Hindi Best Story : मर्द से औरत बनने की अधूरी तमन्ना

Hindi Best Story : 30 अगस्त, 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार होने के कारण पुलिस स्टाफ ने सुबह भोर होने तक सुरक्षा इंतजामों में ड्यूटी दी थी. इसीलिए तरुण मन्ना 31 अगस्त की सुबह 9 बजे जब साउथ ईस्ट दिल्ली के सरिता विहार थाने में अपने भाई अरुण की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने गया तो उसे थानाप्रभारी अनंत गुंजन से मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा. जब थानाप्रभारी अपने रेस्टरूम से तैयार हो कर औफिस में आए तो तरुण ने उन्हें अपने भाई के गायब होने की जानकारी दी. तब अनंत गुंजन ने तरुण से पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम्हारे भाई को क्या घर में किसी से झगड़ा हो गया था.’’

‘‘नहीं सर, कोई झगड़ा नहीं हुआ था कल शाम को 5 बजे वह यह कह कर घर से बाहर गया था कि 10 मिनट में वापस लौट आएगा अपने दोस्त जस्सी से मिलने जा रहा है.

‘‘जब करीब एक घंटा हो गया और वह लौट कर नहीं आया तो हमें चिंता होने लगी. हम ने उस का फोन भी मिलाया लेकिन वह स्विच्ड औफ था. इसी दौरान उस के दोस्त जस्सी का फोन मेरी मां शांति देवी के फोन पर आया और उस ने कहा मीशा से बात करा दो.’’

तरुण मन्ना ने जब यह बताया कि अरुण के दोस्त जस्सी ने उस की मां शांति देवी से मीशा से बात कराने के लिए कहा था तो थानाप्रभारी अनंत गुंजन चौंक पड़े. क्योंकि बात तो अरुण के बारे में हो रही थी, लेकिन अचानक बीच में मीशा का जिक्र कहां से आ गया.

इसलिए उन्होंने तरुण को रोक कर पूछा, ‘‘एक मिनट ये मीशा कौन है? क्या यह तुम्हारे घर की कोई सदस्य है?’’

‘‘नहीं सर, अरुण ने ही अपना नाम बदल कर मीशा रख लिया था, इसलिए अब उसे मीशा कहते हैं.’’

एसएचओ अनंत गुंजन का दिमाग घूम गया. भला कोई लड़का लड़कियों वाला नाम क्यों रखेगा. अचानक पूरे मामले में उन की दिलचस्पी बढ़ गई.

तरुण मन्ना ने अरुण के मीशा बनने की जो कहानी बताई, वह भी दिलचस्प थी. लेकिन इस समय उन के लिए यह जानना जरूरी था कि अरुण उर्फ मीशा आखिर क्यों और कैसे लापता हो गया. तरुण ने बताया कि जस्सी का फोन आने के बाद उस की मां चौंक पड़ीं. क्योंकि मीशा तो उन से यह कह कर गई थी कि वह जस्सी से मिलने जा रही है और जस्सी पूछ रहा था कि मीशा कहां है?

तरुण के मुताबिक उस की मां ने जस्सी को बता दिया मीशा तो उस से मिलने की बात कह कर करीब एक घंटा पहले घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं लौटी है.

यह बात सुन कर जस्सी भी हैरान रह गया क्योंकि मीशा तो उस से मिलने आई ही नहीं. फिर उस ने अपने परिवार वालों से झूठ क्यों बोला.

इसी तरह कई घंटे बीत गए, लेकिन मीशा घर नहीं लौटी. जैसेजैसे वक्त गुजरता रहा, घर वालों की चिंता बढ़ती गई. परिवार वालों को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि कभी झूठ न बोलने वाला अरुण उर्फ मीशा ने घर से बाहर जाने के लिए जस्सी का नाम क्यों लिया था.

हैरानी वाली बात यह भी थी कि मीशा का फोन भी लगातार बंद आ रहा था. इस वजह से घर वालों को लग रहा था कि कहीं उस के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई.

तरुण मन्ना, उस की मां और पिताजी ने एक के बाद एक शाम से रात तक अरुण उर्फ मीशा के सभी दोस्तों को फोन किए, लेकिन उस का कहीं कोई सुराग नहीं लगा.

पूरी रात उन की आंखों में ही बीत गई. मीशा पूरी रात घर नहीं लौटी. तरुण मन्ना और उस के पिता ने आसपड़ोस के लोगों से भी मीशा के लापता होने का जिक्र किया तो सब ने सलाह दी कि उस की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाए.

इसी सलाह को मान कर तरुण मन्ना अपने एकदो पड़ोसियों को ले कर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सरिता विहार थाने पहुंचा था. सारी बात सुन कर थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने तत्काल ड्यूटी अफसर को बुला कर अरुण उर्फ मीशा (26) के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी और उस की जांच का जिम्मा तेजतर्रार एएसआई सत्येंद्र सिंह को सौंप दिया.

उन्होंने तरुण मन्ना को भरोसा दिया कि पुलिस इस मामले में अरुण उर्फ मीशा के दोस्त जस्सी की भी जांच करेगी कि कहीं इस मामले में उस की तो कोई मिलीभगत नहीं है.

जांच का काम हाथ में लेते ही एएसआई सत्येंद्र ने गुमशुदगी के मामलों में की जाने वाली सारी औपचारिकताएं करनी शुरू कर दीं. उन्होंने दिल्ली के सभी थानों और पड़ोसी राज्यों को मीशा का हुलिया और उस की फोटो भेज कर लापता होने की सूचना दे दी. साथ ही उन्होंने गुमशुदगी के लिए बने नैशनल पोर्टल पर भी जानकारी डाल दी.

एएसआई सत्येंद्र सिंह ने मीशा की गुमशुदगी से जुड़े पैंफ्लेट और पोस्टर छपवा कर सभी थानों में भिजवा दिए. उन्होंने अरुण उर्फ मीशा के भाई तरुण व परिवार के दूसरे सदस्यों से भी पूछताछ की. मसलन, उस की किनकिन लोगों से दोस्ती थी, वह कहां नौकरी करता था, किन लोगों के साथ उस का मिलनाजुलना था और किसी से उस की दुश्मनी या कोई विवाद तो नहीं था, आदि.

जांच की इस काररवाई व पूछताछ में 2-3 दिन का वक्त गुजर गया. चूंकि घर वाले बारबार मीशा के लापता होने में जस्सी का हाथ होने की बात कह रहे थे. लिहाजा एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ जस्सी का फोन नंबर ले कर उस के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवा ली.

उन्होंने तरुण मन्ना से जस्सी का पता ले कर जस्सी को पूछताछ के लिए सरिता विहार थाने बुलवा लिया.

एएसआई सत्येंद्र ने जब जस्सी से पूछताछ शुरू की तो उस ने बिना लागलपेट के बता दिया कि जिस शाम मीशा अपने घर से लापता हुई, उस ने उसी समय मीशा को फोन जरूर किया था. उस वक्त वह घर पर ही थी.

जस्सी ने बताया, ‘‘सर उस वक्त मैं सरिता विहार इलाके में था. मैं ने मीशा को फोन कर के पूछा था कि अगर वह फ्री है और घर में कोई जरूरी काम नहीं है तो वह आली बसस्टैंड पर आ कर मिल ले. क्योंकि उस दिन जन्माष्टमी थी और मैं उस के साथ मंदिर घूमना चाहता था.’’

‘‘मीशा कितनी देर बाद आई?’’ एएसआई सत्येंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं आई सर, मैं करीब एक घंटे तक वहां खड़ा रहा लेकिन मीशा नहीं आई. फिर मैं ने सोचा चलो घर तो पास में ही है, वहीं जा कर मीशा से मिल लेता हूं.’’

एक क्षण के लिए सांस लेने के लिए रुक कर जस्सी ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, इसीलिए मैं ने मीशा का फोन लगा कर पूछना चाहा कि अगर वह नहीं आ सकती तो मैं खुद उस से मिलने के लिए घर आ जाता हूं. लेकिन सर उस का फोन भी स्विच्ड औफ मिला.

‘‘मैं ने कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला तो हार कर मैं ने मीशा की मम्मी को फोन कर लिया और उन से पूछा कि मीशा कहां है. लेकिन सर, मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि मीशा घर पर नहीं थी. पता चला कि वह मेरा फोन आने के कुछ देर बाद ही घर में यह बता कर कहीं चली गई थी कि वह जस्सी से यानी मुझ से मिलने जा रही है.’’

जस्सी ने पूरी कहानी साफ कर दी. और फिर एएसआई की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए कहने लगा, ‘‘सर, आप ही बताइए कि जब मीशा मेरी इतनी अच्छी दोस्त थी, हमारे बीच किसी तरह का कोई विवाद भी नहीं था. 2-4 दिन से नहीं करीब डेढ़दो साल से हम एकदूसरे के दोस्त हैं. मैं उस के घर भी आताजाता था. उस का मेरा कोई पैसे का लेनदेन भी नहीं था. कारोबारी दुश्मनी भी नहीं थी. तो फिर भला मैं उसे लापता या किडनैप क्यों करूंगा. और उस का किडनैप कर के क्या करूंगा. मैं तो खुद ही उस के लापता होने के बाद से बहुत परेशान हूं.’’ कहते हुए जस्सी की आंखें भर आईं.

पूछताछ करते हुए एएसआई सत्येंद्र लगातार जस्सी की आंखों को पढ़ रहे थे. उन्हें कहीं भी उस की बातों में झूठ नजर नहीं आया.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी से मीशा के बारे में और भी कई तरह की जानकारी ली. मसलन दोनों की दोस्ती कब हुई. दोनों के बीच में किस तरह के रिश्ते थे.

जस्सी ने एएसआई सत्येंद्र को अपने और मीशा के बारे में सब कुछ बता दिया. कुल मिला कर एएसआई सत्येंद्र जस्सी से पूछताछ में संतुष्ट नजर आए.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी को थानाप्रभारी अनंत गुंजन तथा अतिरिक्त थानाप्रभारी दिनेश कुमार तेजवान के सामने भी पेश किया. उन्होंने भी जस्सी से पूछताछ की, जिस में उस ने वही जवाब दिया जो उस ने एएसआई सत्येंद्र को दिया था.

इस दौरान एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस की जांचपड़ताल शुरू कर दी थी. जिस में एक बात की पुष्टि तो हो गई कि शाम के वक्त जस्सी ने मीशा को फोन किया था. फिर उस के आधा घंटे बाद मीशा का फोन बंद हो गया था.

अब तक की जांच में जस्सी के ऊपर शक करने की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी.॒ लेकिन मीशा को फोन करने वाला आखिरी शख्स जस्सी ही था, इसलिए उसे आसानी से शक के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता था.

एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स में उस के फोन की आखिरी लोकेशन देखनी शुरू की तो पता चला कि फोन की लोकेशन करीब आधे घंटे बाद फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में थी. इस के बाद मीशा के फोन की लोकेशन बंद हो गई थी.

मतलब साफ था कि फरीदाबाद के सराय अमीन में मीशा के फोन को या तो तोड़ दिया गया या कहीं फेंक दिया गया.

मीशा के फोन की काल डिटेल्स के बाद एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी के फोन की काल डिटेल्स की पड़ताल शुरू तो वह यह देख कर दंग रह गए कि जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहांवहां थी, जहां मीशा के फोन की लोकेशन थी.

जिस वक्त मीशा के फोन की आखिरी लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन में थी, ठीक उसी वक्त जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहीं थी.

एएसआई सत्येंद्र को न जाने क्यों अचानक मीशा के साथ अनर्थ की आशंका होने लगी. वह समझ गए कि जस्सी पुलिस के साथ खेल खेल रहा है.

मीशा के परिवार वालों ने उस के खिलाफ जो शक जाहिर किया था, वह एकदम सही था. एएसआई सत्येंद्र ने अब तक हुई विवेचना के बारे में तत्काल थानाप्रभारी अनंत गुंजन को बताया तो वह भी समझ गए कि मीशा के परिजनों ने जस्सी पर अपहरण का जो शक जाहिर किया था एकदम सही था.

किडनैपिंग की पुष्टि हो चुकी थी. लिहाजा अनंत गुंजन ने मीशा के भाई तरुण मन्ना को थाने बुलवा लिया और उस की शिकायत के आधार पर उसी दिन यानी 5 सितंबर को सरिता विहार थाने में अपहरण 365 आईपीसी का मामला दर्ज कर लिया.

अब इस मामले की जांच एडीशनल एसएचओ दिनेश कुमार तेजवान को सौंपी गई. अपराध की गंभीरता को समझते हुए अनंत गुंजन ने दक्षिणपूर्वी जिले के डीसीपी आर.पी. मीणा और सरिता विहार के एसीपी बिजेंद्र सिंह को पूरे मामले से अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान के सहयोग के लिए एएसआई सत्येंद्र के साथ हैडकांस्टेबल मनोज और अनिल को भी टीम में शामिल कर लिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र से पूरे मामले की एकएक जानकारी ली और एक टीम को जस्सी को पकड़ने के लिए फरीदाबाद की शिव कालोनी रवाना किया, जहां वह रहता था.

लेकिन जस्सी को शायद तब तक इस बात का अहसास हो चुका था कि पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए जब पुलिस वहां पहुंची तो वह नहीं मिला. इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र को जस्सी की गिरफ्तारी के काम पर लगा दिया और खुद यह पता लगाने में जुट गए कि मीशा आखिर कहां है. वैसे अब तक पुलिस को यकीन हो चुका था कि हो न हो जस्सी ने शायद उस की हत्या कर दी है.

चूंकि मीशा के फोन की लास्ट लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके की थी, इसलिए उन्होंने वहीं पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर दिया.

दिल्ली से लगते फरीदाबाद के सभी थानों में इस बात की जांचपड़ताल शुरू कर दी कि कहीं 30 तारीख से अब तक किसी लड़की का शव बरामद तो नहीं हुआ है. एनसीआर के सभी शहरों को जोड़ कर दिल्ली पुलिस के कुछ वाट्सऐप ग्रुप हैं, जिस में पुलिस अपराधियों से संबंधित किसी भी तरह की सूचना लेनेदेने का काम करती है.

इंसपेक्टर तेजवान ने इसी वाट्सऐप ग्रुप पर अरुण उर्फ मीशा की गुमशुदगी की जानकारी डाल कर फरीदाबाद पुलिस से जब जानकारी एकत्र करनी शुरू की तो पता चला की फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाना क्षेत्र में पुलिस को एक नाले से 4 सितंबर, 2021 की सुबह एक लाश मिली थी.

वह लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी. हालांकि वह लाश तो किसी पुरुष की थी, लेकिन उस के शरीर पर जो कपड़े थे वह महिलाओं वाले थे. तेजवान समझ गए कि हो न हो, ये लाश मीशा की ही होगी. उन्होंने मीशा के परिजनों को बुलवा लिया और उन्हें ले कर फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाने पहुंच गए.

वहां सेक्टर-17 पुलिस ने उन्हें बताया कि 4 सितंबर को नाले से जो अज्ञात लाश मिली थी, उस को अभी अस्पताल में प्रिजर्व कर के रखा गया है. सेक्टर-17 थाना पुलिस के साथ इंसपेक्टर तेजवान और मीशा के परिजन जब सिटी हौस्पिटल पहुंचे तो वहां पोस्टमार्टम के बाद मुर्दाघर में जो लाश रखी थी, वह इतनी सड़गल चुकी थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था.

लेकिन लाश के पहने हुए कपड़े देख कर मीशा की मां ने पहचान कर ली कि वह लाश मीशा की ही थी. इस के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त की औपचारिकता पूरी कर ली.

फरीदाबाद पुलिस ने मीशा का शव उस के परिजनों को सौंप दिया, जिस का उन्होंने अंतिम संस्कार कर दिया गया.

चूंकि मीशा की लाश बरामद हो चुकी थी, अत: अब ये मामला हत्या का बन चुका था. इसलिए उन्होंने मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ दी.

अब पुलिस सरगरमी से जस्सी की तलाश कर रही थी, क्योंकि उसी के बाद साफ हो सकता था कि मीशा की हत्या क्यों और कैसे की गई.

पुलिस टीम लगातार जस्सी के फोन को सर्विलांस पर लगा कर यह पता लगा रही थी कि उस की लोकेशन कहां है.

आखिर पुलिस को सफलता मिल ही गई. 12 सितंबर को पुलिस टीम ने जस्सी को फरीदाबाद के पलवल शहर से गिरफ्तार कर लिया, वहां वह अपने एक रिश्तेदार के घर छिपा था.

पुलिस ने जब जस्सी से पूछताछ की तो मीशा हत्याकांड की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

जस्सी (24) का पूरा नाम सुमित पाठक है. बिहार के रहने वाले जस्सी के परिवार में मातापिता और एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन है. पिता और भाई दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.

साधारण परिवार का जस्सी शुरू से एक खास तरह की आदत का शिकार था. उसे बचपन से ही लड़कियों के बजाय लड़कों में दिलचस्पी थी. उस का सैक्स करने का तो मन करता, लेकिन लड़कियों के साथ नहीं बल्कि लड़कों के साथ. यही कारण था कि कई ट्रांसजेंडर से उस की दोस्ती हो गई थी. 12वीं तक पढ़ाई के बाद जस्सी ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर के फरीदाबाद के एक फैशन से जुड़े एनजीओ में नौकरी कर ली.

एनजीओ में नौकरी के कारण जस्सी को अकसर कई फैशन शो और प्रोग्राम में एनजीओ की तरफ से जाना पड़ता था. करीब 2 साल पहले जस्सी की मुलाकात अरुण से हुई. उम्र में अरुण उस से 2 साल बड़ा था. पहली बार हुई मुलाकात में ही जस्सी को पता चल गया कि अरुण जन्म से लड़का जरूर है, लेकिन हारमोंस से वह पूरी तरह लड़की है.

लड़कियों जैसे हावभाव, चलनेफिरने और बात करने में लड़कियों की तरह अदाएं दिखाना. पहनावा और मेकअप भी अरुण ऐसा करता कि देखने वाला पहली नजर में लड़की समझने की भूल कर लेता.

अरुण के परिवार में मातापिता और एक छोटे भाई तरुण के अलावा कोई नहीं था. पिता आली गांव में ही पान का खोखा लगाते थे, जबकि मां और भाई बदरपुर स्थित प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करते थे.

अरुण के बचपन से ही लड़कियों की तरह व्यवहार करने और बदलते हारमोन को ले कर परिवार वाले भी परेशान थे. उन्होंने कई जगह उस का इलाज भी कराया, लेकिन जवान होते होते डाक्टरों ने जवाब दे दिया कि उस के हारमोन पूरी तरह बदल चुके हैं.

अरुण ने बड़े होने के बाद अपना नाम मीशा रख लिया और वह फरीदाबाद की ‘पहल’ एनजीओ में नौकरी करने लगा. मीशा और जस्सी की मुलाकात हुई तो जल्दी ही दोनों की दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई.

क्योंकि जस्सी को तो लड़कों में ही अधिक रुचि थी. वहीं मीशा को भी किसी ऐसे दोस्त की तलाश थी, जिस को लड़की में नहीं बल्कि लड़कों या लड़की के भेष में छिपी आधीअधूरी लड़की में रुचि हो.

दोनों में जल्द ही जिस्मानी संबध भी बन गए. मीशा की ख्वाहिश थी कि वह अपना सैक्स परिवर्तन करवा कर पूरी तरह लड़की बन जाए. एक दिन उस ने अपनी यह ख्वाहिश अपने पार्टनर जस्सी से बताई तो जस्सी ने मेहनत से जो पैसे जोड़े थे, उस में से 50 हजार रुपए खर्च कर के अरुण के ऊपरी भाग यानी ब्रेस्ट का औपरेशन करवा दिया.

औपरेशन के बाद सीने पर लड़कियों जैसे उभार निकलते ही मीशा की खूबसूरती में चारचांद लग गए. इस के बाद तो अरुण ने खुद को सार्वजनिक रूप से मीशा के रूप में परिचित कराना शुरू कर दिया. मीशा और और जस्सी के सबंध इस के बाद और भी प्रणाढ़ हो गए. दोनों साथ घूमते, साथ फिल्में देखते. इतना ही नहीं, जस्सी का मीशा के घर पर भी बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया था. मीशा के परिवार वालों ने भी इसे नियति मान लिया था. मीशा अब अपने लिंग का औपरेशन करवा कर पूरी तरह लड़की बनना चाहती थी.

हालांकि औपरेशन के बाद लड़कियों जैसे यौनांग तो एकदम तैयार नहीं हो पाते, लेकिन लिंग का औपरेशन करवा कर उस से अपने पुरुष होने की सजा से मुक्ति मिल जाती.

मीशा जस्सी से जिद करने लगी कि वह अपने निचले हिस्से का भी औपरेशन करवा कर पूरी तरह एक लड़की बनना चाहती है. वैसे जस्सी को उस के औपरेशन में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मीशा की जिद और खुशी के लिए जस्सी ने हां कर दी.

जस्सी ने उस से कहा कि अगले कुछ महीनों में जब उस के पास पैसे इकट्ठा हो जाएंगे तो वह औपरेशन करवा देगा. क्योंकि इस में करीब एक लाख रुपए का खर्च डाक्टरों ने बताया था.

जस्सी मीशा के ऊपर दिल खोल कर पैसा खर्च करता था. जस्सी के परिवार को भी यह बात पता थी कि वह एक ऐसी लड़की से प्यार करता है जो न तो पूरी तरह लड़का है और न ही लड़की.

परिवार वालों ने ऐसा रिश्ता जोड़ने के लिए उसे मना भी किया, लेकिन उस ने परिवार की एक नहीं सुनी.

इसी दौरान पिछले कुछ महीनों से धीरेधीरे मीशा के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा. वह क्लबों में जाने लगी. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बहुत सारे लोगों से उस की दोस्ती हो गई. वह उन के साथ नाइट पार्टियों में जाती. कुछ लोगों के साथ उस के घनिष्ठ संबध भी बन गए.

जब जस्सी को इस बात का अहसास होने लगा और उसे भनक लगी तो उस ने मीशा को रोकनाटोकना चाहा. लेकिन मीशा जिंदगी के जिस रास्ते पर चल पड़ी थी, वहां उस की मंजिल जस्सी नहीं था.

लिहाजा उस ने जस्सी से साफ कह दिया कि वह उसे अपनी प्रौपर्टी न समझे. वह किस के साथ घूमेगी, किस के साथ जाएगी, ये वह खुद तय करेगी.

जस्सी ने भी उस से एकदो बार कहा कि उस ने अपनी मेहनत की कमाई उस के औपरेशन और खर्चों पर इसलिए लुटाई थी ताकि वह उस की बन कर रहे. जस्सी ने उस से एक दिन गुस्से में यह तक कह दिया कि अगर वह उस की नहीं रहेगी तो किसी की नहीं रहेगी. लेकिन मीशा ने उस की बात हवा में उड़ा दी.

लेकिन यह बात मीशा ने अपनी मां को जरूर बता दी थी. जब जस्सी ने देखा कि मीशा पूरी तरह काबू से बाहर हो चुकी है. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों से मिलना देर रात तक उन के साथ पार्टी करना और मस्ती करना उस की आदत बन चुकी है तो उस ने तय कर लिया कि वह उस की हत्या कर देगा. इस के लिए उस ने पूरी साजिश रची. 30 अगस्त, 2021 को उस ने 4 बजे मीशा को फोन कर के उसे 10 मिनट के लिए घर के पास ही मिलने के लिए बुलाया.

मीशा जब उस से मिलने पहुंची तो वह उसे तुरंत मोटरसाइकिल पर बैठा कर यह कह कर अपने साथ ले गया कि अभी आधे घंटे में आते हैं. तुम्हारी किसी दोस्त से मुलाकात करानी है, जो तुम्हारे जैसा ही है. इसी उत्सुकता में मीशा विरोध न कर सकी.

वह 15 मिनट में ही मीशा को मोटरसाइकिल से दिल्ली से सटे फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में नाले के किनारे एक सुनसान जगह ले गया. वहां उस ने मीशा की गोली मार कर हत्या कर दी. मीशा का मोबाइल उस ने अपने हाथ में ले कर पहले ही बंद कर दिया था. हत्या करने के बाद उस ने शव को नाले में फेंक दिया. इस के बाद उस ने मीशा के मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया और फोन तोड़ कर नाले में फेंक दिया. मीशा का शव नाले में बहते हुए 5 किलोमीटर दूर सेक्टर-17 थाने की सीमा में पहुंच गया, जिसे 5 सितंबर को वहां की पुलिस ने बरामद कर लिया.

मीशा की हत्या करने के बाद जस्सी फिर से मोटरसाइकिल से आली गांव पहुंचा, जहां से उस ने मीशा की मां को फोन कर के मीशा से बात कराने के लिए कहा. फिर वह घर चला गया. पुलिस ने पूछताछ के बाद जस्सी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. पुलिस ने मीशा का मोबाइल बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जस्सी को 13 सितंबर, 2021 को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Hindi Best Story

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त परिवार के कथन और आरोपी के बयान पर आधारित

Crime News : सिंह बंधुओं को 200 करोड़ का चूना लगाने वाला ठग

फर्श पर वर्साचे जैसे महंगे ब्रांड के कारपेट और इटालियन संगमरमर बिछा था. ईडी को शक है कि यह बंगला सुकेश व लीना की बेनामी संपत्ति का हिस्सा है.

इस छापे के कुछ दिन बाद ईडी ने मनी लांड्रिंग के मामले में पुलिस से मिली सूचनाओं के आधार पर बौलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज से भी पूछताछ की. श्रीलंकाई मूल की जैकलीन ने कुछ महीने पहले ही मुंबई में जुहू इलाके में महंगा बंगला खरीदा था. इस बंगले की कीमत 175 करोड़ रुपए बताई जाती है.

कहा जाता है कि दिल्ली की जेल में बंद सुकेश की जैकलीन से दोस्ती थी. वह जेल में रहते हुए भी अपने संपर्कों के जरिए उसे महंगे गिफ्ट, चौकलेट और फूल भिजवाता था.

अदिति सिंह से 200 करोड़ की ठगी मामले की जांचपड़ताल चल ही रही थी कि इसी बीच उन की जेठानी यानी मलविंदर मोहन सिंह की पत्नी जपना सिंह ने भी सुकेश के खिलाफ 4 करोड़ रुपए ठगने की शिकायत अगस्त के अंतिम सप्ताह में दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई.

जपना सिंह से भी जेल में बंद उस के पति की जमानत कराने के नाम पर रकम ठगी गई थी. यह रकम हांगकांग के एक खाते में ट्रांसफर कराई गई थी.

दिल्ली पुलिस ने 5 सितंबर को सुकेश की ठगी के मामले में उस की अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल को गिरफ्तार कर लिया.

बौलीवुड फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में जौन अब्राहम के साथ काम कर चुकी लीना मूलरूप से केरल की रहने वाली है. उस की स्कूली पढ़ाई दुबई में हुई. वह बीडीएस ग्रैजुएट है.

