नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 3

7 नवंबर को भी प्रियंका ने सुरेंद्र को नींद की गोलियों वाला दूध पीने को दिया. लेकिन उस रात सुरेंद्र कुछ नशे में था, इसलिए उस ने दूध पीने के बजाय चारपाई के नीचे रख दिया. सुरेंद्र खर्राटे भरने लगा तो प्रियंका ने समझा कि नींद की गोलियों का असर है. फलस्वरूप उस ने अपने प्रेमी करन को बुला लिया और उस के साथ दूसरे कमरे में चली गई.

आधी रात में लघुशंका के लिए सुरेंद्र की नींद खुली तो प्रियंका बैड पर नहीं थी. वह कमरे से बाहर आया तो पास वाले कमरे का दरवाजा बंद था और भीतर से चूडिय़ों के खनकने और मस्ती की दबीदबी आवाजें गूंज रही थी. कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब जल रहा था. दरवाजे में झिर्री थी.

सुरेंद्र ने झिर्री से आंख लगा कर देखा तो प्रियंका और करन एकदूसरे में समाए थे. सुरेंद्र का खून खौल उठा. उस ने दरवाजे को जोर से धकेला तो वह खुल गया. सुरेंद्र को अचानक अंदर आया देख प्रियंका और करन हक्केबक्के रह गए. दोनों कपड़े ठीक कर पाते, उस के पहले ही सुरेंद्र प्रियंका को जानवरों की तरह पीटने लगा.

करन से न रहा गया तो उस ने पिटाई का विरोध किया. इस पर सुरेंद्र और करन में गालीगलौज व मारपीट होने लगी. उसी समय प्रियंका ने प्रेमी करन को उकसाया, “आज इस बाधा को खत्म कर दो. न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.”

प्रियंका के उकसाने पर करन ने सुरेंद्र को जमीन पर पटक दिया और दोनों ने मिल कर सुरेंद्र का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सुरेंद्र के दाहिने हाथ में उस का नाम लिखा था. उसे मिटाने के लिए करन ने कुल्हाड़ी से उस का दाहिना हाथ काट डाला. इस के बाद वह हाथ और खून सनी कुल्हाड़ी गांव के किनारे से बहने वाली सेंगुर नदी में फेंक आया. लौट कर उस ने प्रियंका के साथ मिल कर लाश को चादर में लपेटा और कमरे में ही बंद कर दिया.

सुबह प्रियंका ने पड़ोसियों और अपने जेठ रघुराज को बताया कि कल सुरेंद्र मूसानगर कस्बा कुछ सामान लेने गया था, लेकिन वापस नहीं आया. रघुराज ने उस की खोज शुरू की. लेकिन कहीं उस का कुछ पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद था.  प्रियंका भी पति के लिए बेचैन थी. वह बारबार घर वालों पर दबाव डाल रही थी कि जैसे भी हो, वे लोग उन की खोज करें. जबकि सुरेंद्र की लाश घर के अंदर ही कमरे में पड़ी थी. प्रियंका और करन को उसे ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला था.

2 दिनों तक सुरेंद्र की लाश घर में पड़ी रही, जिस के कारण दुर्गंध फैलने लगी. यह देख कर दोनों ने गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का फैसला किया. 9 नवंबर की रात 11 बजे जब गांव के लोग सो गए तो करन और प्रियंका ने सुरेंद्र की लाश को घर से बाहर निकाला और साइकिल पर रख कर खेतों की ओर चल दिए.

उन के गांव के बाहर पहुंचते ही कुत्ते तेज आवाज में भौंकने लगे. इस से दोनों घबरा गए. लोग जाग जाते तो उन के पकड़े जाने का डर था. इसलिए वे लाश को खेत की मेड़ पर फेंक कर घर लौट आए. 10 नवंबर की सुबह गांव के लोग दिशामैदान गए तो उन्होंने खेत की मेड़ पर हाथ कटी लाश देखी. इस से गांव भर में हडक़ंप मच गया.

रघुराज भी लाश देखने गया. लाश देखते ही वह रो पड़ा, क्योंकि लाश उस के छोटे भाई सुरेंद्र की थी. खबर पा कर प्रियंका भी पहुंची और त्रियाचरित्र दिखाते हुए बिलखबिलख कर रोने लगी.

रघुराज ने थाना मूसानगर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह और सीओ नरेशचंद्र वर्मा पुलिस बल के साथ आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्या 2 दिन पूर्व कहीं दूसरी जगह की गई थी और शिनाख्त मिटाने के लिए हाथ काट कर कहीं और फेंका गया था. यह अनुमान इसलिए लगाया गया, क्योंकि रघुराज के अनुसार, सुरेंद्र के हाथ पर नाम लिखा था.

चूंकि लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र की लाश को पोस्टमार्टम के लिए माती भेज दिया. सीओ नरेशचंद्र वर्मा ने मृतक के भाई रघुराज और पत्नी प्रियंका से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि मृतक सुरेंद्र सूरत में नौकरी करता था और करवाचौथ पर घर आया था. वह घर का सामान लेने मूसानगर गया था. लेकिन लौट कर नहीं आया. उन्होंने यह भी बताया कि मृतक की गांव में न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा. पता नहीं उसे किस ने मार डाला.

नरेशचंद्र वर्मा ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कर के हत्यारों को गिरफ्तार करें. तेजतर्रार इंसपेक्टर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपनी जांच की शुरुआत प्रियंका से शुरू की. लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने कई अपराधियों को भी पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा न हो सका. धीरेधीरे डेढ़ महीने बीत गए, लेकिन हत्यारे के बारे में कुछ भी पता न चल सका. निराश हो कर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

29 दिसंबर  को एक मुखबिर थाना मूसानगर पहुंचा और उस ने जितेंद्र कुमार सिंह को बताया कि वह यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन सुरेंद्र की हत्या का राज उस के घर में ही छिपा है. अगर उस की पत्नी प्रियंका और उस के भतीजे करन से पूछताछ की जाए तो हत्या का रहस्य खुल सकता है. क्योंकि करन और प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के जितेंद्र कुमार सिंह ने प्रियंका और करन को हिरासत में ले लिया. थाना पहुंचते ही प्रियंका का चेहरा पीला पड़ गया. थोड़ी सी सख्ती में प्रियंका टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका के टूटते ही करन ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

करन की निशानदेही पर पुलिस ने सेंगुर नदी से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी बरामद कर ली. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सुरेंद्र का कटा हाथ बरामद नहीं हो सका. प्रियंका ने बताया कि उस के पति सुरेंद्र ने उसे करन के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, इसलिए दोनों ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया था.

