वेब सीरीज रिव्यू : हंटर टूटेगा नहीं, तोड़ेगा – भाग 3

क्यों लगाया लाशों का ढेर

पांचवां एपिसोड सब से ज्यादा बोरियत वाला है. इस में दिखाते हैं कि दिव्या को बेहोश कर के डाला जाता है. होश में आने पर लाशों की एक थैली में लेट जाती है और वहां खिड़की में एक रस्सी बांध देती है, जिस से पता चले वह कूद कर भाग गई है. इस तरह वह वहां से बच कर निकल जाती है.

यह लाशों का ढेर किस का है? कहां से आया? इन्हें पौलीथिन में पैक क्यों किया गया? इस की कोई जानकारी नहीं है. उधर विक्रम जंगल में अकेला कराह रहा है. बुरी हालत में है. तभी साजिद का फोन आता है. पता नहीं विक्रम की जेब में फोन कहां से आ गया. वह बताता है कि स्वाति की हत्या करने के लिए एक बदमाश उस के घर के बाहर खड़ा है.

विक्रम यह सूचना स्वाति को फोन कर के देना चाहता है लेकिन वह फोन नहीं उठाती है. अंत में वह मैसेज कर देता है. तब तक  दरवाजे के अंदर बदमाश आ चुका था. यहां बदमाश से लडऩे और बचने के बेवकूफी व बोरियत भरे सीन हैं. बदमाश बिजली से संचालित किसकिस मशीनरी से दरवाजे काटता है, उस में घुसता है. इस बीच स्वाति अपने पूर्व पति विक्रम से भी बातें करती है.

साजिद भी लीना के असली कातिल को ढूंढने और विक्रम को बचाने के लिए रिकौर्ड रूम पहुंचता है. कहता है कि डा. सतीश ने कहा है कि अशोक माथुर से मिल लेना. इस पर अशोक माथुर फाइल ला कर देता है. साजिद कुछ खास जानकारी कर के चला जाता है.

अगला सीन बहुत खतरनाक है. पल्लवी अपने प्रेमी के साथ तो कोई प्रेम प्रसंग नहीं करती, बल्कि विक्रम को बचाने के लिए थाने से वीडियो निकलवानी है तो उस के लिए वहां के एक इंजीनियर को बुलाती है. उस को अपने शबाब से जिस्म परोसने का भरपूर निमंत्रण देती है.

इस बीच एक गाना होता है, जिस में खूब ठुमके और खुले शरीर का प्रदर्शन चलता रहता है. इस बीच उस का प्रेमी सुदेश थाने में इंजीनियर के बदले जा कर वहां से वह वीडियो निकाल लाता है.

उस के बाद पल्लवी इंजीनियर को भैया थैंकयू कह कर भगा देती है. सिदेश व पल्लवी थाने से लाई गई वीडियो देखते हैं. यहां पर पल्लवी कुछ प्रेम मिलाप करना चाहती है, लेकिन सिदेश वीडियो में मस्त है. वह दोनों वीडियो की रियलिटी निकालने की कोशिश में लगे रहते हैं. एक और बेवकूफी का अगला सीन है.

जंगल में भटक रहे विक्रम के सामने एक मोटरसाइकिल सवार आता है. वहां कोई सड़क नहीं है. बस्ती नहीं है. कोई ट्रैफिक नहीं चल रहा है. विक्रम उसे हाथ दे कर रोकता है. वह भी डेविड का आदमी होता है. बदमाश होता है. दोनों में गुत्थमगुत्था शुरू हो जाती है. गाने की रिकौर्डिंग बजती रहती है, ‘दम मारो दम मिट जाएं गम…’

मारपीट में उन से ठिकाने लगाने के बाद विक्रम को याद आता है कि एक किडनी उस की कोई चुरा चुका है. दूसरी फेल होने के कगार पर है. इस के लिए वह अपने रकीब साजिद को फोन करता है.

एपिसोड-6

छठें एपिसोड की शुरुआत में साजिद कार में विक्रम को ले कर जाता है. रास्ते में दिखाता है कि इसे किसी कीड़े ने काट लिया है. साजिद जानता है कि इस का इलाज क्या है. यहां से डाक्टर के पास ले जाता है. विक्रम उसे डेविड के अड्डे पर पहुंचने को कहता है. दोनों वहां पहुंचते हैं.

फायरिंग शुरू हो जाती है. गाना बजने लगता है, ‘आवारा हूं…’

एक सड़ी हुई किडनी के साथ फाइटिंग करते हुए विक्रम को दिखाया गया है. गोलियां चल रही हैं. सिर्फ एपिसोड का समय पूरा करने के लिए यहां फाइटिंग और गोलीबारी के सीन हैं. अब डेविड घायल हो कर गिर पड़ता है. उस से अपनी किडनी मांगता है. दोनों में डायलौगबाजी होती है. वह अपनी मां की दास्तान सुनाता है. तभी 2 सुरक्षागार्ड  महिलाएं रिवौल्वर ले कर आती हैं. इस से पहले भी वह दिखाई गई हैं. एपिसोड के अंत में विक्रम घायल अवस्था में भागता है और गिर कर बेहोश हो जाता है.

एपिसोड-7

सातवें एपिसोड में विक्रम एक अस्पताल में बेहोशी की हालत में भरती होता है. एक नर्स उस के पास दवा लिए खड़ी होती है. होश में आते ही वह दवाओं को झपट्टा मारता है. वह पुलिस को आवाज देती है. पुलिस अधिकारी आता है. वह बताता है कि तुम्हारी एक किडनी गायब थी. ये तो अच्छा हुआ कि तुम्हारे बैग में जो किडनी थी, वह मेल की थी. विक्रम कहता है कि वह मेरी किडनी थी. तब पता चलता है कि वह गिरफ्तार है और हथकड़ी उस के हाथ में पड़ी हुई है.

अस्पताल की नर्स दवा रख कर यह कह कर चली जाती है कि दवा खा लेना वरना मर जाओगे. विक्रम की चौकसी के लिए 2 सिपाही वार्ड के बाहर ड्यूटी दे रहे हैं. एक उस में चाय पीने को कह कर चला जाता है. दूसरा मोबाइल देख रहा है और उस में गाना बज रहा है, ‘पिया तू अब तो आजा…’ इस बीच डाक्टर इंजेक्शन लगाने आता है. विक्रम उस पर झपट पड़ता है. हथकड़ी बंधी है फिर भी डाक्टर से फाइटिंग हो रही है.

डाक्टर खून में लथपथ पड़ा है. वह हथकड़ी हाथ से निकाल कर भागता है. कई मंजिल का अस्पताल है. भागते में एक सिपाही का फोन छीन लेता है और पुलिस टीम को फोन कर देता है कि विक्रम चौथी मंजिल पर है. पुलिस ऊपर भागती है और वह निकल कर अस्पताल से बाहर आ जाता है.

बाहर एक फोर व्हीलर में बैठता है और ड्राइवर की किसी बात के जवाब में गाली देता है और सीधा स्वाति के घर पहुंचता है. वह उस से लिपट जाती है, जबकि उस से संबंध विच्छेद कर चुकी होती है. उस से साजिद की तारीफ करती है.

विक्रम को स्वामी की बात लग जाती है और वह घर से बाहर निकलता है. वहां एक कार खड़ी होती है, उस में बैठ कर चल देता है. कार कहां से आ गई. यह कुछ पता नहीं है. पुरानी बातें ध्यान में आती हैं और हर बात को कड़ी से कड़ी जोडऩे में विक्रम लगा रहता है. फिर सीधे प्रेमी युगल मास्टरमाइंड सिदेश पल्लवी के पास पहुंचता है.

यह दोनों उस वीडियो का पोस्टमार्टम कर चुके हैं. उस में लीना का मर्डर करने वाले का चेहरा साफ दिखाई देता है. विक्रम को दिव्या की तलाश है. हैकर्स प्रेमी युगल दिव्या की तलाश करता है. पता चलता है कि दिव्या रांची में है.

विक्रम रांची पहुंच जाता है. दिव्या व विक्रम एकदूसरे को देखते हैं और अचानक दिव्या हमला कर देती है. जो भी हाथ में आता है उठाउठा कर मारती है. अचानक दिव्या नुकीले धारदार हथियार विक्रम के सीने में घोंपने की कोशिश करती है. तभी विक्रम उसे रोक लेता है. दोनों बातचीत पर रजामंद हो जाते हैं और आपस में गिलेशिकवे करते हैं. लीना मर्डर केस डेविड पर चर्चा करते हैं. फिर दोनों में बिगड़ जाती है और दिव्या एकदम आक्रामक हो जाती है. विक्रम कहता है कि तुझे उस की बच्ची की जरूरत नहीं. कहां है वो. मैं उसे ढूंढ लूंगा? यह सारे सीन एकदम बकवास है. ऐक्टिंग में कोई जान नहीं है.

एपिसोड-8

आठवां एपिसोड बिलकुल बकवास है. उस में जो कुछ दिखाया गया है, उस की यहां कोई जरूरत भी नहीं थी. साजिद को बदमाशों के कब्जे में दिखाया गया है. उसे अस्पताल के एक बैड पर बांध रखा है. गरदन से खून निकल रहा है और उसे मारने की साजिश की जा रही है. मगर क्यों कुछ पता नहीं. उधर विक्रम और दिव्या डाक्टर सतीश की तलाश में आते हैं. अस्पताल की एक बहुत ऊंची बिल्डिंग में पहुंचते हैं. डाक्टर मिलता है. उस से पूछते हैं कि डाक्टर सतीश कहां है?

अचानक सतीश दिखाई देता है. कोई बताता है कि वह डाक्टर सतीश है. विक्रम और दिव्या उस के पीछे भागते हैं. बहुत ऊंची बिल्डिंग है. सतीश को पकड़ लेते हैं. दिव्या भी पहुंच जाती है. डा. सतीश को विक्रम नीचे लटका रखा है और उस का हाथ विक्रम ने पकड़ रखा है. उस से विक्रम सवालजवाब कर रहे हैं. उसे डेविड की बेटी और दिव्या की बहन के बच्चे की जानकारी कर रहे हैं.

अचानक उस का हाथ छूट जाता है. डाक्टर सतीश नीचे गिर जाता है. दिव्या और विक्रम आपस में लड़तेझगड़ते हैं. दिव्या कहती है कि मेरी बहन की बेटी का पता नहीं लगा सके. मेरा पूरा परिवार बरबाद कर दिया. अगला सीन पल्लवी एवं सिदेश के प्रेम प्रसंग का है. तभी विक्रम और दिव्या वहां पहुंच जाते हैं.

डेविड की बेटी यानी दिव्या की भांजी का पता लगाने के बाद यह दोनों उन के अड्डे पर जाना चाहते हैं. वहां घुसने से पहले दिव्या और विक्रम को बदमाश घेर लेते हैं. दोनों में फाइटिंग शुरू हो जाती है. गोलीबारी होने लगती है. विक्रम ने मारतेमारते लाशों का ढेर लगा दिया है और किसी तरह से अंदर घुस जाता है. दिव्या भी साथ में पहुंचती है.

डेविड की बेटी दिखाई जा रही है, जो  डाक्टर के पास है. डाक्टर लड़की को कार में डाल कर भागता है. विक्रम भी कार से उस का पीछा करता है. कार अचानक नदी में गिर जाती है. विक्रम भी उस में कूद पड़ता है. लड़की को बचा लेता है. नदी में ही डूबने से पहले डाक्टर को गोली मार देता है.

यहां भी गाना बज रहा होता है, ‘किसी की मुसकराहटों पर हो निसार जीना इसी का नाम है…’ बारिश भी हो रही है.

बच्ची को दिव्या को सौंप दिया जाता है. इस मारधाड़ और बच्ची को बचाने में उस की हालत खराब हो जाती है. जब उसे होश आता है तो उस के पास उस की पूर्व पत्नी स्वाति होती है. दोनों में बातचीत होती है. विक्रम अपनी बेटी पूजा को पूछता है कि वह भी कहीं जीवित होगी. इमोशनल सीन की कोशिश की गई है. स्वाति विक्रम से लिपट जाती है.

संबंध विच्छेद होने के बाद भी पतिपत्नी जैसा रिश्ता दिखाया गया है. तभी फोन आता है, जो जैकी श्रौफ का होता है. वह कहता है तुम्हारी बेटी पूजा जीवित है, मेरे पास है और उस से बात भी कराता है. लेकिन सालों बाद भी बेटी उतनी ही बड़ी दिखाई देती है, जितनी बड़ी गायब हुई थी. यहीं पर एपिसोड और वेब सीरीज खत्म हो जाती है.

सवाल यह है कि कहानी कई एपिसोड में लीना के मर्डर के खुलासे की ओर चल रही थी और अंत में यह सब कहीं गायब हो जाता है. स्वाति की बेटी पूजा और डेविड की बेटी पर आ कर खत्म हो जाती है.

