नासमझी का घातक परिणाम – भाग 1

सुबह सो कर उठते ही एस. जौनथन प्रसाद के घर वाले एकदूसरे से पूछने लगे थे कि ईस्टर का फोन आया या नहीं? जब सभी ने मना  कर दिया कि फोन नहीं आया तो एस. जौनथल प्रसाद और उन की पत्नी को हैरानी हुई. क्योंकि वह तो कब का कमरे पर पहुंच गई होगी, अब तक उस ने फोन क्यों नहीं किया? वह व्यस्त होगी, यह सोच कर उन्होंने फोन नहीं किया.

जब घर के सभी लोगों ने नहाधो कर नाश्ता भी कर लिया और ईस्टर का फोन नहीं आया तो जौनथन प्रसाद से रहा नहीं गया. उन्होंने खुद ही फोन मिला दिया. तब दूसरी ओर से आवाज आई कि फोन पहुंच से बाहर है. उन्होंने दोबारा फोन लगाया तो पता चला कि फोन बंद है. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार फोन मिला डाला, हर बार फोन से स्विच्ड औफ होने की ही आवाज आई.

फोन न मिलने से जौनथन प्रसाद परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ईस्टर अनुह्या का फोन बंद क्यों है. मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. कभी लगता कि फोन चार्ज न होने की वजह से ऐसा होगा तो कभी लगता कि किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. लेकिन ईस्टर इतनी लापरवाह नहीं थी कि फोन बंद हो और उसे पता न चले. फिर उसे मुंबई पहुंच कर औफिस जाने की सूचना भी तो देनी थी.

बेटी से बात न हो पाने की वजह से जौनथन प्रसाद काफी परेशान थे. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर पत्नी ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप इतना परेशान क्यों हैं? ईस्टर बच्ची नहीं है. किसी काम में फंस गई होगी या कोई मीटिंग वगैरह होगी, जिस की वजह से फोन बंद कर दिया होगा. मौका मिलेगा तो जरूर फोन करेगी. वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती है.’’

‘‘पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है,’’ जौनथन प्रसाद ने कहा, ‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. वह कितनी भी व्यस्त रही हो, फोन करने में जरा भी लापरवाही नहीं करती थी. आज पहली बार ऐसा हो रहा है, इसीलिए चिंता हो रही है.’’

जौनथन प्रसाद की इस बात का पत्नी के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उन्होंने पति को धीरज बंधाया. वह पति को भले ही धीरज बंधा रही थीं, लेकिन उन का खुद का मन भी उतना ही बेचैन था. बेटी का कोई हाल समाचार न पा कर उन का खुद का दिल भी किसी अज्ञात भय से बैठा जा रहा था.

वह पूरा दिन और रात इसी इंतजार में बीत गया कि ईस्टर किसी जरूरी काम में फंसी होगी, इसलिए उस ने फोन बंद कर दिया है. इस के बावजूद जौनथन प्रसाद लगातार फोन करते रहे कि शायद अब ईस्टर का फोन चालू हो गया हो. लेकिन जब अगले दिन भी फोन चालू नहीं हुआ तो उन की हिम्मत जवाब देने लगी. इस बीच पतिपत्नी न कुछ खा सके थे और न एक पल के लिए आंखें झपका सके थे.

अगले दिन जब ईस्टर के फोन आने और मिलने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई तो जौनथन प्रसाद मुंबई के चैंबूर में अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के सारी बात बता कर ईस्टर अनुह्या के बारे में पता लगाने की विनती की. इस के बाद उन्होंने ईस्टर की कंपनी को फोन किया तो वहां से पता चला कि पिछले दिन वह औफिस आई ही नहीं थी.

जौनथन प्रसाद को जब पता चला कि वह औफिस नहीं गई थी तो उन्होंने तुरंत उस के हौस्टल फोन किया. वहां से जब उन्हें बताया गया कि वह वहां भी नहीं पहुंची है तो वह परेशान हो उठे. अब उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वह मन को सांत्वना देने के लिए ईस्टर की सहेलियों और परिचितों को फोन कर के पूछने लगे कि वह उन के यहां तो नहीं गई है या उन्हें कुछ बताया तो नहीं है? जब कहीं से ईस्टर के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी और बढ़ गई.

दूसरी ओर जब ईस्टर की सहेलियों, परिचितों, कंपनी और हौस्टल वालों को उस के लापता होने का पता चला तो वे सब भी परेशान हो उठे, क्योंकि अब तक उसे गायब हुए 24 घंटे से अधिक बीत चुके थे. उस का किसी से भी संपर्क नहीं हुआ था, इसलिए सभी को उस के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी.

23 वर्षीया ईस्टर अनुह्या प्रसाद आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के रहने वाले एस. जौनथन प्रसाद की बेटी थी. वह शहर के प्रतिष्ठित नागरिक थे. राजनेताओं से अच्छे संबंध होने की वजह से स्थानीय राजनीति में भी उन की अच्छीखासी पकड़ थी. मछलीपट्टनम के सांसद पी.के. नारायण राव और उन के भाई जगन्नाथ राव से उन के पारिवारिक संबंध थे.

इस तरह के परिवार की लाडली बेटी अनुह्या बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और तेजतर्रार लड़की थी. उस ने बंगलुरु युनिवर्सिटी से बीएससी कर के सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने इस के लिए इजाजत नहीं दी. मातापिता का कहना था कि अब आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद करे.

मांबाप ने मना कर दिया तो आगे की पढ़ाई का खयाल छोड़ कर ईस्टर अनुह्या ने बंगलुरु में ही टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) कंपनी में नौकरी  कर ली. कुछ दिनों बाद कंपनी ने उसे एक बड़ा प्रमोशन दे कर महानगर मुंबई के उपनगर गोरेगांव स्थित कंपनी की शाखा में भेज दिया. यहां उसे असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर बनाया गया था. यहां उस ने अपने रहने की व्यवस्था अंधेरी के एमआईडीसी डब्ल्यूएचसीए महिला हौस्टल में की थी.

25 दिसंबर को ईसाइयों का सब से बड़ा त्यौहार होता है, जिसे ये लोग नाताल कहते हैं. इसी त्यौहार को घर वालों के साथ मनाने के लिए ईस्टर अनुह्या ने 8 दिनों की छुट्टी ली और मछलीपट्टनम आ गई थी.

छुट्टी खत्म होने पर ईस्टर अनुह्या ने 4 जनवरी, 2014 की सुबह 8 बजे मछलीपट्टनम के विजयवाड़ा रेलवे टर्मिनस से विशाखापट्टनम एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई के लिए रवाना हुई. उस का पूरा परिवार उसे टे्रन पर बैठाने आया था. उस का एसी (प्रथम) में रिजर्वेशन था. मांबाप ने उसे समझाबुझा कर विदा किया था कि अपना खयाल रखना, मुंबई पहुंचने तक किसी अजनबी से बात मत करना. पहुंच कर फोन करना. ईस्टर ने मुंबई पहुंचने पर मातापिता को विश्वास दिलाया था कि वह वैसा ही करेगी, जैसा उन्होंने उसे समझाया है.

5 जनवरी, 2014 की सुबह 5 बजे तक मुंबई के कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने तक ईस्टर का संपर्क मांबाप से बना रहा. लेकिन उस के बाद जब संपर्क टूटा तो फिर संपर्क नहीं हो सका.

