Social Story in Hindi : होटल बना देह व्यापार का ठिकाना, पुलिस ने किया पर्दाफाश

Social Story in Hindi : कोरोना लौकडाउन के बाद धंधेबाजों ने देह व्यापार के तरीके जरूर बदल दिए हैं, लेकिन उन का मकसद एक ही होता है, लड़कियों के साथ एंजौय करना. फरीदाबाद के होटल श्री बालाजी और इंपीरियल पैलेस में पुलिस ने दबिश दे कर करीब 6-7 दरजन युवकयुवतियों को जिस तरह आपत्तिजनक स्थिति में गिरफ्तार किया, उस से यही पता चलता है कि…

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं. फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं. बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं. फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी. बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था. अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे. आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे. इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया. होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई. अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया.

आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी. प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था. रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे. आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए. तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं. आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया. कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा. साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं. लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया. पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए. लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती. इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी. संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था. इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी. प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया. यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ. वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे. हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे. थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया. हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई. थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया.  उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.  पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया. पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था. Social Story in Hindi

 

 

Social Story in Hindi : ब्याज के कर्ज में फंसे डॉक्टर ने कर ली आत्महत्या

Social Story in Hindi : ज्यादातर सूदखोरों का धंधा अवैध रूप से और दबंगई के बूते पर चलता है. कोई व्यक्ति इन के चंगुल में फंस जाता है तो वह इन की ब्याजरूपी दलदल से मुश्किल से निकल पाता है. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ भी इन के जाल में इस कदर उलझ गए थे कि करोड़ों रुपए अदा करने के बाद भी वह…

22 अप्रैल, 2021 की शाम लगभग 5 बजे की बात है. मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर शहर की कोतवाली के टीआई उमेश दुबे को सूचना मिली कि नरसिंहपुर-करेली रेलमार्ग पर स्थित टट्टा पुल के पास रेल पटरियों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची तो रेल पटरियों के बीच में एक आदमी की लाश क्षतविक्षत हालत में पड़ी थी. लग रहा था जैसे उस ने जानबूझ कर आत्महत्या की हो. वह अचानक दुर्घटना का मामला नहीं लग रहा था. उस आदमी का चेहरा पहचानने में नहीं आ रहा था. पुलिस ने सब से पहले वह शव रेल लाइनों  के बीच से हटवा कर साइड में रखवा दिया ताकि उस लाइन पर ट्रेनों का आवागमन सुचारू रूप से हो सके.

इस के बाद उस के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में एक मोबाइल फोन और एक चाबी मिली. तब तक कई लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. पुलिस जांच कर ही रही थी कि तभी किसी ने पुलिस को रेल लाइन के नजदीक  सड़क पर खड़ी एक लावारिस स्कूटी के बारे में जानकारी दी. जांच में वह स्कूटी वहां जमा भीड़ में से किसी की नहीं थी. एक पुलिसकर्मी ने स्कूटी की डिक्की खोली तो उस में शादी का निमंत्रण कार्ड मिला, जिस के आधार पर पता चला कि वह शादी का कार्ड डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के नाम का था.

कोतवाली पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए वह जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद भादंवि की धारा 174 (संदिग्ध मृत्यु) का मामला दर्ज कर लिया. सिद्धार्थ तिगनाथ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह शहर के एक जानेमाने डाक्टर थे. इसलिए पुलिस ने मोबाइल फोन के जरिए डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के घर वालों की सूचना दी. उस समय सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ अपने ही रेवाश्री हौस्पिटल में मरीजों का इलाज कर रहे थे. जैसे ही उन्हें सिद्धार्थ के रेल से कटने की सूचना मिली, वे अपना होश खो बैठे. आननफानन में अस्पताल का स्टाफ डा. दीपक तिगनाथ और घर वालों को ले कर जिला अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल में सिद्धार्थ का शव देख कर घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. सिद्धार्थ की पत्नी अपने 5 साल के बेटे को सीने से चिपकाए बिलख रही थी. घर वालों को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार सिद्धार्थ ने इस तरह का आत्मघाती कदम क्यों उठा लिया. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ नगर के प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता एवं पेशे से दंत चिकित्सक थे. सोशल मीडिया पर यह खबर पूरे जिले में जब वायरल हुई तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि एक हाईप्रोफाइल डाक्टर फैमिली का सदस्य आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है. लौकडाउन के बावजूद देखते ही देखते जिला अस्पताल में डा. तिगनाथ के रिश्तेदार और उन के प्रशंसकों की भीड़ जमा होने लगी.

सिद्धार्थ की एकलौती बहन गार्गी रीवा में थी. दूसरे दिन जब वह नरसिंहपुर पहुंची तो पोस्टमार्टम के बाद सिद्धार्थ का अंतिम संस्कार किया गया. जब 5 साल के बेटे ने डा. सिद्धार्थ की चिता को मुखाग्नि दी तो उपस्थित घर वालों एवं अन्य लोगों की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. प्रारंभिक जांच में पुलिस ने डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के कुछ मित्र और परिजनों के बयान दर्ज किए. मामले की तहकीकात के लिए पुलिस ने सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां ज्योति तिगनाथ, पत्नी नेहा के अलावा नरसिंहपुर के सुरेश नेमा, शेख रियाज, प्रसन्न तिगनाथ, घनश्याम पटेल कुंजीलाल गोविंद पटेल के बयान दर्ज किए. इस के बाद पुलिस टीम ने रेलवे स्टेशन नरसिंहपुर के स्टाफ के बयान दर्ज किए.

इस से पता चला कि डा. सिद्धार्थ ने ट्रेन से कट कर अपनी जीवनलीला समाप्त की थी. रेलवे स्टाफ ने पुलिस को बताया कि ट्रेन के ड्राइवर के हौर्न बजाने के बाद भी सिद्धार्थ रेल पटरियों से दूर नहीं हुए थे. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर मुख्यालय में  रेवाश्री हौस्पिटल एक बड़ा प्राइवेट हौस्पिटल है, जिस के डायरेक्टर डा. दीपक तिगनाथ हैं.  मैडिसिन में एमडी डिग्रीधारी कार्डियोलौजिस्ट डा. दीपक तिगनाथ पिछले 4 दशकों से पूरे जिले में अपनी चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं. डा. दीपक तिगनाथ के परिवार में एक बेटा सिद्धार्थ और एक बेटी गार्गी है. गार्गी की  रीवा के रहने वाले अजय शुक्ला से शादी हो चुकी है. डा. दीपक तिगनाथ का बेटा सिद्धार्थ दंत चिकित्सक के रूप में रेवाश्री हौस्पिटल में ही अपने पिता की तरह लोगों का इलाज करते थे. परिवार में डा. सिद्धार्थ की पत्नी नेहा और उन का 5 साल का एक बेटा है.

सिद्धार्थ की शुरुआती शिक्षा रीवा के सैनिक स्कूल में हुई. उन के दादाजी गणित के शिक्षक थे, इसलिए गणित उन का पसंदीदा विषय था. क्रिकेट में भी उन की बेहद दिलचस्पी रहती थी. स्कूली पढ़ाई के बाद सिद्धार्थ बीडीएस की डिग्री ले कर दंत चिकित्सक बने, उन की इंटर्नशिप देख उन के सीनियर ने उन्हें सफल सर्जन बनने की सलाह दी. पिता भी एक सफल डाक्टर थे, वही सब अच्छे गुण विरासत में उन्हें भी मिले. राजनीति में भी सक्रिय थे डा. सिद्धार्थ चिकित्सा के साथ राजनीति को वह समाज सेवा का एक सफल माध्यम मानते थे. इसी कारण से वह राजनीति एवं प्रशासनिक की पढ़ाई के लिए पुणे स्थित पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के संस्थान में गए.

इसी संस्थान में पढ़ाई के दौरान ‘चिकित्सा पद्धति एवं उस का क्रियान्वयन कैसा हो’ विषय पर अपनी थीसिस के माध्यम से अपने विचार जब टी.एन. शेषन के सामने रखे तो शेषन डा. सिद्धार्थ से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने कहा था कि राष्ट्र को ऐसे ही परिपक्व और उत्कृष्टता दे सकने वाले तुम्हारे जैसे नौजवानों की जरूरत है. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ एक समय जिले की राजनीति में कांग्रेसी नेता के रूप में सक्रिय रहे थे. सन 2011 में उन्हें प्रदेश के 2 बड़े नेता कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के उपाध्यक्ष की कमान सौंपी थी. लोकसभा क्षेत्र में संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने रातदिन काम किया.