वेब सीरीज रिव्यू : हंटर टूटेगा नहीं, तोड़ेगा – भाग 2

एपिसोड-2

दूसरे एपिसोड में विक्रम घर से भाग नहीं पाता क्योंकि एक आदमी के हाथ से उस का हाथ हथकड़ी से लौक होता है. हुड्डा फोर्स सहित घर में आ जाता है. दोनों के बीच फायरिंग होती है. उस का हाथ तोड़ कर उस के हाथ में से हथकड़ी निकाल कर हुड्डा से बच कर विक्रम कूद कर भाग जाता है. क्या सीन है! इसी फिल्म के दृश्य से डायरेक्टर की मानसिकता और योग्यता आसानी से समझी जा सकती है.

साजिद फोन कर के विक्रम को बताता है कि लीना का मर्डर हो गया है और हुड्डा को वीडियो से यह सबूत लगे हैं कि जिस ने भी लीना की हत्या की है, उस के सारे सबूत विक्रम से मिलतेजुलते हैं. विक्रम को लगता है कि किसी ने वीडियो को एडिट कर के कातिल की तसवीर में उस का मुखौटा लगा दिया है, जिस से विक्रम को फंसाया जा सके.

विक्रम समझता है कि यह काम उसी हैकर सिदेश का है, जिस से लीना का पता तलाश कराया था. क्योंकि वही इन मामलों में एक्सपर्ट है. विक्रम सिदेश के घर पहुंच कर उसे धमकाता है. इस पर सिदेश कहता है कि यह काम उस ने नहीं किया, लेकिन ओरिजिनल वीडियो अगर उसे दे दी जाए तो वह यह पता लगा सकता है कि यह एडिट का काम किस तरह किया है.

डायरेक्टर से हुई चूक

उधर पुलिस अफसर हुड्डा विक्रम लीना मर्डर केस में गिरफ्तारी के लिए उस के घर जाता है. स्वाति से पूछता है कि विक्रम कहां है? स्वाति बताती है कि विक्रम से उस का कोई मतलब या वास्ता नहीं है. विक्रम से उस का तलाक हो चुका है. विक्रम से कभीकभार फोन पर बात होती है. इतना सुन कर हुड्डा स्वाति के साथ अभद्रता करता है और उस की घर की तलाशी लेने लगता है.

इसी दौरान उसे कंडोम का खाली रैपर दिखाई देता है, जिसे देख कर वह स्वाति को चरित्रहीन कहता है. तभी वहां साजिद पहुंच जाता है और वह अपनी प्रेमिका स्वाति के साथ इस अभद्र व्यवहार का विरोध करता है. इस से पहले विक्रम की पत्नी स्वाति के घर हुड्डा पुलिसिया अंदाज में खूब तोडफ़ोड़ भी करता है.

अगले सीन में विक्रम लीना के मर्डर स्थल पर पहुंचता है. वहां से लीना के बेटे डेविड का एक लैपटाप मिलता है. विक्रम सिदेश हाकर से लैपटाप के पासवर्ड को अनलौक करने का तरीका पूछता है. सिदेश की प्रेमिका पल्लवी के साथ एक होटल में बैठा होता है. उस ने पल्लवी को बताया कि किसी सिस्टम के पासवर्ड को अनलौक कर रहा है.

पल्लवी एक डिवाइस देती है और बताती है कि इस से कैसे पासवर्ड अनलौक किया जा सकता है. यहां पर डायरेक्टर को सिदेश और उस की प्रेमिका पल्लवी के प्रेम प्रसंग को फिल्माना चाहिए था. इन दोनों की प्रेम कहानी का कोई भी सीन फिल्माया नहीं गया. यहां वह अपने प्रेमी के साथ अफेयर के कुछ क्षण बिताने के बजाय अनलौक करने के लिए डिवाइस देती है.

इस से फिल्म देखने वाले दर्शकों को मायूसी के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा. विक्रम को दिव्या का फोटो लैपटाप में मिलता है. इसी लड़की को उस ने लीना के घर देखा था. विक्रम कमरे से बाहर आता है तो कावड़ी नाम का एक इंसपेक्टर उसे देख लेता है. उसे गन पौइंट पर ले लेता है.

इस गन पौइंट के सीन में विक्रम ने जिन बातों का जाल बिछा कर उस के चंगुल से स्वयं को निकाला है, वह बेवकूफी वाली हैं. इतना ही नहीं उस के रिवौल्वर में से मैगजीन भी निकाल लेता है और उसे पता ही नहीं चलता. ये सीन एकदम बकवास है. एपिसोड के समय को बरबाद करना ही इस सीन का उद्ïदेश्य प्रतीत होता है.

एपिसोड-3

तीसरे एपिसोड में हुड्डा लीना के मर्डर केस की जांच करता है. उसे विक्रम की तलाश है. उसे विक्रम व दिव्या पत्रकार एक साथ कार में आते दिखते हैं. तब वह उन पर रिवौल्वर तान देता है. विक्रम कार से उतर कर आता है. हुड्डा गोली नहीं चलाता, बल्कि उस को आते देखता रहता है. बेहद खराब सीन है. विक्रम उस पर अटैक कर देता है.

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दोनों में फाइटिंग होती है. विक्रम आसानी से उस की गरदन कार में फंसा कर पत्रकार दिव्या के साथ चला जाता है. दिलचस्प बात यह है कि हुड्डा के साथ पुलिस फोर्स नहीं होती है. बैकग्राउंड गाना बजता रहा ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे…’ लोग समझते हैं कि जंगली हीरो विक्रम को समझा जाए या हुड्डा को. क्या मतलब है इस गाने का.

विक्रम हुड्डा से कहता है कि उस की पत्नी स्वाति को परेशान न करे, जबकि इससे पहले साजिद और विक्रम की मुलाकात होती है. उस समय दिव्या भी साथ होती है तभी अचानक स्वाति कार से उतर कर आती है और विक्रम को बुराभला कहती है. पतिपत्नी का संबंध विच्छेद कर के चली जाती है. तब विक्रम अपने साथी पुलिस अधिकारी साजिद से कहता है कि इस का खयाल रखना. दिव्या और विक्रम मुंबई की झुग्गीझोपड़ी में पहुंचते हैं. लीना के मर्डर केस की गुत्थी सुलझाने में किसी की तलाश है.

गार्ड ने पुलिस को क्यों किया फोन

बस्ती में एक गुंडा होता है उस के पास पहुंचते ही गुंडे के गुर्गे जिस में अधिकतर बच्चे शामिल हैं, बंदूक तान कर विक्रम को घेर लेते हैं. लेकिन कुछ नहीं होता. यह नाटक भी दर्शकों को मायूस करता है. विक्रम उसे एक फोटो दिखाता है. गुंडा पहचान लेता है. कहता है कि यह अंकिता है और वह उस का पता बता देता है.

विक्रम और दिव्या दोनों अंकिता के घर पहुंच जाते हैं. उस के घर तक पहुंचने में जो सीन है, उस में भी डायरेक्टर की कमी उजागर होती है. यह अंकिता वही है जो 5 लाख रुपए लीना का पता बताने के लिए देती है. यहां एक गार्ड लीना मर्डर की खबर सुन रहा होता है, जिस में विक्रम का जिक्र है. पता नहीं कब मर्डर हुआ और कब खबर चल रही है और वह विक्रम को पहचान लेता है तथा पुलिस को फोन करता है.

स्वाति और साजिद के प्रेम करने का सीन दिखाया जाता है और स्वाति उस से विक्रम की चिंता प्रकट करती है. असल में पूरे वेब सीरीज में यही 2 लोग हैं, जो विक्रम को लीना मर्डर केस का दोषी नहीं मानते और उस को जबरदस्ती इस केस में फंसाए जाने से चिंतित भी हैं. अजब कहानी है. तभी साजिद पर उस के आला पुलिस अधिकारी का फोन आता है और उस से कहता है कि तुझे लीना मर्डर केस  की जांच से हटा दिया गया है.

एपिसोड-4

चौथे एपिसोड में दिखाया जाता है कि विक्रम और दिव्या, अंकिता को टौर्चर करते हैं. उस से पूछते हैं कि लीना थामस का मर्डर किस ने किया? अंकिता को पीट पीट बेहोश कर देते हैं.

उस के मोबाइल में थामस के बेटे डेविड की फोटो  मिलती है. इसी दौरान हुड्डा भी वहां पहुंच जाता है. उसे कोई सूचना नहीं होती कि पता नहीं डायरेक्टर ने अचानक कैसे पता लगा कर खलनायक हुड्डा को मौके पर भेज दिया.

पुलिस अधिकारी हुड्डा विक्रम और दिव्या को गिरफ्तार करके अपनी गाड़ी में बैठा कर ले जाता है और उन्हें डेविड के सामने पेश करता है. डेविड दोनों को टौर्चर करता है. दिव्या को पकड़ कर अलग टौर्चर रूम में बंद कर दिया जाता है और विक्रम को नशे का इंजेक्शन लगा देते हैं और उसे 2 लोगों के हवाले करते हुए एक गाड़ी में डाल देते हैं. कहते हैं कि इस का एक्सीडेंट दिखा कर काम तमाम कर दो.

सिदेश और उस की प्रेमिका पल्लवी इस में विक्रम को बचाने में लगे हैं. सिदेश कहता है कि विक्रम का उस पर एक एहसान है जिस तरह से वह हैकिंग का काम करता है, उस में फंस गया था. विक्रम ने ही उसे जेल जाने से बचाया है. इन दोनों युवा कलाकारों की प्रेम कहानी कुछ नहीं है. देखने वाले इसी प्रतीक्षा में रहे और कहीं दोनों के बीच प्रेम प्रसंग के सीन नजर आएंगे.

दोनों व्यक्ति विक्रम का एक्सीडेंट कर के हत्या करने ले जा रहे थे, उन की गाड़ी एक जंगल में जा कर पलट जाती है. उस में से पहले वह 2 व्यक्ति निकलते हैं. विक्रम निकलता है उस के हाथ में मशीनगन होती है और वह दोनों को उड़ा देता है. इस बीच यहां गाना चलता है, ‘दम मारो दम हरे कृष्णा हरे राम…’ इस मारकाट में यह गाना भी बकवास लगता है. यह चौथे एपिसोड का अंतिम सीन है.

वेब सीरीज रिव्यू : हंटर टूटेगा नहीं, तोड़ेगा – भाग 1

कलाकार: सुनील शेट्टी, ईशा देओल, राहुल देव, करनवीर शर्मा, बरखा बिष्ट, सिद्धार्थ शेखर, मिहिर आहूजा, गार्गी सावंत

प्लेटफार्म: अमेजन मिनी टीवी

अवधि: लगभग आधे घंटे के 8 एपिसोड्स

निर्देशक: प्रिंस धीमान, आलोक बत्रा

कार्यकारी निर्माता: अक्षय वलसांगकर, आशीष मेहरा, अनुरोध गुसान

प्रोड्यूसर: विक्रम मेहरा, सिद्धार्थ आनंद कुमार, साहिल शर्मा

छायांकन: जेसिल पटेल

वेब सीरीज ‘हंटर टूटेगा नहीं तोड़ेगा’ प्रिंस धीमान और आलोक बत्रा के निर्देशन में बनी है. सीरीज कटियाल के उपन्यास ‘द इनविजिबल वूमेन’ पर आधारित है. यह बौलीवुड की एक ऐक्शन फिल्म की तरह है. वेब सीरीज 8 एपिसोड में जारी की गई है. सीरीज की कहानी में कोई दम नहीं है. इस के कारण जो दृश्य फिल्माए गए हैं, उन में 1-2 को छोड़ कर बाकी सब बकवास हैं.

वेब सीरीज की कहानी में अंगों का व्यापार और देह व्यापार जैसे पुराने घिसेपिटे मामलों को फिल्माने की नाकाम कोशिश की गई है. इस में कत्ल का आरोपी पुलिस अफसर है, उस के पीछे पड़ा एक अन्य पुलिस अधिकारी है, जो विलेन की कमी पूरी करता है. तलाकशुदा पत्नी है. अफेयर है. यह है हंटर की कहानी

सीरीज में एसीपी विक्रम सिंह (सुनील शेट्टी) एक हाईप्रोफाइल महिला लीना थामस के कत्ल के आरोप में फंस जाता है. एसीपी विक्रम गिरफ्तारी से बचने के लिए इधरउधर छिपता है. विक्रम को गिरफ्तार करने में एक दूसरा पुलिस अधिकारी हुड्डा जुटा हुआ है. एसीपी विक्रम का रोल सुनील शेट्टी और लीना थामस का रोल स्मिता जयकर ने निभाया है. जबकि हुड्डा के किरदार में राहुल देव हैं.

विक्रम कानून की गिरफ्त से बचते हुए खुद इस केस को हल करने की कोशिश कर रहा है. इस में उस की मदद एक पुलिस अफसर कर रहा है, जो उस की पूर्व पत्नी स्वाति के साथ रिलेशनशिप में भी है. इसी क्रम में वह दिव्या से मिलता है, जो एक रिपोर्टर है और फिर इस मिशन में उस की सहयोगी बन जाती है.