जब कहीं से भी ईस्टर के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली तो जौनथन प्रसाद बेटे के साथ प्लेन पकड़ कर मुंबई आ गए. हवाई अड्डे से वह सीधे अपने उस रिश्तेदार के यहां गए और उस से सारी जानकारी ली. इस के बाद वह बेटी की तलाश में उन स्थानों पर गए, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, जब ईस्टर अनुह्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस के पास जाने के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया.

पुलिस की मदद लेने के लिए जौनथन प्रसाद थाना कुर्ला पहुंचे. जब उन्होंने वहां के थानाप्रभारी से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह जीआरपी थाना विजयवाड़ा का मामला है. मजबूरन उन्हें जीआरपी थाना विजयवाड़ा जाना पड़ा. जीआरपी थाना विजयवाड़ा पुलिस ने ईस्टर अनुह्या प्रसाद की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले को मुंबई के जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

जीआरपी थाना विजयवाड़ा से शिकायत मिलने के बाद जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस ने ईस्टर की तलाश शुरू कर दी. लेकिन उन की यह तलाश काफी धीमी गति से चल रही थी.

शिकायत दर्ज कराने के बाद जौनथन प्रसाद मुंबई आ गए. वह खुद भी अपने रिश्तेदारों और परिचितों के साथ मिल कर बेटी की तलाश करने लगे. एक पुलिस के उच्च अधिकारी के कहने पर उन की मदद के लिए 2 पुलिस वाले हमेशा उन के साथ लगा दिए गए थे. वह अपने हिसाब से बेटी की तलाश कर रहे थे. उन की नजर उस रास्ते पर थी, जो स्टेशन से ईस्टर के हौस्टल तक जाता था.

आखिर उन की मेहनत रंग लाई. जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस कुछ कर पाती, उस के पहले उन्होंने खुद ही बेटी की लाश खोज निकाली. संयोग से उस समय वे दोनों पुलिस वाले भी उन के साथ वहीं थे.

क्या अनहोनी हो गयी थी ईस्टर अनुह्या के साथ? पढ़ेंगे इस Society Crimes Story के अगले अंक में.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 3

परिवार के साथ बैठ कर बनाया प्लान

कल्लू ऐशोआराम पर बड़ी रकम खर्च करता था. यही कारण रहा कि उस पर कर्ज बढ़ता चला गया. जिन से कर्ज लिया था, वह आए दिन तगादा करने घर पर आते थे. इस वजह से कल्लू का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

कल्लू जब लिए गए कर्ज की मासिक किस्त नहीं भर पा रहा था तो प्राइवेट बैंक के लोन वसूली करने वाले कर्मचारी उसे मकान नीलाम करने की धमकी देने लगे थे. जिस बैंक से कल्लू ने कार लोन लिया था, वह भी कार खींच कर ले जाने की तैयारी में थे. कर्ज में कल्लू बुरी तरह डूब चुका था. आसपास रहने वाले लोगों की नजर में उस के ऐशोआराम की जिंदगी की पोल खुल गई. इन सब कारणों से अब कल्लू को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन उस ने अपनी पत्नी से कहा, “मुझ पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, मेरे मन में एक विचार आ रहा है.”

“कैसा विचार? कुछ उलटापुलटा मत कर लेना. कामधंधा अच्छे से करो. पैसा आएगा तो धीरेधीरे कर्ज भी पटा देंगे.” प्रियंका ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा.

“नहीं प्रियंका, इतना कर्ज अब कामधंधा करने से नहीं चुकेगा. यदि किसी तरह मैं अपने आप को मरा हुआ साबित कर दूं तो कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी और जो हम ने बीमा पौलिसी ले रखी हैं, उस से तुम्हें लाखों रुपए भी मिल जाएंगे.” कल्लू ने अपना प्लान समझाते हुए कहा.

कल्लू ने अपने इस प्लान की जानकारी साथ में रहने वाले छोटे भाई दीनदयाल को भी बताई तो उस ने भी सहमति दे दी. इस साजिश में उस की पत्नी और परिवार ने भी साथ देने का वादा किया. कल्लू ने खुद को मरा साबित करने के लिए टीवी पर कई क्राइम शो देखे और अपने प्लान को अंतिम रूप दिया.

13 अप्रैल, 2023 को कल्लू ने पत्नी प्रियंका, छोटे भाई दीनदयाल चढ़ार के साथ भोपाल के भानपुर स्थित अपने घर पर यह प्लान बनाया कि पत्नी और भाई पड़ोसियों को यह कह देंगे कि कल्लू की एक्सीडेंट में मौत हो गई है. इस के बाद कल्लू भानपुर भोपाल स्थित अपने घर से इंद्रपुरी स्थित एक होटल में गया और रूम ले लिया. पत्नी प्रियंका और छोटा भाई दीनदयाल भानपुर स्थित घर पर ही रुक गए.

मौका देख कर दोनों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. जब पड़ोसियों ने उन से रोने का कारण पूछा तो बोल दिया कि कल्लू का विदिशा में एक्सीडेंट हो गया है और मौत हो गई है. उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि हम गांव के लिए निकल रहे हैं. यहां से दोनों अपने गांव पहुंचे और गांव जा कर रहने लगे.

कल्लू ने मोबाइल सिम प्रियंका के मोबाइल में डाल दी और खुद नया नंबर ले लिया. जब कर्जदारों के फोन आए तो पत्नी ने उन्हें भी कल्लू की मौत की कहानी सुना दी.

दोस्त को बनाया बलि का बकरा

कल्लू ने खुद को मृत घोषित करने के लिए प्लान तो बना लिया, लेकिन इस के लिए उसे एक लाश की जरूरत थी. भोपाल के आरिफ नगर, करोंद निवासी 25 साल के सलमान खान से उस की दोस्ती थी. कुछ साल पहले दोनों भोपाल के शिखा होटल में काम करते थे.

सलमान मूलरूप से विदिशा के गंज बासौदा का रहने वाला था. वह अपनी बहन के पास भोपाल के आरिफ नगर में रहता था. एक ही जिले के होने के कारण सलमान की दोस्ती कल्लू से हो गई. कल्लू ने अपने ही दोस्त से दगाबाजी कर उस की हत्या की प्लानिंग कर डाली.

सलमान नौकरी की तलाश में था. सलमान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए कल्लू ने नौकरी दिलाने का झांसा देते हुए कहा, “सलमान भाई, उदयपुरा में एक अस्पताल में मेरा एक परिचित है, वह तुम्हारी नौकरी लगवा देगा. तुम मेरे साथ उदयपुरा चलो.”

अंधा क्या चाहे दो आंखें. सलमान झट से तैयार हो गया. 19 अप्रैल को दोनों भोपाल से बस में सवार हो कर उदयपुरा रवाना हो गए. रात करीब 9 बजे वे बस से सिलवानी पहुंचे और एक ढाबे पर दोनों ने खाना खाया. खाना खा कर रात करीब 11 बजे कल्लू सलमान से बोला, “भाई, रात में उदयपुरा के लिए बस तो मिलेगी नहीं, सडक़ पर पैदल चलते हैं, रास्ते में कोई ट्रक मिलेगा तो लिफ्ट ले कर उदयपुरा चलेंगे.

