गुनाह : भूल का एहसास – भाग 1

‘‘रेवा…’’ बाथरूम में घुसते ही ठंडे पानी के स्पर्श से सहसा मेरे मुंह से निकल गया. यह जानते हुए भी कि वह घर में नहीं है. आज ही क्यों, पिछले 2 महीनों से नहीं है. लेकिन लगता ऐसा है, जैसे युगों का पहाड़ खड़ा हो गया.

रेवा का यों अचानक चले जाना मेरे लिए अप्रत्याशित था. जहां तक मैं समझता हूं वह उन में से थी, जो पति के घर डोली में आने के बाद लाख जुल्म सह कर भी 4 कंधों पर जाने की तमन्ना रखती हैं. लेकिन मैं शायद यह भूल गया था कि लगातार ठोंकने से लोहे की शक्ल भी बदल जाती है. खैर, उस वक्त मैं जो आजादी चाहता था, वह मुझे सहज ही हासिल हो गई थी.

श्रुति मेरी सैक्रेटरी थी. उस का सौंदर्य भोर में खिले फूल पर बिखरी ओस की बूंदों सा आकर्षक था. औफिस के कामकाज संभालती वह कब मेरे करीब आ गई, पता ही नहीं चला. उस की अदाओं और नाजनखरों में इतना सम्मोहन था कि उस के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं था. मेरे लिए रेवा जेठ की धूप थी तो श्रुति वसंती बयार. रेवा के जाने के बाद मेरे साथसाथ घर में भी श्रुति का एकाधिकार हो गया था.

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक पश्चिम से सुरसा की तरह मुंह बाए आई आर्थिक मंदी ने मेरी शानदार नौकरी निगल ली. इस के साथ ही मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. मैं जिन फूलों की खुशबू से तर रहता था, वे सब एकएक कर कैक्टस में बदलने लगे. मैं इस सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि श्रुति ने तोते की तरह आंखें फेर लीं. उस के गिरगिटी चरित्र ने मुझे तोड़ कर रख दिया. अब मैं था, मेरे साथ थी आर्थिक तंगी में लिपटी मेरी तनहाई और श्रुति की चकाचौंध में रेवा के साथ की ज्यादतियों का अपराधबोध.

रेवा का निस्स्वार्थ प्रेम, भोलापन और सहज समर्पण रहरह कर मेरी आंखों में कौंधता है. सुबह जागने के साथ बैडटी, बाथरूम में गरम पानी, डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के साथ अखबार, औफिस के वक्त इस्तिरी किए हुए कपड़े, पौलिश किए जूते, व्यवस्थित ब्रीफकेस और इस बीच मुन्नी को भी संभालना, सब कुछ कितनी सहजता से कर लेती थी रेवा. इन में से कोई भी एक काम ठीक वक्त पर नहीं कर सकता मैं… फिर रेवा अकेली इतना सब कुछ कैसे निबटा लेती थी, मैं सोच कर हैरान हो जाता हूं.

उस ने कितने करीने से संवारा था मुझे और मेरे घर को… अपना सब कुछ उस ने होम कर दिया था. उस के जाने के बाद यहां के चप्पेचप्पे में उस की उपस्थिति और अपने जीवन में उस की उपयोगिता का एहसास हो रहा है मुझे. उसे ढूंढ़ने में मैं ने रातदिन एक कर दिए. हर ऐसी जगह, जहां उस के मिलने की जरा भी संभावना हो सकती थी मैं दौड़ता भागता रहा पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी. पता नहीं वह कहां अदृश्य हो गई.

मन के किसी कोने से पुलिस में शिकायत करने की बात उठी. पर इस वाहियात खयाल को मैं ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. रेवा को मैं पहले ही खून के आंसू रुला चुका हूं. उसे हद से ज्यादा रुसवा कर चुका हूं. पुलिस उस के जाने के 100 अर्थ निकालती, इसलिए अपने स्तर से ही उसे ढूंढ़ने के प्रयास करता रहा.

मेरे मस्तिष्क में अचानक बिजली सी कौंधी. रीना रेवा की अंतरंग सखी थी. अब तक रीना का खयाल क्यों नहीं आया… मुझे खुद पर झुंझलाहट होने लगी. जरूर उसी के पास गई होगी रेवा या उसे पता होगा कि कहां गई?है वह. अवसाद के घने अंधेरे में आशा की एक किरण ने मेरे भीतर उत्साह भर दिया. मैं जल्दीजल्दी तैयार हो कर निकला, फिर भी 10 बज चुके थे. मैं सीधा रीना के औफिस पहुंचा.

‘‘मुझे अभी पता चला कि रेवा तुम्हें छोड़ कर चली गई,’’ मेरी बात सुन कर वह बेरुखी से बोली, ‘‘तुम्हारे लिए तो अच्छा ही हुआ, बला टल गई.’’

मेरे मुंह से बोल न फूटा.

‘‘मैं नहीं जानती वह कहां है. मालूम होता तो भी तुम्हें हरगिज नहीं बताती,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘जहां भी होगी बेचारी चैन से तो जी लेगी. यहां रहती तो घुटघुट कर मर जाती.’’

‘‘रीना प्लीज,’’ मैं ने विनती की, ‘‘मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया है. श्रुति ने मेरी आंखों में जो आड़ीतिरछी रेखाएं खींच दी थीं, उन का तिलिस्म टूट चुका है.’’

‘‘क्यों मेरा वक्त बरबाद कर रहे हो,’’ वह बोली, ‘‘बहुत काम करना है अभी.’’

रात गहराने के साथ ठिठुरन बढ़ गई थी. ठंडी हवाएं शरीर को छेद रही थीं. इन से बेखबर मैं खुद में खोया बालकनी में बैठा था. बाहर दूर तक कुहरे की चादर फैल चुकी थी और इस से कहीं अधिक घना कुहरा मेरे भीतर पसरा हुआ था, जिस में मैं डूबता जा रहा था. देर तक बैठा मैं रेवा की याद में कलपता रहा. उस के साथ की ज्यादतियां बुरी तरह मेरे मस्तिष्क को मथती रहीं. जिस ग्लेशियर में मैं दफन होता जा रहा था, उस के आगे शीत की चुभन बौनी साबित हो रही थी.

अगले कई दिनों तक मेरी स्थिति अजीब सी रही. रेवा के साथ बिताया एकएक पल मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ रहा था. काश, एक बार, सिर्फ एक बार रेवा मुझे मिल जाए फिर कभी उसे अपने से अलग नहीं होने दूंगा. उस से हाथ जोड़ कर, झोली फैला कर क्षमायाचना कर लूंगा. वह जैसे चाहेगी मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करने के लिए तैयार हूं. उसे इतना प्यार दूंगा कि वह सारे गिलेशिकवे भूल जाएगी. उस के हर आंसू को फूल बनाने में जान की बाजी लगा दूंगा.

