शराफत का इनाम – भाग 4

करीमभाई ने जैसे ही फोन काटा. संयोग से उसी वक्त हारुन का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘करीमभाई, तुम मेरे ही फोन का इंतजार कर रहे थे न?’’

‘‘काम की बात करो.’’ करीमभाई ने सख्ती से कहा.

‘‘बताइए, आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘कैसा फैसला?’’

‘‘यही कि आप रूमाना को वापस कर रहे हैं या नहीं?’’

‘‘यह अब मुमकिन नहीं है. वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है.’’ करीमभाई ने कहा तो हारुन हंसा, ‘‘तब तो मेरा मामला और भी मजबूत हो गया. अभी तक तो आप दोनों मुकर सकते थे, लेकिन अब बच्चे की वजह से इनकार नहीं कर सकते.’’

‘‘हारुन, तुम मेरे औफिस आ जाओ. हम मिलबैठ कर मसले का हल निकाल लेंगे. अदालत जाने से बात नहीं बनेगी. मैं तो बदनाम हो ही जाऊंगा, लेकिन तुम भी मुश्किल में पड़ जाओगे. तुम्हारा मकसद भी पूरा नहीं होगा.’’ करीमभाई ने नरमी से कहा.

‘‘आप दोनों सिर्फ बदनाम ही नहीं होंगे, आप दोनों पर मुकदमा भी चलेगा, शादीशुदा औरत से शादी करने का.’’

‘‘यह बात तो तुम भूल जाओ. तुम झूठ बोल सकते हो. मेरे पास दौलत है, मैं बड़े से बड़ा गवाह खड़ा कर सकता हूं. कई झूठे गवाह गवाही को तैयार हो जाएंगे. मैं साबित कर दूंगा कि तुम ने रूमाना को तलाक दे दिया है.’’

‘‘मि. करीम, यह इतना आसान भी नहीं है. दौलत मेरे पास भी है. मैं भी बड़े से बड़ा वकील कर सकता हूं, जो तुम्हारे गवाहों की धज्जियां उड़ा देगा.’’ उस ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘इस तरह यह मामला बरसों चलेगा.’’

‘‘यही तो मैं चाहता हूं. अगर रूमाना मुझे नहीं मिलती है तो तुम भी सुकून से नहीं बैठ सकते. यह मीडिया का दौर है, हर चैनल पर मामला उछलेगा.’’

करीमभाई सोच में पड़ गए. अगर ऐसा हुआ तो उन की साख और इज्जत का क्या होगा? उन्होंने धीमे से कहा, ‘‘तुम रूमाना की वापसी के अलावा कोई हल सोचो. जो रकम तुम कहो, मैं देने को तैयार हूं. तुम अपनी डिमांड बताओ, मैं पूरी करूंगा.’’

हारुन कुछ देर सोचता रहा. उस के बाद बोला, ‘‘2 करोड़ रुपए. अगर तुम 2 करोड़ रुपए दे दो तो मैं पीछे हट जाऊंगा.’’

‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है.’’

‘‘लेकिन आप की आमदनी के सामने कुछ भी नहीं है. 2-3 महीने में फिर कमा लोगे.’’

करीमभाई ने सोचते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मैं 2 करोड़ रुपए दे दूंगा, लेकिन ऐसे नहीं. पेपर्स मैं खुद तैयार करूंगा. तुम उन पर 2 गवाहों के सामने साइन कर के तलाक दोगे. यह सारा काम मेरे औफिस में होगा.’’

‘‘नहीं, मैं सामने नहीं आऊंगा. तुम रकम और पेपर्स ले कर रूमाना को भेजोगे.’’

‘‘वह नहीं जाएगी.’’ करीमभाई ने कहा.

‘‘अगर वह नहीं आएगी तो कोई डील नहीं होगी.’’ हारुन ने सख्ती से कहा.

‘‘ठीक है, चली जाएगी वह. आगे बोलो.’’

‘‘रकम और पेपर्स ले कर रूमाना आएगी. रकम डौलर्स में होगी और वह उस बैंक में आएगी, जहां मैं बुलाऊंगा. मैं बैंक मैनेजर के सामने साइन करूंगा. वह मेरे साइन की तस्दीक करेगा, उस के बाद रूमाना पैसे मेरे एकाउंट में डाल देगी. मैं नंबर उसी वक्त बताऊंगा.’’

करीमभाई उस की बात सुन कर चिंता में पड़ गए . उन्होंने कहा, ‘‘बैंक मैनेजर तुम्हारा गवाह है तो बाद   में वह तुम्हारा फेवर करेगा.’’

‘‘नहीं, वह सिर्फ साइन सर्टिफाई करेगा. वह हमारा आदमी नहीं, बैंक का मुलाजिम है.’’ हारुन ने कहा.

‘‘ठीक है, लेकिन रूमाना के साथ मैं आऊंगा.’’ करीमभाई ने कहा.

‘‘नहीं, वह अकेली आएगी. कल मैं इसी समय फोन करूंगा. अगर तुम मेरी शर्तें मानते हो तो ठीक है, नहीं तो मामला अदालत में जाएगा.’’ हारुन ने अपनी बात कह कर फोन काट दिया.

हारुन ने बड़ी चालाकी से पूरा प्लान बनाया था. वह पहले ही सोच चुका था कि उसे कैसे और क्या करना है. जैसे ही करीमभाई 2 करोड़ रुपए देने को राजी हुए, उस ने पूरा प्लान बता दिया. सारा काम बैंक में होना था. इस के बावजूद हारुन को भरोसा नहीं था. करीमभाई बेदिली से औफिस का काम करने लगे. उन का सुकून जैसे खत्म हो गया था. उन्होंने संक्षेप में रूमाना को हारुन की बात बता दी थीं.

करीमभाई घर पहुंचे तो रूमाना बेचैनी से इंतजार कर रही थी. उन्होंने सारी बात बताई. 2 करोड़ की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘मुझे पता था कि वह बहुत लालची आदमी है. मैं ने अब तक शादी नहीं की थी तो चुप था. शादी होते ही खुल कर सामने आ गया.’’

करीमभाई ने कहा, ‘‘मेरे लिए परेशानी यह है कि उस ने तुम्हें अकेली बुलाया है. पर मैं साथ चलूंगा, जो होगा देखा जाएगा.’’

रूमाना ने प्यार से उस के सीने पर सिर रख कर कहा, ‘‘आप परेशान न हों. मुझे कोई खतरा नहीं है. सारा काम बैंक में होगा, मैं सब संभाल लूंगी.’’

करीमभाई का दिल तो नहीं मान रहा था, लेकिन रूमाना ने अकेली जाने की बात उन से मनवा ली कि वह जा कर उस से तलाक के पेपर्स पर साइन करवा लाएगी और रकम दे देगी.

अगले दिन हारुन का फोन आया तो उन्होंने कहा कि वह तैयार हैं. 2 करोड़ रुपए डौलर में तैयार हैं. हारुन ने कहा, ‘‘कल सुबह रूमाना रुपए ले कर कार से बैंक पहुंचे. किस बैंक में आना है, यह कल बताऊंगा.’’

अगले दिन रूमाना और हारुन किसी बैंक में नहीं, एक शानदार रेस्टोरेंट में कोने की मेज पर बैठे थे. सुबह का वक्त था, लोग बहुत कम थे. हारुन ने पूछा, ‘‘रकम कहां है?’’

हारुन ने यह बात इसलिए पूछी थी, क्योंकि रूमाना के पास कोई बैग नहीं दिख रहा था. रूमाना ने तलाक के पेपर्स हारुन के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये रहे तलाक के पेपर्स, जो करीमभाई ने खासतौर से बैक डेट में तैयार कराए हैं.’’

हारुन ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या तुम सचमुच तलाक..?’’

‘‘हां, तुम मुझे सच में तलाक दोगे. वैसे तुम मुझे पहले भी जबानी तलाक दे चुके हो.’’

‘‘वह तो मैं ने तुम्हारी तसल्ली के लिए दिया था. हम दोबारा शादी कर सकते हैं.’’ हारुन ने कहा.

‘‘मैं अब ऐसा नहीं चाहती.’’ रूमाना ने कहा.

हारुन ने व्यंग से कहा, ‘‘क्यों, इसलिए कि करीमभाई अरबपति है. वह आराम से करोड़ों किसी के मुंह पर मार सकता है.’’

‘‘नहीं, इसलिए कि कल दुबई जाने वाली फ्लाइट में तुम्हारी अकेले की सीट बुक है.’’ रूमाना ने तीखे लहजे में कहा.

रूमाना की बात सुन कर हारुन का चेहरा उतर गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘अब यह सब पता करना कोई मुश्किल काम नहीं है. मुझे पहले से ही पता था कि यह आखिरी काम होगा और उस के बाद तुम पैसे ले कर चुपके से खिसक जाओगे. सारी रकम पहले से ही तुम्हारे पास थी. इसलिए अब मैं यह काम नहीं करना चाहती थी. तुम मुझे तनहा और बेसहारा छोड़ कर भाग जाने वाले थे न, था न तुम्हारा यही प्लान?’’ रूमाना ने कहा.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 4

जब अंजलि वनखंडी मंदिर पर अकेली रह गईं. प्रखर ने बेटी के वाट्सएप से उन को मैसेज भेज कर जंगल में अंदर बुला लिया. बेटी के मोह में वह बिना कुछ सोचेसमझे जंगल में पहुंच गईं. वहां प्रखर ने उन्हें पीछे से पकड़ लिया और शीलू ने उनके ऊपर ताबड़तोड़ चाकू से वार किए.

