MP News : सोसाइटी के द्वारा ठगे 10 हजार करोड़

MP News : समीर अग्रवाल ऐसा शातिर व्यक्ति था कि उस ने अपने सागा ग्रुप के अंतर्गत केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय से 7 सोसाइटियों के रजिस्ट्रैशन कराए. इस के बाद उस ने देश के विभिन्न शहरों में दफ्तर खोल कर विभिन्न आकर्षक योजनाओं में लोगों के 10 हजार करोड़ रुपए जमा कराए. लालच में फंसे लोगों को अपने ठगे जाने का अहसास तब हुआ, जब…

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के दबोह कस्बे के रहने वाले गोटीराम राठौर उस दिन अपने खेत में लगी गेहूं की फसल में पानी दे कर अपने घर कुछ समय पहले ही आए थे. पत्नी खाना परोसने की तैयारी कर रही थी कि एक परिचित व्यक्ति ने उन के घर पर दस्तक देते हुए कहा, ”भाईजी नमस्कार, मैं एलजेसीसी (लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड) का एजेंट हूं. सोसाइटी बैंकिंग का काम भी करती है. ग्राहकों के लिए सोसाइटी बहुत सी बचत की स्कीम चला रही है, जिस में रुपए जमा करने पर भरपूर फायदा मिलता है. सोसायटी की कुछ स्कीम के बारे में जानकारी देने आया हूं.’’

”हां जी, बताइए कौन सी स्कीम है आप की सोसायटी की.’’ सामने पड़े लकड़ी के तख्त पर बैठने का इशारा करते हुए गोटीराम ने कहा.

”हमारी सोसायटी की स्कीम के तहत आप का जमा रुपया 5 साल में दोगुना हो जाता है. बैंकों से ज्यादा ब्याज हमारी सोसायटी ग्राहकों को देती है, कम समय में रकम दोगुना करने की स्कीम और किसी भी बैंक में नहीं है.’’ एजेंट बोला.

”इस सोसायटी का औफिस वगैरह कहां है. हमारा जमा पैसा सुरक्षित तो रहेगा न?’’ आशंका जाहिर करते हुए गोटीराम बोले.

”हां जी, सौ फीसदी सेफ. यह सोसायटी भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में रजिस्टर्ड है और भिंड शहर में ही सोसाइटी की ब्रांच है. फिर मैं हूं न.’’ एजेंट बोला.

”कितने रुपए जमा करने होंगे थोड़ा जानकारी दीजिएगा.’’ गोटीराम ने जिज्ञासा दिखाते हुए कहा.

”कम से कम 5 हजार और अधिकतम जितना आप जमा कर सकें.’’ एजेंट बोला.

”हमें जमीन के मुआवजे के तौर पर साढ़े 5 लाख रुपए मिले हैं, क्या पूरी रकम जमा कर सकते हैं?’’ गोटीराम ने पूछा.

”हां, जरूर कर सकते हैं, 5 साल में सोसाइटी आप को 11 लाख रुपए वापस कर देगी.’’ एजेंट ने भरोसा दिलाते हुए कहा.

तभी गोटीराम की पत्नी एजेंट को चाय बना कर ले आई. चाय पीने के बाद गोटीराम ने एजेंट से पूछा, ”इस के लिए कौन से दस्तावेज की जरूरत पड़ेगी और रुपए चैक से देने होंगे या नकद?’’

”भाईजी, बस आप का आधार कार्ड, एक फोटो आप को देनी होगी और नकद रुपए जमा करने पड़ेंगे.’’ एजेंट बोला.

”ठीक है, 2 दिन बाद आ जाइए, मैं बैंक से पैसा निकाल कर ले आऊंगा.’’ गोटीराम ने सहमति देते हुए कहा. गोटीराम राठौर की खेती की जमीन को सरकार ने हाईवे बनाने के लिए अधिगृहीत किया था, इस के एवज में उन्हें साढ़े 5 लाख रुपए का मुआवजा मिला था. गोटीराम ने सोचा यह रकम 5 साल में दोगुनी हो जाएगी यानी 11 लाख रुपए मिलेंगे. फायदे का सौदा देख गोटीराम ने पूरी रकम एजेंट के जरिए सोसाइटी में जमा कर दी. यह बात 2019 की है.

5 साल पूरे होने पर गोटीराम अपने दोगुने रुपए पाने का इंतजार कर रहे थे कि उन्हें पता चला कि यह सोसाइटी बहुत से लोगों का पैसा ले कर चंपत हो गई. आज हालात ये हैं कि सोसाइटी के दफ्तरों में ताले पड़े हुए हैं. गोटीराम राठौर की एक गलती की वजह से उन की जमीन भी चली गई और लालच में पैसा भी गंवा बैठे. एकांत में बैठ कर वे खुद को बारबार अभी भी कोसते हैं. यह कहानी अकेले गोटीराम की नहीं है. भिंड जिले के अलगअलग कस्बों के लोगों के साथ इसी तरह का फ्रौड हुआ है, जिस में लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए डूब चुके हैं.

टीकमगढ़ में ठेले पर सैंडविच बेचने वाले  अनूप रैकवार ने भी आज से 3 साल पहले एलजेसीसी में हर दिन 500 रुपए जमा किए थे. उसे बताया गया था कि 3 साल में 5 लाख 40 हजार रुपए जमा होंगे और मैच्योरिटी पूरी होने पर 7 लाख रुपए वापस मिलेंगे. अनूप दिन भर जीतोड़ मेहनत कर अपने बच्चों के भविष्य के लिए यह बचत कर रहा था. अब कंपनी भाग गई है. जिस एजेंट ने उस से पैसा जमा करवाया था, उस ने भी पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए तो अनूप के सारे सपने बिखर गए.

इसी तरह गंजबासौदा में फेरी लगा कर सामान बेचने वाले सचिन गोयल जेएलसीसी में रोज 100 रुपए जमा करता था. उस ने इस तरह 36 हजार रुपए जमा किए. एक साल में उसे 38 हजार रुपए देने का लालच दिया गया था. अब ब्रांच में ताला लग चुका है तो सचिन अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है.

समीर ने किया 10 हजार करोड़ का फ्रौड

जब इस पूरे मामले की पड़ताल की गई तो पता चला कि एलजेसीसी सोसाइटी ने न केवल भिंड में बल्कि मध्य प्रदेश के 16 जिलों के लोगों के साथ करीब 10 हजार करोड़ का फ्रौड किया है. फ्रौड के शिकार हुए लोग अब पुलिस थानों के चक्कर काट रहे हैं. फ्रौड करने वाली इस सोसाइटी का संबंध सागा ग्रुप से है, जिस ने पिछले 15 सालों में देश के 16 राज्यों के एक हजार शहरों व कस्बों में अलगअलग नाम की कंपनी और फिर सोसाइटियों के दफ्तर खोल रखे थे. एमपी के टीकमगढ़, विदिशा, भिंड, सागर, छतरपुर, दमोह, सागर, कटनी, सीहोर आदि शहरों में जनवरी 2024 से कंपनी ने मैच्योरिटी की राशि का भुगतान करना बंद कर दिया था.