अपनी सारी खुशियां उस के हर एक जख्म को भरने में होम कर दूंगा. पर इस के लिए रेवा का मिलना निहायत जरूरी था, जोकि संभव होता नजर नहीं आ रहा था. वह भीड़भाड़ भरा इलाका था. आसपास ज्यादातर बड़ीबड़ी कंपनियों के औफिस थे. शाम को वहां छुट्टी के वक्त कुछ ज्यादा ही भागमभाग हो जाती थी. एक दिन मैं खुद में खोया धक्के खाता वहां से गुजर रहा था कि मेरे निर्जीव से शरीर में करंट सा दौड़ गया. जहां मैं था, उस के ऐन सामने की बिल्डिंग से रेवा आती दिखाई दी.

मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दौड़ कर उस के पास पहुंच जाना चाहता था पर सड़क पर दौड़ते वाहनों की वजह से मैं ऐसा न कर सका. लाल बत्ती के बाद वाहनों का काफिला थमा, तब तक वह बस में बैठ कर जा चुकी थी. मैं ने तेजी से दौड़ कर सड़क पार की पर सिवा अफसोस कि कुछ भी हासिल न कर सका. मेरा सिर चकराने लगा.

बार डांसर की बेवफाई

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 4

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

“मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.” योगेन ने कहा.

“कौन है वह?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.”

“यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.” योगेन ने कहा.

“आखिर वह है कौन?” पटेल ने झुंझला कर पूछा.

“इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.” योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया. योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा,

“अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.”

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल कर कहा, “आइए पटेल साहब.”

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

“मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.” योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, “मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…”

“प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.” योगेन ने कहा.

“मैं सच कह रहा हूं,” उस ने कहा.

“बेकार की बकवास मत करो.” पटेल ने घुडक़ा.

“तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.” योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

“जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. वह मैं ने सुन लिया था. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी.

जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

“तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.”

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

“प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं. तुम ही कातिल हो.” इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

तोते की गवाही : सजा उम्रकैद

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की एक अदालत में 23 मार्च, 2023 को काफी गहमागहमी थी. उस रोज एक बहुचर्चित मामले की सुनवाई होने वाली थी. केस आगरा से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘स्वराज्य टाइम्स’के संपादक विजय शर्मा की पत्नी नीलम शर्मा की हत्या और उन के घर में लूटपाट का था. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद के जरिए उस बहुचर्चित केस का फैसला सुनाया जाना था.

दोनों आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जा चुका था. पीडित पक्ष के लोग पहले ही आ चुके थे. कोर्टरूम के बाहर बड़ी तादात में मीडिया की निगाहें भी उन पर टिकी हुई थीं. न्यायाधीश मोहम्मद राशिद कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ चुके थे.

अखबार के संपादक के घर हुई वारदात

जिस मामले की सुनवाई होनी थी, वह वारदात दरअसल 9 साल पुरानी 20 फरवरी, 2014 की थी. उस रोज गंगे गौरीबाग, बल्केश्वर क्षेत्र के रहने वाले ‘स्वराज्य टाइम्स’ के संपादक विजय शर्मा अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए फिरोजाबाद गए हुए थे. अपने साथ बेटी निवेदिता और बेटे अंजेश को भी ले गए थे.

घर पर उन की 48 वर्षीया पत्नी नीलम शर्मा और वृद्ध पिता आनंद शर्मा रह गए थे. शर्मा को अपने बच्चों समेत उसी रोज आधी रात तक वापस लौट आना था. तय कार्यक्रम के अनुसार शर्मा बच्चों समेत लौट आए. घर का दरवाजा खटखटाते ही वह अपनेआप खुल गया. अंदर दाखिल हुए तो भीतर का दृश्य देख कर सन्न रह गए. सामने जो दिखा, उसे देख उन के होश उड़ गए. घर का सामान जहांतहां बिखरा पड़ा था. पत्नी नीलम के कमरे का दरवाजा भी खुला था. कमरे की लाइट जल रही थी.

शर्मा और बच्चे जैसे ही दरवाजे पर पहुंचे, बेटी निवेदिता और बेटे की चीख निकल गई. शर्मा कमरे घुसे. वहां पालतू जरमन शैफर्ड डौग ‘टफी’ भी खून से लथपथ पड़ा था. वहीं नीलम भी पास में ही मृत पड़ी थीं. उन के शरीर से बहुत सारा खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था.

मां की लाश देख कर दोनों भाईबहन रोने लगे. शर्मा तो जड़वत बन गए थे. वे समझ नहीं पा रहे कि यह सब कैसे हो गया? ऐसा किस ने किया? पिता आनंद शर्मा का ख्याल आते ही उन के कमरे की ओर गए. उन के कमरे की बाहर से कुंडी लगी थी. कुंडी खोली तो भीतर अंधेरा था. संभवत: वह सो रहे थे. आनंद शर्मा बेसुध सोए हुए थे. सांस चलने की आवाज आ रही थी.

दोबारा अपने कमरे में आ कर ध्यान से देखा तो पाया कि पत्नी की धारदार हथियार से हत्या की गई थी. कुत्ते पर भी कई हमले की जाने का निशान था. अलमारी की तिजोरी के खुले होने पर गहने, नकदी आदि लूट के भी सबूत मिले. कमरे से बाहर पालतू तोते ‘हीरा’का पिंजरा शाल से ढंका हुआ था. बच्चों के द्वारा शाल हटाते ही तोता जोरजोर से पंख फडफ़ड़ाता हुआ चीखने लगा.

वारदातके मिटा दिए थे सबूत

शर्मा परिवार ने इधरउधर नजर दौड़ाई. उन्होंने पाया कि वारदात के सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी. दीवारों, फर्श आदि पर खून के दागधब्बे मिटाए जाने के निशान दिख रहे थे. फर्श की सफाई की गई थी. विजय शर्मा के घर से बच्चों के रोने और शोरशराबे की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी आ गए थे. वे भी घर का दृश्य देख कर दंग रह गए.

शर्मा ने इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया. संपादक की पत्नी के मर्डर की सूचना पा कर कुछ मिनटों में ही थाना न्यू आगरा से पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. शर्मा ने उन्हें अज्ञात बदमाशों द्वारा पत्नी और पालतू कुत्ते की हत्या के साथसाथ ज्वैलरी, नकदी, घड़ी व अन्य सामान लूट की आशंका जताई.

इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम ने गहन जांच की, लेकिन फिंगरप्रिंट्स मिटाए जाने और दूसरे साक्ष्य खत्म किए जाने के चलते वारदात की तह तक जाने के सबूत नहीं मिले. हालांकि फोरैंसिक टीम को कुछ सबूत जमा करने में सफलता मिल गई थी

पुलिस के सामने हत्या और लूट की जांच एक बड़ी चुनौती थी. वे उलझन में पड़ गए थे कि हमलावर कितने लोग होंगे? घर में कैसे घुसे होंगे? इस के पीछे लूटपाट के अलावा और क्या कारण हो सकता है? इस पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभव है नीलम या उस वक्त घर में मौजूद परिवार के दूसरे किसी ने सोने से पहले दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया होगा. यह भी आशंका जताई गई कि पूरी वारदात को अंजाम देने वाला कोई परिचित भी हो सकता है.

