वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 3

भाईबहन के रिश्ते का नहीं रखा लिहाज

डायरेक्टर और लेखक ने मिल कर धर्म की आड़ के सहारे दारा कादरी को हीरो बनाने की नाकाम कोशिश भी की. दारा अपने भाइयों और साथियों के सहारे नया गैंग बना लेता है. वह रंगदारी टैक्स मांगने वाला गिरोह बना कर काम करने लगता है. यह बात पठान गैंग को पता चलती है तो उस की तलाश में निकलते हैं. यह दिखाते हुए भी डायरेक्टर ने यहां फिर एक चूक की है.

दरअसल, पठान का इसी वेब सीरीज में ताकतवर नेटवर्क दिखाया गया लेकिन दारा को पकड़ने में गैंग को एक दिन से ज्यादा का वक्त लग जाता है. यहां डायरेक्टर कहानी के जुड़ाव को बनाए रखने में असफल साबित दिखे. एपिसोड के अंत में इस्माइल कादरी की तरफ फिल्म फिर मोड़ी जाती है.

यहां पठान गिरोह के लोग उस के बेटे को अपराध जगत में उन के खिलाफ खड़ा करने का आरोप लगा कर उसे कोसते हुए दिखाई दिए, जिस के बाद भनभनाया इस्माइल कादरी पत्नी पर गुस्सा उतारता है. वेब सीरीज में मुसलिम समाज के भाईबहन वाले रिश्ते को जाहिलियत दिखाते हुए डायरेक्टर ने काफी बुरी मानसिकता के साथ पेश किया है.

मुसलिम समाज में परदा प्रथा काफी पहले से है. वहां भाईबहन के बीच संवाद गालीगलौज भरा दिखाया गया है. घर पर इस्माइल कादरी और उस की पत्नी के बीच हुई कलह की बात हबीबा अपने भाई दारा कादरी को बता देती है. यह बात सुनने के बाद वह अपने पिता की बेइज्जती का बदला लेने के लिए पठान गैंग को मारने के निकल पड़ता है, जहां पठान गैंग के लोग भी उसे मारने की योजना बना कर बाहर निकल रहे होते हैं. तभी वहां दोनों गिरोहों का आमनासामना दिखाया गया है.

इस सीन में दारा कादरी गैंग के 6 सदस्य दिखाए गए हैं, जो सैंकड़ों शराब की बोतलें पठान गिरोह पर बरसा देते हैं. यह सब कुछ दृश्य पठान गिरोह के अखाड़े में फिल्माया गया है. पठान गिरोह के लोग अखाड़े से भाग जाते हैं. उन के जाने के बाद दारा कादरी अखाड़े को जला देता है. चौथे एपिसोड में रोमांच पैदा कर के दर्शकों को जबरिया पांचवें में जाने के लिए इस्माइल कादरी का सहारा डायरेक्टर ने लिया है.

पांचवें एपिसोड की शुरुआत हाजी मस्तान, पठान और अन्ना की रिहाई से शुरू होती है. यहां पठान का छोटा भाई दारा कादरी के आतंक को बयां कर रहा होता है. तब पठान का बड़ा भाई उसे अभद्र गालीगलौज करते हुए कोसता है. इस के बाद कहानी में इस्माइल कादरी की फिर एंट्री होती है. उस से हाजी मकबूल कहता है कि पठान गिरोह उस के बेटे दारा कादरी को मारना चाहता है.

यदि उसे बचाना है तो समझाए और माफी मांगने के लिए बोले, जिस के बाद पिता के कहने पर बेटा मांडवली के लिए राजी हो जाता है. वह और उस के गुरगे पठान गिरोह के लिए काम करने लग जाते हैं. कहानी को लंबा करने के लिए यहां उन्हें काम करते हुए काफी सीन जबरदस्ती घुसेड़े हैं. इसे देख कर लगता है कि डायरेक्टर के पास कंटेंट शूट की कमी हो गई थी.

अचानक दारा कादरी के भाइयों और पठान गैंग की बेइज्जती से तंग आ कर बदला लेने की योजना बनाते हैं. यह जब सोच रहे होते हैं तब दारा कादरी और अब्दुला बिल्डर से रंगदारी टैक्स मांगने गए होते हैं. इसी दरमियान दारा कादरी का भाई उस कस्टम अधिकारी जिस को गिरोह पैसा देता है उसे न दे कर दूसरे को वह रकम दे देता है. जिस कारण वहां विवाद की स्थिति बनती दिखाई गई है.

दारा अपने भाइयों की गलती छिपाने के लिए पठान गैंग को बताए बिना बिल्डर से वसूली रकम उस कस्टम अधिकारी को दे देता है, जिसे पहले दिया जाना था. इस बात की भनक हाजी मकबूल और पठान को लग जाती है और उसे गद्दार मान कर अब्दुल्ला के हाथों उसे पिटवाया जाता है. यहां डायरेक्टर ने फिर कहानी को जबरिया लंबा करने का प्रयास किया.

पठान गिरोह से अलग हो कर दारा कादरी अपना गैंग चलाने लगता है. इस बात से नाराज हो कर हाजी मकबूल सुपारी दे देता है. उस की हत्या की जिम्मेदारी अब्दुल्ला को दी जाती है. यहां डायरेक्टर एक बार फिर बड़ी चूक करते हैं. अब्दुला को काम सौंपने के बाद उस को मारने की भी सुपारी हाजी मकबूल पठान के भांजों को दे देता है, लेकिन उस का हत्या का इरादा बदल जाता है और उन में गहरी दोस्ती हो जाती है.

अब्दुल्ला और दारा कादरी का गठबंधन होते ही पठान गिरोह की शामत आ जाती है. दोनों के बीच आपसी मुठभेड़ में पठान गिरोह के बहुत सारे गुर्गों के मर्डर हो जाते हैं. हाजी मकबूल के लिए एक प्रैस उस के पक्ष में रिपोर्टिंग करता है, जिस के जरिए वह अपराधी होने के बावजूद उसे गरीबों का मसीहा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

अभद्रता और फूहड़ता को जम कर दिखाया

यहां भी जबरिया कहानी को लंबा खींचने के लिए दारा कादरी के दोस्त की जिंदगी पर फोकस करता है. अभद्रता और फूहड़ शब्दों के साथ दारा कादरी के दोस्त की शादी के वक्त डायलौग डाले गए हैं. उस वक्त दारा कादरी की बहन और दोस्त की पत्नी मौजूद होती है. इस वक्त के फिल्माए गए सारे दृश्य परिवार के साथ आप कभी नहीं देख सकते. इसे देख कर लगता है कि यह डायरेक्शन किसी कम पढ़ेलिखे गंवार ने किया है.

दूसरी तरफ पठान के भांजे आरिफ और नासिर शराब के अहाते में बैठ कर शराब पी रहे होते हैं. उन्हें जिस अखबार के टुकड़े पर चखना दिया जाता है, उस में हाजी मकबूल और दारा कादरी के प्रतिद्वंदी बाजार में आने वाली बात छपी होती है. यह पढ़ने के बाद दोनों दारा कादरी के दोस्त को ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़ते हैं.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि डायरेक्टर ने अपने विचारों को दर्शकों को थोपा है. अमूमन इस पैटर्न को कई फिल्मों में पहले ही आजमाया जा चुका है. दोनों शूटर दारा कादरी के दोस्त के घर पहुंच कर उस के सामने ही उस की बीवी का बलात्कार करते हैं. इस दौरान भी अभद्र और कानों को चुभने वाली अश्लील गालियों की भरमार डायरेक्टर डाल दी हैं. इस से यह जाहिर होता है कि डायरेक्टर शायद इसी माहौल में पलाबढ़ा हे.

कहानी बढ़ाने के लिए अधमरे दोस्त को सागर में ले जा कर फेंकने का सीन दिखाया है. जबकि डायरेक्टर बलात्कार वाली जगह पर ही मर्डर का सीन रख सकते थे. कहानी यहां भी खत्म नहीं होती और फिल्मी स्टाइल में दारा कादरी का दोस्त समंदर से बाहर आता है. यहां डायरेक्टर एपिसोड को विराम दे देता है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 3

स्कूली और कालेज की पढ़ाई दिल्ली में पूरी करने के बाद वह मुंबई आई, फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने की कोशिश करने के सिलसिले में वन बीएचके की दमघोंटू हवा में अकेले रहने लगी, तब उन्हें जो अनुभव मिले, वह फिल्म में जस के तस उतार दिए.

विवाहित रुचिका का कहना है कि महानगर में सफलता और आमदनी के आनंद की विक्षिप्त दौड़ है. इस ने अलगाव जन्म दिया है. वह अपने पति को लेखन के लिए प्रेरणास्रोत बताती है. अपनी पहली फिल्म का निर्देशन करने से पहले रुचिका ने टेलीविजन उद्योग में काम करने का अनुभव प्राप्त किया.