चूंकि प्रियंका व करन ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रघुराज को वादी बना कर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर प्रियंका व करन को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को दोनों को माती की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. आलोक अपने नाना के घर रह रहा है, जबकि मासूम अंशिका मां के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 3

स्कूल में छुट्टी होने की वजह से गवेंद्र पत्नी से मिलने आगरा पहुंच गया. उस का वहां आना प्रेमलता को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. रात का खाना खा कर वह सो गया.

अचानक उस की आंख खुली तो उस ने प्रेमलता को मोबाइल पर किसी से हंसहंस कर बात करते पाया. उस की बातचीत सुन कर पता चला कि वह किसी बबलू से बातें कर रही थी. उस ने फोन काटा तो गवेंद्र ने पूछा, “यह बबलू कौन है, जिस से तुम इतनी रात को बातें कर रही थी?”

“यहीं पड़ोस में रहता है. उस से किसी काम के लिए कहा था, उसी के बारे में बात कर रही थी.”

“उस के बारे में तुम सुबह भी तो पूछ सकती थी.”

“अभी पूछ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.” प्रेमलता ने तमक कर कहा.

इस के बाद गवेंद्र को नींद नहीं आई. सुबह दोनों में बबलू को ले कर खूब झगड़ा हुआ. बबलू को पता नहीं था कि गवेंद्र अभी गया नहीं है, इसलिए जब दोनों में झगड़ा हो रहा था तो वह प्रेमलता के कमरे पर आ पहुंचा. उसे देख कर गवेंद्र ने पूछा, “तो तुम्हीं बबलू हो?”

गवेंद्र के इस सवाल पर बबलू सिटपिटा गया. घबराहट में बोला, “जी, हम ही बबलू हैं. पिंकी दीदी से कुछ काम था, इसलिए आ गया. जरूरत पडऩे पर कुछ मदद कर देता हूं.”

“कोई अपनी दीदी से देर रात को बातें नहीं करता. बबलू यह सब ठीक नहीं है. मेरे खयाल से तुम्हारा यहां आनाजाना ठीक नहीं है. इन की मदद के लिए मैं हूं न.”

गवेंद्र ने बबलू को दरवाजे से वापस कर दिया. प्रेमलता को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. इसलिए उस ने तय कर लिया कि अब उसे किसी भी तरह गवेंद्र से छुटकारा पाना है. दूसरी ओर गवेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह प्रेमलता के बारे में पिता को बताए या न बताए. उसे लगा कि यह पतिपत्नी के बीच मामला है, इस में पिता को बता कर परेशान करना ठीक नहीं है.

इस तरह रामसेवक को कुछ पता नहीं चला. बच्चों की छुट्टियां पड़ गईं तो गवेंद्र ने बच्चों को आगरा पहुंचा दिया. इस बीच बबलू के साथसाथ उस के दोस्तों विनयकांत और सर्वेंद्र का भी प्रेमलता के यहां आनाजाना हो गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उसी कालेज से बीएमएस कर रहे थे. वहां रहते हुए उमंग और तमन्ना भी बबलू से हिलमिल गए थे.

एक दिन सभी ताजमहल देखने गए, जहां बबलू ने प्रेमलता के साथ फोटो खिंचवाए. इस तरह उन के प्यार का एक प्रमाण भी हो गया. इस के बाद तय हुआ कि गवेंद्र को रास्ते से हटा कर दोनों शादी कर लेंगे. यही नहीं, उस ने पूरी तैयारी भी कर ली. अब उसे मौके की तलाश थी.

30 नवंबर को प्रेमलता ने गवेंद्र को फोन किया तो पता चला कि रामसेवक वोट डालने गांव गए हैं. खेतों की बुवाई भी करानी है, इसलिए वह खेतों की बुवाई कराने तक गांव में ही रहेंगे. प्रेमलता ने बबलू से कहा कि गवेंद्र को निबटाने का यह अच्छा मौका है. बबलू ने अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत को दोस्ती के नाम पर साथ देने के लिए राजी कर लिया. इस तरह गवेंद्र की हत्या की पूरी तैयारी हो गई.

31 दिसंबर, 2015 को प्रेमलता बच्चों के साथ कीरतपुर आ गई. उसे देख कर गवेंद्र ने कहा, “फोन कर देती तो मैं बच्चों को लेने आ जाता.”

“मैं ने फोन इसलिए नहीं किया कि यहां आ कर घर भी देख लूंगी और तुम से भी मिल लूंगी.” प्रेमलता ने कहा.

योजना के अनुसार, 4 दिसंबर, 2015 को बबलू अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ मैनपुरी आ गया. कीरतपुर में ही उस का एक दोस्त रहता था, वे उसी के घर ठहर गए. उन का खाना प्रेमलता ने ही उमंग के हाथों भिजवाया था.

5 दिसंबर को गवेंद्र अपनी स्कूल की ड्यूटी कर के घर आया तो प्रेमलता उसे काफी बेचैन लगी. गवेंद्र ने पूछा तो प्रेमलता ने कहा, “मैं आगरा में रहती हूं तो तुम्हारी और बच्चों की चिंता लगी रहती है.”

गवेंद्र ने कहा, “कुछ दिनों की ही तो बात है. पढ़ाई पूरी होने पर मैनपुरी के आसपास नौकरी की कोशिश की जाएगी.”

प्रेमलता की इन बातों से गवेंद्र का मन साफ हो गया. उसे क्या पता था कि अब उस की जिंदगी कुछ ही घंटों की बची है. रात का खाना बना कर प्रेमलता ने सब को खिलाया. गवेंद्र को खाना खातेखाते ही नींद आने लगी. वह बिस्तर पर जा कर सो गया. प्रेमलता ने बच्चों को भी सुला दिया. जब मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया तो उस ने बबलू को फोन कर के आने को कहा.