स्वाति की भूमिका में बरखा बिष्ट है और दिव्या का रोल एशा देओल निभा रही है. शृंखला घिसेपिटे संवादों और उतनी ही खराब संवादों की अदाएगी के लिए एक कीर्तिमान स्थापित कर रही है.

कहानी तो जैसेतैसे इन को मिल गई, लेकिन उसे इतनी बुरे तरीके से फिल्माया गया है कि दर्शकों को बोरियत के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगेगा. वेब सीरीज में महिलाओं के काफी सीन ब्रा और छोटे कपड़ों में दिखाए गए हैं. कभी कभी केवल पेंटी पहनती महिला के सीन हैं, जिन का कोई औचित्य नजर नहीं आता.

सीरीज का म्युजिक भी बहुत खराब है. ऐक्शन सीन बहुत ही बोरिंग और बहुत लंबे हैं. यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि किसी भी कलाकार ने अपने किरदार के साथ न्याय नहीं किया. सुनील शेट्टी और ईशा देओल तो अभिनय के बारे में बिलकुल अनजान से नजर आए हैं. सुनील शेट्टी इस से पहले एमएक्स प्लेयर की वेब सीरीज ‘धारावी बैंक’ में अंडरवल्र्ड डौन के किरदार में नजर आया था. उस की यह दूसरी सीरीज है.

एपिसोड- 1

पहले एपिसोड की शुरुआत मछली मार्केट से होती है. इमरान नाम का एक गुंडा एक महिला शावा को पीट रहा होता है. एसीपी विक्रम का फोन आता है. कहता है पुलिस आने वाली है, जल्दी भाग जा. इस बीच इमरान धारदार हथियार से गला काट कर शावा की हत्या कर देता है. उस की मां रेशमा को धमकी देता है कि उस का चोरी का माल नहीं मिला तो शावा की बहन का भी यही हाल होगा. इस के बाद वह उस की बहन को उठा कर ले जाता है.

मछली कारोबारी का ऐसा कौन सा सामान एक महिला ने चुरा लिया, जो इस के न मिलने पर हत्या कर दी गई, यह बात फिल्म में कहीं नहीं बताई गई. निर्माता ने खूनखराबे का सीन दिखाने के लिए इसे कहानी में शामिल कर लिया. इमरान नाम के इस गुंडे की ऐक्टिंग में कहीं ऐसी क्रूरता नजर नहीं आई, जैसी कि कातिल में होनी चाहिए. अगले सीन में डीएसपी साजिद एक युवक का पीछा कर रहा होता है.

इंसपेक्टर हुड्डा अचानक आता है और उसी युवक की गोली मार कर हत्या कर देता है. डीएसपी साजिद अकेला होता है और इंसपेक्टर हुड्डा फोर्स के साथ. वेब सीरीज में ऐसा सीन दर्शाया गया है, जिस का कोई मतलब ही नहीं है. डीएसपी साजिद युवक का क्यों पीछा कर रहा है? वह किसी मामले में अपराधी है तथा हुड्डा ने उसे गोली से क्यों उड़ा दिया, यह बात अंत तक भी पता नहीं चल पाई. डीएसपी साजिद का किरदार करणवीर शर्मा ने निभाया है.

दरअसल, एसीपी विक्रम सिंह एक शराबी नशेड़ी उपद्रवी पुलिस अफसर है. इमरान मछली के कारोबार के पीछे अवैध रूप से ड्रग सप्लाई करता है. यह बात विक्रम को पता है. विक्रम उस से ड्रग ले कर नशा करता है. मोटी रकम हासिल करने की खातिर उस की मदद करता है. विक्रम और हुड्डा की मुलाकात होती है और हुड्डा कहता है कि इमरान के सपोर्ट में क्यों खड़ा है. वो तस्कर माफिया है. उसने एक महिला की हत्या की है.

क्यों शुरू हुई मारकाट

यह जानकारी मिलते ही विक्रम अकेला ही इमरान के अड्डे पर पहुंच जाता है. वहां उस के गुंडों से मारपीट व फाइटिंग शुरू हो जाती है. गाना बजने लगता है, ‘सोने की थाली में भोजन परोसा, खाए गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे…’ यह गाने की बैकग्राउंड इस मारकाट के सीन में अर्थहीन है.

इस का सीरीज पर दुष्प्रभाव पड़ता है. जिस तरह से गुंडों की हत्याएं विक्रम को करते दिखाया गया है, उस में रंगमंच पर किए जाने वाले नौटंकी जैसी भी ऐक्टिंग नहीं है. खूब बारिश हो रही है और विक्रम ने इमरान के  गुंडों की लाशें बिछा दी हैं. इतनी देर में इमरान भी सामने आ जाता है. दोनों में डायलौगबाजी होती है और फाइटिंग शुरू हो जाती है, जिस में इमरान भी मारा जाता है.

विक्रम को शिवा की बहन मिल जाती है, जिसे बेहोशी की हालत में रस्सी से बांध कर लटका रखा है. वह उसे उतार कर कंधे पर लाद कर इमरान के अड्डे से बाहर निकलता है. सामने ही हुड्डा अपने हमराह सिपाहियों के साथ दिखाई देता है. विक्रम उन के सिपाही  को आदेश देता है कि इस लड़की को संभालो. सिपाही लड़की को उठा कर ले चलता है.

हुड्डा धमकी देता है कि तेरी जांच कराऊंगा. तब विक्रम कहता है कि इन हत्याओं में उस का कोई हाथ नहीं है. उस ने तो सिर्फ इस लड़की को बचाया है. वेब सीरीज में इस का यही अंत हो जाता है. आगे इस का कहानी में कोई उल्लेख नहीं है. लाशों के ढेर की न तो कोई जांच होती है और न इस का कहीं जिक्र होता है.

बेमतलब के हौट सीन

अगले सीन में विक्रम एक डाक्टर के पास जाता है. लाशों के ढेर लगाने और बिना जरूरत की फाइटिंग में विक्रम के हाथ में चोट लग जाती है. धारदार हथियार से लगी चोट का इलाज न कर के डाक्टर विक्रम को बताता है कि उस की एक किडनी खराब है. किडनी का औपरेशन कर के जल्द से जल्द बाहर निकलना है.

इस में 10 से 15 लाख रुपए तक खर्च आएगा. इस समय विक्रम के पास पैसा नहीं है. वह समय न होने की बात कह कर औपरेशन को मना कर के वहां से चला जाता है. अगले सीन में स्वाति उसे फोन करती है. घर न आने पर नाराजगी व्यक्त करती है. इस के बावजूद वेब सीरीज का हीरो जिस का चरित्र कहानीकार ने यह दिखाया है कि वह घर न जा कर एक बार में शराब और शबाब का आनंद लेने पहुंच जाता है.

बारबाला पहले से जानती है कि विक्रम  नशे का आदी है. विक्रम के असली धंधे  के बारे में भी वह जानती है और कहती है कि उसे एक लीना थामस नाम की लेडी की तलाश करनी है. इस के लिए विक्रम को 5 लाख रुपए देने की बात कहती है. रात में शबाब व शराब का आनंद ले कर सुबह का सीन विक्रम के फ्रेश होने का है.

वह फ्रेश हो कर निकलता है. सामने वह हौट कपड़ों में तैयार मिलती है. यहां रोमांस का भी सीन है, जिस का कोई मतलब नहीं है. फिर वह विक्रम के सामने ही कपड़े बदलती है. छोटे कपड़ों में शरीर में से वह अंग साफ दिखाई देते हैं, जिसे बेवजह फिल्माया गया है. फिर उसे ढकती है. 5 लाख रुपए और लीना का फोटो देती है. कहती है कि इसे जल्द से जल्द तलाश करो.

अगले सीन में विक्रम अपने घर पहुंचता है. उसे अपनी बेटी का खयाल आता है, जो इस दुनिया में नहीं है. इतने में उस की पत्नी स्वाति सामने आती है. उस के कपड़ों से दोनों वक्ष झांक रहे होते हैं. क्या फिल्मकार दर्शकों को हौट सीन दिखा कर वेब सीरीज को हिट सीरीज बनाने के प्रयास में है? क्योंकि विक्रम या फिर दर्शकों की नजर पडऩे के बाद वह उन्हें ढकने लगती है.

थोड़ी बातचीत के बाद विक्रम कमरे में ऊपर पहुंचता है, जहां उस की बेटी के फोटो लगे होते हैं. एक फोटो उठा कर देखता है. तभी उसे बेटी खयालों में लिपट जाती है. डायरेक्टर ने इस सीन को इमोशनल बनाने की कोशिश की है, लेकिन उस में सफलता नहीं मिली. यह सीन बहुत ही गंभीर और दिल में उतारने वाला हो सकता था, लेकिन इस सीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उस के बाद दोनों नीचे उतर कर आते हैं.

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विक्रम घर से बाहर निकल जाता है. स्वाति को अपनी बेटी व पुलिस अफसर साजिद का खयाल आता है, जिस से उस का अफेयर चल रहा है. अगले सीन में विक्रम मिहिर आहूजा यानी हैकर सिदेश के पास पहुंचता है. वहां से लीना का पता ले कर लीना के घर पहुंच जाता है. वहां सिद्धार्थ शेखर यानी डेविड का फोटो देख कर उसे खयाल आता है कि वह इस से कहीं मिला है. स्मिता जयकर यानी लीना थामस से मुलाकात होती है.

थोड़ी देर बातें करने के बाद वह यह बहाना कर के चली जाती है कि वह किसी मीटिंग में जा रही है. शैलेंद्र को उस के पास छोड़ जाती है. विक्रम उस से परिचय पूछता है तो शैलेंद्र बताता है कि वह लीना मैडम व डेविड का काम देखता है. इसी दौरान एक लड़की विक्रम को दिखाई देती है. उस से बात करने पर पता चलता है कि वह लीना थामस पर एक किताब लिख रही है.

अगले सीन में विक्रम के पास एक फोन आता है. वह कहता है तुम्हारा हिसाब चुका दिया है. वह समझ नहीं पाता है. तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और 2 युवक घर में दाखिल होते हैं. थोड़ी बात के बाद दोनों में फाइटिंग शुरू हो जाती है और यहां गाना बजता है, ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे, कहने दो कहता रहे…’ विक्रम दोनों को मारता है.

फायरिंग के दौरान विक्रम फ्रिज से एक केला निकाल कर खाता है. दारू पीता है. तब तक दोनों जमीन पर गिरे होते हैं. उन में से एक उठ कर आता है. गोली चलाने से पहले इन दोनों में जो बातचीत हुई है, ये सीन एकदम बकवास है. युवक गोली न चला कर उस की बातों में उलझा रहता है, फिर तीनों गिरे पड़े होते हैं.

विक्रम जब होश में आता है तो उन में से एक युवक के साथ उस का हाथ भी हथकड़ी में बंधा होता है. दोनों के हाथों में हथकड़ी कैसे बंध गई, यह वेब सीरीज में कहीं पता नहीं चला. विक्रम उसे हथकड़ी सहित खींच कर उस स्थान पर ले जाता है, जहां उस का फोन पड़ा है. फोन की घंटी बज रही होती है. वह रिसीव करता है.

इसी बीच पुलिस अफसर साजिद का फोन आता है. वह बताता है कि लीना थामस का मर्डर हो गया है और उस का आरोप तुम्हारे ऊपर आया है. ऐसे सबूत भी मिले हैं. वह कहता है कि हुड्डा आ रहा है. तभी एपिसोड खत्म हो जाता है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 3

शिव प्रकाश से क्यों चिढ़ गए थे मंत्रीजी

रंगबाज के छठे एपिसोड में गालियों की भरमार है और साथ ही बौलीवुड का भद्दा चेहरा इस वेब सीरीज से भी अछूता नहीं रहा है. इस सीरीज के सातवें एपिसोड का नाम ‘अपहरण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में पटना की जेल को दिखाया गया है, जहां पर मंत्रीजी रमाशंकर तिवारी का खास आदमी वहां पर बंद चंद्रभान सिंह से मिलने जाता है.

तिवारीजी का आदमी कहता है कि शिव प्रकाश के ऊपर आप का हाथ है इसलिए तिवारीजी कुछ नहीं कर रहे हैं. चंद्रभान सिंह उस से कहता है कि तुम लोग अपना विवाद आपस में ही निपटा लो. इस के बाद सीरियल की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में रमाशंकर तिवारी (मंत्रीजी) पुलिस अधिकारी से शिव प्रकाश के ऊपर लगे केसों की प्रगति के बारे में पूछते हैं. अधिकारी कहता कि काम शुरू हो गया है.

