पृथ्वी सड़क के किनारे चुपचाप चल रहा है. संगीता हरे रंग का सूट पहने हुए है, उस का चेहरा पीला पड़ गया है. हाथों में जेवर की पोटली और किताबों का बैग है. संगीता चलतचलते सरसरी निगाह से पृथ्वी को देख रही है. जब बाजार समाप्त हो गया, तो दोनों पासपास आ गए और एक रिकशे में बैठ कर स्टेशन की ओर चल दिए.
संगीता बोली, ‘‘मुझे बहुत डर लग रहा है.’’
पृथ्वी बोला, ‘‘जब मैं हूं तब किस बात का डर. एक बात बताओ, रास्ते में तुम्हें कोई जानने वाला तो नहीं मिला?’’
संगीता ने कहा, ‘‘नहीं, एक लड़की मिली थी. परंतु तब तुम मेरे से दूर थे. मातापिता परेशान होंगे, मैं उन से कह कर आई थी कि कालेज जा रही हूं. न जाने दिल क्यों इतना घबरा रहा है?’’
पृथ्वी ने आश्वासन दिया, ‘‘डरने की क्या बात है, ट्रेन में बैठ कर सीधे मुंबई पहुंच जाएंगे. एक दिन का तो सफर है. वहां बिलकुल अपरिचित लोग होंगे. बस, मैं और तुम. वहां जा कर एक होटल में ठहर जाएंगे. वैसे भी हमारे घर वालों को, हम पर किसी तरह का शक थोड़े ही हुआ होगा.
संगीता घबराती हुई बोली, ‘‘मुझे घर पर न पा कर मम्मीपापा कितने परेशान होंगे, बहुत डर लग रहा है. पता नहीं क्यों?’’
पृथ्वी हंसते हुए बोला, ‘‘सब से पहले तो तुम्हारे कालेज में पूछताछ होगी. बहरहाल, यह गहने कैसे ले कर आ पाई?’’
‘‘मुझे जगह पता थी. रात को ही अलमारी खोल कर निकाल लिए थे. अलमारी का ताला बंद कर दिया है,’’ संगीता ने बताया.
रिकशा वाला सब सुन रहा था. उन्होंने
स्टेशन के लिए 50 रुपए में रिकशा तय किया था. जब स्टेशन आया तो रिकशा वाला हेकड़ी से बोला, ‘‘मैं तो 500 रुपए लूंगा.’’
‘‘500 रुपए,’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘500 रुपए किस बात के?’’
‘‘चुपचाप 500 रुपए दे दो वरना अभी पुलिस को बुलाता हूं,’’ रिकशे वाले ने कहा.
पृथ्वी ने चुपचाप जेब से 500 रुपए निकाल कर दे दिए. संगीता घबरा रही थी. जल्दीजल्दी पृथ्वी ने मुंबई के फर्स्टक्लास के 2 टिकट ले लिए. टिकट ले कर तेजी से दोनों ट्रेन के फर्स्टक्लास के डब्बे में जा कर बैठ गए और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. संगीता ने रोते हुए कहा, ‘‘अब तो मुझे और भी ज्यादा डर लग रहा है.’’
पृथ्वी ने समझाया, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. फियर इंस्टिंक्ट एक चीज है. लिखने वाले ने तो यह भी लिखा है कि… मगर… खैर छोड़ो… हां, तुम्हारी जरा सी घबराहट ने रिकशा वाले को 500 रुपए का फायदा करा दिया. यदि तुम रिकशे में यह बात न बोलती तो ऐसा कुछ भी न होता. मुझे कुछ नहीं कहना. मगर दुख है तो सिर्फ इस बात का कि मैं मनोविज्ञान का विद्यार्थी और रिकशे वाला मुझे लूट कर चला गया.’’
बाहर दरवाजे पर खटखट हुई, दोनों ने एकदूसरे को डरते हुए देखा. पृथ्वी बोला, ‘‘साले ने 500 रुपए ले कर भी पुलिस को खबर कर दी.’’
संगीता घबराहट के मारे कांप रही थी, वह बोली, ‘‘अब क्या होगा?’’
‘‘चुपचाप देखती रहो, मुझ पर विश्वास रखो. पीछे के दरवाजे से उतर कर किसी दूसरे डब्बे में बैठ जाते हैं,’’ कह कर पृथ्वी ने पिछला दरवाजा खोला और दोनों उतर कर चल दिए. परंतु दूसरे किसी डब्बे में नहीं बैठ पाए, क्योंकि किसी भी डब्बे का दरवाजा खुला हुआ नहीं था. दोनों चुपचाप प्लेटफौर्म पर चलने लगे.
