वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 1

लेखक: राहुल शुक्ला, समीर अरोड़ा, उत्कर्ष खुराना, संजय मासूम

निर्देशक: नीरज पाठक

कलाकार: रणदीप हुड्डा, अभिमन्यु सिंह, उर्वशी रौतेला, अमित सियाल, फ्रेडी दारूवाला, गोविंद नामदेव, जाकिर हुसैन, किरण कुमार, राहुल मित्रा, वरुण मिश्रा, वी शांतनु, प्रवीण सिंह सिसोदिया, आयशा एस. मेमन, संदीप चटर्जी, आकांक्षा पुरी आदि.

यह वेब सीरीज एक एंटरटेनिंग थ्रिलर है. उत्तर प्रदेश के सुपरकौप कहे जाने वाले अविनाश मिश्रा के किरदार में रणदीप हुड्डा ने खुद को बहुत ही शानदार तरीके से ढालने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश की भाषा भी वह अच्छी तरह बोल लेता है.

जियो सिनेमा पर 8 एपीसोड में रिलीज हुई वेब सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ के साथ उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट अविनाश मिश्रा एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में पैदा हुए अविनाश मिश्रा साल 1982 में पुलिस में भरती हुए थे.

एसटीएफ का गठन होने से ले कर साल 2009 तक वह एसटीएफ में रहे. डिप्टी एसपी के पद से वह रिटायर हुए थे. उन के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बिलकुल नहीं चाहते थे कि बेटा पुलिस की नौकरी में जाए. लेकिन अविनाश मिश्रा की जिद थी पुलिस में जाने की. उन में अपराधियों के सफाए का जुनून था.

उत्तर प्रदेश के अपराधों से परिचय कराने वाली इस सीरीज के लेखकों ने सच्ची घटनाओं पर कहानी लिखने की कोशिश तो की है, पर देखा जाए तो वह बढिय़ा कहानी लिख नहीं पाए. जबकि इस के एक लेखक संजय मासूम ने मनोहर कहानियां के संपादकीय विभाग में कई सालों तक काम भी किया है और उन्होंने कई हिट फिल्मों के डायलौग भी लिखे हैं.

अगर किसी के जीवन पर कहानी लिखी जा रही है तो उस के जीवन की एकएक घटना को बारीकी से देखना और लिखना चाहिए. यह कोई फिल्म तो थी नहीं कि समय का बंधन था, इसलिए इसे और विस्तार से लिखा जा सकता था, जिस से सीरीज और ज्यादा रोमांचक और दर्शनीय बना जाती.

सीरीज में ऐसी तमाम कमियां हैं, जो दर्शकों को सीरीज में अधूरी सी लगती हैं और उस के रोमांच को भी कम करती हैं. साथ ही उसे सोचने पर मजबूर करती हैं कि उस का क्या हुआ होगा?

इंस्पेक्टर अविनाश जब बिट्टू चौबे का एनकाउंटर करते हैं तो अविनाश उस की पत्नी के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं, वह भी भीड़ के सामने. यह सीन तो बिलकुल हजम नहीं होता. डायरेक्टर को यहां पर ध्यान देना चाहिए था. वह उस की मदद अलग तरह से भी करवा सकते थे.

इस के अलावा जब भाटी की मौत होती है और यह पता चलता है कि उसे इंजेक्शन से जहर दिया गया था तो इस बात को बीच में छोड़ देना एक तेजतर्रार पुलिस वाले के लिए अच्छा नहीं लगता.

बबलू पांडेय की प्रेमिका पिंकी को लापता कर देना भी सोचने को मजबूर करता है, जबकि अग्रवाल के बेटे के अपहरण की वह एक मजबूत गवाह और कड़ी थी. उसी ने इंस्पेक्टर अविनाश की बबलू पांडेय से बात भी कराई थी. इसी तरह इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा लापता होता है और फिर अचानक घर वापस आ जाता है, पर यहां यह नहीं बताया जाता कि वह कहां था.

इसी तरह की सीरीज में और भी तमाम कमियां हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करने की कोशिश करती हैं.

इस ओर न तो डायरेक्टर ने ध्यान दिया, न लेखकों ने. इस सीरीज ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा जरूर है, लेकिन लेखकों और डायरेक्टर ने बारीकी से एकएक बात पर ध्यान दिया होता तो शायद यह सीरीज और ज्यादा लोकप्रिय होती और मील का पत्थर भी साबित होती, साथ ही एक जीवित चरित्र को और लोकप्रियता दिलाती. इस में ऐसे तमाम दृश्य हैं, जो सत्य लगने के बजाय सिनेमाई लगते हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करते हैं.

randeep-huda

पहले एपीसोड की शुरुआत में ही यानी प्रस्तावना में इंस्पेक्टर अविनाश का आतंक दिखाया गया है. एक थाने में अचानक एक माफिया सरगना महाकाल सिंह उपस्थित होता है, जिसे देख कर सारे पुलिस वाले घबरा जाते हैं. लेकिन पता चलता है कि वह माफिया थाने पर अटैक करने नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण करने आया था. उस का कहना था कि जेल में रह कर वह जिंदा तो रहेगा, क्योंकि बाहर अविनाश मिश्रा उसे जीने नहीं देगा.

महाकाल सिंह की भूमिका किसी छोटेमोटे कलाकार ने की है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा ने एक माफिया नेता का एनकाउंटर गंगा में डुबकी लगा कर किया.

क्यों बनानी पड़ी एसटीएफ

कहानी में आगे न्यायालय परिसर में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को दिखाया जाता है, जहां उन के जिंदाबाद के नारे लग रहे होते हैं. न्यायालय में वह इसलिए आए हैं, क्योंकि उन पर 3 लड़कों के फरजी एनकाउंटर का आरोप था. उन्होंने न्यायालय में जज के सामने स्वीकार भी किया कि उन्होंने ही ये एनकाउंटर किए थे और मौकाएवारदात पर वह शराब पी कर गए थे.

इसी के बाद फ्लैशबैक में सीरीज शुरू होती है. इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की भूमिका रणदीप हुड्डा ने की है. जैसा कि रणदीप के बारे में कहा जाता है कि वह एक अच्छा कलाकार है, उसी तरह उस ने इंस्पेक्टर अविनाश की भूमिका बखूबी निभाई भी है.

उस समय उत्तर प्रदेश में गुंडों का आतंक था. हालात यह थे कि एक माफिया (श्रीप्रकाश शुक्ला) ने तो मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी ले ली थी. ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री गृहमंत्री की उपस्थिति में पुलिस अधिकारियों की मीटिंग करते हैं.

मुख्यमंत्री की भूमिका में जहां किरण कुमार है, वहीं गृहमंत्री की भूमिका फ्रेडी दारूवाला ने की है. ये दोनों कलाकार भले ही मंझे हुए हैं, पर मुख्यमंत्री की भूमिका में न तो किरण कुमार ही जमता है और न ही गृहमंत्री की भूमिका में फ्रेडी दारूवाला. ये दोनों ही कलाकार नौटंकी करते लगते हैं.

मीटिंग में प्रदेश के डीजीपी समर प्रताप सिंह एक ऐसी पुलिस फोर्स गठित करने की बात करते हैं, जो प्रदेश के अपराधियों को काबू कर सके और उन्हें उन के किए की सजा दे सके.

डीजीपी समर प्रताप सिंह की भूमिका में जाकिर हुसैन है. वह सीरीज में दिखाई तो कम दिया है. इस के बाद स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन होता है, जिस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को प्रभारी बनाया जाता है. इसी के बाद अपराधियों को काबू करने का मिशन शुरू होता है.

पहले एपीसोड में अयोध्या में आरडीएक्स पहुंचाने और एक मंदिर में बम रखने की घटना दिखाई जाती है. इंस्पेक्टर अविनाश की टीम पहले तो उन आतंकियों को चलती ट्रेन से पकड़ती है, उस के बाद मंदिर परिसर में रखे बमों को निष्क्रिय करती है. वैसे यह सब फिल्मी अंदाज में दिखाया जाता है.

इसी बीच धर्म को बढ़ावा देने वाली एक घटना दिखाई जाती है कि एक आतंकी, जो मंदिर में छिपा था, पुलिस के बीच से भागता है. पर जब इंस्पेक्टर अविनाश उसे फिल्मी अंदाज में पकड़ते हैं तो वह कहता है कि बस एक मिनट बाकी है. पूरी पुलिस फोर्स बम की तलाश में लग जाती है.

जब सभी ऊपरी मंजिल पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि बिजली के बौक्स के पास एक बंदर एक तार को पकड़ कर दांत से काट रहा है. उसे केला फेंक कर भगाया जाता है तो बम निष्क्रिय करने वाला एक्सपर्ट बताता है कि बंदर ने तो पहले ही तार काट कर बम निष्क्रिय कर दिया है. सभी श्रद्धा से बंदर की ओर देखते हैं.