किसान आंदोलन हो या उन की फसलों का मुआवजा, जहां प्रशासनिक व्यवस्था धराशाई हो जाती थी, वे किसानों को बातचीत के लिए तैयार करते. किसी कैंसर पेशेंट को क्या सहायता मिल सकती है, वह उसे पूरी मदद अपने माध्यमों से करते. चिलचिलाती गरमी में स्टेशन पर पानी के पाउच बांटते, ऐसी नेतागिरी वह अपने दम पर तन मन धन से करते थे. तिगनाथ फैमिली को पूरे इलाके में उन की दौलत और शोहरत के कारण जाना जाता था. हर किसी के सुखदुख में तिगनाथ फेमिली हमेशा साथ रहती. डा. सिद्धार्थ अपने व्यवहार एवं शैली के चलते थोड़े से समय में ही सब के चहेते बन चुके थे.

कहते हैं कि जीवन में यदि खुशियां हैं तो दुखों के पहाड़ भी आते हैं. कुछ लोग इन पहाड़ों को काट कर रास्ता बना लेते हैं तो कुछ लोग एक चट्टान के आगे अपनी हार मान कर निराश हो जाते हैं. डा. सिद्धार्थ ने भी 41 साल की उम्र में एक गलत फैसला ले कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली और अपने भरेपूरे परिवार को यादों के सहारे छोड़ गए. डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में इस कदर फंस चुके थे कि उस से बच कर  निकलना नामुमकिन था. उन के पिता भी अपनी दौलत बेटे के कर्ज की रकम चुकाने में कुरबान कर चुके थे, फिर भी सूदखोरों का कर्जा जस का तस बना हुआ था. क्यों जरूरत पड़ी कर्ज की डा. सिद्धार्थ की सोच थी कि जिले के नौजवानों को रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलते.

इसलिए उन्होंने सन 2016 में ‘विश्वभावन पालीमर’ नाम की फैक्ट्री की शुरुआत की और बेरोजगार जरूरतमंद नौजवानों को उस में रोजगार दिया. इसी दौरान उन्होंने ‘रेवाश्री इंस्टीट्यूट औफ पैरामैडिकल साइंसेस’ कालेज की शुरुआत की, जिस में स्थानीय युवकयुवतियों को मैडिकल की पढ़ाई के साथसाथ रोजगार दे कर उन्हें पगार देनी शुरू की थी. अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह पैसे की व्यवस्था में लग गए. 2016 की नोटबंदी से कोई अछूता नहीं बचा था. कारोबार में पैसे की जरूरत ने उन्हें स्थानीय सूदखोरों की तरफ धकेला. इसी दौरान सूदखोर आशीष नेमा से उन का संपर्क हुआ. आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था.

स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते. नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे. इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की  गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.

सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी. सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए उन का पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली. सूदखोरों ने दोस्ती कर के फंसाया एक संभ्रांत परिवार का चिराग डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में ऐसे फंसे कि उन के पास दुनिया छोड़ने का ही इकलौता विकल्प रह गया था. अपनी धनदौलत, मानसम्मान, जीवन सब कुछ गंवाने के बाद भी वह सूदखोरों के कर्जे तले दबते रहे.

खास बात यह है कि बरबादी के इस चक्रव्यूह की रचना आशीष नेमा नाम के उस शख्स ने की थी, जिस ने डा. सिद्धार्थ से अपनी जानपहचान को दोस्ती का रूप दिया, फिर उन्हें लुटवाने के लिए घाघ, माफिया सूदखोरों के पास ले गया. कोतवाली थाना पुलिस द्वारा इस मामले की विवेचना में यह बात सामने आई कि नरसिंहपुर शहर में लगभग 20 सूदखोरों से संबंध रखने वाला मास्टरमाइंड गुलाब चौराहा निवासी आशीष नेमा था. डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम आशीष नेमा ने किया था. इस के पहले आशीष ने सिद्धार्थ से जानपहचान बढ़ा कर दोस्ती की. दोस्ती के चलते आशीष ने डा. सिद्धार्थ का दिल जीत लिया था. दरअसल आशीष को यह बात पता थी कि डा. सिद्धार्थ को पैसों की जरूरत है. इसी बात का फायदा उठा कर उस ने पहले छोटीमोटी रकम दे कर सिद्धार्थ का विश्वास हासिल कर लिया.

छोटीमोटी मदद के बाद आशीष और सौरभ रिछारिया ने शहर के नामीगिरामी सूदखोरों से मोटी रकम ब्याज पर उठवा दी. आशीष और सौरभ रिछारिया ने कर्जा तो दिला दिया, लेकिन ये सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. अकसर दोनों सिद्धार्थ से ब्लैंक चैक साइन करवा के रख लेते थे और फिर उन के खिलाफ चैक बाउंस का मामला दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से अनापशनाप तरीके से वसूली करने लगे. डा. सिद्धार्थ ने सेकेंडहैंड कारों को बेचने के लिए महिंद्रा फस्ट चौइस नाम से एक एजेंसी की शुरुआत की. इस के लिए उन्होंने 50 लाख रुपए का कर्जा आशीष के माध्यम से दूसरे सूदखोरों से लिया. इस सूदखोरी से मिलने वाली ब्याज की रकम में आशीष नेमा भी पार्टनर रहता. डा. सिद्धार्थ पर जब कर्जा बढ़ता गया तो आशीष नेमा भी अपने असली रंग में आ गया.

3 साल पहले की घटना से जुड़ीं कडि़यां डा. सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर आशीष ब्याज पर ब्याज वसूलने का काम करने लगा. डा. सिद्धार्थ अपने क्लीनिक से होने वाली सारी आमदनी इन्ही सूदखोरों को देते रहे, मगर उन का कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि सूदखोरों ने ब्याज की दर 20 से ले कर 120 फीसद तक कर दी थी. उन की एजेंसी की सभी कारें भी सूदखोरों ने हथिया लीं. पुलिस घटना के सभी पहलुओं की जांच में लगी थी. पुलिस ने जब अपने थाने के रिकौर्ड की पड़ताल की तो एक अहम जानकारी हाथ लगी. करीब 3 साल पहले डा. तिगनाथ फैमिली द्वारा नरसिंहपुर के कुछ सूदखोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.

6 मई, 2018 को तिगनाथ परिवार के सभी सदस्यों ने तत्कालीन एसपी को एक लिखित शिकायत दे कर बताया था कि नगर के कुछ सूदखोरों ने उन के घर में घुस कर गालीगलौज कर जान से मारने की धमकी दी थी. सबूत के तौर पर तिगनाथ फैमिली ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज, काल रिकौर्डिंग भी पुलिस को उपलब्ध कराई थी. इस मामले में 7 मई, 2018 को डा. सिद्धार्थ के अलावा उन के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां और पत्नी ने जबलपुर में तत्कालीन आईजी से मुलाकात कर उन्हें भी सूदखोरों की प्रताड़ना के सबूत दिए थे. 19 मई, 2018 को सिद्घार्थ तिगनाथ अपनी मां, पत्नी के साथ तत्कालीन एसपी मोनिका शुक्ला से मिले थे. उन्हें सूदखोरों के खिलाफ सारे सबूत और 8 लाख की लूट संबंधी प्रमाण भी दिए गए थे.

पुरानी फाइलों के पन्ने पलटने पर पुलिस का संदेह यकीन में बदल चुका था कि डा. सिद्धार्थ ने सूदखोरों की प्रताड़ना की वजह से ही यह आत्मघाती कदम उठाया है. पूरे मामले की जांच कर रहे एसआई जितेंद्र गढ़वाल को एक डायरी हाथ लगी, जिसे पढ़ कर मालूम हुआ कि सूदखोरों के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुके थे. डा. सिद्धार्थ की डायरी ने खोले अहम राज डा. सिद्धार्थ ने अपनी डायरी में मौत से पहले लिखा था, ‘मैं इस विश्वास के साथ दुनिया छोड़ रहा हूं कि मैं सच्चा और इज्जतदार था. बहुत बड़ा योगदान दे सकता था, पर मेरे जीवन में धूर्त लोगों का जमघट रहा है. पिछले 10 सालों से अब बहुत हुआ, इस संसार में रिस्की है अच्छा होना.