पहले लोगों को लोकसभा चुनाव का हवाला दिया गया, इस के बाद अलगअलग बहाने बनाए गए. जब पैसा नहीं मिला तो लोगों ने थाने पहुंच कर शिकायतें करनी शुरू कीं. अगस्त 2024 में ललितपुर और टीकमगढ़ में एक साथ पुलिस ने पहली बार पीडि़तों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की. अगस्त 2024 में टीकमगढ़  शहर के कई निवेशकों ने एसपी औफिस आ कर शिकायती पत्र देते हुए बताया था कि टीकमगढ़ शहर के चकरा तिराहे स्थित एलजेसीसी औफिस बंद कर के भाग गई है और लोगों का करोड़ों रुपए वापस नहीं कर रहे हैं. टीकमगढ़ के तत्कालीन एसपी रोहित काशवानी के पास सागा ग्रुप की सोसाइटी के खिलाफ 100 लोगों की शिकायतें आईं.

शिकायत मिलने के बाद टीकमगढ़ पुलिस कोतवाली में लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के खिलाफ 5 एफआईआर दर्ज कीं और इस मामले की जांच के लिए एडिशनल एसपी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया. टीकमगढ़ शहर में ब्रांच मैनेजर रहे सुबोध रावत सहित 5 लोगों को हिरासत में ले कर जब पूछताछ की गई तो इस पूरी चिट फंड कंपनी और लोगों से ठगी करने वाले गिरोह का परदाफाश हुआ. इस सोसाइटी में काम करने वाले लोगों ने करोड़ों रुपए की ठगी कर के अपनी संपत्ति बनाई. इस कंपनी का सीएमडी समीर अग्रवाल दुबई में रहता है, उस के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया.

एसपी ने बताया कि वर्ष 2012 से ले कर 2024 तक 12 वर्षों के दौरान इस कंपनी ने टीकमगढ़ जिले के निवेशकों से करोड़ों रुपए की राशि फरजी तरीके से हड़प कर के बैंक प्रबंधन में काम करने वाले कर्मचारियों ने जमीन, मकान, वाहन और सरकारी बैंकों में एफडीआर बना लिए और अंत में सोसाइटी को बंद कर के फरार हो गए. इन में से सोसाइटी के टीकमगढ़ हैड सुबोध रावत समेत 11 आरोपियों को पुलिस ने उसी समय गिरफ्तार कर लिया था. साथ ही आरोपियों की 4 करोड़ रुपए कीमत की प्रौपर्टी भी जब्त की थी, जिस में वाहन और जमीनें शामिल थीं.

चिटफंड कंपनी के नाम पर करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले 5 आरोपियों ब्रांच मैनेजर सुबोध रावत, अजय तिवारी, विजय कुमार शुक्ला, राहुल यादव और जियालाल राय को गिरफ्तार कर  इन सभी आरोपियों पर बीएनएस की धारा 111, 318, 61(2) के तहत गिरफ्तारी की गई.

मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भी सोसाइटी द्वारा कई हजार करोड़ की ठगी सिंडिकेट बना कर की गई. ललितपुर के एसपी मोहम्मद मुश्ताक के मुताबिक, अभी तक 13 एफआईआर दर्ज की हैं. इस मामले में ललितपुर के मास्टरमाइंड रवि तिवारी और आलोक जैन को गिरफ्तार किया है. उन के खातों में जमा 54 लाख रुपए फ्रीज कराया गया है. ईडी भी इस मामले की जांच कर रही है. उत्तराखंड पुलिस भी 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है. दुबई के अबूधाबी में बैठे मास्टरमाइंड समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया गया है.

शुरुआत में सागा ग्रुप ने अपना खूब प्रचारप्रसार करते हुए दावा किया कि उन की कंपनी विदेशों में सोने, कोयले की खदान, तेल कुआं और रियल एस्टेट का काम करती है. कंपनी का सीएमडी समीर अग्रवाल इतना शातिरदिमाग है कि उस ने पिछले 15 साल से अलगअलग नाम की कंपनी और सोसाइटियों के जरिए लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी को अंजाम दिया.

सब से पहले साल 2009 में एडवांटेज ट्रेड काम नाम से ग्वालियर में कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया. उस समय यह कंपनी टूर पैकेज बेचने का काम करती थी. इस में 7,500 रुपए एक ग्राहक से लिए जाते थे. टूर देश के ही अलगअलग हिस्सों में कराया जाता था. 3 साल के इस प्लान में यदि कोई ग्राहक टूर नहीं करता था तो उसे डबल रकम के तौर पर 15,000 रुपए भुगतान का लालच दिया जाता था.

साल 2012 में औप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का ग्वालियर में औफिस खोल लिया और इस कंपनी में एडवांटेज ट्रेड के ग्राहकों को मर्ज कर दिया गया. इस का हैड औफिस इंदौर में खोला गया. कंपनी तब बांड बेचती थी, इस में 5 साल में लोगों की रकम डबल करने का झांसा दे कर लाखों रुपए जमा कराए गए. साल 2016 में कंपनी बंद कर के समीर अग्रवाल ने कृषि मंत्रालय में अलगअलग नामों से 7 सोसाइटियां रजिस्टर्ड करा लीं. मध्य प्रदेश में श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी (एसएसवी) ने औप्शन वन इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का स्थान लिया.

जब भोपाल में एसएसवी के खिलाफ शिकायतें और एफआईआर दर्ज होने पर सेबी ने इस के कामकाज पर रोक लगा दी तो साल 2019 में एसएसवी सोसाइटी बंद कर लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (एलजेसीसी) खोल ली. एमपी में इस सोसाइटी ने काम शुरू किया तो एसएसवी के सभी ग्राहकों को इस में मर्ज कर दिया गया, लेकिन सारा काम पुरानी सोसाइटी की तरह ही होता रहा. सागा ग्रुप ने एमपी में उन जगहों को टारगेट किया, जहां लोगों को सरकारी मुआवजे के तौर पर पैसा मिला था.

एमपी और यूपी के बुंदेलखंड रीजन में पिछले सालों में सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट आए थे. ललितपुर में 2012 में बजाज पावर प्लांट की स्थापना हुई, मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में बानसजारा बांध बना. सरकार ने लोगों की जमीनें अधिगृहीत कर उन्हें मुआवजा दिया. किसानों के पास आए इस पैसे पर सागा ग्रुप ने नजर जमा कर सोसाइटियों के जरिए यह पैसा अपनी स्कीम्स में निवेश करा लिया.

लोगों को प्रलोभन देने के लिए कंपनी ने तरहतरह की स्कीमें चला रखी थीं. इस काम के लिए कंपनी ने एजेंट बना रखे थे. कंपनी ने एजेंटों को भी लुभावने औफर दे कर अपने जाल में फंसा लिया था. कंपनी द्वारा चलाए गए मासिक पेंशन प्लान में 500 से 25 हजार का लगातार 78 महीने तक निवेश करने पर हर महीने 450 रुपए से ले कर 90 हजार रुपए देने का वादा किया गया. धन पेटी स्कीम में एक हजार से 25 हजार रुपए 78 महीने तक इनवैस्टमेंट करने पर 21 साल बाद 3.75 लाख से 93.80 लाख रुपए देने का औफर ग्राहकों को दिया गया था.

सोसाइटी एजुकेशन प्लान के अंतर्गत कहा गया था कि एक से 10 हजार रुपए 7 साल तक हर महीने जमा करने पर 14 साल 6 महीने बाद मैच्योरिटी होने पर 2.50 लाख से ले कर 25 लाख रुपए मिलेंगे. दिवाली औफर के नाम पर शुरू की गई योजना में हर महीने 200 रुपए 3 साल तक जमा करने पर मैच्योरिटी होने पर 9,440 रुपए देने को कहा गया. कंपनी स्कीमों के लिए पासबुक से ले कर बांड देती थी, जिस में पूरा ब्योरा दर्ज होता था.