शिव प्रकाश की प्रेमिका बबीता शर्मा उस से फोन पर बात करती है और कहती है कि तुम्हारे कहने पर हम ने लखनऊ छोड़ दिया और यहां पर आ गए. यहां भी तुम से नहीं मिल पा रहे हैं. तब शिव प्रकाश उसे समझाता है कि तुम चिंता मत करो, हम जल्द ही मिलेंगे. फिर शिवप्रकाश कहता है कि क्या तुम चलोगी हमारे साथ नेपाल या बैंकाक हमेशा के लिए?

सर्विलांस टीम उन दोनों की बातचीत सुन लेती है. अगले सीन में रमाशंकर के खास आदमी रंजन और शिवप्रकाश शुक्ला की मुलाकात दिखाई गई है. रंजन कहता है, बहुत बड़ा फौज बना लिए हो तुम?

शिव प्रकाश कहता है, ताज्जुब कर रहे हो तुम. फिर दोनों में बहस होने लगती है, रमाशंकर का आदमी कहता है मुझे पता है किस के बलबूते पर बोल रहे हो तुम. हमें पता है.

शिव प्रकाश कहता है, रंजन भैया यह तो वक्तवक्त की बात है. रंजन कहता है कि कुबेर को छोड़ दो और गोरखपुर से दूर रहो. शिव प्रकाश उस से दोटूक कहता है एक करोड़ दे दो, छोड़ देंगे. दोनों में फिर बहस होने लगती है.

शिव प्रकाश कहता है कि रंजन भैया अपने बाप तिवारी से कह दो कि कुबेर की जिम्मेदारी उन की है. और एक बात और सुनो, गोरखपुर तुम्हारे बाप का नहीं है, जब जी होगा, हम आएंगे. यह कह कर दोनों पार्टियां चली जाती हैं.

इस पार्ट में रंजन के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला के आदमियों पर कुबेर चंद्र के छोडऩे के बाद फायरिंग शुरू कर देते हैं और फिर शिव प्रकाश के आदमी रंजन के सभी आदमियों को ढेर कर रंजन को पकड़ लेते हैं. रंजन उन से कहता है कि उस की आखिरी ख्वाहिश यह है कि वह एक ब्राह्मण है और ब्राह्मण के हाथ से ही मरना चाहता है. उस के बाद शिव प्रकाश के आदमी रंजन को मार देते हैं.

तभी अगला दृश्य शिव प्रकाश शुक्ला की बहन के मंगनी का दिखाया जाता है, जहां पर एकाएक पुलिस आ धमकती है, पुलिस अधिकारी प्रमोद शुक्ला से कहता है, 5 केस दर्ज हैं आप के बेटे के ऊपर, पहले हत्या अब फिरौती. पुलिस अधिकारी घर में पुलिस वालों को चारों ओर तलाशी लेने का हुक्म देता है और प्रमोद शुक्ला को गाली देते हुए कहता है कि तुम ने ऐसी… औलाद पैदा की है तो दंड भी भुगतोगे ही.

प्रमोद शुक्ला गिड़गिड़ाते दिखते हैं और बहन चिंतित हो जाती है. उस के बाद वहां सन्नाटा छा जाता है. तभी शिव प्रकाश शुक्ला अपनी बहन श्वेता को फोन कर के उस की परेशानी पूछता है.

बहन ने रोते हुए बता दिया कि उस की मंगनी रुकवा दी, पुलिस वाले घर आए थे, वे आप को खोज रहे थे. उन्होंने पापा को भी गालियां दीं. यह सुन कर शिव प्रकाश शुक्ला उस आदमी को गोली मार देता है, जिस से वह अभी तक बातें कर रहा था और अपने गैंग में शामिल होने का औफर दे रहा था.

छठे एपिसोड में भी जगहजगह गालियों के डायलौग भरपूर दिखाए गए हैं. ठाकुरब्राह्मण की आपस में लड़ाई और ब्राह्मणब्राहमण के बीच में प्रतिद्वंदिता और लड़ाई को इस में अधिक से अधिक प्रदर्शित किया गया है. हकीकत में श्रीप्रकाश शुक्ला की असली कहानी इस से एकदम भिन्न है जो लेखक, निर्देशक ने दिखाने के बजाय घृणा की भावना को अधिक से अधिक प्रदर्शित करने का प्रयास किया है, जो वास्तव में एकदम निंदनीय है.

वेब सीरीज के आठवें एपिसोड का नाम ‘राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी’ रखा गया है, जिस की शुरुआत एक टीवी शो इंडियाज मोस्ट वांटेड से शुरू होती है.

एसटीएफ की कैसे हुई प्लानिंग

एपिसोड के अगले सीन में एसटीएफ के कार्यालय में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे बबीता शर्मा के बारे में कुछ सूचना देता है. सिद्धार्थ पांडे पुलिस कमिश्नर से शिव प्रकाश शुक्ला की स्टोरी इंडियाज मोस्ट वांटेड के कार्यक्रम में प्रसारित होने की बात करता है कि आज रात को चैनल में उस की कहानी प्रदर्शित की जा रही है.

अगले दृश्य में पुलिस कमिश्नर और एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला के बारे में बातचीत कर रहे हैं. मुख्यमंत्री वहां पर आते हैं और पुलिस कमिश्नर का परिचय कराते हैं.

रमाशंकर तिवारी और मुख्यमंत्री वहां एक नया एसटीएफ बनाने की घोषणा करते हैं, जिसे डीजीपी शर्मा के निर्देशन पर सिद्धार्थ पांडे लीड करेंगे और शिव प्रकाश शुक्ला के गैंग का सफाया करेंगे. सिद्धार्थ पांडे स्वचालित हथियार और अच्छी सर्विलांस सुविधा की मांग करते हैं, पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि शिव प्रकाश किसी भी हालत में बचना नहीं चाहिए.

उस के अगले दृश्य में शिव प्रकाश अपने साथी से कहता है कि अभी यहां से निकलना होगा, पहले नेपाल फिर गोरखपुर, मेरी बहन श्वेता की शादी है. उस का साथी कहता है कि यूपी सरकार ने एक स्पैशल टास्क फोर्स आप को पकडऩे के लिए बनाई है.

शिव प्रकाश शुक्ला कहता है कि वह किसी से नहीं डरता. साथी समझाता है कि एसटीएफ सीधे गोली मारती है, इसलिए कानपुर के बजाय पटना चलते हैं वहां मेरी चंद्रभान सिंह से बात हो गई है. कानपुर गए तो आप के साथसाथ आप के परिवार वाले भी मुसीबत में पड़ जाएंगे. साथी कहता है कि रोड से जाने में चैकिंग का खतरा है, इसलिए ट्रेन से चलेंगे.

दूसरे सीन में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे रोड पर सघन चैकिंग का हुक्म अपनी टीम को देते हैं. पुलिस चैकिंग के अभियान में जी तोड़ से दिनरात जुटी हुई है. अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ ट्रेन में बैठा दिखाई दे रहा है.

सभी साथी कह रहे हैं कि शिव प्रकाश शुक्ला को अब मंत्री तिवारी के विरुद्ध विधायक का चुनाव लडऩा चाहिए. तभी टीटी आ कर उन से टिकट मांगता है तो शिव प्रकाश शुक्ला सीधे टीटी पर रिवौल्वर तान देता है. उस के साथी टीटी की बुरी तरह से पिटाई कर देते हैं.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला को चंद्रभान फोन पर कहता है, पटना मत आओ, यहां पर गड़बड़ हो सकता है, तुम ऐसा करो मोकामा निकल जाओ. वह अपना क्षेत्र है, चिंता की कोई बात नहीं है. हमारा लड़का लोग वहां पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा है.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला एक शांत सी जगह से अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता हुआ दिखाई देता है. शुक्ला पूछता है नया घर कैसा लगा? बबीता कहती है, घर अच्छा है बस सामान आना है और तुम्हारा इंतजार है. तुम आओ जल्दी, शिव प्रकाश कहता है, भैया कहते हैं रुको अभी. कुछ और इंतजार करना पड़ेगा.

तभी एक बच्चा मिलता है. शिव प्रकाश उस से बातें करने लगता है उस के बाद शिव प्रकाश को अपना बचपन याद आ जाता है. उस के पिता, उस की बहन उसे सारा बचपन दिखाई देने लगता है. आगे शिव प्रकाश अपने साथियों के साथ बिहार के एक सुनसान क्षेत्र में शराब पीते हुए बातचीत कर रहा है.

इस बीच पुलिस की एसटीएफ टीम को बबीता का सही लोकेशन पता चल जाती है. टीम का सदस्य कंप्यूटर में लोकेशन को ट्रैक करने वाले साथी से टीम के साथ चलने के लिए कहता है तो वह कोई बहाना बना कर टीम के साथ चलने से मना कर देता है. वह कंप्यूटर एक्सपर्ट अब टीवी में शिव प्रकाश शुक्ला की कहानी देखने लगता है और फिर वह बबीता के घर पर जा कर पूछताछ करता दिखाई देता है. उधर टीवी में ऐंकर शिव प्रकाश शुक्ला की हत्याओं की एकएक कर के वारदातें दिखाता रहता है.

तभी वह बबीता शर्मा से टकरा जाता है यानी कि वह बबीता शर्मा को पहचान जाता है और उस का घर भी देख लेता है और इसी के साथ आठवें एपिसोड का समापन भी हो जाता है.

आठवें एपिसोड में भी कलाकारों का अभिनय औसत दरजे का रहा है. एपिसोड में एक टीवी होस्ट एक स्पैशल टास्क से अधिकारी से इस तरह व्यवहार कर रहा है जैसे पुलिस अधिकारी एक फालतू चीज हो. ऐसा भला वास्तविक जीवन में कैसे संभव हो सकता है, जिस से साफसाफ दिखता है कि इस सीन की कल्पना लेखक की शायद अपनी खोपड़ी की उपज है.

एक इतना बड़ा गैंगस्टर ट्रेन में बिना टिकट, बिना रिजर्वेशन अपने साथियों के साथ यात्रा करता हुआ दिखाया गया है. उस के बाद उस के साथी टीटी के साथ बुरी तरह से मारपीट करते हैं, कोई यात्री प्रतिरोध करता हुआ या उस सीन को देखता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. न ही टीटी द्वारा किसी को कंप्लेंट कराते दिखाया गया है, जबकि ट्रेन में हमेशा सुरक्षा गार्ड रहते हैं. कहानी को जगहजगह काल्पनिक बना दिया गया है, हकीकत से एकदम परे.

शिव प्रकाश को किस ने दी थी मुख्यमंत्री की सुपारी

एपिसोड के अंतिम भाग का नाम क्लाइमेक्स अर्थात ‘चरमोत्कर्ष’ के नाम पर रखा गया है, एपिसोड की शुरुआत में प्रमोद शुक्ला अपने बेटे शिव प्रकाश को आवाज देते दिखाई दे रहे हैं. बचपन में वह शिव प्रकाश को स्कूल जाने के बहाने सिनेमा जाने से पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं.

फिर अगले सीन में प्रमोद शुक्ला अखबार पढ़ते हुए दिख रहे हैं कि शिव प्रकाश ने ली मुख्यमंत्री की सुपारी 8 करोड़ रुपए. यह देख कर वह चिंतित हो जाते हैं. मंत्री रमाशंकर तिवारी भी समाचार पत्र देख रहे हैं. इस के बाद एपिसोड की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में दिल्ली में शिव प्रकाश का साथी लैंडलाइन फोन से अपने घर पर बात करता दिखाई दे रहा है. फोन करने के बाद वह वापस लौट कर इधरउधर देखते हुए उस कमरे में आ जाता है, जहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश छिपा हुआ है.

उधर दूसरे सीन में टीवी शो का एंकर अपना मोस्टवांटेड एपिसोड समाप्त करता है. तभी दूसरे दिन शिव प्रकाश शुक्ला टीवी शो के एंकर को गाली देते हुए कहता है यदि तुम ने दोबारा मेरा शो दिखाया तो अच्छा नहीं होगा. एंकर गिड़गिड़ाते हुए कहता है, ”सर, सर वो लोग हमें जो लिख कर देते हैं, हम वही करते हैं. हम तो एक एक्टर भर हैं.’’

शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता है. सर्विलांस टीम एकदम अलर्ट हो कर उन की बातों को गौर से सुनने लगती है. बबीता कहती है कि अखबार में कुछ आ रहा है, टीवी में कुछ आ रहा है. हम तुम्हारे लिए परेशान हो गए.

शिव प्रकाश कहता है कि तुम घबराओ मत.

उन दोनों की बातचीत को सुन कर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे और उन की टीम अलगअलग तरीके से प्लान बनाने लग जाती है.

दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी टीम के सहयोगी तनुज को कहीं चलने के लिए कहता है. फिर अगले दृश्य में शिव प्रकाश की बहन तैयार होती दिखती है, तभी उस का मोबाइल बजने लगता है. शिव प्रकाश शुक्ला बारबार बहन को फोन कर रहा है, मगर कोई फोन नहीं उठाता है.

फिर शिव प्रकाश साथियों के साथ गाड़ी में जाता दिखाई दे रहा है. उस के साथी पूछते हैं कि अब कहां चलें गोरखपुर या गाजियाबाद?