सिलवानी से रात करीबन 11 बजे पैदल उदयपुरा जाने के लिए दोनों पठापोड़ी गांव के तिराहा पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर कल्लू ने सलमान से कहा, “पैदल चल कर काफी थक गए हैं थोड़ा आराम कर लेते हैं, फिर आगे बढ़ते हैं.”

इस के बाद दोनों तिराहे पर जगह देख कर बैठ गए. कुछ देर बाद कल्लू ने कहा, “यहां बैठना खतरे से खाली नहीं है, कोई हमें चोर न समझ बैठे. आगे खेत में आराम से बैठेंगे.”

इस के बाद दोनों एक खेत पर पहुंचे. खेत में मूंग की फसल थी और वहां ठंडक का अहसास भी हो रहा था. कल्लू ने सलमान से कहा, “कुछ देर लेट कर आराम कर लेते हैं, फिर उदयपुरा चलेंगे.”

यहां सलमान ने सहमति देते हुए खेत में रुमाल आंखों पर डाल कर आंखें बंद कर लीं. कल्लू भी बगल में सो गया, मगर नींद उस से कोसों दूर थी. सलमान के गले में अंगोछा डला हुआ था. थकान की वजह से सलमान को जल्द ही नींद आ गई. कल्लू ने मौका पा कर सलमान के गले में पड़े अंगोछे को कस कर खींच दिया, फिर उस ने उसे पीछे की ओर इतनी जोर से खींचा कि वह बेसुध हो गया यानी उस की मौत हो गई.

कल्लू ने खेत के किनारे पड़े बड़े पत्थर को उठा कर सलमान के चेहरे पर 3-4 बार दे मारा. चेहरा बुरी तरह से कुचलने के बाद उस का मोबाइल, पर्स समेत सब कुछ निकाल लिया. इस के बाद कल्लू ने अपना आधार कार्ड और पाकेट डायरी, जिस में उस ने अपने घर का मोबाइल नंबर लिखा था, वह सलमान की जेब में रख दिया और सलमान की लाश को खेत पर ही छोड़ कर भोपाल लौट आया. भोपाल आ कर उस ने फोन कर के गांव में रह रही अपनी पत्नी प्रियंका को सलमान को मारने की पूरी बात बता दी.

अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, कानून के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं. ऐसा ही कल्लू चढ़ार के मामले में हुआ. पुलिस ने कल्लू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर, सलमान का पर्स और मोबाइल भी बरामद कर लिया.

23 अप्रैल, 2023 को तीनों आरोपियों कल्लू चढ़ार, दीनदयाल चढ़ार और प्रियंका के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें रायसेन जेल भेज दिया गया.

24 अप्रैल को रायसेन जिले के सिलवानी पुलिस थाने में एसपी विवेक साहबाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर घटना का खुलासा किया. चादर से ज्यादा पैर पसारने की कल्लू की फितरत ने उसे संगीन जुर्म करने पर मजबूर कर दिया. अपने दोस्त का कत्ल कर उस परिवार का चिराग बुझा दिया और खुद को पत्नी, भाई के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 2

21 अप्रैल की शाम कल्लू की पत्नी प्रियंका अपने देवर और सास के साथ सिलवानी थाने पहुंची, जहां से उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल की मोर्चरी में रखे शव और कपड़ों के आधार पर तीनों ने बताया कि यह लाश कल्लू चढ़ार की ही है.

जब टीआई भारत सिंह ने दीनदयाल और उस की मां से कहा कि घर पर खबर कर दो कि परिवार के लोग अंतिम संस्कार की तैयारी कर लें तो दीनदयाल बोला, “साहब, हमारे पिताजी को यह खबर सुन कर हार्टअटैक आ सकता है. हम तो घर जा कर ही सब बताएंगे.”

पुलिस को तीनों के हावभाव देख कर यह नहीं लग रहा था कि कल्लू की मौत से किसी को सदमा पहुंचा हो. दूसरी बात मरने वाले की उम्र 25 साल के करीब थी, जबकि जेब में मिले आधार कार्ड में उम्र 34 साल थी.

पुलिस को पूरा मामला संदिग्ध लग रहा था, इसी वजह से सिलवानी थाने के टीआई भारत सिंह ने एसडीओपी राजेश तिवारी, एडीशनल एसपी अमृत मीणा और एसपी विवेक कुमार साहबाल को मामले की जानकारी देते हुए डैडबौडी के साथ उन के गांव थाना क्षेत्र त्योंदा के गांव बागरोद जाने का निर्णय लिया था.

पुलिस ने चिता से उठाया शव

गांव वालों की तस्दीक के बाद टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे को जब पूरी तरह यकीन हो गया कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है तो उन्होंने श्मशान में मौजूद लोगों से कहा, “जिस कल्लू चढ़ार का क्रियाकर्म करने आप लोग आए हैं, यह डैडबौडी उस की नहीं है. डैडबौडी को चिता से हटाइए, अब इस का अंतिम संस्कार नहीं होगा.”

पुलिस की इस काररवाई से वहां मौजूद कल्लू के परिवार के लोग भौंचक रह गए. चिता पर लेटे युवक को मुखाग्नि देने की तैयारी चल ही रही थी कि पुलिस ने शव को चिता से बाहर निकाला. पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और इस की सूचना एसपी विवेक कुमार साहबाल को दे दी. इस के बाद कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, भाई दीनदयाल और मां कलाबाई को ले कर थाने आ गई.

तब तक लाश की हालत काफी खराब हो चुकी थी, इस वजह से आवश्यक काररवाई कर रात में ही पुलिस ने वार्ड नं 3 इंदिरा आवास कालोनी के मुक्तिधाम में जेसीबी मशीन से गड्ढा खुदवा कर लाश को दफना दिया, क्योंकि मृतक मुसलिम लग रहा था.

पूछताछ में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

दूसरे दिन 22 अप्रैल को पुलिस ने तीनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि यह डैड बौडी कल्लू की नहीं है. तीनों ने बताया कि यह लाश भोपाल में रहने वाले सलमान खान की है.

इस के बाद पुलिस ने सलमान भोपाल के पास करोंद का रहने वाला था. सलमान खान के पिता साबिर खान को घटना की सूचना दी गई और तहसीलदार की उपस्थिति में 22 अप्रैल को लाश को गड्ढे से बाहर निकाला गया.

सलमान के घर वालों की शिनाख्त के आधार पर डैडबौडी उन के सुपुर्द कर दी गई. पुलिस पूछताछ में तीनों ने पुलिस को यह भी बताया कि कल्लू जिंदा है और कल्लू ने ही अपने दोस्त मोहम्मद सलमान खान का कत्ल किया है.

एसपी विवेक कुमार साहबाल के निर्देश पर हत्यारोपी की तलाश हेतु सिलवानी एसडीओपी राजेश तिवारी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया, टीम में टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे, संतोष कुमार दांगी, एएसआई संतोष रघुवंशी, साइबर सेल से एएसआई सुरेंद्र, हैडकांस्टेबल योगेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल नीतू चंदेल, नवीन पांडे, मुकेश यादव को शामिल किया गया.

पुलिस ने कल्लू की पत्नी प्रियंका से कल्लू का मोबाइल नंबर और फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी. साइबर सेल की मदद से कल्लू की लोकेशन भोपाल के पास भानपुर की मिल रही थी. पुलिस टीम ने दिनरात मेहनत कर के सलमान खान के हत्यारे कल्लू चढ़ार को खोज निकाला.

