मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 1

सुबहसुबह ही एक तीखे नैननक्श की खूबसूरत लड़की अपनी मौसी के साथ मेरे औफिस में आई. बैठने के साथ ही लड़की ने कहा, ‘‘वकील साहब, क्या कोई आदमी भी  मनहूस हो सकता है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं हो सकता है.’’ जवाब में मैं ने कहा.

‘‘क्या उस की वजह से आसपास के लोग परेशानी में पड़ जाते हैं?’’

‘‘बीबी, तुम्हारा सवाल बड़ा पेचीदा है. एक बात बताओ, क्या अच्छाई आसपास रहने वालों के लिए खुशनसीबी ला सकती है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, अच्छाई तो सब के लिए अच्छी होती है.’’ लड़की ने जवाब दिया.

मैं ने उस के जवाब की सराहना की तो उस ने आगे कहा, ‘‘वकील साहब, मेरे शौहर ने अपनी मां के कहने पर मुझे घर से निकाल दिया है और अब तलाक देना चाहते हैं. मेरी सास का कहना है कि मैं मनहूस हूं. उन्होंने मेरे सारे गहने और नकद रकम भी रख ली है.’’

‘‘बीबी, पहले आप अपने बारे में तो बताइए.’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरा नाम ताहिरा है,’’ फिर बगल में बैठी औरत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और यह मेरी मौसी फिरदौसी हैं. यही मेरी सब कुछ हैं. अगर यह न होतीं तो शायद मैं किसी कब्रिस्तान में होती.’’

‘‘क्या तुम्हारे मातापिता और भाईबहन नहीं हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं 4 भाइयों और पांच बहनों की एकलौती बहन हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘यह कैसी पहेली है?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह मेरे लिए भी एक पहेली ही है वकील साहब. बात यह है कि मेरे अब्बा ने भी 2 शादियां कीं और अम्मी ने भी 2 शादियां कीं. दरअसल मेरे अब्बा एक हादसे की वजह से अपनी पहली बीवी से बिछुड़ गए थे. मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दी तो रिश्तेदारों के कहने पर उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

‘‘उस शादी से मैं पैदा हो गई. इस के बाद अम्मीअब्बा में मनमुटाव हो गया और उसी बीच अब्बा को अपनी पहली बीवी का सुराग लग गया. उन्होंने मेरी अम्मी को तलाक दे कर पहली बीवी के साथ अपना घर आबाद कर लिया.

‘‘कुछ अरसे के बाद मेरी अम्मी ने भी दूसरी शादी कर ली. अब मेरे अब्बा को पहली बीवी से 2 बेटे और 3 बेटियां हैं. दूसरी ओर मेरी अम्मी को दूसरी शादी से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इस तरह 2 हंसतेबसते घरों की मैं एक फालतू चीज हो गई.’’ ताहिरा ने आह भरते हुए कहा.

‘‘यह तो वाकई परेशानी वाली बात है. तुम्हारे शौहर ने तुम्हें तलाक की धमकी दी है या तलाक दे दिया है?’’ मैं ने नरमी से पूछा.

‘‘अभी तलाक इसलिए नहीं दिया है, क्योंकि तलाक के बाद हके मेहर देना होगा. वह मेहर की रकम देना नहीं चाहता.’’ ताहिरा की मौसी ने कहा.

मेरे पूछने पर ताहिरा ने बताया कि मेहर की रकम 32 हजार रुपए है. उस समय यह एक अच्छीखासी रकम थी.

‘‘शौहर का नाम क्या है?’’

‘‘अजीम बुखारी.’’ ताहिरा ने बताया.

‘‘तुम कह रही थी कि तुम्हारे कुछ गहने और पैसे भी उस के पास हैं?’’

‘‘मुझे नकद और गहने नहीं चाहिए. मैं अपने शौहर के साथ रहना चाहती हूं.’’

‘‘मैं कोशिश यही करूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारी देनदारी सामने आ जाए. कुछ लोग पैसे के दबाव में सुलहसफाई कर लेते हैं.’’

‘‘मेरे गहनों की कीमत 1 लाख रुपए के आसपास होगी. इतनी ही रकम अब्बा ने उसे दहेज का सामान खरीदने के लिए दी थी. लेकिन उस ने कुछ खरीदा नहीं था.’’

‘‘शादी के कितने दिनों बाद तुम्हें मनहूस कहा गया?’’

‘‘11 दिनों बाद. फिर 21 दिनों बाद मां के कहने पर मेरे शौहर ने मुझे घर से निकाल दिया. अब इस बात को 7 महीने हो रहे हैं.’’

‘‘ऐसी क्या बात थी, जिस से सास तुम्हारे खिलाफ हो गई?’’

कुछ देर सोच कर ताहिरा ने कहा, ‘‘शादी के तीसरे दिन 80-82 साल की बीमार और कमजोर मेरे शौहर की नानी गुजर गई थीं. सातवें दिन मेरे देवर की मोटरसाइकिल खो गई. फिर 11वें दिन मेरी सास ने कहा कि यह सब मेरी वजह से हो रहा है. इस मनहूस को घर से बाहर निकालो.’’

पूरी कहानी सुन कर मैं ने अजीम बुखारी के नाम एक नोटिस भिजवा दी. नोटिस भेजने के सातवें दिन एक दुबलापतला नौजवान मेरे औफिस में आया. उस ने एक सफेद लिफाफा मेरी ओर बढ़ाया तो मैं ने उसे बिठा कर पूछा, ‘‘मसला क्या है?’’

‘‘वकील साहब,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं इस तरह की धमकियों में आ कर उस चुड़ैल को दोबारा अपने घर में नहीं रख लूंगा. उस मनहूस की वजह से मैं अपना घर नहीं बरबाद कर सकता.’’

‘‘मैं भी उस मनहूस की वजह से तुम्हारा घर बरबाद नहीं कराना चाहता’ लेकिन शौहर होने के नाते तुम्हें उस के कानूनी हकूक तो पूरे करने ही पड़ेंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘उस मनहूस की वजह से मेरी नानी मर गईं, भाई की मोटरसाइकिल गायब हो गई. मां मरतेमरते बचीं.’’

वह कुछ और कहता, मैं ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम कहां तक पढ़े हो?’’

‘‘मैं ने साइंस से इंटर किया है. अब एक फिल्म लैब में नौकरी करता हूं. रात को अपनी दुकान पर बैठता हूं, दिन में भाई बैठता है.’’

‘‘आदमी तो तुम पढ़ेलिखे हो, फिर यह अंधविश्वास तुम्हारे अंदर कहां से आ गया?’’

‘‘यह अंधविश्वास नहीं है सर, हकीकत है. वह जहां कदम रखती है, मुसीबत आ जाती है. आप को पता है, वह 13 साल में ही बेवा हो गई थी.’’

‘‘इस में अजीब क्या है, न जाने कितनी औरतें बेवा हो जाती हैं.’’

‘‘अरे साहब, मनहूस औरत अपने शौहर को खा गई थी.’’

मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कच्चा या पक्का?’’

वह चिढ़ कर बोला, ‘‘मेरी बात को आप मजाक समझ रहे हैं. अरे इस के पैदा होने से पहले ही इस के बाप ने इस की मां को छोड़ दिया, क्योंकि उसे उस की पहली गुम हुई बीवी मिल गई. उस ने खुदा का शुक्र अदा किया और इस की मां को तलाक दे दिया.

‘‘कुछ अरसे बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और यह लड़की दोनों घरों के लिए फालतू की चीज बन गई. इस की मां को लगा कि यह मनहूस है, इसलिए उस ने जल्दी से एक अच्छे घर में इस की शादी कर दी. इस ने वहां कदम रखा ही था कि दूल्हे की फूफू के बीमार होने की खबर आई.

‘‘दूल्हा कार से फूफू को देखने जा रहा था तो रास्ते में कार ऐक्सीडेंट में दूल्हे के साथ ड्राइवर भी मारा गया. फूफू ने भी अस्पताल में दम तोड़ दिया. अब आप ही बताइए, ऐसी खतरनाक औरत को मैं घर में कैसे रख सकता हूं?’’

मुझे यकीन हो गया कि यह ताहिरा को अपने घर में नहीं रखेगा, इसलिए मैं ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा, ‘‘शुक्र करो तुम बच गए. अब आगे क्या इरादा है?’’

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ें Emotional Kahani in Hindi का अगला भाग…

आशा की चाह में टूटा सपना – भाग 3

उमेश की यह हरकत आशा को बिलकुल पसंद नहीं आई. उस का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा तो उस ने उमेश को फोन कर के कहा, ‘तुम ने हमारे बारे में झूठ बोल कर राजू से मेरी जो लड़ाई कराई है, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’ अब तुम मुझ से न तो मिलने की कोशिश करना और न ही मुझे फोन  करना.

‘‘आशा, तुम मेरी बात का बेकार ही बुरा मान रही हो. मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे अलावा किसी और से न मिलो.’’ उमेश ने सफाई दी.

‘‘लेकिन राजू से शिकायत कर के तुम ने मुझे उस की नजरों में गिरा दिया. वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? शक तो वह पहले से ही करता था. अब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच गलत हूं.’’ आशा ने झल्ला कर कहा.

‘‘मैं गुस्से में था, इसलिए मुझ से गलती हो गई. अब ऐसा नहीं होगा. तुम मुझे समझने की कोशिश करो आशा.’’ उमेश ने आशा को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हारी यह पहली गलती नहीं है. इस के पहले तुम ने मेरे साथ मारपीट की थी, मैं ने उस का भी बुरा नहीं माना था. लेकिन यह जो किया, अच्छा नहीं किया. यह गलती माफ करने लायक नहीं है. मैं तुम जैसे आदमी से अब संबंध नहीं रखना चाहती.’’ आशा ने कहा.

‘‘आशा, 13 नवंबर को मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. तब बैठ कर आराम से बातें कर लेंगे.’’ उमेश ने कहा.

‘‘मैं तुम से बिलकुल नहीं मिलना चाहती, इसलिए तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’ आशा ने उसे आने से रोका.

‘‘आशा इतना भी नाराज मत होओ बस एक बार मेरी बात सुन लो, उस के बाद सब साफ हो जाएगा. बात इतनी बड़ी नहीं है, जितना तुम बना रही हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भले ही यह बात बड़ी नहीं है, लेकिन मेरे लिए यह बड़ी बात है. मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें नजरअंदाज करती आई थी, यह उसी का नतीजा है. लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया है.’’ कह कर आशा ने फोन काट दिया.

13 नवंबर को उमेश आशा से मिलने उस के घर जाने वाला था. 14 नवंबर को बाराबंकी में उस के दोस्त पंकज के यहां शादी थी. उमेश ने योजना बनाई थी कि वह आशा से मिलते हुए दोस्त के यहां शादी में चला जाएगा. 13 नवंबर की शाम को यही कोई 7 बजे उमेश ने अपने घर फोन कर के बताया भी था कि वह मलिहाबाद में अपने दोस्त से मिल कर बाराबंकी चला जाएगा. इस के बाद उमेश ने घर वालों से संपर्क नहीं किया. रात में उस के छोटे भाई सुधीर ने उसे फोन किया तो उस का फोन बंद मिला.

13 नवंबर को उमेश ने दिन में 32 बार फोन कर के आशा को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन आशा को अब उमेश से नफरत हो गई थी. उमेश ने उस के साथ जो किया था, अब वह उस से उस का बदला लेना चाहती थी.

आशा के संबंध गांव के ही रहने वाले रामनरेश, शकील और हरौनी के रहने वाले छोटे उर्फ पुत्तन से थे. आशा ने इन्हीं लोगों की मदद से उमेश से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया था. शाम को जब उमेश आशा से मिलने उस के घर पहुंचा तो आशा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है. उस ने उसे खाना खिलाया और सोने के लिए बिस्तर भी लगा दिया.

सोने से पहले उमेश ने शारीरिक संबंध की इच्छा जताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद आशा ने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी. आशा की यही अदा उमेश को अच्छी लगती थी. आशा के इस व्यवहार से उमेश को लगा कि वह मान गई है. वह उसे बांहों में लिए लिए ही निश्चिंत हो कर सो गया.

उमेश के सो जाने के बाद आशा उठी और अपने कपड़े ठीक कर के घर के बाहर आई. उस ने गांव का माहौल देखा. गांव में सन्नाटा पसर गया था. उस ने रामनरेश, शकील और छोटे को पहले से ही तैयार कर रखा था. उन के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘चलो उठो, वह सो चुका है. गांव में भी सन्नाटा पसर गया है. जल्दी से उसे खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो.’’

रामनरेश और आशा ने उमेश के पैर पकड़े तो छोटे ने हाथ पकड़ लिए. उस के बाद शकील ने गला दबा कर उसे खत्म कर दिया. छोटे महदोइया गांव का ही रहने वाला था, इसलिए उसे गांव की एकएक गली का पता था. सभी ने मिल कर उमेश की लाश को टैंपो नंबर 35 ई 8902 में डाला और ले जा कर गांव से काफी दूर नहर के किनारे फेंक दिया. शकील और छोटे टैंपो के पीछेपीछे उमेश की मोटरसाइकिल ले कर गए थे. उसे भी वहीं डाल दिया था.

लाश ले जाने से पहले आशा ने उमेश की पैंट की जेब से मोबाइल और पर्स निकाल लिया था, जिस से उस की पहचान न हो सके.

शकील और छोटे ने उमेश की लाश को नहर के किनारे इस तरह फेंका था कि देखने वालों को यही लगे कि रात में दुर्घटना की वजह से इस की मौत हुई है. अपनी इस योजना में वे सफल भी हो गए थे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पोल खुल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस की मौत गला दबाने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर के मामले की जांच शुरू की तो हत्यारों तक पहुंचने में उसे देर नहीं लगी.