भारत में आने के बाद वर्ष 2009 में मोहनलाल स्टारर फिल्म ‘रेड चिलीज’ से अपना करियर शुरू करने वाली लीना बौलीवुड फिल्म ‘बिरयानी’, ‘हसबैंड इन गोवा’ और ‘कोबरा’ के अलावा कई भाषाई फिल्मों में भी काम कर चुकी है.

ईडी की जांच में सामने आया कि लीना अपने पति सुकेश की बेईमानी की कमाई से ऐशोआराम की जिंदगी जी कर रही थी.

लीना 2009 में जब तमिल और मलयालम फिल्मों के लिए स्ट्रगल कर रही थी, तब सुकेश ने उसे अपने झांसे में लिया और उसे कुछ फिल्मों में काम दिलवाया. यहीं से दोनों की प्रेम कहानी शुरू हुई. इस के बाद इन की प्रेम कहानी परवान चढ़ती रही और ये पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

सुकेश से मुलाकात के बाद लीना की लाइफस्टाइल भी बदल गई. वह उस के सभी गलत सही कामों में साथ देने लगी. यही कारण रहा कि वह भी सुकेश के साथ जेल जाती रही.

लीना से पूछताछ के आधार पर इन के 4 साथियों अरुण मुथू, मोहन राज, कमलेश कोठारी और जोएल डेनियल को भी दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. ये चारों चेन्नई के रहने वाले हैं. ये लोग भी सुकेश और लीना के उगाही रैकेट में शामिल थे.

अभिनेत्री लीना को 2013 में भी सुकेश के साथ चेन्नई के एक बैंक में 19 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 2015 में भी करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के मामले में उस की गिरफ्तारी हुई थी.

बाद में दिसंबर 2018 में लीना पाल अपने ब्यूटीपार्लर में शूटआउट के बाद सुर्खियों में आई थी. कहा गया कि गैंगस्टर रवि पुजारी ने उस से करोड़ों रुपए की रंगदारी मांगी थी. नहीं देने पर उस के ब्यूटीपार्लर पर फायरिंग कराई थी.

इस मामले में लीना ने अदालत में याचिका दायर कर पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की थी. इसे अदालत ने खारिज कर कहा था कि वह सुरक्षा के लिए निजी गार्ड रख सकती हैं.

कर्नाटक के रहने वाले सुकेश चंद्रशेखर उर्फ बालाजी के अपराधों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. अभी उस के खिलाफ 20 से ज्यादा मामले चल रहे हैं. वह कई बार पकड़ा जा चुका है. कभी अकेला, तो कभी अभिनेत्री पत्नी लीना के साथ.

अभी वह 2017 से जेल में है. हालांकि इस दौरान वह बीचबीच में पैरोल पर जाता रहा. पिछले साल भी वह चेन्नई गया था.

अय्याश जिंदगी जीने के शौक ने उसे शातिर ठग बना दिया. सुकेश के पिता रबर कौन्ट्रेक्टर थे. उस ने 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और अपराध की दुनिया में कदम रख लिया.

जब उस की उम्र महज 17 साल थी, तब उस ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे का दोस्त बन कर एक परिवार से एक करोड़ 14 लाख रुपए की ठगी की थी.

बेंगलुरु पुलिस ने तब उसे पहली बार पकड़ा था. जमाने पर आने के बाद वह चेन्नई चला गया. उसे अप्रैल 2017 में चुनाव आयोग घूसकांड के मामले में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल से एक करोड़ से ज्यादा की नकदी सहित गिरफ्तार किया था.

आरोप था कि उस ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद पार्टी के चुनाव चिह्न को ले कर हुए विवाद में एआईएडीएमके के डिप्टी चीफ टी.टी.वी. दिनाकरण को चुनाव आयोग के अधिकारियों को रिश्वत के रूप में 50 करोड़ रुपए दे कर सिंबल दिलवाने का वादा किया था.

इसी मामले में गिरफ्तारी के बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल में उस ने जेल अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर देश के नामी लोगों से ठगी का काम शुरू कर कर दिया था.

बाद में उसे तिहाड़ से दिल्ली की ही रोहिणी जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. सुकेश पर तेलगूदेशम पार्टी के पूर्व सांसद रायपति संबाशिव राव से वसूली करने के लिए सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के नाम का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगा था.

उस ने पूर्व सांसद से सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों के नाम पर 100 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी.

संबाशिव राव पर अपनी कंपनी के माध्यम से 7 हजार 926 करोड़ रुपए की बैंक धोखाधड़ी करने और फरजी फर्मों को धन देने का आरोप है.

वर्ष 2013 में सुकेश और उस की पत्नी लीना को चेन्नई के केनरा बैंक से 19 करोड़ की ठगी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उस समय इन के दिल्ली स्थित फार्महाउस से 20 करोड़ रुपए कीमत की 9 लग्जरी गाडि़यां जब्त की गई थीं.

वह राजनेताओं के रिश्तेदार के रूप में खुद को पेश करता था. इस के अलावा केंद्रीय मंत्रियों, सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों या सुप्रीम कोर्ट के जज के नाम पर लोगों से ठगी करता था.

जेल से बाहर आने पर वह ठगी के पैसों से महंगी कारें खरीदता और ऐशोआराम की जिंदगी जीता था.

कभी उस ने एम. करुणानिधि का पोता बन कर तो कभी कर्नाटक के पूर्व मंत्री करुणाकर रेड्डी का सहयोगी बन कर तो कभी बी.एस. येदियुरप्पा का सचिव बन कर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी की.

उस ने लोगों को नौकरियों का झांसा दे कर भी 75 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम ठगी.

दिल्ली की जेल में रहते हुए उस ने एक बड़े बिजनैसमैन से 50 करोड़ रुपए ठग लिए थे. वह खुद या अपने सहयोगी से मोबाइल से स्पूफिंग के जरिए लोगों को काल कराता था.

स्पूफिंग के जरिए वह जिस अधिकारी या राजनेता के नाम से फोन करता था, उसी का नंबर फोन रिसीव करने वाले के स्क्रीन या ट्रूकालर पर प्रदर्शित होता था. इसी कारण लोगों को यह विश्वास हो जाता था कि उस से बात कर रहा शख्स सही है.

देशभर में अनेक लोगों से सैकड़ों करोड़ रुपए की ठगी करने के आरोपी सुकेश और लीना अभी जेल में हैं. अपराधों में भागीदार उन के साथी, बैंक वाले और जेल अफसर भी जेल में हैं. दिल्ली पुलिस के अलावा प्रवर्तन निदेशालय इस मामले की जांच कर रहा है.

बहरहाल, जेल से इतने बड़े पैमाने पर हुई ठगी गंभीर जरूर है, लेकिन इस तरह की वारदातें रोकने के लिए सरकार के स्तर पर कोई भी ठोस प्रयास नहीं किए जाते. इसलिए जेल और जेल से बाहर रोजाना नएनए ठग पैदा होते हैं.

 

Crime News : सिंह बंधुओं को 200 करोड़ का चूना लगाने वाला ठग

नटवरलाल भले ही अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की ठगी के किस्से आज भी मशहूर हैं. नटवरलाल को 20वीं सदी में हिंदुस्तान का सब से बड़ा ठग कहा गया. उस का असली नाम मिथलेश श्रीवास्तव था.

वह बिहार का रहने वाला था. वह अपनी बातों से ही लोगों को ऐसा प्रभावित करता था कि लोग उस की ठगी के जाल में फंस जाते थे. उस ने कभी खूनखराबा नहीं किया. अपनी बुद्धि की ताकत पर वह लोगों से ठगी करता था. और तो और, उस ने संसद भवन और ताजमहल तक का सौदा कर दिया था.

अपने ठगी के कारनामों से वह इतना मशहूर हो गया कि लोग उसे उस के असली नाम से नहीं, बल्कि नटवरलाल के नाम से जानते थे. नटवरलाल का मतलब ठगी करने वाला.

21वीं सदी में भारत में भी तरहतरह के ठग पैदा हो गए. अब रोजाना नएनए तरीकों से ठगी के किस्से सामने आते हैं. आजकल सब से ज्यादा साइबर ठग सक्रिय हैं. खास बात है कि अनपढ़ और बहुत कम पढ़ेलिखे लोग जब मंत्रियों, आईएएस/आईपीएस अफसरों और जजों के अलावा नामी उद्योगपतियों तक को अपना शिकार बनाते हैं तो ताज्जुब होता है.

इन साइबर ठगों को साइलेंट किलर कहा जा सकता है, जो बिना कोई खूनखराबा किए लोगों का पैसा हड़प लेते हैं.

अब एक नया नटवरलाल सामने आया है. नाम है सुकेश चंद्रशेखर. सिर्फ 12वीं तक पढ़ेलिखे सुकेश की ठगी के किस्से इन दिनों हिंदुस्तान की हाई सोसायटी में सब से ज्यादा मशहूर हो रहे हैं.

मासूम सा नजर आने वाला सुकेश देश के नामी उद्योगपतियों और बिजनेसमैन के परिवारों के अलावा नेताओं से अब तक सैकड़ों करोड़ रुपए की ठगी कर चुका है.

सुकेश अभी मुश्किल से 32 साल का है, लेकिन वह जवान होने से पहले से ही ठगी कर रहा है, जब वह महज 17 साल का था, तब सब से पहले उस का नाम एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी में सामने आया था.

इस के बाद 15 साल के अपनी ठगी के जीवन में वह करीब 5 साल का समय जेलों में बिता चुका है. उस ने जेल में रहते हुए ही 200-250 करोड़ रुपए की ठगी कर ली.

वह इतना शातिर है कि एक फिल्मी हीरोइन उस की पत्नी है. बौलीवुड के अलावा दक्षिण की कई फिल्मों में काम कर चुकी उस की हीरोइन पत्नी भी अब उस के अपराधों में भागीदार है.

सुकेश अब जेल में रहते हुए बौलीवुड की एक नामी हीरोइन पर डोरे डाल रहा था. यह नामी हीरोइन अब जांच एजेंसियों के दायरे में है.

यह कहानी हिंदुस्तान के नए महाठग सुकेश चंद्रशेखर की है. पिछले साल यानी 2020 की बात है. भारत की जनता का पहली बार कोरोना महामारी से वास्ता पड़ा था. पूरे देश में लोग संक्रमित हो रहे थे. लगातार मौतें हो रही थीं. सरकारी और गैरसरकारी इलाज के इंतजाम कम पड़ गए थे.

जून के महीने में कोरोना का तांडव चरम पर था. तभी एक दिन दिल्ली में अदिति सिंह के फोन की घंटी बजी. फोन करने वाली एक महिला थी. उस महिला ने बहुत शालीनता से अफसरी लहजे में अदिति सिंह से कहा, ‘‘कैन आइ टाक टू अदिति सिंह मैम.’’

‘‘यस, मैं अदिति बोल रही हूं.’’ अदिति सिंह ने जवाब दिया.

‘‘मैम, केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव अनूप कुमार जी आप से बात करेंगे.’’ दूसरी ओर से महिला बोली.

‘‘हां, बात कराइए,’’ अदिति सिंह ने कहा.

लाइन कनेक्ट होने पर दूसरी ओर से किसी पुरुष की आवाज आई, ‘‘मैम, मैं अनूप कुमार बोल रहा हूं. ऊपर से आप की मदद करने के लिए आदेश आया है. कोविड के इस दौर में पीएम और होम मिनिस्टर चाहते हैं कि आप सरकार के साथ मिल कर काम करें, क्योंकि आप के पति हेल्थ सेक्टर के नामीगिरामी आदमी हैं.’’

‘‘ठीक है सर, आप क्या मदद कर सकते हैं और हमें इस के लिए क्या करना होगा.’’ अदिति सिंह ने फोन करने वाले अनूप कुमार से पूछा.

‘‘मैम, आप को अभी कुछ नहीं करना है. मैं मंत्रीजी और हमारे बड़े अफसरों से बात कर आप को जल्दी ही दोबारा काल करूंगा.’’ अनूप कुमार बोला.

फोन डिसकनेक्ट होने के बाद अदिति सिंह कुछ महीने पुरानी यादों में खो गईं.

कभी अरबोंखरबों के साम्राज्य की मालकिन रही अदिति सिंह रैनबेक्सी कंपनी के पूर्व प्रमोटर शिविंद्र मोहन सिंह की पत्नी हैं.

रैनबेक्सी एक समय में देश की सब से बड़ी फार्मा कंपनी थी. इस कंपनी के प्रमोटर 2 भाइयों मलविंदर मोहन सिंह और शिविंद्र मोहन सिंह की कारपोरेट जगत में अलग पहचान थी. बाद में 2008 में रैनबेक्सी को जापानी कंपनी दायची ने खरीद लिया था.

इस सौदे के बाद जापानी कंपनी ने सिंह बंधुओं पर रैनबेक्सी के बारे में गलत जानकारी दे कर महंगी कीमत वसूलने का आरोप लगा कर केस कर दिया था.

इस बीच, सिंह बंधुओं ने रैनबेक्सी कंपनी अपने हाथ से निकलने के बाद फोर्टिस हेल्थकेयर की शुरुआत की. इस कंपनी ने देशभर में शानदार अस्पतालों की शृंखला बनाई. सिंह बंधुओं ने इस के अलावा वित्तीय और दूसरे क्षेत्रों में काम करने के लिए रेलिगेयर फिनवेस्ट कंपनी शुरू की.

वर्ष 2016 में सिंह बंधुओं ने फोर्ब्स की 100 सब से अमीर भारतीयों की सूची मे 92वें नंबर पर जगह बनाई थी. उस वक्त दोनों भाइयों की संपत्ति 8 हजार 864 करोड़ रुपए बताई गई थी.

बाद में सिंह बंधुओं पर कंपनियों से धोखाधड़ी कर फंड निकालने के आरोप लगे. दोनों कंपनियां संकट में आईं तो उन के शेयर धारकों ने दोनों सिंह बंधुओं को निदेशक पद से हटा दिया. बाद में रेलिगेयर फिनवेस्ट और रेलिगेयर इंटरप्राइज ने दोनों सिंह बंधुओं के खिलाफ 237 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी.

इस से पहले अक्तूबर 2015 में सिंह बंधुओं की कहानी में अध्यात्म का ट्विस्ट आ गया. अक्तूबर 2015 में फोर्टिस की आम बैठक में शिविंद्र मोहन सिंह ने कंपनी का काम छोड़ने और अध्यात्म तथा समाज सेवा की ओर मुड़ने की घोषणा की.

फिर वे कंपनी की गतिविधियों से अलग हो कर राधास्वामी सत्संग (ब्यास) से जुड़ गए. शिविंद्र की मां निम्मी सिंह पहले से इस डेरे से जुड़ी हुई थीं.

फर्जी MBBS दाखिले : करोड़ों लूटे

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर में रहने वाला चंद्रेश गुप्ता अपने कमरे में बैठा सुबह की चाय का इंतजार कर रहा था, उसे नौकरी का इंटरव्यू देने के लिए 9 बजे घर से निकलना था. चंद्रेश ने इसी साल मेरठ से बीएससी की थी, नोएडा की एक फार्मा कंपनी में नौकरी के लिए निकली वैकेंसी के लिए आवेदन भी कर दिया था. उसे इंटरव्यू का लैटर मिल गया था, इसलिए वह नहाधो कर तैयार बैठा था. एकाएक उस के कानों में भाभी रमा की दर्दभरी चीख सुनाई पड़ी, ‘‘ऊई मांऽऽ.’’

‘‘क्या हुआ भाभी?’’ चंद्रेश घबरा कर किचन की तरफ दौड़ते हुए चिल्लाया.

‘‘अंगुली कट गई लाला.’’ रमा अपनी बाईं हाथ की एक अंगुली को दूसरे हाथ से दबाए हुए दर्द भरे स्वर में बोली.

चंद्रेश ने भाभी की कटी अंगुली से खून टपकता देखा तो वह घबरा कर बोला, ‘‘क्या करती हो भाभी? कैसे काट ही अंगुली?’’

‘‘प्याज काट रही थी लाला. सोचा था, तुम्हारे लिए परांठे और आलू की भुजिया बना दूं. इंटरव्यू देने जा रहे हो, पता नहीं कितना समय लग जाए. नाश्ता कर के जाना जरूरी है.’’ रमा दर्द से कराहते हुए बोली.

‘‘आप अंगुली दबा कर रखो, मैं फर्स्टएड बौक्स ले कर आता हूं.’’ चंद्रेश ने कहा और तेजी से कमरे की तरफ लपक कर गया.

उस ने दराज में रखा फर्स्टएड बौक्स निकाला और किचन में ले आया. उस ने बौक्स में से एंटीसेप्टिक क्रीम, डिटोल और कौटन पट्टी निकाली. पहले कौटन पर डिटोल लगा कर रमा की अंगुली से बह रहे खून को कौटन से साफ किया. डिटोल से खून रोकने के बाद चंद्रेश ने साफ कौटन पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाई और कटी अंगुली पर पट्टी बांध दी. रमा बड़े गौर से अपने देवर द्वारा अपनी की अंगुली पर पट्टी बांधते हुए देख रही थी. पट्टी हो गई तो रमा मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम तो पूरे डाक्टर बन गए हो लाला.’’

‘‘कहां भाभी?’’ चंद्रेश गहरी सांस भर कर बोला, ‘‘भैया से कितनी बार कहा है कि जब साइंस सबजेक्ट से ग्रैजुएशन करवा दिए हो तो मुझे डाक्टरी की पढ़ाई भी करवा दो, लेकिन भैया हैं कि सुनते ही नहीं.’’

‘‘डाक्टरी कोई हजार 2 हजार में थोड़ी होती है लाला. सुना है, इस में 80-90 लाख रुपया लग जाता है. इतना रुपया तुम्हारे भैया सात जन्म कमाने के बाद भी इकट्ठा नहीं कर सकते. फैजाबाद में जो खेत पड़ा है, वह बेचा नहीं जा सकता. तुम्हारे भैया ने अपनी तनख्वाह में तुम्हें ग्रैजुएशन करवा दिया है. अब कहीं 10-12 हजार की नौकरी कर लो, इस घर के खर्च को ठीकठाक चलाने के लिए इतना ही काफी रहेगा.’’

‘‘अच्छा भाभी.’’ चंद्रेश ने मुसकरा कर कहा और इंटरव्यू के लिए निकल गया.

‘‘लाला, बाहर कुछ खा जरूर लेना, भूखे मत रहना.’’ भाभी ने कहा.

‘‘खा लूंगा भाभी, आप आराम कीजिए. दोपहर में चावल वगैरह बना कर आप खा लेना. शाम को मैं होटल से रोटीसब्जी लेता आऊंगा.’’ चंद्रेश ने कहा.

हरीराम उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद में रहते थे. मूलत: वह फैजाबाद के रहने वाले थे, वहां पुश्तैनी घर और खेतीबाड़ी थी. खेती की फसल से उन के परिवार का खर्च चलता था. परिवार में पत्नी माया और 2 बेटे दयाशंकर और चंद्रेश थे. गाजियाबाद में उन के बहनोई रहते थे. उन के कहने पर 10 साल पहले वह पुश्तैनी मकान बेच कर गाजियाबाद आ बसे थे.

चंद्रेश बनना चाहता था डाक्टर

यहां एक कंपनी में वह काम पर लग गए और बेटों को उच्च शिक्षा दिलाने की मंशा से उन्हें अच्छे स्कूलों में दाखिला दिला दिया. दयाशंकर 12वीं क्लास तक ही पढ़ पाया. अपनी रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दया को अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया और उस की शादी रमा से कर दी. चूंकि हरीराम और पत्नी माया बूढ़े हो गए थे. अब दोनों घर में ही पड़े रहते थे. घर के खर्च की जिम्मेदारी दया ने संभाल ली थी. वह चंद्रेश को खूब पढ़ाना चाहता था ताकि वह किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर नौकरी कर के घर खर्च में उस का सहयोग करे.

चंद्रेश मेरठ के डिग्री कालेज से बीएससी करने के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन उस के लिए लाखों रुपया चाहिए था. फैजाबाद में जो खेत पड़ा था, वह बटाई पर दिया हुआ था, उस के रुपयों से गाजियाबाद में हरीराम के परिवार का खर्च चल रहा था. उसे बेचा नहीं जा सकता था. बेचते भी तो 20-30 लाख रुपया ही मिलता, लेकिन उस से एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं हो पाती, घर में खर्चे की परेशानी पैदा होती सो अलग. इसलिए चंद्रेश ने एमबीबीएस करने का विचार त्याग कर सरकारी नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू कर दी थी. परंतु बहुत कोशिश के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो चंद्रेश ने प्राइवेट कंपनी की ओर रुख कर लिया था.

आज उसे फार्मा टेक्ट कंपनी में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. ठीक समय पर वह उस कंपनी में पहुंच गया, लेकिन इंटरव्यू के नाम पर खानापूर्ति कर के उसे वापस लौटा दिया गया. मालूम हुआ कि कंपनी में काम कर रहे किसी व्यक्ति ने मोटी रकम कंपनी के एमडी की जेब में डाल कर अपने भतीजे को रिक्त पड़ी एकाउंटेंट की नौकरी पर लगवा दिया है. चंद्रेश निराश हो कर घर लौट रहा था कि उस की मुलाकात अपने एक जिगरी दोस्त राजवीर से हो गई. राजवीर उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला, ‘‘कैसे हो चंद्रेश? यह शक्ल पर 12 क्यों बज रहे हैं तुम्हारे?’’ राजवीर ने पूछा.

‘‘किस्मत की मार पड़ती है तो ऐसे ही 12-13 बजते हैं राजवीर.’’ चंद्रेश के स्वर में असंतोष था.

‘‘किस्मत को मत कोसो यार, आज नहीं तो कल तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी. आओ, किसी रेस्तरां में बैठ कर चाय पीते हैं.’’ राजवीर ने कहा और चंद्रेश को ले कर एक रेस्तरां में आ गया.

चाय के साथ उस ने 2 प्लेट समोसे का भी और्डर दे कर चंद्रेश के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘तुम्हारा एमबीबीएस करने का सपना था, उस का क्या हुआ?’’

‘‘उस के लिए बहुत मोटी रकम चाहिए राजवीर, हमारे पास इतना रुपया नहीं है. तभी तो मैं नौकरी के लिए भागदौड़ कर रहा हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं एमबीबीएस करने के लिए अस्सीनब्बे लाख रुपया चाहिए. यह कोर्स अमीर लोग ही अपने बेटों को करवा सकते हैं. हम लोग यह कोर्स करने का सपना भी नहीं देख सकते, लेकिन अब हमारे लिए एक रास्ता खुल गया है.’’

‘‘कैसा रास्ता?’’ चंद्रेश ने राजवीर की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.

‘‘गौतमबुद्ध नगर में एक औफिस खुला है. वे एमबीबीएस के लिए संबंधित कालेज में केवल 15 लाख में एडमिशन दिलवा देते हैं.’’

‘‘15 लाख, यह तो ज्यादा है.’’ चंद्रेश की आवाज में निराशा झलकी.

‘‘अबे, 80-90 लाख से तो ठीक है. तेरा सपना अगर 15 लाख रुपए में पूरा हो जाए तो और क्या चाहिए. डाक्टर बन कर कालेज से बाहर आओगे तो ऐसे कितने ही 15 लाख कमा लोगे.’’

‘‘कहता तो तू ठीक है, बोल कब चलेगा उस औफिस में?’’

‘‘कल चलते हैं. मैं आज दोस्त से उस औफिस का एड्रैस कंफर्म कर लूंगा. मुझे भी एमबीबीएस करना है.’’

‘‘ठीक है, मैं कल तुम्हें 9 बजे तुम्हारे घर पर मिलता हूं.’’ चंद्रेश ने उठते हुए कहा.

शाम को उस ने घर पहुंच कर इंटरव्यू में धोखाधड़ी होने की बात अपनी भाभी रमा को बता दी थी. भाभी तब बहुत निराश हो गई थीं.

वह सोचता था, ‘क्या उस ने 10-12 हजार की नौकरी पाने के लिए बीएससी की थी?’

जैसेतैसे वह रात कटी. चंद्रेश ने जल्दी से बिस्तर छोड़ा. नित्यकर्म से फारिग होने के बाद उस ने चायनाश्ता किया और तैयार हो कर वह 8 बजे ही घर से निकल गया.

9 बजे से पहले ही वह राजवीर के घर पहुंच गया. उसे हैरानी हुई कि राजवीर पहले से ही तैयार हो कर उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘तूने एड्रैस कंफर्म कर लिया न राजवीर?’’ चंद्रेश ने हायहैलो करने से पहले ही पूछ लिया.

‘‘हां, वह सैक्टर-63 में है. पूरा पता है डी-247/4ए, गौतमबुद्ध नगर. हम वहां आटो से चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ चंद्रेश ने सिर हिला कर कहा, ‘‘मेरी जेब में 2 सौ रुपया है.’’

‘‘मेरी जेब भी गरम है यार.’’ राजवीर बोला तो चंद्रेश हंस पड़ा.

दोनों ने रोड से गौतमबुद्धनगर के सैक्टर-63 के लिए आटो किया और आधा घंटे में ही सैक्टर-63 में पहुंच गए. पूछते हुए दोनों डी-247/4ए के सामने पहुंच कर रुक गए. वहां कुछ युवक खड़े थे.

‘‘यही है औफिस. देखो, पहले से यहां कितने ही युवक खड़े हैं.’’ राजवीर ने चंद्रेश का हाथ दबा कर कहा.

‘‘शायद एकएक को अंदर बुलाया जा रहा है, तभी औफिस के बाहर ये लोग खड़े हैं.’’ चंद्रेश ने अनुमान लगा कर कहा, ‘‘आओ, किसी से पूछ लेते हैं.’’

दोनों वहां बाहर खडे युवकों के पास आए.

‘‘अंदर प्रवेश के लिए क्या प्रोसिजर है दोस्त?’’ राजवीर ने एक युवक से पूछा.

‘‘गेट पर गार्ड खड़ा है, उस से एक फार्म 5 रुपए का ले लो और अपना बायोडाटा लिख कर गार्ड को दे दो. वही आवाज लगा कर आप को बुलाएगा.’’ उस युवक ने बताया.

दोनों ने गार्ड को 10 रुपए दे कर 2 फार्म ले लिए फिर फार्म भर कर गार्ड के पास जमा करवा दिए. उन को बताया गया कि एक घंटे तक उन का नंबर आ जाएगा. दोनों वहीं धूप में खड़े हो गए. एक घंटे बाद पहले राजवीर को अंदर बुलाया गया, फिर 15 मिनट बाद चंद्रेश का नंबर आया. चंद्रेश ने शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश किया, तब उस के दिल की धड़कन बेकाबू थी. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए उस ने अंदर बने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर घुसते हुए बड़े शिष्टाचार से कहा, ‘‘गुड मार्निंग सर.’’

‘‘वेरी गुडमार्निंग,’’ सामने कुरसी में धंसे एक मुसलिम नजर आने वाले युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए.’’

