ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 2

चूंकि मामला दोहरे हत्याकांड का था, लिहाजा जिले के डीसीपी सेजू पी. कुरुविला ने हत्यारों को पकड़ने के लिए एक बड़ी टीम का गठन कर दिया. इस टीम के सुपरविजन की जिम्मेदारी उन्होंने एडीशनल डीसीपी राजेंद्र सागर को सौंपी और औपरेशन की कमांड संभालने का जिम्मा एसीपी विनय माथुर को दिया.

विशेष टीम में पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने के एसएचओ मुकेश कुमार, एडीशनल एसएसओ मनोज भाटिया, निहाल विहार थाने के एसएचओ धर्मपाल सिंह, एसआई रितुराज, एएसआई अनिल कुमार, महावीर, राजेंद्र सिंह, राजबीर, धनराज, हैडकांस्टेबल कृष्ण राठी, सुभाष, रजनीश, कांस्टेबल संदीप, अनिल, नवीन, नवीन यादव, वीरेंद्र, अमित, सुनील और महिला कांस्टेबल दिव्या को शामिल किया गया.

पुलिस की एक टीम सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर उस के फोन के सर्विलांस के काम में जुटी तो दूसरी टीम को उस से मिली जानकारी के आधार पर आरोपियों की धरपकड़ का जिम्मा सौंपा गया.

संभावना बेटी के हत्यारी होने की

पुलिस टीम ने जब मृतका जागीर कौर व उन के पति गुरमीत सिंह के घर के आसपास लगे कुछ सीसीटीवी कैमरों की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो कुछ सीसीटीवी कैमरों से ऐसी फुटेज भी मिल गई, जिस से साफ हो गया कि सोनिया और प्रिंस ही इस दोहरे हत्याकांड के जिम्मेदार हैं.

पुलिस टीम ने सर्विलांस की मदद से लखनऊ से ले कर दिल्ली तक अपना जाल बिछा दिया, क्योंकि प्रिंस लखनऊ का ही रहने वाला था. ताबड़तोड़ छापेमारी और पुलिस की घेराबंदी का नतीजा यह निकला कि 10 मार्च, 2019 की रात को पुलिस ने बाहरी दिल्ली इलाके में दिलेर मेहंदी फार्महाउस के पास से सोनिया और उस के प्रेमी प्रिंस को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों को गिरफ्तार कर जब थाने लाया गया और पूछताछ की गई तो पता चला, इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए प्रिंस ने लखनऊ के भाड़े के 2 हत्यारों रिंकू और दिवाकर की भी मदद ली थी. पता चला कि दोनों हत्यारों को उस ने 50 हजार रुपए दिए थे.

दोनों सुपारी किलर रिंकू और दिवाकर लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन के रहने वाले थे. प्रिंस से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिंकू और दिवाकर के मोबाइल नंबर हासिल कर लिए और (वेस्ट) थाने के एएसआई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस की टीम को दोनों की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ रवाना कर दिया.

इधर अगली सुबह यानी 31 मार्च को सोनिया और प्रिंस दीक्षित को अदालत में पेश कर मनोज भाटिया ने 10 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. दूसरी तरफ एएसआई राजेंद्र सिंह की टीम ने 11 मार्च की रात को ही दोनों आरोपियों रिंकू और दिवाकर को लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन से गिरफ्तार कर लिया.

अगली सुबह तक राजेंद्र सिंह की टीम उन दोनों को ले कर दिल्ली आ गई. उन्हें भी अदालत में पेश कर 10 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चारों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब पुलिस ने पूछताछ शुरू की तो पूरा सच सामने आ गया और पूरे हत्याकांड की सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं, जिसे सुन कर हर आदमी यही कह सकता है कि ऐसी बेटी किसी की न हो.

मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले गुरमीत सिंह की शादी जालंधर की रहने वाली जागीर कौर से हुई थी. जागीर कौर और गुरमीत सिंह के 4 बच्चे हैं. गुरमीत सिंह पेशे से लकड़ी के ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ दीपक विहार, निलोठी एक्सटेंशन स्थित अपने मकान में रहते थे.

उन के 4 बच्चों में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गुरमीत का बड़ा बेटा अमरजीत सिंह अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है और वहीं सेटल है. जबकि छोटे बेटे ने दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया था, जिसे उन्होंने घर से निकाल दिया था, जिस के बाद उन के परिवार में बस 2 बेटियां ही रह गई थीं. बड़ी बेटी दविंदर कौर उर्फ सोनिया और छोटी हरजिंदर कौर.

सोनिया की शादी सन 2011 में फरीदाबाद में रहने वाले सुरेंद्र से हुई थी. लेकिन सुरेंद्र एक सीधासादा व्यापारी था, जबकि सोनिया पढ़ीलिखी और चंचल स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. दोनों के विचार नहीं मिले तो उन के बीच अनबन रहने लगी. यही कारण रहा कि एक साल पूरा होतेहोते सोनिया का सुरेंद्र से आपसी सहमति से तलाक हो गया और वह अपने मातापिता के घर आ गई.

पहली शादी भले ही असफल हो गई थी लेकिन मातापिता को बेटी का घर में बैठना गवारा नहीं था. लिहाजा उन्होंने उसी साल निहाल विहार में रहने वाले करुण शर्मा से उस की दूसरी शादी कर दी.

दरअसल करुण शर्मा जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, उस से सोनिया की जानपहचान खुद ही हुई थी. दोनों के बीच जल्द ही घनिष्ठता बढ़ गई और इसी के बाद सोनिया ने मातापिता को यह बात बताई. इस के बाद दोनों की शादी कर दी गई.

दूसरी शादी भी नहीं टिकी सोनिया की

शादी के 5 साल तक दोनों की गृहस्थी ठीकठाक चली. इस बीच सोनिया ने 2 बच्चों एक बेटी और एक बेटे को जन्म दिया. लेकिन 2 साल पहले यानी सन 2017 में उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया. यहां तक कि वह दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर मायके में आ गई. इस का भी एक अहम कारण था.

दरअसल, जब सोनिया अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी तो उस दौरान उस की छोटी बहन हरजिंदर कौर उस की तीमारदारी करने के लिए उस के घर आई थी. हरजिंदर कौर सुंदर भी थी और जवान भी. लिहाजा पत्नी के बिस्तर पर होने के कारण पति करुण शर्मा का उस की तरफ झुकाव हो गया था.

2-3 महीने में हालात ऐसे हो गए कि हरजिंदर कौर तथा करुण शर्मा के बीच संबंध हो गए. जल्द ही यह राज सोनिया को पता चल गया. दूसरे बच्चे को जन्म देने के बाद जब सोनिया ने हरजिंदर को घर भेज दिया तो उस के बाद भी दोनों का मिलनाजुलना जारी रहा. कभी करुण उस से मिलने मातापिता के घर चला जाता तो कभी वह उसे बाहर बुला कर उस से मिलताजुलता.

अब करुण के लिए बीवी से ज्यादा साली प्यारी हो गई थी. एक साल होतेहोते दोनों के संबंध इतने प्रगाढ़ हो गए कि सोनिया का आए दिन इस बात को ले कर अपने पति और बहन के साथ झगड़ा होने लगा. आखिर एक दिन तंग आ कर सोनिया दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर हमेशा के लिए घर छोड़ कर अपने मातापिता के घर आ गई.

सोनिया मातापिता के पास क्या आई कि हरजिंदर उस के बच्चों की देखभाल के नाम पर करुण शर्मा के घर में आ कर रहने लगी. कुछ समय बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस घटना के बाद से ही सोनिया का रिश्तेनातों से विश्वास उठने लगा. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीवन में सिर्फ अपने लिए जिएगी.

मातापिता के घर आ कर सोनिया के सामने अपनी जिंदगी को पालने का संकट था. लिहाजा उस ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी. इस दौरान जौब पोर्टल से इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन निवासी प्रिंस दीक्षित का मोबाइल नंबर सोनिया को मिला. उस ने इवेंट मैनेजमेंट के लिए सोशल मीडिया पर महिला एग्जीक्यूटिव की जौब का विज्ञापन दिया हुआ था. उस नंबर पर बात कर के सोनिया प्रिंस से मिलने लखनऊ गई.

वहां प्रिंस को जब पता चला कि सोनिया पहले पति से तलाक के बाद दूसरे पति को बिना तलाक दिए छोड़ चुकी है तो उसे लगा कि खूबसूरत सोनिया को अगर वह अपने साथ रख ले तो उस का धंधा ही नहीं चलेगा, बल्कि औरत के बिना जिंदगी के अधूरेपन की कमी भी दूर हो जाएगी.