यहां यह दृश्य फिल्मी लगता है, पर इस दृश्य को डाल कर जहां आस्था को भुनाने की कोशिश की गई लगती है. वहीं लोगों को आस्तिक बनाने की भी कोशिश की गई है.

दूसरे एपीसोड में शुरुआत में अविनाश मिश्रा को एक मुखबिर बरकत से मिलते दिखाया जाता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश कहते हैं कि यही मुखबिर हमारी ताकत हैं, तंत्र हैं और मायाजाल हैं. इस के बाद एक दृश्य दिखाया जाता है, जिस में एक आदमी अपनी ही पत्नी के साथ जबरदस्ती सैक्स करता है. बाद में पता चलता है कि उस का नाम बिट्टू चौबे है, जो एक शूटर है. बिट्टू चौबे की भूमिका में रेश लांबा है, जो सचमुच में एक शूटर लगता है.

इस के बाद विपक्ष के एक कद्दावर नेता की बेटी किरन कौशिक की हत्या हो जाती है. इस मामले की जांच जो इंस्पेक्टर देवी कर रहा है, उस के साथ डीजीपी अविनाश मिश्रा को भी इस मामले की जांच करने के लिए कहते हैं. इंस्पेक्टर अविनाश को काल डिटेल्स से पता चलता है कि किरण का संबंध विधायक जगजीवन यादव से था. जगजीवन यादव की भूमिका में राहुल मित्रा है. यह कोई बहुत चर्चित कलाकार नहीं है.

जगजीवन यादव पर शक करने की वजह यह थी कि किरण और उस के बीच रात को लंबीलंबी बातें होती थीं. अविनाश जगजीवन यादव के पास पहुंच जाते हैं. उसे उस की असलियत बता कर धमकाते हैं. बदले में विधायक भी धमकी देता है. तब विधायक का एक आदमी इंस्पेक्टर को अलग ले जा कर फाइल दबाने की बात करता है. इस के बदले इंस्पेक्टर अविनाश अपने मुखबिर बरकत की मदद करने को कहते हैं.

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू)

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 4

मिलन लूथरिया निर्मातानिर्देशक के साथ गीतकार भी इस वेब सीरीज के लिए बने हैं. फिल्म में संगीत अनु मलिक, अमाल मलिक, संगीत और सिद्धार्थ ने दिया है. संगीत दर्शकों को सुनने में काफी अच्छा भी लगेगा. सस्पेंस और थ्रिलर के दौरान बजने वाला संगीत आप को 1978 में रिलीज हुई फिल्म ‘डान’ से मेल खाता हुआ नजर आएगा.

ताहिर राज भसीन

फिल्म के मुख्य किरदार ताहिर राज भसीन अभिनय का आजमाया हुआ चेहरा है. भसीन ने इस वेब सीरीज से पहले 2014 में ‘मर्दानी’ में नेगेटिव रोल किया है. मल्टीस्टारर फिल्म 2019 में आई ‘छिछोरे’ में भी उस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

इस के अलावा रणवीर कपूर अभिनीत पहले वर्ल्ड कप क्रिकेट कप्तान कपिल देव की बायोपिक फिल्म ’83’ में ताहिर राज भसीन ने सुनील गावस्कर की भूमिका निभाई थी. भसीन का जन्म दिल्ली के पंजाबी परिवार में हुआ था. भसीन ने टीवी सीरियलों में भी काम किया था.

इतने सफल कलाकार होने के बावजूद वेब सीरीज की सफलता के लिए भसीन को अंग प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा. वेब सीरीज में एक अन्य अभिनेता निशांत दहिया को भी सफल कलाकार बनने के लिए अंग प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा. अभी तक वेब सीरीज में महिला कलाकारों से अंग प्रदर्शन का करार कर के उसे हिट कराने का काम डायरेक्टर करते चले आए हैं.

यह ओटीटी जगत में पुरुषों की फूहड़ता के बढ़ रहे चलन की तरफ इशारा कर रहा है. इस से पहले ओटीटी के लिए सैफ अली खान ने ऐसा किया था. इन दोनों कलाकारों ने जहां अपने कपड़ों को उतारा, वहां ऐसे कोई भी हालात नहीं बन रहे थे. इस के बावजूद फिल्म डायरेक्टरों ने प्रचार के लिए इस फूहड़ सीन को बना कर उसे प्रमोशन एजेंडा में शुमार कराया, ऐसा प्रतीत होता है.

इन दोनों शौट के दौरान शानदार डायलौग डिलीवरी होनी थी, जो नहीं हुई. अगर यहां डायलौग डिलीवरी होती तो डायरेक्टर को पुरुषों के न्यूड सीन के सक्सेस रेट की नहीं सूझती.

अंजुम शर्मा

फिल्म में ताहिर राज भसीन का करीबी दोस्त और वेब सीरीज के अंत में दर्शकों को काफी सदमा देने वाला चरित्र अंजुम शर्मा का है. यह अभिनेता भी अपने फिल्मों में बेहतर काम के चलते सुर्खियां बटोर रहा है. मुंबई में जन्मे अंजुम शर्मा ने वेब सीरीज में नीलेंदु बंगाली की भूमिका निभाई है.

वह पूरी फिल्म में 60 के दशक में रहने वाले स्मार्ट बौय के लुक में हैं. मिलन लूथरिया के साथ काम करने का उस के लिए यह दूसरा मौका था. इस से पहले वह ‘वंस अपान ए टाइम इन मुंबई’ में काम कर चुका है. इस के अलावा ‘मिर्जापुर’ में उस ने शरद शुक्ला की भूमिका निभाई थी.

अंजुम शर्मा ने ‘स्लम डौग मिलिनेयर’ से बौलीवुड में कदम रखा था. उसे काफी अरसे से सफलता की तलाश थी. वह अमिताभ बच्चन के साथ 2016 में बनी ‘वजीर’ में भी भूमिका निभा चुका है. ‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली के आसपास बनाई गई है.

अनुप्रिया गोयनका

इस वेब सीरीज में अनुप्रिया गोयनका ने कई जगह संभोग और आलिंगन होने वाले शौट दिए हैं. मूलरूप से कानपुर की रहने वाली अनुप्रिया गोयनका ने जिस तरह से खुल कर फूहड़ता का प्रदर्शन किया, वह उस के लिए निकट भविष्य में काफी घातक साबित होगा. क्योंकि उस ने अपने बौलीवुड करिअर की शुरुआत विज्ञापनों से की थी, जिस में यूपीए सरकार के लिए बनाए गए विज्ञापनों में वह जगहजगह दिखाई गई थी. तब और अभी फिल्म के शौट उसे परेशान कर सकते हैं.

वेब सीरीज से पूर्व अनुप्रिया सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में नर्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी है. पिता कपड़ा कारोबारी रहे हैं. वह शाहिद कपूर की पत्नी का भी रोल संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ में निभा चुकी है. फिल्म जगत में भाग्य आजमाने वह 2008 में मुंबई पहुंची थी. इस वेब सीरीज से पहले ‘असुर 2’ और ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म ‘वार’ में भी अनुप्रिया काम कर चुकी है.

मौनी राय

‘सुलतान औफ दिल्ली’ में चौथा चेहरा मौनी राय के रूप में नयनतारा का दिखाया गया है. वह कोलकाता में बार डांसर दिखाई गई हैं. वेब सीरीज के आखिर में नीलेंदु बंगाली की पत्नी बनती है. लेकिन यह कब और कैसे हुआ, वह दर्शक पता नहीं कर सकेंगे.

इस के अलावा उस के बच्चा होने की भी जानकारी अचानक दर्शकों को मिलेगी. मौनी राय के साथ वेब सीरीज का मुख्य किरदार अर्जुन भाटिया संबंध बनाते हुए दिखेगा. यह भी कैसे हुआ, इस में सस्पेंस है. मौनी राय अपने हौट लुक के कारण सोशल मीडिया में काफी लोकप्रिय रहती है. उस ने अनेक टीवी सीरियलों में काम किया है.

वह एकता कपूर की छत्रछाया में बने सीरियल ‘सास भी कभी बहू थी’ और ‘नागिन’ में महत्त्वपूर्ण किरदार निभा चुकी है. इसी किरदार के कारण वह टेलीविजन जगत का काफी चर्चित चेहरा है. इस के अलावा 2011 में प्रदर्शित सीरियल ‘देवों के देव महादेव’ में भी अभिनय के कारण लोगों की निगाह में आ चुकी है.

मौनी राय का पश्चिम बंगाल में जन्म हुआ था. वह दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन का कोर्स कर चुकी है. उन्होंने पहली बार अक्षय कुमार के साथ ‘गोल्ड’ फिल्म में उस की पत्नी का किरदार निभाया था. यह फिल्म 2018 में प्रदर्शित हुई थी. इस के बाद 2022 में प्रदर्शित ‘ब्रह्मïास्त्र’ फिल्म में भी काम कर चुकी है.