शातिरों ने कैसे फैलाया ठगी का नेटवर्क

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में  सागा ग्रुप ने साल 2012-13 के बीच कुल 7 सोसाइटियों का रजिस्ट्रैशन कृषि मंत्रालय में कराया, इन में से 2 सोसाइटियों के दफ्तर मध्य प्रदेश में खोले गए. लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड का रजिस्ट्रेशन 24 जनवरी 2013 को हुआ, जिस में समीर अग्रवाल सीएमडी, अनुराग बंसल चेयरमैन, आर.के. शेट्टी वित्तीय सलाहकार, संजय मुदगिल ट्रेनर, सुतीक्ष्ण सक्सेना और पंकज अग्रवाल पार्टनर के तौर पर जुड़े. सागा ग्रुप ने सोसाइटी का रजिस्ट्रैशन लोन देने के लिए किया था.

कंपनी 2016 से बैंकिंग, क्रेडिट, एफडी, आरडी, एमआईएस, सुकन्या, धन पेटी, एजुकेशन प्लान, पेंशन प्लान, आयुष्मान जैसी स्कीम में देश के 6 राज्यों में 7 सोसाइटियों के जरिए लोगों से पैसा इनवेस्ट कराने लगी.  सोसाइटियों के रजिस्ट्रैशन के बाद देशभर में तहसील और ब्लौक स्तर पर एक हजार ब्रांच खोल कर करीब एक लाख एजेंट्स बनाए गए. कुछ को सैलरी पर रखा, बाकियों को इनवैस्टमेंट लाने पर 4 से 12 प्रतिशत का कमीशन दिया जाता था. मध्य प्रदेश के 16 जिलों में 40 ब्रांच औफिस खोले गए. यूपी के ललितपुर समेत 22 जिलों में भी जगहजगह ब्रांच औफिस खोले गए.

ये सोसाइटी लुभावनी स्कीम लांच कर लोगों के पैसे जमा कराती थी, इन में मंथली इनकम सहित एफडी, आरडी, एमआईएस की रसीद दे कर मैच्योरिटी की तारीख तय कर देती थी. नकद लेनदेन पर ज्यादा जोर था. इस में प्रतिदिन के हिसाब से भी लोगों से पैसे जमा कराए जाते थे. सभी सातों सोसाइटियों में एक तरह के निवेश प्लान लांच किए गए थे, इन में एक साल से ले कर 21 साल तक के प्लान शामिल थे. एक हजार रुपए एक साल में जमा करने वाले को 1,172 रुपए दिए जाते थे. वहीं, 5 साल की एफडी पर यह रकम दोगुना करने का दावा करते थे.

इस के अलावा रोजाना और महीने के अनुसार आरडी का भी प्लान था. इस में 200 रुपए महीने जमा करने पर एक साल की मैच्योरिटी पर 2,560 रुपए मिलते थे. आरडी 200 से 5,000 रुपए के बीच कोई भी खोल सकता था, इस में भी एक साल से ले कर 7 साल तक का प्लान पेश किया गया था. लोगों को आकर्षित करने के लिए सागा ग्रुप ने वेबसाइट और ऐप बना रखे थे. सभी एजेंटों को ऐप के जरिए ही लोगों के पैसे जमा कराने होते थे. इस का लौगिन और पासवर्ड होता था. इस में ग्राहक की पौलिसी नंबर के आधार पर एजेंटों को उस की मैच्योरिटी देखने की सुविधा मिलती थी.

एजेंट जोडऩे का चेन सिस्टम था. एजेंट जो भी पैसे निवेश कराते थे, उस के ऊपर वाले एजेंट को भी उस में से कुछ प्रतिशत कमीशन मिलता था. ये चेन सिस्टम सीएमडी समीर अग्रवाल तक बना हुआ था. इसी ऐप में एजेंट्स का कमीशन भी आता था, जो पौइंट्स के रूप में दिखता था. इसे कैश करने का एक ही तरीका था कि उतनी राशि वो किसी ग्राहक से निवेश कराए और उसे खुद रख कर पौइंट के रूप में मिले कमीशन से उस का भुगतान कर दे. एजेंटों को उन के कमीशन पर सोसाइटी जीएसटी भी काटती थी.

एजेंटों को हर महीने ट्रेनिंग के लिए झांसी, सागर, लखनऊ, भोपाल आदि शहरों में बुलाया जाता था, जहां उन के रुकने से ले कर खानेपीने की सारी व्यवस्था सोसाइटी ही करती थी. समयसमय पर एजेंट को औनलाइन ट्रेनिंग कराई जाती थी. ट्रेनर के तौर पर संजय मूट्रिल जुड़ता था, वो एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मिलने वाले औफर्स को इतने लुभावने तरीके से पेश करता था कि एजेंट उसे पूरा करने के लिए जीजान लगा देते थे.

एलजेसीसी सहित सभी सोसाइटी अपने एजेंटों को टारगेट पूरा करने पर मुंबई, गोवा आदि शहरों के साथ बैंकाक, थाईलैंड और दुबई जैसे देशों की सैर भी कराती थी. देश के बड़ेबड़े शहरों जैसे मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नै आदि जगहों पर सेमिनार करती थी. इन में एजेंटों को सम्मानित किया जाता था. साथ ही टारगेट पूरा करने वाले एजेंट्स को बड़ी और महंगी गाडिय़ां गिफ्ट में दी जाती थीं. किसे कौन सी गाड़ी मिलेगी, यह उस के हर महीने के इनवैस्टमेंट पर डिपेंड करता था. न्यूनतम राशि के साथ कंपनी गाड़ी खरीद कर देती थी. बाकी पैसा बैंक से फाइनैंस कराया जाता था, जिस की किस्त एजेंट अपने टारगेट पूरे कर भरता था.

हाईकोर्ट तक कैसे पहुंचा ठगी का मामला

भोपाल की चिटफंड कंपनी सागा ग्रुप  और उस से जुड़ी सहकारी सोसाइटी में 10 हजार करोड़ की धोखाधड़ी, हजारों निवेशकों के साथ ठगी के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच में 2 सितंबर, 2024 को सुनवाई हुई. हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा एवं जस्टिस विनय सराफ की डबल बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार सहित संबंधितों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने स्टेटस रिपोर्ट अगली सुनवाई से पहले कोर्ट में पेश करने के भी निर्देश दिए हैं.

याचिका में इस धोखाधड़ी की जांच निष्पक्ष एजेंसी या सीबीआई से कराने की मांग की गई थी. याचिका में डीजीपी, प्रमुख सचिव गृह विभाग, एसपी भोपाल, कोऔपरेटिव सोसाइटी और उन के पदाधिकारियों सहित अन्य को अनावेदक बनाया गया है. भोपाल के पिपलानी की तरह सागर के रहली थाने में 15 सितंबर, 2024 को पुष्पेंद्र राठौर ने अशोक राज, संजय मिश्रा और सुषमा मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. पुष्पेंद्र ने शिकायत में बताया था कि वह 2022 में कंपनी से एजेंट के तौर पर जुड़ा था. उस ने लोगों से 14 लाख रुपए जमा कराए थे. साल 2024 में 35 लोगों की मैच्योरिटी पूरी हुई तो उस ने भुगतान के लिए ब्रांच से संपर्क किया.