दरअसल प्रिंस ने भी अपनी पत्नी को छोड़ रखा था. लिहाजा प्रिंस ने उसे अपने यहां नौकरी ही नहीं दी बल्कि अपने घर में रहने के लिए एक कमरा भी दे दिया. दोनों ही अधूरेपन की जिंदगी जी रहे थे. फिर ऐसे हालात बने कि दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबंध भी बन गए. लेकिन कुछ समय बाद सोनिया दिल्ली आ गई क्योंकि उस ने कहा था कि वह दिल्ली में रह कर ही उस के इवेंट के लिए क्लाइंट देखा करेगी.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 2

रिमांड के दौरान पूछताछ में गिरीश ने जो बताया, वह एक शराबी पति की हैवानियत की कहानी थी. गिरीश ने बड़ी ही होशियारी से अमीर घर की मधुमती को धोखे में रख विवाह किया.

इस के बाद वह उस की दौलत को शराब और अय्याशी में लुटाने लगा. जब उस ने मना किया तो उस के साथ मारपीट करने लगा. जब वह उस से संबंध तोड़ कर फ्रांस में रह रही अपनी नानी के यहां जाने की तैयारी करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर दी. वह उस के शव को समुद्र में फेंक कर मछलियों को खिला देना चाहता था. लेकिन उस के पहले ही वह पकड़ा गया.

श्रीरंग पोटे सीधेसादे, उच्च विचार के महाराष्ट्री ब्राह्मण थे. वह महानगर मुंबई के उपनगर माहीम में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा गिरीश था. एकलौता होने की वजह से गिरीश मातापिता का कुछ ज्यादा ही लाडला था. शायद यही वजह थी कि वह जिद्दी और उद्दंड हो गया.

श्रीरंग पोटे ने गिरीश को बुढ़ापे का सहारा मान कर उस की हर इच्छा पूरी की थी. उसे किसी भी चीज का अभाव नहीं होने दिया था. मगर जैसे जैसे गिरीश बड़ा होता गया, उन की आशाएं धूमिल होती गईं, क्योंकि गिरीश वैसा नहीं बन सका, जैसा उन्हें और उन की पत्नी को उम्मीद थी. उस की आदतें बिगड़ती चली गईं और वह अक्खड़ और जिद्दी बन गया. श्रीरंग पोटे के काफी प्रयास के बाद भी वह किसी काबिल नहीं बन सका.

गिरीश दिन भर अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमताफिरता और राह चलती लड़कियों को छेड़ता. खर्च के लिए वह मां से लड़झगड़ कर पैसे ले ही लेता था. आवारा दोस्तों के साथ रहते हुए वह शराब भी पीने लगा था. बेटे की इन हरकतों से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी परेशान रहती थीं. लेकिन अब उन के वश में कुछ भी नहीं था क्योंकि वे बेटे को सुधारने की हर कोशिश कर के हार चुके थे.

श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बेटे को सुधारने में पूरी तरह नाकाम रहे तो नातेरिश्तेदारों ने उन्हें सलाह दी कि वे उस की शादी कर दें. उन का मानना था कि जब जिम्मेदारियों का बोझ उस पर पड़ेगा तो वह अपनेआप सुधर जाएगा. यही पुराने लोगों का विचार रहा है, जो एक हद तक सही भी है.

शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा, इस की उम्मीद श्रीरंग पोटे को कम ही थी. फिर भी बेटे के सुधरने की उम्मीद में वह उस की शादी करने के लिए तैयार हो गए.

श्रीरंग पोटे ने बेटे की शादी के लिए बात करनी शुरू की तो रिश्ते भी आने लगे, क्योंकि गिरीश उन की एकलौती औलाद थी. आजकल लोग वैसे भी छोटा परिवार ढूंढ़ते हैं. मांबाप यही चाहते हैं कि उन की बेटी को ज्यादा काम न करना पड़े.

यही सोच कर गिरीश के लिए रिश्ते तो बहुत आए, मगर जब उन्हें उस के बारे में पता चलता तो वे पीछे हट जाते. इस बात से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी को तकलीफ तो बहुत होती, लेकिन वे कर ही क्या सकते थे. जब उन्हीं का सिक्का खोटा था तो वे दूसरों को क्या दोष देते.

शायद वे भाग्यशाली लड़कियां थीं, जिन की शादी गिरीश जैसे बिगड़े हुए युवक से होतेहोते रह गई. लेकिन मधुमती उन में नहीं थी. उस का भाग्य खराब था, जिस की वजह से उस की शादी गिरीश से हो गई.

सुंदर सुशील हंसमुख मधुमती भी अपने मातापिता की एकलौती संतान थी. जिस लाड़प्यार से गिरीश की परवरिश हुई थी, उस से कहीं अधिक लाड़प्यार मधुमती को मिला था. वह छोटी थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. इस के बाद बाप का भी प्यार उसे उस की मां शकुंतला ने दिया था. बेटी को उन्होंने किसी चीज का आभाव नहीं होने दिया था. उस की हर ख्वाहिश उन्होंने पूरी की थी. वह खुद नौकरी करती थीं, इसलिए बेटी के पालनपोषण में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई थी.

जब पति की मौत हुई थी, शकुंतला जवान थीं. उन से शादी के लिए तमाम रिश्ते आए थे, लेकिन उन्होने शादी नहीं की थी. उन्होंने अपना जीवन बेटी को न्यौछावर कर दिया था.

मधुमती मां शकुंतला से कहीं ज्यादा अपनी नानी अहिल्या की लाडली थी. वह रहती तो फ्रांस में थीं, लेकिन उस का हमेशा खयाल रखती थीं. शकुंतला का जो पैसा खर्च से बचता था. वह उसे मधुमती के नाम से जमा करती थीं.

इस के अलावा एक हजार डालर हर महीने मधुमती की नानी उस के एकाउंट में जमा करती थीं. इस तरह मधुमती के नाम करोड़ों रुपए जमा हो गए थे. इस के अलावा मधुमती अपनी मां शकुंतला के साथ जिस फ्लैट में रहती थी, वह भी मधुमती के ही नाम था.

करोड़पति मधुमति के बारे में पता चलते ही श्रीरंग पोटे के मुंह में पानी आ गया. जब इस रिश्ते के बारे में गिरीश को बताया गया तो उस के भी मन में लड्डू फूटने लगे. उसे लगा कि अगर उस की शादी मधुमती से हो गई तो वह भी करोड़पति हो जाएगा. इस के बाद उस की जिंदगी आराम से कटेगी. इसलिए वह इस रिश्ते को किसी भी सूरत में हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था.

मधुमती से शादी के लिए गिरीश एकदम से संन्यासी बन गया. सारी बुराइयों को छोड़ कर वह आटोरिक्शा चलाने लगा. वह दिनभर  में जो कमाता, ईमानदारी से ला कर पिता श्रीरंग पोटे के हाथों में रख देता. वह जब भी मधुमती और उस की मां से मिलता, निहायत ही सादगी से मिलता.

गिरीश में आए इस बदलाव से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बहुत खुश थे. उन्हें लग रहा था कि उन के घर बहू नहीं, देवी आ रही है, जिस के रिश्ते की बात चलते ही उन का बेटा सीधे रास्ते पर आ गया. उन्हें लगा कि शादी के बाद बहू घर आ जाएगी तो वह पूरी तरह से सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मधुमती और गिरीश की शादी हो गई. विवाह के बाद कुछ दिनों तक तो गिरीश ठीक रहा. लेकिन कुछ दिनों बाद वह अपने पुराने रास्ते पर फिर चल पड़ा. बहलाफुसला कर मधुमती से पैसे लेता और शराब तथा शबाब पर लुटा देता.

वह लगभग रोज ही बीयरबारों में जाने लगा. पति की हरकतों से मधुमती रो पड़ती, क्योंकि मां और नानी ने मेहनत की जो कमाई उस के भविष्य के लिए उस के नाम जमा की थी, गिरीश उसे शराब, शबाब और अय्याशी पर उड़ा रहा था.

जब कभी मधुमती और मांबाप गिरीश को समझाने और कामकाज के बारे में कहते, वह बड़े शान से कहता, ‘‘जिस की पत्नी करोड़पति हो, उसे कामधाम करने की क्या जरूरत है. आखिर ये करोड़ों रुपए किस दिन काम आएंगे.’’

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. मधुमती एक बेटे की मां बन गई. बेटे के जन्म से मधुमती के मन में उम्मीद जागी कि बच्चे का मुंह देख कर शायद गिरीश सुधर जाए. मगर उस का भी गिरीश पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उसे अपने सुख के आगे किसी की कोई चिंता नहीं थी.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 1

हिसार के जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. पंकज की विशेष अदालत के बाहर 5 दिसंबर, 2018 को जुटी भीड़ को देख कर लग रहा था जैसे वहां  पूरा शहर ही उमड़ पड़ा था. अदालत की काररवाई देखनेसुनने के लिए लोग एकदूसरे से धक्कामुक्की कर रहे थे. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडियाकर्मियों का भी वहां तांता लगा हुआ था.