‘‘अपना किताबों का यह बैग तो छोड़ दो,’’ पृथ्वी ने संगीता से कहा.
एक सिपाही घूमता हुआ उधर ही आ रहा था. संगीता ने जल्दी से अपना बैग एक मालगाड़ी के डब्बे में रख दिया. सिपाही इतने में पास आ कर पृथ्वी से बोला, ‘‘आप लोग कहां जाएंगे?’’
पृथ्वी बोला, ‘‘हम तो ऐसे ही घूमने चले आए हैं. अब जा रहे हैं.’’
‘‘मगर आप की गाड़ी तो छूटने वाली है. आप ने फर्स्टक्लास का टिकट बुक कराया था,’’ सिपाही अपनी बात पर जोर देते हुए बोला.
‘‘ऐ मिस्टर, मैं ने कहीं का भी टिकट बुक कराया हो आप को इस से क्या लेनादेना. बोलो, क्या कर लोगे तुम? कौन होते हो यह सब पूछने वाले?’’
‘‘अरे भाई, गुस्सा क्यों होते हो? मैं तो सेवक हूं आप का. जब 50 रुपए की जगह 500 रुपए रिकशे वाले को दे सकते हो, तो हुजूर, थोड़ा सा ईनाम हमें भी मिल जाए.’’
पृथ्वी पूरी बात समझ गया. उसे 500 रुपए का नोट देते हुए बोला, ‘‘हांहां, तुम भी लो.’’ सिपाही रुपए ले कर चला गया. संगीता बोली, ‘‘हमारे मन में चोर है न, इसलिए हम हर बात से डरते हैं. चलो, फिर वापस चलते हैं.’’
‘‘बेकार में डरडर कर इधरउधर भटकते रहें, क्या फायदा,’’ पृथ्वी ने खीझते हुए कहा, ‘‘बेकार ही कंपार्टमैंट से आए. चलो, वापस वहीं चलते हैं.’’
दोनों तेजी से दौड़े परंतु कंपार्टमैंट में घुसने से पहले ही एक और पुलिस वाला आया और बोला, ‘‘अरे, झगड़ा बढ़ाने से क्या फायदा, हम सब को 1000-1000 रुपए दो और मौज करो,’’ और हाहा कर हंसने लगा.
संगीता तो डर के मारे बुरी तरह से कांप रही थी. पृथ्वी बोला, ‘‘मैं कोई ईनाम वगैरा नहीं दूंगा. मैं ने कोई दानखाता खोल रखा है क्या? मैं आप लोगों की फितरत समझ रहा हूं.’’
‘‘देखिए साहब, आप पढ़ेलिखे मालूम पड़ते हैं. आओ, पहले डब्बे में बैठ जाएं. यहां भीड़ इकट्ठी हो जाएगी और आप की बदनामी होगी. जब दोनों कंपार्टमैंट में चढ़ गए तो पुलिस वाला भी पीछेपीछे पहुंच गया और बोला, ‘‘थोड़ी देर के लिए आप थाने चलिए.’’
‘‘मैं किसी थानेवाने नहीं जाऊंगा. मेरी गाड़ी छूट जाएगी,’’ गुस्से से पृथ्वी ने कहा.
‘‘देखिए भाईसाहब, अब आप इस गाड़ी से तो नहीं जा सकते. मैं ने तो पहले ही आप से कहा था कि आप हमारे साहब की सेवा में 1000 रुपए दे दीजिए.’’ अब की बार साहब भी उसी कंपार्टमैंट में आ गए, बोले, ‘‘क्यों बे शकीरा के बच्चे, जाओ, हथकड़ी ले कर आओ. यह लड़का इस लड़की को भगा कर लिए जा रहा है. इस को गिरफ्तार कर के हवालात में बंद कर दो.’’
पृथ्वी ने 2-2 हजार रुपए के 5 नोट निकाल कर उन के हाथ में थमा दिए. बड़े साहब उन नोटों को जेब में रखते हुए बोले, ‘‘अच्छा सर, चलिए, बिना हथकड़ी लगाए ही आप को ले कर चलते हैं.’’
अब पृथ्वी बोला, ‘‘अब मैं थाने क्यों जाऊं. मैं ने 10,000 रुपए किस बात के दिए हैं?’’
‘‘देखो लड़के, यह 10,000 रुपए मैं ने सिर्फ इस बात के लिए हैं कि तुम्हें थाने हथकड़ी डाल कर न ले कर जाऊं.’’