ब्रांच के लोग कुछ समय तक अलगअलग बहाने बनाते रहे. फिर कहा गया कि रहली की इस ब्रांच को मकरोनिया में मर्ज कर दिया गया है, वहां से भुगतान होगा. किसी तरह 5 लाख रुपए के लगभग भुगतान तो कर दिया  गया, लेकिन अभी 10 लाख रुपए का भुगतान नहीं किया गया है. इस मामले में बीएनएस की धारा में प्रकरण दर्ज कर रहली पुलिस ने इस मामले में 9 नवंबर, 2024 को ब्रांच मैनेजर अशोक राज को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद आरोपी की ओर से शिकायतकर्ता से समझौता कर लिया गया. शिकायतकर्ता पुष्पेंद्र राठौर ने बताया कि उस के द्वारा कराए गए निवेश की राशि लौटा दी गई है. इस की वजह से उस ने शिकायत वापस ले ली.

निवेशकों को चूना लगाने में उत्तर प्रदेश के एक जीजासाले की जोड़ी की अहम भूमिका रही है. आलोक की ममेरी बहन शैलजा बजाज से रवि तिवारी की शादी हुई थी. इस तरह से दोनों रिश्ते में जीजासाले लगते हैं. ललितपुर के रहने वाले आलोक जैन और रवि तिवारी दोनों ने एक साथ समीर अग्रवाल की कंपनी जौइन की थी. कंपनी से जुडऩे से पहले आलोक ललितपुर मंडी में जूट के बोरे बेचने का काम करता था. आलोक को समीर अग्रवाल ने यूपी और उत्तराखंड का हैड बनाया था. उस ने एमपी में कंपनी के ब्रांच औफिस खोलने में अहम भूमिका निभाई थी. आलोक ने अकेले समीर अग्रवाल की जेएलसीसी और यूएलसीसी सोसाइटियों में 1800 करोड़ रुपए का निवेश कराया था.

आलोक ने ललितपुर, भोपाल, इंदौर में काफी प्रौपर्टी बनाई है. ललितपुर में वह कई कालोनियों में पार्टनर भी है. उस ने हैदराबाद में भी प्रौपर्टी खरीदी है. ललितपुर पुलिस के मुताबिक आलोक जैन के पास 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. उत्तर प्रदेश के ललितपुर के रहने वाले रवि तिवारी के पिता तिलकराम होमगार्ड जवान थे. 3 भाइयों में सब से बड़ा रवि साल 2008-09 में पिता के साथ ललितपुर में चाट फुलकी का ठेला लगाता था. साल 2009 में समीर अग्रवाल ने झांसी में एडवांटेज ट्रेड काम कंपनी का एक कार्यक्रम आयोजित किया था. रवि अपने रिश्तेदार आलोक के साथ इस कार्यक्रम में पहुंचा था. दोनों ने बतौर एजेंट एडवांटेज ट्रेड काम कंपनी जौइन की. उस समय दोनों की उम्र मुश्किल से 17-18 साल रही होगी.

दोनों ने बेहद कम समय में कंपनी को करोड़ों का इनवैस्टमेंट दिलाया तो सीएमडी समीर अग्रवाल के चहेते बन गए. समीर ने उन के काम से खुश हो कर आलोक को यूपी और उत्तराखंड का, जबकि रवि को एमपी का हैड बना दिया. रवि तिवारी ने निवेशकों की जमा रकम से भोपाल, इंदौर, ललितपुर, टीकमगढ़, झांसी में कई प्लौट, खेती की जमीन, फार्महाउस बनाए हैं. उस का परिवार भोपाल के अयोध्या बाइपास के पास नीत ग्रीन कालोनी में रहता है. करोद में उस ने पिता तिलकराम के नाम से एक होटल एंड रेस्टोरेंट खोला है. इस होटल में वह कई रसूखदार लोगों को बुलाता है और सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करता है.

रवि तिवारी के जरिए एलजेसीसी कंपनी में 600 करोड़ रुपए का इनवैस्टमेंट हुआ था. ललितपुर में पीडि़तों की शिकायत के बाद पुलिस ने रवि और उस के भाई विनोद को अगस्त 2024 में गिरफ्तार कर लिया और दोनों फिलहाल ललितपुर जेल में हैं.

और भी अनेक लोग हैं इस गिरोह में शामिल

लोगों की मेहनत की कमाई डकारने वाली इस सोसायटी में समीर अग्रवाल, रवि तिवारी, आलोक जैन के अलावा अंगद कुशवाहा, सुबोध रावत और सुतीक्ष्ण सक्सेना जैसे लोगों का रोल भी रहा है. टीकमगढ़ पुलिस 50 करोड़ रुपए की आसामी सुबोध रावत को गिरफ्तार कर चुकी है. रावत ने पुलिस को अपने बयान में बताया कि 2012 में उस की मुलाकात ललितपुर में अजय तिवारी से हुई थी. तब आप्शन वन नाम से कंपनी का संचालन किया जा रहा था इस के मालिक समीर व पंकज अग्रवाल थे.

अजय के माध्यम से उस की मुलाकात ललितपुर में आलोक जैन, रवि तिवारी और सुरेंद्र पाल सिंह से हुई. उन के कहने पर वह इस कंपनी से जुड़ा. वह निवेशकों के पैसे आलोक, रवि व सुरेंद्रपाल को भेजता था. इस के बाद इस रकम को झांसी चेस्ट में भेज दिया जाता था, वहां से यह रकम हवाला के जरिए समीर के पास विदेश भेजी जाती थी. साल 2020 में जब समीर अग्रवाल की श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी बंद हुई तो सुतीक्ष्ण सक्सेना की पार्टनरशिप में एलजेसीसी सोसाइटी शुरू की गई. सुतीक्ष्ण ने इनवेस्टर्स के पैसों से टीकमगढ़ में 26 लाख रुपए में 2 हजार वर्गफीट का प्लौट, 900 वर्गफीट का एक डुप्लैक्स भी खरीदा था.

भोपाल के अयोध्या बाइपास पर 50 लाख रुपए में 2 हजार वर्गफीट जमीन, रायसेन-भोपाल रोड पर 4 लाख रुपए में 1200 वर्गफीट के प्लौट के अलावा उस के पास 16 लाख रुपए कीमत की एसयूवी है. उस के एक्सिस बैंक अकाउंट में 50 हजार रुपए जमा मिला. पत्नी प्रीति के नाम पर उस ने एलजेसीसी सोसाइटी में 50 लाख रुपए का इनवैस्टमेंट भी किया है. ठगी के इस कारोबार में शामिल अंगद कुशवाहा मध्य प्रदेश के गंजबासौदा का रहने वाला था, जो मंडी में हम्माल का काम करता था. साल 2015-16 में वह समीर अग्रवाल की कंपनी एसएसवी (श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी) से एजेंट बन कर जुड़ा था. जब भोपाल के पिपलानी थाने में एसएसवी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई तो समीर अग्रवाल ने इसे बंद कर एलजेसीसी सोसाइटी शुरू कर दी थी

अंगद को एलजेसीसी में गंजबासौदा ब्रांच का हैड बना दिया गया. लोगों द्वारा जमा किए गए रुपयों से अंगद ने प्रौपर्टी खरीदी, बाद में वह भोपाल में प्लौट काटने का काम करने लगा. गंजबासौदा पुलिस को अंगद के खिलाफ 25 से ज्यादा शिकायतें मिलीं. कंपनी का दफ्तर बंद होने के बाद से वह फरार है. एलजेसीसी कंपनी ने गंजबासौदा में सुनील जैन की ही बिल्डिंग में 15 हजार रुपए महीने के किराए पर औफिस खोला था. अब कंपनी भाग गई है. लोग अभी भी यहां पैसा लेने आते हैं. मैनेजर अंगद कुशवाहा भी फरार है.

