अलमारी में कैद लिवइन पार्टनर

25 वर्षीय रुखसार उर्फ रिया और विपुल टेलर का प्यार एक बार की मुलाकात के बाद ही अमरबेल की तरह बढ़ गया था. बाद में दोनों लिवइन रिलेशन में भी रहने लगे. फिर एक दिन रुखसार की लाश उस के ही कमरे की अलमारी में बंद मिली. कौन था रुखसार का हत्यारा और क्यों की गई उस की हत्या? पढि़ए, लव क्राइम की खास स्टोरी.   

मुस्तकीम इंसपेक्टर धनंजय को एक अलमारी के पास ले गया. अलमारी का दरवाजा खुला हुआ था. उस के अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला था. अलमारी के अंदर एक 25-26 साल की युवती की लाश थी. लाश इस पोजिशन में थी, जैसे उस की हत्या करने के बाद अलमारी में उसे बिठा दिया गया हो. चेहरा बुरी तरह भारी चीज के वार से कुचलने की कोशिश की गई थी. उस की आंखें फटी पड़ी थीं, इस से इंसपेक्टर ने अनुमान लगाया कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. युवती के जिस्म पर चोट के निशान भी दिखाई दे रहे थे.

इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने दक्षिणपश्चिम जिले के डीसीपी अंकित सिंह को इस हत्या की सूचना दे दी. उन्होंने घटनास्थल पर द्वारका थाने की औपरेशन सेल की टीम और फोरैंसिक टीम को भेज दिया. फोरैंसिक टीम ने अलमारी में बैठी अवस्था में युवती की लाश के कई एंगल से फोटो खींचे, अलमारी के दरवाजे और आसपास से फिंगरप्रिंट्स उठाए. फिर लाश को बाहर निकाल कर फर्श पर लिटा दिया. गुजरात का खूबसूरत शहर सूरत. इसी शहर में रुखसार उर्फ रिया का स्पा सेंटर था. इस वक्त सुबह के 10 बजे थे, रुखसार ने स्पा सेंटर खोल लिया था. वह सफाई से निपटी ही थी कि 18-19 साल की एक लड़की स्पा में अपना फेशियल करवाने के लिए आ गई. 

अभी स्पा में काम करने वाली 4 लड़कियों में से कोई भी लड़की काम पर नहीं आई थी इसलिए स्पा में आने वाली उस युवा कस्टमर को रुखसार ने संभाला. लड़की को कुरसी पर बिठा कर रुखसार ने उस का फेशियल करना शुरू कर दिया. उस ने लड़की के चेहरे पर क्लींजिंग किया और दूसरे स्टेप के लिए हथेली पर लोशन लिया, तभी स्पा का दरवाजा तेजी से खुला और एक युवक बदहवासी की हालत में रुखसार से आ कर टकराया. रुखसार इस अकस्मात टक्कर से संभल नहीं पाई, उस का सिर दीवार पर लगे बड़े आइने से टकराया. 

आईने का कांच छन्नाक की आवाज के साथ टूट कर नीचे बिखर गया. गनीमत यह रही कि इस टक्कर से रुखसार के सिर पर चोट नहीं आई. उस का सिर भन्ना गया. दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर वह फर्श पर बैठ गई. उस बदहवास युवक ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. वह फुरती से संभला और लपक कर स्पा का दरवाजा बंद कर दिया. ऐसा कर के वह दरवाजे के साथ लटक रहे परदे की ओट में दुबक कर खड़ा हो गया. कुछ देर बाद रुखसार संभली. वह गुस्से से खड़ी हो गई और उस परदे के पास आ गई, जिस के पीछे उस से टकराने वाला युवक दुबका खड़ा था.

ऐ मिस्टर… बाहर आओ.’’ रुखसार जोर से चीखी.

युवक सहमता हुआ परदे की ओट से बाहर आया. वह 27-28 साल का हैंडसम युवक था. शरीर पर सफेद शर्ट और ब्राउन रंग की डेनिम की जींस पहने था. चौंकाने वाली बात यह थी कि उस के माथे पर गहरी चोट थी, जिस में से बह रहे खून ने उस के चेहरे और शर्ट को भिगो दिया था. रुखसार का सारा गुस्सा काफूर हो गया. युवक को जख्मी देख कर वह घबरा गई. युवक की ओर झुक कर वह परेशान स्वर में बोली, ”अरे! तुम तो बहुत जख्मी हो!’’

बस यूं ही भागते वक्त ठोकर खा कर गिर गया और माथे पर चोट लग गई.’’ युवक जेब से रुमाल निकालते हुए बोला.

जख्म गहरा है. चलो पास में ही डाक्टर की दुकान है, वहां से मरहमपट्टी हो जाएगी.’’

नहीं, मैं बाहर नहीं जाऊंगा.’’ युवक घबरा कर बोला, ”बाहर पुलिस वाले मेरी टोह में होंगे.’’

पुलिस?’’ रुखसार के चेहरे पर परेशानी झलकने लगी, ”क… क्या गुनाह किया है तुम ने जो पुलिस तुम्हारे पीछे लगी है?’’

मैं ने कोई गुनाह नहीं किया.’’ युवक ने सफाई दी, ”हमारी गली में मर्डर हुआ था, मैं उस वक्त वहां खड़ा था. बुजुर्ग को चाकू मारने वाले भाग गए थे. पुलिस वाले वहां आए तो मुझे ही खूनी मान कर मुझे पकड़ लिया. रात भर मुझे लौकअप में रखा, सुबह अदालत ले जाने लगे तो मैं हाथ छुड़ा कर भाग आया हूं.’’ 

ओह! रुखसार ने सहानुभूति दिखाई, ”यह पुलिस वाले बड़े जालिम होते हैं, असली पर हाथ नहीं डालते, निर्दोष को पकड़ते हैं. चलो तुम कुरसी पर बैठो, मेरे पास डिटोल भी है और एंटीसेप्टिक क्रीम भी. मैं पट्टी कर देती हूं.’’

पहली मुलाकात में ऐसे हो गया प्यार

युवक कुरसी पर आज्ञाकारी बच्चे की तरह बैठ गया. वह कस्टमर लडकी जो फेशियल करवाने आई थी, बहुत ही हैरान बैठी रुखसार और उस जख्मी युवक की बातें सुन रही थी.

थोड़ा वेट करना पड़ेगा सिस्टर!’’ रुखसार ने उस लड़की से कहा, ”पहले इन्हें देखना जरूरी है.’’

कोई बात नहीं.’’ लड़की जल्दी से बोली, ”मैं वेट कर लूंगी.’’ 

रुखसार उस युवक के जख्म की मरहमपट्टी करने में व्यस्त हो गई.

क्या नाम है तुम्हारा?’’ रुखसार ने जख्म को डिटोल से साफ करते हुए पूछा.

विपुल टेलर.’’ युवक ने बताया.

कहां के रहने वाले हो?’’

यहीं सूरत में रहता हूं. मेरा इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनैस है.’’

रुखसार ने विपुल के जख्म पर मरहम लगा कर रुई रखी और टेप चिपका दी. विपुल टेलर ने कुरसी से उठ कर जेब में से पर्स निकाला और 5-5 सौ के 10 नोट निकाल कर रुखसार की तरफ बढ़ा दिए, ”यह रखो, तुम्हारा आईना मेरी वजह से टूटा है, उस की कीमत. ये 5 हजार रुपए हैं, कम हो तो बता दो.’’ 

रुखसार मुसकराई, ”मेरा आईना केवल 12 सौ रुपए का था. टूट गया तो क्या हुआ, पुराना हो गया था, मैं इसे बदलने वाली थी. तुम रुपए पर्स में रख लो.’’

नहीं. ये तुम्हारे नाम के निकले हैं, तुम्हें लेने ही होंगे. अब महंगा वाला आईनाखरीद लाना.’’ विपुल ने कहते हुए रुखसार की कलाई पकड़ कर 5 हजार रुपए जबरन रुखसार की हथेली पर रख दिए. रुखसार ठगी सी खड़ी रह गई. उस की कलाई पकड़ कर विपुल ने ऐसा महसूस करा दिया था कि वह अपनी बात मनवाने के लिए जिद्ïदी है.

तुम ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक,’’ विपुल ने बुत बन कर खड़ी रुखसार से पूछा. रुखसार नींद से जागी हो जैसे, हड़बड़ाते हुए बोली, ”मेरा नाम रिया है. मैं भी यहां सूरत में रहती हूं. यह स्पा सेंटर मैं ने ही खोल रखा है.’’

मेहनती हो…’’ विपुल आगे को झुक कर धीरे से बोला, ”खूबसूरत भी हो. तुम से प्यार करने के लिए दिल मचलने लगा है, अगली मुलाकात जल्दी करूंगा.’’

विपुल अपने मन की बात कह कर तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ा. उस ने दरवाजा खोल कर इधरउधर देखा, फिर तेजी से बाहर निकल गया. रुखसार हैरत में डूबी अपनी जगह खड़ी रह गई. वहां पर मौजूद कस्टमर लड़की के होंठों पर गहरी मुसकान थी. पहली अकस्मात मुलाकात में प्यार कैसे हो जाता है, यह उस ने अपनी आंखों से देखा था. विपुल टेलर रुखसार के दिल में पहली मुलाकात में ही खलबली मचा गया था. उस मुलाकात के बाद रुखसार ठीक से सो नहीं पाई थी. उस की आंखों के सामने विपुल का चेहरा बारबार घूम रहा था. विपुल हैंडसम युवक है, उस ने पहली मुलाकात में ही प्यार का इजहार कर दिया. वह हैंडसम ही नहीं, पैसे वाला भी है, 12 सौ के आईने के बदले 5 हजार रुपए दे गया. इस दिलफेंक आशिक से दोस्ती घाटे का सौदा नहीं रहेगी. 

रुखसार के दिल में तरहतरह के विचार आजा रहे थे. विपुल ने अपना केवल नाम ही बताया था, वह कहां रहता है यह नहीं बताया. दोबारा आने को कह गया था, अगर वह नहीं आया तो विचारों में खोई रुखसार का मन अपने काम में नहीं लग रहा था. जैसेतैसे शाम ढली, स्पा में काम करने वाली लड़कियां छुट्टी कर के चली गईं. रुखसार निढाल सी कुरसी पर बैठ गई. आज वह खुद को बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी. उस ने आंखें बंद कर लीं और सिर कुरसी की पुश्त से सटा दिया. तभी दरवाजे को धकेल कर विपुल प्रकट हुआ. और पैरों में चमचमाते हुए शूज और मैरून कलर के सफारी सूट में देखते ही रुखसार कुरसी से उतर कर उस की ओर लपकी.

”3 दिन बाद आए हो,’’ रुखसार करीब पहुंच कर शिकायत करते हुए बोली, ”कहां थे 3 दिन से?’’

विपुल मुसकराया, ”ये तड़प, ये उतावलापन. लगता है तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है.’’

रुखसार का चेहरा शरम से सुर्ख हो गया. वह विपुल के सीने से लग कर धीमे से बोली, ”यह इश्क की आग तुम ने ही तो लगाई है विपुल. 3 दिनों में ही तुम्हारी दूरी ने मुझे बेचैन कर दिया है.’’ 

विपुल ने उसे बाहों में भींच कर उस के ललाट पर चुंबन लेते हुए फुसफुसा कर कहा, ”मुझ से शादी कर लो रिया, मैं भी अब तुम बिन नहीं रह पाऊंगा.’’

एकाएक रुखसार छिटक कर विपुल के सीने से अलग हो गई. विपुल उस की इस हरकत पर हैरान रह गया. रुखसार कुरसी पर बैठ कर फर्श पर देखने लगी थी.

क्या हुआ रिया, शादी की बात पर तुम मेरे सीने से दूर क्यों हो गई?’’ 

तुम मेरी हकीकत जान लोगे तो मुझ से शादी की बात फिर नहीं करोगे.’’ रुखसार गंभीर हो गई थी. 

मैं तुम्हारी हकीकत जान लूंगा, तब भी अपनी बात पर अडिग रहूंगा रिया.’’ विपुल उस के करीब आ कर गंभीर स्वर में बोला, ”बताओ, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं करना चाहती?’’

रुखसार ने विपुल के चेहरे पर अपनी नजरें टिका दीं, ”मैं पहले से ही शादीशुदा हूं विपुल, लेकिन…’’

रुखसार ने अपनी बात बीच में छोड़ दी. विपुल उस की शादी वाली बात पर निराश हुआ, किंतु लेकिनवाले शब्द में उसे अपने लिए कुछ गुंजाइश नजर आई. उस ने जल्दी से पूछा, ”लेकिन क्या रिया?’’

मेरी जिस शख्स से शादी हुई थी, उस से 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. अब मैं अकेली अपनी जिंदगी गुजार रही हूं.’’

ओह! फिर तो कोई अड़चन नहीं है.’’

अड़चन अभी भी है विपुल,’’ रुखसार के स्वर में अब पहले से ज्यादा गंभीरता थी.

अब क्या अड़चन है रिया?’’ विपुल हैरान हो कर बोला.

रहने दो विपुल.’’ रुखसार का स्वर भीगने लगा, ”मेरी इस अड़चन की बात सुनने के बाद तुम तुरंत यहां से चले जाओगे… मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती, विपुल.’’

अगर मेरे लिए तुम्हारे दिल में इतना प्यार है तो रिया मैं भी वादा करता हूं, तुम्हारी बात कितनी भी कड़वी हो, मैं उसे मीठा शरबत समझ कर पी लूंगा. बताओ, अब कैसी अड़चन है हमारी शादी में.’’

”मैं रिया नहीं रुखसार हूं, एक मुसलिम लड़की…’’ कहतेकहते रुखसार रोने लगी. विपुल एक पल को हैरान सा अपनी जगह खड़ा रहा. फिर वह लपक कर रिया के करीब आया. उस के पास घुटनों के बल बैठ गया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए बोला, ”तुम मुसलमान हो तो क्या हुआ रिया, प्यार किसी मजहब को नहीं मानता. प्यार में ऊंचनीच भी नहीं देखी जाती. प्यार तो प्यार होता है. मैं अब भी तुम से शादी करूंगा रिया उर्फ मेरी रुखसार.’’ विपुल जोश से बोला. 

रुखसार उस के कंधे पर झुक गई और जारजार रोने लगी. विपुल उस की पीठ सहलाते हुए किसी गहरी सोच में डूब गया था. रुखसार के आंसू नहीं थम रहे थे. प्यार भरे 2 दिल एकदूसरे के घड़कनों की आवाजें सुन रहे थे. उन प्रेमियों के कान में एक ही स्वर गूंज रहा था, ”प्यार किसी मजहब को नहीं मानता. प्यार तो बस प्यार होता है.’’ इस तरह विपुल और रुखसार का प्यार इतनी आगे बढ़ गया कि उस ने एक नई कहानी ही गढ़ दी.

दक्षिणपश्चिम दिल्ली में स्थित है डाबड़ी थाना. 4 अप्रैल, 2024 को थाने के एसएचओ धनंजय सिंह आवश्यक फाइलें देखने में व्यस्त थे. समय था रात के पौने 12 बजे का. उन्हें चाय की तलब लगी तो घंटी बजा कर उन्होंने अर्दली को अंदर बुलाया और चाय लाने के लिए कहा. कुछ ही देर में गरमागरम चाय का कप उन के सामने आ गया. अभी उन्होंने चाय का एक घूंट ही भरा होगा कि सामने रखा फोन घनघना उठा. हाथ बढ़ा कर धनंजय सिंह ने रिसीवर उठा कर कान से लगा लिया. फोन पुलिस कंट्रोल रूम से किया जा रहा था. उन्हें कंट्रोल रूम से सूचना दी गई कि द्वारका क्षेत्र के राजापुरी इलाके की गली नंबर 10 में एक युवती की हत्या कर दी गई है. मौकामुआयना करें. 

धनंजय सिंह ने जल्दी से चाय का कप खाली किया और अपनी जगह छोड़ दी. अपने साथ पुलिस टीम ले कर वह राजापुरी इलाके के लिए रवाना हो गए. राजापुरी की गली नंबर 10 में पुलिस टीम पहुंची तो वहां सन्नाटा था. पुलिस वैन के सायरन की आवाज से कई फ्लैट में लाइट जल गई. दरवाजेखिड़कियां खुल गईं. इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने पुलिस वैन रुकवा दी. वह पुलिस टीम के साथ नीचे उतरे तो एक सांवले रंग का व्यक्ति लपकता हुआ उन के पास आ गया.

इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने उस पर नजरें जमा कर पूछा, ”यहां किसी युवती की हत्या हुई है?’’ 

वह मेरी ही बेटी है साहब.’’ वह व्यक्ति भर्राए स्वर में बोला, ”मेरा नाम मुस्तकीम है, मैं ने ही पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था.’’

तुम्हारी बेटी की लाश कहां पर है?’’ इंसपेक्टर धनजय सिंह ने पूछा. 

यह सामने का डी-1/12 के फ्लैट के फस्र्ट फ्लोर में. आप मेरे साथ आइए.’’

मुस्तकीम ने कहते हुए अपने कदम सामने वाले फ्लैट की ओर बढ़ा दिए. इंसपेक्टर धनंजय सिंह अपनी टीम के साथ उस के पीछे चलते हुए फ्लैट के फस्र्ट फ्लोर पर पहुंच गए. यहां बैडरूम नजर आ रहा था. उस में बैड पड़ा था. बैडरूम में हर तरफ सामान बिखरा हुआ था. ऐसा लगता था जैसे यहां 2 लोगों के बीच काफी संघर्ष हुआ है. कमरे की अलमारी में एक युवती की लाश थी. वह लाश मुस्तकीम की 25 वर्षीय बेटी रुखसार उर्फ रिया की थी. बारीक से बारीक सबूत इकट्ठा करने के बाद लाश की कागजी काररवाई पूरी की गई, फिर युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल भिजवा दिया गया.

युवती के पिता मुस्तकीम से पूछताछ की गई तो यह मालूम हुआ कि मुस्तकीम ने रुखसार का निकाह गुजरात के सूरत शहर में मोहम्मद मोहसिन के साथ सन 2017 में किया था. रुखसार पति के साथ 2 साल रही, फिर घरेलू क्लेश के कारण उस का तलाक हो गया. रुखसार की गोद में उस वक्त उस की एक साल की बच्ची थी. रुखसार ने अपने पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. बेटी को उस ने पिता के हवाले कर दिया और सूरत में आ कर अपना स्पा सेंटर खोल लिया. उस ने ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था. उस का स्पा सेंटर अच्छा चल निकला. सहयोग के लिए रुखसार ने 3-4 लड़कियों को स्पा में कार्य करने के लिए रख लिया.

मुस्तकीम ने बताया कि 2 साल पहले रुखसार की जिंदगी में विपुल टेलर नाम का युवक आया था. रुखसार उस से मोहब्बत करने लगी. विपुल टेलर सूरत का ही रहने वाला था. रुखसार को उस ने बताया था कि उस का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बिजनैस है. रुखसार उस की बातों में आ गई. उस पागल लड़की ने विपुल टेलर के कहने पर अपना अच्छाभला चलता हुआ स्पा सेंटर बंद कर दिया और दिल्ली आ गई. 

विपुल से 7 लाख रुपया ले कर रुखसार ने 42 लाख का यह फ्लैट खरीद लिया. इस की शेष रकम की किस्त विपुल टेलर ने चुकाने का वादा किया था, लेकिन रुखसार मुझे फोन कर के बताती थी कि वह विपुल के झांसे में आ कर अपना चलता हुआ स्पा सेंटर बंद कर आई. विपुल उसे रुपएपैसे से तंग रखता है. उस के साथ मौजमस्ती के लिए रह रहा है. फ्लैट की किस्तें भी नहीं चुका रहा है. वह कुछ ज्यादा बोलती है तो उस से मारपीट करने लगता है.

प्रेमी के इशारों पर क्यों चलने लगी रुखसार

मुस्तकीम ने बताया कि आज 3 अप्रैल, 2024 की दोपहर को ही रुखसार का फोन आया था. वह काफी घबराई हुई और डरी हुई थी. उस ने घबराई हुई आवाज में कहा था कि विपुल उसे मार डालेगा. आ कर मुझे यहां से मेरठ ले जाएं. मैं विपुल के साथ नहीं रहना चाहती. ऐसा वह अपनी ओर से मुझे फोन करने पर कई बार कहती रहती थी. आज भी मैं ने उसे केवल समझा दिया कि तुम लोगों में अकसर झगड़े होते रहते हैं. विपुल गुस्सा करे तो तुम चुप रहना, वह शांत हो जाएगा.

लेकिन रुखसार की आवाज में जो डर था, उस से मैं परेशान हो गया. मुझे लगा विपुल रुखसार का अहित न कर डाले, यह सोच कर अपने एकदो रिश्तेदारों को साथ में ले कर मैं मेरठ से दिल्ली आ गया. हम रात को 10 बजे फ्लैट पर पहुंचे थे. यहां गहरी खामोशी थी. फ्लैट का दरवाजा भी अंदर से बंद था. मुझे मालूम था रुखसार दरवाजे की एक चाबी खिड़की में छिपा कर रखती है. मैं ने वह चाबी ढूंढी और दरवाजा खोल लिया. अंदर सामान बिखरा देख घबराया. फ्लैट में 2 रूम हैं, 2 अटैच्ड टौयलेट बाथरूम हैं. एक ड्राइंगरूम है. 

हम ने रुखसार को आवाजें दीं, कोई उत्तर नहीं मिला तो हम उसे ढूंढने लगे तो मुझे मेरी बेटी की लाश इस अलमारी में मिली. विपुल टेलर मेरी बेटी की हत्या कर के भाग गया था. मैं ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस हत्या की जानकारी दे दी. अब तक फ्लैट के सामने आसपास के फ्लैटस के निवासी एकत्र हो गए थे. एसएचओ धनंजय सिंह ने उन लोगों से रुखसार और विपुल टेलर के बारे में पूछताछ की. उन्हें बताया गया कि वैलेंटाइन डे 14 फरवरी को ये दोनों यहां रहने आए थे. प्रौपर्टी डीलर दीपक से इन्होंने यह फ्लैट खरीदा था. दोनों किसी से बातचीत नहीं करते थे. अधिकांश समय फ्लैट में ही बंद रहते थे. लोगों ने बताया कि आज रात 9 बजे विपुल काफी घबराया हुआ बाहर आया और अपनी कार ले कर बाहर चला गया.

पुलिस टीम और औपरेशन सेल के सामने इतना स्पष्ट हो गया था कि रुखसार का कातिल उस का प्रेमी विपुल टेलर है, जो वहां से फरार हो गया है. उसी रात डाबड़ी थाने में रुखसार के पिता मुस्तकीम की तरफ से विपुल टेलर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया. अब रुखसार की हत्या के दोषी विपुल टेलर को गिरफ्तार करना और उस से मालूम करना था कि उस ने अपनी प्रेमिका रुखसार उर्फ रिया की हत्या क्यों की.

विपुल की तलाश में जुटीं पुलिस टीमें

विपुल टेलर की गिरफ्तारी के लिए डीसीपी अंकित सिंह ने औपरेशन यूनिट और डाबड़ी थाने की पुलिस टीम के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की संयुक्त टीम का गठन कर दिया. इस में एसीपी (डाबड़ी) इशान भारद्वाज, एसीपी औपरेशन यूनिट (द्वारका) रामऔतार और इंसपेक्टर कमलेश कुमार, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर सुभाष चंद्र, एसएचओ (डाबड़ी) धनंजय सिंह, एसआई राकेश, हैडकांस्टेबल दिनेश कुमार, परवीन को शामिल किया गया. एसीपी इशान भारद्वाज के नेतृत्व में पूरी टीम को काम करना था. एसीपी इशान भारद्वाज ने एक टीम को उसी रात सूरत भेज दिया. इन्हें सूरत में विपुल टेलर का पता लगाना था. 

दूसरी टीम ने फिर से घटनास्थल राजापुरी, गली नंबर 10 में पहुंच कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की तलाश की. गली के बाहर सड़क पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा था, उस की फुटेज चैक की गई. फुटेज में विपुल की वह कार नजर आ गई, जिस में बैठ कर वह भागा था. कार का नंबर जूम कर के निकाला गया तो वह जीजे 05-जेएम 5411 था. यह कार गुजरात में रजिस्टर्ड थी. इस से साफ हो गया कि यह विपुल टेलर की ही कार है. क्योंकि विपुल टेलर गुजरात के सूरत का निवासी था.

इस टीम को पक्का विश्वास था, विपुल टेलर रुखसार की हत्या करने के बाद सूरत की ओर ही गया होगा. टीम ने पूरा विश्वास करने के लिए गुजरात जाने वाले मुंबई एक्सप्रैसवे के एंट्री टोल प्लाजा सोहना के सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग चेक की तो उन्हें विपुल अपनी कार से टोल प्लाजा पार करता नजर आ गया. इस कार का पीछा करने के लिए इंसपेक्टर सुभाष चंद्र के नेतृत्व में एसआई राकेश कुमार, हैडकांस्टेबल दिनेश, अजय कुमार और परवीन को मुंबई एक्सप्रैसवे पर रवाना कर दिया.

उधर द्वारका थाने की पुलिस अपने स्तर पर आसपास के राज्यों में विपुल टेलर को पकडऩे के लिए दबिश दे रही थी. इंसपेक्टर कमलेश कुमार दूसरी टीम ले कर पहली टीम के पीछे चल दिए. वह जानते थे कि राजस्थान में जा कर मुंबई एक्सप्रैसवे 2 भागों में बंट जाता है. एक कोटा हो कर, दूसरा उदयपुर के रास्ते गुजरात में पहुंचा जा सकता था. वह कोटा के रास्ते सूरत जाना चाहते थे. इंसपेक्टर सुभाष चंद्र की टीम ने विपुल टेलर की कार उस मुंबई एक्सप्रैसवे पर पकडऩे की कोशिश की. तकरीबन 1,400 किलोमीटर का सफर करते हुए आखिर इस टीम को सफलता मिल पाई. 

दिल्ली से निकले हुए उन्हें 48 घंटे हो गए थे. पहले वे भीलवाड़ा पहुंचे, उन्हें वहां मालूम हुआ कि यहां हाइवे पर एक युवक की सियाज कार खंभे से टकरा कर क्षतिग्रस्त हो गई थी. हाइवे पेट्रोलिंग टीम ने उस युवक के लिए एंबुलैंस बुलाई. एंबुलैंस ड्राइवर उसे अस्पताल ले जाना चाहता था, लेकिन उस घायल युवक ने ड्राइवर से कहा कि वह यहां के हौस्पिटल का खर्च नहीं उठा पाएगा. उस ने एंबुलैंस ड्राइवर के फोन से अपने किसी रिलेटिव से रुपए मंगवाए और दूसरी एंबुलैंस बुक कर के सूरत के लिए चला गया.

इंसपेक्टर सुभाष चंद्र ने हाईवे पैट्रोलिंग टीम से पहले वाली एंबुलैंस ड्राइवर का नंबर लिया. उस से बात कर के यह मालूम कर कि दूसरी एंबुलैंस जिस से विपुल टेलर सूरत गया है, उस के ड्राइवर का फोन नंबर क्या है. फोन नंबर मिलते ही इंसपेक्टर ने उस एंबुलैंस ड्राइवर से यह पूछा कि इस वक्त वह कहां पहुंचा है. ड्राइवर ने बताया कि वह उदयपुर पहुंचने वाला है. इंसपेक्टर सुभाष ने एंबुलेंस ड्राइवर को हिदायत दी कि वह अपनी रफ्तार कम रखे. इस के बाद इंसपेक्टर सुभाष ने अपनी गाड़ी की रफ्तार बढ़वा कर आखिर में विपुल टेलर वाली एंबुलैंस को ओवरटेक करने में यह टीम सफल रही. कार से उतर कर इस टीम ने एंबुलैंस में सवार विपुल टेलर को 8 अप्रैल, 2024 को दबोच लिया. वह उदयपुर में पकड़ा गया था.