संगीता बहुत देर से साहस जुटा रही थी, बोली, ‘‘देखिए, मैं अपनी मरजी से जा रही हूं. आप बेकार में हमें परेशान मत कीजिए.’’
‘‘हांहां मुन्नी, मैं भी तो यही कह रहा हूं, थाने चल कर थोड़ी देर बैठिएगा. वहीं आप के मम्मीपापा को बुलाया जाएगा. तब जैसा होगा, कर दिया जाएगा और उस सूरत में आप इसी ट्रेन से शाम को जा सकते.’’ तभी पहला सिपाही भी आ गया और बैग देते हुए बोला, ‘‘संगीताजी, आप का बैग. आप ने मालगाड़ी में छोड़ दिया था.’’
संगीता ने बैग हाथ में ले लिया. उस के बाद दोनों चुपचाप नीचे प्लेटफौर्म पर उतर गए. पृथ्वी ने पुलिस अफसर से इजाजत मांगी कि वह संगीता से एकांत में कुछ बात कर ले. उस पर पुलिस वाले ने कहा, ‘‘हांहां, जरूर कर लीजिए.’’ और थोड़ी दूर जा कर खड़ा हो गया. आसपास काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. पृथ्वी काफी परेशान था, बोला, ‘‘अब
क्या होगा?’’
‘‘मुझे मेरे घर या कालेज भेज दीजिए,’’ संगीता ने रोते हुए कहा.
‘‘घर मैं भी जाना चाहता हूं, लेकिन ये कमीने आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहे.’’
‘‘कोई ऐसी तरकीब निकालें, जिस से पिताजी को पता न चले,’’ संगीता ने पृथ्वी से घबराते हुए कहा.
‘‘कोशिश तो ऐसी ही करूंगा. मेरा विचार है कि जितना भी रुपया है, इन्हें दे दिया जाए और यहां से वापस चलते हैं. यहां अगर हमें किसी ने पहचान लिया तो मुसीबत हो जाएगी.’’ इस बीच, सिपाही बोला, ‘‘चलिए साहब, थाने.’’
‘‘इंस्पैक्टर साहब, हम से गलती हुई है. अब हम वापस जा रहे हैं,’’ संगीता ने इंस्पैक्टर साहब को अपनी पोटली दे दी.
पृथ्वी का साथ दम तोड़ चुका था. संगीता निर्जीव सी सब कार्य कर रही थी. इसी झगड़े में 11 बज गए. संगीता एक रिकशे पर बैठ कर कालेज चली गई. पृथ्वी दूसरे रिकशे पर बैठ कर अपने घर चला गया. शकीरा ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘अगर इन लोगों ने अपने मांबाप को बता दिया तो क्या होगा?’’
‘‘तू गधा है. क्या वे अपने मांबाप को यह बताएंगे कि हम भाग रहे थे. फिर मैं तो उन को जानता भी नहीं. हमें कोई कुछ क्यों बताएगा या देगा?’’
शाम को 4 बजे जब संगीता घर पहुंची तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. फिर भी वह हंस रही थी. कहने लगी, ‘‘मम्मी, आज तो कालेज में यह हुआ वह हुआ.’’ उस के बाद कमरे में अकेली जा कर लेट गई और सोचने लगी, ‘अब क्या होगा, कैसे होगा?’
संगीता को कड़वा लग रहा था. उस ने अधिक नहीं खाया. बस, एक ही सवाल उस के जेहन में घूम रहा था, ‘कैसे होगा?’
अलमारी की तरफ अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था. कैसे होगा? शाम को उस की सहेली आ गई थी. उस ने बताया, ‘‘आज उस के कालेज में फिजिक्स के पीरियड में सब लड़कियां खिड़कियों पर चढ़ गईं और जब फिजिक्स की टीचर आईं, तो उन के कहने पर नीचे उतरीं.’’ संगीता ने कुछ नहीं सुना. बस, उस का दिल घबरा रहा था, ‘अब क्या होगा, कैसे होगा?’
रात को उसे नींद भी नहीं आई. पुलिस, भीड़, रेलवे स्टेशन, बैग, गहने, पोटली बराबर दिमाग में घूम रहे थे और एक ही सवाल बारबार दिमाग में हथियार के जैसे प्रहार कर रहा था, अब कैसे होगा?’
2 बजे रात चुपके से संगीता उठी. उस ने छिपाई हुई चाबी को हाथ में ले कर अलमारी का दरवाजा खोल दिया. बचे हुए गहनों को तितरबितर कर दिया. एक हार पोटली में से जमीन पर डाल दिया. कपड़े आंगन में फैला दिए. दरवाजे की चटकनी खोल दी और फिर जा कर अपने बैड पर लेट गई. दिमाग में एक ही बात हथौड़े जैसे प्रहार कर रही थी कि अब क्या होगा?