टीकमगढ़ का रहने वाला सूरज रैकवार एलजेसीसी में कैशियर के तौर पर काम करता था. उसे हर महीने 12 हजार रुपए सैलरी थी, लेकिन वह लग्जरी लाइफ जीता था और उस के पास करीब 20 करोड़ की प्रौपर्टी है. उस की भोपाल में 5-5 हजार वर्गफीट के 2 प्लौट, बानपुर में 10 एकड़ खेती की जमीन, टीकमगढ़ के सुभाषपुरा में 2 प्लौट, 7 दुकानें हैं. इस के अलावा वह 4 गाडिय़ों का मालिक है. उस ने टीकमगढ़ में जो आलीशान मकान बनाया है, उस की कीमत ही 5 करोड़ रुपए है. मकान में विदेशी मार्बल लगा हुआ है. कथा लिखे जाने तक सूरज रैकवार फरार था और उस पर पुलिस ने 25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर रखा है.

एलजेसीसी की ओर से मुंबई, हैदराबाद, गोवा, लखनऊ, झांसी, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में कार्यक्रम कराए जाते थे. इस में कंपनी की ग्रोथ और एजेंट्स की लग्जरी लाइफ को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाता था. जेएलसीसी कंपनी के कार्यक्रमों में फिल्मी ऐक्टर श्रेयस तलपड़े से ले कर सुखविंदर सिंह जैसे नामी गायक को बुलाया जाता था. ऐसे कार्यक्रमों के जरिए भीड़ इकट्ठी हो जाती थी और कंपनी अपनी स्कीम का प्रमोशन करती थी. इस वजह से लोग आसानी से कंपनी पर भरोसा करने लगते थे.

ललितपुर पुलिस ने ऐक्टर श्रेयस तलपड़े को भी एक एफआईआर में आरोपी बनाया है. एसपी (ललितपुर) मोहम्मद मुश्ताक के  मुताबिक फिल्मी ऐक्टर ने लोगों को कंपनी में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया था, इस कारण उसे भी आरोपी बनाया गया है और  उस के मुंबई पते पर नोटिस भेजा गया है. बताया जा रहा है कि समीर अग्रवाल  ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल एक छोटे से देश सेंट क्रिस्टोफर और नेविस की नागरिकता ले ली है. इस देश का उस का नया पासपोर्ट भी बन चुका है, उस की पत्नी, मम्मी और दोनों बेटियां नवी मुंबई में रहते हैं. कुछ लोग बताते हैं कि दिखावे के तौर पर उस ने पत्नी से तलाक लिया है. पिछले 16 सालों में समीर ने सागा ग्रुप के जरिए करोड़ों रुपए कमाए हैं.

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के टेंट्रा गांव का रहने वाला समीर का परिवार 2 पीढ़ी पहले इंदौर शिफ्ट हो गया था. समीर के पिता राजेंद्र अग्रवाल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, समीर उन का इकलौता बेटा है. कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, यही हाल समीर अग्रवाल का रहा है. साल 2008 में उस ने ग्रैजुएशन किया, पढ़ाई के दौरान ही वह मुंबई से औपरेट होने वाले मटका सट्टा से जुड़ा और इंदौर में उस का बुकी बन गया. उस समय चिटफंड कंपनियों की देश में बाढ़ सी आई हुई थी तो समीर ने भी 2009 में पहली चिटफंड कंपनी खोली और उस के बाद से लगातार फरजी कंपनियां बना कर लोगों से पैसा ऐंठता रहा.

दुबई में छिपा है ठगों का सरगना

साल 2012 के बाद समीर इंदौर छोड़ कर नवी मुंबई शिफ्ट हो गया. समीर ने 2012 में ‘आप्शन वन’ नामक कंपनी शुरू की लेकिन, 2016 में सरकारी काररवाई का अंदेशा होते ही 2016 में इस का नाम बदल कर ‘श्री स्वामी विवेकानंद’ कर दिया. 2014 में देश में भाजपा की सरकार बन चुकी थी और हिंदुत्व का राग अलाप रहे लोगों को हिंदू संगठनों से जोडऩे के मकसद से समीर ने इस नाम का उपयोग किया था. समीर अग्रवाल सागा ग्रुप की सालगिरह पर आलीशान होटल में भव्य कार्यक्रम का आयोजन करता था. 2018 में सागा ग्रुप की 10वीं सालगिरह पर भी उस ने कार्यक्रम का आयोजन किया,

जिस में फिल्मी सितारों को भी बुलाया था. सागा ग्रुप की सातों सोसाइटियों की लुभावनी स्कीम्स को देख कर लोग निवेश कर रहे थे. साल 2019 में उसे पहला झटका तब लगा जब उस की एक सोसाइटी श्री स्वामी विवेकानंद मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के कामकाज पर सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया) ने रोक लगा दी. इसी के बाद समीर अग्रवाल मुंबई से दुबई शिफ्ट हो गया.

2020 में भोपाल के पिपलानी थाने में इसी सोसाइटी के खिलाफ अंकित मालवीय ने शिकायत दर्ज कर दी. पुलिस ने समीर अग्रवाल समेत सोसाइटी अध्यक्ष चंदन गुप्ता, आर.के. शेट्टी, एमपी हेड रविशंकर तिवारी उस के भाई विनोद तिवारी और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और पुलिस ने विनोद तिवारी, शशांक श्रीवास्तव और अंगद कुशवाहा को गिरफ्तार कर लिया. इस काररवाई के बाद श्री स्वामी विवेकानंद सोसाइटी की सभी ब्रांचों पर ताला लगा दिया था.

मध्य प्रदेश समेत 10 राज्यों में 10 हजार करोड़ रुपए ठगने वाले समीर अग्रवाल ने इस रकम को अबुधाबी में रियल एस्टेट में निवेश किया है. इसी के बदौलत उस ने 28 नवंबर 2023 को संयुक्त अरब अमीरात की नागरिकता भी ली है. जानकारों के मुताबिक अमीरात एक टैक्स हैवन कंट्री है यानी करदाताओं के लिए स्वर्ग है. यहां इनकम पर कोई टैक्स नहीं लगता साथ ही कमाई और निवेश को ले कर ज्यादा पूछताछ नहीं होती है.

यूएई ने उसे एक साल के लिए नागरिकता दी थी. 27 नवंबर, 2024 को इस की वैधता खत्म हो चुकी है. जानकारों के मुताबिक यूएई की नागरिकता नियम की पहली शर्त है कि वह किसी को भी दोहरी नागरिकता नहीं दे सकता है. एक देश की नागरिकता छोडऩे के बाद ही कोई व्यक्ति वहां की नागरिकता ले सकता है. समीर ने नागरिकता हासिल करने के लिए या तो दस्तावेजों में फरजीवाड़ा किया होगा या फिर किसी और तरीके से नागरिकता हासिल की होगी. यह भी पता चला है कि वहां उस ने दुबई के एक शेख के पार्टनरशिप में हाई एंड सिटी मैनेजमेंट सर्विस एलएलसी नाम की कंपनी बनाई है.

सीएमडी समीर अग्रवाल की गिरफ्तारी पर एमपी और यूपी पुलिस ने 50-50 हजार रुपए इनाम घोषित किया है. सीबीआई ने भी उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है. मध्य प्रदेश समेत 10 राज्यों में सागा ग्रुप द्वारा लाखों लोगों के साथ करोड़ों रुपए की ठगी हो गई और सरकारी नुमाइंदे घोड़े बेच कर सोते रहे. सागा ग्रुप की एफआईआर रफादफा करवाने के बाद भोपाल के एक समाजसेवी सौरभ गुप्ता की ओर से साल 2021 में एक जनहित याचिका दायर की गई.