एंबुलैंस ड्राइवर को धन्यवाद दे कर इंसपेक्टर सुभाष विपुल टेलर को ले कर दिल्ली के लिए वापस लौट पड़ी. रास्ते से ही उन्होंने इंसपेक्टर कमलेश कुमार को विपुल की गिरफ्तारी की सूचना दे दी. डीसीपी अंकित सिंह की उपस्थिति में विपुल टेलर से पूछताछ शुरू हुई. इंसपेक्टर कमलेश कुमार ने उसे घूरते हुए पूछा, ”2 साल पहले तुम ने रुखसार को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उस का चलता हुआ स्पा सेंटर बंद करवा कर उसे दिल्ली लाए. 2 महीने से तुम दोनों यहां लिवइन रिलेशन में रह रहे थे, फिर तुम ने उस की हत्या क्यों कर दी?’’

”सर, वह बहुत हठी थी. मैं ने उसे फ्लैट खरीदने को 7 लाख रुपया दिया था. वह फ्लैट की किस्त के लिए मुझे टार्चर करती थी, वह मुझ पर शादी करने का दबाव भी बना रही थी. इन बातों से मैं परेशान हो गया, मैं ने रुखसार से पीछा छुड़ाने के लिए उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.’’ विपुल ने बताया, ”सर, मैं उस से शादी नहीं करना चाहता था. मैं ने उसे समझाया कि जैसा चल रहा है चलने दो, लेकिन वह नहीं मानी. मुझे धमकी देने लगी कि शादी नहीं करोगे और फ्लैट की किस्त नहीं दोगे तो मैं तुम्हें रेप केस में फंसा दूंगी.’’

3 अप्रैल, 2024 को भी उस ने ऐसी ही धमकी दी तो मैं गुस्से में आ गया. मैं ने उसे लातघूंसों से मारा, फिर उस का गला घोंट दिया. उस समय वह शराब के नशे में थी. मैं लाश को छिपाना चाहता था. रुखसार की लाश को मैं जैसेतैसे अलमारी में ठूंस पाया. अलमारी बंद नहीं हुई तो उसे वैसे ही छोड़ दिया. फ्लैट का ताला बंद कर के मैं वहां से अपनी कार द्वारा निकल भागा. विपुल टेलर इसे पहला अपराध बता रहा था, किंतु उसे सूरत तलाश करने गई टीम ने उस का काला चिट्ठा खोला तो वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए.

सूरत पहुंची टीम ने किसी तरह विपुल टेलर का घर ए-3/1301,स्वास्तिक रेजिडेंसी, जीडी गोयनका स्कूल को ढूंढ निकाला. लेकिन जब पुलिस टीम विपुल के पिता मनीष अरुण चंद्र टेलर से मिली तो पता चला कि विपुल हिस्ट्रीशीटर है. उस पर 10 केस पहले से चल रहे हैं. अदालत ने उसे तड़ीपार कर दिया है. जांच टीम ने वहां के क्षेत्रीय थाने में जब विपुल की बाबत पूछताछ की तो मालूम हुआ कि विपुल टेलर पढ़ालिखा युवक है, उस के पिता का प्रौपर्टी डीलर का अच्छा कारोबार है. बेटे को पढ़ाने के लिए उन्होंने उसे आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर भेजा था, लेकिन विपुल का वहां मन नहीं लगा और वह भारत लौट आया. 

2016 में एक धमकी के मामले में उसे और उस के पिता पर केस दर्ज हुआ था. दोनों जेल भी गए. फिर विपुल जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद वह ड्रग्स और हथियारों की तसकरी करने लगा. उस ने अपना नेटवर्क गुजरात से दिल्ली तक फैला लिया. जांच टीम ने विपुल की प्रेमिका रुखसार के विषय में भी चौंकाने वाला खुलासा किया. पता चला कि रुखसार स्पा सेंटर की आड़ में देह व्यापार का धंधा चलाती थी. उसे इस मामले में पुलिस ने 3 बार गिरफ्तार किया था और जेल भेजा था.

रुखसार ने क्या किया, क्या नहीं किया, यह कहानी उस की हत्या के साथ ही समाप्त हो गई. लेकिन उस का हत्यारा विपुल टेलर पुलिस की गिरफ्त में था. उसे जांच टीम ने दूसरे दिन अदालत में पेश किया और जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित 

अंधविश्वास के कारण परिवार के 11 लोगों ने की आत्महत्या

दिल्ली के संतनगर, बुराड़ी में जिस तरह एक ही परिवार के 11 लोगों ने आत्महत्या की, उसे देख कर लगता है कि देश में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहराई तक पैठ बनाए हुए हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं है. सुबह के साढ़े 7 बज चुके थे, पर ललित की दुकान अभी तक बंद थी. जबकि रोजाना साढ़े 6 बजे ही दुकान खुल जाती थी. दुकान बंद देख कर पड़ोस में रहने वाले गुरचरण सिंह को आश्चर्य हुआ. क्योंकि उन के घर का मुख्य दरवाजा खुला था. जबकि अमूमन होता उलटा था, दुकान खुली होती थी और घर का दरवाजा बंद होता था.

संतनगर, बुराड़ी की गली नंबर 2 में रहने वाले गुरचरण सिंह का घर ललित के पड़ोस में ही था. ललित के घर का मुख्य दरवाजा खुला देख गुरचरण सिंह उन के घर के भीतर चले गए. अंदर का दृश्य देख कर वह हक्केबक्के रह गए. छत पर लगी लोहे की ग्रिल से घर के सारे सदस्य फांसी के फंदे पर लटके हुए थे. यह खौफनाक दृश्य देख गुरचरण सिंह उल्टे पांव वापस लौट आए और पड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर अंदर की जानकारी दी. साथ ही उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. गली नंबर 2 में रहने वाले जिस किसी ने भी घर में जा कर देखा, हैरान रह गया. घर के सभी 11 लोगों के फांसी के फंदे पर झूलने की बात सुन कर कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई.

कुछ ही देर में बुराड़ी थाने की पुलिस भी आ गई. यह बात पहली जुलाई 2018 की सुबह की थी. एक ही घर के 11 लोगों की मौत बहुत बड़ी घटना थी. सूचना पा कर थोड़ी देर में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी घटनास्थल पर पहुंचना शुरू कर दिया था. पुलिस आयुक्त के आदेश पर क्राइम ब्रांच के कई अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. फौरेंसिक और क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीमें भी मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गईं. मरने वालों में 4 पुरुष और 7 महिलाएं थीं. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. इन में से 4 पाइप बडे़ और सीधे थे, जबकि 7 अन्य पाइपों का मुंह नीचे की ओर था.

घर की मुखिया नारायणी देवी की लाश नीचे फर्श पर पड़ी थी. उन के 2 बेटों भुवनेश और ललित, उन की पत्नियां सविता और टीना, नारायणी की विधवा बेटी प्रतिभा और प्रतिभा की बेटी प्रियंका की लाशें जाल में बंधी चुन्नियों से लटकी थीं. भुवनेश के 3 बच्चे नीतू, मेनका ध्रुव और ललित के बेटे शिवम की लाशें भी चुन्नी के सहारे जाल से लटकी हुई थीं. सभी लाशें प्रथम तल पर थीं. यह पूरा परिवार भोपाल सिंह भाटिया का था. भोपाल सिंह की मौत करीब 11 साल पहले हो गई थी.

प्रथम तल पर जाने वाली सीढ़ी के दोनों दरवाजे खुले थे. घर में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. ही लूटपाट के कोई निशान थे. संभवतया देश भर में यह अपनी तरह की पहली घटना थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के 11 लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नारायणी देवी का एक बेटा दिनेश सिविल कौंट्रेक्टर है जो अपने परिवार के साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहता है और उन की एक बेटी सुजाता पानीपत में रहती है. पुलिस ने इन दोनों भाईबहनों के पास भी सूचना भिजवा दी. सामूहिक आत्महत्या की देश की सब से बड़ी घटना मामले की जांच क्राइम ब्रांच ने शुरू कर दी. ज्योंज्यों तफ्तीश आगे बढ़ी मामला साफ होता गया. शुरू में हत्या और सामूहिक आत्महत्या, दोनों एंगल से जांच शुरू की गई.

भाटिया परिवार के बचे सदस्यों ने यह हत्या का मामला बताया. भोपाल सिंह की बेटी सुजाता ने कहा कि उन का परिवार आत्महत्या नहीं कर सकता. उन की योजनाबद्ध तरीके से किसी ने हत्या की है. परिवार धार्मिक जरूर था पर अंधविश्वासी नहीं था. पुलिस की जांच में 11 लोगों की मौत का खुलासा हुआ तो अंधविश्वास की एक ऐसी खौफनाक कहानी सामने आई जिसे सुन कर हर कोई दंग रह गया. अंधविश्वास के दलदल में फंस कर समूचा परिवार मौत के मुंह में समा गया. अंधविश्वास से जुड़ी यह विरल घटना थी, जिसे जान कर हर कोई हैरान और सन्न रह गया. टीवी चैनलों पर दिनभर भाटिया परिवार की मौत की सनसनीखेज खबरें प्रसारित होने लगीं.

अंधविश्वास की इस घटना ने तमाम वैज्ञानिक और शैक्षिक तरक्की को अंगूठा दिखा दिया. इस घटना ने समाज के उस अंधकार को उजागर किया, जिस के भीतर सदियों से डूबा यह देश परमात्मा, आत्मा, स्वर्ग, नरक, मुक्ति और मोक्ष को तलाशता रहा है. पुलिस जांच में सामने आया कि घर की मुखिया जिन नारायणी देवी की लाश फर्श पर पड़ी मिली, उन्हें गला घोंट कर मारा गया था. बाकी सभी के शव जाल से लटके मिले. उन की आंखों पर पट्टी बंधी थी, मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. हाथ बंधे हुए थे.

पुलिस को मकान से जो डायरी मिली उस से पता चला कि यह सब मौतें अंधविश्वास की वजह से हुई थीं. डायरी में लिखी बातों से पता लगा कि ललित पिता के अलावा परिवार से जुड़े 5 अन्य सदस्यों की आत्मा को भी मोक्ष दिलाना चाहता था. डायरी में 9 जून को लिखा था, ‘अभी 7 आत्माएं मेरे साथ भटक रही हैं. क्रिया में सुधार करोगे तो गति बढ़ेगी. मैं इस चीज के लिए भटक रहा हूं. ऐसे ही सज्जन सिंह, हीरा, दयानंद, कर्मानंद, राहुल, गंगा और जमुना देवी मेरे सहयोगी बने हुए हैं.’

ललित ने जिन लोगों का जिक्र किया है उन में सज्जन सिंह ललित का ससुर यानी उस की पत्नी टीना का पिता, हीरा प्रतिभा का पति, दयानंद और गंगा देवी ललित की बहन सुजाता के ससुराल पक्ष के लोग थे, जो कुछ समय पहले मरे थे. संयुक्त आयुक्त क्राइम ब्रांच आलोक कुमार के मुताबिक तफ्तीश में जितने भी सबूत मिले, उस से साफ हो गया कि परिवार के सभी सदस्यों ने अंधविश्वास के चलते सामूहिक आत्महत्या की थी. ऐसा करने के लिए पूरे परिवार को ललित ने मजबूर किया था.

शुरू में इन लोगों की हत्या का संदेह जताया गया पर बाद में सबूतों और पूछताछ के आधार पर एक ऐसे परिवार की कहानी सामने आई, जो अंधविश्वास के ऐसे खौफनाक अंधकार में फंसा हुआ था कि किसी में विवेक नाम की जरा भी शक्ति नहीं बची थी. अंधविश्वास के दलदल में फंसे इस परिवार की भयावह हकीकत जान कर हर कोई सन्न रह गया. अंधविश्वास का अंधकूप तलाशी के दौरान पुलिस को छानबीन में घर से कई डायरियां मिलीं, इन डायरियों में परिवार के सदस्यों की इन मौतों की पूरी पटकथा लिखी थी. पुलिस ने कडि़यां जोड़ीं तो इस परिवार द्वारा मृत पिता भोपाल सिंह कीआत्माके आदेश परपरमात्मासे मिल कर वापस लौट आने का झूठा भ्रम फैलाया गया था.

भाटिया परिवार के मझले बेटे ललित के सिर में कुछ साल पहले चोट लगी थी. जिस की वजह से वह बोल नहीं पाता था. चोट से उस के दिमाग पर बुरा असर पड़ा था. उस का 3 साल तक इलाज चला. इस के बाद वह थोड़ाथोड़ा बोलने लगा था. इसे वह चमत्कार मानता था. ललित ने दावा करना शुरू कर दिया था कि उस पर उस के पिता भोपाल सिंह की आत्मा आती है और वह परिवार को सुखी रखने और दुख दूर करने के उपाय बताती है. बाद में उस ने डायरी लिखनी शुरू की जिस में धार्मिक आदेशात्मक बातें लिखता था

पुलिस के अनुसार ललित ने अंधविश्वासी क्रियाएं जुलाई, 2007 से शुरू कीं. ललित पूजापाठ से परिवार की समस्याएं दूर करता था. पड़ोसी बताते हैं कि इस काम में ललित की पत्नी टीना भी मदद करती थी. वह पूरी धार्मिक हो गई थी. भाटिया परिवार हदे से परे तक धार्मिक प्रवृत्ति का था और पूजापाठ में डूबा रहता था. साथ ही वह घोर अंधविश्वासी भी था. पूरा परिवार सुबह, दोपहर और शाम यानी 3 टाइम पूजापाठ करता था. क्राइम ब्रांच को 5 जून, 2013 से 30 जून, 2018 तक की तारीखों में लिखी 11 डायरियां मिलीं

इन डायरियों में अलगअलग तरह की लिखावट थी. ज्यादातर लिखावट प्रियंका की थी. ललित पर जब पिता का साया आता था और वह जो बोलता था उसे प्रियंका ही नोट करती थी. भाटिया परिवार को भरोसा था कि दिवंगत पिता की आत्मा परिवार की मदद कर रही है. यह विश्वास इसलिए बढ़ा क्योंकि घर के बाहर दोनों भाइयों की 2 दुकानें अच्छी चल रही थीं. भुवनेश की बेटी मेनका भी स्कूल में टौपर बच्चों में से थी. भुवनेश की किराने की दुकान थी और ललित की प्लाईवुड की. भाइयों के बच्चे भी अच्छे नंबरों से पास होते थे. इन के अलावा ललित की भांजी प्रियंका को मांगलिक बताया गया था. इस के बावजूद उस का रिश्ता तय हो गया था. 17 जून, 2018 को ही प्रियंका की सगाई नोएडा के एक इंजीनियर लड़के से तय हो गई थी और परिवार ने सगाई का कार्यक्रम बड़ी खुशीखुशी किया था.

इस से पहले ललित ने प्रियंका का रिश्ता होने पर उसे मांगलिक मान कर घर में हवनपूजा की थी. जिस में उस ने दावा किया था कि उस के पिता की आत्मा भी मौजूद है. प्रियंका के मांगलिक होने पर ललित ने उज्जैन जा कर भी पूजापाठ कराया था. ललित तंत्रमंत्र क्रियाएं भी कराता रहता था. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. यह पाइप भी ललित ने ही लगवाए थे. इन की वहां जरूरत भी नहीं थी. पुलिस को यह पता नहीं लगा कि ललित ने ये पाइप किसलिए लगवाए थे. पढ़ेलिखे बेवकूफ पूरा भाटिया परिवार पढ़ालिखा था. 32 साल की प्रियंका ने एमबीए किया था. वह दिल्ली में ही पढ़ीलिखी थी. इस समय प्रियंका नोएडा की सीपीएम ग्लोबल कंपनी में नौकरी करती थी. इस से पहले वह एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में थी

प्रियंका की भी धर्म, ज्योतिष और धर्मगुरुओं के प्रति रुचि थी. वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी. जन्म के 2 साल बाद ही प्रियंका के पिता हीरा की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद वह अपनी मां के साथ राजस्थान से कर संतनगर, बुराड़ी में रहने लगी थी. प्रियंका की मां प्रतिभा घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी. प्रियंका का रिश्ता हो जाने पर ललित ने अपने पिता और भगवान का शुक्रिया करने के लिए 24 से 30 जून तक 7 दिन की पूजा साधना क्रिया का प्रोग्राम तय किया था, जिस में पूरे परिवार को शामिल होना था. इस बात की तस्दीक डायरी में लिखी बातों से होती है

डायरी में एक सप्ताह पहले लिखा गया था कि इस पूजा का उद्देश्य भगवान को धन्यवाद देना था, क्योंकि पूरे परिवार का मानना था कि भगवान उन पर आशीर्वाद बनाए हुए हैं. कुछ वर्षों के दौरान ललित अपने परिवार को यह समझाने में सफल हो गया था कि पिता की आत्मा की वजह से उन का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है. डायरी में परिवार के सदस्यों की मौत का पूरा बयौरा लिखा गया था. डायरी में एक जगह लिखा था, ‘सभी सदस्य मोक्ष प्राप्त करने के बाद भगवान से मिल कर वापस धरती पर आ जाएंगे. इस के लिए तैयार रहना.’  आगे लिखा था, ‘बड़ पूजा क्रिया की जाएगी. यानी बड़ वृक्ष के नीचे लटकी जड़ों की तरह सब को लटकने की क्रिया करनी होगी. यह पूजा पूरी लगन और श्रद्धा से लगातार 7 दिन करनी है. पूजा के समय अगर कोई घर में आ जाए तो पूजा अगले दिन से शुरू होगी.’

एक जगह लिखा था, ‘9 सदस्यों के लिए भगवान का रास्ता जाल (घर में लगा लोहे का जाल) से शुरू होता है. बेबी (प्रतिभा) मंदिर के निकट स्टूल पर खड़ी होगी. 10 बजे भोजन का और्डर किया जाएगा. मां रोटी खिलाएंगी. क्रिया 1 बजे होगी. गीला कपड़ा मुंह में रखना होगा. टेप से हाथों को बांधना होगा और कानों को रूई से बंद करना होगा.’ आगे लिखा था, ‘पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. उस समय शून्य के अलावा कुछ भी नहीं दिखना चाहिए.’ यह भी लिखा था, ‘एक कप पानी का रखा जाएगा और जब पानी का रंग बदल जाएगा तब समझना कि पिता की आत्मा प्रकट हो चुकी है और वही आत्मा सब को बचा लेगी.’

ललित ने एक जगह लिखा था, ‘झूठ की जिंदगी से दूर रहना होगा. ऐसा करने से तुम्हारा जीवन आगे नहीं बढ़ेगा. मैं चाहता हूं कि आप ऐसा काम करो जिस से आप को कम मेहनत करनी पड़े और खुशहाल जिंदगी जी सको.’ हवाई खयालों में जीता था ललित 28 जून को डायरी में लिखी गई बात को पढ़ने से साफ हो जाता है कि परिवार का मरने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि इस में अगले महीने तक की प्लानिंग लिखी थी. डायरी में लिखा था, ‘भूपी (भुवनेश) बैंक से पैसा निकालेगा. इस पैसे को दुकान में लगाया जाएगा. घर में इस पैसे का इस्तेमाल कदापि नहीं होगा.’

पुलिस ने दरवाजे के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी तो 30 जून की सुबह प्रतिभा और प्रियंका मौर्निंग वाक पर जाती दिखीं. भुवनेश सुबह 5:40 बजे मंदिर गया और 5:51 बजे घर वापस गया. 10 बजे ललित अपनी दुकान पर गया. दोपहर में उस ने मोबाइल की एक दुकान से अपना फोन रिचार्ज करवाया. रात 10 बजे सीसीटीवी में घर की 2 महिलाएं स्टूल ले कर आती दिखीं. कुछ देर बाद बच्चे नीचे दुकान से तार ले जाते दिखे. 10:40 बजे डिलीवरी बौय खाना दे कर गया. खाने में केवल 20 रोटियां थीं. मुंह पर चिपकाने के लिए टेप और अलगअलग रंग की चुन्नियां खरीदी गई थीं. इस से स्पष्ट है कि यह सब ललित के दिमागी पागलपन की निर्धारित योजना के तहत था.

वास्तव में ललित मनोरोगी था. परिवार के किसी सदस्य को इस बात का पता नहीं चला. परिवार यही सोचता था कि जब ललित पर पिता की आत्मा सवार हो जाती है उस समय ललित के मुंह से पिता भोपाल की भाषा शैली में ही आवाज निकलती है. उस समय ललित जो कुछ बोलता था, पूरा परिवार ध्यान से सुन कर उस पर अमल करता था. डायरी में लिखे गए आदेशों के अनुसार 30 जून, 2018 की रात को पूरे परिवार ने 11 बजे के बाद मोक्ष की क्रिया शुरू की. रात को 10  बजे के करीब बाहर से रोटी मंगाई गई. परिवार के पास एक कुत्ता था, जिसे छत के ऊपर जाल में बांध दिया गया और फिर परिवार के सभी 11 सदस्य फंदे बना कर लटक गए. घर का दरवाजा इसलिए खुला रखा गया ताकिपिता की आत्मादरवाजे से प्रवेश कर सके.

ललित ने घर वालों को बताया था कि मोक्ष के लिए उन्हें 7 दिन तक मोक्ष क्रिया करनी होगी और जब यह क्रिया पूरी कर लेंगे तब पिता की आत्मा ही उन्हें बचाएगी. ईश्वर और पिता से मिलने के बाद वे वापस लौट आएंगे. भाटिया परिवार के सदस्य मरना नहीं चाहते थे और उन्हें जरा भी मालूम नहीं था कि ईश्वर से मिलने के लिए वे जो क्रिया कर रहे हैं, उस से वे सचमुच मौत को गले लगाने जा रहे हैं. उन्हें पूरा भरोसा था कि उन्हें पिताजी बचा लेंगे.

डायरी में लिखे मौत के रहस्य डायरी में फंदे पर कैसे लटकना है, इस का तरीका भी लिखा था. ‘7 दिन लगातार पूजा करनी है. थोड़ी श्रद्धा और लगन से. बेबी खड़ी नहीं हो सकतीं तो वह अलग कमरे में लेट सकती हैं. पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. हाथ प्रार्थना की मुद्रा में होने चाहिए.  गले में सूती चुन्नी या साड़ी का ही प्रयोग करना है.’ आगे लिखा था, ‘सब की सोच एक जैसी हो. पहले से ज्यादा दृढ़. स्नान की जरूरत नहीं है, मुंहहाथ धो कर ही काम चल सकता है. इस से तुम्हारे आगे के काम होने शुरू होंगे. ढीलापन और अविश्वास नुकसानदायक होते हैं. श्रद्धा में तालमेल और आपसी सहयोग जरूरी होता है. मंगल, शनि, वीर, इतवार को फिर आऊंगा. मध्यम रोशनी का प्रयोग करना है.

हाथों की पट्टी बचेगी. उसे डबल कर के आंखों पर बांधना है. मुंह की पट्टी को भी रूमाल बांध कर डबल कर लेनी है. जितनी दृढ़ता और श्रद्धा दिखाओगे, उतना ही उचित फल मिलेगा. जिस दिन यह प्रयोग करो उस दिन फोन कम से कम प्रयोग करना.’ एक पेज पर लिखा था, ‘धरती कांपे या आसमान हिले लेकिन तुम घबराना मत. मैं आऊंगा और सब को बचा लूंगा.’मनोचिकित्सकों का मानना है कि असल में ललित मनोरोगी था. उस का रोग धार्मिक मान्यता और अंधविश्वास से जुड़ा हुआ था. ऐसे में पीडि़त व्यक्ति को किसी अदृश्य शक्ति के वश में होने का अहसास होता है और अपने अस्तित्व को कुछ देर के लिए भूल जाता है. मनोचिकत्सक इसेशेयर्ड  साइकोथिक डिसऔर्डरकहते हैं. पूरा परिवार इस बीमारी का शिकार था. ललित जो भी बात बताता था, पूरा परिवार उसे उस का आदेश मानता था.

आज पूरे देश में जिस तरह के धार्मिक अंधविश्वास का माहौल बना हुआ है, उसे देखते हुए संतनगर की यह घटना कोई ताज्जुब वाली बात नहीं है. क्योंकि सारा देश ही अंधविश्वास के जंजाल में बुरी तरह उलझा नजर आता है. मौजूदा समय में लोगों में समस्याओं के समाधान के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ, तंत्रमंत्र, टोनेटोटकों का चलन चरम पर है. कदमकदम पर परेशानियां दूर करने वाले पंडेपुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक, साधु या गुरु अंधविश्वास का डेरा जमाए बैठे हैं. हर नुक्कड़ पर समस्याओं का समाधान करने का दावा करने वाले तथाकथित मार्गदर्शक बैठे हैं जो बदले में दानदक्षिणा, चढ़ावा मांगते हैं.

धर्मगुरु, पंडेपुजारी अंधविश्वास के अंधेरे को बढ़ावा दे रहे हैं. मीडिया ऐसे पाखंडियों का प्रचार करने में लगा हुआ है. भाग्यवाद, लोकपरलोक, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, मोक्ष, पूर्वजन्म के कर्मों का फल, 33 करोड़ देवीदेवता, 84 लाख योनियां, मोहमाया त्याग कर ईश्वर की शरण में चले जाने जैसी मूर्खता की बातें इंसान को बरगलाने, मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए काफी हैं. अंधविश्वास का जाल अब गांवों के दायरे से निकल कर शहरों, महानगरों में शिक्षित युवाओं और विदेशों तक पहुंच चुका है. आज लोग विज्ञान से ज्यादा टोनेटोटकों, अंधविश्वास और तंत्रमंत्र में अपनी परेशानियों का समाधान तलाश रहे हैं. अंधविश्वास का यह कारोबार खूब फलफूल रहा है.

11 लोगों की मौत की घटना किसी दूरदराज के इलाके में नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में घटित हुई जो शिक्षा, विज्ञान, सामाजिक सभ्यता और तथाकथित आध्यात्मिकता प्रगति संबंधी नीति निर्माण का केंद्र बिंदु है. यहां सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के बड़ेबड़े दावे किए जाते हैं. ज्योंज्यों शिक्षा का विस्तार और वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रसार हो रहा है, लोग उतने ही अंधविश्वास की गर्त में धंसते जा रहे हैं. अंधविश्वास तार्किक, उदार और स्वतंत्र विचारों पर हावी है. वैज्ञानिक और तार्किक विचारों की बात करने वालों पर हमले किए जाते हैं. ऐसे में संतनगर की घटना समूचे समाज के माथे पर कलंक है. यह घटना अंधविश्वास की इंतहा है.

                           

एक टुकड़ा सुख

संस्था में सुनील से मुलाकात के होने के बाद मुक्ता के मन में संस्था से निकल कर अपनी लाइफ को अपनी तरह से जीने की उम्मीद जागी थी. सुनील ने भी उस की सोच को नए पंख दे दिए थे. लेकिन यह पंख भी मुक्ता को एक टुकड़ा सुख से ज्यादा कुछ न दे सके.