रुचिका का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों की अराजक और रैकेट से भरी जीवनशैली के बारे में लिखने के लिए आकर्षित होती है. निर्देशन की शुरुआत फिल्म “चुटकन की महाभारत’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

वैसे फिल्म निर्माण और उस से जुड़ी पूरी प्रक्रिया उस के लिए अलग थी. उस ने कठिन तरीके से सीखा और पहली फिल्म “आइसलैंड सिटी (हिंदी)’ का विचार 2008-09 के दौरान पूरा हुआ. इस की बदौलत वह 2012 में स्क्रीनराइटर्स लैब, वेनिस और फिल्म बाजार (गोवा) का भी हिस्सा बनी. फिर 2015 में 72वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फेडोरा की विजेता बन गई.

राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा बनाई गई 110 मिनट तक चलने वाले आइसलैंड सिटी में विनय पाठक, ब्रिक लेन फेम तनिष्ठा चैटर्जी और अमृता सुभाष जैसे मंझे हुए कलाकारों की भूमिकाएं थीं. क्राइम थ्रिलर ‘दहाड़’ में रीमा कागती और रुचिका ओबेराय कहानी कहने के बदलते चेहरे और ओटीटी स्पेस में भारतीय मूल के प्रभाव को बेहतरीन तरीके से नहीं दर्शा पाई हैं.

इस बारे में रुचिका ने उन चुनौतियों के बारे में बताया, जिस में कहानी को प्रामाणिक बनाना, प्रामाणिक स्थान ढूंढना, बोली के साथ प्रदर्शन को बेहतर बनाना था. साथ ही यह सुनिश्चित करना भी था कि हम इसे स्क्रीन पर एक कदम आगे ले जा कर लेखन के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

रीमा कागती

डिगबोई, असम की मूल निवासी रीमा कागती फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखिका है. उस ने हिंदी की पहली फिल्म “हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड निर्देशित की थी. उस के बाद नियो-नोयर, तलाश और ऐतिहासिक फिल्म ड्रामा “गोल्ड  (2018) का निर्देशन भी किया. इसी बीच उस ने जोया अख्तर के साथ मिल कर अक्तूबर, 2015 में “टाइगर बेबी फिल्म्स’ नाम की एक फिल्म और वेब स्टूडियो की स्थापना कर ली.

उस ने फरहान अख्तर (दिल चाहता है), (लक्ष्य), आशुतोष गोवारिकर (लगान), हनी ईरानी (अरमान) और मीरा नायर (वैनिटी फेयर) सहित कई प्रमुख निर्देशकों के साथ सहायक निर्देशक के रूप में भी काम किया है. इस से पहले वह एक्सेल एंटरटेनमेंट की सहयोगी रही है. उस की हाल की फिल्म “गोल्ड’ भी है, जो आजादी के बाद भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक के बारे में है.

विजय वर्मा

‘दहाड़’ के सीरियल किलर की भूमिका में जान डालने की कोशिश करने वाले विजय वर्मा के बारे में यह कहना गलत नहीं हागा कि उस ने यहां तक पहुंचने में काफी संघर्ष किया है. इस दौर में मुश्किलों के कई पापड़ बेले. कई बार हार का सामना करना पड़ा, फिर भी अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए हरसंभव कोशिश जारी रखी. …और फिर उस ने “गैंग औफ घोस्ट्स’, “पिंक’ और “मानसून शूटआउट’ जैसी फिल्में कीं.

हालांकि जबरदस्त पहचान “गली बौय’ फिल्म से मिली. “डार्लिंग्स’ के बाद तो वह एक स्टार बन गया. अब स्थिति यह बन गई है कि वह हर फिल्ममेकर की पसंद बन गया है. हाल ही में उस ने करीना कपूर के साथ भी सीरीज की है. उस की खास पहचान वेब सीरीज के लिए भी बन चुकी है. फिल्मों के भी औफर मिल रहे हैं. फिल्म तक पहुंचने की कहानी भी अपने आप में किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है.

ऐक्टिंग के लिए वह घर से भाग गया था. इस कारण उन के पिता हाल तक काफी नाराज थे. उसे ऐक्टर बनने में किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला. पिता चाहते थे कि बेटा बिजनैस में साथ आ जाए. हैदराबाद के रहने वाले विजय वर्मा का न तो कोई फिल्मी कनेक्शन रहा और न ही कोई गौडफादर. वह पिता के साथ बिजनैस नहीं करना चाहते थे.

फिल्मों में प्रवेश के दौर में छोटीमोटी नौकरियां करने लगा. पेट्रोल पंप पर काम किया, पेट्रो कार्ड्स बेचे, सिम कार्ड बेच कर पैसे कमाए. काल सेंटर में नौकरी की. थोड़े पैसे जमा कर इवेंट मैनेजमेंट का कोर्स किया. उस फील्ड में भी काम करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.

ऐक्टिंग के बारे में विजय वर्मा ने बताया कि उसे इस का चस्का तब लग गया था, जब वह दोस्तों के साथ फिल्में देखता था और उन के सींस की ऐक्टिंग किया करता था. ऐक्टिंग का काम तो नहीं मिला, लेकिन हैदराबाद की एक बेकरी के लिए मौडलिंग का काम जरूर मिला. बाद में घर वालों को बताए बगैर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट औफ इंडिया में अप्लाई कर दिया और सिलेक्ट हो गया.

पुणे में रह कर 2 साल की पढ़ाई पूरी की. उस के बाद काम की तलाश में मुंबई चला गया. पहला अभिनय का काम राज निदिमोरु और कृष्णा डीके की लघु फिल्म “शोर’ में मिला, जिसे फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया और उस साल न्यूयार्क में एमआईएएसी समारोह में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार जीता.

सोहम शाह

हिंदी सिनेमा और वेब सीरीज का एक चिरपरिचित नाम सोहम शाह का भी है. वह फिल्म निर्माता और उद्योगपति भी है. उस ने 2009 में फिल्म “बाबर’ के साथ अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की, जिस में उस की भूमिका के लिए 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म “शिप औफ थीसियस’ के साथ चुना गया. इस शुरुआत के बाद शाह ने तलवार (2015) और “सिमरन’ (2017) में “अभिनय’ किया. उन की फिल्म “तुंबाड’ को भारी आलोचनात्मक प्रशंसा मिली.

सोहम शाह श्रीगंगानगर (राजस्थान) का रहने वाला है. अपना रियल एस्टेट का व्यवसाय है. फिल्में बनाने के लिए मुंबई चला आया था. कंटेंट फिल्म बनाने के लिए उस ने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस रीसायकलवाला फिल्म्स शुरू किया है. उस की पहली फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित “शिप औफ थीसियस’ थी. इस फिल्म में उस ने एक सामाजिक रूप से अंजान स्टौक ब्रोकर की भूमिका निभाई थी. उस ने “शिप औफ थीसियस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्माता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था.

इस के बाद उसे मेघना गुलजार की “तलवार’ में एक पुलिस वाले की भूमिका की पेशकश की गई, जो 2008 के नोएडा दोहरे हत्याकांड पर आधारित थी. 2017 में शाह को हंसल मेहता की “सिमरन’ में कंगना रनौत के साथ कास्ट किया गया था. जिस प्रोजेक्ट पर शाह ने 6-7 साल तक काम किया. उस का अब तक का सब से महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “तुंबाड’ रहा है. यह 12 अक्तूबर, 2018 को रिलीज हुआ और इसे आलोचकों और दर्शकों से समान रूप से प्रशंसा मिली.

उस की बहुचर्चित फिल्म “तुंबाड’ है, जिस का दूसरा भाग आने वाला है. इसे शाह खास नयापन लिए कहानी वाली फिल्म बताते हैं.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 2

तारतम्य का दिखा अभाव

पुलिस टीम को देख कर ट्रक ड्राइवर और कादरी का साला भागते हैं. लेकिन कुछ दूर ड्राइवर पुलिस के हत्थे लग जाता है. वहीं कादरी का साला जीजा के घर पहुंच जाता है. वह पुलिस से बचने के लिए जीजा से मदद मांगता है. कादरी उसे फटकारते हुए डांटता है तो कादरी की पत्नी सकीना कादरी को रोकती है. उस के कहने पर इस्माइल कादरी उसे स्टेशन पर ट्रेन में बैठा कर लौट रहा होता है तो उसे 2 कांस्टेबल ऐसा करते हुए देख लेते हैं.