इस के बाद प्रखर ने चाकू ले कर वार कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. हत्या के बाद लाश को घसीट कर गड्ढे में फेंक दिया. इसी बीच जब अंजलि को तलाशते हुए उदित मंदिर पर दोबारा पहुंचे, तब प्रखर ने शीलू से कहा कि इसे भी निपटा देते हैं. लेकिन अंजलि की हत्या के बाद दोस्त शीलू की हिम्मत जबाव दे गई थी. उस ने कहा कि 2-2 हत्याओं से हडक़ंप मच जाएगा और हम पकड़े जाएंगे. तब दोनों वहां से फरार हो गए.

पढ़ाईलिखाई की उम्र में प्रखर किसी पेशेवर अपराधी की तरह सोच रहा था. फिल्में देख कर प्रखर अपना तेज दिमाग चला रहा था. अपनी प्रेमिका की मां की हत्या के बाद वह पिता उदित को भी मौत की नींद सुलाना चाहता था ताकि करोड़पति की इकलौती बेटी को वह अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस की पूरी संपत्ति पर कब्जा कर ले.

वह ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहता था. उस ने कंचन से कहा कि वह इंटर करने के बाद दिल्ली आ जाए, आगे की पढ़ाई में वह उस की मदद करेगा. हम लोग करिअर बनाने के बाद शादी करेंगे. वह कोई बड़ा बिजनैस करेगा. बिजनैस कर उसे खुश रखेगा.

कंचन ने पुलिस को बताया कि जब उस के मातापिता घर पर नहीं होते थे तो उस समय प्रखर किसी लडक़ी को साथ ले कर उस के घर आता था. उस समय बाबा दादी अपने कमरे में होते थे. लडक़ी साथ होने से वे शक भी नहीं करते थे.

प्रखर को अंजलि की हत्या 5 जून, 2023 को करनी थी, लेकिन उस दिन उस की बाइक फिसल गई जिस से वह चोटिल हो गया था. फिर 7 जून को हत्या की योजना बनाई गई.

मां का समझाना बेटी को रास नहीं आया

प्रखर ने ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया, जिस से कंचन बाहर नहीं निकल पाई. कंचन को लगा कि प्रखर से ज्यादा प्यार करने वाला कोई उसे नहीं मिल सकता. महज 6 महीने की दोस्ती एक बड़ी वारदात का सबब बन गई. अंजलि बेटी को समझा रही थी कि यह उम्र प्यार करने की नहीं पढऩे की है. लडक़े झूठ बोल कर ऐसे ही लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाते हैं, लेकिन कंचन कुछ सुनने को तैयार नहीं थी.

प्रखर में सारे ऐब थे. वह सिगरेट और शराब भी पीता था. इस बात की जानकारी कंचन को भी थी. इस पर कंचन मां से यह कहती कि यह तो कामन बात है. लडक़े बाहर पार्टी करेंगे तो ड्रिंक तो आम बात है. स्कूल तक में बच्चे ई-सिगरेट बैग में ले कर आते हैं. कोई बुरा नहीं मानता. कंचन हत्यारोपी अपने प्रेमी प्रखर का शुरू से अंत तक बचाव करती रही.

एसएचओ आनंद कुमार शाही ने गिरफ्तार दोनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद प्रखर गुप्ता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. जबकि कंचन को 13 जून को किशोर न्यायालय के समक्ष पेश किया गया. कोर्ट में उस के बयान भी दर्ज कराए गए. वहां से उसे महिला बालिका संरक्षण गृह, गाजियाबाद भेज दिया गया.

क्रिप्टोकरैंसी में पैसा लगाता था प्रखर

आरोपी प्रखर से पुलिस पूछताछ में पता चला कि वह क्रिप्टोकरैंसी में भी पैसा लगाता था. उसे घाटा हो गया था. इस पर उस ने पैसा लगाना बंद कर दिया था. वह कंचन का शोषण कर रहा था. इस के साक्ष्य मिले हैं. मोबाइल में फोटो हैं. ये कब और कहां खींचे, किशोरी ने बताया है. अब वह प्रेमी के खिलाफ बोलने को तैयार है. कंचन ने पुलिस को जो बयान दिए, उस में प्रखर से संबंध की बात कही है.

मैडिकल रिपोर्ट के आधार पर आगे की काररवाई की जाएगी. इस आधार पर केस में पोक्सो ऐक्ट और शोषण की धारा भी लग जाएंगी. पुलिस ने आरोपी प्रखर की कुंडली खंगालने के साथ ही उस के दोस्तों और शिक्षकों से भी उस के बारे में पूछताछ की. इस में पता चला कि प्रखर बिगड़ैल है. रोजाना बाइक पर घूमने निकलता है. ब्रांडेड कपड़े पहनता है. लड़कियों को प्रभाव में ले कर उन से दोस्ती करता है.

इस के लिए वह हर हथकंडा अपनाता है. दोस्ती के बाद अपनी मंहगी बाइक पर उन्हें घुमाता था. इस कारण लड़कियां प्रभावित हो जाती थीं. उस ने कई लड़कियों से दोस्ती कर रखी थी. लेकिन कंचन उस के ज्यादा नजदीक थी.

बेटी अपनी मां अंजलि की हत्या में शामिल थी. इस बात की जानकारी होने पर परिजनों ने उस से दूरी बना ली है. एक तरफ कारोबारी उदित बजाज ने अपनी पत्नी को खो दिया तो दूसरी तरफ इकलौती बेटी पर पुलिस काररवाई कर रही है.

पुलिस की पूछताछ के दौरान कोई भी परिजन उस से मिलने नहीं गया. महिला पुलिसकर्मी ही कंचन के पास बैठी रही.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कंचन परिवर्तित नाम है.

समस्या समाधान के नाम पर ठगी

42 वर्षीय इंदरजीत कौर अकसर बीमार रहती थी. तमाम डाक्टरों से उस का इलाज चला, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. उस के पिता हरवंश सिंह एक सरकारी मुलाजिम थे. बेटी को ले कर वह बड़ा परेशान रहते थे. इंदरजीत कौर के अलावा उन के 2 बेटे भी थे.

हरवंश सिंह दक्षिणी दिल्ली के नेहरूनगर में परिवार के साथ रहते थे. छोटा परिवार होने के बावजूद वह हमेशा परेशान रहते थे. उन की यह परेशानी बेटी इंदरजीत कौर को ले कर थी. अब तक शादी के बाद उसे ससुराल में होना चाहिए था, लेकिन बीमारी की वजह से उस की शादी नहीं हो पाई थी. इस के अलावा दूसरी परेशानी बड़े बेटे को ले कर थी, जो शादी के 8 सालों बाद भी बाप नहीं बन पाया था. तीसरी परेशानी छोटे बेटे को ले कर थी, जो अभी तक बेरोजगार था.

इंदरजीत कौर पिता को अकसर समझाती रहती थी कि वह चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वह ङ्क्षचता से उबर नहीं पा रहे थे. परिवार की जिम्मेदारी एक तरह से इंदरजीत ही संभाले थी. हरवंश सिंह सेवानिवृत्त हुए तो फंड के उन्हें जो 15 लाख रुपए मिले, उन में से 12 लाख रुपए उन्होंने इंद्रजीत के नाम जमा करा दिए थे. इस पर बेटों ने कोई ऐतराज नहीं किया था.

रिटायर होने के कुछ ही महीने बाद हरवंश सिंह की मौत हो गई थी. उन के मरने के 4 महीने बाद ही उन की पत्नी की भी मौत हो गई. 4 महीने में ही मांबाप दोनों की मौत हो जाने से इंदरजीत को गहरा सदमा लगा था. उन के मरने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ पड़ी थी.

हरवंश सिंह ने अपना एक फ्लैट कुसुमा को किराए पर दे रखा था. उन के मरने के बाद इंदरजीत ने वह फ्लैट खाली कराना चाहा तो उस ने फ्लैट खाली करने से साफ मना कर दिया, जिस का मुकदमा रोहिणी कोर्ट में चल रहा है.

इंदरजीत शारीरिक रूप से तो परेशान थी ही, मानसिक तौर पर भी परेशान रहने लगी थी. उस के छोटे भाई की उम्र 36 साल हो चुकी थी, उस की अभी तक न तो नौकरी लगी थी और न ही शादी हुई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इन परेशानियों से कैसे निजात पाया जाए.

6 सितंबर को इंदरजीत के मोबाइल फोन पर एक एसएमएस आया, जिस में लिखा था, ‘जानिए कैसे होगा आप की समस्या का समाधान? नौकरी, व्यापार में घाटा, शादी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्यार में असफलता, शौतन से छुटकारा, मुठकरनी आदि समस्याओं के समाधान की 100 प्रतिशत गारंटी.’

इंसान तमाम तरह की परेशानियों से घिरा हो और कोशिश करने के बावजूद उस की मुश्किलें कम न हो रही हों तो इस तरह के मैसेज में उसे समस्याओं का हल दिखाई देने लगेगा. मैसेज के अंत में एक फोन नंबर भी दिया था. मैसेज पढऩे के बाद इंदरजीत ने सोचा कि क्यों न वह एक बार उस फोन नंबर पर बात कर के देखे. शायद यहां उस की समस्याएं हल ही हो जाएं. इसी उम्मीद में इंदरजीत ने अपने फोन से मैसेज में दिए नंबर 012048823333 पर फोन किया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव किया गया तो उस ने अपनी सारी समस्याओं के बारे में विस्तार से बता दिया. उधर से बाबा त्यागी, जिस ने फोन उठाया था, भरोसा दिया कि उस की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, लेकिन वह एक घंटे बाद दोबारा करे. बाबा त्यागी ने दोबारा बात करने के लिए दूसरा फोन नंबर दे दिया था.

इंदरजीत कौर ने एक घंटे बाद बाबा द्वारा दिए नंबर पर फोन किया तो उधर से बाबा त्यागी ने कहा, “बच्चा, हम ने अपनी गद्दी पर बैठ कर अपने ईष्ट से बात कर ली है, पता चला है कि तुम परेशानियों से घिरी पड़ी हो.”

“हां बाबा, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.” इंदरजीत ने कहा.

“तुम्हारे ऊपर दुष्ट प्रेतात्माओं के साथ एक भयानक जिन्न कब्जा जमाए है, इसी वजह से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती. बच्चा अगर तुम ने इन से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं किया तो तुम्हारे घर में जल्दी ही 3 मौतें और हो सकती हैं.” तांत्रिक ने कहा.

“मौतेंऽऽ,” इंदरजीत कौर ने घबरा कर पूछा, “किसकिस की?”

“तुम्हारे बड़े भाईभाभी और छोटे भाई की,” बाबा ने कहा, “अगर तुम इस कहर से बचना चाहती हो तो तुम्हें तुरंत पूजा करवानी होगी.”

“पूजा में कितना खर्च आएगा बाबा?”

“यही कोई 80-90 हजार रुपए.”

घर की परेशानियों से छुटकारा के लिए इंदरजीत तैयार हो गई. उस ने कहा, “ठीक है बाबा, मैं पूजा कराने को तैयार हूं. आप तैयारी कीजिए. बताइए, पैसे ले कर कहां आना है?”

“तुम्हें मेरे पास आने की कोई जरूरत नहीं है. मैं तुम्हें आईसीआईसीआई बैंक का एक एकाउंट नंबर बता रहा हूं. तुम उसी में पैसे जमा कर के मुझे फोन कर दो. इस के बाद मैं पूजा शुरू कर दूंगा.” कह कर तांत्रिक ने आईसीआईसीआई बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर दिया.

अगले दिन यानी 7 सितंबर को इंदरजीत कौर ने आईसीआईसीआई बैंक के एकाउंट में 80 हजार रुपए जमा करा कर तांत्रिक को फोन कर दिया. तांत्रिक ने बताया था कि पूजा श्मशान में होगी और पूरे 3 दिनों तक चलेगी.

पैसे जमा कराए एक महीने से ज्यादा हो गया, लेकिन इंदरजीत कौर को कोई फायदा नजर नहीं आया. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन बाबा के बजाय उन के किसी चेले ने उठाया. उस का नाम सुनील कुमार था. उस ने कहा, “अभी तो बाबा पूजा करने उज्जैन गए हैं, वहां से एक महीने बाद लौटेंगे.”

इंदरजीत कौर ने 2 बार फोन किया तो दोनों बार फोन सुनील ने ही रिसीव किया. उस ने दोनों बार वही बताया. इस के बाद उस ने जब भी फोन किया, फोन सुनील ने ही रिसीव किया. हर बार उस ने वही बहाना बना दिया.

आखिर एक दिन बाबा ने फोन रिसीव किया. उस ने कहा, “कहो बच्चा, कैसे हो?”

“बाबा, मैं जैसी पहले थी, वैसी ही अभी भी हूं. मुझे कोई फर्क नजर नहीं आया.” इंदरजीत ने कहा.

“मैं तुम्हें फोन करने वाला था,” बाबा ने कहा, “मुझे लगा था कि दुष्ट आत्माएं काबू में आ गई होंगी, लेकिन वे इतनी दुष्ट हैं कि उन्हें काबू करने के लिए हमें बड़ी पूजा करनी पड़ेगी. अगर यह पूजा न की गई तो तुम्हारे यहां होने वाली मौतों को रोका नहीं जा सकता.”

इंदरजीत कौर बुरी तरह घबरा गई. वह अपने घर को उजड़ता नहीं देखना चाहती थी, इसलिए उस ने पूछा, “बाबा, बड़ी पूजा में कितना खर्च आएगा?”

“यही कोई एक लाख 30 हजार रुपए.” बाबा ने कहा.

इंदरजीत कौर ने अगले दिन अपने भारतीय स्टेट बैंक के खाते से एक लाख 30 हजार रुपए निकाल कर श्री शिवसेना समिति धार्मिक संस्थान के खाते में जमा करा दिए.

एक सप्ताह बीत गया, लेकिन इंदरजीत कौर की एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ. उस ने बाबा को फोन किया तो फोन सुनील ने रिसीव किया. उस ने बताया कि बाबा अभी श्मशान में शव साधना कर रहे हैं.

एक दिन बाद बाबा त्यागी ने खुद इंदरजीत कौर को फोन कर के कहा, “मैं ने जो शव साधना की है, उस से दुष्ट आत्माएं तो हमारी गिरफ्त में आ गई हैं, लेकिन वह जिन्न अभी काबू में नहीं आया है. उस के लिए हमें एक विशेष तरह का अनुष्ठान करना होगा, जिस के लिए कामाख्या मंदिर से गुरुजी को बुलाना होगा. गुरुजी श्मशान में 11 दिनों तक अनुष्ठान करेंगे.”

“बाबा आप को जो भी करना है, जल्दी कीजिए. इस में कितना खर्च आएगा, यह बता दीजिए.”

“इस अनुष्ठान में करीब 3 लाख रुपए खर्च हो जाएंगे.” बाबा त्यागी ने कहा.

“मैं कल ही 3 लाख रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगी.” उस ने कहा और अगले दिन 3 लाख रुपए बाबा के बैंक खाते में जमा करा दिए.

अब तक इंदरजीत पूजा के नाम पर करीब 9 लाख रुपए बाबा के बताए बैंक खाते में जमा करा चुकी थी. पैसे जमा कराने के अगले दिन ही बाबा त्यागी ने फोन कर के कहा, “बेटा गजब हो गया, जो गुरुजी श्मशान में अनुष्ठान कर रहे थे, उन पर जिन्न ने हमला कर दिया. वह मरणासन्न हालत में हैं. उन का इलाज नहीं कराया गया तो उन की मौत हो सकती है. अगर उन की मौत हो गई तो इस का पाप तुम्हें ही लगेगा.”

“इस के लिए मुझे क्या करना होगा बाबा?”

“गुरुजी के इलाज के लिए संजीवनी बूटी मंगानी होगी, जिस पर 2 लाख रुपए का खर्च आएगा.”

इंदरजीत कौर अब तक पूजा के नाम पर 12 लाख रुपए तांत्रिक बाबा त्यागी के खाते में जमा करा चुकी थी. लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ था, इसलिए उसे शक होने लगा था कि कहीं वह किसी ठग के जाल में तो नहीं फंस गई है. इसलिए उस ने 2 लाख रुपए जमा करा दिए.

इंदरजीत कौर का छोटा भाई अपना कोई कारोबार शुरू करना चाहता था. उसे 8 लाख रुपए की जरूरत थी. उसी बीच उस ने बहन से ये रुपए मांगे तो उस ने रुपए बाबा त्यागी के खाते में जमा कराने की बात बता कर पैसे देने से मना कर दिया.

बहन की बात सुन कर छोटा भाई हैरान रह गया. उस ने अपना सिर पीट कर कहा, “पढ़ीलिखी होने के बावजूद दीदी तुम उस ढोंगी के जाल में कैसे फंस गईं? कम से कम मुझे तो बता देतीं. 3 साल से बाबा तुम्हें ठग रहा है और तुम ने कभी मुझ से चर्चा तक नहीं की.”

“क्या करूं भाई, उस ने मुझे इतना डरा दिया था कि मैं किसी से कुछ कह नहीं सकी.” कह कर इंदरजीत रोने लगी तो भाई ने उसे समझाते हुए कहा, “दीदी, तुम्हें अब पुलिस के पास जा कर उस ठग के खिलाफ रिपोर्ट लिखानी होगी. 12 लाख रुपए भले ही वापस न मिलें, लेकिन कम से कम उसे अपने किए की सजा तो मिलेगी.”

छोटे भाई की बात इंदरजीत कौर की समझ में आ गई. 24 नवंबर की शाम वह भाई के साथ थाना लाजपतनगर पहुंची और वहां मौजूद थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़ को पूरी बात बताई. इस के बाद इंदरजीत कौर की तहरीर पर थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 420/384/506134 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा को पूरे वाकये से अवगत करा दिया.

एक पढ़ीलिखी महिला को जिस तरह से एक तांत्रिक ने ठगा था, उस से डीसीपी को लगा कि ढोंगी तांत्रिक बेहद शातिर है. उस तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने एसीपी एस.के. केन के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी रमेश कुमार कक्कड़, इंसपेक्टर मानवेंद्र सिंह, प्रवीण कुमार, एसआई अमित भाटी, हैडकांस्टेबल सुधाकर, कांस्टेबल नीरज, संतोष, सुधीर आदि को शामिल किया गया.

इंदरजीत कौर के पास बाबा त्यागी का केवल फोन नंबर था. रमेश कुमार कक्कड़ ने उस ठग तांत्रिक को इंदरजीत के माध्यम से ही घेरने की योजना बनाई. उन्होंने इंदरजीत से बाबा त्यागी को फोन कराया. बाबा ने फोन उठाया तो इंदरजीत ने कहा,

“बाबा, अभी तक मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. आप कुछ ऐसा कीजिए कि हमारे सारे दुख मिट जाएं. मैं इस के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.”

“कामाख्या मंदिर वाले गुरुजी ने अनुष्ठान पूरा करने के बाद मुझे बताया था कि जिन्न और आत्माएं काबू में आ गई हैं. लेकिन जब तक तुम्हारे पिता का पिंडदान रामेश्वरम में नहीं कराया जाता, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी.”

“तो फिर आप यह भी करवा दीजिए.”

“इस के लिए 33 ब्राह्मïणों को यज्ञ के लिए रामेश्वरम ले जाना होगा. ब्राह्मïणों का किराया, यज्ञ आदि पर कुल 1 लाख 80 हजार रुपए का खर्च आएगा.”

“ठीक है, मैं कल ही यह रकम दे दूंगी. लेकिन इस बार रकम बैंक में जमा नहीं करा सकती. क्योंकि मैं जब भी वहां पैसे जमा कराने जाती हूं, बैंक वाले पूछते हैं कि तुम इतनी बड़ीबड़ी रकम इस खाते में क्यों जमा कराती हो?” इंदरजीत कौर ने कहा.

बाबा त्यागी ने यूनियन बैंक औफ इंडिया का खाता नंबर दे कर उस में पैसे जमा कराने को कहा. इंदरजीत कौर थानाप्रभारी के कहे अनुसार काम कर रही थी. उन्होंने पैसे जमा कराने से मना किया तो शाम को बाबा त्यागी को फोन कर के इंदरजीत ने कहा, “बाबा, मैं बैंक में पैसे जमा कराने गई थी, बैंक वाले कह रहे थे कि इस खाते में 25 हजार रुपए से ज्यादा जमा नहीं कराए जा सकते. इसलिए आप कल अपना कोई आदमी भेज दीजिए, मैं उसे पूरे पैसे दे दूंगी.”

“ठीक है, कल सुबह मेरा आदमी तुम्हारे घर पहुंच जाएगा. तुम अपना पता मैसेज कर दो. लेकिन वह जिस टैक्सी से जाएगा, उस का किराया तुम्हें ही देना होगा.” बाबा त्यागी ने कहा.

“यही ठीक रहेगा. आप उन्हें भेज दीजिए. मैं उन्हें किराए के पैसे भी दे दूंगी.” कह कर इंदरजीत कौर ने फोन काट दिया.

25 नवंबर की सुबह थानाप्रभारी टीम के साथ आम कपड़ों में इंदरजीत कौर के घर के आसपास लग गए. सुबह 9 बजे के करीब एक टैक्सी इंदरजीत कौर के घर के सामने आ कर रुकी. टैक्सी से एक लडक़ा उतरा और इंदरजीत कौर के घर की डोरबैल बजा दी. इंदरजीत कौर ने दरवाजा खोला. युवक ने अपना नाम सुनील कुमार बताया.

इंदरजीत कौर उसे ड्राइंगरूम में ले आई. थानाप्रभारी अंदर ही बैठे थे. इंदरजीत ने उसे पानी पिलाया तो उस ने कहा, “मैडम, पैसे जल्दी दे दीजिए. बाबा ने मुझे जल्दी बुलाया है. अभी हमें पूजा का सामान वगैरह भी खरीदना है.”

इंदरजीत कौर ने अपने पर्स से थानाप्रभारी के हस्ताक्षर किए 5 हजार रुपए निकाल कर सुनील को देते हुए कहा, “पहले तुम टैक्सी के किराए के पैसे ले लो, बाकी के पैसे अभी दे रही हूं.”

पैसे गिन कर जैसे ही सुनील ने अपनी जेब में रखे, थानाप्रभारी ने उसे पकड़ लिया. इशारा करने पर मकान के बाहर मौजूद पुलिसकर्मी भी अंदर आ गए. सुनील को पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में सुनील कुमार ने जो बताया, उस के बाद पुलिस ने उसी दिन उत्तर प्रदेश के महानगर गाजियाबाद की कालोनी राजनगर स्थित एक मकान में छापा मारा. वहां का नजारा देख कर पुलिस हैरान रह गई. वहां इस तरह के लोगों को फंसाने के लिए एक काल सेंटर चल रहा था. अलगअलग 12 केबिन बने थे, जिन में 5 लडक़े और 7 लड़कियां बैठी थीं.

पुलिस को देख कर सभी के होश उड़ गए. उन्हीं के बीच एक भव्य औफिस बना था, जिस में शेष नारायण दुबे और पवन कुमार पांडेय नाम के 2 लोग बैठे थे. सुनील की निशानदेही पर पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा काल सेंटर में काम करने वाले लडक़ेलड़कियों को भी पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

थाने में हुई पूछताछ में पता चला कि ठगी का यह सारा मायाजाल शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी का रचा था.

32 वर्षीय शेष नारायण दुबे गाजियाबाद की इंदिरापुरम कालोनी में रहने वाले रामबहादुर दुबे का बेटा था. रामबहादुर पंडिताई करते थे. पिता की देखादेखी शेष नारायण कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिस में कम खर्च में अच्छी आमदनी हो.

उस ने अपने करीबी रिश्तेदार पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार से बात की तो उन्होंने तंत्रमंत्र के नाम पर ठगी का कारोबार करने की सलाह दी. इस के बाद शेषनारायण को बाबा त्यागी बना कर कारोबार शुरू भी कर दिया गया. इन्होंने शहर के राजनगर में एक कमरा किराए पर लिया, जिस में उन्होंने दरजन भर कंप्यूटर लगा कर लड़कियों व लडक़ों को नौकरी पर रख लिया.

इस के बाद मोबाइल कंपनी से हजारों ग्राहकों के फोन नंबर और पते हासिल किए. उन में से रोजाना कुछ नंबरों पर कालसेंटर द्वारा समस्याओं के समाधान के मैसेज भेजे जाने लगे. हर कोई किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होता ही है, इसलिए अंधविश्वासी लोग मैसेज में दिए फोन नंबर पर समस्या के समाधान के लिए फोन करने लगे. ये लोग उन्हें परिवार के सदस्यों की मौत का भय दिखा कर बैंक खाते में मोटी रकम जमा करवाने लगे.

दिल्ली के लाजपतनगर के नेहरूनगर की रहने वाली इंदरजीत कौर को भी इन्होंने उस के भाइयों व भाभी की मौत का भय दिखा कर 12 लाख रुपए ठग लिए थे. पूछताछ में पता चला कि ये लोग अब तक करीब 3 सौ लोगों को इसी तरह ठग चुके हैं.

इन के कालसेंटर पर नौकरी करने वाले लडक़ेलड़कियों को पुलिस ने हिदायत दे कर छोड़ दिया. शेष नारायण दुबे उर्फ बाबा त्यागी, पवन कुमार पांडेय और सुनील कुमार को 26 नवंबर को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया है.

पुलिस ने इन के कालसेंटर को सील कर दिया है. कथा लिखे जाने तक इन में से किसी की भी जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता

शराफत का इनाम – भाग 3

करीमभाई को कुछ सालों पहले ऐनजाइमा की तकलीफ हुई थी. डाक्टर ने उन्हें जुबान के नीचे रखने वाली गोली दी थी. उन्होंने कांपते हाथों से गोली जुबान के नीचे रखी. आंखें बंद कर के गहरीगहरी सांसें लेने लगे. थोड़ी तबीयत संभली तो घर के लिए रवाना हो गए.

‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’ रूमाना ने उन के घर पहुंचते ही पूछा.

‘‘हां, कुछ परेशानी है. तुम बहुत खुश लग रही हो?’’

‘‘हां, खबर ही खुशी की है. लेकिन पहले आप बताइए कि क्यों परेशान हैं?’’

करीमभाई कुछ देर टहलते रहे, उस के बाद सोच कर बोले, ‘‘आज हारुन हमारे औफिस में आया था.’’

‘‘हारुन आया था?’’ रूमाना ने हैरानी से पूछा. इस के बाद बिफर कर बोली, ‘‘आप ने उसे औफिस से निकलवा क्यों नहीं दिया?’’

‘‘मैं यही करता, लेकिन रूमाना, तुम यह बताओ कि हारुन ने तुम्हें जबानी तलाक दिया था या लिख कर दिया था?’’

‘‘जबानी दिया था. मगर इस से क्या फर्क पड़ता है. तलाक तो तलाक है, जबानी दे या लिख कर दे. तलाक तो हो जाता है.’’ वह सादगी से बोली. करीमभाई ने सिर पर हाथ मार कर कहा, ‘‘तुम बड़ी मासूम हो. तुम्हें नहीं मालूम कि आजकल जमाना कितना खराब हो गया है. अगर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है तो अदालत में यही माना जाएगा कि उस ने तुम्हें तलाक नहीं दिया है.’’

रूमाना हैरान रह गई, ‘‘आप…आप का मतलब है कि वह कमीना आदमी 4 साल बाद यह दावा ले कर आया है कि तलाक नहीं हुआ है.’’

‘‘हां, उस के पास निकाहनामे की कौपी है. रजिस्ट्रार औफिस की रजिस्टर्ड कौपी है.’’ यह कह कर निकाह की कौपी रूमाना के हाथ में दे दी, जो हारुन छोड़ कर गया था.

‘‘बकवास करता है कमबख्त.’’ रूमाना ने गुस्से से निकाहनामा फाड़ कर फेंक दिया. इस के बाद गुस्से से कांपते हुए बोली, ‘‘कोई संबंध नहीं है हारुन से मेरा, मैं आप की बीवी हूं.’’ कह कर रूमाना रोने लगी.

‘‘मैं जानता हूं.’’ करीमभाई ने कहा और रोती हुई रूमाना को सीने से लगा कर चुप कराने लगे.

‘‘आज मैं आप को एक खुशखबरी सुनाने वाली थी कि यह मनहूस खबर आ गई.’’

‘‘कैसी खुशखबरी?’’ सेठ करीमभाई ने पूछा.

रूमाना ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मैं मां बनने वाली हूं. आज ही मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

करीमभाई खुश हो गए. उन्होंने बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘‘अब तुम फिक्र मत करो, मैं सारा मामला निपटा लूंगा.’’

‘‘आप क्या करेंगे? पुलिस में जाएंगे?’’

‘‘नहीं, पुलिसअदालत में जाने से मामला बिगड़ जाएगा. मेरे पास एक तरीका है, मैं उस का मुंह बंद कर दूंगा.’’

बाद में हारुन ने रूमाना को फोन कर के कहा, ‘‘तुम ने अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह अदा की है. बच्चे के बारे में सुन कर बुड्ढा तो दीवाना हो गया होगा?’’

‘‘हां हारुन, लेकिन मुझे डर लग रहा है. उस ने कहा है कि उस के पास उस का मुंह बंद करने का एक तरीका है.’’

‘‘अरे वह रकम दे कर मुंह बंद कराने की बात कर रहा होगा.’’ हारुन ने कहा.

‘‘नहीं, सोचो वह अरबपति है. उस के पास दौलत की ताकत है. अगर उस ने इस ताकत को तुम्हारे खिलाफ इस्तेमाल किया तो..? मैं ने 2 बार पूछा कि कौन सा तरीका है तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रकम की बात होती तो वह मुझ से जरूर बता देता.’’

रूमाना की इस बात से हारुन परेशान हो गया. इस से पहले उन्होंने जिन 5 लोगों को इसी तरह फांसा था, उन में से कोई भी इतना दौलतमंद नहीं था.

वैसे तो करीमभाई देखने में बहुत शरीफ था, दौलत का इस्तेमाल कर के पुलिस को मिलाने और किराए के किलर की व्यवस्था करने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी. उस के पास कई औप्शन थे. हारुन बुनियादी तौर पर बुजदिल आदमी था. उस ने रूमाना से पूछा, ‘‘तुम क्या सोचती हो?’’

‘‘मेरी सलाह तो यही है कि अब तुम उस के सामने मत जाना. फोन पर बात करो और यह सिम बंद कर दो या जब बात करनी हो तभी चालू करो, क्योंकि यह सिम तुम्हारे नाम है. वह तुम्हें ब्लैकमेलिंग में फंसा सकता है. एक बात और याद रखना हारुन, तुम ने वादा किया था कि यह आखिरी बार है. इस के बाद हम बाहर चले जाएंगे.’’

हारुन ने एक बार फिर वही यकीन दिलाया, जो पहले भी कई बार दिला चुका था. वह चालबाज, शातिर आदमी था. उस का और रूमाना का 7 साल से ज्यादा का साथ था.

दोनों ने घर से भाग कर शादी की थी. रूमाना एक बहुत अच्छे खानदान की लड़की थी, लेकिन कमउम्र में मोहब्बत के जज्बात में आ कर उस के साथ भाग गई थी और शादी कर ली थी. रूमाना के घर वाले हारुन को बिलकुल नहीं पसंद करते थे. हारुन को घरगृहस्थी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उस का मकसद बस दौलत कमाना और अय्याशी करना था.

दोनों कई शहरों में रहे और हर जगह इसी तरह चक्कर चला कर कई लोगों को ब्लैकमेल किया. रूमाना मजबूर थी. वह घर भी वापस नहीं जा सकती थी. घर जाने पर उस के दोनों भाई उसे जिंदा जला देते.

हारुन ने रूमाना को जिस रास्ते पर चलाया था, वह उस पर चलने को मजबूर थी. इसी वजह से उन्होंने काफी दौलत जमा कर ली थी. इस के अलावा भी हारुन उल्टेसीधे तरीकों से पैसे कमाता रहता था. ऐसे कामों में रूमाना उस का साथ देतेदेते तंग आ चुकी थी. यह भी कह सकते हैं कि वह थक चुकी थी. उस का कहना था कि यह आखिरी बार है, इस के बाद वे बाहर चले जाएंगे.

करीमभाई लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन हारुन का नंबर नहीं लग रहा था. वह लगातार बंद बता रहा था. उस ने 2 दिन का समय दिया था. एक ही दिन उन के पास था. वह सोच रहे थे कि हारुन न जाने कितनी रकम पर राजी होगा? काम में उन का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. उन्होंने फाइलें बंद कर दीं. बारबार उन का ध्यान मोबाइल पर जा रहा था. इस के पहले वह कभी इतना परेशान नहीं हुए थे.

कहां खुशी मनाने का मौका था और वह परेशान थे. फोन की घंटी बजी तो उन्होंने लपक कर उठाया. लेकिन यह रूमाना का फोन था. उस ने पूछा, ‘‘हारुन का कोई फोन आया? मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है, मैं सब संभाल लूंगा. अगर घी सीधी अंगुली से नहीं निकला तो मुझे अंगुली टेढ़ी करना भी आता है. मुझे पता है कि मुझे क्या करना है.’’ करीमभाई ने दृढ़ता से कहा.

रूमाना ने धीरे से कहा, ‘‘शादी के बाद मैं बहुत खुश थी. खुद को बहुत महफूज समझ रही थी, लेकिन यह बखेड़ा खड़ा हो गया.’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 3

नूनूराम ने पत्नी और बेटे से भी पिंकी के बारे में पूछा. पत्नी ने बताया कि काम खत्म होते ही बहू कमरे में बंद हो जाती थी. फिर वह फोन पर फुसुरफुसुर बातें करती रहती थी. बेटे ने भी कुछ ऐसा ही बताया. उस का कहना था कि एक पत्नी को जिस तरह अपने पति के प्रति समर्पित होना चाहिए, वह समर्पण भाव पिंकी में नहीं था. इन बातों ने साफ कर दिया था कि पिंकी का प्रेमसंबंध नितेश था.

सारी जानकारी जुटा कर नूनूराम ने थाना घनावर में पिंकी को षडयंत्र रच कर गायब करने और उन के परिवार को झूठे मुकदमे में फंसाने का मुकदमा 6 फरवरी, 2013 को केदार राणा, पिंकी, उस के प्रेमी नितेश राय, उस के भाई निरेश राय, पिता चंद्रभानु राय, नितेश की बहन कल्याणी, केदार राणा के दामाद चतुर शर्मा के खिलाफ दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद लोगों से पूछताछ तो की, लेकिन सुबूत न होने की वजह से कोई काररवाई नहीं कर सकी.

नूनूराम ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो वह अपने स्तर से नितेश के बारे में पता लगाने लगे. आदमी चाह ले तो कौन सा काम नहीं हो सकता. आखिर नूनूराम ने पता कर ही लिया कि नितेश के पिता चंद्रभानु राय अपने खाते से हर महीने नितेश के खर्च के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. लेकिन वह पैसा कहां ट्रांसफर करते हैं, यह पता नहीं चल रहा था. उन्होंने हार नहीं मानी और अंत में पता कर ही लिया कि वह पैसा कहां जाता है.

नूनूराम ने पता कर लिया था कि निश्चित तारीख पर चंद्रभानु वाराणसी के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. इस से उन्हें लगा कि नितेश और उन की बहू पिंकी, जिस की हत्या के आरोप में उन का बेटा अरुण जेल में बंद है, वह वाराणसी में कहीं रह रही हैं.

इतने बड़े वाराणसी में उन्हें खोजना आसान नहीं था. लेकिन नूनूराम ने घुटने नहीं टेके और मेहनत कर के पता लगा ही लिया कि नितेश और पिंकी वाराणसी के पांडेपुर में रह रहे हैं. उन्हें यह भी पता चल गया था कि पिंकी अब नितेश के बेटे की मां भी बन चुकी है.