उधर एसटीएफ ने योजना के अनुसार सारी दुकानें बंद करा दीं.

अगले सीन में शिव प्रकाश की बहन की शादी की तैयारियां हो रही हैं, लड्डू बनाए जा रहे हैं, नाचगाना हो रहा है. तभी गाजियाबाद में 2 लोग बाइक पर दिखाई देते हैं. एसटीएफ टीम का सदस्य महादेव पिस्टल निकाल लेता है, तभी वहां पर एक बड़ी गाड़ी आती दिखाई ती है, जिस में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पिस्टल ले कर उतरता है और साथियों से कहता है, ”आते हैं अभी थोड़ी देर में, फिर गोरखपुर निकलेंगे. ‘

महादेव एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे को वायरलेस पर सिगनल कर देता है, तभी गाड़ी में बैठे शिव प्रकाश के साथियों को कुछ शक सा होता है. अगले सीन में शिव प्रकाश अपने घर पर फोन करता है.

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी अपने साथियों से कहता है कि मुझे आज सुबह से ही कुछ ऐसा लग रहा है, जैसे कोई हमें देख रहा है. साथी कहते हैं, वहम है तुम्हारा.

पुलिस को किस ने दी थी शिव प्रकाश की सूचना

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी गाड़ी से बाहर आता है उसे शक हो जाता है तो वह ‘गाड़ी निकाल’ कह कर चिल्लाता है, तभी एसटीएफ का सदस्य महादेव उसे गोली मार कर ढेर कर देता है. गोली की आवाज बबीता को भी सुनाई देती है, तभी वहां पर पुलिस की टीम शिव प्रकाश के सभी साथियों को ढेर कर देती है.

शिव प्रकाश के ऊपर भी फायरिंग शुरू हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पोजीशन बारबार बदलता है. तभी बबीता ‘शिव.. शिव’ चिल्लाते हुए अपने फ्लैट से बाहर निकल आती है. सिद्धार्थ पांडे और शिव प्रकाश शुक्ला एकदूसरे पर गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं. पुलिस की टीम शिव प्रकाश को चारों ओर से घेर लेती है.

तभी शिव प्रकाश अपनी पिस्तौल में गोली भर कर सीना तान कर कर पूरी पुलिस टीम का मुकाबला करने सामने बेझिझक, बिना डरे निकल कर आ जाता है और गोलियां बरसानी शुरू कर देता है. वह कुछ पुलिसकर्मियों को मार भी डालता है, तभी शिव प्रकाश के पेट में गोली लगती है और वह जमीन पर गिर जाता है.

उस का मोबाइल छिटक कर कुछ दूरी पर गिर जाता है. तभी बबीता शिव प्रकाश को फोन करती है. शिव प्रकाश अपना पेट पकड़े अपनी सारी मैगजीन खाली कर देता है. उसी समय उस की नजर अपने मोबाइल पर पड़ती है, जो बज रहा था. बबीता दिखाई पड़ती है जो फोन करते दिखाई दे रही है. तभी सिद्धार्थ पांडे कहते हैं, शिव प्रकाश शुक्ला. वह उस की ओर पिस्टल तान देते हैं. वहां पर अब बबीता, कंप्यूटर औपरेटर, शिव प्रकाश शुक्ला और सिद्धार्थ पांडे सभी एकदूसरे को देखते हुए दिखाई देते हैं.

फ्लैट से तभी बबीता जोर से चिल्लाती है, ‘शिव…शिव…शिव…’ और फिर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला को गोलियों से छलनी कर देता है. बबीता शर्मा यह दृश्य देख कर जोरजोर से रोने लगती है. उस का प्रेमी जमीन पर पड़ा अपनी आखिरी सांसें ले रहा होता है तो दूसरी तरफ वह जोरजोर से रो रही है.

उधर अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला की बहन की शादी में उस के मातापिता नाच रहे हैं, बहन श्वेता हंस रही है. उस की बहन श्वेता, मां और पिता प्रमोद शुक्ला को शिव प्रकाश अपने साथ नाचता हुआ दिखाई दे रहा है. रमाशंकर तिवारी खुश हो कर पार्टी करता दिखाई दे रहा है और चंद्रभान सिंह उदास चेहरा लिए खड़ा दिखाई दे रहा है.

शिव प्रकाश शुक्ला की खून भरी गोलियों से छलनी लाश जमीन पर पड़ी है और इस तरह यह नवां एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

इस में जबरदस्ती कंप्यूटर औपरेटर पात्र को ठूंस दिया गया लगता है. वह न तो पुलिस वाला है, न उस ने प्राइवेट जासूसी की कहां पर ट्रेनिंग ली है, न उस की कदकाठी ही ऐसी है कि वह निजी तौर पर इतना बड़ा जोखिम ले कर इतने बड़े गैंगस्टर शिव प्रकाश की प्रेमिका की जासूसी केवल अपने स्तर पर वह भी बिना आदेश लिए कर सके.

वह कलाकार नौसिखिया सा दिखाई दे रहा है. लगता है जासूसी उपन्यास पढ़पढ़ कर उस ने इतना बड़ा जोखिम ले कर यह कारनामा कर दिखाया है. इस नवें एपिसोड की यह सब से बड़ी कमजोरी साफसाफ नजर भी आ रही है.

यदि पूरे वेब सीरीज रंगबाज सीजन 1 का आकलन करें तो इस में गिनती के 2-4 सीन हैं, जिन में एक्शन और खूनखराबा देखने को मिलता है, वरना इस पूरी वेब सीरीज में शिव प्रकाश शुक्ला जो भागतेबचते दिखाई पड़ता है या फिर अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते हुए दिखाई देता है.

वेब सीरीज 9 एपिसोड की है और हर एपिसोड 30 से 35 मिनट का है. लेकिन फिर भी यह वेब सीरीज हमें बोर करती है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 2

शिव प्रकाश ने क्यों की विधायक की हत्या

अगला दृश्य इमरजेंसी का दिखाया जाता है, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी. जेपी आंदोलन को उस में दिखाया गया है.

दूसरी ओर, गोरखपुर के छात्र जाति के हिसाब से अपनाअपना वर्चस्व स्थापित कर रहे थे, ब्राह्मण और ठाकुरों का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हो रहा था. पूरे गोरखपुर में उस समय चारों ओर हिंसा का तांडव फैलता जा रहा था. रामशंकर तिवारी और साही के बीच हिंसा की राजनीति बढ़ती जा रही थी.

रामशंकर तिवारी एक सभा को संबोधित करते हुए कहते हैं ब्राह्मïण के बस 3 काम हैं भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. जरूरत पडऩे पर हम सभी वो कार्य करने में सक्षम हैं जो एक समय में क्षत्रियों ने किया था. ब्राह्मण सर्वोच्च था सर्वोच्च रहेगा.

दूसरी तरफ राजनीतिक प्रतिद्वंदी नरेंद्र साही की सभा दिखाई गई है, जहां पर वह अपना भाषण देना शुरू कर देते हैं. तभी उस भीड़ के बीच में से शिव प्रकाश शुक्ला आ कर सीधे मंच तक पहुंच जाता है और खुलेआम हजारों की संख्या में लोगों से घिरे विधायक नरेंद्र साही की गोली मार कर हत्या कर देता है. वहां पर भगदड़ मच जाती है.

दूसरे दृश्य में रामशंकर तिवारी को उस के आदमी द्वारा खबर मिलती है कि काम हो गया. उस के बाद रामशंकर तिवारी ब्राह्मण एकता जिंदाबाद के नारे लगाता है. तभी वहां पर शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला दिखाई देते हैं. रामशंकर तिवारी उन से कहता है, तुम्हारा बिटवा पढ़ाईलिखाई से काफी आगे बढ़ गया है.

नरेंद्र साही की दिनदहाड़े हत्या की खबर चारों ओर फैल जाती है. उस के बाद शिव प्रकाश एक और हत्या कर देता है. फिर एक के बाद एक कर के शिव प्रकाश शुक्ला हत्या कर देता है.

सीरीज के इसी भाग में एक दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देता है. वह शिव प्रकाश शुक्ला की बात बिहार के सरगना रवि किशन से कराता है. रवि किशन शिव प्रकाश को बिहार बुलाता है. एपिसोड समाप्त हो जाता है.

तीसरे एपिसोड में जैसा कि नाम दिया गया है भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. मगर इस के अनुरूप इस का नहीं दिखाई दिया है. इस एपिसोड में निर्देशक पात्रों के साथ न्याय करते हुए बिलकुल भी नहीं दिखा. एक गुंडा खुलेआम किसी का भी मर्डर पुलिस कर देता है. पुलिस, प्रशासन यहां तक कि जनता को भी यह इतना बड़ा खूनी बिलकुल ही दिखाई नहीं देता. पुलिस में भूमिका कर रहा दरोगा जो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देने आता है, वह किसी भी एंगल से पुलिस का एक सिपाही तक नहीं लगता. एक नौसखिया सा दिखाई देता है.

चौथा एपिसोड वेव सीरीज रंगबाज सीजन वन का नाम ‘नाम है शंकर तिवारी’ है, जिस में एक विशाल भीड़ दिखाई देती है, जिस में लालू प्रसाद यादव एक सभा में भाषण देते दिखाई दे रहे हैं. उस के बाद दिवंगत नेता रामविलास पासवान भी भाषण दे रहे हैं. तभी गुंडे दिनदहाड़े लोगों को गोलियों से भून रहे हैं.

एपिसोड के पहले सीन में 2 लोग बातचीत कर रहे हैं. इस के बाद बिहार से आया दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला के साथ ट्रेन में बैठा हुआ दिखता है, जहां पर वह एक महिला से बातचीत करने लगता है.

किस शर्त पर दिलाया था रेलवे का ठेका

अगले दृश्य में रामशंकर तिवारी विधायक साही के अंतिम संस्कार में जाने की तैयारी करता है. रामशंकर तिवारी को उस का आदमी बताता है कि शिव प्रकाश शुक्ला मर्डर कर के बिहार चला गया है. अगले दृश्य में रवि किशन और साकिब सलीम की मुलाकात को दिखाया गया है. दोनों आपस में बातचीत करते हैं.

रवि किशन उस समय जेल में है. वह साकिब सलीम यानी शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह उसे इसलिए पसंद करता है क्योंकि उस का काम करने का तरीका भी पहले ऐसा ही था. वह शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह कोई ऐसा काम करे, जिस से उस का नाम हो और पैसा भी जम कर बरसे. वह उसे कहता है कि उस के पास रेलवे का ठेका है. वह उसे इस बार रेलवे का ठेका दिला देगा. बदले में उसे उस का एक काम करना होगा.

उस के बाद शिव प्रकाश शुक्ला अपने आदमियों से बात करता दिखाई देता है. अगले दृश्य में पुलिस टीम शिव प्रकाश शुक्ला की दिनचर्या के बारे में बात करते दिखाई देेते हैं. वे आपस में गुफ्तगू करने लगते हैं, तभी सर्विलांस में शिव प्रकाश शुक्ला और उस की प्रेमिका के बीच बातचीत शुरू हो जाती है.

पुलिस की विशेष टीम उन की आवाज को रिकौर्ड करना शुरू कर दे रही होती है. शिव प्रकाश शुक्ला और प्रेमिका दोनों बहुत ही सैक्सी अंदाज में बातें करने लगते हैं.

शिव प्रकाश शुक्ला को उस की प्रेमिका के साथ सैक्स सीन करते हुए दिखाया गया है. प्रेमिका बताती है कि घर के बारे में कुछ खोजखबर है या नहीं, तुम्हारी बहन की शादी फिक्स कर दी गई है. उस के बाद सीधे मंत्रीजी का सीन आ जाता है, जिस में उन का सहयोगी कहता है कि शिव प्रकाश घूमने नहीं बल्कि चंद्रभान सिंह से मिलने के लिए गया था.

फिर एकदम दूसरा सीन आ जाता है जिस में शिवप्रकाश शुक्ला अपने घर पर अपनी बहन से कहता है, ”श्वेता, तुम्हारी शादी फिक्स हो गई, हमें बताया तक नहीं गया.’’

मां कहती है तुम्हें क्या बताना, तुम घर पर रहते भी हो. उस के पिता उसे डांटते हैं और वह फिर एक बड़ी रकम अपनी बहन के हाथ में दे कर वहां से चला जाता है.

फिर अगले सीन में चंद्रभान सिंह (रवि किशन) को जेल में एक्सरसाइज करते हुए दिखाया गया है. फिर चंद्रभान सिंह का एक सहयोगी उसे फोन देते हुए कहता है कि मंत्रीजी (तिवारीजी) का फोन है. फोन पर तिवारी चंद्रभान सिंह को कहता है कि फसल जो बोएगा, वही काटेगा. मतलब शिव प्रकाश शुक्ला मेरा आदमी है उस से दूर रहिए आप.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका अहाना कुमरा से बातचीत करता हुआ दिखाई पड़ता है. तभी रणवीर शौरी के नेतृत्व में टीम वहां पर जा पहुंचती है, जहां पर शिव प्रकाश शुक्ला ठहरा हुआ है. लेकिन शिव प्रकाश शुक्ला वहां की रसोई से भाग निकलता है.

अगले दृश्य में पुलिस की सहायता कर रहे प्रोफेसर शिव प्रकाश शुक्ला की ओर पिस्तौल तान कर उसे रुकने के लिए कहते हैं तो शिव प्रकाश शुक्ला उन की हत्या कर देता है.

चौथे एपिसोड में निर्देशक ने बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. प्रेमी और प्रेमिका के बीच ऐसी बातचीत किसी पोर्न फिल्म से कम नहीं है, निर्मातानिर्देशक ने सोचा होगा ऐसी बातचीत कर के शायद टीआरपी बढ़ जाएगी, बल्कि असल में यह बेहद ही बेशर्मी से गढ़ा गया दृश्य है.

रंगबाज वेब सीरीज के 5वें एपिसोड को ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ नाम दिया गया है. इस के पहले दृश्य में मंत्री रमाशंकर तिवारी का फोन शिव प्रकाश के लिए आता है, जिस में वह शिव प्रकाश को लखनऊ वाला काम करने को कहते हैं और कहते हैं कि सब्र करो हम पर भरोसा रखो.

उस के बाद कोर्ट परिसर का दृश्य आता है, जिस में कुछ लोग मंत्री रमाशंकर तिवारी के पास रेलवे के ठेके के लिए अपनी फरियाद ले कर आते हैं. वे कहते हैं कि रेलवे का ठेका लखनऊ वाले रविंदर सिंह को मिल गया है. मंत्रीजी कहते हैं कि अब तुम्हारा काम हो जाएगा. शिव प्रकाश शुक्ला तुम्हारा काम कर देगा.

शिव प्रकाश को मंत्री रमाशंकर तिवारी के आदमी का फोन आता है, जिस में वह कहता है कि एक मंत्री को आज ही निपटाना है. वह शिव प्रकाश को मंत्री की पूरी जानकारी देता है. शिव प्रकाश अपने मोबाइल में एक नया सिम डालता है.

दूसरी तरफ शिव प्रकाश के मातापिता और बहन एक साड़ी की दुकान में खरीदारी करते दिखाई देते हैं. दुकानदार शिव प्रकाश के मातापिता से साडिय़ों के पैसे लेने से मना कर देता है कि आप से हम भला पैसे कैसे ले सकते हैं, आप हमारे ऊपर बस अपना आशीर्वाद बनाए रखें. उसी समय श्वेता (शिव प्रकाश की बहन) की एक सहेली उसे वहां से ले जा कर उस की बात शिव प्रकाश से कराती है. बहन उस से कहती है कि यदि वह नहीं आया तो वह अपनी न शादी करेगी न मंगनी. शिव प्रकाश बहन से आने का वायदा करता है. वह कहता है यदि मंगनी में नहीं आ पाया तो शादी में जरूर आएगा.

शिव प्रकाश मंत्री को गोली मार देता है. तभी शिव प्रकाश के साथी उस से कहते हैं कि अब तो वह राष्ट्रीय स्तर पर फेमस हो रहे हैं.

अगले सीन में चंद्रभान सिंह जेल में वौलीबाल का मैच कैदियों के बीच में जो खेला जा रहा है, उसे कुरसी पर बैठ कर देख रहा है, तभी वह फोन से शिव प्रकाश से बात करते हुए कहता है कि अब गोरखपुर में कुछ नहीं रखा है. तुम अब लखनऊ ही जाओ. शिव प्रकाश गोरखपुर न जा कर लखनऊ की ओर निकल पड़ता है.

किस ने कराई बिहार के मंत्री की हत्या

अगले दृश्य में समाचार में आता है बिहार में मंत्री की हत्या हो गई है, जिसे गोरखपुर के शिव प्रकाश शुक्ला गैंग ने अंजाम दिया है. इस खबर को मंत्री रमाशंकर तिवारी अपने विशेष चेले के साथ टीवी में देखते नजर आ रहे हैं, जहां पर रमाशंकर तिवारी अपने चेले से कहते हैं कि लखनऊ वाला काम किसी और को दे दो. देखते हैं यह अब कब तक गोरखपुर नहीं आता है. बहन की सगाई में तो आएगा ही.

पांचवें एपिसोड में भी कुछ नयापन सा बिलकुल भी नहीं दिया गया है. सभी कलाकारों का काम केवल औसत दरजे का रहा है. एक गैंगस्टर बिहार की जेल में बैठ कर फाइवस्टार होटल जैसे आनंद में अपना जीवन गुजार रहा है. जेल में ही बैठ कर हत्याओं की सुपारी ले रहा है.

जेल में रह कर ही रेलवे के बड़ेबड़े ठेके ले रहा है, यह बात बिलकुल भी गले से नहीं उतरती. एपिसोड का नाम ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ का अर्थ इस एपिसोड से बच्चा भी निकाल सकता है कि शिव प्रकाश अब रमाशंकर तिवारी के साथ नहीं बल्कि गैंगस्टर चंद्रभान सिंह के साथ है.

इस वेब सीरीज के एपिसोड नंबर 6 की कहानी ‘माता का जागरण’ के नाम से दी गई है. इस में एसटीएफ चीफ सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के बारे में अपनी टीम के सदस्यों से बातचीत कर रहे होते हैं कि ये आखिर उस की प्रेमिका बबीता कौन हो सकती है.

रमाशंकर तिवारी अपने भतीजे रमेश के साथ शिव प्रकाश की प्रेमिका रश्मि की मंगनी तय कर देता है.

शिव प्रकाश अपना अड्ïडा लखनऊ में जमा लेता है. वहां हो रहे एक जागरण से वह अपने गैंग के द्वारा कुबेरचंद्र अरोड़ाका एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए अपहरण कर लेता है. अरोड़ा तिवारी का आदमी था. अपने वफादार के अपहरण पर रमाशंकर तिवारी तिलमिला जाता है.

तिवारी अपने खास आदमी को पटना चंद्रभान सिंह के पास जाने को कहता है और कहता है कि चंद्रमान सिंह को टटोलो. शागिर्द चंद्रभान सिंह के पास जाने की हामी भर लेता है और इसी के साथ यह छठां एपिसोड समाप्त हो जाता है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 1

लेखक : सिद्धार्थ मिश्रा

निर्देशक : भाव धूलिया

निर्माता : अजय जी राय

कलाकार: साकिब सलीम, अहाना कुमरा, तिग्मांशु धूलिया, रवि किशन, रणवीर शौरी, भारत चावला और सौरभ गोय.

रंगबाज 1990 के दशक की गोरखपुर की देहाती पृष्ठभूमि पर आधारित एक भारतीय वेब सीरीज है. इसे 22 दिसंबर, 2018 को जी-5 ओरिजनल के रूप में रिलीज किया गया था.

रंगबाज गोरखपुर के नौजवान शिव प्रकाश शुक्ला (साकिब सलीम) की कहानी है. शिव प्रकाश शुक्ला की बहन को एक मवाली सरेआम बाजार में छेड़ता है और यह बात जब उसे पता चलती है तो गुस्से से बेकाबू हो कर देसी कट्टा ले कर उस मवाली के पास पहुंच जाता है, लेकिन वहां गलती से गोली चल जाती है और शिव प्रकाश शुक्ला से उस मवाली का कत्ल हो जाता है. उस के बाद एक नेता शिव प्रकाश शुक्ला को बचाता है और फिर वह उस नेता के लिए काम करने लग जाता है.

इस तरह उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी को इस वेब सीरीज में उकेरा गया है. सीरीज में कुल मिला कर 9 एपिसोड हैं, जिस में 9 कहानियों को अलगअलग दिखाया गया है. रंगबाज वेब सीरीज की स्पीड कहींकहीं पर थोड़ी स्लो दिखाई पड़ती है.

रंगबाज के पहले एपिसोड की कहानी का नाम ‘गैंगस्टर का मोबाइल फोन’ है. इस पहले एपिसोड की शुरुआत एक गाड़ी से होती है, जिस में कुछ गुंडे बैठे हुए होते हैं. वे सब गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के घर पहुंच जाते हैं. शिव प्रकाश का दोस्त प्रेमिका को शिव प्रकाश शुक्ला का दिया हुआ गिफ्ट दे देता है.

उस के बाद प्रेमी और प्रेमिका के बीच मोबाइल से बातचीत होती है. उसी दौरान गैंगस्टर के फोन पर कुछ आवाजें आती हैं. वह प्रेमिका से कहता है, ”लगता है कुछ गड़बड़ है.’’

तभी पुलिस की गाडिय़ों के सायरनों की आवाज जोरजोर से सुनाई पड़ती है. इस वेब सीरीज में भी गंदीगंदी गालियों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो डायरेक्टर की फूहड़ मानसिकता को दर्शाता है.

पुलिस गैंगस्टर के ऊपर फायरिंग शुरू कर देती है तो गैंगस्टर खुद गाड़ी के आगे से अपनी स्वचालित एके-47 से पुलिस के ऊपर फायर झोंक देता है. तभी गैंगस्टर मंत्रीजी को फोन करता है और वह मंत्रीजी को धमकाते हुए कहता है, ”पुलिस मेरे पीछे लगी हुई है, अब तो लगता है कि मुझे पुलिस को यह बताना ही पड़ेगा कि गुडग़ांव वाले एमएलए का मर्डर आप ने करवाया था.’’

वह मंत्री को धमकी देते हुए कहता है, ”व्यवस्था कीजिए वरना कर देंगे हम तुम्हें फेमस.’’

पुलिस और गैंगस्टर के बीच में अब आंखमिचौली का खेल चलने लगता है और पुलिस का सिपाही गैंगस्टर को निकलने का इशारा कर देता है और गैंगस्टर शिव प्रकाश की गाड़ी आसानी से निकल जाती है.

अगले सीन में कहानी एक बार फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. यहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के परिवार को दिखाया गया है.

शिव प्रकाश कैसे आया अपराध की दुनिया में

शिव प्रकाश की बहन बाजार से जा रही होती है, तभी एक शोहदा उस के कंधे पर हाथ रख कर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर देता है, जिस की खबर सारी जगह से फैलतेफैलते उन के घर तक पहुंच जाती है.

शिव प्रकाश के मातापिता अपनी बेटी की इस बदनामी से शर्मसार हो जाते हैं. जब यह बात शिव प्रकाश शुक्ला को पता चलती है तो वह अपनी बहन से बात करता है और बहन से शोहदे के बारे में पूछताछ करता है. गैंगस्टर के पिता उसे समझाते हैं कि वह गुस्सा न करे, वह पुलिस में जा कर शिकायत लिखा देंगे.

मगर शिव प्रकाश शुक्ला यह सब बरदाश्त नहीं कर पाता और उस शोहदे के पास पहुंच जाता है और फिर दोनों में गुत्थमगुत्था होने लगती है. तभी गुस्से से गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला से गोली चल जाती है और शोहदे की गोली लगने से मौत हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला उस के बाद घबरा जाता है और अपनी बाइक से घर लौट आता है.

शिव प्रकाश शुक्ला के पिता उस की पिटाई करने लगते हैं कि उस ने उस युवक को जान से क्यों मार दी. अब आगे उस का भविष्य क्या होगा?

शिव प्रकाश शुक्ला रोते हुए पिता को बताता है कि पापा गोली गलती से चल गई. मुझे माफ कर दो पापा, मुझे बचा लो पापा. उस के पिता कहते हैं कि चौबेजी का बेटा वकालत करता है. वह कह रहा था कि आज सरेंडर कर दे.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला के घर पर मंत्रीजी की गाडिय़ों का काफिला आ जाता है. मंत्री शिव प्रकाश शुक्ला के पिता से कहता है, ”आप ने तो हमें पराया ही बना दिया. बाहर वालों से कांड का पता चला हमें.’’

उस के बाद मंत्रीजी शिव प्रकाश शुक्ला से कहते हैं कि तुम ने जो कुछ किया ठीक किया. घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं. और फिर मंत्रीजी के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला को वहां से ले जाते हैं. बाद में वह शुक्ला को बैंकाक में पहुंचा देते हैं.

एपिसोड में उस के बाद फिर पुराना सीन आ जाता है, जिस में पुलिस टीम गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर ट्रैक करती दिखाई देती है.

इस कहानी को एक बड़े लेवल पर दिखाया जा सकता था, लेकिन यहां पर इसे काफी साधारण तरीके से प्रस्तुत किया गया है. इसलिए इस में मनोरंजन की डोज दर्शक को नहीं मिल पाई है.