सुबह होते ही अड़ोसपड़ोस में शोर मचा हुआ था कि रामप्रकाश के घर में चोरी हो गई. चोर अलमारी खोल कर कुछ लाख रुपए और गहने ले गए हैं. शायद किसी आवाज से डर गए थे. इसलिए सारे गहने ले कर नहीं गए. रामप्रकाश ने लोगों को बताया कि बड़े कमाल की बात है. उन चोरों ने बाहर का दरवाजा कैसे खोला? समझ में नहीं आ रहा है. मैं तो रात को सबकुछ देख कर सोता हूं और सब से बड़ी बात, वे सारे गहने ले कर नहीं गए. यों समझो कि भारी नुकसान होने से बच गए.
चोरी की सूचना पुलिस को दी गई. वहां से एक इंस्पैक्टर और 2 सिपाही जांचपड़ताल के लिए आए. उन्होंने दरवाजे को गौर से देखा. वह अलमारी भी देखी. अलमारी की चाबी भी देखी. लेकिन संगीता को देखते ही पहचान गए. संगीता भी उस पुलिस औफिसर और सिपाही को पहचान गई. तब पुलिस वाले ने संगीता की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘यह काम तो किसी घर वाले का ही लगता है.’’
इस पर संगीता की आंखें, पुलिस वाले की आंखों से जा मिलीं. उन में याचना थी. पुलिस वाले ने घर के चारों और देखा और बोला, ‘‘कोई किराएदार ऊपर रहता है क्या?’’
‘‘नहीं साहब,’’ राम प्रकाश ने कहा.
‘‘यह घर के आदमी का काम नहीं हो सकता. मेरा एक लड़का 8 साल का है. एक लड़की है, जो दूध की जैसी धुली हुई है. मैं हूं. मेरी पत्नी है. यह सच्ची बात है कि दरवाजा बाहर से ही खुला है. मगर कमाल है, साहब,’’ राम प्रकाश बोला.
पुलिस वाले ने कहा, ‘‘चोरी का पता लगाने की पूरी कोशिश की जाएगी. मगर मेरी सलाह मानिए, आप अपना जेवरपैसा. अब अलमारी में न रख कर, बैंक में रखें. हो सकता है चोर दोबारा चोट करे.’’
पुलिस वाले ने वहीं बैठ कर रिपोर्ट तैयार की. वहां उपस्थित लोगों के हस्ताक्षर लिए. पुलिस वाले के साथ आए सिपाही ने जाते हुए सरसरी निगाह से संगीता की तरफ देखा और बोला, ‘दूध की धुली’ और लंबी सी डकार लेता हुआ दरवाजे से बाहर निकल गया.
पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.
थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.
इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’
‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.
‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी वाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’
सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’
इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.
नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.
तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.
सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.
बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.
मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.
मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?
बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.
अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.
काजल को यह समझते देर नहीं लगी कि उस के गुनाहों की पोल खुल चुकी है. ऐसे में भलाई सच बताने में ही है. काजल ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी के कहने पर लक्ष्मण ने दिलीप की हत्या की थी. काजल ने हत्या की पूरी कहानी कुछ ऐसे बयां की—

35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक मूलत: बिहार के समस्तीपुर जिले के थाना भगवानपुर के गांव बुढ़ीवन तैयर का रहने वाला था. पिता अनिल पाठक की 4 संतानों में वह सब से बड़ा था. हंसमुख स्वभाव का दिलीप मेहनतकश था. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया था, उस का यह धंधा सही चल निकला था.
दिलीप अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और ईमानदारी से पैसा कमा रहा था. पिता ने 12 साल पहले उस की शादी बेगूसराय के तेघरा, रानीटोल की रहने वाली काजल के साथ कर दी थी. शादी के कई साल बाद उस के घर में एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम अंश रखा गया.
समय के साथ प्रौपर्टी के धंधे में दिलीप को काफी नुकसान हुआ. इस के बाद उस का धंधा धीरेधीरे और भी मंदा होता गया. स्थिति यह आई कि प्रौपर्टी के बिजनैस में उस ने जितनी पूंजी लगाई थी, सब डूब गई. यह करीब 3 साल पहले की बात है.
पति की माली हालत खराब देख काजल बेटे को ले कर अपने मायके रानीटोल चली गई और वहीं मांबाप के साथ रहने लगी. पत्नी का यह रवैया दिलीप को काफी खला, क्योंकि मुसीबत के वक्त साथ देने के बजाय वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई. वह मन मसोस कर रह गया और सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया.
उधर काजल ने बेटे को वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिलीप बीचबीच में पत्नी और बेटे से मिलने ससुराल जाता रहता था. ससुराल में 1-2 दिन रह कर वह अपने घर लौट आता था.
अंश जिस कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता था, वहां की किताबें भाषा में काफी मुश्किल होती थीं. कभीकभी अंगरेजी के कुछ शब्दों के अर्थ काजल को भी पता नहीं होते थे, जबकि वह अच्छीभली पढ़ीलिखी थी. बेटे की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए, इसलिए उस ने अंश के लिए घर पर ही एक ट्यूटर लगा दिया. यह पिछले साल जुलाईअगस्त की बात है.
ट्यूटर का नाम लक्ष्मण कुमार पासवान था. रातगांव करारी का रहने वाला 21 वर्षीय लक्ष्मण कुमार एकदम साधारण शक्लसूरत और सांवले रंग का युवक था. लक्ष्मण की वाकपटुता से काजल काफी प्रभावित थी. अंश को भी वह खूब मन लगा कर पढ़ाता था. थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण उस परिवार का हिस्सा बन गया. बेटे को पढ़ाते समय काजल लक्ष्मण के पास ही बैठी रहती थी.
लक्ष्मण जवान था. ऊपर से कुंवारा भी. जब काजल उस कमरे में आ कर बैठती थी, जिस में वह अंश को पढ़ाता था तो लक्ष्मण उसे कनखियों से निहारता रहता था. काजल भी लक्ष्मण के पास बैठने के लिए बेकरार रहती थी.
एक दिन लक्ष्मण अंश को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर पहुंचा. उस समय शाम का वक्त था. उस रोज काजल काफी परेशान थी. उस ने अपने दुखों का पिटारा उस के सामने खोल कर रख दिया. लक्ष्मण काजल की दुखभरी व्यथा सुन कर भावनाओं में बह गया.
काजल ने उस से कहा कि वह उस के लिए कोई छोटीमोटी नौकरी ढूंढने में मदद करे. लक्ष्मण मना नहीं कर सका. बाद में लक्ष्मण ने अपने एक परिचित के माध्यम से एक नर्सरी स्कूल में उसे अध्यापिका की नौकरी दिलवा दी.
काजल लक्ष्मण के अहसानों की कायल थी. धीरेधीरे वह उस की ओर झुकती गई. लक्ष्मण भी उस की ओर आकर्षित होता गया. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया. प्यार भी ऐसा कि एकदूसरे को देखे बिना रह न सके. यह बात भी जुलाई अगस्त 2016 की है. 2 महीने के प्यार के बाद लक्ष्मण और काजल ने चुपके से मंदिर में विवाह कर लिया. काजल ने इस की भनक किसी को नहीं लगने दी, पति तक को नहीं.
9 वर्ष का अंश भले ही छोटा था, लेकिन उस में इतनी अक्ल थी कि वह अच्छे और बुरे में फर्क महसूस कर सके. उस ने अपनी मम्मी और ट्यूटर के बीच के रिश्तों को महसूस कर लिया था. उसे लगता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है, जो घरपरिवार के लिए अच्छा नहीं है. अंश ने यह बात अपने पापा दिलीप को बता दी. बेटे की बात सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई.
बहरहाल, सूचना मिलने के अगले दिन दिलीप ससुराल रानीटोल पहुंच गया. उस दिन ट्यूटर लक्ष्मण को ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. काजल पति को समझाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी. उस ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और लक्ष्मण के बीच कोई संबंध नहीं है.
लक्ष्मण को उस ने बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रखा है. ट्यूटर आता है और बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर चला जाता है. उस रोज काजल अपने त्रियाचरित्र के दम पर पति को काबू करने में कामयाब हो गई थी. जैसेतैसे मामला शांत तो हो गया, लेकिन दिलीप पत्नी पर नजर रखने लगा.
पति को उस पर शक हो गया है, काजल ने यह बात लक्ष्मण को फोन कर के बता दी थी. उस ने लक्ष्मण को यह कहते हुए सावधान कर दिया था कि पति जब तक घर पर रहे, तब तक वह बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने भी न आए. लक्ष्मण उस की बात मान गया और वैसा ही किया, जैसा उस ने करने को कहा था.