हाईकोर्ट ने एफआईआर निरस्त करने पर पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे. याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि कंपनी पर काररवाई नहीं हुई तो देश भर के लाखों निवेशकों का पैसा डूब जाएगा. हाईकोर्ट ने भारत सरकार और प्रदेश सरकार से सागा ग्रुप कंपनी के लोगों के बारे में जानकारी मांगी और कहा कि इतना बड़ा फरजीवाड़ा अंजाम दिया गया, सरकारें क्या कर रही थीं?

कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील रविंद्र गुप्ता बताते हैं कि 8 नवंबर 2021 को राज्य के महाधिवक्ता ने जवाब देने के लिए समय मांगा था, परंतु साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, लेकिन जवाब अब तक पेश नहीं किया. इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में हुई थी. अभी मामला न्यायालय में चल रहा है. MP News

 

 

Agra News : वकील का अपहरण करके मांगी 50 लाख रुपए की फिरौती

Agra News : एडवोकेट अकरम अंसारी का अपहरण फिल्मी अंदाज में किया था. बदमाश 50 लाख रुपए की फिरौती मांग रहे थे. पुलिस ने उन्हें फिरौती भी दे दी लेकिन बाद में अपहर्त्ता पुलिस के चंगुल में ऐसे फंसे कि…

फिरोजाबाद जिले के थाना दक्षिण के अंतर्गत एक मोहल्ला है राजपूताना. यहीं के निवासी 35 वर्षीय मोहम्मद अकरम अंसारी पेशे से वकील हैं. वह 3 फरवरी, 2020 को आगरा के बोदला निवासी अपने रिश्तेदार की बीमार बेटी को देखने के लिए आगरा के श्रीराम अस्पताल गए थे. बीमार बेटी को देखने के बाद वकील अकरम अंसारी घर जाने के लिए शाम के समय अस्पताल से निकले. चूंकि उन्हें बस अड्डे से बस पकड़नी थी, इसलिए बस अड्डा तक जाने के लिए उन के साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें कारगिल चौराहे से एक आटो में बैठा दिया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचे.

परिजन सारी रात बेचैनी से अकरम अंसारी का इंतजार करते रहे. बारबार वह अकरम को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. इस से घरवालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह अकरम के भाई असलम उन्हें तलाशने के लिए आगरा पहुंचे. वहां पता चला कि साढ़ू फैज अंसारी ने उन्हें बस अड्डा जाने वाले एक आटो में बैठा दिया था. वहां से वह कहां गए, किसी को पता नहीं. इस के बाद असलम ने भाई को रिश्तेदारी व अन्य परिचितों के यहां तलाशा. लेकिन अकरम कहीं नहीं मिले. तब असलम ने आगरा के थाना सिकंदरा में भाई की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

दूसरे दिन बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे वकील अकरम के छोटे भाई असलम के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘अकरम हमारे कब्जे में है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. फिरौती की रकम कहां पहुंचानी है, इस बारे में फिर से फोन कर के बताएंगे और अगर, पुलिस को बताया तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर असलम ने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम उन के पास नहीं है.’’

इस पर अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘हमें पता है कि तुम्हारे 4 मकान हैं. इसलिए रुपयों का इंतजाम कर लो.’’ इस के बाद फोन कट गया. फिरौती मांगने से असलम का परिवार दहशत में आ गया. असलम ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को दी. इस पर सिकंदरा के थानाप्रभारी ने तुरंत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद उन्होंने एक पुलिस टीम को अकरम की बरामदगी के लिए लगा दिया. वकील अकरम अंसारी का फिरौती के लिए आगरा से अपहरण करने का समाचार जब समाचारपत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर आया तो अधिवक्ताओं ने उन की बरामदगी के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

मामला एक वकील का था, इसलिए पुलिस की 10 टीमें जांच में जुट गईं. इन टीमों का निर्देशन एसएसपी बबलू कुमार स्वयं कर रहे थे. जिस मोबाइल नंबर से असलम के पास फोन आया था सर्विलांस टीम उस की भी जांच में जुट गई. कई दिन बाद भी जब पुलिस एडवोकेट अकरम के बारे में कोई सुराग नहीं लगा पाई तो 7 फरवरी को फिरोजाबाद सदर तहसील के अधिवक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते हुए वकील अकरम अंसारी की शीघ्र बरामदगी की मांग की. धीरेधीरे यह आग जनपद की तहसील शिकोहाबाद, जसराना, सिरसागंज के साथ ही आगरा के अधिवक्ताओं में भी फैल गई.

अकरम की बरामदगी न होने से परिजनों में दिनप्रतिदिन बेचैनी बढ़ रही थी. पिता आरिफ अंसारी और मां सरकरा बेगम सीने पर पत्थर रख कर बच्चों को तसल्ली दे रहे थे. अकरम की पत्नी रूबी उर्फ रुकैया अपने दोनों बच्चों के पूछने पर कहती कि पापा दिल्ली रिश्तेदारी में गए हैं, जल्दी आ जाएंगे. पुराने किडनैपरों की हुई तलाश उधर पुलिस ने 100 ऐसे बदमाशों की सूची बनाई जो अपहरण के मामलों में पिछले 5 सालों में जेल जा चुके थे. यह बदमाश आगरा, धालपुर, भरतपुर, फिरोजाबाद और इटावा के थे. इन पर काम करने के बाद 10 गिरोह चुने गए. इन के मोबाइल नंबर हासिल किए गए. 3 गिरोह पर पुलिस का शक था लेकिन तीनों ही उस समय मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे.

इस पर पुलिस पूरी तरह अपने मुखबिरों पर आश्रित हो गई. एसएसपी बबलू कुमार और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद लगातार पुलिस टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. शासन से भी इस मामले में पुलिस से लगातार अपडेट लिया जा रहा था. पुलिस के आला अधिकारी भी पत्रकारों को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे. सिर्फ यही जवाब दिया जा रहा था कि जल्द ही कोई न कोई ठोस सुराग मिलने की उम्मीद है. अपहृत वकील अकरम के छोटे भाई असलम और मुकर्रम घटना के बाद से ही आगरा में डेरा डाले थे. जैसेजैसे एकएक कर दिन बीत रहे थे परिवार की दहशत बढ़ती जा रही थी.

उग्र हो गया आंदोलन उधर, अधिवक्ताओं का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. आगरा व फिरोजाबाद जनपद के अधिवक्ताओं में अपहृत वकील के 12वें दिन भी बरामद न होने से आक्रोश बढ़ गया था. उन्होंने विरोध में हड़ताल शुरू कर दी थी. पुलिस दिनरात अपहृत वकील की तलाश में जुटी थी. आगरा में 24 फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताजमहल देखने आने वाले थे. उन के आगमन से पूर्व तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा के दौरे पर आ रहे थे. पुलिस जानती थी कि अधिवक्ता मुख्यमंत्री से मिल कर इस मामले को जरूर उठाएंगे. इसलिए पुलिस के हाथपैर फूल रहे थे. इस बीच पुलिस टीमों ने बाह और धौलपुर के बीहड़ों में डेरा डाल रखा था.