आशा से पूछताछ के बाद पुलिस ने रामनरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस शकील और छोटे की तलाश कर रही थी, लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. पुलिस हत्या के इस मामले में आशा के मांबाप की भूमिका की भी जांच कर रही है.

आशा ने जो किया, उस से उमेश का ही नहीं, उस का खुद का भी परिवार छिन्नभिन्न हो गया. जिस पति से वह अपने जिन संबंधों को छिपाना चाहती थी, उमेश की हत्या के बाद पति को ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया. अब उस का क्या होगा, यह तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा.

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर?

आशा की चाह में टूटा सपना – भाग 2

इस के बाद पुलिस वालों ने शशिकला से उमेश के घर वालों का फोन नंबर ले कर उमेश की मौत की सूचना उस के घर वालों को दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही उमेश के घर वाले थाना मलिहाबाद पहुंच गए. उमेश के पिता सूबेदार कनौजिया ने उमेश की हत्या किए जाने की बात कह कर 2 लड़कों के नाम भी बताए.

लेकिन थाना मलिहाबाद पुलिस का कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. इस पर उमेश के घर वाले भड़क उठे. धीरेधीरे यह बात फैलने लगी कि जिला पंचायत सदस्य उमेश कनौजिया की हत्या हो गई है और थाना मलिहाबाद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. मलिहाबाद उन्नाव की सीमा से जुड़ा है, इसलिए खबर मिलने के बाद मृतक उमेश की जानपहचान वाले थाना मलिहाबाद पहुंचने लगे.

15 नवंबर की सुबह से ही हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए धरनाप्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक शव घर वालों को मिल चुका था. घर वालों ने बसपा सांसद ब्रजेश पाठक, भाजपा के पूर्व विधायक मस्तराम, किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में रहीमाबाद चौराहे पर लाश रख कर रास्ता रोक दिया. सांसद ब्रजेश पाठक का कहना था कि समाजवादी पार्टी के राज में पुलिस आम जनता की नहीं सुन रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है.

जाम लगने से आनेजाने वाले ही नहीं, रहीमाबाद कस्बे के लोग भी परेशान हो रहे थे. जाम लगाने वाले लोग उमेश कनौजिया के हत्यारों को गिरफ्तार करने, थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह को निलंबित करने, पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और उमेश के छोटे भाई सुधीर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे. जाम का नेतृत्व कर रहे नेताओं को लग रहा था कि उन के इस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, इसलिए वे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे.

जाम लगाए लोगों को हटाने के लिए रहीमाबाद चौकी के प्रभारी अनंतराम सिपाही ज्ञानधर यादव, छेदी यादव, अशोक और होमगार्ड श्रीपाल यादव को साथ ले कर वहां पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने अनंतराम और उन के साथ आए सिपाहियों के साथ मारपीट कर के उन्हें भगा दिया. इस बात की सूचना लखनऊ के एसपी (ग्रामीण) सौमित्र यादव, क्षेत्राधिकारी (मलिहाबाद) श्यामकांत त्रिपाठी और इंसपेक्टर (मलिहाबाद) जे.पी. सिंह को मिली तो आसपास के 3 थानों की पुलिस रहीमाबाद भेज दी गई.

काफी समझानेबुझाने और भरोसा दिलाने के बाद लगभग 4 घंटे बाद जाम खुला. तब रहीमाबाद के लोगों ने राहत की सांस ली. इस के बाद उमेश के घर वाले उस का शव अंतिम संस्कार के लिए ले कर गांव चले गए. उस समय तो यह खतरा टल गया, लेकिन पुलिस को अंदेशा था कि अगले दिन भी राजनीतिक लोग इस घटना का लाभ उठाने के लिए धरनाप्रदर्शन कर सकते हैं.

इसी बात पर विचार कर के लखनऊ के एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाया. इस के बाद थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह ने उमेश के घर वालों से मिल कर यह जानने की कोशिश की कि उन की किसी से रंजिश तो नहीं है. लेकिन घर वालों ने किसी भी तरह की राजनीतिक या पारिवारिक रंजिश से इनकार कर दिया.

उमेश के पास इतना पैसा भी नहीं था कि लूटपाट के लिए उस की हत्या की जाती. वह पैसे का भी लेनदेन नहीं करता था.  अब पुलिस के पास उमेश हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने का एकमात्र सहारा उस का मोबाइल फोन था.

पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अध्ययन से पता चला कि 13 नवंबर को एक ही नंबर पर उस ने 32 बार फोन किया था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर जिला उन्नाव के थाना हसनगंज के गांव शाहपुर तोंदा की रहने वाली आशा का निकला.

आशा का विवाह थाना मलिहाबाद के अंतर्गत आने वाले गांव सिंधरवा के रहने वाले राजू से हुआ था. राजू दुबई में लांड्री का काम करता था. आशा यहीं रहती थी. पति बाहर रहता था, इसलिए वह ससुराल में कम, मायके शाहपुर तोंदा में ज्यादा रहती थी. उमेश का उस के यहां नियमित आनाजाना  था. जब भी आशा मायके में रहती, उमेश उस से मिलने के लिए दूसरेतीसरे दिन आता रहता था. अगर किसी वजह से वह नहीं आ पाता था तो उसे फोन जरूर करता था.

दरअसल आशा कनौजिया की मां महेश्वरी देवी ने भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था. उमेश बिरादरी का नेता माना जाता था, इसलिए महेश्वरी देवी उमेश को अपने साथ रखने लगी थी. उसे लगता था कि उमेश साथ रहेगा तो बिरादरी के वोट उसे मिल जाएंगे. चुनाव महेश्वरी देवी लड़ रही थी, लेकिन उस का पूरा कामकाज पति प्रकाश कनौजिया देखता था. यही वजह थी कि उमेश और प्रकाश में गहरी छनने लगी थी. प्रकाश कनौजिया को भी लगता था कि उमेश के साथ रहने से बिरादरी का सारा वोट उसे ही मिलेगा.

चुनाव के दौरान महेश्वरी देवी के यहां आनेजाने में उमेश की नजर उस की 24 वर्षीया विवाहित बेटी आशा पर पड़ी तो वह उसे भा गई. भरेपूरे बदन वाली आशा पर उमेश की नजरें गड़ गईं. फिर तो जल्दी ही आशा की भी उमंगें हिलोरे लेने लगीं. यही वजह थी कि जल्दी ही दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उमेश स्मार्ट और खुशदिल इंसान था. अपने इसी स्वभाव की बदौलत वह आशा को भा गया था. चुनाव के दौरान अकसर दोनों का एकसाथ आनाजाना होता रहा. उसी बीच एकांत मिलने पर दोनों ने अपने इस प्रेमसंबंध को शारीरिक संबंध में तबदील कर दिया था.

समय के साथ उमेश और आशा के संबंध प्रगाढ़ हुए तो उमेश आशा को अपनी जागीर समझने लगा. जबकि आशा को यह बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि आशा के संबंध कुछ अन्य लोगों से भी थे. यही बात उमेश को पसंद नहीं थी. वह चाहता था कि आशा उस के अलावा किसी और से संबंध न रखे. इस के लिए उस ने आशा को रोका भी, लेकिन वह नहीं मानी.