बबलू तो तैयार ही बैठा था. वह अपने दोनों साथियों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ आ पहुंचा. प्रेमलता उन्हें उस कमरे में ले गई, जहां गवेंद्र सो रहा था. प्रेमलता ने गवेंद्र को खाने में नींद की गोलियां दे कर सुला दिया था, इसलिए सभी उस की ओर से निङ्क्षश्चत थे.

बबलू गवेंद्र का गला दबाने लगा तो वह जाग गया. उस के विरोध में हुए शोर से दूसरे कमरे में सो रहे उमंग की नींद टूट गई. शोर क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए वह उस कमरे में आया तो देखा 4 लोग उस के पापा को दबोचे हुए थे. लेकिन तब तक गवेंद्र मर चुका था.

उमंग को देख कर सभी के होश उड़ गए. जो जहां था, वहीं खड़ा रह गया. अबब की नजरें उमंग पर टिकी थीं. बबलू एकदम से बोला, “यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई, इस ने जो देखा है, किसी से भी बता सकता है. अब इसे भी खत्म करना होगा.”

“नहीं, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता. तुम लोग लाश को इसी तरह पड़ी रहने दो. मैं इसे भी संभाल लूंगी और लाश को भी संभाल लूंगी. आगे क्या करना है, यह तुम मुझ पर छोड़ दो.” प्रेमलता ने कहा.

इस के बाद बबलू, सर्वेंद्र और विनयकांत चले गए. उन के जाने के बाद प्रेमलता बेटे को डराती रही कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा. अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे भी मार देगी. सवेरा होने पर प्रेमलता ने रोरो कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर के बताया कि गवेंद्र ने आत्महत्या कर ली है. इस के बाद खुद ही थाने जा कर पति की आत्महत्या की सूचना दे दी.

बबलू को उमंग से तो खतरा था ही, ताजमहल में उस ने प्रेमलता के साथ जो फोटो ङ्क्षखचवाए थे, उन से भी वह पकड़ा जा सकता था. इसीलिए वह उन के बारे में पता करने थाने आ गया और पकड़ा गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उमंग से डर रहे थे, इसलिए उन्होंने उस का अपहरण करना चाहा, लेकिन रामसेवक को इस की भनक लग गई तो उन्होंने इस बात की जानकारी थाना विछवां के थानाप्रभारी जी.पी. गौतम को दे दी. जी.पी. गौतम ने उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी.

पूछताछ के बाद बबलू और प्रेमलता को जेल भेज दिया गया है. फरार सर्वेंद्र और विनयकांत की पुलिस तलाश कर रही है.

मनोहर सिंह यादव ने इस मामले का खुलासा मात्र 9 दिनों में कर दिया. इस से खुश हो कर एसएसपी ने उन्हें 5 हजार रुपए ईनाम दिया है. रेनू और मंसूर अहमद ने जिस तरह सूझबूझ से पकड़वाया, इस के लिए उन्हें भी ढाईढाई हजार रुपए ईनाम दिया गया है.

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 2

किशोरीलाल की एक जवान बेटी थी सुधा, जो ग्रैजुएशन कर के उन दिनों घर में बैठी थी. वह पोस्टग्रैजुएशन करना चाहती थी, लेकिन एडमिशन में देरी थी. किशोरीलाल ने सोचा कि सुधा पूरे दिन घर में बैठी बोर होती रहती है, क्यों न इस बीच अस्थाई रूप से उसे अपनी कंपनी में लगवा दे. मन भी बहलता रहेगा, 4 पैसे कमा कर भी लाएगी.

उस ने इस विषय पर राज से बात की तो उसे भला क्या ऐतराज होता. जहां 40-50 लडक़ेलड़कियां काम कर रहे थे, वहां एक और सही. सुधा ने फाइनैंस कंपनी जौइन कर ली. वह खुले विचारों वाली आधुनिक युवती थी. बातचीत में किसी से भी जल्दी घुलमिल जाना और दोस्ती कर लेना उस की फितरत थी.

स्कूल में पढ़ते समय से ही उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. उन में से किसी एक ने उसे धोखा भी दिया था. बहरहाल राज को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी, क्योंकि राज के खूबसूरत होने के साथसाथ कंपनी में भी उस की बड़ी इज्जत थी. कोई न कोई बहाना बना कर सुधा राज के नजदीक जाने की कोशिश करने लगी.

इस कोशिश में उस ने घुमाफिरा कर कई बार उस से प्यार करने का इशारा किया. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह एक लडक़े से प्यार करती थी, लेकिन उस ने उसे धोखा दे दिया था. अब मांबाप उस की शादी करना चाहते हैं, लेकिन वह अभी शादी नहीं करना चाहती.

राज ने उस की कोशिश को नाकाम करते हुए उसे समझाया कि उसे इन बातों पर ध्यान न दे कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. फिर अभी उसे आगे की पढ़ाई भी करनी है. उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी उस का पूरा जीवन पड़ा है. उसे इस तरह की फिजूल की बातें दिमाग में नहीं लाना चाहिए.

राज की बातों पर गौर किए बगैर सुधा सुधरने के बजाय मैसेज करने लगी. उन संदेशों में वह राज से सलाह मांगती कि अब उसे क्या करना चाहिए, साथ ही बीचबीच में प्यार के इजहार वाले मैसेज भी कर देती थी. सुधा के इन संदेशों से परेशान हो कर राज ने उसे संदेश भेजा कि वह उस का समय बरबाद न करे, जैसा उस ने उसे समझाया है, वह वैसा ही करे.

संयोग से किसी दिन सुधा का फोन उस के भाई सुरजीत के हाथ लग गया. उस ने मैसेज बौक्स में बहन के भेजे मैसेज देखे तो गुस्से से पागल हो उठा. उस ने बहन को समझाने के बजाय राज को सबक सिखाने का इरादा बना लिया. जबकि राज का इस मामले में कोई दोष नहीं था. बहन से उस ने कुछ कहना इसलिए उचित नहीं समझा, क्योंकि वह उस की फितरत को जानता था. उस ने मैसेज वाली बात मांबाप को भी बता दी थी.