काजल लक्ष्मण से मिलने के लिए बेचैन रहती थी. पति के रहते उन के मिलन में बाधा पड़ रही थी. काजल से लक्ष्मण की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि वह उस की हत्या कर दे. उस के बाद रास्ते में रुकावट पैदा करने वाला कोई नहीं रहेगा. काजल को पाने के लिए लक्ष्मण उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया.

लक्ष्मण जानता था कि दिलीप की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा चक्कर चलाया जाए, जिस से वह उस के काबू में आ जाए. इस के लिए उस ने काजल को धोखे में रखते हुए एक और खेल खेलने की सोची.
उस ने सोचा कि दिलीप की हत्या का ऐसा तानाबाना बुना जाए, जिस से पूरा शक काजल और काजल के मायके वालों पर ही जाए. कभी मामले का खुलासा हो भी तो वह शक के दायरे से बचा रहे.
दिलीप ने लक्ष्मण को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे जानतापहचानता नहीं था. लक्ष्मण और काजल ने इसी बात का फायदा उठाते हुए योजना बनाई कि दिलीप को भरोसा दिलाया जाए कि एक ऐसी पूजा है, जिसे ध्यानमग्न हो कर करने पर पूजा की जगह पर ही 25 हजार रुपए मिल जाते हैं.
पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी.
पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.
बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत ले कर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.
जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.
बाप ने दी बेटे को शह
शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’
इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’
‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’
‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.
प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने आ गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.
दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए.
8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.
दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.
दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.
55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था.
बेटियों पर गर्व था दुबेजी को
उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.
तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.
बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.
प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था.
वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.
ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.
17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.
ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थी.
उस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.
घातक बनी एकतरफा मोहब्बत
प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.
रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.
नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली.
‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.
‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.
‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.
‘‘मैं ने कहा न, मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.
‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.
‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.
घटना की सूचना मिलते ही एसएचओ हिमांशु कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. थोड़ी देर बाद वह मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल में जुट गए और इस की जानकारी एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार को भी दे दी.
उधर मृतका के पिता नंदकिशोर को बुलवाने के लिए उस के घर एक कांस्टेबल को भेज दिया.
अदावत नहीं थी तो क्यों हुई हत्या
सूचना मिलने के कुछ देर बाद एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार भी मौके पर पहुंच चुके थे. उस के थोड़ी देर बाद फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच कर अपनी आवश्यक काररवाई में जुट गई थी.
पुलिस अधिकारियों ने पैनी नजरों से लाश का मुआयना किया. पड़ताल के दौरान पता चला कि बड़ी बेरहमी से हत्यारों ने किसी तेज धारदार हथियार से उस की गला रेत कर हत्या की थी. मौत से पहले मृतका ने हत्यारों के चंगुल से बचने के लिए काफी हद तक अपना बचाव करने की कोशिश की थी.
मौके से एक चाकू रखने वाला खोखा बरामद हुआ. सबूत के तौर पर पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया. इस के बाद एसएसपी एसएचओ को आवश्यक काररवाई करने का निर्देश दे कर रवाना हो गए.
खैर, एसएचओ हिमांशु कुमार सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी और नंदकिशोर से तहरीर ले कर थाने आ गए. उन्होंने तहरीर के आधार पर आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी.
एसएचओ हिमांशु कुमार ने विवेचना शुरू करने के बाद कुछ जरूरी जानकारी लेने के लिए नंदकिशोर को थाने बुलवाया और उन से पूछताछ की कि उन की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं है. इस के अलावा उन्हें किसी पर शक हो तो बता दें.
इस पर नंदकिशोर ने बताया कि उन की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न विवाद. उन्हें किसी पर शक भी नहीं है. हां, इतना जरूर है कि लाली के पास मोबाइल था, वह मौके से नहीं मिला और न ही वह घर पर है.
नंदकिशोर के इस बयान ने एसएचओ हिमांशु सिंह को सोचने पर विवश कर दिया. उन्होंने यह बात एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार को बताई. यह जान कर वे भी सोचने पर विवश हो गए.
हत्यारों का मृतका का फोन अपने साथ ले जाना इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि उस में हत्या से जुड़ा कोई गहरा राज छिपा था, तभी वे मोबाइल फोन अपने साथ ले गए. या यह भी हो सकता है कि हत्यारा नंदकिशोर के जानपहचान वाला कोई हो और हत्या का राज छिपाने के लिए अपने साथ ले गया हो.