अदालत के बाहर कई महिला संगठन और सनातन धर्म जैसी धार्मिक संस्थाओं के लोग भी मौजूद थे. भीड़ को देखते हुए वहां पुलिस का भी पर्याप्त इंतजाम था. हर कोई इस फैसले को सब से पहले सुनना चाहता था. मुजरिम अशोक को पुलिस की गाड़ी जेल से ले कर आ चुकी थी और उसे कड़ी सुरक्षा के बीच अदालत में ले जाया गया था.

वैसे इस केस की तमाम सुनवाई पूरी हो चुकी थी और 29 नवंबर, 2018 को अदालत ने आरोपी अशोक को दोषी करार दे दिया था. आज जज साहब को अपना फैसला सुनाना था. अदालत के बाहर खड़ी लोगों की भीड़ इस फैसले को सुनने के लिए इसलिए अधिक उतावली थी, क्योंकि हत्या के इस केस के दोषी अशोक के पिता हरियाणा पुलिस में दरोगा थे और उन्होंने अपने बेटे को बचाने के लिए वे सब कानूनी हथकंडे अपनाए थे, जो दोषी को सजा से बचाने के लिए सहायक सिद्ध हो सकते थे.

यह एक औनर किलिंग का मामला था. हिसार के गांव आदमपुर सीसवान निवासी रोहतास की शिकायत पर उस की पत्नी किरन की हत्या का यह मुकदमा किरन के भाई अशोक पर चलाया गया था. इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी—

दरोगा की बेटी को हुआ प्यार

हरियाणा के जिला हिसार के गांव जुगलान में सुरेश सिंह का परिवार रहता था. सुरेश हरियाणा पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और जिला रोहतक में तैनात थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटा था अशोक, जो उन दिनों हिसार में कोचिंग कर रहा था और एक बेटी थी किरन. किरन भी उन दिनों आईटीआई कर रही थी.

सुरेश के पास लगभग 8 एकड़ खेती की जमीन थी, जो उन्होंने ठेके पर बुआई के लिए किसी को दे रखी थी. क्योंकि दोनों बच्चे पढ़ाई में लगे थे और वह खुद अपनी पुलिस की नौकरी में व्यस्त थे. ऐसे में जमीन की देखभाल करने वाला कोई नहीं था.

किरन और रोहतास की मुलाकात सन 2012 में हुई थी. किरन आईटीआई के लिए बस से रोज आदमपुर जाया करती थी. आदमपुर सीसवान निवासी रोहतास पेशे से ड्राइवर था और उन दिनों आदमपुर-हिसार मार्ग पर बस चलाया करता था. किरन अकसर उस की बस में ही आयाजाया करती थी.

इसी दौरान दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए और दोनों के दिलों के बीच प्यार के अंकुर फूटे थे. दोनों की आपस में बातें होने लगी थीं. आपसी विचार मिलने के कारण उन्हें एकदूजे से प्यार हो गया था और जल्दी ही दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा था.

नौबत यहां तक पहुंच गई कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया. पर समस्या यह थी कि दोनों अलगअलग बिरादरी के थे. रोहतास सैनी था और किरन जाट परिवार से थी. ऐसे में शादी के बारे में सोचना तक उन दोनों के लिए किसी अपराध से कम नहीं था. पर वे शादी करने की ठान चुके थे.

काफी सोचविचार के बाद दोनों ने तय किया कि अपनेअपने परिवारों को बताए बिना वे गुपचुप तरीके से शादी कर लेंगे. फिर 8 अगस्त, 2015 को रोहतास और किरन ने सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट, हिसार की सहायता से शादी कर ली.

किरन ने कर ली प्रेमी रोहतास से शादी

अपने परिवार वालों की आदत देखते हुए किरन ने शादी के समय ही सनातन धर्म मंदिर के शादी वाले रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करते समय यह भी लिख दिया था, ‘शादी के बाद मैं अपने मातापिता के घर जाऊंगी. अगर लगातार 5-7 दिनों तक मेरा मेरे पति के साथ संपर्क न हो पाए तो यह समझा जाए कि मेरी जान को खतरा है. मेरे घर वाले मेरी हत्या भी कर सकते हैं. मुझे वहां से निकाल लिया जाए. इस में मेरे पति का कोई दोष नहीं होगा.’

मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने अपनी शादी कोर्ट से भी रजिस्टर्ड करवा ली. फिर वह दोनों अपने अपने घर चले गए. दरअसल किरन की मां को कैंसर था. वह कोई सदमा बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं थीं.

ऐसे में उन्हें गैरजाति के युवक के साथ शादी करने वाली बात बताना तो कतई उचित नहीं था, इसलिए दोनों ने मिल कर यह योजना बनाई थी कि इस शादी को तब तक गुप्त रखा जाएगा, जब तक किरन के मातापिता इस बात को ले कर राजी नहीं हो जाते.

योजना यह भी थी कि किरन इस बीच मां के स्वस्थ होने पर अपने मातापिता को पूरी बात बता कर इस शादी के लिए तैयार कर लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका था. पतिपत्नी होते हुए भी लगभग 18 महीने तक किरन और रोहतास एकदूसरे से अलग अपनेअपने घरों में रहे.

उन दोनों के बीच केवल फोन पर ही रोज बातें हुआ करती थीं. वे दोनों इसी बात से ही खुश और संतुष्ट थे. इस बीच किरन आदमपुर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आगामी पढ़ाई के लिए जयपुर चली गई थी.

रोहतास ने भी वह बस छोड़ कर गुड़गांव में कैब चलानी शुरू कर दी. सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन किरन की मां को उस पर शक हो गया. किरन घंटों तक फोन पर रोहतास से बातें किया करती थी. यह बात उस ने अपने बेटे अशोक को बताते हुए कहा था कि न जाने किरन घंटों तक फोन पर किस से बातें करती है.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 1

8 मार्च, 2019 की रात के करीब साढ़े 8 बजे का वक्त था. बाहरी दिल्ली के निहाल विहार थाने के 2 सिपाही  मोटरसाइकिल पर गश्त करते हुए सैय्यद नांगलोई के पास बहने वाले नाले के किनारे बनी सड़क से गुजर रहे थे. तभी एक राहगीर दौड़ते हुए आ कर उन की बाइक के सामने खड़ा हो गया. मजबूरी में पुलिस वालों को मोटरसाइकिल रोकनी पड़ी.

बाइक पर पीछे बैठा सिपाही झुंझलाते हुए नीचे उतरा और उस राहगीर को झिड़कते हुए बोला,  ‘‘ओ भाई, क्या इरादा है मरना चाहता है क्या, जो इस तरह भाग कर बाइक के सामने आ गया.’’

‘‘नहीं सर, न तो मैं मरना चाहता हूं और न ही ऐसा कोई इरादा है. बस आप को एक सूचना देनी थी इसलिए आप लोगों को देख कर दौड़ता चला आया.’’ राहगीर ने अपनी उखड़ी सांस को नियंत्रित करते हुए सफाई दी.

राहगीर की बात सुन कर सिपाही का गुस्सा शांत हो गया. उस ने जिज्ञासा दिखाते हुए राहगीर से पूछा, ‘‘सूचना…कैसी सूचना… क्या हुआ?’’

‘‘सर, उस नाले में एक बड़ा सा सूटकेस पड़ा है. ऐसा लगता है कि उस में कोई संदिग्ध चीज है.’’ राहगीर ने कहा.

उस की बात सुन कर दोनों सिपाही बाइक को वहीं खड़ी कर के राहगीर के साथ उस जगह पहुंचे, जहां नाले में सूटकेस तैर रहा था.

दोनों सिपाहियों ने देखा, एक लाल रंग का सूटकेस नाले के दूसरे किनारे पर तैर रहा था. लेकिन वह इलाका उन के थाना क्षेत्र में नहीं आता था. वह थाना पश्चिम विहार (वेस्ट) के क्षेत्र में था, इसलिए कांस्टेबल ने उसी समय फोन कर के पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने को सूचना दे दी.

सूचना चूंकि पुलिस की तरफ से मिली थी, इसलिए खबर मिलते ही एसएचओ मुकेश कुमार, इंसपेक्टर (एटीओ) मनोज भाटिया के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सूटकेस को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया तो उस में एक महिला का सड़ा गला शव मिला. उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के अलावा अपने उच्चाधिकारियों को भी लाश मिलने की सूचना दे दी.

कुछ ही देर में क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई. टीम ने लाश को सूटकेस से बाहर निकलवा कर जांच शुरू कर दी. वह शव किसी अधेड़ उम्र की महिला का था, जिस का मुंह काफी सूजा हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे उस शव को वहां पड़े कई दिन गुजर चुके हों, क्योंकि शव पानी में पड़े रहने के कारण काफी सड़ चुका था.

महिला के शव पर औरेंज कलर का कुरता व ब्राउन रंग की सलवार थी. वह जुराब पहने हुए थी, मगर पांव में चप्पल नहीं थीं. उस की बाजू में हरे रंग के कपड़े में एक ताबीज बंधा था और गले में रुद्राक्ष की माला थी. उसी दौरान एडीशनल डीसीपी राजेंद्र सागर और एसीपी विनय माथुर भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया.

