पिता को रास ना आया बेटी का प्यार – भाग 1

कालेज पहुंचने के लिए अभी पर्याप्त समय था, इसलिए कंधे पर बैग लटकाए प्राची मस्ती से चली जा रही थी.  घर से निकल कर अभी वह थोड़ी दूर गई थी कि उस ने महसूस किया कि उसे 2 आंखें लगातार घूर रही हैं. लड़कियों के लिए यह कोई खास बात नहीं है, इसलिए ध्यान दिए बगैर वह अपनी राह चली गई. एक दिन की बात होती तो शायद वह इस बात को भूल जाती, लेकिन जब वे 2 आंखें उसे रोज घूरने लगीं तो उसे उन में उत्सुकता हुई.

एक दिन जब प्राची ने उन आंखों में झांका तो आंखें मिलते ही उस के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने झट अपनी आंखें फेर लीं. लेकिन उस ने उन आंखों में ऐसा न जाने कौन सा सम्मोहन देखा कि उस से रहा नहीं गया और उस ने एक बार फिर पलट कर उन आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. वे आंखें अपलक उसे ही ताक रही थीं. इसलिए दोबारा आंखें मिलीं तो उस के दिल की धड़कन बढ़ गई.

उन आंखों में प्राची के लिए चाहत का समंदर लहरा रहा था. यह देख कर उस का दिल बेचैन हो उठा. न चाहते हुए भी उस की आंखों ने एक बार फिर उन आंखों में झांकना चाहा. इस बार आंखें मिलीं तो अपने आप ही उस के होंठ मुसकरा उठे. शरम से उस के गाल लाल हो गए और मन बेचैन हो उठा. वह तेजी से कालेज की ओर बढ़ गई.

कहते हैं, लड़कियों को लड़कों की आंखों की भाषा पढ़ने में जरा भी देर नहीं लगती. प्राची ने भी उस लड़के की आंखों की भाषा पढ़ ली थी. वह कालेज तो चली गई, लेकिन उस दिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा. बारबार वही आंखें उस के सामने आ जातीं. नोटबुक और किताबों में भी उसे वही आंखें दिखाई देतीं. उस का मन बेचैन हो उठता. सिर झटक कर वह पढ़ाई में मन लगाना चाहती, लेकिन मन अपने वश में होता तब तो पढ़ाई में लगता. वह खोईखोई रही.

कालेज की छुट्टी हुई तो प्राची घर के लिए चल पड़ी. रोज की अपेक्षा उस दिन वह कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी. वह जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गई, जहां उसे वे आंखें घूर रही थीं. लेकिन उस समय वहां कोई नहीं था. वह उदास हो गई. बेचैनी में वह घर की ओर चल पड़ी. प्राची को घूरने वाली उन आंखों के चेहरे की तलाश थी. घूरने वाली वे आंखें किसी और की नहीं, उस के घर से थोड़ी दूर रहने वाले आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू की थीं.

प्राची इधर काफी दिनों से उसे अपने मोहल्ले में देख रही थी. वह उसे अच्छी तरह जानती भी थी, लेकिन कभी उस से उस की बात नहीं हुई थी. इधर उस ने महसूस किया था कि आयुष्मान अकसर उस से टकरा जाता था. लेकिन उस से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता था. प्राची ने कालेज जाते समय उस की आंखों में झांका था तो उस ने आंखें झुका ली थीं. फिर जैसे ही उस ने मुंह फेरा था, वह फिर उसे ताकने लगा था.

प्राची ने उस दिन आयुष्मान में बहुत बड़ा और हैरान करने वाला बदलाव देखा था. सिर झुकाए रहने वाला आयुष्मान उसे प्यार से अपलक ताक रहा था. कई बार उन आंखों से प्राची की आंखें मिलीं तो उस के दिल में तूफान सा उमड़ पड़ा था.  उस के होंठों पर बरबस मुसकान उभर आई थी. दिल की धड़कन एकाएक बढ़ गई थी. विचलित मन से वह घर पहुंची थी. इस के बाद उस के ख्यालों में आयुष्मान ही आयुष्मान छा गया था.

घर पहुंच कर प्राची ने बैग रखा और बिना कपड़े बदले ही सीधे छत पर जा पहुंची. उस ने आयुष्मान के घर की ओर देखा. लेकिन आयुष्मान उसे दिखाई नहीं दिया. वह उदास हो गई. उस का मन एक बार फिर उन आंखों में झांकने को बेचैन था. लेकिन उस समय वे आंखें दिखाई नहीं दे रही थीं. वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी कि नीचे से मां की आवाज आई, ‘‘प्राची, आज तुझे क्या हो गया कि आते ही छत पर चली गई? कपड़े भी नहीं बदले और खाना भी नहीं खाया. चल जल्दी नीचे आ जा. मुझे अभी बहुत काम करने हैं.’’

मां की बातें सुन कर ऊपर से ही प्राची बोली, ‘‘आई मां, थोड़ा टहलने का मन था, इसलिए छत पर आ गई थी.’’

प्राची ने एक बार फिर आयुष्मान की छत की ओर देखा. वह दिखाई नहीं दिया तो उदास हो कर प्राची नीचे आ गई. रात को खाना खाने की इच्छा नहीं थी, पर मां से क्या बहाना बनाती, इसलिए 2-4 कौर किसी तरह पानी से उतार कर प्राची बेड पर लेट गई. लेकिन आंखों में नींद नहीं थी. आंखें बंद करती तो उसे आयुष्मान की घूरती आंखें दिखाई देने लगतीं. करवट बदलते हुए जब किसी तरह नींद आई तो उस ने सपने में भी उन 2 आंखों को प्यार से निहारते देखा.

दूसरी ओर आयुष्मान भी कम बेचैन नहीं था. सुबह तो समय निकाल कर उस ने प्राची को देख लिया था, लेकिन शाम को देर हो जाने की वजह वह प्राची को नहीं देख पाया था, इसलिए अगले दिन की सुबह के इंतजार में समय कट ही नहीं रहा था. वैसे भी इंतजार की घडि़यां काफी लंबी होती हैं.

अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर प्राची कालेज जाने की तैयारी करने लगी थी. लेकिन उस दिन ऐसा लग रहा था, जैसे समय बीत ही नहीं रहा है. आखिर इंतजार करतेकरते कालेज जाने का समय हुआ तो प्राची उस दिन कुछ ज्यादा ही सजधज कर घर से निकली. वह उस जगह जल्दी से जल्दी पहुंच जाना चाहती थी, जहां बैठ कर आयुष्मान उस के आने का इंतजार करता था.

पंख होते तो शायद वह उड़ कर पहुंच जाती, लेकिन उसे तो वहां पैरों से चल कर पहुंचना था. वह दौड़ कर भी नहीं जा सकत थी. कोई देख लेता तो क्या कहता. जैसेजैसे वह जगह नजदीक आती जा रही थी, उस के दिल की धड़कन बढ़ने के साथ मन बेचैन होता जा रहा था.

वह उस जगह पर पहुंची तो देखा कि आयुष्मान अपलक उसे ताक रहा था. उस ने उस की आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. आंखें मिलीं तो होंठ अपने आप ही मुसकरा उठे. उस का आंखें हटाने का मन नहीं हो रहा था, लेकिन राह चलते यह सब ठीक नहीं था. ऐसी बातें लोग ताड़ते भी बहुत जल्दी हैं. वह उसे पलटपलट कर भी नहीं देख सकती थी. फिर भी शरमसंकोच के बीच उस से जितनी बार हो सका, उस ने उसे तब तक देखा, जब तक वह उसे दिखाई देता रहा.

साफ था, दोनों ही आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिल में उतर चुके थे. उस रात दोनों को ही नींद नहीं आई. बेड पर लेटेलेटे बेचैनी बढ़ने लगी तो प्राची बेड से उठ कर छत पर आ गई. खुले वातावरण में गहरी सांस ले कर उस ने इधरउधर देखा. आसमान में तारे चमक रहे थे. उस ने उन तारों की ओर देखा तो उसे लगा कि हर तारे से आयुष्मान मुसकराता हुआ उसे ताक रहा है.

                                                                                                                                              क्रमशः

सुहाग की कातिल : देवर के प्यार में किया पति का क़त्ल – भाग 1

दोपहर का वक्त था. रेनू नहा कर बाथरूम से निकली तभी ‘भाभी…भाभी’ कहता हुआ मोहित उस के घर आ पहुंचा. उस समय रेनू के शरीर पर मात्र पेटीकोट और ब्लाउज था. उस की जुल्फों से पानी की बूंदें टपक रही थीं. मोहित की निगाहें रेनू के मखमली बदन पर जैसे पानी की बूंदों की तरह चिपक कर रह गई थीं.

