाशें पड़ी हैं, जिस में एक लाश किसी महिला की और दूसरी किसी आदमी की है.’’

2-2 लाशें मिलने की बात सुनते ही थानाप्रभारी के कदम वहीं के वहीं रुक गए. वह तुरंत जीप से उतर कर चौकीदार से लाशों के बारे में कुछ और जानकारी लेने लगे. इस के बाद थानाप्रभारी जिस जगह के लिए रवाना होने वाले थे, वहां जाने का कार्यक्रम उन्होंने स्थगित कर दिया और पुलिस टीम के साथ उस जगह की तरफ निकल पड़े, जहां लाशें पड़ी थीं. चौकीदार को भी उन्होंने जीप में बैठा लिया.

कुछ ही देर में उन की जीप पनिहरवा नाले के पास पहुंच गई. चौकीदार जंगली झाडि़यों के बीच पथरीली राहों से होता हुआ जंगलों, पहाड़ों से हो कर बहने वाले नाले के उस स्थान पर पहुंच गया, जहां से वे लाशें साफसाफ दिख रही थीं.

चौकीदार अंगुली से इशारा करते हुए बोला, ‘‘देखिए साहब, वे हैं दोनों ही लाशें.’’
थानाप्रभारी विनोद दुबे ने देखा तो नाले के किनारे झाडि़यों से लगी 2 अर्धनग्न लाशें पानी पर तैर रही थीं, जिन में से एक के शरीर पर कपड़े के नाम पर ब्लाउज और पेटीकोट तथा दूसरे पर बनियान व लंगोट था.

दोनों का चेहरा भी झुलसा हुआ दिख रहा था. तब तक वहां कुछ चरवाहे भी आ गए थे. उन की मदद से थानाप्रभारी ने दोनों लाशों को नाले से बाहर निकलवाया. फिर लाश मिलने की सूचना उच्चाधिकारियों को देते हुए आवश्यक काररवाई में जुट गए.

जंगल के नाले में 2 लाशें मिलने की सूचना आसपास के गांव वालों को हुई तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुटने लगी. लाशों का निरीक्षण करने के बाद पता चला कि उन पर किसी धारदार हथियार से वार करने के बाद उन्हें जलाने की कोशिश की गई थी. इस से उन का चेहरा झुलस गया था. इसीलिए वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति उन की शिनाख्त नहीं कर सका.

लाश देख कर लग रहा था कि दोनों की हत्या शायद 2-3 दिन पहले की गई होगी. लाशें नाले में इसलिए फेंकी होंगीं ताकि बह कर कहीं दूर चली जाएं, लेकिन वे नाले के किनारे झाड़ी में फंस गईं. पुलिस ने उन चरवाहों से भी पूछताछ की लेकिन वह भी कुछ नहीं बता पाए.

बहरहाल, पुलिस के सामने एक बड़ा सवाल यह था कि वे दोनों कौन और कहां के रहने वाले थे तथा किन
परिस्थितियों में उन की हत्या की गई थी. इन तमाम सवालों का जवाब पाने के लिए थानाप्रभारी ने आसपास का गहनता से निरीक्षण किया तो नाले से कुछ ही दूरी पर बरगद के पेड़ के नीचे एक चूल्हा मिला.

चूल्हे के पास में ही तेल ही शीशी और शराब की खाली बोतलें मिलीं. वहां रखे एक भगौने में पके हुए कुछ चावल भी थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि वहां पर खानापीना भी हुआ था. पास में ही झाडि़यों के बीच एक साइकिल पड़ी दिखी, जहां साइकिल पड़ी थी, उस के आसपास की मिट्टी खून से सनी हुई थी. कुछ मीटर की दूरी पर इंसानी कलेजा दिखाई दिया, जिसे देख पुलिस भी सिहर उठी.

घटनास्थल का मौकामुआयना करने के बाद पुलिस ने कयास लगाया कि इन दोनों की हत्या के पीछे शायद प्रतिशोध की भावना रही होगी. पुलिस इसी दृष्टिकोण पर आगे बढ़ने की सोच ही रही थी कि तभी एक युवक हांफता हुआ वहां आया और आदमी के शव को देखते ही दहाड़ें मार कर रोने लगा. बाद में उस ने बताया कि वह लाश उस के चाचा सुरेंद्र बहादुर सिंह की है. वह हलिया वन रेंज के कंपार्टमेंट-3 में बतौर वनरक्षक तैनात थे.

उस ने बताया कि 13 अक्तूबर से ही चाचा का कोई पता नहीं चल पा रहा था. युवक ने यह भी बताया कि जिस महिला की लाश मिली है, वह हलिया थाने के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी उर्फ घिरजिया है. यह वन विभाग में ही दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थी.

दोनों शवों की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी विनोद दुबे ने थोड़ी राहत की सांस ली. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उसी दिन संजय सिंह की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस आगे की काररवाई में जुट गई.

एसपी आशीष तिवारी ने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए थानाप्रभारी विनोद दुबे के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में अदलहाट के थानाप्रभारी विजय प्रताप सिंह, इंटेलिजेंस विंग के प्रभारी रामस्वरूप वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी मनोज कुमार ठाकुर, एसआई रामजी यादव, कांस्टेबल बृजेश सिंह, वीरेंद्र कुमार सरोज, संदीप राय, रजनीश सिंह, संतोष कुमार यादव आदि को शामिल किया गया.

इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. वनकर्मियों में भय व्याप्त हो गया था. पुलिस जहां दोनों की हत्या के खुलासे में जुटी थी, वहीं दोनों की हत्या को ले कर क्षेत्र में तरहतरह की चर्चाएं भी होने लगी थीं. आशंका जताई जा रही थी कि दोनों की हत्या कहीं प्रेमप्रपंच को ले कर तो नहीं की गई.

वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना था कि वनरक्षक सुरेंद्र जंगल में काफी लंबे समय से काम कर रहा था. उसे अवैध खनन, वन भूमि पर कब्जा करने, तेंदू पत्ता तोड़ने वालों या जंगली जानवरों का शिकार करने वालों के बारे में अच्छीखासी जानकारी थी, सो कहीं ऐसा तो नहीं कि उस की हत्या इन्हीं में से किसी ने कराई हो.

पुलिस टीम इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए कदम बढ़ा रही थी, लेकिन एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस टीम के हाथ कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लग पाया, जिस से जांच आगे बढ़ सके. करीब डेढ़ महीना बीतने के बाद भी पुलिस को निराशा ही मिली थी.

पुलिस ने दिनरात एक कर के हरेक छोटे बड़े पहलू पर गौर किया. इतना ही नहीं पुलिस जंगलों की हर एक गतिविधि पर भी ध्यान गड़ाए हुए थी. घटनास्थल के पास मिले खाने पीने आदि के सामान से पुलिस को यही आशंका थी कि हत्या में किसी खास करीबी का हाथ हो सकता है. इसी बीच पुलिस टीम को कुछ अहम सुराग मिल गए, जिस से उसे आगे बढ़ने की कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दे गई.

हत्याकांड की छानबीन में जुटी पुलिस टीम को सर्विलांस के जरिए पता चला कि घटना वाले दिन मौके पर 2
मोबाइल नंबरों की लोकेशन साथ साथ थी. पुलिस टीम ने जब उन नंबरों पर काम करना शुरू किया तो पता चला कि एक नंबर तो मृतक सुरेंद्र का था, जबकि दूसरा नंबर मृतका नन्हकी देवी के बेटे मिथलेश का था. पुलिस ने मिथलेश की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि उस की लक्ष्मण कोल नाम के व्यक्ति से भी बात हुई थी.

इस के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि लक्ष्मण कोल नन्ही देवी का समधी (बेटी का ससुर) था, जो हलिया थाने के ही गांव पोखड़ौर में रहता था. बस फिर क्या था, पुलिस टीम ने बिना देर किए दोनों के घरों पर दबिश दी. मिथलेश तो नहीं मिला लेकिन पुलिस ने 25 दिसंबर, 2017 को लक्ष्मण कोली को पोखड़ौर के हर्रा जंगल की नहर पुलिया के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो पुलिस के डर से उस ने स्वीकार कर लिया कि सुरेंद्र और नन्हकी की हत्या में उस के अलावा नन्हकी का बेटा मिथलेश भी शामिल था. उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार रही—

उत्तर प्रदेश का मीरजापुर जिला मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. इस जिले का हलिया थाना मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है. यह क्षेत्र दूरदूर तक फैले घने जंगलों, पहाड़ों से घिरा हुआ है. मध्य प्रदेश के रीवा जिले का हनुमना थाना भी मीरजापुर जिले की सीमा से लगा हुआ है.

हनुमना थानाक्षेत्र भी घने जंगलों से घिरा है. दोनों ही राज्यों के इन वन रेंज क्षेत्रों के अलग अलग कंपार्टमेंट में
वनरक्षकों की तैनाती की गई है, ये वनरक्षक वन्यजीवों से ले कर वनों की रखवाली करने के साथ हर छोटी बड़ी सूचनाओं से विभाग को अवगत कराते रहते हैं.

हलिया थाना क्षेत्र का पूरा इलाका घने जंगलों, पहाड़ों के साथ जंगली जीवजंतुओं से भी पटा है. इसी के साथ तेंदू पत्तों का भी यहां तुड़ान होता है, जिस से सरकार को भारीभरकम राजस्व की प्राप्ति होती है. इस क्षेत्र के गांव भटवारी कलां का रहने वाला 53 वर्षीय सुरेंद्र बहादुर सिंह भी वनरक्षक के पद पर तैनात था. इसी रेंज में क्षेत्र के मगरदा मटिहरा गांव की नन्हकी देवी भी दिहाड़ी मजदूर के रूप में तेंदू पत्ते तोड़ती थी.

बेटेबहू वाली नन्हकी देवी कुछ अरसा पहले पति की मौत हो जाने के बाद नीरस जिंदगी जी रही थी. भरापूरा परिवार होने के बाद भी उसे अकेलापन महसूस होता था. कुछ यही हाल सुरेंद्र का भी था. भले ही नन्हकी देवी 48 साल की थी, लेकिन उस के गठीले शरीर को देख कर नहीं लगता था कि वो 48 साल की है. जंगलों में काम करने के दौरान वह सुरेंद्र सिंह के काफी करीब आ गई थी.

इस में सहायक बना जंगलों का एकांत, जहां कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. दोनों में नजदीकियां बढ़ीं तो दिलों के साथ देह का भी मिलन होते देर नहीं लगी.

दोनों का दैहिक मिलन हुआ तो अकसर जंगल में ही उन का खानापीना भी होने लगा था. यह बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. गांव वालों के जरिए यह बात नन्हकी के बेटे मिथलेश के कानों तक भी पहुंच गई.
पहले तो उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ कि उस की मां ऐसा कर सकती है. लेकिन बाद में मिथलेश ने अपनी मां के बारे में उड़ रही अफवाहों पर ध्यान देना शुरू किया तो कानों सुनी बातों में उसे सच्चाई नजर आने लगी.

मां की वजह से पूरे गांव में परिवार की बदनामी हो रही थी. मिथलेश ने इस बारे में मां को समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी तो मिथलेश ने एक योजना बना ली. अपनी और परिवार की इज्जत का वास्ता देते हुए उस ने अपनी बहन के ससुर लक्ष्मण कोल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. लक्ष्मण गांव पोखड़ौर में रहते थे.

योजना के मुताबिक मिथलेश ने 13 अक्तूबर, 2017 को जंगल में बहन के ससुर के साथ मिल कर दावत के बहाने अपनी मां के अलावा सुरेंद्र सिंह को भी बुला लिया. अपनी मां से मिथलेश ने मछली पकवाई. वह शराब पहले से ही ले आया था. मिथलेश की मां भी शराब पीती थी. लक्ष्मण ने अपनी समधिन नन्हकी और उस के प्रेमी सुरेंद्र को खूब शराब पिलवाई जबकि खुद कम पी.