हत्या का नहीं मिल रहा था सुराग
यह सब करतेकरते एक सप्ताह बीत चुका था. पुलिस जांच जहां से चली थी, वहीं आ कर रुक गई. लाली हत्याकांड की गुत्थी की कोई कड़ी पुलिस के हाथ लग ही नहीं रही थी. जिस नंबर को बातचीत के लिए लाली उपयोग करती थी, वह नंबर घर वालों के पास ही नहीं था इसलिए पुलिस को हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से मृतका का फोन नंबर पुलिस के हाथ लगा.
इस के बाद उस नंबर की काल डिटेल्स पुलिस ने निकलवाई और उस की जांच में जुट गई. मृतका के मोबाइल पर आखिरी बार साढ़े 7 बजे काल आई थी. उस के बाद उस के मोबाइल पर कोई काल नहीं आई और फोन स्विच्ड औफ हो गया था.
जिस नंबर से लाली को फोन आया था, नंदकिशोर को थाने बुलवा कर एसएचओ ने उस नंबर को ट्रेस कराया. नंदकिशोर ने बता दिया कि उन्हें नहीं पता कि वह नंबर किस का है.
भले ही नंदकिशोर उस नंबर को नहीं पहचान सके, लेकिन पुलिस उस संदिग्ध नंबर की तलाश में जुट गई. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद उस नंबर की पूरी कुंडली तैयार हो चुकी थी.
वह नंबर अहमदपुर (घाघरा) निवासी विकेश कुमार महतो के नाम था. पुलिस अब इस गुत्थी को सुलझाने में जुटी थी कि विकेश का नंबर लाली की काल डिटेल्स में कैसे आया? विकेश और लाली एकदूसरे को कैसे जानते थे?
पुलिस ने जल्द ही इस गुत्थी को भी सुलझा लिया. पता चला कि लाली की हत्या त्रिकोण प्रेम प्रसंग के चलते हुई थी. इस घटना को अकेले विकेश ने अंजाम नहीं दिया बल्कि लाली के पहले प्रेमी बिट्टू ने भी उस का साथ दिया था.
विकेश और बिट्टू दोनों भाइयों ने स्वीकारा जुर्म
प्रेम प्रसंग में असफल 2 चचेरे भाई बिट्टू और विकेश ने मिल कर लाली की हत्या की थी. पुलिस ने दोनों के खिलाफ वैज्ञानिक साक्ष्य जुटा लिए थे ताकि अदालत में आरोपियों के खिलफ मजबूत केस बन सके और उन्हें इस की सजा मिल सके.
विकेश और बिट्टू के खिलाफ पुलिस के पास पर्याप्त साक्ष्य जमा हो चुके थे. 27 अगस्त, 2022 को सुबहसुबह पुलिस ने दोनों के घर दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई. थाने में दोनों से जब सख्ती से पूछताछ शुरू हुई तो जल्द ही दोनों ने घुटने टेक दिए और अपने जुर्म कुबूल कर लिए.
आरोपियों विकेश और बिट्टू के इकरार ए जुर्म के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर विकेश और बिट्टू को नामजद कर दिया था और दोनों को अदालत के सामने पेश कर उन्हें जेल भेज दिया था. पुलिस पूछताछ के बाद लक्की उर्फ लाली हत्याकांड की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
नंदकिशोर साद की सब से बड़ी बेटी थी लक्की उर्फ लाली. सुंदर और चंचल. चंचलता उस के रगरग में समाई थी. उस की आंखों से ले कर उस के सुर्ख होंठों तक चंचलता के पैमाने छलकते थे. उसे पीने वाले आशिकों की कमी भी नहीं थी.
बात उन दिनों की है जब लाली 16 साल की अल्हड़ थी. अपनी ही गलियों में खोई लाली को पता ही नहीं था कि एक युवक की आंखें उस के हुस्न के पैमाने को कब से ताड़ रही थीं. उस युवक का नाम बिट्टू महतो था.
अंकुश ने पुलिस को बताया कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. वह तो पूनम से बहुत प्यार करता था. वह उसे लेने जाने ही वाला था कि उस की मौत की खबर मिल गई.
अंकुश ने पुलिस टीम को एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी. उस ने बताया कि पूनम जब ससुराल में थी, तब उस के मोबाइल पर अकसर गोलू नाम के किसी युवक का फोन आता था. देर रात भी वह उस से बातें किया करती थी. पूछने पर पूनम ने बताया था कि गोलू उस का मौसेरा भाई है.
पुलिस टीम ने गोलू के संबंध में शिवशंकर से पूछताछ की तो यह बात गलत निकली कि गोलू पूनम का मौसेरा भाई है. पुलिस टीम ने पूनम के मोबाइल के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह मोबाइल चोरी का है, लेकिन सिम कार्ड नीरज के नाम का है, जो नयापुरवा हिंगूपुर का रहने वाला है. पुलिस ने रात में छापा मार कर नीरज उर्फ गोलू को हिरासत में ले लिया.