इस एपिसोड में कई बार यहां तक कि बारबार कई सीनों को एकदम से रोक कर दूसरा सीन चालू हो जाता है. कुछ समय तक तो कोई भी इसे बरदाश्त कर सकता है, लेकिन जब बारबार यही क्रम दोहराया जाता है तो एक समय ऐसा आ जाता है कि दर्शक बोरियत सी महसूस करने लग जाता है. गैंगस्टर के तौर पर साकिब सलीम और पौलिटीशियन के तौर पर तिग्मांशु धूलिया का काम भी कोई खास नहीं है.

रवि किशन और अहाना कुमरा का काम इस में काफी साधारण सा दिखाई देता है, क्योंकि उन के लिए इस में करने के लिए कुछ विशेष था ही नहीं. कहानी में भी इस में कुछ विशेष दम नहीं है. यूपी का रंगबाज क्या होता है, ये समझने के लिए साकिब सलीम को कुछ दिन यूपी के गोरखपुर, इलाहाबाद या लखनऊ में गुजारने चाहिए थे.

इस सीरीज के दूसरे एपिसोड का नामकरण ‘जवान होना’ के नाम से किया गया है. इस दूसरे एपिसोड में डीएसपी चौबे शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला की हिम्मत बढ़ाते हुए दिखता है. इस सीन में कानून की धज्जियां उड़ती दिखती हैं. बाद में पता चलता है कि मंत्रीजी ने ही डीएसपी चौबे को शुक्ला के घर भेजा था.

उधर बैंकाक में बैठे शिव प्रकाश शुक्ला को अपने घर वालों और प्रेमिका की चिंता होती है. वह एक दिन अपने घर फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन उस का साथी उसे फोन करने से रोक लेता है. तब उस का साथी उसे एक क्लब में ले जाता है, जहां तमाम खूबसूरत लड़कियां उसे रिझाने में लग जाती हैं. शिव प्रकाश वहां कोई भी एंजौय नहीं करता क्योंकि उसे तो अपनी प्रेमिका की याद आती है.

मंत्रीजी ने क्यों दिया शिव प्रकाश को संरक्षण

अगला दृश्य मंत्रीजी शिवप्रकाश के पिता को फोन कर के समझाते हैं कि वह बेटे की चिंता न करें, सही समय पर वह आ जाएगा.

दूसरे सीन में शिव प्रकाश का साथी उसे बैंकाक में एक मर्डर करने को कहता है और उसे एक पिस्टल देते हुए कहता है कि ये आदमी जो सामने लाल कमीज में बैठा है, तुम्हें इसे मारना है. यह मंत्रीजी का पैसा ले कर भागा है. गोरखपुरिया है. यह मंत्रीजी का हुक्म है.

शिव प्रकाश उस का पीछा करते हुए गोली चलाता है, मगर गोली नहीं चलती और गोरखपुरिया और उस का साथी शिव प्रकाश को पीटने लगते हैं. तभी वहां पर शिव प्रकाश का साथी आ कर उन्हें कहता है बस करो. शिव प्रकाश से उस का साथी कहता है, चलो तुम इस परीक्षा में अब पास हो गए हो. चलो, अब वापस चलो. तुम्हारा गोरखपुर लौटने का समय हो गया है. उस के बाद उस क ा साथी प्लेन में बिठा कर हिंदुस्तान ले आता है.

शिव प्रकाश प्लेन से उतर कर टैक्सी में अपने साथी के साथ बैठ जाता है और वह अपने साथी से पूछता है हम कहां जा रहे हैं? उस का साथी कहता है, गुरुजी तुम से मिलना चाहते हैं और उसे मंत्रीजी पास ले कर आ जाता है.

मंत्रीजी शिवप्रकाश से कहते हैं, आजादी मुबारक हो, अब बड़ा काम करने का वक्त आ गया है. फिर मंत्रीजी उसे अपने एक पुराने दुश्मन विधायक को मारने का आदेश देते हैं. उस के बाद दूसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है.

दूसरे एपिसोड में भी सभी कलाकारों का काम औसत दरजे का रहा है. एक एसपी रैंक के अधिकारी का गैंगस्टर के पिता के घर पर जाना और उन्हें संरक्षण देना, भारतीय समाज पर नेताओं और प्रशासन की भूमिका को दर्शाता है कि आज नेता तो भ्रष्ट हैं ही, पुलिस प्रशासन भी अब नेताओं की जूती बन कर रह गया है.

रंगबाज सीजन वन के तीसरे एपिसोड की कहानी भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा पर आधारित है. एपिसोड की शुरुआत में 1974 में गोरखपुर विश्वविद्यालय को दिखाया गया है, जहां पर कुछ गुंडे विश्वविद्यालय की एक कक्षा में घुस कर मारपीट करने लगते हैं.

मारमीट करने से पहले वे सब लड़कियों को क्लास से बाहर जाने को कहते हैं और पढ़ाने वाले प्रोफेसर को भी वहां से बाहर निकाल देते हैं. गुंडों को फिर शिव प्रकाश और उस के साथी पीट देते हैं. उस के बाद वेब सीरीज की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

पहले दृश्य में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडेय (रणवीर शौरी) के पास एक विशेष मुखबिर आ कर बताता है कि शिवप्रकाश का दिल्ली से गोरखपुर जाने का प्लान है. पुलिस अधिकारी फिर अपने मातहतों को कुछ आदेश देता है. तभी दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाई देता है.

अहाना कुमरा, शिव प्रकाश को उस के मातापिता की याद दिलाती है तो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला सीधे अपने घर पहुंच जाता है. शिव प्रकाश की बहन और मां उस से खुशी से लिपट जाते हैं.

अगले दृश्य दृश्य में शिव प्रकाश के साथी उसे किसी को मारने के लिए कहते हैं. शिव प्रकाश अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाया गया है. अगले सीन में पुलिस टीम प्रेमीप्रेमिका की बातों को रिकौर्ड करती दिखाई देती है. फिर शिव प्रकाश शुक्ला परशुराम होस्टल में तनुज को मिलने के लिए बुलाता है और अपने गिरोह में शामिल कर लेता है.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 3

नंदिनी की कातिल निगाहेंक्यों जमी थीं जेठ पर

सातवें एपीसोड में बबलू को तलाशने की बात होती है. वह अपनी टीम के साथ दुख व्यक्त करते हैं कि वह एक बच्चा नहीं बचा पाए. आगे की कहानी में बबलू भागाभागा फिर रहा होता है. देवी से बात करना चाहता है, पर वह फोन काट देती है. तब वह शेख के पास जाता है. पर वह भी दुत्कार कर भगा देता है.

तब बबलू अपनी प्रेमिका और हर अपराध में सहयोगी पिंकी को अविनाश के पास भेज कर आत्मसमर्पण की बात करता है. पर वह आत्मसमर्पण कर पाता, उस के पहले ही देवी अपने सहयोगियों के साथ जा कर बबलू के गैंग की हत्या कर देती है. इसी के साथ शेख बबलू को जिंदा दफन करवा देता है. देवी की भूमिका अभिमन्यु सिंह ने की है तो अजीमुद्दीन गुलाम शेख की भूमिका अमित सियाल ने की है.

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इस की जानकारी इंस्पेक्टर अविनाश को हो जाती है. उन्हें यह भी पता चल जाता है कि राकेश अग्रवाल के बेटे का अपहरण शेख ने ही करवाया था और उसी के कहने पर बबलू ने बच्चे की हत्या कर दी थी. यह सब वोटों के लिए किया गया था.

शेख रफीक गाजी के भाई इमरान गाजी को देवी मां से मिलवाता है, जो उसे पिस्टल देती है. इस के बाद इमरान गाजी कालेज का चुनाव लड़ता है और गुंडई के बल पर जीत भी जाता है.  इमरान गाजी का रोल जोहैब फारुकी ने किया है. यह अपनी भूमिका में बिलकुल नहीं जमता.

आठवें और अंतिम एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश शेख के घर मिलने जाते हैं, जहां शेख और अविनाश की कहासुनी होती है, जिस में दोनों ही एकदूसरे को धमकाते हैं. इस के बाद गृहमंत्री का भाई नशा कर रहा होता है तो उस की पत्नी नंदिनी उसे फोन करती है.

वह फोन नहीं उठाता तो वह अपने जेठ यानी गृहमंत्री के पास चली जाती है और सैक्स करने का औफर देती है. मंत्रीजी मजबूर हो कर उस का यह औफर स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन का भाई पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पा रहा था. घर की इज्जत बचाने के लिए वह उस की इच्छा पूरी करते हैं.

शेख ने क्यों की अपने अम्मीअब्बू की हत्या

दूसरी ओर इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी मां यानी देवीकांत चतुर्वेदी को अपने औफिस बुलाते हैं. दोनों ही एकदूसरे को देख लेने की धमकी देते हैं. अविनाश उस से बबलू पांडेय के गैंग के मारे जाने के बारे में पूछते हैं. पर वह सबूत की बात करता है.

दोनों के ही पास पौलिटिकल पावर है. इसलिए देवी उल्टीसीधी बातें कर के चला जाता है. इस के बाद उस स्कूल में एक बच्चे की हत्या हो जाती है, जिस स्कूल में अविनाश का बेटा पढ़ता है. लेकिन इस का खुलासा अभी नहीं होता, शायद इस के बारे में आने वाले सीजन में दिखाया जाए.

इसी एपीसोड में शेख के बारे में फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि उस की बहन रुखसाना, जिस का रोल जिया सिद्दीकी ने किया है, को उस के अम्मीअब्बू बेच देते हैं तो शेख अपने अम्मीअब्बू की हत्या कर के घर में आग लगा देता है और अपनी बहन को बचाने जाता है, जहां बहन की रीढ़ में गोली लग जाती है, जिस की वजह से वह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाती है.

गृहमंत्री राकेश अग्रवाल से मिलने उन के घर जाते हैं और उन से बताते हैं उन के बेटे की हत्या अजीमुद्दीन गुलाम शेख ने करवाई है. तब अग्रवाल इंस्पेक्टर अविनाश से मिलते हैं और कहते हैं कि पैसा चाहे जितना लगे, पर वह शेख को गिड़गिड़ाते हुए, चीखते हुए, जान की भीख मांगते हुए सुनना और मरते हुआ देखना चाहते हैं.

इलेक्शन के लिए देवी और शेख हथियार मंगाते हैं, जो राज्य में सभी जगह बाहुबलियों के पास भिजवा दिए जाते हैं. इसी बीच छात्र नेता इमरान गाजी अविनाश के पिता की पिटाई कर देता है.

आगे क्या हुआ, श्रीप्रकाश शुक्ला को कैसे मारा गया, शेख और देवी का क्या हुआ, यह देखने के लिए अगले सीजन का इंतजार करना होगा.

रणदीप हुड्डा

रणदीप हुड्डा का जन्म 20 अगस्त, 1976 को हरियाणा के रोहतक में डा. रणबीर हुड्डा और आशा हुड्डा के घर हुआ था. रणदीप के पिता डा. रणबीर हुड्डा सर्जन हैं तो मां सामाजिक कार्यकर्ता.

रणदीप का ज्यादातर समय अपनी दादी के साथ रोहतक में ही बीता, क्योंकि उस के मातापिता का अधिकतर समय यात्रा में ही बीतता था. वे ज्यादातर मध्यपूर्व में ही रहते थे. उन की बड़ी बहन अंजलि सांगवान एमबीबीएस डाक्टर हैं और छोटा भाई संदीप हुड्डा एक सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

रणदीप की पढ़ाई मोतीलाल नेहरू स्कूल औफ स्पोट्र्स हरियाणा के एक बोर्डिंग स्कूल से हुई, जहां उस ने तैराकी और घुड़सवारी में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते. इस के बाद उसे थिएटर में रुचि पैदा हुई तो वह स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेने लगा. घर वाले चाहते थे कि वह डाक्टर बने, इसलिए उस का दाखिला दिल्ली पब्लिक स्कूल आर.के. पुरम में करा दिया गया.

स्कूली पढ़ाई पूरी कर के रणदीप आस्ट्रेलिया चला गया, जहां उस ने व्यवसाय प्रबंधन और मानव संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली और इस बीच उस ने चीनी रेस्त्रां, कार धोने, वेटर के रूप में और 2 साल तक टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम किया. फिर वह दिल्ली आ गया, जहां एक एयरलाइन के विपणन विभाग में काम करने के साथ मौडलिंग और शौकिया थिएटर में काम करना शुरू किया.

नाटक ‘टू टीच हिज ओन’ के अभ्यास के दौरान निर्देशक मीरा नायर ने अपनी आगामी फिल्म में एक भूमिका  के लिए औडिशन देने को हुड्डा से संपर्क किया.

फिल्मों के अलावा रणदीप हुड्डा सुष्मिता सेन के साथ अपने संबंधों को ले कर सुर्खियों में आया, लेकिन बाद में उस का यह संबंध टूट गया. हुड्डा की फिल्मों के अलावा सामाजिक कार्यों में भी रुचि है.