नन्हकी और सुरेंद्र जब नशे में हो गए तो सुरेंद्र पनिहरवा नाले के किनारे बरगद के पेड़ के नीचे लेट गया. उसे पेड़ के नीचे लेटा देख मिथलेश ने पीछे से फावड़े से उस की गरदन पर वार किया. एक ही वार में उस का काम तमाम हो गया. उस की चीख सुन कर नन्हकी वहां से चिल्लाते हुए जान बचाने की गरज से भागने को हुई तो मिथलेश और लक्ष्मण ने उसे पकड़ कर गिरा दिया. फिर फावड़े से प्रहार कर के उसे भी मौत के घाट उतार दिया.

दोनों की सांसें जब थम गईं तो मिथलेश ने फावड़े से सुरेंद्र के सीने पर वार कर के उस का कलेजा निकाल लिया और उसे काट कर फेंक दिया. कोई उन दोनों लाशों को पहचान न सके, इसलिए उन के कपड़े उतार कर मुंह पर रख कर आग लगा दी.

हत्या करने के बाद दोनों शव वहीं नाले में फेंक दिए. सुरेंद्र की साइकिल तथा हत्या में प्रयुक्त दोनों फावड़े कुछ दूर पर झाडि़यों में छिपा कर वे दोनों वहां से भाग निकले.

पुलिस के अनुसार, घटना के दूसरे दिन जब सुरेंद्र अपने घर नहीं पहुंचा तो परिजनों ने उस की तलाश शुरू की लेकिन कोई पता न चलने पर वे लोग नन्हकी के घर भी गए, क्योंकि कई बार देर हो जाने पर सुरेंद्र नन्हकी के घर जा कर रुक जाता था. लेकिन वहां दोनों के न मिलने से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

नातेरिश्तेदारों के यहां भी घर सुरेंद्र को तलाशा पर उस का कोई पता नहीं चल पाया तो घर वाले थाना हलिया जा कर उस की गुमशुदगी लिखवाने वाले ही थे कि नाले में लाश मिलने की खबर पा कर सुरेंद्र का भतीजा संजय वहां पहुंच गया. उस ने अपने चाचा के अलावा नन्हकी की लाश भी पहचान ली.

पुलिस ने लक्ष्मण को गिरफ्तार करने के बाद उसे 25 दिसंबर, 2017 को पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के मीडिया के समक्ष पेश किया. लक्ष्मण द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दूसरी ओर एसपी मीरजापुर आशीष तिवारी ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को शाबाशी देते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की. दूसरा फरार अभियुक्त मिथलेश पुलिस को चकमा देता फिर रहा था, लेकिन पुलिस के बढ़ते दबाव को देखते हुए उस ने भी अंतत: न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

कहानी लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों की जमानत नहीं हो सकी थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के झाल में फसाकर करता था बलात्कार

 

इमरान भले ही बड़ा बिजनैसमैन था, लेकिन अंदर से शैतान था. उस ने पहले सुहाना का शोषण कर के उसे धोखा दिया और अरसे बाद उस की बेटी अदीना, जो इमरान की नाजायज औलाद थी, को फंसाने लगा. लेकिन वह आगे बढ़ पाता इस से पहले ही…

य ह एक अजीबोगरीब केस है, दर्दभरी दास्तान. आप सुनेंगेपढ़ेंगे तो दुख आप को भी होगा. पढि़ए और सोचिए, मैं गलत था या सही. फैसला आप को करना है.

मकतूल एक दौलतमंद और रसूख वाला आदमी था जबकि कातिल 2 औरतें थीं. मां सुहाना और बेटी अदीना. सुहाना की उम्र करीब 38 साल थी और अदीना की 19 साल. वह बेहद हसीन व शोख लड़की थी. उस के चेहरे पर गजब की मासूमियत थी.

सुहाना भी खूबसूरत औरत थी, लेकिन उस के चेहरे पर उदासी और आंखों में समंदर की गहराई थी. दोनों मांबेटी कोर्ट में मुसकराती हुई आती थीं और बड़े फख्र से कहती थीं कि उन्होंने इमरान हसन को कत्ल किया है. अदीना कहती थी, ‘‘मैं ने एक ठोस डंडे से उस की पिंडलियों पर वार किए थे. वह नीचे गिर पड़ा.’’
सुहाना कहती थी, ‘‘जब वह नीचे गिरा तो मैं ने उसी ठोस डंडे से उस के सीने पर मारना शुरू किया, इस से उस की पसलियां टूटने की आवाज आने लगी. फिर मैं ने अपनी अंगुलियों के नाखून उस की दोनों आंखों में उतार दिए.’’

मांबेटी दोनों बड़े फख्र से ये कारनामा सुनाती थीं और मैं भी उन के गुरूर को सही समझता था. लाश बुरी हालत में मिली थी. डंडे से उस का सिर फोड़ दिया गया था. मैं जानता था, मासूम चेहरे वाली इन मांबेटी को कड़ी सजा मिलेगी. पर उन के चेहरे पर डर या वहशत नहीं थी. वे दोनों बड़े सुकून और इत्मीनान से बैठी रहती थीं. इस के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी थी. मैं आप को वही कहानी सुनाऊंगा, जो मुझे सुहाना ने कोर्ट के अंदर सुनाई थी.

आप यह सोच कर सुहाना की कहानी सुनें कि आप ही उस का इंसाफ करने वाले जज हैं. सुहाना ने मुझे बताया, ‘‘मेरी मां का नाम नसीम था. हमारा घर पुराना पर अच्छा था. घर में हम 3 लोग थे. मैं मेरी मां और मेरे अब्बू. जिंदगी आराम से गुजर रही थी. हमारे रिश्तेदार और अब्बू के दोस्त आते रहते थे. अब्बू काफी मिलनसार थे.

बदनसीबी कहिए या कुछ और, अब्बू बीमार पड़ गए. 3 दिन अस्पताल में भरती रहे और चौथे दिन चल बसे. हम लोगों की दुनिया अंधेरी हो गई. कुछ दिनों तक दोस्तों व रिश्तेदारों ने साथ निभाया, लेकिन फिर सब अपनीअपनी राह लग गए. अब मैं बची थी और मेरी मजबूर मां. न कोई मददगार न सिर पर हाथ रखने वाला.

उस वक्त मैं बीए के पहले साल में थी, पर अब पढ़ाई जारी रखने जैसे हालात नहीं बचे थे. पड़ोसी भी शुरू में मोहब्बत से पेश आए लेकिन धीरेधीरे सब ने निगाहें फेर लीं. गनीमत यही थी कि हमारा घर अपना था. सिर छिपाने को आसरा था हमारे पास, पर खाने के लाले पड़ने लगे थे.

अम्मा ने घरों में काम करने की बात की, पर मुझ से यह बरदाश्त नहीं हुआ. मैं ने अम्मा को बहुत समझाया और खुद नौकरी करने की बात की. मैं इंग्लिश मीडियम से पढ़ी थी, मेरी अंगरेजी और मैथ्स बहुत अच्छा था. बहुत कोशिश करने पर मुझे एक औफिस में जौब मिल गई. वेतन ज्यादा तो नहीं था, पर गुजारा किया जा सकता था.

शुरू में लोगों ने बातें बनाईं कि खूबसूरती के चलते यह नौकरी मिली है. अम्मा बहुत डरती, घबराती, लोगों की बातों से दहशत खाती. मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘अम्मा, लोग सिर्फ बातें बनाते हैं. वे हमें खिलाने नहीं आएंगे. हमें अपना बोझ खुद उठाना है. लोगों को भौंकने दें.’’

अम्मा को बात समझ में आ गई. फिर भी उन्होंने नसीहत दी, ‘‘बेटी, दुनिया बहुत बुरी है. तुम बहुत मासूम और नासमझ हो. फूंकफूंक कर कदम रखना, हर मोड़ पर इज्जत के लुटेरे बैठे हैं.’’
मैं ने उन्हें दिलासा दी, ‘‘अम्मी, आप फिक्र न करें, मैं अपना भलाबुरा खूब समझती हूं. जिस फर्म में मैं काम करती हूं, वहां भेडि़ए नहीं, बहुत नेक और भले लोग हैं.’’

एकाउंटेंट अली रजा बूढ़े आदमी थे. बहुत ही सीधे व मोहब्बत करने वाले. मुझे नौकरी दिलाने में भी उन्होंने मेरी मदद की थी और पहले दिन से ही मुझे गाइड करना और सिखाना भी शुरू कर दिया था. वैसे मैं काफी जहीन थी. जल्द ही सारा काम बहुत अच्छे से करने लगी.

औफिस में सभी लोग अली रजा साहब की बहुत इज्जत करते थे. हां, फर्म के बौस इमरान हसन से मेरी अब तक मुलाकात नहीं हुई थी. सुना था, बहुत रिजर्व रहते हैं. काम से काम रखने वाले व्यक्ति हैं.
फर्म के लोग मालिक इमरान हसन से खुश थे. सब उन की तारीफ करते थे. मुझे वहां काम करते एक महीना हो गया था.

पहली तनख्वाह मिली तो अम्मा बड़ी खुश हुईं. तनख्वाह इतनी थी कि हम मांबेटी का गुजारा आसानी से हो जाता और थोड़ा बचा भी सकते थे. फर्म में 4-5 लड़कियां और भी थीं. उन से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. बौस पिछले दरवाजे से आतेजाते थे, इसलिए उन से मेरा कभी आमनासामना नहीं हुआ.

एक दिन एक कलीग रशना की सालगिरह थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे अपने घर आने की दावत दी. इस प्रोग्राम में बौस समेत औफिस के सभी लोग जाने वाले थे. मुझे भी वादा करना पड़ा. अम्मा से इजाजत लेने में मुश्किल हुई, क्योंकि वह मेरे अकेले जाने से परेशान थीं. रशना के यहां पहुंचने पर मेरा शानदार वेलकम हुआ. वहां बहुत धूमधाम थी. केक काटा गया. पार्टी भी बढि़या थी.

मैं अपनी प्लेट ले कर एक कोने में खड़ी थी. उसी वक्त एक गंभीर नशीली आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘आप कैसी हैं मिस सुहाना?’’

मैं ने सिर उठा कर सामने देखा. एक बेहद हैंडसम यूनानी हुस्न का शाहकार सामने खड़ा था. शानदार पर्सनैलिटी, तीखे नैननक्श, ऊंची नाक, नशीली आंखें. मैं बस देखती रह गई. मेरी आवाज नहीं निकल सकी. रशना ने कहा,

‘‘सुहाना, बौस तुम से कुछ पूछ रहे हैं.’’
मैं जैसे होश में आ गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ठीक हूं सर.’’
‘‘हमारी फर्म में कोई परेशानी तो नहीं है?’’
‘‘नहीं सर, कोई प्रौब्लम नहीं है. सब ठीक है.’’

मैं बौस को देख कर हैरान रह गई. कितने खूबसूरत, कितने शानदार पर उतने ही मिलनसार और विनम्र. अभी खाना चल ही रहा था कि बादल घिरने लगे. जब मैं घर जाने के लिए खड़ी हुई तो अच्छीखासी बारिश होने लगी. रशना भी सोच में पड़ गई. जब हम बाहर निकले तो बौस इमरान साहब कहने लगे, ‘‘सुहाना, अभी टैक्सी मिलना मुश्किल है. तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें तुम्हारे घर ड्रौप कर दूंगा.’’

रशना ने फोर्स कर के मुझे उन की कार में बिठा दिया. मैं सकुचाते हुए बैठ गई. मैं जिंदगी में इतने खूबसूरत मर्द के साथ पहली बार बैठी थी. मेरा दिल अजीब से अंदाज से धड़क रहा था. मैं ने कहा, ‘‘सर, आप ने मेरे लिए बेवजह तकलीफ उठाई. आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

इमरान साहब हंस पड़े, फिर कहा, ‘‘नहीं भई, हम इतने अच्छे इंसान नहीं हैं. अगर तुम भीग जाती तो बीमार पड़ जातीं. 2-3 दिन हमारे औफिस को इतनी अच्छी वर्कर से महरूम रहना पड़ता और फिर ये मेरा फर्ज भी तो है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप बेहद शरीफ इंसान हैं, बहुत नेक और बहुत खयाल रखने वाले.’’
उन्होंने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप को मुझ पर यकीन है तो मेरी एक बात मानेंगी?’’
‘‘जी कहिए, आप क्या चाहते हैं?’’
‘‘सामने एक अच्छा रेस्टोरेंट है, वहां एक कप कौफी पी जाए.’’