यहां इस पूरे वाकए का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि केके मेनन उन्हीं 2 साथियों में से एक साथी के सामने झूठ बोलने वाले अभिनय को सही तरीके से नहीं निभा सका. यहां भी मेनन से ज्यादा डायरेक्टर की कमजोरी उजागर होती है. क्योंकि मेनन तो परिपक्व कलाकार है और उसे पता भी होता है कि यहां डायरेक्टर की चूक है. लगता है उस की अक्ल खाली हो गई. यहां वेब सीरीज के डायरेक्टर सुजीत सौदागर ने फिर जबरिया सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की है.

दरअसल, कादरी का साला स्पैशल टीम के एक अधिकारी का मर्डर कर चुका होता है, जिस के बाद वह अपने जीजा के पास मदद मांगने जाता है. यह बात डाइरेक्टर तब उजागर करता है, जब टीम का दूसरा साथी पूछताछ के लिए उसे थाने ले कर आता है. फ्लैशबैक में मर्डर करते वक्त साले की शर्ट खून में भीग जाती है.

लेकिन जब वह जीजा के सामने दिखाया गया तो उस की शर्ट से खून गायब होता है. उस के बाद जांच करने वाली टीम खून से सनी शर्ट कादरी के घर से बरामद करती है. कुल मिला कर कहानी यह है कि वेब सीरीज के डायरेक्टर इस पूरे घटनाक्रम में तारतम्य मिलाने में कामयाब नहीं हो सके.

तीसरे एपिसोड की शुरुआत अचानक इमोशनल सीन से डायरेक्टर सुजीत सौदागर करते हैं. दूसरे एपिसोड में शहीद हुए पुलिस अधिकारी की पत्नी की आड़ में जबरिया फिर इमोशनल सीन क्रिएट किया गया. वह विधवा महिला कादरी को तमाचा मारती है. इस के बाद इस्माइल कादरी को सदमे में जाता हुआ दिखाया गया. जबकि वेब सीरीज वास्तविकता के आधार पर होती है.

इसी एपिसोड में केंद्रीय गृहमंत्री बने कर्मवीर चौधरी अपने अफसर से पठान दस्ते को बंद करने के लिए बोलते हैं. केंद्रीय गृहमंत्री के पूरे वेब सीरीज में कुछ गिनेचुने सीन ही हैं. इस के अलावा हाजी मकबूल के जरिए फिर इस्माइल कादरी को लालच देने वाला सीन दिखाया गया. जबकि वह तो अपने ही विभाग की अंदरूनी जांच में बुरी तरह से फंस चुका था.

इस्माइल कादरी सस्पेंड होने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम की तलाश में पहुंचता है. यहां उसे सिक्योरिटी गार्ड का काम मिल जाता है. अगले दिन जब वह कास्ट्यूम पहन कर पहुंचता है तो सुपरवाइजर नौकरी पर रखने से इंकार कर देता है. इस एपिसोड के एक हिस्से में भी डायरेक्टर की विफलता साफ दिखती है.

इस्माइल कादरी और उस का परिवार गरीबी से जूझ रहा होता है तभी ईद के मौके पर कुरबानी के लिए बकरा न खरीद पाने की वजह से कादरी का बेटा दोस्तों और भाइयों के साथ मिल कर बकरा चुरा लेते हैं, जिस के बाद बकरे का मालिक उन का पीछा करता है. लेकिन वह उसे पकड़ नहीं पाता है. बकरे के साइज और बच्चे के कद में अंतर देख कर दर्शक भी हंसेंगे. इस्माइल कादरी को कंफर्म हो जाता है कि बकरा चुराने में दारा कादरी की यह शरारत है तो वह बीच में खड़ा कर के उसे पुलिस बेल्ट से पीटने लगता है.

यहां हम यह बात इसलिए छेड़ रहे हैं क्योंकि इस्माइल कादरी वेब सीरीज में सस्पेंड हो चुका होता है. फिर पुलिस की बेल्ट कहां से आई. अपनी थोड़ी सी भी अक्ल लगा कर डायरेक्टर को यह छोटीछोटी जानकारियां जुटा लेनी चाहिए थीं. इतना ही नहीं, जब बच्चे को मार रहे होते हैं तो उस के चेहरे पर दर्द और पीड़ा का भाव डायरेक्टर पैदा ही नहीं कर सका. मार खाने के बावजूद बच्चे को पिता के साथ बहस करते हुए दिखाया गया.

हाजी मकबूल ईदी के जरिए इस्माइल कादरी के घर तोहफे भेजता है, जिसे वह तो नहीं स्वीकारता है, लेकिन पत्नी बच्चों की खुशी के लिए उसे राजी कर लेती है. फिर फिल्म में डायरेक्टर की तरफ से बेसिर पैर का नया रोमांच पैदा किया जाता है.

दूसरे एपिसोड में भगाया गया साला यहां सामने आ जाता है. उसे कब और कहां से पकड़ा गया, डायरेक्टर यह बताने में कामयाब नहीं हुआ. उस साले का मर्डर पठान के गुर्गे कर देते हैं. उस से पहले हाजी मकबूल शर्त रखता है कि उस के साथ मिल कर काम करना होगा.

चौथा एपिसोड भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद देश में बने हालात की तरफ मुड़ने लगता है. यहां इमरजेंसी की घोषणा को मुद्दा बना कर कहानी एक बार फिर गैंगस्टर पठान हाजी मकबूल और अन्ना पर घुमाई जाती है. उन्हें जेल में डालने वाला सीन दर्शकों के सामने परोसा जाता है.

यह दिखाते वक्त वेब सीरीज डायरेक्टर की मानसिक परिपक्वता की कमी उजागर होती है. तीनों गैंगस्टरों को जब जेल में डालने के लिए औफिसर अरेस्ट करने आता है तो उन के गुर्गों को छोड़ने का सीन दिखाया गया है. जबकि इमरजेंसी हालात को देखते हुए पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने वाले शिव पंडित जो वेब सीरीज बनी, उस में वे मलिक बने हुए हैं. उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकते थे.

लेकिन वेब सीरीज में डायरेक्टर ने उसे अपने विवेक के अनुसार काल्पनिक बना दिया. फिर कुछ ही देर बाद इस्माइल कादरी के तीनों बेटों की एंट्री होती है. अब उन्हें नौजवान दिखाया गया है. उन्हें लोगों को बेवकूफ बना कर चोरी करना और टोपी घुमाने वाला दिखाया जाता है.

कहानी को एक नया ट्विस्ट देने के लिए बेहूदा और बदतमीज डायरेक्टर ने इस में कुछ गंदे और भद्दे डायलौग का भी इस्तेमाल किया जाता है. राडो घड़ी बेचने की वारदात को डायरेक्टर ने बेहद हलके तरीके से फिल्माया है. घड़ी के बदले में दारा के गुर्गें ग्राहकों को अपनी बातों में फंसा लेते हैं. इसी दरमियान उस में पत्थर रख देते हैं. इसी तरह के सीन 4 से 5 बार आप को दिखने को मिलेगी.

डायरेक्टर ने दूसरी बड़ी तकनीकी चूक यह भी की है कि सारे सीन एक ही जगह पर फिल्माए गए हैं. जबकि ऐसा बारबार होने पर वह गली पूरी तरह से बदनाम हो जानी चाहिए थी. इस के बाद दारा कादरी से एक मौलाना कहता है कि मसजिद को चंदा देने के लिए वह कोशिश करे. जिस के लिए वह तैयार हो जाता है और दारा कादरी मसजिद की मरम्मत के नाम पर चंदा वसूली करता हुआ दिखाया जाता है.

इस में गालीगलौज के साथ उस की ऐक्टिविटी आगे दिखाई जाती है. यहां से दारा कादरी के दहशत के सफर की शुरुआत दिखाई गई है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 2

शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, ‘दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

इस सीरियल किलर की कहानी में कई ड्रामा हैं. इसी के तहत दहेज, लड़कियों पर शादी का दबाव बनाता परिवार, उसे बोझ साबित करते लोगों पर सटीक प्रहार हैं. ये सब साइड में हैं, जो आप को समझ आएगा, लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, यह खोजतेखोजते आप को 8 एपिसोड यानी साढ़े 7 घंटे का इंतजार करना होगा, जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. डायरेक्टर ने यहां पका दिया है.

8 के बजाए अगर 6 एपिसोड में इस कहानी को कसा जाता तो ये सीरीज और भी पैनी हो सकती थी. राजस्थानी पृष्ठभूमि में रची इस कहानी में कलाकारों द्वारा स्थानीय भाषा की पकड़ दिखाई नहीं दी. उन की भाषा हरियाणवी सी लगने लगती है. कलाकारों की भाषा बारबार खटकती है.