मोहित की इस हरकत को रेनू समझ रही थी. वह न तो शरमाई और न ही वहां से भाग कर दूसरे कमरे में गई. बल्कि वह नजाकत से चलते हुए उस के और करीब आ गई. मोहित रिश्ते में उस का चचेरा देवर लगता था. उन के बीच अकसर मजाक भी होता रहता था. रेनू उस के एकदम करीब आ कर बोली, “मोहित, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ न.”

रेनू के कहने के बावजूद मोहित चारपाई पर नहीं बैठा, बल्कि खड़ेखड़े उसे अपलक निहारता रहा. उस के मन में कोई तूफान मचल रहा था. रेनू मादक मुसकान बिखेरती हुई मुड़ी और अंदर वाले कमरे में चली गई. मोहित तब भी अपनी जगह जमा रहा.

रेनू कुछ देर बाद बाहर आई तो मोहित की आंखें फिर उस के चेहरे पर टिक गईं. आखिर रेनू से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, “मोहित, तुम मुझे आज इस तरह से क्यों देख रहे हो?”

“बता दूं?” मोहित ने रेनू की आंखों में झांकते हुए कहा, “भाभी, तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो. तुम्हारी अदाएं मेरे अंदर बेचैनी पैदा कर रही हैं.”

शुरू हो गया देवरभाभी का प्यार

मोहित की बात सुन कर रेनू के मन में भी हलचल मच गई. वह आगे बढ़ी और मोहित का हाथ थाम कर बोली, “सच कहूं मोहित, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. मैं तो तुम्हारे लिए ही सजतीसंवरती हूं. तुम्हारे भैया को तो मेरी कद्र ही नहीं.”

रेनू के इतना कहने पर मोहित मन ही मन खुश हुआ. लेकिन वह वहां रुका नहीं और खेतों की ओर चला गया. रेनू दरवाजे पर खड़ी उसे एकटक देखती रही. मोहित खेतों पर चला तो गया था, लेकिन उस का मन काम में नहीं लग रहा था. वह थोड़ी देर बाद ही लौट आया. उसे देखते ही रेनू से रहा नहीं गया. उस ने आखिर पूछ ही लिया, “क्या बात है, काम में मन नहीं लगा क्या?”

“नहीं भाभी, शरीर तप रहा है.” मोहित ने कहा.

रेनू ने देखा, मोहित का शरीर वाकई पूरी तरह से तप रहा था. उस के हाथ का स्पर्श पाते ही मोहित रेनू से लिपट गया. तब तो रेनू से भी रहा न गया. उस का पूरा शरीर नीचे से ले कर ऊपर तक सनसना उठा. जैसे किसी ने रागिनी छेड़ दी हो और वीणा के सारे तार एक साथ झनझना उठे हों.

रेनू होश खोती जा रही थी. मोहित ने उसे मदहोश होते हुए देखा तो धीरे से उसे अपनी बांहों का सहारा दे कर अपने ऊपर गिरा लिया. अब दोनों का चेहरा आमनेसामने था. सांसें गर्म हो उठीं. मोहित की आंखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे. लग रहा था, जैसे बोतल भर का नशा हो आया हो. रेनू के अधर भी तप रहे थे. मोहित ने अचानक उन तपते होंठों को अपने दांतों के नीचे भींच लिया.

रेनू की सिसकारी फूट पड़ी. मोहित ने इस के बाद उसे और जोर से अपनी बांहों में समेट लिया. उस के हाथ रेनू के नाजुक अंगों पर रेंगने लगे. रेनू का हलक सूखने लगा. उस ने अपना चेहरा उस की चौड़ी छाती में छिपा लिया. तब तो मोहित से रहा नहीं गया. क्षण भर में ही सारे नातेरिश्ते ढह गए. मानमर्यादा टूट गई और दोनों एकदूसरे में समा गए. देवरभाभी के अवैध संबंध इसी तरह चलते रहे.

बृजेश पाल की मिली लाश

28 जनवरी, 2023 की सुबह उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के बिछुआ थाने के गांव नगला पृथ्वी का रहने वाला अनुज पाल अपने सरसों के खेत पर पहुंचा तो वहां खेत में उस ने एक लाश देखी. वह उलटे पैर गांव की ओर भागा और खेत में पड़ी लाश की सूचना गांव वालों को दी. फिर तो जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे गांव में फैल गई. लोग खेत की ओर दौड़ पड़े.

सरसों के खेत में लाश पड़ी होने की खबर जब राजेश पाल के कानों में पड़ी तो उस का माथा ठनका. क्योंकि 2 दिन से उस का छोटा भाई बृजेश पाल गुम था. उस का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था. वह बिछुआ थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा चुका था . राजेश अपने मन में तमाम आशंकाओं का बवंडर लिए नंगे पांव ही खेत की ओर भागा. ख्ेात पर पहुंच कर जब उस ने लाश देखी तो वह फफक पड़ा. वह लाश उस के भाई बृजेश पाल की ही थी.

इसी बीच किसी ने लाश मिलने की सूचना थाना बिछुआ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही एसएचओ अमित सिंह पुलिस बल के साथ नगला पृथ्वी गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी. थाना बिछुआ से नगला पृथ्वी गांव 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में लगभग आधा घंटे का समय लगा.

उस समय गांव के बाहर सरसों के खेत के पास ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटाते अमित सिंह उस स्थान पर पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश युवक की थी. जिस की उम्र यही कोई 30-32 साल थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी. इसलिए लग रहा था कि उस की हत्या किसी ठोस वस्तु से सिर पर प्रहार कर की गई थी. मृतक जींसकमीज व गुलाबी कलर का स्वेटर पहने था. लाश के पास मोबाइल फोन भी पड़ा था. पुलिस ने मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. मौके पर मौजूद राजेश नामक युवक ने पुलिस को बताया कि लाश उस के भाई बृजेश की है.

एसएचओ अमित सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी विनोद कुमार, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ चंद्रकेश सिंह मौकाएवारदात आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक के भाई राजेश तथा मौके पर मौजूद कुछ अन्य लोगों से पूछताछ की.

इसी समय एक महिला एक बूढ़े व्यक्ति के साथ लंबा घूंघट निकाल कर आई और लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उसे धैर्य बंधा कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का नाम रेनू पाल है और लाश उस के पति बृजेश पाल की है. साथ आया बूढ़ा व्यक्ति उस का ससुर बेचेलाल है. बेचेलाल की आंखों से भी आंसू टपक रहे थे. वह लाश को टुकुरटुकुर देख रहा था.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 5

इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, “आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे है?”

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, “लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.”

“नहीं..,” आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, “अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.”

“लेकिन सर, किसी ने भी हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?” आनंद ने पूछा.

“मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?”

“मैं क्या कह सकता हूं?”

“मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?”

“नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.”

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा, “आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?”

“नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पडऩे पर मैं फिर मिलूंगा.”

प्रकाश राय सोच रहे थे कि पूरे सफर के दौरान आनंद और धनंजय ने एकदूसरे से ज्यादा बात क्यों नहीं की? यहां भी वे एकदूसरे से क्यों नहीं मिलते थे?

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद करना प्रकाश राय का तरीका नहीं था. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, “अरे यह…तो.” घंटी बजा कर इन्होंने राजेंद्र सिंह को बुलाया.

“राजेंद्र सिंह, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.” कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं.

राजेंद्र सिंह और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले, “जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा अपने दूसरे केस देखता हूं.”

उत्साहित हो कर राजेंद्र सिंह निकल पड़े उन के आदेशों का पालन करने. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार राजेंद्र सिंह पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का जरूर हाथ है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.”

“ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.” कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. अब प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी.

गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?”

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, “आप…?”

“मैं बैंक मैनेजर हूं.”

“आप इन्हें जानते हैं?”

“हां, यह धनंजय विश्वास हैं.”

“इन का खाता है आप के बैंक में?”

“खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.”

“आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?”

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, “मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.”

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, “यह क्या है मिस्टर विश्वास?”

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

“मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?” प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, “साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.”

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को औफिस में आते ही प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही फिंगरप्रिंट्स मिले थे. किसी तीसरे व्यक्ति की अंगुलियों के निशान थे ही नहीं. इसलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं.