मैं सोच में पड़ गई, ‘‘मैं कभी ऐसे होटल में नहीं गई. मुझे वहां के तौरतरीके नहीं आते. मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ मैं ने कहा. इमरान साहब बोले, ‘‘कोई बात नहीं, हालात सब सिखा देते हैं. आप की इस बात ने मेरी नजरों में आप की इज्जत और भी बढ़ा दी. क्योंकि आप ने मुझ से अपनी हालत छिपाई नहीं, यह अच्छी बात है.’’

उन्होंने कार रेस्टोरेंट के सामने रोक दी. हम अंदर गए, बहुत शानदार हौल था. वहां का माहौल खुशनुमा था. मैं इस से पहले कभी किसी होटल में नहीं गई थी. इमरान साहब ने कौफी का और्डर दिया, फिर मेरे काम की, मेरे मिजाज की तारीफ करते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘अच्छा ये बताइए, आप मेरे बारे में क्या सोचती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘आप ने पार्टी में मुझे मेरा नाम ले कर पुकारा था, आप तो मुझ से मिले भी नहीं थे?’’
‘‘आप के सवाल में बड़ी मासूमियत है. आप मेरे औफिस में काम करती हैं और एक अच्छा बौस होने के नाते मुझे अपने साथियों के बारे में पूरी जानकारी रखना चाहिए. मैं तो यह भी जानता हूं कि आप औफिस की दूसरी लड़कियों से अलग हैं. अपने काम से काम रखने वाली.’’

मैं हैरान रह गई. हम कौफी पी कर बाहर आ गए. वह कहने लगे, ‘‘बहुत शुक्रिया, आप ने अपना समझ कर मुझ पर यकीन किया. आज तो आप से ज्यादा बातें न हो सकीं. खैर, अगली मुलाकात में बातें होंगी.’’

मैं देर होने से अम्मा के लिए परेशान थी. मैं ने सोच लिया था कि उन्हें इमरान साहब के बारे में कुछ नहीं बताऊंगी वरना उन की नींद उड़ जाएगी. मेरा घर आ गया. मैं ने गली के बाहर ही गाड़ी रुकवाते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे यहीं उतार दें.’’

‘‘मैं आप की मजबूरी समझता हूं. मैं तो चाहता था कि आप को आप के दरवाजे पर ही उतारूं.’’
मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.

दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.

कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?

उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’

मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.

करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’

मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’ मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’

इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’
‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’

‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’
‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’

उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.
शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’

मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’

मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’
‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.

वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.
जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा.

उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’
‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’
‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’

वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’

‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’

मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.
दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’
‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’ फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.

‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’
‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’
‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’
‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’
शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’

इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’
इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’

मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’ अम्मा को इत्मीनान हो गया.

दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’

मेरा दिल जोरमैं ने शरमा कर कहा से धड़क रहा था. , ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’

‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’
‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’
‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’

मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’
‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’
‘‘रजा साहब बाकायदा मेरा रिश्ता ले कर तुम्हारी अम्मा के पास जाएंगे. तुम्हारी अम्मा को राजी कर लेंगे, पर पहले तुम्हारी मंजूरी जरूरी है.’’

मैं उन के कदमों में झुक गई. उन्होंने मुझे उठा कर सीने से लगा लिया. मेरे तड़पते दिल व प्यासी रूह को जैसे सुकून मिल गया. हम दोनों रोज मिलने लगे पर दुनिया से छिप कर. मैं तो अपने महबूब को पा कर जैसे पागल हो गई थी.

सब से बड़ी खुशी की बात यह थी कि उन्होंने अपनी मोहब्बत का इजहार शादी के पैगाम के बाद किया था. वह कहते थे, ‘‘सुहाना, मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी देना चाहता हूं.’’ और मैं कहती, ‘‘बस थोड़ा सा इंतजार मेरे महबूब.’’
‘‘जैसी तुम्हारी मरजी.’’ कह कर वह चुप हो जाते.

अब हालात बदल गए थे. मैं औफिस में उन के करीब रहती, हमारे बीच में बहुत से फैसले हो गए थे. मां की आंखों की रोशनी चली गई थी. हमारी मोहब्बत तूफान की तरह बढ़ रही थी. मैं अपनी मां की नसीहत, अपनी मर्यादा भूल कर सारी हदें पार कर गई. औफिस के बाद हम काफी वक्त साथ गुजारते. इमरान साहब ने मुझे कीमती जेवर, महंगे तोहफे और कार देनी चाही, पर मैं ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ये सब मैं शादी के बाद कबूल करूंगी.

मैं ने उन पर अपना सब कुछ निछावर कर दिया. एक गरीब लड़की को ऐसा खूबसूरत और चाहने वाला मर्द मिले तो वह कहां खुद पर काबू रख सकती है. मैं शमा की तरह पिघलती रही, लोकलाज सब भुला बैठी.

अली रजा साहब उन दिनों छुट्टी पर गए हुए थे. मैं ने इमरान हसन से कहा, ‘‘अब आप अम्मा से मेरे रिश्ते के लिए बात कर लीजिए. आप अम्मा के पास कब जाएंगे?’’
‘‘जब तुम कहोगी, तब चले जाएंगे.’’
‘‘अच्छा, परसों चले जाइएगा.’’
‘‘जानेमन, अभी अली रजा साहब छुट्टी पर हैं. वह आ जाएं, कोई बुजुर्ग भी तो साथ होना चाहिए.’’

मैं खामोश हो गई. अब वही मेरी जिंदगी थे. दिन गुजरते रहे वह अम्मा के पास न गए. अली रजा साहब भी पता नहीं कितनी लंबी छुट्टी पर गए थे. धीरेधीरे इमरान साहब का रवैया मेरे साथ बदलता जा रहा था. अली रजा साहब छुट्टी से वापस आ गए. मैं ने इमरान साहब से कहा, ‘‘आप कुछ उलझेउलझे से नजर आते हैं. क्या बात है?’’

‘‘कुछ बिजनैस की परेशानियां हैं. लाखों का घपला हो गया है. मुझे देखने के लिए बाहर जाना पड़ेगा.’’
‘‘आप अम्मा से मिल लेते तो बेहतर था.’’
‘‘हां, उन से भी मिल लेंगे, पहले ये मसला तो देख लें. लाखों का नुकसान हो गया है.’’
उन का लहजा रूखा और सर्द था. उन्होंने मुझ से कभी इस तरह बात नहीं की थी. मैं परेशान हो गई. रात भर बेचैन रही. मैं ने फैसला कर लिया कि सवेरे अली रजा साहब से कहूंगी कि वह इमरान साहब को ले कर अम्मा के पास मेरे रिश्ते के लिए जाएं. वह मुझे बहुत मानते हैं, वह जरूर ले जाएंगे.

दूसरे दिन मैं इमरान के औफिस में बैठी उन का इंतजार कर रही थी. 12 बजे तक वह नहीं आए, मैं अली रजा साहब के पास गई और उन से पूछा, ‘‘सर, अभी तक बौस नहीं आए?’’
अली रजा साहब बोले, ‘‘वह तो कल रात को फ्लाइट से स्वीडन चले गए.’’
मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह मुझे बिना बताए बाहर चले गए. मुझ से मिले भी नहीं.

‘‘मेरे लिए कुछ कह गए हैं?’’
‘‘हां, इमरान साहब की वापसी का कोई यकीन नहीं है. 7-8 महीने या साल-2 साल भी लग सकते हैं. कारोबार वहीं से चलता है. उन्हें वहां का बिगड़ा हुआ इंतजाम संभालना है. आप अपनी सीट पर वापस आ जाइए.’’ अली रजा साहब ने सपाट लहजे में कहा.
मुझे चक्कर सा आ गया. मैं ने एक हफ्ते की छुट्टी ली और घर आ गई.

कुदरत के भी अजीब खेल हैं. मां की रोशनी इसलिए छिन गई थी ताकि वह मेरी यह हालत न देख सकें. मैं अपने कमरे में पड़ी रहती, रोती रहती. मुझे एक पल का चैन नहीं था. पलपल मर रही थी मैं.
एक हफ्ते बाद एक उम्मीद ले कर औफिस पहुंची. शायद कोई अच्छी खबर आई हो. मैं ने अली रजा साहब से पूछा,

‘‘इमरान साहब की कोई खबर आई?’’
‘‘हां आई, ठीक हैं. औफिस के बारे में डिसकस करते रहे. क्या तुम्हें उन का इंतजार है?’’
‘‘जी, मैं उन की राह देख रही हूं.’’
‘‘बेकार है, जब वे आएंगे तो तुम्हें भूल चुके होंगे.’’

मेरी आंखों से आंसू बह निकले. उन्होंने दुख से कहा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता तुम्हें क्या कहूं? तुम जैसी मासूम व बेवकूफ लड़कियां आंखें बंद कर के भेडि़ए के सामने पहुंच जाती हैं. तुम्हारे घर वाले लड़कियों को अक्ल व दुनियादारी की बात क्यों नहीं सिखाते? तुम्हें यह क्यों नहीं समझाया गया, जहां तुम जा रही हो, वे लोग कैसे हैं. उन का स्टाइल क्या है. वहां तुम जैसी लड़कियों की क्या कीमत है. सब जानते हैं, ये अमीरजादे साथ नहीं निभाते, बस कुछ दिन ऐश करते हैं. पर तुम लोग उन्हें जीवनसाथी समझ कर खुद को लुटा देती हो.’’

मैं सिसकने लगी, ‘‘रजा साहब, मैं ने ये सब जानबूझ कर नहीं किया, दिल के हाथों मजबूर थी. उन की झूठी मोहब्बत को सच्चाई समझ बैठी.’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘सुहाना, अगर तुम अपनी इज्जत गंवा चुकी हो तो चुप हो जाओ, चिल्लाने से कुछ हासिल नहीं होगा. वह लौट करनहीं आएगा, ऐसा वह कई लड़कियों के साथ पहले भी कर चुका है. अब तुम अपने फ्यूचर की  फिक्र करो. बाकी सब भूल जाओ.’’

सुहाना अपनी कहानी सुनाते हुए बोली, ‘‘मैं ने सब समझ लिया. वक्त से पहले अपनी बरबादी को स्वीकार कर लिया. मेरे पास सिवा पछताने के और कुछ नहीं बचा था. मैं ने औफिस जाना छोड़ दिया. मां से बहाना कर दिया. उन्होंने ज्यादा पूछताछ की तो झिड़क दिया.’’

वक्त गुजरता रहा. मां चुप सी हो गईं. गुजरबसर जैसेतैसे हो रही थी. चंद माह गुजर गए और फिर पड़ोसियों ने मां से कह दिया. अम्मा ने मुझे टटोल कर देखा और एक दर्दभरी चीख के साथ बेहोश हो कर नीचे गिर गई. सदमा इतना बड़ा था कि वह बरदाश्त न कर सकी और फिर कभी नहीं उठ सकीं.

पेट में पलती औलाद ने मुझे खुदकशी करने न दी. फिर मेरी बदनसीब बेटी अदीना पैदा हो गई. मेरे जिस्म का एक टुकड़ा मेरी गोद में था. मैं ने अपना घर बेच दिया, एक गुमनाम मोहल्ले में एक कमरा खरीद कर रहने लगी. मैं ने अपनी पुरानी सब बातें भुला दीं. मकान से अच्छी रकम मिली थी. फिर मैं थोड़ाबहुत सिलाईकढ़ाई का काम करने लगी.

हम मांबेटी की अच्छी गुजर होने लगी. मैं ने अपनी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश की. उसे दुनिया की हर ऊंचनीच समझाई. उस से वादा लिया कि वह मुझ से कोई बात नहीं छिपाएगी. अदीना बेइंतहा हसीन निकली. मैं ने उसे अच्छी तालीम दिलाई. वह बीएससी कर रही थी. एक दिन वह मुझ से कहने लगी, ‘‘मम्मी, मेरी एक बात मानोगी?’