उर्वशी रौतेला

उर्वशी रौतेला 25 फरवरी, 1994 को हरिद्वार में एक गढ़वाली राजपूत मीरा रौतेला और मनवर सिंह रौतेला परिवार में पैदा हुई थी. उस का परिवार कोटद्वार में रहता था, इसलिए उर्वशी की पढ़ाई कोटद्वार के सेंट जोसेफ कौन्वेंट स्कूल में हुई. कालेज की पढ़ाई उस ने दिल्ली के गार्गी कालेज से की.

उर्वशी 15 साल की थी, तभी उसे विल्स लाइफस्टाइल फैशन इंडिया फैशन वीक में ब्रेक मिला. उस ने मिस टीन इंडिया 2009 का खिताब भी जीता. एक युवा मौडल के रूप में उस ने लक्मे फैशन वीक, अमेजन फैशन वीक, बौंबे फैशन वीक और दुबई फैशन वीक के लिए शो स्टौपर के रूप में रैंप वाक किया.

रौतेला ने इंडियन प्रिंसेज 2011 और मिस एशियन सुपर मौडल 2011 का खिताब भी जीता. उस ने मिस टूरिज्म क्वीन औफ द ईयर 2011 का खिताब भी जीता है, जो चीन में हुआ था. वह यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी.

इसी बीच उसे फिल्म ‘इश्कजादे’ का औफर मिला था, पर उस ने इस औफर को ठुकरा दिया था. क्योंकि उस का ध्यान मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता पर था. उस ने भारत की ओर से इस प्रतियोगिता का प्रतिनिधित्व जरूर किया, पर उसे स्थान नहीं मिला.

रौतेला ने अपने हिंदी फिल्म करिअर की शुरुआत ‘सिंह साब द ग्रेट’ से की, जिस में उस ने सनी देओल के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. फिर तो धीरेधीरे उसे फिल्मों में काम मिलने लगा और वह व्यस्त होती गई.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 2

मंत्रीजी के बेडरूम में क्यों गई थी नंदिनी

इस के बाद शुरू होता है फिल्मी ड्रामा. इंस्पेक्टर अविनाश के पास एक महिला का फोन आता है, जो उन्हें बताती है कि बिट्टू चौबे ऋषिकेश में छिपा है. बाद में पता चला कि यह सूचना बिट्टू चौबे की पत्नी ने ही दी थी. इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ ऋषिकेश पहुंच जाते हैं और फिल्मी स्टाइल में बिट्टू चौबे को मार गिराते हैं.

यहां एक नौटंकी यह होती है कि पति के एनकाउंटर के बाद अचानक उस की पत्नी घटनास्थल पर पहुंच जाती है और पति की लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगती है. तब इंस्पेक्टर अविनाश उस के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं. यहां पता चलता है कि किरण कौशिक की हत्या शूटर बिट्टू चौबे ने ही की थी.

इस के बाद राज्य के डीजीपी समर प्रताप सिंह एसटीएफ टीम के साथ खुशी सेलिब्रेट कर रहे होते हैं तो अचानक उन्हें याद आता है कि इस बात को राज्य के गृहमंत्री को भी बताना चाहिए. वह गृहमंत्री को फोन करते हैं तो फोन उन के छोटे भाई की पत्नी नंदिनी उठाती है.

डीजीपी मंत्रीजी से बात कराने को कहते हैं तो नंदिनी फोन ले कर मंत्रीजी के कमरे के सामने जाती है. उस समय मंत्रीजी पूरे जोश के साथ सैक्स कर रह होते हैं, जिस का अहसास नंदिनी को हो जाता है. वह उदास हो जाती है, क्योंकि उस का नशेड़ी पति कभी उस के साथ सैक्स नहीं करता था. इस की वजह यह थी कि नशे की लत की वजह से वह सैक्स करने लायक ही नहीं रह गया था.

नंदिनी मंत्रीजी का दरवाजा खटखटाती है तो मंत्रीजी बेमन से गाउन पहन कर दरवाजा खोलते है. वह उन्हें फोन थमाती है तो वह फोन ले कर अंदर चले जाते हैं. पर उस समय नंदिनी का मन सैक्स के लिए बेचैन हो उठा था, इसलिए वह मंत्रीजी के कमरे के बाहर ही खड़ी रहती है. नंदिनी की भूमिका में आयशा एस. मेमन है, जो खूबसूरत भी है और सैक्सी भी.

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सेलिब्रेशन के दौरान ही इंस्पेक्टर अविनाश की टीम के सदस्य बलजीत सिंह को अपनी पत्नी की याद आती है, जिस से उन की अधिक शराब पीने की वजह से लड़ाई हो गई थी. बलजीत की पत्नी सुमन डाक्टर है. बलजीत का रोल शालीन भनोट ने किया है, जो एक युवा कलाकार है. वह उसे फोन करता है, पर वह फोन नहीं उठाती, जिस से वह दुखी हो जाता है. अविनाश उसे समझाते हैं.

भाटी को किस ने लगाया जहर का इंजेक्शन

अगले दृश्य में गुड्डू अंसारी का जिक्र आता है, जो अवैध हथियार सप्लाई करता था. एसटीएफ यानी इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की टीम गुड्डू अंसारी की शुगर मिल पर पहुंचती है, जहां हथियारों से भरा ट्रक पकड़ा जाता है.

मुठभेड़ में गुड्डू अंसारी और उस के गैंग के सारे सदस्य मारे जाते हैं. लेकिन गुड्डू के यहां हथियार खरीदने आया भाटी फिल्मी स्टाइल में भाग निकलता है तो अविनाश मिश्रा उसे फिल्मी स्टाइल में ही पकड़ते हैं और ला कर उसे इंट्रोगेशन रूम में बंद कर देते हैं.

भाटी से पूछताछ चल रही होती है कि स्पैशल सेल का अधिकारी दासगुप्ता अपनी टीम के साथ एसटीएफ के औफिस पहुंच जाता है और बवाल कर देता है. उसी बीच पूछताछ के दौरान भाटी की मौत हो जाती है, जिस से इंस्पेक्टर अविनाश सकते में आ जाते हैं. अपनी टीम पर वह चिल्लाते हैं.

इस की बड़ी वजह यह थी कि उन्हें जो जानना था, वह जान नहीं पाए थे. दूसरी वजह इस से एसटीएफ की बड़ी बदनामी हुई, क्योंकि उस की मौत एसटीएफ की हिरासत में हुई थी. इसी वजह से रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में इनक्वायरी के आदेश हो गए. पूरी टीम को जांच का सामना करना पड़ता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि भाटी की मौत जहर से हुई थी, जिस में भाटी को चाय पिलाने वाले कांस्टेबल लक्ष्मीकांत को सस्पेंड कर दिया जाता है. पर बाद में पता चलता है कि भाटी को जहर इंजेक्शन से दिया गया था, इसलिए लक्ष्मीकांत का सस्पेंशन खत्म हो जाता है. लक्ष्मीकांत की भूमिका में वी. शांतनु है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा भी चलता रहता है. अंत में दिखाया जाता है कि अजीमुद्दीन गुलाम शेख किसी डाक्टर को फोन कर के कहता है कि आप ने काम को बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया है, जिस के लिए मैं आप को नजराना भिजवा रहा हूं और फिर एक बैग में रुपए भर कर वह अपने आदमी से भिजवाता है.

एसटीएफ क्यों बनी थी बाराती

चौथे एपीसोड की शुरुआत बड़े ही भयानक दृश्य से होती है. एक आदमी को बांध कर रखा जाता है, जिस का पूरा शरीर खून से लथपथ है. शेख यानी अजीमुद्दीन गुलाम शेख उस के शरीर में ड्रिल मशीन चला कर उसे टौर्चर करता है और अंत में उस की हत्या कर देता है. पर यहां यह नहीं बताया गया कि शेख उस के साथ ऐसा क्यों करता है?

इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश एक नाचने वाली यानी मीटू पंजाबन के यहां जाते हैं, जहां उन्हें मुजफ्फरनगर के नामी बदमाश रफीक गाजी के बारे में पता चलता है. यहां पर मीटू पंजाबन का रोल आकांक्षा पुरी ने किया है. पर साथ ही यह भी पता चलता है कि पूरा गांव उस की मदद के लिए खड़ा रहता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा अपनी टीम को बाराती बना कर रफीक के गांव जाते हैं और उसे पकड़ कर जंगल में लाते हैं, जहां उस का एनकाउंटर कर देते हैं.

रफीक गाजी के अंतिम संस्कार में शेख पहुंचता है और मुसलिमों को भड़काता है, खासकर रफीक के छोटे भाई को बदला लेने के लिए उकसाता है. रफीक से मुठभेड़ में बलजीत को गोली लग जाती है.

इस के बाद शेख गृहमंत्री वीरभूषण से मिलता है और उन्हें धमकी देता है कि वह एसटीएफ को थोड़ा काबू में रखें, क्योंकि ज्यादातर उसी के सपोर्टर मारे जा रहे हैं. जब वह बाहर निकलने लगता है तो व्यवसायी राकेश अग्रवाल मिल जाता है, जिन से पैसों के लेनदेन की बात होती है.

दूसरी ओर अविनाश की टीम श्रीप्रकाश शुक्ला को ठिकाने लगाने की बात करती है. तभी पता चलता है कि भाटी ने एसटीएफ औफिस से जो फोन किया था, वह कोई देवी है.

चौथे एपीसोड में ही लक्ष्मीकांत ड्यूटी पर वापस आता है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी यानी देवीकांत चतुर्वेदी से मिलने उस के घर यानी विशाल मठ जाते हैं, जहां कस्टडी में मारे गए भाटी को ले कर चर्चा होती है, साथ ही इंस्पेक्टर अविनाश भाटी को ले कर देवी को धमकी भी देते हैं.

40 बच्चों का क्यों किया था अपहरण

पांचवें एपीसोड की शुरुआत डीजीपी समर प्रताप सिंह के घर से पारिवारिक ड्रामे से होती है. इस के बाद गृहमंत्री के घर का पारिवारिक ड्रामा दिखाया जाता है, जिस में वह अपने छोटे भाई शशि की पत्नी नंदिनी को पिस्टल देते हुए राजनीति में आने को कहते हैं.

दूसरी ओर देवी शेख के घर जाता है और राजनीति की बातें करते हुए इंस्पेक्टर अविनाश के बारे में कहता है कि गृहमंत्री ने उसे उन के पीछे लगा रखा है. शेख और गृहमंत्री अपनीअपनी बिसात बिछाने में लगे हैं.

इसी एपीसोड में अग्रवाल के बेटे गट्टू का अपहरण हो जाता है, जिस की जांच एसटीएफ को सौंप दी जाती है. इस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा जेल में बंद एक अपराधी की मदद लेते हैं. पर इस मामले में इंस्पेक्टर अविनाश फेल हो जाते हैं.

बबलू पांडेय नाम का अपराधी फिरौती भी ले जाता है और बच्चे की हत्या भी कर देता है, जिस का इंस्पेक्टर अविनाश को काफी मलाल होता है. शेख अग्रवाल के यहां उन के बेटे के अंतिम संस्कार में आता है और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काता है.

छठें एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा स्कूल से घर नहीं आता. इस के बाद पूरा पुलिस बल अविनाश के बेटे की तलाश में लग जाता है. तभी पता चलता है कि 40 बच्चों को ट्रक में भर कर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है.

अविनाश मिश्रा की टीम उन बच्चों को आजाद कराती है. अविनाश मिश्रा ड्राइवर को मार देते हैं. घर लौट कर आते हैं तो थोड़ी देर में उन का बच्चा आ जाता है. इस के बाद वह बबलू पांडेय के पीछे पड़ जाते हैं. बबलू इस से घबरा कर अपने आका शेख से मदद मांगता है. पर वह मदद करने के बजाय उसे दुत्कार कर भगा देता है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा चलता है. अस्पताल में भरती बलजीत का इलाज उस की पत्नी सुमन कर रही होती है. वह उस से संबंध सुधारने की कोशिश करता है.

दूसरी ओर बेटे की पुलिस की नौकरी से नफरत करने वाले अविनाश के पिता उसे धिक्कारते हैं कि राकेश अग्रवाल के बेटे की जगह उन का पोता वरुण भी हो सकता था. इसी के साथ फ्लैशबैक में इंस्पेक्टर अविनाश का बचपन दिखाया जाता है.

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कहानी आगे बढ़ती है तो कानपुर में एक बहुत ही दुखद घटना घट जाती है, जिस में एक 3 बदमाश घर में घुस कर लूटपाट तो करते ही हैं, साथ ही घर की 3 महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी करते हैं. इस घटना से पूरा प्रदेश सिहर उठता है.

मामला एसटीएफ को सौंपा जाता है तो इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ बदमाशों की खोज में लग जाते हैं. एक बदमाश का स्केच बनवा कर आखिर वह बदमाशों तक पहुंच ही जाते हैं और तीनों बदमाशों को मार गिराते हैं.