कमलनाथजी, मोदीजी अवैध सूदखोरी, चैक रख कर ब्लैकमेलिंग करने वालों के खिलाफ कानून जरूर बनाइएगा. शायद मेरी जिंदगी का एक अर्थ निकले. ‘मेरा ये लेटर मीडिया को जरूर देना. शायद इस दबाव में पुलिस कुछ काररवाई करे. जब जीवित रहते किसी ने उन की बात नहीं सुनी तो डायरी में ये सब कुछ लिख कर, अपने जीवन को ही सबूत के तौर पर भेंट चढ़ा दिया. इस विश्वास के साथ कि उन्हें न्याय मिलेगा और सरकार इन अपराधों को रोकने के लिए कुछ कानून बनाएगी, जिस से भविष्य में कोई इन सूदखोरों के चक्र में न फंसे.’ डायरी पढ़ कर पता लगा कि प्रतिदिन एक लाख रुपए तक की पैनल्टी लगा कर सूदखोरों ने सिद्धार्थ और उन के पूरे परिवार को जिस तरह से प्रताडि़त किया, उस की कहानी सुनने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

10 से 20 फीसद के ब्याज से शुरू हुआ यह खेल आखिरकार 120 फीसद ब्याज की दर के कर्ज तक जा पहुंचा था. चंद लाख रुपए का कर्जा लेने वाले डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ब्याज की अदायगी करतेकरते ही 5 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि सूदखोरों को दे चुके थे. बावजूद इस के सूदखोर कर्जा उतरने ही नहीं दे रहे थे. नतीजतन परिवार की चलअचल संपत्ति गंवा चुके डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ने आखिरकार बीती 22 अप्रैल को दुनिया से अलविदा कह दिया. इस के पूर्व वह एक ऐसी डायरी लिख कर गए, जिस में अपनी मौत का जिम्मेदार सूदखोरों की प्रताड़ना को बताया. उन की डायरी के पन्नों में नरसिंहपुर के लगभग 20 से अधिक सूदखोरों के नाम और अभी तक उन को दिए गए पैसों का पूरा हिसाब था.

मरने से पहले डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में फंसे अन्य लोगों को सूदखोरों से बचाने की मार्मिक अपील भी कर गए. चला जस्टिस फार डा. सिद्धार्थ अभियान डा. सिद्धार्थ की मौत के बाद उन के परिवार वाले, राजनैतिक हस्तियां और सामाजिक कार्यकर्ता नरसिंहपुर पुलिस पर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाने लगे. समाचार पत्रों में रोज ही सूदखोरों पर शिकंजा कसने के समाचार छप रहे थे. डा. सिद्धार्थ के बहनोई अजय शुक्ला ने फेसबुक पर ‘जस्टिस फार डा. सिद्धार्थ अभियान’ छेड़ दिया था. इस मुहिम का असर रहा कि युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुनाल चौधरी, जिला पंचायत नरसिंहपुर के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र पटेल ने भी डा. सिद्धार्थ को न्याय दिलाने के लिए मोर्चा खोल दिया.

उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ले कर डीजीपी व एसपी नरसिंहपुर तक को शिकायत कर दोषी सूदखोरों को गिरफ्तार करने की मांग की. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी विपुल श्रीवास्तव ने व्यक्तिगत रुचि दिखा कर प्रकरण की जांच कराई. नतीजा यह रहा कि सिद्धार्थ की तेरहवीं के ठीक एक दिन पहले ही पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ आत्महत्या करने को विवश करने का मामला दर्ज कर लिया गया. लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने जिन 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 306, 34 का अपराध दर्ज किया था. उन में सुनील जाट निवासी संजय वार्ड, अजय उर्फ पप्पू जाट, भागचंद उर्फ भग्गी यादव नरसिंहपुर को 6 मई 2021 को गिरफ्तार कर लिया गया.

वहीं 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा के कोविड पौजिटिव होने व सौरभ रिछारिया के घर में परिजन के संक्रमित होने पर ये गिरफ्तार नहीं किए गए थे. इन का जिले के बाहर इलाज चल रहा था. जबकि धर्मेंद्र जाट और राहुल जैन फरार हो गए, जिन की सरगरमी से पुलिस ने तलाश शुरू कर दी. खैरी गांव का पूर्व सरपंच धर्मेंद्र जाट अपने बीवीबच्चों को जिले से बाहर रिश्तेदारों के यहां भेज कर खुद भी भागने की फिराक में था, मगर पुलिस की सक्रियता से उसे सुबह तड़के खैरी गांव में बने उस के मकान से गिरफ्तार कर लिया. गुलाब चौराहा नरसिंहपुर निवासी राहुल जैन पुलिस को चकमा दे कर भाग गया.

30 मई, 2021 को एसआई जितेंद्र गढ़वाल को मुखबिर के माध्यम से सूचना मिली कि डा. सिद्धार्थ मामले का एक आरोपी राहुल जैन जबलपुर में छिपा हुआ है. एसआई जितेंद्र गढ़वाल, आरक्षक पंकज और आशीष की टीम वहां पहुंची तो पता चला कि वह तो जबलपुर के कछपुरा इलाके में दूध बेचने का धंधा कर रहा है. पुलिस टीम ने वहां से राहुल जैन को गिरफ्तार कर लिया .  यूं तो डा. सिद्धार्थ की डायरी में उन 20 सूदखोरों के नाम दर्ज थे जो उन से ब्याज के रूप में लाखों की रकम हड़प चुके थे, परंतु पुलिस की जांच में केवल 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. सिद्धार्थ के घर वाले इस बात को ले कर नाराज हैं.

उन का कहना है कि सभी सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कानूनी काररवाई की जाए, जिस से अब कोई शख्स उन सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में न फंस सके. कथा संकलन तक 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा और सौरभ रिछारिया को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. Social Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Social Story in Hindi : रेप से बचने के लिए महिला ने काटा शख्स का प्राइवेट पार्ट, यह शख्स कौन था

Social Story in Hindi  : एक ऐसा दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया है. दरअसल एक महिला ने एक शख्स का प्राइवेट पार्ट काट डाला. जिससे शख्स गंभीर रूप से घायल है. आखिर ऐसी क्या वजह थी कि महिला को किसी शख्स के प्राइवेट पार्ट काटने की स्थिति आ गई.

यह घटना बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारू थाना क्षेत्र की है, जहां 11 जून को बुधवार की रात एक महिला ने खुद को रेप से बचाने के लिए युवक का प्राइवेट पार्ट ब्लेड से काट डाला. युवक गंभीर रूप से घायल था जिसके लिए उसे एसकेएमसीएच रेफर किया गया है. महिला का आरोप है कि युवक जबरदस्ती उसके साथ रेप करने की कोशिश कर रहा था, जिससे बचने के लिए उसने यह कदम उठानापड़ा..

घायल युवक की पहचान जलील नगर गांव निवासी 27 वर्षीय राज कुमार ठाकुर के रूप में हुई है. पुलिस मामले की गंभीरता से जांच कर रही है और सभी पहलुओं को खंगाल रही है. घायल राजकुमार ने बताया कि उसने एक महिला को  पैसे उधार दिए थे. पैसे लौटाने के बहाने महिला ने उसे शाम छह बजे अपने घर बुलाया. जब वहां पहुंचा तो महिला ने अपनी देवरानी और दो लड़कों के साथ मिलकर उसे पकड़ लिया.

चारों ने मिलकर उसे इस कदर काबू में पकड़ रखा था कि वह खुद को बचा नहीं सका. इसके बाद चारों ने मिलकर जबरन कपड़े उतारे और ब्लेड से प्राइवेट पार्ट काट डाला. राजकुमार ने का कहना है कि महिला ने उस पर झूठा रेप का आरोप लगाया है, जबकि वह मेडिकल जांच कराने के लिए तैयार है ताकि सच सामने आ जाए . बकौल राजकुमार – महिला मेरे ऊपर बेबुनियाद आरोप लगा रही है. राज ने बताया कि करीब 2 घंटे तक महिला के घर ही रहा. जब पुलिस आई और मुझे इलाज के लिए अस्पताल को ले जाया गया.