पुलिस जांच टीम पालूत कुत्ते को धारदार हथियार से बेरहमी से मार दिए जाने को ले कर हैरान थी. नीलम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी हत्या संबंधी कुछ जानकारियां मिल गई थीं. कुत्ते के शव का पोस्टमार्टम करवा कर उस की रिपोर्ट जुटा ली गई थी. पड़ोसियों ने कुत्ते के बारबार भौंकने की आवाजें सुनी थीं, लेकिन उन्होंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. कारण पालतु कुत्ता बीचबीच में अकसर भौंकता रहता था. उन्होंने पुलिस को घटना के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.

पुलिस को नहीं मिला सुराग

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नीलम के शरीर पर धारदार हथियार से 14 और पालतू कुत्ते ‘टफी’ पर 9 वार किए गए थे. गहरी चोटें और अत्यधिक खून बहने से दोनों की मौत हो गई थी. इस संबंध में थाना न्यू आगरा में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ लूट व हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

नीलम शर्मा मर्डर केस के सबूत जुटाने और सुराग के लिए जांच टीम ने विजय शर्मा के घर को 3 दिनों तक सील कर दिया था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस को 3 लोगों पर संदेह हुआ था, लेकिन सबूत के बिना उन के खिलाफ काररवाई नहीं हो पाई थी. विजय शर्मा ने भी अपने बयान में उन्हीं 3 लोगों पर शक जताया था, जिन पर पुलिस को संदेह था.

संदिग्धों में से एक व्यक्ति का संबंध जमीन खरीद को ले कर था. इस सिलसिले में उस के साथ रुपए के लेनदेन में कुछ ज्यादा ही विवाद हो गया था. उस से पूछताछ करने पर उस ने हत्या से इनकार कर दिया, लेकिन पैसे को ले कर शर्मा के साथ विवाद की बात मान ली.

कई दिन बीत जाने के बावजूद मामले को सुलझाया नहीं जा सका था. मामला एक अखबार के संपादक से जुड़ा हुआ था. इस कारण मीडिया में जांच की देरी को ले कर कई सवाल उठने और पुलिस पर दबाव भी बनने लगा था. तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने पुलिस की टीमें बनाईं और जल्द से जल्द इस घटना का परदाफाश करने के निर्देश दिए.

तोता ‘हीरा’ने दिया हत्यारे का सुराग

शर्मा परिवार को अपने पालतु कुत्ते ‘टफी’ और तोते ‘हीरा’ से काफी प्यार था. दोनों ही परिवार के सभी सदस्यों को अच्छी तरह पहचानते थे. तोता तो घर वालों की बातों को समझता भी था. श्रीमती शर्मा खुद और उन के दोनों बच्चे तोते से बातें भी किया करते थे. वह तुरंत बोल देता था.

नीलम शर्मा तोते को अपने हाथों से छोटाछोटा निवाला दिया करती थीं. तोता पिंजरे से नुकीली चोंच बाहर निकाल कर निवाला मुंह में ले लेता था. तुरंत गटकने के बाद खुशी से पंख फडफ़ड़ा देता था. नीलम शर्मा भी खुशी से बोल देती थीं, ‘‘चलो हो गया! बस बस!!’’

यही हाल टफी का भी था. उसे भी परिवार के सदस्यों के हाथों से परोसा गया उस का खाना या उस के लिए बाजार से मंगवाया गया खाना ही पसंद था. घटना को हुए 3 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस अभियुक्तों को पकडऩा तो दूर, उन का सुराग तक नहीं लगा पाई थी.

उधर मालकिन की मौत के बाद तोता ‘हीरा’ सुस्त हो गया था. उस ने खानापीना छोड़ दिया था. कारण उस से बात करने वाला कोई नहीं था. हत्यारे ने तोते के पिंजरे पर शाल डाल दी थी. पुलिस ने जांच के सिलसिले इस बात पर भी गौर किया. मतलब निकाला गया कि बदमाशों ने टफी की तो हत्या कर दी, लेकिन तोते ने भी शोर मचाया होगा, इस कारण उस के पिंजरे को शाल से ढंक दिया होगा.

पूछताछ में शर्मा ने जब किसी परिचित पर संदेह जताया तब उन्हें एक पड़ोसी ने तोते से बात करने की सलाह दी. शायद उस से कोई सुराग मिल सके. शर्मा और उन के बच्चों को यह बात सही लगी और वे पिंजरे के पास जा कर तोते से बात करते हुए कहा, ‘‘हीरा, हीरा! घर में मालकिन का कत्ल हो गया और तुम देखते रहे! बताओ, क्यों नहीं बचाया?’’

यह सुनते ही तोता अपना पंख तेजी से फडफ़ड़ाने लगा. पिंजरे में ही इधरउधर, ऊपरनीचे करने लगा. इस हालत से उस की बेचैनी साफ झलक रही थी. उस के शांत होने पर बेटी प्यार से बोली, ‘‘मेरे मिट्ठू! मेरे हीरा!! मम्मी को किस ने मारा? आशु ने मारा?’’

यह नाम सुनते ही तोता ‘आशु आशु’ कह कर तेजी से गरदन हिला कर चीखने लगा. ऐसा कई बार हुआ. आशुतोष उर्फ आशु विजय शर्मा का भांजा था. इस की जानकारी विजय शर्मा ने पुलिस को दी. यह भी बताया कि पत्नी के अंतिम संस्कार के दिन आशु घर आया था. उस के बाद वह एक बार भी घर नहीं आया. शर्मा के कहने पर पुलिस ने भी घर आ कर इस बात को देखा कि तोता आशु के नाम पर अपना गरदन ऊपर नीचे हिला कर ‘आशुआशु’ चीखने लगता था.

तोते की गवाही पर आशु हुआ गिरफ्तार

पुलिस ने 25 फरवरी, 2014 को अर्जुन नगर, थाना शाहगंज निवासी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने इस घटना से इनकार किया, किंतु पूछताछ के दौरान उस के दाएं हाथ पर कई जख्म दिखाई दिए. इस पर पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए उन जख्मों के बारे में जानना चाहा. इस पर आशु सकपका गया. चोट के संबंध में पुलिस के सवालों के आगे आशु टिक नहीं पाया. उस ने इस अपराध को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस के सामने जो कुछ बताया उस से काफी चौंकाने वाला सच सामने आया.

उस ने बताया कि इस घटना में उस का दोस्त रोनी मैसी भी शामिल था. उस की भी तुरंत गिरफ्तारी हो गई. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कटार (चाकू), हत्या के दौरान लूटे गए गहने, नकदी व घड़ी समेत वारदात में प्रयोग किया गया स्कूटर बरामद कर लिया गया. हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने माल बरामदगी के साथ पूरा क्राइम सीन रीक्रिएट कर साक्ष्य जुटाए. आशु ने बताया कि उस ने अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ मिल कर ही इस घटना को अंजाम दिया था. पहले वह मामामामी के घर में ही रहता था.

दरअसल, विजय शर्मा का बेटा अजेश मानसिक रूप से बीमार रहता था. तब उन्होंने अपने सगे भांजे आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को बेटे की तरह पाला था, लेकिन उस के गलत आचरण की वजह से उन्होंने उसे अलग रहने को कह दिया. तब वह अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ अर्जुन नगर में रहने लगा. लेकिन उस का अपने मामा के यहां आनाजाना लगा रहता था. उसे उन के घर की हर चीज की जानकारी थी.

आशु को मामा के पास घर में काफी गहने व नकदी मौजूद होने की जानकारी थी. उसे वारदात वाली रात को मामा के फिरोजाबाद में शादी में जाने और मामी के घर में अकेले होने की जानकारी थी. उसे रुपयों की जरूरत थी. इसी लूट के इरादे से उस ने अपनी योजना में दोस्त रोनी मैसी को भी शामिल कर लिया.

भांजा बना आस्तीन का सांप

योजना के अनुसार दोनों रात को स्कूटर से मामा के घर पहुंचे. आशु ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. आवाज पहचान कर मामी नीलम शर्मा ने दरवाजा खोल दिया. दोनों घर में घुस आए. पालतू कुत्ता टफी भौंका, लेकिन आशु ने उसे पुचकार कर शांत कर दिया. वह आशु को पहचानता था. रोनी मैसी नकाब में था. उस ने नीलम शर्मा को कमरे में ले जा कर उन्हें धमकाते हुए कहा कि यदि अपनी जान की खैर चाहती हो तो कैश और गहने निकाल कर दे दो.

पीछे से आशु भी कमरे में पहुंच गया. इस पर नीलम की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने आशु से नाराज हो कर ऐसा करने से मना किया. इस पर आशु भी गुस्से में आ गया और साथ लाए तेज धार वाले कटार (चाकू) से नीलम शर्मा के ऊपर ताबड़तोड़ हमले कर दिए. वह तुरंत जमीन पर गिर पड़ीं.

नीलम पर हमला होते देख पालतू कुत्ता ‘टफी’ आशु पर झपट पड़ा. अपने बचाव में आशु ने कटार से कुत्ते पर भी तेजी से लगातार वार कर दिया. उसे भी वहीं मार डाला. यह देख कर पिंजरे में बंद तोते ने शोर मचाया तो उन्होंने पिंजरा वहां पड़े शाल से ढक दिया. मामी और कुत्ते की हत्या के बाद गहने, नकदी आदि लूट कर दोनों फरार हो गए. फरार होने से पहले दोनों ने सारे सबूत भी मिटा दिए.

आशु और रोनी के इन बयानों के आधार पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 394, 302, 429, 411, 4/25 आम्र्स ऐक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश कर दिया. कोर्ट में सुनवाई के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया.

9 साल बाद मिला न्याय

इस सनसनीखेज केस की सुनवाई आगरा जिले के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद की कोर्ट में 9 साल तक चली. पुलिस ने जो चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी, उस में जुटाए गए साक्ष्य ज्यादा ठोस नहीं थे, लेकिन अभियोजन टीम ने इन को मजबूत साक्ष्यों के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस मामले में फोरैंसिक टीम जांच के बाद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी.

अभियोजन पक्ष के पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा गवाह भी थे, लेकिन वह बहुत अधिक मजबूत नहीं लग रहे थे. ऐसे में अभियोजन पक्ष के सामने उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर दोषियों का दोष सिद्ध कर उन्हें सजा दिलाने की कड़ी चुनौती थी.

अभियोजन टीम ने इस संबंध में आगरा के संयुक्त निदेशक अभियोजन महेंद्र कुमार दीक्षित से सलाहमशविरा किया. अभियोजन पक्ष, जिस में वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी जय नारायण गुप्ता, अभियोजन अधिकारी मनीष कुमार तथा एडीजीसी (क्राइम) आदर्श चौधरी शामिल थे, ने ठोस साक्ष्यों के अभाव के बावजूद अथक परिश्रम कर मौजूद साक्ष्यों की छोटी से छोटी कडिय़ों को जोड़ कर दमदार पैरवी की.

दोषियों को हुई उम्रकैद

9 साल तक केस का ट्रायल चला. बहस के दौरान अभियोजन टीम ने अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस केस में वादी संपादक विजय शर्मा की कोरोना के दौरान 2021 में मृत्यु हो चुकी थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाह पेश किए गए. इन में वादी की बेटी निवेदिता तथा 3 अन्य गवाह लोकेश शर्मा, हरेश पचौरी व सुनील शर्मा के बयानों को आधार बनाया.

अभियोजन टीम ने बहस के दौरान कहा कि गवाह लोकेश शर्मा ने आरोपी आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त रोनी मैसी को स्कूटर पर विजय शर्मा के घर की ओर जाते देखा था. वहीं हरेश पचौरी ने उसी स्कूटर पर आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त को निकलते देखा था. जबकि गवाह सुनील शर्मा ने घटना के बाद जब मृतका नीलम शर्मा की डैडबौडी पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए घर पर आई तो उस समय आरोपी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु, जिसे वे पहले से जानते थे, को वहां देखा. आशुतोष के हाथ पर चोट के निशान थे, जो मृतका नीलम की हत्या के समय उन के पालतू डौगी द्वारा आशुतोष पर हमला किए जाने के दौरान आए थे.

बहस के दौरान अभियोजन अधिकारियों ने कहा कि उस के बाद आरोपी आशुतोष व उस का दोस्त रोनी मैसी फरार हो गए. बाद में पुलिस ने दोनों को उसी स्कूटर सहित गिरफ्तार कर लिया और उन की निशानदेही पर मृतका नीलम के घर से लूटे गए आभूषण, नकदी तथा हत्या में प्रयुक्त (आलाकत्ल) कटार को बरामद कर लिया गया.

घटना के समय नीलम शर्मा के वफादार पालतू जरमन शैफर्ड डौग टफी तथा तोते ने अपनी अपनी तरह से आरोपियों का प्रतिरोध किया था. इस दौरान आशुतोष के शरीर पर चोटें आई थीं. इस पर आशुतोष ने डौग टफी को मार दिया गया व तोते के शोर मचाने पर पिंजरे को शाल से ढंक दिया गया था. इस के बाद हत्या व लूट को अंजाम दिया. इन आरोपियों के अलावा यह अपराध अन्य किसी ने नहीं किया है. अभियुक्तों की ओर से एक गवाह पेश किया गया. जिस की गवाही न्यायालय ने नहीं मानी. वहीं बचाव पक्ष की दलीलों को भी नकार दिया गया.

कोर्ट में पेश किए गए गवाहों, सबूतों और दोनों ओर के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश मोहम्मद राशिद ने दोनों आरोपियों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और रोनी मैसी को दोषी मानते हुए उम्रकैद व 72 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई.

दोनों आरोपियों को 4 मामलों में सजा सुनाई गई. आशुतोष और रोनी मैसी को धारा 394 भादंवि लूट के मामले में 10 वर्ष के कठिन कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाने की सजा मिली, वहीं धारा 302 आईपीसी में आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए जुरमाना था. धारा 429 आईपीसी में 4 वर्ष कारावास, 3 हजार रुपए जुरमाना, धारा 411 आईपीसी में लूटा गया माल बरामदगी में 3 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए का जुरमाना तथा आशुतोष को धारा 4/25 आयुध अधिनियम में 2 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने कहा कि सभी सजाएं साथसाथ चलेंगी.

दोनों अभियुक्तों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और उस के दोस्त रोनी मैसी जमानत पर थे. वे दोनों कोर्ट में मौजूद थे. पुलिस ने फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

एडीजीसी आदर्श चौधरी ने बताया कि इस केस में तोता ‘हीरा’ पुलिस की विवेचना का हिस्सा रहा था, लेकिन वह साक्ष्य का हिस्सा नहीं हो सका, क्योंकि कोर्ट में पक्षी की गवाही के लिए कोई कानूनन विधि नहीं है.

ऐसे अपराधी सोचते हैं कि वे मौके से साक्ष्य मिटा कर के अपना गला बचा लेंगे. सजा मिलने से ऐसे अपराधियों को खौफ होगा और न्याय की देवी पर लोगों का भरोसा कायम रहेगा.

लड़की, लुटेरा और बस

काल बनी एक बहू – भाग 3

अच्छा इंसान वही होता है, जो अपनी गलती स्वीकार कर के उसे सुधार ले, लेकिन चंचल ने उल्टा दांव चला. वह हैरान हो कर बोली, “यह आप क्या कह रही हैं मांजी? आप को इतनी घटिया बातें सोचते हुए शरम नहीं आई?”

“सोचना क्या, मैं सब देख रही हूं.” कमला गुस्से से बोलीं.

“सच देखतीं तो आप ऐसा नहीं बोलतीं. ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा आप सोच रही हैं. अपने दिमाग से इस तरह की बातों को निकाल दीजिए.”

“सच्चाई तो कड़वी लगती है बहू, लेकिन मैं ने तुम्हें समझाना अपना फर्ज समझा. मैं तुम्हारी हरकतों से अपने परिवार को बदनाम नहीं होने दूंगी.” बहू के शातिराना रुख से हैरान कमला ने चेतवानी भरे लहजे में कहा.

उन्होंने अगले दिन संजय को भी समझाया कि वह उन के यहां ज्यादा न आया करे. पतन की राहें बहुत रपटीली होती हैं. कुछ दिनों तो दोनों दूर रहे, लेकिन बहुत जल्द दोनों पुराने ढर्रे पर उतर आए. संजय रात के वक्त भी छिपतेछिपाते आने लगा. जो गलतियां करता है, वह कहीं न कहीं लापरवाह भी हो जाता है. एक रात कमला ने उन दोनों को पकड़ा तो उन्हें जम कर फटकारा.

संजय चुपचाप वहां से खिसक गया. कमला ने चंचल को खरीखोटी सुनाई, “मैं ने सोचा था चंचल कि तू मेरी बातों से संभल जाएगी, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर चला गया है. अब मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे इस बारे में दीपक से बात करनी पड़ेगी.”

चंचल रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उस के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात उस के पति तक पहुंचे. उस ने कमला से माफी मांग कर कभी कोई गलती न करने की कसम खाई. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. कमला ने भी वक्त के साथ बहू को माफ कर दिया. बेटे को दु:ख न पहुंचे, इसलिए वह इन बातों को दबा गईं. संजय का आनाजाना भी कम हो गया. अपने किए पर वह भी माफी मांग चुका था.

कुछ दिनों की सावधानी के बाद दोनों अब देहरादून जा कर एकदूसरे से मिलने लगे. चंचल फैशन डिजाइनिंग के कोर्स के लिए जाती थी. इसी बहाने वह संजय से मिल लेती थी. मोबाइल पर भी वह बातें और एसएमएस किया करते थे. अब दोनों को ही परिवार के लोग बाधा लगने लगे थे.

अपने अवैध रिश्ते मे संजय और चंचल एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे. संजय दुष्ट और अपराध करने वाला युवक था. चंचल पूरी तरह उस के रंग में रंगी हुई थी. उन के प्रेमप्रसंग में कमला व राजेंद्र बड़ी बाधा थे, गनीमत यह थी कि ये बातें अभी दीपक को नहीं पता थी. संजय चाहता था कि अपने और चंचल के बीच की हर दीवार को गिरा कर न सिर्फ उस से विवाह कर ले, बल्कि करोड़ों की प्रौपर्टी भी उस की हो जाए. उस ने इस बारे में चंचल से बात की तो उस ने भी अपनी स्वीकृति दे दी.

इस के बाद संजय इसी बारे में सोचने लगा. उस ने रुपयों का इंतजाम कर के 30 हजार रुपए में सितारगंज के रहने वाले दुष्ट प्रवृत्ति के युवक अनिल कुमार से एक माउजर खरीद लिया. संजय व चंचल चाहते थे कि हत्याएं इतनी सफाई से की जाएं कि किसी को उन के ऊपर जरा भी शक न हो.

वे दोनों जानते थे कि कमला राजेंद्र के लिए लडक़ी देखने के लिए पिथौरागढ़ जाने वाली हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर वह पहले ही अपने पति के पास उड़ीसा चली गई. उड़ीसा जाने के बावजूद वह संजय के संपर्क में बनी रही. संजय ने उस से वादा किया कि अगर कमला पिथौरागढ़ गईं तो वह सभी का काम तमाम कर देगा. संजय ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कमला और राजेंद्र से मेलजोल और बढ़ा लिया. उसे पता चला कि 27 नवंबर को उन्हें पिथौरागढ़ जाना है.

राजेंद्र को ड्राइवर की जरूरत थी. उस ने इस बारे मं सजय से कहा तो वह खुद उन के साथ जाने को तैयार हो गया. संजय कार चलाना जानता था. कमला और राजेंद्र को इस बात की खुशी हुई कि संजय उन के लिए अपना समय निकाल रहा है.

27 नवंबर को वह उन्हें कार से ले कर पिथैरागढ़ के लिए निकला. संयोगवश उसे किसी ने भी उन के साथ जाते नहीं देखा. संजय ने अपने पास माउजर और एक चाकू रख लिया. ये लोग हरिद्वार पहुंचे तो दीपक का फोन आया और उस ने मां से बात की.

इस के बाद संजय ने बहाने से राजेंद्र का मोबाइल लिया और उस का सिम ढीला कर दिया, जिस से उस का नेटवर्क चला गया. राजेंद्र टैक्नोलौजी के मामले में कमजोर था, इसलिए उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. संजय नहीं चाहता था कि किसी का फोन आए और वह लोग उस के साथ होने के बारे में कुछ बता दें. वे काशीपुर पहुंचे तो राजेंद्र ने एटीएम से कुछ पैसे निकाले.

इस बीच संजय ने 2 बार चंचल से 4-4 मिनट बात की. इस के बाद जंगल का रास्ता सुनसान था. कमला और भास्कर कार में सो रहे थे, जबकि राजेंद्र जाग रहा था. सिडकुल के पास पहुंच कर संजय ने कार रोक दी. राजेंद्र ने उस से कार रोकने की वजह पूछी तो उस ने कहा कि उसे थकान हो रही है. कुछ देर रुक कर चलेंगे. संजय कार से नीचे उतर गया. राजेंद्र भी नीचे उतर गया. बाहर से कार के अंदर कोई आवाज न जाए, इसलिए संजय ने कार के शीशे बंद कर दिए.

संजय बात करते हुए बहाने से राजेंद्र को कुछ दूर ले गया और माउजर से उस के सिर में गोली मार दी. राजेंद्र ने तुरंत ही दम तोड़ दिया. संजय उसे खींच कर झाडिय़ों में ले गया और लाश को छिपा दिया. इस बीच उस ने राजेंद्र की जेब से मोबाइल निकाल कर उसे स्विच्ड औफ कर दिया.