’‘कहो.’’
‘‘मैं नौकरी करना चाहती हूं. मेरे एग्जाम भी पूरे हो गए हैं. रिजल्ट भी जल्द आएगा.’’
‘‘नहीं बेटी, नौकरी ढूंढना और करना बड़ा कठिन है.’’
‘‘मम्मी, मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई है.’’
‘‘कहां मिल गई नौकरी तुम्हें?’’
‘‘एक प्राइवेट फर्म है. फर्म के मालिक ने मुझे खुद नौकरी का औफर दिया है. मेरी इमरान साहब से कालेज के फंक्शन में मुलाकात हुई थी. वह चीफ गेस्ट थे. इतने नेक और सादा मिजाज आदमी हैं कि देख कर आप दंग रह जाएंगी.’’
‘‘कौन?’’ मुझे जैसे बिच्छू ने डंक मारा.

‘‘इमरान हसन साहब. बड़े हमदर्द इंसान हैं.’’ अदीना उन के बारे में पता नहीं क्याक्या बोलती रही. मुझे लगा, मेरे चारों तरफ जहन्नुम की आग दहक रही हो. फिर मैं ने खुद पर काबू पाया और कुछ सोच कर अदीना को नौकरी की इजाजत दे दी.

वह मेरी हां सुन कर खुशी से खिल उठी. साथ ही मैं ने एक काम किया. चुपचाप उस का पीछा करना शुरू कर दिया. मैं ने इमरान हसन को देखा, वह उतना ही खूबसूरत डैशिंग और खतरनाक था.
उम्र की अमीरी ने उसे और ग्रेसफुल बना दिया था. मैं उस के एकएक रूप एकएक चाल से वाकिफ थी. फिर मैं ने अदीना को अपनी गमभरी दास्तान सुनाई. वह कांप उठी, उस ने चीख कर पूछा, ‘‘ममा, कौन था वह कमीना बेदर्द इंसान?’’

‘‘मैं खुद उस बेगैरत की तलाश में हूं.’’
‘‘काश! वह मिल जाए.’’ अदीना ने गुर्राते हुए कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या करेगी तू उस का?’’
‘‘खुदा की कसम है मम्मी, मैं उसे जान से मार डालूंगी. ऐसा हाल करूंगी कि दुनिया देखेगी.’’

मुझे सुकून मिल गया, मैं ने अदीना की परवरिश इसी तरह की थी. ऐसा ही बनाया था उसे. मेरी निगरानी जारी थी. मैं चुपचाप उस का पीछा करती रही. उस दिन भी मैं अदीना से ज्यादा दूर नहीं थी, जब वह अदीना को अपनी शानदार कार में कहीं ले जा रहा था. वह अदीना को अपने घर ले गया. मैं भी छिप कर अंदर आ गई और दरवाजे के पीछे खड़ी हो गई.

मैं सारे रास्तों से वाकिफ थी. घर सुनसान पड़ा था. हलका अंधेरा था. मेरे कानों में इमरान हसन की नशीली आवाज पड़ी, ‘‘अदीना, तुम मेरी जिंदगी में बहार बन कर आई हो. मैं ने सारी जिंदगी तुम जैसी हसीना की तलाश में तनहा गुजार दी.’’

‘‘सर, ये आप क्या कह रहे हैं. मैं तो आप पर बहुत ऐतमाद करती थी. आप पर बहुत भरोसा है मुझे.’’
‘‘हां ठीक है, पर मोहब्बत तो उफनती नदी है. उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. तुम्हारी चाहत मेरी रगरग में समा गई है. मेरी जान, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘सर, ये आप गलत कर रहे हैं. आप मुझे यहां यह कह कर लाए थे कि कुछ लेटर्स भेजने हैं.’’
‘‘ये मेरा घर है और तुम अपनी मरजी से मेरे घर आई हो. अब यहां जो कुछ होगा, उस में तुम्हारी रजा भी समझी जाएगी. इस में मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर तुम बदनाम हो जाओगी. लोग कहेंगे तुम मेरे सूने घर में क्यों आई थीं?’’

‘‘सर, आप मुझे काम के बहाने लाए थे.’’
‘‘कौन सुनेगा, तुम्हारी बकवास.’’ वह हंस कर आगे बढ़ा. उसी वक्त मैं अंदर दाखिल हो गई. मैं ने कहा, ‘‘अदीना, यही है वह आदमी जिस की कहानी मैं ने तुम्हें सुनाई थी. यही है वह वहशी दरिंदा, जिस ने मेरी इज्जत लूटी थी.’’

इमरान मुझे देख कर हैरान रह गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘इमरान, ये तेरी बेटी है. तेरा गुनाह है.’’
फिर हम दोनों मसरूफ हो गए. अदीना ने अपना वादा निभाया. उसे कोने में रखा डंडा मिल गया. हम ने अपना इंतकाम लिया. इज्जत के लुटेरे उस शैतान को हम ने खत्म कर दिया. हम ने बहुत बड़ा नेक काम किया है और कई लड़कियों की इज्जत बचाई है. भले ही आप हमें सजा दीजिए, हमें मंजूर है. सुहाना चुप हो गई.

यह मेरी जिंदगी का सब से संगीन केस था. मैं बड़ी उलझन में था. अदालत में मैं सरकारी वकील की हैसियत से खड़ा था. मुझे इन मांबेटी पर संगीन जुर्म साबित करना था. उन के खिलाफ बोलना था, पर मेरा जमीर इस बात पर राजी नहीं था. मेरा दिल कहता था कि मैं यह मुकदमा हार जाऊं.

मुझे नहीं मालूम मैं ये मुकदमा ठीक से लड़ पाऊंगा या नहीं. मेरी जबान जैसे गूंगी हो गई थी. मैं अपनी बात कह नहीं पा रहा था. जुबान लड़खड़ा रही थी. और सचमुच मैं यह मुकदमा हार गया. मांबेटी सजा से बच गईं. मैं सही था या नहीं, कह नहीं सकता. आप खुद फैसला कीजिए. द्य

तांत्रिकों ने इलाज के नाम पर युवती को डेढ़ महीने कमरे में बंद रखा

आज के युग में तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने और ठगने वाले तथाकथित तांत्रिक समाज में कोढ़ की तरह हैं. आश्चर्य की बात यह है कि इन के छलावे में पढ़ेलिखे लोग भी आ जाते हैं. ताराचंद और उन की पत्नी उर्मिला बहकावे में न आए होते तो आज उन की बेटी जिंदा होती.

‘‘भै या, दरवाजा खोलो.’’ गेट की कुंडी खटखटाते हुए मोहिनी ने तेज आवाज में कहा.
घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो मोहिनी ने और तेज आवाज लगाते हुए एक बार फिर दरवाजे की कुंडी खटखटाई. इस बार घर के अंदर से किसी पुरुष की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘भैया, मैं हूं.’’ मोहिनी ने बाहर से जवाब दिया.
इस के बाद घर के अंदर से किसी के चल कर आने की पदचाप सुनाई दी तो मोहिनी आश्वस्त हो गई.
दरवाजा श्याम सिंह ने खोला. गेट पर छोटी बहन मोहिनी को देख कर उस ने पूछा, ‘‘मोहिनी, रात को आने की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई. घर पर मम्मीपापा तो सब ठीक हैं न?’’

‘‘भैया, मम्मीपापा तो सब ठीक हैं, लेकिन बड़ी दीदी ठीक नहीं हैं.’’ मोहिनी ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘भैया, अंदर चलो. मैं सारी बात बताती हूं.’’ मोहिनी श्याम सिंह को घर के अंदर ले गई.
श्याम सिंह ने पहले घर का दरवाजा बंद किया, फिर मोहिनी को ले कर अपने कमरे में आ गया. मोहिनी से कमरे में बिछी चारपाई पर बैठने को कह कर वह उस के लिए मटके से पानी का गिलास भर कर ले आया.

गिलास मोहिनी के हाथ में देते हुए श्याम सिंह ने कहा, ‘‘मोहिनी, तुम पहले पानी पी लो, फिर बताओ ऐसी क्या बात हुई, जिसे ले कर तुम परेशान हो.’’
मोहिनी एक ही बार में पूरा पानी पी गई. फिर लंबी सांस ले कर कुछ देर चुपचाप बैठी रही. मोहिनी को चुप बैठा देख श्याम सिंह बेचैन हो गया. उस ने मोहिनी के सिर पर स्नेह से हाथ रख कर पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है?’’

चुप बैठी मोहिनी की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘भैया, आप को यह तो पता ही है कि अनीता दीदी बहुत दिनों से बीमार थीं. दीदी 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन ज्यादा बीमार हो गईं. फिर अगले दिन बेहोश हो गई थीं. उस दिन के बाद से मैं ने दीदी को नहीं देखा, पता नहीं वह जिंदा भी हैं या नहीं?’’
श्याम सिंह ने बहन की आंखों में डबडबा आए आंसू पोंछ कर उस के इस शक की वजह पूछी.

‘‘मुझे शक इसलिए है कि घर में जिन तांत्रिकों ने डेरा जमा रखा है, वे मुझे दीदी के कमरे में जाने तक नहीं देते. दीदी के कमरे से बदबू आती है, लेकिन तांत्रिक दिन भर अगरबत्ती जलाए रखते हैं और इत्र छिड़कते रहते हैं ताकि बदबू न आए.’’

बहन की बातें सुन कर श्याम सिंह चिंता में पड़ गया. उसे पता था कि उस की बड़ी बहन अनीता बीमार रहती है और कुछ तांत्रिक उस का इलाज करने के नाम पर लंबे समय से घर में डेरा जमाए हुए हैं. उन तांत्रिकों ने उस के मातापिता को भी अपने जाल में कुछ इस तरह फंसा रखा था कि वे उन के कहे अनुसार ही चलते थे.

श्याम सिंह ने मोहिनी से पूछा, ‘‘मम्मीपापा को इस बात का पता है या नहीं कि दीदी के कमरे से बदबू आ रही है?’’
‘‘भैया, तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर मम्मीपापा को अंधविश्वास में इतना डुबो दिया है कि वे उन की बातों से आगे कुछ नहीं सोचतेसमझते.’’ मोहिनी ने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अब तो तांत्रिक मम्मीपापा को भी दीदी के कमरे में नहीं जाने देते.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद मोहिनी ने कहा, ‘‘भैया, कुछ करो वरना वे तांत्रिक मम्मीपापा और मुझे भी मार देंगे.’’
‘‘तू चिंता मत कर, हम अभी थाने चलते हैं और उन तांत्रिकों की करतूत पुलिस को बता देते हैं.’’
यह बीती 27 फरवरी की रात करीब 9-10 बजे की बात है. श्याम सिंह छोटी बहन मोहिनी को साथ ले कर गंगापुर सिटी थाने जा पहुंचा.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर को श्याम सिंह ने सारी बातें बताईं. मामला गंभीर था. ड्यूटी अफसर ने सूचना दे कर थानाप्रभारी दीपक ओझा को बुलवाया.
थानाप्रभारी ओझा ने श्याम सिंह से पूरी बात पूछी और लिखित में शिकायत देने को कहा. श्याम सिंह ने पुलिस को लिखित शिकायत दे दी. थानाप्रभारी ओझा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी नरेंद्र शर्मा को सारी जानकारी दी.

इस पर डीएसपी ने कहा कि वे गंगापुर सिटी थाने आ रहे हैं और अभी तुरंत काररवाई करेंगे.
कुछ ही देर में डीएसपी नरेंद्र शर्मा थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी दीपक ओझा से सारा मामला समझ कर शर्मा ने कहा कि यह एक लड़की के जीवनमरण से जुड़ा मामला है. पता नहीं कि वह लड़की जिंदा भी है या नहीं.

इसलिए हमें अभी रात में ही काररवाई करनी होगी. उन्होंने थानाप्रभारी को तुरंत एक टीम तैयार करने को कहा. इसी के साथ उन्होंने श्याम सिंह को बुला कर उस से तांत्रिकों के बारे में कुछ सवाल पूछे. इतनी देर में पुलिस टीम तैयार हो गई. तब तक रात के करीब 11 बज गए थे. डीएसपी नरेंद्र शर्मा के नेतृत्व में गंगापुर सिटी थानाप्रभारी दीपक ओझा अपनी टीम के साथ श्याम सिंह और मोहिनी को साथ ले कर उन के बताए पते पर रवाना हो गए.