प्रस्तुति: केशव राज पांडे

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 3

राजेंद्र प्रताप सिंह को फिल्म डायरेक्टरों ने पूरी तरह से नग्न दिखाया है. उसे नग्न हालत में संजना भी देख कर वहां से चली जाती है. इस के बाद वह सीधे अर्जुन भाटिया के घर पहुंचती है, जहां उसे प्रीति मिलती है. उधर, इटावा पहुंचने पर अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली को पुलिस दबोच लेती है.

पुलिस दोनों का एनकाउंटर करती, उस से पहले जेल से जिसे छुड़ाया गया था, वह उन्हें बचाने में कामयाब हो जाता है. यहां पुलिस अधिकारी राज भी उजागर करता है कि उसे मारने के लिए जगन सेठ से टिप मिली थी. यह सब कुछ दर्शकों के सामने बहुत जल्दीजल्दी में बिना निरंतरता के साथ परोसा गया है. इसलिए सातवें एपिसोड में भी कहानी दर्शकों को जोड़ने में कामयाब नहीं रहती है.

इटावा जाते वक्त पुराने भाप के इंजन को दिखाया गया है, जिसे 90 के दशक में चलने वाली डीजल इंजन के जरिए चलते हुए आसानी से देख सकते हैं.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज का आठवां एपिसोड ‘फ्यूड’ नाम से बनाया गया है, जिस में दिल्ली के स्थानीय माफिया मना करने के बावजूद दबाव में उस की छत्रछाया में काम करने के लिए राजी हो जाते हैं. अब जगन सेठ के बजाय दिल्ली की माफिया मंडी में अर्जुन भाटिया का सिक्का चलने लगता है. यह सब कुछ अर्जुन भाटिया की पत्नी की गोद भराई में होता है.

इसी कार्यक्रम में रक्षा सचिव को भी बुलाया जाता है. वह उसे पटना में उस का एक काम करने के लिए बोलता है, जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी नीलेंदु बंगाली को मिलती है. लेकिन इस दौरान वह कुछ ऐसा बोलता है कि रक्षा सचिव को वह बात चुभती है. अफसर के जाने के बाद थोड़ी नोंकझोंक अर्जुन भाटिया के साथ नीलेंदु की होती है.

उसी दौरान कार्यक्रम में बुलाए गए राजेंद्र प्रताप सिंह नीलेंदु को उस के साथ काम करने का प्रस्ताव देता है, जिसे वह एक सिरे से खारिज कर देता है.

जगन सेठ के लिए काम करने वाला अर्जुन भाटिया एबी प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी चलाता है, जिस में उस का पार्टनर नीलेंदु भी होता है. वह काम करने के लिए पटना जाता है. वहां पहुंचने से पहले नीलेंदु शराब पी लेता है. जिस कारण नशे में बनता हुआ काम भी बिगड़ जाता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह का शिप जिस में हथियारों का कंसाइनमेंट होता है, वह खराब हो जाता है. उसे ले जाने वाले को चुप रहने के लिए राजेंद्र प्रताप सिंह कहता है. उधर, उस की पत्नी एक बच्ची को जन्म देती है, जिस से वह नाखुश नजर आता है.

वह बेटी का मुंह देखने के बजाय पत्नी को अस्पताल में छोड़ जाता है. इस एपिसोड में भी दर्शकों के लिए दोनों डायरेक्टर बेवकूफी के अलावा कोई उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हो पाते हैं. एपिसोड के अंत में अर्जुन और नीलेंदु की कट्टर दोस्ती को आसानी से टूटते हुए दिखाया गया है.

वेब सीरीज का नौवां एपिसोड दर्शकों को पसंद आने के बजाय मातम मनाने वाला ज्यादा है. नीलेंदु बंगाली जो अपने करीबी दोस्त अर्जुन भाटिया का मुखबिर हो जाता है, वेब सीरीज में उस का अचानक एक ट्रक जिस में लड़की सप्लाई और चरस बेचने की बात सिर्फ सुनाई दी है.

यह धंधा कब और कैसे करने लगता है, पहले से आठवें एपिसोड में यह साफ नहीं होता है. उस का ट्रक पलट जाता है, जिस में सारी लड़कियां बेवजह मारी जाती हैं. इस का आरोप वह संधू पर लगा देता है और पुलिस को सौंप देता है. अर्जुन भाटिया को यह भी पता चल जाता है कि संधू और नीलेंदु मिल कर राजेंद्र प्रताप सिंह के लिए मुखबिरी कर रहे होते हैं.

नीलेंदु कोलकाता पहुंच जाता है, उस को राजेंद्र के एक आदमी डेनियल को बौर्डर पार कराने की जिम्मेदारी उसे देता है. इस की जानकारी अर्जुन भाटिया को लग जाती है. इधर, अचानक संजना भी अर्जुन के लिए आवेश में आने लगती है. उस की झड़प राजेंद्र प्रताप सिंह से होती है और फिर धक्का लगने से गिर कर वह मर जाती है.

मरने के बाद उपजे कोई हालात वेब सीरीज में देखने को नहीं मिलेंगे. कोलकाता में फिल्म डायरेक्टर की मदद से अर्जुन भाटिया वहां पहुंच जाता है जहां डेनियल को छिपा कर नीलेंदु बंगाली रखता है. यहां डायरेक्टर फिर एक मूर्खता दिखाई है. एक तरफ डेनियल को वह अपने काबू में करना दिखाते हैं. इसी बीच कब नीलेंदु किन हालात में भाग जाता है, यह रहस्य दर्शकों को नहीं मिलेगा.

इस के बाद सीधा फोन राजेंद्र प्रताप सिंह को लगता है. अर्जुन भाटिया कहता है कि उसे डेनियल के बदले में नीलेंदु चाहिए. दोनों रेलवे क्रासिंग पर मिलते हैं. यहां अर्जुन बांह फैला कर नीलेंदु को गले लगाता है और अचानक उसे ट्रेन के सामने फेंक देता है.

उस के मरने की जानकारी उस की पत्नी नयनतारा को देता है. साथ में वह नीलेंदु के हिस्से की रकम भी देता है. इधर, दूसरे सीन में शंकरी देवी कहती है कि अर्जुन के दोस्त की जगह आज वह होता.

यह बात सुनने के बाद राजेंद्र प्रताप सिंह बाथटब में डुबो कर उसे भी मार देता है. उधर, एक बार फिर अचानक अर्जुन भाटिया अपने दोस्त नीलेंदु की पत्नी के पास पहुंचता है और उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगता है. यानी डायरेक्टरों ने एक बार फिर फूहड़ता दिखाई है. यहां एपिसोड खत्म हो जाता है.

आखिर 2 डायरेक्टरों ने मिल कर दर्शकों की भावनाओं को काफी ठेस पहुंचाई है. उन्हें वेब सीरीज में कोई भी मसाला या संदेश नहीं मिलता. दर्शकों को सिर्फ साढ़े 5 घंटे तक बोझ में बनाए रखा कि आखिर वह उसे देख क्यों रहे हैं.

सुपर्ण एस. वर्मा एवं मिलन लूथरिया

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज अर्णब रे की किताब पर आधारित है, जिस का स्क्रीनप्ले सुपर्ण एस. वर्मा ने लिखा है. वेब सीरीज का डायरेक्शन सुपर्ण एस. वर्मा और मिलन लूथरिया ने मिल कर किया है. यह वेब सीरीज हिंदी के अलावा 6 अन्य भाषाओं तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बंगाली और मराठी में भी रिलीज हुई है. वेब सीरीज की शूटिंग मुंबई के साथसाथ पंजाब और गुजरात में भी हुई है.

सुपर्ण एस.वर्मा काफी संवेदनशील फिल्म डायरेक्टर रहे हैं. वह ‘फैमिली मैन’ के दूसरे सीजन के 5 एपिसोड को भी डायरेक्ट कर चुके हैं. वे उसी वेब सीरीज के दूसरे एपिसोड में वह मुख्य कलाकार मनोज बाजपेयी के सामने जर्नलिस्ट उमेश जोशी बन कर आते भी हैं. करीब 2 मिनट के इस अंश में उन्होंने पत्रकार के जीवन को साकार करने का प्रयास किया.

सुपर्ण एस. वर्मा वास्तविक जीवन में पत्रकार रहे थे. इस के बाद वह फिल्म डायरेक्शन के क्षेत्र में आए. इस के पहले वह 2023 में ही ‘राणा नायडू’ और ‘द ट्रायल’ वेब सीरीज को भी डायरेक्ट कर चुके हैं. वेब सीरीज के दूसरे डायरेक्टर मिलन लूथरिया महेश भट्ट के भतीजे हैं. यह उन की असली पहचान नहीं है. वह क्राइम बेस्ड फिल्मों को बनाने के जानकार माने जाते हैं.