ग्रामीण एसपी ने क्या कहा

ग्रामीण एसपी विद्या सागर ने बताया कि सिमरी गांव का निवासी राज कुमार ठाकुर शख्स का प्राइवेट पार्ट काटे जाने की घटना सामने आई है. वहीं पीड़ित का कहना है कि वह पैसा मांगने गया था. तभी उसके साथ यह वारदात हुए. पुलिस मामले की जांच कर रही है और सभी पहलुओं को खंगाला जा रहा है. Social Story in Hindi

Social Story in Hindi : किरायेदार ने पेट्रोल डालकर मालकिन और बच्चों को जिंदा जला डाला

Social Story in Hindi  : देश भर में चल रहे स्वच्छता अभियान के बीच अगर कोई स्वच्छ रहने की बात को अपनी इज्जत से जोड़ ले तो उस से बड़ा मूर्ख कौन होगा. निठल्ले बेरोजगार अवनीश ने भी यही किया. बात मानने के बजाए उस ने वह कर डाला जिस ने एक पूरे परिवार को…

कानपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है अकबरपुर. यह कानपुर (देहात) जिले के अंतर्गत आता है. तहसील व जिला मुख्यालय होने के कारण कस्बे में हर रोज चहलपहल रहती है. इस नगर से हो कर स्वर्णिम चतुर्भुज राष्ट्रीय मार्ग जाता है जो पूर्व में कानपुर, पटना, हावड़ा तथा पश्चिम में आगरा, दिल्ली से जुड़ा है. इस नगर में एक ऐतिहासिक तालाब भी है जो शुक्ल तालाब के नाम से जाना जाता है. शुक्ल तालाब ऐतिहासिक वास्तुकारी का नायाब नमूना है. बताया जाता है कि सन 1553 में बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल ने शीतल शुक्ल को इस क्षेत्र का दीवान नियुक्त किया था.

दीवान शीतल शुक्ल ने सन 1578 में इस ऐतिहासिक तालाब को बनवाया था. इसी अकबरपुर कस्बे के जवाहर नगर मोहल्ले में सभासद जितेंद्र यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना यादव के अलावा बेटी अक्षिता (5 वर्ष) तथा बेटा हनू (डेढ़ वर्ष) था. जितेंद्र के पिता कैलाश नाथ यादव भी साथ रहते थे. वह पुलिस में दरोगा थे, लेकिन अब रिटायर हो चुके हैं. जितेंद्र यादव की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना बहुमंजिला आलीशान मकान था. जितेंद्र यादव की पत्नी अर्चना यादव पढ़ीलिखी महिला थी. वह नगर के रामगंज मोहल्ला स्थित प्राइमरी पाठशाला में सहायक शिक्षिका थी, जबकि जितेंद्र यादव समाजवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य थे.

2 साल पहले उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सभासद का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. वर्तमान में वह जवाहर नगर (वार्ड 14) से सभासद है. जितेंद्र यादव का अपने मकान के भूतल पर कार्यालय था, साथ ही पिता कैलाश नाथ यादव रहते थे, जबकि भूतल पर जितेंद्र अपनी पत्नी अर्चना व बच्चों के साथ रहते थे. मकान के दूसरी और तीसरी मंजिल पर 4 किराएदार रहते थे, जिन में 2 महिला पुलिसकर्मी अनीता व ऊषा प्रजापति थीं. मकान की देखरेख व किराया वसूली का काम कैलाश नाथ यादव करते थे. ऊषा का पति अवनीश प्रजापति मूलरूप से प्रयागराज जनपद के फूलपुर का रहने वाला था.

महिला कांसटेबल ऊषा पहले प्रयागराज में तैनात थी. उस के साथ उस का पति भी रहता था. अवनीश वहां लैब टैक्नीशियन था, लेकिन लौकडाउन लगने के कारण मई 2020 में उस की लैब बंद हो गई थी. ऊषा का ट्रांसफर भी प्रयागराज से कानपुर देहात जनपद के थाना अकबरपुर में हो गया था. उस के बाद वह पति अवनीश के साथ अकबरपुर कस्बे में सभासद जितेंद्र यादव के मकान में किराए पर रहने लगी थी. ऊषा की शादी अवनीश प्रजापति के साथ 4 साल पहले हुई थी. 4 साल बीत जाने के बाद भी ऊषा मां नहीं बन सकी थी. इस से उस का बेरोजगार पति अवनीश टेंशन में रहता था. अवनीश घर में ही पड़ा रहता था.

उस का काम केवल इतना था कि वह पत्नी ऊषा को ड्यूटी पर अकबरपुर कोतवाली स्कूटर से छोड़ आता था और ड्यूटी समाप्त होने पर घर ले आता था. ऊषा पुलिसकर्मी होने के बावजूद जितनी सरल स्वभाव की थी, उस का पति बेरोजगार होते हुए भी उतने ही कठोर स्वभाव का था. अवनीश की न तो किसी अन्य किराएदार से पटती थी और न मकान मालिक से. हां, वह सभासद जितेंद्र यादव से जरूर भय खाता था, जितेंद्र की पत्नी अर्चना यादव तो उसे फूटी आंख नहीं सुहाती थी. किराएदार की हरकतें सभासद की पत्नी अर्चना यादव तथा ऊषा के पति अवनीश प्रजापति के बीच पटरी नहीं बैठती थी. दोनों के बीच अकसर तनाव बना रहता था.

तनाव का पहला कारण यह था कि अवनीश साफसफाई से नहीं रहता था. वह मकान में भी गंदगी फैलाता रहता था. अर्चना यादव शिक्षिका थीं. वह खुद भी साफसफाई से रहती थीं और मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों को भी साफसफाई से रहने को कहती थीं. अन्य किराएदार तो अर्चना के सुझाव पर अमल करते थे, लेकिन अवनीश नहीं करता था. वह गुटखा और पान खाने का शौकीन था. पान खा कर उस की पीक कमरे के बाहर ही थूक देता था. कमरे के अंदर की साफसफाई का कूड़ा भी बाहर जमा कर देता था, जो हवा में उड़ कर पूरे फ्लोर पर फैल जाता था.

तनाव का दूसरा कारण अवनीश की बेशरमी थी. उस की नजर में खोट था. वह अर्चना को घूरघूर कर देखता था. उसे देख कर वह कभी मुसकरा देता, तो कभी कमेंट कस देता. उस की हरकतों से अर्चना गुस्सा करती तो कहता, ‘‘अर्चना भाभी, जब तुम गुस्सा करती हो तो तुम्हारा चेहरा गुलाब जैसा लाल हो जाता है और गुलाब मुझे बहुत पसंद है.’’

अर्चना ने अवनीश की हरकतों और गंदगी फैलाने की शिकायत अपने ससुर कैलाश नाथ यादव से की तो उन्होंने अवनीश को डांटाफटकारा और कमरा खाली करने को कह दिया. लेकिन अवनीश की पत्नी ऊषा ने बीच में पड़ कर मामले को शांत कर दिया. ऊषा प्रजापति ने मामला भले ही शांत कर दिया था, लेकिन अर्चना की शिकायत ने अवनीश के मन में नफरत के बीज बो दिए थे. वह मन ही मन उस से नफरत करने लगा था. अर्चना अपने बच्चों को भी अवनीश से दूर रखती थी. दरअसल, ऊषा की कोई संतान नहीं थी, अर्चना को डर था कि गोद भरने के लिए कहीं ऊषा व अवनीश उस के बच्चों पर कोई टोनाटोटका न कर दें.

एक रोज अर्चना किसी काम से छत पर जा रही थी. वह पहली मंजिल पर पहुंची तो अवनीश के कमरे के अंदरबाहर कूड़ा बिखरा देखा. इस पर उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अवनीश कुत्ता भी पूंछ से जगह साफ कर के बैठता है, लेकिन तुम तो उस से भी गएगुजरे हो जो गंदगी में पैर फैलाए बैठे हो.’’

अर्चना की बात सुन कर अवनीश का गुस्सा बढ़ गया, ‘‘भाभी, मैं कुत्ता नहीं इंसान हूं. मुझे कुत्ता मत बनाओ. आप मकान मालकिन हैं, लेकिन इतना हक नहीं है कि आप मुझे कुत्ता कहें. आज तो मैं किसी तरह आप की बात बरदाश्त कर रहा हूं, लेकिन आइंदा नहीं करूंगा.’’