10-15 मिनट में पुलिस टीम इंद्रा मार्केट पहुंच गई. मोहिनी अपने मातापिता के साथ इसी मार्केट में बने मकान में रहती थी. श्याम सिंह ने इंद्रा मार्केट में एक जगह पुलिस टीम को रोक कर एक मकान की ओर इशारा कर के बताया कि यह हमारा मकान है.

पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटक रहा था. पुलिस को पता लगा कि घर के लोग और तांत्रिक अंदर ही हैं. इस पर पुलिस टीम ने पड़ोस के मकान से हो कर उस घर में प्रवेश किया. पुलिस टीम जब घर के अंदर पहुंची तो हैरान रह गई. एक कमरे में जमीन पर लगे बिस्तर पर अनीता की लाश पड़ी थी. उस की लाश पर चादर डाली हुई थी. अनीता के शरीर पर कपड़े भी नहीं थे. शरीर पर कई जगह पट्टियां बंधी हुई थीं.

घर में 6 लोग मौजूद थे. इन में मोहिनी के पिता ताराचंद राजपूत और मां उर्मिला देवी के अलावा 4 तांत्रिक थे. पुलिस ने ताराचंद और उस की पत्नी उर्मिला से पूछताछ की तो पता चला कि तांत्रिक उन्हें लगातार डरातेधमकाते रहे, उन्होंने अनीता का इलाज नहीं करवाने दिया. तांत्रिक उन से कहते रहे कि अनीता जीवित है और जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

इस के लिए तांत्रिक कमरे में तंत्रमंत्र का नाटक करते रहे. पुलिस रात को ही अनीता के पिता ताराचंद राजपूत, मां उर्मिला के अलावा चारों तांत्रिकों को पकड़ कर गंगापुर सिटी थाने ले आई. पुलिस ने मकान सीज कर के वहां पुलिस कांस्टेबल तैनात कर दिया.

थाने ला कर चारों तांत्रिकों से पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि उस दिन रात घिरते ही मोहिनी मौका देख कर बिना किसी को बताए घर से निकल गई थी. वह अपने भाई श्याम सिंह को तांत्रिकों की करतूत बताने के लिए गई थी. तांत्रिकों को जब पता चला कि मोहिनी घर से गायब है तो एक तांत्रिकसपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा उस की तलाश में घर से निकला.

जाते समय गजेंद्र ने घर के बाहर से ताला लगा दिया था. इसी वजह से वह मौके पर नहीं मिला. बाद में वह फरार हो गया था. पुलिस ने 28 फरवरी को अनीता के मातापिता और चारों तांत्रिकों को गैरइरादतन हत्या और आपराधिक षडयंत्र की धाराओं में गिरफ्तार कर लिया. इन तांत्रिकों में सपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा की पत्नी मंजू, मथुरा निवासी बंटी उर्फ संदीप शर्मा, महूकलां निवासी नीटू चौधरी और धूलवास निवासी गोपाल सिंह शामिल थे.

उसी दिन पुलिस ने विधिविज्ञान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की टीम बुला कर मौके की जांचपड़ताल कराई. इस के बाद अनीता का शव सिविल अस्पताल पहुंचाया गया. शव का पोस्टमार्टम अस्पताल में 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराया गया. मैडिकल बोर्ड में डा. बी.एल. बैरवा, डा. कपिल जायसवाल और डा. मनीषा गोयल शामिल थीं.

बाद में डा. बी.एल. बैरवा ने बताया कि शव काफी दिनों पुराना था. जांच के लिए विसरा ले कर विधिविज्ञान
प्रयोगशाला भेजा गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने अनीता का शव अंतिम संस्कार के लिए उस के भाई को सौंप दिया.

पुलिस की पूछताछ और जांचपड़ताल में अंधविश्वास की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—
रणथंभौर अभयारण्य बाघों की शरणस्थली के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है. यह बाघ अभयारण्य राजस्थान के सवाई माधोपुर में है. इसी सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी है. गंगापुर सिटी के इंद्रा मार्केट में ताराचंद राजपूत अपनी पत्नी उर्मिला और परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में 3 बेटे श्याम सिंह, गोविंद और नरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं अनीता और मोहिनी.

अनीता कई साल पहले से बीमार रहती थी. ताराचंद ने बेटी का इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. ताराचंद पुराने विचारों के आदमी थे. कुछ लोगों ने उन्हें सयानेभोपों से बेटी का इलाज कराने की बात कही. उस दौरान तांत्रिक गजेंद्र और उस के साथी गोपाल सिंह, नीटू चौधरी और बंटी उर्फ संदीप शर्मा ताराचंद के संपर्क में आए. इन लोगों ने अनीता पर भूतप्रेत का साया बताया और ताराचंद के घर पर ही आ कर तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करते रहे.

उन्होंने अपने अंधविश्वासताराचंद को इस कदर वशीभूत कर लिया कि उस की सोचनेसमझने की शक्तिकमजोर पड़ती गई. ताराचंद पूरी तरह उन तांत्रिकों के चंगुल में फंस गया. 

कुछ दिन पहले इन तांत्रिकों ने ताराचंद से कहा कि अनीता अब बिलकुल ठीक हो गई है. साथ ही उसे यह भी बताया कि तंत्रमंत्र से उन्होंने अनीता के शरीर में देवी का प्रवेश करवा दिया है. इस के बाद इन तांत्रिकों ने अनीता को मोहरा बना कर ताराचंद के मकान के एक कमरे में मंदिर बना दिया. उस मंदिर में उन्होंने अनीता को एक गद्दी पर बैठा दिया.

बाद में ये तांत्रिक अनीता के शरीर में देवी होने की बात प्रचारित करके तंत्रमंत्र से दूसरे लोगों का इलाज करने लगे. गांवदेहात के नासमझ लोग बहकावे में आ कर ताराचंद के मकान पर इन तांत्रिकों के पास आने लगे. ये लोग इलाज करने के बहाने लोगों से किसी न किसी रूप में जेवर व पैसा आदि वसूलने लगे.

अपने घर में तांत्रिकों का डेरा देख कर ताराचंद के बेटे विरोध करने लगे. उन्होंने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं माने. तीनों बेटे बड़े हो गए थे. अनीता भी बड़ी थी.
पहले बीमार रहने और फिर तांत्रिकों के चक्कर में पड़ने की वजह से उस की शादी की उम्र भी निकल गई थी. बड़ी बहन की शादी नहीं होने और मातापिता के लगातार उन तांत्रिकों पर बढ़ते विश्वास के कारण घर में कलह रहने लगी.

रोजरोज की कलह से तंग आ कर तीनों भाई अलगअलग रहने लगे. उन्होंने अपने मातापिता का मकान छोड़ दिया. इन में 2 भाई श्याम सिंह और गोविंद गंगापुर सिटी में ही नहर रोड पर रहने लगे थे. तीसरा भाई नरेंद्र हरियाणा के बल्लभगढ़ में जा कर रहने लगा था. बड़ी बेटी अनीता और छोटी बेटी मोहिनी मातापिता के साथ इंद्रा मार्केट में अपने मकान में ही रहती रहीं.

तांत्रिकों ने ताराचंद को पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले रखा था. अनीता के बहाने उन्हें लोगों को ठगने का ठिकाना मिल गया था. हालांकि इन सभी तांत्रिकों के अपने घरपरिवार थे, लेकिन ये दिनरात ताराचंद के मकान पर जब चाहे आतेजाते रहते थे.

इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर अनीता ज्यादा बीमार हो गई. इन तांत्रिकों ने ताराचंद और उस की पत्नी को डरा दिया कि अगर उसे अस्पताल ले गए तो यह मर जाएगी. इस का इलाज हम ही करेंगे.
ताराचंद पहले से ही तांत्रिकों के अंधविश्वास में डूबा हुआ था. अनीता की मां उर्मिला भी उन तांत्रिकों को बेटी पर तंत्रमंत्र करने से मना नहीं कर सकी. तांत्रिकों ने अनीता पर तंत्रमंत्र किया, लेकिन अगले ही दिन यानी 15 जनवरी को अनीता की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. वह बेहोश हो गई.

इस के बाद उन तांत्रिकों ने अनीता को एक कमरे में बंद कर दिया और तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करने की बात कहते रहे. उस कमरे में केवल ये तांत्रिक ही आतेजाते थे. ये लोग दूसरे लोगों को उस कमरे में नहीं जाने देते थे.

ताराचंद और उर्मिला के बहुत जिद करने पर उन्हें कभीकभार उस कमरे में जाने देते थे. मोहिनी को भी वे लोग अनीता के कमरे में नहीं जाने देते थे. तांत्रिक मोहिनी को घर से बाहर भी नहीं निकलने देते थे.
ताराचंद या उर्मिला जब उस कमरे में जाते तो अनीता उन्हें बिस्तर पर लेटी ही मिलती. कमरे में दिनरात अगरबत्ती जलती रहती थीं. कमरा इत्र की खुशबू से महकता रहता था. तांत्रिक कहते थे कि अनीता जीवित है,

लेकिन अभी वह तुम से बात नहीं कर सकती. कुछ दिन ठहर जाओ, वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी, तब बात कर लेना. ताराचंद और उर्मिला उन तांत्रिकों की बातों पर भरोसा कर के चुप रह जाते थे.

मोहिनी उसी घर में रह रही थी. वह नहीं समझ पा रही थी कि बहन अगर जीवित है तो कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती? उसे बहन से मिलने क्यों नहीं दिया जाता? कुछ दिनों से उसे अनीता के कमरे से दुर्गंध आने लगी थी. कई बार वह उस कमरे में जाने की कोशिश करती, लेकिन तांत्रिक उसे रोक देते थे. उस कमरे में लगातार सुगंधित अगरबत्ती जलने और इत्र का छिड़काव होने से दुर्गंध इतनी ही थी कि घर में लेगों को महसूस हो जाए. घर से बाहर तक दुर्गंध नहीं जा रही थी.

लगातार कई दिनों तक बदबू आने से मोहिनी को शक हुआ कि दाल में जरूर कुछ काला है. उसे सब से ज्यादा चिंता अपनी बहन अनीता की थी, इसीलिए 27 फरवरी की रात मौका मिलते ही वह घर से निकल कर सीधे नहर रोड स्थित अपने भाई श्याम सिंह के घर पहुंच गई थी.

भाई को तांत्रिकों की सारी करतूतें बता कर उस ने अपना शक जाहिर कर दिया था. इस के बाद श्याम सिंह ने कोतवाली थाने पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस ने उस के मातापिता सहित चारों तांत्रिकों को गिरफ्तार कर लिया.

करीब 35 साल की बीमार युवती को इलाज के नाम पर डेढ़ महीने तक कमरे में बंद रखने और इस बीच उस की मौत हो जाने के बाद उस का शव घर में ही रख कर तंत्रमंत्र करने वाले तांत्रिकों को डर था कि मोहिनी उन का भेद खोल सकती है.

इसलिए वे उसे घर से बाहर नहीं निकलने देते थे. एक दिन मोहिनी ने उन तांत्रिकों से अनीता की मौत की आशंका जताई तो उन्होंने पिस्तौल दिखा कर उसे डरायाधमकाया कि उस ने अगर इस बारे में किसी से जिक्र किया तो अच्छा नहीं होगा.

तांत्रिकों ने अनीता के मातापिता और बहन मोहिनी को उन के ही घर में एक तरह से कैद कर के रखा हुआ था. उन के बाहर आनेजाने, किसी को फोन करने, मिलनेजुलने और बाहर की दुनिया से किसी तरह का संबंध रखने की सख्त मनाही थी.

तांत्रिकों व उन के साथियों का 24 घंटे उन पर अघोषित पहरा रहता था.
तांत्रिक और उन के साथी अपने लिए कोई सामान खरीदने बाहर जाते तो वे घर के बाहर ताला लगा कर जाते थे ताकि बाहर का कोई आदमी अंदर न आ सके और अंदर से कोई बाहर न जा सके.