पुलिस की एक टीम कल्लू की तलाश में जब तक भोपाल पहुंची, उस समय कल्लू भोपाल के बस स्टैंड पर सागर जाने वाली बस में बैठा हुआ था. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर कल्लू को धर दबोचा. पुलिस टीम जब कल्लू को भोपाल से सिलवानी ले कर आ रही थी तो कल्लू ने चलती गाड़ी में गेट खोल कर भागने की कोशिश की, परंतु पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

चलती गाड़ी से कूदने पर घायल हुए कल्लू का पहले पुलिस ने सिलवानी अस्पताल में इलाज करवाया. इस के बाद सिलवानी थाने आ कर जब पुलिस ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो कल्लू ने जो कहानी सुनाई, वह काफी सनसनीखेज निकली.

ऐशोआराम के लिए ले रखा था कर्ज

विदिशा जिले के बागरोद गांव में रहने वाले भगवान दास चढ़ार के 2 बेटों और 2 बेटियों में कल्लू सब से बड़ा था. उस का रंग काला होने के कारण लोग बचपन में उसे कल्लू कह कर बुलाते थे और बाद में यही उस का असली नाम हो गया. जवान होतेहोते कल्लू गलत संगत में पड़ गया.

जब वह 19 साल का था, तब गांव के एक पंडित से विवाद होने पर उसे चाकू मार कर फरार हो गया था. बाद में पुलिस के सामने सरेंडर कर वह जेल भेज दिया. फिर जमानत मिलने के बाद वह भोपाल चला गया था. कल्लू 20 साल की उम्र में गांव छोड़ कर भोपाल चला गया और कैटरिंग का काम करने लगा था.

कैटरिंग का काम करने के दौरान उस का संपर्क एक तलाकशुदा महिला से हुआ, उस महिला का एक बेटा भी था. बाद में उस महिला के साथ वह लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा. कुछ साल बाद घर वालों ने कल्लू की शादी प्रियंका से कर दी और प्रियंका भी 2 बच्चों की मां बन गई.

भोपाल के करोंद इलाके में खुद का मकान बना कर रह रहे कल्लू का रहनसहन और शौक किसी रईस से कम नहीं थे. अपने ऐशोआराम के लिए उस ने बैंक और साहूकारों से कर्ज ले रखा था. कल्लू ने प्राइवेट बैंक से लोन ले कर कार खरीद ली थी. कल्लू अपनी दोनों बीवी और बच्चों का खर्च उठा रहा था.

शराब और अय्याशी के शौक के चलते उस का हाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की तरह था. अपने शौक पूरा करने के लिए उस ने कुछ लोगों से लाखों रुपए का कर्ज ब्याज पर ले रखा था. कर्ज देने वाले जब उस से रुपए मांगते तो वह किसी दूसरे से रुपए ले कर उस का कर्ज चुका देता.

कल्लू के शौक और खर्च कम नहीं हो रहे थे और आमदनी घटती जा रही थी. कल्लू भोपाल और आसपास के इलाकों में शादीविवाह के फंक्शन में हलवाई का काम करता था. उस ने मकान खरीदने के लिए 13 लाख रुपए, 9 लाख की गाड़ी और किराना की दुकान खोलने के लिए 5 लाख रुपए का कर्ज बैंकों से ले रखा था. कुछ साहूकारों से लिए गए 6-7 लाख के कर्ज को मिला कर करीब 30 से 35 लाख रुपए का कर्ज कल्लू पर था. आए दिन कर्ज देने वाले घर पर आ कर उसे उलाहना देने लगे. कल्लू की पत्नी भी इस से परेशान रहने लगी.

कर्ज से छुटकारा पाने के लिए कल्लू ने क्या योजना बनाई? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 1

सुबह खेतखलिहान के काम से अपने घरों से निकले लोगों को गांव में एंबुलेंस गाड़ी के सायरन की आवाज सुनाई दी तो लोग किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गए. घरों से बाहर निकले लोगों ने देखा कि एंबुलेंस के पीछे पुलिस की गाड़ी चल रही थी. यह देख कर लोगों की आपस में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोग स्थिति को भांपने के लिए पुलिस की गाड़ी के पीछेपीछे चलने लगे.

एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी गांव के बाहर बने भगवान दास चढ़ार के घर के ठीक सामने खड़ी हो गईं. जैसे ही एंबुलेंस का गेट खुला तो सब से पहले गाड़ी से गांव के कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, उस का भाई दीनदयाल और मां कलाबाई उतरे और उन्होंने रोनापीटना शुरू कर दिया.

लोगों की नजरें कुछ भांपने की कोशिश कर ही रही थीं कि पुलिस गाड़ी से उतरते ही थाना सिलवानी के टीआई भारत सिंह ने आसपास जमा लोगों को बताया कि कल्लू चढ़ार की किसी ने हत्या कर दी है. पोस्टमार्टम के बाद अब उस की डैडबौडी लाए हैं. घर के आसपास के लोगों ने एंबुलेंस से शव को बाहर निकाला और कल्लू के घर के आंगन में लिटा दिया. यह बात 21 अप्रैल, 2023 की है.

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गांव बांगरोद के रहने वाले कल्लू चढ़ार की मौत की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और छोटे से गांव में मातम छा गया. कल्लू की मौत को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.

कल्लू के घर में उस के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी. गांव की महिलाओं के साथ पुरुषों की काफी भीड़ कल्लू के घर पर जमा हो गई थी. जैसे ही अर्थी उठने की तैयारी हो रही थी गांव की एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “कल्लू की बहू प्रियंका को अर्थी के पास ले आओ और उस की चूडिय़ां तोड़ दो.”

घर के भीतर से कुछ महिलाएं प्रियंका को पकड़ कर बाहर अर्थी के पास ले आईं. प्रियंका काफी देर तक अर्थी के पास सिर रख कर रोती रही, मगर प्रियंका ने अपनी चूडिय़ां नहीं तोड़ीं. महिलाएं बारबार चूड़ी तोडऩे के लिए प्रियंका का हाथ पकड़ रही थीं, तभी कल्लू की मां कलाबाई ने यह कह कर सब को चुप करा दिया, “अब बहू का सुहाग उजड़ ही गया है तो चूडिय़ां तोडऩे से क्या होगा, अब तो जल्दी से अर्थी उठाओ और बहू को और मत रुलाओ.”

इस के बाद परिवार के लोगों ने बिना देर किए अर्थी को कंधा दिया और शवयात्रा ले कर शमशान घाट के लिए निकल पड़ी.

चिता पर ही करने लगे कल्लू की शिनाख्त

पुलिस की टीम भी शवयात्रा के साथ चल रही थी. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची, वहां पहले से ही लकडिय़ों की चिता सजी हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार जैसे ही क्रियाकर्म की रस्म अदायगी कर कल्लू के शव को चिता पर लिटाया गया तो वहां पर मौजूद टीआई भारत सिंह ने गांव वालों से कहा, “आप सभी लोग कल्लू की बौडी को अच्छी तरह से देख लें, क्योंकि हमें शक है कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है.”

टीआई के इतना कहते ही लोग चौकन्ने हो गए. अंतिम संस्कार के लिए आए कुछ लोगों ने कल्लू के शरीर से कपड़े भी हटा दिए और शव को बारीकी से देखने लगे.