उधर अपहृत वकील के भाई असलम के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने अलगअलग नंबरों व स्थानों से 4 बार फिरौती की काल कर के संपर्क किया. इस दौरान परिजन पुलिस के संपर्क में रहे. काल आने से पुलिस को बदमाशों की पहचान सुनिश्चित हो गई. लेकिन अपहृत की सकुशल बरामदगी को ले कर पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. बदमाशों ने जो 50 लाख फिरौती मांगी, उसे कम कर के वह 15 लाख पर आ गए. उन्होंने परिजनों से कह दिया कि इतनी भी रकम नहीं मिली तो वह अकरम को मार देंगे. अपहृत अकरम को सकुशल छुड़वाने के लिए पुलिस ने परिजनों के साथ मजबूत योजना बनाई. 16 फरवरी को अपहर्त्ताओं का फोन आने के बाद अकरम के परिजन बदमाशों के बताए गए स्थान आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारे के पास पैसे ले कर पहुंच गए.

बदमाशों ने उन से पहचान के लिए अपनी गाड़ी पर झंडा लगाने को कहा था. भाई असलम अपने दोस्त के साथ किराए की गाड़ी पर झंडा लगा कर पहुंचा. तभी बदमाशों ने कहा कि बाड़ी कस्बा आ जाओ. वहां पहुंचे तो बदमाश लगातार काल कर के अलगअलग जगह बुलाते गए. करौली मार्ग पर आने के बाद उन्होंने कहा कि सिगरेट के 2 पैकेट ले कर आना. इस के बाद उन्होंने भरतपुर जनपद के गढ़ी भासला क्षेत्र के जंगल में स्थित भैरों बाबा के मंदिर पर रुपयों का बैग रखने को कहा. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जरा सी भी चालाकी की या पुलिस को बताया तो अपने भाई को जिंदा नहीं देख सकोगे. वह लोग शाम 6 बजे बताए गए स्थान पर रुपयों से भरा बैग रख कर वापस आ गए. इस बीच पुलिस योजनाबद्ध तरीके से वहां मौजूद रही. बदमाशों ने परिजनों से सोमवार, 17 फरवरी को अधिवक्ता अकरम को गुरुद्वारा पर छोड़ने का वादा किया.

जंजीरों से बांध रखा था अकरम को फिरौती देने के बाद पुलिस टीम सक्रिय हो गई. पुलिस बैग उठाने वाले के पीछे लग गई. इतना ही नहीं, पुलिस ने कस्बा बाड़ी स्थित वह मकान भी पहचान लिया, जिस में अपहर्त्ता नोटों से भरा बैग ले कर गया था. मकान चिह्नित करने के बाद पुलिस ने रात लगभग 8 बजे उस मकान पर दबिश दे कर अपहृत अधिवक्ता अकरम को सकुशल बरामद कर लिया. अपहर्त्ताओं ने उन्हें जंजीरों से बांध कर रखा था. पुलिस ने मकान से 3 अपहर्त्ताओं 56 वर्षीय गैंग लीडर उग्रसैन निवासी कस्बा बाड़ी, धौलपुर, लाखन गुर्जर निवासी सूखे का पुरा, थाना कंचनपुरा, धौलपुर के अलावा सुरेंद्र गुर्जर निवासी कुआंखेड़ा, बिहारी का पुरा, थाना सदर, धौलपुर शामिल को हिरासत में ले लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने राकेश व उस के भाई मुकेश निवासी जमूहरा, थाना बाड़ी, धौलपुर के साथ उग्रसैन की पत्नी उर्मिला को भी गिरफ्तार कर लिया. राकेश व मुकेश दोनों उग्रसैन के साले हैं. फिरौती के लिए फोन लाखन करता था. लाखन पर 7-8 मुकदमे चल रहे हैं. उग्रसेन व सुरेंद्र गुर्जर पर भी कई मुकदमे हैं. इन में अपहरण व जानलेवा हमले शामिल हैं. सुरेंद्र गुर्जर पूर्व में राजस्थान के केशव और हनुमंत गिरोह में काम कर चुका है. उस के साथ उग्रसैन और लाखन भी थे. यह मध्य प्रदेश और आगरा में अपहरण कर फिरौती वसूल चुके हैं. गिरोह ने पहले आगरा के सदर क्षेत्र में दंत चिकित्सक का अपहरण कर मोटी फिरौती वसूली थी.

अधिवक्ता अकरम अंसारी की सकुशल बरामदगी की जानकारी जैसे ही उन के परिजनों को मिली तो पूरे परिवार की आंखें खुशी से छलछला उठीं. उन के आवास पर लोगों ने खुशी में आतिशबाजी की. पुलिस अधिकारी पूरे दिन अकरम से पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते रहे. 25 फरवरी को अकरम के घर आते ही मां ने उन्हें गले से लगा लिया. बच्चे भी उन से लिपट गए. अकरम ने बताया कि वह मौत के मुंह से निकल कर आए हैं. 26 फरवरी, 2020 को पुलिस लाइन में एडीजी अजय आनंद ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस सनसनीखेज अपहरण कांड का परदाफाश किया. उन्होंने बताया कि एसएसपी बबलू कुमार के निर्देशन में फूलप्रूफ औपरेशन चला कर पुलिसकर्मियों की 10 टीमें बनाई गई थीं.

जिस में सीओ (कोतवाली) चमन सिंह चावड़ा, सर्विलांस टीम प्रभारी नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर कमलेश सिंह, अरविंद कुमार, अनुज कुमार, अजय कौशल, राजकमल, बैजनाथ सिंह, उमेश त्रिपाठी, एसआई राजकुमार गिरि, कुलदीप दीक्षित अरुण कुमार बालियान, सुशील कुमार, हैड कांस्टेबल आदेश त्रिपाठी, कांस्टेबल अजीत, प्रशांत, करन, विवेक, राजकुमार, अरुण कुमार, आशुतोष त्रिपाठी, रविंद्र, प्रमेश आदि शामिल थे. पुलिस ने अधिवक्ता को सकुशल बरामद करने के साथ 5 अपहर्त्ताओं व एक महिला को गिरफ्तार कर फिरौती की रकम, जो 15 लाख बता कर केवल साढ़े 12 लाख बैग में रखी थी, भी बरामद कर ली. एडीजी ने बताया कि अपहृत को 2-3 दिन पहले बरामद कर सकते थे. लेकिन उन की सकुशल बरामदगी के लिए इंतजार करना पड़ा.

अलगअलग हुलिया बनाए पुलिस ने टीमों के साथ सीओ, एसपी, एसएसपी, तक ने बीहड़ में डेरा डाला. अपहर्त्ताओं की नजर से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ अपना हुलिया बदला, बल्कि बकरी चराने से ले कर खेतों में मजदूर बन कर काम किया. पुलिस ने फिरौती के लिए फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड की. वह आवाज मुखबिरों को सुनाई गई. इस के बाद ही पुलिस को सुराग मिला. पुलिस ने 40 घंटे के औपरेशन के बाद अधिवक्ता अकरम अंसारी को मुक्त करा लिया. इस औपरेशन का नाम ‘अकरम मुक्ति’ रखा गया था. पुलिसकर्मी कोड वर्ड बांकेबिहारी और वंदेमातरम में एकदूसरे से बात करते थे.