चंद्रेश ने कुरसी पर बैठ कर नजरें घुमाईं. उस युवक के साथ वाली कुरसियों पर 2 युवतियां बैठी हुई थीं, जो चेहरेमोहरों से शिक्षित दिखलाई पड़ती थीं.

केबिन की दीवारें सपाट थीं. उन पर किसी नेता की तसवीर नहीं लगी थी. अकसर औफिस में किसी राजनेता की तसवीर जरूर लगी होती है. सामने बैठा मुसलिम युवक शायद हैड था. उस ने चंद्रेश को गौर से देखा, ‘‘क्या आप का नाम चंद्रेश गुप्ता है?’’ हाथ में पकड़े फार्म को देख कर उस युवक ने पूछा.

‘‘जी सर,’’ चंद्रेश ने बताया.

‘‘गुप्ता लोग तो पैसे वाले होते हैं चंद्रेश बाबू.’’ युवक ने प्रश्न किया, ‘‘क्या आप भी पैसे वाले हैं?’’

‘‘नहीं सर, हम खानेकमाने वालों में से हैं. भैया 12 हजार की नौकरी करते हैं.’’

‘‘हूं,’’ सामने बैठे युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘क्या आप को नहीं मालूम एमबीबीएस में एडमिशन पाने के लिए लाखों रुपया लगता है?’’

‘‘मालूम है सर. लेकिन सुना है, आप कम रुपयों में एमबीबीएस का दाखिला दिला देते हैं.’’ चंद्रेश ने जल्दी से बात को संभाला, ‘‘आप केवल 15 लाख रुपया लेते हैं.’’

‘‘जरूरी नहीं, 15 लाख ही लेंगे. हमें आप का सब्जेक्ट, शिक्षा सभी पर गौर करना है. खुशी हुई आप ने साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन किया है. लेकिन आप के मार्क्स कम हैं, इसलिए आप को सरकारी कालेज में दाखिला दिलवाने में थोड़ी परेशानी पेश आएगी.’’

‘‘सर, मुझे एमबीबीएस करना है. आप मन से चाहेंगे तो मुझे एडमिशन मिल जाएगा.’’ चंद्रेश गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘मैं बहुत उम्मीद से यहां आया हूं.’’

उस युवक ने पास बैठी युवती की ओर देखा. आंखों ही आंखों में बात की, फिर उन में से एक युवती ने चंद्रेश के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘क्या आप 30 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकेंगे?’’

‘‘30 लाख? यह तो बहुत ज्यादा होगा मैम.’’ चंद्रेश घबरा कर बोला.

‘‘तो आप कितना दे सकते हैं?’’ दूसरी युवती ने पूछा.

‘‘15 लाख दे दूंगा मैम.’’

‘‘15 लाख कम रहेगा.’’ सामने बैठे युवक ने इंकार में सिर हिलाया तो तुरंत पास बैठी युवली बोल पड़ी, ‘‘आप 20 लाख का इंतजाम करिए. हम आप के लिए सरकारी कालेज में एडमिशन की बात कर लेते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं 20 लाख ही दूंगा, लेकिन मेरा एडमिशन हो जाना चाहिए मैम.’’ चंद्रेश ने अपनी बात रख कर आश्वासन मांगा.

‘‘अवश्य हो जाएगा. आप एक हफ्ते में 20 लाख रुपया जमा करवा दें, इस से ज्यादा समय नहीं दिया जाएगा आप को, क्योंकि यहां एडमिशन पाने वालों की भीड़ ज्यादा है और सरकारी कालेजों में सीटें कम हैं.’’

‘‘मैं एक हफ्ते से पहले ही 20 लाख जमा करवा दूंगा मैम.’’ चंद्रेश जल्दी से बोला.

चंद्रेश उठा और बाहर आ गया. राजवीर उसे बाहर ही मिल गया. उस ने बताया कि उस से 25 लाख रुपया मांगा गया है, वह 2 दिन में यह रुपया ला कर जमा करवा देगा.

राजवीर और चंद्रेश की आंखों में अनोखी चमक थी. बहुत कम रुपयों में उन्हें एमबीबीएम करने का सुनहरा मौका जो मिल रहा था. इस मौके को वे किसी भी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.

सभी पीडि़त पहुंचे पुलिस के पास

नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) के थाना सेक्टर-63 में 30-35 युवक एक साथ पंहुचे तो एसएचओ अमित मान अपनी कुरसी से उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘क्या बात है, आप इतने लोग एक साथ?’’

‘‘सर, हम लुट गए हैं, हमारे साथ धोखाधड़ी हुई है.’’ उन युवकों में चंद्रेश भी था. वह आगे आ कर रुआंसे स्वर में बोला.

‘‘किस ने की है यह धोखाधड़ी?’’ एसएचओ चौंकते हुए बोले, ‘‘मुझे तुम विस्तार से पूरा मामला बताओ.’’

‘‘सर, मेरा नाम चंद्रेश है. यहां सैक्टर-63 में एक औफिस खोला गया है, जिस के द्वारा 20 से 30 लाख रुपए ले कर सरकारी कालेज में एमबीबीएस का एडमिशन दिलवाने का झांसा दिया गया.

‘‘यह साथ आए तमाम छात्र और मैं इस फरजीवाड़े का शिकार बन गए हैं. किसी ने 30 लाख रुपया दिया है, किसी ने 20 लाख. मेरे दोस्त राजवीर ने मुझे बताया कि कम रुपयों में फलां कंपनी हमें एमबीबीएस का एडमिशन दिलवा देगी.’’

‘‘राजवीर साथ आया है?’’ एसएचओ अमित मान ने पूछा.

‘‘जी सर.’’ राजवीर युवकों की भीड़ से आगे आ कर बोला, ‘‘मैं भी इस फरजी कंपनी द्वारा ठग लिया गया हूं. मैं ने 25 लाख रुपया इस कंपनी को दे दिया है.’’

‘‘ओह!’’ एसएचओ अमित मान एकदम गंभीर हो गए, ‘‘राजवीर तुम्हें इस औफिस के विषय में किस ने बताया था?’’

‘‘मेरा दोस्त शिवम है, वह भी साथ आया है सर. शिवम ने ही मुझे बताया था कि 15 लाख रुपया दे कर वह सरकारी कालेज के लिए सेलेक्ट हो गया है. मैं ने यह बात चंद्रेश को बताई तो वह और मैं दूसरे दिन इस औफिस में पहुंच गए. मुझ से 25 लाख रुपया एडमिशन दिलवाने के नाम पर मांगा गया तो मैं ने तीसरे दिन ही यह रुपया औफिस में जा कर जमा करवा दिया.’’

‘‘हां चंद्रेश, तुम ने 20 लाख रुपया कैसे जुटाया?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने पिताजी और भैया के पांव पकड़ लिए. उन से गिड़गिड़ा कर कहा कि अगर मुझे 20 लाख रुपया दे देंगे तो डाक्टरी करने के बाद सरकारी नौकरी मिल जाएगी. मैं उन का रुपया लौटा दूंगा और घर की तमाम जिम्मेदारी भी संभाल लूंगा. मेरे भाई और पिताजी ने सलाहमशविरा कर के फैजाबाद वाला खेत 20 लाख में तुरंत बेच कर 3 दिन में मेरे हाथ पर 20 लाख रुपया रख दिया. जिसे ला कर मैं ने उस औफिस में जमा करवा दिया.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि तुम लुट गए हो, तुम्हारे साथ धोखा हुआ है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘सर, इस कंपनी ने रुपया ले लेने के बाद मुझे भी अन्य छात्रों की तरह काउंसलिंग के बहाने 18 दिसंबर, 22 तक रोक कर रखा. हमें एक महीने रोक कर रोज मीटिंग ली जाती, समझाया जाता कि एमबीबीएस कैसे पूरा करना है, कैसे आत्मविश्वास बना कर रखना है, कैसे संयम रख कर अपनी पढाई करनी है, आदिआदि.

‘‘एक महीना पूरा होने के बाद 18 दिसंबर को सरकारी कालेज (जहां से एमबीबीएस करना था) एक अथारिटी लेटर ले कर भेजा गया. वहां जाने पर हमें मालूम हुआ कि सरकारी कालेज के डीन ऐसे किसी औफिस या व्यक्ति को नहीं जानते, हमें ठगा गया है. यह मालूम होते ही हम सब सेक्टर-63 के उस औफिस में पहुंचे तो वहां गार्ड और कर्ताधर्ता गायब थे. हमें अपने को ठगे जाने का पता चला तो हम सब एकत्र हो कर यहां अपनी शिकायत ले कर आ गए हैं.’’

मामला बहुत गंभीर था. एसएचओ अमित मान ने गौतमबुद्ध नगर की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह, डीसीपी  व एसीपी को फोन द्वारा इस ठगी की जानकारी दी तो उन्होंने एसएचओ अमित मान को जांच अधिकारी बना कर उन के नेतृत्व में एसआई नीरज शर्मा, आरती शर्मा, हैडकांस्टेबल सुबोध, वरुण चौधरी, कांस्टेबल अंकित व अंशुल की टीम का गठन कर दिया गया. एसएचओ ने थाने में आए छात्रों को आश्वासन दिया कि उन ठगों को पकड़ने की पूरी कोशिश की जाएगी. वे सब अपनीअपनी शिकायत स्वागत कक्ष में जा कर लिखित रूप में जमा करवा दें और अपने घर लौट जाएं.

चंद्रेश और राजवीर के बताए अनुसार, आर्टिस्ट ने उन ठगों के हुलिए के रेखाचित्र बना दिए. उन में एक उस मुसलिम युवक और 2 युवतियों के चित्र थे. एसएचओ अमित मान ने उन रेखाचित्रों को हर थाने में वाट्सऐप द्वारा भेज कर उन्हें देखते ही हिरासत में लेने और सूचना देने का अनुरोध कर दिया. एसएचओ अमित मान अपने साथ एसआई नीरज शर्मा और पुलिस टीम के साथ चंद्रेश और राजवीर को साथ ले कर उन ठगों के कथित औफिस के लिए निकल गए. लेकिन औफिस पर ताला बंद था. वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की पड़ताल की गई तो उन युवक और युवतियों की पहचान चंद्रेश और राजवीर ने कर दी.

तीनों की फोटो अपने मोबाइल में अपलोड करने के बाद एसएचओ अमित मान ने अपने तमाम मुखबिरों को वह फोटो उन के मोबाइल में भेज कर उन की तलाश में लगा दिया. पुलिस टीम भी उन वांछित ठगों की तलाश में पूरे शहर में फैल गई. पुलिस और मुखबिरों की मेहनत रंग लाई. उन ठगों को 30 दिसंबर को सेक्टर 62 के गोलचक्कर से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी की सूचना पा कर वरिष्ठ अधिकारी भी थाने पहुंच गए. उन की उपस्थिति में ठगों से पूछताछ शुरू हुई. उन के नाम तस्कीर अहमद खान, रितिक सिंह उर्फ लवलीन व वैशाली पाल थे. तीनों पढ़ेलिखे थे. अपने शौक व तुरंत अमीर बनने की महत्त्वाकांक्षा के लिए उन्होंने ठगी का यह धंधा अख्तियार किया था. तीनों दोस्त थे.

तस्कीर अहमद को मालूम था, एमबीबीएस में छात्रों को 80-90 लाख में भी दाखिला बहुत मुश्किल से मिलता है. ऐसे छात्रों को एमबीबीएस में कालेज में दाखिला दिलवाने के लिए 15 से 30 लाख रुपया ले कर ठगा जा सकता है. इस के लिए उन तीनों ने गौतमबुद्ध नगर में डी-247/4ए में एक औफिस खोल कर सिक्योरिटी गार्ड को रखा. इस के बाद उन्होंने कालेजों से साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन करने वाले छात्रों के एड्रैस, नाम और मोबाइल नंबर हासिल कर के उन के मोबाइल्स पर सस्ते में एमबीबीएस करवाने का मैसेज भेजा. 2-4 छात्र उन के पास आए तो उन्हें 20-30 लाख में एडमिशन दिलवाने के नाम पर ठग कर उन्हें ही अन्य दोस्तों को, जो यह कोर्स करना चाहते हैं, उकसाने और यहां लाने के लिए प्रेरित किया. इस प्रकार सैकड़ों छात्र उन के संपर्क में आ गए.

उन्होंने इस तरह छात्रों से करोड़ों रुपए ठग लिए, फिर फरजीवाड़े की पोल खुलने के डर से 18 दिसंबर, 2022 को उन्होंने छात्रों को अपाइंटमेंट लेटर दे कर सरकारी कालेज जाने को कहा और अपना बोरियाबिस्तर समेट कर भाग निकले, किंतु वे मुखबिर की सूचना पर सेक्टर-62 से पकडे़ गए. वह यह शहर छोड़ कर मुंबई भाग जाने वाले थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. पुलिस ने उन को कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर ले लिया. उन से कड़ी पूछताछ शुरू हुई तो उन्होंने अपने 3 और साथियों के नाम बताए, जो परदे के पीछे रह कर काम कर रहे थे. ये नाम थे- 1. नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, निवासी-गांव महादेवा, थाना-माली, जिला-औरंगाबाद (बिहार) 2. अभिषेक आनंद उर्फ सुनील, निवासी- 193, मानसा मार्ग, कृष्णापुरी, पटना (बिहार) 3. मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल हक निवासी-149, हौजरानी, मैक्स हौस्पिटल के पास, मालवीय नगर, दिल्ली.

इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस टीम भेजी गई, लेकिन ये तीनों फरार हो गए थे. शायद इन्हें अपने साथियों के पकड़े जाने की भनक लग गई थी. पकड़े गए तस्कीर अहमद खान पुत्र अहमद अली खान, निवासी मुरादी रोड, बाटला हाउस, थाना जामिया, दिल्ली 2. रितिक उर्फ लवलीन कौर पुत्री गुरुदेव कौर, चाम्स केशल, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद. 3. वैशाली पाल पुत्री मूलचंद सिंह, निवासी-साईं एन्क्लेव, डी ब्लौक, नंदग्राम, गाजियाबाद. रिमांड अवधि में इन से छात्रों से ठगे गए रुपयों के संबंध में पूछताछ की गई तो इन की निशानदेही पर 19 लाख रुपया, 3 अंगूठी सफेद धातु, एक ब्रेसलेट सफेद धातु, 6 चेन पीली धातु, एक बाली पीली धातु, 6 अंगूठियां पीली धातु, 6 मोबाइल, 14 की पैड फोन, 3 डायरी, एक पैन कार्ड, 4 एटीएम कार्ड, एक आधार कार्ड बरामद हुआ.

पुलिस ने इन के विरुद्ध भादंवि की धारा 420/406/120बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर इन्हें दोबारा अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

तीनों भगोड़े ठगों नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, अभिषेक आनंद उर्फ सुनील व मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल पर पुलिस ने 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. इन्होंने पुलिस को बहुत छकाया, लेकिन अंत में 28 जनवरी, 2023 को 11 बजे ये तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. इन से भी पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

Crime Story : कुंवारे थे, कुंवारे ही रह गए

हरियाणा के जिला सोनीपत के खरखौदा स्थित दिल्ली चौक पर अकसर गहमागहमी रहती है, लेकिन 27 दिसंबर को वहां कुछ अलग ही माहौल था. 40 से ज्यादा युवा और अधेड़ सजेधजे वहां इधरउधर टहल रहे थे. इन में किसी के हाथों पर मेंहदी लगी थी तो किसी के सिर पर सेहरा था. इन में से कुछ ऐसे लड़के भी थे, जिन्होंने ब्यूटीपार्लर जा कर फेशियल भी करवाया था, ताकि उन का चेहरा खूबसूरत लगे.

ज्यादातर क्लीनशेव्ड थे, वे चाहे अधेड़ थे या युवा. सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. उन के हावभाव और हरकतें देख कर यही लगता था कि इन्हें किसी का बेसब्री से इंतजार है. इन के साथ उन के एक या दो रिश्तेदार भी थे. सभी लोग दिल्ली की ओर से आने वाले वाहनों को टकटकी लगाए देख रहे थे.

दरअसल, ये सभी दूल्हे थे, जिन की शादी होनी थी. इन दूल्हों और उन के घर वालों से कहा गया था कि सुबह 9 बजे तक दिल्ली से एक बस आएगी, जिस में बैठ कर दूल्हों और उन के एकएक रिश्तेदार को दिल्ली स्थित तीसहजारी अदालत के पास पहुंचना है. वहीं बगल में स्थित अनाथ आश्रम में इन सब की एक साथ शादी कराई जाएगी.

ये सभी दूल्हे और उन के रिश्तेदार खरखौदा के दिल्ली चौक पर खड़े हो कर दिल्ली से आने वाली बस का इंतजार कर रहे थे. बस के आने का समय 9 बजे बताया गया था, इसलिए ये सभी दूल्हे 9 बजे से पहले ही वहां आ गए थे. क्योंकि उन्हें डर था कि अगर बस चली गई तो वे रह जाएंगे.

वहां आए ये सभी दूल्हे सोनीपत, जींद, रोहतक, झज्जर आदि जिलों के रहने वाले थे. बस को 9 बजे तक आ जाना था, लेकिन 10 बज गए. दिल्ली से बस नहीं आई. इस बीच दूल्हों के घरों से कभी भाई तो कभी मां तो कभी दोस्त का फोन कर के पूछता कि वे दिल्ली के लिए चल पडे़ या खरखौदा में ही खड़े हैं.

दूल्हे क्या जवाब देते. कुछ देर तो कहते रहे कि अभी बस नहीं आई है, थोड़ी देर में आ जाएगी. जैसे ही वे यहां से निकलेंगे, बता देंगे. लेकिन जब बस का इंतजार करतेकरते 11 बज गए और बस का कोई अतापता नहीं था. तो दूल्हों और उन के साथ आए रिश्तेदारों को बेचैनी होने लगी. घर वालों के फोन बारबार आ ही रहे थे, जिस से वे झुंझलाने लगे.

उन दूल्हों में से कुछ के रिश्तेदारों ने सुशीला को फोन किया. लेकिन उस का मोबाइल फोन बंद था. इस के बाद तो सब ने सुशीला को फोन करने शुरू कर दिए, लेकिन उस से बात नहीं हो सकी. ये सभी सुशीला को इसलिए फोन कर रहे थे, क्योंकि शादी कराने की जिम्मेदारी उसी ने ले रखी थी.

शादी की बातचीत करने के लिए उस के साथ मोनू भी आया था. कुछ लोगों के पास मोनू का भी फोन नंबर था. उसे भी फोन किया गया. उस का भी फोन बंद था, इसलिए उस से भी बात नहीं हो सकी. मोनू थाना कलां का रहने वाला था.

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शादी कराने के लिए सुशीला ने उन दूल्हों के घर वालों से अच्छेखासे पैसे लिए थे. किसी से 45 हजार रुपए तो किसी से 60 हजार रुपए तो किसी से 90 हजार रुपए. सुशीला ने ही सब से दिल्ली से बस आने और वहां जा कर अनाथालय में सभी की सामूहिक शादी कराने की बात कही थी. उसी के कहने पर ये सभी लोग खरखौदा में इकट्ठे हुए थे.

लेकिन अब सुशीला से बात नहीं हो पा रही थी. मोनू का भी कुछ अतापता नहीं था. सुशीला और मोनू के मोबाइल फोन बंद बता रहे थे. इन के पास सुशीला और मोनू के अलावा किसी अन्य का मोबाइल नंबर नहीं था. इसी तरह दोपहर के 12 बज गए. वहां एकत्र दूल्हे और उन के रिश्तेदार तरहतरह की चर्चाएं करने के साथ धोखा खाने यानी शादी के नाम पर ठगे जाने की आशंका जाहिर करने लगे.

सभी दूल्हे पहुंच गए सुशीला के घर

इंतजार करतेकरते थक चुके लोगों ने कहा कि सुशीला खरखौदा में ही तो रहती है, चलो उस के घर चलते हैं. उसी से पूछते हैं कि अभी तक बस क्यों नहीं आई? सभी सुशीला के घर पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गई. मोनू भी सुशीला के ही घर पर था.

सभी ने सुशीला और मोनू से बस न आने के बारे में पूछा तो सुशीला ने कहा, ‘‘देखो मैं पता करती हूं. शादी कराने की बात दिल्ली में रहने वाली मेरी भाभी अनीता ने कही थी. उन्हीं के कहने पर मैं ने दिल्ली से बस आने की बात बताई थी.’’

इस के बाद सुशीला ने सब के सामने अनीता को फोन किया. पता चला कि उस का भी फोन बंद है. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब अनीता से भी बात नहीं हो सकी तो दूल्हों और उन के रिश्तेदारों को गुस्सा आ गया. उन्हें यकीन हो गया कि शादी के नाम पर वे ठगे गए हैं.

कुछ लोग सुशीला से अपने पैसे वापस मांगने लगे. उन का कहना था कि उन्होंने कर्ज ले कर उसे पैसे दिए हैं. अब वह शादी नहीं करा रही है तो उन के पैसे वापस करे. कुछ दूल्हों का कहना था कि अब वे बिना दुलहन के कौन सा मुंह ले कर अपने घर जाएंगे. कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने बेटे की शादी की खुशी में बहूभोज के लिए मैरिज होम तक बुक करा लिया था. डीजे वगैरह का भी इंतजाम किया था.

कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने शादी की सारी रस्में करा का उन्हें यहां तक पहुंचाया था. जो खातेपीते घर के दूल्हे थे, उन्होंने अपने रिश्तेदारों से बताया था कि लड़की के घर वाले गरीब हैं. इसलिए शादी करने के बाद बहू के साथ घर आएंगे तो उन सब की खातिरदारी घर पर करेंगे.

पैसे मांगने पर सुशीला ने कहा कि पैसे तो वह अनीता को दे चुकी है. इसलिए पैसे नहीं दे सकती. 2-3 घंटे तक सुशीला के घर पर हंगामा होता रहा. जब लोगों को ना तो पैसे वापस मिले और ना ही शादी होने की कोई सूरत नजर आई तो वे सुशीला और मोनू को पकड़ कर थाना खरखौदा ले गए. शादी के नाम पर हुई ठगी को एक दूल्हे का पिता बरदाश्त नहीं कर सका और वह थाने में ही बेहोश हो कर गिर पड़ा. लोगों ने उसे संभाला.

दूल्हों और उन के रिश्तेदारों ने पुलिस को सारी बात बताई. कुछ ने लिखित शिकायत कर दी. थाना खरखौदा पुलिस ने अनीता, सुशीला और मोनू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी वजीर सिंह ने इस मामले की जांच एसआई नरेश कुमार को सौंपी. पुलिस ने सुशीला और मोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की. बाद में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया.

गेम की मास्टरमाइंड निकली अनीता

28 दिसंबर को पुलिस ने खरखौदा के वार्ड नंबर 2 निवासी सुशीला और गांव थाना कलां निवासी मोनू को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में सुशीला और मोनू ने बताया कि उन्हें पता नहीं  था कि शादी के नाम पर अनीता लोगों को ठग रही है.

अनीता ने उन्हें इस काम के लिए एक से 2 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी रुपए उस ने खुद ही रख लिए थे. सुशीला के बताए अनुसार, अनीता दिल्ली के नरेला के लामपुर बौर्डर की रहने वाली थी. दिल्ली के अलावा झज्जर और अन्य जगहों पर भी उस के ठिकाने बताए.

थाना खरखौदा पुलिस ने अनीता की तलाश में दिल्ली और जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, छापे मारे, लेकिन वह नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने 3 टीमें बना कर उस की तलाश शुरू की.

सुशीला और मोनू से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने कई अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन अनीता के बारे में कुछ पता नहीं चला. रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने सुशीला और मोनू को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस की लगातार छापेमारी से घबरा कर अनीता ने 7 जनवरी, 2018 को सोनीपत की अदालत में आत्मसमर्पण किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने पूछताछ के लिए अदालत से उस का रिमांड मांगा तो उसे 5 दिनों की रिमांड पर सौंप दिया गया. 5 दिनों के बाद एक बार फिर 3 दिनों के रिमांड पर लिया गया.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि कुंवारों से शादी के नाम पर ठगे गए पैसों का उपयोग अनीता के बेटे रोहित ने भी किया था. पुलिस ने 9 जनवरी को दिल्ली से रोहित को भी गिरफ्तार कर लिया. रोहित को 3 दिनों के रिमांड पर लिया गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ और शादी के नाम पर ठगे गए लोगों से मिली जानकारी के आधार पर जो कहानी सामने आई है, वह इस प्रकार थी—

कुंवारों को ठगने की बनाई योजना

दिल्ली के नरेला के गांव लामपुर की रहने वाली अनीता के पति की मौत हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे हैं, जिन की शादियां हो चुकी हैं. अनीता की हरियाणा में कई रिश्तेदारियां हैं. उसे पता था कि लड़कियों की कमी की वजह से हरियाणा के तमाम लड़कों की शादियां नहीं हो पाती हैं. शादी की उम्मीद में तमाम लड़के अधेड़ हो चुके हैं. इस तरह के लोग किसी भी तरह शादी करना चाहते हैं. इस के लिए वे पैसा दे कर दुलहन खरीदने को भी तैयार रहते हैं.

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अनीता ने इसी बात का फायदा उठाया. उस ने शादी कराने के नाम पर कुंवारों को ठगने की योजना बनाई. इस काम में उस ने अपनी जानकार खरखौदा की रहने वाली सुशीला की मदद ली. हालांकि उस ने सुशीला को अपनी पूरी योजना नहीं बताई थी. उसे केवल आसपास के गांवों में कुंवारों के बारे में पता करने और उन की शादी कराने की बात करने की जिम्मेदारी सौंपी थी.

इस के बाद अपने परिचित मोनू को मदद के लिए ले लिया. दोनों ने आसपास के गांवों और रिश्तेदारों में ऐसे लड़कों के बारे में पता किया, जिन की शादी नहीं हुई थी. सुशीला ने ऐसे लड़कों की शादी कराने की बात चलाई. हर गांव में एकदो परिवार ऐसे मिल गए, जिन के यहां लड़कों की शादी नहीं हुई थी. वे चाहते थे कि उन के लड़के की शादी हो जाए और घर में बहू आ जाए. इस के लिए वे पैसे भी खर्च करने को तैयार थे.

एक शादी के लिए 45 से 90 हजार रुपए

सुशीला के कहने पर तमाम लोग शादी के लिए तैयार हो गए. एकदूसरे के माध्यम से शादी करने वालों की संख्या बढ़ती गई. सुशीला ने यह बात अनीता को बताई. वह खरखौदा आ गई और सुशीला के साथ कुछ ऐसे लोगों के यहां गई भी, जो शादी के इच्छुक थे. उस ने कहा कि जिन लड़कियों से उन की शादी कराएंगी, वे लड़कियां अनाथ हैं और दिल्ली के अनाथालय में रहती हैं. इस के लिए उन्हें अनाथालय को चंदा देना होगा.