पुलिस ने तांत्रिकों से पूछताछ के बाद नीटू चौधरी की निशानदेही पर ताराचंद के मकान में उस कमरे से एक पिस्तौल और 8 जिंदा कारतूस बरामद किए, जिस कमरे में तांत्रिकों ने मंदिर बना रखा था. इसी कमरे की तलाशी में पुलिस को लाखों रुपए के जेवरात भी मिले. ये जेवरात ताराचंद और उस के परिवार के नहीं थे, बल्कि तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों से ठगे थे. पुलिस ने अवैध हथियार मिलने पर नीटू चौधरी और फरार गजेंद्र शर्मा के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत अलग मामला दर्ज किया.

कथा लिखे जाने तक एक तांत्रिक गजेंद्र शर्मा फरार था. गिरफ्तार किए गए चारों तांत्रिक और मृतका अनीता के मातापिता अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में जेल में थे. गंगापुर सिटी थाने के सबइंसपेक्टर महेंद्र राठी इस मामले की जांच कर रहे थे.

यह विडंबना ही है कि विज्ञान के इस युग में तंत्रमंत्र के नाम पर ठगों ने अपना ऐसा जाल बिछा रखा है कि नासमझ और गांवदेहात को छोडि़ए, पढ़ेलिखे और अमीर लोग भी अंधविश्वास में फंस कर इन के बहकावे में आ जाते हैं. लेकिन यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है कि करीब एकडेढ़ महीने तक मृत युवती के शव को जीवित करने के नाम पर तांत्रिक कथित तौर पर जादूटोना करते रहे. दूसरों का भविष्य बताने वाले इन तांत्रिकों को खुद के भविष्य का पता नहीं था कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा.

हाथरस में धार्मिक सत्संग लाशें हैं पर अपराधी कहां

लोगों को धर्म के नाम पर बेवकूफ बना कर राजनीतिक पार्टियां और धर्मगुरु हमेशा अपना उल्लू सीधा
करते रहे हैं. स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि ने अपने सत्संग में अनुयायियों से ऐसा क्या कह दिया था
कि थोड़ी ही देर में सत्संग स्थल के पास 121 लाशें बिछ गईं.

चकाचक सफेद शर्ट, सफेद पैंट, सफेद मोजे और सफेद जूते पहने क्लीन शेव वाले शख्स को लोग भोले
बाबा के नाम से जानते थे. वह 2 जुलाई, 2024 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले के फुलराई में
आयोजित होने वाले एक सत्संग कार्यक्रम में शामिल हुआ था. वहां वह सफेद टोयोटा फोर्चुनर में सवार
हो कर आया था, जिस की सीटें भी सफेद रंग की थीं.

कार के साथ मोटरसाइकिलों और कारों का एक बड़ा काफिला भी आया था. उस की कार दूसरे वाहनों के
काफिले के साथ जैसे ही एटा की ओर जीटी रोड पर दाएं मुड़ी, हजारों की संख्या में उमड़े अनुयायी उस
ओर दौड़ पड़े.

वह शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वयंभू विश्वहरि बाबा उर्फ भोले बाबा था, जिस के सत्संग की उत्तर प्रदेश
में काफी चर्चा होती है. हजारों की संख्या में दूरदराज से आए लोगों की नजरों में वह व्यक्ति ईश्वरीय
शक्तियों वाला था. लोग अपनी गरदन उचका कर एक झलक पाने की कोशिश में लगे रहे. उन के बीच
होड़ मची रही, लेकिन उस की गाड़ी काफिले की गाडिय़ों के साथ धूल उड़ाती हुई सत्संग स्थल पर पहुंच
गई.

 


वह शख्स सारी सुरक्षाव्यवस्था के साथ भव्य सत्संग स्थल के मंच तक पहुंचा. भीतर बड़े पंडाल में हजारों
लोग पहले से बैठे थे. उन में औरतों की संख्या काफी थी. उमस भरी गरमी में कुछ लोग तेज चल रहे
पंखों की हवा में थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे, जबकि काफी लोग गरमी से बेचैन भी थे. हालांकि एक
दिन पहले बारिश हुई थी, तापमान में थोड़ी कमी होने के बावजूद वातावरण में उमस थी.

सत्संग में प्रवचन की शुरुआत उसी बड़े टेंट में होने वाली थी. इस के लिए आयोजन कमेटी बनी थी.
सत्संग आयोजित करने वाली कमेटी ने स्थानीय पुलिस से 80 हजार लोगों की परमिशन ली थी, लेकिन
वहां पर 300 फीट लंबा और 300 फीट चौड़ा टेंट लगा था, जिस में 60 हजार लोग ही समा सकते थे.

नतीजा कई बार भीड़ बेकाबू होने की हालत में हो जाती थी, जिसे वहां मौजूद वालेंटियर बड़ी मुश्किल से
संभाल पा रहे थे. करीब 2 दरजन पुलिसकर्मी भी मौजूद थे, जो टेंट के बाहर की ट्रैफिक व्यवस्था संभालने
में लगे हुए थे. भीड़ के हालात को देख कर लगता था कि मानो वहां भीड़ लाखों में थी. जो टेंट के भीतर
से ले कर बाहर तक फैली हुई थी.

सत्संग के दौरान किसी के भी आयोजन पंडाल में मोबाइल ले जाने पर पाबंदी थी. वीडियो बनाने पर भी पूरी तरह से रोक थी. फिर भी कोई चोरीछिपे वीडियो बनाने लगता तो सेवादार उसे सख्ती से मना कर देते थे. यहां तक कि उन का मोबाइल तक जब्त करने की चेतावनी देते थे.

बीते साल नवंबर से बदायूं, मैनपुरी भोगांव, धौलपुर, ग्वालियर, बिछवा और फिर हाथरस के मुगलगढ़ी में
इसी बाबा के सत्संग हो चुके थे. हर जिले के लिए बाबा ने अलग कमेटी बना रखी थी और यही कमेटी
ही सत्संग का आयोजन करती रही है.

बताया जाता है कि सत्संग के टेंट के बाहर करीब 3 लाख से ऊपर भीड़ थी. लोगों के आने का सिलसिला
जारी था. भीतर तो लोगों की संख्या 80 हजार से कहीं ज्यादा की थी. सभी वहां के इंतजाम से खुश नहीं
थे, किंतु 'भोले बाबा’ की अंधभक्ति के आगे किसी को कोई शिकायत नहीं थी.

बाबा के चरणों की धूल से कैसे लगा लाशों का ढेर 2 जुलाई, 2024 को मंगलवार का दिन था, जो हिंदू धर्मार्थियों की नजर में विशेष दिन के तौर पर माना जाता है. दोपहर के 12 बजे थे. भोले बाबा का सत्संग शुरू हो चुका था. करीब आधे घंटे बाद साढ़े 12 बजे स्वयंभू साकार नारायण हरिबाबा पंडाल में पहुंचा. उस के पहुंचते ही भीड़ भी उत्साहित हो गई. भीड़ उस का जय जयकारा करने लगी.

कुछ लोग उस के पास जाने के लिए मंच तक जाने की कोशिश करने लगे तो कुछ लोग अपनी समस्या
सुनाने के लिए अपनी जगह पर ही खड़े हो कर गुहार करने लगे. भीड़ को संभालने के लिए आयोजकों ने
निजी सिक्योरिटी गार्डों की व्यवस्था कर रखी थी.

वे फौजी की तरह ट्रैफिक संभालने से ले कर, पीने के पानी, शौचालय और दूसरे इंतजाम देख रहे थे. उन
की नजर उन लोगों पर अधिक थी, जो सत्संग में मोबाइल से वीडियो बनाने लगते थे. जो भी व्यक्ति
वीडियो बना रहा होता, उस पर बाबा के प्राइवेट सुरक्षकर्मी लाठी बरसाने से भी पीछे नहीं हटते थे.

थोड़ी देर में ही करीब 12.45 बजे बाबा का प्रवचन शुरू हुआ. उस के प्रवचन का दौर करीब एक घंटे तक
चला. इस दरम्यान बाबा ने जीवन जीने के तौरतरीके से ले कर समाज की मौजूदा हालात और देशदुनिया
की भी बातें कीं.

अंधभक्त बने अनुयायी बीचबीच में बाबा की जयजयकार लगाने से भी नहीं चूकते थे. इसी प्रवचन के
दौर में बाबा ने प्रलय की भी बात कही. रोग निदान के लिए अपने चरणों की धूल ललाट पर लगाने का
उपाय बता दिया.

बाबा पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं की नजरों के सामने था, जबकि बाहर उमड़ी भीड़ बाबा की झलक पाने को बेताब थी. जैसे ही बाहर खड़े लोग पंडाल में घुसने की कोशिश करते, सुरक्षकर्मी उन्हें धकेल देते. कुछ लोग संभलते, लेकिन कई लडख़ड़ा जाते थे.

 

आरती शुरू होते ही बाबा के अनुयायियों के बीच हलचल होने लगी. उन की गहमागहमी से पंडाल के
भीतर का माहौल थोड़ा अराजक भी हो गया. लोग अपनी जगह से उठ कर बाबा के करीब जाने की
कोशिश करने लगे. कई लोग आरती में करीब से शामिल होने की कोशिश में लग गए. उन्हें काबू में
करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने एक बार फिर से कस कर मोर्चा संभाल लिया…डंडे बरसाए.

आरती के खत्म होते ही अपराह्नï 2 बजे बाबा ने सत्संग समाप्ति की घोषणा कर दी. इस घोषणा के
साथ ही बाबा के निजी सुरक्षाकर्मियों ने कार्यक्रमस्थल की सारी व्यवस्था को पूरी तरह से अपने कब्जे में
ले लिया, लेकिन तब तक भीड़ में उतावलापन काफी बढ़ गया था. इस का एक कारण था बाबा द्वारा की
गई अंतिम घोषणा— 'आप सभी मेरी चरण धूल ले कर घर जाएं!’

इस के बाद तो भीड़ को संभालने में सुरक्षाकर्मियों को भी पसीना निकल आया. उन में कई बाबा की
सुरक्षा में जुट गए तो कुछ लाठियां भांजने लगे.

भीड़ में अफरातफरी मच गई थी. लोग बाबा की चरण धूल लेने के लिए उस की तरफ बढऩे लगे. लोगों
को संभालने के लिए न तो बाबा के निजी सुरक्षाकर्मी और न ही यूपी के पुलिसकर्मी पर्याप्त थे. बाबा के
प्रवचनों की अंतिम लाइन बाहर उतावली भीड़ ने सुनी.

इसी बीच करीब सवा 2 बजे बाबा सुरक्षित दरवाजे से अपनी गाड़ी में जा बैठा. करीब ढाई बजे बाबा का
काफिला निकल पड़ा. किंतु जैसे ही काफिला निकला, बाहर की भीड़ को रोक दिया गया. इस दौरान बाबा
के चरणों की धूल लेने के चक्कर में अनुयायी अनियंत्रित हो गए. भगदड़ मच गई.

सड़क के किनारे गड्ढे थे, जिस में बारिश का पानी और कीचड़ थी. जहां मैदानी भाग था, वहां की जमीन
भी जगहजगह गीली थी. बाबा का काफिला तेजी से बढ़ता चला गया, जबकि भीड़ में मची भगदड़ से कई
लोग वहीं गिर गए.

एक बार जो गिरा, गीली मिट्टी में फिसल गया और दोबारा उठ नहीं पाया. तब तक उस पर दूसरे लोग
गिर गए. यानी लोग गिरते रहे, मरते रहे और बाबा के कारिंदे गाडिय़ों से भागते रहे. किसी ने भी रुक
कर हालात को जानने की कोशिश नहीं की. …और मृतकों की संख्या हो गई 121 महिलाएं और पुरुषों की भीड़ एकदूसरे पर गिरने लगी.

बाबा का काफिला निकालने के दौरान सेवादारों की जबरदस्त बंदिशें थीं. जिस ने भी उन की बंदिशें तोड़ कर बाबा तक पहुंचने की कोशिश की, वह भगदड़ की मौत के ढेर में जा धंसा. कोई धक्के से गिरा तो कोई फिसल कर. किसी का सीना कुचला तो किसी का सिर.