पति से की शिकायत इस बार अर्चना ने अपने सभासद पति जितेंद्र से अवनीश की शिकायत की. इस पर सभासद ने अवनीश को खूब फटकार लगाई, साथ ही चेतावनी भी दी कि अगर उसे मकान में रहना है तो सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा. वरना मकान खाली कर दो. अर्चना द्वारा बारबार शिकायत करने से अवनीश के मन में नफरत और बढ़ गई. उसे लगने लगा कि अर्चना जानबूझ कर किराएदारों के सामने उस की बेइज्जती करती है. उस के मन में प्रतिशोध की ज्वाला भड़कने लगी. वह बेइज्जती का बदला लेने की सोचने लगा.

28 फरवरी, 2021 की सुबह अवनीश ने पान की पीक कमरे के बाहर थूक दी. पीक की गंदगी को ले कर अर्चना और अवनीश में जम कर तूतूमैंमैं हुई. ऊषा ने किसी तरह पति को समझा कर शांत किया और गंदगी साफ कर दी. झगड़ा करने के बाद अवनीश दिन भर कमरे में पड़ा रहा और अर्चना को सबक सिखाने की सोचता रहा. आखिर उस ने एक बेहद खतरनाक योजना बना ली. रात 8 बजे अवनीश अपनी पत्नी ऊषा को अकबरपुर कोतवाली छोड़ने गया. वहां से लौटते समय उस ने पैट्रोल पंप से एक बोतल में आधा लीटर पैट्रोल लिया और वापस घर लौट आया. उस ने ऊपरनीचे घूम कर पूरे मकान का जायजा लिया.

ग्राउंड फ्लोर स्थित कार्यालय में सभासद जितेंद्र यादव क्षेत्रीय लोगों के साथ क्षेत्र की समस्यायों के संबंध में बातचीत कर रहे थे, कैलाश नाथ भी अपने कमरे में थे. जायजा लेने के बाद अवनीश पहली मंजिल पर आया. वहां अर्चना यादव रसोई में थी. पास में उन की 5 साल की बेटी अक्षिता तथा 18 माह का बेटा हनू भी बैठा था. अर्चना खाना पका रही थीं, जबकि दोनों बच्चे खेल रहे थे. इस बीच सिपाही अनीता कोई सामान मांगने अर्चना के पास आई. फिर वापस अपने कमरे में चली गई. सही मौका देख कर अवनीश अपने कमरे में गया और वहां से पैट्रोल भरी बोतल ले आया.

फिर वह रसोई में पहुंचा और पीछे से अर्चना यादव व उस के बच्चों पर पैट्रोल उड़ेल दिया. उस समय गैस जल रही थी, अत: पैट्रोल पड़ते ही गैस ने आग पकड़ ली. अर्चना व उस के बच्चे धूधू कर जलने लगे. आग की लपटों से घिरी अर्चना चीखी तो महिला सिपाही अनीता ने दरवाजा खोला. सामने का खौफनाक मंजर देख कर वह सहम गई. वह उसे बचाने को आगे बढ़ी तो अवनीश ने उस पर वार कर दिया. अनीता चीखनेचिल्लाने लगी. भूतल पर सभासद जितेंद्र यादव साथियों सहित मौजूद थे. उन्होंने चीखपुकार सुनी तो पिता कैलाश नाथ व अन्य लोगों के साथ भूतल पर पहुंचे और आग की लपटों से घिरी पत्नी अर्चना व बच्चों के ऊपर कंबल डाल कर आग बुझाई.

भागने की कोशिश में इसी बीच पकड़े जाने के डर से अवनीश भागा और केबिल के सहारे नीचे आ गया. घर के बाहर सभासद की स्कौर्पियो कार खड़ी थी. उस ने उसे भी जलाने का प्रयास किया. इसी बीच सभासद के साथियों ने उसे दौड़ाया तो वह भागने लगा. भागते समय सड़क पार करते हुए वह मिनी ट्रक की चपेट में आ गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उपचार हेतु सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया. इधर सभासद जितेंद्र यादव ने गंभीर रूप से जली पत्नी और दोनों बच्चों को अपनी कार से प्राइवेट अस्पताल राजावत पहुंचाया. लेकिन डाक्टरों ने उन की गंभीर हालत देख कर जिला अस्पताल रेफर कर दिया.

सभासद  के पिता कैलाश नाथ यादव ने घटना की सूचना पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया. कुछ ही देर में कोतवाल तुलसी राम पांडेय, डीएसपी संदीप सिंह, एसपी केशव कुमार चौधरी, एएसपी घनश्याम चौरसिया तथा डीएम दिनेश चंद्र जिला अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने सभासद जितेंद्र यादव को धैर्य बंधाया और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. चूंकि अर्चना की हालत नाजुक थी. अत: जिलाधिकारी डा. दिनेश चंद्र ने अर्चना का बयान दर्ज कराने के लिए एसडीएम संजय कुशवाहा को जिला अस्पताल बुलवा लिया. संजय कुशवाहा ने अर्चना का बयान दर्ज किया. अर्चना ने कहा कि किराएदार अवनीश ने पैट्रोल डाल कर उसे और उस के दोनों मासूम बच्चों को जलाया है.

जिला अस्पताल में अर्चना व उस के बच्चों की हालत बिगड़ी तो डाक्टरों ने उन्हें कानपुर शहर के उर्सला अस्पताल में रेफर कर दिया. उर्सला अस्पताल में रात 11 बजे जितेंद्र के मासूम बेटे हनू ने दम तोड़ दिया. रात 1 बजे बेटी अक्षिता की भी सांसें थम गईं. उस के बाद 4 बजे अर्चना ने भी उर्सला अस्पताल में आखिरी सांस ली. इस के बाद तो परिवार में कोहराम मच गया. जितेंद्र पत्नी व मासूम बच्चों का शव देख कर बिलख पड़े. अर्चना की मां व भाई भी आंसू बहाने लगे. पहली मार्च को सभासद जितेंद्र यादव की पत्नी अर्चना यादव व उस के मासूम बच्चों को किराएदार अवनीश द्वारा जिंदा जलाने की खबर अकबरपुर कस्बे में फैली तो सनसनी फैल गई.

चूंकि मामला सभासद के परिवार का था, उन के सैकड़ों समर्थक थे. अत: उपद्रव की आशंका से पुलिस अधिकारियों ने अकबरपुर कस्बे में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया. इधर अर्चना व उस के बच्चों की मौत की खबर अकबरपुर कोतवाल तुलसीराम पांडेय को मिली तो उन्होंने अवनीश व उस की पत्नी ऊषा की सुरक्षा बढ़ा दी. उन्होंने अवनीश को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर अपनी कस्टडी में ले लिया. पुलिस काररवाई सभासद जितेंद्र यादव की तहरीर पर कोतवाल तुलसीराम पांडेय ने भादंवि की धारा 326/302 के तहत अवनीश प्रजापति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे बंदी बना लिया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद डीएसपी संदीप सिंह ने अभियुक्त अवनीश से घटना के संबंध में पूछताछ की तथा उस का बयान दर्ज किया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का भी बारीकी से निरीक्षण किया तथा साक्ष्य जुटाए. 2 मार्च, 2021 को नगरवासियों ने मृतकों की आत्माओं की शांति के लिए कैंडल मार्च निकाला और अंडर ब्रिज के नीचे उन की फोटो पर पुष्प अर्पित किए. अनेक युवकों के हाथों में हस्तलिखित तख्तियां थी. उन की मांग थी कि हत्यारे को फांसी की सजा मिले. युवक सीबीआई जांच की भी मांग कर रहे थे. उन को शक था कि इस साजिश में कुछ और लोग भी शामिल हैं, जिन का परदाफाश होना जरूरी है.

3 मार्च, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त अवनीश प्रजापति को कानपुर देहात की माती कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. सभासद जितेंद्र यादव और उन के पिता इस हृदयविदारक घटना से बेहद दुखी हैं. जब सभासद जितेंद्र यादव से दर्द साझा किया गया तो वह फफक पड़े. बोले, ‘किस पर भरोसा करूं. चंद मिनटों में ही हमारा सब कुछ खत्म हो गया. किराएदार ऐसा कर सकता है, कभी सोचा नहीं था. अवनीश ने मेरे परिवार को योजना बना कर जलाया है. बदले की आग में उस ने हमारी दुनिया ही उजाड़ डाली.’ social story in hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

नौकरानी ने 10 शादियां करके कमाएं करोड़ों रुपए

Social Story in Hindi : प्रीति को डा. सुधा के घर लाने से पहले ही सचिन ने उसे अच्छी तरह से समझा दिया था. हालांकि डा. सुधा का बेटा शिवम देखनेभालने मे स्मार्ट था, लेकिन जब इंसान दिमागी रूप से अस्वस्थ हो तो उस की सुंदरता का कोई लाभ नहीं. फिर भी प्रीति ने डा. सुधा के घर आते ही अपना पूरा ध्यान शिवम पर फोकस कर दिया था. वह घर के कामकाज करने के साथसाथ पूरे दिन शिवम की ही चापालूसी में लगी रहती थी. जिस से शिवम भी उस के साथ खुश रहने लगा था. उस के साथसाथ प्रीति डा. सुधा का भी पूरा ध्यान रखती थी. जिस के कारण कुछ ही दिनों में प्रीति ने डा. सुधा का मन जीत लिया और वह जल्दी ही उन के घर के सदस्य की तरह बन गई थी.