आज सुबह से ही न जाने क्यों मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. किसी अनहोनी आशंका से मेरा मन घिरा हुआ था. मैं चाहते हुए भी स्वयं को संयत नहीं रख पा रहा था. जल्दीजल्दी नाश्ता किया और औफिस के लिए निकल पड़ा. मेरी पत्नी मानसी ने एकदो बार पूछा भी परंतु मैं उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. बस, अनमने मन से कहा, ”नहीं, बस यूं ही, औफिस में थोड़ा ज्यादा काम है.’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. अभी मैं अपने घर के दरवाजे तक भी नहीं पहुंचा था कि पीछे से मानसी ने आवाज दे कर याद दिलाया कि आप कार की चाबी और टिफिन बौक्स तो घर पर ही भूल गए हैं. वह मेरे पास आ कर बोली, ”तबीयत ठीक नहीं है तो मत जाओ.’’ 

जवाब में मैं ने कुछ नहीं कहा और बेमन से औफिस चला गया. अभी मैं औफिस में अपने कामों को देख ही रहा था कि याद आया आज तो मैं ने अपनी केबिन में रखे छोटे से मंदिर की दीयाबाती भी नहीं की. क्या हो गया है मुझे आज! मैं सोचने लगा. तब तक औफिस का चपरासी टेबल पर चाय और पानी का गिलास रख कर जाने लगा तो मैं ने उस से कहा, ”मिसेज शर्मा को भेज देना.’’ फिर कुछ सोच कर बोला, ”अच्छा रहने दो, मैं बाद में बुला लूंगा.’’ वह मेरा मुंह देखने लगा.

हमारे औफिस में मोबाइल सुनने पर पाबंदी थी, इसलिए सभी स्टाफ अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर रखते थे. मैं ने भी अपना फोन वाइब्रेट मोड पर रख कर सामने रख दिया. तभी फोन धीरे से बज उठा. किसी अंजान नंबर से फोन था. मैं ने जैसे ही रिसीव किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई, ”नमस्ते सर, क्या मैं सुनीलजी से बात कर सकती हूं?’’

जी, बोल रहा हूं… आप कौन?’’

मैं देहरादून से बोल रही हूं बसेरासे.’’ 

मैं चौंक गया. बसेरावृद्ध असहाय लोगों का एक आश्रम था, जिसे एक एनजीओ चलाता था. 

जी, बात यह है कि आप को प्रशांतजी याद कर रहे थे… आज आप यहां आ सकते हैं क्या?’’

क्यों, क्या बात हो गई? सब ठीक तो है न?’’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

सब कुछ तो ठीक नहीं है, बस आप यहां आ जाइए.’’

ठीक है, मैं एकदो दिन में आता हूं,’’ मैं ने कहा.

क्या आप आज नहीं आ सकते?’’ उस के स्वर में थोड़ी कंपन थी. शायद थोड़ा घबराई हुई भी थी.

अच्छा, मैं कोशिश करता हूं.’’ कह कर मैं ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

10 बज चुके थे और मैं कितनी भी जल्दी करूं, 12 बजे से पहले की बस तो पकड़ ही नहीं सकता था. मैं ने जल्दीजल्दी अपना सारा काम मिसेज शर्मा को समझा दिया. उधर पत्नी मानसी को भी मैं ने जाने की तैयारी के लिए कह दिया. मुझे इसी भागदौड़ में बस मिल गई. मैं ने जानबूझ कर पीछे की सीट ली ताकि आगे के शोर से बच सकूं. बस चलते ही बाहर का शोर तो कम हो गया, पर अपने भीतर के शोर का क्या करता, वह तो देहरादून और बसेराकी यादों में उलझा रहा. मैं यादों को जितना दबाता, वह उतना ही उभर कर सामने आ जातीं और उन्हीं यादों में एक याद मुक्ता की भी थी.

 

2 साल पहले मुझे मेरी कंपनी ने उत्तराखंड में सर्वे के लिए भेजा था, ताकि हम अपना प्रोडक्ट ठीक से बाजार में उतार सकें. हमारी कंपनी हौट वाटर बोटल यानी गर्म पानी की रबर की बोतलें बनाती थी और उत्तराखंड ही ऐसा राज्य था, जहां इस का प्रचारप्रसार हो सकता था. मैं ने देहरादून को अपना स्टेशन बनाया और सर्वे करता रहा. कभी मसूरी, कभी नैनीताल और कभी ऋषिकेश में. मैं अपने सर्वे का दायरा बढ़ाता रहा. बीचबीच में जब भी समय मिलता, मैं आश्रमों और मंदिरों में जाने लगा. राजपुर रोड पर कई आश्रम थे और कहीं न कहीं कोई प्रोग्राम चलता ही रहता था.

एक दिन मैं यूं ही घूम रहा था कि मेरी नजर एक बोर्ड पर जा पड़ी. जिस पर लिखा था कि बसेरा नाम की संस्था भागवत सप्ताह मनाने जा रही है और योगदान की सारी राशि वृद्धाश्रम के लिए उपयोग की जाएगी. उन दोनों ही बातों ने मुझ में जिज्ञासा पैदा की. पता पढ़ कर मैं अगले दिन सुबह ही बसेरापहुंच गया. उस दिन रविवार था. जैसे ही मैं हाल में पहुंचा, लगभग सारी सीटें भर चुकी थीं. वह एक छोटा सा हाल था, जिस में 30-35 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था थी. मैं ने उड़ती हुई नजर हाल में दौड़ाई और पीछे की एक कुरसी पर बैठ गया.

सामने की तरफ एक कोने में कुछ देवीदेवताओं की फोटो के सामने एक दीया जल रहा था और एक वृद्ध कुरसी पर बैठे किसी किताब के पन्ने पलट रहे थे. दूसरी तरफ एक मंडली भजन गा रही थी. भजन समाप्त होते ही महाराजजी ने धीमे मगर मधुर स्वर से भूमिका बांधनी शुरू की और भागवत का महत्त्व समझाने लगे. तभी एक 28-30 साल की महिला ने मेरे पास आ कर बड़ी विनम्रता से जूते बाहर उतारने के लिए निवेदन किया. मैं ने इस बात को पहले नहीं महसूस किया कि सभी के जूतेचप्पल हाल के बाहर रखे थे. मैं सब से पीछे बैठा था, इसलिए किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं गया. मेरे लिए जूते उतार कर बाहर रखना या जूते पहन कर बाहर जाना, सब का ध्यान आकर्षित करने जैसा था. 

मैं थोड़ा हिचकिचाने लगा कि अब क्या करूं. वह मेरी ही पंक्ति में कोने में बैठी थी. उस ने मेरी इस हिचकिचाहट को भांप लिया और इशारा किया कि चुपचाप जूते उतार कर अपनी कुरसी के नीचे रख दूं. उस दिन की भागवत की क्लास समाप्त होने पर शांति पाठ हुआ और सभी लोग महाराज के पीछे चले गए. वह जैसे ही अपने स्थान से उठी, मैं ने हाथ जोड़ कर उन्हें धन्यवाद दिया और जूते बाहर ले जा कर पहनने लगा. 

हाल में 2 व्हील चेयर पर वृद्ध से व्यक्ति बैठे थे. वह उठ कर उन में से एक को धीरेधीरे बाहर ले जाने लगी. मैं अपने स्थान पर खड़ा हो गया और धीरे से कहा, ”मैं कुछ मदद करूं?’’ तब तक वह दूसरी व्हील चेयर भी बाहर ले आई और हाल का दरवाजा बाहर से बंद करती हुई बोली, ”आप को कोई परेशानी न हो तो एक व्हील चेयर के साथ मेरे पीछेपीछे आ जाइए.’’  मैं ने अपने जीवन में कभी व्हील चेयर को हाथ तक नहीं लगाया था और किसी की मदद करने में बड़ा सुख महसूस हो रहा था. भीतर से कोई आवाज ऐसी भी आ रही थी कि कोई ऐसा मोहताज कभी न बने. उन में से एक को पार्क के पास छोड़ कर और दूसरे व्यक्ति को पास के ही एक कमरे में छोड़ कर वह मेरे पास आ गई.

आप पहली बार आए हैं यहां?’’ उस ने पूछा. 

मैं वहां का वातावरण देख कर इतना भावुक हो गया था कि मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, सिर्फ सिर नीचा कर के हांकी. तब तक सामने से 2 व्यक्ति आ रहे थे. उस ने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया. मेरे हाथ भी खुदबखुद जुड़ गए. वह उन में से एक व्यक्ति की तरफ देखते हुए बोली, ”ये पहली बार आए हैं यहां, औफिस के बारे में पूछ रहे थे.’’ उन्होंने मुसकरा कर मेरा अभिनंदन किया और गेट के पास एक कमरे की तरफ इशारा कर के कहा कि आप वहां बैठिए, मैं थोड़ी देर में आता हूं. 

तब तक वह बोली, ”चलिए, आप को वहां तक ले चलती हूं. जिन से आप मिले थे, वह यहां के ट्रस्टी हैं.’’  बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने अपना परिचय दिया, ”मेरा नाम सुनील है, अभी 3 महीने पहले ही यहां आया हूं. परसों आप की संस्था का बोर्ड पढ़ा था. सोचा एक बार देख लूं. किसी भी आश्रम में आने का मेरा यह पहला अनुभव है और वह भी ऐसी संस्था जहां ज्यादातर शायद वृद्ध ही रहते हैं. आप यहां के बारे में कुछ बताइए.’’

उस ने मुझे बताना शुरू किया, ”बसेरा नाम का यह ट्रस्ट केवल वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करता है. सीनियर सिटिजन होम भी इसे कह सकते हैं. प्रशांतजी, जिन से आप अभी मिले थे, यहां के प्रधान ट्रस्टी हैं. उन्हीं का बनाया हुआ यह ट्रस्ट है. कुछ तो यहां अपनी खुशी से रह रहे हैं और कुछ मजबूरी से. समय बिताने के लिए यहां एक छोटा सा मंदिर, पार्क, सत्संग हाल और एक पुस्तकालय है, जिन की जैसी रुचि हो वहां चला जाता है. और एक किचन भी है जहां सभी पहुंच जाते हैं और जो नहीं पहुंच सकते, उन के कमरों तक भोजन, नाश्ता वगैरह पहुंचाया जाता है.’’

और इन सब के लिए धन कहां से आता है, मेरा मतलब खर्चे भी बहुत होते होंगे इतनी बड़ी संस्था को चलाने के लिए.’’

हां, वह तो है… यह सब तो मैनेजमेंट ही जाने.’’ कह कर उस ने सामने के कमरे की तरफ इशारा कर के इंतजार करने के कहा.

मैं उन के कमरे के बाहर बरामदे में बैठ गया. थोड़ी देर में प्रशांतजी आए, मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया और बातोंबातों में कुछ अपनी गर्म पानी की बोतलें भेंट करने का आश्वासन दिया. वह लगभग 68 वर्ष के सौम्य और शालीन नेचर के व्यक्ति थे. लगभग 20 वर्ष पहले उन्होंने यह संस्था शुरू की थी. समय बीतता गया और लोग जुड़ते गए. समयसमय पर सत्संग, भजन, प्रवचन, होलीदिवाली मेलों इत्यादि का आयोजन करते रहते और इकट्ठा हुए धन से संस्था का काम करते रहते.

मेरे जीवन का किसी भी संस्था में जाने का यह पहला अनुभव था. मैं बहुत ही नपेतुले शब्दों का प्रयोग करता रहा और मेरे इसी व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उन्होंने मुझे यहां आने का एक खुला आमंत्रण दे दिया. यहां पर 3-4 दंपतियों के अलावा 12 पुरुष और 8 महिलाएं भी रहते थे. मैं ने उस संस्था में जाना शुरू कर दिया और एकदम पीछे की कुरसी पर जा बैठता. कुछ व्यक्ति तो बैठेबैठे ही सो जाते और कुछ ध्यान से भागवत कथा सुनते रहते. मेरी मिलीजुली प्रक्रिया थी. कभी मन लगता, कभी इधरउधर देखने लगता. मैं यहां इसलिए आ जाता था कि मेरे पास औफिस के बाद और कोई काम नहीं था, दूसरा प्रसाद इतना मिल जाता कि रात को खाना खाने की जरूरत महसूस नहीं होती थी. 

शायद इस के अलावा भी एक और बात थी, वह थी उस 28-30 वर्षीय महिला का आकर्षक व्यक्तित्त्व. न जाने उस में ऐसा क्या था कि मेरी नजरें उसी पर अटक जातीं. एक दिन सत्संग के बाद सारे पंखे और लाइटें बंद कर के वह हाल से बाहर निकल रही थी तो मैं ने उस से पूछा, ”यहां कोई कैंटीन भी है, जहां चायनाश्ता मिलता हो.’’

जी,’’ वह थोड़ा मुसकरा कर बोली, ”लाइब्रेरी के पीछे किचन है, आप चाहें तो पेंमेंट दे कर ले सकते हैं. आइए, मैं आप को दिखा देती हूं.’’ कह कर वह मेरे साथ चलने लगी.

आप यहीं रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा.

जी,’’ कह कर वह अपनी चुन्नी सिर पर लेती हुई मेरी ओर देखने लगी. 

बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने कहा, ”कब से?’’

पता नहीं शायद 7-8 साल तो हो गए होंगे, मेरा नाम मुक्ता है.’’

उस ने फिर से एक बार मुझे मुसकरा कर देखते हुए कहा, ”आप इधर से सामने की तरफ चले जाइए, वहां लिखा हुआ है. अच्छा, अब मैं चलती हूं, मेरा लाइब्रेरी का समय हो गया है.’’

वहां पढ़ती हैं आप?’’

ऐसा ही कुछ समझ लीजिए. मैं यहां की लाइब्रेरी संभालती हूं… जीने का कोई तो बहाना चाहिए…’’ कह कर वह मुंह फेर कर वहां से चली गई. 

वह नम्र और संयत स्वर में बात करती थी. एकदम नपातुला. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. वह भी ऐसी ही थी. परंतु उस के आखिरी वाक्य ने मेरे भीतर कई प्रश्न खड़े कर दिए. मैं रातभर उसी के बारे में सोचता रहा. अगले दिन मेरा आश्रम में जाना तय था. मैं सब से पहले वहां पहुंच गया और पीछे बैठ गया. धीरेधीरे लोग आते रहे, कुछ मेरी तरह बाहर से तो कुछ यहीं के. कुछ जानेपहचाने चेहरों ने मेरा मुसकरा कर स्वागत किया. मेरी नजरें जिसे तलाश रही थीं, वह वहां नहीं थी. 

इतने में एक व्हील चेयर के साथ वह आई. व्हील चेयर को एक कोने में खड़ा कर के टेबल पर रखी फोटो के सामने एक दीया और अगरबत्ती जला कर पीछे बैठ गई. मैं उसी को देखता रहा. उस ने भी चोर निगाहों से मुझे देखा और नजरें फेर लीं. सप्ताह के अंत तक यह भी स्पष्ट हो गया कि उसे भी मेरा इंतजार रहता है. बातचीत हम दोनों के बीच इतनी जरूरी नहीं थी जितना की आंखों का भाव. आखिरी दिन प्रसाद भंडारे में भी मैं ने अंत तक अपना योगदान दिया. यहां तक कि 10-12 सहायकों में मुझे भी शामिल कर लिया गया. मुझे जब भी समय मिलता, मैं किसी न किसी काम में शामिल कर लिया जाता. मुक्ता से भी मेरी मुलाकात लगभग हर रोज हो जाती. शायद यह भी झूठ नहीं होगा कि मैं मुक्ता से मिलने के बहाने इस संस्था से जुड़ता चला गया.

हमारे छोटे वाक्यों में बातचीत का सिलसिला चलता रहा. वह इस संस्था में काम न करती होती तो शायद मैं उसे कहीं घूमने के लिए कह देता. मुझे यहां की सीमाओं और मर्यादाओं ने बांध रखा था. एक दिन सुबह रविवार को मैं थोड़ा जल्दी पहुंच गया. पहुंचने का तो बहाना था. मैं ने सामने से मुक्ता को आते देखा. बजाय पार्क में जाने के, जहां पहले से ही कई बुजुर्ग व्यक्ति बैठे धूप का आनंद ले रहे थे, मैं लाइब्रेरी में चला गया. थोड़ी देर में वह इशारे से पूछने लगी कि मैं औफिस या पार्क में क्यों नहीं गया. यह मेरा सामान्य नियम था कि मैं औफिस से प्रशांतजी को मिल कर कुछ समय यहां सेवा करता रहता.

वो प्रशांतजी तो 11 बजे से पहले आएंगे नहीं, मुझे अपनी गाड़ी सर्विस करानी है तो सोचा पहले यहीं आ जाता हूं.’’ कह कर मैं ने मैगजीन स्टैंड से कुछ पत्रिकाएं उठा लीं और एक कोने में बैठ गया. वह इधरइधर पड़ी किताबें और अखबार समेटती रही.

एक बात पूछनी थी आप से?’’ मैं ने धीमे से कहा. वह मेरे पास आ कर बैठ गई और बहाने से एक रजिस्टर सामने रख लिया, जैसे वह भी मुझ से बात करने का कोई अवसर ढूंढ़ रही हो.

उस दिन आप ने कहा था कि जीने का कोई तो बहाना होना चाहिए, यह तो इतनी शांत जगह है फिर आप की शायद कोई जिम्मेदारियां भी नहीं लगतीं, यहां भी बहाने ढूंढने पड़ते हैं क्या?’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. उस का चेहरा सफेद होने लगा. मुझे यहां आते लगभग 2 महीने बीत चुके थे पर मैं ने उस के चेहरे पर कभी कोई खुशी नहीं देखी. हमारे बीच एक सन्नाटा सा पसर गया. मुझे लगा कि या तो वह कुछ बताना नहीं चाहती थी या बताने के लिए शब्द ढूंढ रही थी. मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”माफ कीजिए, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया. कोई संकोच हो तो रहने दीजिए. मुझे तो यहां के तौरतरीके, बातचीत करने का ढंग भी नहीं आता.’’ कहतेकहते मैं ने अपनी लाचारी जताई और मैगजीन के पन्ने पलटने लगा.

मेरे पास बताने या छिपाने जैसी कोई बात नहीं है,’’ उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं, ”अपने मम्मीपापा के साथ मैं काफी समय से यहां आती थी, लगभग हर छुट्टियों में. एक दिन पापा अचानक एक हादसे में चल बसे. न तो हमारे पास कोई जमापूंजी थी, न कोई अपना मकान. प्रशांतजी ने हमें हमारी हालत पर तरस खा कर यहां रहने की इजाजत दे दी. मम्मी भंडार घर में काम करने लगीं और मैं स्कूल जाने लगी.

”मेरी अभी इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई कि मम्मी को कैंसर हो गया, न वह बच पाईं न मेरी पढ़ाई. मैं एकदम अकेली पड़ गई. कहां जाती. बस तब से यहीं पड़ी हूं. मेरा फिर हर चीज से मोह टूट गया. कुछ भी करने का मन नहीं करता…’’

तो क्या सारी जिंदगी यूं ही काट देंगी?’’

फिर कहां जाऊं, न कोई मेरी आमदनी है न कोई और ठिकाना, बस मजबूरी है. इतनी पढ़ीलिखी भी नहीं कि कोई मुझे काम दे देगा. और अकेली जवान लड़की. पापा को अपने परिवार के बारे में कुछ सोचना चाहिए था. कहीं कुछ तो जोड़ते.’’

कहतेकहते वह रुआंसी सी हो गई. मेरे पास कहने के लिए शब्द कम पड़ गए. मैं उस की तरफ देखता रहा. उस की आंखों में आंसू थे, जो मुझ से छिपा रही थी. घबरा कर मैं ने नजरें फेर लीं, हालात जैसे नजर आते हैं वैसे होते नहीं.

जिस का नसीब ही खोटा है वह क्या करे.’’ एक लंबी सांस भर कर उस ने कहा और वहां से चल दी. मैं भी बिना कुछ कहे वहां से उठ कर चला गया. दिन बीतते गए उन को तो बीतना ही था. मुक्ता मेरा अभिवादन अब मुसकरा कर करती. मैं कभीकभी चुपके से उस के लिए कोई मिठाई या कोई नियमित प्रयोग होने वाला कोई सामान देता रहता. कभीकभी वह भी छोटामोटा सामान मंगवाती रहती. मैं उस की मदद करना चाहता था. एक बार देर रात प्रशांतजी का फोन आया कि अचानक एक माताजी की तबीयत खराब हो गई है, उन को एम्स ले जाना है, वह स्वयं कहीं बाहर गए हुए थे. उन्होंने मुझ से निवेदन किया जो मैं मना नहीं कर सका. मेरे लिए उन वृद्ध माताजी को अस्पताल ले जाने का सौभाग्य तो था ही और उस से ज्यादा खुशी की बात यह थी कि मुक्ता को उन की सेवा में लगा दिया.

मैं ने उन दोनों को साथ ले जा कर इमरजेंसी में सारी औपचारिकताएं पूरी कर के भरती करा दिया. जब तक उन का चैकअप होता रहा, मुझे बाहर ही बैठना था, मुक्ता को उन माताजी के साथ रहना था. थोड़ी देर में मुक्ता भी बाहर आ कर मेरे पास बैठ गई. मैं ने सामने के कैफेटेरिया से 2 कप कौफी ली और उस के साथ बैठ गया. रात काफी हो चुकी थी. हमारे पास डाक्टर की रिपोर्ट का इंतजार करने के सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं था. मुझे तो जैसे 

इसी अवसर की तलाश थी. मुक्ता के चेहरे पर मैं ने पहली बार खुशी देखी. कहने लगी, ”पिछले एक साल से मैं पहली बार बाहर निकली हूं.’’

आप के निकलने पर कोई पाबंदी है क्या?’’

”पाबंदी तो नहीं है पर जाऊं भी कहां? मेरा और है ही कौन? जो कोई दूर पास के रिश्तेनाते थे, उन्होंने भी मां के मरने के बाद किनारा कर लिया. शायद मैं कोई डिमांड ही न कर बैठूं… या शायद उन पर बोझ ही न बन बैठूं. यहां कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो साधनसंपन्न हैं, उन के मिलने वाले कभीकभी उन को मसूरी, देहरादून या ऋषिकेश घुमाने ले जाते हैं, वह मुझे भी साथ ले जाना चाहते थे, पर यहां से इजाजत नहीं मिली.’’

कह कर वह वहां से मेरा भी खाली कप ले कर उठ गई. शायद वह भरे गले से मुझ से और बातचीत करने से बचना चाहती थी. तब तक ड्यूटी डाक्टर ने आ कर बताया, ”कोई घबराने वाली बात नहीं है, थोड़ी गैस्ट्रिक प्राब्लम है, अब थोड़ा ठीक है, सुबह तक हम उन को यहां रखेंगे, आप चाहें तो उन्हें सुबह ले जा सकते हैं.’’

मैं मुक्ता की तरफ देखने लगा, वह मेरा इशारा समझ गई. वह इतनी नादान भी नहीं थी, जितना मैं समझता था. कहने लगी, ”आप चाहें तो इन्हें यहां भरती कर लीजिए, हम लोग तो वृद्धाश्रम से आए हैं इन को ले कर. एकदो दिन में उन का कोई न कोई रिश्तेदार भी आ जाएगा, आश्रम में इन की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है.’’

अस्पताल को भला इस में क्या परेशानी हो सकती थी, उन्होंने थोड़ी ही देर में उन को रूम में शिफ्ट कर दिया. मैं भी उन से इजाजत ले कर वहां से चला गया. मैं ने अगले 3 दिनों के लिए अपने औफिस से छुट्टी ले ली और दोपहर तक फिर से उन के रूम में पहुंच गया. माताजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं. बोली, ”बेटा, बहुतबहुत आशीर्वाद, कल रात तुम ने जो कुछ भी मेरे लिए किया, मैं हृदय से आभारी हूं. लोग अपनों के लिए इतना नहीं करते,’’ कहतेकहते उन की आवाज भर्रा गई.

तो क्या मैं पराया हूं. माताजी, जब एक रास्ता बंद हो जाता है तो कई और खुल जाते हैं. आप जब तक यहां हैं, मैं आप की सेवा में रहूंगा, आप चिंता मत कीजिए.’’ कह कर मैं सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. 

मुक्ता ने मुझे देखते ही कहा, ”माताजी काफी समय से आप को याद कर रही थीं, उन का कुछ सामान, कपड़े, दवाइयां वगैरह उन के कमरे से लाना है, आप चल सकेंगे क्या?’’

इन का काम तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है, पर अकेले इन के कमरे में…’’

नहीं, मुझे साथ जाना होगा… मैं ने प्रशांतजी से बात कर ली है,’’ वह बोली.

कब जाना है?’’ मैं ने पूछा.

अभी चलें… अगर आप को कोई परेशानी न हो तो?’’

परेशानी होती तो यहां आता ही क्यों, आप बाहर आ जाइए, मैं गाड़ी निकाल कर लाता हूं.’’ कह कर मैं पार्किंग में चला गया. 

मेरी तो बांछें ही खिल गईं. अब तो मेरे पास उस के साथ जाने का आधिकारिक फरमान था. मैं ने उसे गाड़ी में बिठाया और रास्ते में पूछा, ”कुछ खाओगी क्या… कचौरी समोसे या कुछ और..?’’

हांहां क्यों नहीं…’’ उस ने चहकते हुए कहा.

चलो, फिर तुम को साउथ इंडियन खिलाता हूं,’’ कह कर मैं ने गाड़ी मद्रास कैफे की तरफ मोड़ दी. 

समोसेकचौरी तो तुम्हारे यहां भी मिल जाती होंगी, नहींï?’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा, ”तुम्हें कोई जल्दी तो नहीं?’’

”मुझे कौन सी जल्दी है.’’ वह बोली तो मुझे लगा जैसे उस का बचपन फिर से लौट आया है. कितने अरमानों को मार कर वह बेचारी सी महसूस करती होगी. अपनी मरजी का कुछ भी नहीं. मैं ने थोड़ाथोड़ा कर के काफी कुछ मंगवा दिया. वह ऐसे खाती रही जैसे जीवन में पहली बार खाया हो.

कार में बैठते ही उस ने बिना किसी संकोच मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ”थैंक्यू.’’

उस के कोमल हाथों का स्पर्श मुझ में भीतर तक सिहरन पैदा करने लगा. स्पर्श का अपना ही एक सुख होता है. एक अनकहा पूरा वाक्य. मैं गियर बदलने के लिए वहां से हाथ हटाना नहीं चाहता था, देर तक हम दोनों यूं ही बैठे रहे. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ”जानती हो, उस दिन रविवार सुबह मैं जल्दी आश्रम क्यों आ गया था?’’

”क्या आप नहीं जानते कि रविवार को लाइब्रेरी बंद रहती है? आप को दूर से आता देख कर मैं ने जानबूझ कर खोली थी कि शायद आप किसी बहाने वहां आओ. मुझे क्या मालूम था कि आप के भीतर कुछ चल रहा है.’’

मुक्ता के इस प्रतिप्रश्न से मेरे भीतर कुछ झन्न सा टूट गया. मैं ने यह तो सोचा भी न था, दिलों के इस खेल की शुरुआत तो दोनों तरफ से हो ही चुकी थी.