अमीर बनने की चाहत – भाग 4

29 नवंबर को रविवार था. जयकरन को मैच खेलने जरूर आना था. इसी दिन उन्होंने जयकरन का अपहरण करने का फैसला कर लिया. उन्होंने सोच लिया कि जयकरन को वे अपने किड्स स्कूल के क्वार्टर में ही ले जाएंगे. उस दिन किड्स स्कूल भी बंद था, इसलिए जयकरन को उन्होंने वहां रखने की सोची. रोजाना की भांति वे जयकरन से मिले. जयकरन दोपहर में क्रिकेट खेल कर घर जाने लगा तो दीपक ने उसे अपने पास बुलाया, “जयकरन, आओ हमारे साथ. अभी 20 मिनट में वापस आते हैं.”

“कहां जा रहे हो भैया?”

“अभी थोड़ा घूम कर आते हैं. हमें किसी से पैसे लेने हैं. साथ ही घूमना भी हो जाएगा. आज तो वैसे भी संडे है. तुम भी फ्री हो.” संदीप ने बात घुमाते हुए कहा.

जयकरन उन पर भरोसा करता था. वैसे भी वह बच्चा था. आने वाले खतरे से अनजान जयकरन उन के साथ कार में बैठ गया. इत्तफाक से उन्हें किसी ने नहीं देखा. दीपक उसे ले कर सीधे स्कूल के अंदर क्वार्टर पर पहुंचा. कमरे में पहुंचते ही दीपक व संदीप अपनी असलियत पर आ गए.

जयकरन को दहशतजदा करने के लिए उन्होंने उसे पीटना शुरू कर दिया और उसे बता दिया कि पैसे के लिए उन्होंने उस का अपहरण किया है. जयकरन ‘भैया…भैया’ करता रहा, लेकिन उन्होंने डरेसहमे जयकरन के हाथपैर बांध दिए. उस का मोबाइल छीन कर उन्होंने स्विच्ड औफ कर दिया. अनीता घर पहुंची तो यह देख कर उन्होंने विरोध किया.

तब दीपक मां से दुव्र्यवहार पर उतर आया, “इस मामले में बहस मत करो मां, वरना इस के साथ तुम्हें भी गोली मार दूंगा. मैं यह सब करने के लिए मजबूर हूं. बस तुम लोग एक 2 दिन चुपचाप रहो.”

बेटे के इस रवैए से अनीता भी घबरा गई. दीपक ने सब से छोटे भाई आयुष को डरधमका दिया. जयकरन को घर में छोड़ कर दोनों सोसाइटी चले गए. वहां जयकरन की ढूंढ़ मची तो वे भी ङ्क्षचतित हो कर उसे खोजने का ढोंग करने लगे. उधर रात में बिट्टू ने जयकरन को खाना खिलाया. जयकरन का मन तो नहीं था, लेकिन डर की वजह से उस ने खाना खा लिया.

अगली सुबह संदीप व दीपक स्कूल स्थित घर आ गए. दीपक ने जयकरन को धमकाते हुए समझाया, “एकदो दिन में हम तुम्हारी बात तुम्हारे पापा से कराएंगे.”

“ज…ज…जी भैया.” दहशत में आए जयकरन ने डर से हां में हां मिलाई.

“पता है क्या कहोगे?ï” दीपक ने पूछा तो जयकरन ने इनकार में गरदन हिलाई. इस पर दीपक ने उसे समझाया, “तुम कहना कि पापा अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो इन लोगों को 2 करोड़ रुपए दे दो, वरना ये लोग मुझे मार डालेंगे.”

“भैया, जैसा आप कहोगे, मैं वैसा ही कह दूंगा.” जयकरन ने डर कर जवाब दिया.

उस दिन सोमवार था. स्कूल भी खुलना था. जयकरन शोर न मचाए, इस के लिए दीपक ने नाश्ता करा कर उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. यह इंजेक्शन दीपक ने अपने एक दोस्त के माध्यम से 500 रुपए में खरीदा था. पुलिस मोबाइल के जरिए उन्हें पकड़ न सके, इसलिए उन्होंने अपने मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया.

बिट्टू को फिरौती के लिए फोन करने के लिए जयकरन का मोबाइल ले कर 15 किलोमीटर दूर भेजा गया. वहां से 2 करोड़ की फिरौती का फोन कर के वह वापस आ गया. बिट्टू से फोन कराना इसलिए जरूरी था, क्योंकि जयकरन के घर वाले दीपक व संदीप की आवाज पहचानते थे. तीनों ने तय कर लिया था कि उन्होंने फिरौती की रकम की शुरुआत 2 करोड़ से की है तो सौदेबाजी होने पर करोड़ तो मिल ही जाएंगे.

इस से भी ज्यादा खतरनाक योजना उन्होंने यह बनाई कि रकम मिलते ही वे जयकरन की हत्या के बाद लाश को हरिद्वार ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. जयकरन चूंकि उन्हें पहचानता था, इसलिए उसे जिन्दा छोडऩा उन के लिए खतरनाक था. हरिद्वार में दीपक का एक चाचा रहता था. दीपक ने उसे भी फोन कर के इशारों से अपनी बात समझा दी थी.

रकम मिलने तक वह जयकरन को इसलिए जिन्दा रखना चाहते थे, ताकि विश्वास दिलाने के लिए उस के घर वालों से उस की बात कराई जा सके. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि यदि रकम नहीं मिली तो भी जयकरन को मार देंगे. दोनों ही सूरतों में जयकरन का मरना तय था.

उधर फिरौती का फोन पहुंचते ही सोसायटी में पुलिस की गतिविधियां बढ़ गईं. शाम तक उन्होंने मौके की नजाकत परखने का निर्णय लिया. उन्हें दोबारा शाम को फोन करना था, इसलिए इंतजार करने लगे. इन लोगों ने अपनेअपने मोबाइल औफ कर लिए थे. उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस जयकरन का मोबाइल दूसरी जगह इस्तेमाल करने की वजह से धोखा खा कर दिशा भटक जाएगी, लेकिन उन तक नहीं पहुंच पाएगी, यह उन की अपनी सोच थी. शक की बिनाह पर वह शिकंजे में आ गए.

उधर पूछताछ के बाद स्कूल संचालिका व आरोपियों की मां को छोड़ दिया गया. स्कूल में क्या कुछ चल रहा था, रिचा सूद वाकई इस से पूरी तरह अंजान थीं. पुलिस ने अपहरण में प्रयुक्त कार भी बरामद कर ली. अगले दिन यानी 1 दिसंबर को प्राथमिक उपचार के बाद पुलिस ने संदीप को डिस्चार्ज करा लिया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अपने से बड़ी उम्र के युवकों से दोस्ती करने की आदत ही जयकरन को भारी पड़ गई थी. वहीं दीपक, संदीप व बिट्टू ने राह से भटकने के बजाय मेहनत की राह अपना कर जिंदगी को संवारने की कोशिश की होती तो उन का भविष्य चौपट होने से बच जाता.

कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में थे और उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस दीपक के चाचा की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 4

प्रकाश राय स्वयं राजेंद्र सिंह को ले कर चल पड़े. रास्ते में प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह को आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, “जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग तक नहीं मिल रहा है.”

“हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.”

“तुम्हें फोन किस ने किया था?”

“सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम कुछ लोग अलकनंदा गए थे. मैं दाह संस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.”

“आप जरा बुलाएंगे उन्हें?”

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 बैंक कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हेड कैशियर सोलंकी से पूछा, “शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?”

“हां, 40 हजार…”

“खाता किस के नाम था?”

“मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.”

“आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी थी, वह किस रूप में थी?”

“5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दिया था. उन नोटों के नंबर भी हैं मेरे पास.”

प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, “अरे क्या खूब याद आया बिष्ïट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?”

“नहीं,” वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, “वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.”

“अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?”

“निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक में भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था.”

“एक विवाह में शामिल होने के लिए अप्रैल महीने के अंत में गई थीं और 3 मई को ड्यूटी पर आ गई थीं.”

“यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है. अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है. अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.”

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

“पता कहां का है?” मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

“साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?”

“औपरेटर ने बताया है कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.”

इतने में ही राजेंद्र सिंह और मिश्रा वहां आ पहुंचे. राजेंद्र सिंह अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बड़े ही सहज ढंग से पूछा, “मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?”

“हां, है. आप को कुछ…?”

“नहीं, नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. फ्लैट के दरवाजे पर लिखा ‘आनंद गौड़’ नाम वह पहले ही पढ़ चुके थे. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं.

मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, “मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.”

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

“मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?”

“हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.”

“आइए, अंदर आइए.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय बोले, “मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.”

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौङ्क्षपग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे.

आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, “अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?”

“मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?” प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

“हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?”

“आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?”

“हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. अप्रैल के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. 3 मई को आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.”

“लेकिन जानपहचान कैसे हुई?”

“हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.”

“सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?”

“अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को हजरत निजामुद्ïदीन उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिया था.”

“तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?”

“नहीं.”

“रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?”

“नहीं.”

“इस का कारण?” प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

“कारण…?” आनंद गड़बड़ा गया, “एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.”

“रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?” प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

“पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.”

“अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?”

“पिछले शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.”

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. प्रकाश राय थोड़ा सा घबराए हुए थे. एक प्रश्न का उत्तर उन्हें नहीं मिल रहा था.

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 4

एरिन ने 31 दिसंबर, 2013 को थाना सदर में यह शिकायत की थी. पुलिस को लगा कि विदेशी लड़कियां ऐसा करती ही रहती हैं, इसलिए  इस मामले में कोई काररवाई करने के बजाए पतिपत्नी का विवाद मान कर इसे परिवार परामर्श केंद्र में भेज दिया. परिवार परामर्श केंद्र ने दोनों को बुला कर काउंसलिंग कराई. दोनों ने समझने के बजाए एकदूसरे पर आरोप लगाए. एरिन ने कहा, ‘‘बंटी शराब पीता है और जुआ खेलता है. धमकी दे कर पैसे मांगता है. इस ने अपने विवाहित होने और हत्याओं वाली बात छिपा कर उस से शादी की थी.’’

बंटी ने भी आरोप लगाया, ‘‘यह सिगरेट बहुत पीती है. इस के दोस्त आते हैं तो इसी के साथ रुकते हैं. उन के साथ यह आगरा के बाहर भी जाती है और उन्हीं के साथ एक ही कमरे में रुकती है. इस का हजारों रुपए रोज का खर्च है. मैं कहां से इतने पैसे लाऊं.’’ परिवार परामर्श केंद्र बंटी और एरिन का समझौता नहीं करा सका. बंटी को लगा कि अब एरिन को वह अपने बंधन में बांध कर नहीं रख सकता. वह कभी भी उस के बंधन को तोड़ कर आजाद हो सकती है.

एरिन पढ़ीलिखी, व्यवहारकुशल और समझदार लड़की थी. अब तक उस के तमाम दोस्त हो गए थे. तमाम युवक उस के इर्दगिर्द मंडराते रहते थे. बंटी उन के सामने कुछ भी नहीं था. यह सब देख कर बंटी कुढ़ता रहता था.

एरिन बंटी से बहुत परेशान थी. वह जब भी चाहता था, फोन कर के एरिन को अपने कमरे पर बुला लेता था. एरिन खुद भी उसे अपने कमरे पर आने से नहीं रोक पाती थी. बंटी को पता चल ही गया था कि एरिन उतनी पैसे वाली नहीं है, जितनी उसे उम्मीद थी. वेतन भी आना बंद हो गया था. अब उसे लगने लगा कि एरिन से उस के सपने पूरे नहीं होने वाले तो उसे उस से नफरत हो गई.

20 फरवरी की सुबह बंटी ने अपने बेटे भोला को उस की ननिहाल पहुंचा दिया. उस के बाद वह सीधे एरिन के कमरे पर पहुंचा. उसे घुमाने क ेबहाने आटो में बैठा लिया. दोपहर तक उसे घुमाता रहा. उस के बाद टक्कर रोड की पीडब्ल्यूडी कालोनी की जाने वाली सुनसान सड़क पर चाकुओं से उस की हत्या कर लाश वहीं फेंक कर भाग निकला.

20 फरवरी, 2014 को दोपहर पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर राजेंद्र कुमार शर्मा ने थाना सदर पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि टक्कर रोड स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी की ओर जाने वाली सड़क पर एक आदमी आटो से एक विदेशी महिला की लाश फेंक गया है. आटो विभवनगर चौराहे की ओर से आया था और लाश फेंक कर राजपुर चुंगी की ओर चला गया है. उस का नंबर यूपी80एटी 9456 था.

विदेशी महिला का मामला था इसलिए थाना सदर के थानाप्रभारी पूरन सिंह मेहरा ने घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. मारी गई महिला विदेशी थी, इसलिए पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया था.

थोड़ी ही देर में एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी डा. रामसुरेश यादव, आईजी आशुतोष पांडेय, डीआईजी विजय सिंह मीणा भी पहुंच गए. मृतका को चाकू से मारा गया था. घावों से अभी भी खून रिस रहा था. निरीक्षण में पाया गया कि यह लूट का मामला कतई नहीं था. क्योंकि मृतका के शरीर पर सोने की चेन, कुंडल और अंगूठी मौजूद थे. उस का मोबाइल और पर्स भी वहीं पड़ा था.

पुलिस ने जांच के लिए डौग स्क्वायड, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट, फोरेंसिक एक्सपर्ट, फोटोग्राफर आदि बुला लिए थे. निरीक्षण और जांच चल ही रही थी कि एक आटो वाले ने लाश देख कर कहा, ‘‘अरे, यह तो बंटी की पत्नी है.’’

‘‘कौन बंटी?’’ लाश का निरीक्षण कर रहे क्षेत्राधिकारी डा. रामसुरेश यादव ने पूछा.

‘‘साहब, आटो ड्राइवर बंटी. वह अपने आटो से विदेशी सवारियों को घुमाता था.’’

‘‘रहता कहां है वह, तुम ने उस का घर देखा है?’’ डा. रामसुरेश यादव ने पूछा.

‘‘घर तो नहीं देखा, लेकिन इतना पता है कि वह राजपुर चुंगी की ओर किसी कालोनी में कहीं रहता है.’’ आटो चालक ने कहा.

पुलिस घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी कि वायरलैस द्वारा सूचना मिली कि थाना सदर की शहीद नगर चौकी की संजयनगर कालोनी के एक मकान में आग लग गई है, जिस में एक आदमी की मौत हो गई है.

अग्निशमन औफिस को सूचना दे कर पुलिस अधिकारी तुरंत वहां पहुंच गए. फायर ब्रिग्रेड की गाड़ी पहुंचने के पहले लोगों ने पानी डाल कर आग बुझा दी थी. आग इतनी भीषण थी कि कमरे का ज्यादातर सामान जल गया था. कमरे में हुए विस्फोट से दरवाजा और खिड़की निकल कर बाहर आ गई थी.

कमरे का दृश्य बड़ा वीभत्स था. बम डिस्पोजल स्क्वायड भी आ गया था. जिस कमरे में आग लगी थी, वह मकान की पहली मंजिल पर था. कमरे के अंदर का दृश्य देख कर लोगों की रूह कांप उठी. अंदर एक लाश पड़ी थी, जो काफी हद तक जल गई थी.

कमरे से पेट्रोल की गंध आ रही थी. इस का मतलब आग पेट्रोल छिड़क कर लगाई थी. विस्फोट गैस सिलेंडर से हुआ था. पूछताछ में जब पुलिस को पता चला कि मृतक का नाम बंटी था तो तुरंत उसे ध्यान आया कि कहीं यह वही बंटी तो नहीं, जिस की पत्नी की लाश पीडब्ल्यूडी कालोनी की ओर जाने वाली सड़क पर मिली थी.

आगे की पूछताछ में साफ हो गया कि वह लाश उसी बंटी की थी. मकान के नीचे एक आटो भी खड़ा था, जो इसी का था. उसी से वह लाश फेंकी गई थी. लाश उसी आटो से फेंकी गई थी, क्योंकि उस का नंबर यही थी, जो राजेंद्र कुमार शर्मा ने बताया था.

पुलिस को एरिन के कमरे से उस के सारे कागजात मिल गए थे, जिन से पता चला कि मृतका का नाम एरिन था, जो अमेरिका की रहने वाली थी. उस ने मृतक बंटी से शादी भी की थी. पुलिस ने इस घटना की सूचना अमेरिकी दूतावास को दे दी थी, जहां से उस की हत्या की सूचना उस के मांबाप को दे दी गई थी. लेकिन मांबाप ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया था कि अब उन्हें उस से कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वह भारत भी अपनी मरजी से गई थी और शादी भी अपनी मरजी से की थी.

पोस्टमार्टम के बाद बंटी के शव को उस के परिजनों को सौंप दिया गया था, जबकि पुलिस ने एरिन के शव को सुरक्षित रखवा दिया था. नियम के अनुसार इस के लिए पुलिस को 72 घंटे इंतजार करना था. लेकिन जब दूतावास से पता चला कि उस का शव लेने कोई नहीं आ रहा है तो पुलिस ने खुद ही उस का अंतिम संस्कार करवा दिया.

पुलिस ने बंटी के आटो की सीट के नीचे से 2 खून सने चाकू बरामद कर लिए थे. उस के आटो में भी खून लगा था. पुलिस को लगा कि बंटी ने एरिन की हत्या करने के बाद पुलिस के डर से आत्महत्या कर ली होगी. पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था. चूंकि इस मामले में हत्यारे ने आत्महत्या कर ली थी, इसलिए आगे की काररवाई का कोई सवाल ही नहीं था. जांच के बाद पुलिस इस मामले को बंद कर सकती है.

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 3

रमाकांती ने भले ही पति के शक को झूठा करार दिया था, लेकिन उस के मन में यह बात हमेशा घूमती रहती थी. एक दिन रामचंद्र थोड़ा जल्दी घर आ गया. उसे बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि रमाकांती बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ बेटे ने जवाब दिया.

रामचंद्र कमरे पर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उस के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है. उसने दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा सूरज ने खोला. उस समय वह सिर्फ लुंगी पहने था. अचानक रामचंद्र को देख कर उस की घिग्घी बंध गई. रामंचद्र फुर्ती से कमरे में घुसा तो रमाकांती को जिस हालत में देखा, उस का खून खौल उठा.

रमाकांती बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. रामचंद्र ने आगे बढ़ कर चादर खींची तो उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. रामचंद्र उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर तू यह गुल खिला रही है?’’

रंगेहाथों से पकड़े जाने पर रमाकांती और सूरज का चेहरा सफेद पड़ गया. रमाकांती ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए की माफी मांगने लगी, जबकि सूरज मौका देख कर भाग गया. रामचंद्र ने उसे माफ करने के बजाय उस की जम कर पिटाई की. इस के बाद

रमाकांती और सूरज कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब उन से दूरियां बर्दाश्त नहीं हुई तो वे पहले की ही तरह फिर चोरीछिपे मिलने लगे. अब रामचंद्र को पत्नी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए आए दिन दोनों में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

रामचंद्र ने चुपचाप अंबाला के बल्लूपुर में दूसरा कमरा किराए पर ले लिया और परिवार के साथ उसी में रहने चला गया. लेकिन रमाकांती ने अपने आशिक सूरज को अपना वह ठिकाना भी बता दिया था, इसलिए सूरज वहां भी उस से मिलने जाने पहुंचने लगा.

रमाकांती पूरी तरह सूरज के रंग में रंग चुकी थी. वह उसी के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. उसे इस की भी फिक्र नहीं थी कि उस के जाने के बाद उस के बच्चों का क्या होगा? वह अपने इस नाजायज संबंध में डूब कर इस कदर अंधी हो चुकी थी कि उस के अलावा उसे कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

वह सूरज के साथ भागने के चक्कर में रहने लगी. उस के व्यवहार और हरकतों से रामचंद्र को उस के मन की बात का पता चल गया, इसलिए उस ने फैक्ट्री जाना बंद कर दिया. वह हर समय रमाकांती को अपनी नजरों के सामने रखने लगा. जब कई दिन बीत गए और रामचंद्र फैक्ट्री नहीं गया तो एक दिन रमाकांती ने कहा, ‘‘तुम फैक्ट्री जाओ, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. क्यों मेरी वजह से अपनी रोज की दिहाड़ी को लात मार रहे हो?’’

रामचंद्र किसी भी हाल में फैक्ट्री जाने को तैयार नहीं था. रमाकांती भी कम नहीं थी, इसलिए उस ने किसी तरह रामचंद्र को विश्वास में ले कर फैक्ट्री जाने को राजी कर लिया. रामचंद्र फैक्ट्री चला गया तो रमाकांती ने सूरज को उस के जाने की खबर दे दी.

थोड़ी देर में सूरज किसी की मोटरसाइकिल ले कर रमाकांती के कमरे पर पहुंच गया. रमाकांती अपने सामान का बैग ले कर उस की मोटरसाइकिल पर बैठने लगी तो उस के बच्चे उसे घेर कर शोर मचाने लगे, ‘‘सूरज अंकल, हमारी मम्मी को भगा कर ले जा रहे हैं.’’

बच्चों का शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. सूरज और रमाकांती को देख कर ही वे सारा माजरा समझ गए. उन्होंने रमाकांती को मोटरसाइकिल से उतार कर कमरे के अंदर भेज दिया और सूरज को भगा दिया. इस के बाद रामचंद्र को इस बात की सूचना दे दी.

कुछ देर में रामचंद्र आ गया. पड़ोसियों ने उसे समझाया कि वह अपनी पत्नी को ले कर यहां से चला जाए अन्यथा किसी दिन बेमौत मारा जाएगा. इस के बाद रामचंद्र ने सारा सामान पैक किया और रमाकांती तथा बच्चों को ले कर रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां से वह ट्रेन से चंडीगढ़ गया, जहां से वह चंडीगढ़लखनऊ सुपरफास्ट ट्रेन से हरदोई आ गया.

22 अगस्त की सुबह 7 बजे वह हरदोई स्टेशन पर उतरा. वहां से उस ने आटो किया और परिवार के साथ बिलग्राम चुंगी पर पहुंचा. वहां उस ने एक कबाड़ी की दुकान से डेढ़ सौ रुपए का बांका खरीदा, जिसे उस ने अपनी पीठ पर बनियान के नीचे छिपा लिया. उस के ऊपर उस ने अपना बैग टांग लिया, जिस से वह किसी को नजर नहीं आया. वहीं से एक दुकान से उस ने मीठी गटियां खरीदी और बस से अपने गांव हैबतपुर आ गया.

मकान का दरवाजा खोल कर सब अंदर पहुंचे. कुछ देर बाद बच्चे बाहर खेलने चले गए तो रमाकांती घर की साफसफाई करने लगी. उस समय लगभग 12 बज रहे थे. रामचंद्र ने रमाकांती को बुलाया और चारपाई पर बगल में बैठा कर गटियां खाने को दीं. इसी के साथ वह उस से हंसहंस कर बातें करने लगा.

रात भर जागने की वजह से रमाकांती को नींद आ गई. वह चारपाई पर लेट कर सो गई. उस के सोते ही रामचंद्र ने पीठ पर छिपा कर रखा बांका आहिस्ता से निकाला और पूरी ताकत से रमाकांती की गर्दन पर वार कर दिया. एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग हो गया.

रमाकांती को मौत के घाट उतार कर रामचंद्र एक हाथ में रमाकांती का सिर और दूसरे हाथ में रक्तरंजित बांका ले कर थाना बिलग्राम की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस के घर से निकलते वक्त गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो पूरे गांव में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने यह बात चौकीदार कमलेश को बताई तो उस ने इस की सूचना फोन द्वारा थानाकोतवाली बिलग्राम को दे दी.

रामचंद्र 2 किलोमीटर दूर पुंसेड़ा गांव तक ही पहुंचा था कि सीओ बिलग्राम विजय त्रिपाठी वहां पहुंच गए. उन्होंने रामचंद्र से सिर और बांका देने को कहा तो उस ने कहा कि वह दोनों चीजें सिर्फ कोतवाल को ही देगा.

कुछ देर में इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह भी वहां पहुंच गए. रामचंद्र ने रमाकांती का सिर और हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित बांका उन के हवाले कर दिया. इस के बाद रामचंद्र को हिरासत में ले लिया गया.  कोतवाली ला कर रामचंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने रमाकांती की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. इस के बाद चौकीदार कमलेश की ओर से रामचंद्र के खिलाफ उस की पत्नी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

23 अगस्त को रामचंद्र को सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 30 अगस्त को रामचंद्र ने दोपहर 12 बजे के करीब जिला कारागार की अपनी बैरक के बाहर अंगौछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

इस तरह एक औरत की चरित्रहीनता की वजह से एक भरापूरा परिवार बरबाद हो गया. उसी की वजह से बच्चे अनाथों की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

अमीर बनने की चाहत – भाग 3

इंसान की ख्वाहिशें आसमान को छूती हों तो उसे अपनी प्रगति बहुत छोटी नजर आती है. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था. उस के पास अपनी एक सैकेंड हैंड कार थी. इसी दौरान उस की दोस्ती संदीप से हो गई. संदीप मूलरूप से मेरठ जनपद के कस्बा लावड़ का रहने वाला था और गाजियाबाद में किराए पर रहता था. वह एक इंस्टीट्यूट में बच्चों को कोङ्क्षचग देता था. वह भी अमीर बनने के सपने देखता था.

2 इंसानों की सोच यदि समान हों तो उन के ताल्लुकात गहरे होते देर नहीं लगती. दीपक व संदीप की दोस्ती भी वक्त के साथ गहरा गई. दोनों जब भी साथ बैठते, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की बात करते. दीपक अपनी प्लेसमेंट एजेंसी खोलना चाहता था. जबकि संदीप की ख्वाहिश थी कि उस का अपना कोङ्क्षचग सैंटर हो. इन कामों के लिए मोटी रकम चाहिए थी, लेकिन दोनों में से किसी के पास पैसा नहीं था. कमउम्र में ही वे बड़ी महत्वाकांक्षाओं के शिकार थे.

एक दिन दोनों साथ बैठे तो दीपक बोला, “कभी हमारे भी सुनहरे दिन आएंगे क्या?”

“इतना सीरियस क्यों है भाई, यह तो इंसान के अपने हाथ में है.” संदीप ने शांत लहजे में कहा तो दीपक मन मसोसते हुए बोला, “अपने हाथ में होता तो कब का बड़ा आदमी बन जाता. कभीकभी मन करता है कि कोई बड़ा हाथ मार कर एक ही झटके में जिंदगी संवार दूं.”

“अब की है तूने काम की बात. सोचता तो मैं भी यही हूं. तू कहे तो कुछ ऐसा करें, जिस से सारे संकट जड़ से मिट जाएं.”

संदीप ने कहा तो दीपक बोला, “दोनों मिल कर कुछ बड़ा प्लान करते हैं. इस शहर में बड़ेबड़े रईस हैं, वे किस काम आएंगे.”

“वे क्या हमें आ कर पैसा देंगे?” संदीप ने पूछा.

“बिलकुल देंगे, लेने का हुनर आना चाहिए.”

“मतलब?”

“इतना भोला भी मत बन, अरे जब हम किसी के जिगर के टुकड़े को कब्जे में लेंगे, तो वह खुद ही तो आ कर पैसा देगा.”

दीपक का आशय समझते ही संदीप की आंखों में चमक आ गई.

“ठीक है, कुछ ऐसा प्लान करते हैं कि किसी का अपहरण कर के मोटी रकम वसूल कर ली जाए.”

“इस के लिए हमें बहुत सोचना होगा.” संदीप ने कहा.

उस दिन के बाद दोनों का फितरती दिमाग सरपट दौडऩे लगा. अगले कुछ दिनों में ही दोनों ने किसी रईस आदमी के बच्चे का अपहरण करने की योजना बना ली. दोनों इस काम को बेहद चतुराई से करना चाहते थे. वे क्राइम के सीरियलों और ऐसी फिल्मों के शौकीन थे, जिन की पटकथा पुलिस को चौंका देने वाली होती थी. शहर के बारे में उन्हें अच्छी जानकारी थी.

उन दोनों ने अपने शिकार की तलाश के लिए वीवीआईपी सोसाइटी का चुनाव कर लिया. योजना के तहत उन्होंने अगस्त महीने में वहां फ्लैट किराए पर ले लिया. इस दौरान दोनों अपना कामधंधा छोड़ कर भविष्य के सपने बुनने लगे. उन के पास अब आमदनी का कोई जरिया नहीं था. दोनों कमउम्र में ही अंजाम की परवाह किए बिना गलत राह पर चल निकले थे.

संदीप अपने घर से आजाद था, जबकि दीपक अपनी मां के नियंत्रण से बाहर था. सोसायटी में रहते हुए उन्होंने अपने सौफ्ट टारगेट की तलाश शुरू कर दी. वे घूमतेफिरते और मैदान में जा कर बच्चों का क्रिकेट देखते और उन के साथ खुद भी क्रिकेट खेलते. जयकरन को क्रिकेट का जुनून था. पढ़ाई के बाद उस का ज्यादातर वक्त क्रिकेट में ही बीतता था. जयकरन किशोर था, लेकिन वह अपने से बड़ी उम्र के लडक़ों से भी दोस्ती करने का इच्छुक रहता था.

क्रिकेट के मैदान में ही उस की मुलाकात दीपक व संदीप से हुई. इस के बाद उन की अकसर बातेंमुलाकातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में बातोंबातों में दोनों ने जयकरन का फैमिलीग्राउंड जान लिया. उम्र का बड़ा फांसला होने के बावजूद तीनों दोस्त बन गए.

दीपक व संदीप को जयकरन सब से अच्छा शिकार लगा. उन्हें लगा कि उस के पिता शेयर कारोबारी हैं और मां डाक्टर, इसलिए वे मुंहमांगी मोटी रकम दे देंगे. इस बात को दिमाग में रख कर उन्होंने जयकरन से मेलजोल बढ़ाया और बाद में उस के सहारे उस के घर में भी एंट्री कर ली.

अपनी मीठीमीठी बातों और भोलेपन के नाटक से उन्होंने विवेक व अमिता से भी मुलाकात कर ली. कालोनी के अन्य लोगों से भी वे घुलमिल कर रहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन पर किसी को जरा भी शक हो. दरअसल वे अपना काम पूरी प्लानिंग के साथ करना चाहते थे. कुछ इस तरह की पुलिस उन की परछाईं भी न छू सके.

दीपक व संदीप की नजरों में सोसाइटी के यूं तो कई बच्चे थे. लेकिन उन्होंने मन ही मन सोच लिया कि जयकरन को विश्वास में ले कर आसानी से उस का अपहरण किया जा सकता है. दोनों ने विचारविमर्श कर के तय कर लिया कि एक दिन वे जयकरन का अपहरण कर के उस के पिता से फिरौती की मोटी रकम वसूल करेंगे. वे इस बारे में दिनरात सोचते रहते थे.

बड़ा भाई किसी आदर्श की तरह होता है. दीपक को भी मेहनत, लगन और ईमानदारी की ङ्क्षजदगी से अपने छोटे भाइयों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उलटा. उस ने बिट्टू को भी अपनी प्लानिंग बता कर उसे अपने साथ मिला लिया.

इस दौरान उन्होंने एक बदमाश के माध्यम से 3 अवैध पिस्तौलों का इंतजाम भी कर लिया. दीपक ने अपने मोबाइल पर वाट्सएप का एक ग्रुप बना रखा था, जिस में जयकरन व कालोनी के कुछ अन्य किशोर भी शामिल थे. दीपक ने यह सब भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखने के लिए किया था.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 3

निरीक्षण का काम लगभग पूरा हो गया था. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय, हमारे एक्सपर्ट को अंगुलियों के कुछ निशान मिले हैं. वे निशान तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के भी हो सकते हैं. तुम दोनों के निशान छोड़ कर अन्य निशानों की जांच एक्सपर्ट को करनी पड़ेगी. तुम्हारी अंगुलियों के निशान हमें अभी नहीं चाहिए. हमारे सिपाही के आने पर तुम अपनी अंगुलियों के निशान दे देना. रोहिणी के निशान हम पोस्टमार्टम के समय ले लेंगे.”

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते रोहिणी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

प्रकाश राय अपने ही विचारों में खोए थे. ठीक से वह कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए वह चुपचाप सभी की बातें सुन रहे थे. बातचीत के दौरान सहज ही सबइंसपेक्टर दयाशंकर बोले, “एक साल पहले ऐसी ही एक घटना दिल्ली में घटी थी. पर अपराधी को उसी समय पकड़ लिया गया था.”

“जी,” एएसआई राजेंद्र सिंह ने कहा, “उस घटना में एक इमारत में अपराधी घुसा था. डुप्लीकेट चाबी से वह फ्लैट का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था कि पड़ोसी ने उसे देख लिया और वह पकड़ा गया. वह बंगलादेश का रहने वाला था. रफीक नाम था उस का.”

“घर में कौनकौन था?”

“घर की मालकिन और उस के 2 बच्चे.”

“और उस का पति कहां गया था?”

“वह सुबह सब्जी लाने मंडी गया था.”

“सब्जी लाने?” प्रकाश राय आश्चर्य से थोड़ा तेज आवाज में बोले, “और वह रविवार का दिन था क्या?”

“जी सर, रविवार ही था.”

“दयाशंकर, वह आदमी अंदर है या बाहर, पता करो.”

दिल्ली पुलिस से पता चला कि वह बाहर है. उसे 4 महीने की सजा हुई थी. इस समय वह नोएडा में ही रह रहा है और सेक्टर-62 की किसी फैक्ट्री में नौकरी करता है.

प्रकाश राय उत्साहित हो कर बोले, “अरे उसे पकड़ कर लाओ यहां, इस केस में उस का हाथ हो सकता है.”

फिर दयाशंकर की ओर देख कर बोले, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस केस में किसी न किसी ने अपराधी को इनफौर्मेशन दी होगी. रविवार को धनंजय सेक्टर-2 की मार्केट मीटमछली लाने जाता है और रोहिणी घर में अकेली होती है, यह बात जरूर किसी न किसी ने उसे बताई होगी. इन में उस इमारत का नारायण, भास्कर रणधीर, उस की औरत देविका, पेपरवाला, दूधवाला, कोई भी हो सकता है. कोई न कोई उस जैसे लोगों को खबर देता होगा, उस के बारे में पता करो.”

“ठीक है सर, हम पता करते हैं.”

“दयाशंकर, तुम अभी उस की तलाश में लग जाओ. इस केस में अगर उस का हाथ हुआ तो उस के पास बहुत माल है. तुम अपना स्टाफ ले कर निकल पड़ो. उस के हाथ लगते ही मुझे सूचित करो.”

दयाशंकर उसी वक्त सहयोगियों के साथ निकल पड़े. सीओ साहब भी चले गए. इस के बाद प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से कहा, “अगर वह आदमी इस मामले में शामिल हुआ तो कोई बात नहीं. पर वह इस मामले में शायद ही शामिल हो.”

“सर,” राजेंद्र सिंह ने कहा, “आप यह किस उम्मीद पर कह रहे हैं?”

“मान लो, वह सस्पेक्ट है और उस ने ही यह जुर्म किया है तो सवाल यह उठता है कि वह अंदर घुसा कैसे? गेट पर नारायण था. मान लो, नारायण थोड़ी देर को इधरउधर हो गया और वह अंदर हो गया तो भी पांचवें माले पर जा कर लौक खोल कर हत्या करने, अलमारी खोल कर सारा सामान समेटने और नीचे आने में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगा ही होगा. इतनी देर उस का वहां ठहरना संभव ही नहीं था.

दूसरी दृष्टि से विचार करो तो धनंजय जब नीचे आया, तब नारायण मौजूद था. धनंजय सवा 6 बजे नीचे आया था. उस के जाने के तुरंत बाद वह अंदर घुस नहीं सकता था, क्योंकि नारायण वहीं था. मान लो, वह 5-10 मिनट बाद अंदर घुसा और अपना काम किया तो धनंजय और उस का आमनासामना अवश्य होता, क्योंकि धनंजय 7 बजे के लगभग वापस आ गया था. उस वक्त भी नारायण नीचे ही मौजूद था. मगर न उस ने और न सीढ़ी साफ करने गए रणधीर ने उसे देखा. हत्यारा नया है, शातिर होता तो डीवीडी प्लेयर और रोहिणी का कीमती मोबाइल और लैपटौप न छोड़ता.”

इतने में फोन की घंटी बज उठी. प्रकाश राय ने फोन रिसीव किया, “हैलो, हां मैं प्रकाश राय. बोलो, शाबाश. किधर टकरा गया वह तुम से? कुछ मिला? ठीक है, तुम उसे सस्पेक्ट मान कर बंद कर दो. मैं तुम्हें फोन करता हूं बाद में.” प्रकाश राय ने फोन काट दिया. राजेंद्र सिंह ने अंदाजा लगाते हुए कहा, “रफीक को पकड़ लिया शायद?”

“हां,” प्रकाश राय ने शांत स्वर में कहा, “पुलिस ने उसे उस की फैक्ट्री के बाहर से पकड़ लिया है. सोचने वाली बात यह है कि जिस के पास इतने रुपए होंगे, वह नौकरी पर क्यों जाएगा?”

“लेकिन सर,” राजेंद्र सिंह ने अक्ल लगाई, “हत्यारा जो भी हो, वह नारायण के रहते अंदर गया कैसे?”

“2 ही बातें हो सकती हैं. अपराधी पाइप के सहारे छत पर चढ़ कर छिपा रहा हो या फिर अंदर का ही कोई व्यक्ति हो.”

प्रकाश राय ने कुछ सोचते हुए कहा, “कुछ भी हो, हमें नारायण और रणधीर पर नजर रखनी है. ये मुजरिम हो सकते हैं या खबर देने वाले. यह भी एक संभावना है कि हत्या का उद्देश्य चोरी न रहा हो, यानी जेवरात और नकदी उड़ा कर एक बहाना बनाया गया हो. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रोहिणी के गले में सोने का मंगलसूत्र, हाथ में 4 सोने की चूडिय़ां, कानों में झुमके और डे्रसिंग टेबल पर उस की कीमती कलाई घड़ी, कीमती मोबाइल फोन और लैपटौप अपराधी ज्यों का त्यों छोड़ गया था. नारायण या रणधीर ने किसी की मदद से यह कृत्य किया होता तो रोहिणी के शरीर के गहने और घर का सारा सामान चला गया होता. इतनी बड़ी इमारत में रहने वाला भी तो कोई हत्या कर सकता है.”

प्रकाश राय के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र सिंह गंभीर हो गए, क्योंकि ऐसी स्थिति में हत्यारे को अंदरबाहर आनेजाने की जरूरत ही नहीं थी. अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि सिपाही नरेश शर्मा प्रकाश राय के कमरे में घुसा. उसे देख कर प्रकाश राय ने पूछा,

“क्यों नरेश, कोई खास खबर?”

नरेश को प्रकाश राय ने धनंजय के घर में ही रणधीर पर नजर रखने की हिदायत दे दी थी. उसी क्षण से नरेश उस के पीछे लग गया था. दूसरे सिपाही देवनाथ को नारायण के पीछे प्रकाश राय पहले ही लगा चुके थे.

“साहब, खास कुछ भी नहीं है. आप के चले आने के बाद हाथ में एक बर्तन लिए वह बाहर निकला. मैकडोनाल्ड की गली से पीछे जा कर देशी दारू के ठेके पर उस ने एक गिलास चढ़ाई और फिर अपने घर आ कर सोया पड़ा है.”

“तुम खुद ठेके में गए थे?”

“नहीं साहब, मेरी जानपहचान का एक फेरीवाला अंदर गया था. अब भी वह रणधीर के घर पर नजर रखे हुए है. मैं आप को यही खबर देने आया था.”

“नरेश, तुम रणधीर पर कड़ी नजर रखो. मुझे उस पर पूरा शक है. मेरा अनुमान है कि रणधीर और नारायण आज शाम को किसी स्थान पर जरूर मिलेंगे.”

“ठीक है साहब.” कह कर नरेश चला गया. राजेंद्र सिंह को संबोधित करते हुए प्रकाश राय बोले, “आज रात उस बिल्डिंग पर कड़ी नजर रखनी है. अपने 4-5 सिपाही तैयार रखना. नारायण और रणधीर, दोनों साथी हुए तो रणधीर आज रात को सामान ठिकाने लगाने की कोशिश…”

प्रकाश राय अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने रिसीवर उठाया. दूसरी ओर से आवाज आई, “सर, मैं मिश्रा बोल रहा हूं.”

“हां, बोलो मिश्रा, क्या खबर है?”

“साहब, वह व्यापारी अभी तक घर में ही है और उस का औफिस नीचे ही है. उसे जो बिल्डिंग बेचनी है, उस के ग्राउंड फ्लोर पर ही उस का औफिस है.”

मिश्रा ने जिन सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हें प्रकाश राय समझ गए. व्यापारी का मतलब था नारायण, औफिस यानी घर और ग्राउंड फ्लोर औफिस का मतलब था नारायण ग्राउंड फ्लोर पर ही रहता था. मिश्रा की भाषा से ही प्रकाश राय समझ गए कि मिश्रा कई लोगों के सामने से बोल रहा था.

उन्होंने मिश्रा से कहा, “तुम वहीं ठहरो और अपने आदमियों केवहां पहुंचने तक रोके रहो. संभव हुआ तो मैं भी आऊंगा. कोई विशेष बात होने पर मुझे फोन करना.”

इस के बाद वह राजेंद्र सिंह से बोले, “तुम पोस्टमार्टम के बाद रोहिणी का शव विश्वास को जल्दी से जल्दी दिलाने की कोशिश करो.”

“यस सर.” कह कर राजेंद्र सिंह अपने स्टाफ के साथ निकल पड़े. अब प्रकाश राय अकेले थे और नए सिरे से रोहिणी मर्डर केस के बारे में सोचने लगे. एक सूत्र से दूसरा सूत्र जोड़ कर वह अपना जाल बिछाना चाहते थे. उन्होंने अपनी डायरी निकाली. उन्हें अपने कुछ महत्त्वपूर्ण आदमियों को फोन करने थे. वे समाज के जिम्मेदार लोग थे और इन से प्रकाश राय की अच्छी जानपहचान थी.

इन्हें प्रकाश राय ने विशेष मतलब से बुलाया था और एक जरूरी काम सौप दिया था.  इन्हें रोहिणी के दाहसंस्कार के समय शोकसंतप्त चेहरा बना कर लोगों की बातों को चुपचाप सुन कर उस की रिपोर्ट प्रकाश राय को देनी थी. मजे की बात यह थी कि ये लोग एकदूसरे को नहीं जानते थे.

अंतिम निवास विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए, “कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?”

“सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.”

“आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.”

“शनिवार को तो बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?”

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी से भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था.

“विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.”

“आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.”

“वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ.”

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं. यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

प्यार का बदसूरत चेहरा – भाग 3

इन्हीं बातों से एरिन को लगा कि बंटी किसी वजह से परेशान रहता है. एक दिन उस ने उस की परेशानी की वजह पूछी तो बंटी ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से भारत घुमाने का वादा किया था शादी के बाद पूरा भारत घुमाऊंगा. लेकिन तमाम मेहनत के बाद भी पैसे जमा नहीं हो रहे हैं.’’

‘‘तुम्हें पैसों की चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम अपना काम अपने हिसाब से करो. मेरा मन जहां घूमने का होगा, मैं अकेली ही घूम आऊंगी. मेरे पास पैसे हैं.’’ एरिन ने कहा.

इस तरह एक बार बंटी की एरिन से डौलर झटकने की योजना विफल हो गई. बंटी के दोस्तों को पता था कि वह एरिन को बेवकूफ बना रहा है. इसलिए उस के ईर्ष्यालु दोस्त एरिन को उस से सतर्क करना चाहते थे. किसी दिन उस के किसी दोस्त को मौका मिला तो उस ने एरिन को सतर्क करते हुए बता दिया कि बंटी शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी है.  उस की पत्नी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है. उस ने उस से डौलर ऐंठने और उस के साथ विदेश जाने के लिए शादी की है.

इन बातों से एरिन को लगा कि सचमुच बंटी ने अपनी असलियत छिपा विदेश जाने और डौलर हड़पने के लिए उस से शादी की थी. एरिन ने जब इस बारे में बंटी से बात की तो वह बिफर उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हीं कहां दूध की धुली हो. तुम्हारी भी तो पहले शादी हो चुकी है. तुम्हारा भी तो बच्चा है. तुम ने भी तो मुझ से यह बात नहीं बताई.’’

एरिन की समझ में आ गया कि उस ने गलत आदमी से शादी कर ली है. वह इस बारे में कुछ करने की सोच रही थी कि तभी उसे यह भी पता चल गया कि बंटी एक आटो ड्राइवर की भी हत्या कर चुका है. उस ने उस की हत्या विदेशी लड़की से संबंध बनाने के लिए की थी. एरिन ने जब इस बात की शिकायत बंटी से की तो इस बार उस ने नाराज होने के बजाय उसे बांहों में भर कर कहा, ‘‘एरिन, जो हुआ, उसे मैं भूल गया हूं. मैं चाहता हूं कि तुम भी उसे मत याद करो. मैं तुम्हें शाहजहां की ही तरह मोहब्बत करता हूं, इसलिए तुम्हें खो देने के डर से ये बातें नहीं बताई थीं.’’

नाराज एरिन ने खुद को उस की बांहों से आजाद कर के कहा, ‘‘शादी और बेटे वाली तो कोई बात नहीं थी, लेकिन तुम किसी की हत्या भी कर सकते हो, यह बरदाश्त करने वाली बात नहीं है.’’

‘‘अच्छा, पहले तो तुम यह बताओ कि मेरे जाने के बाद तुम किनकिन लोगों से मिलती हो, तुम्हें यह सब कौन बताता है?’’

‘‘मेरा मन, मैं किसी से भी मिलूं तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले. अब यह साफ हो गया है कि तुम धोखेबाज हो, तुम पर विश्वास नहीं किया जा सकता.’’ एरिन गुस्से में बोली.

बंटी को लगा कि एरिन को नाराज करना ठीक नहीं है, क्योंकि अगर वह नाराज हो गई तो उस ने जो सोच कर शादी की है, वह पूरा नहीं होगा. इसलिए नरम पड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘एरिन, मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो गया था, इसलिए यह सब छिपा लिया था.’’

बंटी ने भले ही सफाई दे कर एरिन के मन में आए शक को दूर करना चाहा था, लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रह गई थी. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए, यह सोच कर बंटी एरिन से अमेरिका चलने को कहने लगा. लेकिन एरिन ने साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘मैं भारत में ही रहूंगी, क्योंकि मुझे यहां बहुत शांति मिलती है.’’

दरअसल, एरिन क्लीन आगरा की योजना बना रही थी. इस बारे में वह बार एसोसिएशन आगरा के कुछ सदस्यों से मिल कर बात भी चला रही थी. एरिन के मना करने और उस के काम शुरू करने की योजना के बारे में जान कर बंटी की समझ में आ गया कि अमेरिका जा कर लग्जरी गाडि़यों में घूमने का जो सपना उस ने पाल रखा था, अब वह पूरा होने वाला नहीं है. उसी बीच एरिन ने एनजीओ वाली नौकरी छोड़ दी. बंटी को एक झटका और लगा. वह तनाव में रहने लगा. एरिन अपनी योजना को साकार करने के लिए शहर के अनेक प्रतिष्ठित लोगों से मिल रही थी.

उसे यह सब बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. कहीं एरिन उस के हाथ से निकल न जाए, इसलिए बंटी उस पर प्रतिबंध लगाने लगा. एरिन बगावत पर उतर आई. क्योंकि बंटी ने उसे धोखा दिया था. वह धोखेबाज ही नहीं, कातिल भी था. एरिन लगातार इस बात पर विचार कर रही थी कि उसे क्या करना चाहिए.

परेशान एरिन मन की शांति के लिए घंटों मंदिर में बैठी रहती. वह अकसर देर से घर आती. ऐसे में बंटी जब उस से पूछता कि इतनी देर तक वह कहां रहती है तो एरिन कहती, ‘‘यह बताना जरूरी नहीं है.’’

बंटी उसे भारतीय पत्नी की तरह रखना चाहता था, इसलिए उसे खरीखोटी सुना कर बंदिश में रखने की कोशिश करने लगा. वह उसे धमका कर उस से डौलर ऐंठना चाहता था. लेकिन उस के पास डौलर कहां थे. अब तो उस का खर्च बंटी चलाता था या फिर उस के दोस्त कुछ पैसा भेजते थे. बंटी की हरकतों से तंग आ कर एरिन ने जब कहा कि अब वह उसे छोड़ कर चली जाएगी तो बंटी ने कहा, ‘‘तुम्हें शायद पता नहीं, मेरे हाथों में 3 हत्याओं की लकीरें हैं. 2 हत्याएं मैं कर ही चुका हूं. लगता है, तीसरी हत्या तुम्हारी होनी है.’’

बंटी की इस धमकी से एरिन कांप उठी. वह अपने वकील अश्विनी रावत से मिली और उन से कहा कि वह बंटी से छुटकारा चाहती है. यही नहीं, उस ने बंटी से अलग रहने के लिए राजपुर चुंगी, शम्साबाद रोड पर सतविंदर सिंह के मकान में किराए का कमरा भी ले लिया था. एरिन अलग रहने लगी तो बंटी ने भी उर्खरा रोड पर संजयनगर में अपने रहने के लिए राजू पचौरी के मकान में किराए का कमरा ले लिया. इस तरह दोनों अलगअलग रहने लगे.

एरिन के अलग रहने पर विदेश से जो भी उस के दोस्त आते थे, उस के साथ ही रहते थे. बंटी को यह अच्छा नहीं लगता था. उसे डर था कि कहीं एरिन उसे छोड़ कर अकेली ही अमेरिका न चली जाए. वह अकसर एरिन के कमरे पर जा कर उस से झगड़ा करने लगा. बंटी की हरकतों से परेशान हो कर एरिन थाना सदर के थानाप्रभारी पूरन सिंह मेहता से मिली और उन से शिकायत की कि बंटी उसे परेशान करता है. जान से मारने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगता है. वह पहले भी हत्याएं कर चुका है, इसलिए उसे डर लगता है कि कहीं वह उस की भी हत्या न कर दे.

                                                                                                                                            क्रमशः