इस के बाद वह कमला जोशी के पास पहुंचा और उन्हें बताया कि राजेंद्र झाडिय़ों के पीछे बैठ कर शराब पी रहा है और आने से मना कर रहा है. यह सुन कर कमला जोशी उस के साथ चल दीं. मौका पाते ही संजय ने उन्हें भी गोली मार दी.

दोनों शव ठिकाने लगा कर वह कार ले कर थोड़ा दूर आगे गया और एक जगह पर कार रोक कर भास्कर को जगा कर अपने साथ झाडिय़ों की तरफ ले गया. संजय हैवान बन चुका था. उस ने चाकू निकाल कर मासूम भास्कर की पहले गरदन काटी और फिर उस के पेट पर वार किए. भास्कर ने तड़प कर दम तोड़ दिया. हत्या कर के तीनों की लाशें ठिकाने लगाने के बाद उस ने यह बात चंचल को एसएमएस कर के बता दी.

कमला ने बैग में जो आभूषण लडक़ी को देने के लिए रखे थे, वह उस ने खुद कब्जा लिए. उस ने एक थैले में आभूषण, चाकू व माउजर रखा और आगे जा कर कलमठ में जंगल में एक स्थान पर गड्डा खोद कर उसे छिपा दिया.  इस के बाद वह रुद्रपुर होते हुए बिलासपुर पहुंचा और सडक़ किनारे कार छोड़ कर बस से देहरादून चला गया. हत्या का मामला ठंडा हो जाने के बाद चंचल और संजय की योजना दीपक को भी ठिकाने लगाने की थी. लेकिन उस से पहले ही वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.

संजय की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथियार और आभूषण बरामद करने के साथ ही पुलिस ने माउजर बेचने वाले अनिल को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत भेज दिया गया.

चंचल के अविवेक ने जहां एक भरेपूरे परिवार को उजाड़ दिया, अंधे प्यार और लालच ने संजय को भी जुर्म की राह पर धकेल दिया. दोनों ने मर्यादाओं का खयाल किया होता तो ऐसी नौबत कभी नहीं आती. चंचल के पति दीपक का कहना था कि उसे नहीं लगता कि उस की पत्नी का हत्या में कोई हाथ है. वह पूरे कांड का मास्टरमाइंड संजय को मानता है. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 3

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

“इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिसके गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.” लिलि ने कहा.

“तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.” लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, “पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?”

“अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?”

“मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके.

यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.”

“जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.” लिलि गुस्से से बोली.

“तुम दोनों लडऩाझगडऩा बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

“प्रेमप्रकाश, जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?” इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

“मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“तुम क्या कहते हो डा. परीचा?” पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

“मैं अकेला था.” डाक्टर धीरे से बोला.

“लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?” उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

“पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा. पर डाक्टर इनकार करता रहा.

“डाक्टर, पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?”

“मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.” डा. परीचा ने कहा.

“तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?”

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, “तुम ने मि. अतुल को इस लडक़ी और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?”

“मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.”

“तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?” पटेल ने घूरते हुए पूछा.

“जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.” प्रेमप्रकाश ने कहा.

“उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?” पटेल ने पूछा.

“मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.” प्रेमप्रकाश ने बताया.

“क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?” पटेल ने पूछा.

“तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?” प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, “तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?”

“मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया.

लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.” डाक्टर ने कहा.

“उस के बाद क्या हुआ?” पटेल ने पूछा.

“जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लडक़ा जिन्दा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.” डाक्टर ने कहा.

“अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.” पटेल ने कहा.

“क्या मैं भी जा सकता हूं?” योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी. वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी.

अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, “अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.”

“इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.”

दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 3

अब  मुन्नालाल की परेशानी और बढ़ गई, क्योंकि वह जानता था कि बाबा पत्नी के लिए नहीं, सगुना के लिए नौकरी छोड़ कर आया था. जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने ससुर को बुला कर सगुना के बारे में सब कुछ बता दिया.

डबली ने बेटी को खूब डांटा. इज्जत और दोनों बच्चों का हवाला दे कर समझाया भी लेकिन सगुना के मन को अब सिर्फ बाबा जानता था. इसीलिए जब उस ने बाबा को फोन कर के कहा कि वह इस माहौल में कतई नहीं रह सकती, किसी दिन आत्महत्या कर लेगी तो एक बार फिर बाबा सगुना को ले उड़ा.

रेखा को जब पता चला कि उस का पति 2 बच्चों की मां के इश्क में पड़ा है तो वह परेशान हो उठी. क्योंकि अब वह खुद भी बाबा के एक बेटे की मां बन चुकी थी. इस बार मुन्नालाल को लगा कि अब उस की गृहस्थी नहीं बच सकती तो उस ने थाने जा कर बाबा के खिलाफ पत्नी को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी ए.एम. काजी ने मुलायम सिंह को बुला कर बाबा और सगुना को ढूंढ़ कर लाने का दबाव बनाया. बाबा की इस हरकत से मुलायम सिंह ही नहीं, उस के बेटे सुभाष, धर्मेंद्र, प्रमोद और सर्वेश भी परेशान थे. पुलिस के दबाव में उन्होंने सगुना और बाबा को ढूंढ निकाला. सगुना को ला कर उन्होंने मुन्नालाल के हवाले कर दिया तो उन की जान छूटी.

सगुना घर तो आ गई थी, लेकिन क्या गारंटी थी कि वह ऐसा काम फिर नहीं करेगी. फिर ऐसा न हो, इस के लिए मुन्नालाल ने पंचायत बुलाई. सगुना और बाबा को भी पंचायत में बुलाया गया. गांव वालों ने फैसला किया कि अगर बाबा ने फिर इस तरह की कोई हरकत की तो उस के परिवार से गांव का कोई आदमी संबंध नहीं रखेगा. सगुना को भी गांव से निकाल दिया जाएगा.

पंचायत के इस फैसले से मुलायम सिंह और उस के बेटे घबरा गए. उन्होंने बाबा और उस की पत्नी को दिल्ली भेज दिया. रेखा भी बाबा के व्यवहार से आहत थी. उस ने धमकी दी कि अगर फिर उस ने इस तरह की कोई हरकत की तो वह उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करेगी. बाबा ने भी सोचा कि अब वह दिल्ली में ही रहेगा, जिस से उस के घर वालों को कोई परेशानी न हो.

पंचायत ने भले ही 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था, लेकिन दिल से वे अलग नहीं हो पाए थे. सगुना की तड़प बढ़ती जा रही थी. इसे मिटाने के लिए वह देर रात तक प्रेमी से फोन पर बातें करती रहती थी. इस से मुन्नालाल काफी तनाव में रहता था. उस का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था और यह गुस्सा सगुना पर ही उतारता था. उस के दोनों बेटे मांबाप के इस व्यवहार से बहुत डरे रहते थे.