चंदे की राशि कम से कम 45 हजार होगी. उम्र के हिसाब से चंदे की यह रकम बढ़ती जाएगी. जब कई लोग शादी के लिए तैयार हो जाएंगे तो वह एकसाथ सब की शादियां करा देगी.

शादी कब और कहां होगी, यह वह बाद में बता देगी. उस ने यह भी कहा कि शादी से कुछ दिनों पहले दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के पास स्थित आश्रम में पहले लड़कियां दिखाई जाएंगी, उन में वे जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी से उन की शादी कराई जाएगी. जिन के लड़कों की शादी नहीं हुई थी, उन्हें यह सौदा बुरा नहीं लगा.

वे चंदा देने के लिए तैयार हो गए. इस के बाद अनीता तो चली गई, सुशीला और मोनू शादी कराने वाले लड़कों के घर वालों से चंदा वसूल करने लगे.

कुछ जगह चंदा लेने के लिए सुशीला और मोनू के साथ अनीता भी गई थी. इन में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो किसी तरह गुजरबसर कर रहे थे. ऐसे लोगों ने बेटे की शादी के लिए कर्जा ले कर सुशीला को पैसे दिए.

रोहतक के राजबीर और मोहन के गांव बोहर में सुशीला की रिश्तेदारी थी. सुशीला ने उन के गांव जा कर ऐसे लोगों के बारे में पता किया, जो शादी करना चाहते थे. गांव में रिश्तेदारी होने की वजह से सुशीला पर विश्वास कर के मोहन ने 45 हजार तो राजबीर ने 50 हजार रुपए उसे दे दिए. इसी तरह खरखौदा के संदीप ने शादी के लिए सुशीला को 45 हजार रुपए दिए थे. उस के पास पैसे नहीं थे तो घर वालों ने उधार ले कर उसे 45 हजार रुपए दिए थे.

खरखौदा के ही सुरेश, अंशरूप, पवन, राजेंद्र, मुनेश, जौनी, राकेश और साबू, सोनीपत के अमित, रोहतक के गांव हुमायूंपुर के संतोष और लक्ष्मी, निलौठी के असीक और रामवीर, मोहाना के राजू, बोहर के सत्यनारायण, कृष्ण, मोहन, राजवीर और कुलदीप, रोहतक के गांव निडाना के रमेश, अनिल, धनाना के शिवकुमार, जींद के अमरजीत, संजीव, झज्जर के बहराना गांव के जगवीर सहित कई लोगों ने शादी के लिए सुशीला को पैसे दिए.

ठगी के शिकार सब से ज्यादा खरखौदा के ही हुए हैं. इन की संख्या 25 से भी ज्यादा है. खरखौदा का रहने वाला सुरेश कुमार खेती करता था. उस का दूध का भी धंधा था. घर में बुजुर्ग विधवा मां थी.

आखिर बूढी मां पर वह कब तक बोझ बना रहता. सुशीला ने उस की मां से कहा कि वह सुरेश की शादी अनाथाश्रम की लड़की से करा देगी. इस के लिए 45 हजार रुपए दान देने पड़ेंगे. घर में 10 हजार रुपए ही थे. बाकी के 35 हजार रुपए उस ने ब्याज पर ले कर दिए.

खरखौदा का संदीप सब्जीमंडी में सब्जी बेचता था. बूढ़ी मां की इच्छा थी कि संदीप की शादी हो जाए. कई लोगों ने सुशीला को अनाथाश्रम की लड़की से शादी कराने के लिए पैसे दिए थे, इसलिए संदीप की मां भी उस के झांसे में आ गई. कुछ पैसे घर में थे और कुछ पैसे उधार ले कर सुशीला को दे दिए थे.

इसी तरह खरखौदा के वार्ड नंबर 3 निवासी स्कूटर रिपेयरिंग का काम करने वाले जौनी की दादी ने उस की दुलहन के लिए दान के रूप में पैसे दिए थे. दादी ने सोचा था कि पोते की बहू आ जाएगी तो दो जून की रोटी मिलने लगेगी.

सुशीला और अनीता ने सभी से 27 दिसंबर को शादी कराने के लिए कहा था. कुछ लोगों से यह भी कहा था कि शादी से 10-11 दिन पहले उन्हें दिल्ली में लड़कियां दिखा दी जाएंगी. उन में से शादी के लिए लड़की पसंद कर लेना.

कुंवारों को टालती रही अनीता

लड़की दिखाने के लिए मोहाना गांव के रोहताश ने 16 दिसंबर को अनीता को फोन किया तो उस ने कहा कि अनाथाश्रम की लड़कियों की शादी में मदद करने के लिए कुछ विदेशी आने वाले थे, लेकिन बर्फबारी होने की वजह से वे नहीं आए. इसलिए अब लड़की दिखाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है. अब 27 दिसंबर को सीधे सामूहिक विवाह ही होगा.

जिन लोगों ने अनीता और सुशीला को लड़की दिखाने के लिए फोन किया था, सभी से यही कह दिया गया. लड़कों ने सोचा कि लड़की नहीं दिखाई जा रही, कोई बात नहीं शादी तो हो जाएगी.

इस के बाद सभी को फोन कर के बता दिया गया कि 27 दिसंबर को दिल्ली में शादी होगी. इस के लिए दिल्ली से खरखौदा बस आएगी. उस बस से सभी लोग दिल्ली पहुंच जाना, जहां तीसहजारी कोर्ट के पास स्थित एक अनाथाश्रम में सभी की शादी होगी. 27 दिसंबर को जो हुआ, वह बताया ही जा चुका है.

यह सारी योजना अनीता की थी. सुशीला और मोनू एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. शादी के नाम पर चंदे के रूप में वसूली गई रकम अनीता लेती थी. उस में से कुछ पैसे सुशीला और मोनू को मिलते थे.

पुलिस ने हिसाब लगाया तो इन लोगों ने शादी के नाम पर 40 से ज्यादा लड़कों से 25 से 30 लाख रुपए वसूले थे. पुलिस यह भी पता कर रही है कि इन लोगों के साथ और लोग तो नहीं थे. थानाप्रभारी वजीर सिंह ने ठगे गए युवकों को आश्वासन दिया है कि उन लोगों से पैसे वसूल कर उन के पैसे वापस कराने की कोशिश की जाएगी.

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दरअसल, सोनीपत के खरखौदा में लड़कों के हिसाब से लड़कियां बहुत कम हैं. इसी वजह से यहां सभी लड़कों की शादियां नहीं हो रही हैं.

मजे की बात यह है कि चुनाव के दौरान जींद जिले में कुंवारा संगठन बना था. उन्होंने शादी की उम्र पार करने वाले लड़कों की शादियां कराने की मांग उठाई थी. तब एक नेता ने बिहार से लड़कियां ला कर उन की शादी करवाने का आश्वासन दिया था.

दुलहन के नाम पर अनोखी ठगी

उत्तराखंड के बनबसा में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) की प्रभारी एसआई मंजू पांडेय को एक दिन एक व्यक्ति ने खास सूचना दी. उस ने बताया कि ऊधमसिंह नगर के खटीमा इलाके में कुछ लोग विवाह की चाह रखने वाले युवकों की शादी कराने के लिए लड़कियां उपलब्ध कराते हैं.

इस के एवज में वह उन से मोटी रकम वसूलते हैं. बाद में लड़कियां मौका मिलने के बाद वहां से लौट जाती हैं या फिर ठग गिरोह द्वारा अन्यत्र भेज दी जाती हैं.

एसआई मंजू पांडे ने यह जानकारी सीओ (टनकपुर) आर.एस. रौतेला को दी. सीओ आर.एस. रौतेला ने मंजू पांडेय के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में हैडकांस्टेबल लक्ष्मणचंद, रवि जोशी, कांस्टेबल गणेश सिंह के अलावा स्थानीय लोग और एनजीओ के लोग शामिल थे.

साथ ही उन्होंने योजना बना कर उन्हें अपने हस्ताक्षरयुक्त कुछ नोट व चैक दे दिए. इस के बाद एसआई मंजू पांडेय ने ठग गिरोह से किसी लड़के की शादी कराने के बारे में बात की.

निश्चित तारीख को चकरपुर मंदिर परिसर में शादी कराने की तैयारियों का नाटक करते हुए सीओ के हस्ताक्षर वाले चैक और नोट ठग गैंग के सदस्य को दे दिए. कुछ देर बाद खटीमा की ओर से 2 महिलाएं एक बाइक से वहां पहुंचीं. फिर एक महिला बस में सवार हो कर आई.

वह टनकपुर से आई थी. उन के पहुंचते ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. उसी दौरान एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की दूसरी टीम वहां पहुंच गई. टीम ने पुरुष और तीनों महिलाओं को हिरासत में ले कर उन के पास से हस्ताक्षरयुक्त चैक और नोट अपने कब्जे में ले लिए.

पूछताछ में पता चला कि गिरोह में कलक्टर फार्म खटीमा की रहने वाली रजवंत कौर अपने बेटे सतनाम के साथ ठगी का यह धंधा कर रही थी. अन्य 2 महिलाओं में थाना नानकमता के गांव दहला निवासी गुरमीत कौर और टनकपुर की विष्णुपुरी कालोनी निवासी आरती कपूर थी. इन सभी के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 120बी, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से इन चारों को जेल भेज दिया गया.

 

 

दो जासूस और अनोखा रहस्य

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल को जासूसी का शौक था. पुरानी कोठी में रहने वाले अजय के कत्ल और उन के अंतिम समय में लिखे कोड में उन्हें रहस्य दिखा सो वे इस हत्या के केस को सुलझाने को उत्सुक हुए और मामू के साथ घटनास्थल पर गए. हत्या वाली जगह पहुंच उन्होंने लाश का मुआयना किया और अजय द्वारा लिखे कोड को पढ़ने की कोशिश के साथ उस का फोटो भी लिया.

उन्हें यहां नकली दाढ़ीमूंछ और भौंहें मिलीं. एक ओर अजय की पत्नी यास्मिन बेसुध रोए जा रही थीं. उन्हें पता चला कि अजय एक हफ्ते से लापता थे और वे नकली बाल लगा कर वहीं घूमते रहते थे.

इंस्पैक्टर रमेश से उन्हें यह भी पता चला कि लाश के पास एक मोबाइल मिला है, इस से उन का उत्साह बढ़ा पर जब पता चला कि मोबाइल से किसी फोन नंबर पर कौंटैक्ट नहीं हुआ तो वे निराश हुए. वहां उन्हें बड़े साइज के जूतों के धूमिल से निशान भी मिले जिस से उन्हें यकीन हो गया कि अजय का कत्ल ही हुआ है. फिर वे वापस आ गए. दो आंखें उन की हर हरकत पर नजर रखे थीं.

पूरे रास्ते फैजल बेचैनी से बारबार घड़ी देखता रहा. घर पहुंचते ही वह जुनैद से एक कागज और पैन ले कर तुरंत अपने कमरे में घुस गया. फिर आधे घंटे बाद बाहर हौल में जहां सब बैठे हुए कत्ल के बारे में ही बात कर रहे थे, आया  और बोला, ‘‘अजय मरते वक्त जो मैसेज छोड़ गए हैं, उस का मतलब मुझे पता चल गया है.’’ सब ऐसे हैरान हुए मानो आसपास कोई विस्फोट हुआ हो.

‘‘क्या  तुम ने पता कैसे लगाया ’’

‘‘जूलियस सीजर की मदद से,’’ शरारती मुसकान बिखेरते हुए फैजल ने जवाब दिया.

‘‘जूलियस सीजर  तुम्हारा मतलब है, वह रोम का राजा  पागल हो गए हो क्या  वह कैसे तुम्हारी मदद करेगा ’’

‘‘अरे भई, शांत हो जाइए आप सब. मैं अभी सारी बात आप को समझाता हूं. बात ऐसी है कि जब मैं ने पहली बार अजय का मैसेज पढ़ा था, मैं तभी समझ गया था कि यह कोई अनापशनाप बकवास नहीं, बल्कि एक कोड है और जरूर अजय कोई महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहते थे वरना उन्हें कोड इस्तेमाल करने की क्या जरूरत थी. वहां मैं ने इस बात का जिक्र इसलिए नहीं किया, क्योंकि मैं पहले उसे डीकोड कर के देखना चाहता था कि कहीं मेरा शक गलत तो नहीं है. इसीलिए मैं अपने फोन में उस का फोटो खींच लाया था और आते ही उसे सौल्व करने में जुट गया.

‘‘मेरा शक बिलकुल सही निकला. यह वाकई एक कोड है, जिसे सीजर साइफर कहते हैं. रोमन राजा जूलियस सीजर का नाम तो आप ने सुना ही है. वह अपने गुप्त संदेश भेजने के लिए इस कोड का प्रयोग करता था. उसी के नाम पर इस का नाम रखा गया है. इस में जो भी शब्द आप को लिखना होता है, उस के हर अक्षर को एक फिक्स नंबर तक आगे या पीछे खिसका कर लिख दिया जाता है.

‘‘मैं एक उदाहरण दे कर समझाता हूं. अंगरेजी अल्फाबेट में 26 लैटर होते हैं. मान लीजिए मुझे लिखना है रूह्वह्म्स्रद्गह्म्.  इसे लिखने के लिए मैं ने कोड सोचा 2 प्लेस आगे, तो इस का मतलब होगा कि  रूह्वह्म्स्रद्गह्म् शब्द के सारे लैटर्स को मैं 2-2 प्लेस आगे खिसका कर लिखूंगा यानी रू की जगह श, ह्व की जगह ङ्ख, क्त्र की जगह ञ्ज तो इस तरह मेरा नया शब्द बन जाएगा हृङ्खञ्जस्नत्रञ्ज. इसे हम कहेंगे 2 का राइट शिफ्ट, क्योंकि हम ने लैटर्स को राइट की तरफ खिसकाया है. अगर मैं 8 प्लेस का लैफ्ट शिफ्ट करता हूं, तो मेरा शब्द बन जाएगा  श्वरूछ्वङ्कङ्खछ्व. इन बेतरतीब लिखे अक्षरों को देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह वास्तव में रूह्वह्म्स्रद्गह्म् लिखा है.

‘‘अब आते हैं अजय के मैसेज पर. मरते वक्त उन का कोड लैंग्वेज यूज करने का सीधा अर्थ यह है कि वे कोई साधारण इंसान नहीं थे, बल्कि कोडिंग के ऐक्सपर्ट थे और कोई बहुत इंपोर्टैंट बात बता कर जाना चाहते थे. पहले उन का लापता हो जाना, फिर भेस बदल कर यहीं गांव में ही रहना, संदिग्ध हालात में उन की मौत और अब यह संदेश. ये सब बातें किसी गहरे राज की ओर संकेत कर रही हैं.’’

‘‘तुम तो जीनियस निकले फैजल,’’ प्रशंसा भरी नजरों से उसे देखते हुए साहिल बोला, ‘‘मुझे यह तो पता था कि तुम्हें लौजिकल पजल्स और कोड वगैरा हल करने का शौक है, लेकिन तुम इतने ऐक्सपर्ट हो, यह मुझे आज पता चला. अच्छा, अब जल्दी से बताओ कि अजय ने लिखा क्या है ’’

‘‘यह लो, खुद ही देख लो अजय ने 5 का राइट शिफ्ट यूज किया है और इस तरह उन के लिखे कोड ह्नह्लह्लश्च द्दद्भरूहृह्यद्य ङ्घद्वद्भ श्चस्ठ्ठ्नद्भङ्ग का अर्थ बना यह,’’ कहते हुए फैजल ने कागज दिखाया.

सभी उत्सुकता से उस कागज के टुकड़े पर देखने लगे. उस पर लिखा था,

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. उस ने कहीं चाकू रखे हैं, जिन के पीछे सारा राज छिपा है. अब हमें बस, उन चाकुओं को ढूंढ़ना है और केस सौल्व.’’

‘‘लेकिन ये चाकू हमें मिलेंगे कहां ’’

‘‘सब से पहले तो उसी अस्तबल में देखते हैं. वहां नहीं मिले तो अजय के घर पर तो जरूर मिल जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम जल्दी से खाना खा कर गाड़ी और ड्राइवर के साथ पुलिस स्टेशन चले जाओ. वहां से इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर ही आगे जाना. अकेले वहां जाना ठीक नहीं होगा. मुझे क्लिनिक में कुछ काम है, मैं वहां जा रहा हूं. इंस्पैक्टर को भी मैं फोन कर के सारी बात बता देता हूं.’’

इंस्पैक्टर रमेश को जब कोड सौल्व होने की बात पता चली, तो खुशी से उन की बाछें खिल गईं, उस के कैरियर का यह पहला कत्ल का केस था और अगर यह इतना जल्दी सुलझ गया तो पूरे पुलिस डिपार्टमैंट में उस की तो धाक जम जाएगी. हो सकता है प्रमोशन भी मिल जाए. ‘ये शहरी लड़के तो बड़े काम के निकले,’ उस ने मन ही मन सोचा और बेसब्री से उन का इंतजार करने लगा.

अस्तबल में पहुंच कर सब ने वहां का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. वहां से सब लोग अजय के घर गए. उन की पत्नी को जब सारी बात पता चली, तो उन की सूनी आंखों में भी एक उम्मीद की किरण जगमगा उठी.

‘‘अजय तो खैर अब कभी वापस नहीं आ सकते, लेकिन अगर उन का हत्यारा पकड़ा गया तो मेरे तड़पते————————- दिल को सुकून जरूर मिल जाएगा. चलिए, चाकू ढूंढ़ने में मैं भी आप की मदद करती हूं,’’ कहते हुए उन्होंने कौंस्टेबल व इंस्पैक्टर के साथ घर के कोनेकोने की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

साहिल, फैजल और अजय की बीवी यास्मिन ने किचन, बाथरूम, सारे बैडरूम्स, यहां तक कि हर अलमारी को भी पूरा खंगाल दिया, लेकिन कुछ नहीं मिला.

तभी अचानक यास्मिन को कुछ याद आया, ‘‘हो सकता है कि ये चाकू दुकान में रखे हों ’’ अपने घर से कुछ ही दूरी पर अजय ने एक दुकान खोल रखी थी.

‘‘अरे हां, दुकान के बारे में तो मैं भूल ही गया था. पक्का ये चाकू हमें दुकान में ही मिलेंगे, क्योंकि इस के अलावा अजय की और कोई प्रौपर्टी नहीं है,’’ इंस्पैक्टर रमेश उत्साह से बोले.

सब लोग आननफानन में दुकान पर पहुंचे और वहां तलाशी शुरू कर दी. लगातार 2 घंटे ढूंढ़ने के बाद चेहरों से निराशा और झुंझलाहट टपकने लगी. पूरी दुकान में अच्छी तरह ढूंढ़ने के बाद भी चाकू जैसी कोई चीज उन के हाथ नहीं लगी. अब सिर्फ कोने में रखी एक आखिरी अलमारी की तलाशी लेना बाकी था.

एकएक कर के उस का सामान भी बाहर निकाला गया लेकिन जब उस में भी कुछ न मिला, तो सब के चेहरे उतर गए. अगर अस्तबल, घर, दुकान कहीं पर भी अजय का बताया यह क्लू नहीं मिला तो आखिर वह है कहां  मरतेमरते अगर वे किसी चीज की ओर इशारा कर के गए हैं, तो उसे कहीं न कहीं तो जरूर होना चाहिए था.

निराशा और झुंझलाहट से भरे आखिरकार वे सब वापस जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो अजय की पत्नी यास्मिन ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘आप लोग सुबह से काम में लगे हैं, थक गए होंगे. मेरे घर चल कर कुछ चायनाश्ता कर के जाइएगा.’’

‘‘नहींनहीं, इस की कोई आवश्यकता नहीं.’’

‘‘प्लीज, मना मत कीजिए. आप लोग मेरे मरहूम पति के कातिल को ढूंढ़ने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, चलिए,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा. फिर सब लोग वापस अजय के घर पहुंच गए.

यास्मिन चाय बनाने किचन में चली गईं और इंस्पैक्टर, साहिल और फैजल ड्राइंगरूम में बैठ कर बातें करने लगे. कुछ ही देर में चाय के कप थमाते हुए यास्मिन बोलीं, ‘‘आप लोग चाय पीजिए. मैं तब तक बाहर बरामदे में सिपाहियों को भी चाय दे कर आती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आंटी, आप बैठिए, उन लोगों को चाय मैं दे आता हूं,’’ कह कर साहिल ने उन के हाथ से ट्रे ली और बाहर की तरफ चल दिया.

चाय देने के बाद जैसे ही वह घर के अंदर घुसने के लिए वापस मुड़ा अचानक उस की नजर मेनगेट के ऊपरी हिस्से पर पड़ी. वह कुछ पल के लिए हक्काबक्का रह गया. फिर बड़बड़ाता हुआ अंदर आया, ‘‘ओह, यह तो हद हो गई,’’ और सब लोंगों को खींच कर अपने साथ बाहर ले आया.

‘‘आखिर हुआ क्या है  कुछ तो बताओ साहिल,’’ उस के ऐसे व्यवहार से सब अचंभित थे. उस ने बिना कोई जवाब दिए गेट की तरफ इशारा कर दिया. एक क्षण के लिए तो किसी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन अगले ही पल सभी के चेहरे पर खुशी झलक उठी, ‘‘ओह, कमाल हो गया,’’ इंस्पैक्टर बोले.

जिस ओर साहिल ने इशारा किया था, वहां दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर ठीक बीचोंबीच 2 बहुत ही कलात्मक छोटी कटारें एक के ऊपर एक क्रौस का चिह्न बनाते हुए लगी हुई थीं.

‘‘यह तो वही बात हो गई, ‘बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा.’ हर पल ये चाकू हमारी आंखों के सामने थे, लेकिन कमाल की बात है कि किसी का भी ध्यान इन पर नहीं गया ’’ फैजल बोला.

अजय की पत्नी यास्मिन भी माथे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘अरे, ये चाकू तो अजय को उन के किसी दोस्त ने गिफ्ट किए थे और जब से हम यहां आए हैं, तब से यहीं लगे हुए हैं. मुझे भी इन का खयाल ही नहीं आया.’’

आननफानन में सीढ़ी लगा कर साहिल ने उन कटारों को दीवार से उतारा  और आगेपीछे देखता हुआ बोला, ‘‘इस के पीछे कुछ लगा हुआ है.’’

जल्दी से सभी ड्राइंगरूम में पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से मेज के चारों तरफ इकट्ठे हो गए. खूबसूरत नक्काशी से सजी इन कटारों के हैंडिल 2 इंच के लगभग चौड़े थे, जिन में एक के पीछे सफेद कागज में लिपटी एक छोटी सी वस्तु टेप द्वारा मजबूती से चिपकाई गई थी. बड़ी ही सावधानी से उस टेप को हटा कर धीरे से कागज को खोलते हुए इंस्पैक्टर रमेश सहित सब को लग रहा था जैसे किसी रहस्य का पर्दाफाश होने वाला है.

जैसे ही कागज की तह खुली, उस के अंदर से लगभग 2 इंच लंबी और 1 सेंटीमीटर चौड़ी एक चाबी निकली, ‘‘यह कहां की चाबी है ’’ हैरानी से उसे उलटतेपुलटते हुए इंस्पैक्टर रमेश बोले.

कुछ और चीज मिलने की उम्मीद में इन्होंने कागज को एक बार फिर देखा. कागज पर कुछ लिखा हुआ था, जिसे पढ़ कर वे झुंझला गए और बोले, ‘‘लो, कर लो मजे. कहां तो हम केस सौल्व होने की उम्मीद में बैठे थे और कहां इस नए झंझट में फंस गए.’’

फैजल ने उन से कागज ले कर देखा, तो उन के गुस्से का कारण समझते देर न लगी. यानी पहेली हल होने के बजाय एक और नई पहली जैसे उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल वहां हुए अजयजी के कत्ल की गुत्थी सौल्व करने में जुट गए थे. एक कोड हल होने पर दूसरा कोड उन्हें मुंह चिढ़ाता. पहले कोड को फैजल ने सीज साइफर के सिद्धांत से हल किया उस ने एक शब्द का उदाहरण दे कर बताया व कोड का अर्थ सुझाया, चाकुओं के पीछे देखें. अब वे चाकू ढूंढ़ने लगे, उन्होंने अभयजी की हर संदिग्ध जगह खंगाली पर चाकू न मिले.

फिर अंत में वे अजय की पत्नी के आग्रह पर उन के घर चाय पीने गए तो वहां उन्हें अचानक दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर बीचोबीच 2 कटारें क्रौस का चिह्न बनाती लगी हुई दिखीं. उन्हें उतार कर देखा और उन पर लिपटी टेप हटाई तो एक चाबी मिली, जो एक कागज में लिपटी थी. उन्होंने उलटपलट कर देखा कागज पर एक और कोड लिखा था. वे अचंभे में पड़ गए. एक और पहेली उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

साहिल ने यास्मिन को चाबी दिखा कर पूछा, ‘‘क्या आप जानती हैं कि यह चाबी कहां की है?’’ यास्मिन ने हाथ में ले कर ध्यान से चाबी को देखा और ना में सिर हिला दिया.

‘‘घर और दुकान दोनों जगह की तो अभी हम ने तलाशी ली ही है. वहां कहीं भी ऐसी कोई अलमारी या ताला नहीं था, जिस के लिए ऐसी चाबी की जरूरत हो,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले, ‘‘एक बात तो साफ है कि यह चाबी किसी साधारण ताले की नहीं है और इस कागज पर जो लिखा है, यह जरूर इस ताले को खोलने का रास्ता है. मेरे खयाल से यहां जरूर कोई गुप्त तिजोरी होनी चाहिए, जिस का लौक इस कोड से खुलेगा.’’

‘‘क्या आप को इस बारे में कोई जानकारी है?’’ साहिल ने यास्मिन से पूछा.

‘‘नहीं, अजय ने कभी इस तरह की किसी तिजोरी का जिक्र मुझ से नहीं किया.’’

‘‘अच्छा, अजय की बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताइए. आप की तो उन से शादी हुए कम से कम 25-30 साल हो गए होंगे. उन के बारे में जान कर केस सौल्व करने में हमें जरूर कुछ मदद मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘दरअसल, बात यह है कि हमारी शादी को अभी 6 साल हुए थे, जिस जनरल स्टोर में मैं नौकरी करती थी, वहीं हमारी मुलाकात हुई थी. मैं अनाथाश्रम में पलीबढ़ी हूं और मेरा कोई परिवार नहीं है. अजय ने भी मुझे यही बताया था कि वे भी अनाथाश्रम में ही पले हैं और उन के आगेपीछे कोई नहीं है. इसीलिए इतनी उम्र तक हम लोगों की शादी नहीं हो पाई थी दोनों की एक जैसी बैकग्राउंड की वजह से ही शायद हम एकदूसरे की तकलीफ को समझ पाए और पहली मुलाकात के कुछ दिन बाद ही हम ने शादी कर ली. कुछ साल हम मेरठ में रहे और फिर एक शांत जिंदगी बिताने की चाह में यहां रामगढ़ आ कर बस गए.