गांव में रहने वाला कल्लू का एक हमउम्र युवक बोला, “साहब, कल्लू के एक पैर की 2 अंगुलियां जुड़ी हुई थीं, लेकिन इस डैडबौडी के किसी भी पैर की अंगुलियां जुड़ी हुई नहीं हैं.”

गांव का एक व्यक्ति बोला, “कल्लू का रंग तो काला है और वह शरीर से भी मोटा है, जबकि चिता पर जो लाश रखी है, उस का रंग गोरा है और वह दुबलापतला है.”

गांव के एक बुजुर्ग ने शव के हाथों को देख कर कहा, “कल्लू कैटरिंग का काम करता था और उस के एक हाथ पर जले का निशान था, मगर जिसे चिता पर लिटाया गया है उस के दोनों हाथों में इस तरह का कोई निशान नहीं है.”

गांव में रहने वाले एक मुसलिम युवक ने कहा, “यह डैडबौडी तो किसी मुसलिम युवक की लग रही है, क्योंकि इस का खतना हुआ है.”

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी थाने की पुलिस टीम जिस आशंका के चलते कल्लू के गांव बांगरोद आई थीं, वह निराधार नहीं थी. दरअसल, 20 अप्रैल, 2023 को पुलिस को यह सूचना मिली थी कि गैरतगंज गाडरवारा स्टेट हाइवे 44 पर सिलवानी से 10 किलोमीटर दूर पठा गांव के मोड़ के पास देवेंद्र रघुवंशी के खेत में एक व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी हुई है. यह सूचना गांव के ललित रघुवंशी ने दी थी.

सूचना पा कर थाने के टीआई भारत सिंह ने मौके पर जा कर देखा तो करीब 24-25 साल के नवयुवक का शव मूंग के खेत में पड़ा हुआ था. शव का सिर बुरी तरह से कुचला गया था. मृतक के गले में निशान मिले थे. शव के पास ही एक खून से सना हुआ पत्थर पड़ा हुआ था. मृतक के पास उस के जूते और एक रुमाल भी मिला था.

शव की हालत देख कर लग रहा था कि पहले गला घोंट कर हत्या की गई और फिर पहचान छिपाने के लिए मृतक का चेहरा कुचल दिया गया था. शव को घटनास्थल से ला कर सिलवानी अस्पताल की मोर्चरी में रखवाते वक्त पुलिस ने मृतक युवक के पैंट की जेबों की तलाशी ली तो पीछे के जेब में एक डायरी और आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवक का नाम कल्लू चढ़ार, उम्र 34 साल, पता करोंद भोपाल का लिखा हुआ था.

पुलिस ने डायरी खोल कर देखी, जिस में एक मोबाइल नंबर मिला. डायरी में मिले मोबाइल नंबर पर जब एसआई आरती धुर्वे सिंह ने बात की तो फोन एक महिला ने उठाया.

“आप कौन बोल रही हैं. कल्लू चढ़ार कौन है, जानती हैं?” एसआई ने पूछा.

“मैं बांगरोद गांव से किरण बोल रही हूं. वो मेरे पति हैं.”

“मैं सिलवानी थाने से बोल रही हूं. कल्लू कहां है, कुछ पता है आप को?”

“वो 2 दिन पहले घर से बोरास घाट नर्मदा स्नान के लिए गए हुए हैं.”

“आप के घर में कोई पुरुष सदस्य हो तो उन से बात कराइए.”

“हां मेरे देवर हैं, उन से बात कराती हूं.” किरण ने अपने देवर दीनदयाल को फोन देते हुए कहा.

“हां मेम, मैं कल्लू का छोटा भाई दीनदयाल बोल रहा हूं.”

“तुम्हारे भाई कल्लू का सिलवानी के पास मर्डर हो गया है, सिलवानी थाने आ जाइए और शव की पहचान कर लीजिए.” एसआई ने फोन रखते हुए कहा.

वो लाश कल्लू की नहीं थी तो किस की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 3

यदि लाडो को कुरेदा जाए तो दिव्या के विषय में बहुत कुछ मालूम हो सकता था. एसएचओ चतुर्वेदी कंचन के घर पहुंचे. कंचन पुलिस को दरवाजे पर देख कर डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ता देख इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने भांप लिया कि वह बहुत कुछ जानती है.

“क्या नाम है तुम्हारा?” कंचन को घूरते हुए उन्होंने पूछा.

“कं…च..न.” कांपती आवाज में वह बोली.

“तुम्हारा भाई बनवारी लाडो को रात 11 बजे तुम्हारे घर ले कर आया था. उस के साथ उस की सहेली दिव्या भी थी, बनवारी ने उसे कहां छोड़ दिया.”

“म… मैं नहीं जानती साहब, बनवारी यहां तो लाडो को ही ले कर आया था. उस ने मुझे कुछ नहीं बताया.”

“लेकिन जब लाडो और दिव्या के मांबाप तुम्हारे घर बनवारी से पूछताछ करने आए तो तुम ने बनवारी को भगा दिया.”

“मैं ने नहीं भगाया, वो खुद चला गया.”

“कहां गया है?”

“मैं नहीं जानती. शायद घर गया होगा.”

“उस के घर का पता बताओ.” चतुर्वेदी ने पूछा.

बनवारी के डर से मुंह नहीं खोल रही थी लाडो

कंचन ने घर का पता बता दिया. एसएचओ ने अपने साथ आए हैडकांस्टेबल को 2 पुलिस वालों के साथ बनवारी के घर दबिश डालने के लिए भेज दिया. वह लाडो से पूछताछ करने के लिए रुक गए. वह बहुत डरी हुई थी.

लाडो से उन्होंने दिव्या के विषय में प्यार से पूछा, “तुम अपनी सहेली दिव्या के साथ लाला की परचून की दुकान पर गई थी, वहां से तुम कहां गई थी? और बनवारी तुम्हें कहां मिला था.”

लाडो ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह जमीन की तरफ देखती रही. इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने महसूस किया कि लाडो किसी सदमे से डरी हुई है. यह मुंह नहीं खोलेगी. वह कुछ सोचने लगे. यदि बनवारी लाडो को साथ लाया था तो दिव्या भी बनवारी के साथ जरूर रही होगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि बनवारी ने ही दिव्या का रेप किया हो और उस की हत्या कर दी हो.

लाडो साथ थी, उस ने सब अपनी आंखों से देखा होगा. बनवारी ने उसे भी धमकाया होगा कि किसी से कुछ नहीं कहेगी. लाडो के भय का कारण यही हो सकता है. बनवारी ही दिव्या का कातिल है, उसी ने दिव्या को अपनी हवस का शिकार बनाया है.

चतुर्वेदी की नजर में बनवारी संदिग्ध बन गया था. उसे भगाने में कंचन का हाथ था, इसलिए वह भी दोषी थी. चतुर्वेदी विचारों के तानेबाने बना रहे थे, तभी हैडकांस्टेबल ने फोन कर के बताया कि बनवारी अपने घर से फरार है.

“उसे तलाश करो. अपने खास मुखबिर लगा दो. बनवारी इस केस का मुख्य अभियुक्त है.” इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने आदेश दिया.

बनवारी छटा हुआ बदमाश था. वह पुलिस को छका रहा था. उस के बारे में जब मालूम होता कि वह फलां जगह पर है, पुलिस वहां पहुंचती तो वह वहां से भाग चुका होता था. मगर वह कब तक भागता. पुलिस के मुखबिर उस की टोह में लगे हुए थे.