बदमाशों ने फिरौती के लिए 4 बार फोन किया था. पहली काल 5 फरवरी को भरतपुर के रूपवास से की गई, इस के लिए सिम खेरागढ़ से ली गई थी. दूसरी काल 8 फरवरी को की गई, जबकि 12 व 15 फरवरी की काल कस्बा बाड़ी से की गई थीं. काल करने के लिए हर बार नया मोबाइल और नया सिम खरीदा गया था. इस के साथ ही हर बार अपहर्त्ता लोकेशन भी बदलते रहे थे. उन्होंने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ अधिवक्ता अकरम अंसारी को सकुशल बरामद किया बल्कि 5 अपहर्त्ताओं और एक महिला को गिरफ्तार कर उन से फिरौती की वसूली गई रकम साढ़े 12 लाख भी बरामद कर ली. पुलिस ने बैग में रखी यह रकम 15 लाख बताई थी. डीजीपी ने टीम के इस कार्य की सराहना की. इस संबंध में अपहरण की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के गुर्जर गैंग ने बीच आगरा शहर से अधिवक्ता अकरम अंसारी का अपहरण किया था. दरअसल 3 फरवरी, 2020 को अकरम को उन के साढ़ू ने फिरोजाबाद जाने के लिए एक आटो में बैठा दिया था. अकरम सिकंदरा स्थित आईएसबीटी पर उतरे लेकिन वहां फिरोजाबाद जाने के लिए कोई बस नहीं मिली. जब बस नहीं मिली तब अकरम दूसरे आटो से भगवान टाकीज पहुंच कर बस का इंतजार करने लगे. वहां पर आगरा आने व जाने वाली बसें रुकती हैं. शाम 7.20  बजे एक बोलेरो उन के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कहां जाओगे?’’

अकरम ने फिरोजाबाद जाने की बात कही तो ड्राइवर ने कहा, ‘‘हां, फिरोजाबाद ही जा रहे हैं.’’ उस समय उस बोलेरो में चालक के अलावा 3 लोग और बैठे थे. उस गाड़ी में अकरम के बैठते ही ड्राइवर चलने लगा तो अकरम ने कहा कि और सवारियां ले लो तो चालक ने कहा कि आगे से ले लेंगे. 10-12 मिनट गाड़ी चलने के बाद अचानक बगल में यात्री के रूप में बैठे बदमाश ने अकरम को सीट के नीचे गिरा कर दबोच लिया और धमकी दी कि यदि चिल्लाया तो गोली मार देंगे. इस के साथ ही उन के ऊपर कपड़ा डाल दिया. बदमाश कह रहे थे यदि तू वीरेंद्र नहीं हुआ तो हम तुझे छोड़ देंगे. अपहर्त्ता ये बात इसलिए कह रहे थे ताकि वह शोर न मचाए. उन्होंने अकरम की आंखों पर पट्टी भी बांध दी.

गाड़ी चलती रही. रात 11 बजे अपहर्त्ता अधिवक्ता अकरम को एक सुनसान जगह पर ले गए. वहां एक घर में उन्हें रखा गया. यह घर धौलपुर के बाड़ी कस्बे में था. वहां 2-3 कमरे थे. पैरों में जंजीर बांध कर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया. आंखों पर पट्टी बांधने के साथ ही अकरम के मुंह पर टेप भी लगा दिया. उन का मोबाइल उन लोगों ने गाड़ी में ही छीन लिया था. कमरे पर ही बदमाशों ने अकरम से उस के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन फिरौती के लिए परिजनों को फोन किया था. कमरे में ही चटाई पर अकरम सोते थे. रात में सोने के लिए एक हलकी रजाई दी गई थी. 24 घंटे 2 युवक पहरेदारी पर रहते थे. रात में एक बदमाश भी पास में ही दूसरी चटाई पर सोता था. कई दिन बीत गए. बदमाश बीचबीच में आ कर उन्हें धमका जाते थे. कहते कि तेरे परिवार के लोग फिरौती की रकम नहीं दे पा रहे हैं, हम तुझे मार देंगे.

हालात देख कर बचना था मुश्किल वहां जिस तरह का माहौल चल रहा था इस से अकरम को लग रहा था कि वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएंगे. उन्हें डर था कि परिजन अपहर्त्ताओं की मांग पूरी नहीं कर पाएंगे. उन का अब घर जाना मुश्किल होगा. बदमाश खाने के लिए कभी रोटी सब्जी तो कभी रोटी दाल देते थे. अकरम रात को ही खाना खाते थे. 15 दिन तक अकरम को नहाने नहीं दिया गया. मकान में एक महिला और उस का पति था. मकान में आगे व पीछे दरवाजे थे. आगे के दरवाजे पर ताला लगा रहता था. अन्य लोग मकान के पीछे के दरवाजे से आतेजाते थे. अकरम ने बताया कि बदमाशों ने उन के साथ मारपीट नहीं की.

अकरम हर दिन यही दुआ करते थे कि पुलिस उन्हें कब छुड़ाएगी? दहशत की वजह से नींद भी नहीं आती थी. जैसेजैसे दिन निकलते जा रहे थे, उम्मीद भी कम होती जा रही थी. मगर, रविवार 23 फरवरी की रात को पुलिस आई और अकरम को मुक्त करा लिया. अपनी दास्ता बयां करतेकरते अकरम की आंखें भर आई थीं. पुलिस लाइन में अकरम के भाई मोउज्जम, असलम, मोहम्मद सोहेल, मुकर्रम और पिता आरिफ अंसारी आए थे. भाइयों ने अकरम को गले लगा लिया. परिवार से मिल कर अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं था. पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान अकरम ने पुलिस अधिकारियों को मिठाई खिलाई और उन को धन्यवाद दिया.

पुलिस ने बताया कि धौलपुर के बीहड़ में अपहर्त्ताओं के 25 गैंग सक्रिय हैं. यह गैंग शिकार को बीहड़ में पकड़ कर ले जाने के बाद फिरौती वसूलते हैं. पुलिस ने सौ से ज्यादा गैंग के बारे में पड़ताल की. इन में 25 गैंग के सक्रिय होने के बारे में पता चला. इन में गब्बर, केशव, रामविलास, भरत, धर्मेंद्र, लुक्का, मुकेश ठाकुर गैंग विशेष रूप से सक्रिय हैं. यह गैंग अलगअलग तरीके से फिरौती के लिए अपहरण की वारदात को अंजाम देते हैं. इन के खिलाफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनेक मुकदमे दर्ज हैं.

अपहृत वकील को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने पुरस्कृत कर सम्मानित किया. पुलिस ने सारी काररवाई पूरी कर गिरफ्तार अपहर्त्ताओं को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Madhya Pradesh Crime : दो हजार रुपए की लालच में मां ने अपने ही प्रेमी से कराया बेटी का रेप

Madhya Pradesh Crime : पैसे ले कर बलात्कार के लिए अपनी नाबालिग बेटी को किसी वहशी को सौंपने वाली कई मांएं होंगी, जिन्हें मां के नाम पर कलंक ही कहा जा सकता है. ऊषा भी ऐसी ही मां थी, जिस ने मात्र 600 रुपए में अपनी नाबालिग बेटी को अपने यार महमूद को सौंप  दिया. लेकिन…

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया. रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया. प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था. पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी.

ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी. उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई. पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी. जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी. जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी. महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था.

महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं. उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा. महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता. कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी. ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है. बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा. ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई. महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी. महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया. इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई. 21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

 

फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल – भाग 3

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी.

8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए.

सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई.

युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल – भाग 2

पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.

उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.

पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.

सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.

सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.

पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.

पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी.

सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.

हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे.

युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.

सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं.

हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.

बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया.

हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.

हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है.

सुधा भी बचाव के लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.

फितरती औरत की साजिश : सुधा पटवाल – भाग 1

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी.

इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था.

कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था.

जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे.