तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 3

एक दिन उस की पड़ोस में रहने वाली मुसर्रत का शौहर कोरोना काल में बीमारी से ग्रस्त हो कर चारपाई से लग गया. मुसर्रत ने निशा से अपने शौहर को ठीक करने का उपाय पूछा तो निशा ने गहरी सांस छोड़ते हुए गंभीर स्वर में कहा, “मुसर्रत अब तेरा शौहर ठीक नहीं होगा, तू बेवा हो जाएगी.”

इतना सुनते ही मुसर्रत को लगा कि वह गिर पड़ेगी. उस ने जल्दी से दीवार पकड़ ली और थके कदमों से घर लौट आई. तीसरे दिन ही उस के शौहर की मौत हो गई. निशा की भविष्यवाणी सटीक थी. इस के बाद तो निशा को सब सिद्ध तांत्रिक का दरजा देने लगे.

दूसरी सटीक भविष्यवाणी तो हैरान करने वाली थी. मुसर्रत अपनी बेटी का निकाह करने वाली थी. निशा ने उसे पहले ही चेता दिया, “मुसर्रत, तू बेटी का निकाह मत कर, तेरी बेटी का कुछ ही दिन में तलाक हो जाएगा.”

मुसर्रत ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उस ने बेटी का निकाह कर दिया. ताज्जुब! थोड़े ही दिनों में मुसर्रत की बेटी को उस के शौहर ने तलाक दे दिया और बेटी मायके में आ कर बैठ गई.

निशा की जिंदगी में आया सऊद फैजी

मुसर्रत के लिए निशा द्वारा की गई दोनों भविष्यवाणियां हालांकि दुखदाई थीं, लेकिन वह बिलकुल सही साबित हुई थीं, इसलिए वह निशा की सिद्धि से प्रभावित हो कर उस की मुरीद बन गई. यही नहीं, उस का बेटा साद भी निशा का भक्त बन गया.

निशा खुद को अब बहुत ऊंची तांत्रिक समझने लगी थी. उस पर पैसा बरस रहा था, लेकिन घर में शौहर और बच्चों से वह दूर होती आ रही थी. उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में सऊद फैजी ने कदम रखा. वह पार्षद रह चुका था, उसे 36 साल की निशा की देह में ऐसी कशिश दिखाई दी कि वह उस के घर के चक्कर काटने लगा.

रोजरोज आने से निशा का झुकाव उस की ओर होने लगा. वह सऊद फैजी के प्रेम में उलझ गई. सऊद फैजी जवान था और जोशीला भी था. एक दिन एकांत में उस ने निशा को बाहुपाश में जकड़ लिया. निशा ने कोई विरोध नहीं किया, उस ने अपने आप को सऊद फैजी की बांहों में सौंप दिया.

निशा को पहली बार परपुरुष का सामीप्य और शारीरिक सुख मिला था. सऊद फैजी उस के शौहर शाहिद से ज्यादा दमदार था, इसलिए वह सऊद फैजी की दीवानी हो गई. सऊद फैजी पार्षद रह चुका था, उस की दूर तक पहुंच थी. उस ने बेधडक़ निशा के घर में डेरा डाल दिया. एक प्रकार से निशा उस की बीवी बन गई और सऊद फैजी उस का शौहर.

शाहिद बेग को यह सहन नहीं हुआ. उसे मोहल्ले में बेइज्जती महसूस होने लगी तो उस ने अपना घर छोड़ कर अलग रहने का मन बना लिया. जाते वक्त उस ने निशा से अपने बेटे मेराब और बेटी कोनेन को साथ ले जाने की बात कही तो निशा भडक़ गई, “शाहिद, ये बच्चे मैं ने अपनी कोख में 9 महीने रख कर खून से सींचे हैं. इन पर तुम्हारा उतना अधिकार नहीं है, जितना मेरा है. मैं ये बच्चे तुम्हें हरगिज नहीं दूंगी.”

शाहिद निराश हो कर अपने साले दानिश के पास रहने चला गया. दानिश खान अपनी बहन निशा की करतूतों से अंजान नहीं था. वह जानता था शाहिद नेक और शरीफ इंसान है, उसे शाहिद के साथ निशा की ज्यादतियों पर गुस्सा आया तो उस ने निशा को जा कर खरीखोटी सुनाईं, लेकिन निशा को अब अपनी जिंदगी में किसी का दखल पसंद नहीं था. उस ने भाई दानिश को भी दुत्कार कर भगा दिया. इस के बाद निशा खुल कर सऊद फैजी के साथ रहने लगी.

प्रेमी की खातिर बच्चों को मरवाया

कुछ दिनों बाद निशा को अपने दोनों बच्चे भी काल नजर आने लगे थे. वह शाहिद बेग की निशानी थे. जो अब उस की मौजमस्ती में रुकावट बनने लगे थे. उन के रहते वह खुल कर सऊद की बांहों में नहीं झूल सकती थी. उस ने दोनों बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए एक दिन मुसर्रत से कहा, “मुसर्रत, मुझे ख्वाब में दिखाई दिया है कि खैरनगर में भयंकर तबाही आने वाली है. खैरनगर में लाशों का अंबार लग जाएगा. मैं यहां अमन कायम रखने के लिए अपने बच्चों की कुरबानी देना चाहती हूं.”

“आप अपने बच्चों की कुरबानी देंगी. यह तो बहुत कठोर फैसला है आप का.” मुसर्रत चौंक कर बोली.

“खैरनगर की सलामती मेरे बच्चों से ज्यादा जरूरी है मुसर्रत. तुम्हें मेरा साथ देना होगा, नहीं दोगी तो आने वाले जलजले में तुम्हारा बेटा साद पहले मारा जाएगा.”

“मैं आप का साथ दूंगी,” मुसर्रत घबरा कर जल्दी से बोली, “मेरा बेटा भी साथ देगा. आप सऊद भाईजान को, मेरी देवरानी कोसर और आरिफ को भी इस नेक काम में शामिल करने के लिए मना लें.”

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निशा ने सऊद फैजी, कोसर और आरिफ को इस कुरबानी के लिए तैयार कर लिया और इन जल्लादों ने निशा के सामने ही उस के बेटे मेराब और बेटी कोनेन की हत्या कर दी, जिस का निशा ने कोतवाली में बयान कर के अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. कातिल मां निशा के द्वारा बताए पते पर दबिश दे कर पुलिस ने मुसर्रत, साद, कोसर और आरिफ को गिरफ्तार कर लिया.

सऊद फैजी फरार हो गया था. सीओ अमित राय ने उसे पकडऩे के लिए उस के परिजनों को उठवा कर कोतवाली में बिठा लिया तो मजबूर हो कर सऊद फैजी ने आत्मसमर्पण कर दिया. इन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी लगा कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया.

शाहिद बेग के बेटे का शव रोहटा थाना क्षेत्र के पूठरवास के पास गंगनहर से निकाला गया था, वहीं पर गोताखोरों ने दूसरे दिन कोनेन की तलाश की तो उस का शव भी मिल गया. उसे भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

दोनों बच्चों का पोस्टमार्टम हो गया तो उन के शव उन के पिता शाहिद बेग को सौंप दिए गए. शाहिद बैग ने अपने जिगर के टुकड़ों को सुपुर्दएखाक किया तो वह फूटफूट कर रो रहा था. दानिश खान उस के पीछे खड़ा था. उस की आंखें भीगी हुई थीं और होंठ क्रोध से फडफ़ड़ा रहे थे. वह चाहता था, इन बच्चों की कातिल मां निशा और उस के प्रेमी सऊद को कानून फांसी की सजा दे.

कथा लिखे जाने तक पुलिस शाहिद बेग के उन 3 बच्चों के लापता होने की जांच कर रही थी. पुलिस को संदेह है कि निशा ने उन तीनों की भी हत्या कर दी है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित तथ्यों का नाट्य रूपांतरण है.

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 2

पुलिस निशा को साथ ले कर गंग नहर पहुंच गई. शाहिद और दानिश खान भी साथ में थे. तथाकथित तांत्रिक निशा उन्हें उस स्थान पर ले गई, जहां लाशें फेंकी गई थीं. गंगनहर में गोताखोरों को उतारा गया. काफी तलाश करने के बाद 11 साल के लडक़े मेराब की लाश मिल गई.

लडक़ी कोनेन की लाश काफी ढूंढने पर भी नहीं मिली. शायद वह बह कर कहीं दूर चली गई थी. मेराब की लाश पानी में पड़ी होने के कारण काफी फूल गई थी. आवश्यक काररवाई निपटाने के बाद मेराब की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया.

एसएसपी रोहित सिंह सजवाण ने बच्चों की हत्या करने वाले बाकी हत्यारों को पकडऩे के लिए पुलिस की 2 टीमें बना दीं, इस का नेतृत्व कोतवाली सीओ अमित राय को सौंपा गया. निशा ने मुसर्रत, कौसर, साद, आरिफ और प्रेमी सऊद फैजी के पतेठिकाने बता दिए. उन लोगों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें रवाना कर दी गईं.

निशा के अब्बाअम्मी पहले देहली गेट के पटेल नगर में रहते थे. अब ये लोग हापुड़ चुंगी में स्थित इकबाल नगर में रहने आ गए थे. निशा बचपन से सुंदर थी. उस का रंग दूध में केसर मिले जैसा था, जब उस पर जवानी का उफान चढ़ा तो उस के अंगअंग में निखार आ गया. उस के पुष्ट उभार किसी भी पुरुष के दिल की धडक़नें बढ़ा सकते थे.

हिरणी जैसी आंखें, सुतवा नाक और संतरों की फांक जैसे गुलाबी होंठ मनचलों को रुक कर एक बार उसे जी भर कर देखने को विवश कर देते थे. जब वह खिलखिला कर हंसती थी तो उस के मोतियों जैसे दांतों की पक्तियां चमकने लगती थीं.

2001 में हुआ शाहिद से निकाह

हया और शरम का निशा से कोसों दूर का वास्ता था, वह किसी भी पुरुष से हंसहंस कर बातें करने लगती थी. सामने वाले को लगता था कि यह मछली उस के कांटे में उलझ गई है, जबकि यह उस की भूल ही होती थी. निशा वह चिकनी मछली थी, जो किसी के हाथ नहीं आती है. निशा की बेबाक हरकतों का पता उस के अब्बू को भी था.

निशा की बेलगाम जवानी को एक ठौर चाहिए था, समाज में निशा कहीं उन की नाक न कटवा दे. यही सोच कर उस के अब्बू ने उस के लिए शाहिद बेग को चुन लिया और उस के साथ उस का निकाह कर दिया. निशा को दुलहन के रूप में पा कर शाहिद बेग बहुत खुश हुआ. शाहिद भी हंसमुख प्रवृत्ति का था. वह एक जूता बनाने वाली कंपनी में नौकरी करता था. हसीन बीवी पा कर शाहिद बेग अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाया. उस ने निशा की छोटी से छोटी फरमाइश का पूरा खयाल रखा, शौहर का पूरा प्यार उसे दिया.

शौहर का भरपूर प्यार पा कर निशा पूर्णरूप से उसे समर्पित हो गई. एकएक कर के उस ने शाहिद बेग को 5 बच्चों का बाप बना दिया. परिवार बढ़ा तो घर के खर्चे भी बढ़ गए. अब एक सीमित आय में इतने बड़े परिवार की गुजरबसर नहीं हो सकती थी, इस के लिए शाहिद परेशान रहने लगा. निशा शौहर को परेशान देख कर खुद परेशान हो गई, वह इस परेशानी से निकलने की राह तलाशने लगी.

निशा ने खोली तंत्रमंत्र की दुकान

निशा को याद था कि एक बार उस की अम्मी उसे किसी तांत्रिक के पास ले कर गई थीं. अम्मी के साथ पड़ोस की सायरा चाची थी. सायरा का बेटा हामिद आवारा किस्म का था, वह चोरी, छीनाझपटी आदि काम करता था. कभी पुलिस उसे तलाशती हुई चौखट पर आती थी, कभी कोई पड़ोसी शिकायत ले कर आता था कि हामिद ने उस की बकरी खोल कर कसाई को बेच दी है.

सायरा परेशान थी, बेटे का मोह हर मां को होता है. वह हामिद का दिमाग दुरुस्त करवाने के चक्कर में मेरी अम्मी को ले कर उस पहुंचे हुए तांत्रिक के पास आई थी. तांत्रिक ने सायरा चाची से तंत्रमंत्र करने की एवज में 5 हजार रुपए ठग लिए थे. चूंकि उस तांत्रिक का कोई उपाय हामिद को सही रास्ते पर नहीं ला पाया था. इसलिए यही कहा जाएगा कि उस ने सायरा चाची के 5 हजार रुपए ठग लिए थे.

निशा के दिमाग में यही धंधा जम गया. उस ने अपनी बैठक वाला कमरा तंत्रमंत्र की दुकान चलाने के लिए ठीक कर लिया और आसपास में प्रचार कर आई कि वह किसी भी तरह की भूतप्रेत और चोरी की समस्याओं का तंत्रमंत्र से निदान कर सकती है.

दूसरे दिन आसपास की कुछ महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर उस के पास आईं. निशा ने उन की समस्याएं एकएक कर के सुनीं. झाडफ़ूंक कर के किसी को अभिमंत्रित जल पिलाया, किसी पर छिडक़ाव किया. किसी को चाटने के लिए भभूत दी.

यह सत्य है कि 2-4 पर ऐसी क्रियाएं की जाएं तो उन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता ही है. 4 में से एक खुद को भलाचंगा समझने लगता है. इस का श्रेय निशा को मिलने लगा तो उस के यहां भीड़ बढऩे लगी. वह बहुत कम रुपए ले कर लोगों की समस्या ठीक करने का ढोंग करती. उस की दुकान चल निकली. शाम तक वह हजार-2 हजार रुपए इकट्ïठा कर लेती थी. इस से उस की आर्थिक परेशानी ठीक होती चली गई.

निशा की पूरी कोशिश होती थी कि शाहिद के जाने और आने के बीच ही उस का तंत्रमंत्र का धंधा सिमट जाए, लेकिन उस के तंत्रमंत्र का प्रचार इतना फैल गया था कि कुछ महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर रात 9-10 बजे तक उस का दरवाजा खटखटाने लगीं तो शाहिद को इस से कोफ्त होने लगी. लेकिन घर में पैसा आ रहा था, इसलिए वह मन मार कर चुप लगा गया. निशा अब रात 10 बजे तक बैठक में समस्याएं ले कर आने वाले पीडि़तों से घिरी रहने लगी.

3 बच्चे नहीं मिले आज तक

देखतेदेखते कब 5 साल निकल गए, पता ही नहीं चला. इन सालों में निशा तंत्रमंत्र के काम में इतनी गहराई से डूब गई कि रातदिन उस का दिलोदिमाग तंत्रमंत्र के विषय में ही सोचता रहता. अब निशा ने अपने शौहर शाहिद पर ध्यान देना लगभग बंद कर दिया था. पत्नी की बेरुखी से शाहिद बेग खुद को तन्हा महसूस करने लगा. वह गुमसुम और उदास रहने लगा. काम पर जाना और घर आ कर जो कुछ पका मिलता, खा कर सो जाना ही उस की दिनचर्चा बन गई.

इसी बीच एक ऐसी घटना घट गई, जिस ने शाहिद बेग को पूरी तरह तोड़ कर रख दिया. उस के 3 बच्चे घर के बाहर से गायब हो गए. शाहिद ने अपने साले दानिश खान के साथ उन बच्चों की बहुत तलाश की. पुलिस में रिपोर्ट भी लिखवाई, लेकिन बच्चे नहीं मिले. उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया, किसी की कुछ समझ में नहीं आया.

समय गुजरने लगा. बच्चों के लापता होने का निशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह पहले की तरह पूरे जुनून में डूबी अपनी तंत्र विद्या की दुकान चलाती रही.

                                                                                                                                           क्रमशः

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 1

बात 22 मार्च, 2023 की है. मेरठ शहर के थाना दिल्ली गेट के एसएचओ ऋषिपाल औफिस में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी 2 युवक उन के पास आए. दोनों के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. उन्होंने एसएचओ साहब को सलाम कहा तो ने उन्हें सामने पड़ी कुरसियों पर बैठने का इशारा किया. दोनों बैठ गए. कपड़ों और चेहरों से दोनों मुसलमान दिखाई पड़ रहे थे.

“कहिए, थाने में आप का कैसे आना हुआ?” एसएचओ ऋषिपाल ने पूछा.

“साहब, मेरा नाम शाहिद बेग है.” एक छरहरे बदन का युवक अपना परिचय देते हुए बोला, “मेरे साथ मेरा साला दानिश खान है. मैं आप के पास अपने 2 बच्चों के गुम हो जाने की फरियाद ले कर आया हूं. मुझे शक है कि मेरे दोनों बच्चे कत्ल कर दिए गए हैं.”

कत्ल की बात सुन कर ऋषिपाल चौंक गए, वह कुरसी पर झुकते हुए बोले, “आप को यह शक क्यों और कैसे है कि आप के बच्चों का कत्ल कर दिया गया है?”

“साहब, निशा ने मेरे 3 बच्चों को पहले भी मार डाला था. अब मेरे बेटे मेराब और बेटी कोनेन की भी उस ने हत्या कर दी है.”

“निशा…यह कौन है?”

“मेरी बीवी है साहब, एक नंबर की मक्कार, चालबाज और फरेबी औरत है. ढोंगी तांत्रिक का लबादा ओढ़ कर वह लोगों को बेवकूफ बना रही है, तंत्रमंत्र के नाम पर उस ने अपनी पांचों औलादों की बलि चढ़ा दी है. मेरे बच्चे परसों शाम से गायब हैं…”

मामला काफी संगीन नजर आ रहा था. एसएचओ के चेहरे पर गंभीरता फैल गई. उन्होंने शाहिद बेग के चेहरे को ध्यान से देखा, वह काफी परेशान और दुखी दिखाई पड़ रहा था.

“शाहिद बेग, मुझे सारी बात विस्तार से बताओ.”

“साहब, मेरा निकाह सन 2001 में निशा के साथ हुआ था. वह शुरूशुरू में बहुत नेक और शांत स्वभाव की थी. वह मेरे 5 बच्चों की मां बनी, तब तक सब कुछ सामान्य चलता रहा. बाद में निशा में तेजी से परिवर्तन आ गया. वह खुद को तांत्रिक बताने लगी. उस की बातों में अनेक अनपढ़, गरीब लोग आ गए. मेरे घर पर लोगों का जमावड़ा लगने लगा. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. वह कहती, “मैं तुम्हारे घर की खुशहाली के लिए सिद्धि प्राप्त करने की कोशिश कर रही हूं. तुम देखना कि मैं तुम्हें दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बना दूंगी.

“वह घर में अजीबअजीब तंत्रमंत्र के टोटके करने लगी, उस की हरकतों से परेशान हो कर मैं ने घर छोड़ दिया. मैं बच्चों को साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने बच्चे मेरे हवाले नहीं किए. कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे 3 बच्चे गायब हो गए हैं. मै ने निशा से मिल कर बच्चों की बाबत पूछा तो वह तरहतरह के बहाने बनाने लगी. कभी कहती कि वह पीर बाबा के मुरीद बन कर घर से चले गए, कभी कहती कि अजमेर शरीफ में उस से बिछुड़ गए.

“मैं तब चुप लगा गया. अब उस मक्कार औरत ने मेरा बेटा और बेटी को गायब कर दिया है. मुझे किसी ने बताया है कि निशा ने तांत्रिक शक्ति पाने के लिए मेरे बच्चों की बलि चढ़ा दी है. साहब, आप उस सिरफिरी औरत को कोतवाली ला कर पूछताछ कीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.”

एसएचओ ऋषिपाल ने शाहिद बेग की बातों को गंभीरता से सुना. उन्होंने साथ में आए दानिश खान की तरफ देखा, “दानिश खान, आप को अपने जीजा की बातों में कितनी सच्चाई नजर आती है?”

“यह हकीकत बयां कर रहे हैं साहब. मुझे निशा को अपनी बहन कहते हुए भी शरम आती है. उस ने मेरे मासूम भांजेभांजियों का कत्ल किया है, उसे गिरफ्तार कर के सख्त से सख्त सजा दीजिए.”

“ठीक है. मैं निशा को यहां बुला कर पूछताछ करता हूं. आप अपनी एफआईआर दर्ज करवा दीजिए.” एसएचओ ने बड़ी गंभीरता से इस मामले को लिया. उन्होंने तुरंत निशा को पकड़ कर लाने के लिए एक पुलिस टीम खैर नगर भेज दी. इस की सूचना उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

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दोनों बच्चों की हत्या की

पुलिस टीम निशा को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. जब उसे एसएचओ के सामने लाया गया तो वह जरा भी भयभीत नहीं थी. उस ने साड़ी ब्लाउज पहन रखा था, पूरे शृंगार से सजीधजी हुई थी. वह शान से आ कर उन के सामने तन कर खड़ी हो गई. उस ने एसएचओ के चेहरे पर नजरें जमा कर उपेक्षा से पूछा, “मुझे यहां क्यों बुलाया है कोतवाल साहब, आप जानते नहीं, मैं कौन हूं?”

एसएचओ उस की बेबाकी पर चौंके. वह इतनी बेफिक्री से बातें किस दम पर कर रही है, यह जानना जरूरी था. लेकिन उस से पहले वह उस से उस के बच्चों के विषय में जान लेना जरूरी समझते थे. उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा, “तेरा बेटा मेराब और बेटी कोनेन कहां है?”

“उन दोनों को तो मैं ने खैरनगर की सलामती के लिए कुरबान कर दिया है.” निशा उसी लापरवाही भरे अंदाज में बोली, “जिस प्रकार युद्ध में अमन (शांति) के लिए मोघ्याल राजा राहिब सिद्ध दत्त ने अपने बच्चे का सिर कलम कर दिया था, उसी तर्ज पर मैं ने भी खैरनगर में अमन के लिए अपने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. यदि मैं ऐसा नहीं करती तो पूरा खैरनगर तबाह और बरबाद हो जाता. वहां लाशों के ढेर लग जाते.” वह बोली.

एसएचओ ऋषिपाल ऊपर से नीचे तक हिल गए. एक मां अपने जिगर के टुकड़ों को अपने हाथों से हलाक कर सकती है, वह सपने में भी नहीं सोच सकते थे. यह औरत बड़ी बेशरमी से अपना गुनाह खैरनगर में अमन लाने के नाम पर थोप रही है. या तो यह अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर और मक्कार है. कुछ सोच कर उन्होंने पास में खड़ी महिला सिपाही से कहा, “मुझे लगता है, इस का दिमागी पेच ढीला हो गया है. जरा इस का दिमाग दुरुस्त तो करो.”

महिला सिपाही एसएचओ साहब का इशारा समझ गई. एसएचओ उठ कर बाहर आ गए. वह उस कक्ष में आए, जहां उन्होंने शाहिद बेग और उस के साले दानिश खान को बिठाया हुआ था. वे दोनों अमित राय को देख कर खड़े हो गए.

“आप लोग सही कह रहे थे.” ऋषिपाल गंभीर स्वर में बोले, “निशा तुम्हारे दोनों बच्चों की बलि चढ़ा चुकी है. उस ने बताया है कि खैरनगर को तबाह होने से बचाने के लिए उस ने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. हकीकत उगलवाने के लिए उस से पूछताछ चल रही है.”

शाहिद और दानिश खान बच्चों के कत्ल की पुष्टि हो जाने पर सकते में आ गए. शाहिद फूटफूट कर रोने लगा. एसएचओ ने उस का कंधा थपथपा कर कहा, “निशा की सरकारी खातिरदारी की जा रही है. अभी वह बता देगी कि बच्चे कत्ल किए गए हैं तो उन की लाश कहां हैं.”

10 मिनट बाद वह शाहिद बेग और दानिश खान को साथ ले कर उसी कमरे में आ गए, जहां निशा से पूछताछ की जा रही थी. निशा पूरी तरह टूट गई थी, वह चीखते हुए कह रही थी, “रुक जाइए, मुझे मत मारिए, मैं सब बता दूंगी.”

ऋषिपाल ने महिला कांस्टेबल को हाथ रोकने का इशारा किया और निशा को घूरते हुए पूछा, “बोलो, तुम ने दोनों बच्चों का क्या किया?

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“म… मैं ने उन दोनों को अपनी जिंदगी से दूर करने के लिए अपने प्रेमी सऊद फैजी, आरिफ कोसर, मुसर्रत बेगम और उस के बेटे साद को अमनचैन के नाम पर उकसाया. उन लोगों ने दोनों बच्चों मेराब और कोनेन को पहले रजाईगद्ïदे रखने वाले संदूक में हाथपांव बांध कर बंद कर दिया. 2 घंटे तक बंद रखने के बाद भी उन के प्राण नहीं निकले तो सऊद फैजी ने दोनों को जहर के इंजेक्शन लगा दिए. इस से छोटी कोनेन तो मर गई, मेराब नहीं मरा. तब उस का गला घोंटा गया. वह मर गया तो हम लोगों ने उन की लाशें गंगनहर में फेंक दी.”

“तू मां नहीं, मां के नाम पर कलंक है, तूने मेरे पांचों बच्चों की अंधविश्वास में हत्या की है. तुझे फांसी होनी चाहिए.” शाहिदबेग गुस्से से चीख पड़ा.

गंगनहर में हुई लाशों की तलाश

एसएचओ ने उसे शांत करवा कर बाहर भेज दिया. उन्होंने मां द्वारा अंधविश्वास में 2 बच्चों की हत्या करने की सूचनाएसएसपी रोहित सिंह सजवाण, एसपी (सिटी) पीयूष सिंह और सीओ अमित राय को दे दी तो ये तीनों पुलिस अधिकारी भीथाने पहुंच गए.

                                                                                                                                          क्रमशः

प्यार के लिए दबंगई कहां तक जायज

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के लाइनपार इलाके के रहने वाले महावीर सिंह सैनी के परिवार में उस की पत्नी शारदा के अलावा एक बेटा अंकित और 3 बेटियां थीं. 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर की बेटी पूनम 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी. महावीर राजमिस्त्री था. रोजाना की तरह 10 दिसंबर, 2016 को भी वह अपने काम पर चला गया था. बेटा अंकित ट्यूशन पढ़ने गया था. घर पर शारदा और उस की बेटी पूनम ही थी. सुबह करीब 10 बजे जब शारदा नहाने के लिए बाथरूम में गई तब पूनम घर के काम निपटा रही थी. शारदा को बाथरूम में घुसे 5-10 मिनट ही हुए थे कि उस ने चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुनीं. चीख उस की बेटी पूनम की थी.

चीख सुन कर शारदा घबरा गई. उस ने बड़ी फुरती से कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर निकली तो देखा पूनम आग की लपटों से घिरी थी. उस के शरीर पर आग लगी थी. शोर मचाते हुए वह पूनम के कपड़ों की आग बुझाने में लग गई. उस की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. किसी तरह उन्होंने बुझाई. तब तक पूनम काफी झुलस चुकी थी और बेहोश थी. आननफानन में लोग उसे राजकीय जिला चिकित्सालय ले गए. बेटी के शरीर के कपड़ों में लगी आग बुझाने की कोशिश में शारदा के हाथ भी झुलस गए थे.

अस्पताल से इस मामले की सूचना पुलिस को दे दी गई. कुछ ही देर में थाना मझोला के थानाप्रभारी नवरत्न गौतम पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. खबर मिलने पर पूनम के पिता महावीर भी अस्पताल आ गए. डाक्टरों के इलाज के बाद पूनम होश में आ गई थी. पूनम के बयान लेने जरूरी थे. इसलिए पुलिस ने इलाके के मजिस्ट्रैट को सूचना दे कर अस्पताल बुलवा लिया.

पुलिस और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में पूनम ने बताया कि शिवदत्त ने उस के ऊपर केरोसिन डाल कर आग लगाई थी. उस के साथ उस के पिता महीलाल भी थे. शिवदत्त पूनम के घर के पास चामुंडा वाली गली में रहता था. पता चला कि वह पूनम से एकतरफा प्यार करता था.

थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मामला मुरादाबाद शहर का ही था इसलिए तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे और एएसपी डा. यशवीर सिंह जिला अस्पताल पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने पूनम का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की.

तब तक पूनम की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों ने उसे किसी दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह दी. पूनम के घर वालों ने उसे दिल्ली ले जाने को कहा तो जिला अस्पताल से पूनम को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया.

महावीर की तहरीर पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली. चूंकि पूनम ने शिवदत्त और उस के पिता पर आरोप लगाया था, इसलिए पुलिस ने शिवदत्त के घर दबिश दी पर उस के घर कोई नहीं मिला. पुलिस संभावित जगहों पर उन्हें तलाश करने लगी, पर दोनों बापबेटों में से कोई भी पुलिस के हत्थे नहीं लगा.

उधर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती पूरम की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. उस की हालत बिगड़ती जा रही थी. बर्न विभाग के डाक्टरों की टीम पूनम को बचाने में लगी हुई थी पर उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. आखिर 10 दिसंबर की रात को ही पूनम ने दम तोड़ दिया.

अगले दिन जवान बेटी की हृदयविदारक मौत की खबर जब उस के मोहल्ले वालों को मिली तो पूरे मोहल्ले में जैसे मातम छा गया. आरोपी को अभी तक गिरफ्तार न किए जाने से लोग आक्रोशित थे. कहीं लोगों का गुस्सा भड़क न जाए इसलिए उस इलाके में भारी तादाद में पुलिस तैनात कर दी गई.

रविवार होने की वजह से पूनम की लाश का पोस्टमार्टम सोमवार 12 दिसंबर को हुआ. दोपहर बाद उस की लाश दिल्ली से मुरादाबाद लाई गई. पुलिस मोहल्ले के गणमान्य लोगों से बात कर के माहौल को सामान्य बनाए रही. अंतिम संस्कार के समय भी भारी मात्रा में पुलिस थी.

उधर पुलिस की कई टीमें आरोपियों को तलाशने में जुटी हुई थीं. जांच टीमों पर एसएसपी का भारी दबाव था. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. 12 दिसंबर को पुलिस ने शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरफ्तार होने के बाद लोगों का गुस्सा शांत हुआ.

थाने ला कर एसएसपी और एएसपी के सामने थानाप्रभारी नवरत्न गौतम ने अभियुक्त से पूछताछ की तो पहले तो वह पुलिस को बेवकूफ बनाने की कोशिश करता रहा पर उस का यह झूठ ज्यादा देर तक पुलिस के सामने नहीं टिक सका. उस ने पूनम को जलाने का अपराध स्वीकार कर उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

जिला मुरादाबाद के लाइनपार इलाके में मंडी समिति गेट के सामने की बस्ती में रहने वाला महावीर सिंह अपने राजगीर के काम से परिवार का पालनपोषण कर रहा था. इसी की कमाई से वह 2 बेटियों की शादी कर चुका था. पूनम 9वीं की पढ़ाई के साथ महिलाओं के कपड़े सिलती थी. घर के पास ही उस ने बुटीक खोल रखा था.

उस के घर के पास ही महीलाल का मकान था. महीलाल का बेटा शिवदत्त बदमाश प्रवृत्ति का था. उस की दोस्ती मंडी समिति के पास स्थित बिजलीघर में तैनात कर्मचारियों के साथ थी. उन्हीं की वजह से उसे ट्रांसफार्मर रखने के लिए बनाए जाने वाले चबूतरों का ठेका मिल जाता था.

चूंकि शिवदत्त का पड़ोसी महावीर राजमिस्त्री था, इसलिए उसी के द्वारा वह चबूतरे बनवा देता था. इस से कुछ पैसे शिवदत्त को बच जाते थे. काम की वजह से शिवदत्त का महावीर के घर आनाजाना शुरू हो गया था. महावीर की छोटी बेटी पूनम पर शिवदत्त की नजर पहले से ही थी. जब भी वह घर से निकलती तो वह उसे ताड़ता रहता था. पर पूनम ने उसे लिफ्ट नहीं दी. जब शिवदत्त का पूनम के घर आनाजाना शुरू हो गया तो उस ने पूनम के नजदीक पहुंचने की कोशिश की.

जब वह पूनम को ज्यादा ही परेशान करने लगा तो एक दिन पूनम ने इस की शिकायत अपनी मां से कर दी. इस के बाद शारदा ने यह बात पति को बताई तो महावीर ने शिवदत्त के पिता महीलाल से शिकायत करने के साथ शिवदत्त से बातचीत बंद कर दी. इस के अलावा उस ने अपने घर आने को भी उसे साफ मना कर दिया.

शिवदत्त दबंग था. महावीर द्वारा उस के पिता से शिकायत करने की बात उसे बहुत बुरी लगी. वह पूरी तरह से दादागिरी पर उतर आया और अब पूनम को खुले रूप से धमकी देने लगा कि वह उस से शादी करे नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. महावीर ने फिर से महीलाल से शिकायत की. इस बार महीलाल ने अपने बेटे शिवदत्त का ही पक्ष लिया.

महावीर कोई लड़ाईझगड़ा नहीं करना चाहता था. बात बढ़ाने के बजाय वह चुप हो कर बैठ गया. महावीर के रिश्तेदारों और मोहल्ले के कुछ लोगों ने उस से थाने में शिकायत करने का सुझाव दिया पर बेटी की बदनामी को देखते हुए वह थाने नहीं गया. महावीर के चुप होने के बाद शिवदत्त का हौसला और बढ़ गया. वह पूनम को और ज्यादा तंग करने लगा. इतना ही नहीं, वह कई बार पूनम के घर तमंचा ले कर भी पहुंचा.

हर बार वह उस से शादी करने की धमकी देता. घटना से एक दिन पहले भी वह पूनम के घर गया. तमंचा निकाल कर उस ने धमकी दी कि वह शादी के लिए अभी भी मान जाए वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहे. 10 दिसंबर को शिवदत्त फिर से पूनम के घर जा धमका. उस दिन वह अपने साथ एक केन में केरोसिन भी ले गया था. पूनम उस समय घर में झाड़ू लगा रही थी, तभी उस ने उस पर केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी और वहां से भाग गया.

शिवदत्त से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है. तत्कालीन एसएसपी दिनेशचंद्र दूबे का कहना था कि इस मामले में शिवदत्त के अलावा और कोई दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी कानूनी काररवाई की जाएगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 3

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था. इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था. उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा. नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता. यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे. पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया. पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था. उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया. नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी. कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए. पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई. बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर की सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था. बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

फुटबॉल खिलाड़ी शालिनी की अधूरी प्रेम कहानी – भाग 3

रवि पुलिस को बतातेबताते अतीत के झरोखे में चला गया…

उस ने बताया कि अभी हफ्ता भर पहले की ही बात है. उस ने मुझे फोन कर के कहा कि वह मुझ से वैलेंटाइंस डे पर मिलने प्रयागराज आ रही है.

मैं ने उस से चहकते हुए पूछा, ‘‘सच बताओ रोली (शालिनी को रवि प्यार से रोली कहता था), मजाक मत करो. क्या सच में तुम मुझ से मिलने वैलेंटाइंस डे पर प्रयागराज आओगी? इतने दिनों बाद तुम ने फोन किया है, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि मेरी तुम से बात हो रही है.’’

‘‘अरे बुद्धू, मैं तुम्हारी रोली ही हूं और तुम्हीं से बात कर रही हूं. तुम किसी भूत या चुड़ैल से बात नहीं कर रहे हो. यकीन नहीं आ रहा तो अपने कान में कस कर चिकोटी काट कर देखो पता चल जाएगा.’’ इतना कह कर  शालिनी बात करतेकरते हंसने लगी.

‘‘हांहां, चलो, यकीन हो गया. अच्छा, अब यह बताओ कि गुड़गांव से तुम आ कब रही हो?’’ रवि ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सुनो, मैं 14 फरवरी को प्रयागराज पहुंच जाऊंगी. उस दिन हम दोनों खूब मौजमस्ती और सैरसपाटा करेंगे. उस के बाद मैं वापस दिल्ली चली जाऊंगी.’’ शालिनी ने कहा.

‘‘क्यों, क्या तुम अपने घर नहीं जाओगी?’’

‘‘अरे नहीं बाबा. और यह बात तुम मेरे घर पर पापा या दीदी किसी से भी नहीं बताना क्योंकि मैं ने पापा से पहले ही कह रखा है कि मैं होली पर घर आऊंगी. मुझे इधर छुट्टी नहीं मिल रही है. समझे?’’ शालिनी ने बताया.

‘‘हां, समझा. ठीक है, मुझे तुम्हारे आने का बेसब्री से इंतजार है.’’ रवि बोला.

इस के बाद हम दोनों के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. अंतत: वह घड़ी भी आ गई जब 14 फरवरी की शाम शालिनी प्रयागराज जंक्शन के प्लेटफार्म पर उतरी. उस के आने से पहले ही रवि ने 10 हजार रुपए का मोबाइल बतौर सरप्राइज गिफ्ट खरीद रखा था. वह शालिनी को वैलेंटाइंस डे पर मोबाइल उपहार में देना चाहता था ताकि उस की प्रेमिका का प्यार और ज्यादा बढ़े.

14 फरवरी को तय समय पर शालिनी का प्रेमी रवि ठाकुर स्टेशन पहुंचा. उसे बाइक पर बिठाया और सीधे रेलवे स्टाफ की लोको कालोनी स्थित अपने आवास पर ले आया.

यहां गौरतलब है कि शालिनी धुरिया को 13 फरवरी को ही प्रयागराज आना था लेकिन ट्रेन मिस हो जाने के कारण वह 14 फरवरी को वहां पहुंची थी.

क्या शालिनी के और भी बौयफ्रैंड थे?

बहरहाल, जब रवि उसे ले कर अपने कमरे पर पहुंचा तो उस समय उस के घर वाले टीवी देख रहे थे. शालिनी फ्रैश होने चली गई. जब वह फ्रैश हो रही थी तो रवि ने शक के आधार पर उस का मोबाइल चैक किया. उसे शक था कि उस की प्रेमिका दिल्ली जा कर बदल गई है. उस के कई लोगों के साथ संबंध बन गए होंगे. मोबाइल की गैलरी में फोटो में शालिनी कई लड़कों के साथ स्टाइल में दिखी. फिर क्या था रवि को उस पर गहरा शक हो गया.

शालिनी जब बाथरूम से निकली तो रवि ने उस से पूछा, ‘‘रोली, तू दिल्ली जा कर बहुत बदल गई है. बेवफा है तू. अब तू पहले वाली रोली नहीं रही.’’

‘‘जुबान संभाल कर बात करो रवि, अगर मैं तुम से सच्चा प्यार न करती तो इतनी दूर तुम से मिलने नहीं आती. अपनी औकात में रह कर बात करो. क्या सबूत है तुम्हारे पास जो मुझ पर इतना बड़ा इलजाम लगा रहे हो.’’

‘‘अरे छिनाल, शरम कर जरा. सबूत है तेरा ये मोबाइल. इस में तेरे यारों के साथ खिंचवाई गई फोटो.’’ रवि गुस्से में बोला.

‘‘क्या कहा, छिनाल? तेरी हिम्मत कैसे हुई, यह कहने की?’’

‘‘एक बार नहीं सौ बार कहूंगा मादर…कहीं कहीं.’’ रवि ने उसे गाली दी.

अब शालिनी से सहा नहीं गया. उस ने एक जोरदार थप्पड़ रवि के गाल पर जड़ दिया. रवि तिलमिला उठा. गुस्से में गाली देते हुए बोला, ‘‘तेरी मां की… साली, तेरी इतनी हिम्मत कि मुझे थप्पड़ मारा…’’

शालिनी भी आपे से बाहर थी, ‘‘और नहीं तो क्या तेरी पूजा करूं. तूने मुझे समझ क्या रखा है अपनी रखैल? साले, अपने भाई के टुकड़ों पर पलने वाला मुझ पर इलजाम लगाता है. मैं इतनी बड़ी कंपनी में काम कर रही हूं. मेरा सभी के साथ उठनाबैठना, खानापीना, घूमनाफिरना है तो सब क्या मेरे यार हो गए. मैं पागल हूं जो इतनी दूर तुझ से मिलने यहां आई.’’

‘‘पता नहीं किसकिस को बयाना दे रखा होगा तूने. कौन जाने क्या खेल खेल रही है मेरे साथ फुटबाल की तरह.’’

रवि का इतना कहना था कि शालिनी ने फिर उसे झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया. फिर क्या था दोनों के बीच ठेठ इलाहाबादी बोली में गालीगलौज और मारपीट होने लगी.

‘‘मादर…बहुत हाथ उठने लगे हैं तेरे. तू ऐसे नहीं मानेगी…’’ कह कर रवि ने जोर से शालिनी की गरदन पकड़ ली. शालिनी गरदन छुड़ाने के लिए तड़पने लगी लेकिन अब रवि के ऊपर शैतान सवार हो चुका था. थोड़ी देर में शालिनी के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. गला घोटे जाने से उस की जीभ और आंखें दोनों बाहर आ गई थीं.

रवि ठाकुर को जब होश आया तब तक काफी देर हो चुकी थी. अब उसे लाश ठिकाने लगानी थी. उस ने अकेले ही शालिनी के शव को बोरे में भरा. सूजे और सुतली से बोरे का मुंह सिला और अकेले ही रात के 9 बजे उस की डेडबौडी बाइक पर रख कर पोलो ग्राउंड वाले पुराने कुएं में फेंक आया.

सब कुछ अकेले ही कर डाला उस ने और किसी को पता तक नहीं चला? सेना की गश्ती गाड़ी, क्यूआरटी और हाईकोर्ट पर हमेशा चैकिंग में लगे रहने वाले पुलिस के जवान सभी नदारद रहे उस समय? न शालिनी की लड़ाईझगड़े के दौरान किसी ने चीखें सुनीं? जबकि पीछे वाले कमरे में रवि के घर वाले मौजूद थे. उन्हें भी इस की जरा भी भनक नहीं लगी? सवाल बहुत हैं मगर कोई फायदा नहीं.

इंसपेक्टर वीरेंद्र कुमार यादव ने रवि की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त मोबाइल और आलाकत्ल बरामद कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 2

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया. पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना. मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी. मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है. मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे. तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया. पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया. उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया. बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी. सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया. संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी. कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई. मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

फुटबॉल खिलाड़ी शालिनी की अधूरी प्रेम कहानी – भाग 2

शालिनी ने एलडीसी कालेज से मार्केटिंग का कोर्स किया हुआ था. एक अच्छी फुटबाल खिलाड़ी होने के साथसाथ उसे मार्केटिंग का भी अच्छा अनुभव था. इसलिए उस की नौकरी लगने में कोई परेशानी नहीं हुई. दिल्ली में शालिनी किराए का कमरा ले कर रहती थी.

फरवरी में उस की मकान मालकिन ने हमारे घर फोन कर जब पूछा कि शालिनी प्रयागराज पहुंची कि नहीं तो हम सन्न रह गए. क्योंकि मकान मालकिन ने बताया कि शालिनी 13 फरवरी, 2022 को ही प्रयागराज के लिए रवाना हो गई थी.

पिता ने लिखाई बौयफ्रैंड के खिलाफ रिपोर्ट

जब हम लोगों ने यह सुना तो आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि शालिनी ने कुछ ही दिनों पहले फोन कर के हमें बताया था कि वह अभी नहीं आ पाएगी. अभी उसे छुट्टी नहीं मिल रही है. होली के अवसर पर वह प्रयागराज आएगी. मकान मालकिन के अनुसार उसे अब तक दिल्ली वापस आ जाना चाहिए था. तभी से हम लोग परेशान थे.

इस के बाद उस के मोबाइल पर कई बार काल की, लेकिन हर बार उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. जब शालिनी की मकान मालकिन ने हमें बताया कि वह कह कर निकली थी कि प्रयागराज अपने घर जा रही है और 2-4 दिन में वापस आ जाएगी. तभी किसी अनहोनी की आशंका के मद्देनजर बिना पुलिस को सूचना दिए उस की खोजबीन कर रहे थे.

उस की तलाश में शालिनी का प्रेमी रवि भी साथसाथ रातदिन उन के साथ एक किए हुए था. शालिनी का मोबाइल भी स्विच्ड औफ था, जिस से हमारी परेशानी और भी बढ़ गई थी. पूरा परिवार उस की चिंता कर रहा था और जब वह हमें मिली भी तो लाश के रूप में. इतना कह कर राजेंद्र प्रसाद रोने लगे. राजेंद्र प्रसाद से रवि के खिलाफ तहरीर ले कर पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी.

आगे की काररवाई के लिए सिविल लाइंस थाना पुलिस को कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि शालिनी का प्रेमी जोकि रेलवे स्टाफ क्वार्टर की लोको कालोनी में अपने बड़े भाई के साथ रहता था. उस समय वह थाने में ही मौजूद था. शालिनी के परिवार के साथ उस की खोजबीन का नाटक वह शुरू से ही कर रहा था.

रवि ठाकुर को फौरन पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी. शुरुआत में उस ने पुलिस को काफी बहकाने और भटकाने की कोशिश की लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो उस ने शालिनी धुरिया की हत्या कर के लाश को बोरे में भर कर कुएं में फेंकने से ले कर सभी जुर्म स्वीकार कर लिए.

वैलेंटाइंस डे पर मिलने इतनी दूर से आई शालिनी की हत्या की जो कहानी सामने उभर कर आई, वह इस प्रकार निकली—

शालिनी धुरिया उर्फ रोली और उस का प्रेमी रवि ठाकुर दोनों ही फुटबाल के अच्छे खिलाड़ी थे. शालिनी के कोच अनिल सोनकर ने ‘मनोहर कहानियां’ को बताया कि शालिनी जब महज 6-7 साल की थी, तभी से उस का रुझान फुटबाल की तरफ था. सदर बाजार फुटबाल ग्राउंड में वह फुटबाल की प्रैक्टिस करती थी.

शालिनी एक अच्छी फुटबाल खिलाड़ी थी. गजब का स्टैमिना था उस के अंदर.  बहुत ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी थी वह. तपती दोपहर में भी वह बड़ी ही मेहनत, लगन और ईमानदारी के साथ इतने बड़े फुटबाल मैदान में अकेले दम पर बाउंड्री पर चूने का छिड़काव करती थी.

अपनी मेहनत और लगन से शालिनी धुरिया ने महिला फुटबाल खिलाड़ी के रूप में बेहतरीन खिलाड़ी की छवि बना ली थी. अपनी बेहतरीन परफार्मेंस के चलते स्टेट व नैशनल लेवल पर शालिनी ने सिर्फ उत्तर प्रदेश के जिलों में, बल्कि गोवा, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, समेत विभिन्न राज्यों व जिलों में प्रयागराज जिले का तो नाम रोशन किया ही, साथ ही सदर बाजार फुटबाल एकेडमी का भी परचम फहराया था.

शालिनी ने खेल के साथसाथ अपनी पढ़ाईलिखाई भी जारी रखी थी और गंगापार इलाके से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद पर्ल्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, गुरुग्राम में नवंबर 2021 से जौब करने लगी थी. खेल के दौरान ही शालिनी को रवि ठाकुर नाम के फुटबाल खिलाड़ी से प्यार हो गया था. रवि मूलरूप से बिहार के जिला जहानाबाद के गांव मकदूमपुर का रहने वाला था.

उस के पिता दिनेश सिंह रेलवे में नौकरी करते थे. उन की पोस्टिंग प्रयागराज में ही थी, इसलिए सिविल लाइंस की रेलवे कालोनी में उन्हें क्वार्टर मिला हुआ था. उन्होंने करीब 5-6 साल पहले वीआरएस ले लिया और अपनी जगह अपने बड़े बेटे दिनेश ठाकुर को नौकरी पर लगवा दिया था.

रवि इलाहाबाद स्पोर्टिंग फुटबाल एकेडमी का होनहार खिलाड़ी था. वह स्कूल नैशनल से अंडर 17  के तहत सीनियर स्टेट चैंपियनशिप खिलाड़ी भी रहा है. खेल के साथ वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई भी कर रहा था.

शालिनी और रवि की प्रेम कहानी की शुरुआत लगभग 7-8 साल पहले खेल के दौरान मैदान में हुई थी. दोनों ही फुटबाल के अच्छे खिलाड़ी थे, इसलिए प्रेम परवान चढ़ने में समय नहीं लगा. दोनों के पास एकदूसरे से मिलने का भरपूर समय था. खेल के बहाने रोज मुलाकात स्वाभाविक थी.

इन की प्रेम कहानी के बारे में दोनों के ही परिजन भलीभांति परिचित थे. शालिनी तो रवि के प्यार में ऐसी दीवानी हो गई थी कि उस ने अपने हाथ पर प्रेमी रवि का नाम तक गुदवा लिया था. इस तरह इन का प्यार परवान चढ़ता गया.

लेकिन एक दिन रवि की थोड़ी सी गलतफहमी ने सब कुछ उजाड़ दिया. जब रवि को हिरासत में लिया तो पूछताछ करने पर रवि ने पुलिस को बताया, ‘‘हां सर, मैं ने उस चुड़ैल का गला दबा कर हत्या की है. वह थी ही इसी लायक. मेरी सच्ची मोहब्बत का उस ने गलत फायदा उठाया था बेवफा कहीं की. मोहब्बत तो बेपनाह मैं उस से करता था और उस के मर जाने के बाद भी करता हूं.

‘‘लेकिन क्या करूं उस के बिगड़ैल रवैए और हाईप्रोफाइल लाइफस्टाइल की चाह ने मुझे उस की हत्या करने पर मजबूर कर दिया. हालांकि मैं ऐसा नहीं करना चाहता था लेकिन उस के थप्पड़ से मैं इतना आहत हो गया था कि बरदाश्त नहीं कर पाया. रोक नहीं सका खुद को और…’’

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 1

मुरादाबाद के रहने वाले कुलदीप गुप्ता की पत्नी सुनीता, बेटी इशिता और बेटे दिव्यांशु के लिए खुशी का दिन था. क्योंकि उस दिन यानी 4 जून, 2021 को कुलदीप गुप्ता का जन्मदिन था, इसलिए घर के सभी लोगों ने अपनेअपने तरीके से उन के जन्मदिन पर विश करने की योजना बना ली थी.

पत्नी सुनीता शाम के वक्त इस मौके पर आने वाले मेहमानों की खातिरदारी के इंतजाम में जुटी हुई थी, जबकि बेटी इशिता और बेटा दिव्यांशु सजावट और केक के इंतजाम का जिम्मा उठाए हुए थे. सभी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं और उपहार देने के सरप्राइज एकदूसरे से छिपाए हुए थे.

दिन के ठीक 12 बजे सुनीता के पास पति कुलदीप का अचानक फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि वह घर का सब काम छोड़ कर तुरंत बैंक जाए और 4 लाख रुपए निकाल कर दुकान में मुस्तफा को दे आए. सुनीता अभी इतने पैसे के बारे में पति से कुछ पूछती कि इस से पहले ही कुलदीप ने गंभीरता से कहा कि बहुत ही अर्जेंट है, वह देरी न करे.

मुस्तफा घर से महज 500 मीटर की दूरी पर उन की आटो स्पेयर पार्ट्स हार्डवेयर की दुकान का विश्वस्त सेल्समैन था. सुनीता को पता था कि कारोबार के सिलसिले में पैसे की जरूरत पड़ती रहती थी, फिर भी कैश में इतनी बड़ी रकम ले कर सोच में पड़ गई. फिर भी उस ने पैसे को ले कर अपने दिमाग पर जोर नहीं डाला, क्योंकि अचानक उसे ध्यान आया कि कुलदीप कुछ दिनों से एक सेकेंडहैंड कार खरीदने की बात कर रहे थे. उस ने सोचा शायद उन्होंने उस के लिए पैसे मंगवाए हों.

सुनीता को भी जन्मदिन का गिफ्ट खरीदने के लिए जाना था, तय किया कि वह दोनों काम एक साथ कर लेगी और दोपहर डेढ़-दो बजे तक वापस घर लौट कर बाकी की तैयारियों में लग जाएगी. सुनीता ने पति के कहे अनुसार ठीक साढ़े 12 बजे मुस्तफा को पैसे का थैला पकड़ाया और जाने लगी. मुस्तफा सिर्फ इतना बता पाया कि कोई पैसा लेने आएगा, उसे देने हैं. सुनीता ने कहा, ‘‘ठीक है, पैसे संभाल कर रखना. मैं चलती हूं मुझे बहुत काम है.’’

उस के बाद सुनीता ने पास ही एक शोरूम से कुछ शौपिंग की और घर आ कर बाकी का काम निपटाने में जुट गई. सुनीता के पास दिन में ढाई बजे के करीब कुलदीप का फोन आया. उन्होंने पैसे मिलने जानकारी दी थी. सुनीता ने शाम को जल्द आने के लिए कहा. लेकिन इस का कुलदीप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुनीता से इसे अन्यथा नहीं लिया और अपना अधूरा काम पूरा करने लगी.

शाम के 4 बज गए थे. दिव्यांशु ने अपने पिता को फोन किया, लेकिन फोन बंद था. वह मां से बोला, ‘‘मम्मी, पापा का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘क्यों फोन करना है पापा को?’’ सुनीता बोली.

‘‘4 बज गए हैं. उन को जल्दी आने के लिए बोलना है.’’ दिव्यांशु कहा.

‘‘अरे आ जाएंगे समय पर… मैं मुस्तफा को बोल आई हूं जल्दी घर आने के लिए.’’ सुनीता बोली.

‘‘मगर मम्मी, पापा का फोन बंद क्यों है?’’ दिव्यांशु ने सवाल किया.

‘‘बंद है? अरे नहीं, बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. थोड़ी देर बाद फोन करना.’’ सुनीता बोली.

दिव्यांशु ने मां के कहे अनुसार 10 मिनट बाद पापा को फिर फोन लगाया. अभी भी उन का फोन बंद आ रहा था. उस ने मां को फोन लगाने के लिए कहा. सुनीता ने भी फोन लगाया. उसे भी कोई जवाब नहीं मिल पाया. उस ने 2-3 बार फोन मिलाया मगर फोन नहीं लगा.

उसे अब पति की चिंता होने लगी. वह 4 लाख रुपए को ले कर चिंतित हो गई. अनायास मन में नकारात्मक विचार आ गए. कहीं पैसे के कारण कुलदीप के साथ कुछ हो तो नहीं गया. देरी किए बगैर सुनीता ने फोन न लगने की बात अपने जेठ संजीव गुप्ता और दूसरे रिश्तेदारों को बताई. उन्हें भी चिंता हुई और कुलदीप के हर जानपहचान वाले को फोन लगाया गया. कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

परिवार के लोग परेशान हो गए. जैसेजैसे समय बीतने लगा, वैसेवैसे उन की चिंता और गहरी होने लगी. सभी किसी अनहोनी से आशंकित हो गए. इशिका और दिव्यांशु रोनेबिलखने लगे. घर में खुशी के जन्मदिन की तैयारी का माहौल गमगीन हो गया.

रात के 11 बज गए थे. कुलदीप के बड़े भाई संजीव गुप्ता ने कुलदीप के लापता होने की जानकारी थाना पाकबड़ा के थानाप्रभारी योगेंद्र यादव को दी. सुनीता ने उन्हें दिन भर की सारी बातें बताई कि किस तरह से कुलदीप ने अचानक पैसे मंगवाए और उन के अलावा किसी की भी कुलदीप से फोन पर बात नहीं हो पाई. पैसे की बात सुन कर पुलिस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि लेनदेन के मामले में कुलदीप कहीं फंसा होगा या फिर उस की हत्या हो गई होगी. इस की सूचना थानाप्रभारी योगेंद्र ने अपने उच्चाधिकारियों को दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

अगले दिन पुलिस ने कुलदीप की दुकान के खास कर्मचारी मुस्तफा से पूछताछ शुरू की. मुस्तफा ने बताया कि दुकान खोलने के कुछ समय बाद ही वह किसी के साथ एक मरीज देखने के लिए अस्पताल जाने की बात कहते हुए चले गए थे. उस वक्त साढ़े 9 बजे का समय था. मुस्तफा ने बताया कि जाते समय कुलदीप ने लौटने में देर होने की स्थिति में बाइक को वहीं किनारे लगा कर दुकान की चाबियां घर दे आने को कहा था.

थानाप्रभारी ने मुस्तफा से उस रोज की पूरी जानकारी विस्तार से बताने को कहा. मुस्तफा ने 4 जून, 2021 को दुकान खोले जाने के बाद की सभी जानकारियां इस प्रकार दी—

सुबह के 9 बजे हर दिन की तरह कुलदीप पाकबाड़ा के डींगरपुर चौराहे पर स्थित अपनी आटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंच गए थे. उन्होंने कर्मचारियों को चाबियां दे कर दुकान खोलने को कहा था. उन का अपना मकान करीब आधे किलोमीटर दूरी पर मिलन विहार मोहल्ले में था. उन के भाई संजीव गुप्ता का मकान भी वहां से 500 मीटर की दूरी पर था.

चाबियां सौंपने के बाद कुलदीप ने अपने खास कर्मचारी मुस्तफा को अलग बुला कर बताया कि वह एक परिचित को देखने के लिए अस्पताल जा रहे हैं. इसी के साथ उन्होंने हिदायत भी दी कि उन्हें वहां से लौटने में देर हो सकती है, इसलिए आज दुकान की पूरी जिम्मेदारी उसी के ऊपर रहेगी. कुलदीप गुप्ता ऐसा पहले भी कर चुके थे. इस कारण मुस्तफा ने उस रोज की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

उसी वक्त सड़क के दूसरी ओर बाइक पर एक आदमी आया. वह हेलमेट पहने हुए था. कुलदीप उस की बाइक पर बैठ कर चले गए. यह सब 5-7 मिनट में ही हो गया. दुकान के कर्मचारी अपनेअपने काम में लग गए. सेल्समैन का काम संभालने वाला मुस्तफा काउंटर पर आ गया. इस तरह दुकान की दिनचर्या शुरू हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया