गुनाह : भूल का एहसास – भाग 3

‘‘तुम पहले ही मुझे इतना छल चुके हो कि अब और गुंजाइश बाकी नहीं है. सच तो यह है कि तुम्हारे लिए मेरी अहमियत उस फूल से अधिक कभी नहीं रही, जिसे जब चाहा मसल दिया. तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि बिस्तर से परे भी मेरा कोई वजूद है. मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं. मेरा शरीर भी हाड़मांस से बना हुआ है, जिस के भीतर दिल धड़कता है और जो तुम्हारी तरह ही सुखदुख का अनुभव करता है.’’

‘‘इस बीच रीना ने मेरी बहुत सहायता की. जीने की प्रेरणा दी. कदमकदम पर हौसला बढ़ाया. वह भावनात्मक संबल न देती तो मैं टूट गई होती. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने भरपूर साथ दिया. तुम ने कभी नहीं चाहा मैं नौकरी करूं. इस के लिए तुम ने हर संभव कोशिश भी की. अपने बराबर मुझे खड़ी होते देख तुम विचलित होने लगे थे. दरअसल, मेरे आंसुओं से तुम्हारा अहं तुष्ट होता था, शायद इसीलिए तुम्हारी कुंठा छटपटाने लगीथी.’’

‘‘मुझे अपने सारे जुर्म स्वीकार हैं. जो चाहे सजा दो मुझे, पर प्लीज अपने घर लौट चलो,’’ मैं असहाय भाव से गिड़गिड़ाता हुआ बोला.

‘‘कौन सा घर?’’ वह आपे से बाहर हो गई, ‘‘ईंट पत्थर की बेजान दीवारों से बना वह ढांचा, जहां तुम्हारे तुगलकी फरमान चलते हैं? तुम्हें जो अच्छा लगता वही होता था वहां. बैडरूम की लोकेशन से ले कर ड्राइंगरूम की सजावट तक सब में तुम्हारी ही मरजी चलती थी. मुझे किस रंग की साड़ी पहननी है, किचन में कब क्या बनना है, इस सब का निर्णय भी तुम ही लेते थे. वह सब मुझे पसंद है भी या नहीं, इस से तुम्हें कुछ लेनादेना नहीं था. मैं टीवी देखने बैठती तो रिमोट तुम झपट लेते. जो कार्यक्रम मुझे पसंद थे उन से तुम्हें चिढ़ थी.

‘‘वहां दूरदूर तक मुझे अपना अस्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता था… हर ओर तुम ही तुम पसरे हुए थे. मेरे विचार, मेरी भावनाएं, मेरा अस्तित्व सब कुछ तिरोहित हो गया तुम्हारी विक्षिप्त कुंठाओं में. तुम्हारी हिटलरशाही की वजह से मेरा जीना हराम हो गया था. उस अंधेरी कोठरी में दम घुटता था मेरा, इसीलिए उस से दूर बहुत दूर यहां आ गई हूं ताकि सुकून के 2 पल जी सकूं, अपनी मरजी से.’’

‘‘अब तुम जो चाहोगी वही होगा वहां. तुम्हारी मरजी के बिना एक कदम भी नहीं चलूंगा मैं. तुम्हारे आने के बाद से वह घर खंडहर हो गया है. दीवारें काट खाने को दौड़ती हैं. बेटी की किलकारियां सुनने को मन तरस गया है. उस खंडहर को फिर से घर बना दो रेवा,’’ मेरा गला भर आया था.

‘‘अपनी गंदी जबान से मेरी बेटी का नाम मत लो,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘भौतिक सुख और रासायनिक प्रक्रिया मात्र से कोई बाप कहलाने का हकदार नहीं हो जाता. बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है औलाद के लिए. याद करो उन लमहों को, जब मेरे गर्भवती होने पर तुम गला फाड़फाड़ कर चीख रहे थे कि मेरे गर्भ में तुम्हारा रक्त नहीं, मेरे बौस का पल रहा है. तुम्हारे दिमाग में गंदगी का अंबार देख कर मैं स्तब्ध रह गई थी. कितनी आसानी से तुम ने यह सब कह दिया था, पर मैं भीतर तक घायल हो गईथी तुम्हारी बकवास सुन कर. जी तो चाहा था कि तुम्हारी जबान खींच लूं, पर संस्कारों ने हाथ जकड़ लिए थे मेरे.

‘‘तुम चाहते थे कि मैं गर्भपात करा लूं. अपनी बात मनवाने के लिए जुल्मों का हथकंडा भी अपनाया पर मैं अपने अंश को जन्म देने के लिए दृढ़संकल्प थी. प्रसव कक्ष में मैं मौत से संघर्ष कर रही थी और तुम श्रुति के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे. एक बार भी देखने नहीं आए कि मैं किस स्थिति में हूं. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए. इस मुश्किल घड़ी में रीना साथ न देती तो मर ही जाती मैं.’’

आंखों में आंसू लिए मैं अपराधी की भांति सिर झुकाए उस की बात सुनता रहा.

‘‘मुझे परेशान करने के तुम ने नएनए तरीके खोज लिए थे. तुम मेरी तुलना अकसर श्रुति से करते थे. तुम्हारी निगाह में मेरा चेहरा, लिपस्टिक लगाने का तरीका, हेयरस्टाइल, पहनावा और फिगर सब कुछ उस के आगे बेहूदा था. मेरी हर बात में नुक्स निकालना तुम्हारी आदत में शामिल हो गया था. मूर्ख, पागल, बेअक्ल… तुम्हारे मुंह से निकले ऐसे ही जाने कितने शब्द तीर बन कर मेरे दिल के पार हो जाते थे. मैं छटपटा कर रह जाती थी. भीतर ही भीतर सुलगती रहती थी तुम्हारे शब्दालंकारों की अग्नि में. इतनी ही बुरी लगती हूं तो शादी क्यों की थी मुझ से? मेरे इस प्रश्न पर तुम तिलमिला कर रह जाते थे.

‘‘उकता गई थी मैं उस जीवन से. ऐसा लगता था जैसे किसी ने अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया हो. मेरी रगरग में विषैले बिच्छुओं के डंक चुभने लगे थे. जहर घुल गया था मेरे लहू में. सांस घुटने लगी थी मेरी. उस दमघोंटू माहौल में मैं अपनी बेटी का जीवन बरबाद नहीं कर सकती. उपेक्षा के जो दंश मैं ने झेले हैं, उस की छाया उस पर हरगिज नहीं पड़ने दूंगी. बेहतर है, तुम खुद ही चले जाओ वरना तुम जैसे बेगैरत इंसान को धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाना भी मुझे अच्छी तरह आता है.

एक बात और समझ लो,’’ मेरी ओर उंगली तान कर वह शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘भविष्य में भूल कर भी इधर का रुख किया तो बाकी बची जिंदगी जेल में सड़ जाएगी,’’ मेरी ओर देखे बिना उस ने अंदर जा कर इस तरह दरवाजा बंद किया जैसे मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो.

मैं किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा. इंसान के गुनाह साए की तरह उस का पीछा करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी वह परिणाम भुगते बगैर उन से मुक्त नहीं हो सकता. कल मैं ने जिस का मोल नहीं समझा, आज मैं उस के लिए मूल्यहीन था. यह दुनिया कुएं की तरह है. जैसी आवाज दोगे वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. जो जैसे बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है. तनहाई की स्याह सुरंगों की कल्पना कर मेरी आंखों में मुर्दनी छाने लगी. आवारा बादल सा मैं खुद को घसीटता अनजानी राह पर चल दिया. टूटतेभटकते जैसे भी हो, अब सारा जीवन मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना था.

देवर के इश्क़ में – भाग 2

अब रामखिलौने का उस के यहां आनाजाना उस समय होने लगा, जब रामनिवास और गायत्री खेतों पर होते. एक दिन मौका पा कर रामखिलौने घर आया तो बातोंबातों में उस ने पुष्पा की खूबसूरती की तारीफ शुरू कर दी. पुष्पा हैरानी से उस की ओर देखने लगी. इस से पहले कि वह उस से कुछ कह पाती, उस ने लपक कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’  पुष्पा अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘जानते हो मैं तुम्हारे बड़े भाई की पत्नी हूं.’’

पुष्पा कहने को तो यह बात कह गई, लेकिन उसे रामखिलौने का स्पर्श अच्छा लगा था.

रामखिलौने ने कहा, ‘‘भाभी, मैं वादा करता हूं कि हमेशा तुम्हारा साथ दूंगा और जीवन भर तुम्हें प्यार करता रहूंगा.’’

पुष्पा रामखिलौने की बात का जवाब दिए बगैर दूसरे कमरे में चली गई. उस के तेवर देख कर रामखिलौने डर गया और वहां से चला गया. उस के जाने के बाद  पुष्पा परेशान हो कर चारपाई पर बैठ गई और अभीअभी जो हुआ था, उसी के बारे में देर तक सोचती रही. आखिर उस के बागी मन ने तय कर लिया कि वह रामखिलौने की मोहब्बत को कुबूल कर लेगी.