थाना बिठूर ला कर जब नीरज उर्फ गोलू से पूनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने साफसाफ कहा कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन जब उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो वह जल्दी ही टूट गया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.
नीरज ने बताया कि पूनम ने उस के साथ बेवफाई की थी इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया. पुलिस टीम ने नीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल दुपट्टा, पूनम का मोबाइल, मय लौकेट के मंगलसूत्र, सोने की अंगूठी, टौप्स, पायल, बिछिया वगैरह बरामद कर लिए.
चूंकि नीरज उर्फ गोलू ने पूनम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने नीरज को हत्या के जुर्म में नामजद कर गिरफ्तार कर लिया. नीरज के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस तरह थी.
कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर है ऐतिहासिक कस्बा बिठूर. इस कस्बे से 2 किलोमीटर दूर एक गांव बैकुंठपुर है. मिलीजुली आबादी वाले इस गांव में शिवशंकर मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवकांती के अलावा 2 बेटियां पूनम, प्रियंका तथा एक बेटा अमन था. शिवशंकर लोडर चालक था. मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार के भरण पोषण करता था.
भाईबहनों में पूनम सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही पर जैसेजैसे जवानी चढ़ी वह उस के बदन को सजाती गई. पूनम की खूबसूरती और निखरती गई. यौवन के फूल खिलते हैं तो उन की मादक महक फिजा में फैलती ही है. ऐसे में भंवरों का फूलों के इर्दगिर्द मंडराना स्वाभाविक है. मनचले भंवरे पूनम के इर्दगिर्द मंडराते तो उसे अच्छा लगता.
पूनम जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और आगे पढ़ना चाहती थी. लेकिन मातापिता के विरोध की वजह से आगे न पढ़ सकी और मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी. हालांकि पूनम को चौकाचूल्हा पसंद न था, लेकिन मां के दबाव में उसे सब करना पड़ता था.
एक रोज पूनम की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस की दूर की रिश्तेदार थी और किसी काम से उस के घर आई थी. सरिता सिंहपुर स्थित आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी. बातचीत के दौरान पूनम ने सरिता से नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो सरिता उसे नौकरी दिलाने के लिए राजी हो गई.
लेकिन मां ने पूनम को नौकरी करने के लिए साफ मना कर दिया. कुछ माह तक पूनम अपनी मां शिवकांती को नौकरी के लिए मनाती रही लेकिन जब वह नहीं मानी तो पूनम ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मां, तुम राजी हो या न हो, अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मैं नौकरी करूंगी.’’
पूनम के निर्णय के आगे शिवकांती को झुकना पड़ा. इस के बाद पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करने लगी. पूनम के गांव से सिंहपुर ज्यादा दूर नहीं था. वहां आनेजाने के साधन भी थे. अत: उसे नर्सिंग होम आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. कभीकभी अस्पताल में ज्यादा महिला मरीज होती या प्रसव कराने का मामला होता तो पूनम को रात में भी रुकना पड़ता था. रुकने की खबर वह मोबाइल से घर वालों को दे देती थी.
पूनम को नौकरी करते हुए 2 महीने बीत गए तो उस ने कुछ पैसा बचाने की सोची. इस के लिए बैंक खाता जरूरी था. इसलिए वह बैंक में खाता खुलवाने का प्रयास करने लगी. पूनम जिस आस्था नर्र्सिंग होम में काम करती थी उस के ठीक सामने रोड के उस पार भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा थी.
एक रोज वह बैंक पहुंची तो वहां उस की मुलाकात एक हृष्टपुष्ट युवक नीरज उर्फ गोलू से हुई, पहली ही नजर में खूबसूरत पूनम, नीरज के दिल में रच बस गई.
उत्तर प्रदेश के शहर के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.
शिल्पी की उम्र भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.
कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.
शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.
शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.
‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.
‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.
इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’
‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.
इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’
शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’
‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’
इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.
मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.
बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.
रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.
रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.
खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में.
उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.
दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें आ कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.
‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.
‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’
‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.
‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.
‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.
‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’
‘‘ओ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया, ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’
‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’
‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’
‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.
‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.
आतंक पहुंचा हत्या तक
इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा.
रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.
घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज आ रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी.
दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी.
गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.
जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी.
लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.
सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है.
मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.