लूथरिया ने 1993 में आई ‘लुटेरा’ फिल्म से करिअर की शुरुआत की थी. उन्होंने 2007 में ‘वंस अपान ए टाइम इन मुंबई’ अजय देवगन और सैफ अली खान अभिनीत 1999 में बनी फिल्म ‘कच्चे धागे’, अमिताभ बच्चन और संजय दत्त, अक्षय खन्ना अभिनीत 2014 में प्रदर्शित ‘दीवार’ फिल्म बना चुके हैं.

इस के अलावा जौन अब्राहम, नाना पाटेकर के साथ 2006 में ‘टैक्सी नंबर 9211’ जैसी कई सफल फिल्मों का निर्माण किया है. ऐसे 2 धुरंधरों से ‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज को बनाने में कई तरह की तकनीकी चूक हुई है.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज डेढ़ दरजन कलाकारों को ले कर बनाई गई है.  इस में करीब 70 स्टंटमैन और 11 लोकेशन मैनेजर लिए गए, जिन्होंने शौट को फिल्माने में बखूबी काम किया. सभी लोकेशन शानदार थे और मुठभेड़ कहीं से सतही नहीं मान सकते. लेकिन, वे दर्शकों को जोड़ने में संवादहीनता के कारण पिट गए.

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 2

जब अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली हीरा ले रहे होते हैं, तब पुलिस वहां छापा मार कर सभी को गिरफ्तार कर ले जाती है. जहां गिरफ्तारी होती है वहां गुप्त स्थान पर दोनों छिपे होते हैं. अर्जुन और नीलेंदु यह जान जाते हैं कि पुलिस के पास उन के हुलिए का स्कैच मौजूद है.

हालांकि स्कैच बनाते वक्त हीरा कारोबारी फिल्मी मैग्जीन के चेहरे देख कर हुलिया पुलिस को नोट करा देता है. यह बात छिपे अर्जुन और नीलेंदु नहीं जानते थे. इस कारण नीलेंदु फोन लगा कर एयरहोस्टेस से वापस जाने का समय पूछता है. उसी वक्त दोनों भी एयरपोर्ट पहुंच जाते हैं.

यहां एयरहोस्टेस के पर्स में मौका मिलते ही अर्जुन भाटिया हीरा छिपा देता है, जिसे नीलेंदु हवाई जहाज के शौचालय में ही एयरहोस्टेस के पर्स से निकाल लेता है. वह उस के साथ ही एयरहोस्टेस के घर जाता है.

यह बात अर्जुन भाटिया फोन कर के जगन सेठ को बता देता है. उस वक्त राजेंद्र प्रताप सिंह भी वहां मौजूद होता है. यहां शंकरी देवी उस को कहती है कि जगन सेठ के सामने वह कमजोर साबित हो रहा है. इसलिए कोई चालाकी करनी होगी. जिस के बाद पुलिस की रेड पड़ती है. जहां रेड पड़ती है, वहां नीलेंदु बंगाली एयरहोस्टेस के कमरे में होता है. पुलिस को आते हुए अर्जुन भाटिया देखता है और वह नीलेंदु को बचाने के लिए कूद पड़ता है.

अर्जुन भाटिया पुलिस वालों के पैरों में गोली मारता है. इसी बीच एक गोली पुलिस वाले के सिर पर जा कर लगती है. लेकिन, वह अर्जुन भाटिया की गन से नहीं चलती. वह कुछ समझता, तब तक नीलेंदु तो भाग जाता है और अर्जुन भाटिया पुलिस की पकड़ में आ जाता है.

वेब सीरीज का पांचवां एपिसोड मध्यांतर तक काफी बोरियत भरा है. डायरेक्टर अर्जुन भाटिया की कहानी के साथ न्याय नहीं कर सके. इस में कोई दोराय नहीं है कि कास्ट किए गए कलाकार नाम के लिए मोहताज हैं, लेकिन डायरेक्टरों का नजरिया उन के अभिनय को कमजोर करता चला गया.

पांचवें एपिसोड का शीर्षक ‘रूल्स औफ द गेम’ है. हालांकि रूल और गेम दर्शकों को अमूमन हर एपिसोड में सोचसोच कर तलाशने पड़ेंगे.

पांचवें एपिसोड में अर्जुन भाटिया की प्रेमिका संजना पर राजेंद्र प्रताप सिंह डोरे डालने लगता है. इधर, अर्जुन को जेल से छुड़ाने के लिए जगन सेठ वकील से ले कर तमाम दांवपेंच लगाता है. लेकिन, इन्हें डायरेक्टर सटीक तरीके से पेश करने में कामयाब नहीं हुए.

वेब सीरीज में जान डालने के लिए डायरेक्टर के नजरिए पुलिस का थर्ड डिग्री अर्जुन भाटिया पर फिल्माया गया. यह काफी बोझिल है, जिस में जान फूंकना संभव ही नहीं है. डायलौग डिलीवरी से ले कर सीन क्रिएशन में चुतियापा किया है.

हवालात और पुलिस के बीच में कोई तालमेल नहीं रहा. जबकि अर्जुन भाटिया ने कई पुलिस वालों को गोली मारी थी, उसे बेहद हलके में प्रस्तुत कर दिया गया. जबकि मीडिया और जगन सेठ पर उस की आंच डायरेक्टर दिखा ही नहीं सके.

डायरेक्टरों की सब से ज्यादा बेवकूफी तब लगी, जब जगन सेठ की परछाई बने रहने वाले संधू का राज वह अचानक खोल देते हैं. दरअसल, अर्जुन अपनी प्रेमिका की शादी राजेंद्र प्रताप सिंह के साथ होने को ले कर नाराज चल रहा होता है. वह उस से बदला लेना चाहता है, जिसे बड़ी आसानी से जगन सेठ भांप लेता है. वह उसे समझता है कि अभी बदला लेने का वक्त नहीं है.

तब अर्जुन कहता है कि पुलिस वाले को दूसरी गोली किस ने मारी, यह पता लगाया जाना चाहिए. ऐसा कहते ही डायरेक्टर संधू की तरफ कैमरा ले जाते हैं और पूरा राज बड़ी आसानी से खोल देते हैं.

पांचवें एपिसोड में यह साफ हो जाता है कि संधू सोचीसमझी रणनीति के तहत राजेंद्र प्रताप सिंह के लिए काम कर रहा है. इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह सुहागरात की सेज पर संजना के सामने अर्जुन का नाम ले कर यह बता देता है कि वह उस के सारे राज जानता है.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज के छठें एपिसोड की शुरुआत बिना मतलब बैंक डकैती से होती है. इस एपिसोड का नाम ‘नाइट्स इन वाइट सैटिन’ दिया गया है.

जगन सेठ के कहने पर कोलकाता के फिल्म डायरेक्टर को हथियारों की डिलीवरी देने अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली जाते हैं. वहां फिल्म डायरेक्टर बैंक लूटने के लिए प्रपोजल रख देता है. बैंक लूटने से पहले अर्जुन और नीलेंदु एक क्लब में पहुंचते हैं.

यहां बार डांसर के रूप में नयनतारा दर्शकों के सामने आती है. वह आइटम सांग गाती है जिस के बोल दर्शकों के जेहन पर कोई प्रभाव नहीं डाल सके. वहीं संगीत आर.डी. बर्मन पैटर्न पर बना कर काफी आकर्षक जरूर लगा है. यहां नयनतारा नीलेंदु से दोस्ती करती है, लेकिन निगाहें अर्जुन पर रहती हैं. वह फिल्म डायरेक्टर के शूटिंग में पहुंचती है.

यहां वास्तविक फिल्म डायरेक्टर ने पुलिस प्रशासन की व्यवस्था को बौना साबित किया है. वह भी कोलकाता जैसे शहर में, पुलिस कमिश्नर के सामने डाकघर में जमा सारी नकदी लूटी जाती है. उस के बावजूद एक बार फिर यहां मीडिया का हंगामा और किसी तरह का कवरेज नहीं दिखाया गया.

बैंक डकैती के बाद आसानी से अर्जुन भाटिया दिल्ली लौट आता है. उसे लौटने के लिए जगन सेठ कहता है. क्योंकि उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि राजेंद्र प्रताप सिंह उस के साथ कोई गेम खेल रहा है. वहीं जगन सेठ अपना चुनाव हार जाता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह अपने इरादे खुल कर जगन सेठ को बता देता है. ऐसा करते वक्त उस के सामने शंकरी देवी आती है, जिस को जगन सेठ पहले से जानता है लेकिन अर्जुन भाटिया बेखबर होता है. शंकरी देवी सुनियोजित तरीके से जगन सेठ को कहती है कि उस के एंपायर पर अर्जुन भाटिया बैठने जा रहा है. यह सब कुछ बेहद हलके तरीके से दोनों डायरेक्टरों ने पेश किया है.