अगले कुछ दिनों तक रामखिलौने डर की वजह से  पुष्पा के यहां नहीं आया. पुष्पा काफी परेशान थी. एक दिन उस ने गली में रामखिलौने को खड़ा देखा तो उसे चाहत भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘बस यही है तुम्हारी मोहब्बत. उस दिन तो बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे.’’

पुष्पा की बातें सुन कर रामखिलौने खुश हो गया. वह समझ गया कि पुष्पा उस से नाराज नहीं है. उस ने कहा, ‘‘भाभी, मैं तो आने ही वाला था.’’

‘‘सब जानती हूं मैं.’’  पुष्पा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज आधी रात को आ जाना, मैं इंतजार करूंगी.’’

रामखिलौने का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने घर चला गया और रात होने का इंतजार करने लगा. अब उस के लिए एकएक पल बहुत लंबा महसूस हो रहा था. वह चाह रहा था कि जल्द से जल्द रात हो, जिस से वह पुष्पा से मिल सके. सूरज छिपने के बाद जैसेजैसे अंधेरा गहरा रहा था, रामखिलौने के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.

दूसरी ओर पुष्पा को पूरा विश्वास था कि रामखिलौने रात को जरूर आएगा. इसलिए उस ने फटाफट घर का काम निपटाया और बेटे को सुला दिया. सासससुर भी खापी कर सो गए. वह बेसब्री से रामखिलौने का इंतजार करने लगी. आधी रात के करीब उस के दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई.  पुष्पा का दिल धड़कने लगा.

दबे पांव पुष्पा दरवाजे पर पहुंची. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने रामखिलौने को देख कर खुश हो गई. इशारे से उस ने उसे अंदर बुला लिया और अपने कमरे में ले गई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. कुछ ही देर में उन के रिश्ते तारतार हो गए.

इस के बाद रामखिलौने खुश हो कर चुपचाप वहां से चला गया. दिल्ली में बैठा अनिल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस की गृहस्थी में उस का चचेरा भाई सेंध लगा सकता है, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था. वह तो इसी कोशिश में लगा था कि किसी तरह वह दिल्ली में अपना घर बना ले.

अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है, जो कोई एक बार इस राह पर कदम बढ़ाता है, वह गर्त में धंसता चला जाता है. अब तो पुष्पा को जब भी मौका मिलता, वह रामखिलौने को अपने घर बुला लेती. चूंकि उन का यह खेल घर में होता था, इसलिए काफी समय उन के संबंधों की किसी को भनक नहीं लगी.

इस बीच पुष्पा के तेवर काफी बदल गए थे. गायत्री समझ नहीं पा रही थी कि वह बहू से कुछ काम करने को कहती है तो वह तबीयत खराब होने की बात कह कर टाल क्यों देती है, जबकि जब कभी रामखिलौने आता है, तुरंत उठ कर चाय बनाने चली जाती है.

गायत्री ने पहले तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब एक पड़ोसन ने रामखिलौने के उन के घर रोजाना आने की बात बताई तो वह चौंकी. गायत्री सोचने लगी कि कहीं उस की बहू और रामखिलौने के बीच कोई चक्कर तो नहीं है. यह शक गायत्री के दिमाग में बैठ गया.

अगले दिन वह पति के साथ खेत पर नहीं गई. दोपहर में रामखिलौने घर आया तो ताई को देख कर सकपका गया. उस ने कहा, ‘‘रामिखलौने, तू दिनभर इधरउधर घूमता रहता है, तेरे पास कोई काम नहीं क्या है?’’

रामखिलौने हंसने लगा, ‘‘तुम ने यह कैसे सोच लिया ताई कि मैं कोई काम नहीं करूंगा? देखना एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि तुम हैरान रह जाओगी.’’

‘‘ठीक है, जब करना तब करना, लेकिन दिन भर मेरे घर के फेरे लगाने की जरूरत नहीं है.’’

सास की यह बात पुष्पा ने भी सुन ली थी. वह डर गई कि कहीं सास को उन के संबंधों पर शक तो नहीं हो गया, जो वह रामखिलौने से इस तरह कह रही है. ताई की बात सुन कर रामखिलौने का भी चेहरा उतर गया. वह उसी समय बिना कुछ कहे वहां से चला गया.  रामखिलौने ने अब पुष्पा के यहां जाना बंद कर दिया. प्रेमी से मुलाकात न होने की वजह से पुष्पा बेचैन रहने लगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस से कैसे मिले.

एक दिन पुष्पा की तबीयत खराब हो गई. वह गांव के डाक्टर से दवा लेने गई. घर लौटते समय उसे रामखिलौने मिल गया. उस ने रामखिलौने से बेचैनी प्रकट की तो उस ने कहा, ‘‘तुम चिंता न करो भाभी. मैं तुम्हें एक मोबाइल दे दूंगा. तुम जब भी बुलाओगी, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? मैं जानती हूं कि जब अनिल आएगा तो इस बात को ले कर घर में तूफान खड़ा हो जाएगा. इसलिए बेहतर होगा कि तुम सतर्क रहो.’’

2 दिनों बाद रामखिलौने ने एक मोबाइल फोन खरीद कर पुष्पा को दे दिया. अब दोनों मोबाइल से रात को अपने मन की बातें करने लगे. चूंकि अब पुष्पा की सास सतर्क हो चुकी थी, इसलिए वह बहू की गतिविधियों पर नजर रखने लगी थी. एक रात उस ने बहू और रामखिलौने को छत पर देख लिया. गायत्री को देख कर रामखिलौने छत से कूद कर भाग गया. इस के बाद गायत्री ने पुष्पा को बहुत फटकारा.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 2

अगले दिन सैकंड सैटरडे था और उस के अगले दिन संडे. इन 2 दिनों की दूरी मेरे लिए आकाश और पाताल के बराबर थी. कुछ सोचता हुआ मैं उसी तेजी से उस औफिस में दाखिल हुआ, जहां से रेवा निकली थी. रिशैप्सन पर एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. तेज चलती सांसों को नियंत्रित कर मैं ने उस से पूछा कि क्या रेवा यहीं काम करती हैं? उस ने ‘हां’ कहा तो मैं ने रेवा का पता पूछा. उस ने अजीब निगाहों से मुझे घूर कर देखा.

‘‘मैडम प्लीज,’’ मैं ने उस से विनती की, ‘‘वह मेरी पत्नी है. किन्हीं कारणों से हमारे बीच मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई थी, जिस से वह रूठ कर अलग रहने लगी. मैं उस से मिल कर मामले को शांत करना चाहता हूं. हमारी एक छोटी सी बेटी भी है. मैं नहीं चाहता कि हमारे आपस के झगड़े में उस मासूम का बचपन झुलस जाए. आप उस का पता दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी. बिलीव मी, आई एम औनेस्ट,’’ मेरा गला भर आया था.

वह कुछ पलों तक मेरी बातों में छिपी सचाई को तोलती रही. शायद उसे मेरी नेकनीयती पर यकीन हो गया था. अत: उस ने कागज पर रेवा का पता लिख कर मुझे थमा दिया. मैं हवा में उड़ता वापस आया. सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मन में एक ही बात खटक रही थी कि मैं रेवा का सामना कैसे करूंगा? क्या उस से नजरें मिला सकूंगा? पता नहीं वह मुझे माफ करेगी भी या नहीं?

उस के स्वभाव से मैं भलीभांति परिचित था. एक बार जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. अगर ऐसा हुआ तो? मन के किसी कोने से उठी व्यग्रता मेरे समूचे अस्तित्व को रौंदने लगी. ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. मन में घुमड़ते संशय के बादलों को मैं ने पूरी शिद्दत से छितराने की कोशिश की. वह पत्नी है मेरी. उस ने मुझे दिल की गहराइयों से प्यार किया है. कुछ वक्त लिए तो वह मुझ से दूर हो सकती है, पर हमेशा के लिए नहीं. मेरा मन कुछ हलका हो गया था. उस की सलोनी सूरत मेरी आंखों में तैरने लगी थी.

सुबह उस का पता ढूंढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई. मीडियम क्लास की कालोनी में 2 कमरों का साफसुथरा सा फ्लैट था. आसपास गहरी खामोशी का जाल फैला था. बाहर रखे गमलों में उगे गुलाब के फूलों से रेवा की गंध का मुझे एहसास हो रहा था. रोमांच से मेरे रोएं खड़े हो गए थे. आगे बढ़ कर मैं ने कालबैल का बटन दबाया. भीतर गूंजती संगीत की मधुर स्वरलहरियों ने मेरे कानों में रस घोल दिया. कुछ ही पलों में गैलरी में उभरी रेवा के कदमों की आहट को मैं भलीभांति पहचान गया. मेरा दिल उछल कर हलक में फंसने लगा था.

