लेखक: राहुल शुक्ला, समीर अरोड़ा, उत्कर्ष खुराना, संजय मासूम
निर्देशक: नीरज पाठक
कलाकार: रणदीप हुड्डा, अभिमन्यु सिंह, उर्वशी रौतेला, अमित सियाल, फ्रेडी दारूवाला, गोविंद नामदेव, जाकिर हुसैन, किरण कुमार, राहुल मित्रा, वरुण मिश्रा, वी शांतनु, प्रवीण सिंह सिसोदिया, आयशा एस. मेमन, संदीप चटर्जी, आकांक्षा पुरी आदि.
यह वेब सीरीज एक एंटरटेनिंग थ्रिलर है. उत्तर प्रदेश के सुपरकौप कहे जाने वाले अविनाश मिश्रा के किरदार में रणदीप हुड्डा ने खुद को बहुत ही शानदार तरीके से ढालने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश की भाषा भी वह अच्छी तरह बोल लेता है.
जियो सिनेमा पर 8 एपीसोड में रिलीज हुई वेब सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ के साथ उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट अविनाश मिश्रा एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में पैदा हुए अविनाश मिश्रा साल 1982 में पुलिस में भरती हुए थे.
एसटीएफ का गठन होने से ले कर साल 2009 तक वह एसटीएफ में रहे. डिप्टी एसपी के पद से वह रिटायर हुए थे. उन के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बिलकुल नहीं चाहते थे कि बेटा पुलिस की नौकरी में जाए. लेकिन अविनाश मिश्रा की जिद थी पुलिस में जाने की. उन में अपराधियों के सफाए का जुनून था.
उत्तर प्रदेश के अपराधों से परिचय कराने वाली इस सीरीज के लेखकों ने सच्ची घटनाओं पर कहानी लिखने की कोशिश तो की है, पर देखा जाए तो वह बढिय़ा कहानी लिख नहीं पाए. जबकि इस के एक लेखक संजय मासूम ने मनोहर कहानियां के संपादकीय विभाग में कई सालों तक काम भी किया है और उन्होंने कई हिट फिल्मों के डायलौग भी लिखे हैं.
अगर किसी के जीवन पर कहानी लिखी जा रही है तो उस के जीवन की एकएक घटना को बारीकी से देखना और लिखना चाहिए. यह कोई फिल्म तो थी नहीं कि समय का बंधन था, इसलिए इसे और विस्तार से लिखा जा सकता था, जिस से सीरीज और ज्यादा रोमांचक और दर्शनीय बना जाती.
सीरीज में ऐसी तमाम कमियां हैं, जो दर्शकों को सीरीज में अधूरी सी लगती हैं और उस के रोमांच को भी कम करती हैं. साथ ही उसे सोचने पर मजबूर करती हैं कि उस का क्या हुआ होगा?
इंस्पेक्टर अविनाश जब बिट्टू चौबे का एनकाउंटर करते हैं तो अविनाश उस की पत्नी के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं, वह भी भीड़ के सामने. यह सीन तो बिलकुल हजम नहीं होता. डायरेक्टर को यहां पर ध्यान देना चाहिए था. वह उस की मदद अलग तरह से भी करवा सकते थे.
इस के अलावा जब भाटी की मौत होती है और यह पता चलता है कि उसे इंजेक्शन से जहर दिया गया था तो इस बात को बीच में छोड़ देना एक तेजतर्रार पुलिस वाले के लिए अच्छा नहीं लगता.
बबलू पांडेय की प्रेमिका पिंकी को लापता कर देना भी सोचने को मजबूर करता है, जबकि अग्रवाल के बेटे के अपहरण की वह एक मजबूत गवाह और कड़ी थी. उसी ने इंस्पेक्टर अविनाश की बबलू पांडेय से बात भी कराई थी. इसी तरह इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा लापता होता है और फिर अचानक घर वापस आ जाता है, पर यहां यह नहीं बताया जाता कि वह कहां था.
इसी तरह की सीरीज में और भी तमाम कमियां हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करने की कोशिश करती हैं.
इस ओर न तो डायरेक्टर ने ध्यान दिया, न लेखकों ने. इस सीरीज ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा जरूर है, लेकिन लेखकों और डायरेक्टर ने बारीकी से एकएक बात पर ध्यान दिया होता तो शायद यह सीरीज और ज्यादा लोकप्रिय होती और मील का पत्थर भी साबित होती, साथ ही एक जीवित चरित्र को और लोकप्रियता दिलाती. इस में ऐसे तमाम दृश्य हैं, जो सत्य लगने के बजाय सिनेमाई लगते हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करते हैं.
पहले एपीसोड की शुरुआत में ही यानी प्रस्तावना में इंस्पेक्टर अविनाश का आतंक दिखाया गया है. एक थाने में अचानक एक माफिया सरगना महाकाल सिंह उपस्थित होता है, जिसे देख कर सारे पुलिस वाले घबरा जाते हैं. लेकिन पता चलता है कि वह माफिया थाने पर अटैक करने नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण करने आया था. उस का कहना था कि जेल में रह कर वह जिंदा तो रहेगा, क्योंकि बाहर अविनाश मिश्रा उसे जीने नहीं देगा.
महाकाल सिंह की भूमिका किसी छोटेमोटे कलाकार ने की है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा ने एक माफिया नेता का एनकाउंटर गंगा में डुबकी लगा कर किया.