‘‘अनाथाश्रम की जिंदगी ने हमें जो अकेलापन दिया था, हम उस से बाहर कभी निकल ही नहीं पाए और इसीलिए कभी किसी से घुलेमिले भी नहीं. बचपन से छोटेमोटे काम कर के अपनी जिंदगी बसर करते हुए जो थोड़ेबहुत रुपए हम ने जमा किए थे, उन्हीं से यह घर और दुकान खरीद कर हम खुशीखुशी जिंदगी बिता रहे थे कि अचानक ये सब हो गया…’’ कहते हुए यास्मिन की आंखों में आंसू छलक आए, लेकिन अपने भावों पर काबू पा कर अगले ही पल वह दृढ़ता से बोली, ‘‘फिलहाल मेरी सब से पहली इच्छा है कि मेरे पति का हत्यारा जल्द पकड़ा जाए और इस के लिए मुझ से आप की जो भी मदद हो सकेगी, मैं करूंगी.’’

‘‘फैजल, तुम्हीं ने अजय का लिखा पहला कोड हल किया था न? तो देखो और सोचो. इस कोड का क्या हल हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल को वह कागज देते हुए कहा.

‘‘जी, मैं भी समझने की कोशिश तो कर रहा हूं पर कुछ सूझ नहीं रहा है,’’ माथे पर उंगली रगड़ते हुए फैजल बोला, ‘‘वैसे भी काफी देर हो गई है. घर पर सब लोग चिंता कर रहे होंगे. अभी तो हम चलते हैं. जैसे ही कुछ समझ आएगा तो आप को फोन करेंगे,’’ कहते हुए फैजल ने उन से बिदा ली. फिर साहिल, फैजल और अनवर घर के लिए चल दिए.

वे लोग अभी मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही चले होंगे कि अचानक साहिल ने फैजल को कुहनी मारी और धीमी आवाज में बोला, ‘‘फैजल, मुझे लग रहा है कि कोई हमारा पीछा कर रहा है.’’

‘‘बिलकुल मुझे भी काफी देर से ऐसा लग रहा है. यह हरे रंग की आल्टो लगातार हमारे पीछे चल रही है.’’

‘‘अरे, नहींनहीं…आल्टो नहीं, वह काली बाइक, देखो,’’ उस ने सामने लगे शीशे की ओर इशारा किया, ‘‘वह बाइक हमारे पीछे लगी हुई है.’’

‘‘नहींनहीं…वह तो हरी आल्टो है, जो हमारे पीछे लगी है.’’

‘‘अच्छा रुको…ड्राइवर भैया, आप एक काम करो, गाड़ी सीधे घर ले जाने के बजाय थोड़ी देर ऐसे ही सड़कों पर इधरउधर घुमाते रहो. अभी सब पता चल जाएगा,’’ साहिल ने कहा तो ड्राइवर गाड़ी इधरउधर घुमाने लगा.

15 मिनट में ही उन्हें समझ आ गया कि वास्तव में कोई एक नहीं, बल्कि आल्टो और बाइक दोनों ही उन का पीछा कर रही थीं.

‘‘आखिर ये लोग हमारा पीछा कर क्यों रहे हैं?’’

‘‘जाहिर है अपना भेद खुल जाने के डर से कातिल के पेट में मरोड़ उठ रहे हैं. कल इन का भी कुछ इंतजाम करना पड़ेगा.’’

घर पहुंच कर खाना वगैरा खा कर दोनों फिर से पहेली को हल करने में जुट गए.

‘‘चलो, हम स्टैप बाए स्टैप चलने की कोशिश करते हैं,’’ साहिल ने सुझाया, ‘‘हमारे पास है एक चाबी. चाबी का मतलब है कि कहीं कोई ताला है जो इस से खुलना है. अब क्योंकि यह थोड़ा सीक्रेट टाइप का ताला है, तो इसे खोलने के लिए कोई कोड होना चाहिए, जो यहां कागज पर लिखा है. घर और दुकान तो हम सब देख ही चुके हैं. अब इस ताले के होने के लिए 2 ही जगह बचती हैं या तो कहीं किसी दीवार के अंदर कोई गुप्त तिजोरी है या फिर कोई बैंक लौकर या गुप्त लौकर है. पेपर पर लिखा यह कोड उस जगह की लोकेशन बताएगा और अगर लौकर है तो उस का नंबर बताएगा. तू ने चैक किया फैजल कि यह कहीं कोई और साइफर तो नहीं है?’’

‘‘मैं ने काफी सोचा, लेकिन जितनी तरह के कोड मुझे आते हैं, उन में से कोई भी इस पर अप्लाई नहीं होता, अगर हम इसे बैंक लौकर मान कर चलते हैं तो बैंक लौकर के लिए हमें बैंक का नाम और लौकर नंबर चाहिए और ये दोनों तो अजय की पत्नी यास्मिन को पता ही होंगे.’’

‘‘नहीं फैजल, अगर उन्हें पता होता, तो अजय इन्हें यों कोड में लिख कर न जाता. इस का सीधा सा मतलब है कि ये लौकर उन की जानकारी में नहीं हैं और इस कोड का कुछ हिस्सा नंबर है और कुछ बैंक का नाम. अब देख इसे, क्या तू सौल्व कर सकता है?’’

कागजपैंसिल ले कर फैजल काफी देर तक इस पर माथापच्ची करता रहा पर नतीजा वही सिफर. थकहार कर दोनों सो गए.

सुबह नाश्ते की टेबल पर बैठे फैजल का दिमाग अब भी उसी पहेली के इर्दगिर्द घूम रहा था. तभी अचानक वह जोर से चिल्लाया, ‘‘वह मारा पापड़ वाले को.’’

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ? कुछ सूझा तुझे क्या?’’ बगल में बैठे साहिल ने पूछा.

‘‘हां, बिलकुल सूझा और कुछ नहीं, पूरा सूझा,’’ उस ने सामने पड़ा पहेली वाला पेपर उठाया और उस के नीचे 2 अलगअलग नंबर लिख दिए. यह देख, ये जो लैटर्स यहां लिखे हैं, वे सारे के सारे हर नंबर की स्पैलिंग का पहला अक्षर हैं. जैसे जीरो के लिए र्ं, 1 के लिए हृ, 2 और 3 दोनों ञ्ज से शुरू होते हैं, तो उन के लिए ञ्ज2 और ञ्जद्ध का प्रयोग किया हुआ है. इस तरह से ये 2 नंबर बन रहे हैं, 8431729 और 109 लेकिन इस टिक मार्क (क्क) का मतलब पल्ले नहीं पड़ रहा.

‘‘अरे, छोड़ उसे, इतना तो हो गया. अब फटाफट पुलिस को साथ ले कर सब बैंकों में जा कर चैक करते हैं ज्यादा बैंक तो यहां होंगे नहीं.’’

‘‘बेटा, हमारे गांव में ज्यादा नहीं तो भी कम से कम 15-16 बैंक तो हैं ही,’’ अपने कमरे से बाहर आते अनवर मामू बोले, ‘‘तो हो गई तुम्हारी दूसरी पहेली भी सौल्व…देखूं तो जरा,’’ उन्होंने कागज उठाया और उसे देखने लगे.

‘‘तो तुम्हारे हिसाब से ये 2 नंबर किसी बैंक लौकर की तरफ इशारा कर रहे हैं और इन में से यह पहला अकाउंट नंबर और दूसरा लौकर नंबर होना चाहिए.’’

‘‘हां मामू, लेकिन इतने सारे बैंक्स में से हम उसे ढूंढ़ेंगे कैसे?’’

‘‘ढूंढ़ना क्यों है तुम्हें? सीधे यस बैंक जाओ न, क्योंकि जो निशान बना है, यह यस बैंक का ही तो लोगो है. मेरे क्लिनिक के एकदम सामने ही है यह बैंक और उस का साइनबोर्ड सारा दिन मेरी आंखों के सामने ही रहता है.’’

‘‘वाह मामू, आप भी कमाल की बुद्धि रखते हैं,’’ शरारत से एक आंख दबाते हुए फैजल मुसकराया.

एक घंटे बाद इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर वे लोग यस बैंक पहुंच गए. पूछताछ से पता चला कि वह अकाउंट 8 दिन पहले ही किसी संजीव नामक व्यक्ति ने खोला है. पुलिस केस होने की वजह से लौकर खोलने में उन्हें कोई अड़चन नहीं आई. जब लौकर खुला तो उस में से सिर्फ एक मोबाइल फोन निकला. फोन को कस्टडी में ले कर वे पुलिस स्टेशन आ गए.

‘‘इस का सारा डाटा चैक करना पड़ेगा,’’ कुरसी पर बैठता साहिल बोला, ‘‘तभी कुछ काम की बात पता चल सकती है.’’

कुछ देर उस मोबाइल को चार्ज करने के बाद उस ने औन कर के चैक किया, लेकिन उस में कहीं ऐसा कुछ नहीं था, जो अजय की मौत या किसी और रहस्य पर कोई और रोशनी डाल सके.’’

तभी फैजल को कुछ याद आया, ‘‘और हां अंकल, एक बात तो हम आप को बताना भूल ही गए. कल जब हम वापस जा रहे थे, तो कोई हमारा पीछा कर रहा था.’’

‘‘अच्छा, यह तो चिंता की बात है,’’ इंस्पैक्टर रमेश के माथे पर शिकन उबर आई, ‘‘मैं 2 कौंस्टेबल तुम दोनों की सुरक्षा के लिए तैनात कर देता हूं, जो हर समय तुम्हारे साथ रहेंगे.’’

काफी देर फोन से माथापच्ची करने के बाद साहिल बोला, ‘‘इस फोन में तो कुछ भी नहीं है अंकल, आप एक काम कीजिए, इस का सिम कार्ड चैक करवाइए कि वह किस के नाम पर है. शायद उस से कुछ पता चले,’’ फिर उस ने फोन का बैक कवर खोला और सिम निकालने के लिए जैसे ही बैटरी को हटाया, चौंक पड़ा. बैटरी के नीचे कागज की एक छोटी सी स्लिप रखी हुई थी.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ वह बड़बड़ाया. फिर परची को खोल कर देखा. उस पर कुछ लिखा था, जिसे उस ने पढ़ कर सब को सुनाया, ‘‘सामने है मंजिल, महादेव की गली, सावन की रिमझिम में खिलती हर कली, धरम पुत्री से होगा जब सामना, पासवर्ड के बिना बनेगा काम न.’’

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. हमारी मंजिल हमें मिलने ही वाली है समझो,’’ फैजल उत्साह से बोला.

‘‘यहां कोई महादेव नाम की गली नहीं है,’’ अनवर कुछ सोचते हुए बोले.

इंस्पैक्टर रमेश ने भी ना में सिर हिलाया और बोले, ‘‘हो सकता है कि कहीं किसी दूर के या छोटेमोटे महल्ले में कोई अनजान सी गली हो. मैं सिपाहियों से पूछता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने रामदीन को पुकारा,’’ रामदीन, जरा बाहर बाकी सब सिपाहियों से पूछ कर आओ, उन में से शायद कोई इस गली को जानता हो.’’

रामदीन, जो बड़ी उत्सुकता से सारी बातें सुन रहा था, बोला, ‘‘साहब, महादेव गली तो पता नहीं, लेकिन लालगंज से थोड़ी दूरी पर काफी अंदर जाने के बाद एक मार्केट है. वहां एक छोटी सी इमारत है, जिस का नाम मंजिल है और उस के बिलकुल सामने जो सड़क जा रही है, उस का नाम है शंकर गली. हो सकता है इस कविता में इसी जगह का जिक्र किया गया हो.’’

‘‘वाह रामदीन भैया, क्या ब्रिलियंट दिमाग है तुम्हारा,’’ उत्साह से उछलता फैजल रामदीन का हाथ पकड़ कर एक ही सांस में बोल गया. बाकी सब भी जल्दी से उठ खड़े हुए, ‘‘चलो, वहीं चलते हैं. वहीं पर ही आगे का भी कुछ न कुछ सुराग मिलेगा.’’

काले चश्मे वाली दो आंखें उन्हें जाते हुए देख रही थीं.

अनवर मामू के घर आए फैजल और साहिल ने अजयजी के कत्ल की गुत्थी सुलझाने हेतु मिले हर कोड को हल किया. इस बार की पहेली हल करने पर उन्हें जो कटारें मिलीं उन में टेप से लिपटी एक चाबी व परची थी. उन्हें लगा यह चाबी किसी लौकर की होगी. उन्होंने यास्मिन से पूछा पर उन्हें कुछ पता न था सो वे स्टैप बाई स्टैप लौक ढूंढ़ने लगे. अब उन्हें लगा कि परची पर लिखे अक्षर भी कोड हैं. उन्होंने उसे हल किया तो पता चला कि एक बैंक अकाउंट नंबर है. दूसरा लौकर का नंबर.

टिक मार्क (क्क) से उन्हें पता चला कि यह यस बैंक का लोगो है. अत: वे यस बैंक पहुंचे. वहां उन्हें पता चला कि यह अकाउंट 8 दिन पहले ही खोला गया है. लौकर खोलने पर उन्हें वहां मोबाइल मिला. जिसे खोलने पर एक स्लिप मिली, जिस पर कविता रूपी कुछ पंक्तियां लिखी थीं.

अब वे इन पंक्तियों का मतलब समझ महादेव गली ढूंढ़ने लगे. लेकिन सिपाही रामदीन ने बताया कि यहां पास में शंकर गली है शायद उसे ही महादेव गली लिखा हो. अब उन्होंने डिसाइड किया कि वे शंकर गली जाएंगे, शायद वहीं उन्हें आगे का सुराग मिले. दो आंखें यहां भी उन का पीछा कर रही थीं.

जीप में कुल 7 लोग थे. साहिल, फैजल, अनवर, इंस्पैक्टर रमेश, रामदीन और 2 अन्य सिपाही.

‘‘क्या किसी को कविता की दूसरी लाइन का कुछ मतलब समझ आ रहा है?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने सवाल किया, ‘‘तीसरी और चौथी लाइन तो साफ है कि वहां कोई लड़की है, जिस ने किसी को अपना धर्मपिता बनाया हुआ है. उसे हमें कोई पासवर्ड देना है.’’

‘‘धर्मपिता क्या मतलब?’’ साहिल ने पूछा.

‘‘अगर किसी लड़की का अपना पिता न हो और कोई आदमी उसे अपनी बेटी मान ले तथा पिता के सारे फर्ज निभाए तो वह उस का धर्मपिता कहलाएगा और वह लड़की उस की धर्मपुत्री,’’ अनवर मामा ने समझाया.

‘‘ओह समझा, लेकिन इस धर्मपुत्री के लिए पासवर्ड कहां से लाएंगे और पासवर्ड तो छोड़ो, यह धर्मपुत्री कहां मिलेगी? मान लो गली के हर घर में जाजा कर हम ने उसे ढूंढ़ भी लिया तो सावन की रिमझिम और खिलती कलियां कहां से लाएंगे,’’ फैजल ने आंखें मटकाईं, ‘‘मुझे तो यह नहीं समझ आ रहा कि अगर सावन के आने से कलियां खिलेंगी तो पूरे गांव की खिलेंगी. सिर्फ इस गली की ही थोड़ी न खिलेंगी. इस गली में कोई स्पैशल सावन आता है क्या?’’

यही सारे सवाल बाकी लोगों के दिमाग में भी घूम रहे थे, लेकिन जवाब किसी के पास न था. सब को यही उम्मीद थी कि वहां जा कर ही कुछ पता लग सकता है.

‘‘अच्छा अंकल, जैसा कि हम ने आप को बताया था कि कोई 2 लोग हमारा पीछा कर रहे हैं, तो अब जब हम केस खत्म करने के इतने करीब हैं, तो वे लोग जरूर कोई न कोई ऐक्शन लेंगे. अभी भी वे हमारे पीछे ही लगे होंगे. इसलिए हमें आगे का काम बड़ी सावधानी से करना होगा,’’ फैजल बोला.

‘‘तुम चिंता न करो. मैं पहले ही सब इंतजाम कर के आया हूं. ‘6 सिपाही दूसरी जीप में हमारे साथसाथ वहां पहुंच रहे हैं. वे सारे इलाके को घेर लेंगे, तब हम अंदर गली में जा कर तहकीकात करेंगे और हां, हम में से कोई भी इस कविता के एक भी शब्द को वहां मुंह से नहीं निकालेगा. हम सारा काम गुपचुप तरीके से इशारोंइशारों में करेंगे ताकि कोई आसपास छिप कर सुन भी रहा हो तो उसे कुछ पता न चल सके.’’

‘‘ग्रेट प्लानिंग सर,’’ कह कर साहिल ने अंगूठा दिखा कर अप्रूवल का इशारा किया.

शंकर गली के मुहाने पर पहुंच कर थोड़ी देर वे लोग जीप में ही बैठे रहे. जब दूसरी जीप के सिपाहियों ने अपना मोरचा संभाल लिया तो वे जीप से उतर कर गली में दाखिल हुए और इधरउधर देखते हुए आगे बढ़ने लगे.

मंजिल नामक बिल्डिंग के ठीक सामने वाली यह गली ज्यादा बड़ी नहीं थी. गली में घर भी बहुत कम थे. ज्यादातर छोटेमोटे सामान की दुकानें ही थीं. सरसरी तौर पर पूरी गली का 2 बार चक्कर लगा कर भी कहीं कोई छोटामोटा बाग या फूलोंकलियों जैसी कोई चीज उन्हें नजर नहीं आई.

अब उन्होंने हर घर, हर दुकान को ध्यान से देखते हुए फिर से गली का चक्कर लगाना शुरू किया. करीब आधी गली पार करने के बाद एक बड़ी सी दुकान के साइनबोर्ड पर जैसे ही अनवर मामा की नजर पड़ी, वे ठिठक कर वहीं रुक गए. बोर्ड पर बड़ेबड़े शब्दों में लिखा था, ‘रिमझिम ब्यूटी पार्लर.’ और जैसा कि गांव में रिवाज होता है नीचे एक कोने में लिखा था, ‘प्रौपराइटर सावन कुमार.’

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने मुंह से निकलने वाली आवाज को रोका और धीरे से पीछे खड़े साहिल को पास आने का इशारा किया.

‘‘ओह,’’ बोर्ड को पढ़ने के बाद उस के मुंह से निकला, ‘‘सावन की रिमझिम में खिलती हर कली. पहले ‘सामने है मंजिल’ और अब ‘सावन की रिमझिम…’ अजय ने हर शब्द बहुत ही सोचसमझ कर बड़े ही नायाब तरीके से प्रयोग किया है. कोई भी शब्द बेमतलब नहीं है. कितना फिट है सबकुछ…

कमाल है.’’

तब तक फैजल और इंस्पैक्टर रमेश भी वहां आ गए थे और उन के चेहरे भी खुशी से चमकने लगे थे.

‘‘और इस का मतलब है कि हमारी उस धर्मपुत्री को ढूंढ़ने के लिए अब हमें दरदर नहीं भटकना पड़ेगा. वह पक्का इस पार्लर में ही काम करती होगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा, ‘‘तुम लोग यहीं रुको, मैं अंदर जा कर यहां के सारे फीमेल स्टाफ के नामपते ले कर आता हूं. उन में से इस लड़की को ढूंढ़ना बहुत ही आसान होगा.’’

15-20 मिनट बाद वे बाहर आए और सब को चल कर जीप में बैठने का इशारा किया. दोनों जीपें जब वहां से रवाना हो गईं तो उन्होंने बताया, ‘‘यहां कुल 8 लड़कियां काम करती हैं. उन सब के घर भी आसपास ही हैं. पुलिस स्टेशन पहुंच कर 2-3 सिपाहियों को मैं इन का पता लगाने भेज देता हूं. तब तक वहीं बैठ कर हम पासवर्ड सोचने की कोशिश करते हैं.’’

लगभग 2 ढाई घंटे बाद लड़की का पता लगाने गए सिपाही लौट कर आए और बताया कि उन सब लड़कियों के अपने परिवार और अपने मातापिता हैं. कोई किसी की धर्मपुत्री नहीं है. यह सुन कर सब सन्न रह गए.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. अब तक अजय की लिखी हर पहेली, हर कोड बिलकुल एक्यूरेट और टू द पौइंट है. उस के हर छोटे से छोटे शब्द का बिलकुल सटीक मतलब निकला है और खासकर इस कविता में तो हर सिंगल शब्द पूरे सीन में बिलकुल परफैक्ट तरीके से फिट हो रहा है. फिर इतना बड़ा झोल कैसे हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘नहीं, झोल उन के लिखने में नहीं, बल्कि हमारे सोचने में है. हम कहीं कुछ गलती कर रहे हैं. धर्मपुत्री का कोई और भी मतलब होता है क्या मामू?’’ कुछ सोचता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, और कोई मतलब तो नहीं होता.’’

साहिल ने पहेली वाला कागज हाथ में उठाया और बीसियों बार पढ़ी जा चुकी उन लाइनों को फिर ध्यान से पढ़ते हुए कुछ समझने की कोशिश करने लगा. एकएक अक्षर को बारीकी से घूरतेघूरते एक अजीब बात पर सब का ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला, ‘‘जरा देखिए, इस में धर्मपुत्री की स्पैलिंग गलत लिखी हैं. अजय ने इसे धरम पुत्री लिखा है जबकि असली शब्द धर्म होता है. क्या इस का कोई खास मतलब हो सकता है या यह सिर्फ एक गलती है?’’

‘‘इस का भला क्या खास मतलब होगा? गलती ही होगी…’’ बोलतेबोलते अचानक फैजल की टोन बदल गई.

‘‘गलती ही तो नहीं होगी…बिलकुल नहीं हो सकती…यह तो बिलकुल सही है. अंकल, जरा वह सारी लड़कियों के नाम वाली लिस्ट तो निकालिए.’’

पास खड़े सिपाही ने जेब से लिस्ट निकाल कर साहिल को थमा दी. उस ने जल्दीजल्दी सारे नाम पढ़े और जोर से टेबल पर मुक्का मारते हुए बोला, ‘‘यस. मिल गई. यह छठे नंबर वाली ईशा वह लड़की है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं.’’

‘‘क्या मतलब? कैसे? हमें भी बताओ.’’

‘‘धरम कौन है बताइए तो जरा?’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘देखिए, अजय ने धर्म की जगह धरम का प्रयोग किया है. ‘धरम’ यानी फिल्मों के मशहूर कलाकर धर्मेंद्रजी का प्यार का नाम है. तो धरम पुत्री हुई धर्मेंद्रजी की बेटी यानी ईशा. मतलब हमें जिस लड़की की तलाश है, उस का नाम ईशा है और इसी तर्ज पर चलते हुए जब हम अगली लाइन पर पहुंचते हैं तो उस का भी डबल मतलब है. पासवर्ड के बिना बनेगा काम न यानी पासवर्ड ही वह पासवर्ड है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं. उसी से हमारा काम बनेगा.’’

‘‘तुम्हें पूरा यकीन है?’’

‘‘जी हां. जिस तरह अजय अब तक अपनी बात कहते आ रहे हैं, उस के हिसाब से मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा कोडवर्ड है. अब हमें और देर किए बिना तुंरत ईशा से मिलने जाना चाहिए.’’

दो मिनट बाद ही वे जीपों पर सवार हो पार्लर पहुंचे और ईशा को बाहर बुलवाया. फिर धीरे से उसे पासवर्ड बताया.

‘‘आप लोग कौन हैं? पासवर्ड बता कर सामान तो एक आदमी पहले ही ले जा चुका है,’’ ईशा ने कहा तो सब हैरान हुए.

‘‘पासवर्ड बता कर सामान ले गया? क्या सामान था? किस ने दिया था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा. डरीसहमी ईशा ने पहले तो बताने से इनकार किया, फिर इंस्पैक्टर के डर से सब उगल दिया, ‘‘अजय अंकल ने मुझे कुछ दिन पहले एक टैनिस की बौल दी थी और कहा था कि कुछ दिन बाद वे उसे लेने आएंगे. अगर वे न आएं या उन्हें कुछ हो जाए, तो जो आदमी आ कर मुझे पासवर्ड बताए, मैं उसे वह बौल दे दूं.’’

‘‘क्या था उस बौल में?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं पता.’’

‘‘उन्होंने इस काम के लिए तुम्हें ही क्यों चुना?’’

‘‘मेरा घर उन के घर से कुछ ही दूर है. हमारी गरीबी से वे अच्छी तरह वाकिफ थे और अकसर मेरी मदद करते रहते थे. मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानते थे. जब उन्होंने वह बौल मुझे दी तब वे चोरों की तरह छिपतेछिपाते मेरे पास आए थे और उन्होंने बड़ा अजीब सा हुलिया बना रखा था. अगर उन की आवाज न सुनती, तो मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाती. किसी को कुछ भी न बताने की उन्होंने सख्त हिदायत दी थी और यह भी कहा था कि अगर 6 महीने तक कोई इसे लेने न आए तो मैं इसे नष्ट कर दूं.’’

‘‘जो आदमी बौल ले कर गया वह देखने में कैसा था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा.

‘‘लंबा, मूंछों वाला, काले रंग की बाइक पर…’’

‘‘काली बाइक पर…हो न हो यह वही आदमी है जो हमारा पीछा कर रहा था,’’ फैजल की बेचैनी अपने चरम पर थी.

‘‘कितनी देर हुई उसे यहां से गए? किस ओर गया है?’’

‘‘अभी मुश्किल से 5 मिनट हुए होंगे. गली से निकल कर वह दाएं मुड़ा था. उस के बाद मुझे पता नहीं.’’ इतना सुनते ही वे लोग तेजी से जीपों की ओर दौड़े और स्पीड से जीपें दौड़ा दीं.

थोड़ा आगे जा कर सड़क 2 भागों में बंट रही थी. दूसरी जीप को उस सड़क पर भेज इंस्पैक्टर रमेश ने अपनी जीप पहले वाले रास्ते पर दौड़ा दी. काफी दूर पहुंचने के बाद एक मोड़ पर घूमते ही उन्हें काली बाइक नजर आई. जब तक बाइक वाले को पता चला कि जीप उस का पीछा कर रही है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इंस्पैक्टर ने बड़ी ही कुशलता से बाइक को साइड से हलकी सी टक्कर मार कर उसे नीचे गिरा दिया और फुरती से नीचे कूद कर धरदबोचा और पूछा, ‘‘कौन है तू? अजय का खून तूने ही किया है न और अब सुबूत मिटाना चाहता है, बोल, वरना बहुत मारूंगा.’’

‘‘पागल हो क्या तुम? कातिल मैं नहीं, वह आल्टो वाला है. मैं तो अजय का दोस्त हूं.’’

‘‘कौन दोस्त?’’

इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस आदमी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘यहां खतरा है. जल्दी यहां से निकलो और पुलिस स्टेशन चलो. मैं वहीं सारी बात बताऊंगा.’’

‘‘हूं…मुझे बेवकूफ बनाने चले हो? भागने का मौका ढूंढ़ रहे हो?’’

‘‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है तो मुझे हथकड़ी लगा कर जीप में बैठा लो और मेरी बाइक पर किसी और को भेज दो, लेकिन जल्दी निकलो यहां से.’’

ऐसा करने में इंस्पैक्टर को कोई बुराई नजर नहीं आई वे उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए.

अजय के कातिल की तफ्तीश करते हुए कवितारूपी पंक्तियों वाले कोड के अनुसार अनवर, इंस्पैक्टर रमेश, साहिल और फैजल शंकर गली पहुंचे और आगे की पंक्तियों के अनुसार रिमझिम ब्यूटी पार्लर ढूंढ़ा, वहां उन्हें धर्मपुत्री यानी ईशा नामक एक लड़की मिली. उन्होंने उस लड़की को बुलाया और धीरे से पासवर्ड बताया. लेकिन उस ने बताया कि यह पासवर्ड बता कर अभीअभी कोई उस से सामान ले गया है.

वे यह जान कर हैरान हुए. पूछने पर पता चला कि अजयजी उसे अपनी पुत्री की तरह मानते थे व उसे एक टैनिस बौल दे कर उन्होंने कहा था कि जो पासवर्ड बताए उसे दे देना अत: उस ने उस बाइक वाले के पासवर्ड बताने पर बौल उसे दे दी. इंस्पैक्टर ने उस से बाइक वाले का हुलिया जाना और दोनों जीपें दौड़ा दीं. कुछ दूर जा कर उन्होंने बाइक वाले को पकड़ लिया लेकिन उस ने कहा कि हम यहां सुरक्षित नहीं हैं, मुझे पुलिस स्टेशन ले चलिए, मैं वहां सब बताऊंगा मेरी जान को यहां खतरा है. अत: वे उसे पुलिस स्टेशन ले आए.

अब बोलो, क्या कहना है तुम्हें?’’

‘‘अंकल सब से पहले इस से पूछिए कि बौल कहां है?’’

उस ने किसी के बोलने से पहले ही जेब से बौल निकाल कर मेज पर रख दी और बोला, ‘‘मेरा नाम यूसुफ है. अजय और मैं साथ काम करते थे. मैं ने टीवी पर न्यूज में अजय का फोटो और उस के कत्ल की खबर देखी तो मुझ से रहा नहीं गया और मैं उस के कातिल का पता लगाने यहां आ गया. तभी से मैं आप लोगों के पीछे घूम रहा हूं.’’

‘‘तो हम से पहले इस बौल तक कैसे पहुंच गए तुम?’’

‘‘क्योंकि मैं ने अजय की आखिरी पहेली आप से पहले हल कर ली थी.’’

‘‘ओह…तो आप जेम्स बांड की औलाद हैं?’’ व्यंग्य से इंस्पैक्टर रमेश बोले.

यूसुफ ने एक ठंडी सांस भरी और आगे झुकते हुए धीमी आवाज में बोला, ‘‘मैं यह बात आप को कभी न बताता, लेकिन हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि मुझे सबकुछ बताना पड़ेगा. दरअसल, अजय और मैं सीक्रेट एजैंट्स थे. हम दोनों ने कई केसों पर एकसाथ काम किया. शादी कर के जल्दी रिटायरमैंट लेने के बाद अजय यहां आ कर बस गए और मैं अभी एक साल पहले ही रिटायर हुआ हूं. अजय के कत्ल के बारे में सुन कर मैं चुप कैसे बैठ सकता था?

न्यूज में दिखाए गए उन के फोटो में उन का लिखा सीजर कोड पढ़ते ही मैं समझ गया था कि जरूर वे गुपचुप तरीके से किसी गैरकानूनी गतिविधि के खिलाफ काम कर रहे होंगे और उन्हीं लोगों ने उन का कत्ल कर दिया है. सारी बात का पता लगाने मैं यहां आया. सब जगह घूमघूम कर और आप लोगों का पीछा करतेकरते आप की बातें सुनसुन कर मैं सारे कोड हल करता गया और आप से पहले ईशा से बौल लेने में सफल हो गया.

‘‘अजय और मैं ने तो अपनी सारी जिंदगी कोड बनाने और तोड़ने में ही बिताई, तो हमें तो इन का ऐक्सपर्ट होना ही था, लेकिन इन दोनों किशोरों ने जिस अक्लमंदी और होशियारी से उन्हें हल किया, वह वाकई काबिलेतारीफ है,’’ कहते हुए युसूफ ने साहिल और फैजल की पीठ थपथपाई.

‘‘और हां इंस्पैक्टर साहब, जिस फुरती से आप ने मेरा पीछा कर के मुझे ढूंढ़ा और रुकने पर मजबूर किया, उस के लिए आप की भी तारीफ करनी होगी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मुसकराते हुए इंस्पैक्टर बोले.

‘‘लेकिन हमारा पीछा करते हुए कातिल ने आप को भी देखा होगा, तो उस ने आप को पकड़ने या मारने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ साहिल ने पूछा.

‘‘मैं उन्हें पता लगने देता तब न हां, लेकिन आज आप के मेरा पीछा करने और मुझे यहां पकड़ कर लाने से जरूर मैं उन की नजरों में आ गया हूं.’’

‘‘क्या आप को पता है कि इस बौल में क्या है?’’

‘‘नहीं, आप ने पता लगाने का मौका ही कहां दिया? कातिल के आदमी बराबर आप लोगों के पीछे लगे हैं, इसलिए जल्दी से जल्दी इस का राज जान कर कातिल को पकड़वा कर किस्सा खत्म कीजिए. इस के अंदर कोई चीज है. बौल को काट कर उसे बाहर निकालना होगा.’’

बौल को काटने पर उस के अंदर से एक मैमोरी कार्ड बरामद हुआ.

‘‘मैं अपने फोन में इसे लगा कर देखता हूं,’’ फैजल बोला. फोन में कार्ड लगाने पर उस ने पाया कि उस में एक वीडियो क्लिपिंग की रिकौर्डिंग है. उस रिकौर्डिंग को देखते ही उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस में कुछ लोग एक तहखाने में बैठे बम बनाते हुए नजर आ रहे थे. एक कोने में बंदूकों, राइफलों और तैयार छोटेबड़े बमों के ढेर लगे हुए थे. उन की अस्पष्ट आवाज को ध्यान से सुनने पर पता चला कि वह कुल 17 लोगों की यूनिट है, जो कई साल से यह काम करते आ रहे हैं.

‘‘ये सब क्या है? देखने में तो यह जगह हमारे गांव की ही लग रही है, लेकिन यहां ये सबकुछ हो रहा है?’’ इंस्पैक्टर रमेश की आवाज में अविश्वास और घबराहट के भाव साफ झलक रहे थे. ‘‘ओह नो,’’ कुरसी पर बेचैनी से पहलू बदलते हुए यूसुफ बोला, ‘‘मेरे रिटायर होने से कुछ महीने पहले हमें खबर मिली थी कि आसपास के एरिया में कहीं आतंकवादियों का एक बड़ा अड्डा है, जहां बड़े पैमाने पर बम बना कर देश के अन्य भागों में ब्लास्ट करने के लिए सप्लाई किए जा रहे हैं. हमारा डिपार्टमैंट तभी से पड़ोसी देश की मदद से बनी इस यूनिट को ढूंढ़ने में लगा हुआ था, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई थी.

‘‘अजय चूंकि काफी पहले रिटायर हो चुके थे, अत: उन्हें इस औपरेशन के बारे में कुछ पता नहीं था. 3 साल से इस छोटी सी जगह में रहते हुए अजय को यहां चलती इन खतरनाक ऐक्टिविटीज के बारे में पता न चलता, ऐसा तो संभव ही नहीं था. उन्होंने साबित कर दिया कि वे भारत के एक सच्चे सिपाही हैं. न जाने कितने दिन से वे इन के पीछे लगे थे. मौका मिलते ही उन्होंने यह रिकौर्डिंग कर ली होगी लेकिन उन लोगों को पता चल गया और उन्होंने उस का कत्ल कर दिया. मरतेमरते भी वे इतना पक्का इंतजाम कर गए कि यह सुबूत बिलकुल सुरक्षित है.’’

‘‘लेकिन जब अजय के पास पक्के सुबूत थे तो उन्होंने इन्हें पकड़वाया क्यों नहीं? कार्ड को ऐसे छिपा कर क्यों रखा और एक हफ्ता गांव में छिपतेछिपाते क्यों घूमते रहे?’’

‘‘यह बात मुझे भी थोड़ी अजीब लग रही है, लेकिन इतना तो पक्का है कि उस की जरूर कोई मजबूरी रही होगी. मैं तो यहां नया हूं, अत: आप लोग ही इस जगह की पहचान कीजिए. तभी हम इन लोगों को पकड़वा पाएंगे.’’

2-3 बार और रिकौर्डिंग देखने के बाद इंस्पैक्टर पहचान गए कि वह नदी के उस पार का एक छोटा सा पथरीला इलाका है, जो चारों तरफ से कंटीली झाडि़यों से घिरा हुआ है.

‘‘ऐसी जगह और इतने खतरनाक लोगों से निबटने के लिए हमारे पास न तो पुलिस फोर्स है और न ही इतने हथियार. मुझे अपने सीनियर औफिसर्स से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘एक बात का ध्यान रखिएगा. सारा काम बिलकुल गुपचुप तरीके से जल्दी से जल्दी होना चाहिए. उन्हें यदि यह भनक लग गई कि हम उन के बारे में जान चुके हैं तो सब गड़बड़ हो जाएगा,’’ यूसुफ ने आगाह किया.

कुछ फोन इंस्पैक्टर रमेश ने किए और कुछ यूसुफ ने. खबर इतनी बड़ी थी कि एक घंटे में ही पूरी सरकारी मशीनरी हरकत में आ गई. शाम का धुंधलका होते ही सेना के जवानों को पैराशूट से उस इलाके में उतार कर छापा मारने का प्लान बना लिया गया. गांव के लोगों की सुरक्षा के लिए भी पक्के इंतजाम किए गए. गलती से ब्लास्ट हो जाने की स्थिति में फायरब्रिगेड की गाडि़यों और बचावकर्मियों को बैकअप के रूप में तैयार कर के साथ वाले गांव में रखा गया. सारा काम इतनी शांति और सफाई से हुआ कि गांव में किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई.

उधर आर्मी के जवानों ने अपने मकसद को अंजाम देना शुरू किया और इधर पुलिस स्टेशन के बाहर छिपे, किसी हलचल का इंतजार करते हरी औल्टो के काले चश्मे वाले और उस के दूसरे साथी को पुलिस ने धरदबोचा.

पुलिस स्टेशन में बैठ कर इंतजार करते हुए सब लोगों के चेहरे उस वक्त खुशी से खिल गए जब उन्हें कामयाब होने की सूचना मिली. नदी पार के अड्डे पर जितने लोग और हथियार थे, बिना किसी खास संघर्ष और खूनखराबे के सेना ने अपने कब्जे में ले लिए.

पकड़े गए 15 आदमी और हथियार हैलीकौप्टर्स द्वारा सीधे दिल्ली भेज दिए गए थे. औपरेशन पूरा होने के 10 मिनट बाद ही इंस्पैक्टर रमेश के प्रमोशन की खबर आ गई. साहिल और फैजल को उन की बुद्धिमत्ता के लिए राज्य सरकार की तरफ से 10-10 हजार रुपए के नकद पुरस्कार की भी घोषणा की गई. इंस्पैक्टर रमेश के चेहरे पर खुशी झलक रही थी और यूसुफ के चेहरे पर संतोष.

‘‘मुझे भी इजाजत दीजिए. जिस काम के लिए मैं यहां आया था, वह तो पूरा हो गया. कल सुबह मैं भी घर वापस चला जाऊंगा,’’ कहते हुए यूसुफ खड़ा हो गया.

सब खुश थे कि केस सौल्व हो गया लेकिन फैजल कुछ दुविधा में था, ‘‘बाकी सब तो ठीकठाक हो गया पर अजय मर्डर से पहले लापता क्यों हुए और उन्होंने यह लौकर, चाकू वगैरा का सारा सैटअप कब और कैसे किया. ये बातें तो राज ही रह गईं.’’

‘‘हां, ये राज तो उन के साथ ही चले गए, लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है, केस तो हल हो ही गया न. अब कल हम नदी में मछलियां पकड़ने चलेंगे. जब से यहां आए हैं इस केस में ही उलझे हुए हैं.’’

सुबह 6 बजे फोन की घंटी बजी. अनवर मामू ने फोन उठाया. उधर से इंस्पैक्टर रमेश की घबराई आवाज सुनाई दी, ‘‘साहिल और फैजल कहां हैं डाक्टर साहब?’’

‘‘सो रहे हैं, क्यों क्या हुआ?’’

‘‘उन्हें घर से कहीं बाहर मत निकलने दीजिएगा. मैं ने अभी कुछ सिपाही आप के घर भेजे हैं, जो वहां पहरे पर रहेंगे.’’

‘‘अरे, आखिर हुआ क्या है?’’ अनवर मामू की आवाज में दहशत के साथ हैरानी भरी थी.

‘‘कल रात किसी ने बड़ी बेदर्दी से यूसुफ का कत्ल कर दिया है. मुझे लगता है साहिल और फैजल की जान भी खतरे में है.’’

‘‘क्या? क्या यह वही कल वाले लोग हैं? लेकिन वे सब तो पकड़े जा चुके हैं न?’’

‘‘मेरे खयाल से हम से कहीं कोई चूक हुई है. मैं कुछ देर में आप के पास पहुंच कर सारी बात बताऊंगा. तब तक कोई बाहर न निकले,’’ कह कर इंस्पैक्टर रमेश ने फोन रख दिया.

अजय के कातिल को ढूंढ़ते हुए उन्होंने यूसुफ से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और अजयजी साथ काम करते थे औैर वह अजयजी के कातिल को ढूंढ़ने हेतु यहां पहुंचा. दरअसल, वे दोनों सीक्रेट एजेंट थे इसलिए यूसुफ ने सीजर कोड जल्दी हल कर लिया. टैनिस बौल के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि उस में एक मैमोरीकार्ड निकला जिसे फोन में लगाने पर एक वीडियो क्लिपिंग दिखी.

उस में एक तहखाने में बंदूकों, राइफलों, बमों के ढेर दिख रहे थे. यूसुफ ने बताया कि हमारा डिपार्टमैंट इसी यूनिट की तलाश में था. शायद अजय ने इसे ढूंढ़ कर इस की रिकौर्डिंग कर ली थी. अब इंस्पैक्टर ने वीडियो को दोचार बार देख जगह की पहचान की और गुपचुप तरीके से वहां छापा मार कर सभी अपराधी पकड़ लिए. लेकिन कुछ सवाल अभी बाकी थे और असली कातिल उन से दूर था.

पुलिस वालों ने अनवर के घर के इर्दगिर्द मोरचाबंदी कर ली. शोरगुल सुन कर घर के  सब लोग उठ कर वहां आ गए और सारी बात पता चलने पर सब के मुंह खुले के खुले रह गए.

‘‘इस से यह बात तो बिलकुल साफ हो जाती है कि उन का कोई न कोई आदमी खुलेआम बाहर घूम रहा है और अब इस केस से जुड़े सभी लोगों को मार कर वह अपने साथियों का बदला लेगा. यूसुफ अंकल आज सुबह घर वापस जाने वाले थे, इसलिए पहले उन्हें निशाने पर लिया गया. अगला नंबर हमारा होगा या फिर इंस्पैक्टर अंकल का,’’ साहिल बोला.

‘‘लेकिन यूसुफ अंकल ने कहा था कि उन लोगों को कल की घटना से पहले उन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और कल जब हम उन्हें पकड़ कर पुलिस स्टेशन लाए, तब से एक औल्टो कार हमारा पीछा कर रही थी. शाम तक वे लोग वहीं बाहर ही छिपे थे जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ा था यानी उन के अलावा गैंग के किसी मैंबर को यूसुफ अंकल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस का मतलब यह हुआ कि औल्टो वालों ने पकड़े जाने से पहले किसी को इस बारे में बताया और वह जो भी था, वह उन के अड्डे पर नहीं बल्कि कहीं और था.’’

उस की बातों को ध्यान से सुन रहा फैजल बोला, ‘‘और अगर इस तरह की सिचुएशन में कोई आदमी फोन करेगा तो जरूर गैंग के किसी महत्त्वपूर्ण आदमी को ही करेगा. जो रिकौर्डिंग हम ने देखी थी उस के हिसाब से वे कुल 17 आदमी थे. 15 वहां से अरैस्ट हुए और 2 औल्टो वाले, तो पूरे 17 तो हो गए. फिर यह 18वां आदमी कहां से पैदा हो गया?’’ फैजल का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था, ‘‘17 आदमी वहां काम करते थे, मतलब वर्कर्स थे, तो इन वर्कर्स का कोई मालिक यानी बौस भी होना चाहिए. वही बौस जिसे उन्होंने फोन कर के खबर दी और जिस ने यूसुफ अंकल को मारा. कौन हो सकता है यह आदमी?’’

इतने में इंस्पैक्टर रमेश आ पहुंचे, उन्होंने बताया कि रामगढ़ लौंज नाम के होटल के जिस कमरे में यूसुफ ठहरा हुआ था, वहीं उस की लाश पड़ी मिली है. उस की हत्या भी गोली मार कर की गई है और अस्तबल जैसे ही बड़े जूतों के निशान वहां से भी मिले हैं यानी अजय और यूसुफ दोनों का कातिल एक ही है.

‘‘कोई और खास बात जो आप ने वहां देखी हो?’’ फैजल ने पूछा.

‘‘और तो कुछ खास नहीं, पर यूसुफ के चेहरे पर जो भाव थे, वे कुछ अजीब से थे. जैसे हैरान और कुछ समझ न पा रहा हो.’’

फैजल कुछ सोचने लगा. अचानक उस ने अपना फोन निकाला और जल्दीजल्दी दोचार बटन दबा कर स्क्रीन देखने लगा.

करीब 5 मिनट बाद उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए और वह ऐसे खुश नजर आने लगा, मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. फिर वह इंस्पैक्टर रमेश के पास पहुंचा और बोला, ‘‘अंकल, आप के पास अजय के घर का नंबर है न, वहां फोन लगाइए और आंटी को कहिए कि हम अभी आधे घंटे में उन के घर आ रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि अंकल की अलमारी में एक फाइल थी, जिस से हमें कोई काम की बात पता चल सकती है.’’

‘‘फैजल, इस समय कातिल बौराया हुआ घूम रहा है. तुम लोगों का बाहर जाना ठीक नहीं होगा,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘अरे, आप फोन लगाइए तो सही. मुझे समझ आ गया है कि कातिल कौन है और मेरे पास उसे पकड़ने का पूरा प्लान भी है.’’

इंस्पैक्टर रमेश ने फोन उठाया और अजय की पत्नी यास्मिन को वैसा ही कह दिया जैसा फैजल ने बताया था.

‘‘अब सब लोग ध्यान से मेरी बात सुनिए…’’ फैजल धीमी आवाज में उन्हें कुछ समझाने लगा.

जब वह चुप हुआ तो सब के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.

इंस्पैक्टर रमेश ने जल्दीजल्दी 3-4 फोन मिलाए, कुछ हिदायतें दीं और कुछ सामान लाने का और्डर दिया. फिर बैठ कर किसी का इंतजार करने लगा. साहिल, फैजल और अनवर मामू तैयार होने चले गए. कुछ ही देर में एक सिपाही सारा सामान ले कर आ गया और सब लोग बाहर जा कर जीप में बैठ गए.

अजय के घर पहुंच कर वे चारों जब ड्राइंगरूम में पहुंचे तो यास्मिन उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आइएआइए, मैं ने सुना है कल गांव में बहुत सारे आतंकवादी पकड़े गए. क्या यह सच है? और उस पहेली का कोई हल सूझा तुम्हें फैजल?क्या उसी के लिए तुम्हें वह फाइल चैक करनी है? आओ, तुम खुद ही देख कर निकाल लो, जो फाइल तुम्हें चाहिए.’’

अजय के कमरे से नीले रंग की एक फाइल ले कर वे फिर से ड्राइंगरूम में आ गए.

‘‘तुम इसे चैक करो, मैं चाय ले कर आती हूं,’’ कह कर यास्मिन किचन में चली गई?

कुछ ही पल बीते थे कि अचानक पिछले दरवाजे से दबेपांव एक बड़ेबड़े जूतों वाला नकाबपोश कमरे में दाखिल हुआ. उस के दोनों हाथों में रिवाल्वर थे, जिन में साइलैंसर लगे हुए थे. फाइल पर झुके चारों लोगों ने चौंक कर उस की ओर देखा ही था कि पिट…पिट…पिट…पिट… किसी को पलक झपकाने का मौका दिए बगैर उस ने चारों के सीने में गोलियां उतार दीं. दर्द भरी चीखों के साथ वे नीचे गिर पड़े. जितनी फुरती से नकाबपोश अंदर आया था, उतनी ही फुरती के साथ बाहर की तरफ लपका, लेकिन दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही 8-10 आदमियों ने उसे घेर कर बुरी तरह जकड़ लिया और उस से दोनों रिवाल्वर छीन लिए. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसे रस्सियों से बांध दिया गया. तभी चारों लाशें अपनेअपने कपड़े झाड़ती हुई उठ खड़ी हुईं. उन सब के चेहरे पर शरारती मुसकराहट थी.

‘‘क्यों, कैसी रही यास्मिन आंटी?’’ साहिल ने एक आंख दबाते हुए पूछा और फैजल ने उन का नकाब खींच कर दूर फेंक दिया.

‘‘आप ने क्या समझा था कि हम सब गोलगप्पे हैं जो आप एक मिनट में गटक जाएंगी?’’ कहते हुए फैजल शर्ट का एक बटन खोल कर अंदर पहनी बुलेटप्रूफ जैकेट की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘‘हमें हजम करना इतना आसान नहीं है.’’

यास्मिन गुस्से से बड़बड़ाती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें छोडं़ूगी नहीं. तुम ने मेरी बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया. मैं ने ये सब करने में अपनी सारी जिंदगी गुजार दी और तुम लोगों की वजह से एक पल में सब तहसनहस हो गया,’’ और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘मतलब आप बहुत छोटी उम्र से ही इन सब कामों में लगी हुई थीं?’’ इंस्पैक्टर रमेश हैरानी से बोले.

‘‘हां, अनाथाश्रम में रहते हुए मेरी पहचान इन लोगों से हुई थी और तभी से मैं इन के साथ काम कर रही हूं.’’

‘‘क्या आप को पता था कि अजय सीक्रेट एजेंट हैं?’’

‘‘अगर पता होता तो क्या मैं उन से शादी करती? यहां रामगढ़ में आ कर बसने की जिद भी मैं ने ही उन से की थी ताकि मुझे अपना काम करने में आसानी रहे. अगर मुझे जरा भी भनक होती तो मैं कभी यहां नहीं आती.’’

‘‘अजय के लापता होने में भी आप का हाथ था?’’

‘‘बिलकुल नहीं, मैं और मेरे आदमी तो खुद उन्हें ढूंढ़ रहे थे. उन्हें न जाने कब यहां चल रही गतिविधियों पर शक हो गया और एक दिन मेरे आदमी का पीछा करतेकरते वे मेरे अड्डे तक पहुंच गए. जब वे वहां से वापस भाग रहे थे, तो मेरे एक आदमी ने उन्हें देख लिया और मुझे खबर दी. उसे यह नहीं पता था कि अजय ने वहां कुछ रिकौर्ड भी किया है.

‘‘मैं ने तभी फैसला कर लिया कि उन के घर आते ही मैं उन्हें खत्म कर दूंगी, लेकिन वे घर आए ही नहीं. उन्हें रास्ते में ही पता चल गया कि कुछ आदमी उन का पीछा कर रहे हैं. उन्होंने एक पब्लिक बूथ में घुस कर किसी को फोन किया, लेकिन जिस से वे बात करना चाहते थे वह आदमी कुछ दिन के लिए बाहर गया हुआ था. बूथ के बाहर खड़ा मेरा आदमी सारी बातें सुन रहा था. फोन पर बात करने के बाद वे कुछ निराश हो गए और वहां से निकलने के कुछ ही देर बाद उन आदमियों को चकमा दे कर भागने में सफल हो गए.’’

‘‘ओह, अब समझा,’’ बीच में ही फैजल बोला, ‘‘जरूर अजय ने अपने पुराने चीफ को फोन किया होगा और जब वे नहीं मिले तो उन्होंने 15-20 दिन तक मैमोरीकार्ड को इन लोगों से बचाने के लिए अलगअलग भेष बदल कर यह सारा सैटअप किया.’’

‘‘तभी तो हम उन्हें पकड़ नहीं पाए. उसी दिन मैं ने उन के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई. अब मेरे आदमियों के साथसाथ पुलिस भी उन के पीछे थी. 8वें दिन मुझे उन के अस्तबल में होने की खबर मिली और मैं वहां पहुंच गई. मैं ने जानबूझ कर बड़े साइज के मर्दाना जूते पहने थे ताकि मुझ पर किसी को शक न हो.

‘‘मुझे इस रूप में देख कर पहले तो वे दुखी और हैरान हुए लेकिन जल्दी ही संभल गए. जिस तरह से उन्होंने मुझ से मुकाबला किया, उसे देख कर मैं हैरान थी. बड़ा संघर्ष करना पड़ा मुझे उन्हें मारने में. गिरतेगिरते जब उन्होंने मूंछें और भवें उतार कर फेंकीं, तब मैं उन की यह चाल समझ नहीं पाई. वह तो बाद में पता चला कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसा किया ताकि उन के पहले के जानने वाले लोग उन्हें आसानी से पहचान सकें.

‘‘मरतेमरते उन्होंने मुझे एक और धोखा दिया. दूसरी गोली लगने के बाद उन्होंने सांस रोक कर ऐसा नाटक किया जैसे मर गए हों. अच्छी तरह चैक करने के बाद मैं वहां से निकल गई और उस के  बाद उन्होंने वह संदेश लिख दिया. सुबह जब मैं रोतीपीटती वहां पहुंची तो उन्हें देख कर चौंकी. लेकिन समझ कुछ नहीं आया. इसीलिए मैं ने तुम लोगों के पीछे 24 घंटे आदमी लगा दिए ताकि तुम्हारी सारी रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहे, लेकिन एक बात समझ नहीं आई. तुम्हें मेरे बारे में पता कैसे चला?’’

‘‘फैजल मुसकराया, मुझे जब से यह पता चला कि अजय सीक्रेट एजेंट थे, तब से मुझे एक बात बारबार खटक रही थी कि अजय इतना बड़ा राज इस तरीके से बता कर गए, पर अपने खूनी का नाम क्यों नहीं बता गए? मुझे लग रहा था कि वह नाम हमारे बिलकुल सामने ही कहीं है, बस नजर नहीं आ रहा है. मैं इसी दुविधा में था जब इंस्पैक्टर रमेश ने बताया कि मरते वक्त यूसुफ के चेहरे पर हैरानी और कन्फ्यूजन के भाव थे. इस का मतलब है कि वे कातिल को पहचाते थे.

‘‘इस गांव में वे किसी और को तो जानते नहीं थे. इसलिए मेरा शक सीधा अजय की पत्नी यास्मिन यानी आप पर ही गया. उसी समय मेरे दिमाग में एक और बात आई. अगर अजय ने कहीं कातिल के बारे में कोई हिंट छोड़ा होगा तो वह सिर्फ उन के आखिरी मैसेज में ही हो सकता है. इसलिए मैं ने उसे निकाल कर दोबारा चैक किया और मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने बिलकुल साफसाफ कातिल का नाम लिख रखा था,’’ कहते हुए फैजल ने कागज की एक स्लिप निकाल कर यास्मिन के आगे रख दी, जिस पर लिखा था,

‘‘जब पूरा मैसेज स्माल लैटर्स में लिखा है तो बीच में ये कैपिटल लैटर्स क्यों? रूहृढ्ढङ्घस््न. इन्हें आगेपीछे कर के देखा जाए तो बनता है यास्मिन (ङ्घ्नस्रूढ्ढहृ) अगर यह बात पहले ही मुझे सूझ गई होती तो बेचारे यूसुफ अंकल को जान से हाथ न धोना पड़ता. खैर, जो हुआ सो हुआ. ले चलो इन्हें,’’ फैजल फिर बोला.

इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल और साहिल की पीठ थपथपाई और यास्मिन को गिरफ्तार कर लिया.

Social Crime Story : आश्रम में बुलाकर करता था बलात्कार

हिंदू समाज के अधिकांश लोग धर्मभीरू हैं. ऐसे लोगों की वजह से कई लोग आसिफ से आशु महाराज बन जाते हैं और तंत्रमंत्र की आड़ में वह सब करते हैं, जो सामाजिक रूप से निषेध है…

मीनाक्षी अपनी बेटी निकिता को ले कर बहुत परेशान रहती थी. इस की वजह यह कि उस की बेटी निकिता पोलियोग्रस्त थी. सन 2002 में निकिता का जब जन्म हुआ था तो उस समय वह देखने में स्वस्थ थी. जैसेजैसे वह बड़ी हुई, तब पता चला कि उसे पोलियो है. मीनाक्षी ने कई डाक्टरों से उस का इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी. निकिता 6 साल की हो चुकी थी. पोलियो का प्रभाव अब उस के शरीर पर साफ दिखाई दे रहा था. बेटी के भविष्य को ले कर मीनाक्षी चिंतित रहती थी. उसे इस बात की भी चिंता थी कि यदि निकिता ठीक नहीं हुई तो उस की शादी कैसे होगी.

क्योंकि आजकल अच्छीभली और स्वस्थ लड़की को भी उपयुक्त लड़का आसानी से नहीं मिलता, इसलिए मीनाक्षी इसी कोशिश में लगी रहती थी कि किसी भी तरह से निकिता ठीक हो जाए. गाजियाबाद के इंदिरापुरम की रहने वाली मीनाक्षी को कोई जानपहचान वाला किसी हकीम या तांत्रिक के बारे में बताता तो वह बेटी को ले कर उस के पास पहुंच जाती. बेटी के चक्कर में वह कई पंडितों, तांत्रिकों और मुल्लामौलवियों के पास गई, लेकिन निकिता ठीक न हो सकी. एक दिन मीनाक्षी ने टीवी पर आशु महाराज का कार्यक्रम देखा. आशुजी महाराज ज्योतिष विद्या के बारे में बताते थे. उन की पहचान हस्तरेखा विशेषज्ञ के रूप में थी. वह खुद को ज्योतिषाचार्य बताते थे. साथ ही अपने कार्यक्रम में लोगों की तमाम तरह की परेशानियां दूर करने के उपाय भी बताते थे. मीनाक्षी को आशुजी महाराज की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. वह उन की बातों से बहुत प्रभावित थी.

मीनाक्षी निकिता के सही होने के चक्कर में जाने कहांकहां भागी थी. आशु महाराज की बातों से उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी. उस ने सोचा कि क्यों न वह एक बार आशु महाराज से मिल कर बेटी के बारे में बताए. हो सकता है महाराज के आशीर्वाद से वह ठीक हो जाए. टीवी स्क्रीन से मीनाक्षी ने आशु महाराज से संपर्क करने का फोन नंबर लिख लिया. एक दिन मीनाक्षी ने उस नंबर पर फोन किया. फोन उन के आश्रम के किसी कार्यकर्ता ने उठाया. मीनाक्षी ने आशु महाराज से बात करने की इच्छा जाहिर की. कार्यकर्ता ने मीनाक्षी को अगले दिन महाराज से मिलने का टाइम बता दिया. इतना ही नहीं, उस ने उन के सेक्टर-7 रोहिणी, दिल्ली स्थित आश्रम का पता भी बता दिया. यह बात सन 2008 की है.

आशु महाराज से मुलाकात का समय निश्चित हो जाने पर मीनाक्षी बहुत खुश हुई. जिन के कार्यक्रम वह टीवी पर देखा करती थी, उन से साक्षात मिलना मीनाक्षी के लिए सौभाग्य की बात थी. अगले दिन निर्धारित समय से पहले मीनाक्षी अपनी 6 वर्षीय बेटी निकिता को ले कर आशु महाराज के रोहिणी स्थित आश्रम में पहुंच गई. काफी देर इंतजार करने के बाद उसे आशु महाराज से मिलने के लिए उन के कमरे में भेजा गया.  मीनाक्षी बेटी को ले कर आशु महाराज के कमरे में पहुंच गई. वह सुसज्जित कमरा था. अंदर गुलाब की खुशबू महक रही थी. कमरे में घुसते ही मीनाक्षी का मन खुश हो गया. आशु महाराज ने जब मीनाक्षी से उस की समस्या पूछी तो उस ने पास बैठी निकिता की परेशानी उन्हें बता दी.

आशु महाराज ने निकिता को गौर से देखने के बाद उस से कमरे में कुछ कदम चलने को कहा. दरअसल वह उसे चलवा कर यह देखना चाहते थे कि निकिता को कितनी बड़ी प्रौब्लम है, जिस से उसी के अनुसार उस का ट्रीटमेंट कर सकें. बेटी की वजह से खुद भी बनी शिकार 6 साल की निकिता भले ही पोलियोग्रस्त थी लेकिन वह थी बहुत खूबसूरत. मीनाक्षी ने बताया कि आशु महाराज ने उस से कहा था, ‘‘यह लड़की बहुत भाग्यवान है. इस का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. मैं भविष्यवाणी कर रहा हूं कि एक दिन इसी की वजह से लोग तुम्हें जानेंगे. रही बात इस की बीमारी की, तो मैं मंत्रोच्चारित एक तेल दूंगा. उस तेल से तुम इस की रोजाना मालिश करना.

‘‘बीचबीच में तुम इसे आश्रम ले कर आती रहना. आश्रम में इस बच्ची के पूरे शरीर की मालिश हम अपने हाथों से ही किया करेंगे. जब हम इस की मालिश करेंगे तो इस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं होना चाहिए.’’

निर्वस्त्र कर मालिश करने की बात मीनाक्षी को थोड़ी अजीब सी लगी. फिर सोचा कि यह इतने पहुंचे हुए महाराज हैं. इन्होंने यह बात कुछ अच्छा समझ कर ही कही होगी. इसलिए मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोेड़ते हुए बोली, ‘‘महाराजजी, आप जो करेंगे हमारे भले के लिए ही करेंगे. मैं तो यह चाहती हूं कि हमारी बच्ची ठीक हो जाए. आप जैसा कहेंगे, हम करने को तैयार हैं.’’

मीनाक्षी का आरोप है कि आशु महाराज उस की बेटी को निर्वस्त्र कर उस के शरीर की मालिश करता था. सन 2013 तक यह सिलसिला चलता रहा. सन 2013 में ही दीवाली के मौके पर मीनाक्षी आशु के आश्रम में गई तो आश्रम के मैनेजर ने उसे चाय पीने को दी. चाय पीने के कुछ देर बाद मीनाक्षी को नींद सी आने लगी. उसी दौरान मैनेजर उसे आशु महाराज के कमरे में ले गया. मीनाक्षी ने बताया कि वहां आशु व उस के साथियों ने उस के साथ सामूहिक बलात्कार किया.

उस के साथ क्या हो रहा है, यह तो उसे पता था लेकिन उसे दी गई दवा के असर से वह अर्द्धमूर्छित थी. उस समय वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं थी. जब काफी देर बाद मीनाक्षी को होश आया तो उस के अंग दुख रहे थे. पहले वह वहां जी भर कर रोई और उस ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी दी. इस पर बाबा ने उसे मुंह बंद रखने को कहा. साथ ही चेतावनी दी कि यदि यह बात बाहर किसी से कही तो पूरे परिवार को जान से हाथ धोना पड़ सकता है. यह भी कहा कि जिस तरह वह आश्रम में आती है, उसी तरह आती रहे. आश्रम आना बंद नहीं होना चाहिए. मीनाक्षी बाबा के रुतबे को जान चुकी थी इसलिए उस ने मुंह बंद रखने में ही भलाई समझी और वह आश्रम आतीजाती रही.

मीनाक्षी को महसूस होने लगा था कि वह आशु महाराज के शिकंजे में फंस चुकी है, जहां से निकलना आसान नहीं होगा. मीनाक्षी का आरोप है कि सन 2016 में बाबा के बेटे समर और उस के दोस्त सौरभ ने उस के साथ यौनाचार किया. पिता की तरह समर भी अय्याश था. वह यह सब सहती रही लेकिन उस ने बेटी को आश्रम लाना बंद कर दिया था. हद तो तब हो गई जब सन 2017 में समर ने उस से निकिता को आश्रम लाने को कहा. मीनाक्षी ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी. लिहाजा इस बात को ले कर वह आशु महाराज से मिली और उस ने समर की शिकायत की.

मीनाक्षी ने बताया कि इस पर आशु महाराज ने उसे धमकाया और अपने बेटे का ही पक्ष लिया. उन्होंने मीनाक्षी से यह भी कहा कि तू मेरी गुलाम है और अब तेरी बेटी भी मेरी गुलामी करेगी. 2017 में ही होली के दिन जब मीनाक्षी रोहिणी के आश्रम में अकेली पहुंची तो उस के साथ मारपीट की गई. मीनाक्षी ने बताया कि कुल मिला कर वह आशु महाराज की कठपुतली बन कर रह गई थी. वह उस से इतना खौफजदा थी कि उस के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकती थी. छलबल का खिलाड़ी था आशु उर्फ आसिफ मीनाक्षी के अनुसार, सन 2017 में आशु महाराज ने उसे और उस की बेटी निकिता को दक्षिणी दिल्ली के हौजखास के एक्स ब्लौक स्थित आश्रम में बुलाया. वहां आशु महाराज ने उसी के सामने निकिता के साथ अश्लील हरकत की.

निकिता अब कोई बच्ची नहीं रही थी, वह 15 साल की हो चुकी थी. बाबा की ये हरकतें मीनाक्षी की बरदाश्त से बाहर हो चुकी थीं. लिहाजा उस ने बाबा का विरोध किया तो बाबा ने मीनाक्षी की पिटाई करा कर उसे आश्रम से बाहर निकलवा दिया. मीनाक्षी ने इस की शिकायत हौजखास थाने में की. मीनाक्षी ने बताया कि पुलिस आशु महाराज से इतनी प्रभावित थी कि उस की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की. बल्कि पुलिस मामले को रफादफा करने का दबाव बनाने लगी, पर मीनाक्षी नहीं मानी. काफी भागादौड़ी और मशक्कत के बाद पुलिस ने आशु महाराज, उस के बेटे व दोस्त के खिलाफ भादंवि की धारा 376डी, 354, 506 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की. इस की जांच थाना पुलिस के बजाय क्राइम ब्रांच को सौंपी गई.

क्राइम ब्रांच ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी, लेकिन आरोपी न तो हौजखास वाले आश्रम में मिले और न ही रोहिणी के आश्रम में. वे सभी अंडरग्राउंड हो चुके थे. इसी बीच शाहदरा जिले के एएटीएस की टीम को आशु महाराज के बारे में गुप्त सूत्रों द्वारा सूचना मिली कि आशु महाराज उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में एक ठिकाने पर छिपा बैठा है. इस महत्त्वपूर्ण सूचना के बाद एएटीएस की टीम ने सूचना में बताई गई जगह पर दबिश दे कर आशु महाराज को गिरफ्तार कर लिया. उच्चाधिकारियों के फैसले के बाद एएटीएस ने उसे क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. आसिफ उर्फ आशु महाराज ने पुलिस को बताया कि दिल्ली और देश भर में लगातार कई बाबाओं की गिरफ्तारी होने के बाद उसे इस बात का डर हो गया था कि कहीं पब्लिक उसे पकड़ कर मार न दे.

इसी दहशत की वजह से वह दिल्ली से भाग कर गाजियाबाद के अजनारा अपार्टमेंट के एक फ्लैट में जा कर छिप गया था. क्राइम ब्रांच ने उस के मोबाइल फोन, लैपटाप और अन्य इलेक्ट्रौनिक गैजेट बरामद कर जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिए हैं. पुलिस ने 14 सितंबर को उसे कोर्ट में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के अलावा आसिफ के बेटे समर को भी पूछताछ के लिए बुलाया. कई घंटे की गहन पूछताछ के बाद उसे भेज दिया गया. पुलिस समर के दोस्त सौरभ से भी पूछताछ करेगी.

क्राइम ब्रांच इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं आसिफ ने नाम बदल कर लोगों की भावनाओं से तो खिलवाड़ नहीं किया. यदि इस के सबूत मिले तो उस के खिलाफ काररवाई की जाएगी, क्योंकि उस ने भक्तों से असल पहचान छिपाई थी.

कथा लिखने तक क्राइम ब्रांच आशु महाराज से पूछताछ कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मीनाक्षी और निकिता परिवर्तित नाम है.

Facebook मैसेज “ए सीक्रेट नाइट इन होटल” का रहस्य

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फैंरड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’ इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

की बोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया. आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती. प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. टे्रनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में. ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी. यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे? एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी. वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए. लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया. पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था. भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था. भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता. ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया. इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

Cyber Crime Story : बैंक अधिकारी बनकर लूटे लाखों

मार्च, 2017 के तीसरे या चौथे सप्ताह की बात है. छुट्टी का दिन होने की वजह से भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी जे.सी. मोहंती दोपहर को अपने सरकारी बंगले में बने औफिस में बैठे फाइलें देख रहे थे. उन की टेबल पर फाइलों का ढेर लगा था. वह राजस्थान में जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी के भूजल विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं. वह पानी के महकमे से जुड़े हैं और इस समय गर्मी का मौसम चल रहा है, इसलिए फाइलों की संख्या काफी हो गई थी.

वह फाइल पर मातहत अधिकारियों द्वारा लिखी गई टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ रहे थे कि अचानक उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर आने वाले नंबर को सरसरी तौर पर देखा और फिर स्विच औन कर के कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, मैं स्टेट बैंक औफ इंडिया से बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘हां, बताइए.’’ श्री मोहंती ने फाइल पर नजरें गड़ाए हुए ही कहा.

‘‘सर, आप को पता ही होगा कि एक अप्रैल से स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर  सहित देश के 5 बैंकों का एसबीआई में विलय हो रहा है. आप का खाता एसबीबीजे में है. आप के एसबीबीजे के एटीएम कार्ड का वेरिफिकेशन करना है, ताकि उसे एसबीआई से जोड़ा जा सके.’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले ने नपेतुले शब्दों में कहा.

बात करने वाले का लहजा सभ्य और अधिकारी जैसा था. इसलिए जे.सी. मोहंती ने पूछा, ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन इस में मुझे क्या करना है?’’

‘‘सर, आप अपने एटीएम कार्ड के नंबर बता दीजिए.’’ फोन करने वाले ने कहा.

एसबीबीजे के एसबीआई में विलय की बात श्री मोहंती को पता थी, क्योंकि रोज ही मीडिया में इस की खबरें आ रही थीं. इसलिए उन्होंने टेबल पर ही रखे अपने पर्स से स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर का एटीएम कार्ड निकाल कर उस पर सामने की ओर लिखे बारह अंकों का नंबर फोन करने वाले को बता दिया. दूसरी ओर से फोन करने वाले ने एटीएम कार्ड नंबर नोट करते हुए दोबरा बोल कर कन्फर्म करते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू सर, आप का एक मिनट और लूंगा, आप को एटीएम कार्ड के पीछे लिखा सीवीवी नंबर भी बताना होगा.’’

जे.सी. मोहंती ने सीवीवी नंबर भी बता दिया. इस के बाद फोन कट गया तो वह फिर से अपने काम में व्यस्त हो गए. कुछ देर बाद उन के मोबाइल पर एक मैसेज आया. उन्होंने मैसेज देखा तो उस में ओटीपी नंबर था. उसे उन्होंने अपनी डायरी में नोट कर लिया.

मैसेज आने के करीब 10 मिनट बाद उन के मोबाइल पर एक बार फिर उस व्यक्ति का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘सर, आप को एक बार और कष्ट दे रहा हूं. आप के मोबाइल पर ओटीपी नंबर का मैसेज आया होगा. इसी ओटीपी नंबर से आप के एटीएम कार्ड और बैंक खाते का वेरिफिकेशन किया जाएगा. कृपया आप वह ओटीपी नंबर बता दीजिए, ताकि आप के खाते और एटीएम कार्ड को वेरिफाई कर के स्टेट बैंक औफ इंडिया से जोड़ कर अपडेट किया जा सके.’’

कुछ देर पहले ही अपनी पर्सनल डायरी में लिखा ओटीपी नंबर जे.सी. मोहंती ने सहज भाव से फोन करने वाले को बता दिया और अपने काम में व्यस्त हो गए. शासन सचिवालय में आसीन आईएएस अधिकारियों का जीवन बहुत व्यस्त होता है. दिनभर मीटिंगों और फाइलों में सिर खपाना पड़ता है. कभी संबंधित मंत्री बुला लेते हैं तो कभी मुख्य सचिव. मुख्यमंत्री औफिस से भी दिन में 2-4 बार किसी न किसी फाइल के बारे में पूछताछ की जाती है. वैसे भी उन दिनों राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था, इसलिए भूजल विभाग के सवालों के जवाब के लिए उन का विधानसभा में उपस्थित रहना जरूरी था.

इन्हीं व्यस्तताओं के बीच जे.सी. मोहंती के मोबाइल पर पचासों मैसेज ऐसे आए, जिन्हें वह खोल कर देख या पढ नहीं सके. 3 अप्रैल, को वह सचिवालय के अपने औफिस में बैठे थे. जिस समय वह थोड़ा फुरसत में थे, तभी उन के मोबाइल पर एक मैसेज आया. उन्होंने वह मैसेज पढ़ा तो हैरान रह गए. मैसेज के अनुसार उन के बैंक खाते से 30 हजार रुपए निकाले गए थे.

जबकि बैंक से या एटीएम से उन्होंने कोई पैसे नहीं निकाले थे, इसलिए वह परेशान हो उठे. वह तुरंत शासन सचिवालय में ही स्थित स्टेट बैंक औफ बीकानेर एंड जयपुर की शाखा पर पहुंचे और बैंक मैनेजर को पूरी बात बताई. बैंक मैनेजर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत जे.सी. मोहंती के बैंक खाते की डिटेल निकलवाई, जिसे देख कर श्री मोहंती को झटका सा लगा. उन के बैंक खाते से 22 मार्च से 3 अप्रैल के बीच अलगअलग समय में 2 लाख 73 हजार रुपए निकाले गए थे.

उन के मोबाइल पर बैंक की ओर से इस निकासी के मैसेज भी भेजे गए थे, पर व्यस्तता की वजह से वह उन मैसेजों को देख नहीं सके थे. खाते से करीब पौने 3 लाख रुपए निकलने की डिटेल देख कर जे.सी. मोहंती को करीब 15 दिनों पहले मोबाइल पर आए उस फोन की याद आ गई, जिस में खुद को बैंक अधिकारी बता कर किसी आदमी ने उन से एटीएम कार्ड का नंबर, सीवीसी नंबर और ओटीपी नंबर मांगा था. जे.सी. मोहंती को समझते देर नहीं लगी कि वह साइबर ठगों द्वारा ठगी का शिकार हो गए हैं. उन के साथ औनलाइन ठगी की गई है. उन्हें दुख इस बात का था कि सितंबर, 2016 में एक बार और उन के साथ साइबर ठगी हो चुकी थी. उस समय उन के क्रेडिट कार्ड से विदेश में 86 हजार रुपए की शौपिंग की गई थी. जयपुर के थाना अशोकनगर में इस की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. लेकिन ठगों का पता नहीं चल सका था.

इस औनलाइन ठगी से जे.सी. मोहंती परेशान हो उठे थे. उन्होंने बैंक मैनेजर से पैसों की निकासी रोकने को कहा ही नहीं, बल्कि बैंक की जरूरी कागजी खानापूर्ति भी की, ताकि औनलाइन ठगी करने वाले भविष्य में उन के खाते से पैसे न निकाल सकें. इस के बाद अपने औफिस पहुंच कर उन्होंने पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को फोन कर के अपने साथ हुई साइबर ठगी की जानकारी दी. जे.सी. मोहंती के साथ हुई ठगी की बात सुन कर संजय अग्रवाल हैरान रह गए. हैरानी की बात यह थी कि राजस्थान पुलिस और विभिन्न बैंकों की ओर से अकसर समाचार पत्रों, इलैक्ट्रौनिक और डिजिटल मीडिया द्वारा रोजाना लोगों को औनलाइन ठगी के बारे में जागरूक करने के लिए बताया जा रहा है कि किसी भी व्यक्ति को फोन पर अपने एटीएम कार्ड या बैंक खाते की डिटेल कतई न दें.

पुलिस और बैंकों की इतनी कवायद के बावजूद भी आम आदमी रोजाना इन ठगों का शिकार हो रहे हैं, लेकिन अगर कोई सीनियर आईएएस अफसर इस तरह की ठगी का शिकार हो जाए तो ताज्जुब होगा ही. संजय अग्रवाल ने जे.सी. मोहंती को रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह देते हुए साइबर ठगों को जल्दी ही पकड़ने का आश्वासन दिया. मूलरूप से ओडि़सा के रहने वाले राजस्थान कैडर के सन 1985 बैच के आईएएस अधिकारी जे.सी. मोहंती ने उसी दिन जयपुर में शासन सचिवालय के पास स्थित थाना अशोकनगर में अपने साथ हुई इस ठगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. औनलाइन ठगी का यह मात्र एक उदाहरण है. ऐसी ठगी राजस्थान सहित देश के लगभग हर राज्य में रोजाना सौ-पचास लोगों के साथ हो रही है. राजस्थान में सन 2016 में साइबर क्राइम के 907 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिन में 530 मुकदमे सिर्फ जयपुर शहर में दर्ज हुए थे.

मुकदमों के दर्ज होने के बाद जांच में सामने आया कि साइबर ठग खुद को बैंक मैनेजर बता कर लोगों के मोबाइल पर फोन कर के कहते हैं कि ‘आप का एटीएम कार्ड बंद हो रहा है या आप के एटीएम कार्ड की क्रय करने की सीमा बढ़ाई जा रही है अथवा आप के एटीएम कार्ड को आधार कार्ड से लिंक किया जा रहा है.’ किसी भी व्यक्ति से ये ठग मोबाइल फोन पर कहते हैं कि ‘आप का एटीएम कार्ड पुराना हो गया है. उस के बदले नया कार्ड जारी किया जा रहा है, इसलिए आप को एटीएम कार्ड का नया पासवर्ड दिया जा रहा है. आप ने पिछली बार एटीएम से कब रकम निकाली थी? क्या आप ने नए केवाईसी या आधार कार्ड को लिंक नहीं किया है?’

बैंक वालों की तरह तकनीकी बातें कह कर ये ठग मोबाइल फोन पर ही लोगों से एटीएम कार्ड का नंबर, सीवीसी नंबर और ओटीपी नंबर पूछ लेते हैं. इस के बाद ये साइबर ठग स्मार्ट फोन या कंप्यूटर के माध्यम से मनी ट्रांसफर सौफ्टवेयर द्वारा उस व्यक्ति के खाते की रकम निकाल लेते हैं. राजस्थान में इस तरह की लगातार हो रही ठगी की वारदातों का पता करने के लिए जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन तथा पुलिस उपायुक्त (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की तकनीकी शाखा एवं संगठित अपराध शाखा के अधिकारियों की एक टीम बनाई.

इस टीम ने जांच शुरू की तो पता चला कि इस तरह की वारदातें करने वाले महाराष्ट्र के पुणे जिले के तलेगांव इलाके में रह रहे हैं. टीम ने उन अपराधियों को चिन्हित कर उन की निगरानी शुरू की तो पता चला कि ये ठग कौल सैंटर की तर्ज पर बैंक अधिकारी बन कर रोजाना सैकड़ों लोगों को फोन करते हैं और उन से एटीएम कार्ड का नंबर आदि पूछ कर औनलाइन ठगी करते हैं. कई दिनों की निगरानी के बाद क्राइम ब्रांच ने महाराष्ट्र के पुणे के एसपी (ग्रामीण) सुवेज हक तथा क्राइम ब्रांच के अधिकारियों की मदद से 27 मार्च को 5 लोगों को महाराष्ट्र के तलेगांव दाभाड़े से गिरफ्तार किया. इन में झारखंड के जिला जामताड़ा के करमाटांड निवासी 3 सगे भाई यूसुफ, मुख्तार एवं अख्तर शामिल थे. यूनुस के इन तीनों बेटों में यूसुफ सब से बड़ा और अख्तर सब से छोटा था.

इन के अलावा महाराष्ट्र के पुणे के तलेगांव दाभाड़े निवासी संजय सिंधे और शैलेश को भी गिरफ्तार किया गया था. इन के पास से पुलिस ने 10 छोटे और 4 बड़े मोबाइल फोन, 15 सिम, 7 एटीएम कार्ड और 9 लाख 86 हजार  500 रुपए बरामद किए थे. इन लोगों ने पिछले साल जयपुर के रहने वाले गोपाल बैरवा को फोन कर के उन से 29 हजार 600 रुपए ठगे थे. इस का मुकदमा जयपुर पूर्व के थाना बस्सी में दर्ज था. गिरफ्तार अभियुक्तों को पुलिस जयपुर ले आई. इन से की गई पूछताछ में पता चला कि झारखंड के जामताड़ा जिले के करमाटांड के रहने वाले तीनों ठग भाइयों ने अपने गांव के ही दूसरे लोगों से बैंक अधिकारी बन कर औनलाइन ठगी करना सीखा और फर्जी आईडी से दर्जनों सिम हासिल कर के आसान तरीके से मोटा पैसा कमाने लगे.

ये लोग ठगी के लिए फर्जी आईडी से लिए गए सिम और दर्जनों मोबाइल का उपयोग करते थे, ताकि पुलिस इन तक पहुंच न सके. इन लोगों ने फर्जी मोबाइल सिमों पर ई-वौलेट भी रजिस्टर्ड करा रखे थे, जिन में शिकार हुए आदमी के बैंक खाते से औनलाइन पैसे ट्रांसफर करते थे. इस के बाद ये औनलाइन शौपिंग करते या ई-वौलेट के माध्यम से उस पैसे को अपने बैंक खाते में भेज देते. ये ठगी गई रकम से ई-वौलेट के जरिए मोबाइल भी रिचार्ज करते थे. इस के लिए ये मोबाइल की दुकान चलाने वालों से मिलीभगत कर उन्हें 30 से 40 प्रतिशत तक कमीशन का लालच देते थे. इस तरह मोबाइल रिचार्ज कर दुकानदारों से मिलने वाली रकम को ये लोग अपने घर वालों के बैंक खाते में जमा कराते थे.

देश भर में हो रही औनलाइन ठगी की वारदातों को देखते हुए झारखंड सहित विभिन्न राज्यों की पुलिस ने झारखंड के जामताड़ा इलाके में रहने वाले साइबर ठगों पर शिकंजा कसा तो करमाटांड के रहने वाले तीनों ठग भाई अपने साथियों संजय सिंधे और शैलेश की मदद से इसी साल फरवरी से पुणे के तलेगांव इलाके में किराए के एक मकान में रहने लगे. उसी मकान से ये पांचों ठगी की वारदात करते थे.

पूछताछ में पता चला कि इन पांचों अभियुक्तों ने पिछले एक साल में राजस्थान सहित देश के 23 राज्यों में 85 हजार से अधिक फोन किए थे. लेकिन ये मुख्य रूप से राजस्थान के लोगों को अपना निशाना बनाते थे. इस का पता इस से चलता है कि 85 हजार फोन में से लगभग 50 हजार फोन राजस्थान के सभी 33 जिलों में किए गए थे. राजस्थान का ऐसा कोई जिला नहीं बचा था, जहां इन लोगों ने ठगी न की हो. अकेले जयपुर शहर में ही इन लोगों ने करीब 5 हजार फोन किए थे. पुलिस ने इन से जो करीब 10 लाख रुपए बरामद किए थे, ये रुपए एक महीने का कलेक्शन बताया गया था.

तीनों ठग भाइयों ने धोखाधड़ी से करोड़ों रुपए कमाए हैं. ठगी की रकम को इन्होंने करीब 25 बैंक खातों और 50 से अधिक ई-वौलेट में जमा कराई थी. इन के 10 बैंक खातों की डिटेल खंगाली जा रही है. इन में 4 खाते प्राइवेट बैंकों और 6 सरकारी बैंकों में हैं. इन में 4 बैंक खाते केरल में हैं. इन सभी खातों में 58 लाख 18 हजार रुपए जमा हुए थे, लेकिन इन में एक जनवरी, 2017 से 23 मार्च तक 8 लाख 49 हजार रुपए ही बचे थे. जयपुर पुलिस ने इस से पहले औनलाइन ठगी के एक अन्य मामले में 23 मार्च को एक अभियुक्त दिनेश मंडल को मुंबई से वहां की पुलिस की मदद से गिरफ्तार किया था. मूलरूप से झारखंड के जामताड़ा का रहने वाला दिनेश मंडल मुंबई में वर्ली स्थित जनता कालोनी के कोलीकम में रह कर औनलाइन ठगी कर रहा था.

उस ने पिछले साल जयपुर के विनोद कुमार पाल को फोन कर के खुद को बैंक अधिकारी बता कर एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से 7 हजार रुपए औनलाइन निकाल लिए थे. इस का मुकदमा जयपुर पश्चिम के थाना सदर में दर्ज हुआ था. पुलिस ने दिनेश मंडल से 4 मोबाइल फोन और 7 सिम बरामद किए थे. उस से की गई पूछताछ में पता चला कि उस ने ठगी के लिए मोबाइल फोन से लगभग 29 सौ लोगों को फोन किए थे. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने लगातार हो रही औनलाइन ठगी की वारदातों को देखते हुए काफी समय पहले अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन एवं पुलिस उपायुक्त (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की विशेष टीम गठित कर इस टीम को ऐसे अपराधियों का पता लगाने का जिम्मा सौंपा था.

इस टीम ने ठगी के एकएक मामले का अध्ययन कर अपराधियों की कार्यप्रणाली समझी. उस के बाद तकनीकी माध्यम से उन मोबाइल नंबरों का पता लगाया, जिन से लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया था. व्यापक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने झारखंड से 3 ठगों को गिरफ्तार किया था. इस से पहले इसी साल 24 फरवरी को सब से पहले सत्यम राय को पकड़ा गया. वह झारखंड के देवघर के खाजुरिया बसस्टैंड के पास स्थित विकासनगर का रहने वाला था. फिलहाल वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता के टालीगंज में के.एम. लक्षकार रोड पर रह रहा था. उस ने पिछले साल जयपुर के राजेंद्र गहलोत को अपना शिकार बनाया था.

20 साल के सत्यम राय ने फोन पर खुद को बैंक अधिकारी बता कर राजेंद्र गहलोत से एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से 43 हजार 391 रुपए औनलाइन निकाल लिए थे. इस ठगी का मुकदमा जयपुर दक्षिण के थाना ज्योतिनगर में दर्ज है. पूछताछ में सत्यम राय ने बताया था कि राजेंद्र गहलोत से ठगी कर के उस ने 21 हजार 891 रुपए का सैमसंग गैलेक्सी ए 5 एड्रौयड मोबाइल फोन औनलाइन खरीदा था. बाकी रकम उस ने अलगअलग गेटवे के माध्यम से बैंक खाते तथा वौलेटों में डाली थी. मोबाइल फोन आ गया तो उसे ओएलएक्स पर आईफोन एस-5 से एक्सचैंज कर लिया था.

कोलकाता से बीबीए की पढ़ाई करने के बाद सत्यम राय ने हिंदी, अंग्रेजी, भोजपुरी और बंगला सहित अन्य भाषाएं सीखीं, ताकि पूरे देश में विभिन्न बोलीभाषाओं में बात कर लोगों को झांसे में ले सके. पूछताछ में उस ने बताया था कि वह ठगी के जरिए मिली रकम के एक हिस्से से औनलाइन शौपिंग करता था, जिसे वह बेच कर पैसे खड़े कर लेता था. पुलिस ने सत्यम राय से सैमसंग गैलेक्सी ए-7, आईफोन एस-5 और सैमसंग गैलेक्सी ए-5 फोन बरामद किए थे. उस से पूछताछ और उस के मोबाइल फोन की जांच से पता चला कि उस ने देश के अनेक राज्यों में ठगी के लिए कुल 2860 लोगों को फोन किए थे.

जयपुर के सूरज प्रजापति से 55 हजार रुपए की इसी तरह की गई ठगी में पुलिस ने सागरदास और उस के साले विक्कीदास को 26 फरवरी, 2017 को गिरफ्तार किया था. ये दोनों ठग झारखंड में जामताड़ा जिले के अंबेडकर चौक पंडेडीह के रहने वाले थे. पुलिस ने इन से 5 मोबाइल फोन बरामद किए थे. इन मोबाइल फोनों में फर्जी आईडी पर जारी किए गए सिम मिले थे. जीजासाले ने अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 779 लोगों को फोन किए थे. जयपुर निवासी राजेश कुमार वर्मा से बैंक अधिकारी बन कर 21 हजार 566 रुपए की  औनलाइन ठगी करने के मामले में जयपुर पुलिस ने झारखंड के जामताड़ा जिले के करमाटांड थाना के धरवाड़ी गांव के रहने वाले जयकांत मंडल को मार्च, 2017 के पहले सप्ताह में गिरफ्तार किया था.

पुलिस ने उस से 3 मोबाइल फोन, 4 सिम और 4 एटीएम कार्ड बरामद किए थे. वह झारखंड के धनबाद के देवली गोविंदपुर में रह कर आईटीआई कर रहा था. उस ने कई भाषाएं सीख रखी थीं. जांच में पता चला कि जयकांत ने ठगी के लिए विभिन्न मोबाइल नंबरों से अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 9068 लोगों को फोन किए थे. जांच में पता चला है कि झारखंड के जिला जामताड़ा के करमाटांड सहित कुछ इलाके साइबर अपराधियों के गढ़ हैं. कहा जाता है कि करमाटांड के झिलुआ गांव के रहने वाले सीताराम मंडल ने सन 2008-09 में बैंक अधिकारी बन कर लोगों से औनलाइन ठगी के साइबर अपराध को जन्म दिया था. इस का जाल अब पूरे जामताड़ा जिले में फैल चुका है. आजकल वहां 150 से अधिक गिरोह काम कर रहे हैं, जिन में 20 से 30 साल के युवा शामिल हैं.

इन में कुछ गिरोह ऐसे भी हैं, जिन्होंने वेतन और कमीशन के आधार पर दूसरे युवकों को नौकरी दे रखी है. कुछ पुराने ठग नई पीढ़ी के युवाओं को औनलाइन ठगी की ट्रेनिंग देते हैं और इस के बदले में मोटा मेहनताना वसूलते हैं. इन गिरोहों ने बैंक अधिकारी बन कर पूरे देश में अब तक कई अरब रुपए की ठगी की है. मजे की बात यह है कि इन में ज्यादातर ठग ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं. लेकिन देश के अलगअलग राज्यों की भाषाएं सीख कर ये लोगों को ठग रहे हैं. देश में ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जो इन की ठगी का शिकार न हुआ हो.

केंद्रीय मंत्री से ले कर, विभिन्न राज्यों के मंत्रियों, आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों, जज, डाक्टर, प्रोफेसर, आयकर अधिकारी, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटैंट, बिजनेसमैन सभी इन की ठगी का शिकार हो चुके हैं, जबकि इन लोगों को कहा जाता है कि ये अपनी बुद्धि और वाकचातुर्य के बल पर देश को चला रहे हैं. आम आदमी को तो ये ठग कुछ ही मिनट में बातों में उलझा कर उस का एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर आदि हासिल कर लेते हैं. इन ठगों ने केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री, बांका के जिला जज, एयरपोर्ट अथौरिटी के एजीएम सहित तमाम बडे़बडे़ अधिकारियों को ठगा है.

साइबर ठगी में लगे तमाम लड़के उच्च शिक्षा भी हासिल कर सूचना प्रौद्योगिकी में दक्ष हो रहे हैं, ताकि लोगों को उन के हिसाब से हैंडल किया जा सके. जामताड़ा में साइबर क्राइम की शुरुआत एसएमएस से मोबाइल फोन का बैलेंस उड़ा कर दूसरों को सस्ती दरों पर मोबाइल फोन का बैलेंस बेचने से हुई थी. इस के बाद 8-9 सालों में यह जिला पूरे देश में चर्चित हो चुका है. जामताड़ा इलाके से जब मोबाइल फोन से बहुत ज्यादा फोन किए जाने लगे तो मोबाइल कंपनियों को मोटी कमाई होने लगी. नेटवर्क की समस्या दूर करने के लिए मोबाइल कंपनियों ने वहां नए टौवर लगवा दिए, जिस से वहां नेटवर्क अच्छा हो गया. इस से ठगों का काम और ज्यादा आसान हो गया.

ठगी की रकम से ठग ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं. उन के पास आलीशान मकान और लग्जरी गाडि़यां हैं. सड़कें खराब होने से गाडि़यां चलाने में परेशानी हुई तो इन ठगों ने सड़कें भी खुद ही बनवा लीं. अब ये अपराधी खुद को भारतीय रिजर्व बैंक का अधिकारी बता कर ठगी करने लगे हैं. एटीएम रिन्यू करने, उस की वैलिडिटी बढ़ाने एवं आधार कार्ड से जोड़ने के बहाने तो कई सालों से चल रहे हैं. जामताड़ा इलाके में रोजाना किसी न किसी राज्य की पुलिस साइबर ठगों की तलाश में पहुंचती रहती है. इसलिए अब यहां के ठग थोड़ेथोड़े समय के लिए दूसरे राज्यों में जा कर अपना  ठगी का धंधा करते हैं.

जामताड़ा से पिछले 2 सालों में 268 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं. इन से 16 सौ से ज्यादा मोबाइल फोन, 176 लग्जरी कारें और करोड़ों रुपए बरामद किए गए हैं.  जयपुर पुलिस की ओर से देवघर से गिरफ्तार मिथलेश ने पुलिस को बताया कि वह अपना एसबीआई का बैंक एकाउंट साइबर ठगों को किराए पर देता था. इस के बदले वह खाते में जमा होने वाली रकम से 20 प्रतिशत हिस्सा लेता था.

भले ही अपराधी पकड़े जा रहे हैं, लेकिन साइबर ठगी बंद होने का नाम नहीं ले रही है. पढ़लिख कर आदमी बुद्धिमान हो जाता है, लेकिन जामताड़ा के अनपढ़ या मामूली शिक्षित अपराधी उन लोगों की आंखों से भी काजल चुरा लेते हैं, जो खुद को सब से ज्यादा समझदार समझते हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रंगहीन हिना : जेल में पैदा हुई लड़की की कहानी

‘मैं न तो पाकिस्तानी हूं और न ही हिंदुस्तानी, मैं एक इंसान हूं और कहीं भी रहूं जीने का हक रखती हूं.’ जेल की चारदीवारी से पहली बार बाहर की दुनिया देखने निकली वह मासूम अपनी बात कहते हुए भावुक हो गई. यह लड़की थी हिना.

हिना के जीवन में 2 नवंबर का दिन उस के लिए किसी दूसरे जन्म से कम नहीं था. 11 साल पहले 8 नवंबर, 2006 को हिना का जन्म पंजाब के अमृतसर की सेंट्रल जेल में हुआ था. जेल में जन्म लेने की वजह से जेल के सभी कैदी उसे कान्हा और राधा नामों से बुलाते थे.

हिना की अम्मी फातिमा का कहना था कि हिना तो जेल की बेटी है. मुझे तो यह गम है कि मेरे अनचाहे गुनाह की सजा मेरी बेटी को भुगतनी पड़ रही है. लेकिन दूसरी ओर खुशी इस बात की है कि हिना को सभी कैदी बहुत प्यार करते हैं.

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हिना का जन्मदिन मुझे भी याद नहीं, लेकिन हिना का जन्म जेल में हुआ है, इसलिए सभी कैदियों सहित पूरा जेल स्टाफ जन्माष्टमी के दिन उस का जन्मदिन मनाते हैं. भले ही मैं मुसलमान हूं, पाकिस्तान से हूं लेकिन जिस तरह से हिना को कोई कान्हा तो कोई राधा कह कर प्यार करता है, दुलारता है, यह देख मेरी आंखें बरस पड़ती हैं.

पाकिस्तान के गुजरांवाला निवासी सैफुद्दीन की पत्नी फातिमा, उस की बहन मुमताज और नानी रशीदा बेगम 8 मई, 2006 को समझौता एक्सप्रेस से दोपहर 2 बज कर 20 मिनट पर भारत-पाक बौर्डर के अटारी रेलवे स्टेशन पर पहुंची थीं. साढ़े 5 बजे फातिमा, मुमताज व रशीदा बेगम के पासपोर्ट की चैकिंग की गई.

सारे दस्तावेज दुरुस्त पाए गए थे. शाम 6 बजे काउंटर नंबर 14 पर कस्टम विभाग के अधिकारियों ने उन के सामान की चैकिंग की तो करीब 6 हजार रुपए की जाली करेंसी बरामद हुई. अटारी रेलवे स्टेशन पर कस्टम विभाग ने फातिमा की पुन: अच्छी तरह से तलाशी ली. इस बार उस के पर्स और सामान से एक किलो हेरोइन बरामद हुई, जिस के बारे में फातिमा ने अधिकारियों को बताया कि यह हेरोइन उस की नहीं है.

दोनों महिलाओं का कहना था कि उन्हें किसी ने यह सामान भारत पहुंचाने के लिए दिया था. उन्हें पता नहीं था कि सामान में हेरोइन छिपा कर रखी हुई है.

कस्टम विभाग ने फातिमा उस की बहन मुमताज और मां रशीदा बेगम को तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. फातिमा, उस की बहन और मां को गिरफ्तार कर के उन के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. इस के बाद सीमा शुल्क विभाग ने तीनों महिलाओं को शाम साढे़ 7 बजे जीआरपी को सौंप दिया.

जीआरपी ने जाली करेंसी के मामले में तीनों महिलाओं को नामजद करते हुए गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें अदालत में पेश कर के अमृतसर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. कुछ महीने बाद कस्टम विभाग और जीआरपी ने इस मामले में अपनी काररवाई पूरी कर के अदालत में चालान पेश कर दिया था. तत्कालीन न्यायाधीश ए.पी. बत्रा ने तीनों को 8 दिसंबर, 2009 को 10-10 साल की कैद और 2-2 लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी.

जिस समय फातिमा को गिरफ्तार किया गया था, उस समय वह गर्भवती थी. इतने सालों तक जेल में रही रशीदा बेगम की मौत हो गई और फातिमा ने बच्ची हिना को जन्म दिया था. फरवरी, 2017 में सजा की अवधि पूरी हो गई थी और अदालत ने जुरमाने की रकम जमा करवाने के बाद रिहाई के आदेश जारी किए थे. मई, 2017 में एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा व नवतेज सिंह ने 4 लाख रुपए जुरमाने के जमा करवा दिए.

एनडीपी एक्ट में सजा होने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर फातिमा और मुमताज का अपने परिवार से कोई ताल्लुक नहीं रहा.

परिवार उन की पैरवी के लिए न तो भारत आया और न जुरमाने की राशि चुकाई गई थी. भारत आते समय पकड़े जाने के बाद फातिमा के पाकिस्तान में रहने वाले उस के परिजनों और रिश्तेदारों ने गरीबी के चलते एक तरह से उस से नाता तोड़ लिया था. ऐसी स्थिति में वकील नवजोत कौर चब्बा ने उन की रिहाई का बीड़ा उठाया था.

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   हिना के साथ वकील नवजोत कौर चब्बा

बटाला के सब दा भला ह्यूमिनिटी क्लब के संचालक नवजोत सिंह के जरिए उन्होंने जुरमाने की राशि बैंक में जमा करवाई. जुरमाने की राशि 2017 के अप्रैल महीने में जमा करवा दी गई थी. लेकिन काफी भागदौड़ के बाद एडवोकेट चब्बा ने गृह मंत्रालय से उन की रिहाई के आदेश जारी करवाए थे. इस बीच पाक एंबेसी की काउंसलर फौजिया मंजूर ने खतो किताबत कर हिना, उस की मां फातिमा और मौसी मुमताज के पाकिस्तान पहुंचाने का रास्ता साफ कर दिया था.

हिंदुस्तान में जन्मी हिना को पाकिस्तानी नागरिकता मिल जाएगी. बिना कोई अपराध किए हिना को कई सालों तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था.

इन लोगों की रिहाई में बड़ी भूमिका निभाने वाले वकील चब्बा को खुशी है कि निरपराध हिना अब खुली हवा में सांस ले सकेगी. एडवोकेट नवजोत कौर ने इस विषय में विदेश मंत्री को चिट्ठी लिखी थी.

जुलाई, 2017 में हिना के बारे में पाक स्थित भारतीय दूतावास अधिकारी ने पाक सरकार से संपर्क साधा और अगस्त 2017 में पाकिस्तान ने हिना को पाकिस्तान आने की इजाजत देने की बात स्वीकार की.

वकील नवजोत चब्बा ने बताया कि कानून के मुताबिक 17 साल के बच्चे को बाल सुधार गृह में रखा जाता है. इसी बीच एक दिन वह जेल में लेक्चर के लिए गई थीं. वहां उन की मुलाकात उक्त परिवार से हुई. जब उन्हें पता चला कि हिना अपनी मां के बिना नहीं रह सकती और उसे कानून के मुताबिक बाल सुधार गृह में भेजा जा रहा है तो उन्होंने इस बारे में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक अरजी दायर कर दी.

हाईकोर्ट के आदेश पर हिना को उस की मां और मौसी के पास ही रहने की इजाजत मिल गई थी. जिस वक्त फातिमा भारत आई थी, गर्भवती थी. उस ने सजा के दौरान जेल में ही अपनी बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम हिना रखा गया. 3 साल की उम्र में सरकार और जेल प्रशासन की तरफ से उसे जेल के बाहर स्कूल में पढ़ाई के लिए दाखिल करवाया गया.

हिना सिर्फ स्कूल जाने के लिए ही जेल से बाहर आती थी. बाकी समय वह जेल में ही अपनी मां के पास रहती थी. जेल की सलाखों में फातिमा की कोख से जन्मी हिना को कई कैदी कान्हा तो कई राधा कह कर बुलाते थे. हिना भी कान्हा के नाम से खुश थी, लेकिन उसे इस शब्द के मायने पता नहीं थे.

जेल की कोठरी में जन्म लेने के बाद कृष्ण को वासुदेव ने उफनती यमुना पार करवाई थी, लेकिन इस कान्हा का वासुदेव तो पाकिस्तान में था और वहां जाने की राह में यमुना नहीं बल्कि बड़ी बाधा बौर्डर था, क्योंकि भारत में जन्म लेने के कारण कानूनन हिना भारतीय नागरिक थी.

कानूनन बिना पासपोर्ट वीजा के भारतीय नागरिक को पाक सरकार स्वीकार नहीं कर रही थी. इसीलिए इन कानूनी अड़चनों को देखते हुए हिना का अटारी बौर्डर को पार करना भी मुमकिन होता नहीं दिख रहा था. ऐसे में एक फरिश्ता या यूं कहें तारणहार बन कर आईं एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा ने एक जीतीजागती मिसाल पेश की थी.

एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा और समाजसेवी संस्था के माध्यम से हिना की रिहाई को ले कर पिछले 6 महीने से भारतपाक के बीच वार्तालाप चल रहा था. मामला तब अटक गया, जब हिना के परिजनों ने पाक से पैगाम भिजवाया कि हिना व अन्य की रिहाई के लिए उन के पास 4 लाख की रकम नहीं है.

यह पैगाम मिलने के बाद हिना को पाक पहुंचाने का बीड़ा उठाने वालों ने जुरमाने की रकम भर कर हिना की रिहाई का रास्ता साफ किया.

हिना के अब्बू असगर अली छोटामोटा काम करते हैं. गरीबी के कारण वह हिना व बाकी घर वालों को जेल से रिहा करवाने के लिए 4 लाख की रकम नहीं जमा करवा सके तो अमृतसर की गैरसरकारी संस्था सब दा भला ने 4 लाख रुपए जमा कराने के साथ ही रिहाई की प्रक्रिया भी पूरी करवाई.

सारी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी होने पर भी रिहाई नहीं हो पाने पर वकील चब्बा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मामले के हालात को ले कर पत्र लिखा. पीएमओ ने 17 अक्तूबर, 2017 को जारी एक पत्र में वकील चब्बा को जवाब दिया कि तीनों लोगों हिना, फातिमा और मुमताज की रिहाई 2 नवंबर को की जाएगी.

हिना और उस के घर वालों ने जेल में जो काम किया था, उस के मेहनताने के तौर पर उन्हें एक लाख रुपए दिए गए. दोनों देशों में अमनशांति का संदेश देने के लिए संस्था ने हिना को 1 लाख रुपए की लागत से तैयार किए भारत के राष्ट्रीय झंडे तथा पाकिस्तान के झंडे वाला सोने का लौकेट दे कर वापस उस के वतन भेजा.

अपनी रिहाई के समय पत्रकारों से बातचीत करते हुए फातिमा और मुमताज ने कहा कि उन्हें उस जुर्म की सजा काटनी पड़ी थी, जो उन्होंने किया ही नहीं था. उन का कहना था कि वे पूरी तरह से अनभिज्ञ थीं कि किन लोगों ने उन के सामान में कब और कैसे यह हेरोइन छिपा कर रख दी थी. उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सरकारों को उन कैदियों को रिहा कर देना चाहिए, जो अपनी सजाएं पूरी कर चुके हैं.

पाकिस्तान रवाना होते समय हिना के हाथों में भारत व पाकिस्तान के फ्लैग थे, जो दर्शा रहे थे कि उस के दिल में भारत व पाक दोनों के लिए एक जैसा सम्मान है. इसीलिए हिना कहती है कि जेल के सभी अंकल मुझे प्यार करते हैं. हिना को पढ़ाने वाली टीचर राजबीर कौर एवं सुखजिंदर सिंह हेर कहती हैं कि हिना बहुत मीठी और प्यारी बातें करती है. जेल में जन्म होने के चलते जेल प्रबंधन भी उसे बहुत प्यार करता था.

अमृतसर जेल से रिहाई के बाद हिना और उस की मां फातिमा अटारी बौर्डर की तरफ बढ़ रही थीं कि बच्ची ने पूछा, ‘‘अम्मी, क्या हमें अब्बू लेने के लिए आएंगे?’’

सवाल सुन कर एक बार फातिमा चुप हो गई फिर बोली, ‘‘बेटा, कौन आएगा हमें लेने के लिए.’’

हिना भी अपनी मां का यह उत्तर सुन कर चुप हो गई और उस के कदम बौर्डर की ओर बढ़ गए. यह सवाल जवाब सुन कर एडवोकेट नवजोत कौर चब्बा और उन के आसपास चल रहे लोगों की भावुकतावश आंखें छलक आईं.

वहीं दूसरी ओर जिस हिना को भारत के लोगों ने पलकों पर बिठाया, उसी हिना ने जब वाघा बौर्डर (अटारी बौर्डर के उस पार पाक एरिया) पर पाक के जिओ टीवी पर भारत को अच्छा कहा तो पाकिस्तान को इतना बुरा लगा कि चैनल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी.

जिओ न्यूज टीवी चैनल ने हिना का स्पैशल इंटरव्यू वाघा बौर्डर पर लिया तो पाक हुकूमत ने भारत को अच्छा बताने पर यह काररवाई की.

खास बात यह थी कि अमृतसर सेंट्रल जेल में सन 2006 में पैदा हुई हिना जब पाकिस्तान लौटी तो पाक की खुफिया एजेंसी पूरे परिवार को मीडिया से दूर रख कर रात 10 बजे तक पूछताछ करती रही.

हिना पाक मीडिया से कहती रही, भारत के लोग बहुत अच्छे हैं. रात करीब 12 बजे हिना अपने घर पहुंची तो वहां सैकड़ों की गिनती में देशविदेश के मीडियाकर्मी मौजूद थे.

अधिकांश मीडियाकर्मी हिना से सवाल पूछ रहे थे कि भारत ने उसे क्यों कैद में रखा, उस का क्या कसूर था? लेकिन हिना पाक मीडिया से यही कहती रही कि भारत के लोग बहुत अच्छे हैं.

उसे जेल में सभी लोग बहुत प्यार करते थे. जेल स्टाफ उसे बिटिया हिना कहा करता था. जेल से रिहा होने के बाद हिना काफी खुश नजर आई. वहीं उस की मां फातिमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया और कहा कि मोदी साहब ने मामले को खासतौर पर लिया, इस के लिए उन की शुक्रगुजार हूं.