यह सब सुन कर किशोरीलाल तो इतना शर्मिंदा हुए कि उन्होंने नौकरी पर जाना ही बंद कर दिया. सुधा की भी नौकरी छुड़वा दी गई. सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए थाने के अपने एक परिचित हवलदार को कुछ रुपए दे कर कहा कि राज उस की बहन से छेड़छाड़ कर के उसे परेशान करता है. वह उसे किसी झूठे मुकदमे में फंसा कर जेल भिजवा दे.

हवलदार, जिस का नाम जसबीर था, ने फोन कर के राज को थाने बुलाया. फोन पर उस ने राज को धमकाते हुए कहा था कि थाने में उस के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज है. अगर वह थाने नहीं आया तो वह उसे उस के औफिस से गिरफ्तार कर लेगा.

समझदारी दिखाते हुए राज ने यह बात अपने पत्रकार पिता अमन सिंह को बता दी, साथ ही सुधा द्वारा भेजे गए संदेशों के बारे में भी बता दिया. अमन इस बारे में मेरे पास सलाह लेने आया. मेरे पास आने से पहले उस ने हवलदार जसबीर सिंह को फोन कर के अपना परिचय दे कर पूछा था कि उस के बेटे राज से उसे ऐसा क्या काम है, जो वह उसे थाने बुला रहा है.

पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी फोन कर के हवलदार जसबीर सिंह से यही बात पूछी तो उस दिन के बाद उस ने राज को कभी फोन नहीं किया. इस के बाद अमन सिंह इस मामले को सुलझाने के लिए राज की कंपनी के मैनेजर से मिले. उन्होंने किशोरीलाल को औफिस में बुलवाया, जिस से आमनेसामने बैठ कर बातचीत हो सके और जो भी गलतफहमी हो दूर की जा सके.

तय समय पर राज, अमन सिंह और किशोरीलाल मैनेजर की केबिन में इकट्ठा हुए. किशोरीलाल के साथ उस की पत्नी और बेटा सुरजीत भी आया था. सुरजीत के बारे में जैसा मुझे पता चला था, उस के हिसाब से वह अपनी मां के लाड़प्यार में बिगड़ा आवारा किस्म का लडक़ा था. वह दिन भर गुंडागर्दी और आवारागर्दी किया करता था. वह खुद को किसी तीसमार खां से कम नहीं समझता था.

बातचीत शुरू हुई तो सुरजीत और उस की मां किशोरीलाल को चुप करा कर जोरजोर से बोल कर राज पर झूठे आरोप लगाने लगे. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, वे उसे सजा दिलाने की बात कर रहे थे. अंत में मैनेजर साहब को हस्तक्षेप करना पड़ा.

उन्होंने कहा, “मैं राज को 5 सालों से जानता हूं. वह कैसा है, यह तुम लोगों को बताने की जरूरत नहीं है. रही बात सुधा की तो उसे भी 10 दिनों में जान लिया. फायदा इसी में है कि बात को यहीं खत्म कर दिया जाए.”

उस दिन समझौता तो हो गया, लेकिन जातेजाते सुरजीत ने राज को धमकाते हुए कहा, “मैं तुम्हें देख लूंगा.”

यह बात भी यहीं खत्म हो गई. उस दिन जो समझौता हुआ था, सुरजीत उस से बिलकुल खुश नहीं था. वह राज को सजा दिलाना चाहता था. सजा भी ऐसी कि वह मुंह दिखाने लायक न रहे.

2 महीने तक शांत रहने के बाद सुरजीत ने राज को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना में उस ने कालगर्ल जीतो और 2 आवारा लडक़ों नरेश तथा कुलदीप को शामिल किया. उस ने उन से कहा कि योजना सफल होने पर वह उन्हें मोटी रकम देगा.

उस की योजना के अनुसार, नरेश को किसी सुनसान जगह पर जीतो के साथ शारीरिक संबंध बनाना था. उस के बाद जीतो थाने जा कर शिकायत दर्ज कराती कि उस के साथ दुष्कर्म हुआ है. जीतो पुलिस को उस जगह ले जाती, जहां दुष्कर्म हुआ था. नरेश और कुलदीप वहीं छिपे रहेंगे, जिन्हें पुलिस दुष्कर्म का साथी मान कर थाने ले आती.

थाने आ कर जीतो बताती कि इन दोनों ने दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म इन के दोस्त ने किया था, जो भाग गया है. पुलिस जब नरेश और कुलदीप से उन के दोस्त का नाम पूछती तो वे उस का नाम राज बता कर उस का मोबाइल नंबर देते हुए उस के बारे में पूरी जानकारी दे देते.

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 2

निरीक्षण में घर के अंदर ही हत्या में प्रयुक्त खून से सना चाकू और खून लगी एक शर्ट मिल गई थी. एक मेज पर शराब की खुली बोतल, स्टील का गिलास और पानी की बोतल रखी मिली थी. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम ने जरूरी नमूने उठा कर संदिग्ध सामान को सुबूत के तौर पर कब्जे में ले लिया था. इस के अलावा पुलिस को वहां कोई अन्य सुबूत नहीं मिला था. घटनास्थल को देख कर लगता था कि हत्याओं को पूरी प्लानिंग के साथ निर्दयतापूर्वक देर रात अंजाम दिया गया था.

मरने से पहले मृतक जय सिंह और कुलवंत कौर ने विरोध किया था. उन के हाथों पर आए घाव इस बात की गवाही दे रहे थे. खास बात यह थी कि घर का सामान यथास्थान रखा था. इस से जाहिर होता था कि मामला लूट का नहीं था. हरमीत गफलत की सी स्थिति में था. यह सदमा भी हो सकता था और नाटक भी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने पूछा, ‘‘क्या तुम कुछ बता सकते हो कि यह सब कैसे और कब हुआ?’’

हरमीत ने कोई जवाब नहीं दिया तो डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने उस की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारा दुख अच्छी तरह समझते हैं. लेकिन कातिल को पकड़ने के लिए जांच तो करनी ही होगी. जांच में तुम्हारा सहयोग जरूरी है. तुम सहयोग करोगे, तभी हम कातिल तक पहुंच पाएंगे.’’

‘‘वे लोग बहुत खतरनाक थे सर.’’ डूबे लहजे में हरमीत ने कहा.

‘‘वे कौन थे?’’