क्यों बनानी पड़ी एसटीएफ
कहानी में आगे न्यायालय परिसर में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को दिखाया जाता है, जहां उन के जिंदाबाद के नारे लग रहे होते हैं. न्यायालय में वह इसलिए आए हैं, क्योंकि उन पर 3 लड़कों के फरजी एनकाउंटर का आरोप था. उन्होंने न्यायालय में जज के सामने स्वीकार भी किया कि उन्होंने ही ये एनकाउंटर किए थे और मौकाएवारदात पर वह शराब पी कर गए थे.
इसी के बाद फ्लैशबैक में सीरीज शुरू होती है. इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की भूमिका रणदीप हुड्डा ने की है. जैसा कि रणदीप के बारे में कहा जाता है कि वह एक अच्छा कलाकार है, उसी तरह उस ने इंस्पेक्टर अविनाश की भूमिका बखूबी निभाई भी है.
उस समय उत्तर प्रदेश में गुंडों का आतंक था. हालात यह थे कि एक माफिया (श्रीप्रकाश शुक्ला) ने तो मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी ले ली थी. ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री गृहमंत्री की उपस्थिति में पुलिस अधिकारियों की मीटिंग करते हैं.
मुख्यमंत्री की भूमिका में जहां किरण कुमार है, वहीं गृहमंत्री की भूमिका फ्रेडी दारूवाला ने की है. ये दोनों कलाकार भले ही मंझे हुए हैं, पर मुख्यमंत्री की भूमिका में न तो किरण कुमार ही जमता है और न ही गृहमंत्री की भूमिका में फ्रेडी दारूवाला. ये दोनों ही कलाकार नौटंकी करते लगते हैं.
मीटिंग में प्रदेश के डीजीपी समर प्रताप सिंह एक ऐसी पुलिस फोर्स गठित करने की बात करते हैं, जो प्रदेश के अपराधियों को काबू कर सके और उन्हें उन के किए की सजा दे सके.
डीजीपी समर प्रताप सिंह की भूमिका में जाकिर हुसैन है. वह सीरीज में दिखाई तो कम दिया है. इस के बाद स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन होता है, जिस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को प्रभारी बनाया जाता है. इसी के बाद अपराधियों को काबू करने का मिशन शुरू होता है.
पहले एपीसोड में अयोध्या में आरडीएक्स पहुंचाने और एक मंदिर में बम रखने की घटना दिखाई जाती है. इंस्पेक्टर अविनाश की टीम पहले तो उन आतंकियों को चलती ट्रेन से पकड़ती है, उस के बाद मंदिर परिसर में रखे बमों को निष्क्रिय करती है. वैसे यह सब फिल्मी अंदाज में दिखाया जाता है.
इसी बीच धर्म को बढ़ावा देने वाली एक घटना दिखाई जाती है कि एक आतंकी, जो मंदिर में छिपा था, पुलिस के बीच से भागता है. पर जब इंस्पेक्टर अविनाश उसे फिल्मी अंदाज में पकड़ते हैं तो वह कहता है कि बस एक मिनट बाकी है. पूरी पुलिस फोर्स बम की तलाश में लग जाती है.
जब सभी ऊपरी मंजिल पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि बिजली के बौक्स के पास एक बंदर एक तार को पकड़ कर दांत से काट रहा है. उसे केला फेंक कर भगाया जाता है तो बम निष्क्रिय करने वाला एक्सपर्ट बताता है कि बंदर ने तो पहले ही तार काट कर बम निष्क्रिय कर दिया है. सभी श्रद्धा से बंदर की ओर देखते हैं.
यहां यह दृश्य फिल्मी लगता है, पर इस दृश्य को डाल कर जहां आस्था को भुनाने की कोशिश की गई लगती है. वहीं लोगों को आस्तिक बनाने की भी कोशिश की गई है.
दूसरे एपीसोड में शुरुआत में अविनाश मिश्रा को एक मुखबिर बरकत से मिलते दिखाया जाता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश कहते हैं कि यही मुखबिर हमारी ताकत हैं, तंत्र हैं और मायाजाल हैं. इस के बाद एक दृश्य दिखाया जाता है, जिस में एक आदमी अपनी ही पत्नी के साथ जबरदस्ती सैक्स करता है. बाद में पता चलता है कि उस का नाम बिट्टू चौबे है, जो एक शूटर है. बिट्टू चौबे की भूमिका में रेश लांबा है, जो सचमुच में एक शूटर लगता है.
इस के बाद विपक्ष के एक कद्दावर नेता की बेटी किरन कौशिक की हत्या हो जाती है. इस मामले की जांच जो इंस्पेक्टर देवी कर रहा है, उस के साथ डीजीपी अविनाश मिश्रा को भी इस मामले की जांच करने के लिए कहते हैं. इंस्पेक्टर अविनाश को काल डिटेल्स से पता चलता है कि किरण का संबंध विधायक जगजीवन यादव से था. जगजीवन यादव की भूमिका में राहुल मित्रा है. यह कोई बहुत चर्चित कलाकार नहीं है.
जगजीवन यादव पर शक करने की वजह यह थी कि किरण और उस के बीच रात को लंबीलंबी बातें होती थीं. अविनाश जगजीवन यादव के पास पहुंच जाते हैं. उसे उस की असलियत बता कर धमकाते हैं. बदले में विधायक भी धमकी देता है. तब विधायक का एक आदमी इंस्पेक्टर को अलग ले जा कर फाइल दबाने की बात करता है. इस के बदले इंस्पेक्टर अविनाश अपने मुखबिर बरकत की मदद करने को कहते हैं.