6 सितंबर को उसे कोसीकलां में मुखबिर ने देखा तो थाना यमुनापार को सूचना दे दी. पुलिस ने बहुत सावधानी से उसे कोसीकलां पहुंच कर घेरे में लिया तो वह गोलियां चलाने लगा. पुलिस ने भी गोलियां दागीं. आखिर में गोलियां खत्म हो जाने पर बनवारी हाथ उठा कर दीवार की ओट से बाहर आ गया. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया.

उस पर पुलिस ने सख्ती की तो उस ने कुबूल कर लिया कि उसी ने दिव्या से रेप किया और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस ने बताया कि 31 अगस्त, 2020 को वह लाला की परचून की दुकान पर सिगरेट लेने गया था. वहां अपनी भांजी लाडो के साथ दिव्या को देख कर उस के हवस का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

वह दोनों को बाइक पर बिठा कर मावली गांव के एक खेत में ले गया. जहां उस ने अपनी भांजी लाडो के सामने ही दिव्या के साथ रेप कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी. भांजी लाडो को उस ने डराधमका दिया था.

बनवारी से पूछताछ करने के बाद एसएचओ चतुर्वेदी ने उसे विधिवत गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया. एसएचओ ने 5 दिन में बनवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत, गवाह आदि एकत्र कर के पोक्सो कोर्ट के जज रामकिशोर यादव-3 की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी.

यह केस 3 साल तक चला और अंत में डरी हुई लाडो का मुंह खुलवा कर डीजीसी (स्पैशल) वकील अलका उपमन्यु ने इस केस का रुख बदल दिया. लाडो ने अपने मामा बनवारी की करतूत कोर्ट को बताई.

कोर्ट में लाडो के बयान देने के बाद कोर्टरूम में सन्नाटा भर गया, जिसे माननीय जज राम किशोर यादव ने तोड़ा, “इस बच्ची लाडो का चश्मदीद बयान सुन लेने के बाद मुझे अपना फैसला सुनाने का रास्ता मिल गया है.

बनवारी को हुई सजा ए मौत

जज महोदय राम किशोर यादव थोड़ी देर के लिए रुके, फिर बोलने लगे, “यह वकील अलका उपमन्यु की सूझबूझ का कमाल है. इन्होंने उस बच्ची के मन से उस के मामा बनवारी का भय निकाल कर उसे न्याय के कटघरे में ला कर सच्चाई बयान करने के लिए तैयार किया. उन के उसी गवाह ने सारे केस का रुख पलट दिया. दूध का दूध और पानी का पानी हो गया.

यह कटघरे में खड़ा व्यक्ति अलका उपमन्यु की ठोस दलीलों के कारण ही आज हत्या, बलात्कार, अपहरण और साक्ष्य नष्ट करने का दोषी सिद्ध हुआ है. इस का अपराध अक्षम्य है. इस पर रहम नहीं किया जा सकता.

“इसे आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 376 (बलात्कार), 302 (हत्या) के लिए और 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के लिए दोषी माना जाता है. पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 5/61 भी इस पर लगाई जाती है. यह सब 11 व्यक्तियों की गवाही, मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृतका के स्लाइड सैंपल, डीएनए परीक्षण की बदौलत संभव हुआ. ये सब बातें इस अभियुक्त के खिलाफ जाती हैं, इसलिए इस का अपराध दुर्लभतम मान कर इसे मैं फांसी की सजा देता हूं. इसे तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.

“इस पर एक लाख रुपए का जुरमाना हत्या के लिए और रेप के लिए 30 हजार का जुरमाना भी लगाया जाता है. इस राशि का 80 प्रतिशत मृतका के पिता और मां को दिया जाए.”

सबूत न मिलने पर कंचन को बाइज्जत रिहा कर दिया गया

जज महोदय अपना फैसला सुना कर खड़े हो गए और अपने चैंबर में चले गए. फांसी की सजा सुनते ही कटघरे में खड़ा बनवारी रोने लगा. उसे उसी हालत में पुलिस वाले ले कर बाहर खड़ी कैदियों की गाड़ी की तरफ ले आए. उसे अब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई थी. फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की मनोदशा को ध्यान में रख कर जेल अधीक्षक ने बनवारी को अपने संरक्षण में ले लिया. वह उसे अपनी निगरानी में रखना चाहते थे.

—कथा कोर्ट के जजमेंट व पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दिव्या परिवर्तित नाम है.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 1

मथुरा के यमुनापार की पोक्सो कोर्ट में एडीजे विशेष न्यायाधीश राम किशोर यादव-3 की अदालत में आज दिनांक 25 जुलाई, 2023 दिन मंगलवार को लोगों की भारी भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कोर्ट में 3 साल पहले 9 साल की नाबालिग बेटी दिव्या का बलात्कार कर हत्या करने के दोषी 42 साल के बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को सजा सुनाई जानी थी.

सुबह से ही मीडिया जगत के लोग, वकील, पुलिस अधिकारी और डहरुआ गांव के पीडि़ता के परिजन, पड़ोसी और अन्य लोग दोषी बनवारी लाल को मिलने वाली सजा को सुननेजानने के लिए कोर्टरूम में आ चुके थे.

ठीक 10 बजे न्यायाधीश राम किशोर यादव अपने चैंबर कोर्ट रूम में अपनी कुरसी के पास आए तो सभी उन के सम्मान में उठ कर खड़े हो गए. राम किशोर यादव अपने स्थान पर बैठ गए.

अभियुक्त बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया गया था. दोनों सिर झुका कर खड़े हुए थे. माननीय न्यायाधीश ने एक सरसरी नजर दोनों अभियुक्तों पर डालने के बाद सामने बड़ी मेज के ऊपर अपने दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे बचाव पक्ष के वकील किशन सिंह बेधडक़ और सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) स्पैशल डीजीसी अलका उपमन्यु की ओर देखा.

न्यायाधीश ने उन्हें इशारा कर के कहा, “मिस्टर बेधडक़, आप आखिरी बहस के लिए तैयार हैं न. मैं पहला मौका आप को दे रहा हूं. आप अपनी दलील रखिए. सुश्री अलका उपमन्यु आप भी तैयार रहिए.”

“मैं तैयार हूं सर,” अलका उपमन्यु ने उठ कर आदर से सिर झुकाते हुए कहा.

वकीलों में जम कर हुई बहस

बचाव पक्ष के एडवोकेट किशन सिंह बेधडक़ अपनी जगह से उठ कर जज साहब के सामने आ गए. अपने कोट की कौलर ठीक करते हुए बेधडक़ ने बड़े जोश भरे स्वर में कहा, “जनाब, मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि मेरा मुवक्किल बनवारी निर्दोष है.

उस 31 अगस्त, 2020 की रात को वह अपने घर पर ही था. वह मृतका दिव्या और अपनी भांजी लाडो को ले कर मावली गांव गया ही नहीं, क्योंकि इस का कोई सबूत मेरी अजीज दोस्त अलका उपमन्यु कोर्ट में पेश नहीं कर पाई हैं. मेरे मुवक्किल को फंसाया जा रहा है, वह निर्दोष है.”