उस का कहना था कि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है, वह उसे रोकने वाला कौन होता है. उमेश के पास आशा के पति राजू का दुबई का फोन नंबर था. कभीकभी राजू की उस से बात भी होती रहती थी. आशा ने उमेश का कहना नहीं माना तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन जब उस के पास राजू का फोन आया तो उमेश ने उस से बता दिया कि यहां आशा के कई लोगों से प्रेमसंबंध हैं. इस के बाद राजू और आशा में जम कर तकरार हुई.

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 4

पुलिस ने बरामद सिम नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में पुलिस को कुछ नंबरों पर संदेह हुआ. पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लगवा दिया. आखिर सर्विलांस के माध्यम से मिली जानकारी के आधार पर शाहजहांपुर पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुंची और थाना कमला मार्केट पुलिस से संपर्क किया. थाना कमला मार्केट के थानाप्रभारी ने एएसआई प्रमोद जोशी को कुछ सिपाहियों के साथ शाहजहां से गई पुलिस टीम की मदद के लिए लगा दिया.

शाहजहांपुर से गई पुलिस टीम ने एएसआई प्रमोद जोशी की मदद से 18 नवंबर को एक आदमी को गिरफ्तार किया. उसे कमला मार्केट थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम दीपक शर्मा बताया. वह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के थाना डेरा के रहने वाले रामपाल शर्मा का बेटा था. वह काफी समय से दिल्ली में रह रहा था और सुपारी ले कर हत्याएं करता था. उस पर दिल्ली में हत्या के कई मामले दर्ज थे.

Supari Killar Deepak Sharma

दीपक से पूछताछ के बाद शाहजहांपुर पुलिस के सामने विश्वजीत हत्याकांड की पूरी सच्चाई तो सामने आ गई, लेकिन शाहजहांपुर पुलिस उसे अपने साथ शाहजहांपुर नहीं ला पाई. क्योंकि दिल्ली पुलिस ने अपने यहां दर्ज एक मामले में उसे अदालत में पेश किया तो अदालत ने उसे जेल भेज दिया. पुलिस दीपक को भले ही अपने साथ नहीं ला पाई थी, लेकिन उस ने उन लोगों के नाम पुलिस को बता दिए थे, जिन्होंने विश्वजीत की हत्या कराई थी. वे दोनों कोई और नहीं, विश्वजीत के रैनबसेरा में सोने वाले उस के दोस्त नूरी और हामिद थे. पुलिस को दीपक से शाहजहांपुर का उन का पता भी मिल गया था.

पुलिस ने नूरी और हामिद की गिरफ्तारी के प्रयास किए तो 23 नवंबर की सुबह शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से नूरी को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने मोना के प्यार से ले कर विश्वजीत की हत्या तक की कहानी सुना दी. पुलिस ने पूछताछ कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस हामिद की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गई. थोड़ी मेहनत के बाद 29 नवंबर की सुबह पंचपीर तिराहे से हामिद को भी गिरफ्तार कर लिया गया. हामिद ने हत्या की पूरी कहानी सुनाने के बाद वह चाकू भी बरामद करा दिया, जिस से विश्वजीत की हत्या की गई थी. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया. इस पूछताछ में विश्वजीत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

Janch team ke Sath jankari dete SP saiyad Vasheem Raza

मोना विश्वजीत में प्यार हुआ तो मोना ने नूरी और हामिद से मिलना जुलना बंद कर दिया. उस ने उन से फोन पर भी बातें करनी बंद कर दीं. इस से उन्हें समझते देर नहीं लगी कि अब मोना को उन में जरा भी रुचि नहीं रह गई है. वह पूरी तरह विश्वजीत की हो गई है. साफ था, जेब से कड़के नूरी और हामिद अब उस के किसी काम के नहीं रह गए थे. इसीलिए उस ने उन से दूरी बना ली थी.

नूरी ने विश्वजीत से मोना से दूर रहने की बात कही तो वह उस पर भड़क उठा. उस ने गालीगलौज करते हुए उसे ही धमकी दे दी. नूरी उस का कुछ नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘विश्वजीत भाई, मोना मेरी गर्लफ्रेंड है, इसलिए मुझ पर दया कर के तुम उसे छोड़ दो.’’

‘‘अब वह तेरी नहीं, मेरी गर्लफ्रेंड है. उसे मुझ से कोई नहीं छीन सकता. और हां, अब अगर तू ने उस से मिलने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा. कहीं ऐसा न हो कि प्रेमिका के चक्कर में जान से हाथ धो बैठो.’’ विश्वजीत ने आंखें तरेरते हुए कहा.

इस के बाद नूरी और हामिद ने विश्वजीत को मोना से अलग करने की कई बार कोशिश की, उन के बीच मारपीट भी हुई, लेकिन विश्वजीत के सामने उन की एक न चली. तब वे सुपारी किलर दीपक शर्मा की शरण जा पहुंचे. दीपक से नूरी की अच्छी दोस्ती थी, इसलिए बिना पैसे के ही वह उस का काम करने को तैयार हो गया.

नूरी और हामिद विश्वजीत की हत्या ऐसी जगह करना चाहते थे, जहां कोई उसे पहचान न सके. इस के लिए वे उसे शाहजहांपुर ले जाना चाहते थे. नूरी और हामिद ने विश्वजीत से माफी मांग कर पुरानी बातें भूलने को कहा तो पुरानी दोस्ती को की वजह से विश्वजीत ने उन्हें माफ कर दिया. उन में फिर से अच्छे संबंध बन गए.

इस के बाद नूरी और हामिद ने उस से लखनऊ घूमने की बात कही तो विश्वजीत चलने को तैयार हो गया. उन्होंने दीपक को विश्वजीत से मिला कर कहा कि यह भी हमारे साथ लखनऊ चलेगा तो विश्वजीत ने मना नहीं किया. वह मना भी क्यों करता, क्योंकि वह अपने खर्च पर जा रहा था.

15 नवंबर को चारों टे्रन द्वारा नई दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हुए. रास्ते में ताजिया दिखाने की बात कह कर नूरी ने विश्वजीत को शाहजहांपुर में उतार लिया. इस के बाद नूरी और हामिद उसे दीपक के साथ अपने घर ले गए. देर रात खाना खा कर टहलने के बहाने नूरी और हामिद विश्वजीत तथा दीपक को साथ ले कर सुभाषनगर-खुदरई मार्ग पर निकले. यह रास्ता रात में सुनसान रहता है.

मौका देख कर एक जगह नूरी और हामिद ने विश्वजीत को धक्का दे कर सड़क के किनारे गिरा दिया तो दीपक फुर्ती से उस के सीने पर सवार हो गया. विश्वजीत हाथपैर चलाता, उस के पहले ही दीपक ने चाकू से उस के गले पर कई वार कर दिए.