पूरी जानकारी जुटाने के बाद नूनूराम ने इस बात की सूचना इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय और थाना घनावर के थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को दे दी. थानाप्रभारी रासबिहारी लाल के लिए इतनी जानकारी काफी थी. उन्होंने सारी बात गिरिडीह के पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार गढ़देसिया को बताई तो उन्होंने पिंकी और नितेश की गिरफ्तारी के लिए सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में हेडकांस्टेबल हरेंद्र सिंह, 2 महिला कांस्टेबल सुनीता और सरिता को शामिल किया गया.

पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार ने थाना कैंट के इंस्पेक्टर विपिन राय को फोन कर के इस टीम का सहयोग करने के लिए भी कह दिया. लेकिन वाराणसी से इस पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. क्योंकि नितेश, पिंकी और बेटे को ले कर एक दिन पहले ही गिरिडीह चला आया था.

गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी भले ही नहीं मिले, लेकिन यह तो पता चल ही गया था कि पिंकी जिंदा थी और नितेश के साथ रह रही थी. सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ ने वहीं से थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को नितेश और पिंकी के गिरिडीह जाने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही उन्होंने तुरंत मुखबिरों को नितेश के घर पर नजर रखने के लिए सहेज दिया.

उन्हीं मुखबिरों में से किसी मुखबिर ने थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को सूचना दी कि पिंकी और नितेश गिरिडीह के टावर चौक पर कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रासबिहारी लाल सहयोगियों के साथ टावर चौक पहुंच गए. महिला सिपाहियों की मदद से पिंकी तो बेटे के साथ पकड़ी गई, लेकिन नितेश फरार होने में कामयाब हो गया. पिंकी को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

पिंकी के बताए अनुसार, 11 जून, 2011 को पिंकी अपने पति अरुण के साथ नागपुर जाने के लिए निकली तो योजनानुसार टे्रन के बिलासपुर पहुंचने पर वह चुपके से नितेश के साथ टे्रन से उतर गई. नितेश उसे ले कर रेलवे स्टेशन के बाहर आ गया और वहां से दोनों दिल्ली चले गए. कुछ दिनों तक दोनों दिल्ली से जुड़े गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर रहे. उस के बाद दोनों उत्तर प्रदेश के वाराणसी आ गए, जहां थाना कैंट के मोहल्ला पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. यहीं उन्हें एक बेटा पैदा हुआ.

पिंकी ने थानाप्रभारी को बताया कि वह अरुण से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन मांबाप के दबाव के आगे उस ने उस से शादी कर ली थी. 11 महीनों तक उस के साथ रही, लेकिन एक दिन के लिए भी वह दिल से उस की नहीं हो सकी. जबकि अरुण और उस के घर वाले उसे पूरा प्यार और सम्मान दे रहे थे. अरुण के साथ रहते हुए वह पल भर के लिए भी नितेश को भूल नहीं पाई. इसीलिए मौका मिलते ही उस के साथ भाग निकली. वह उसी के साथ अपना यह जीवन बिताना चाहती थी.

उस ने यह भी बताया कि उस के मांबाप और भाई को पता था कि वह जीवित है और नितेश के साथ वाराणसी में रह रही है. नितेश उस के साथ रह कर पढ़ाई कर रहा था. उन का खर्च नितेश के पिता चंद्रभानु राय वहन कर रहे थे. यह जो कुछ भी हुआ था, वह उस के परिवार वालों की सहमति से हुआ था.

पिंकी के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी रासबिहारी लाल ने 23 दिसंबर, 2013 को उसे न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रीमती अपर्णा कुजूर की अदालत में पेश किया, जहां उस का धारा 164 के तहत कलमबद्ध बयान दर्ज कराया गया. बयान दर्ज कराने के बाद उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में गिरिडीह की जिला जेल भेज दिया गया.

पिंकी को जेल भेजने के बाद थाना घनावर पुलिस ने नामजद अन्य अभियुक्तों में से नितेश को छोड़ कर सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नितेश पुलिस के हाथ नहीं लगा था पुलिस उस की तलाश कर रही थी. अरुण को जेल से रिहा कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. मामले की जांच सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय कर रहे थे.

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 3

जांच के शिकंजे में आ ही गए जनार्दन नायर

इस के बाद नायर साहब को बुलाया गया. एक बार उन से फिर अपना वही बयान दोहराने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने 26 मई, 2006 को पत्नी रमादेवी की हत्या के बाद दिया था. नायर साहब को अपना बयान दोहराने में भला क्या ऐतराज होता. उन्होंने अपना पूरा बयान इंसपेक्टर सुनील राज के सामने दोहरा दिया.

इस के बाद जब उन्हें उस दरवाजे के पास ले जाया गया, जिसे सुनील राज ने तैयार कराया था तो वह दरवाजा देख कर चौंके.

इस के बाद सुनील राज ने कहा, “यह दरवाजा भी ठीक उसी तरह है, जैसे आप के घर में लगा था. उस के ऊपर वाली जाली भी उतने ही अंतर पर लगी है. उस में अंदर जो कुंडी लगी थी, ठीक ही वैसी कुंडी उसी जगह लगी है, जहां आप के घर के दरवाजे में लगी थी. पत्नी की हत्या वाले दिन आप ने जिस तरह जाली से हाथ डाल कर दरवाजा खोला था, उसी तरह आज यहां हाथ डाल कर कुंडी खोलिए.”

नायर साहब ने हाथ डाल कर अंदर लगी कुंडी खोलने की बहुत कोशिश की, पर कुंडी खोलने की कौन कहे, उन का हाथ कुंडी तक भी नहीं पहुंचा. पुलिस ने देखा, जाली से हाथ डालने पर उन के हाथ और कुंडी के बीच करीब एक फुट का अंतर था.

नायर साहब कुंडी नहीं खोल पाए. इंसपेक्टर समझ गए कि यह दरवाजा उतनी ऊंचाई से खुल ही नहीं सकता. इस का मतलब रमादेवी का पति झूठ बोल रहा है. इसलिए अब उन्हें हत्या का शक उसी पर होने लगा. पुलिस ने उन्हें घर जाने के लिए कह दिया.

इस के बाद इंसपेक्टर सुनील राज ने फोरैंसिक रिपोर्ट की जांच की. इस से उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. दरअसल, रमादेवी जब मृत मिली थीं, तब उन के हाथों में बाल मिले थे, जो किसी आदमी के थे. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले कर जांच के लिए भेज दिया था. लेकिन उस की डीएनए रिपोर्ट 4 साल बाद आई थी.

चूंकि हत्या के इस मामले में पुलिस को पूरा यकीन था कि हत्या उसी मजदूर ने की है, इसलिए पुलिस यही सोचती रही कि जब वह मजदूर मिलेगा, तब उस का डीएनए करा कर इस रिपोर्ट से मिलाया जाएगा.

जनार्दन नायर ही निकले पत्नी के हत्यारे

सुनील राज ने डीएनए रिपोर्ट निकलवाई और चूंकि अब रमादेवी के पति जनार्दन नायर शक के घेरे में आ गए थे, इसलिए उन का डीएनए सैंपल लिया और जांच के लिए भिजवा दिया. इस के बाद जो डीएनए रिपोर्ट आई, उस में रमादेवी की हत्या का रहस्य खुल गया. क्योंकि रमादेवी के हाथों में मिले बालों का डीएनए जनार्दन के डीएनए सैंपल से मैच कर गया था.

इस का मतलब हत्या के समय रमादेवी ने दोनों हाथों से पकड़ कर, जिस आदमी के बाल खींचे थे, वह आदमी मजदूर चुटला मुथु नहीं, खुद उस का पति जनार्दन नायर था. इस के बाद पुलिस ने 75 साल के जनार्दन नायर को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में उन्होंने पत्नी की हत्या का अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया. इस तरह 17 सालों बाद रमादेवी का असली कातिल गिरफ्तार हो गया, जिस ने हाईकोर्ट तक में अपील की थी कि उस की पत्नी के कातिल को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

अब आइए यह जानते हैं कि जनार्दन ने अपनी पत्नी का कत्ल क्यों और कैसे किया था.

जनार्दन नायर को अपनी पत्नी रमादेवी के चरित्र पर शक था. उन्हें लगता था कि उन के औफिस जाने के बाद उस के घर लडक़े आते हैं, जिन से उन की पत्नी के गलत संबंध हैं. इसी शक को ले कर पतिपत्नी में अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था.

घटना वाले दिन यानी 26 मई, 2006 को भी इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. पतिपत्नी में मारपीट होने लगी थी. दोनों ही एकदूसरे को पीट रहे थे. इसी मारपीट में रमादेवी ने दोनों हाथों से जनार्दन नायर के बाल पकड़ कर खींचे तो नायर साहब ने घरेलू चाकू से हमला कर के उन की हत्या कर दी थी. इस के बाद चुपके से घर से निकल गए थे. लेकिन हत्या के समय रमादेवी के हाथों की मुट्ठी में पति के जो बाल थे, वे उसी तरह मुट्ठी मे दबे रह गए थे.

क्राइम थ्रिलर फिल्मों से मिला बचने का आइडिया

पत्नी की हत्या करने के कई घंटे बाद जनार्दन नायर घर वापस आए तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. उन्होंने सब से झूठ बोला था. दरवाजा खोल कर वह घर में घुसे और उस के बाद पत्नी की हत्या होने का शोर मचा दिया.

पुलिस से बचने के लिए उन्होंने दरवाजा बाहर से खोलने वाली कहानी गढ़ ली. संयोग से पड़ोस की एक महिला ने मजदूर वाली कहानी सुना दी, जिस से पुलिस का पूरा ध्यान उसी मजदूर चुटला मुथु की ओर चला गया और नायर साहब बच गए.

पुलिस ने नायर साहब से पूछा कि जब वह खुद ही कातिल थे, तब वह धरनाप्रदर्शन कर के कातिल को पकडऩे के लिए पुलिस पर दबाव क्यों बना रहे थे?

जवाब में जनार्दन नायर ने कहा, “धरनाप्रदर्शन तो मैं ने पड़ोसियों के कहने पर किया था. अगर मैं वैसा न करता तो पड़ोसी मेरे ऊपर शक करने लगते.”

“तो फिर हाईकोर्ट क्यों चले गए?” इंसपेक्टर सुनील राज ने पूछा.

“यह आइडिया मुझे क्राइम थ्रिलर फिल्मों से मिला था. दरअसल, कुछ लोगों को शक होने लगा था कि पत्नी की हत्या कहीं मैं ने तो नहीं की है? इसलिए मुझे लगा कि अगर मैं कातिल को पकडऩे के लिए कुछ नहीं करता तो इन लोगों का शक विश्वास में बदल जाएगा. अगर मैं कोर्ट में अपील कर दूंगा तो इन लोगों को लगेगा कि मजदूर ने ही रमादेवी की हत्या की है.”

लेकिन जनार्दन नायर के इसी कदम ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. अंत में उन्होंने कहा भी कि उन्हें पता था कि एक न एक दिन वह जरूर पकड़े जाएंगे, लेकिन पकड़े जाने में इतना समय लगेगा, यह उन्होंने नहीं सोचा था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से वह अपनी सही जगह जेल पहुंच गए हैं, जहां उन्हें बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 3

पुलिस उसे आरोपी न बना सके, इसलिए प्रखर ने अपनी ओर से सब कुछ किया. कंचन का वाट्सऐप व अपना इंस्टाग्राम दोस्त शीलू के मोबाइल में इंस्टाल किए. उस से अंजलि को मैसेज भेज रहा था. प्रखर को पता था कि पुलिस उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालेगी, लोकेशन देखेगी. उस की और कंचन की लोकेशन अलग आएगी. काल डिटेल्स में बातचीत नहीं निकलेगी, इसलिए वह इंस्टाग्राम पर काल कर रहा था. यदि पुलिस उस के इंस्टा प्रोफाइल की डिटेल्स निकालेगी तो भी कुछ नहीं मिलेगा. बातचीत के लिए शातिर प्रखर ने दूसरा प्रोफाइल बनाया था.

प्रखर के मुंह से यह सुन कर उस की मां भी दंग रह गई. पहले उसे लग रहा था कि प्रखर हत्या जैसी घटना नहीं कर सकता. जब अपनी आंखों के सामने बेटे को सच उगलते देखा तो वह बोली, “प्रखर, तुम ने सभी की जिंदगी बरबाद कर दी. मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा अच्छे ढंग से तुम्हें पाला. यदि किसी से प्यार था तो मुझे तो बताता. प्यार के लिए कोई इस तरह अपराधी नहीं बनता है.”

पुलिस ने उसी दिन दबिश दे कर गंजडुंडवारा निवासी शीलू को गिरफ्तार कर लिया. दोनों का आमना सामना कराया गया. दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, बाइक और खून से सना अंगोछा (गमछा) भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

प्रखर के बाबा व पिता की हो चुकी है हत्या

सनसनीखेज वारदात को अंजाम देने वाले प्रखर गुप्ता की कहानी भी कम चौंकाने वाली नहीं है. वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज के कस्बा गंजडुंडवारा का रहने वाला है. कई साल से अपनी मां व हाईस्कूल पास छोटे भाई के साथ आगरा में रह रहा था. दयालबाग सौ फुटा रोड स्थित अपर्णा रिवर व्यू अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले रखा है.

उस के बाबा की रंजिश में हुत्या हुई थी. पिता विष्णुरत्न गुप्ता भी हत्या के मामले में पहले जेल गए थे. जेल से बाहर आने के बाद विरोधियों ने 2013 में उन की भी हत्या कर दी. उस समय प्रखर 11 साल का था. मां आगरा में संजय पैलेस में एक कंपनी में काम करती है. 21 वर्षीय प्रखर ने इंटर तक पढ़ाई की है. उस ने मां से कहा कि अब वह व्यापार करेगा. उस की जिद पर मां ने 2 लाख रुपए की बाइक दिलाई थी.

कच्ची उम्र के प्यार की सनसनीखेज कहानी—

कारोबारी बजाज दंपत्ति अपनी इकलौती बेटी कंचन को एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे थे. मां अंजलि बेटी की पढ़ाई पर काफी ध्यान दे रही थीं. पुलिस पूछताछ में पता चला कि कंचन का स्कूल में एक दोस्त है कुशल. प्रखर कुशल का दोस्त था.

कुशल ने ही उस की प्रखर से पहचान कराई थी. प्रखर ने कंचन से दोस्ती ही झूठ बोल कर की थी. उस ने बताया था कि वह डीयू (दिल्ली यूनिवर्सिटी) में ग्रैजुएशन का छात्र है. वह जिम भी जाता है. गांव में खेती है और मां नौकरी करती है.

पहली ही मुलाकात में कंचन उस से प्रभावित हो गई. अपनी कीमती बाइक पर प्रखर कंचन को स्कूल छोडऩे व लेने जाने लगा. यह सब कंचन को बहुत अच्छा लगता. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. ये बात जनवरी, 2023 की है.

मार्च के महीने में कंचन अपने घर से बिना बताए प्रखर के साथ बाहर घूमने चली गई थी. कई घंटे बाद घर लौटी. वापस लौट कर आई तो मां बहुत नाराज हुई. पूछा कहां गई थीं, किस के साथ गई थीं? इस घटना के बाद मां ने उस का मोबाइल भी चैक किया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म खंगाला.

मोबाइल में अंजलि ने प्रखर के साथ उस के फोटो देख लिए तो उन्होंने घर में बहुत क्लेश किया. पूछा, “ये लडक़ा कौन है?”

तब कंचन ने बताया कि उस का दोस्त प्रखर गुप्ता है. यह सुन कर मां ने उसे डांटा. फोन पर प्रखर से भी बात की और बेटी से दूर रहने को कहा. मां की सख्ती के चलते करीब एक महीने प्रखर उस से मिल नहीं पाया था. चोरीछिपे केवल फोन पर बातचीत होती थी.

बेटी के आपत्तिजनक फोटो देख कर परेशान थीं अंजलि

घटना से 20 दिन पहले अंजलि को कंचन की प्रखर के साथ फिर से दोस्ती की भनक लग गई थी. उन्होंने बेटी से इस संबंध में बात की तो बेटी ने कहा कि प्रखर उस से बहुत प्यार करता है. अंजलि ने कंचन के मोबाइल में प्रखर के साथ उस के आपत्तिजनक फोटो देख लिए थे. फोटो देख कर अंजलि परेशान हो गई.

उन्हें लगा कि यदि बेटी को काबू में न रखा गया तो वह समाज में बजाज परिवार की नाक कटा देगी. उन्होंने बेटी पर पहरा बैठा दिया. फोन काल से ले कर हर चीज पर नजर रखी जाने लगी. कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन इस के बाद वह फिर से प्रखर को चोरीछिपे फोन करने लगी. उन का प्रेम प्रसंग जारी रहा. जब मां को यह बात पता चली तो उन्होंने बेटी के न मानने पर प्रखर को पोक्सो एक्ट में जेल भिजवाने की धमकी दी.

यह भी कहा कि नाबालिग का बयान कोई मायने नहीं रखता है, इन फोटो व चैट से ही प्रखर को जेल जाना पड़ेगा. यह बात कंचन ने अपने बौयफ्रैंड प्रखर को बता दी. जेल जाने की बात से प्रखर परेशान हो गया. उसे लगा कि यदि वह जेल चला जाएगा तो कारोबारी की इकलौती बेटी को पाने का उस का सपना अधूरा रह जाएगा. उस का प्यार उस से छिन रहा था. प्रेमिका पर लगाई जा रही बंदिशों से वह आजिज आ चुका था. जेल जाने के डर से प्रखर ने अंजलि बजाज की हत्या की योजना बनाई.

अंजलि बजाज की हत्या के लिए प्रखर को एक साथी की तलाश थी. वह अकेले अंजलि की हत्या नहीं कर सकता था. वह अपने गांव गंजडुंडवारा गया और वहां 10 दिन रुका. इस बीच उस का दोस्त शीलू मिला. वह घर में खाली बैठा था. उस से बातचीत की और उसे 10 हजार रुपए का लालच दिया. उस से कहा कि स्कूल में झगड़ा हो गया है एक को सबक सिखाना है.