अलका उपमन्यु मुसकराती हुई अपनी जगह से उठीं और बोलीं, “माननीय जज साहब, मैं ने 15 दिन पहले ही वे सभी साक्ष्य जो मावली गांव के बाजरे के खेत में घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम और यमुनापार थाने के पुलिस इंसपेक्टर को जांच के दौरान मिले थे, कोर्ट के सामने रख दिए थे. मैं मिस्टर बेधडक़ की कमजोर याद्दाश्त के लिए फिर से सभी साक्ष्यों का ब्यौरा दे देती हूं.

“घटनास्थल से मृतका दिव्या की खून सनी पाजामी बरामद हुई थी, रक्त के नमूने की विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा जांच रिपोर्ट. वैजाइनल स्लाइड व स्वैब. नेल क्रीपिंग, स्कैल्प हेअर, टी शर्ट, पांव में बांधा गया काला धागा, राखी, रबर बैंड, मौके से एकत्र की गई खून आलूदा मिट्टी और सीएमओ साहब की ओर से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिस में 9 साल की अबोध नाबालिग बालिका के साथ हैवानियत से किए गए बलात्कार होने की पुष्टि हुई है. ये सभी चीजें मैं ने कोर्ट को पहले ही सौंप दी थीं.

“इस के अलावा घटनास्थल से बनवारी लाल द्वारा प्रयोग किया गया शराब का पौआ, बीयर की कैन, पानी के 3 पाउच, 2 खाली और एक भरा हुआ. नमकीन, खाली प्लेट, 3 सौस के पाउच और एक रौयल स्टेग क्वार्टर का खाली पौआ और प्लास्टिक के 2 खाली गिलास बरामद हुए थे.

“इन के अलावा बनवारी द्वारा घटना के वक्त पहने हुए कपड़ों का पुलिंदा, जिन पर दिव्या की वैजाइना से निकले खून के धब्बे मिले थे. ये सभी पुख्ता सबूत मैं ने कोर्ट को पहले ही दे दिए थे. इन के अलावा मैं ने इस घटना से जुड़े 11 गवाहों की पेशी कोर्ट में करवा दी है. मैं इन के नाम फिर से कोर्ट के सामने रख देती हूं. इस से पहले आप यह भी जान लें कि इस घटना के वादी दिव्या के पिता ने 31 अगस्त, 2020 को अपनी बेटी और उस के साथ गई बनवारी की भांजी लाडो की घर वापसी न होने पर पूरी रात दोनों लड़कियों को तलाश किया था.

“उस के 2 भाई सोनू और संतोष गांव नौगांव भी उसी रात गए थे, क्योंकि यह सभी लोग जब दिव्या और लाडो को गांव में और आसपास के खेतों में ढूंढ रहे थे, तब बनवारी की बहन कंचन द्वारा अपने छोटे भाई भोला को फोन द्वारा बताया गया था कि वह लाडो की चिंता न करे. लाडो को बनवारी अपनी बाइक पर बिठा कर उस के घर नौगांव, छाता (मथुरा) में ले कर आया है.

“यह सुन कर वादी संतोष और सोनू उसी रात नौगांव गए थे. वहां लाडो तो मिल गई थी, लेकिन बनवारी को कंचन ने अपने घर से भगा दिया था, इसलिए इस घटना में कंचन भी शामिल हो गई थी. इसे मालूम हो गया था कि बनवारी क्या कुछ कर के उस के घर आया है. सब जान कर भी इस ने बनवारी को भाग जाने में मदद की थी, इसलिए यह भी पूरी तरह दोषी है.”

कुछ क्षण रुकने के बाद अलका उपमन्यु बोलीं, “मैं उन 11 गवाहों के नाम दोहरा रही हूं, जो मृतका दिव्या की तलाश और तहकीकात से जुड़े हुए हैं. वादी दिव्या के पिता जिस ने पहली सितंबर, 2020 को यमुनापार थाने में अपनी बेटी दिव्या के अपहरण और बलात्कार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उस ने बनवारी पर दिव्या के अपहरण और बलात्कार करने का संदेह जाहिर किया था.

“संतो उर्फ सत्य प्रकाश, अशोक, डा. करीम अख्तर कुरैशी, सोनू, भोला, संतोष कुमार, डा. विपिन गौतम, इंसपेक्टर महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी, रिटायर्ड हैडकांस्टेबल कैलाशचंद, विजय सिंह और घटना के समय वहां मौजूद रही लाडो.

“ये सब गवाह और साक्ष्य पुलिस द्वारा तैयार किए गए थे मी लार्ड,” किशन सिंह बेधडक़ ने टोका, “पुलिस झूठे गवाह और ऐसे साक्ष्य तैयार कर के मेरे मुवक्किल को फंसाना चाहती है. ऐसा एक भी गवाह अलकाजी के पास नहीं है, जो चश्मदीद हो, जिस ने मावली गांव में बनवारी को दिव्या के साथ बलात्कार करते हुए देखा हो.”

“है मी लार्ड,” अलका उपमन्यु जोश में बोली, “मैं जानती थी कि मेरे अजीज दोस्त बेधडक़ साहब ऐसी ही बात कह कर बनवारी को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेंगे. मैं ने एक चश्मदीद गवाह को बचा कर रखा हुआ था. मैं उसे बुला रही हूं.” अलका उपमन्यु ने पेशकार को इशारा किया तो वह बाहर जा कर 12 साल की एक लडक़ी को कोर्ट रूम में ले आया.

“यह बनवारी की भांजी लाडो है मी लार्ड. मृतका दिव्या की सहेली है. यही 31 अगस्त, 2020 की शाम 8 बजे के आसपास गांव में लाला की दुकान पर दिव्या के साथ कुछ सामान लेने गई थी. बेटी लाडो, तुम इस गवाह के कटघरे में आ जाओ और कोर्ट को बताओ कि 31 अगस्त, 2020 की रात को क्या हुआ था.”

क्या बताया लाडो ने अपनी गवाही में? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 3

बच्चे के मन में क्या चल रहा होता है, जो वह ऐसा करता है? उस के दिमाग में यह जो उथलपुथल चल रही होती है, इस के बारे में उस ने कभी अपने घर वालों या दोस्तों को बताया था? क्या कोई उपाय है कि बच्चों को सुसाइड करने से रोका जा सके?

इन सवालों के जवाब हम सभी को जानना जरूरी है, क्योंकि हम सभी के बच्चे हैं और हम सब अपने बच्चों को कुछ न कुछ बनाना चाहते हैं. इस के लिए हम अपने बच्चों पर प्रेशर भी डालते हैं. यही प्रेशर उन्हें परेशान करता है और वे कुछ उल्टासीधा कदम उठा लेते हैं. जो बच्चे कोटा पढऩे के लिए जाते हैं, उन पर कोचिंग संस्थान की पढ़ाई का बहुत ज्यादा प्रेशर होता है, वे हर वक्त इस बात के तनाव में रहते हैं कि वे पिछड़ न जाएं.

दरअसल, पढ़ाई का जो प्रेशर है, जिसे कंपटीशन कहा जाता है, कोटा में वह क्रेजी कंपटीशन बन गया है और यह क्रेजी कंपटीशन का जो स्ट्रेप है, उस के लिए यहां के बच्चे मात्र 16, 17, या 18 साल के होते हैं, जो अभी मेच्योर नहीं हैं, इसलिए वे इस कंपटीशन को झेल नहीं पाते और निराश हो जाते हैं.