विश्वजीत छटपटाता रहा. तभी दीपक ने उस का सिर धड़ से अलग कर के सड़क के दूसरी ओर फेंक दिया. बाद में पैंट भी उतार कर वहां से दूर छिपा दी, जिस से पुलिस को कोई सुराग न मिले. इस के बाद नूरी और हामिद ने दीपक को दिल्ली भेज दिया और इस मामले में क्या होता है, यह जानने के लिए नूरी और हामिद शाहजहांपुर में ही रुक गए. लेकिन उन की होशियारी धरी की धरी रह गई और तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशा की चाह में टूटा सपना – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक  दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी.

वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थे.

उमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थे.

उन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं.

जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब आ रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं.

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया.

14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर आ रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है.

जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती.

मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था.

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया.

थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं.

घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 3

यशपाल को कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने परमिंदर से छुटकारा पाने के लिए अदालत में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. तलाक के लिए उस ने पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था, इसलिए उस ने अदालत में बच्चों का डीएनए टेस्ट कराने का भी मुकदमा दायर कर दिया था.

इन दोनों ही मामलों में तारीखों पर तारीखें पड़ रही थीं. इस से यशपाल को लगा कि पुलिस ही नहीं, जज भी उस की चरित्रहीन पत्नी की सहायता कर रहे हैं.

जबकि अदालत तलाक के मुकदमे को इसलिए लटकाए रहती है कि शायद पतिपत्नी में समझौता हो जाए. बहरहाल सन 2012 में अदालत ने परमिंदर कौर के पक्ष में फैसला सुना दिया. इस के बाद यशपाल ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील दायर की, जहां से उस की अपील खारिज कर दी गई.

अदालतों की इस कार्यवाही से यशपाल इस तरह बौखला गया कि वह लोअर कोर्ट से ले कर हाईकोर्ट तक के जजों को धमकी भरे पत्र लिख कर भेजने लगा. इसी के साथ उस ने उन लोगों की एक सूची भी तैयार कर ली, जिन की वह हत्या करना चाहता था. उस की उस सूची में डीएसपी, एसपी, आईजी, डीआईजी, डीजीपी, लोअर कोर्ट के जज से ले कर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा पत्नी, बच्चे, साला और कई बैंकों के मैनेजर भी थे. इस सूची में करीब 50 लोग थे.

यशपाल लगातार सभी को धमकी भरे पत्र भेजने लगा तो पटियाला के पुलिस अधीक्षक को हाईकोर्ट की ओर से आदेश मिला कि धमकी भरे पत्र भेजने वाले इस आदमी को हिरासत में ले कर पूछताछ की जाए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? उस की मैडिकल जांच भी कराई जाए.

हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस अधीक्षक ने कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को यशपाल को हिरासत में ले कर पूछताछ करने और उस का मैडिकल कराने का आदेश दिया. पुलिस पूछताछ में वह पत्नी की बेवफाई की बातें करता रहा.

इस के बाद उस का चैकअप कराया गया तो डा. बी.एस. सिद्धू के अनुसार वह डेल्यूजनल डिसौर्डर  का शिकार पाया गया. इस बीमारी का रोगी अपने दिमाग में कोई भ्रम पाल लेता है. फिर वह जैसा सोचता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है.

पुलिस को इन बातों से क्या लेनादेना था. उस ने रिपोर्ट तैयार कर के मैडिकल रिपोर्ट सहित हाईकोर्ट भेज दी. पुलिस के चंगुल से छूटने के बाद यशपाल सिंह ने एक बार फिर पटियाला की सिविल कोर्ट में मैडम पवलीन कौर की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. इस मुकदमे में भी डीएनए टेस्ट की मांग की गई थी.

दूसरी ओर परमिंदर कौर ने भी सरदार हरपाल सिंह की अदालत में डोमेस्टिक वायलेंस का मुकदमा दायर कर दिया था. मुकदमेबाजी करते हुए यशपाल सिंह सब की हत्याओं की योजनाएं भी बना रहा था. वह लैपटौप पर हौलीवुड की फिल्में देखता और हत्याएं करने की तकनीकें खोजता रहता. बेटी हरमीत की हत्या के लिए उस ने इंटरनेट के माध्यम से एक दवा ढूंढ़ निकाली थी, जो धतूरे के बीजों से तैयार की जाती थी.

लेकिन तमाम कोशिश के बाद भी उसे वह दवा नहीं मिली. चाय की पत्ती से निकोटिन जैसा जहर बनाने का आइडिया भी उस ने इंटरनेट से ढूंढ़ निकाला. लेकिन इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. 10 अक्तूबर, 2013 को मैडम पवलीन कौर के सुझाव पर यशपाल सिंह की बेटी हरमीत कौर उस के साथ रहने आ गई तो उस ने उस की हत्या की कोशिश और तेज कर दी. लेकिन वह उस की हत्या कुछ इस तरह से करना चाहता था कि उस पर किसी तरह की आंच न आए. इस के लिए वह इसी तरह की फिल्में देखने लगा.

22 फरवरी, 2014 की सुबह बैंक जाने के पहले रात भर पढ़ाई करने के बाद हरमीत कौर गहरी नींद सो रही थी, तभी मुर्गा काटने वाला छुरा ले कर यशपाल उस के कमरे में जा पहुंचा. हौलीवुड की फिल्म से लिए आइडिया के अनुसार उस ने हरमीत की गरदन की मुख्य नस एक ही झटके से काट दी. उसी बीच दर्द से तड़प कर हरमीत ने उसे पकड़ना चाहा तो उस के कुछ बाल उस की मुट्ठी में आ गए थे. दूसरी नस भी उस ने उसी तरह फुरती से काट दी थी. इस के बाद उस छुरे को गरदन में फंसा छोड़ कर वह कमरे में ताला बंद कर के बैंक चला गया.

दोपहर बाद बैंक से लौट कर कोतवाली गया, जहां कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को मनगढं़त कहानी सुना दी. लेकिन पुलिस ने घटनास्थल के निरीक्षण में ही ताड़ लिया था कि यह हत्या यशपाल के अलावा किसी और ने नहीं की है.

कोतवाली पुलिस ने यशपाल को सक्षम अदालत में पेश कर के सुबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान यशपाल सिंह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा से कहता रहा कि वह जितना चाहें पैसे ले लें, लेकिन उसे 2 दिनों के लिए छोड़ दें, ताकि वह अपने अन्य दुश्मनों को भी सबक सिखा सके. क्योंकि एक हत्या में भी उतनी ही सजा होगी, जितनी 5 हत्याओं में.

हरमीत कौर की हत्या की एक वजह यह भी थी कि वह 1 मार्च, 2014 को 18 वर्ष की हो रही थी. यशपाल उस पर यह दबाव डाल रहा था कि वह उस की बहन के पास कनाडा चली जाए. उस का सोचना था कि बालिग होने पर वह अपनी मरजी की मालिक हो जाएगी तो उसे छोड़ कर अपनी मां के पास जाएगी.