इस हृदयविदारक हादसे की खबर कुछ मिनटों में ही सोशल साइटों के जरिए सुर्खियां बन गई.
मीडियाकर्मी सक्रिय हो गए. इस हादसे में पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही की चौतरफा चर्चा होने
लगी. इस हादसे में बड़ी संख्या में लोग घायल भी हो गए थे. उन्हें दोपहर सवा 3 बजे शव सीएचसी व
ट्रामा सेंटर पर ले जाया गया.

वहां 38 घायलों को उपचार के बजाय रेफर करने की औपचारिकता पूरी की गई. इन में से कुछ घायलों
को अलीगढ़, कुछ को हाथरस और कुछ को आगरा रेफर कर दिया गया. अस्पतालों में इमरजेंसी परिसर
में घायलों और मृतकों की लाशों का अंबार लग गया. देखते ही देखते उन की संख्या 100 को पार गई. जिन की संख्या 121 तक जा पहुंची.

इस दुखद घटना का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गूगल में सब से अधिक सर्च किए जाने
वाले विकिपीडिया पर यह '2024 उत्तर प्रदेश भगदड़’ के रूप में दर्ज हो गई. इस हादसे को ले कर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा संभाल लिया. यूपी पुलिस ने ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी, जिस
के अंजाम भी निकले.

घटना के 2 दिन बाद पुलिस ने 4 जुलाई को 6 अभियुक्तों की गिरफ्तारी कर ली, जिन में सत्संग
आयोजन समिति से जुड़े 4 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं. गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों में राम लडैते
यादव (मैनपुरी), मंजू यादव (हाथरस), उपेंद्र सिंह यादव (फिरोजाबाद), मंजू देवी यादव (हाथरस), मेघ सिंह
(हाथरस) और मुकेश कुमार (हाथरस) शामिल हैं. ये सभी सेवादार हैं.

इस के साथ ही पुलिस ने मुख्य आयोजक देवप्रकाश मधुकर की गिरफ्तारी पर एक लाख रुपए का इनाम
घोषित कर दिया. बाद में इस की भी दिल्ली से गिरफ्तारी हो गई.

इन पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैरइरादतन हत्या), धारा 110 (गैरइरादतन हत्या का प्रयास),
धारा 126 (2) (गलत तरीके से रोकना), धारा 223 (लोकसेवक द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन), धारा 238
(अपराध के साक्ष्य को गायब करना) का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

जांच दर जांच, बाबा पर क्यों नहीं आई आंच
हाथरस सत्संग हादसे को ले कर न केवल ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां हुईं, बल्कि 7 दिनों के भीतर 4 तरह की
जांच पूरी कर ली गई. हालांकि कथा लिखे जाने तक सूरजपाल उर्फ भोले बाबा पर किसी तरह की गाज
नहीं गिरी. उस पर कोई आंच नहीं आई. जबकि गिरफ्तार सभी आरोपियों पर धाराएं भी बढ़ा दी गईं.
सभी आरोपियों को 16 जुलाई, 2024 को पुलिस सुरक्षा के बीच हाथरस कोर्ट में पेश किया गया. इस की
विवेचना के लिए एसआईटी गठित कर दी गई.

एसआईटी की जांच रिपोर्ट के बाद प्रशासनिक स्तर पर 6 अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित कर
दिया गया. इस में एसडीएम, सीओ, इंसपेक्टर और 2 चौकी इंचार्ज शामिल हैं. इस की जांच मुख्यमंत्री के
निर्देश पर न्यायिक आयोग के जिम्मे है.

हादसे की 4 तरह से जांच की गई. सभी में भगदड़ की वजह एक जैसी सामने आई, फिर भी सूरजपाल
(साकार विश्वहरि) उर्फ भोले बाबा को किसी ने दोषी नहीं ठहराया. सत्संग के बाद मची भगदड़ से हुई
121 मौतों के लिए प्रशासनिक अफसरों को जिम्मेदार माना गया.

उन के साथसाथ सेवादारों पर साक्ष्य छिपाने, भीड़ अधिक एकत्रित करने आदि के आरोप लगे. चरण रज
लेने के लिए लोगों का दौडऩा, सेवादारों द्वारा भीड़ रोकना, धक्कामुक्की करना, निकास के लिए एक गेट
होना आदि भी जांच का आधार बना. यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ वाली जगह
का खुद भी निरीक्षण किया है.

4 जांच रिपोर्टों में पहली रिपोर्ट पुलिस की थी, दूसरी एसडीएम की, तीसरी एसआईटी की और चौथी
न्यायिक रिपोर्ट है. एक नजर डालें कि 2 जुलाई, 2024 को जीटी रोड 91 से लगे 6-7 लोगों के 150 बीघा
खेत में आयोजन और हादसे के संबंध में कौन रिपोर्ट क्या कहती है?

पुलिस की रिपोर्ट: हादसे के बाद सिकंदराराऊ कोतवाली के अंतर्गत पोरा चौकी प्रभारी ब्रजेश पांडे की ओर से मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर व अन्य के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, 110, 126 (2), 223, 238 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, जिस में 80 हजार लोगों की अनुमति लेने और 2 लाख
से अधिक भीड़ आने, चरण रज लेने व दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ को सेवादारों द्वारा भीड़ रोकने,
धक्कामुक्की करने के चलते हादसा होने व साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाया था.

यह जांच रिपोर्ट 5 जुलाई, 2024 को गिरफ्तार 6 लोगों से पूछताछ के आधार पर तैयार की गई. उन्होंने
बताया कि चरण रज के लिए बाबा के अनुयायी दौड़ पड़े थे. जांच में आपराधिक षडयंत्र की आशंका
जताई गई. 6 जुलाई को मुख्य आयोजक मधुकर सहित 3 लोग गिरफ्तार किए गए. उन से पूछताछ में
राजनीतिक फंडिंग की बात भी सामने आई. कथा लिखे जाने तक इस की अलग से जांच जारी थी.

जांच में यह भी मालूम हुआ कि साकार हरि यानी सूरजपाल की मुख्य आयोजक से घटना वाले दिन 4
बार फोन पर बात हुई. इस मामले में 7 जुलाई को 2 लोग गिरफ्तार किए गए, जबकि 65 से अधिक
निशाने पर थे. इस के लिए 12 टीमें प्रदेश के अलावा हरियाणा, दिल्ली एनसीआर, राजस्थान, मध्य प्रदेश
में लगा दी गई थीं. इन से संबंधित 200 से अधिक मोबाइल नंबर सर्विलांस पर थे.

प्रशासन की रिपोर्ट: दूसरी जांच रिपोर्ट प्रशासन की थी, जो घटना के बाद रात को ही एसडीएम रवेंद्र
कुमार द्वारा डीएम को सौंप दी गई थी. शासन तक भेजी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्संग के
पंडाल में 2 लाख से अधिक की भीड़ थी. साकार विश्वहरि दोपहर लगभग साढ़े 12 बजे पंडाल में पहुंचा
और एक घंटे तक कार्यक्रम चला.

लगभग 1.40 बजे उस का काफिला पंडाल से निकल कर राष्ट्रीय राजमार्ग-91 (जीटी रोड) पर एटा की ओर
जाने के लिए बढ़ गया था. जिस रास्ते से वह निकल रहा था, उस रास्ते की और सत्संगी महिलापुरुष
दर्शन, चरण स्पर्श एवं आशीर्वाद के लिए दौड़ पड़े थे. वे बाबा की चरण रज को माथे पर लगाने लगे थे.

यहां तक कि डिवाइडर पर खड़े लोग कूदकूद कर बाबा के दर्शन के लिए वाहन की और दौडऩे लगे थे.
उन्हें रोकने के लिए बाबा के साथ उन के निजी सुरक्षाकर्मी (ब्लैक कमांडो) और सेवादारों ने पूरी ताकत
लगा दी थी. वे श्रद्धालुओं को बाबा के पास जाने से रोकना चाहते थे. इस के बाद उन्होंने धक्कामुक्की
शुरू कर दी, जिस से कुछ लोग नीचे गिर पड़े. तब भी भीड़ नहीं मानी और अफरातफरी का माहौल बन
गया.

कई लोग कार्यक्रम स्थल के सामने सड़क के दूसरी ओर खुले खेत की तरफ भागे. जहां सड़क से खेत की
ओर उतरने के दौरान अधिकांश लोग फिसल कर गिर गए. इस के बाद वे फिर से उठ नहीं पाए.
एसआइटी की प्रारंभिक रिपोर्ट: मुख्यमंत्री के निर्देश पर घटना वाले दिन ही एसआईटी गठित कर दी गई
थी. इस में एडीजी (आगरा जोन) अनुपम कुलश्रेष्ठ और मंडलायुक्त (अलीगढ़) चैत्रा वी. को जांच करने

की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इन्होंने पहली रिपोर्ट 24 घंटे में मुख्यमंत्री को सौंप दी थी, जिस में सेवादारों
को दोषी ठहराया गया. साथ ही किसी षडयंत्र की आशंका भी जताई गई.

इस रिपोर्ट में डीएम, एसपी सहित 100 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए गए. बयानों में चरणरज लेने
के कारण भगदड़ की बात कही गई. इस के साथ ही सेवादारों द्वारा धक्कामुक्की और निकासी के लिए
एक गेट होनेे को बड़ा कारण बताया गया.

न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट: इस हादसे की महत्त्वपूर्ण न्यायिक जांच आयोग द्वारा की गई थी. इस
के लिए आयोग 6 जुलाई को हाथरस पहुंचा था. आयोग से सदस्यों ने अधिकारियों के साथ बैठक के बाद
घटनास्थल का मुआयना भी किया था. इस के बाद एसपी, डीएम सहित अन्य अधिकारियों के बयान दर्ज
किए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में 5 घंटे तक 34 लोगों के बयान दर्ज किए गए थे. इन
में चश्मदीद, मीडियाकर्मी व अन्य लोग शामिल हुए थे. इन लोगों ने भी घटना की वजह चरण रज लेना
बताई. सेवादारों के मौके से भाग जाने और धक्कामुक्की की बात भी कही. इस के बाद दल लखनऊ
रवाना हो गया. न्यायिक जांच आयोग का गठन पूर्व न्यायाधीश बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में
किया गया था.

स्वयंभू बाबा ने दिया बेशर्मी का बयान
सभी जांच रिपोर्टों में हादसे का महत्त्वपूर्ण कारण सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के चरण रज ही बताया गया.
हादसे के करीब 3 हफ्तों के बाद सूरजपाल उर्फ भोले बाबा 17 जुलाई को वीडियो के जरिए लोगों के
सामने आया. वीडियो में उस ने हादसे के बारे में जो बातें कहीं, वह घटना को ले कर की गई बेहद
अतिसंवेदनशील टिप्पणी मानी गई.

वह वीडियो समाचार एजेंसी एएनआई की थी, जिस में उस ने कहा कि 2 जुलाई की घटना के बाद मैं
बेहद दुखी हूं, लेकिन जो होना तय है उसे कौन रोक सकता है? जो आया है उसे एक न एक दिन जाना ही
है.

इस वीडियो में भी भोले बाबा सफेद कपड़ों में लाल टीका लगाए नजर आया. उस की उम्र 60 साल से
अधिक बताई जाती है. धूप का महंगा चश्मा पहनता है और महंगी टाई के साथ सूटबूट में रहता है. उसे
उत्तर भारत और उस के बाहर अपने अनुयायियों के बीच एक पंथ का दरजा प्राप्त है.

उस के कई अनुयायी मानते हैं कि वह लाइलाज रोगों के तुरंत इलाज करने में सक्षम है और उस की एक
झलक मात्र से ही घातक बीमारियों से पीडि़त लोग स्वस्थ हो सकते हैं. साथ ही लोगों का यह भी मानना
है कि वह लोगों को आर्थिक संकट से भी बाहर निकाल सकता है. उस के प्रवचन और दर्शन मात्र से ही
पैसे की तंगी दूर हो जाती है.