खुश हो कर डा. सुधा ने जब प्रीति की तारीफ करनी शुरू कर दी, तब प्रीति उस घर की बहू बनने के सपने संजोने लगी थी. कुछ ही दिनों में उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. उस ने पूरी तरह से खुद को डा. सुधा के परिवार के अनुरूप ही ढाल लिया था. वह हर रोज महंगे कपड़े पहन कर बनठन कर रहती थी.

22 फरवरी, 2023 को डा. आकांक्षा ने अपनी मम्मी डा. सुधा सिंह को फोन किया, ‘‘कैसी हो मम्मी? कुछ खापी भी रही हो या नहीं?’’

‘‘हां बेटी, अब तो ठीक हूं मैं. बेटी, अब तू मेरी चिंता छोड़ दे. तेरे सचिन अंकल ने मेरी सेवा के लिए प्रीति नाम की एक मेड रखवा दी है. वह मेरी पूरी तरह से सेवा कर रही है.’’ डा. सुधा ने बताया.

डा. आकांक्षा सचिन को अच्छी तरह से जानती थी. सचिन का उन के घर पर पहले से ही आनाजाना था. यह सुन कर डा. आकांक्षा ने कुछ राहत की सांस ली. सोचा कि अब उसी के सहारे उस के भाई शिवम को भी खानापीना ठीक से मिल जाया करेगा.

उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के मुरादनगर निवासी यूनिक ग्रुप औफ कालेज की चांसलर सुधा काफी समय से कैंसर रोग से ग्रस्त थीं. इस वक्त उन की बीमारी तीसरे स्टेज से गुजर रही थी. बहुत समय पहले किसी बीमारी के चलते उन के पति की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद यूनिक इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट टेक्नोलौजी (यूआईएमटी) की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर आ पड़ी थी.

उन के 2 बच्चे थे, जिन में बड़ी बेटी आकांक्षा तथा उस से छोटा बेटा शिवम. बेटी आकांक्षा पढ़लिख कर डाक्टर बन गई, लेकिन उन का बेटा शिवम मंदबुद्धि था. जिस के कारण वह न तो ज्यादा पढ़लिख ही पाया था और न ही उस में किसी तरह की सोचसमझ की शक्ति ही थी.

सारी संपत्ति कर दी बेटी के नाम

डा. सुधा के पास अकूत संपत्ति थी, लेकिन उन्हें दुख इस बात का था कि उन का बेटा इस काबिल नहीं था कि उन के बाद वह पूरी तरह से अपनी देखरेख कर सके. इसी कारण उन्होंने समय रहते ही अपनी सारी संपत्ति बेटी आकांक्षा के नाम कर दी थी. जिस से उन की मौत के बाद वह उस की मालकिन बन जाए और अपने भाई की भी देखरेख करती रहे.

डा. सुधा ने समय रहते ही अपनी बेटी की शादी भी कर दी. डा. आकांक्षा दुलहन बन कर अपनी मम्मी और भाई को छोड़ कर अपनी ससुराल चली गई थी. लेकिन उस के बाद भी वह अपने भाई और मम्मी की पूरी तरह से खैरखबर लेती रहती थी. डा. सुधा इस वक्त 2 कालेजों की मालकिन थीं.

बेटे के मंदबुद्धि होने के कारण दोनों कालेजों की जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी पड़ रही थी. अपने पति के निधन के बाद डा. सुधा ने सब कुछ ठीकठाक ही संभाल लिया था. लेकिन अचानक ही उन की भी तबीयत खराब रहने लगी, जिस के बाद उन की बेटी ने उन के चैकअप कराए तो पता चला कि डा. सुधा कैंसर से पीडि़त हैं. यह सुन कर डा. सुधा के साथसाथ उन की बेटी डा. आकांक्षा को भी बहुत बड़ा झटका लगा.

बीमारी भी ऐसी जिस का कोई इलाज ही नहीं. फिर भी डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने महंगे से महंगा उन का इलाज कराया लेकिन उस से उन्हें कोई आराम नहीं मिल पा रहा था. धीरेधीरे उन की बीमारी तीसरे चरण पर पहुंच गई थी.

उसी दौरान सचिन उन की बीमारी के चलते उन की खैर खबर लेने उन के घर पहुंचा. सचिन का उन के घर पर काफी समय पहले से आनाजाना था. डा. सुधा ने कई बार उस के सामने अपने बेटे की चिंता जताते हुए अपनी परेशानी जाहिर की, ‘‘सचिन, तुम तो जानते हो कि मेरा बेटा किसी लायक नहीं है. न तो वह खुद कुछ बना कर खाता है और न ही मेरी कोई सहायता ही कर पाता है. इसीलिए अगर तुम्हारी नजर में कोई अच्छी लडक़ी हो तो बताओ, जो मेरी देखरेख के साथसाथ मेरे बेटे के खानेपीने की भी व्यवस्था करे और घर की देखरेख भी कर सके.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं. भाभीजी, आप परेशान न हों. इस सब की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. आप का यह काम जल्दी ही हो जाएगा.’’

सचिन ने उसी समय अपने मोबाइल पर एक लडक़ी का फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो भाभी, लडक़ी तो यह है. घर के कामकाज में पूरी तरह से परफेक्ट है. यह ऐसी मिलनसार है कि यह आप के साथ साथ आप के बेटे की भी पूरी तरह से देखरेख करेगी.’’

डा. सुधा ने लडक़ी का फोटो देखते ही कहा, ‘‘लडक़ी तो ठीक है. लेकिन मैं चाहती हूं कि लडक़ी ज्यादा चालाक नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘अरे भाभी, कैसी बात करती हो. जब इस लडक़ी को मैं आप के घर पर रखवाऊंगा तो उस की जिम्मेदारी मेरी ही होगी. आप किसी तरह की टेंशन न लें. मैं कल ही इसे आप के पास ले आता हूं.’’ सचिन बोला और कुछ देर रुक कर वहां से चला गया.

23 फरवरी, 2023 को सचिन अपने साथ प्रीति नाम की एक खूबसूरत युवती को अपने साथ ले कर उन के घर पर पहुंचा. डा. सुधा ने देखते ही उसे पसंद कर लिया और अपने घर की चाबी भी उस के हवाले कर दी. उस के बाद प्रीति उसी दिन से डा. सुधा के घर पर मेड का काम करने लगी थी.

प्रीति को डा. सुधा के घर लाने से पहले ही सचिन ने उसे अच्छी तरह से समझा दिया था. हालांकि डा. सुधा का बेटा शिवम देखनेभालने मेें स्मार्ट था, लेकिन जब इंसान दिमागी रूप से अस्वस्थ हो तो उस की सुंदरता का कोई लाभ नहीं. फिर भी प्रीति ने डा. सुधा के घर आते ही अपना पूरा ध्यान शिवम पर फोकस कर दिया था.

प्रीति ने घर में जमा लिया अपना प्रभाव

वह घर के कामकाज करने के साथसाथ पूरे दिन शिवम की ही चापलूसी में लगी रहती थी. जिस से शिवम भी उस के साथ खुश रहने लगा था. उस के साथसाथ प्रीति डा. सुधा का भी पूरा ध्यान रखती थी. जिस के कारण कुछ ही दिनों में प्रीति ने डा. सुधा का मन जीत लिया और वह जल्दी ही उन के घर के सदस्य की तरह बन गई थी. खुश हो कर डा. सुधा ने जब प्रीति की तारीफ करनी शुरू कर दी, तब प्रीति उस घर की बहू बनने के सपने संजोने लगी थी. कुछ ही दिनों में उस के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. उस ने पूरी तरह से खुद को डा. सुधा के परिवार के अनुरूप ही ढाल लिया था. वह हर रोज महंगे कपड़े पहन कर बनठन कर रहती थी.