और शायद ऊपर वाले को मेरी नीरस सी जिंदगी पर तरस आ गया होगा, तभी तो आप मिल गए. अब मैं आप को खोना नहीं चाहती. सुना है इस जन्म के सारे संबंध पिछले जन्मों के बकाया लेनदेन को पूरा करने आते हैं.’’ कहतेकहते वह अपने विचारों में खो गई. मैं भी खयालों की दुनिया से यथार्थ में आ गया और यंत्रचलित हाथ कार को ठेल कर आश्रम आ गए. हमारे संबंध अब नजदीकी और मजबूत होते गए. मैं छोटेछोटे पल भी उस के साथ गुजारने लगा. उस को आश्रम से लाना, छोडऩा वगैरहवगैरह. तीसरे दिन माताजी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी. 

मुक्ता ने बहुत कोशिश की कि किसी बहाने कुछ दिन और यहां माताजी को रखा जाए, पर ऐसा हो न सका. माताजी के घर से किसी व्यक्ति ने आ कर अस्पताल का सारा हिसाब कर दिया. मुक्ता माताजी के पास थी और मैं नीचे रिसैप्शन पर. जब सब कुछ सैटल हो गया तो मुक्ता भागीभागी मेरे पास आ कर बोली, ”अब तो यहां से जाना ही होगा. पता नहीं अब मेरा क्या होगा. कैसे रहूंगी आप के बिना.’’ कहतेकहते वह सारे संकोच छोड़ कर मुझ से लिपट गई और रोने लगी, ”मैं अब आश्रम नहीं जाना चाहती.’’

मेरे पास शब्द ही नहीं थे, अपने साथ भी नहीं रख सकता था और उस के बिना रहना भी मुश्किल था. पता नहीं वह कौन सा पल था, जो मुझे मुझ से ही चुरा कर ले गई. उस के शब्दों के साथ मेरा भी दिल बैठने लगा.

”क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं कि मैं आप के आसपास रह सकूं… मेरा दिल बैठा जा रहा है, कोई तो उपाय होगा. झूठ ही कह दो कि आप भी मेरे बिना नहीं रह सकते.’’ वह भावुक हो कर बोली. तब तक दूर से माताजी को व्हील चेयर पर आते देख कर मैं उस से अलग हो गया. बड़े बेमन से वहां से उठा और कार ला कर पोर्च में खड़ी कर दी. माताजी रास्ते भर ढेर सारे आशीर्वचनों से मुझे लादती रहीं. उन सब को वृद्धाश्रम छोडऩे के बाद मैं वहां से निकल गया. मुक्ता से आंखें मिलाने का साहस अब मुझ में नहीं था, शब्दों की यहां कोई जरूरत नहीं थी.

दिन बीतते गए. बसेरा में मेरा आनाजाना लगा रहा. उस के निकट रहता तो सीमाएं टूटतीं और दूर रहता तो मन टूटता. सुबह उठते ही पहला खयाल उस का होता और आखिरी भी उस का. जिस दिन मैं नहीं आता, वह कहीं न कहीं से फोन करती. उस की आवाज भर्रा जाती और टूट भी जाती थी. जब से मैं ने माताजी की सेवा की, मेरा परिचय वहां के लोगों से बढऩे लगा. उन के मन में मेरे प्रति एक आदर का भाव था.

और एक दिन वही हुआ, जिस का मुझे डर था. प्रशांतजी ने मुझे बुला कर कहा, ”सुनीलजी, यह समाज पतिपत्नी के अलावा बाकी सभी रिश्तों को संदेह की नजर से देखता है, उन का न कोई नाम होता है न मुकाम. इन थोड़े से शब्दों को ही अधिक समझना, बाकी जैसा आप को ठीक लगे.’’ उन के शब्दों को मैं न समझ सकूं, ऐसा नासमझ भी नहीं था मैं. मुझ से न तो कोई जवाब देते बना, न ही मैं नजरें मिला सका. आगे कुछ और अप्रिय न सुनना पड़े, मैं वहां से उठ कर चला गया.

उस रात मेरी आंखों को नींद ने धोखा दे दिया. हार कर मुझे अपनी कामनाओं के पंख समेटने पड़े, जो इतना आसान नहीं था. मैं ने खुद को समझाने की कोशिश की, पर दिल कहां मानने वाला था. मैं ने वहां जाना अब कम करने का मन बनाया. मैं कोशिश करता कि उन जगहों पर न जाऊं, जहां मुक्ता के मिल जाने की संभावना थी. मैं अपने आप को ही धोखा दे रहा था. मैं उस को देखना भी चाहता था और उस से छिपना भी. महाशिवरात्रि के दिन मैं चुपचाप मंदिर में आया और पूजाअर्चना कर के पीछे के रास्ते से निकल रहा था. तभी अचानक मेरी नजर मुक्ता पर पड़ी. वह एक कोने में बैठी हुई थी. उस से नजरें मिलते ही मैं बेचैन हो गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था और रंग भी पीला पड़ चुका था. निष्प्राण सा शरीर और निस्तेज आंखें मानों कई सालों से बीमार हो. मैं उस से नजरें चुरा कर पीछे के रास्ते से जा ही रहा था कि न जाने वह कहां से सामने आ गई.

ऐसा क्या गुनाह कर दिया मैं ने, एक टुकड़ा साथ ही तो मांगा था.’’ वह बोली.

क्या?’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश की.

न आप लाइब्रेरी में मुझ से मिलने आते हैं, न मेरा फोन ही सुनते हैं. मुझ से मिलना नहीं चाहते क्या? आप से मिल कर जीवन जीने की कुछ आस बंधी थी और अब वह भी टूटती जा रही है. मैं ने ऐसा क्या जुर्म कर दिया, जिस का फैसला आप सुना रहे हैं? तुम क्यों आए थे यहां…’’ कहतेकहते वह रो पड़ी और नजरें हटा कर वहां से चली गई.

सच्चाई से ज्यादा मुश्किल सवाल था यह, जिस का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था. बस यह मेरी उस से आखिरी मुलाकात थी. इस के बाद मैं ने अपने दिल को मजबूत किया और वहां आनाजाना बंद कर दिया. उस ने कुछ दिनों तक तो बहुत फोन किए और करवाए भी, पर बड़ी विनम्रता से मैं ने पीठ दर्द का बहाना बना कर टाल दिया. असली दर्द तो मेरे सीने में था. मन के घावों को वक्त पर छोड़ कर वहां से चला आया. और आज अचानक ‘बसेरा’ से फोन आ गया. देहरादून छोड़े हुए मुझे 6 महीने से अधिक का समय हो गया था. मैं मुक्ता का सामना किस मुंह से कर पाऊंगा. सच कहूं तो एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब मैं ने उसे याद न किया हो. उस की यादें अब मेरी पर्सनल लाइफ को भी प्रभावित कर रही थीं.

शाम काफी हो चुकी थी. बसेराके गेट पर पहुंचते ही मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दुआ करता रहा कि मुक्ता से सामना न हो तो अच्छा. मैं सीधा प्रशांतजी के औफिस गया, जहां वह मेरा ही इंतजार कर रहे थे.

कैसा रहा सफर, बहुत थक गए होगे. कुछ बात ही ऐसी है कि तुम को बुलाना पड़ा और तुम ने मेरा आग्रह मान कर फौरन हां कर दी, यह मेरा सौभाग्य है.’’ प्रशांतजी बोले.

मैं सामने की कुरसी पर बैठ गया और अगले वाक्य का इंतजार करने लगा.

तुम्हारे लिए चायनाश्ता मंगवाता हूं. फिर आराम से बात करेंगे. रात में तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी यहीं करवा देता हूं.’’

नहीं रहने दीजिए… थोड़ी देर बाद ले लूंगा…’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने का पता सब को चले.

उन्होंने अपनी कुरसी पीछे की और फिर आराम से बैठ गए.

बात यह है सुनीलजी कि मैं ने इस संस्था की 20 वर्षों से अधिक सेवा की. इस को वृद्ध लोगों का बसेराबनाया. अच्छे दिन भी देखे और बुरे भी. कई आए और चले गए. मुझ से अब यह बसेरानहीं संभलता. इसलिए मैं ने इस को नए लोगों के हाथों में सौंपने का फैसला किया है. कल हमारे ट्रस्ट की आखिरी मीटिंग है. आप ने इस संस्था के लिए जो भी योगदान दिया, उस के लिए मैं हृदय से आभारी हूं. यदि आप चाहें तो मैं आप का नाम ट्रस्टी में करवा सकता हूं, अभी इतना अधिकार मेरे पास है.’’

मैं खामोश रहा और उन की बातों का मतलब समझने लगा. परंतु मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था. मैं ने एक लंबी सांस भर कर कहा, ”मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए. खैर… यहां और सब लोग कैसे हैं?’’

आप का मतलब मुक्ता से है?’’ उन्होंने सीधा प्रश्न किया. मैं खामोश रहा.

मिलना चाहेंगे उस से?’’

मैं ने धीरे से सिर हिला कर इंकार कर दिया. इतना तो पता चल गया कि वह यहीं है. मुझे उस समय उस के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे. उन का यह ऐसा प्रश्न था, जिस की उम्मीद नहीं थी. यह प्रश्न पूछने का साफ मतलब था कि उन्हें हमारे संबंधों का पता है.

”सर, यदि आप मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हैं तो मुक्ता के लिए कोई ऐसी व्यवस्था कर दीजिए कि उस को यहां से कोई निकाल न सके. मैं नहीं चाहता कि वह स्वयं को लाचार महसूस करे, अनाथ और बेसहारा महसूस करे.’’ पता नहीं उस समय मेरे मन में ऐसे विचार कहां से आए और मैं कह गया. वह कुछ देर मुझे देखते रहे. ट्रस्टी जैसे महत्त्वपूर्ण पद को छोड़ कर मैं मुक्ता के लिए कुछ मांग रहा था. फिर गंभीर हो कर कहने लगे, ”ठीक है, मैं उस को एक कमरा दिलवा देता हूं. वह जब तक जीवित रहेगी, उसे यहां से कोई नहीं निकालेगा, साथ ही वह यहां काम भी करती रहेगी, यह भी अभी तक मेरे अधिकार में है. परंतु आप को एक लाख रुपए की व्यवस्था करनी होगी. ट्रस्ट का ऐसा ही नियम है. मैं इस बारे में भी आप से बात करना चाहता था.’’

मैं अपनी कंपनी से आप को इस फंड में रुपए भिजवा देता हूं. यह मेरे अधिकार में है. हमारी कंपनी को ऐसे कार्य में योगदान के लिए कोई आपत्ति नहीं है.’’ मैं ने उन से धीरे से कहा.

मुक्ता को जीवन भर संस्था में रखने का भरोसा पा कर मैं बहुत खुश हुआ. मुझे बहुत सुकून मिला कि वह बेचारी अब जिंदगी भर वहां रह सकेगी.

लेखक –   डा. पंकज धवन

Webseries इल्लीगल : सीजन 3

वेब सीरीज इल्लीगल-3’ की कहानी तो कोई खास नहीं है, लेकिन इस में कई तरह के सब प्लौट हैं, जो कथा को व्यस्त और तनावपूर्ण रखते हैं. सीरीज में कानूनी लड़ाई से ले कर व्यक्तिगत संघर्षों तक कहानी एक तेज गति में दिखती है.

कलाकार: नेहा शर्मा, पीयूष मिश्रा, सत्यदीप मिश्रा, अक्षय ओबेराय, नील भूपलम, इरा दुबे, अचिंत कौर, विक्की अरोरा, अंशुमान मल्होत्रा, कीर्ति बिज, सोनाली सचदेवा, अशीमा वरदान

निर्माता: समर खान, आदित्य, निर्देशक: साहिर रजा, पटकथा: सुदीप निगम और भारत मिश्रा, लेखक: राधिका आनंद, ओटीटी: जियो सिनेमा

बौलीवुड एक्ट्रैस नेहा शर्मा और पीयूष मिश्रा की वेब सीरीज इल्लीगलका तीसरा सीजन 8 एपिसोड में जियो सिनेमा पर आ चुका है. पहले 2 सीजन की तरह इस बार भी इल्लीगल 3’ वेब सीरीज एक कोर्टरूम ड्रामा है. इस सीरीज में नेहा शर्मा एडवोकेट निहारिका सिंह के रोल में नजर आ रही हैं. सीरीज में नील भूपलम की एंट्री हुई है. नील भूपलम ने दुष्यंत राठौर के किरदार में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.

सीरीज की शुरुआत निहारिका सिंह और उन के सहयोगी पुनीत (सत्यदीप मिश्रा) के अलग होने से होती है. सीरीज में कोर्टरूम ड्रामा को काफी अच्छे से दिखाया गया है. नेहा सिंह के अलावा वेब सीरीज में मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली के रूप में पीयूष मिश्रा का किरदार भी दर्शकों पर असर छोड़ता है. इस वेब सीरीज की स्टोरी कुछ खास नहीं है. सीरीज राजनैतिक दांवपेंच और कानूनी काररवाई से भरी पड़ी है. कहानी कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच के अधिकारों की याद दिलाती है तो मुख्यमंत्री की नाजायज औलाद रनदीप की कहानी से लगता है कि यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हुई नजर आती है.

‘इल्लीगल 3’ की कहानी वकील निहारिका सिंह पर केंद्रित है, जो दिल्ली के जानेमाने वकील जनार्दन जेटली की प्रेस्टिजियस ला फर्म में अपना करिअर शुरू करती है. जैसेजैसे सीरीज आगे बढ़ती है, निहारिका कई चौंकाने वाले खुलासे करती जाती है. पूरे सीजन में निहारिका का किरदार दिल्ली की प्रमुख वकील बनने की महत्त्वाकांक्षा में अपने सिद्धांतों से समझौता करने से जूझता है. कहानी में दिलचस्प मोड़ तब आते हैं, जब वह जिन मामलों पर काम करती है, उन से जुड़ी छिपी सच्चाइयों और काले रहस्यों का परदाफाश करती है.

पिछले सीजन में निहारिका ने लगातार अपने सीनियर जेजे (अब सीएम) को काम के प्रति उन के क्रूर रवैए के लिए दोषी ठहराया, लेकिन इस सीजन में उसे उसी राक्षस में बदलते हुए दिखाया गया है, जिस का उस ने कभी सामना किया था. निहारिका और जेजे के अलावा, ज्यादातर किरदार कार्डबोर्ड के टुकड़ों की तरह लगते हैं, जिन्हें ज्यादा बेहतरीन व्यक्तित्व की जरूरत होती है. अगर पुनीत एक आदर्शवादी है तो अक्षय डैडीमुद्दों वाला पुरुष है, जबकि जोया अहमद  निहारिका और दुष्यंत के युवा संस्करण की तरह लगती है.

इल्लीगल में सब से दिलचस्प एपिसोड दुष्यंत और उस की अभिनेत्री पत्नी अतीशा के बीच घरेलू हिंसा है, जिस में निहारिका न्याय के गलत छोर पर होने के बावजूद मामले को आगे बढ़ाती है. राजनीतिक ड्रामा तुलनात्मक रूप से उतना असरकारी नहीं है और पुनीत की पत्नी सू के गर्भपात के इर्दगिर्द का सबप्लौट भी बकवास लगता है.

एपीसोड

मेड लायर रिटर्ननाम के 40 मिनट के इस एपीसोड में पहले सीजन 2 का रिकैप दिखाया गया है, जिस में जनार्दन जेटली की ला फर्म में निहारिका काम करती है और बाद में दोनों आमनेसामने हो जाते हैं. जनार्दन जेटली के एक वकील से ले कर मुख्यमंत्री की कुरसी पाने की कहानी है. सीजन 3 की शुरुआत में एक एंबुलैंस में निहारिका सिंह (नेहा शर्मा) अपने साथी एडवोकेट पुनीत टंडन (सत्यदीप मिश्रा) को  हौस्पिटल ले कर पहुंचती है. एक घंटे पहले के घटनाक्रम को फ्लैशबैक में दिखाया गया है. 

नरेला में जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ अर्थ नेक्स्ट एनजीओ के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उस प्रदर्शन में पुनीत और निहारिका शामिल होते हैं, तभी दुष्यंत राठौर के कहने पर पुलिस वहां आ कर प्रदर्शनकारियों को रोकती है. भीड़ में से कोई पुलिस पर पथराव कर देता है और पुलिस बल प्रयोग करती है, जिस में पुनीत घायल हो जाता है.

हौस्पिटल में पुनीत की पत्नी सू उस से मिलने आती है, तभी पुनीत बाहर आ कर कोर्ट जा कर अर्थ नेक्स्ट के फाउंडर रीमा और फरहान की बेल करने की बात कहता है. उसी समय अक्षय जेटली भी निहारिका से मिलने आता है. अक्षय जेटली जिस होटल में रहता है, वहां उस का पिता दिल्ली सरकार का मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली उर्फ जेजे (पीयूष मिश्रा) मिलने आता है, जहां वह अक्षय को सफाई दे कर कहता है कि उस की मां रोहिणी का खून उस ने नहीं किया है, लेकिन अक्षय उस की बात सुनने के बजाय उसे होटल से बाहर जाने को कहता है. 

कार में जाते समय जेजे अपने पीए को पत्थरबाजी करने वालों की जानकारी लेने को कहता है. इधर पुनीत कोर्ट में जिरह कर के रीमा और फरहान की जमानत करवा लेता है. अंकुश सिंघल जो अर्थ नेक्स्ट संस्था का फाउंडर है, मीडिया के सामने पत्थरबाजी की जिम्मेदारी लेता है. इस के बाद पुलिस रीमा और फरहान को रात के समय घर से अरेस्ट कर लेती है. पुनीत और निहारिका फिर से उन की जमानत के लिए कोशिश करने लगते हैं. अक्षय निहारिका को बहुत सारे पार्सल भेज कर उस के घर मिलने पहुंच जाता है और फिर से दोस्ती का वास्ता दे कर उस के नजदीक आना चाहता है.

इधर निहारिका दुष्यंत राठौर (नील भूपलम) से मिल कर बताती है कि उस की फर्म ने उस की फर्म से लाखों रुपए के चैक से पारस जैम्स कंपनी को फायदा पहुंचाया है. यह कंपनी मिस्टर मुंजाल की है, जिस का दामाद अंकुश सिंघल है. जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ आंदोलन को रोकने के लिए अंकुश सिंघल को पैसे देने की बात कहने पर दुष्यंत बिना डरे निहारिका को कोर्ट जाने की सलाह देता है.

जनार्दन जेटली प्रेस कौन्फ्रैंस कर जानकारी देता है कि सरकार अपनी जमीन दुष्यंत जैसे पूंजीपतियों के हाथों में नहीं जाने देगी. निहारिका कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर के जिंगलपुर इंडस्ट्रीज की जमीन शरणार्थियों को (आईडीपीएस) को वापस देने की गुहार लगाती है. निहारिका दुष्यंत से मिल कर नया दांव खेलती है. वह दुष्यंत से लिंगलपुर इंडस्टी से प्रभावित लोगों को मजनू का टीला के पास जमीन दे कर मुआवजा देने और सभी कामगारों को 2 साल तक फैक्ट्री में काम देने और अर्थ नेक्स्ट के खिलाफ शिकायतों को वापस लेने की शर्त पर पिटीशन वापस लेने का प्रस्ताव रखती है, जिन्हें दुष्यंत मान लेता है. 

लेखक ने डायलौग लिखते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा कि दुष्यंत जैसा बिजनैसमैन, जो कई कंपनियों का मालिक है, वह बातचीत में तो अंगरेजी शब्दों का इस्तेमाल करता है, मगर दूसरी तरफ भद्दी और फूहड़ गालियां भी बकता है, जिन से उस के कैरेक्टर पर सवालिया निशान लगता है.

एपीसोड 2

37 मिनट के दूसरे एपीसोड का नाम लव एंड लासहै, जिस की शुरुआत एक गरमागरम सीन से होती है. दुष्यंत एक अवार्ड फंक्शन में जाने से पहले बंद कमरे में लड़की के साथ रोमांस कर रहा है. पुनीत रीमा और फरहान की रिहाई के लिए निहारिका के पास पहुंचता है, मगर निहारिका अपनी सहायक शायना के साथ किसी क्लाइंट से मिलने चली जाती है. अक्षय निहारिका को पुरानी बातें भुला कर फिर से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता है. पार्टी में दुष्यंत की तीसरी बीवी अतीसा (इरा दुबे) किसी बात को ले कर दुष्यंत को भलाबुरा कहती हैं तो दुष्यंत गुस्से से उसे जमीन पर गिरा देता है. एपीसोड में अंगरेजी डायलौग की भरमार है. जिसे देख कर लगता है कि दर्शक कोई इंगलिश मूवी देख रहे हैं.

निहारिका पुनीत के किसी काम में रुचि नहीं ले रही है. शनाया इस बात से चिंतित हैं कि कहीं पुनीत को निहारिका और दुष्यंत के बीच की डील का पता न चल जाए. पुंडीर साहब की पार्टी में सीएम जेटली पहुंचता है, वहां महिला लीडर मृणालिनी (अचिंत कौर) से मुलाकात में पता चलता है कि वे दिल्ली की एलजी बनने वाली है. धर दुष्यंत के खिलाफ अतीशा कोर्ट में केस कर देती है और दुष्यंत की तरफ से निहारिका वकालत करती है. अतीशा की तरफ से जोया अहमद (जयन मेरी खान) कोर्ट में खड़ी होती है. 

जेटली पत्रकार के माध्यम से एक इंटरव्यू रिकौर्ड करवा कर यह बताता है कि नरेला की जमीन शरणार्थियों को दिलाने वह दुष्यंत जैसे दुशासन से लड़ता रहेगा. वह अपने पीए ओपी को कहता है कि सोशल मीडिया में यह खबर फैला दो कि लेफ्टिनेंट गवर्नर सीएम को काम नहीं करने दे रही.

एपीसोड

34 मिनट के तीसरे एपीसोड का नाम ‘लोनली ऐट द टौप’ है, जिस की शुरुआत कोर्ट के एक अर्दली शरद और एडवोकेट जोया अहमद की बातचीत से शुरू होती है. जोया अहमद शरद की बेटी सोनाली के डायवोर्स केस को लडऩे का फैसला करती है तो भावनात्मक रूप से शरद उस का शुक्रिया अदा करता है. दूसरे सीन में सीएम जेटली हुमायूं के मकबरे में अपने नाजायज बेटे रनदीप (विक्की अरोरा) से मिलता है तो रनदीप मेरठ से दिल्ली में उस के साथ रहने की जिद करता है. मगर जेटली उसे लंदन भेजने का बंदोबस्त करने को कह कर वहां से चला जाता है.

जेटली पुनीत को बुला कर बताता है कि पत्थरबाजी अर्थ नेक्स्ट के लोगों ने नहीं, बल्कि किसी और ने की थी. जेटली पुनीत को इस का सबूत देने और सरकार का चीफ पब्लिक प्रौसीक्यूटर बनाने का प्रलोभन देता है.  अक्षय जोया को उस की फर्म में उस का औफिस दिखाता है तो जोया कहती है कि वह निहारिका के खिलाफ केस लड़ कर उसे खत्म करना चाहती तो अक्षय मना करता है. तभी अतीसा का फोन आने पर जोया वहां से चली जाती है.

पुनीत पत्नी सुलेखा (कीर्ति विज) से जेजे के प्रपोजल पर बात करता है तो वह भी अपनी सहमति देते हुए कहती है कि रीमा और फरहान को जेल से बाहर निकालने के लिए जेजे की बात मान लेना ही समझदारी है. इधर दुष्यंत न्यूज सुन कर घबरा जाता है और निहारिका से फोन पर बात करता है तो निहारिका उस की जमानत करने की बात कहती है. मगर जोया अपनी चाल से किसी दूसरे क्लाइंट में निहारिका को उलझा देती है और जब तक निहारिका कोर्ट पहुंचती है, कोर्ट के दरवाजे बंद हो चुके होते है. 

दुष्यंत की जमानत के लिए निहारिका कोर्ट में देर से पहुंचे इस के लिए जोया द्वारा जिस पागल खानदान को भेजा गया है, वह दृश्य भी कोई खास प्रभाव दर्शकों पर नहीं छोड़ पाता है. यहां पर कमजोर पटकथा और निर्देशन की कमी साफ दिखाई देती है. पुलिस दुष्यंत को 2 दिन की न्यायिक हिरासत में लेती है, यह समाचार सुन कर सीएम जेटली बेहद खुश होता है. निहारिका पुलिस लौकअप में बंद दुष्यंत से मिलने जाती है तो दुष्यंत उसे डांटता है. इस पर निहारिका माफी मांगते हुए 2 दिन बाद जमानत करवाने का वचन देती है.

पुनीत को रात के अंधेरे में जेटली का पीए ओपी किसी लालू नाम के पेशेवर अपराधी से मिलवाता है जो पुनीत को बताता है कि दुष्यंत के लिए काम करने वाले लाखन मंडल और सुरेश जैन के कहने पर उस ने पत्थरबाजी की थी.

एपीसोड

35 मिनट के चौथे एपीसोड का नाम गेम औनहै. इस में शनाया के पास निखिल मेहरा (अंशुमान मल्होत्रा) की मां उसे ले कर आती है. निखिल को मल्टीपल स्केलिरिस बीमारी है, जिस की वजह से उसे असहनीय दर्द होता है. देशविदेश में इलाज के बाद भी कोई दवा, थैरेपी से उसे राहत नहीं मिल रही. निखिल इच्छामृत्यु के लिए कोर्ट में पिटीशन दाखिल करना चाहता है. इधर पुनीत रीमा और फरहान को रिहा करवा देता है. पुनीत और निहारिका में उसूलों को ले कर फिर बहस होती है. सबइंसपेक्टर दानियल शेख पुलिस स्टेशन में रनदीप को लंदन का टिकट, होटल बुकिंग के पेपर और खर्च के लिए पैसे दे कर कहता है कि कल सुबह की फ्लाइट से लंदन जाना है, ये जेजे सर का आदेश है, मगर रनदीप पेपर फाड़ कर कहता है कि वह कहीं नहीं जाएगा.

शनाया और निहारिका दुष्यंत की बेल के बारे में चर्चा करते हैं. सीएम जेजे पुनीत के औफिस खुद मिलने पहुंच जाता है और पुनीत को कहता है कि यदि दुष्यंत को हराना है तो दिल्ली पुलिस से 2 कदम आगे चलना होगा. अंकुश सिंघल को पकड़ो और कोर्ट में साबित कर दो कि उस बयान के पीछे दुष्यंत का हाथ था, फिर देखो यह जमीन हमारे कब्जे में होगी. निहारिका के घर में अक्षय उसे दुष्यंत की बेल के लिए शुभकामनाएं देता है तो निहारिका अक्षय को जोया अहमद को हायर करने की बधाई देती है. इस को ले कर निहारिका नाराज हो जाती है, मगर अक्षय उसे मना लेता है. दोनों खाना खाने मेज पर पहुंचते हैं, तभी दिलबहार आ कर निहारिका को उस दिन की घटना के संबंध में बताता है. 

दुष्यंत की रिहाई के बाद निहारिका अतीसा मेवानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करती है. कोर्ट में जोया और निहारिका के बीच शानदार जिरह होती है. निहारिका अतीसा के खिलाफ जिंगलपुर इंडस्ट्रीज हड़पने का आरोप लगाती है तो जोया और निहारिका कोर्टरूम में भिड़ जाती हैं. इस पर मजिस्ट्रैट उन्हें फटकार लगाता है और सुनवाई की अगली तारीख देता है.

शनाया और निहारिका एक बार में बैठ कर बातें कर रहे होते हैं, तभी एक जगह से लड़की शोर मचाती है. शनाया का ध्यान उस तरफ जाता है, जहां तान्या नाम की लड़की निखिल पर इसलिए गुस्सा हो रही है कि निखिल ने पैंट में पेशाब कर ली है. वह सफाई देता है, मगर तान्या उस से गुस्सा हो कर भाग जाती है.  निखिल व्हीलचेयर से गिर जाता है. शनाया और निहारिका उसे उठा कर कपड़े साफ करती हैं और उस के घर छोडऩे जाती हैं. वहां उस की मां से बातचीत में निखिल की बीमारी और परेशानी से वाकिफ होती हैं और निखिल की इच्छामृत्यु का केस लडऩे के लिए तैयार होती है.

अर्थ नेक्स्ट के एक प्रोग्राम में सीएम जेटली मीडिया के सामने कहता है कि दिल्ली सरकार ने इस जमीन को दोबारा वापस लेने के लिए एक अरजी एलजी साहिबा के पास लगाई थी, मगर एलजी साहिबा केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं. न्यूज सुन रही मृणालिनी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से कहती है कि जांच को डिले करने से कुछ नहीं होगा, वह मीडिया के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहा है. 

एपीसोड

41 मिनट के पांचवें एपीसोड का नाम पावर प्लेहै. इस एपिसोड की शुरुआत में दिखाया गया है कि लाखन मंडल अपने बेटे बिजू के घावों पर मरहमपट्टी लगाते हुए पूछ रहा है कि ये किस ने कियाबिजू बताता है कि जेटली की पार्टी की स्टूडेंट्स यूनियन के लड़कों ने उसे इसलिए मारा है, क्योंकि वह विरोधी पार्टी का है. एलजी मृणालिनी अक्षय को वह फाइल सौंपती है, जिस में जेटली और रनदीप के कारनामों का काला चिट्ठा है.

कोर्ट में निखिल मेहरा के इच्छामृत्यु के केस की सुनवाई होती है, जिस में निहारिका और पुनीत के द्वारा बेहतरीन तरीके से जिरह की जाती है और मजिस्ट्रैट भी इमोशनल हो कर एक्सपर्ट की राय सुनना चाहता है. इस रोग की एक्सपर्ट डा. भारती कोर्ट को बताती है कि इस रोग के इलाज हेतु नई थैरेपी ईजाद हो रही है. निहारिका के पूछने पर डा. भारती स्वीकार करती है कि निखिल का केस यूनिक है. निहारिका और पुनीत कोर्ट में बहस के दौरान आमनेसामने आ जाते हैं तो मजिस्ट्रैट डांटते हुए अगली सुनवाई की तारीख दे देता है.

पुनीत की पत्नी सुलेखा, जिस को 20 सप्ताह का गर्भ है, को डा. जाह्नïवी के क्लीनिक ले जाता है, जहां डा. जाह्नïवी बताती है कि भ्रूण का ब्रेन विकसित नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में यदि वह बच्चे को जन्म देगी तो बच्चे की अधिकतम उम्र 10 साल होगी और वह हमेशा दर्द से परेशान रहेगा, इसलिए डाक्टर एबार्शन करवाने की सलाह देती है. पुनीत की पत्नी सुलेखा की प्रेगनेंसी की रिपोर्ट में आने वाले बच्चे के रोग की वजह से एबार्शन की कहानी ज्यादा असर नहीं डाल पाई. इस समस्या की तुलना निखिल मेहरा के असहनीय दर्द और लाइलाज बीमारी से करना दर्शकों के गले नहीं उतरता.

कोर्ट में अतीसा मेवानी राठौर के केस की सुनवाई में भी जोया और निहारिका की बहस को रोचक अंदाज में पेश किया गया है. दुष्यंत के थप्पड़ मारने की रिपोर्ट में आंख के नीचे जिस चोट के निशान का उल्लेख किया गया है, उसे निहारिका फोरैंसिक एक्सपर्ट के बयान से यह साबित कर देती है कि वह मेकअप आर्टिस्ट द्वारा बनाया गया है. फोन काल आने पर पुनीत सीएम जेटली से मिलने जाता है, जहां पर वह बताता है कि जोया अहमद अब उन के लिए काम करेगी. सीएम का पीए ओमप्रकाश पुनीत को बताता है कि जोया ने कंफर्म किया है कि अंकुश ने दुष्यंत से पैसे ले कर मीडिया में बयान दिया था. मजिस्ट्रैट जोया को अपने क्लाइंट से बात करने का समय और चेतावनी दे कर अगली सुनवाई बंद कमरे की बजाय प्रिंट मीडिया की उपस्थिति में करने का आदेश देता है.

सीएम जेटली अपने निवास से एलजी से मिलने पदयात्रा करने का ड्रामा करता है. एलजी मृणालिनी से मिलबांट कर खाने और काम करने का समझौता होता है. रेस्टोरेंट में निहारिका अक्षय का इंतजार कर रही है. उधर अक्षय मृणालिनी की दी गई फाइल खोल कर देखता है तो रनदीप का पता लगाने वह फोन पर बुरी तरह चीखने लगता है. कुछ देर बाद निहारिका उस के पास पहुंचती है तो वह बताता है कि रनदीप ने उस की मां का मर्डर किया था और अब रनदीप मेरठ में है.

दिलबहार निहारिका को फोन कर के बताता है कि वह अतीसा के बौडीगार्ड रौकी का पीछा कर रहा है. इस के बाद निखिल मेहरा और निहारिका के बीच इमोशनल बातचीत होती है, जिस में निखिल अपनी परेशानी बता कर निहारिका को यह केस जीत लेने की बात कह कर रो पड़ता है.

एपीसोड

40 मिनट के छठवें एपीसोड का नाम सीक्रेट ऐंड सैक्रीफाइसहै, जिस की शुरुआत में शनाया हाथ में मोबाइल लिए रेलवे स्टेशन से बाहर निकलती है. उस के मोबाइल पर किसी बच्चे के रोने की आवाज आती है. शनाया घर पहुंचती है, जहां उस की बहन बेहोश पड़ी है और उस का बच्चा रो रहा है. वह एंबुलैंस से उन्हें हौस्पिटल पहुंचाती है. लाखन मंडल सीएम जेटली से मिल कर अपने बेटे पर हुए हमले का दुखड़ा सुनाता है तो जेटली उस का स्टेटमेंट रिकौर्ड कराता है, जिस में वह दुष्यंत राठौर पर आरोप लगाता है कि उस ने झूठी दिलासा दे कर शरणार्थियों की जमीन धोखे से अपने कब्जे में कर ली. सीएम जेटली इस स्टेटमेंट को सभी टीवी चैनल पर चलवाने का निर्देश देता है.

शनाया और प्रीति की बातचीत से पता चलता है कि शनाया का असली नाम आकांक्षा तिवारी है. मगर इस छोटे से सीन से दर्शकों को समझ नहीं आता कि आखिर आकांक्षा अपना असली नाम क्यों छिपा रही है. रनदीप अक्षय को कुरसी से बांध कर टौर्चर करता है और उस की फोटो जेटली को भेज देता है. इधर अक्षय किसी नुकीली चीज से अपने हाथों में बंधी रस्सी खोल लेता है. दर्शकों के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल है कि बंधे हाथों में वह नुकीली चीज आई कहां से. 

अक्षय और रनदीप के बीच हाथापाई होती है, तभी रनदीप की पिस्टल गिर जाती है, जिसे अक्षय उठा कर उस के ऊपर तान देता है. उसी समय जेटली भी वहां पहुंचता है और गोली चलने की आवाज आती है. यह सस्पेंस बना रहता है कि रनदीप पर गोली किस ने चलाई. कोर्ट में निखिल मेहरा के केस की सुनवाई हो रही है. मजिस्ट्रैट निखिल की मां श्वेता और पिता हरीश के पक्ष को सुनते हैं, जहां मां निखिल के असहनीय दर्द और बीमारी का कोई इलाज न होने की बात कह कर इच्छा मृत्यु मांगती है तो वहीं पिता उसे जिंदा रखने की बात रखता है. मजिस्ट्रैट यह कह कर एक हफ्ते का वक्त मांगता है कि हिंदुस्तान में अभी तक इच्छामृत्यु के पक्ष में कोई फैसला नहीं हुआ है.

कोर्ट में दुष्यंत अतीसा केस की सुनवाई में निहारिका की जगह हड़बड़ी में देर से शनाया पहुंचती है और जज उसे बताता है कि जोया ने एक गवाह एंड किया है. इस पर शनाया वक्त मांगती है तो जज सुनवाई टाल देता है. कोर्टरूम से बाहर निकल कर शनाया दुष्यंत से उस गवाह आरती भटनागर के बारे में पूछती है तो पता चलता है कि आरती दुष्यंत की कालेज में क्लासमेट रही है, जिस के साथ दुष्यंत ने मारपीट की थी. 

निहारिका अक्षय को ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराती है और अक्षय मीडिया के सामने बयान दे कर बताता है कि रनदीप का खून जेजे ने किया है. यह खबर सुन कर जेजे को दिल का दौरा पड़ता है.

एपीसोड

सातवें एपीसोड का नाम टेबल्स टर्नहै, जो 37 मिनट का है. मुख्यमंत्री जेटली के निवास के सामने लोग तख्तियां लिए जेटली के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं. दिल्ली और मेरठ पुलिस स्थिति पर नजर रख काररवाई करने की बात कर रही है. जेटली जोया और एसके से निहारिका को उस का केस लडऩे को कहते हैं. जोया और एसके के साथ जेटली एक फोटो शेयर करते हुए लिखता है कि जेटली एसोसिएट अब जनार्दन जेटली को रिप्रेजेंट करेंगे तो अक्षय बौखला जाता है.

जोया और निहारिका के बीच जोरदार बहस होती है. निहारिका अतीसा से कुछ सवाल पूछती है, जिस के उत्तर में अतीसा बताती है कि दुष्यंत नशे में धुत हो कर उस की पिटाई करता था और नशा उतरते ही अपने व्यवहार के लिए माफी मांगता. इस वजह से उस ने कभी इस की शिकायत नहीं की. एक फाइल देते हुए अतीसा से आखिरी सवाल पूछने की इजाजत निहारिका जज से मांगती है, जोया विरोध करती है. जज की इजाजत पर निहारिका अतीसा से पूछती है कि वह दुष्यंत की मार सहने के बाद कभी डाक्टर के पास गईं तो अतीसा मना कर देती है. इस पर निहारिका जज को अतीसा की मैडिकल रिपोर्ट पढऩे को कहती है, जिस में डाक्टर ने ऐसी बीमारी डायग्नोस की है, जिस में उस के रक्त का थक्का नहीं जमता. 

निहारिका अतीसा को झूठा साबित कर देती है. तब दुष्यंत को घरेलू हिंसा के केस में बाइज्जत बरी कर देता है. इधर पुनीत अक्षय को समझाता है कि उस की इमेज मीडिया में एक पागल की तरह बन गई है. वह पुनीत की सलाह पर एक यूट्यूबर की मदद से अक्षय के इंटरव्यू को रिकौर्ड कराता है, जिस में जेटली के खिलाफ बहुत सारे सबूत हैं. यही सबूत पुलिस को भी सौंपे जाते हैं. जेटली के खिलाफ मनी ट्रांसफर के सबूत तो हैं, परंतु रनदीप की बौडी न मिलने से जेटली के खिलाफ ऐक्शन नहीं हो रहा. अक्षय मृणालिनी से बात करता है तो दिल्ली पुलिस जेजे को गिरफ्तार कर लेती है.

मृणालिनी के कहने पर अक्षय मेरठ पुलिस स्टेशन जा कर इंसपेक्टर डेनियल शेख से रनदीप की बौडी खोजने की बात कहता है, उसी समय उस का सस्पेंशन और्डर का फोन आ जाता है. केस की जांच दिल्ली पुलिस के हाथों में आ जाती है और वह रनदीप की डैडबौडी खोज निकालती है. कोर्ट में सीएम जेटली के केस की सुनवाई शुरू होने वाली होती है. जज काररवाई शुरू करने के लिए निहारिका को बुलाते हैं. वह बताती है कि वह जेटली की अटर्नी नहीं है. तब जज उसे वकालतनामा दिखाते हुए पूछता है कि ये दस्तखत तो आप के ही हैं. निहारिका आश्चर्य से देखती है. तब पता चलता है कि किसी ने धोखे से उस के हस्ताक्षर वकालतनामा पर करवा लिए हैं.

एपीसोड

43 मिनट के आखिरी एपीसोड का नाम द बर्डन औफ ट्रुथहै. एपीसोड की शुरुआत में जज निहारिका को जेजे का केस न लडऩे पर लाइसेंस रद्द करने की हिदायत देता है. निहारिका के नाम का वकालतनामा के संबंध में शनाया कुछ सफाई देना चाहती है, मगर निहारिका उसे डांट लगाती है. अक्षय भी यह सुन कर नाराज हो जाता है. जेजे निहारिका को बुला कर बताता है कि रनदीप को उस ने नहीं, अक्षय ने मारा है. वह निहारिका को बताता है कि रनदीप उस का बेटा था, मगर उसे वह सब नहीं मिल सका, जो उस का हक था. वह निहारिका से कहता है कि केस तो कोई भी लड़ सकता है, मगर तुम दोनों को डिफेंड करोगी. 

तुम्हारा प्यार गुनहगार को बचाएगा और तुम्हारा ईमान बेकुसूर को न्याय दिलाएगा. कोर्ट में पुनीत और निहारिका की गरमागरम बहस होती है और निहारिका को कोर्ट एक हफ्ते का वक्त देता है. हौस्पिटल आ कर निखिल के पिता उसे क्लीनिकल ट्रायल के लिए बंगलुरु ले जाने की बात कह कर रूम से बाहर निकलते हैं. तभी निहारिका निखिल के पास लगे उपकरण को स्विच औफ करना चाहती है, मगर निखिल की मां वहां आ जाती है. वह निहारिका के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है. निहारिका रूम से जैसे बाहर जाती है, निखिल की मां उस स्विच को बंद कर देती है और कुछ ही क्षणों में निखिल की मौत हो जाती है. बाहर निहारिका की आंखों में आंसू देख कर निखिल के पिता अंदर आते हैं.

शनाया निहारिका के घर जा कर बताती है कि उस का असली नाम आकांक्षा तिवारी है, वह गरीब परिवार से है. वकालत करने के बाद उसे जौब नहीं मिल रही थी, इसलिए उस ने अपना नाम शनाया रख लिया.  जोया को यह सब पता चल गया तो वह ब्लैकमैल करने लगी. जोया के कहने पर ही उस ने जेजे के केस के वकालतनामा पर आप से दस्तखत करवा लिए. निहारिका टीवी चैनल पर एक न्यूज देख रही होती है, जिस में बताया जा रहा है कि दिल्ली की उपराज्यपाल मृणालिनी ने उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को ले कर वहां के मुख्यमंत्री की निंदा की है. एक किसान माधव चौहान कहता है कि जेटली के जाते ही यह सब आरोप लगना शुरू हो गए. किसान तो वही करेगा, जो उस के बापदादा करते आए हैं.

निहारिका जज को एक एफिडेविट दे कर बताती है कि मेरठ के श्याम नगर में रहने वाले उत्कर्ष गुप्ता ने रनदीप से 2 लाख रुपए उधार लिए थे, जो वह चुका नहीं सका. इस वजह से उस ने रनदीप को मार दिया है. निहारिका रनदीप के पास मिले गन और दूसरे सबूत भी अदालत में पेश करती है. कोर्ट दिल्ली पुलिस को उन के खिलाफ घूस का प्रकरण दर्ज करने और उत्कर्ष गुप्ता के खिलाफ रनदीप का मर्डर करने का केस दर्ज करने का निर्देश देता है. कोर्टरूम से बाहर निकलते ही अक्षय निहारिका के पास जा कर जेटली की तरफ इशारा कर कहता कि वह जेल जाएगा.

दिल्ली पुलिस अक्षय को गोली मारने के आरोप में डेनियल को गिरफ्तार कर लेती है. निहारिका की मौजूदगी में अक्षय का अंतिम संस्कार होता है, वहीं पर पुलिस आ कर निहारिका को निखिल के खिलाफ जान से मारने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है. वेब सीरीज का अंत बोरिंग तरीके से दिखाया गया है, जिस में जेल में बीड़ी पीते हुए जेटली को उपदेशक की भूमिका में दिखाया गया है.

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा का जन्म 21 नवंबर, 1987 को भागलपुर बिहार में हुआ था. नेहा शर्मा के पिता अजित शर्मा एक राजनेता हैं, जो भागलपुर से कांग्रेसी विधायक हैं. उन के पिता ने 2024 का लोकसभा चुनाव भागलपुर सीट से लड़ा था, परन्तु उन्हें हार का सामना करना पड़ा. नेहा शर्मा ने अपनी शुरुआती पढाई माउंट कार्मेल स्कूल भागलपुर से कर नैशनल इंस्टीट्यूट औफ फैशन टेक्नोलौजी (हृढ्ढस्नञ्ज) से फैशन डिजाइन की पढ़ाई की थी. नेहा शर्मा ने अपने करिअर की शुरुआत तेलुगू फिल्म चिरुथासे की थी. इस फिल्म में चरण तेज के अपोजिट नजर आई थी. उस ने हिंदी सिनेमा में मोहित सूरी की फिल्म क्रुकसे शुरुआत की थी, जिस में इमरान हाशमी भी था. 

उस की यह पहली फिल्म बौक्स औफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा सकी. इस के बाद वह तेरी मेरी कहानीऔर कौमेडी फिल्म क्या सुपर कूल हैं हममें नजर आई. इस फिल्म में उस के अलावा रितेश देशमुख और तुषार कपूर भी थे. उसे इस फिल्म में अभिनय के लिए आलोचकों से मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली थी. इस के बाद वह कौमेडी लव स्टोरी जयंतु भाई की लवस्टोरी में विवेक ओबराय संग नजर आई और यह फिल्म भी बौक्स औफिस पर बुरी तरह फ्लौप साबित हुई. उस का अब तक हिंदी फिल्मों का करिअर कुछ खास नहीं रहा. साल 2020 में आई फिल्म तान्हाजीउन के करिअर की इकलौती ब्लौकबस्टर फिल्म है. नेहा की आने वाली फिल्म जोगीरा सारा रा राहै, जिस में वह नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ नजर आएगी.

पीयूष मिश्रा

पीयूष मिश्रा का जन्म 13 जनवरी, 1963 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था. पीयूष मिश्रा को उस के पिता की बड़ी बुआ ने गोद लिया था, जिस के बाद उस का नाम प्रियाकांत शर्मा हुआ. पीयूष मिश्रा ने अपनी पढाई कार्मेल कौन्वेंट स्कूल, ग्वालियर से पूरी की थी. बचपन से ही पीयूष सिंगिंग, पेंटिंग और ऐक्टिंग में दिलचस्पी रखता था. ऐक्टिंग के शौक ने उसे नैशनल स्कूल औफ ड्रामा पहुंचा दिया. पीयूष मिश्रा की शादी प्रिया नारायण से हुई, दोनों की मुलाकात वर्ष 1992 में हुई थी.

वर्ष 1986 में नैशनल स्कूल औफ ड्रामा से पास आउट होने के बाद पीयूष ने दिल्ली में ही थिएटर करना शुरू कर दिया. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले पीयूष कई लोकप्रिय थिएटर स्टेज शोज का हिस्सा बना. उस ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा वर्ष 1998 में फिल्म ‘दिल से’ में, इस फिल्म में वह एक सीबीआई इनवैस्टीगेशन औफिसर की भूमिका में नजर आया था. इस के बाद उस ने कुछ खास फिल्मों के डायलौग भी लिखे. पीयूष को हिंदी सिनेमा में पहचान विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ से मिली, इस फिल्म में पीयूष ने काका की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने बेहद सराहा था. इस के बाद पीयूष ने ‘गुलाल’, ‘गैंग औफवासेपुर’ में महत्त्वपूर्ण किरदार निभाया है.

अक्षय ओबेराय

अक्षय ओबेराय भारतीय मूल का एक अमेरिकी अभिनेता है, जो हिंदी फिल्मों में ऐक्टिंग करता है. 2002 की कौमेडी-ड्रामा अमेरिकन चायमें बतौर बाल कलाकार के रूप में अभिनय की शुरुआत की थी, अक्षय ने 2010 में राजश्री प्रोडक्शंस में बनी फिल्म इसी लाइफमें अपनी पहली प्रमुख भूमिका निभाई थी. अक्षय ओबेराय का जन्म पहली जनवरी, 1985 को संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी में हुआ था. अक्षय के पिता कृष्ण ओबेराय, अभिनेता सुरेश ओबेराय के भाई हैं और अक्षय विवेक ओबेराय का चचेरा भाई है. 

अक्षय ने नेवार्क एकेडमी से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और बाल्टीमोर में जोंस हापकिंस विश्वविद्यालय से रंगमंच कला और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की है. उस ने न्यूयार्क शहर में स्टेला एडलर और फिर लौस एंजिल्स में प्लेहाउस वेस्ट में अभिनय प्रशिक्षण पूरा किया. अपनी शिक्षा के दौरान उस ने द एडम्स फैमिलीसे जौन एस्टिन के साथ अभिनय का अध्ययन किया. साथ ही, उस ने ब्रौडवे डांस सेंटर में बैले, जैज और हिपहौप नृत्य का भी अध्ययन किया.

भारत आने के बाद अक्षय ने पृथ्वी थिएटर  में नाटक किए और किशोर नमित कपूर से प्रशिक्षण लिया. फिल्म लाल रंगऔर गुडग़ांवमें दर्शकों ने अक्षय के काम को पसंद किया है. इल्लीगल 3’ में अक्षय ने सीएम के बेटे अक्षय जेटली का किरदार निभाया है. मानसिक रूप से अस्थिर और एक पागल प्रेमी के किरदार में फिट नजर आया है.

 

 

तंत्र साधना के लिए काटा दोस्त का सिर

तथाकथित तांत्रिक परमात्मा तंत्र साधना से अपार दौलत पाने का दावा करता था. इस के लिए उस ने अपने दोस्तों विकास और धनंजय से किसी इंसान का कटा सिर लाने को कहा. 5 लाख रुपए के लालच में विकास और धनंजय अपने दोस्त राजू कुमार की हत्या कर उस का सिर काट कर तांत्रिक परमात्मा के पास ले गए. तांत्रिक ने उस खोपड़ी पर 7 दिनों तक तंत्रमंत्र क्रियाएं कीं. यह सब करने के बाद क्या उन्हें दौलत मिल सकी?

सड़क किनारे जंगल में सुबह करीब साढ़े 6 बजे कुछ लोगों की नजर एक लाश पर गई. उस लाश का सिर कटा हुआ था. इस के बाद जो भी उधर से गुजर रहा था, लाश को देखने लगा. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना गाजियाबाद के थाना टीला मोड़ पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस ने देखा कि पेड़ों के बीच एक सिरकटी लहूलुहान लाश पड़ी है. युवक की उम्र करीब 29-30 वर्ष थी. शव के धड़ से सिर गायब था, जबकि शरीर के शेष अंग मौजूद थे. 

सूचना पर पहुंची पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. टीम ने जांचपड़ताल की. मृतक की नारंगी रंग की शर्ट खून से सनी थी, जबकि वह काला सफेद व लाल पट्टी का लोअर पहने हुआ था. पुलिस ने आसपास के क्षेत्र में उस का सिर तलाशा, लेकिन सिर नहीं मिला. एसीपी सिद्धार्थ गौतम भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस को शव के पास एक गद्दी का कवर भी खून से सना मिला. पुलिस ने शव की पहचान कराने का प्रयास किया, लेकिन  कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की जांच करने के बाद ऐसा लग रहा था कि उस युवक की हत्या कहीं और करने के बाद शव वहां डाला गया था. 

पुलिस टीम को मृत युवक के दाहिने हाथ पर कुछ लिखा मिला, जो समझ में नहीं आ रहा था. इस के अलावा बाएं हाथ पर किसी नुकीली चीज से काटने के निशान थे. दोपहर को फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंची और जांच की, लेकिन कोई अहम सुराग नहीं मिला. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. यह घटना गाजियाबाद जिले के टीला मोड़ थाने से करीब एक किलोमीटर दूर लोनी भोपुरा इलाके में 22 जून, 2024 को घटी थी.

डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी सिद्धार्थ गौतम के निर्देशन में 6 पुलिस टीमों का गठन किया. सभी टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. पुलिस टीमों ने इस सनसनीखेज वारदात के खुलासे के लिए घटनास्थल के निकट के इलाके को खंगालना शुरू किया. पुलिस ने दिल्ली के 161 थानों से भी लापता व्यक्तियों के बारे में जानकारी हासिल की, लेकिन उन थानों में इस हुलिए के किसी युवक की गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. 

पुलिस टीम को हाथ पर बने टैटू से सुराग मिलने की संभावना थी. जांच के दौरान टीम ने दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आसपास के थानों में भी दर्ज गुमशुदगी के रिकौर्ड खंगालने शुरू कर दिए, लेकिन पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. पुलिस ने मृतक की फोटो लगे पैंफ्लेट गाजियाबाद और दिल्ली के सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा कर दिए थे. उन्हीं पैंफ्लेट को देख कर दिल्ली के ताहिरपुर का रहने वाला गणेश थाना टीला मोड़ पहुंचा.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के साले का 29 साल का बेटा राजू कुमार अचानक 15 जून, 2024 को लापता हो गया. राजू बिहार के मोतिहारी जिला के पिपरा थाना का निवासी था. राजू के मातापिता का निधन हो चुका है. वह उन के साथ ही दिल्ली में ताहिरपुर में रहता था. राजू चाटपकौड़ी का ठेला कमला मार्केट में लगाता था. रात तक जब वह घर वापस नहीं आया, तब उन्हें चिंता हुई. अब सवाल था कि राजू बिना बताए कहां गायब हो गया? उन्होंने इस की संबंधित पुलिस थाने में जा कर शिकायत की, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहींं की और जांच का आश्वासन दे कर घर लौटा दिया था. 

हत्यारों तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया. शुरुआती छानबीन के दौरान तुलसी निकेतन में एक बहुमंजिला इमारत की आठवीं मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में एक धुंधली फुटेज हाथ लगी, जिस में एक आटो की हैड व टेल लाइट और पीछे लाल रंग के 2 ट्रायंगल रिफ्लेक्टर नजर आए थे. अब पुलिस ने उस आटो को तलाशना शुरू कर दिया. इस दौरान पुलिस सैकड़ों आटो चैक किए. पुलिस की डेढ़ महीने की मेहनत आखिर रंग लाई और पुलिस ने धुंधली फुटेज से तसवीर साफ कर उस आटोचालक के पास पहुंच गई और उस के आटो को बरामद कर लिया. पुलिस उसी आटो के आधार पर आरोपियों तक जा पहुंची.

आगे की जांच करते हुए पुलिस ने बिहार के मोतिहारी से हत्याकांड में शामिल 2 आरोपियों को 16 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार कर लिया. इन में 24 वर्षीय विकास उर्फ मोटा निवासी गली नंबर-1,  ताहिरपुर, दिल्ली तथा उस का साथी 28 वर्षीय धनंजय निवासी कमला मार्केट, दिल्ली जो मूलरूप से हुसैनी, थाना डुमरिया घाट जिला मोतिहारी, बिहार का निवासी है, शामिल थे. जबकि तीसरा मुख्य आरोपी  विकास उर्फ परमात्मा निवासी मोतिहारी बिहार फरार हो गया. 

पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए नेपाल भाग गया है. इस वीभत्स हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने घटना के पौने 2 माह बाद आखिर कर दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर पुलिस वालों के भी रोंगटे खड़े हो गए. पता चला कि तीनों दोस्तों ने तंत्रमंत्र के जरिए अमीर बनने के लिए राजू नाम के युवक की हत्या कर दी थी. पुलिस ने गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों के कब्जे से आलाकत्ल छुरियां, आटोरिक्शा, ईरिक्शा आदि बरामद कर लिए.

5 लाख के लालच में काटा सिर

आरोपी विकास उर्फ मोटा अपने मामा मुन्ना निवासी गोकुलधाम सोसाइटी शालीमार गार्डन, गाजियाबाद का आटो किराए पर ले कर चलाता था. कुछ महीने पहले उस की मुलाकात धनंजय से हुई थी. धनंजय नई दिल्ली के कमला मार्केट निवासी अपने मामा रंजीत और रणधीर साहनी के पास रह कर खाना बनाने का ठेला लगाता था. विकास उर्फ मोटा धनंजय के ठेले पर खाना खाने के लिए आता था. इस के चलते उस की उस से दोस्ती हो गई. उसी के माध्यम से धनंजय की परमात्मा से मुलाकात हुई. परमात्मा ईरिक्शा चालक था. वह कमला मार्केट के पास किराए के कमरे में रहता था. वह इन दोनों से तंत्रमंत्र विद्या और टोनेटोटके से रुपए कमाने के साथ ही सब कुछ हासिल करने की बात कहता रहता था.

परमात्मा ने धनंजय और विकास को एक दिन बताया कि वे तंत्र विद्या के जरिए बहुत पैसा कमा सकते हैं. उसे तंत्र विद्या करनी आती है. एक दिन तुम दोनों को भी बहुत पैसे मिलेंगे. परमात्मा ने दोनों को जल्द अमीर बनने का सपना दिखाया. उस ने कहा कि इस के लिए एक काम करना होगा. तुम दोनों को ऐसे अनाथ व्यक्ति की तलाश करनी होगी, जिस की हत्या कर के उस की खोपड़ी काटने के बाद उस खोपड़ी पर तंत्र क्रिया की जा सके. परमात्मा ने धनंजय से अनाथ युवक को तलाश करने के लिए 5 लाख रुपए देने का लालच भी दिया. 

रुपयों के लालच में धनंजय और विकास उर्फ मोटा एक साथ ऐसे युवक की तलाश करने लगे. इस दौरान धनंजय ने अपने पड़ोसी और दोस्त राजू कुमार, जो उस के साथ ही चाटपकौड़े का ठेला लगाता था, को निशाना बनाने के लिए अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. राजू नशा करने का आदी था. इस का धनजंय और विकास ने फायदा उठाया. कई दिनों तक विकास और धनंजय ने राजू के साथ शराब पी. 15 जून, 2024 को दोनों राजू को शराब का लालच दे कर तथाकथित तांत्रिक परमात्मा के कमरे पर ले गए. वहां 6 दिन तक उसे शराब पिलाते रहे. उसे घर तक नहीं जाने दिया. सातवें दिन यानी 21-22 जून की दरमियानी रात को राजू की उन्होंने गमछे से गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद शव को पंखे से लटका दिया. 

शव को छिपाने के लिए तीनों ने रात करीब ढाई बजे विकास उर्फ मोटा के आटो में शव को रखा और टीला मोड़ थाना क्षेत्र की पंचशील कालोनी ले कर गए. पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से उन्होंने आटो को एक सुनसान जगह पर सड़क किनारे खड़ा किया और मीट काटने वाली छुरी से राजू का सिर काट कर अलग कर दिया. फिर उस के धड़ को जंगल में फेंक  दिया. तीनों ने राजू के कटे सिर को प्लास्टिक की बाल्टी में रखा और आटो में बैठ कर वापस दिल्ली आ गए.

कटे सिर पर 7 दिनों तक करते रहे तंत्रक्रिया

हत्या करने के बाद तीनों आरोपियों ने हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं. परमात्मा के दिल्ली के कमला मार्केट स्थित कमरे पर चाकू से उन्होंने उस की आंखें निकालीं, फिर नाक, कान काट कर खोपड़ी की पूरी तरह खाल उतार दी. राजू की खोपड़ी के साथ परमात्मा ने काला टीका लगा कर व काले कपड़े पहन कर तंत्र साधना शुरू की. उस ने मानव खोपड़ी पर तंत्रमंत्र विद्या से पैसे कमाने का तरीका आजमाया. वह कुछ घंटे प्रयास के बावजूद सफल नहीं हुआ. लेकिन उस ने हार नहीं मानी और लगातार 7 दिनों तक वह तंत्र साधना करता रहा, फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.  

इस के बाद उस ने अपने दोनों साथियों से कहा कि खोपड़ी पर चोट का निशान है. यह क्रैक हो गई है. इसलिए यह खोपड़ी तंत्र साधना के लायक नहीं है. तुम लोगों को दूसरी मानव खोपड़ी लानी होगी. खोपड़ी को 7 दिनों तक कमरे में रखने से दुर्गंध आने लगी थी, तब तांत्रिक परमात्मा खोपड़ी ले कर भाग गया और उसे दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के पास नाले में फेंक आया. अस्पताल के नाले में खोपड़ी को फेंकने की बात उस ने अपने दोनों साथियों को बताई.

आंखें निकाल कर खेले कंचे

इस घटना से 1994 की फिल्म अंदाज अपना अपनाकी याद आ जाती है. इस फिल्म में क्राइम मास्टर गोगो के किरदार में शक्ति कपूर का फेमस डायलौग था, आंखें निकाल कर गोटियां खेलूंगा.’ इन आरोपियों ने इस डायलौग को हकीकत में बदल दिया. तंत्रमंत्र क्रिया के दौरान राजू के कटे सिर से आंखें निकालने के बाद उन से तांत्रिक क्रिया करते हुए कंचे (गोटियां) भी खेले. इस बात की जानकारी पकड़े गए दोनों आरोपियों धनंजय व विकास उर्फ मोटा ने पुलिस को दी. 5 लाख रुपए का लालच दे कर परमात्मा ने जिंदा मानव की खोपड़ी लाने की बात कह कर एक निर्दोष युवक की हत्या करा दी. इस हत्याकांड का खुलासा करने व आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को पुलिस कमिश्नर (गाजियाबाद) अजय कुमार मिश्र की ओर से 25 हजार रुपए का तथा डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल की ओर से 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई है. 

पुलिस पूछताछ में विकास और धनंजय ने बताया कि मुख्य आरोपी परमात्मा ने राजू की खोपड़ी को दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के नाले में फेंक दिया था. उस के साथ उस की आंखें, नाक, कान और बाल भी थे.  इस तथ्य के सामने आने के बाद टीला मोड़ पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से नाले की सफाई कराई, लेकिन कई घंटे के प्रयास के बाद भी टीम को सफलता नहीं मिली. एसीपी सिद्धार्थ गौतम ने बताया, परमात्मा ने अपने एक परिचित के पास अपना ईरिक्शा 35 हजार रुपए में गिरवी रख दिया था. उस के बाद वह अपना मोबाइल बंद कर फरार हो गया. 

राजू कुमार की हत्या के बाद दोनों हत्यारोपी धनंजय और विकास एकदूसरे से मिलते थे. दोनों ने इस बीच परमात्मा से भी मिलने का प्रयास किया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. पुलिस ने यदि मृतक राजू कुमार के फूफा गणेश की बात को गंभीरता से लेते हुए 15 जून, 2024 को राजू के लापता होने पर उन के द्वारा शिकायत करने पर राजू की गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू कर दी होती तो शायद राजू की जान बच सकती थी. क्योंकि उस की हत्या 21-22 जून की रात को की गई थी. ये लालच था जल्दी अमीर बनने का और इस लालच ने एक निर्दोष दोस्त को ऐसी मौत दी, जिसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. पैसे पाने का सपना पाले हत्यारे दोस्तों के हाथ यहीं नहीं कांपे, उन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. इन के इस जघन्य अपराध ने दोस्ती को भी शर्मसार कर दिया. 

पुलिस ने दोनों आरोपियों विकास उर्फ मोटा और धनंजय को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं पुलिस मुख्य आरोपी काला जादू करने वाले तथाकथित तांत्रिक परमात्मा की तलाश में जुटी थी. अपनी किस्मत बदलने की चाहत में एक निर्दोष को बलि का बकरा उस के ही वहशी बने दोस्तों ने बनाया. लेकिन तंत्र साधना के चक्कर में पड़ कर दोस्त की जान लेने पर भी उन्हें धन तो नहीं मिला. हां, जेल की सलाखों के पीछे जरूर जाना पड़ा.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

इश्क में अंधी मां ने कराया बेटे का मर्डर

पति की मौत के बाद आरफा बेगम की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी. शादीशुदा बेटे मोहम्मद नदीम (30 वर्ष) ने भी पूरी तरह अब्बू का बिजनैस संभाल लिया था. लेकिन इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आरफा बेगम अपने इकलौते बेटे नदीम की कातिल बन गई? उस ने 25 लाख की सुपारी दे कर आंखों के तारे, राजदुलारे की क्रूरता से हत्या करा दी.

सचमुच कुएं में पानी पर एक लाश उतरा रही थी. इस के बाद तो जिस ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर के पास स्थित उस कुएं की तरफ चल दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की भीड़ वहां जमा हो गई. इसी बीच किसी व्यक्ति ने फोन के जरिए कुएं में लाश पड़ी होने की सूचना थाना अजगैन पुलिस को दे दी. यह बात 5 जून, 2024 की सुबह की थी.

सूचना पाते ही एसएचओ अवनीश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए. रवाना होने से पूर्व उन्होने प्राप्त सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. कुछ देर बाद ही अवनीश कुमार सिंह घटनास्थल पहुंच गए. वह भीड़ को परे हटाते कुएं के पास पहुंचे और झांक कर देखा तो सच में कुएं में किसी युवक की लाश उतरा रही थी. कुएं के पास खून फैला था और एक बाइक खड़ी थी. एसएचओ ने अनुमान लगाया कि बाइक या तो मृतक की है या फिर कातिल की होगी. 

चूंकि बाइक के नंबरों से उस के मालिक का पता चल सकता था. अत: उन्होंने आरटीओ औफिस से उस नंबर के संबंध में जानकारी जुटाई. इस जांच में पता चला कि उक्त बाइक का रजिस्ट्रैशन मोहम्मद नदीम निवासी अलहम्द रेजीडेंसी इफ्तखाराबाद थाना अनवरगंज, कानपुर नगर के नाम है. रजिस्ट्रैशन से बाइक के बारे में तो पता च ल गया, लेकिन कुएं में उतराती लाश नदीम की है या किसी और की, बिना शिनाख्त के कहना मुश्किल था. 

इस के बाद पुलिस ने कुएं से लाश बाहर निकलवाई. वहां मौजूद उस युवक की लाश की कोई शिनाख्त नहीं कर सका. पुलिस ने शिनाख्त के लिए नदीम के घर वालों को बुलवा लिया. शव देख कर एक अधेड़ उम्र की महिला फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना नाम आरफा बेगम बताया और कहा कि यह लाश उस के इकलौते बेटे मोहम्मद नदीम की है. घर वालों ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही आरफा बेगम के पति की मृत्यु हुई और अब इकलौता बेटा भी चला गया.

इस के बाद एसएचओ अवनीश सिंह ने शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. उस के सिर व गरदन पर गहरे जख्म थे. उस का मोबाइल फोन व पर्स गायब था. यह सामान या तो कुएं में गिर गया था या फिर कातिल अपने साथ ले गए.

किस ने की नदीम की हत्या

कुछ ही देर में एडिशनल एसपी उन्नाव (दक्षिणी) प्रेमचंद्र तथा सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जहां साक्ष्य जुटाए, वहीं पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने मौके पर मौजूद मृतक की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ की. आरफा बेगम ने बताया कि मोहम्मद नदीम घर से दुकान जाने के लिए कल 2 बजे बाइक से निकला था. जब वह रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस ने उस के मोबाइल फोन पर काल की, लेकिन उस का फोन बंद था. आज उस की लाश मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि नदीम रेडीमेड कपड़ों का कारोबारी था. अनवरगंज में उस की अपनी दुकान है. वह बेहद सीधा था. किसी से लड़ताझगड़ता नहीं था. उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही लेनदेन का झगड़ा था. पूछताछ के बाद पुलिस ने नदीम के शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव के जिला अस्पताल भेज दिया. वापस थाने आ कर मृतक के मामा ताहिर की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र के निर्देश पर एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की जांच बड़ी बारीकी से शुरू की. उन्होंने सब से पहले एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. इस के बाद उन्होंने मृतक नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए.

लाश उन्नाव जिले के गांव दरबारी खेड़ा के पास मिली थी, इसलिए एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने दरबारी खेड़ा व उसके आसपास के गांवों के कई अपराधी किस्म के लोगों को हिरासत में लिया तथा उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन नदीम की हत्या का सुराग न लगा. इस के अलावा मुखबिर भी कोई खास जानकारी नहीं जुटा पा रहे थे. अब तक एक महीना से ज्यादा का समय गुजर गया था, लेकिन वह नदीम के हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. पुलिस अधिकारी भी जांच टीम पर दबाव बना रहे थे. नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर भी जबतब थाने आ जाते और जवाबसवाल करते.

एक रोज एसएचओ अवनीश कुमार सिंह अपने सहयोगियों के साथ नदीम की हत्या के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक युवती ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह मुसलिम समुदाय की लग रही थी. एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने सहयोगियों को बाहर जाने का इशारा करने के बाद उस युवती को कुरसी पर बैठने को कहा. वह फिर बोले, ”मोहतरमा, आप अपने बारे में बता कर अपनी समस्या बताएं, ताकि हम आप का सहयोग कर सकें.’’

उस युवती ने दाएंबाएं नजर घुमाई फिर बोली, ”हुजूर, मेरा नाम जीनत फातिमा है. मैं मरहूम नदीम की बीवी हूं. छिपतेछिपाते किसी तरह थाने आई हूं. मैं आप को एक ऐसा राज बताने आई हूं, जिस पर शायद आप को यकीन ही न हो.’’

”कैसा राज?’’ इंसपेक्टर अवनीश ने पूछा. 

”यही कि मेरे शौहर की हत्या का राज मेरी सास आरफा बेगम के पेट में छिपा है. मुझे शक है कि उन्होंने ही कोई योजना बना कर मेरे शौहर को मरवाया है.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने एक सरसरी निगाह जीनत फातिमा पर डाली, फिर बोले, ”न जानें क्यों मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है. भला एक मां अपने एकलौते बेटे का कत्ल क्यों कराएगी? फिर भी मैं तुम्हारे शक का कारण जानना चाहता हूं.’’

हुजूर, शक का पहला कारण यह है कि आरफा बेगम मकान व दुकान बेचना चाहती थी, लेकिन मेरे पति इस का विरोध कर रहे थे. इस को ले कर मांबेटे में तकरार होती थी. शक का दूसरा कारण आरफा बेगम की यारी. यानी उस के नाजायज संबंध अजमेर निवासी एक रिश्तेदार से हैं. वह मकानदुकान बेच कर उस के साथ रहना चाहती थी. लेकिन मेरे पति विरोध करते थे. मुझे शक है कि इसी विरोध के चलते सासू अम्मी ने उन का काम तमाम करा दिया.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह सोच में पड़ गए, ”क्या एक मां इतनी बेरहम हो सकती है कि देहसुख के लिए जवान बेटे का कत्ल करा दे?’’

इस के बाद अवनीश कुमार सिंह ने एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र से मुलाकात की और उन्हें पूरी बात बताई. शक के आधार पर उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने का आदेश दिया. यही नहीं उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन भी कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राम नारायण, हैडकांस्टेबल राधेश्याम, कांस्टेबल पवन, अर्पित, सूरजपाल, अरुण कुमार, तथा महिला कांस्टेबल विमल को शामिल किया गया. टीम की बागडोर सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह को सौंपी गई. 

पुलिस टीम ने शक के आधार पर मृतक की मां मोहम्मद आरफा बेगम की निगरानी शुरू कर दी. यही नहीं, आरफा बेगम व मृतक नदीम के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाई. आरफा बेगम की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला. वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करती थी. घटना वाले दिन भी उस ने किसी से बात नहीं की थी. रात 10 बजे उस ने नदीम को फोन किया था. 

लेकिन नदीम के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स में टीम को एक संदिग्ध नंबर मिला. इस नंबर पर नदीम ने 4 जून, 2024 को बात की थी. इस संदिग्ध नंबर की पुलिस टीम ने जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर सलीम पुत्र सिद्ïदीकी निवासी गली न 15 नवल नगर मोहल्ला लौंगिया थाना गंज, जिला अजमेर (राजस्थान) के नाम दर्ज है. संदिग्ध व्यक्ति सलीम पुलिस की रडार पर आया तो टीम उस की टोह में अजमेर जा पहुंची. टीम ने लौंगिया बस्ती में सलीम के घर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार था. पता चला कि वह किसी काम से उत्तर प्रदेश गया है. 

पुलिस टीम तब हाथ मलते हुए वापस लौट आई, लेकिन टीम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी. टीम ने खबरियों का जाल बिछा दिया और स्वयं भी टोह में लग गई. टीम ने उन्नाव के बस अड्ïडा व रेलवे स्टेशन पर निगरानी बढ़ा दी. 

सुपारी किलर ऐसे आया गिरफ्त में

19 जुलाई, 2024 को एसएचओ अवनीश कुमार सिंह को एक मुखबिर से पता चला कि सलीम उन्नाव स्टेशन पर मौजूद है. चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए अवनीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ उन्नाव स्टेशन पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर टीम ने सलीम को दबोच लिया. उस समय वह स्टेशन के बाहर किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था. सलीम को थाना अजगैन लाया गया. यहां पुलिस टीम ने उस से नदीम की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो उस ने नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. 

उस ने बताया कि कानपुर निवासी कपड़ा कारोबारी मोहम्मद नदीम की हत्या उस ने ही पैसों के लालच में चाकू से गोद कर की थी तथा शव को कुएं में फेंक दिया था. उस ने यह भी बताया कि हत्या की साजिश नदीम की मां आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली निवासी कोडरा पसन नगर, थाना किशनगंज जिला अजमेर (राजस्थान) ने रची थी. उन्होंने ही नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख रुपए में उसे दी थी. 15 लाख रुपए उसे नकद दिया था. शेष रुपए काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया था. शेष रुपए ही वह लेने आया था, लेकिन पकड़ा गया. इस के बाद सलीम ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने मांस तिराहे के पास पन्नी में लपेट कर छिपा दिया था. 

सलीम को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली को भी गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों ने जब सलीम को हवालात में देखा तो समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं. अत: उन दोनों ने भी सहज में ही नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने नदीम की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर नदीम की हत्या का खुलासा किया. 

पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सलीम, हासम अली तथा आरफा बेगम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी मां की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने जवान बेटे को ही सुपारी दे कर कफन में लपेट दिया. कानपुर महानगर के अनवरगंज थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है-इफ्तखाराबाद. मुसलिम बाहुल्य इस मोहल्ले में ज्यादातर लोग व्यापार करते हैं. कोई कपड़े का व्यापार तो कोई लकड़ी का. कोई चमड़े का तो कोई मांसमछली का व्यापार करता है. घनी आबादी वाले इसी मोहल्ले में मोहम्मद नईम सपरिवार रहते थे. 

अलहम्द रेजीडेंसी में उन का निजी मकान था. उन के परिवार में पत्नी आरफा बेगम के अलावा एक बेटी आलिया तथा बेटा मोहम्मद नदीम था. मोहम्मद नईम रेडीमेड कपड़ा कारोबारी थे. अनवरगंज में उन की दुकान थी. बड़ी बेटी आलिया का वह निकाह कर चुके थे. मोहम्मद नदीम उन का इकलौता बेटा था. इसलिए वह सभी का दुलारा था. नदीम बचपन से ही तेज दिमाग था. वह जिद्ïदी व हठी भी था. उस के जिद्ïदी स्वभाव के कारण उस की अम्मी आरफा बेगम परेशान रहती थी. वह शौहर को उलाहना भी देती कि उन्होंने नदीम को बिगाड़ दिया है. 

नदीम का मन पढ़ाई में कम और गिल्लीडंडा खेलने में ज्यादा लगा रहता था. इस से नईम चिंतित रहते थे. जैसेतैसे नदीम ने 10वीं तक पढ़ाई की. फिर उस का मन पढ़ाई से उचट गया. नदीम कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, इसलिए नईम ने उसे अपने कपड़ा व्यवसाय में लगा लिया. नदीम अब अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर जाता और दुकानदारी के गुर सीखता. मोहम्मद नदीम अब तक जवान हो चुका था और दुकान भी संभालने लगा था. इसलिए मोहम्मद नईम ने जुलाई, 2020 में उस का विवाह जीनत फातिमा नाम की लड़की से कर दिया.

जीनत फातिमा के अब्बू मोहम्मद कासिम बाकरगंज (बाबूपुरवा) कानपुर में रहते थे. बाकरगंज बाजार में उन की भी कपड़े की दुकान थी. अच्छा घरवर पा कर जीनत फातिमा भी खुश थी. घर में किसी चीज की कमी न थी और बेहद चाहने वाला शौहर मिला था. हंसीखुशी से दिन बीतते अभी एक साल ही बीता था कि नईम ऐसे बीमार पड़े कि उन्होंने खाट पकड़ ली. नदीम ने उन का कई डाक्टरों से इलाज कराया, लेकिन वह बच न पाए. आखिर उन्होंने दम तोड़ ही दिया. 

शौहर की मौत पर आरफा बेगम ने खूब आंसू बहाए. किसी तरह नदीम ने मां को संभाला. ताहिर ने भी बहन को समााया. तब कहीं जाकर वह सामान्य हुई. अब्बू के जाने का नदीम को भी बड़ा सदमा पहुंचा. उस ने अब्बू के गुजर जाने के बाद नदीम ने दुकान और घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. बीवी ने भी उस का साथ दिया.

आरफा बेगम की तन्हाइयां कैसे हुईं दूर

कहते हैं वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. आरफा बेगम भी पति की मौत का गम भूल चुकी थी. बेटाबहू अपनी जिंदगी जी रहे थे और वह तन्हाइयों में जी रही थी. अकेलापन उसे बहुत खलता था. उन्हीं दिनों एक रोज हासम अली आरफा बेगम के घर आया. वह उस के मरहूम शौहर नईम का दोस्त व रिश्तेदार था. पहले भी वह घर आ चुका था. हासम अली, अजमेर (राजस्थान) शहर के कोडरा पसन नगर का रहने वाला था. वह कपड़ा व्यापारी था. दोनों में जानपहचान पहले से थी. इसलिए आरफा बेगम ने उस की खूब मेहमाननवाजी की. हासम अली ने दोस्त के गुजर जाने का दुख जताया और आरफा बेगम को धैर्य बंधाया. इस के बाद उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

आरफा बेगम के घर आतेजाते दोनों के बीच नजदीकियां बढऩे लगीं. उन के बीच छेड़छाड़ और हंसीमजाक भी होने लगी. दोनों तन्हा जिंदगी जी रहे थे. इसलिए दोनों को ही साथी चाहिए था. सो एक रात जब बेटाबहू सो गए, तब हासम अली आरफा बेगम के कमरे में पहुंचा और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. आरफा बेगम भी फिसल गई. फिर दोनों ने ही अपनी हसरतें पूरी कीं. उन के बीच नाजायज रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता ही गया. अधेड़ उम्र की बेवा आरफा बेगम के जीवन में अब बहार आ गई थी. वह हासम अली पर दिलोजान से फिदा हो गई थी. हासम भी उस का दीवाना था. हासम अली अब होटल में भी रुकने लगा था. आरफा को वह होटल में ही बुला लेता था. 

उधर नदीम की बीवी जीनत फातिमा ने अनुभव किया कि जब से हासम अली घर आने लगा, तब से सासू मां की चालढाल में बदलाव आ गया है. क्योंकि अब वह सजसंवर कर रहने लगी थी और चेहरा खिलाखिला सा रहने लगा था. एक रात जीनत फातिमा बाथरूम जाने को उठी तो उस ने सासू आरफा बेगम के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनीं. वह कमरे के अंदर तो नहीं गई, लेकिन समझ गई कि सासूमां हासम अली के साथ मौजमस्ती में डूबी हुई है. अब वह सासू की चालढाल व संजनेसंवरने का मकसद समझ चुकी थी.

सुबह नाश्ते के समय जीनत फातिमा ने नाजायज रिश्तों की बात शौहर नदीम को बताई तो वह नाराज होते हुए बोला, ”जीनत, तुम उन दोनों की उम्र का लिहाज करो. हमारी मां को बदनाम करोगी तो मैं सहन नहीं करूंगा. तुम अपनी गलती सुधारो.’’ नदीम ने बीवी की बातों पर यकीन नहीं किया और उसे फटकार लगाई तो वह रूठ कर मायके चली गई. कुछ दिन बाद मिन्नतें कर नदीम उसे वापस घर लाया. उस के बाद उस ने चुप्पी साध ली. 

इधर आरफा बेगम हासम अली की मोहब्बत में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने दुकानमकान बेच कर हासम अली के साथ रहने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत हासम अली से बात की तो वह उसे अपने साथ अजमेर ले जाने को राजी हो गया. वह तो चाहता ही था कि आरफा बेगम सदैव उस के साथ रहे.
इकलौते बेटे को मरवाने का क्यों आया विचार

एक रोज आरफा बेगम ने दुकानमकान बेचने की चर्चा बेटे नदीम से की तो वह मां पर भड़क उठा. उस ने साफ कह दिया कि वह पैतृक संपत्ति बेच कर दूसरे शहर बसने नहीं जाएगा. उस ने यह भी कहा कि वह किसी के बहकावे में न आए, वरना कुछ भी हो सकता है. इस के बाद तो आए दिन मांबेटे के बीच संपत्ति बेचने को ले कर झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बड़ जाता कि नदीम घर के बजाय दुकान पर सोने चला जाता. 

आरफा बेगम जब समझ गई कि नदीम दुकानमकान नहीं बेचने देगा और वह उस के प्यार में भी बाधा बन सकता है तो उस ने उसे अपने आशिक हासम अली के साथ मिल कर इकलौते बेटे को ही रास्ते से हटाने का निश्चय किया. आरफा बेगम ने इस बाबत हासम से बात की तो वह राजी हो गया. उस ने आरफा से कहा, ”तुम रकम तैयार करो. हम सुपारी किलर को सुपारी दे कर नदीम को रास्ते से हटवा देंगे. इस की किसी को कानोकान खबर भी न होगी.’’

हासम अली की जानपहचान सुपारी किलर मोहम्मद सलीम से थी. वह अजमेर नवल नगर मोहल्ला लौंगिया का रहने वाला था. हासम अली ने सलीम से बात की और नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख में दे दी. सुपारी देने की बात हासम अली ने आरफा बेगम को बताई. आरफा बेगम ने तब अपने इकलौते बेटे को मरवाने के लिए 25 लाख रुपया हासम अली को दे दिए. इस रकम में से 15 लाख रुपया हासम अली ने सलीम को दे दिए. शेष काम होने के बाद देने को कहा. 