शीलू इस के लिए तैयार हो गया. वह शीलू को 3 जून को आगरा बुला लाया. दोनों आईएसबीटी के पास एक होटल में ठहरे. वहां 2 दिन रुकने के बाद दोनों सिकंदरा स्थित होटल में आ गए.

कंचन ने बहाने से बुलाया था मां को

साजिश के तहत कंचन 7 जून को अपने शास्त्रीपुरम स्थित घर से दोपहर में निकल कर पार्क में जा कर छिप गई. थोड़ी देर बाद उस ने अपनी मां अंजलि को फोन कर बताया कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ जा रही है. यदि आखिरी बार मिलना है तो मिल लो. यह सुन कर अंजलि घबरा गईं.

थोड़ी देर बाद बेटी ने वाट्सएप पर लोकेशन भेजी. लोकेशन ककरैठा स्थित वनखंडी महादेव मंदिर की थी. बेटी ने प्रेमी के साथ जाने का नाटक कर मां को वनखंडी मंदिर पर भेज दिया. लेकिन अंजलि के साथ पति उदित को देख कर प्रखर ने कंचन को फोन से मैसेज भेज कर दोनों को अलग करने को कहा. इस पर कंचन ने पिता को फोन कर स्वयं को ले जाने की बात कह कर मंदिर पर मां से अलग कर हत्यारों के सामने भेज दिया. जबकि खुद पार्क में छिपने के बाद मां और पिता को भ्रमित करने के बाद घर आ गई.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 4

प्रशांत रेलवे स्टेशन से उस के लिए माजा की बोतल ले आया. प्रशांत भागभाग कर सामान लाता रहा और वह बैठी फोन पर बातें करती रही. माजा पीने के बाद अनुराधा ने प्रशांत से बड़ी सौंफ लाने को कहा. इस पर प्रशांत को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन घर का माहौल खराब न हो, इसलिए वह बड़ी सौंफ लाने के लिए पूना रेलवे स्टेशन चला गया.

तब तक रात के साढ़े 12 बज गए थे. प्रशांत जब बड़ी सौंफ ले कर लौटा, तब भी अनुराधा फोन पर बातें कर रही थी. इस बार प्रशांत सीधे घर के अंदर आने के बजाय दरवाजे की ओट में खड़ा हो कर उस की बातें सुनने लगा कि वह किस से क्या बातें कर रही है. अनुराधा फोन पर कह रही थी, ‘‘ठीक है, कल सुबह हम निकल चलेंगे.’’

इस के बाद अनुराधा चुप हो गई, शायद वह सामने वाले का जवाब सुन रही थी. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है. प्रशांत को मैं संभाल लूंगी. अगर उस ने कोई नौटंकी की तो उस के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दूंगी. कहूंगी कि 3 सालों से मुझे बंधक बना कर मेरे साथ बलात्कार कर रहा है. उस के बाद उसे जेल जाने से कोई नहीं रोक पाएगा. वह वहीं पड़ा सड़ता रहेगा, क्योंकि यहां उसे कोई छुड़ाने वाला भी नहीं है.’’

अनुराधा की ये बातें सुन कर प्रशांत हैरान रह गया. जिसे उस ने तनमन से प्यार किया, जिस के लिए घरपरिवार छोड़ा, जिस की सुखसुविधा का हर तरह से खयाल रखा, आज वही न जाने किस के साथ उसे छोड़ कर भाग जाना चाहती थी और झूठी शिकायत कर के उसे जेल तक भिजवाने को तैयार थी. अनुराधा की इन बातों से उसे बहुत दुख हुआ.

अंदर आ कर उस ने कहा, ‘‘इतनी देर से तुम किस से बातें कर रही थी? कौन है वह, जिस के लिए तुम मुझे जेल भिजवा रही हो?’’

प्रशांत के सवालों का जवाब देने के बजाय अनुराधा आपा खो बैठी. उस ने कहा, ‘‘मैं किस से क्या बातें कर रही हूं, तुम से क्या मतलब? तुम अपना देखो, यह देखने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं क्या कर रही हूं.’’

‘‘क्यों जरूरत नहीं है. तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मेरा हक बनता है तुम से पूछने का.’’ प्रशांत ने कहा तो अनुराधा गुस्से में उस का कौलर पकड़ झकझोरते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘हक की बात करते हो, कभी शीशे में अपनी शक्ल देखी है. तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और अब हक जमा रहे हो. तुम्हें प्यार कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की. तुम्हारी वजह से मां को छोड़ा. लेकिन अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. तुम मेरे लायक नहीं हो.’’

अनुराधा ने प्रशांत के कौलर को इस तरह पकड़ रखा था कि वह छुड़ाने से भी नहीं छोड़ रही थी. काफी कोशिश के बाद भी जब अनुराधा ने प्रशांत का कौलर नहीं छोड़ा तो उसे भी गुस्सा आ गया. वह अनुराधा का गला पकड़ कर दबाने लगा, ताकि वह वह उस का कौलर छोड़ दे. लेकिन दबाव बढ़ने की वजह से अनुराधा की सांसें रुक गईं और उस के प्राणपखेरू उड़ गए.

जब प्रशांत को पता चला कि अनुराधा मर गई है तो उस के होश उड़ गए. वह सिर थाम कर बैठ गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह हत्यारा बन जाएगा. कुछ देर तक वह उसी तरह बैठा रहा. इस के बाद वह बाहर आ कर अनुराधा की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. इसी चक्कर में वह उस पूरी रात सो नहीं सका.

सुबह उस ने अनुराधा के गले से सोने की चैन उतारी और 8 बजे के आसपास आटोस्टैंड हड़पसर पहुंचा, जहां उस की मुलाकात उस के दोस्त महेश रंगोजी से हुई. उस के साथ चायनाश्ता कर के वह उसे ले कर वीटी कवडे रोड स्थित धनलक्ष्मी ज्वैलर्स के यहां गया, जहां उस ने वह चैन 16,900 रुपए में यह कह कर बेच दी कि उस की पत्नी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. इस समय वह लातूर स्थित उस के गांव में है. उस के इलाज के लिए उसे पैसों की सख्त जरूरत है.

चैन बेचने के बाद महेश रंगोजी तो चला गया, प्रशांत ने वहीं बाजार से लाल रंग का एक बड़ा सा बैग खरीदा और घर आ गया. उस ने अनुराधा की लाश को उसी में ठूंस कर भरा और आटोरिक्शा से ले जा कर खराड़ी गांव के पास फेंक आया.

प्रशांत को विश्वास था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. लेकिन जब पुलिस ने तेजी से जांच शुरू की तो वह डर गया. उस ने सोचा कि अब उस का पूना में रहना ठीक नहीं है. पुलिस कभी भी उस तक पहुंच सकती, इसलिए वह अपना समान और पैसे समेटने लगा.

2 जुलाई को प्रशांत ने अपने मकान मालिक दीपक जाधव से कहा कि उस की पत्नी गांव चली गई है, अब वह भी हमेशा के लिए गांव जाना चाहता है. इसलिए वह एक महीने का किराया काट कर उस का डिपाजिट वापस कर दें. मकान मालिक से बात करने के बाद उस ने अपना सारा सामान अपने दोस्त पिंटू के यहां पहुंचा दिया.

उसी बीच अनुराधा शोरूम पर नहीं गई तो प्रशांत के पास फोन आया. प्रशांत ने उन्हें बताया कि अनुराधा की बहन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, इसलिए वह गांव चली गई है. अब उस का काम करने का कोई इरादा नहीं है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वे उस का बकाया वेतन दे दें तो बड़ी कृपा होगी.

शोरूम की ओर से पैसे देने के लिए कहा गया तो प्रशांत ने अपने दोस्त पिंटू को फोन किया. लेकिन पिंटू उस समय बारामती में था, इसलिए अनुराधा का वेतन लाने के लिए उस ने महेश रंगोजी को फोन किया.

महेश जा कर अनुराधा का बकाया वेतन ले आता, उस के पहले ही वाट्स ऐप पर अनुराधा की लाश का फोटो आ जाने से शोरूम वालों को सच्चाई का पता चल गया और उन्होंने महेश को पकड़ कर लश्कर पुलिस के हवाले कर दिया, जिस की वजह से पत्नी की हत्या करने वाला प्रशांत भी पकड़ा गया.

प्रशांत सूर्यवंशी के बयान के आधार पर अनुराधा की हत्या का मुकदमा उस के खिलाफ दर्ज कर के अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. महेश निर्दोष था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेईमान बनाया प्रेम ने

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है.

इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पडऩे पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं.

हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धडक़नों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था.

उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था.

जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था.

उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया.

कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके.

लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके.

पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है.

जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया.

आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था.

उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, “जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.”

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया.

ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे.

दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई.

हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

“कोई खास खबर?” मालिनी ने पूछा.

“अभी देखता हूं.” पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, “क्या बात है डियर?”

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, “समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.”

“हां संयोग ही है,” वह मुंह सिकोड़ कर बोला, “जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.”

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढऩे लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’

इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—

‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया.

इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोर्ई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है.

सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’