कैंसर की बीमारी के चलते ही 7 अगस्त, 2023 को डा. सुधा की मौत हो गई. अपनी मां की मौत होने पर डा. आकांक्षा भी अपने घर आई. मां की मौत के बाद वह पहली बार प्रीति से मिली थी. उस से पहले उस ने उस का फोटो ही देखा था. प्रीति को घर में देख कर उसे हैरत हुई. उस वक्त उस के साथ 2 अन्य महिलाएं भी थीं, इसलिए डा. आकांक्षा ने प्रीति से उन के बारे में जानकारी ली, तब उस ने नीलम नामक युवती को अपनी मौसी और उस के साथ आई दूसरी महिला प्रवेश को अपनी दूर की रिश्तेदार बताया. प्रीति ने बताया कि वह उस से मिलने के लिए आई थीं. इस के बाद भी डा. आकांक्षा Social Story in Hindi की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि अगर वह उस से मिलने ही आई थीं तो वह अभी तक उसी के पास क्यों ठहरी हुई हैं.

भाई की शादी पर डा. आकांक्षा हुई आश्चर्यचकित

डा. सुधा की मृत्यु के बाद सभी संस्कार संपन्न हो चुके थे, फिर भी वह दोनों ही औरतें वहीं पर टिकी पड़ी थीं. जिन को देख कर डा. आकांक्षा का माथा ठनका. उस के बाद उस ने प्रीति से कहा कि अब उन्हें घर में मेड की जरूरत नहीं है. इसलिए आप लोग अपने घर जा सकती हो. आकांक्षा की बात सुनते ही प्रीति बोली, ‘‘दीदी, अब मैं यहां से कहां जाऊं, अब तो यही मेरा घर है. अब मैं इस घर की बहू और तुम्हारी भाभी हूं.’’

यह बात सुनते ही डा. आकांक्षा को दिन में तारे नजर आ गए. वह बोली, ‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम? जानती हो कि क्या कह रही हो?’’

‘‘हां दीदी, मैं जो भी कह रही हूं, वह सच ही है. अगर तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा तो अपने भाई से ही पूछ लो.’’

लेकिन शिवम तो पहले ही मंदबुद्धि था. उस के बाद भी डा. आकांक्षा को विश्वास नहीं हुआ तो प्रीति ने आकांक्षा को शादी के फोटो दिखाते हुए विश्वास दिलाने की कोशिश की. जिस में वह अस्पताल के रूम में शिवम के साथ उस के गले में माला पहनाते हुए नजर आ रही थी. यह सब देखते हुए उसे हैरत हुई. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस की मम्मी उसे बिना कुछ बताए ही इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकती थीं. डा. आकांक्षा की हर रोज ही अपनी मम्मी से बात होती थी. लेकिन एक दिन भी उन्होंने उस से इस बारे में जिक्र तक नहीं किया था.

फिर भी डा. आकांक्षा ने प्रीति से शादी के मामले में कोई अन्य प्रूफ दिखाने की बात कही, लेकिन प्रीति के पास न तो कोर्ट मैरिज का कोई पेपर ही था और न ही किसी प्रकार का कोई अन्य सबूत. प्रीति के पास फोटो के अलावा कोई सबूत नहीं मिला तो उस ने तीनों महिलाओं को घर से निकल जाने को कहा. साथ ही डा. आकांक्षा ने तीनों को धमकी दी कि अगर वह सीधी तरह से घर से नहीं निकली तो वह उन्हें पुलिस के हवाले कर देगी.

पुलिस की धमकी सुन कर प्रीति ने फोन कर के सचिन को भी बुला लिया. डा. आकांक्षा सचिन को ठीक से जानती थी. सचिन के आते ही डा. आकांक्षा ने कहा, ‘‘अंकल, आप ने तो प्रीति को हमारे यहां पर एक मेड के काम के लिए रखवाया था. फिर अब वह जो बकवास कर रही है, वह सब क्या नौटंकी है?’’

डा. आकांक्षा की बात सुनते ही सचिन ने बताया कि आप की मम्मी ने मेरे सामने ही आप के भाई की शादी प्रीति के साथ कराई थी. आप की मम्मी शिवम को ले कर काफी समय से परेशान थीं. बीमारी के दौरान उन्होंने ही मेरे सामने शिवम की शादी प्रीति के साथ करने की इच्छा जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि अब मेरा तो पता नहीं कि कब मौत आ जाए. मेरी मौत के बाद मेरा बेटा बिलकुल ही अकेला पड़ जाएगा. मैं चाहती हूं कि मेरे जिंदा रहते ही मेरे बेटे की शादी हो जाए, जिस से मेरी मौत के बाद मेरा बेटा ठीकठाक रह सके. यही इच्छा जाहिर करते ही उन्होंने अस्पताल में एकदूसरे को माला पहना कर शादी की थी.

सचिन ने डा. आकांक्षा के सामने जो बात कही थी, वह भी उस के गले नहीं उतर रही थी. फिर भी उस ने कहा कि वह इस शादी पर विश्वास नहीं कर सकती. जब डा. आकांक्षा इस बात से सहमत नहीं हुई तो सचिन ने फोन कर के पुलिस को बुला लिया. सचिन के बुलाने पर पुलिस आ भी गई, लेकिन पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाई तो वह भी वहां से चली गई. उस के बाद सचिन भी उसी घर में उन के साथ रहने लगा. सचिन ने डा. आकांक्षा से साफ शब्दों मे कहा कि अब इस संपत्ति की मालिक प्रीति है. वह ही शिवम की पत्नी है. वह इस घर से कहीं नहीं जाएगी.

उन सभी के घर में रहते डा. आकांक्षा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. डा. आकांक्षा समझ चुकी थी कि यह सब उस की भाई की संपत्ति हड़पने का मायाजाल है. उस के बाद डा. आकांक्षा गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मिलीं और अपने साथ हुई धोखाधड़ी की कहानी सुनाई.

पुलिस ने खोल दी फरजी शादी की पोल

22 सितंबर, 2023 को इस मामले को ले कर डा. आकांक्षा की ओर से सचिन, प्रीति और उस की सहयोगी महिलाओं के खिलाफ धोखाधड़ी कर के संपत्ति हड़पने का मुरादनगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया. थाने में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने इस मामले में जांचपड़ताल शुरू कर दी. जांच के दौरान पता चला कि सचिन पर पहले ही मुरादनगर, मसूरी और सिहानी गेट थाने में Social Story in Hindi धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं. सचिन गाजियाबाद में नूरपुर गांव का रहने वाला था. उसी जांचपड़ताल के दौरान इस शादी की हकीकत सामने आई कि करोड़ों की प्रौपर्टी को हड़पने के लिए इस गैंग ने यह षडयंत्र रचा था.

उसी दौरान पुलिस जांच में पता चला कि प्रीति की भी इस मामले में पूरी भागीदारी थी. प्रीति इस से पहले इसी तरह से धोखाधड़ी कर कई लोगों को चूना लगा चुकी थी. इस से पहले वह 10 शादियां कर चुकी थी. पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए उस की 4 शादियों के दस्तावेज भी हासिल कर लिए थे. यह सब जानकारी जुटाते ही पुलिस डा. सुधा के घर पर पहुंची तो पुलिस के पहुंचने से पहले ही सभी फरार हो चुके थे. उस के बाद पुलिस ने सचिन के गांव में उस के घर पर छापा मारा तो वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने सचिन को गिरफ्तार किया और मुरादनगर थाने ले आई.

थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने सारा राज आसानी से खोल दिया. सचिन ने स्वीकार किया कि सीधेसादे लोगों को अपने विश्वास में ले कर उन की शादी के बहाने उस का गैंग मोटी रकम ऐंठता था, जिस में प्रीति का अहम रोल था. सचिन ने पुलिस को बताया कि अब तक गैंग के लोग प्रीति की 10 शादियां करा कर करोड़ों रुपए कमा चुके हैं. इस पूरे गैंग का संचालक सचिन ही था. वही प्रीति के साथ प्रवेश और नीलम के सहारे ही करोड़पति घरानों में पहले मेड की नौकरी दिलाता था और फिर उन की प्रौपर्टी हथियाने के लिए मंदबुद्धि, दिव्यांग या फिर अधिक उम्रदराज व्यक्तियों के साथ शादी कर उन को अपने जाल में फंसा कर करोड़ों कमाता था.