रकम मिलने के बाद सलीम 3 जून, 2024 को कानपुर शहर आ गया. वह परेड के एक साधारण होटल में रुका. सुपारी किलर के पहुंचने की जानकारी तथा उस का मोबाइल नंबर हासम अली ने आरफा बेगम को बता दिया. 4 जून, 2024 की दोपहर आरफा बेगम ने बेटे नदीम से कहा कि एक रिश्तेदार बाहर से आए हैं. वह परेड पर हैं. उन्हें शहर घुमा दो. नदीम ने पहले तो नानुकुर की फिर मान गया. उस की बीवी जीनत फातिमा एक सप्ताह से मायके में थी, सो वह निश्चिंत था. नदीम तैयार हुआ फिर अपनी बाइक से परेड के लिए निकल पड़ा. जाने से पहले उस ने मां से रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया था. वह कोई रिश्तेदार नहीं, बल्कि उस की मौत बन कर आया सलीम था.

परेड चौराहा पर पहुंच कर उस ने रिश्तेदार को काल की तो वह चौराहे पर ही मिल गया. दोनों में बातचीत हुई फिर सलीम ने कहा, ”मुझे देवा शरीफ ले चलो. वहां जाने की बड़ी इच्छा है. तुम पेट्रोल की चिंता मत करो.’’ इस के बाद लखनऊ होते हुए शाम को वह देवा शरीफ पहुंच गए. वहां दोनों घूमेफिरे, फिर वापस कानपुर को चल पड़े.  लखनऊ पहुंचने तक रात के 10 बज गए थे. यहां दोनों ने खाना खाया. फिर कानपुर की ओर निकल पड़े. इस बीच दोनों खूब हिल मिल गए थे. रात 11 बजे के लगभग सलीम व नदीम दरबारी खेड़ा गांव पहुंचे. यह गांव उन्नाव जिले के अजगैन थाना अंतर्गत आता है. हाइवे रोड किनारे एक वीरान मंदिर था. मंदिर के पास ही एक कुआं था.

समीप सलीम ने बाथरूम (पेशाब) के बहाने बाइक रुकवा दी. सलीम बाथरूम करने चला गया और नदीम बाइक की सीट पर बैठ कर मोबाइल देखने लगा. उचित मौका देख कर सलीम ने चाकू निकाला और पीछे से नदीम के सिर पर चाकू से 2 प्रहार किए. नदीम जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. इस के बाद सलीम ने उस के गले व गरदन पर चाकू के प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद शव कुएं में फेंक दिया. फिर बाइक कुएं पर ही छोड़ कर फरार हो गया. चाकू को उस ने फरार होते समय मांस फैक्ट्री तिराहे के पास फेंक दिया था. 

इधर सुबह दरबारी खेड़ा के कुछ लोग खेतों की तरफ गए तो उन्होंने कुएं में उतराती लाश देखी. उन्होंने थाना अजगैन पुलिस को सूचना दी. 21 जुलाई, 2024 को पुलिस ने आरोपी आरफा बेगम, मोहम्मद सलीम व हासम अली को उन्नाव कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. 

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

25 लाख के लिए प्रेमी से पति का कराया मर्डर

जब प्रेमी के चक्कर में फंसी पत्नी पति की दुश्मन बन जाए तो उसे कौन बचा सकता है? प्रतिभा ने प्रेमी ऋषि के साथ मिल कर पति के साथ यही किया, लेकिन…   

कृष्णा आगरा के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले मधुनगर इलाके में अपने मांबाप और भाई अवनीत के साथ रहता था. इटौरा में उस की स्टील रेलिंग की दुकान थी जो काफी अच्छी चल रही थी. कृष्णा की अभी शादी नहीं हुई थी. उस की शादी के लिए जिला मैनपुरी के कस्बा बेवर की युवती प्रतिभा से बात चल रही थी. कृष्णा ने अपने परिवार के साथ जा कर लड़की देखी तो सब को लड़की पसंद गई. देखभाल के बाद शादी की तारीख भी नियत कर दी गई. फिर हंसीखुशी से शादी हो गई. नई दुलहन को सब ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन कृष्णा की मां ने महसूस किया कि दुलहन के चेहरे पर जो खुशी होनी चाहिए थी, वह नहीं है. जबकि कृष्णा बहुत खुश था. मां ने सोचा कि प्रतिभा जब घर में सब से घुलमिल जाएगी तो ठीक हो जाएगी.

हफ्ते भर बाद जब सारे रिश्तेदार अपनेअपने घर चले गए तो प्रतिभा का भाई उसे लेने के लिए गया. किसी ने भी इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया कि प्रतिभा आम लड़कियों की तरह खुश क्यों नहीं है. वह भाई के साथ पगफेरे के लिए चली गई और 4-6 दिन बाद कृष्णा उसे फिर ले आया. इस के बाद कृष्णा की पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई. इसी बीच आगरा की आवासविकास कालोनी का रहने वाला ऋषि कठेरिया उस की दुकान पर आनेजाने लगा. ऋषि ठेके पर मकान बना कर देता था. धीरेधीरे कृष्णा का ऋषि के साथ व्यापारिक संबंध जुड़ने लगा. ऋषि कृष्णा को स्टील रेलिंग के ठेके दिलवाने लगा

दूसरी ओर प्रतिभा का व्यवहार परिवार वालों की समझ में नहीं रहा था. वह जबतब मायके जाने की जिद करने लगती तो सास उसे समझाती कि शादी के बाद बारबार मायके जाना ठीक नहीं है, ससुराल की जिम्मेदारियां भी संभालनी होती हैं. एक दिन प्रतिभा ने कृष्णा से कहा कि उसे अपने मांबाप की याद रही है, वह अपने मायके जाना चाहती है. इस पर कृष्णा ने कहा कि जब उसे फुरसत मिलेगी, वह उसे छोड़ आएगाठीक उसी समय प्रतिभा के मोबाइल पर किसी का फोन आया तो प्रतिभा ने फोन यह कह कर काट दिया कि वह फिर बात करेगी. लेकिन मायके जाने की बात पर वह अड़ी रही. आखिर कृष्णा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी कर लो, मैं तुम्हें कल तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा.’’

अगले दिन घर वालों की इच्छा के खिलाफ कृष्णा उसे ससुराल ले गया. बस में बैठते ही प्रतिभा का मूड एकदम बदल गया. अब वह काफी खुश थी. शादी के 4 महीने बाद भी कृष्णा अपनी पत्नी के मूड को समझ नहीं पाया था. पर कृष्णा की मां की समझ में यह बात अच्छी तरह आ गई थी कि बहू कुछ तो उन से छिपा रही है. प्रतिभा ने मायके जाने से पहले फोन द्वारा किसी को खबर तक नहीं दी थी. अत: जब वह मायके पहुंची तो उसे देख कर उस की मां हैरान हो कर बोली, ‘‘अरे दामादजी, आप अचानक ही… फोन कर के खबर तो कर दी होती.’’ इस से पहले कि कृष्णा कुछ कहता प्रतिभा बोली, ‘‘मम्मी, हमारा फोन खराब था, इसलिए खबर नहीं कर पाई.’’

कृष्णा पत्नी की इस बात पर हैरान था कि प्रतिभा मां से झूठ क्यों बोली. उस ने महसूस किया कि उस की सास लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े हुए थे. पत्नी को मायके छोड़ने के बाद कृष्णा जैसे ही आगरा वापस जाने के लिए घर से निकला तो उसे ऋषि दिख गया. उस ने पूछा, ‘‘अरे ऋषि, तुम यहां कैसे?’’ ‘‘मैं गुप्ताजी से मिलने आया हूं.’’ उस ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘वह रहा गुप्ताजी का घर.’’

‘‘अरे वो तो प्रतिभा के चाचा का घर है.’’ कृष्णा बोला.

‘‘हां, वही गुप्ताजी. मेरे पुराने जानकार हैं.’’ ऋषि ने कहा. कृष्णा हैरान था. तभी उस ने पूछा, ‘‘तब तो तुम यह भी जानते होगे कि गुप्ताजी के बड़े भाई मेरे ससुर हैं?’’

‘‘हांहां जानता हूं, प्रतिभा उन की ही तो बेटी है.’’ ऋषि ने लापरवाही से कहा.

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे पहले कभी नहीं बताई.’’ ऋषि ने पूछा.

‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.’’ ऋषि ने  कहा तो कृष्णा ने मुड़ कर प्रतिभा को देखा. शक का एक कीड़ा उस के दिमाग में घुस चुका था. उस ने सामने से जाते हुए ईरिक्शा को रोका और बसअड्डे पहुंच गया. रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि यदि ऋषि का प्रतिभा के चाचा के घर आनाजाना था तो यह बात उस ने या प्रतिभा ने उसे क्यों नहीं बताई. उस के जेहन में यह बात भी खटकने लगी कि मां ने उसे एकदो बार बताया था कि ऋषि उस की गैरमौजूदगी में भी कई बार उस के घर आया था. यह बातें सोच कर वह काफी तनाव में आ गया. 

अभी तक तो वह यह समझ रहा था कि नईनई शादी होने की वजह से प्रतिभा को मायके वालों की याद आती होगी, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा होगा, लेकिन अब उसे लगने लगा कि उस का जल्दीजल्दी मायके आने का कोई और ही मकसद है. इसी तनाव में वह घर पहुंचा तो मां ने छूटते ही कहा, ‘‘बेटा, तेरी बीवी के रंगढंग हमें समझ नहीं रहे. उस का रोजरोज मायके जाना ठीक नहीं है.’’ उस समय कृष्णा ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि अभी उसे केवल शक ही था, जब तक वह मामले की तह तक नहीं पहुंचता तब तक घर में बता कर बेकार का फसाद फैलाना ठीक नहीं था.

हफ्ते भर बाद वह पत्नी को मायके से लिवा लाया. कुछ दिन बाद पता चला कि प्रतिभा गर्भवती है. पिता बनने की चाह में कृष्णा के मन की कड़वाहट पिघलने लगी. लेकिन उस ने अब ऋषि से घुलमिल कर बातें करनी बंद कर दीं. इधर ऋषि भी समझ गया था कि कृष्णा के तेवर कुछ बदले हुए से हैं, इसलिए वह भी सतर्क हो गया. शक का कीड़ा जो कृष्णा के दिमाग में रेंग रहा था, वह उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था. वह अपनी परेशानी किसी को बता भी नहीं सकता था. एक दिन कृष्णा के बहनबहनोई घर आए तो बहनोई ने बातों ही बातों में कृष्णा से पूछा, ‘‘आजकल लगता है दुकान पर तुम्हारा मन नहीं लगता. क्या कोई परेशानी है?’’

‘‘नहीं जीजाजी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल तबीयत कुछ ठीक नहीं है.’’ कृष्णा ने जवाब दिया.

‘‘लगता है, प्रतिभा तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखती.’’ बहनोई ने पूछा तो कृष्णा की मां ने कह दिया, ‘‘अरे दामादजी, खयाल तो वो तब रखे जब उसे मायके आनेजाने से फुरसत मिले.’’ सास की बात प्रतिभा को अच्छी नहीं लगी. उस ने छूटते ही कहा, ‘‘इस घर में किसी को मेरी खुशी भी नहीं सुहाती.’’ कह कर वह दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई. इस से कृष्णा के बहनबइनोई समझ गए कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं हैं. कृष्णा को पत्नी का यह व्यवहार बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. बहनबहनोई तो चले गए, लेकिन कमरे में आने के बाद उस ने प्रतिभा को दो  तमाचे जड़ते हुए कहा, ‘‘अपना व्यवहार सुधारो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

‘‘अब इस से ज्यादा बुरा क्या होगा कि तुम्हारे जैसे आदमी के साथ मेरी शादी हो गई.’’ कह कर प्रतिभा बैड पर जा कर बैठ गई. उस दिन के बाद उन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दूसरी ओर प्रतिभा रात में देरदेर तक ऋषि के साथ मोबाइल पर बातें करती. एक दिन कृष्णा की नींद खुल गई तो उस ने देखा कि प्रतिभा किसी से बातें कर रही थी. वह समझ गया कि ऋषि से ही बातें कर रही होगी. कृष्णा समझ गया कि प्रतिभा अब आपे से बाहर होती जा रही है. पर करे तो क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. इसी बीच प्रतिभा ने एक बेटी को जन्म दिया. पूरे घर में जैसे खुशी छा गई. बच्ची का नाम राधिका रखा गया. कृष्णा को उम्मीद थी कि मां बन जाने के बाद शायद प्रतिभा के व्यवहार में कोई फर्क आ जाए, पर ऐसा हुआ नहीं. कृष्णा को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि ऋषि के साथ प्रतिभा के नाजायज संबंध शादी से पहले से थे. चूंकि ऋषि शादीशुदा था, इसलिए उस के साथ शादी करना प्रतिभा की मजबूरी थी.

प्रतिभा के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इसीलिए उन्होंने बेटी को कृष्णा के गले बांध दिया और सोचा कि शादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन प्रतिभा का रवैया नहीं बदला. कृष्णा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था. वह प्रतिभा को भी खुश रखने का भरसक प्रयास करता था लेकिन अपनी परेशानी घर में किसी को बता नहीं पा रहा था. जबकि प्रतिभा के व्यवहार से कोई भी खुश नहीं था. धीरेधीरे समय गुजर रहा था. मौका मिलते ही प्रतिभा चोरीछिपे ऋषि से यहांवहां मिल लेती पर वह जानती थी कि कृष्णा जैसे व्यक्ति के साथ वह पूरा जीवन नहीं गुजार सकती. दूसरी ओर ऋषि भी शादीशुदा था, उसे लगता था कि उस का जीवन कटी पतंग की तरह है. प्रेमी ने कभी उसे इस बात के लिए आश्वस्त नहीं किया कि वह उसे अपने साथ रख सकता है.

संभवत: इसी कशमकश में प्रतिभा भी समझ नहीं पा रही थी कि वह करे तो क्या करे. कृष्णा से छुटकारा पाने के बारे में वह सोचने लगी पर वह जानती थी कि मायके वाले भी ऋषि के कारण उस के खिलाफ थेइसी बीच कृष्णा ने 25 लाख रुपए में अपनी एक जमीन बेच दी. वह रकम उस ने घर में ही रख दी थी. यह बात प्रतिभा को पता चल गई थी और अचानक उसे लगा कि पति के इस पैसे से वह प्रेमी को बाध्य कर देगी कि वह उस के साथ अपनी दुनिया बसा ले. प्रेमी को पाने की धुन में वह गुनहगार बनने को भी तैयार हो गई. एक दिन उस ने ऋषि को फोन कर के कहा कि वह उसे बड़ा फायदा करा सकती है.

ऋषि हंसने लगा, ‘‘अरे तुम तो हमेशा ही मुझे खुशियां देती हो.’’ ‘‘लेकिन तुम तो मुझे केवल सपने ही दिखाते हो जो आंखें खुलते ही टूट जाते हैं.’’ प्रतिभा ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘प्रतिभा, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी मजबूरियां क्या हैं. मेरी पत्नी है, बच्चे हैं. मैं उन्हें किस के सहारे छोड़ सकता हूं.’’ ऋषि ने कहा. प्रतिभा गुस्से में भर उठी, ‘‘तो मुझ से प्यार क्यों किया? क्यों मुझे झूठे सपने दिखाए? तुम ने तो सिर्फ अपना मतलब पूरा किया है. तुम्हें तो कभी मुझ से प्यार था ही नहीं.’’ प्रतिभा ने उस दिन ऋषि को साफसाफ कह दिया, ‘‘या तो तुम मुझे अपने साथ रखो अन्यथा मैं तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी. समझ लो मैं आत्महत्या भी कर सकती हूं, जिस का दोष तुम्हारे ऊपर आएगा.’’

ऋषि ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. अत: उस ने उस दिन प्रतिभा को किसी तरह समझाबुझा दिया कि वह कुछ सोचेगा. तभी प्रतिभा ने धीरे से कहा, ‘‘कृष्णा ने अपनी जमीन बेची है. 25 लाख की बिकी है.’’ ऋषि के कान खड़े हो गए. प्रतिभा ने आगे कहा, ‘‘इन 25 लाख के सहारे हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा सकते हैं.’’ ‘‘तुम पागल हो गई हो क्या, चोरी के इलजाम में जेल भिजवाओगी हमें.’’ ऋषि ने कहा. लेकिन वह जानता था कि प्रतिभा उस के प्यार में अंधी है और थोड़ाबहुत लाभ उसे हो सकता है. ऋषि ने उसे 2 दिन बाद किसी होटल में मिलने को कहा.

इस के बाद ऋषि को भी लालच गया. उस ने प्रतिभा से फोन पर बात की. प्रतिभा ने उस से साफ कह दिया, ‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. लेकिन कृष्णा हमारी खुशियों की राह में रोड़ा बना हुआ है.’’ फिर एक दिन बेटी को डाक्टर को दिखाने का बहाना कर प्रतिभा घर से निकली और एक कौफीहाउस में ऋषि से मिली. दोनों ने मिल कर एक षडयंत्र रचा, जिस में कृष्णा को रास्ते से हटाने की बात तय कर ली गई. नादान प्रतिभा प्रेमी की आशिकी में अंधी हो चुकी थी. उसे भलाबुरा नहीं सूझ रहा था. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस की 9 माह की बेटी का क्या होगा. इधर प्रतिभा के बदले हुए तेवर देख कर एक दिन सास ने कहा, ‘‘बहू, क्या बात है आजकल तू हर वक्त घर से निकलने के बहाने ढूंढती रहती है?’’

‘‘नहीं तो मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. राधिका की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए परेशान रहती हूं.’’ प्रतिभा ने बहाना बनाया.

‘‘देख बहू, हमारे परिवार का समाज में सम्मान है. हमारे परिवार में बहुएं सिर्फ घर के बच्चों और पति के लिए ही जीतीमरती हैं.’’ कह कर सास अपने कमरे में चली गई. कृष्णा को रास्ते से हटाने की योजना बन चुकी थी और 25 लाख रुपए में से 5 लाख रुपए देने का वादा कर ऋषि ने इस साजिश में अपने दोस्त पवन निवासी रायमा, जिला मथुरा को भी शामिल कर लिया था. 13 फरवरी, 2018 को कृष्णा के पास ऋषि का फोन आया. उस ने बताया कि उसे एक बहुत बड़ा ठेका मिला है. उस बिल्डिंग में स्टील ग्रिल भी लगनी है. अगर तुम यह काम करना चाहते हो तो बात करने के लिए रायमा जाओ. कृष्णा ने पहले तो सोचा कि वह उस से कोई संबंध नहीं रखना चाहता, क्योंकि वह विश्वास के काबिल नहीं है. पर फिर उसे लगा कि पारिवारिक बातों को व्यापार से अलग ही रखना चाहिए. अत: उस ने कह दिया कि वह शाम तक रायमा पहुंच जाएगा.

कृष्णा ने घर से निकलते वक्त अपनी मां को बता दिया कि एक सौदा करने के लिए वह रायमा जा रहा है. पति के घर से निकलने के बाद प्रतिभा ने अपने प्रेमी ऋषि को फोन कर के बता दिया कि कृष्णा घर से चल दिया है. घर में किसी को भी नहीं मालूम था कि कौन सा कहर टूटने वाला था. कृष्णा रायमा पहुंचा तो वहां ऋषि, पवन और रायमा निवासी टिल्लू बातों में उलझा कर कृष्णा को खेतों की ओर ले गए. लेकिन तभी वहां कुछ लोग गए और वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. जब रात में कृष्णा घर पहुंचा तो उसे देख कर प्रतिभा हैरान रह गई. देर रात को प्रतिभा ने ऋषि को फोन किया तो उस ने प्रेमिका को सारी बात बता दी. अगले दिन ऋषि ने कृष्णा के फोन पर बता दिया कि उस की पवन से बात हो गई है. वह अब अपने घर में रेलिंग लगाने का ठेका देने को तैयार हो गया है, तुम जाओ.

सीधासादा कृष्णा बिना कुछ सोचेसमझे 14 फरवरी, 2018 को अपनी मां से रायमा जाने की बात कह कर घर से निकल गया, जहां स्टेशन पर ही उसे ऋषि मिल गया. ऋषि उसे बातों में लगा कर इधरउधर घुमाता रहा. तब तक शाम हो गई. तभी पवन का फोन गया. उस के कहे मुताबिक, ऋषि कृष्णा को खेतों की तरफ ले गया. तब तक अंधेरा होने लगा था. तभी वहां उसे पवन दिखाई दिया, जिस ने इशारा कर के उन्हें सड़क पार कर खेत में आने को कहा. कृष्णा को जब तक कुछ समझ में आता तब तक काफी देर हो चुकी थी. वहीं टिल्लू भी आ गया तो कृष्णा ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें सौदा मंजूर है तो अब जल्दी से कुछ एडवांस दे दो. रात भी हो रही है, मुझे घर पहुंचना है. प्रतिभा इंतजार कर रही होगी.’’

यह सुनते ही पवन हंसने लगा, ‘‘ओह क्या सचमुच तेरी बीवी तेरा इंतजार करती है. हमें तो यह पता है कि वह ऋषि का इंतजार करती है.’’ कृष्णा की समझ में अब कुछकुछ आने लगा था. उस ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, जल्दी करो मुझे जाना है.’’ यह कहते हुए वह अपनी बाइक की तरफ बढ़ा लेकिन तीनों झपट कर उसे खेत के अंदर ले गए और डंडों से उस की पिटाई शुरू कर दी. डंडों से पीटपीट कर उन्होंने उस की हत्या कर लाश वहीं छोड़ दी और चले गए.

इधर कृष्णा घर नहीं पहुंचा था. घर से जाने के बाद उस ने कोई फोन भी नहीं किया था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ रहा था. सभी रिश्तेदारों को फोन कर पूछ लिया गया, पर वह कहीं नहीं था. अंतत: आगरा के थाना सदर में उस की गुमशुदगी लिखवा दी गई. प्रतिभा के मायके वालों को फोन किया गया तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि ऋषि से पूछताछ करें. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने सभी थानों को वायरलैस द्वारा कृष्णा की गुमशुदगी की सूचना दे दी

16 फरवरी को पुलिस को रायमा के खेत में एक लाश मिलने की सूचना मिली, जिसे कृष्णा के भाई अवनीश ने पहचान कर शिनाख्त कर दी. घर वालों से पूछताछ की गई तो कृष्णा की मां ने कहा कि कृष्णा ने उसे बताया था कि रेलिंग का ठेका लेने के लिए वह रायमा जा रहा है. पर वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं था. 13 और 14 फरवरी को भी वह रायमा गया था. 13 को वह देर रात घर लौटा था. वह नहीं बता पाई कि कृष्णा रायमा में किस के पास गया था. पुलिस टीम हत्यारे की खोजबीन में लग गई. पुलिस की एक टीम बेवर भेजी गई तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता, लेकिन यदि कृष्णा के दोस्त ऋषि से पूछताछ की जाए तो कुछ पता चल सकता है. जांच अधिकारी ने महसूस किया कि प्रतिभा के मायके वाले कुछ छिपा रहे हैं.

इस के बाद थानाप्रभारी ने कृष्णा के घर जा कर प्रतिभा से पूछताछ की तो महसूस किया कि उसे पति की मौत का जैसे कोई दुख नहीं था. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने बताया कि ऋषि की दोस्ती रायमा निवासी पवन के साथ है. अगर उसे हिरासत में लिया जाए तो केस खुल सकता है. पुलिस ने रायमा में पवन को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतक की पत्नी प्रतिभा के साथ ऋषि के नाजायज संबंध थे. मृतक की पत्नी प्रतिभा ने ऋषि को बता दिया था कि कृष्णा ने जो 25 लाख रुपए की जमीन बेची है, उन पैसों से वे एक अच्छी जिंदगी की बुनियाद रख सकते हैं. इस के बाद पवन ने कृष्णा की हत्या की सारी कहानी बता दी.

पुलिस ने 18 फरवरी को प्रतिभा को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस बीच पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि ऋषि ने बाह थाने में अपने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने बताया था कि वह किसी तरह अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूट कर भागा है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने ऋषि और टिल्लू को भी गिरफ्तार कर लिया. प्रतिभा ने योजना बना कर अपने हाथों अपना सुहाग तो उजाड़ दिया, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिन 25 लाख रुपयों के लालच में उस ने यह सब किया, वह रकम कृष्णा ने अपने कमरे में न रख कर अपनी मां के पास रख दी थी.

पुलिस ने ऋषि, प्रतिभा, पवन और टिल्लू से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. 9 माह की राधिका अनाथ हो चुकी है. मां जेल में है और पिता की हत्या कर दी गई है. बूढ़ी दादी अब कैसे उसे पाल पाएगी, यह बड़ा सवाल है.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

चौथी बहू ने अपनी मां के साथ मिलकर तीसरी बहू को केरोसीन से जलाया

3 शादियां कर के सलीम खान 11 बच्चों का बाप बन चुका था.इस के बावजूद उस ने आयशा से चौथी शादी कर ली. आयशा ने तलाक का ऐसा राग अलापा कि…

भोपाल शहर के निशातपुरा इलाके में 4 जनवरी, 2018 को एक अधेड़ उम्र की औरत शबनमआग से बुरी तरह झुलस गई थी. पहले तो यह केस खुदकुशी की कोशिश का लगा. लेकिन निशातपुरा थाने की पुलिस ने जांच की तो जो हकीकत सामने आई सभी चौंक गए. पता चला कि वह 52 साल के सलीम खान की तीसरी पत्नी थी और उसे एक सोचीसमझी साजिश के तहत जलाया गया था.

दरअसल शबनम का पति सलीम खान सिक्योरिटी गार्ड था. 11 बच्चे होने के बाद भी वह चौथी शादी करने की कोशिश कर रहा था. उस का बड़ा बेटा 18 साल का हो चुका था. इस के बावजूद उस ने चौथी शादी थी. पुलिस को इस मामले की खबर एक दिन बाद यानी 5 जनवरी को लगी तो थाना निशातपुरा के टीआई चैनसिंह रघुवंशी ने एसआई संतराम खन्ना को हमीदिया अस्पताल भेज दिया क्योंकि आग से झुलस जाने के बाद शबनम उसी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

एसआई संतराम खन्ना बिना वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए. वहां शबनम की हालत चिंताजनक बनी हुई थी. अस्पताल में सलीम खान के परिवार के और लोग भी मौजूद थे. संतराम खन्ना ने जब शबनम और अन्य लोगों से बात की तो इस वारदात के पीछे की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—

सलीम एक मामूली नौकरीपेशा इंसान था. उस की पहली शादी शहनाज नाम की एक लड़की से हुई थी. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए कि बहुत जल्द शहनाज से उस का तलाक हो गया. सलीम एक मामूली आदमी था. जैसेतैसे कर के उस की शादी शहनाज से हुई थी. उस से तलाक के बाद सलीम इस फिक्र में लग गया कि अब उस की दूसरी शादी कैसे होगी. पर इस मामले में सलीम की किस्मत औरों से काफी जुदा निकली. तभी तो कुछ ही दिनों में उस की दूसरी शादी हो गई. दूसरी बीवी से सलीम के 7 बच्चे हुए. सलीम फकीर बिरादरी से था. उस की बिरादरी के अधिकांश लोग भीख मांगा करते थे. इसलिए परिवार बढ़ने की उसे कोई चिंता नहीं हुई.

उस का खर्च समाज से पूरा हो रहा था. बच्चे जब थोड़े बडे़ हो गए तो वह भीख मांगने लगे. वहीं दूसरी ओर सलीम की पत्नी भी आसपड़ोस के घरों में साफसफाई करने और खाना बनाने का काम करने लगी. कुल मिला कर सारा घर अपने खानेपीने का इंतजाम खुद ही कर लेता था. भीख मांग कर शौक तो पूरे नहीं किए जा सकते. लेकिन उस की जिंदगी बदस्तूर चल रही थी. इसी बीच सलीम की दूसरी पत्नी भी उसे छोड़ कर चली गई तो सलीम ने 35 वर्षीय शबनम नाम की एक महिला से शादी कर ली. शबनम भी तलाकशुदा थी. उस के पास 2 बच्चे पहले से थे. सलीम से शादी के बाद वह 2 बच्चों की मां और बन गई.

अब उस के परिवार में 11 बच्चे हो गए थे. शबनम समझदार और सुलझी हुई महिला थी. वही अपने और सलीम के सारे बच्चों की परवरिश कर रही थी. बाद में सलीम शांति अपार्टमेंट में गार्ड की नौकरी करने लगा. 11 बच्चे होने के बावजूद सलीम ने शबनम के होते हुए आयशा से चौथी शादी कर ली. लेकिन उस ने यह बात काफी दिनों तक शबनम से छिपाए रखी. उस ने अपनी चौथी बीवी को अपने घर में न रख कर कुछ दूरी पर भानपुर में एक किराए के मकान में रखा था. वह आयशा को हर महीने खर्च के लिए लगातार पैसे भेजता और वहीं पर उस से मिलने जाता रहता था.

पर आयशा से शादी वाली बात वह शबनम से ज्यादा दिनों तक नहीं छिपा सका. शबनम को जब यह जानकारी मिली तो उसे बहुत गुस्सा आया. शबनम ने सलीम से शिकायत की, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूं, बच्चों की देखभाल कर रही हूं. तो ऐसी क्या मजबूरी आ गई जो तुम ने आयशा से शादी कर ली. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’’ ‘‘तुम्हें मेरी शादी से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि जिस तरह पहले से चलता आ रहा है, ठीक वैसे ही अब भी चलता रहेगा. आयशा भी एक तलाकशुदा औरत है. वो परेशान थी तो मैं ने उसे अपने यहां एक तरह से आश्रय दिया है.’’ सलीम ने सफाई दी.

‘‘शहर में और भी तमाम तलाकशुदा महिलाएं हैं. उन्हें भी आश्रय दे दो. वो भी बेचारी न जाने कहांकहां धक्के खा रही होंगी.’’ शबनम ने कटाक्ष किया. ‘‘तुम तो बेवजह पेरशान हो रही हो. उस के आने पर तुम्हारे प्यार में कमी नहीं आने दूंगा. इसलिए तुम कोई चिंता मत करो.’’ सलीम ने उसे फिर समझाने की कोशिश की. लेकिन इतनी बड़ी बात को शबनम भला कैसे स्वीकार कर सकती थी, लिहाजा वह पति से खूब झगड़ी. कुछ ही दिनों बाद इस बात को ले कर अकसर ही घर पर झगड़ा होने लगा.

आयशा अपने पहले शौहर को तलाक दे कर अपनी मां के साथ एक छोटे से घर में रहती थी. पर अब तो सलीम ने उसे एक किराए का कमरा दिला दिया था. सलीम हर महीने उसे खर्च के पैसे देता रहता था. पर आयशा ने अब एक जिद यह पकड़ रखी थी कि वह शबनम से तलाक दे कर उसे अपने घर पर रखे.
सलीम शबनम को तलाक देने के लिए राजी नहीं था. इसी बात को ले कर दोनों में पहले तो सिर्फ बहस होती. लेकिन जल्दी ही इस मुद्दे के तूल पकड़ते देर न लगी. सलीम के दिए पैसों से मांबेटी का खर्च चलता था.

दिसंबर 2017 में इत्तफाक से सलीम को अपने तय वक्त पर तनख्वाह नहीं मिली तो वह आयशा को समय पर खर्च के लिए पैसे नहीं भेज पाया. जब भी सलीम उसे समय से पैसे नहीं भेज पाता तो आयशा अपनी मां के साथ सलीम के घर आ धमकती थी. इस के लिए मांबेटी शबनम को दोषी मानती थीं. वह दोनों आते ही शबनम पर हावी हो जाती थीं. आयशा शबनम पर इस बात का दबाव बनाती कि वह सलीम से जल्द तलाक ले कर वहां से चली जाए ताकि वह इस घर में आ कर रह सके. पर शबनम आयशा की बातों को अनसुना कर देती. दिसंबर के महीने में भी वह दोनों घर आ कर शबनम से झगड़ने लगीं. आयशा की मां वसीमा बी आग बबूला हो गई. होहल्ला सुन कर आसपास के लोग भी अपने घरों से बाहर निकल कर दोनों को समझाने लगे. इतने में किसी ने सलीम को फोन कर के इस की जानकारी दे दी.

सलीम उस समय शांति अपार्टमेंट में अपनी ड्यूटी पर था. वह दूसरे गार्ड को थोड़ी देर में लौट आने की बात बोल कर जल्दी से घर आ गया. उस समय घर पर महाभारत छिड़ी हुई थी. सलीम ने आते ही आयशा को समझाया कि यहां पर मत लड़ो, सब लोग देख रहे हैं. आयशा ने सलीम से गुस्से में कहा, ‘‘सब से पहले तो तुम शबनम को तलाक दो. तभी मैं तुम्हारे साथ रहूंगी.’’ सलीम ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन आयशा इसी बात पर अड़ी रही. सलीम के साथ पड़ोस के लोगों के समझाने के बाद आयशा थोड़ी ठंडी पड़ी और झगड़ा खत्म कर लिया. झगड़ा खत्म होने पर सलीम ने राहत की सांस ली.

दोबारा ड्यूटी पर जाने से पहले सलीम ने शबनम और आयशा को समझाया, ‘‘मैं जा रहा हूं, इसलिए अब लड़ना नहीं.’’ कह कर सलीम वहां से चला गया. उसे लगा कि उस के समझाने के बाद दोनों नहीं लड़ेंगी. वह दोनों बीवियों की तरफ से बेफिक्र हो गया. अभी सलीम अपार्टमेंट में इत्मीनान से खड़ा भी नहीं हुआ था कि एक पड़ोसी का फोन आ गया. अचानक फोन आने से सलीम को शंका हुई कि दोनों के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई होगी? जैसे ही उधर से रूहकंपा देने वाली आवाज आई, वैसे ही सलीम ने बिना किसी को बताए घर की तरफ दौड़ लगा दी.

जब वह घर पर पहुंचा तो उस के घर के चारों तरफ मजमा सा लगा था. भीड़ देख कर सलीम को पूरा यकीन हो गया था कि कोई बड़ी बात हो गई है. करीब पहुंच कर देखा तो उस की तीसरी बीवी शबनम पूरी तरह आग में जली एक तरफ पड़ी थी और चारों ओर देखने वालों की भीड़ लगी थी, मामले की गंभीरता की गवाही दे रही थी. जैसेतैसे शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया गया. डाक्टरों ने देखते ही हाथ खडे़ कर लिए. क्योंकि उन्हें मालूम था कि शबनम इस दुनिया में बमुश्किल एकदो दिनों की मेहमान है. सलीम ने डाक्टर के सामने अपनी बीवी को बचाने की गुहार लगाई. वह किसी भी कीमत पर शबनम को खोना नहीं चाहता था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शबनम ने दम तोड़ दिया. पता चला कि 4 जनवरी, 2018 को जब आयशा अपनी मां के साथ सलीम के पहले घर पर आ धमकी तो

उस की बीवी शबनम से बहस होने लगी थी. जिसे बाद में सलीम ने आ कर शांत करा दिया था. उस के बाद हुआ ये कि एक बार फिर से दोनों सौतनों में तलाक को ले कर बहस शुरू हो गई थी. उस समय शबनम की बेटी चूल्हे पर खाना बना रही थी. बात अचानक से इतनी बढ़ गई कि आयशा और उस की मां ने मिल कर शबनम को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया, जिस वजह से उस के सिर और हाथ में चोट लग गई. शबनम इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी कि वह अपने शौहर को तलाक दे. उस ने आयशा से साफ कह दिया था कि जब मैं ने अभी तक सलीम की पहली बीवी के बच्चों को एक मां की तरह पालापोसा है, तो अब तलाक ले कर कहां जाऊंगी.

इस बात को सुन कर आयशा को तैश आ गया. उस ने कहा कि तुम जहन्नुम में जाओ या कहीं और, मुझे इस से मतलब नहीं है. लेकिन तुम्हें सलीम से तलाक लेना ही पड़ेगा. उन्होंने जब देखा कि शबनम अपने इरादे पर अटल है तो आयशा झगड़ा करने पर उतारू हो गई. इसी दौरान वसीमा बी ने अपनी बेटी आयशा से कहा कि देखती क्या है इस करमजली के ऊपर केरोसीन डाल कर आग लगा दे. यह सुन कर आयशा ने पास ही रखा केरोसीन का गैलन उठाया और जमीन पर गिरी पड़ी शबनम पर उस की बेटी के सामने ही डाल कर जलती हुई माचिस की तीली उस की तरफ उछाल दी.

एक छोटी सी चिंगारी शबनम पर पड़ते ही आग का गोला बन गई. गुस्से में आयशा ने इतना बड़ा कदम तो उठा लिया, लेकिन बाद में पुलिस केस होने की बात सोच कर वह डर गई. आयशा और उस की मां ने सलीम के साथ मिल कर शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया और शबनम से बोलीं कि तुम पुलिस को इस की गवाही मत देना. हम लोग तुम्हारा इलाज करा देंगे. जिस से तुम पहले की तरह ठीक हो जाओगी.पहले तो शबनम को उन की बातों पर भरोसा हो गया. लेकिन जब अपनी हालात देखी तो उसे अपने मासूम बच्चों की फिक्र सताने लगी. जिस से वह परेशान हो गई. उस ने बाद में एसआई संतराम खन्ना को पूरी सच्चाई बता दी. इस के साथ शबनम ने मजिस्ट्रैट के सामने भी मौत से जद्दोजहद करते हुए पूरी घटना के बारे में जानकारी दे दी.

निशातपुरा पुलिस ने मौके का मुआयना कर के आग लगाने के सबूत इकट्ठे कर लिए. आयशा और उस की मां पर भादंवि की धारा 307 और 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. शबनम की सौतन आयशा जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस की शातिर मां वसीमा बी पुलिस को चकमा देने में कामयाब रही. पुलिस ने वसीमा बी की धरपकड़ के लिए उस के घर पर दबिश दी. लेकिन पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. वसीमा बी की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

गोलियां खिलाकर किया बलात्कार, फिर निर्वस्त्र कर फेंका शव

बैंक औफिसर नव्या के साथ बलात्कार के बाद उस की हत्या की गई थी. हत्यारे तक पहुंचना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. लेकिन इंसपेक्टर राघव अपने प्रयासों से उस तक पहुंच ही गए.

हाईवे किनारे की अकसर सुनसान रहने वाली वह जगह आज सुबह लोगों और मीडियाकर्मियों से भरी थी.  पेड़ों के बीच झाडि़यों से एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टेंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा. ‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकडि़यां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म.’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’
‘‘ये हैं सर.’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई. राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’
‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया. ‘‘नाम?’’ ‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.
‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा.’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं.’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.
‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं.’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’ एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’ ‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.
‘‘जब कल सुबह वो औफिस के लिए निकली थी.’’
‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’
‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था.’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वो औफिसर हो गई थी,

अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’ राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो
कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्र्रैजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था. इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे. लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे. जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे. वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे?

उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था. इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया. ‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’ नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही. राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’ ‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.
‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’ राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर
हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई.

कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था. राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था. उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा,

‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’ विमल की हकीकत क्या थी? ‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’
‘‘जी जरूर.’’राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी. शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये

अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’ राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात
का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’ वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’ ‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’ विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा. ‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’ राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया. राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा ‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’ ‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’
उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.
‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा. ‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर
दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे. ‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.

एक रोज राघव थाने में बैठे मोबाइल पर यों ही दोस्तों की पोस्ट्स देख रहे थे कि तभी उन की साली का फोन आया. ‘‘जीजू, मैं ने जिस लड़के के बारे में बताया था आप को, उस के साथ मेरी वीडियो सेल्फी देखी आप ने? आज ही अपलोड की मैं ने.’’ राघव झल्लाए, लेकिन उस से जान छुड़ाने के लिए उस का प्रोफाइल पेज खोला. जैसे ही उन्होंने उस की सेल्फी देखी. उस की बैकग्राउंड पर नजर जाते ही मानो वे उछल पड़े.
यहां मुकुल के घर नए रिश्ते वाले आए थे. लड़की का पिता बोल रहा था.

‘‘चलिए, जो हुआ सो हुआ आप के साथ. अब एक नई जिंदगी शुरू कीजिए.’’ तभी एक मजबूत आवाज गूंजी ‘जिंदगी भी क्याक्या दिखा देती है भाईसाहब.’ सब ने आवाज की दिशा में देखा. इंसपेक्टर राघव मुसकराते हुए खडे़ थे. अचानक उन्हें यहां पा कर सभी चौंक उठे. मुकुल ने पूछा. ‘‘विमल ने अपना जुर्म कबूल लिया क्या सर?’’

‘‘उसी सिलसिले में बात करने आया हूं.’’ राघव ने मुसकराते हुए कहा. मुकुल के पिता ने एक प्लेट उन की ओर बढ़ाई, ‘‘जी जरूर, लीजिए मुंह मीठा कीजिए आप भी.’’ ‘‘धन्यवाद,’’ राघव ने विनम्रता से मना कर दिया और बोले. ‘‘देखिए मुकुलजी, मैं ने बहुत कोशिश की लेकिन विमल ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया.’’
‘‘तो अब क्या होगा?’’ मुकुल के चेहरे पर दुविधा के भाव साफ दिखने लगे. राघव आगे बोले, ‘‘होगा वही जो होना है.

मैं ने अभीअभी अपनी साली की भेजी हुई एक वीडियो सेल्फी देखी, संयोगवश ये उसी दिन की है, जिस दिन नव्या का खून हुआ था.’’ ‘‘तो? उस से इस केस का क्या लेना?’’ इस बार मुकुल की मां बोल पड़ी.
‘‘जी वही बता रहा हूं.’’ राघव ने कहा, ‘‘वो सेल्फी उस ने अपने पुरुष दोस्त के साथ मल्लिका स्टोर के सामने खड़ी हो कर बनाई थी और मजे की बात ये कि पीछे का एक बेहद जरूरी दृश्य उस में अनायास ही कैद हो गया.’’

‘‘कैसा दृश्य?’’ मुकुल ने पूछा. ‘‘सुनिए तो…’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘मेरी तब तक की पूरी जांच के अनुसार ये समय वही था जब नव्या औफिस से घर लौट रही थी और विमल उस की गाड़ी से उतर चुका था. एक आदमी ने मल्लिका स्टोर के सामने नव्या की कार रुकवाई और उस में बैठ गया. कहने की जरूरत नहीं कि उसी आदमी का संग नव्या के लिए कातिल साबित हुआ.’’

‘‘कौन था वो आदमी?’’ मुकुल को देखने आए लड़की के पिता ने उत्सुकता से पूछा. मिल गया हत्यारा,
जिस ने बलात्कार भी कराया ‘‘वो आदमी…’’ राघव के इतना कहतेकहते मुकुल बिजली की तेजी से उठा और दरवाजे की ओर भागा. राघव चिल्लाए, ‘‘पकड़ो इस को जल्दी.’’ सिपाहियों ने मुकुल को दबोच लिया. वो छटपटाने लगा. सब लोग हैरान थे. मुकुल खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन राघव के जोरदार पुलिसिया थप्पड़ ने उसे दिन में तारे दिखा दिए. वह सोफे पर गिर पड़ा और सिसकते हुए कहने लगा, ‘‘हां, मैं ने उस शाम मोटरसाइकिल से नव्या का पीछा किया क्योंकि वो अगले दिन वकील को बुलाकर मुझ पर तलाक के लिए दबाव डलवाने वाली थी. इसी कारण उस ने औफिस से भी छुट्टी ले ली थी.’’

सभी हैरानी से उस की बातें सुन रहे थे. वो कहता गया, ‘‘हालांकि मैं ने सोचा था कि एक बार फिर प्यार से उसे समझाऊंगा, लेकिन जब मैं ने उसे विमल के साथ संबंध बनाते देख लिया तो मेरा शक यकीन में बदल गया. मैं ने उस से पहले ही मल्लिका स्टोर के सामने पहुंच उस की कार रुकवाई और कहा कि मेरी बाइक खराब हो गई है. उस ने अनमने भाव से मुझे अंदर बिठाया. जब वो कुछ सामान लेने उतरी तो इसी बीच मैं ने अपने साथ लाई नींद की गोलियां उस की कोल्डड्रिंक की बोतल में मिला दीं, जो उस ने विमल के साथ आधी ही पी थी.’’

‘‘लेकिन उस के साथ सामूहिक बलात्कार किन से कराया तुम ने?’’ राघव को अभी तक इस सवाल का उत्तर नहीं मिल सका था. मुकुल बोला, ‘‘मैं अपने घरेलू तनाव में डूबा एक दिन उसी जंगल में बैठा था. मैं ने देखा कि कुछ नशेड़ी वहां गप्पें मारते हैं, वे रोज वहां उसी जगह आते. मैं ने उस शाम नव्या के बेहोश जिस्म को वहीं रख दिया और उन का इंतजार करने लगा. जब वे वहां आए तो मैं ने पत्थर मार के उन का ध्यान नव्या की ओर दिला दिया, वे नशे की हालत में उस पर टूट पडे़…’’

‘‘और तुम ने सोचा कि ये मामला बलात्कार और हत्या का मान लिया जाएगा.’’ राघव ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘तभी मैं कहूं कि ऐसा हत्या का केस मैं ने पहले कभी कैसे नहीं देखा. वे नशेड़ी बलात्कार कर वहां से भाग गए और दुबारा नहीं लौटे. वैसे हम उन को भी ढूंढ निकालेंगे. मानता हूं कि नव्या ने तुम्हारे साथ गलत किया लेकिन हत्या तो हत्या है. तुम्हें सजा मिलेगी ही.’’ राघव के चेहरे पर विश्वास साफ झलक रहा था. वे मुकुल को गिरफ्तार कर वहां से चल पड़े.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

मृत पति को मिस कर रही महिला सिपाही ने बेटी संग किया सुसाइड

सीमा और उस का पति हरकेश दोनों ही पुलिस में थे. पति की आकस्मिक मौत के बाद सीमा इस तरह हताश हो गई कि… 

राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल सीमा अपनी 4 वर्षीय बेटी वंशिका के साथ बीछवाल थाना प्रांगण में बने स्टाफ क्वार्टर में रहती थी. उस के साथ उस का भाई सुमित भी रहता था. सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. सीमा की ड्यूटी बीकानेर पुलिस लाइन में थी. करीब डेढ़ महीना पहले ही वह पाली जिले से ट्रांसफर करा कर बीकानेर आई थी. पहले उस की पोस्टिंग पाली के औद्यौगिक थाने में थी25 मार्च, 2018 की शाम को सीमा बेटी के साथ थी. उस का भाई सुमित किसी काम से बाजार गया हुआ था. जब वह बाजार से घर लौटा तो घर में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. सुमित ने दरवाजा खटखटा कर बहन को आवाज दी पर दरवाजा नहीं खुला.

कई बार आवाज देने के बावजूद भी जब अंदर से कोई हलचल नहीं हुई तो सुमित ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो उसे बहन सीमा व वंशिका फंदे पर झूलती दिखाई दीं. यह देख कर सुमित की चीख निकल गई. उस के चीखने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. सुमित ने लोगों की सहायता से खिड़की तोड़ी. उस ने सब से पहले अपनी बहन और भांजी को फंदे से उतारा. तब तक बीछवाल के थानाप्रभारी धीरेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच चुके थे. दोनों को तुरंत पीबीएम अस्पताल ले जाया गया. जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

मृतका सीमा के कमरे से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ. उस में कांस्टेबल सीमा ने सासससुर से माफी मांगते हुए लिखा कि सभी ने उस का और बेटी वंशिका का खयाल रखा, लेकिन पति हरकेश की मौत के बाद से मैं बहुत तनाव में हूं. इसलिए बेटी के साथ फांसी लगा कर आत्महत्या कर रही हूं. सीमा ने पत्र में इच्छा जताई कि मेरा अंतिम संस्कार भी वहीं हो, जहां पति का किया गया था और उस की और बेटी की आंखें दान कर दी जाएं. ताकि किसी को रोशनी मिल सके. चूंकि मामला एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, इसलिए थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी दीपक भार्गव भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी मौका मुआयना किया. थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए पीबीएम अस्पताल भेज दिया.

सीमा सरकारी मुलाजिम थी, उसे कोई आर्थिक परेशानी नहीं थी. ससुराल में सभी लोग उस का बहुत खयाल रखते थे. इन सब बातों के बावजूद आखिर ऐसी क्या वजह रही जो उस ने अपने साथ बेटी को भी फंदे पर लटका दिया. जांच करने के बाद पुलिस को इस के पीछे की जो बात पता चली, वह हृदयविदारक थी. सीमा सन 2006 में राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हुई थी. उसी के बैच में हरकेश मान नाम का युवक भी भरती हुआ था. हरकेश झुंझनू जिले के भीरी गांव का मूल निवासी था. पर बाद में उस का परिवार चिढ़ावा कस्बे में रहने लगा था. साथसाथ पुलिस ट्रेनिंग करने के दौरान सीमा और हरकेश की अच्छी जानपहचान हो गई थी. बाद में घर वालों की मरजी से दोनों की शादी हो गई. सीमा का भाई सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था

सीमा पति के साथ बहुत खुश थी. हरकेश भी उस का बहुत ध्यान रखता था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. इस दौरान सीमा एक बेटी की मां भी बन गई थी जिस का नाम वंशिका रखा गया. सीमा का पति हरकेश एक जांबाज होशियार सिपाही था. अपनी मेहनत के बूते पर उस ने अनेक बडे़ केसों को खोलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस की तैनाती पाली की कोतवाली में थी. अपने प्रयासों के बल पर उस ने दीपक हत्याकांड को खोलने में विशेष भूमिका निभाई थी. इस के अलावा उस ने कंजर गैंग, नायडू शेट्टी गैंग तथा गत दिनों पाली में मोबाइल शोरूम से लाखों रुपए के मोबाइल चुराने वाले गैंग का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कराने में विशेष भूमिका निभाई थी. इन केसों में मिली सफलता के बाद हरकेश को एसपी के अलावा डीआईजी और आईजी ने भी सम्मानित किया था.

पति की इस उपलब्धि पर सीमा का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया था. चूंकि वह भी पति के साथ उसी थाने में तैनात थी, इसलिए पति से उसे काफी प्रेरणा मिली थी. अपने छोटे से परिवार में सीमा बहुत खुश थी. लेकिन 31 अक्तूबर, 2017 को इन के परिवार में अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस से उन की हंसतीखेलती गृहस्थी उजड़ गई. दरअसल हरकेश मान के साले की शादी थी. 31 अक्तूबर, 2017 को हरकेश ड्यूटी से चिड़ावा में स्थित अपने क्वार्टर पर पहुंच कर शादी में जाने की तैयारी करने लगा. सीमा भी भाई की शादी में जाने की तैयारी में जुटी थी. हरकेश ने अपने बालों में मेंहदी लगाई हुई थी. वह बालों की मेंहदी को धो रहा था तभी अचानक आगे की तरफ गिर गया. सामने कोई एक पाइप था जो सीधे हरकेश के सिर में घुस गया.

हरकेश के चीखने पर सीमा बाथरूम में गई तो वहां खून देख कर वह भी घबरा गई. उस ने पड़ोसियों को बुलाया, जिन की मदद से हरकेश को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टर उसे बचा नहीं सके. उस की मौत हो गई. पति की मौत पर सीमा का तो घरसंसार ही उजड़ गया था. शादी में जाने की खुशी रंज में बदल गई थी. एक तेजतर्रार सिपाही की मौत की खबर पा कर जिले के पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी इस आकस्मित मौत पर आश्चर्यचकित थे. घर वालों का तो रोरो कर बुरा हाल था. घर वालों के अलावा विभाग के लोगों ने भी सीमा को बहुत समझाया. पर वह अपने प्रियतम को भला कैसे भुला सकती थी. लोगों के समझाने पर सीमा ने खुद को संभालने की कोशिश की. वह अपने काम में व्यस्त रह कर दुख को भुलाने की कोशिश करती रही लेकिन रहरह कर उसे पति की यादें बेचैन किए रहती थीं

पहले सीमा की पोस्टिंग पाली थाने में थी जबकि उस का भाई सुमित बीकानेर के महिला थाने में था. अरजी दे कर उस ने करीब डेढ़ महीने पहले ही अपना ट्रांसफर बीकानेर करा लिया था. ताकि भाई के साथ रहने पर वह खुद अकेला महसूस समझे. वह भाई के साथ ही बीछवाल थानापरिसर में बने आईएसी क्वार्टरों में रहती थी. हालांकि ससुराल पक्ष के लोगों की तरफ से भी सीमा का हर तरह से खयाल रखा जा रहा था. इस के बावजूद भी सीमा को रहरह कर पति की यादें रही थी. पति के बिना वह खुद को अकेला महसूस कर रही थी. उसे लगने लगा था कि अब पति के बिना उस का जीना ही बेकार है. वह खोईखोई सी रहने लगी.

फिर एक दिन सीमा ने फैसला कर लिया कि जब उस का पति ही न रहा हो तो अब उस का जीना ही बेकार है. उस ने तय कर लिया था कि वह भी अपनी जीवनलीला खत्म कर पति के पास जाएगी. तभी उसे अपनी बेटी वंशिका का ध्यान आया कि उस के जीवित न रहने पर बिन मांबाप के पता नहीं उस की जिंदगी कैसे कटेगी. लिहाजा उस ने अपने साथ बेटी वंशिका की भी जीवनलीला खत्म करने का निर्णय ले लिया. 25 मार्च की शाम को उसे यह मौका मिल ही गया. उस दिन सीमा का भाई सुमित भी अपनी ड्यूटी से आ गया था. वह शाम के समय बाजार गया. तभी सीमा ने सब से पहले अपनी बेटी को फंदे पर लटकाया इस के बाद वह खुद भी लटक गई. इस से पहले उस ने एक सुसाइड नोट लिख दिया था, जिस में किसी को भी दोषी न ठहराते हुए अपनी और बेटी की आंखें दान करने की बात लिख दी थी.

सीमा ने भले ही अपनी समझ से अपनी और बेटी की सांसें रोक दीं पर ऐसा कर के उस ने कोई समझदारी का काम नहीं किया. बेटी के सहारे वह जिंदगी काट सकती थी. उसे उस समय काउंसलिंग की जरूरत थी. यदि उस की उस समय काउंसलिंग हो जाती तो शायद वह यह कदम नहीं उठाती.