जिस तरह से अधेड़ महिला का शव मिला था, उसे देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कहीं और की गई होगी और बाद में उस के शव को यहां ला कर डाला गया होगा.

फिलहाल सब से बड़ी चुनौती यह थी कि महिला की पहचान कैसे हो. क्योंकि वहां ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से महिला की शिनाख्त हो सके. पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने के अधिकारियों ने अपने स्टाफ को आसपास की कालोनियों में भेज कर वहां रहने वाले कुछ लोगों को बुलाया ताकि महिला के शव की पहचान हो सके. लेकिन इस पूरी कवायद में कोई सफलता नहीं मिली. लिहाजा पुलिस ने शव के फोटोग्राफ्स खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए संजय गांधी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने लौट कर एसएचओ मुकेश कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंसं की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच का जिम्मा इंसपेक्टर मनोज भाटिया को सौंप दिया.

मनोज भाटिया ने मुकदमे की जांच मिलने के बाद उसी रात सब से पहले यह पता लगाने का काम शुरू कर दिया कि आखिर मृतका है कौन. उन्हें शक था कि अगर उस महिला का शव यहां पड़ा है तो हो सकता है कि उस के परिवार वालों ने उस की गुमशुदगी दर्ज करवाई हो. लिहाजा उन्होंने अपने स्टाफ के साथ जिपनेट नेटवर्क को खंगालना शुरू कर दिया. दरअसल, इस नेटवर्क पर दिल्ली ही नहीं, दूसरे राज्यों में मिली लावारिस लाशों और गुमशुदा लोगों की जानकारी दर्ज रहती है.

करीब 3 घंटे की कवायद के बाद इंसपेक्टर मनोज भाटिया को गुमशुदगी के एक ऐसे मामले की रिपोर्ट मिल गई, जिस में दर्ज हुई महिला की तसवीर उस महिला की लाश से काफी हद तक मिलती थी. लापता महिला का नाम जागीर कौर (47) था. गुमशुदगी की ये सूचना निहाल विहार थाने में लिखी गई थी.

जागीर कौर निहाल विहार थाने के दीपक विहार, निलोठी एक्सटेंशन के मकान नंबर 22 में रहती थी. सूचना जागीर कौर की बेटी हरजिंदर कौर ने दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट से यह भी पता चला कि जागीर कौर के पति गुरमीत सिंह (52) भी लापता हैं.

रहस्य खुलने लगा

इंसपेक्टर मनोज भाटिया ने निहाल विहार थाने में फोन कर के जागीर कौर व गुरमीत सिंह की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराने वाली हरजिंदर कौर का फोन नंबर हासिल कर लिया. मनोज भाटिया ने रात में ही हरजिंदर कौर को फोन कर के सैय्यद नांगलोई के नाले से अधेड़ महिला की लाश बरामद करने की जानकारी दी. उन्होंने शव की पहचान करने के लिए हरजिंदर कौर से संजय गांधी अस्पताल पहुंचने को कहा.

अगले एक घंटे के भीतर हरजिंदर कौर संजय गांधी अस्पताल पहुंच गई. तब तक इंसपेक्टर मनोज भाटिया भी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब हरजिंदर कौर को महिला का शव दिखाया तो उस ने देखते ही शव की पहचान अपनी मां जागीर कौर के रूप में कर दी.

शव की पहचान होते ही मनोज भाटिया ने राहत की सांस ली. अब उन्हें लगने लगा कि हत्या की गुत्थी जल्द ही सुलझ जाएगी. उसी वक्त हरजिंदर कौर ने कहा कि अगर उस की मां का शव नाले में मिला है तो उस के पिता का शव भी वहां आसपास ही मिलना चाहिए क्योंकि उसे पूरा शक है कि उन की भी हत्या हो चुकी होगी.

इस के बाद इंसपेक्टर मनोज भाटिया ने थाने की एक और टीम को तत्काल सैय्यद नांगलोई नाले की तरफ रवाना किया और खुद भी हरजिंदर कौर को ले कर उसी तरफ रवाना हो गए.

पुलिस टीम ने रात में ही नाले के उसी एरिया में सर्च औपरेशन शुरू किया, जिस का परिणाम ये निकला कि 2 घंटे बाद नाले में रैक्सीन का एक और काला सूटकेस बरामद हुआ. उस सूटकेस को खुलवाया तो उस में भी एक शव बरामद हुआ. ये शव एक सिख का था और बुरी तरह सड़ चुका था.

लेकिन उस के शरीर पर लिबास व पहनावे को देख कर हरजिंदर कौर ने पहचान लिया. यह शव उस के पिता गुरमीत सिंह का ही था. नाले से एक और शव की सूचना मिलने के बाद तमाम बड़े अधिकारी एक बार फिर घटनास्थल पर पहुंचे और फोरैंसिक, क्राइम टीम को फिर से मौके पर बुलाया गया.

शव की शिनाख्त, जांचपड़ताल के बाद गुरमीत सिंह के शव को भी पोस्टमार्टम के लिए संजय गांधी अस्पताल भेज दिया गया. तब तक 9 मार्च की सुबह के भोर का उजाला हो गया था. दूसरा शव मिलने के बाद पुलिस ने हत्या का एक और मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की जांच का जिम्मा थाने की महिला इंसपेक्टर इनवैस्टीगेशन डोमिका पूर्ति को सौंपा गया.

हरजिंदर कौर ने इस शव की शिनाख्त अपने पिता गुरमीत सिंह के रूप में की, इसलिए जब इंसपेक्टर डोमिका पूर्ति ने हरजिंदर कौर से पूछताछ की तो उस ने साफ आरोप लगाया कि उस के मातापिता की हत्या उस की बड़ी बहन दविंदर कौर उर्फ सोनिया ने अपने प्रेमी राजकुमार दीक्षित उर्फ विक्रम उर्फ प्रिंस दीक्षित के साथ मिल कर की होगी. उस ने यह भी बताया कि उस की बहन सोनिया और प्रिंस के बीच पिछले एक साल से लिवइन रिलेशन चले आ रहे हैं.

पूछताछ में हरजिंदर कौर ने यह भी बताया कि सोनिया मातापिता के साथ ही रहती थी. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम तत्काल उस ठिकाने पर रवाना कर दी गई, जहां सोनिया रहती थी. मगर वहां ताला लटका मिला. साफ हो गया कि इस वारदात को सोनिया ने ही अंजाम दिया है, क्योंकि वह लापता थी.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 1

नितिन चाय पी कर कप रखने जा रहा था कि उस के मामा के बेटे गिरीश का फोन आ गया. उस ने कप मेज पर रख कर फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से गिरीश ने कहा, ‘‘मैं अपनी इमारत के नीचे खड़ा हूं. बहुत जरूरी काम है. तुम जल्दी से आ जाओ.’’

आने वाली आवाज से गिरीश काफी परेशान लग रहा था, इसलिए नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाई, तुम कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘तुम आ कर मिलो तो… आने पर ही बता पाऊंगा कि परेशानी क्या है?’’ गिरीश ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं 10 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

‘‘भाई, जल्दी आ,’’ कह कर गिरीश ने फोन काट दिया.

नितिन कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि गिरीश इतना परेशान क्यों था? उसे जल्दी से जल्दी आने को कहा था. इस के पहले उस ने न कभी इस तरह बात की थी और न इस तरह बुलाया था. इसलिए जल्दी से तैयार हो कर नितिन नीचे आया और आटो पकड़ कर अपने ममेरे भाई गिरीश के घर की ओर रवाना हो गया. गिरीश सचमुच इमारत के नीचे खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. नितिन के पहुंचते ही वह पास आया और उसी आटो से उस के साथ भायंदर मौल की ओर चल पड़ा.

मौल से गिरीश ने तेज धार वाले 2 बड़ेबड़े चाकू, प्लास्टिक के बड़ेबड़े 2 बैग, एक बड़ी बोतल फिनाइल, टेप और पैकिंग का सामान खरीदा तो नितिन परेशान हो उठा. उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘इन सब चीजों की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘आज मारपीट करते समय मधुमती की मौत हो गई है. उसी की लाश को ठिकाने लगाना है,’’ गिरीश ने कहा, ‘‘इस काम में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’

गिरीश पोटे ने लाश ठिकाने लगाने में मदद मांगी तो नितिन के होश उड़ गए. क्योंकि उसे पता था कि मामला निश्चित पुलिस तक पहुंचेगा, तब पकड़े जाने पर उसे भी जेल जाना पड़ेगा. लेकिन उसे गिरीश की बात पर विश्वास भी नहीं हो रहा था, क्योंकि गिरीश जब भी नशे में होता था, अकसर इसी तरह की ऊटपटांग बातें करता रहता था.

इस के बावजूद गिरीश ने जो सामान मौल से खरीदा था, उसे देख कर नितिन को उस की नीयत ठीक नहीं लगी. वह जिस काम में मदद मांग रहा था, वह नितिन के वश का नहीं था. इसलिए मौल में भीड़ का फायदा उठा कर वह भाग निकला.

बाहर आ कर उस ने मधुमती को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. उस ने न जाने कितनी बार मधुमती का नंबर मिला डाला. जब मधुमती का फोन स्विच औफ ही बताता रहा तो वह घबरा गया.

काफी प्रयास के बाद भी मधुमती से संपर्क नहीं हो सका तो नितिन ने गिरीश के पिता यानी अपने मामा श्रीरंग पोटे को फोन किया. उन्हें पूरी बात बता कर जब उस ने अपनी आशंका बताई तो श्रीरंग पोटे की हालत खराब हो गई. उन का बेटा गिरीश ऐसा भी कुछ कर सकता है, इस बात की उन्हें जरा भी आशंका नहीं थी.

लेकिन नितिन ने जो बताया था, उसे भी एकदम से नकारा नहीं जा सकता था. वह तुरंत भायंदर के लिए निकल पड़े. भायंदर पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लगा. वह गिरीश के फ्लैट पर पहुंचे तो फ्लैट अंदर से बंद था. बारबार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन का कलेजा मुंह को आ गया. वह अपना सिर थाम कर बैठ गए.

श्रीरंग को नितिन की आशंका सच नजर आने लगी. उन का मन किसी अनहोनी से कांप उठा. इस की वजह यह थी कि उन दिनों गिरीश और मधुमती का रिश्ता काफी नाजुक मोड़ से गुजर रहा था. दोनों के बीच इतना अधिक तनाव था कि अकसर लड़ाईझगड़े होते रहते थे. कभीकभी नौबत मारपीट तक पहुंच जाती थी. ऐसे में नितिन ने जो बताया था, वैसा होना असंभव नहीं था.

लाख प्रयास के बाद भी जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो श्रीरंग पोटे नितिन को साथ ले कर मुंबई से सटे जनपद थाना के उपनगर भायंदर के थाना नवाघर जा पहुंचे. उस समय ड्यूटी पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर थे. उन्होंने श्रीरंग पोटे और नितिन को बैठा कर आने की वजह पूछी तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने उन के सामने अपनी आशंका व्यक्त कर दी.

किसी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने दोनों की आशंका को गंभीरता से लिया और सच्चाई का पता लगाने के लिए तत्काल हेडकांस्टेबल मोहन परकाले, आनंद मिक्कारे को ले कर गिरीश के फ्लैट पर जा पहुंचे. फ्लैट अभी भी उसी तरह बंद था.

पुलिस ने भी फ्लैट को खुलवाने की कोशिश की. लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो आसपड़ोस के कुछ लोगों को बुला कर फ्लैट का दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा खुला तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने जो आशंका व्यक्त की थी, वह सच निकली. फ्लैट के अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. ममला गंभीर था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने इस की सूचना तुरंत सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हीं के साथ थाना जनपद के ज्वाइंट सीपी अनिल कुंभारे और एसीपी संग्राम सिंह भी पहुंच गए थे. फ्लैट के अंदर का मंजर बड़ा ही भयानक था. कमरे में रखी वाशिंग मशीन के ऊपर खून से सने वे दोनों चाकू रखे थे, जिन्हें गिरीश ने नितिन के समने भयंदर मौल से खरीदे थे.

गिरीश पोटे ने उन्हीं चाकुओं से अपनी पत्नी मधुमती के शरीर के कई टुकड़े किए थे. उन से बदबू न आए, इसलिए उन्हें उठा कर फ्रिज में रख दिया था. कुछ टुकड़ों को उस ने पार्सल की तररह पैक कर के बेडरूम में पड़े पलंग के नीचे छिपा दिया था. कमरे के फर्श को फिनाइल डाल कर साफ करने की कोशिश की गई थी.

एक ओर जहां पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण और मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले के निर्देश पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर हेडकांस्टेबल मोहन परकाले और आनंद मिल्लारे के साथ गिरीश पोटे की गिरफ्तारी की कोशिश में लग गए थे.

इस के लिए वह गिरीश की बुआ के बेटे नितिन की मदद ले रहे थे. नितिन की ही मदद से असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश सिवरकर ने गिरीश को रात 11 बजे भायंदर के शेवारे पार्क से गिरफ्तार कर लिया. यह 3 दिसंबर, 2013 की बात थी.

गिरीश के थाने पहुंचने तक सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए थे. अब तक रात के लगभग 12 बज चुके थे. इसलिए पुलिस ने गिरीश से पूछताछ  करने के बजाय लौकअप में बंद कर दिया. अगले दिन उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

भाई के बसेरे में सेंध

आशिक ससुर की कातिल बहू

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका

पूत बना कपूत

मोनिका को नींद सताने लगी थी. रात काफी बीत चुकी थी. गुनगुनी सर्दी की शुरुआत थी. बाहों में सिहरन महसूस होने पर उस ने अपने कमरे में इधरउधर चहलकदमी करते पति से कहा, ”हरप्रीत वार्डरोब से चादर निकाल देना, हलकी हलकी ठंड लग रही है.’’

”अरे, खुद उठ कर निकाल लो न अपनी पसंद का! कौन सा चाहिए तुम्हें?’’ हरप्रीत बोला.

”तुम वहीं पर तो हो, कोई भी दे दो न यार! अब चादर में पसंद नापसंद की क्या बात है?’’ मोनिका बोली और बुदबुदाने लगी, ”पता नहीं क्या हो गया है इसे, हर बात को काटता रहता है.’’

”फिर बोली कुछ..? अपना काम खुद क्यों नहीं करती?’’ नाराजगी के साथ हरप्रीत बोला.

”अरे, तुम नाराज क्यों हो रहे हो, चादर ही तो मांगी है, कोई प्रौपर्टी नहीं मांग रही.’’

”प्रौपर्टी की बात कहां से आ गई अब? देखो, मेरा दिमाग खुद खराब चल रहा है, परेशान हूं… ऊपर से तुम ने प्रौपर्टी की बात छेड़ दी.’’ हरप्रीत बोला.

”चल, छोड़ यार! चादर मैं खुद ही निकाल लेती हूं. अब तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, मैं क्या जानूं?’’ मोनिका सांस खींचती हुई बोली. तब तक हरप्रीत कमरे से बाहर जाने लगा.

”बच्चे सो चुके हैं…रात भी अधिक हो रही है, मैं समझती हूं तुम्हारी बेचैनी. मम्मी और पापाजी से जो भी बात करनी है, कल दिन में आराम से कर लेना, अभी इतना बेचैन होने की क्या जरूरत है?’’ बेड पर अधलेटी मोनिका पास लेटे बच्चे का हाथ अपनी कमर से हटाती हुई बोली.

उस की पूरी बात सुने बगैर हरप्रीत कमरे से बाहर निकल गया. इसी बीच रसोई में बरतनों के जमीन पर गिरने की आवाजें आने लगीं.

मोनिका ने हरप्रीत को आवाज लगाई, ”हरप्रीत, जा कर देखो, लगता है तुम्हारे मेंटल भाई पर फिर दौरा पड़ा है. रसोई में बरतन फेंक रहा है. मैं कैसे जा सकती हूं रात को जेठ के सामने. मां को जा कर बोल दो.’’

हरप्रीत ने उस की बात सुनी या नहीं, मोनिका को नहीं मालूम, लेकिन कुछ समय में मोनिका को सास की आवाज सुनाई दी. वह समझाती हुई बोल रही थी, ”देख बेटा, रात को हंगामा नहीं करते, तुझे जो चाहिए कल सुबह पापाजी से बोलना. जा, अभी जा कर सो जा.’’

दरअसल, हरप्रीत सिंह से 2 साल बड़ा भाई गगनदीप सिंह मानसिक तौर पर बीमार था. उस पर बीचबीच में दौरे पड़ते थे. वह जब भी परेशान होता, सीधा रसोई में जा कर गुस्से से बरतनों को इधरउधर फेंकने लगता था. घर में पड़ा पूरा दूध पी जाता था या सब्जियां खा जाता था.

उस की मेंटल प्रौब्लम के बारे में नातेरिश्तेदार और मोहल्ले वाले, सभी जानते थे. इस कारण उस की शादी नहीं हुई थी. जबकि छोटा भाई हरप्रीत शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. उस का अपना एक छोटा से परिवार था.

पंजाब के जालंधर शहर में लांबड़ा थाने के अंतर्गत टावर इनक्लेव में 58 वर्षीय जगबीर सिंह 2 साल पहले ही परिवार समेत शिफ्ट हुए थे, वहीं 10 मरले में छोटा मकान बनाया था और परिवार के साथ रह रहे थे.

वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते और उन का बड़ा बेटा 32 साल का गगनदीप सिंह घर पर ही रहता था. उस की मानसिक हालत ठीक नहीं होने के कारण वह कुछ नहीं करता था. जबकि छोटा बेटा हरप्रीत सिंह शादीशुदा था.

हरप्रीत पर भी अपने परिवार की जिम्मेदारियां आ चुकी थीं. उस के जिम्मे कोई ठोस काम नहीं था, जिस से परिवार की अच्छी परवरिश कर सके. इस कारण पत्नी से हमेशा तकरार होती रहती थी.

उस के सामने दूसरी समस्या भाई के पागलपन को ले कर भी थी. उस के खर्चे भी थे. इस बात पर उस की पिता के साथ भी तनातनी होती रहती थी. वह कुछ अपना काम करना चाहता था. इसलिए उसे पूंजी की जरूरत थी.

हरप्रीत चाहता था कि पिता जगबीर सिंह और मां अमृतपाल कौर मकान उस के नाम कर दें, ताकि वह कोई अपना कामधंधा कर सके, किंतु मातापिता मकान उस के नाम पर लिखने के लिए राजी नहीं हो रहे थे.

कुछ समय बाद जब घर में शोरगुल बंद हुआ, तब मोनिका ने हरप्रीत को आवाज दी. हरप्रीत आ कर कमरे में सिर पकड़ कर बैठ गया. मोनिका नाराजगी के अंदाज में बोली, ”यह सब रोजरोज की बात पसंद नहीं है. जल्द कुछ करो, वरना मैं अब यहां नहीं रहने वाली.’’

”अब मैं इस हालत में क्या कर सकता हूं, भाई को ले क र सभी परेशान हैं.’’ हरप्रीत बोला.

”तुम कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हो. मेरा तो इस घर में अब दम घुटने लगा है.’’ मोनिका शिकायती लहजे में बोली.

”क्यों, ऐसी भी क्या आफत आ गई है?’’ हरप्रीत बोला.

”तुम्हें क्या पता मैं यहां कितना डरडर कर रहती हूं, जब तुम घर में नहीं होते हो.’’ मोनिका बोली.

”डर! किस बात का?’’ हरप्रीत ने सवाल किया.

”डर तुम्हारे मेंटल भाई से! और क्या?’’ मोनिका चिढ़ती हुई बोली.

”क्यों, क्या किया उस ने? कोई बदतमीजी की क्या?’’

”हमेशा घूरता रहता है. उस की नजर गंदी है. जब भी सामने आता है, मैं डर जाती हूं,’’ मोनिका बोली.

”अच्छा, यह बात है. अभी पिताजी से बात करता हूं.’’ हरप्रीत बोला.

”पिता से क्या बात करोगे, वे कम हैं क्या? उन की भी वैसी ही आदत है. किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कई बार कोशिश कर चुके हैं.’’ मोनिका बिफरती हुई बोली.

हरप्रीत यह सुन कर आश्चर्य से बोला, ”यह तुम ने पहले तो कभी नहीं बताया.’’

”क्या करती बता कर, दोनों मर्द हैं, एक कुंवारा, वासना का भूखा और ससुरजी किसी वासना के प्यासे से कम हैं. हमेशा पानी मांगते हैं और गिलास पकड़ने के बहाने हाथ सहला देते हैं. एक दिन तो उन्होंने हद ही कर दी थी, रसोई जाते समय पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया था. हाथ पीठ तक ले जाने लगे थे.’’ मोनिका अब रुआंसी हो गई थी.

”अच्छा! तो घर में यह सब चल रहा है और मुझे कुछ पता नहीं. अभी मां से भी बात करता हूं.’’ हरप्रीत अब गुस्से में आ चुका था.

”नहींनहीं, मां से यह सब कुछ नहीं कहो, उन लोगों से कुछ कहना है तो मकान अपने नाम करवाने की बात करो.’’ मोनिका बोली.

”उस के लिए मैं कोशिश में हूं, मौका देख कर फिर बात करूंगा. आज फिर भाई पर दौरा पड़ गया है.’’ हरप्रीत बोला.

”वह सब मैं कुछ नहीं जानती हूं. मैं अब यहां एक पल रहने वाली नहीं हूं…’’ मोनिका बोली.

”थोड़ा तो सब्र करो.’’ हरप्रीत बोला.

”नहींनहीं, मुझे कुछ नहीं सुनना है. मैं कल सुबह ही बच्चों को ले कर मायके चली जाऊंगी.’’ मोनिका नाराजगी दिखाती हुई बोली और वार्डरोब से अपने कपड़े निकालने लगी.

उस रात हरप्रीत की मोनिका के साथ काफी बहस हो गई. हालांकि उन के बीच सिर्फ तूतूमैंमैं हो कर ही रह गई, लेकिन इस का गुस्सा हरप्रीत के जेहन में लबालब भर चुका था.

सुबह होते ही मोनिका अपने बच्चों को ले कर मायके चली गई. हरप्रीत की नींद खुली तब उस ने मोनिका और बच्चों को घर में नहीं पा कर समझ गया कि उस ने बीती रात जो कहा, वह कर दिया.

गुरुवार तारीख 19 अक्तूबर, 2023 का दिन था. हरप्रीत ने भारी मन से दिनचर्या की शुरुआत की. खुद चाय बनाई और रसोई में मोनिका उस के लिए जो कुछ पका कर गई थी, उसे खाया और सीधा अपने पिता के पास जा पहुंचा.

जाते ही मकान अपने नाम करने का पुराना राग छेड़ दिया. इसे ले कर उन के बीच बहस होने लगी. पिता ने साफ लहजे में उन के जिंदा रहते मकान किसी के नाम करने से इनकार कर दिया. मां ने भी हां में हां मिलाई. उन के बीच काफी समय तक बहस होती रही. बहस का कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा था.

हरप्रीत बीती रात से ही गुस्से से भरा हुआ था. मन बेचैन था. घर का माहौल तनाव से भरा हुआ था. अचानक उसे क्या सूझी, 19 अक्तूबर को दोपहर करीब 2 बजे हरप्रीत तमतमाया हुआ पिता की दोनाली लाइसेंसी बंदूक उठा लाया और सीधे पिता पर तान दी. मकान अपने नाम न लिखने पर अंजाम बुरा होने की धमकी दी.

अचानक हरप्रीत के इस तेवर को देख कर उस की मां तुरंत बंदूक के सामने आ गई. उसे डांटते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत पर गुस्से का उबाल ले चुका था. उस ने बंदूक का ट्रिगर दबा दिया. ‘धांय’ की आवाज के साथ गोली उस की मां को जा लगी. वह घायल हो कर वहीं जमीन पर गिर गई.

उस की हालत देख कर पिता मां को संभालने के लिए उस की ओर मुड़े, लेकिन तब तक हरप्रीत ने दोनाली की दूसरी गोली दाग दी. उस से पिता भी जख्मी हो गए.

गोलियों की आवाज सुन कर हरप्रीत का बड़ा भाई गगनदीप दौड़ता हुआ वहां आ गया. हरप्रीत तब तक आक्रामक बन चुका था, जबकि जख्मी मांबाप कराहने लगे थे. हरप्रीत उन के कराहने पर और आक्रामक बन गया. उस ने दनादन दोनाली में गोलियां लोड कर घायल मांबाप पर दोबारा चला दी.

उस के भाई ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत ने बंदूक में गोली भरी और भाई पर दाग दी. भाई को भी गोली लगी और वह वहीं ढेर हो गया.

बापबेटे के झगड़े में कौन मरा और कौन बचा, इस की परवाह किए बगैर हरप्रीत ने तुरंत अपने बचाव की योजना बना डाली. हत्या की घटना को दुर्घटना में बदलने के लिए वह रसोई में घुसा. गैस का चूल्हा औन कर सिलेंडर खोल दिया. चुपचाप मकान में बाहर से ताला लगा कर स्कूटी से फरार हो गया.

उसी दिन अंधेरा होने के काफी समय बाद गोलियों की आवाज सुनते ही पड़ोसी अपने घर से निकल आए. वह जगबीर सिंह के घर की तरफ गए, क्योंकि आवाज उधर से ही आई थी.

उसी समय जगबीर सिंह के घर में सन्नाटा और अंधेरा देख कर किसी ने जालंधर (ग्रामीण) के लांबड़ा थाने में इस वारदात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसएचओ रमन कुमार मौके पर पहुंच गए. जब उन्होंने वहां 3 लाशें देखीं तो तुरंत सूचना एसपी (ग्रामीण) मुखविंदर सिंह भुल्लर और डीएसपी (करतारपुर) बलवीर सिंह को दे दी. दोनों अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

मौके पर घर में 3 शव खून से लथपथ पड़े हुए थे. पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी. काररवाई पूरी कर के तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगली काररवाई हत्यारे के गिरफ्तारी की थी.

पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि जगबीर सिंह का बेटा हरप्रीत लापता है. पुलिस ने उस की तलाशी के लिए पूरे शहर में नाकेबंदी करवा दी. पड़ोसियों ने बताया उस की बीवी और 2 बच्चों को सुबह ही सामान ले कर घर से जाते देखा गया है.

पुलिस ट्रिपल मर्डर को ले कर छानबीन कर रही थी. उसी रात हरप्रीत आत्मसमर्पण करने के लिए थाने जा रहा था, तभी रास्ते में ही पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाने ले जाया गया, जहां उस ने आत्मसमर्पण कर दिया और वारदात की सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. साथ ही उस ने हत्या में इस्तेमाल  लाइसेंसी बंदूक भी पुलिस को सौंप दी. यह जघन्य वारदात करने का कारण उस ने घरेलू झगड़ा और मकान का विवाद बताया.

जांच में पुलिस के सामने हत्या से संबंधित कई तथ्य सामने आए. पड़ोसियों ने बताया कि आरोपी हरप्रीत सिंह अकसर परिवार में झगड़ा करता रहता था. वारदात के 2 दिन पहले भी दुकान से 2 हजार रुपए का सामान उधार लेने को ले कर परिवार के साथ बहस हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और वारदात की जांच करने वाले डीएसपी बलजीत सिंह के अनुसार, घटना के दौरान कुल 7 राउंड गोलियां चली थीं. पिता जगबीर सिंह को 5 गोलियां और मां अमृतपाल कौर को एक गोली और भाई गगनदीप सिंह को एक गोली गोली लगी थी. सभी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी.

हरप्रीत ने पुलिस को बताया कि उसे इस वारदात को ले कर उसे जरा भी मलाल नहीं है. वह हत्याकांड को अंजाम देने के बाद क्यूरा मौल चला गया था. वहीं उस ने ‘फुकरे’ फिल्म देखी और आत्मसमर्पण के लिए लौट रहा था, तभी पकड़ लिया गया.

इतनी बड़ी घटना के बारे में उस ने चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि उस का पिता पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता था, जिस के बारे में उसे मालूम हो गया था. इस बात की जानकारी उस के पिता को भी हो गई थी. इस जानकारी के बाद से ही वह अपने परिवार के साथ नहीं रहना चाहता था और अलग रहने के लिए कह रहा था.

उस ने बताया कि उस की मां का भी कहीं अफेयर चल रहा था, जिस की रिकौर्डिंग उस के पास है. उस के भाई की भी उस की पत्नी पर गलत निगाह रहती थी. इसलिए उस ने परिवार के सदस्यों से घर की संपत्ति में से उस का हिस्सा देने के लिए कहा था.

उस ने कहा कि पहले तो घर वाले उन की बात से सहमत थे, लेकिन बाद में वे कहने लगे कि अगर वह घर छोड़ देगा तो उन का खयाल कौन रखेगा. इसी बात को ले कर हरप्रीत की घर वालों से बहस हो गई.

हरप्रीत के बयानों के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. फिर कोर्ट में पेश करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आगे की जांच जारी थी.

प्रेमी की खातिर : पति को दी मौत

मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के अशोक नगर में स्थित त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर हिंदुस्तान भर में  प्रसिद्ध है. इस के अलावा यहां उत्पन्न होने वाले शरबती गेहूं की वजह से इस शहर की विश्व भर में पहचान है. इसी शहर में वार्ड नंबर 15 के अंतर्गत आने वाले हिरियन टपरा पठार मोहल्ला में सौरभ जैन अपने परिवार के साथ रहता था.

पेशे से सौरभ सेल्समैन का काम करता था, अत: सुबह 10 बजे खाना खा कर घर से निकलने के बाद उस का देर रात को ही घर लौटना होता था.

रिचा ने अपने अच्छे व्यवहार से अपनी सास और देवर का मन मोह लिया था. ससुराल में रिचा की सभी तारीफ करते थे, इस से रिचा बेहद ख़ुश थी, रिचा ने अपने दिल में ढेरों सपने संजोए थे. वह दुनिया की वे सब खुशियां पाना चाहती थी, जो एक लड़की चाहती है.

शादी के बाद सौरभ और रिचा बेहद खुश थे. शादी के 9 साल कब बीत गए,पता ही नहीं चला. इसी बीच रिचा एक बेटे की मां बन गई, बेटा पैदा होने के बाद घर में खुशी और बढ़ गई. रिचा का समय बच्चे के लालनपालन में व्यतीत होने लगा.

रिचा अपने जीवनसाथी के साथ ख़ुश थी, लेकिन कोरोना काल में फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दीपेश भार्गव से दोस्ती हो जाने के बाद रिचा के व्यवहार में अचानक काफी बदलाव आ गया था, जिस के चलते घर में हर समय कलह रहने लगी.

सौरभ को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि रिचा उस के और उस के घर वालों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है. ऐसी स्थिति में आखिरकार वह क्या करे. रोजरोज की किचकिच से परेशान हो कर सौरभ ने एक दिन अपनी मां को रिचा के बदले व्यवहार के बारे में बताया. मां ने बेटे को ही समझाया कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा.

समय अपनी गति से गुजरता रहा, लेकिन रिचा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. दिन प्रतिदिन पति पत्नी में कलह बढ़ती ही गई. रिचा के व्यवहार को देख कर सौरभ सोचता था कि इस से तो वह बिना शादी के ही हंसीखुशी से जीवन गुजार लेता.

27 वर्षीय रिचा जैन बालाजी धाम कालोनी में रहने वाले 35 वर्षीय सौरभ जैन की पत्नी थी. बात तकरीबन 3 साल पुरानी 2020 में कोरोना महामारी में लगे लौकडाउन के समय की है. उसी दौरान रिचा की विदिशा के भटौली निवासी दीपेश भार्गव से फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दोस्ती हो गई थी.

रिचा के कहने पर एक दिन दीपेश भार्गव रिचा से मिलने अशोक नगर आया. रिचा के बात करने के खुले लहजे और उस की खूबसूरती से वह बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ. उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए गजब के चालाक दीपेश ने खुद को एक बड़े रईस परिवार से ताल्लुक रखने वाला बताया.

उस ने अपने पिता का विदिशा में बहुत बड़ा इलेक्ट्रौनिक शोरूम होना भी बताया. दीपेश ने रिचा को अपनी बातों के जाल में फंसा कर अपना दोस्त बना लिया था. जैसेजैसे समय गुजरता गया, रिचा और दीपेश की सोच में बदलाव आता गया.

धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोस्ती और प्यार तक तो ठीक था, लेकिन दोनों के कदम मर्यादा की दीवारों को लांघ चुके थे. उन के बीच शारीरिक संबंध तक बन गए थे. हालात बिगड़ने तब शुरू हुए, जब दीपेश रिचा से मिलने उस के घर भी आने लगा और रुकने भी लगा.

अभी तक तो रिचा और दीपेश के संबंध सौरभ और उस के घर वालों से पूरी तरह छिपे हुए थे, क्योंकि रिचा ने ससुराल वालों को दीपेश को अपना मुंहबोला भाई बताया. सौरभ का बेटा भी दीपेश को मामा कहता था, अत: शुरुआत में दीपेश की खूब आवभगत हुई थी.

इसी रिश्ते की आड़ में पति की गैरमौजूदगी में मौका मिलते ही रिचा और दीपेश अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे, क्योंकि सौरभ और उस के घर वालों के मन में रिचा के प्रति अविश्वास जैसी कोई बात नहीं थी. हालांकि रिश्तों के विश्वास के मामले में सौरभ अपने ही घर में पत्नी से धोखा खा रहा था.

ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं, एक दिन सौरभ ने रिचा और दीपेश को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने रिचा को जम कर लताड़ा और उसे ऊंचनीच समझाई तो मौके की नजाकत को समझते हुए रिचा ने दीपेश से अपने रिश्ते खत्म करने की बात कह कर झूठी कसमें भी खा लीं और वादा किया कि वह आइंदा ऐसा कुछ भी नहीं करेगी, लेकिन वह उस पर लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी.

कसमें और वादे मात्र दिखावा थे, बात आईगई हो गई. उधर रिचा और दीपेश का प्यार परवान चढ़ा तो रिचा का मोह अपने पति से भंग होने लगा. इतना ही नहीं, उस ने पति के साथ बेवफाई कर डाली. रिचा ने घर से भाग कर लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला भी कर लिया था.

पति के पास वापस क्यों आई रिचा

31 मार्च 2022 को मौका मिलते ही रिचा अपने 8 वर्षीय बेटे को अपने साथ ले कर प्रेमी दीपेश के साथ ससुराल से भाग गई. तकरीबन 2 महीने तक रिचा और दीपेश लिवइन रिलेशनशिप में रहे.

एक दिन रिचा ने अपने पति सौरभ को फोन कर के कहा, ”मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है, वहीं तुम्हारा बेटा शौर्य भी तुम्हारे पास जाने की हठ करता है. उसे दीपेश के पास रहना कतई अच्छा नहीं लगता. मैं और तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास वापस लौटना चाहते हैं.’’