मुन्नालाल को लगता था कि हालात उस के काबू से बाहर होते जा रहे हैं सगुना के प्रति उस की नफरत बढ़ने लगी. फिर भी अपने घर को बचाने के लिए उस ने एक बार कोशिश की. उस ने सगुना को अपने पास बैठा कर समझाया, ‘‘देखो सगुना, तुम जो कर रही हो, वह अच्छा नहीं है. खुद को संभालो, क्योंकि तुम्हारी इन हरकतों का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.’’

सगुना ने कहा, ‘‘पहले तुम अपने व्यवहार को देखो. तुम पत्नी को आदमी नहीं, जानवर समझते हो. अगर तुम्हारा ही व्यवहार अच्छा होता तो यह सब नहीं होता, जो हुआ है. पहले खुद को संभालो, उस के बाद मुझ से कहना. तुम्हारी पहली दोनों बीवियां भी तुम से कहां खुश थीं.’’

‘‘लेकिन वे चरित्रहीन तो नहीं थीं.’’

‘‘हां, मैं चरित्रहीन हूं. तुम से शादी करने का मतलब यह तो नहीं कि मुझे 2 पल की खुशी न मिले. तुम ने मेरे जीवन को नरक बना दिया है. तुम न 2 पल की खुशी दे सकते हो न जहां से मिल रही है, वहां से मिलने देते हो. अगर मैं 2 पल की खुशी कहीं से हासिल करना चाहती हूं तो तुम उस में रोड़ा बन जाते हो.’’

मुन्नालाल समझ गया कि यह बाबा को नहीं छोड़ेगी. यह इसी तरह उस की इज्जत से खेलती रहेगी. उसे गुस्सा आ गया. उस ने तय कर लिया कि अब वह इसे इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए जिंदा नहीं छोड़ेगा. इरादा पक्का कर के वह घर से निकल गया.

देर रात उस ने अपने दोनों बेटों को दूसरे कमरे में लेटा कर फावड़े से सगुना को काट कर मार डाला. गुस्से में उस ने खून तो कर दिया, लेकिन लाश देख कर घबरा गया. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो गड्ढा खोद कर उस ने लाश को उसी में गाड़ दिया.

मुन्नालाल ने सारे सुबूत तो मिटा दिए, लेकिन उसे लगा कि जब लोग उस से पूछेंगे कि सगुना कहां गई है तो वह क्या जवाब देगा?

अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने दोनों बेटों को लिया और मैनपुरी में रहने वाली नरेश की बेटी के यहां जा पहुंचा. उसे लग रहा था कि वह किसी भी हालत में पुलिस से नहीं बच पाएगा. उस की अंतरात्मा भी उसे धिक्कारने लगी थी कि उस ने ठीक नहीं किया. जब मन पर बोझ बहुत ज्यादा हो गया तो उस ने बच्चों को वहीं छोड़ दिया और खुद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर के सामने जा कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर ने थाना बेवर के थानाप्रभारी ए.एम. काजी को बुला कर मुन्नालाल को उन के हवाले कर दिया. थानाप्रभारी ने गांव जा कर मुन्नालाल की निशानदेही पर सगुना की लाश और फावड़ा बरामद कर लिया. पूरा गांव मुन्नालाल की इस हरकत पर हैरान था. पुलिस ने अपनी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मुन्नालाल को ले कर थाने आ गई.

इस के बाद मुन्नालाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह गुस्से में मुन्नालाल ने अपना घर बरामद कर के अपने बच्चों को अनाथ कर दिया.

काल बनी एक बहू – भाग 2

पुलिस ने दीपक और उस की पत्नी चंचल से भी पूछताछ की, लेकिन उन्होंने किसी से भी कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. जोशी परिवार के पास करोड़ों की पारिवारिक जमीन थी. यह पूरी प्रौपर्टी कमला के नाम थी. इस नजरिए की गई जांच में सामने आया कि प्रौपर्टी को ले कर भी किसी से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था. ड्राइवर का पता लगाने के लिए पुलिस ने राजेंद्र के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल की, लेकिन उस में भी कोई नंबर ऐसा नहीं मिला, जो किसी ड्राइवर का रहा हो.

राजेंद्र के मोबाइल में आखिरी काल पिथौरागढ़ से आई थी. पुलिस वहां पहुंची तो वह उस लडक़ी के पिता का नंबर था, जिसे जोशी परिवार देखने जा रहा था. उन्होंने बताया कि राजेंद्र का फोन 27 नवंबर को सिर्फ यह बताने के लिए आया था कि वे लोग उन के यहां आ रहे हैं. इस के बाद राजेंद्र से चाहकर भी उन का कोई संपर्क नहीं हो सका था.

पुलिस के सामने अब 2 तरह की आशंकाएं थीं. एक तो यह कि इस परिवार की हत्याएं लूटपाट के लिए की गई थीं और दूसरी यह कि कार ड्राइवर ने ही उन लोगों के साथ कुछ गलत किया हो. इस बात को ध्यान में रख कर दोनों जिलों देहरादून और ऊधमसिंहनगर की पुलिस ने कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की. लेकिन कोई सुराग नही मिल सका. मामला उलझ कर रह गया था.

वारदात का मोटिव समझ से परे था. जोशी परिवार की खुले तौर पर किसी से कोई रंजिश नहीं थी और न ही कोई दूसरा ऐसा विवाद जिस के लिए परिवार को ही लापता कर दिया जाता. नि:संदेह इस घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया था. पुलिस ने राजेंद्र के पूर्व ससुराल वालों से भी पूछताछ की, लेकिन इस का भी कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी, परंतु कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था.

पुलिस ने शक के आधार पर काम करती है. परिवार की समाप्ति पर कमला की करोड़ों की प्रौपर्टी का दीपक ही एकलौता वारिस था. यह भी संभव था कि उस के इशारे पर ही किसी रहस्यमय तरीके से इस मामले को अंजाम दिया गया हो. आज के दौर में प्रौपर्टी को ले कर हत्याएं हो जाना कोई नई बात नहीं है. अपने ही अपनों के खून के प्यासे बन जाते हैं. प्रौपर्टी के एंगल पर पुलिस ने दीपक को भी शक के दायरे में रख कर 5 दिसंबर को उस से गहन पूछताछ की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस किसी नतीजे पर पहुंच पाती, इस से पहले गुत्थी और ज्यादा उलझ गई. एसएसपी केवल खुराना के निर्देश पर पुलिस ने 7 दिसंबर को उस स्थान के आसपास कांबिग कर के खोजबीन शुरू की, जहां भास्कर का शव मिला था. इस खोजबीन में उत्तर दिशा की झाडिय़ों से पुलिस को 2 शव और मिले. दोनों शव बुरी तरह सडग़ल चुके थे. कपड़ों के आधार पर उन की शिनाख्त कमला और राजेंद्र के रूप में की गई. पुलिस ने दोनों शवों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि हत्याओं को किस ने और क्यों अंजाम दिया? ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी, जिस के लिए 3 हत्याएं कर दी गईं. ड्राइवर का अब तक कुछ पता नहीं चल सका था. जबकि वही मुख्य संदिग्ध भी था. वह सुपारी किलर भी हो सकता था और किसी लुटेरे गिरोह का सदस्य भी. दीपक व उस की पत्नी किसी रंजिश की बात से इनकार कर चुके थे.