फिल्म में दर्शकों के लिए उत्साह पैदा करने के लिए एपिसोड के मध्यांतर से पहले संजना के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए राजेंद्र प्रताप सिंह को दिखाया गया है. इस से ऐसा लगता है कि डायरेक्टर इंटीमेट सीन के लिए पगलाए हुए हैं. यानी उन के भेजे में यही फूहड़ता भरी हुई है. ऐसा करते वक्त शंकरी देवी भी वहां आती है. यह एपिसोड भी दर्शकों में कोई प्रभाव नहीं डाल सका.

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज के सातवें एपिसोड में दर्शक हैरान रह जाएंगे. दरअसल, 3 साल पहले का बता कर एक अचंभित करने वाला दृश्य सामने आता है. अर्जुन भाटिया को अपना पिता मिलता है. वह पिता जिस को उस ने पहले एपिसोड में जला दिया था. हालांकि यह नहीं बताया गया था कि वह मरा है कि जीवित.

इस सस्पेंस को दोनों डायरेक्टर सातवें एपिसोड में खोलते हैं. पिता उसे दोबारा मिलता है, जिस को शराब पीने की बुरी लत लगी होती है. वह अपने बेटे से कहता है कि उसे मार दे. ऐसा कहने पर अर्जुन भाटिया उसे उठा कर डैम में फेंक देता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह के कहने पर जमुना प्रसाद जो सरकारी अधिकारी है और गन बनाने के ठेके देता है, वह जगन सेठ के ठिकानों पर छापे मारता है. हालांकि उस से पहले अर्जुन भाटिया उन अवैध हथियारों को फारुख मस्तान के ठिकानों पर छिपाने में कामयाब हो जाता है.

उस वक्त जश्न में नीलेंदु और अर्जुन को जगन सेठ के गुर्गे बौस बोल कर गोद में उठा लेते हैं. यह बात उसे चुभती है और शंकरी देवी की बोली बात याद आती है. इसी एपिसोड में जगन सेठ दोनों को सुनियोजित तरीके से ठिकाने लगाने के बहाने इटावा भेज देता है, जहां रास्ते में जाते वक्त अर्जुन और नीलेंदु अपना राज बताते हैं. जबकि पूरे एपिसोड में उन की घनिष्ठता बताने के लिए डायरेक्टर ने दूसरा एपिसोड बनाया था.

नीलेंदु बताता है कि वह कोलकाता की बार डांसर नयनतारा को पत्नी बनाने वाला है. वहीं अर्जुन कहता है कि वह उस गैरेज मालिक की बेटी प्रीति से शादी करने जा रहा है, जिस के यहां पर वह पहले नौकरी करता था. इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह की चाल जब खरी नहीं उतरती है तो वह शंकरी देवी के साथ शारीरिक संबंध आवेश में बनाता है.

ऐसा करते वक्त शंकरी देवी काफी चीखती है और उसे रोकना चाहती है. वह जब नहीं रुकता है तो शंकरी देवी कहती है कि वह भविष्य में उस की मरजी के बिना उसे टच भी नहीं कर सकेगा. तभी वहां जबरिया राजेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी संजना पहुंच जाती है.

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 1

डायरेक्टर: सुपर्ण एस. वर्मा, मिलन लूथरिया

लेखक: सुपर्ण एस. वर्मा

कलाकार: ताहिर राज भसीन, निशांत दहिया, अनुप्रिया गोयनका, मौनी राय, मेहरीन पीरजादा, विनय पाठक, अंजुम शर्मा, अनिल जार्ज, सुनील पलवल, हरलीन सेठी

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज भारत की आजादी के बाद बने हालात पर केंद्रित है, जिस में अर्जुन भाटिया नाम के एक पात्र से जुड़े विषयों पर इसे लिखा गया है. कहानी  की शुरुआत अर्जुन भाटिया की जवानी से शुरू होती है. अर्जुन भाटिया का रोल ताहिर राज भसीन ने निभाया है.

वेब सीरीज अर्जुन के बचपन के आधा घंटा फ्लैशबैक में जाती है. इस दौरान सीरीज से जुड़े अन्य पात्रों के बचपन को दिखाते हुए दूसरे बाल कलाकार के रूप में राजेंद्र प्रताप सिंह को दिखाया जाता है. राजेंद्र प्रताप सिंह की भूमिका निशांत दहिया ने निभाई है. उस के पिता अपने मनोरंजन के लिए शंकरी देवी को साथ में रखते हैं.

शंकरी देवी का अभिनय अनुप्रिया गोयनका ने निभाया है. वह पिता के साथसाथ बचपन से ही राजेंद्र प्रताप सिंह पर डोरे डालने लगती है. वेब सीरीज को 2 डायरेक्टरों सुपर्ण एस. वर्मा और मिलन लूथरिया ने मिल कर बनाया है. अर्जुन भाटिया का परिवार आजादी के बाद हुए बंटवारे में भारत आता है. पाकिस्तान में रहते वह काफी संपन्न रहता है, वहीं राजेंद्र प्रताप सिंह का परिवार भारत में संपन्न रहता है.

फिल्म डायरेक्शन के दौरान पहले एपिसोड में डायरेक्टरों की भारी कमियां आप सहज महसूस कर सकेंगे. इस में अर्जुन के बचपन में पिता के अचानक अय्याश होने की बात, फिर उस के अपराध जगत की तरफ जाने के किस्से बहुत जल्दीजल्दी में फिल्माए गए हैं.

यहां दर्शक बोर न हो जाएं तो शंकरी देवी की आड़ में 2 बार डायरेक्टरों ने राजेंद्र प्रताप सिंह के बाल कलाकार के रूप में इंटीमेंट सीन बनाने का प्रयास किया है. पहले एपिसोड में जगह जगह डायलौग डिलीवरी तो है, लेकिन वह दर्शकों में प्रभाव डालने वाली नहीं है.

इस में शंकरी देवी और राजेंद्र प्रताप सिंह पर डोरे डालते वक्त बोला गया डायलौग. शंकरी देवी यहां राजेंद्र प्रताप सिंह से कहती है कि उसे जो चाहिए वह उस के पिता के पास है. वह देने के लिए उसे बड़ा होना पड़ेगा. अर्जुन को जब बड़ा होते दिखाया गया, तब दोनों डायरेक्टर उस पल पर फिल्माए गए सीन के साथ न्याय नहीं कर पाए.

पहले एपिसोड में 1962 लिखा है, लेकिन उस में आज के जमाने की रौयल एनफील्ड दिखाई गई है. शायद उस समय डायरेक्टरों की अकल घास चरन गई होगी. इसी तरह जगन सेठ के इशारों पर हथियारों की डिलीवरी ले जाते वक्त हुई मुठभेड़ के फिल्मांकन में भी दोनों डायरेक्टर मात खा गए. जगन सेठ की भूमिका मशहूर हास्य कलाकार विनय पाठक ने निभाई है. वे पात्र के अनुरूप अपने चरित्र को ढाल नहीं सके.

इस के अलावा अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली, जो हथियार चलाते हुए दिखाए गए, वे सारे आधुनिक हथियार हैं. यह इंसास, एके47 अमेरिकन मेड पिस्टल से मेल खाते हुए हैं. यहां भी डायरेक्टरों ने कमअक्ल होने का सबूत दिया है. नीलेंदु बंगाली की भूमिका अंजुम शर्मा ने निभाई है. वह अर्जुन का करीबी यार दिखाया गया है, जिस का मकसद सिर्फ जगन सेठ के लिए काम करना है.

वेब सीरीज में जगहजगह जबरिया ड्रामा और सस्पेंस पैदा करने का असफल प्रयास किया गया है. यह आप को नीलेंदु बंगाली और अर्जुन भाटिया की पहली मुलाकात में भी देखने को मिलेगा. इस के अलावा जगन सेठ और अर्जुन भाटिया की जब मुलाकात होती है तब भी आप को वेब सीरीज में किसी न किसी बात की कमी स्वयं महसूस कर सकेंगे.

एपिसोड में राजेंद्र प्रताप सिंह और जगन सेठ एकदूसरे को फायदा पहुंचाने के लिए हाथ मिलाते हैं. पहले एपिसोड में निर्मम हत्या, बाल कलाकारों पर किए जा रहे यौन शोषण के किस्से आप को कोई रोमांच पैदा नहीं कर सकेंगे.

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज के दूसरे एपिसोड को दोनों डायरेक्टरों ने मिल कर क्यों बनाया, यह आप को पूरा देखने के बाद भी समझ में नहीं आएगा. अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली के बीच दोस्ताना संबंध को स्थापित करने के लिहाज से कई सीन डाले गए, जो काफी बोझिल हैं.

जगन सेठ के लिए काम करने वाले इन 2 खास सिपहसालारों की जानकारी राजेंद्र प्रताप सिंह पहले से रखता है. वह पार्टी में जब उन की मुलाकात कराता है तो यह बात वह बोलता भी है, लेकिन दोनों डायरेक्टर इस बात को साबित करने में नाकाम साबित हुए.