‘‘मैं पहचानता नहीं सर. सभी नकाब बांधे हुए थे. एकएक कर के उन्होंने सब को मार दिया. वे मुझे भी मारना चाहते थे, लेकिन मैं भाग कर बाथरूम में छिप गया. कंवलजीत को भी मैं ने अपने पास छिपा लिया था. वह मेरे पास आ रहा था तो किसी बदमाश ने पीछे से चाकू मार दिया था.’’ इतना कह कर हरमीत सिर पकड़ कर रोने लगा.

उस समय ऐसी स्थिति थी कि हरमीत से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस ने डरेसहमे कवंलजीत को पुचकार कर हत्यारों के बारे में पूछा तो वह डरतेडरते बोला, ‘‘अंकल नकाब वाले 3 आदमी थी.’’

कंवलजीत बहुत डरा हुआ था, इसलिए उस से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस उस के पिता के आने का इतजार करने लगी. हरमीत और कंवलजीत ही थे, जिन से पूछताछ कर के जांच आगे बढ़ाई जा सकती थी.

मामला सामूहिक हत्याओं का था. पौश इलाके में 4 हत्याओं की यह सनसनीखेज खबर बहुत जल्दी जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. देखते ही देखते सैंकड़ों लोग एकत्र हो गए. इस हत्याकांड से समूची राजधानी दहल तो उठी ही थी, लोगों में आक्रोश भी था. सूचना पा कर जय सिंह के नातेरिश्तेदार आ गए थे. उन के आने के बाद माहौल काफी गमगीन हो गया था. हत्याओं का हर किसी को अफसोस था, लेकिन हत्या किस ने की, यह किसी की समझ नहीं आ रहा था.

घटनास्थल की तमाम काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने मृतकों के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए थे. इस के बाद मृतक जय सिंह के भतीजे अजीत सिंह की तहरीर पर थाना कैंट में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ अपराध संख्या 187/14 पर धारा 302 व 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

घटना कानूनव्यवस्था को चुनौती देने वाली थी. एडीजी राम सिंह मीना ने अधीनस्थों को मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया. मृतकों के नातेरिश्तेदारों और पड़ोसियों से की गई शुरुआती पूछताछ में जो सामने आया, उस के अनुसार, जय सिंह अपनी पत्नी कुलवंत कौर और बेटे हरमीत के साथ इस घर में रहते थे. हरमीत आवारा प्रवृत्ति का युवक था. उस की इस प्रवृत्ति से घर के सभी लोग परेशान थे.

हरजीत कौर की जय सिंह गोद ली हुई बेटी थी. वह हरियाणा के यमुनानगर में ट्रांसपोर्टर अरविंदर सिंह को ब्याही थी. दीवाली का त्योहार मनाने और प्रसव कराने वह अपने दोनों बच्चों कंवलजीत और सुखमणि के साथ पिता के घर आई थी. 2-4 दिनों में ही प्रसव होना था. डाक्टरों ने समय भी दे रखा था. उस के पति को भी घटना की सूचना दे दी गई थी.

पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, जय सिंह की पत्नी कुलवंत कौर की कोई संतान नहीं थी. हरमीत जय सिंह की दूसरी पत्नी अनीता का बेटा था. अनीता अपने छोटे बेटे पारस के साथ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में रहती थी. चौंकाने वाली बात यह थी कि आसपड़ोस के किसी ने भी सिंह परिवार की चीखपुकार नहीं सुनी थी. सुरक्षा की दृष्टि से कालोनी के बाहर गेट लगा था. उस पर चौकीदार भी रहता था. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि कालोनी का गेट रात साढ़े दस बजे बंद हो जाता था तो सुबह 6 बजे खुलता था. यह काम चौकीदार खुद करता था. सुबह गेट खोल कर वह अपने घर चला जाता था.

पुलिस ने इस बारे में सोचा कि अगर ऐसा था तो फिर हत्यारे अंदर कैसे आए? कहीं चौकीदार की मिलीभगत तो नहीं थी. थानाप्रभारी वी.के. जेठा ने उसे बुलवा कर पूछताछ की तो उस ने दावे के साथ कहा कि वह मुस्तैदी के साथ ड्यूटी पर था और उस रात कोई भी बाहरी आदमी कालोनी के अंदर नहीं आया था. चौकीदार की बातों से पुलिस को लगा कि वह सच बोल रहा था.

अब पारिवारिक पृष्ठभूमि और चौकीदार के बयानों से हरमीत की भूमिका संदिग्ध हो गई. सोचने वाली बात यह थी कि हत्यारों ने लूटपाट नहीं की थी. घर में रखी नगदी और कीमती सामान के अलावा कुलवंत और हरजीत कौर ने जो गहने पहन रखे थे, वे सुरक्षित थे.

सोचने वाली बात यह थी कि अगर हत्यारे पूरे परिवार को खत्म करना चाहते थे तो हरमीत को जिंदा क्यों छोड़ दिया. वह युवा था. सब से ज्यादा विरोध वही कर सकता था. इस से भी प्रमुख वजह यह थी कि उस ने रात से ले कर सुबह तक शोर मचा कर किसी को कुछ नहीं बताया था. यहां तक की नौकरानी को भी उस ने टरकाने की कोशिश की थी.

पुलिस ने हरमीत को हिरासत में ले लिया. इसी बीच मृतका हरजीत कौर का पति अरविंदर आ गया. उस ने बेटे कंवलजीत को ढांढस बंधा कर प्यार से पुचकार कर पूछा तो वह रोते हुए बोला, ‘‘पापा, सभी को मामा ने मारा है.’’

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 2

राधा भी बह गई नेत्रपाल के प्यार में

जब वह मुसकान बिखेरती हुई रसोई में गई तो उस की मतवाली चाल देख कर नेत्रपाल का दिल जोरों से धडक़नें लगा. कुछ देर में राधा 2 कप चाय और बिस्कुट ले आई.

चाय पीतेपीते नेत्रपाल ने पूछा, “भाभी, एक बात पूछूं, तुम्हारी आंखों में मुझे एक उदासी सी तैरती दिखती है. तुम भैया के साथ खुश तो हो न..?”

राधा ने घूर कर नेत्रपाल को देखा, “यह खयाल तुम्हारे मन में कैसे आया?”

“बस यूं ही आ गया. तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर मुझे उदासी अच्छी नहीं लगती.”

“माना मैं उदास रहती हूं. अब बताओ, मेरी उदासी दूर करने को तुम क्या कर सकते हो?” अप्रत्याशित सवाल पूछ कर राधा ने अपनी नशीली आंखों से उसे देखा.

“तुम्हें खुश करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.” नेत्रपाल सिंह ने भी कह दिया.

“अच्छा!” राधा ने आंखें नचाईं, “औरत को खुश कैसे रखा जाता है, यह जानते भी हो?”

“भाभी, तुम बताओगी तो जान जाऊंगा. आखिर तुम मेरी प्यारी भाभी हो, इस जहां में सब से अच्छी. सब से सुंदर.” नेत्रपाल ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया.

राधा ने अपनी तारीफ, अपनी खूबसूरती के ऐसे बोल पहली बार सुने थे. नारी सुलभ कमजोरी उस पर हावी होने लगी. उस ने कस कर नेत्रपाल सिंह का हाथ पकड़ लिया, “हाथ पकड़ कर कभी छोड़ोगे तो नहीं?”

“कभी नहीं भाभी. मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.” कह कर उस ने राधा को अपनी बांहों में भर लिया. राधा भी उस से लिपट गई. नेत्रपाल ने राधा के शरीर से छेड़छाड़ शुरू की तो राधा का मन भी बेकाबू होने लगा. लेकिन वह उचित समय न था, अपनी ख्वाहिशों में मस्ती भरने का. अत: वह नेत्रपाल की बांहों से छिटक गई.

फिर कामुक निगाहों से उसे देखती हुई बोली, “अभी जाओ, कोई आ जाएगा. रात को आना. मैं जानवरों वाले बाड़े में तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

झोपड़ी में हुआ पहला मिलन

नेत्रपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने अपने कपड़े दुरुस्त किए. इधरउधर नजर दौड़ाई, फिर राधा के घर से बाहर निकल आया.

उस शाम राधा ने जल्दीजल्दी खाना खिला कर बच्चों को सुला दिया. ससुर ओमप्रकाश खेत से आते ही अपनी घासफूस की बनी झोपड़ी में चले गए. वहीं उन्होंने खाना खाया. राधा के पति अश्वनी की उस दिन तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. अत: वह भी दवा खा कर बिस्तर पर पड़ते ही सो गया.

राधा ने जल्दीजल्दी रसोई का काम निपटाया और घर का मुख्य दरवाजा बाहर से बंद कर बगल में बने जानवरों के बाड़े में पहुंच गई. फिर वह नेत्रपाल का इंतजार करने लगी. रात के 10 बजतेबजते सिरसा दोगड़ी गांव में सन्नाटा छा गया था.  सब के दरवाजे बंद हो चुके थे. तभी एक साया अश्वनी के जानवरों वाले बाड़े के बाहर दिखाई दिया. उस ने बाड़े के दरवाजे को ढकेला तो वह खुल गया. अंदर मौजूद राधा ने साए को अंदर खींच कर दरवाजा बंद कर लिया. वह नेत्रपाल ही था.

बाड़े के अंदर आते ही नेत्रपाल ने राधा को अपनी बांहों में भरा और दोनों जमीन पर लुढक़ गए. नेत्रपाल ने राधा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाहट की, “सब सो गए?”

“हां, लेकिन ससुर का पता नहीं, कब जाग जाएं. हमारे पास बहुत कम वक्त है. बेटा उठ गया तो रोने लगेगा.”

हसरतें पूरी करने की चाहत से दोनों सराबोर थे. उन के शरीर भी मिलन को बेताब थे. अत: जल्दी ही दोनों एकदूसरे में समा गए. फिर तो असीम सुख प्राप्त करने के बाद ही वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उस रात को नेत्रपाल के लिए यह पहला स्त्री सुख था, इसलिए वह देर तक राधा को चूमता रहा. राधा के लिए यह पहला मनमुताबिक सुख था. इसलिए वह उस के बाल सहलाती रही. उस के सीने को अंगुलियों से हरारत देती रही. उस रात के बाद राधा और नेत्रपाल जैसे एक जिस्म दो जान हो गए.

उन के अवैध संबंध जारी रहे

अश्वनी तथा उस के पिता ओमप्रकाश सुबह खाना खाने के बाद खेत पर चले जाते थे. फिर शाम को ही आते. दोपहर को राधा अकेली होती थी. दोपहर का सन्नाटा होते ही नेत्रपाल उस के घर में घुस जाता. दोनों की देह एकदूजे से लिपटती, फिर शरीर का कामज्वर उतारने के बाद ही अलग होती.

राधा का जीवन अब मस्ती से भर गया था. वह पूरी तरह अवैध संबंधों के दलदल में फंस चुकी थी. वह पति की उपेक्षा भी करने लगी थी. अश्वनी समझता था कि राधा बच्चों के पालनपोषण व घर के काम में इतनी थक जाती है जिस से वह उस का ध्यान नहीं रख पाती.

नेत्रपाल सिंह जहां राधा से प्यार करता था, वहीं उस के बच्चों को भी दुलारता था और खिलाता पिलाता था. वह जब भी घर आता, बच्चों को बिस्कुट, नमकीन, चिप्स, कुरकुरे आदि जरूर लाता. इन चीजों को पा कर बच्चे खुश हो जाते. राधा की बेटी व बेटा नेत्रपाल को चाचा कह कर बुलाते थे. हालांकि अश्वनी नेत्रपाल का घर आना तथा बच्चों को सामान ला कर देना पसंद नहीं करता था.

नेत्रपाल शातिर दिमाग था. वह खुद तो शराबी था ही, उस ने राधा के पति अश्वनी को भी शराब का चस्का लगा दिया था. सप्ताह में एक या दो बार वह शराब की बोतल ले कर अश्वनी के घर आ जाता फिर थकान मिटाने का बहाना कर उसे शराब पीने को प्रेरित करता. अश्वनी भी नानुकुर के बाद राजी हो जाता. साथसाथ शराब पीने से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

नेत्रपाल के अकसर अश्वनी के घर में घुसे रहने पर आसपड़ोस को शक होने लगा तो चौपाल पर दोनों के संबंधों की चर्चाएं होने लगीं. कनबतियां एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंचीं और बात ओमप्रकाश के कानों तक पहुंच गई.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार – भाग 2

पिछले 8 सालों से सविता पास के ज्ञान भारती स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी. स्कूल से वापस आने के बाद उसे पति की गालियां सुनने को तो मिलती ही थीं, साथ में अपने पीटे जाने का दर्द भी झेलना पड़ता. 3-3 जवान बच्चों के पिता होने के बाद भी मधुसूदन की हरकतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं.

सविता को अब मधुसूदन के साथ जिंदगी का एकएक पल बिताना भारी पड़ रहा था. लेकिन वह करे भी तो क्या करे, उस का कोई और ठिकाना नहीं था. वैसे भी वह घर जितना मधुसूदन का था, उतना ही सविता का का भी. वह घर छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. सविता के दिमाग में अजीब सी उथलपुथल मची रहती थी.

लगभग 2 साल पहले एक खूबसूरत हैंडसम नौजवान सविता के स्कूल में बच्चों को विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए आया. उस नौजवान का नाम था आशीष वर्मा उर्फ टीनू. वह अविवाहित था और बादशाहपुर में ही रहता था.

आशीष सविता से 10 साल छोटा था. एक ही स्कूल में दोनों पढ़ाते थे, इसलिए दोनों का पहले मिलना जुलना, फिर बात करना शुरू हुआ. दोनों को एकदूसरे का साथ और बातें करना ऐसा भाया कि दोनों दोस्त बन गए. सविता को आशीष में एक अच्छे हमसफर के गुण दिखने लगे. हर लिहाज से आशीष साधारण से दिखने वाले शराबी पति मधुसूदन से लाख गुना अच्छा लगा था.

आशीष जैसे हमसफर की सविता ने कामना की थी, लेकिन समय और किस्मत ने कुछ ऐसा खेल खेला कि उस की शादी उस से 13 साल बड़े साधारण से दिखने वाले टेलर मास्टर मधुसूदन से हो गई. उस से शादी कर के मधुसूदन को खुश होना चाहिए था, अपनी पलकों पर बैठा के रखना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उल्टा. मधुसूदन ने कभी उस की कद्र नहीं की, प्यार देने के बजाय उसे गाली देता रहता और मारतापीटता रहता था.

आशीष ने दिल में बसा लिया था सविता को

जहां मधुसूदन ऐसा था, वहीं दूसरी तरफ आशीष सविता की परवाह करता था, उस की कद्र करता है, उस के लिए पलक पावड़े बिछाए रहता था. उस की तारीफ करता, उस के काम की सराहना करता, हर काम में उस की मदद करता. ऐसा इंसान जिंदगी में आ जाए तो इंसान खुशी से फूला नहीं समाता. सविता भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी.

वह आशीष के नजदीक रहतेरहते उस से प्यार करने लगी थी, उस के साथ ही आगे की जिंदगी बिताना चाहती थी. आशीष के प्रति उस का प्यार उस की आंखों से साफ झलकता था. आशीष भी उसे चाहने लगा था, क्योंकि सविता जितनी अच्छी तरह से उसे समझती थी, अपनापन जताती थी, उतना समझने वाला अपनापन जताने वाला कोई नहीं था. सविता की खनकती हंसी और उस की मीठी बोली उस के दिल को लुभाती थी.

सविता उम्र में उस से बड़ी जरूर थी, लेकिन देखने में उस से बड़ी लगती नहीं थी. सविता उस से लाख हंस कर बातें करती थी, लेकिन आशीष उस की आंखों में उस के बात करने के लहजे में कभीकभी बहुत दर्द महसूस करता था. सविता के दिल में कैद दर्द जब भी उस के चेहरे और आवाज में झलकता तो आशीष भी बेचैन हो उठता था. घूमने, खानेपीने दोनों अकसर साथ बाहर जाते रहते थे.

एक दिन जब दोनों रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे, तब आशीष ने सविता को थोड़ा कुरेदा और उस के दर्द की वजह जानने के उद्देश्य से सविता से पूछा, “सविता, मैं ने कई बार तुम्हारी आवाज में दर्द महसूस किया है. ऐसा क्या दर्द है तुम को, जो असहनीय है. वह समयसमय पर छलक कर बाहर आ ही जाता है. कहते हैं दर्द बांटने से हल्का होता है, तुम मुझे बता कर अपना दर्द कम कर सकती हो, अगर मुझे अपना मानती हो तो…”

आशीष ने सविता के दिल के जख्मों पर लगाया प्यार का मरहम

आशीष ने सविता की आंखों में झांकते हुए अपना मानने वाली बात कही. जैसे वह सविता के अंदर की बात जानने का प्रयास कर रहा हो कि सविता के लिए वह कितना मायने रखता है. सविता भी उस से अपना दर्द छिपातेछिपाते परेशान हो गई थी और वह भी चाहती थी कि वह अपना हाल आशीष को बता दे, फिर देखे आशीष क्या प्रतिक्रिया देता है.

आशीष उस के साथ रिश्ता बना कर आगे बढऩे का इच्छुक होगा तो उस के दर्द को समझेगा और उस के दर्द पर अपने प्यार का मरहम लगाएगा और उसे दर्द से निजात दिलाएगा, नहीं तो वह पीछे हट जाएगा.

सविता को भी आशीष की प्रतिक्रिया जानने की जल्दी थी, इसलिए उस ने आशीष से कहा, “क्या करोगे जान कर, मेरा दर्द दूर नहीं होगा, बल्कि कुरेदने से और बढ़ जाएगा. तुम भी नाहक परेशान हो जाओगे. तुम इस में कुछ कर भी नहीं सकते. वैसे तुम्हें अपना ही मानती हूं, इसीलिए तुम्हारे साथ बैठ कर बातें कर लेती हूं, घूम लेती हूं. वरना सब होते हुए भी मेरा कोई सहारा नहीं, न ही मुझे कोई समझने वाला.”