‘‘तुम?’’ मुझे सामने खड़ा देख कर वह बुरी तरह चौंक गई?थी.

‘‘रेवा, मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. हर ऐसी जगह जहां तुम मिल सकती थीं, मैं भटकता रहा. तुम ने मुझे सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं दिया. अचानक ही छोड़ कर चली आईं.’’

‘‘अचानक कहां, बहुत छटपटाने के बाद तोड़ पाई थी तुम्हारा तिलिस्म. कुछ दिन और रुकती तो जीना मुश्किल हो जाता. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं. अपनी ओर से तुम ने कोई कसर बाकी भी तो नहीं छोड़ी थी.’’

‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं रेवा,’’ मेरे हाथ स्वत: ही जुड़ गए थे, ‘‘तुम्हारे साथ जो बदसुलूकी की है मैं ने उस की काफी सजा भुगत चुका हूं, जो हुआ उसे भूल कर प्लीज क्षमा कर दो मुझे.’’

‘‘लगता है मुझे परेशान कर के अभी तुम्हारा दिल नहीं भरा, इसलिए अब एक नया बहाना ले कर आए हो,’’ उस की आवाज में कड़वाहट घुल गई थी, ‘‘बहुत रुलाया है मुझे तुम्हारी इन चिकनीचुपड़ी बातों ने. अब और नहीं, चले जाओ यहां से. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना है तुम्हारे जैसे घटिया इंसान से.’’

मैं हैरान सा उस की ओर देखता रहा.

‘‘तुम्हारी नसनस से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं. अपने स्वार्थ के लिए तुम किसी भी हद तक गिर सकते हो. तुम्हारा दिया एकएक जख्म मेरे सीने में आज भी हरा है.’’

‘‘मुझे प्रायश्चित्त का एक मौका तो दो रेवा. मैं…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती,’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बिफर पड़ी, ‘‘तुम्हारी हर याद को अपने जीवन से खुरच कर मैं फेंक चुकी हूं.’’

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ बातचीत का रुख बदलने की गरज से मैं बोला.

‘‘यह अधिकार तुम बहुत पहले खो चुके हो.’’ मैं कांप कर रह गया.

‘‘ऐसे हालात तुम ने खुद ही पैदा किए हैं आकाश. अपने प्यार को बचाने की मैं ने हर संभव कोशिश की थी. अपना वजूद तक दांव पर लगा दिया पर तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की. जब तक सहन हुआ मैं ने सहा. मैं और कितना सहती और झुकती. झुकतेझुकते टूटने लगी थी. मैं ने अपना हाथ भी बढ़ाया था तुम्हारी ओर इस उम्मीद से कि तुम टूटने से बचा लोगे, पर तुम तो जैसे मुझे तोड़ने पर ही आमादा थे.’’

मैं मौन खड़ा रहा.

‘‘अफसोस है कि मैं तुम्हें पहचान क्यों न सकी. पहचानती भी कैसे, तुम ने शराफत का आवरण जो ओढ़ रखा था. इसी आवरण की चकाचौंध में तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पा कर खुद पर इतराने लगी थी. पर मैं कितनी गलत थी. इस का एहसास शादी के कुछ दिन बाद ही होने लगा था. मैं जैसेजैसे तुम्हें जानती गई, तुम्हारे चेहरे पर चढ़ा मुखौटा हटता गया. जिस दिन मुखौटा पूरी तरह हटा मैं हैरान रह गई थी तुम्हारा असली रूप देख कर.

‘‘शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा. फिर तुम अकसर कईकई दिनों तक गायब रहने लगे. बिजनैस टूर की मजबूरी बता कर तुम ने कितनी सहजता से समझा दिया था मुझे. मैं अब भी इसी भ्रम में जीती रहती, अगर एक दिन अचानक तुम्हें, तुम्हारी सैक्रेटरी श्रुति की कमर में बांहें डाले न देख लिया होता. रीना के आग्रह पर मैं सेमिनार में भाग लेने जिस होटल में गई थी, संयोग से वहीं तुम्हारे बिजनैस टूर का रहस्य उजागर हो गयाथा. तुम्हारी बांहों में किसी और को देख कर मैं जैसे आसमान से गिरी थी, पर तुम्हारे चेहरे पर क्षोभ का कोई भाव तक नहीं था.

मैं कुछ कहती, इस से पहले ही तुम ने वहां मेरी उपस्थिति पर हजारों प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए थे. मैं चाहती तो तुम्हारे हर तर्क का करारा जवाब दे सकती थी, पर तुम्हारी रुसवाई में मुझे मेरी ही हार नजर आती थी. मेरी खामोशी को कमजोरी समझ कर तुम और भी मनमानी करने लगे थे. मैं रोतीतड़पती तुम्हारे इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलती और तुम जाम छलकाते हुए दूसरों की बांहों में बंधे होते.’’

‘‘वह गुजरा हुआ कल था, जिसे मैं कब का भुला चुका हूं,’’ मैं मुश्किल से बोल पाया.

‘‘तुम्हारे लिए यह सामान्य सी बात हो सकती है, पर मेरा तो सब कुछ दफन हो गया है, उस गुजरे हुए कल के नीचे. कैसे भूल जाऊं उन दंशों को, जिन की पीड़ा में मैं आज भी सुलग रही हूं. याद करो अपनी शादी की सालगिरह का वह दिन, जब तुम जल्दी चले गए थे. देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती रही मैं. हर आहट पर दौड़ती हुई मैं दरवाजे तक जाती थी.

लगता था कहीं आसपास ही हो तुम और जानबूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो. तुम लड़खड़ाते हुए आए थे. मैं संभाल कर तुम्हें बैडरूम में ले गईथी. खाने के लिए तुम ने इनकार कर दिया था. शायद श्रुति के साथ खा कर आए थे. मैं पलट कर वापस जाना चाहती थी कि तुम ने भेडि़ए की तरह झपट्टा मार कर मुझे दबोच लिया था. तुम देर तक मुझे नोचतेखसोटते रहे थे और मैं तुम्हारी वहशी गिरफ्त में असहाय सी तड़पती रही थी. तुम्हारी दरिंदगी से मेरा मन तक घायल हो गया था. बोलो, कैसे भूल जाऊं मैं वह सब?’’

‘‘बस करो रेवा,’’ कानों पर हाथ रख कर मैं चीत्कार कर उठा, ‘‘मेरे किए गुनाह विषैले सर्प बन कर हर पल मुझे डसते रहे हैं. अब और सहन नहीं होता. प्लीज, सिर्फ एक बार माफ कर दो मुझे. वादा करता हूं भविष्य में तुम्हें तकलीफ नहीं होने दूंगा.

देवर के इश्क़ में – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना नया गांव के तहत आता है एक गांव असदपुर, जहां रामनिवास  लोधी अपने 3 बेटों, मुखराम, अनिल और भूप सिंह के साथ रहते थे. रामनिवास की खेती की कुछ जमीन थी, उसी से वह परिवार का भरणपोषण करते थे. मुखराम जब जवान और समझदार हुआ तो वह घर की आमदनी बढ़ाने के उपाय खोजने लगा.

उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में नौकरी करते थे, वे काफी खुशहाल थे. दिल्ली जाने के बारे में उस ने भी पिता से बात की और अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली चला गया. कुछ दिन वह दोस्त के यहां रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई. बाद में वह दिल्ली के नंदनगरी इलाके में किराए का कमरा ले कर अकेला रहने लगा.

नौकरी करने के बाद मुखराम को फैक्ट्री से जो तनख्वाह मिलती थी, उस में से वह अपने खर्चे के पैसे रख कर बाकी पैसे घर भेज देता था. इस से घर के आर्थिक हालात सुधरने लगे. पैसा आया तो मुखराम बनठन कर रहने लगा. उस की शादी के लिए रिश्ते भी आने लगे. घर वालों को एटा की ही रजनी पसंद आ गई. बातचीत के बाद मुखराम की रजनी से शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद मुखराम रजनी को दिल्ली ले आया. इस तरह उन की जिंदगी हंसीखुशी से कटने लगी.

भाई को देख कर अनिल ने भी गांव की संकुचित सीमा से निकल कर दिल्ली के खुले आकाश में सांस लेने का फैसला कर लिया. एक दिन वह भी बड़े भाई मुखराम के साथ दिल्ली चला गया. भाई ने उस की भी नौकरी लगवा दी.

दोनों भाई साथ रह रहे थे, इसलिए घर वाले उन की तरफ से बेफिक्र थे. अनिल को भी दिल्ली की जिंदगी रास आ गई थी. दोनों भाई 2-4 दिनों के लिए छुट्टियों पर ही घर जाते थे. घर पर उन का छोटा भाई भूप सिंह ही रह गया था. वह पिता के साथ खेती करता था. अनिल भी कमाने लगा तो रामनिवास उस के लिए भी लड़की तलाशने लगा.

एक रिश्तेदार के जरिए फर्रुखाबाद जिले के गांव रहीसेपुर के रहने वाले सुरेश की बेटी पुष्पा का रिश्ता अनिल के लिए आया तो रामनिवास ने उस की भी शादी पुष्पा से कर दी. यह करीब 5 साल पहले की बात है. कुछ दिनों बाद पुष्पा भी अनिल के साथ दिल्ली आ गई. दोनों भाई एक ही कमरे में रहते थे. पुष्पा को यह अच्छा नहीं लगता था.

अनिल ने पुष्पा को समझाया कि महानगर की जिंदगी ऐसी ही होती है. आदमी को हालात से समझौता करना पड़ता है. पुष्पा का दिल्ली में मन लग जाए, इस के लिए अनिल ने पुष्पा को दिल्ली में खूब घुमायाफिराया. पुष्पा के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. उसे अच्छा तो लगा, लेकिन किराए के छोटे से कमरे में उस का मन नहीं लगा तो अनिल उसे गांव छोड़ आया.

उस बीच अनिल का छोटा भाई भूप सिंह भी अपने भाइयों के पास दिल्ली आ गया. अनिल दिल्ली में था और पुष्पा गांव में सासससुर के पास. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगे दम तोड़ती नजर आ रही थीं. केवल मोबाइल के जरिए ही उस की पति से बात हो पाती थी.

पुष्पा अपने मन की बात पति से बताती तो वह 1-2 दिन की छुट्टी ले कर घर आ जाता.  पुष्पा मन की पूरी बात भी नहीं कह पाती थी कि अनिल वापस जाने की बात करने लगता था, क्योंकि उसे अपनी ड्यूटी भी तो देखनी थी. हर बार पुष्पा उदास मन से उसे विदा करती. एक बार पुष्पा की उदासी देख कर अनिल ने अपने मांबाप से कहा कि वह पुष्पा को दिल्ली ले जाना चाहता है. मांबाप ने इजाजत दे दी तो वह उसे एक बार फिर दिल्ली ले गया.

पुष्पा अनिल के साथ उसी एक कमरे के घर में आ गई. वह मन लगाने की कोशिश करने लगी. अनिल ने सोचा कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन उसी बीच पुष्पा गर्भवती हो गई. पुष्पा ने यह खुशखबरी सास गायत्री को दी तो गायत्री को लगा कि ऐसी हालत में बहू को गांव आ जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे में काफी देखभाल की जरूरत होती है. इसलिए गायत्री ने अनिल से कह दिया कि छुट्टी मिलने पर वह बहू को गांव छोड़ जाए.

कुछ दिनों बाद पुष्पा गांव आ गई. अब सास उस की देखभाल करने लगी. समय आने पर  पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद घर में खुशी छा गई. अनिल भी फूला नहीं समा रहा था. बच्चे का नाम आयुष रखा गया.

घर में पोते के आ जाने से रामनिवास और गायत्री के दिन उस के साथ अच्छे से कटने लगे. उधर अनिल का भी मन करता कि बेटा उस की नजरों के सामने रहे, ताकि वह उसे प्यार कर सके. लेकिन ऐसा संभव नहीं था. वह महीने-दो महीने में घर आता और 1-2 दिन रह कर दिल्ली चला जाता.

रामनिवास का छोटा भाई वेदराम उस के घर से कुछ दूरी पर अपने परिवार के साथ रहता था. उस का बेटा रामखिलौने अविवाहित था. रामनिवास के तीनों बेटे दिल्ली में थे, इसलिए रामखिलौने जबतब ताऊ के घर आ जाता और घर के छोटेमोटे काम कर देता.

घर में किसी के न होने से पुष्पा भी रामखिलौने से ही अपनी जरूरत का सामान मंगवाती थी. वह जब भी उस के घर आता,  पुष्पा उसे चायनाश्ता करा देती थी. पुष्पा की नजदीकी रामखिलौने की जवान उमंगों को हवा दे रही थी, इसलिए उस का नजरिया भाभी के प्रति बदल रहा था. नजरिया बदला तो उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

एक दिन रामखिलौने ताऊ के घर आया तो पुष्पा अकेली थी. रामखिलौने को लगा कि भाभी से अपने दिल की बात कहने का यह अच्छा मौका है.  पुष्पा उस के लिए चाय बना कर लाई तो चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘भाभी भैया कितना निर्दयी है कि उसे न तो तुम्हारी परवाह है और न ही छोटे से बच्चे की. बीवीबच्चे को यहां छोड़ कर वह दिल्ली में आराम से बैठा है.’’

इस के बाद रामखिलौने कुछ देर पुष्पा की तारीफ करता रहा. वह तो चला गया, पर उस की बातों ने पुष्पा के मन में चिंगारी लगा दी, जो धीरेधीरे सुलगने लगी थी. अब उसे अपनी जेठानी से जलन होने लगी, जो दिल्ली में अपने पति के पास रह रही थी. तनहाई के उन उदास दिनों में उसे लगने लगा कि रामखिलौने ही एक ऐसा आदमी है, जो उस के दर्द को समझता है.

एक दिन रामखिलौने आयुष के लिए कपड़े ले आया. पुष्पा के मना करने के बाद भी वह जबरदस्ती उसे थमा गया. अब वह आयुष के बहाने पुष्पा के नजदीक आने कोशिश करने लगा था. उस के जाने के बाद पुष्पा देर तक उस के बारे में सोचती रही. उसे लगा कि रामखिलौने अच्छा इंसान है, जो उस के बारे में चिंतित रहता है. जबकि पति को उस की जरा भी परवाह नहीं है. धीरेधीरे उस का झुकाव रामखिलौने की तरफ होने लगा.

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 1

‘‘रेवा…’’ बाथरूम में घुसते ही ठंडे पानी के स्पर्श से सहसा मेरे मुंह से निकल गया. यह जानते हुए भी कि वह घर में नहीं है. आज ही क्यों, पिछले 2 महीनों से नहीं है. लेकिन लगता ऐसा है, जैसे युगों का पहाड़ खड़ा हो गया.

रेवा का यों अचानक चले जाना मेरे लिए अप्रत्याशित था. जहां तक मैं समझता हूं वह उन में से थी, जो पति के घर डोली में आने के बाद लाख जुल्म सह कर भी 4 कंधों पर जाने की तमन्ना रखती हैं. लेकिन मैं शायद यह भूल गया था कि लगातार ठोंकने से लोहे की शक्ल भी बदल जाती है. खैर, उस वक्त मैं जो आजादी चाहता था, वह मुझे सहज ही हासिल हो गई थी.

श्रुति मेरी सैक्रेटरी थी. उस का सौंदर्य भोर में खिले फूल पर बिखरी ओस की बूंदों सा आकर्षक था. औफिस के कामकाज संभालती वह कब मेरे करीब आ गई, पता ही नहीं चला. उस की अदाओं और नाजनखरों में इतना सम्मोहन था कि उस के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं था. मेरे लिए रेवा जेठ की धूप थी तो श्रुति वसंती बयार. रेवा के जाने के बाद मेरे साथसाथ घर में भी श्रुति का एकाधिकार हो गया था.

सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक पश्चिम से सुरसा की तरह मुंह बाए आई आर्थिक मंदी ने मेरी शानदार नौकरी निगल ली. इस के साथ ही मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. मैं जिन फूलों की खुशबू से तर रहता था, वे सब एकएक कर कैक्टस में बदलने लगे. मैं इस सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि श्रुति ने तोते की तरह आंखें फेर लीं. उस के गिरगिटी चरित्र ने मुझे तोड़ कर रख दिया. अब मैं था, मेरे साथ थी आर्थिक तंगी में लिपटी मेरी तनहाई और श्रुति की चकाचौंध में रेवा के साथ की ज्यादतियों का अपराधबोध.

रेवा का निस्स्वार्थ प्रेम, भोलापन और सहज समर्पण रहरह कर मेरी आंखों में कौंधता है. सुबह जागने के साथ बैडटी, बाथरूम में गरम पानी, डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के साथ अखबार, औफिस के वक्त इस्तिरी किए हुए कपड़े, पौलिश किए जूते, व्यवस्थित ब्रीफकेस और इस बीच मुन्नी को भी संभालना, सब कुछ कितनी सहजता से कर लेती थी रेवा. इन में से कोई भी एक काम ठीक वक्त पर नहीं कर सकता मैं… फिर रेवा अकेली इतना सब कुछ कैसे निबटा लेती थी, मैं सोच कर हैरान हो जाता हूं.

उस ने कितने करीने से संवारा था मुझे और मेरे घर को… अपना सब कुछ उस ने होम कर दिया था. उस के जाने के बाद यहां के चप्पेचप्पे में उस की उपस्थिति और अपने जीवन में उस की उपयोगिता का एहसास हो रहा है मुझे. उसे ढूंढ़ने में मैं ने रातदिन एक कर दिए. हर ऐसी जगह, जहां उस के मिलने की जरा भी संभावना हो सकती थी मैं दौड़ता भागता रहा पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी. पता नहीं वह कहां अदृश्य हो गई.

मन के किसी कोने से पुलिस में शिकायत करने की बात उठी. पर इस वाहियात खयाल को मैं ने जरा भी तवज्जो नहीं दी. रेवा को मैं पहले ही खून के आंसू रुला चुका हूं. उसे हद से ज्यादा रुसवा कर चुका हूं. पुलिस उस के जाने के 100 अर्थ निकालती, इसलिए अपने स्तर से ही उसे ढूंढ़ने के प्रयास करता रहा.

मेरे मस्तिष्क में अचानक बिजली सी कौंधी. रीना रेवा की अंतरंग सखी थी. अब तक रीना का खयाल क्यों नहीं आया… मुझे खुद पर झुंझलाहट होने लगी. जरूर उसी के पास गई होगी रेवा या उसे पता होगा कि कहां गई?है वह. अवसाद के घने अंधेरे में आशा की एक किरण ने मेरे भीतर उत्साह भर दिया. मैं जल्दीजल्दी तैयार हो कर निकला, फिर भी 10 बज चुके थे. मैं सीधा रीना के औफिस पहुंचा.

‘‘मुझे अभी पता चला कि रेवा तुम्हें छोड़ कर चली गई,’’ मेरी बात सुन कर वह बेरुखी से बोली, ‘‘तुम्हारे लिए तो अच्छा ही हुआ, बला टल गई.’’

मेरे मुंह से बोल न फूटा.

‘‘मैं नहीं जानती वह कहां है. मालूम होता तो भी तुम्हें हरगिज नहीं बताती,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘जहां भी होगी बेचारी चैन से तो जी लेगी. यहां रहती तो घुटघुट कर मर जाती.’’

‘‘रीना प्लीज,’’ मैं ने विनती की, ‘‘मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया है. श्रुति ने मेरी आंखों में जो आड़ीतिरछी रेखाएं खींच दी थीं, उन का तिलिस्म टूट चुका है.’’

‘‘क्यों मेरा वक्त बरबाद कर रहे हो,’’ वह बोली, ‘‘बहुत काम करना है अभी.’’

रात गहराने के साथ ठिठुरन बढ़ गई थी. ठंडी हवाएं शरीर को छेद रही थीं. इन से बेखबर मैं खुद में खोया बालकनी में बैठा था. बाहर दूर तक कुहरे की चादर फैल चुकी थी और इस से कहीं अधिक घना कुहरा मेरे भीतर पसरा हुआ था, जिस में मैं डूबता जा रहा था. देर तक बैठा मैं रेवा की याद में कलपता रहा. उस के साथ की ज्यादतियां बुरी तरह मेरे मस्तिष्क को मथती रहीं. जिस ग्लेशियर में मैं दफन होता जा रहा था, उस के आगे शीत की चुभन बौनी साबित हो रही थी.

अगले कई दिनों तक मेरी स्थिति अजीब सी रही. रेवा के साथ बिताया एकएक पल मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ रहा था. काश, एक बार, सिर्फ एक बार रेवा मुझे मिल जाए फिर कभी उसे अपने से अलग नहीं होने दूंगा. उस से हाथ जोड़ कर, झोली फैला कर क्षमायाचना कर लूंगा. वह जैसे चाहेगी मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करने के लिए तैयार हूं. उसे इतना प्यार दूंगा कि वह सारे गिलेशिकवे भूल जाएगी. उस के हर आंसू को फूल बनाने में जान की बाजी लगा दूंगा.

अपनी सारी खुशियां उस के हर एक जख्म को भरने में होम कर दूंगा. पर इस के लिए रेवा का मिलना निहायत जरूरी था, जोकि संभव होता नजर नहीं आ रहा था. वह भीड़भाड़ भरा इलाका था. आसपास ज्यादातर बड़ीबड़ी कंपनियों के औफिस थे. शाम को वहां छुट्टी के वक्त कुछ ज्यादा ही भागमभाग हो जाती थी. एक दिन मैं खुद में खोया धक्के खाता वहां से गुजर रहा था कि मेरे निर्जीव से शरीर में करंट सा दौड़ गया. जहां मैं था, उस के ऐन सामने की बिल्डिंग से रेवा आती दिखाई दी.

मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दौड़ कर उस के पास पहुंच जाना चाहता था पर सड़क पर दौड़ते वाहनों की वजह से मैं ऐसा न कर सका. लाल बत्ती के बाद वाहनों का काफिला थमा, तब तक वह बस में बैठ कर जा चुकी थी. मैं ने तेजी से दौड़ कर सड़क पार की पर सिवा अफसोस कि कुछ भी हासिल न कर सका. मेरा सिर चकराने लगा.

बार डांसर की बेवफाई

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 4

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

“मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.” योगेन ने कहा.

“कौन है वह?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.”

“यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?” इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

“जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.” योगेन ने कहा.

“आखिर वह है कौन?” पटेल ने झुंझला कर पूछा.

“इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.” योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटेल भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया. योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा,

“अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.”

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल कर कहा, “आइए पटेल साहब.”

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

“मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.” योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, “मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…”

“प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.” योगेन ने कहा.

“मैं सच कह रहा हूं,” उस ने कहा.

“बेकार की बकवास मत करो.” पटेल ने घुडक़ा.

“तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.” योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

“जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. वह मैं ने सुन लिया था. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी.

जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

“तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.”

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

“प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं. तुम ही कातिल हो.” इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

तोते की गवाही : सजा उम्रकैद

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की एक अदालत में 23 मार्च, 2023 को काफी गहमागहमी थी. उस रोज एक बहुचर्चित मामले की सुनवाई होने वाली थी. केस आगरा से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘स्वराज्य टाइम्स’के संपादक विजय शर्मा की पत्नी नीलम शर्मा की हत्या और उन के घर में लूटपाट का था. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद के जरिए उस बहुचर्चित केस का फैसला सुनाया जाना था.

दोनों आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जा चुका था. पीडित पक्ष के लोग पहले ही आ चुके थे. कोर्टरूम के बाहर बड़ी तादात में मीडिया की निगाहें भी उन पर टिकी हुई थीं. न्यायाधीश मोहम्मद राशिद कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ चुके थे.

अखबार के संपादक के घर हुई वारदात

जिस मामले की सुनवाई होनी थी, वह वारदात दरअसल 9 साल पुरानी 20 फरवरी, 2014 की थी. उस रोज गंगे गौरीबाग, बल्केश्वर क्षेत्र के रहने वाले ‘स्वराज्य टाइम्स’ के संपादक विजय शर्मा अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए फिरोजाबाद गए हुए थे. अपने साथ बेटी निवेदिता और बेटे अंजेश को भी ले गए थे.

घर पर उन की 48 वर्षीया पत्नी नीलम शर्मा और वृद्ध पिता आनंद शर्मा रह गए थे. शर्मा को अपने बच्चों समेत उसी रोज आधी रात तक वापस लौट आना था. तय कार्यक्रम के अनुसार शर्मा बच्चों समेत लौट आए. घर का दरवाजा खटखटाते ही वह अपनेआप खुल गया. अंदर दाखिल हुए तो भीतर का दृश्य देख कर सन्न रह गए. सामने जो दिखा, उसे देख उन के होश उड़ गए. घर का सामान जहांतहां बिखरा पड़ा था. पत्नी नीलम के कमरे का दरवाजा भी खुला था. कमरे की लाइट जल रही थी.

शर्मा और बच्चे जैसे ही दरवाजे पर पहुंचे, बेटी निवेदिता और बेटे की चीख निकल गई. शर्मा कमरे घुसे. वहां पालतू जरमन शैफर्ड डौग ‘टफी’ भी खून से लथपथ पड़ा था. वहीं नीलम भी पास में ही मृत पड़ी थीं. उन के शरीर से बहुत सारा खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था.

मां की लाश देख कर दोनों भाईबहन रोने लगे. शर्मा तो जड़वत बन गए थे. वे समझ नहीं पा रहे कि यह सब कैसे हो गया? ऐसा किस ने किया? पिता आनंद शर्मा का ख्याल आते ही उन के कमरे की ओर गए. उन के कमरे की बाहर से कुंडी लगी थी. कुंडी खोली तो भीतर अंधेरा था. संभवत: वह सो रहे थे. आनंद शर्मा बेसुध सोए हुए थे. सांस चलने की आवाज आ रही थी.

दोबारा अपने कमरे में आ कर ध्यान से देखा तो पाया कि पत्नी की धारदार हथियार से हत्या की गई थी. कुत्ते पर भी कई हमले की जाने का निशान था. अलमारी की तिजोरी के खुले होने पर गहने, नकदी आदि लूट के भी सबूत मिले. कमरे से बाहर पालतू तोते ‘हीरा’का पिंजरा शाल से ढंका हुआ था. बच्चों के द्वारा शाल हटाते ही तोता जोरजोर से पंख फडफ़ड़ाता हुआ चीखने लगा.

वारदातके मिटा दिए थे सबूत

शर्मा परिवार ने इधरउधर नजर दौड़ाई. उन्होंने पाया कि वारदात के सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी. दीवारों, फर्श आदि पर खून के दागधब्बे मिटाए जाने के निशान दिख रहे थे. फर्श की सफाई की गई थी. विजय शर्मा के घर से बच्चों के रोने और शोरशराबे की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी आ गए थे. वे भी घर का दृश्य देख कर दंग रह गए.

शर्मा ने इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया. संपादक की पत्नी के मर्डर की सूचना पा कर कुछ मिनटों में ही थाना न्यू आगरा से पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. शर्मा ने उन्हें अज्ञात बदमाशों द्वारा पत्नी और पालतू कुत्ते की हत्या के साथसाथ ज्वैलरी, नकदी, घड़ी व अन्य सामान लूट की आशंका जताई.

इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम ने गहन जांच की, लेकिन फिंगरप्रिंट्स मिटाए जाने और दूसरे साक्ष्य खत्म किए जाने के चलते वारदात की तह तक जाने के सबूत नहीं मिले. हालांकि फोरैंसिक टीम को कुछ सबूत जमा करने में सफलता मिल गई थी

पुलिस के सामने हत्या और लूट की जांच एक बड़ी चुनौती थी. वे उलझन में पड़ गए थे कि हमलावर कितने लोग होंगे? घर में कैसे घुसे होंगे? इस के पीछे लूटपाट के अलावा और क्या कारण हो सकता है? इस पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभव है नीलम या उस वक्त घर में मौजूद परिवार के दूसरे किसी ने सोने से पहले दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया होगा. यह भी आशंका जताई गई कि पूरी वारदात को अंजाम देने वाला कोई परिचित भी हो सकता है.

पुलिस जांच टीम पालूत कुत्ते को धारदार हथियार से बेरहमी से मार दिए जाने को ले कर हैरान थी. नीलम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी हत्या संबंधी कुछ जानकारियां मिल गई थीं. कुत्ते के शव का पोस्टमार्टम करवा कर उस की रिपोर्ट जुटा ली गई थी. पड़ोसियों ने कुत्ते के बारबार भौंकने की आवाजें सुनी थीं, लेकिन उन्होंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. कारण पालतु कुत्ता बीचबीच में अकसर भौंकता रहता था. उन्होंने पुलिस को घटना के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.

पुलिस को नहीं मिला सुराग

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नीलम के शरीर पर धारदार हथियार से 14 और पालतू कुत्ते ‘टफी’ पर 9 वार किए गए थे. गहरी चोटें और अत्यधिक खून बहने से दोनों की मौत हो गई थी. इस संबंध में थाना न्यू आगरा में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ लूट व हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

नीलम शर्मा मर्डर केस के सबूत जुटाने और सुराग के लिए जांच टीम ने विजय शर्मा के घर को 3 दिनों तक सील कर दिया था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस को 3 लोगों पर संदेह हुआ था, लेकिन सबूत के बिना उन के खिलाफ काररवाई नहीं हो पाई थी. विजय शर्मा ने भी अपने बयान में उन्हीं 3 लोगों पर शक जताया था, जिन पर पुलिस को संदेह था.

संदिग्धों में से एक व्यक्ति का संबंध जमीन खरीद को ले कर था. इस सिलसिले में उस के साथ रुपए के लेनदेन में कुछ ज्यादा ही विवाद हो गया था. उस से पूछताछ करने पर उस ने हत्या से इनकार कर दिया, लेकिन पैसे को ले कर शर्मा के साथ विवाद की बात मान ली.

कई दिन बीत जाने के बावजूद मामले को सुलझाया नहीं जा सका था. मामला एक अखबार के संपादक से जुड़ा हुआ था. इस कारण मीडिया में जांच की देरी को ले कर कई सवाल उठने और पुलिस पर दबाव भी बनने लगा था. तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने पुलिस की टीमें बनाईं और जल्द से जल्द इस घटना का परदाफाश करने के निर्देश दिए.

तोता ‘हीरा’ने दिया हत्यारे का सुराग

शर्मा परिवार को अपने पालतु कुत्ते ‘टफी’ और तोते ‘हीरा’ से काफी प्यार था. दोनों ही परिवार के सभी सदस्यों को अच्छी तरह पहचानते थे. तोता तो घर वालों की बातों को समझता भी था. श्रीमती शर्मा खुद और उन के दोनों बच्चे तोते से बातें भी किया करते थे. वह तुरंत बोल देता था.

नीलम शर्मा तोते को अपने हाथों से छोटाछोटा निवाला दिया करती थीं. तोता पिंजरे से नुकीली चोंच बाहर निकाल कर निवाला मुंह में ले लेता था. तुरंत गटकने के बाद खुशी से पंख फडफ़ड़ा देता था. नीलम शर्मा भी खुशी से बोल देती थीं, ‘‘चलो हो गया! बस बस!!’’

यही हाल टफी का भी था. उसे भी परिवार के सदस्यों के हाथों से परोसा गया उस का खाना या उस के लिए बाजार से मंगवाया गया खाना ही पसंद था. घटना को हुए 3 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस अभियुक्तों को पकडऩा तो दूर, उन का सुराग तक नहीं लगा पाई थी.

उधर मालकिन की मौत के बाद तोता ‘हीरा’ सुस्त हो गया था. उस ने खानापीना छोड़ दिया था. कारण उस से बात करने वाला कोई नहीं था. हत्यारे ने तोते के पिंजरे पर शाल डाल दी थी. पुलिस ने जांच के सिलसिले इस बात पर भी गौर किया. मतलब निकाला गया कि बदमाशों ने टफी की तो हत्या कर दी, लेकिन तोते ने भी शोर मचाया होगा, इस कारण उस के पिंजरे को शाल से ढंक दिया होगा.

पूछताछ में शर्मा ने जब किसी परिचित पर संदेह जताया तब उन्हें एक पड़ोसी ने तोते से बात करने की सलाह दी. शायद उस से कोई सुराग मिल सके. शर्मा और उन के बच्चों को यह बात सही लगी और वे पिंजरे के पास जा कर तोते से बात करते हुए कहा, ‘‘हीरा, हीरा! घर में मालकिन का कत्ल हो गया और तुम देखते रहे! बताओ, क्यों नहीं बचाया?’’

यह सुनते ही तोता अपना पंख तेजी से फडफ़ड़ाने लगा. पिंजरे में ही इधरउधर, ऊपरनीचे करने लगा. इस हालत से उस की बेचैनी साफ झलक रही थी. उस के शांत होने पर बेटी प्यार से बोली, ‘‘मेरे मिट्ठू! मेरे हीरा!! मम्मी को किस ने मारा? आशु ने मारा?’’

यह नाम सुनते ही तोता ‘आशु आशु’ कह कर तेजी से गरदन हिला कर चीखने लगा. ऐसा कई बार हुआ. आशुतोष उर्फ आशु विजय शर्मा का भांजा था. इस की जानकारी विजय शर्मा ने पुलिस को दी. यह भी बताया कि पत्नी के अंतिम संस्कार के दिन आशु घर आया था. उस के बाद वह एक बार भी घर नहीं आया. शर्मा के कहने पर पुलिस ने भी घर आ कर इस बात को देखा कि तोता आशु के नाम पर अपना गरदन ऊपर नीचे हिला कर ‘आशुआशु’ चीखने लगता था.

तोते की गवाही पर आशु हुआ गिरफ्तार

पुलिस ने 25 फरवरी, 2014 को अर्जुन नगर, थाना शाहगंज निवासी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने इस घटना से इनकार किया, किंतु पूछताछ के दौरान उस के दाएं हाथ पर कई जख्म दिखाई दिए. इस पर पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए उन जख्मों के बारे में जानना चाहा. इस पर आशु सकपका गया. चोट के संबंध में पुलिस के सवालों के आगे आशु टिक नहीं पाया. उस ने इस अपराध को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस के सामने जो कुछ बताया उस से काफी चौंकाने वाला सच सामने आया.

उस ने बताया कि इस घटना में उस का दोस्त रोनी मैसी भी शामिल था. उस की भी तुरंत गिरफ्तारी हो गई. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कटार (चाकू), हत्या के दौरान लूटे गए गहने, नकदी व घड़ी समेत वारदात में प्रयोग किया गया स्कूटर बरामद कर लिया गया. हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने माल बरामदगी के साथ पूरा क्राइम सीन रीक्रिएट कर साक्ष्य जुटाए. आशु ने बताया कि उस ने अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ मिल कर ही इस घटना को अंजाम दिया था. पहले वह मामामामी के घर में ही रहता था.

दरअसल, विजय शर्मा का बेटा अजेश मानसिक रूप से बीमार रहता था. तब उन्होंने अपने सगे भांजे आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को बेटे की तरह पाला था, लेकिन उस के गलत आचरण की वजह से उन्होंने उसे अलग रहने को कह दिया. तब वह अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ अर्जुन नगर में रहने लगा. लेकिन उस का अपने मामा के यहां आनाजाना लगा रहता था. उसे उन के घर की हर चीज की जानकारी थी.

आशु को मामा के पास घर में काफी गहने व नकदी मौजूद होने की जानकारी थी. उसे वारदात वाली रात को मामा के फिरोजाबाद में शादी में जाने और मामी के घर में अकेले होने की जानकारी थी. उसे रुपयों की जरूरत थी. इसी लूट के इरादे से उस ने अपनी योजना में दोस्त रोनी मैसी को भी शामिल कर लिया.

भांजा बना आस्तीन का सांप

योजना के अनुसार दोनों रात को स्कूटर से मामा के घर पहुंचे. आशु ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. आवाज पहचान कर मामी नीलम शर्मा ने दरवाजा खोल दिया. दोनों घर में घुस आए. पालतू कुत्ता टफी भौंका, लेकिन आशु ने उसे पुचकार कर शांत कर दिया. वह आशु को पहचानता था. रोनी मैसी नकाब में था. उस ने नीलम शर्मा को कमरे में ले जा कर उन्हें धमकाते हुए कहा कि यदि अपनी जान की खैर चाहती हो तो कैश और गहने निकाल कर दे दो.

पीछे से आशु भी कमरे में पहुंच गया. इस पर नीलम की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने आशु से नाराज हो कर ऐसा करने से मना किया. इस पर आशु भी गुस्से में आ गया और साथ लाए तेज धार वाले कटार (चाकू) से नीलम शर्मा के ऊपर ताबड़तोड़ हमले कर दिए. वह तुरंत जमीन पर गिर पड़ीं.

नीलम पर हमला होते देख पालतू कुत्ता ‘टफी’ आशु पर झपट पड़ा. अपने बचाव में आशु ने कटार से कुत्ते पर भी तेजी से लगातार वार कर दिया. उसे भी वहीं मार डाला. यह देख कर पिंजरे में बंद तोते ने शोर मचाया तो उन्होंने पिंजरा वहां पड़े शाल से ढक दिया. मामी और कुत्ते की हत्या के बाद गहने, नकदी आदि लूट कर दोनों फरार हो गए. फरार होने से पहले दोनों ने सारे सबूत भी मिटा दिए.

आशु और रोनी के इन बयानों के आधार पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 394, 302, 429, 411, 4/25 आम्र्स ऐक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश कर दिया. कोर्ट में सुनवाई के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया.

9 साल बाद मिला न्याय

इस सनसनीखेज केस की सुनवाई आगरा जिले के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद की कोर्ट में 9 साल तक चली. पुलिस ने जो चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी, उस में जुटाए गए साक्ष्य ज्यादा ठोस नहीं थे, लेकिन अभियोजन टीम ने इन को मजबूत साक्ष्यों के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस मामले में फोरैंसिक टीम जांच के बाद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी.

अभियोजन पक्ष के पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा गवाह भी थे, लेकिन वह बहुत अधिक मजबूत नहीं लग रहे थे. ऐसे में अभियोजन पक्ष के सामने उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर दोषियों का दोष सिद्ध कर उन्हें सजा दिलाने की कड़ी चुनौती थी.

अभियोजन टीम ने इस संबंध में आगरा के संयुक्त निदेशक अभियोजन महेंद्र कुमार दीक्षित से सलाहमशविरा किया. अभियोजन पक्ष, जिस में वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी जय नारायण गुप्ता, अभियोजन अधिकारी मनीष कुमार तथा एडीजीसी (क्राइम) आदर्श चौधरी शामिल थे, ने ठोस साक्ष्यों के अभाव के बावजूद अथक परिश्रम कर मौजूद साक्ष्यों की छोटी से छोटी कडिय़ों को जोड़ कर दमदार पैरवी की.

दोषियों को हुई उम्रकैद

9 साल तक केस का ट्रायल चला. बहस के दौरान अभियोजन टीम ने अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस केस में वादी संपादक विजय शर्मा की कोरोना के दौरान 2021 में मृत्यु हो चुकी थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाह पेश किए गए. इन में वादी की बेटी निवेदिता तथा 3 अन्य गवाह लोकेश शर्मा, हरेश पचौरी व सुनील शर्मा के बयानों को आधार बनाया.

अभियोजन टीम ने बहस के दौरान कहा कि गवाह लोकेश शर्मा ने आरोपी आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त रोनी मैसी को स्कूटर पर विजय शर्मा के घर की ओर जाते देखा था. वहीं हरेश पचौरी ने उसी स्कूटर पर आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त को निकलते देखा था. जबकि गवाह सुनील शर्मा ने घटना के बाद जब मृतका नीलम शर्मा की डैडबौडी पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए घर पर आई तो उस समय आरोपी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु, जिसे वे पहले से जानते थे, को वहां देखा. आशुतोष के हाथ पर चोट के निशान थे, जो मृतका नीलम की हत्या के समय उन के पालतू डौगी द्वारा आशुतोष पर हमला किए जाने के दौरान आए थे.

बहस के दौरान अभियोजन अधिकारियों ने कहा कि उस के बाद आरोपी आशुतोष व उस का दोस्त रोनी मैसी फरार हो गए. बाद में पुलिस ने दोनों को उसी स्कूटर सहित गिरफ्तार कर लिया और उन की निशानदेही पर मृतका नीलम के घर से लूटे गए आभूषण, नकदी तथा हत्या में प्रयुक्त (आलाकत्ल) कटार को बरामद कर लिया गया.

घटना के समय नीलम शर्मा के वफादार पालतू जरमन शैफर्ड डौग टफी तथा तोते ने अपनी अपनी तरह से आरोपियों का प्रतिरोध किया था. इस दौरान आशुतोष के शरीर पर चोटें आई थीं. इस पर आशुतोष ने डौग टफी को मार दिया गया व तोते के शोर मचाने पर पिंजरे को शाल से ढंक दिया गया था. इस के बाद हत्या व लूट को अंजाम दिया. इन आरोपियों के अलावा यह अपराध अन्य किसी ने नहीं किया है. अभियुक्तों की ओर से एक गवाह पेश किया गया. जिस की गवाही न्यायालय ने नहीं मानी. वहीं बचाव पक्ष की दलीलों को भी नकार दिया गया.

कोर्ट में पेश किए गए गवाहों, सबूतों और दोनों ओर के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश मोहम्मद राशिद ने दोनों आरोपियों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और रोनी मैसी को दोषी मानते हुए उम्रकैद व 72 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई.

दोनों आरोपियों को 4 मामलों में सजा सुनाई गई. आशुतोष और रोनी मैसी को धारा 394 भादंवि लूट के मामले में 10 वर्ष के कठिन कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाने की सजा मिली, वहीं धारा 302 आईपीसी में आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए जुरमाना था. धारा 429 आईपीसी में 4 वर्ष कारावास, 3 हजार रुपए जुरमाना, धारा 411 आईपीसी में लूटा गया माल बरामदगी में 3 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए का जुरमाना तथा आशुतोष को धारा 4/25 आयुध अधिनियम में 2 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने कहा कि सभी सजाएं साथसाथ चलेंगी.

दोनों अभियुक्तों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और उस के दोस्त रोनी मैसी जमानत पर थे. वे दोनों कोर्ट में मौजूद थे. पुलिस ने फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

एडीजीसी आदर्श चौधरी ने बताया कि इस केस में तोता ‘हीरा’ पुलिस की विवेचना का हिस्सा रहा था, लेकिन वह साक्ष्य का हिस्सा नहीं हो सका, क्योंकि कोर्ट में पक्षी की गवाही के लिए कोई कानूनन विधि नहीं है.

ऐसे अपराधी सोचते हैं कि वे मौके से साक्ष्य मिटा कर के अपना गला बचा लेंगे. सजा मिलने से ऐसे अपराधियों को खौफ होगा और न्याय की देवी पर लोगों का भरोसा कायम रहेगा.