भोलाभाला सौरभ अपनी फरेबी पत्नी के शैतानी दिमाग में मच रही साजिश को नहीं समझ सका, बल्कि रिचा के अंदर आए इस बदलाव से वह काफी खुश हुआ. कोमल दिल के सौरभ ने पत्नी को माफ कर दिया और नए तरीके से जिंदगी शुरू करने का ख्वाब देखने लगा. वह पत्नी रिचा और बेटे शौर्य को पुन: अपने साथ रखने को तैयार हो गया.

रिचा के प्रेमी के पास से लौट कर आने के बाद सौरभ सोचता था कि सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. ठीक होने के बजाए घर में कलह बढ़ गई. रोजरोज की कलह से परेशान हो कर सौरभ रिचा के दबाव में घर वालों से नाता तोड़ कर अशोक नगर के ही हिरियन के टपरा  में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

यहां पर कुछ दिन रहने के बाद बालाजी धाम और फिर कोलुआ रोड पर रहने पहुंच गया था. यहीं पर रिचा ने अनेक बार ‘दृश्यम’ फिल्म देखने के बाद प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या की वारदात को अंजाम  देने की योजना बनाई.

इसी योजना के तहत घर वालों से नाता तोड़वाने के बाद उस के हिस्से में मिली 5 बीघा जमीन की जनवरी, 2023 में साढ़े 11 लाख रुपए में बिकवा दी. फिर पति के नाम एक ट्रैक्टर फाइनेंस कराने के बाद पति का जीवन बीमा भी करा दिया. शेष बची रकम अपने नाम करा ली.

किस तरह से दिया हत्या को अंजाम

ट्रैक्टर और जीवन बीमा पालिसी के पैसे हड़पने के लालच में रिचा ने अपने पति के घर वालों से पति का नाता तुड़वाने के साथ ही बोलचाल भी बंद करा दी थी. हालांकि सौरभ मां के बुलाने पर रिचा से छिप कर अपनी मां से मिलने घर पर आता रहता था. सौरभ का छोटा भाई विनीत भी जब तब सौरभ के दोस्तों से सौरभ के हालचाल पूछ लिया करता था.

इत्तफाक से फरवरी माह में सौरभ के हाथ में फै्रक्चर हो गया तो अपनी योजना को अंजाम देने के लिए रिचा ने अशोक नगर के ही दिनेश शर्मा की स्विफ्ट डिजायर कार भोपाल के लिए बुक की.

21 फरवरी, 2023 की सुबह रिचा अपने पति को बेहतर इलाज कराने जाने के बहाने कार ले कर अशोक नगर से पति को ले कर भोपाल के लिए निकली. सौरभ को क्या पता था कि पत्नी और उस के प्रेमी के मन में क्या चल रहा है. खतरे से अंजान सौरभ ने सहज भाव से भोपाल चलने की हामी भर दी.

जैसे ही कार विदिशा जिले के शमशाबाद स्थित कोलुआ गांव में पहुंची, रिचा ने ड्राइवर से यह कहते हुए कार रोकने को कहा कि अब हम लोगों का इरादा बदल गया है. आज सिरोंज में रुकने के बाद दूसरे वाहन से भोपाल जाएंगे, इसलिए तुम अपने पैसे ले लो और अशोक नगर वापस लौट जाओ.

पैसे ले कर ड्राइवर के जाते ही रिचा और उस का प्रेमी सौरभ को सुनसान जगह पर ले गए. फिर दोनों ने बड़ी बेरहमी से पत्थर से सौरभ का सिर कुचल कर मौत के घाट उतार दिया और उस के बाद सौरभ की लाश विदिशा जिले के शमशाबाद की एक खंती में फेंक दी.

इस के बाद वह ससुराल वालों को बिना कुछ बताए प्रेमी के साथ लंबे समय के लिए उज्जैन, अयोध्या, खाटूश्यामजी, शिरडी की तीर्थयात्रा पर निकल गई.

तीर्थयात्रा से लौट कर वह और प्रेमी के साथ सिरोंज में रहने लगी. कुछ समय बाद रिचा के मातापिता भी उस के साथ रहने लगे. रिचा ने 5 जून को बोगस पंचनामा और मृत्यु प्रमाणपत्र तक बनवा लिया. 5 महीने बाद घर वालों को सौरभ की मौत का पता उस वक्त चला, जब रिचा 10 जुलाई, 2023 को अपने बेटे शौर्य की टीसी लेने के लिए पति का मृत्यु प्रमाणपत्र ले कर उस के स्कूल पहुंची.

तब टीचर ने रिचा से बेटे की अचानक टीसी निकलने की वजह पूछी तो रिचा ने बताया कि शौर्य के पिता का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है, इस वजह से टीसी चाहिए.

सौरभ की हत्या की बात कैसे आई सामने

वह शिक्षिका सौरभ के पैतृक घर के पड़ोस में ही रहती थी. इसलिए उसे रिचा की बात पर भरोसा नहीं हुआ तो उस ने रिचा से कहा कि टीसी तो आप को कल मिल सकेगी. स्कूल से लौटने पर शिक्षिका ने सौरभ की मां को बताया कि आज सौरभ की पत्नी रिचा स्कूल आई थी. बता रही थी कि सौरभ का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है.

यह सुनते ही मां सन्न रह गई. सौरभ की मां ने किसी तरह अपने आप को संभाला और अपने छोटे बेटे विनीत को इस बारे में बताया. विनीत को भी विश्वास नहीं हुआ कि उस के भाई का निधन हो गया है. वह असलियत का पता लगाने के लिए दूसरे दिन अपने भतीजे शौर्य के  सेंट थामस स्कूल जा पहुंचा.

जैसे ही सौरभ की पत्नी रिचा बेटे की टीसी लेने स्कूल पहुंची, विनीत ने भाभी से पूछा कि भैया कहां हैं?

रिचा ने बेझिझक हो कर बताया कि उन का तो 21 फरवरी, 2023 को ही ऐक्सीडेंट में निधन हो गया. उन का वहीं पर अंतिम संस्कार कर दिया था.

भाभी के मुंह से यह सुन कर विनीत दंग रह गया. उस से ज्यादा बहस करने के बजाय विनीत ने अपने रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और सीधे अशोक नगर के एसपी अमन सिंह राठौड़ से मिलने उन के कार्यालय में जा पहुंचा.

विनीत ने उन्हें बताया, ”सर, मुझे पिछले 5 महीने से अपने बड़े भाई के बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा है. मुझे अपनी भाभी और उन के प्रेमी दीपेश भार्गव पर शक है कि दोनों ने मिल कर उन की हत्या कर दी है.’’

एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने की जिम्मेदारी कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी को सौंप दी. त्रिपाठी के नेतृत्व में एएसआई अवधेश रघुवंशी, हैडकांस्टेबल शैलेंद्र रघुवंशी तथा टीम के सदस्यों ने कड़ी से कड़ी जोड़ कर फरार रिचा और उस के प्रेमी को गंज बासौदा से गिरफ्तार कर लिया.

उन से थाने में पूछताछ की गई तो पूछताछ के दौरान रिचा और उस के प्रेमी दीपेश ने एक नहीं, कई झूठ बोले थे. उन में सब से बड़ा झूठ तो यही बोला था कि सौरभ की हत्या करने के बाद उस के शव के टुकड़े करने के बाद बालाजी कालोनी में मकान की छत पर जला दिए थे, लेकिन पुलिस की पड़ताल के दौरान उक्त स्थान पर शव जलाए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.

फिर रिचा के प्रेमी ने बताया कि सौरभ का अंतिम संस्कार अशोक नगर के श्मशान घाट में किया था. श्मशान घाट का रिकौर्ड देखने पर यह बात भी झूठी साबित हुई, क्योंकि वहां के रजिस्टर में सौरभ का नाम दर्ज नहीं था.

कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने रिचा और दीपेश की बताई कहानी पर भरोसा न कर के विदिशा, सागर और गुना पुलिस से 21 फरवरी से 23 मार्च के बीच मिली अज्ञात लाशों के संबंध में वायरलैस पर मैसेज भेज कर जानकारी ली.

इस पर शमशाबाद पुलिस ने बताया कि 23 फरवरी को किसी युवक का शव मिला था. वह फोटो सौरभ के भाई को दिखाए तो फोटो देखते ही उस ने शव की शिनाख्त बड़े भाई सौरभ जैन के रूप में कर दी.

शव की शिनाख्त हो जाने के बाद कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने उन दोनों से फिर से पूछताछ की. इस बार सख्ती बरती तो दोनों टूट गए और उन्होंने सौरभ की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने रिचा और दीपेश के खिलाफ सौरभ की हत्या का मामला दर्ज कर दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

शातिर दिमाग रिचा और दीपेश भार्गव को उम्मीद थी कि सौरभ की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे. उधर अशोक नगर एसपी अमन सिंह राठौड़ ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.