यह गैंग के सदस्य किस तरह से लोगों को अपने जाल में फंसाता था और किस तरह लोगों को लूट कर फरार हो जाते, यह सभी को सचेत करने वाली नसीहत भरी कहानी है.

सचिन फरजी शादी कर ब्लैकमेलिंग का चलाता था गैंग

सचिन गाजियाबाद जिले के गांव नूरपुर का रहने वाला था. उस ने मात्र हाईस्कूल ही पास किया था. वह शुरू से ही शातिर दिमाग था. प्रीति उस के रिश्ते की भांजी थी. वह पहले से ही घरों में मेड का काम किया करती थी. प्रीति जब पहली बार किसी के घर में मेड के काम पर गई तो उस का लडक़ा विकलांग था, जिस की शादी नहीं हो पा रही थी. उस के पास करोड़ों रुपए की जमीनजायदाद थी. प्रीति ने उस की जमीनजायदाद को देख कर पहली बार गेम खेला और उस के लडक़े के साथ शादी कर के उस घर से लाखों रुपए के जेवर और नकदी ले कर फरार हो गई थी.

इस के बाद सचिन उस से मिला. प्रीति का यह काम उसे अच्छा लगा. फिर वह उसी के साथ उस की सहायता कर के ऐसे ही घरों को तलाश करने लगा था, जिस घर में विकलांग या फिर मंदबुद्धि अनमैरिड युवा होते थे. उस के बाद वह किसी भी तरह से उस परिवार से संपर्क कर के जानपहचान बढ़ा लेता था. उस के बाद मेड दिलाने के नाम पर प्रीति को वहां पर लगा देता था. फिर प्रीति उस घर में घुसते ही वहां पर अपना विश्वास जमा लेती और शादी कर के कुछ दिन वहीं पर रहती. योजना के अनुसार वह उस परिवार पर तरह तरह के आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज करा देती, जिस के बाद अधिकांश परिवार अपनी इज्जत के डर से उसे मोटी रकम दे कर समझौता कर लेते थे. यही काम करते करते उस ने दिल्ली एनसीआर में 3 शादियां की थीं. उस से पहले उस ने 3 शादियां हरियाणा में की थीं. जिस के बाद वह सभी को चूना लगा कर फरार हो जाती थी.

डा. सुधा के घर भी प्रीति को सचिन ने ही बतौर मेड के रूप में रखवाया था. सचिन का डा. सुधा के घर पहले से ही आनाजाना था. उन्हीं संबंधों के कारण एक दिन डा. सुधा ने सचिन से किसी मेड को दिलाने की बात कही थी. सचिन का मकसद भी यही था. डा. सुधा के कहते ही उस ने प्रीति को उन के घर भेज दिया था. डा. सुधा के घर जाते ही प्रीति ने मीठी मीठी बातें बनाते हुए उन पर पूरा विश्वास जमा लिया था. डा. सुधा का बेटा शिवम पहले से ही मंदबुद्धि था. उस में सोचनेसमझने की ज्यादा क्षमता नहीं थी. सचिन को यह भी पता था कि डा. सुधा की बीमारी आखिरी स्टेज पर पहुंच चुकी है, जिस के कुछ दिन बाद उन की मौत निश्चित है.

यही सोच कर उस ने प्रीति को समझा दिया कि वह किसी भी तरह से शिवम और डा. सुधा से प्यार जताते हुए उस के साथ उस के गले में माला डाल कर शादी की नौटंकी करे. फिर उस के बाद बाकी वह देख लेगा. उस वक्त डा. सुधा की हालत ज्यादा ही खराब थी. न तो वह अधिक बोल सकती थीं और न ही ज्यादा चलफिर सकती थीं. उन की हालत का नाजायज फायदा उठाते हुए प्रीति ने एक दिन उन से बात करते हुए कहा, ‘‘मैडम, हर रोज आप की हालत खराब होती जा रही है. अगर आप को कुछ हो गया तो आप के पीछे शिवम बाबू की देखरेख कौन करेगा. इसीलिए मैं चाहती हूं कि इस से पहले आप को कुछ हो जाए, आप शिवम बाबू की शादी मुझ से कर दो. ताकि आप के बाद मैं उन की पूरी देखरेख कर सकूं.’’

हालांकि डा. सुधा की हालत दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. फिर भी वह प्रीति के कहने पर उस की शादी करने को तैयार न थीं.

सचिन और प्रीति का प्लान हुआ फेल

उसी दौरान डा. सुधा की तबीयत ज्यादा ही खराब हो गई, जिस के कारण उन्हें अस्पताल में भरती कराना  पड़ा. उसी वक्त प्रीति ने फिर से डा. सुधा के सामने वही शादी की बात दोहराई. डा. सुधा उस वक्त ऐसी हालत में थीं कि वह कुछ कहनेसुनने में पूरी तरह से असमर्थ थीं. उन की हालत को देखते हुए प्रीति अपने साथ लाई माला ले कर शिवम के गले में डालते हुए फिर उसी तरह से उस से भी अपने गले में डलवा ली. शिवम कुछ भी नहीं समझ पाया था. उस के साथ ही उस ने दोनों के माला डालते हुए कई फोटो भी खींच लिए थे. उस के साथ ही प्रीति ने डा. सुधा के साथ खड़े हो कर भी फोटो खिंचवाए थे. यह नौटंकी खत्म करने के बाद सभी डा. सुधा की मौत का इंतजार करने लगे.

जैसे ही 7 अगस्त, 2023 को डा. सुधा की मौत हुई, उस के बाद ही सचिन की पूर्व योजनानुसार प्रीति ने खुद को शिवम की पत्नी मान लिया और अपनी सहेली प्रवेश और नीलम को भी बुला लिया था. लेकिन डा. आकांक्षा के आगे उन का सारी योजना धरी की धरी रह गई. हालांकि सचिन ने शिवम की सारी संपत्ति हड़पने के लिए यह साजिश रची थी, लेकिन अपने इस मंसूबे में यह गैंग कामयाब नहीं हो पाया था. इस केस का खुलासा करते हुए डीसीपी (रूरल) विवेकचंद्र यादव ने बताया कि अगर किसी तरह से यह केस पुलिस तक नहीं पहुंच पाता तो ये लोग अपनी योजना में हरगिज कामयाब नहीं हो पाते. क्योंकि डा. सुधा ने पहले ही अपनी सारी प्रौपर्टी की वसीयत अपने बेटे के नाम करा दी थी. लेकिन बाद में अपने बेटे की हालत देखते हुए उन्होंने अपनी प्रौपर्टी अपनी बेटी डा. आकांक्षा के नाम कर दी थी. ताकि उन के खत्म होने के बाद उन की प्रौपर्टी सहीसलामत रहे.

इस मामले में पुलिस ने इस गैंग के संचालक हिस्ट्रीशीटर सचिन को 2 अक्तूबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. प्रीति की तलाश में गाजियाबाद पुलिस की एक टीम हरियाणा मेें डेरा डाले हुए थी. गाजियाबाद पुलिस की जांच में सामने आया कि प्रीति पर सोनीपत में भी कई मुकदमे दर्ज हैं. इसी वर्ष 2023 में भी सोनीपत सिटी कोतवाली में एक धमकी का और दूसरा आईटी ऐक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के अलावा प्रीति ने वर्ष 2022 में भी एक लेखपाल के खिलाफ सोनीपत सदर कोतवाली में रेप का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस में प्रीति कोर्ट में दिए बयान से पलट गई थी.

उस में प्रीति ने अपना केस वापस लेने के लिए उस लेखपाल से लाखों रुपए लिए थे. जिस की गिरफ्तारी के बाद ही इस पूरे गेम की फाइल खुल सकेगी. इस मामले में पुलिस ने उस के पूर्व में रहे पतियों से भी बातचीत की थी.

पुलिस पूछताछ के दौरान जानकारी मिली कि प्रीति पहले शादी करती और फिर अपने पतियों पर तरहतरह के आरोप लगा कर केस दर्ज करा देती थी. फिर उन से केस वापस लेने की एवज में अच्छीखासी मोटी रकम की मांग करती थी. उस के साथ ही वह दूसरे शिकार की तलाश में लग जाती थी.

-कथा लिखने तक पुलिस यह भी जांच कर रही थी कि इस गैंग में और कितने लोग शामिल हैं.