धीरेधीरे उन की यह निराशा डिप्रेशन बन जाती है. दूसरे शहरों या गांवों से आए बच्चे अपनी पढ़ाई कवर नहीं कर पाते और पढ़ाई में अन्य बच्चों से पीछे रह जाते हैं. टेस्ट में नंबर कम पाते हैं. परीक्षा में सेलेक्शन नहीं होता, जो निराशा को और ज्यादा बढ़ाता है.

कोटा कोचिंग के लिए जाने वाले ज्यादातर बच्चों की अधिक से अधिक उम्र 18 साल होती है. यह ऐसी उम्र होती है, जिस में शरीर में भी बदलाव आता है और सोच में भी. बच्चा इसे समझ नहीं पाता. कोटा में वह अकेला होता है, वहां कोई समझाने या सहारा देने वाला नहीं होता. जिस की वजह से प्रेशर भी बढ़ता और तनाव भी.

प्रेशर बन जाता है जानलेवा

कुछ बच्चे इस बात को दिमाग में बैठा लेते हैं. साथ में लड़कियां भी पढ़ती हैं, इसलिए इस का कारण प्रेम प्रसंग भी हो सकता है. बच्चे पर पढऩे के लिए परिवार का दबाव होता है और कोचिंग संस्थान का भी. क्योंकि हर संस्थान अपने बेहतर रिजल्ट के लिए बच्चों पर दबाव डालता है. उस का रिजल्ट बेहतर होगा, तभी उस के यहां ज्यादा बच्चे आएंगे और वह फीस भी ज्यादा ले सकेगा.

मांबाप और परिवार के साथ 16-17 साल तक रहने वाला बच्चा अचानक मांबाप और परिवार से दूर अकेला पड़ जाता है. इस के साथ उस पर अचानक पढ़ाई का काफी प्रेशर पड़ जाता है. परिवार से इमोशनली जुड़े बच्चे अचानक परिवार की दूरी सहन नहीं कर पाते, जिस का असर उन की पढ़ाई पर भी पड़ता है और दिमाग पर भी. परिवार से दूर होने पर न तो उन के मनपसंद का खाना मिलता है और न कोई प्यार से खिलाने वाला होता है.

इन्हीं कारणों से बच्चा पढ़ाई में पिछडऩे लगता है. टेस्ट में नंबर कम आते हैं तो कोचिंग संस्थान वाले प्रेशर बनाते हैं, जिस का असर सीधे उन के दिमाग पर पड़ता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है.

इस के अलावा कोटा में कोचिंग कराने वाले हर पैरेंट्स संपन्न हों, यह जरूरी नहीं है. सामान्य और गरीब परिवारों के बच्चे भी कोटा आते हैं, जो संपन्न परिवारों के बच्चों का रहनसहन और शानोशौकत देखते हैं तो इस का असर भी उन के दिमाग पर पड़ता है और वे खुद को उन के सामने तुच्छ समझने लगते हैं. तब उन का मन पढऩे में नहीं लगता. दूसरी ओर वे यह भी सोचते हैं कि उन के मांबाप गरीबी में भी उन्हें पढ़ा रहे हैं. अगर वे सफल न हुए तो उन के मांबाप क्या सोचेंगे, वे कौन सा मुंह ले कर उन के सामने जाएंगे?

अकेलापन हो जाता है खतरनाक

इस तरह की सोच वाले बच्चे जब पढ़ाई और जीवन से निराश हो जाते हैं तो बारबार खुद को ही कोसने लगते हैं. उन के दिमाग में बारबार यही बात आती है कि वह किसी काम के नहीं हैं. वे दुनिया यानी संस्थान या लोगों से परेशान हो चुके हैं. लोगों से कहने लगते हैं कि अब वे जीना नहीं चाहते मतलब कि वह इशारे से अपनी नकारात्मकता जाहिर करने लगते हैं.

सोशल मीडिया पर नकारात्मक पोस्ट डालते हैं या नकारात्मक स्टेटस लगाते हैं. डायरी में सुसाइड के बारे में लिखते हैं. कुछ बच्चे न लिख कर कुछ कह पाते हैं न बोल कर. उन का व्यवहार बदल जाता है. वे खाना नहीं खाते, किसी से बात नहीं करते, अकेले रहते हैं. ऐसे में इशारों को भांपना चाहिए. इसे न मजाक में लिया जाना चाहिए और न अवाइड करना चाहिए.

बच्चे सुसाइड न करें, इस के लिए कोचिंग संस्थान और प्रशासन काउंसिलिंग कराते हैं, लेकिन वह नाकाफी है. इस के लिए ऐसा सिस्टम तैयार होना चाहिए कि बच्चे एकदूसरे से जुड़े रहें, एकदूसरे के सहायक बनें. बच्चे इस तरह का गलत कदम न उठाएं, इस के लिए उन में आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी है.

कुछ बच्चों की रुचि मातापिता की अपेक्षा के विपरीत होती है. ऐसे बच्चे पेरेंट्स के दबाव में कोटा आ तो जाते हैं, लेकिन टेस्ट में उन के नंबर कम आते हैं, तब बच्चे तनाव में आ जाते हैं. पढ़ नहीं पाते. ऐसे में बच्चे को विश्वास दिलाना चाहिए कि वह अपनी पढ़ाई अपने हिसाब से करे, उस का मैडिकल या इंजीनियरिंग में हो गया तो अच्छा है, वरना दूसरा भी बहुत कुछ करने को है. इसलिए उस की जो इच्छा हो, वह वही करे.

कोटा में बच्चा अकेला रहता है. उस पर कोई रोकटोक करने वाला नहीं होता, जिस से वह अकेलेपन का शिकार हो जाता है और गलत रास्ते पर चला जाता है. ऐसे में बच्चे को संस्कार और समाज के नियमकायदे से जोड़ कर रखना जरूरी है. बड़ों की बात मानने और समाज के रीतिरिवाज मानने की बात सिखाने से बच्चे का चरित्र विकसित होता है.

सब से जरूरी है कम्युनिकेशन. कोटा आने पर बच्चे पेरेंट्स से तो दूर होते ही हैं, यार दोस्तों से भी दूर हो जाते हैं. एक साथ 2 बच्चों के रहने वाला कल्चर खत्म हो रहा है. पेरेंट्स खुद बच्चे के लिए सिंगल रूम की डिमांड करते हैं, ताकि उन का बच्चा डिस्टर्ब न हो.

बच्चे के साथ क्या हो रहा है, उसे क्या परेशानी हो रही है, वह अपनी परेशानी किसी से साझा नहीं कर पाता. इसलिए कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है. अकेले रह रहे बच्चे के साथ इमोशनली कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, जिस से वह अपने मन की बात शेयर कर सके. वहां बीमार होने पर उसे डाक्टर के पास ले जाने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में वह परेशान होता है, तब बच्चे को केयर की बहुत जरूरत होती है.

परिवार से अलग रह कर कभीकभी बच्चे को लगता है कि किसी को उस की चिंता नहीं है, केवल उस के नंबरों की चिंता है. ऐसे में नंबर कम आते हैं तो उसे लगता है कि वह जी कर क्या करेगा. अगर बच्चे के मुंह से कभी ऐसी बात निकलती है तो इसे अवाइड नहीं किया जाना चाहिए. बच्चे को समझाना चाहिए कि इस जीवन का बहुत महत्त्व है. वह देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है.