ढंग से नहीं दहाड़ सकीं सोनाक्षी

पूरी सीरीज में सब से बारीक काम विजय वर्मा ने किया है. दरअसल, डायरेक्टर ने सीरीज में गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा जैसे कलाकारों को उस स्तर पर जा कर इस्तेमाल ही नहीं किया गया है, जहां वह कुछ नया या कमाल कर पाएं. गुलशन देवैया सीरीज में बस अंजलि भाटी के मोहपाश में बंधा उस की थ्योरीज सुनता रहता है.

अंजलि, जिस के साथ बारबार जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है, पर खुद अपने थाने में अपने सीनियर देवीलाल सिंह पर चिल्ला पड़ती है. पारगी को तो वह नाम से बुलाती है. कहानी के ये सारे पहलू इसे काफी कमजोर बनाते हैं. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करिअर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उस का कोई भी नया अंदाज या पहलू परदे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’ उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.

निर्देशक रीमा कागती के साथसाथ जोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर है. जहां जोया अख्तर को ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और गली बौय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

चूंकि ‘दहाड़’ बौलीवुड वेब सीरीज है तो इस में प्रोपेगैंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. ‘दहाड़’ जब शुरू होती है तो आप को पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा कितनी घटिया हो सकती है.

अंजलि भाटी बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पांव नहीं छूती, क्योंकि वह कहती है कि उस के बाप ने ऐसा करने से मना किया है. उसे एक दलित थानेदार के किरदार में दिखाया गया है, जिसे विभाग में ही नहीं, हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

एक दलित एसआई, जो बिना हेलमेट बुलेट दौड़ाती फिरती है. वह हेलमेट नहीं पहनने का गलत संदेश देती दिख रही है. अंजलि की ऐक्टिंग इस में एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ी टाइप की है. सीरीज में ठाकुरों की एक लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिंदू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं. हिंदू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है.

यह वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है. इस में यह बताने की कोशिश की गई है कि लव जिहाद कुछ होता ही नहीं है. मुसलिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियां स्वेच्छा से पड़ती हैं. सब से बड़ा प्रोपेगैंडा है कि हिंदू कार्यकताओं और हिंदू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना.

जाति का किया है अपमान

इस में दिखाया गया है कि एक हिंदूवादी विधायक और उस के कार्यकर्ता जहांतहां उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुसलिमों के खिलाफ हिंसा करते हैं और पुलिस के काम में बाधा डालते हैं. वेब सीरीज में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं. यह आदमी दरजनों लड़कियों को फंसा कर उन के साथ बलात्कार करता है और उन की हत्या कर देता है. जानबूझ कर बारबार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है, जो डायरेक्टर की ओछी मानसिकता को जाहिर करता है.

विलेन का पिता अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) पुलिस थानेदार को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वह उसे नीची जाति का समझता है. फिर वह संविधान के डायलौग मारती हुई रेड मारने के लिए उस के घर में घुस जाती है.

क्या आप ने वास्तविक जिंदगी में कहीं ऐसा होते हुए देखा है? फिल्म का जो सब से अच्छा किरदार दिखाया गया है वो एक मुसलिम होता है. अंजलि किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उस के पास ही जाती है, उस ने उसे पढ़ाया होता है. इस तरह जहां विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुसलिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है. इस में कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए. इस में यही किया गया है.

वेब सीरीज में अंजलि को पूजापाठ करने से दूर भागते दिखाया गया है. क्या यह भी अपमानजनक नहीं है? इस वेब सीरीज में लड़के लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है. इस से लगता है कि शायद डायरेक्टर को भी ऐसे रिश्ते में रहना पसंद होगा. इस से समाज में गलत संदेश जाता है.

इस की कहानी स्लो है, जिस से पूरी सीरीज काफी सुस्त दिखती है. स्क्रिप्ट के चलते कहानी बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ती है, जिस से थ्रिलर और सस्पेंस का फील ही कई बार खत्म हो जाता है. वहीं सीरीज को एडिटिंग टेबल पर और वक्त मिलना चाहिए था, जिस से एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी.

सीरीज में बैंकग्राउंड म्यूजिक पर भी और मेहनत हो सकती थी. ‘दहाड़’ देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि निर्देशक रीमा का जादू इस में दिखा ही नहीं है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ‘दहाड़’ को हरगिज नहीं देखना चाहिए. इसे तब देखा जा सकता है, जब आप के पास कोई और कंटेंट देखने का आप्शन नहीं है.

रुचिका ओबेराय

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़ाई करने वाली रुचिका ओबेराय की पहचान ‘लस्ट स्टोरी’ और ‘आइलैंड सिटी’ से बन चुकी है. इन में रुचिका ने महानगरीय शहर को परदे पर बेहतर ढंग से उतारा. रुचिका ओबेराय के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ थी.

वह भले ही अभी तक एक घरेलू नाम नहीं हैं, लेकिन रुचिका ओबेराय बौलीवुड की सब से रोमांचक प्रतिभाओं में से एक है. उस की पहली और एकमात्र फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ को बौलीवुड फिल्म कहना इस का विस्तार होगा.

उस के बाद उस ने नेटफ्लिक्स की ‘लस्ट स्टोरीज’ को लिखा, जो जोया अख्तर द्वारा निर्देशित की गई थी. यह फिल्म गरिमा और शालीनता से भरपूर थी. नील भूपालम और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस लघु फिल्म में मौन रहते हुए अपने भीतर के संघर्ष से निपटाने की कहानी को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म के कथानक में अपने महानगरीय जीवन के अनुभव को समेटने की असफल कोशिश की गई है. उस ने बताया कि कैसे शहर अपनी असमानताओं में क्रूर है?

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 1

कलाकार: केके मेनन, सौरभ सचदेवा, नवाब शाह, विवान भटेना, कर्मवीर चौधरी, शिव पंडित, जितिन गुलाटी, सुमित व्यास, आदित्य रावल, कन्नन अरुणाचलम, निवेदिता भट्टाचार्य, अमाया दस्तूर, अविनाश तिवारी, कृतिका कामरा, जयसिंह राजपूत, सुनील पलवल, चैतन्य चोपड़ा, दिनेश प्रभाकर, लक्ष्य कोचर, चेष्टा भगत, तान्या खान झा, समारा खान, प्रिंसी सुधाकरन, गरिमा जैन

डायलौग: अब्बास दलाल और हुसैन दलाल

निर्देशक: शुजात सौदागर

निर्माता: कासिम जगमिगया, रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर

अभिनय के लिए जिस तरह केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई.

दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं. यहां भी मेनन से ज्यादा डायरेक्टर की कमजोरी उजागर होती है. यहां डायरेक्टर की चूक है. लगता है उस की अक्ल खाली हो गई. यहां वेब सीरीज के डायरेक्टर सुजात सौदागर ने फिर जबरिया सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की है. कुल मिला कर कहानी यह है कि वेब सीरीज के डायरेक्टर इस पूरे घटनाक्रम में तारतम्य मिलाने में कामयाब नहीं हो सके. इस एपिसोड के एक हिस्से में भी डायरेक्टर की विफलता साफ दिखती है.

बंबई मेरी जान’ की कहानी फौजी पत्रकार एस. हुसैन जैदी की 2012 में प्रकाशित हुई किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ के जरिए बनाई गई है. इसी किताब पर संजय गुप्ता ने भी फिल्म बनाई थी. जिस का नाम ‘शूटआउट ऐट वडाला’ था. यह किताब दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित है, जो देश की आजादी से 2012 तक मुंबई के कुख्यात गैंगस्टरों पर लिखी गई है.

‘बंबई मेरी जान’ वेब सीरीज में डायलौग अब्बास दलाल और हुसैन दलाल ने दिए हैं. जैदी के बाद मुंबई के माफियाओं को हीरो बनाने के लिए कई किताबें बाजार में आ चुकी हैं. इन्हीं किताबों के अंश पर संजय लीला भंसाली ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से ले कर कई अन्य डायरेक्टर फिल्म बना कर जबरिया माफियाओं को नेताओं और अफसरों के कारिंदे बता चुके हैं.

वेब सीरीज के पहले एपिसोड की शुरुआत दारा कादरी से होती है. उस की पूरी फैमिली भारत छोड़ कर दुबई भागने की तैयारी में होती है, जहांं उस का पिता इस्माइल कादरी जाने से साफ इंकार कर देता है तो दारा और उस की पूरी फैमिली उस पर दुबई चलने के लिए दबाव बनाने लगती है.

तब इस्माइल कादरी गन निकाल कर दारा पर तान देता है. फिर बाद में उन्हें डराने के लिए वह गन अपनी कनपटी पर लगा लेता है. वह दारा को सलाह देता है कि तुम यहां से चले जाओ वरना अपने पीछे एक और लाश छोड़ कर जाओगे.

इस के बाद वेब सीरीज की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. जहां पर इस्माइल कादरी को एक शादी समारोह में अपने दोस्तों के साथ दिखाया जाता है. इस्माइल कादरी की बीवी प्रेग्नेंट है, जो अपनी सहेलियों से बात कर रही होती है. यहीं बताया जाता है कि इस्माइल कादरी पुलिस वाला है.

शादी फंक्शन के दौरान एक कौमेडीनुमा और भद्दा सीन दिखाया जाता है. जहां केके मेनन यानी इस्माइल कादरी के तीनों बच्चे वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान लोगों पर बाथरूम करते हैं. ऐसा करते हुए एक बच्ची देख लेती है जो वेब सीरीज में आगे जा कर दारा कादरी की माशूका दिखाई जाती है. उस का नाम परी पटेल है. वेब सीरीज में परी पटेल का किरदार अमायरा दस्तूर ने निभाया है.

वेब सीरीज आगे बढ़ती है. शादी के दौरान ही हाजी मकबूल और अजीम पठान दोनों की एंट्री होती है. हाजी मकबूल की भूमिका सौरभ सचदेवा ने निभाई है. वहीं अजीम पठान का किरदार नवाब शाह ने निभाया है.

फिर वौइस ओवर में दोनों के बारे में जानकारी दी जाती है. इस से साफ है कि डायरेक्टर सुजीत सौदागर को अहसास हो गया था कि फिल्म काफी लंबी होने वाली है. हाजी मकबूल और अजीम पठान मुंबई में कुली का काम करता था.

उसी दौरान वह बहुत सारी चीजों की स्मगलिंग करने लगा. स्मगलिंग के दौरान ही वह कुछ सामान चोरी करने लगता है. धीरेधीरे कर के चुराए हुए पैसों से वह हज पर भी जाता है. यह बात डायरेक्टर ने बाकायदा वौइस ओवर के जरिए बताई है.

वेब सीरीज पहले ही एपिसोड से दर्शकों को बोर करने न लगे, इसलिए डायरेक्टर ने जगहजगह वौइस ओवर की मदद ली है. यह आवाज केके मेनन की है. आवाज के बीच मेनन यानी इस्माइल कादरी जो पुलिस अधिकारी बना है. वह हाजी मकबूल के इशारों पर अजीम पठान के सुपारी किलिंग के बाद ऐक्शन में दिखाया है.

जिस तरह के अभिनय के लिए केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. अगर आप मेनन के लिए सीरीज देखने के इच्छुक हैं तो निराशा हाथ लग सकती है. यहां डायरेक्टर का प्रभाव उस के अभिनय पर हावी दिखाई दिया.

डायरेक्टर ने पात्रों के साथ नहीं किया न्याय

अच्छे कलाकार की प्रतिभा के अनुरूप वेब सीरीज में उस से काम नहीं लिया गया. पुलिस की दमदार पर्सनैल्टी में खरा भी नहीं दिखा. क्लब पर दबिश देते वक्त उस का गेटअप पुलिस के बजाय टपोरी जैसा दिखाया गया है. पुलिस वरदी के 2 बटन खोल कर कौन अधिकारी अपने ही ओहदे के सीनियर अफसर को पकड़ता है. इसे देख कर लगता है कि डायरेक्टर ने या तो कोई नशा कर रखा होगा या उस का दिमाग पगला गया.

पहले एपिसोड में वेब सीरीज के कलाकारों की एंट्री एकएक कर के दिखाई गई है. डायरेक्टर किसी भी पात्र के साथ पहले एपिसोड में न्याय करते हुए दिखाई नहीं दिया. इस कारण वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला.

यह बात साबित करने के लिए पहले एपिसोड का केंद्रीय गृहमंत्री और राज्य के एक अधिकारी के बीच हुई बातचीत से पता चल जाती है. इसी बातचीत के बाद एक स्पैशल दस्ता बनता है, जिसे बंबई क्राइम क्लीन करने का टारगेट मिलता है. इस का प्रभारी इस्माइल कादरी को बनाया जाता है और टीम को पठान स्क्वायड कोड वर्ड दिया जाता है. यहां डायरेक्टर कास्टिंग चूक में चूकते हुए दिखाई दे जाता है.

दरअसल, इस्माइल कादरी के साथ टीम में दिखाए गए 2 अन्य अफसर पुलिस की आभा से दूर दिखे. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई. यहां एक मोटा सेठ गरीब दिखने वाले व्यक्ति को पीट रहा होता है. उस की जेब से सेठ का बटुआ निकलता है.

उसे पीटते वक्त ही इस्माइल कादरी के तीनों नाबालिग बच्चे वहां पहुंच जाते हैं. बीचबचाव करते हुए उसे पीटने से रोकने का काम बच्चे करते हैं. यह दृश्य हटने के बाद पता चलता है कि पिट रहा व्यक्ति इस्माइल कादरी का साला है.

वह भांजों की मदद से बच तो जाता है, लेकिन मोटा सेठ से छूटने के बाद पता चलता है कि पर्स से नकदी वह पहले ही निकाल चुका होता है. अगले सीन में इस्माइल कादरी उसे डपट कर घर से भगाते हुए दिखाया गया.

एपिसोड का महत्त्वपूर्ण किरदार अब्दुल्ला बताया गया है. यह भूमिका विवान भतेना ने निभाई है. इस सीरीज में यही एकमात्र कलाकार है, जिस का योगदान कुछ खास दिखा. यूपी का रहने वाला अब्दुला पठान के अखाड़े में कुश्ती करता था. उसे पछाड़ने वाला पठान के गैंग में कोई नहीं था. जिस कारण ईर्ष्या के चलते दोनों पठान भाई उसे अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. लेकिन, हाजी मकबूल इस हुनर का काफी दीवाना दिखाया गया.

एपिसोड में एक जैसे दिखने वाले 3 सीन पुलिस रेड के दिखाए गए हैं, जिस में दर्शकों को कुछ भी नया नहीं मिलेगा. आखिरी रेड में जब सफलता हाथ लगती है, तब तक दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं.

दूसरे एपिसोड की शुरुआत हाजी मकबूल से होती है. रेड के बाद इस्माइल कादरी के घर आ कर उसे वह लालच दे कर साथ देने के लिए बोलता है, लेकिन हाजी मकबूल को शैतान बोल कर उसे अपमानित करने लगता है. अपनी कहानी सुना कर वह अपने साथ मिल कर काम करने के लिए उकसाता है, लेकिन हाजी मकबूल की बातों का असर उस पर नहीं होता. वह उसे घर से निकाल देता है.

जब वह बाहर जा रहा होता है, तब कादरी के तीनों बच्चे आ जाते हैं, जो हाजी मकबूल के ड्राइवर से बहस करते हैं. यह बेतुका सीन डायरेक्टर ने जबरदस्ती क्रिएट किया है. दूसरे एपिसोड में डायरेक्टर द्वारा इस्माइल कादरी के साले के जरिए उस के ईमानदार होने की फिर एक बार जबरिया पटकथा लिखी जाती है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 1

डायरेक्टर: रूचिका ओबेराय, रीमा कागती

लेखक: रीमा कागती

स्क्रीन राइटर: रितेश शाह, मानसी जैन, सुनयना कुमारी, करण शाह, चैतन्य चोपड़ा, सुमित अरोड़ा

प्रोड्यूसर: फरहान अख्तर, रीमा कागती, जोया अख्तर, रितेश सिंघवानी

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, विजय वर्मा, गुलशन देवैया, सोहम शाह

दहाड़ वेब सीरीज की कहानी राजस्थान के मंडावा में लगातार हो रही हत्याओं के इर्दगिर्द रही है. अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) इन हत्याओं की जांच करती हैं. इस में सब से अनोखी बात यह है कि कातिल हत्याओं को सार्वजनिक शौचालय में अंजाम देता है. शुरुआत में ऐसा लगता है कि घटना आत्महत्या है, लेकिन एक के बाद एक मिल रही लाशें इसे सीरियल किलिंग का सबूत देती हैं.

‘दहाड़’ वेब सीरीज एक सच्ची कहानी है. फिल्म में विजय वर्मा का किरदार आनंद स्वर्णकार ने निभाया है, जो एक महिला कालेज में प्रोफेसर है. वह वास्तविक जीवन में सीरियल किलर मोहन कुमार से प्रेरित है, जिसे साइनाइड मोहन के नाम से भी जाना जाता है. साइनाइड मोहन पर 2003 से 2009 तक कर्नाटक में 20 महिलाओं की हत्या का आरोप है.

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘दहाड़’ में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा अंजलि भाटी एक दरोगा बनी है. केस है उस के पास एक लापता लड़की के मामले की जांच का. कहानी में आगे पता चलता है कि आसपास के तमाम जिलों की दरजनों लड़कियां लापता हैं.

सीरीज में विजय वर्मा विलेन के किरदार में है. इस सीरीज की कहानी एक असल घटना पर आधारित है. और विजय वर्मा ने जिस अपराधी का किरदार निभाया है, वह भी एक स्कूल में टीचर ही था. चलिए हम आप को बताते हैं इस खूंखार कातिल के बारे में.

मोहन कुमार एक 57 वर्षीय हिंदी विषय का अध्यापक था, जो कर्नाटक के मंगलोर में रहता था. ज्यादातर वहीं आसपास की लड़कियों को वह टारगेट करता था. मोहन 25 से 30 वर्ष की महिलाएं, जो अविवाहित होती थीं, उन को ही निशाना बनाता था.

मोहन उन लड़कियों से संपर्क करता था, उन से दोस्ती करता था और फिर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए फंसाता था. फिर वह उन्हें गर्भधारण से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोली लेने के लिए कहता था. वह गोलियों में पोटैशियम साइनाइड मिला देता था. यानी गोली के जरिए वह महिलाओं को मार देता था.

उस ने पुलिस और किसी भी संदेह से बचने के लिए महिलाओं से सार्वजनिक शौचालय में गोलियां लेने के लिए कहा. वह महिलाओं को इन गोलियों को शौचालय के अंदर लेने के लिए कहता था, क्योंकि गोली लेने के बाद उल्टी होने की संभावना रहती थी.

पीड़िता की मौत के बाद वह उन के आभूषण लूट कर भाग जाता था. इन महिलाओं के लिए मोहन की अनूठी पेशकश यह थी कि वह दहेज मांगे बिना उन से शादी करेगा. उस की यह रणनीति उन महिलाओं पर काम करती थी, जो युवा और अविवाहित थीं क्योंकि उन के मातापिता दहेज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे. महिलाओं को ठिकाने लगाने के लिए साइनाइड के इस्तेमाल के कारण मोहन कुमार को साइनाइड मोहन के नाम से जाना जाने लगा.

‘दहाड़’ में विजय वर्मा का चरित्र युवा अविवाहित महिलाओं को निशाना बनाने, होटल में एक रात बिताने और उन्हें साइनाइडयुक्त जहर देने की उसी पद्धति का पालन करता है, जिस से उन की मृत्यु हो जाती है.

पुलिस 2009 में एक लापता लड़की अनीता (22 वर्ष) के मामले की जांच कर रही थी और उस के फोन काल के आधार पर पुलिस जो कुछ जानकारी हासिल करना चाहती थी, उस से कहीं अधिक पुलिस को जानकारी मिल गई.

अनीता के फोन रिकौर्ड से पता चला कि वह एक अन्य लड़की कावेरी के संपर्क में थी, लेकिन कावेरी भी गायब थी. इस से पुलिस को उस व्यक्ति का पता चल गया जो उस लड़की का सेलफोन इस्तेमाल कर रहा था. यह वह व्यक्ति था, जो पुलिस को कर्नाटक में मंगलोर के पास एक गांव में मोहन कुमार के घर तक ले गया था.

पुलिस को मोहन कुमार के पास से 8 साइनाइड टैबलेट, 4 मोबाइल फोन और अनीता के आभूषण मिले. पुलिस ने मोहन को हिरासत में लिया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस पर न केवल अनीता के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया, बल्कि 17 लापता लड़कियों के मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया.

2009 में मोहन कुमार की गिरफ्तारी के बाद उस पर 2 साल तक मुकदमा चलाया गया और 2013 में उसे अनीता की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2017 में उस की मौत की सजा को घटा कर आजीवन कारावास में बदल दिया.

फिलहाल मोहन हत्या के 15 मामलों में बेलगावी के हिंडाल्गा सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहा है. यह सत्य घटना कर्नाटक की है, मगर ‘दहाड़’ वेब सीरीज में इन घटनाओं को मंडावा के आसपास के जिलों यानी राजस्थान की दिखाया गया है.

पता नहीं वेब सीरीज बनाने वालों को क्या पागल कुत्ते ने काटा था जो कर्नाटक की सत्यघटना को राजस्थान में फिल्माया. जोया अख्तर और रीमा कागती के प्रोडक्शन में बनी वेब सीरीज ‘दहाड़’ के जरिए सोनाक्षी सिन्हा ने ओटीटी पर एंट्री की है. 8 एपिसोड की इस वेब सीरीज में सीरियल किलर के अवतार में विजय वर्मा को लिया है. सोनाक्षी सिन्हा इस सीरीज में ‘लेडी सिंघम’ यानी पुलिस वाली के किरदार में नजर आई है.

इस वेब सीरीज में एक सीरियल किलर की कहानी है, जो लड़कियों को मार रहा है. किलर के अवतार में नजर आए हैं एक्टर विजय वर्मा. वेब सीरीज में राजस्थान के मंडावा की कहानी दिखाई है, जहां एक भाई अपनी बहन के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने मंडावा थाने आता है. इसी बीच एक लव जिहाद का मामला भी सामने आया है, क्योंकि ठाकुरों की लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है.

पुलिस इस लड़की को ढूंढना शुरू करती है और उसी लड़की को ढूंढतेढूंढते पुलिस को पता चलता है कि ऐसी एकदो नहीं, बल्कि कई लड़कियां अपनेअपने घरों से भागी हैं और बाद में इन के साइनाइड खा कर सुसाइड करने की खबर सामने आती है.

कुल 29 लड़कियों की सेम पैटर्न में मौत हुई है और धीरेधीरे पता चलता है कि ये सुसाइड नहीं, बल्कि सीरियल किलिंग का मामला है. इन सारे मामलों की छानबीन कर रही है मंडावा पुलिस थाने की एसआई अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा). उस का साथी पारगी (सोहम शाह) उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करता, जबकि अंजलि पर एसएचओ देवीलाल सिंह (गुलशन देवैया) थोड़ा सौफ्ट कौर्नर रखता है, इसलिए सारे जरूरी केस उसे ही देता है.

इस वेब सीरीज का हर एपिसोड लगभग 55-56 मिनट का है. शुरुआत से 2 एपिसोड में लगता है कि मामला हिंदू मुसलिम लव ऐंगल और लव जिहाद वाले ऐंगल को टटोल रहा है, लेकिन तीसरे एपिसोड से कहानी का पूरा रुख सीरियल किलर की तरफ मुड़ जाता है. लव जिहाद और सीरियल किलिंग के इस मामले में बीचबीच में जाति व्यवस्था की भी बातें सामने आई हैं.

वेब सीरीज : कोहरा (रिव्यू) – भाग 4

ओटीटी पर प्रदर्शित ‘कोहरा’ को ले कर कई बातें अब धीरेधीरे सामने आने लगी हैं. इस वेब सीरीज को अनुपमा चोपड़ा ने लिखा है. वह पत्रकार भी हैं. इस के अलावा उन्होंने फिल्म जगत को ले कर कई किताबें भी लिखी हैं. वह काफी चैनलों के लिए फिल्म समीक्षा का भी काम करती हैं.

उन की कहानी पर ही रणदीप झा ने ‘कोहरा’ प्रोजेक्ट लांच किया था. रणदीप झा इन दिनों चर्चा में हैं. उस की वजह कई हैं. जिस में से एक प्रमुख यह है कि उन की अंगरेजी काफी तंग हैं. यह बात एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू के दौरान देखने को भी मिली थी.

यह इंटरव्यू हाल ही में रिलीज ‘कोहरा’ वेब सीरीज को ले कर कई चैनलों में दे रहे थे. ‘कोहरा’ वेब सीरीज मर्डर मिस्ट्री पर बनाई गई है.

इस सीरीज के कलाकार

इस में वरुण वडोला, मनीष चौधरी, सौरभ खुराना समेत अन्य ने भूमिका निभाई हैं. सौरव खुराना 2020 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल बेचारा’ में बतौर कलाकार और सहायक निर्देशक की भी भूमिका निभा चुके हैं.

वहीं ‘कोहरा’ के केंद्र बिंदु में इस वक्त रणदीप झा का नाम पहले लिया जा रहा है. निर्देशक रणदीप झा जो बौलीवुड के लिए अनजान चेहरा नहीं हैं.

मुंबई में जन्मे रणदीप झा ने लघु फिल्म से ले कर फिल्म और वेब सीरीज बना कर अपनी विशेष पहचान बनाने का प्रयास किया. वह फिल्म में जगत में अभी तक कोई हिट हासिल नहीं कर सके हैं. जिस के लिए वह लगभग एक दशक से काफी संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने अनुराग कश्यप के साथ सिनेमाटोग्राफी का कोर्स भी किया है. यह कोर्स उन्होंने बैरी जौन के थिएटर ग्रुप से किया था.

अनुराग कश्यप भी सामाजिक बुराइयों पर केंद्रित फिल्मों में काम करते हैं. उन के मुकाबले रणदीप झा अभी तक कोई मील का पत्थर फिल्म के जरिए नहीं रख सके हैं. इस के साथ ही कई फिल्मों में सहायक निर्देशक की भूमिका में काम किया. रणदीप झा की पहली फिल्म ‘हलाहल’ थी.

यह फिल्म मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापमं घोटाले पर केंद्रित थी. फिल्म के जरिए शिक्षा माफिया के खेल को बताने का प्रयास किया गया था. यह 2020 में रिलीज हुई थी. जिस के बाद वे कई लोगों की निगाह में आने लगे. इस से पहले 2012 में बनी ‘शंघाई’ फिल्म में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी.

रणदीप झा एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से हैं. वह मुख्यरूप से एक सहायक निर्देशक या एक निर्देशक के रूप में काम करते हैं. लेकिन इस के अलावा उन्होंने विभिन्न फिल्मों में कैमियो भूमिकाएं भी की हैं. उन्होंने 2012 में राजनीतिक थ्रिलर फिल्म ‘शंघाई’ में दिबाकर बनर्जी की सहायता की.

2 साल बाद उन्होंने फिल्म ‘अग्ली’ में अनुराग कश्यप के मार्गदर्शन में दूसरे सहायक निर्देशक के रूप में काम किया. वर्तमान में वह एक स्वतंत्र निदेशक हैं. निर्देशन के अलावा बतौर कलाकार 2015 में आई ‘हीरो’ फिल्म में भी काम किया था. उन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘कर्ता’ लघु फिल्म भी सुर्खियों में रही थी.

लघु फिल्म ‘कर्ता’ महज 20 मिनट की है. जिस को उन्होंने खुद लिखा और निर्मित किया है. कोहरा में बरून सोबती के साथ उन्होंने दूसरी बार काम किया है. इस से पहले 2020 में रिलीज ‘हलाहल’ में दोनों ने एक साथ काम किया था.

बरुन सोबती

बरुन सोबती एक भारतीय अभिनेता हैं, जिन्हें टीवी सीरियल में काफी लोकप्रियता हासिल है. सोबती का जन्म 30 अगस्त, 1984 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत साल 2009 में की थी. उन्हें पहला मौका स्टार प्लस पर ‘श्रद्धा’ टेलीविजन शो में मिला था. इस के बाद उन्होंने ‘बात हमारी पक्की है’ और ‘दिल मिल गए’ जैसे टीवी सीरियल में काम किया. शानदार अभिनय के चलते बरुन सोबती को साल 2012 में बेस्ट पापुलर एक्टर के लिए इंडियन टेलीविजन अकैडमी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.

उन के परिवार में पिता राज सोबती तथा मां वीनू सोबती है. इस के अलावा उन के परिवार में उन की बड़ी बहन रिचा अरोरा है. अगर बात करें बरुन सोबती की प्रारंभिक शिक्षा की तो उन्होंने पश्चिम विहार के सेंट मार्क स्कूल से पढ़ाई की है. उन की शादी को ले कर बहुत दिलचस्प वाकया भी है. बरुन सोबती की पत्नी का नाम पश्मीन मनचंदा है, जिन की शादी दिसंबर 2010 को एक गुरुद्वारे में हुई थी.

बताया जाता है कि बरुन सोबती ने अपनी पत्नी पश्मीन मनचंदा से पहली बार मुलाकात अपने स्कूल में की. इस रिश्ते को लंबे समय तक चलने के बाद एकदूसरे से शादी की. वर्तमान में इन की एक बेटी है, जिस का नाम सिफत है.

टीवी जगत की दुनिया में आने से पहले चर्चित इस कलाकार ने 7 साल तक जिंदल टेलीकाम में एक संचालन प्रबंधक के रूप में काम किया था. इस के बाद उन्होंने अपने एक्टिंग करिअर की शुरुआत की. टेलीविजन के बाद बरुन सोबती ने फिल्म इंडस्ट्री में भी अपना हाथ आजमाया. टीवी जगत और ओटीटी के स्टार बनने के अलावा उन्होंने अपने थिएटर में भी परचम फहराया है. उन की 2014 में ‘मैं और मिस्टर राइट’ चर्चित नाटक रहा है.

इस के बाद उन्होंने साल 2016 में ‘तू है मेरा संडे’ में अर्जुन आनंद का बेहद खूबसूरत रोल निभाया है. इस थिएटर के बाद 2019 में ‘22 यार्ड’ में अभिनय करते हुए नजर आए. ओटीटी की दुनिया में 2020 में उन के सितारे गर्दिश में पहुंच गए. एमेजान पर आई ‘असुर’ वेब सीरीज में निखिल नायर का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने बहुत ज्यादा पसंद किया था. इस का दूसरा सीजन 2023 में आया, जिस ने पहले सीजन से भी ज्यादा सुर्खियां बटोरीं. उन्होंने 2020 ‘हलाहल’ वेब सीरीज में इंसपेक्टर यूसुफ कुरैशी का अभिनय किया.

इस सीरीज ने इन की इमेज फिल्म दुनिया में पुलिस औफिसर के किरदार के लिए डायरेक्टरों की पहली पसंद बना दिया है.

रचेल शैली

आप को आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ याद ही होगी. उस फिल्म में एक गाना है ‘ओ री छोरी मान भी ले बात मोरी…’ इस गीत में अंगरेजी गाने पर अपनी फीलिंग बता रही गोरी मेम. यह अमेरिका की मशहूर कलाकार है. ‘लगान’ फिल्म में वह एलिजाबेथ बनती है, जिस के बारे में बहुत लोग ज्यादा नहीं जानते हैं.

इस फिल्म के बाद वह बौलीवुड में दिखाई भी नहीं दी थी. हालांकि 2 दशक बाद हौलीवुड में चर्चित रहने वाली मौडल, अभिनेत्री और लेखिका रचेल शैली एक बार फिर सुर्खियों में हैं. उन्होंने बौलीवुड में ओटीटी के जरिए फिर फिर एंट्री मारी है.

यहां उन से जुड़ी कई बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. रचेल शैली ने आशुतोष गोवारिकर की सुपरहिट फिल्म ‘लगान’ में काम किया था. उन का चयन अभिनेता आमिर खान और गोवारिकर ने लंदन में जा कर किया था. यह फिल्म जून, 2001 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में आधे से ज्यादा कलाकार ब्रिटिश मूल के नागरिक थे.

इस से पहले अमेरिका और यूके में रचेल शैली टीवी और फिल्म इंडस्ट्रीज में जानामाना चेहरा थी. रचेल शैली 54 वर्ष की हैं और वह बौलीवुड और हौलीवुड में 3 बार ब्रेक ले कर पारिवारिक जीवन को सफल बनाने में जुटी रही. उन्होंने शादी नहीं की है लेकिन लिवइन पार्टनर मैट लेब्लैंक के साथ उन के किस्से काफी चर्चा में रहते थे. अभी उन के पार्टनर मैथ्यू पार्खिल है.

रचेल ने एक बेटी को भी जन्म दिया है. बच्ची के लिए फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने किनारा किया था. लिवइन पार्टनर अमेरिका में टीवी जगत के स्टार हैं. रचेल शैली का जन्म इंग्लैंड में हुआ था और शिक्षा लंदन में हासिल की थी. वह परिवार में सब से छोटी हैं.

लंदन के ड्रामा स्कूल से 1992 में उन्होंने पढ़ाई की थी, जिस के बाद थिएटर के द्वारा अभिनय की दुनिया में उन्होंने शुरुआत की थी. जब वह सफल हो रही थीं तभी 3 साल यानी 1997 तक फिल्म और टीवी सीरियलों से ब्रेक ले लिया. इस के बाद फिर उन्होंने टीवी और फिल्म जगत में वापसी की. दूसरी पारी में उन के 2 दरजन से अधिक टीवी सीरियल अमेरिका के कई निजी चैनलों पर आते थे. उन्हें टीवी सीरियल हेलेना पिबौडी से काफी सुर्खियां मिली थीं. यह सीरियल कई साल चला था. टीआरपी के कारण उन की चैनलों में काफी डिमांड होने लगी थी.

‘लगान’ फिल्म की शूटिंग के लिए वह लंदन से भारत के गुजरात में स्थित भुज शहर में आ कर ठहरी थी. रचेल शैली ने अब बौलीवुड में ओटीटी में प्रदर्शित ‘कोहरा’ के जरिए अपने आप को रिलांच किया है. वह वेब सीरीज में लियोम की मां का किरदार निभा रही हैं.

वेब सीरीज में दर्शकों को वह केवल 4-5 सीन में देखने को मिलीं. लियोम जोकि वेब सीरीज में समलैंगिक होने का अभिनय कर रहा है. वहीं असली जीवन में रचेल शैली एलजीबीटीक्यू यानी समलैंगिक संगठनों के लिए पूर्व से काम करती चली आ रही हैं. वेब सीरीज में उन का रोल काफी सीमित रखा गया है. जबकि वह भारत के लिए जानामाना चेहरा हैं. इस के अलावा लंदन और यूके में उन के अभिनय की काफी सराहना की जाती है.

डायरेक्टर रणदीप झा ने चर्चित कलाकार के प्रशंसकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम किया है. वेब सीरीज में डायरेक्टर ने उन के चर्चित चेहरे को प्रमोशन के लिहाज से लिया हुआ प्रतीत होता है. ताकि उन के चेहरे के जरिए वह वेब सीरीज को अंतराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचा सकें. क्योंकि कई भारतीय मूल के नागरिक उन के बहुत ज्यादा प्रशंसक हैं.

वेब सीरीज : कोहरा (रिव्यू) – भाग 3

जैसे वेब सीरीज अंतिम पड़ाव की तरफ जाती है, तब हैप्पी को ब्लैकमेल करने वाला बस ड्राइवर पैसे छीन कर भागता है. उस की लाश अंत में नाले से बरामद होते दिखाई है. जिस का पूरी वेब सीरीज में कहीं भी कोई सिरा नहीं मिलता है. उस की हत्या का कनेक्शन कहीं भी देखने को नहीं मिला. इस से साफ है कि डायरेक्टर वेब सीरीज बनाते वक्त भूल जाते हैं कि वे मर्डर मिस्ट्री पर फिल्म बना रहे हैं.

वेब सीरीज में नई कड़ी एक नए ट्रक ड्राइवर के रूप में जुड़ती है, जिस का हेल्पर ट्रक से उतर कर देखता है कि बंपर पर खून के धब्बे लगे हैं. यह देख कर ‘खून साफ करो’ कहते हुए शोर मचाने लगाता है. यहां पात्र और उस का अभिनय बताता है कि डायरेक्टर को इस कमी का अहसास ही नहीं हुआ. इस के अलावा बहुत जल्दीजल्दी नए कैरेक्टर वेब सीरीज में आने लगते हैं.

पुराने सारे किरदार और घटनाएं गायब होती हैं, जबकि वेब सीरीज में मर्डर मिस्ट्री का खुलासा ट्रक में काम करने वाले हेल्पर के जरिए ही होता है. लेकिन डायरेक्टर थ्रिल पैदा करने में नाकाम साबित हुए. काफी उबाऊ तरीके से इस दृश्य का फिल्मांकन किया गया.

तफ्तीश के दौरान पुलिस अधिकारी गरूंडी सिंह को ट्रक ड्राइवर की बीवी का एक सीन दिखाया गया है, जिस को डायरेक्टर ट्रक ड्राइवर की बीवी के जरिए यहां फिर वेब सीरीज को ‘ए’ सर्टिफिकेट पाने के लिए सीन क्रिएट करते हैं. यहां ट्रक ड्रायवर की बीवी एक डायलौग पुलिस अधिकारी को मारती है.

डायरेक्टर ने यदि उस में कोई क्रिएटिविटी की होती तो आशुतोष राणा या फिर अक्षय कुमार जिन्होंने किन्नर की भूमिका निभा कर अपनीअपनी फिल्म को सुपरहिट कर दिया था. दरअसल, ट्रक ड्राइवर को महिलाओं के बजाय किन्नरों में शौक होना दिखाया गया है. यह सारे सीन देख कर हम यकीन से कह सकते हैं कि वेब सीरीज का टाइम बढ़ाने के लिए ट्रक ड्राइवर और उस की बीवी के जरिए ऐसा किया है.

वेब सीरीज में गरूंडी सिंह के 2 जबरिया सेक्स सीन डाले गए हैं. इसी तरह फिल्म की शुरुआत में सेक्स सीन डायरेक्टर ने डाला. जिस का मर्डर हुआ, उस के मंगेतर के साथ भी जबरिया 2 सेक्स सीन वेब सीरीज में बनाए गए. डायरेक्टर रणदीप झा को यह लगता है कि फिल्म अभी भी छोटी हो रही है तो वे फिर एक नई कहानी को पैदा करते हैं. यह कहानी पुलिस अधिकारी गरूंडी सिंह के साथ बनाई गई.

गरूंडी सिंह, जिस के भाभी से रिश्ते बनते थे, शादी करने जा रहा होता है. इस बात से उस की भाभी खफा होती है. फिल्म में थ्रिलर की आड़ में सिलेंडर को फोड़ा गया. ऐसा गरूंडी सिंह की भाभी ने किया था. इसी सीन से डायरेक्टर पुलिस अधिकारी बलवीर सिंह पर ले जाते हैं.

वह जब गरूंडी सिंह से मिल कर बाहर आते हैं तो तेज रफ्तार ट्रक उन की कार को उड़ा देता है. उस के भीतर बलवीर सिंह पोते के साथ होते हैं, लेकिन डायरेक्टर उन के जाते वक्त पोते को दिखाना ही भूल गए. इस दुर्घटना के बाद उन को अगवा भी कर लिया जाता है. अपहरण करने वाले फोन बंद करना भूल जाते हैं. ऐसा डायरेक्टर के दिमाग की उपज है. जबकि पेशेवर बदमाश मोबाइल को पहले ही कब्जे में ले कर बंद कर देते हैं.

फिल्मांकन में दिखीं खामियां

यहां एक और अतिशयोक्ति डायरेक्टर ने दिखाई. गरूंडी सिंह मोबाइल काल डिटेल के जरिए बलवीर सिंह को अपने दम पर छुड़ा लाता है. अधिकांश वेब सीरीज सत्य घटनाओं पर केंद्रित होती हैं. इस के बावजूद डायरेक्टर को लगा कि वे रोहित शेट्टी को पीछे छोड़ सकते हैं. शायद यह दृश्य फिल्माते वक्त उन्हें ‘सिंघम’, ‘सूर्यवंशम’ और ‘राउडी राठौर’ याद आ गए. वह भूल ही गए कि फिल्म नहीं, बल्कि वह तो वेब सीरीज बना रहे हैं.

फिल्म का क्लाईमेक्स भी बहुत ज्यादा कमजोर रहा. अचानक ट्रक ड्राइवर यह कुबूल कर लेता है कि कोहरे के कारण दिखाई नहीं देने पर एक गोरा व्यक्ति टकराया था, जिस से उस की मौके पर मौत हो गई थी. यह गोरा लियाम था जोकि एनआरआई पौल का दोस्त था.

ड्राइवर के बताने पर उस की लाश बताई गई. लाश मिलने वाला दृश्य काफी हास्यास्पद तरीके से डायरेक्टर ने शूट कराया है. लाश काफी पुरानी हो जाती है इस के बावजूद फिल्म में ग्लव्स या मास्क पहने बिना ही अधिकारी जांच करते दिखाए गए हैं. वास्तविकता पैदा करने का डायरेक्टर ने बिलकुल भी प्रयास नहीं किया.

क्लाइमेक्स में भी सीन के जरिए बताने के बजाय कपोल कल्पनाओं में उसे दिखाया गया. जिस से लगता है कि आखिरी दौर में ‘कोहरा’ का बजट लगभग खत्म हो गया था. यह सारी कपोल कल्पनाएं बलवीर सिंह को सोचते हुए दिखाया गया है. अंत में मर्डर मिस्ट्री को साधारण ट्रक दुर्घटना बता कर समाप्त कर दिया जाता है.

वेब सीरीज में डायरेक्टर रणदीप झा लियाम और पौल के बीच बनने वाले गे संबंध को साबित करने में नाकाम साबित हुए. दरअसल, लियाम नहीं चाहता था कि पौल उस की निगाह से दूर जाए.

पौल अपनी मंगेतर से जब मिलने आता है, तब वहां लियाम भी होता है. वह दोनों के प्यार को देख कर नाराज हो जाता है. मंगेतर जब चली जाती है तब लियाम और पौल के बीच लड़ाई होती है. उस वक्त पौल उस के साथ ओरल सेक्स करता है.

यह बात वेब सीरीज के पांचवें एपिसोड में फोरैंसिक रिपोर्ट के जरिए बताई गई. पौल के लिंग में फोरैंसिक रिपोर्ट में दूसरे का डीएनए मिलता है. वहीं मुंह के भीतर लियाम का डीएनए होता है. यह सब कुछ आखिरी एपिसोड में डायरेक्टर साफ करते हैं.

कुल मिला कर इस कहानी के साथ डायरेक्टर रणदीप झा ने न्याय नहीं किया है. जनता को पूरी तरह से फिल्म में नाटकीय सीन बना कर पूरी तरह से गुमराह किया गया है.