पहली हथियारों की डिलीवरी देने की खुशी में आयोजित पार्टी में मुठभेड़ भी दिखाई गई. यह किस ने और किस के इशारों पर अंजाम दी गई, यह साफ नहीं होता है. इस से पहले हथियारों की डिलीवरी लेने वाले के कहने पर अर्जुन और नीलेंदु बंगाली जेल से उस के बेटे को छुड़ाते हैं.

यह सीन भी डायरेक्टर ने काफी बोझिल बनाया. उस में निरंतरता की काफी कमी दर्शकों को दूसरे एपिसोड में दिखाई देगी. इधर, शंकरी देवी के जरिए राजेंद्र प्रताप सिंह दूसरे एपिसोड में पार्टनर बने जगन सेठ को मंत्री बनाने के लिए चुनाव में टिकट दिलाने की बात पहुंचाता है. यहां भी डायरेक्टर अचानक एक ऐसे नेता को दर्शकों को सामने ला देते हैं, जिस के बारे में दूसरे एपिसोड में स्थिति साफ नहीं होती.

दूसरे एपिसोड में 60 के दशक के संगीत को आधुनिक बना कर पेश किया गया है. यह बैकग्राउंड म्यूजिक है, लेकिन दर्शकों को मनोरंजन देने में बिलकुल नाकाम साबित हुआ. जगन सेठ पर हुए हमले के बाद की परिस्थितियों को भी बेहद हलके अंदाज में डायरेक्टर ने प्रदर्शित किया. दूसरे एपिसोड का शीर्षक ही अचरज में डालने वाला है.. इस कहानी का शीर्षक ‘स्वीट स्मेल आफ सक्सेस’ है.

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज के तीसरे एपिसोड को काफी अव्यवहारिक बनाया गया है. वेब सीरीज के मुख्य किरदार को इस एपिसोड के लिए पूरी तरह से नग्न होना पड़ता है. वह भी वेब सीरीज में फारुख मस्तान और उस के साथ बैठी फरीदा बी के सामने.

फारुख मस्तान की भूमिका अनिल जार्ज ने निभाई है. वह काफी मंझे हुए कलाकार हैं, लेकिन दोनों डायरेक्टर अपने हुनर का लोहा उस से नहीं मनवा पाते.

तीसरे एपिसोड को ‘किस औफ लव’ नाम दिया गया है. फारुख के बेटे शाहिद के पास जाने की टिप जगन सेठ का ही दाहिना हाथ और उस के साथ परछाईं की तरह रहने वाला संधू देता है. यह भूमिका सुनील पलवल ने निभाई है. वह ही उसे उकसाता है कि जगन सेठ का करीबी बनने के लिए फारुख मस्तान के बेटे शाहिद से पूछताछ की जानी चाहिए.

जगन सेठ पर हुए हमले को ले कर पूछताछ करने के लिए अर्जुन भाटिया वहां जाता है. हालांकि वह कुछ कहता, उस से पहले संधू ही उसे गोली मार देता है. जब यह बात जगन सेठ को पता चलती है तो गलती को अर्जुन भाटिया अपने सिर पर ले लेता है. उसे ही सुधारने के लिए अर्जुन भाटिया फारुख मस्तान के सामने नंगा होता है.

फारुख का दिल जीतने पर जगन सेठ खुश हो कर अर्जुन भाटिया को अपनी कार देता है, जिस में वह कारोबारी हरीश कुमार की बेटी संजना को लिफ्ट देता है. यहां से दोनों के प्यार की शुरुआत दिखाई गई है. संजना का किरदार मेहरीन पीरजादा ने निभाया है. वह उस को बंगले पर ले जाता है.

यह बंगला उसे कैसे मिला, वेब सीरीज में यह साफ नहीं है. डायरेक्टर ने वेब सीरीज में संजना और अर्जुन भाटिया के लव सीन और गाने को एक ही जगह पर फिल्माया है. इधर, जगन सेठ को टिकट देने की सिफारिश शंकरी देवी इंडिया विकास पार्टी के नेता से करती है. जब वह तैयार नहीं होता है तो शंकरी देवी दि क्राउन रायल होटल के मैनेजर को कहती है.

शंकरी देवी के कहने पर नेता को कई लड़कियों के साथ हनीट्रैप में फंसाया जाता है, जिस कारण इंडिया विकास पार्टी का नेता जगन सेठ को अपना उम्मीदवार घोषित कर देता है.

तीसरे एपिसोड में यह सब कुछ काफी बिखरा हुआ नजर आता है. दर्शकों के सामने डायरेक्टर सीधे परिणाम देते हैं. जबकि परिणाम के पहले होने वाले संघर्ष और उस की वजह को ले कर कोई भी बात पता नहीं चली.

वेब सीरीज का चौथा एपिसोड फिर जगन सेठ के आसपास घूमता है. इस बार जगन सेठ के लिए नीलेंदु बंगाली और अर्जुन भाटिया मुंबई जाते हैं. इस कारण इस एपिसोड का नाम ‘बांबे कांफिडेंशियल’ रखा गया है.

लेकिन दोनों डायरेक्टर पहले की तरह हर सीन में कोई भी बात कांफिडेंशियल नहीं रहने देते. क्योंकि जिस शीर्षक पर यह एपिसोड बनाया गया है, वह डायरेक्टरों की लापरवाही उजागर करता है. दरअसल, अर्जुन भाटिया हीरे लेने के बाद काल कर के जगन सेठ को बताता है कि माल उस के पास है.

इस एपिसोड में डायरेक्टरों ने बिना वजह का हवाई जहाज के भीतर शौचालय में एयरहोस्टेस के साथ सैक्स करते हुए फूहड़ता भरा सीन क्रिएट किया है. इस से डायरेक्टरों की सोच भी नंगी हो जाती है.

यहां 3 एपिसोड में डायरेक्टर की नीयत से पहले ही साफ हो जाता है कि एयरहोस्टेस की हीरा डिलीवरी के वक्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी. क्योंकि बिना रोमांच और सस्पेंस के नीलेंदु बंगाली उस के पास जाता है और वह उसे शौचालय में संबंध बनाने के लिए तैयार कर लेता है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू)

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 5

नौवें एपिसोड में सादिक कादरी का जनाजा ले जाने के साथ वेब सीरीज शुरू होती है. जिस के बाद पठान गैंग डर के साए में जीने लगता है. उसे हाजी मकबूल समझाता है कि पिछली बार दोस्त और उस की पत्नी को मारने के बाद बंबई जल रही थी, इस बार तो सादिक कादरी जो दारा कादरी का भाई है, उसे मारा है.

पठान गिरोह ऐसा बोलने पर हाजी मकबूल को अश्लील गालियां देते हुए अपने रिश्ते खत्म कर लेता है. हाजी मकबूल यहां से निकल कर दारा कादरी से मिल जाता है. वह सादिक कादरी को मारने वाले गन्या सुर्वे के सारे राज को उजागर कर देता है.

दूसरी तरफ इंसपेक्टर रणवीर मलिक पर सीनियर अधिकारियों का दबाव बनता है. वह बंबई में हो रहे गैंगवार के चलते मर्डर को ले कर उन्हें फटकारता है. जिस के बाद इंसपेक्टर मलिक और दारा कादरी के बीच मुलाकात होती है. इस दौरान दारा कादरी और इंसपेक्टर के बीच गन्या सुर्वे के एनकाउंटर की पटकथा लिखी जाती है.

अन्ना को मारते हुए डायरेक्टर ने 2 से 3 मिनट में खात्मा होते हुए दिखा दिया. पठान और उस के करीबी को निपटा दिया जाता है. यहां से हारून नाम का एक गुर्गा जो पठान के लिए काम करता है, वह बच कर भाग जाता है. जिस की आड़ में कहानी को लंबा किया जाता है.

वह भाग कर पुलिस अधिकारियों से मदद मांगता है, जिस के बाद दारा और अब्दुल्ला तय करते हैं कि जेल के भीतर उस को मारा जाए. कहानी अगले सीन की तरफ शिफ्ट की जाती है. जहां अधेड़ उम्र का आदमी एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने जा रहा होता है, तभी वहां नए किरदार की एंट्री के रूप में उस का प्रेमी आ जाता है. उस का नाम छोटा बब्बन होता है.

रियल लाइफ में गैंगस्टर छोटा राजन के कैरेक्टर से प्रभावित है. यह भूमिका आदित्य रावल ने निभाई है. दोनों को रंगेहाथ पकड़ने के बाद वह आवेश में आ कर प्रेमिका को गोली मार देता है. यहां भी जबरिया सीन खींचा गया. गोली मारने वाला प्रेमी वापस आ कर संबंध बनाने जा रहे व्यक्ति की भी गोली मार कर हत्या कर देता है.

हत्या के बाद वह गणेश महोत्सव में नाचने लगता है. दारा कादरी के लिए छोटा बब्बन काम का मोहरा लगता है. वह हारून को जेल के भीतर निपटाने के लिए उसे बुलाता है. इस के साथ ही एपिसोड खत्म हो जाता है.

एपिसोड का आखिरी पड़ाव दसवें एपिसोड से शुरू तो होता है लेकिन डायरेक्टर की तरफ से पटकथा भटकती नजर आती है. यहां छोटा बब्बन के दोस्त के रूप में एंट्री होती है. दूसरी तरफ मलिक और पुलिस कमिश्नर के बीच कलह दिखाई गई है. कमिश्नर दारा कादरी को गिरफ्तार करने का दबाव बनाता है.

पुलिस कमिश्नर का रोल कन्नन अरुणाचलम ने निभाया है. यहां मलिक कंफ्यूज रहता है. डायरेक्टर ने कमिश्नर के रूप में जिस कलाकार को चुना, वह रोल में काफी अनफिट नजर आया. जबकि वह काफी सीनियर कलाकार है. डायरेक्टर ने उस से अनुभव का लाभ ही नहीं लिया. कमिश्नर और मलिक के बीच हौट टौक के लिए भी डायरेक्टर ने लोकेशन बहुत गलत चुनी.

हारून धक्का दे कर वहां से भाग निकलता है. इस के बाद अगले सीन में छोटा बब्बन ने हारून पर पिस्तौल तान रखी है. यहां डायरेक्टर फिर बैकग्राउंड एक्टिविटी को अपने नियंत्रण में नहीं कर सके. इस कारण कुछ देर के लिए वेब सीरीज हलकी होती नजर आई.

बब्बन गोली मार देता है और अदालत से बाहर निकलते हुए कार में बैठने के बाद पुलिस वालों ही उस की कार को धक्का लगाते हुए दिखाते हैं. इस के बाद दारा कादरी वेब सीरीज के आखिरी विलेन अजीम पठान को मार देता है.

फिर कहानी एपिसोड के पहले सीन की तरफ शिफ्ट हो जाती है. दारा कादरी पूरे परिवार के साथ दुबई जाने का फैसला करता है. लेकिन पिता के मना करने पर हबीबा इंडिया में रह जाती है. दारा कादरी दुबई चला जाता है. उस के जाने के बाद हबीबा काम संभालने लगती है.

एपिसोड के अंत में सस्पेंस वाला मर्डर दिखाया गया है, जो चाय की दुकान में काम करने वाला नाबालिग लड़का शौच के लिए बैठे व्यक्ति को गोली मार देता है. वह बच्चा ऐसा करने के बाद हबीबा से कहता है काम हो गया. यहां सीरीज ही खत्म हो जाती है.

सिगरेट के विज्ञापनों से अपना करिअर शुरू करने वाले केके मेनन ‘बंबई मेरी जान’ में अहम किरदार निभा रहे हैं. भारत के केरल शहर में जन्मे मेनन तेलुगु भाषा के अलावा गुजराती, तमिल और मराठी फिल्मों में काम कर चुके हैं.

बौलीवुड और टेलीविजन इंडस्ट्रीज में मेनन नाम नया नहीं है. नेगेटिव रोल वह कई फिल्मों में काम किया है. मेनन की उम्र 57 साल हो चुकी है. बंगाली निवेदिता भट्टाचार्य के साथ उस ने शादी की है. हालांकि निवेदिता का जन्म लखनऊ में हुआ है. दोनों की मुलाकात थिएटर ग्रुप से जुड़ने के दौरान हुई थी. निवेदिता भट्टाचार्य इंडियन टेलीविजन में और बौलीवुड में 2000 के दशक से ऐक्टिव है.

निवेदिता भट्टाचार्य ने अपने फिल्मी करिअर में तकरीबन 8 फिल्मों में काम किया है. जिन में ‘डर द माल’, ‘भय’ 2017 में ‘शुभ मंगल सावधान’ आई थी. निवेदिता की आखिरी फिल्म 2023 में ‘द वैक्सीन वार’ रही है. टीवी जगत की बात करें तो करीबन डेढ़ दरजन से ज्यादा टीवी सीरियलों में वह काम कर चुकी है. उस का चर्चित सीरियल 1997 में ‘क्या बात है’ काफी चर्चित रहा था.

टीवी शो में निगेटिव पौजिटिव दोनों तरह के चरित्र पर उन्होंने काम किया. फिल्मी दुनिया में भी इसे अच्छे कलाकारों की सूची में माना जाता है. ‘बंबई मेरी जान’ वेब सीरीज में निवेदिता का किरदार पहले 5 एपिसोड तक तो ठीक था, लेकिन इन के अभिनय में लगता है डायरेक्टर ने अपना दिमाग जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया है. जिस में सारे सीन इमोशन से भरे हैं.

यहां तक कि सामान्य दिखने वाली जगह पर भी निवेदिता के चेहरे पर एक्सप्रेशन के नाम पर सिर्फ मुसकान ही रही है. उस के लाइफ पार्टनर मेनन ने पहला प्ले नसीरूद्दीन शाह के साथ ‘महात्मा बनाम गांधी’ में किया था. केतन मेहता के चर्चित टीवी सीरियल में युवा प्रधानमंत्री की भूमिका निभाने के बाद वह बौलीवुड के डायरेक्टरों की निगाह में आया था. मेनन फिल्म जगत में तब चर्चित हो गया, जब उस ने ‘भोपाल एक्सप्रेस’ में लीड भूमिका निभाई. उसे अनुराग कश्यप का साथ मिला. लेकिन जिस फिल्म में काम किया वह सेंसर बंदिशों के चलते अटक गई.

मेनन को फिल्मफेयर और आईफा का पुरस्कार 2014 में मिल चुका है. उस की भूमिका की चर्चा भारतीय नौसेना के पीएनएस विक्रांत को ले कर बनी फिल्म में भी हुई थी. यह फिल्म 1971 के युद्ध के दौरान निगरानी के लिए रवाना किए गए पनडुब्बी विक्रांत की उपलब्धि पर बनी थी. इसी पनडुब्बी में सवार सैन्य अधिकारी बने केके मेनन ने महत्त्वपूर्ण रोल निभाया था.

विक्रांत ने पाकिस्तान की पनडुब्बी गाजी को चारों खाने चित किया था. ‘बंबई मेरी जान’ से पहले हौट स्टार की वेब शृंखला ‘स्पैशल आप्स’ में हिम्मत सिंह के किरदार को निभाने के बाद ओटीटी इंडस्ट्री में अपनी आवश्यकता बता दी थी. इस वेब सीरीज में उस ने रा के एक अधिकारी की भूमिका निभाई थी.

मेनन ने ‘सरकार’ फिल्म में अमिताभ बच्चन के बेटे की नेगेटिव भूमिका भी निभाई थी, जिस में वह दर्शकों को अपने समय में बांधे रखने में बहुत ज्यादा कामयाब हुआ था. ‘बंबई मेरी जान’ में केके मेनन ने इस्माइल कादरी की भूमिका निभाई. वेब सीरीज अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित है, लेकिन दाऊद इब्राहिम नाम की जगह डायरेक्टर ने उस को दारा कादरी बताया है. दारा कादरी का पिता इस्माइल कादरी है, जो पुलिस का अधिकारी है.

सौरभ सचदेवा

यूं तो सौरभ सचदेवा की शुरुआत बौलीवुड में 2016 से हुई थी, लेकिन ख्याति ओटीटी में रिलीज ‘सेक्रेड गेम्स’ से मिली. फिर वह ओटीटी के लिए जानामाना चेहरा बन गया है. यह नेटफ्लिक्स में 2018 में प्रदर्शित हुई थी, जिस में सुलेमान ईसा का महत्त्वपूर्ण किरदार उस ने निभाया था. ‘बंबई मेरी जान’ में वह हाजी मकबूल बना है.

सभी एपिसोड में हाजी मकबूल के रूप में सौरभ सचदेवा का अभिनय दर्शकों को देखने को मिलेगा. सचदेवा ऐक्टिंग के जानदार कोच भी है. उस ने वरुण धवन, जैकलीन फर्नांडीज समेत कई अन्य कलाकारों को अभिनय का हुनर सिखाया है. वह अपना थिएटर ग्रुप भी चलाता है.

विवान भटेना और शिव पंडित

कलाकार शिव पंडित भी चर्चा में है. उस ने रणवीर मलिक की भूमिका निभाई है. शिव पंडित रेडियो जौकी के अलावा मंच होस्टिंग करने और मौडलिंग भी करते हैं. वह कलाकार गायत्री पंडित का भाई है. उस ने ‘देसी बौयज’, ‘बौस’ समेत कई फिल्मों में सहायक निर्देशक का काम किया. फिल्म इंडस्ट्री में शिव पंडित को ज्यादा संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं पड़ी.