मां के साथ रहते हुए वह भी उसी की तरह चरित्रहीन हो जाएगी. जबकि हरमीत कौर चाहती थी कि किसी तरह मम्मीपापा में सुलह हो जाए तो पूरा परिवार एक साथ रह सके. उस की अच्छी सोच ने उसे मौत की नींद सुला दिया तो बाप की गंदी सोच ने उसे जेल पहुंचा दिया.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर कोतवाली पुलिस ने यशपाल को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पवित्र प्रेम : गींदोली और कुंवर जगमाल की प्रेम कहानी – भाग 3

इधर गींदोली के मन में प्रेम का झरना फूट रहा था, उधर जगमाल उस के ख्वाबों से अनजान थे. वह तो तीजनियों को महेवा लाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानजी, कहीं हाथी खान हमारे साथ धोखा न कर जाए. हम शहजादी को तभी छोड़ेंगे, जब हमारी तीजनियां महेवा की धरती पर कदम रख देंगी.’’

अपने वादे के अनुसार हाथी खान तीजनियों को ले आया तो उसी मैदान में भौपजी शहजादी को ले गए. महमूद बेग ने तीजनियों को पहले छोड़ने का हुकुम दिया. तभी शहजादी जा कर अब्बा के कलेजे से लिपट गई. भौपजी सावधान था. तीजनियों को सुरक्षित घेरे में खेड़ रवाना किया ही था कि हाथी खान जगमाल के दल पर टूट पड़ा.

उस ने जासूस से जगमाल की ताकत का पता कर लिया था. पर यह उस की भूल थी. जगमाल के 3 तालियां बजाते ही तमाम ऐसे जवान वहां आ गए, जो कदकाठी और वेशभूषा में जगमाल की तरह थे. उन के वहां आते ही हाथी खान की सेना को पहचानना मुश्किल हो गया कि उन में जगमाल कौन है.

तभी हाथी खान की सेना में यह अफवाह फैल गई कि जगमाल को भूत सिद्धी हासिल है. तभी तो वहां पर उस के तमाम हमशक्ल आ गए हैं. डर की वजह से महमूद बेग और हाथी खान वहां से भाग खड़े हुए. अफरा तफरी में शहजादी गींदोली को भी वे अपने साथ नहीं ले जा सके.

उधर तीजनियों के सकुशल घर लौटने पर महेवा के घरों में दीपक जल उठे. इस के बाद ही जगमाल ने उजले कपड़े पहने. सिर पर केसरिया कसूंबल पाग बांधी. दाढ़ी बनाने के बाद अपने सांवले मुखड़े पर नोकदार मूंछें संवारते हुए वह अपने डेरे से निकले ही थे कि दासी ने आ कर जुहार की, ‘‘खम्मा घणी हुकुम, शहजादी गींदोली तो अपने डेरे में ही बैठी हैं?’’

‘‘क्या शहजादी अपने डेरे में है, ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जगमाल चौंके.

‘‘हुजूर, आप खुद ही चल कर देख लीजिए.’’ दासी ने कहा.

जगमाल उसी समय गींदोली के डेरे पर  पहुंचे. सामने खड़ी शहजादी गींदोली मुसकरा रही थीं. वह जगमाल को एकटक देखती रहीं. जगमाल जड़वत हो गए. उन की नजरें धरती पर गड़ी थीं, वह खुद को संभाल कर बोले, ‘‘शहजादी गींदोली आप यहां?’’

‘‘हां कुंवर सा.’’ गींदोली पहली बार जगमाल से बिना परदे के बात कर रही थी, ‘‘मुझे महेवा छोड़ना अच्छा नहीं लगा कुंवरजी.’’

‘‘पर आप यहां कहां रहेंगी, कैसे रहेंगी, आप के अब्बा हुजूर परेशान होंगे? हम आप को अहमदाबाद पहुंचाने का प्रबंध करते हैं.’’

जगमाल एक ही सांस में इतना कुछ कह गया. पर गींदोली ने अहमदाबाद जाने से इंकार कर दिया. इस के बाद उस ने अपने मन की बात जगमाल को बता कर कहा कि अब वह उन के साथ ही रहेगी.

शहजादी की बात सुन कर जगमाल हतप्रभ रह गए कि यह क्या हो गया? उस ने ऐसा तो कभी नहीं सोचा था. उस के सामने एक तरह का धर्म संकट पैदा हो गया. उस ने गींदोली से अनुरोध किया, ‘‘शहजादी साहिबा, हमारी इज्जत उछाली जा रही है. आप मान जाएं और महेवा छोड़ दें.’’

मगर शहजादी अपने फैसले पर अटल थी. कुछ ही देर में पूरे महेवा में यह बात फैल गई कि शहजादी गींदोली जगमाल से प्यार करने लगी है और वह उन से शादी करना चाहती है, लेकिन कुंवर जगमाल जातिपांत के डर से उस से विवाह करने को तैयार नहीं हो रहे हैं. यह बात तीजनियों के कानों तक पहुंचीं. गींदोली ने उन की संकट के समय में देखभाल की थी, इसलिए उन्होंने गींदोली की सहायता करने का फैसला कर लिया.

उन्होंने जगमाल से अनुरोध किया कि वह शहजादी गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें. उन्होंने उन की भी बात नहीं मानी. तब तीजनियों ने तय कर लिया कि जब तक कुंवर गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे, वे घरों में चूल्हे नहीं जलाएंगी.

इस तरह तीजनियों ने अन्नपानी त्याग दिया. ऐसा करते हुए 3 दिन बीत गए.

तब महेवा के तमाम लोग कुंवर जगमाल के पिता रावल मल्लीनाथ के पास गए. उन्होंने उन से कुंवर जगमाल को समझाने का अनुरोध किया. रावल मल्लीनाथ ने जगमाल को समझाया. जगमाल को अपने पिता की बात मानने के लिए मजबूर होना पड़ा. आखिरकार गींदोली के प्रेम के आगे जगमाल की जातिपांत वाली सोच पराजित हो गई.

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पिता के कहने पर जगमाल गींदोली के डेरे पर पहुंचे. उन्होंने अपने कारिंदों को आदेश दिया कि शहजादी गींदोली की सवारी महल में पहुंचाई जाए. आदेश का पालन हुआ. महल में बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. तीजनियों ने खूब गीत गाए.

आज भी राजस्थान में जगमाल और गींदोली के गीत गाए जाते हैं. गणगौर विसर्जित करने के दिन सारा राजस्थान गींदोली को याद करता है. तीजनियां आज भी गींदोली को याद करती हैं. गींदोली और जगमाल का प्रेम आज भी पाबासर के हंस प्रेमी हृदय में तैर रहा है.

दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 3

जिस दिन मोना और विश्वजीत एकदूसरे से मिले, उन की नजरें एक हुए बिना नहीं रह सकीं. स्मार्ट विश्वजीत को पहली ही बार देख कर मोना होश खो बैठी. अभी तक वह दूसरों की चाहत थी, लेकिन विश्वजीत को देख कर पहली बार उसे अपनी चाहत का अहसास हुआ. उस का दिल इस तरह मचल उठा था कि वह विश्वजीत के सीने से लग जाए. यही वजह थी कि उस की चाहत उस की नजरों से साफ झलक उठी थी. जिसे विश्वजीत को पढ़ने में देर नहीं लगी.