इस मामले की जांच में स्पैशल औपरेशन गु्रप की टीम को भी लगा दिया गया. देहरादून व ऊधमसिंहनगर पुलिस की 10 टीमें केस के खुलासे में जुट गईं. पुलिस के शक की सुई ड्राइवर पर ही टिकी थी. क्योंकि कुछ ऐसे ड्राइवर भी होते हैं, जो दिखावे के लिए तो कार चलाने का काम करते हैं, लेकिन किसी गिरोह के साथ मिल कर अपराध को अंजाम देते हैं.

देहरादून से सितारगंज के बीच कई सुनसान इलाके थे, लेकिन हत्यारों ने उसी स्थान को क्यों चुना, यह भी एक बड़ा सवाल था. ऐसा प्रतीत होता था कि हत्या पूर्व नियोजित थी और शातिराना अंदाज में तीनों को ठिकाने लगा दिया गया था. पुलिस के पास हत्या की जांच के लिए 3 ङ्क्षबदु प्रमुख थे. एक ड्राइवर, दूसरा संपत्ति और तीसरा प्रेम प्रसंग.

संपत्ति के मामले में पुलिस दीपक से खूब घुमाफिरा कर गहन पूछताछ कर चुकी थी. वह खुद को बेकसूर बता रहा था. उस के खिलाफ पुलिस को कोई सबूत भी नहीं मिला था. ड्राइवर के गुनाहगार और राजदार होने के शक में भी कई लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी.

जांच कर रही पुलिस ने इस बार नजरिया बदल कर प्रेम के एंगल पर भी काम करना शुरू किया. इस के लिए कुछ रिश्तों को खंगालना शुरू किया गया. इस कड़ी में घर की छोटी बहू यानी दीपक की पत्नी चंचल पर जांच केंद्रित की गई. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल शुरू की तो पुलिस चौंकी. दरअसल घटना वाले दिन उस के मोबाइल पर एक नंबर से कुछ एसएमएस किए गए थे, जिस नंबर से एसएमएस किए गए थे, वह श्यामपुर के ही संजय पंत का था.

संजय पंत जोशी परिवार के पड़ोस में ही रहता था. इस पर पुलिस ने संजय के मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो उसे यह देख कर झटका लगा कि घटना वाले दिन उस की लोकेशन राजेंद्र के मोबाइल के साथसाथ सितारगंज तक गई थी. इस से साफ था कि घटना वाले दिन वह उन के साथ था. चंचल और संजय मोबाइल पर अकसर बातें किया करते थे. काल डिटेल्स इस की गवाही दे रही थी. इस का मतलब संजय और चंचल का जरूर कोई गहरा कनेक्शन था.

गुत्थी सुलझती नजर आई तो पुलिस बिना देरी किए देहरादून पहुंची. संजय को पकड़ लिया गया. देहरादून के एसपी (सिटी) अजय कुमार के निर्देश पर चंचल को भी हिरासत में ले लिया गया. उन दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस ऊधमसहनगर आ गई.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल ले कर चेक किए तो उन में से घटना वाली तारीख के एसएमएस नदारद थे. जाहिर था कि उन्होंने एसएमएस डिलीट कर दिए थे. पुलिस ने दोनों से गहराई से पुछताछ की तो उन्होंने जो बताया, सुन कर पुलिस के भी रोंगटे खड़े हो गए.

जोशी परिवार का कातिल संजय पंत था और इस साजिश में चंचल भी शामिल थी. दोनों के अवैध रिश्ते और संपत्ति का लालच इतने बड़े कांड की वजह बन गया था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक बहू पूरे परिवार के लिए काल बन जाएगी.

करीब डेढ़ साल पहले संजय और चंचल की नजरें चार हुई थीं, धीरेधीरे दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया था. चंचल का पति दूर रहता था, संजय ने इस बात का फायदा उठाया और अपनी मीठीमीठी बातों से चंचल को अपनी तरफ आकॢषत करने में कामयाब हो गया.  चंचल को भी पति से दूरियां खलती थीं. भविष्य की परवाह किए बिना दोनों ने प्रेम की पींगे बढ़ानी शुरू कर दीं. संजय किसी न किसी बहाने से कमला के घर आनेजाने लगा. एक ही गांव और पड़ोसी होने से उस का इस तरह आना कोई अप्रत्याशित बात नहीं थी.

वक्त गुजरता रहा. संजय और चंचल मुलाकातों के अलावा मोबाइल पर भी बातें किया करते थे. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार कर चुके थे. एक दौर ऐसा भी आया, जब उन के बीज मर्यादा की दीवार गिर गई. यूं तो हर नजरिए से उन का रिश्ता अवैध था, लेकिन उन दोनों को इस में खुशियां मिल रही थीं.

चंचल काफी पढ़ीलिखी थी. उस की समझदारी पर पूरे परिवार को गर्व था. कमला ने जमाना देखा था. बहू के रंगढंग उन से छिप नहीं सके. उन्होंने एक दिन चंचल को समझाया, “संजय का हमारे घर ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है बहू. मैं सबकुछ जान कर भी अंजान नहीं रह सकती. तुम खुद को सुधार लो, इसी में परिवार की भलाई है.”

चंचल जैसे इस के लिए पहले से तैयार थी. यह एक सच है कि ऐसी गलतियां कर ने वाला इंसान अपनी कारगुजारियों को छिपाने के लिए झूठ बोलने लगता है और इसी के चलते वह काफी शातिर भी हो जाता है. वह जानती थी कि एक न एक दिन यह नौबत आ कर रहेगी.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 2

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, “अब तुम कैसा फील कर रहे हो?”

“ठीक हूं.” योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

“मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.” लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

“लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.”

“तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?” लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

“तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.” लिलि ने कहा.

“इस की वजह?” योगेन ने पूछा.

“दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.”

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, “मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.”

“पुलिस… पुलिस क्यों आई है?” यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला.

दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, “रीना…”

इसी के साथ वह लडख़ड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, “मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?”

“जी, रीना मेरी मंगेतर थी.” उस ने उदासी से कहा.

“जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.” पटेल ने हमदर्दी से कहा, “मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.”

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, “तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?”

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, “सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.”

“मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.” पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, “तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.”

“क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?” योगेन ने पूछा.

“हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढिय़ों वाले दरवाजे में ताला बंद था.” पटेल ने बताया.

“वे 4 लोग कौन हैं?” योगेन ने पूछा.

“मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.”

“आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?”

“हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.” पटेल ने कहा.

“हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?” योगेन ने कहा.

“सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.”

“रीना को किस ने और कैसे मारा?” योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

“किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.”

“अब आप क्या करेंगे?” उस ने पूछा.

“मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.” इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी.

अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, “मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.”

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, “तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?”

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

“उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.” अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

“इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?” पटेल ने कहा.

“जी, मेरे और्डर पर इस लडक़े को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.”

“मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?” पटेल ने पूछा.

“मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.”

“फिर…?”

“मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.”

“मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?”

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, “इंसपेक्टर, योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.”

“ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?” पटेल ने रूखेपन से कहा.

“जरूर जरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.” लिलि ने कहा.