लड़की, लुटेरा और बस

काल बनी एक बहू – भाग 3

अच्छा इंसान वही होता है, जो अपनी गलती स्वीकार कर के उसे सुधार ले, लेकिन चंचल ने उल्टा दांव चला. वह हैरान हो कर बोली, “यह आप क्या कह रही हैं मांजी? आप को इतनी घटिया बातें सोचते हुए शरम नहीं आई?”

“सोचना क्या, मैं सब देख रही हूं.” कमला गुस्से से बोलीं.

“सच देखतीं तो आप ऐसा नहीं बोलतीं. ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा आप सोच रही हैं. अपने दिमाग से इस तरह की बातों को निकाल दीजिए.”

“सच्चाई तो कड़वी लगती है बहू, लेकिन मैं ने तुम्हें समझाना अपना फर्ज समझा. मैं तुम्हारी हरकतों से अपने परिवार को बदनाम नहीं होने दूंगी.” बहू के शातिराना रुख से हैरान कमला ने चेतवानी भरे लहजे में कहा.

उन्होंने अगले दिन संजय को भी समझाया कि वह उन के यहां ज्यादा न आया करे. पतन की राहें बहुत रपटीली होती हैं. कुछ दिनों तो दोनों दूर रहे, लेकिन बहुत जल्द दोनों पुराने ढर्रे पर उतर आए. संजय रात के वक्त भी छिपतेछिपाते आने लगा. जो गलतियां करता है, वह कहीं न कहीं लापरवाह भी हो जाता है. एक रात कमला ने उन दोनों को पकड़ा तो उन्हें जम कर फटकारा.

संजय चुपचाप वहां से खिसक गया. कमला ने चंचल को खरीखोटी सुनाई, “मैं ने सोचा था चंचल कि तू मेरी बातों से संभल जाएगी, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर चला गया है. अब मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे इस बारे में दीपक से बात करनी पड़ेगी.”

चंचल रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उस के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात उस के पति तक पहुंचे. उस ने कमला से माफी मांग कर कभी कोई गलती न करने की कसम खाई. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. कमला ने भी वक्त के साथ बहू को माफ कर दिया. बेटे को दु:ख न पहुंचे, इसलिए वह इन बातों को दबा गईं. संजय का आनाजाना भी कम हो गया. अपने किए पर वह भी माफी मांग चुका था.

कुछ दिनों की सावधानी के बाद दोनों अब देहरादून जा कर एकदूसरे से मिलने लगे. चंचल फैशन डिजाइनिंग के कोर्स के लिए जाती थी. इसी बहाने वह संजय से मिल लेती थी. मोबाइल पर भी वह बातें और एसएमएस किया करते थे. अब दोनों को ही परिवार के लोग बाधा लगने लगे थे.

अपने अवैध रिश्ते मे संजय और चंचल एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे. संजय दुष्ट और अपराध करने वाला युवक था. चंचल पूरी तरह उस के रंग में रंगी हुई थी. उन के प्रेमप्रसंग में कमला व राजेंद्र बड़ी बाधा थे, गनीमत यह थी कि ये बातें अभी दीपक को नहीं पता थी. संजय चाहता था कि अपने और चंचल के बीच की हर दीवार को गिरा कर न सिर्फ उस से विवाह कर ले, बल्कि करोड़ों की प्रौपर्टी भी उस की हो जाए. उस ने इस बारे में चंचल से बात की तो उस ने भी अपनी स्वीकृति दे दी.

इस के बाद संजय इसी बारे में सोचने लगा. उस ने रुपयों का इंतजाम कर के 30 हजार रुपए में सितारगंज के रहने वाले दुष्ट प्रवृत्ति के युवक अनिल कुमार से एक माउजर खरीद लिया. संजय व चंचल चाहते थे कि हत्याएं इतनी सफाई से की जाएं कि किसी को उन के ऊपर जरा भी शक न हो.

वे दोनों जानते थे कि कमला राजेंद्र के लिए लडक़ी देखने के लिए पिथौरागढ़ जाने वाली हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर वह पहले ही अपने पति के पास उड़ीसा चली गई. उड़ीसा जाने के बावजूद वह संजय के संपर्क में बनी रही. संजय ने उस से वादा किया कि अगर कमला पिथौरागढ़ गईं तो वह सभी का काम तमाम कर देगा. संजय ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कमला और राजेंद्र से मेलजोल और बढ़ा लिया. उसे पता चला कि 27 नवंबर को उन्हें पिथौरागढ़ जाना है.

राजेंद्र को ड्राइवर की जरूरत थी. उस ने इस बारे मं सजय से कहा तो वह खुद उन के साथ जाने को तैयार हो गया. संजय कार चलाना जानता था. कमला और राजेंद्र को इस बात की खुशी हुई कि संजय उन के लिए अपना समय निकाल रहा है.

27 नवंबर को वह उन्हें कार से ले कर पिथैरागढ़ के लिए निकला. संयोगवश उसे किसी ने भी उन के साथ जाते नहीं देखा. संजय ने अपने पास माउजर और एक चाकू रख लिया. ये लोग हरिद्वार पहुंचे तो दीपक का फोन आया और उस ने मां से बात की.

इस के बाद संजय ने बहाने से राजेंद्र का मोबाइल लिया और उस का सिम ढीला कर दिया, जिस से उस का नेटवर्क चला गया. राजेंद्र टैक्नोलौजी के मामले में कमजोर था, इसलिए उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. संजय नहीं चाहता था कि किसी का फोन आए और वह लोग उस के साथ होने के बारे में कुछ बता दें. वे काशीपुर पहुंचे तो राजेंद्र ने एटीएम से कुछ पैसे निकाले.

इस बीच संजय ने 2 बार चंचल से 4-4 मिनट बात की. इस के बाद जंगल का रास्ता सुनसान था. कमला और भास्कर कार में सो रहे थे, जबकि राजेंद्र जाग रहा था. सिडकुल के पास पहुंच कर संजय ने कार रोक दी. राजेंद्र ने उस से कार रोकने की वजह पूछी तो उस ने कहा कि उसे थकान हो रही है. कुछ देर रुक कर चलेंगे. संजय कार से नीचे उतर गया. राजेंद्र भी नीचे उतर गया. बाहर से कार के अंदर कोई आवाज न जाए, इसलिए संजय ने कार के शीशे बंद कर दिए.

संजय बात करते हुए बहाने से राजेंद्र को कुछ दूर ले गया और माउजर से उस के सिर में गोली मार दी. राजेंद्र ने तुरंत ही दम तोड़ दिया. संजय उसे खींच कर झाडिय़ों में ले गया और लाश को छिपा दिया. इस बीच उस ने राजेंद्र की जेब से मोबाइल निकाल कर उसे स्विच्ड औफ कर दिया.

इस के बाद वह कमला जोशी के पास पहुंचा और उन्हें बताया कि राजेंद्र झाडिय़ों के पीछे बैठ कर शराब पी रहा है और आने से मना कर रहा है. यह सुन कर कमला जोशी उस के साथ चल दीं. मौका पाते ही संजय ने उन्हें भी गोली मार दी.

दोनों शव ठिकाने लगा कर वह कार ले कर थोड़ा दूर आगे गया और एक जगह पर कार रोक कर भास्कर को जगा कर अपने साथ झाडिय़ों की तरफ ले गया. संजय हैवान बन चुका था. उस ने चाकू निकाल कर मासूम भास्कर की पहले गरदन काटी और फिर उस के पेट पर वार किए. भास्कर ने तड़प कर दम तोड़ दिया. हत्या कर के तीनों की लाशें ठिकाने लगाने के बाद उस ने यह बात चंचल को एसएमएस कर के बता दी.

कमला ने बैग में जो आभूषण लडक़ी को देने के लिए रखे थे, वह उस ने खुद कब्जा लिए. उस ने एक थैले में आभूषण, चाकू व माउजर रखा और आगे जा कर कलमठ में जंगल में एक स्थान पर गड्डा खोद कर उसे छिपा दिया.  इस के बाद वह रुद्रपुर होते हुए बिलासपुर पहुंचा और सडक़ किनारे कार छोड़ कर बस से देहरादून चला गया. हत्या का मामला ठंडा हो जाने के बाद चंचल और संजय की योजना दीपक को भी ठिकाने लगाने की थी. लेकिन उस से पहले ही वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.

संजय की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथियार और आभूषण बरामद करने के साथ ही पुलिस ने माउजर बेचने वाले अनिल को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत भेज दिया गया.

चंचल के अविवेक ने जहां एक भरेपूरे परिवार को उजाड़ दिया, अंधे प्यार और लालच ने संजय को भी जुर्म की राह पर धकेल दिया. दोनों ने मर्यादाओं का खयाल किया होता तो ऐसी नौबत कभी नहीं आती. चंचल के पति दीपक का कहना था कि उसे नहीं लगता कि उस की पत्नी का हत्या में कोई हाथ है. वह पूरे कांड का मास्टरमाइंड संजय को मानता है. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.