विश्वजीत मोना की झील-सी आंखों में डूबता चला गया. उस दिन नूरी ने दोनों का परिचय कराया तो कुछ बातें भी हुईं. इस के बाद फिर मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. लेकिन वे एकदूसरे को पलभर के लिए भी भुला नहीं सके. दोनों में दोबारा मिलने की चाहत थी, इसलिए जल्दी ही उन की दोबारा मुलाकात हो गई. इस बार केवल वही दोनों थे. विश्वजीत मोना को एक महंगे रेस्टोरेंट में ले गया. विश्वजीत ने बातचीत में मोना को बताया था कि उस का खुद का एक होटल है और गांव में उस के पास काफी पुश्तैनी जमीनजायदाद है. इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं है.

विश्वजीत के मोहपाश में बंधी मोना ने उस की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लिया. विश्वजीत बहुत बड़ा खिलाड़ी तो नहीं था, लेकिन इतना तो जानता ही था कि लड़कियों को किस तरह जाल में फंसाया जाता है. उस ने मोना के सामने अपनी रईसी के ऐसे झंडे इस तरह गाड़े थे कि वह उसे अपना हमसफर बनाने के बारे में सोचने लगी थी. मोना के हिसाब से विश्वजीत सुंदर और स्मार्ट तो था ही, साथ ही उस के पास पैसा और पावर भी था. इसलिए उस में वह जरूरत से ज्यादा रुचि लेने लगी.

विश्वजीत को जब पूरा विश्वास हो गया कि मोना अब पूरी तरह उस के प्रभाव में आ गई है तो उस ने मोना के हाथ को अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मोना, मैं ने जिस तरह की लड़की की कल्पना की थी, तुम ठीक वैसी हो. जब से तुम से दोस्ती हुई है, मेरी सोच ही नहीं बदल गई, बल्कि जीने का ढंग भी बदल गया है. तुम खूबसूरत ही नहीं, सलीके वाली भी हो. तुम्हारी आदतें, बातचीत इतनी प्यारी लगती हैं कि मन करता है, हर पल तुम्हारे ही साथ रहूं. तुम से अलग होने पर एकएक पल सदियों जैसा लगता है. मैं यह जानना चाहता हूं कि जो भावनाएं मेरे मन में हैं, क्या वहीं तुम्हारे मन में भी हैं?’’

विश्वजीत के इन जज्बातों को सुन कर मोना ने विश्वजीत की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘विश्वजीत तुम्हारे लिए मेरे मन में भी वही सब है, जो तुम्हारे मन में है. मैं तुम से मन की बात कहना भी चाहती थी, लेकिन यह सोच कर कह नहीं पाती थी कि तुम मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचोगे. क्योंकि अगर तुम मेरे मन की बात समझ न पाए तो मैं टूट जाऊंगी. आज तुम्हारे मन की बात जान कर बहुत खुश हूं. मैं भी तुम्हारे साथ जिंदगी बिताने का सपना देख रही थी, जो आज सच हो गया.’’

इस के बाद दोनों का प्यार तेजी से परवान चढ़ने लगा. विश्वजीत को पता था कि मोना की नूरी और हामिद से भी दोस्ती थी. फिर भी उस के मन में उन के लिए कोई दुर्भावना नहीं थी. वह मोना के प्यार को पाना चाहता था, इसलिए उस के सामने उस ने स्वयं को बहुत बड़ा रईस बताया था. लेकिन जब उस का प्यार बढ़ा तो उस ने सोचा कि वह मोना को अपनी सच्चाई बता देगा, जिस से बाद में कोई भ्रम न रहे. लेकिन उसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि यह सब बताने के पहले ही सब खत्म हो गया.

16 नवंबर की सुबह 9 बजे उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर की कोतवाली पुलिस को सुभाष नगर-खुदराई मार्ग पर किसी युवक की सिरकटी लाश पड़ी होने की सूचना मिली तो इंसपेक्टर आलोक सक्सेना पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सड़क के किनारे ही खून से सना धड़ पड़ा था. सिर का अता पता नहीं था. सिरविहीन धड़ पर चाकुओं के जख्म साफ नजर आ रहे थे. पुलिस ने जख्मों को गिना तो वे 14 थे. पुलिस ने सिर की तलाश शुरू की तो थोड़े प्रयास के बाद सड़क के दूसरी ओर सिर भी मिल गया.

कोतवाली पुलिस घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर ही रही थी कि क्षेत्राधिकारी राजेश्वर सिंह भी मौके पर पहुंच गए. अब तक घटनास्थल पर शहर और आसपास के गांवों के तमाम लोग इकट्ठा हो गए थे. पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृतक की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इस से पुलिस को लगा कि यह यहां का रहने वाला नहीं है. इसे यहां ला कर मारा गया है. लाश पर जो कपड़े थे, वे ब्रांडेड थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतक ठीकठाक घर का लड़का था.

Mratak Vishwajeet Singh

हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. यह देख कर पुलिस को लगा कि यह हत्या प्रतिशोध के लिए की गई है. मामला प्रेमप्रसंग का नजर आ रहा था. पुलिस ने डाग स्क्वायड को भी बुला लिया था. लेकिन कुत्ता लाश सूंघ कर थोड़ी दूर जा कर रुक गया. वहां पुलिस को खून सनी एक पैंट मिली. पुलिस ने पैंट की तलाशी ली तो उस में से एक सिम बरामद हुआ, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

थाने लौट कर इंसपेक्टर आलोक सक्सेना ने चौकीदार राधेश्याम को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और मामले की जांच की जिम्मेदारी स्वयं संभाल ली.

पुलिस के पास जांच का एक ही जरिया था, मृतक की जेब से बरामद सिम. बरामद सिम की डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना मरदह के गांव डंडापुर के रहने वाले ओमप्रकाश सिंह के बेटे विश्वजीत सिंह का है. पुलिस ने उक्त पते पर संपर्क कर के परिजनों को बुलाया तो उन्होंने शव की शिनाख्त विश्वजीत सिंह के रूप में कर दी. पूछताछ में उन से पता चला कि विश्वजीत दिल्ली में रह कर नौकरी करता था.

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 2

जांच में यह साफ हो गया था कि वहां कोई बाहरी आदमी नहीं आ सकता था, क्योंकि सभी दरवाजे ज्यों के त्यों बंद पाए गए थे. यशपाल सिंह ने भी बताया था कि वह घर आया तो हरमीत का दरवाजा अंदर से बंद था. उसी ने दरवाजा खोला था.

बहरहाल, पुलिस को यशपाल पर ही संदेह हो गया था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. उस के बारे में पता करते हुए उस पर नजर रखी जाने लगी.