देश के सब से अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कासगंज जिले के बहादुर नगर गांव में एक
दलित जाटव परिवार में सूरजपाल के रूप में उस का जन्म हुआ था. बाबा बनने से पहले वह एक पुलिस
कांस्टेबल था.

उस की पत्नी प्रेमवती को 'माताजी’ बुलाया जाता है, वह भी पति के मंच पर दिखाई देती है. वह सत्संग के सिलसिले में यात्राएं करती रहती है. बताते हैं कि बाबा के नाम पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य जगहों पर कई आश्रम खुले हैं. बाबा की देखरेख में कम से कम 24 आश्रम हैं, जिन में से
मैनपुरी का आश्रम 12 एकड़ के भूखंड पर है. यहां 6 कमरे विशेष रूप से उस के और उस की पत्नी के
लिए बनाए गए हैं.

इसी तरह के कासगंज के बहादुर नगर गांव में भी उस का एक आश्रम है. यहां भी 6 कमरे विशेष
उपयोग के लिए बनाए गए हैं. इस की देखभाल करने वाला व्यक्ति राजपाल सिंह खुद को बाबा का सेवक
बताता है.

इस आश्रम में अनुयायियों और कर्मचारियों के रहने की अच्छी व्यवस्था है. यहीं बनी बाबा के लिए बनी
भव्य इमारत में सभी के लिए प्रवेश वर्जित है. आश्रम के स्वयंसेवकों के अनुसार बाबा पिछली बार 30
मई, 2014 को सत्संग के लिए इस गांव आए थे.

स्वयंसेवकों की मानें तो बाबा जब भी यहां आता है, लोग बड़ी संख्या में आ जाते हैं. बाबा से मिलने वालों
का तांता लगा होता है. और तो और वे जब यहां नहीं होते हैं, तब भी लोग आश्रम में आते रहते हैं.
आश्रम के स्वयंसेवक का कहना है कि वह कहने को जाटव है, लेकिन यादव समुदाय से आता है.

स्वयंसेवक बाबा की तारीफ करने से जरा भी नहीं चूकता है. उस ने मीडिया के सामने उस की खूब
तारीफों के पुल बांधे. बताया कि वह विभिन्न जाति समूहों और धर्मों के अनुयायियों को आकर्षित कर
लेता है.

बाबा को उस के भक्त 'नारायण साकार हरि’ और 'प्रभुजी’ कहते हैं. एक सेवक का कहना है कि बाबा का
कोई स्थायी निवास नहीं है, इसलिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं. बाबा का एक आश्रमग्वालियर में भी है, जिस की ऊंची सफेद दीवारों के पीछे बड़े खुले स्थान हैं. भक्त एकदूसरे को 'नारायण साकार हरि’ कह कर अभिवादन करते हैं.

मैनपुरी के आश्रम में करीब 26 स्वयंसेवक रहते हैं, जो अपनाअपना गांव छोड़ कर इस गांव में आ कर
बस गए हैं. वे दूसरेदूसरे काम करते हैं, लेकिन आश्रम चलाने में भी मदद करते हैं. इन में पीलीभीत का
एक सिख किसान कुलवंत सिंह भी शामिल है, जिस ने पहली बार 2014 में बाबा को देखा था और 5 साल
बाद इस सुदूर गांव में आ कर बस गया. उस का कहना है कि आश्रम में आने के बाद से उस के परिवार
का जीवन बदल गया.

स्वयंभू बाबा ने खुद को क्यों रखा प्रचार से अलग अन्य बाबाओं की तरह सूटबूट टाई बांधने वाले भोले बाबा ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है. वह चाहे कपड़े और पहनावे से हो या फिर ईश्वर की तरह दिखने की हो. जैसे वह अपनी अंगुलियों में एक चक्र घुमाता है. ऐसा कर वह जादू के करतब दिखाता है. इस तरह से एकत्रित भीड़ का मनोरंजन भी हो जाता है.

उस की कुछ बातें अन्य धर्मगुरुओं से अलग करती हैं. जैसे वह प्रचार के लिए टेलीविजन या सोशल
मीडिया का सहारा नहीं लेता है. एक आध्यात्मिक गुरु के तौर पर, उस की औनलाइन मौजूदगी सीमित है.
उस का यूट्यूब चैनल भी है, लेकिन पिछले 2 दशकों में वह काफी हद तक मौखिक प्रचार की वजह से
लोकप्रिय हुआ है.

कासगंज में बाबा के निवास पर बड़े दरवाजे लगे हैं, जो एक किले के प्रवेश द्वार की तरह दिखता है. उस
के शिखर पर एक कमल की बड़ी प्रतिमा बनी है. हलके गुलाबी रंग की पतलून, शर्ट और टोपी पहने 3
सेवादार वहां लगाए गए हैं. वे वहां की निगरानी करते हैं और आसपास सड़क तक की सफाई करते हैं. वे
आश्रम में 7 दिनों तक स्वैच्छिक सेवा करते हैं. वहां उन्हें 2 बार सादा शाकाहारी भोजन दाल, रोटी और
एक सब्जी मिलती है.

उन में एक 50 वर्षीय किसान राम अवतार है, जो करीब 80 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने
वाला है. उस ने बाबा को पहली बार 2004 में तब सुना था जब एक समागम में शामिल हुआ था. उस के
बाद उस ने वरदी खरीदी और यहां स्वैच्छिक सेवा शुरू कर दी. इसी तरह से दूसरा सेवादार प्रताप सिंह
85 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद का है. वह आश्रम में 18 साल की उम्र से ही है.

उस का कहना है कि बाबा भक्तों से कुछ नहीं लेते. उस के आश्रम में कोई दानपात्र नहीं है. बाबा का
कहना है कि जो भी बुरा है, वह तुम्हारे अंदर है और सभी को ईश्वर से जुडऩे के लिए कहते हैं. यही बात
उन के दिमाग में बैठ गई और वह सेवादार बन गया.इसी तरह से एक अन्य सेवक राकेश कुमार महाराष्ट्र के कुर्ला का रहने वाला है. वह बाबा के सत्संग देने के लहजे से प्रभावित हो कर आश्रम का स्वैच्छिक सेवादार बन गया है.

बाबा अपनी यात्राओं के लिए जिन कारों का इस्तेमाल करता है, वे अकसर सत्संग के आयोजकों द्वारा
भेजी जाती हैं, लेकिन वह बाबा की पसंद के हिसाब से बनाई गई होती हैं, सभी सफेद रंग की होती हैं.
बाबा के आश्रम में किसी भी देवीदेवता की तसवीर या मूर्ति नहीं लगी होती है. यहां तक कि बाबा की
खुद की भी तसवीर नहीं होती है.

हालांकि बाबा ने पिछले 2 दशकों में लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता प्रचलित कहानियों के जरिए बनाई है. लोगों की बीमारियां, परेशानियां ठीक करने और अन्य चमत्कार करने के उस के ईसा मसीह जैसे कारनामे शामिल हैं. इस में कोई संदेह नहीं कि बाबा का प्रभाव बढ़ रहा है और इस का अंदाजा सत्संग में आने वाले लोगों की संख्या से चलता है.

बाबा का अपने सगे भाई से क्यों हुआ था झगड़ा
बाबा के वकील ए.पी. सिंह ने दावा किया कि हाथरस में सत्संग में हुई हालिया दुर्घटना के पीछे ऐसे लोग
और समूह जिम्मेदार हैं, जो बाबा के बढ़ते प्रभाव से नफरत करते हैं. उन का कहना है कि गुरु को
बदनाम करने के लिए बदमाशों ने वहां मौजूद लोगों पर जहरीला पदार्थ छिड़क दिया था.

हाथरस हादसे में बाबा ने ए.पी. सिंह को अपना वकील नियुक्त किया है. ए.पी. सिंह 2012 के निर्भया
गैंगरेप मामले में 2 आरोपियों के वकील थे.

सूरजपाल उर्फ बाबा भी 2000 में एक किशोरी के शव के साथ भागने के चलते मुसीबत में पड़ गया था.
तब उस ने दावा किया कि वह उसे वापस जीवित कर सकता है. तब वह बाबा नहीं, सूरजपाल था.
उस के बाद उस के भोले बाबा बनने की दिलचस्प यात्रा शुरू हो गई थी. खुद को भगवान मानने वाले
सूरजपाल ने अपने परिवार से सारे संबंध तोड़ लिए थे. बाबा के भाई उस गांव में आश्रम की दीवार से
बमुश्किल 20 मीटर की दूरी पर रहते हैं, जहां उस का जन्म हुआ था.

हाथरस में हुई मौतों के बाद बाबा ने एक वीडियो के जरिए संवेदना जताई थी. उस में यह कहते हुए
दिखाई दिया कि उसे पीडि़तों के परिजनों के लिए दुख है और वह किसी भी पूछताछ में पुलिस के साथ सहयोग करेगा.

उस के बाद 6 जुलाई को एएनआई द्वारा जारी एक वीडियो में उस ने कहा, '2 जुलाई की घटना के बाद मैं बहुत दुखी हूं. भगवान हमें इस दर्द को सहने की शक्ति दे. कृपया सरकार और प्रशासन पर भरोसा
रखें. मुझे विश्वास है कि जिस ने भी अराजकता फैलाई है, उसे बख्शा नहीं जाएगा. अपने वकील ए.पी.
सिंह के माध्यम से मैं ने समिति (ट्रस्ट) के सदस्यों से अनुरोध किया है कि वे शोकाकुल परिवारों और
घायलों के साथ खड़े रहें और जीवन भर उन की मदद करें.’

उल्लेखनीय है कि सूरजपाल उर्फ बाबा श्रीनारायण साकार हरि चैरिटेबल ट्रस्ट का अध्यक्ष है, जिसे पहले
मानव सेवा आश्रम कहा जाता था. कासगंज में उस के आश्रम से 50 मीटर से भी कम दूरी पर बाबा का
छोटा सा घर है, जिस में खुली नालियों वाली एक संकरी गली के किनारे अंधेरे कमरे हैं. यहीं वह अपने 2
भाइयों और 3 बहनों के साथ पलाबढ़ा. वहां अब केवल उस का भाई, जिस के साथ बाबा का कई साल
पहले झगड़ा हो गया था, अपने परिवार के साथ रहता है. उस की बड़ी भतीजी आरती उस के बारे में बात
करने से इनकार करती है.

बाबा के एक भाई भगवान दास की 2016 में मृत्यु हो गई, जबकि उस का छोटा भाई राकेश उस का
करीबी है और बाबा के ट्रस्ट का हिस्सा है. उस की बहन सोनकली का कहना है कि किशोरावस्था में बाबा
को जादू में रुचि थी और उन्होंने चमत्कार किए थे.

सूरजपाल 1970 में पहले पहले उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल भरती हुआ था. अगस्त 1995 में उसे आगरा में स्थानीय पुलिस खुफिया विभाग से जोड़ा गया था. जुलाई, 1994 से अगस्त 1995 तक वह इटावा में तैनात था. उस के बाद उस का तबादला आगरा कर दिया गया था.

18 साल की नौकरी के बाद उस ने वीआरएस ले लिया और और अपने गांव में ही झोपड़ी बना कर रहने लगा था. हालांकि बाबा पर भी कोई एकदो नहीं, बल्कि 5 मुकदमे चल रहे हैं. नौकरी के दौरान उस पर 1997 में यौन शोषण की एफआईआर दर्ज की गई थी. उसे जेल जाना पड़ा था. जेल से छूटने के बाद नौकरी छोड़ दी और स्वयंभू साकार विश्वहरि बन कर सत्संग करने लगा. उस पर दर्ज मुकदमे आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हैं.

सत्संग के दौरान मंच पर उस के साथ बैठी महिला को देख कर भी तरहतरह की चर्चा होती है. अधिकतर
लोग उस महिला को पत्नी बताते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि वह उस की मामी है.

लोगों में चर्चा है कि सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि के ट्रस्ट द्वारा कुछ नेताओं और पुलिस
अधिकारियों के अवैध पैसों को वैध बनाया जाता था, इसलिए पुलिस और सफेदपोश उसे बचाने में जुटे हुए
हैं.