उस ने 2011 से फिल्म इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया था. इसी तरह टीवी कलाकार विवान भटेना ने दारा के दोस्त अब्दुल्ला का महत्त्वपूर्ण रोल निभाया है. भटेना एकता कपूर के होम प्रोडक्शन बालाजी प्रोडक्शन का चर्चित चेहरा हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में उस ने शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘चक दे इंडिया’ से करिअर की शुरुआत की थी. इस के अलावा विवान भटेना सलमान खान के होम प्रोडक्शन में बनी फिल्म ‘हीरो’ और आमिर खान की चर्चित ‘तलाश’ फिल्म में भी काम कर के लोकप्रियता हासिल कर चुका है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 4

छठवें एपिसोड की शुरुआत दारा कादरी के दोस्त को अस्पताल में दिखाने से शुरू होती है. वह कान में दारा को नाम बताने के बाद दम तोड़ देता है. इस के बाद इस्माइल कादरी आ कर दारा को अपराध छोड़ कर सामान्य जीवन जीने की सलाह देता है. जिस के जवाब में दारा कहता है कि आप अपने दोस्त के खूनी को स्टेशन छोड़ने जा सकते हैं पर मैं ऐसा नहीं कर सकता. यहां जबरिया डायरेक्टर ने पितापुत्र के बीच भावनात्मक इमोशनल वाला सीन क्रिएट करते हुए दर्शकों को बोझिल कर दिया.

दारा कादरी का गिरोह मौत के बाद ऐक्शन में आता है. वह पठान गिरोह के लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतारने लग जाते हैं. पठान अपने भांजों को ले कर यहांवहां छिपाने लगता है. दोनों वेब सीरीज में शूटर दिखाए गए हैं. इस के बावजूद हाथ में गन ले कर दारा कादरी से बच कर भागते हुए फिल्माया गया. बाहर निगरानी कर रहे दारा के आदमी उन्हें दबोच लेते हैं.

यहां दोनों की क्रूरता के साथ हत्या करते हुए डायरेक्टर ने फिल्माया है. नासिर को नंगा कर के उस के कूल्हे पर धारदार हथियार से वार कर के मर्डर का सीन फिल्माया है. इस के बाद दारा के नाम का दबदबा बंबई में बढ़ जाता है. यहां दारा कादरी की तरक्की को दिखाया जाने लगता है. उसे दुबई में शेखों से मुलाकात के जरिए शक्तिशाली बनते हुए दिखाया गया है.

सातवें एपिसोड में कहानी फिर इस्माइल कादरी पर जबरिया पलटाई जाती है. वह अपनी पत्नी से कहता है कि इन सब हराम की दौलत के बीच में मेरे ईमान का दम घुटता है. जिस के बाद वह किराए के कमरे में रहने के लिए चला जाता है.

डायरेक्टर ने कादरी के बड़े बेटे सादिक कादरी की शादी के जरिए एक बार फिर वेब सीरीज के टाइम को बढ़ाने में बिना मतलब कोशिश की. भावनात्मक रूप से दारा कादरी को हीरो बनाने की कोशिश पितापुत्र के बीच डायलौग डाल कर ऐसा किया गया.

इसी दरमियान दारा के बड़े भाई सादिक, जिस की भूमिका जितिन गुलाटी ने निभाई है. दारा अपने साथ दुबई अकसर अब्दुल्ला को लाना और ले जाना पसंद करता था. उस का कहना था कि वह उस की पत्नी का खयाल रखे. इसलिए वह आवेश में पत्नी से अलग हो कर चकलाघर आनेजाने लगता है. कहानी एक बार फिर परी पटेल पर लौट कर आती है. वह दारा की माशूका दिखाई गई है.

वेब सीरीज में उन के शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाए गए हैं. उसी वक्त दारा का बड़ा भाई भी शारीरिक संबंध पत्नी के साथ बनाते हुए दिखाया गया है. सादिक की पत्नी का अभिनय करने वाली कलाकार की जानकारी गुप्त रखी गई है. क्योंकि उस ने वेब सीरीज में न्यूड सीन किया है. यहां कलाकार को पैसों के लिए नग्नता परोसे जाने के कारण दर्शक काफी मायूस होंगे.

सादिक पर फिल्माया गया यह सैक्स सीन देख कर दर्शकों को 2 मिनट पोर्न मूवी देखने जैसा अहसास बेहूदा डायरेक्टर ने प्रस्तुत किया है. यह देखने के लिए दर्शकों को भी काफी साहस की आवश्यकता होगी.

अधिकांश सीन चकलाघर और सादिक की बीवी के जरिए परोस कर यहां डायरेक्टर ने खुलेआम नंगई को परोसा है. एपिसोड के अंत में गन्या सुर्वे के रूप में नए कलाकार की एंट्री होती है. यह रोल सुमित व्यास ने निभाया है. उस की पर्सनैल्टी को देखते हुए किरदार के रूप में अनफिट नजर आ रहा है. जबकि वास्तविकता में गन्या सुर्वे का नाम यह शूटर था. वह अंडरवर्ल्ड में सुपारी ले कर मर्डर करने का काम करता था.

एपिसोड के आखिर में डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए दिखाया गया है. उस के बाजू में गरदन रेतने के बाद अचेत लड़की इसी कुरसी पर बैठी है. वहां बच्चा भी टेबल पर सिर रख कर पड़ा हुआ दिखाया गया.

तीसरी लाश जमीन पर पड़ी हुई थी. इस के अलावा एक व्यक्ति सिसकियां लेते हुए दिखाया गया. उसे गन्या सुर्वे गोली मार देता है. डायरेक्टर ने यह सीन वेब सीरीज में क्यों और किन कारणों से लिया, सस्पेंस खुल ही नहीं पाता.

आठवें एपिसोड की शुरुआत गन्या सुर्वे के इंट्रो से शुरू होती है. उस के सामने पठान गैंग बैठा होता है. पठान गैंग की तरफ से दारा कादरी को मारने की सुपारी 10 लाख रुपए में उसे देता है. वह चुप हो कर अपनी डिमांड एक करोड़ रुपए बोलता है. उस का कहना होता है कि वह केवल दारा कादरी को नहीं, बल्कि उस के पूरे खानदान को खत्म कर देगा.

वेब सीरीज के आठवें भाग में इमोशनल ड्रामा जबरिया भरा गया है. दुबई से दारा कादरी तोहफे ले कर अपनी माशूका के घर पहुंचता है. वहां उस के पिता के साथ दारा कादरी से शादी को ले कर बहस चल रही होती है. तब वहां आ कर दारा कादरी उसे अपने साथ चलने के लिए कहता है.

विरोध करने पर माशूका के पिता का गला दबोच लेता है. यह बात उस की माशूका को नागवार गुजरती है. वह दारा कादरी से संबंध तोड़ लेती है. इस के बाद सादिक कादरी का सीन एपिसोड में आता है. वह शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाया जाता है, जिस के बाद दारा कादरी मायूस बैठा दिखाया गया.

वह अपने पिता के पास पहुंचता है. उस का कहना होता है कि घर वापस चले, क्योंकि सादिक कादरी अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी महिलाओं के साथ संबंध बना रहा है. इस बात पर इस्माइल कादरी विरोध कर घर जाने से इंकार कर देता है.

इधर, गन्या सुर्वे सुपारी ले कर उन की हत्या करने की योजना बना रहा होता है. वह सादिक कादरी को पहले निशाना बनाने की तैयारी करता है, जिस के लिए वह सादिक कादरी की प्रेमिका की सहेली को अपना मोहरा बनाता है. उसे पैसों का लालच दे कर उस के आने पर खबर देने के लिए बोलता है.

तभी सादिक कादरी पत्नी से झगड़ कर प्रेमिका के पास पहुंचता है. यह खबर प्रेमिका की सहेली गन्या सुर्वे को पहुंचा देती है. वह दोनों का पीछा करने के बाद गोलियां बरसा कर दोनों को मार देता है. यहां डायरेक्टर फिल्मांकन के दौरान पात्रों को दिशा में खड़ा कराना भूल गया.

जब गोलियां बरसाई जाती हैं, तब ड्राइविंग सीट पर सादिक कादरी होता है. वहीं बाएं वाली सीट पर उस की प्रेमिका होती है. गोली चलती दाहिनी तरफ से है लेकिन बाएं तरफ बैठी सादिक की प्रेमिका को लगती है. फिर सादिक कार से उतर कर बाईं तरफ जाता है तो फिर गोलियां बरसाते हुए उस को मारा जाता है. यहां डायरेक्टर दिशा के अभाव में चूक गया है.

मुठभेड़ में दारा कादरी के कुछ लोग मारे जाते हैं. दारा कादरी, अब्दुला और दारा का छोटा भाई अज्जू कादरी को दिखाया जाता है. तीनों मिल कर गन्या सुर्वे के गुर्गों को भगाभगा कर मारते हैं. उधर, हबीबा भी पिता को ले कर दारा कादरी के घर पहुंच जाती है. यहां आठवां एपिसोड खत्म हो जाता है.