पुलिस का संदेह तब और बढ़ गया, जब यशपाल सिंह ने बेटी का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. जबकि उस के पास किसी चीज की कमी नहीं थी और हरमीत उसी के साथ रहते हुए मारी गई थी. पोस्टमार्टम के बाद हरमीत का अंतिम संस्कार उस की मां ने भाई परमजीत सिंह सिद्धू की मदद से किया था.

पूछताछ के दौरान पुलिस ने गौर किया था कि यशपाल से जब भी कोई सवाल पूछा जाता था, वह ठीक से जवाब देने के बजाय नजरें झुका कर बहस करने लगता था. ऐसी ही बातों से पुलिस को लगा कि हरमीत की हत्या किसी और ने नहीं, यशपाल सिंह ने ही की है तो उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से घेरा गया.

फिर पुलिस द्वारा पूछे गए सवालों से वह इस तरह भावुक हुआ कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने अपनी बेटी हरमीत कौर की हत्या की जो कहानी सुनाई, सुनने वाले दंग रह गए. सनक में एक बाप इस तरह भी दरिंदा हो सकता है, ऐसा उन्होंने पहली बार देखा था.

यशपाल सिंह शुरू से ही ऐसा नहीं था. कभी वह भी अपनी बीवीबच्चों से बहुत प्यार करता था. बीवी बैंक में मैनेजर थी तो वह खुद भी बैंक में ही असिस्टेंट मैनेजर था. सुंदर से 2 बच्चे थे, जो अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. रुपएपैसे, मानप्रतिष्ठा की भी कमी नहीं थी.

लगभग 7 साल पहले यशपाल ने एक फिल्म देखी, जो अवैध संबंधों पर बनी थी. पतिपत्नी अलगअलग कंपनियों में नौकरी करते थे. एक साथ काम करने पर न चाहते हुए भी महिलाओं को सहकर्मियों से शिष्टाचारवश घुलमिल कर रहना पड़ता है. ऐसे में फिल्म के हीरो को संदेह हो गया था कि उस की पत्नी का अपने सहकर्मी पुरुषों से अवैध संबंध है.

उस फिल्म ने यशपाल के दिलोदिमाग पर ऐसा असर छोड़ा कि उसे भी पत्नी पर संदेह होने लगा. वह खुद को फिल्म का हीरो और पत्नी को हीरोइन मान बैठा. फिर क्या था, हंसताखेलता, पत्नीबच्चों से प्यार करने वाला यशपाल उसी फिल्म के बारे में सोचसोच कर धीरेधीरे मानसिक रोगी हो गया. रातदिन वह परमिंदर कौर के बारे में ही सोचता रहता.

इस के बाद घर का माहौल बिगड़ने लगा. जहां खुशियां छाई रहती थीं, वहां रात दिन क्लेश रहने लगा. यशपाल को परमिंदर कौर चरित्रहीन लगने लगी तो बात मारपीट तक पहुंच गई. यशपाल को लगने लगा था कि दोनों बच्चे उस के नही, परमिंदर के किसी प्रेमी के हैं.

यशपाल सिंह के मन का वहम बढ़ता गया और एक दिन इसी बात को मुद्दा बना कर उस ने परमिंदर कौर को घर से निकाल दिया. पति ने घर से निकाल दिया तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई.  दोनों बच्चे भी उसी के साथ चले गए. परमजीत सिंह ग्रामीण बैंक मानसा ब्रांच के मैनेजर थे. यह 7 साल पहले की बात है.

पटियाला के रहने वाले सरदार कावर सिंह सिद्धू की 2 संतानें थीं, बेटा परमजीत सिंह सिद्धू और बेटी परमिंदर कौर. वह प्रशासनिक अधिकारी थे. 9 अप्रैल, 1993 को उन्होंने अपनी बेटी परमिंदर कौर का विवाह पटियाला के ही रहने वाले स्व. अमर सिंह के बेटे यशपाल सिंह के साथ किया था.

अमर सिंह की 4 संतानें थीं. 2 बेटे और 2 बेटियां. शादी के बाद दोनों बेटियों में से एक कनाडा चली गई थी तो दूसरी आस्ट्रेलिया. बड़े बेटे की मौत हो गई थी. यहां सिर्फ यशपाल रह गया था. जबकि उस के ज्यादातर रिश्तेदार विदेशों में रहते थे.

यशपाल और परमिंदर कौर सुखपूर्वक रह रहे थे. परमिंदर कौर बहुत ही साधारण, धार्मिक और संकोची स्वभाव की थीं. दोनों 2 बच्चों के मातापिता बन गए थे. बेटी हरमीत कौर इस समय आईआईटी की तैयारी कर रही थी, जबकि बेटा रिपुदमन सिंह मैट्रिक में पढ़ रहा था.

यशपाल सिंह ने परमिंदर को घर से निकाला तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई थी. इस से यशपाल का संदेह और बढ़ गया था. उसे लगा कि परमिंदर का चक्कर जरूर किसी से है, तभी वह अपने भाई के घर रहने चली गई है. दरअसल परमिंदर को घर से निकालने के बाद वह सनक में भूल गया था कि उसी ने उसे घर से निकाला था. चिढ़ कर उस ने अपने साले के खिलाफ थाने में तो शिकायत दर्ज कराई ही, अदालत में भी मुकदमा दायर कर दिया था.

जब उस की इन शिकायतों पर कोई काररवाई नहीं हुई तो नाराज हो कर उस ने पुलिस अधिकारियों, लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट के जजों को ही नहीं, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भी अंजाम भुगतने के धमकी भरे पत्र लिखने शुरू कर दिए थे.

उसी बीच गुस्सा शांत होने पर परमिंदर कौर पति को समझाने की गरज से घर लौट आई थी. लेकिन यशपाल पत्नी, साले, पुलिस प्रशासन और न्यायालय से भड़का हुआ था, इसलिए वह इन सब को सबक सिखाना चाहता था. पत्नी वापस आ गई तो उस ने सोचा, पहले इसे ही खत्म कर देते हैं. इस के लिए कहीं से वह बम टाइमर ले आया और 4 गैस सिलेंडरों के साथ जोड़ कर टाइम सैट कर दिया. इस के बाद खुद बाजार चला गया. उस ने सोचा था कि विस्फोट होने पर मकान के साथ बीवीबच्चे भी उड़ जाएंगे. लेकिन संयोग से ऐसा कुछ नहीं हुआ.

विस्फोट क्यों नहीं हुआ, लौट कर यशपाल चैक करने लगा तो छेड़छाड़ में सिलेंडर में आग लग गई, जिस में वह झुलस गया. पड़ोसियों ने आ कर किसी तरह आग पर काबू पाया और उसे ले जा कर अस्पताल में भरती कराया. इस तरह पत्नी को ऊपर पहुंचाने के चक्कर में वह स्वयं अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल से लौटने के बाद उस ने फिर से परमिंदर को ठिकाने लगाने की कोशिश शुरू कर दी. परमिंदर को जब पता चला कि यशपाल उसे मारने की कोशिश कर रहा है तो वह फिर से उसे छोड़ कर चली गई.