आशीष तड़प उठा, “ये कैसी बातें कर रही हो सविता. एक पल में मुझे अपना कहती हो, दूसरे ही पल मुझे पराया कर देती हो. मैं तुम्हारा अपना हूं, मैं तुम्हें अपना मानता हूं इसलिए तुम्हारे साथ समय बिताता हूं, बातें करता हूं. मेरे रहते हुए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. कोई दिक्कत है तो मैं बनूंगा तुम्हारा सहारा.” आशीष ने सविता को विश्वास दिलाते हुए कहा.

आशीष की बातों से सविता के अंदर का विश्वास जागा कि आशीष उस का साथ जरूर निभाएगा तो उस ने अपना दर्द बयान कर दिया. पति मधुसूदन के शराबी होने की बात और उस के द्वारा रोज गालियां देते हुए पिटाई करने की बात बता दी.

जाल में उलझी जिंदगी

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 2

सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई.

अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई.

इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा.

उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.

पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.

25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.

सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 2

प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.

करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”

“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”

करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.

अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.

वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”

“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.

प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”

प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”

आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.

प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर  के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.

सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.

सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.

इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.

अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”

प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”

सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 2

उन्होंने उस लडक़े को प्रेमलता से मिलने की इजाजत तो दे दी, लेकिन महिला सिपाही रेनू सारस्वत को उस के पीछे लगा दिया कि वह किसी भी तरह उन की बातें सुनने की कोशिश करे. रेनू उधर से गुजरी तो लडक़ा कह रहा था, “तुम ने ताजमहल वाले फोटो जला दिए हैं न?”

“हां, जला दिए हैं. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है?”

यह सुन कर रेनू चौंकी. वह तुरंत मुंशी मंसूर अहमद के पास पहुंची और उन से बता दिया कि प्रेमलता से जो लडक़ा मिलने आया है, वही बबलू है. मंसूर अहमद तेजी से बाहर आए. बबलू को शायद शक हो गया था, इसलिए वह तेजी से बाहर की ओर चला जा रहा था. मंसूर अहमद ने संतरी को आवाज देते हुए तेजी से उस की ओर दौड़े. आखिर उन्होंने उसे दबोच ही लिया.

इस के बाद उसे अंदर ला कर पूछताछ की गई तो एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई, जिस में प्रेम की राह में रोड़ा बनने वाले गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या कर दी गई थी. यह पूरी कहानी इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी का एक गांव है भरथरा, जहां महेशचंद फौजी परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटे और 4 बेटियां थीं. प्रेमलता उन में सब से बड़ी थी. उस ने बीए करने के बाद बीएड किया और नौकरी की तलाश में लग गई. इसी के साथ महेशचंद उस की शादी के लिए लडक़ा ढूंढऩे लगे.

महेशचंद की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी, बेटी भी पढ़ीलिखी थी. इसलिए वह उस के लिए खातेपीते परिवार का पढ़ा लिखा लडक़ा तलाश रहे थे. इसी तलाश में उन्हें किसी से जिला एटा के थाना बागवाला के गांव लोहाखार के रहने वाले रामसेवक के बेटे गवेंद्र के बारे में पता चला तो वह उस के घर जा पहुंचे.

रामसेवक का खातापीता परिवार था. उस के पास ठीकठाक जमीन थी. गांव में पक्का मकान था, एक मकान मैनपुरी के नगला कीरतपुर में भी था. गवेंद्र ने पौलिटैक्निक करने के साथ बीए भी कर रखा था. वह नौकरी की तलाश में था.  महेशचंद को गवेंद्र प्रेमलता के लिए पसंद आ गया. उसे लगा कि गवेंद्र को जल्दी ही कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. उस के बाद उन की बेटी की जिंदगी संवर जाएगी.  उस ने गवेंद्र को प्रेमलता के लिए पसंद कर लिया और उस के साथ प्रेमलता की शादी कर दी.

प्रेमलता ससुराल आ गई. रामसेवक का छोटा सा परिवार था. पतिपत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी नीरज थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. इसलिए घर में सिर्फ 4 ही लोग बचे थे. प्रेमलता को पूरा विश्वास था कि उस के पति को जल्दी ही कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. वैसे घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पति की कमाई की बात अलग ही होती है.

गवेंद्र नौकरी की कोशिश में लगा था, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही थी. इस बीच वह 2 बच्चों उमंग और तमन्ना का पिता बन गया. प्रेमलता खुद भी बीए, बीएड थी. लेकिन बच्चे छोटे थे, दूसरे गवेंद्र नहीं चाहता था कि वह नौकरी करे, इसलिए प्रेमलता ने अपने लिए कोशिश नहीं की.

सन 2012 में गवेंद्र को मैनपुरी के कीरतपुर स्थित सेवाराम जूनियर हाईस्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नौकरी भले ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की थी, लेकिन सरकारी थी, इसलिए उस ने इसे जौइन कर लिया. लेकिन प्रेमलता को यह नौकरी पसंद नहीं थी, वह शायद किसी अधिकारी की बीवी बनना चाहती थी. चपरासी की बीवी कहलवाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था. इसलिए उस ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा. वह अपने कैरियर के बारे में सोचने लगी. उस के बच्चे भी बड़े हो गए थे, इसलिए वह खुद कुछ कर के समाज में नाम और पैसा कमाना चाहती थी.

उसी बीच ससुराल जाते समय बस में उस की मुलाकात बबलू से हुई. बबलू भी उसी सीट पर बैठा था. रास्ते में बबलू उस के बच्चों से बातें करतेकरते उस से भी बातें करने लगा. उस ने बताया कि वह आगरा के आईआईएमटी कालेज से जीएनएम (जनरल नॄसग मिडवाइफरी) का कोर्स कर के आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल में नौकरी करता है.

जब प्रेमलता ने कहा कि उस ने भी बीए, बीएड किया है, लेकिन लगता नहीं कि उसे नौकरी मिलेगी तो उस ने कहा, “अगर तुम जीएनएम का कोर्स कर लो तो जल्दी ही तुम्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. रही बात दाखिले की तो वह तुम मुझ पर छोड़ दो.”

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. 2-4 दिन ससुराल में रह कर प्रेमलता पति के पास आई तो उस ने गवेंद्र से कहा, “भई अब इस तरह काम नहीं चलेगा. बच्चों के भविष्य के लिए मुझे भी कुछ करना होगा. बीए, बीएड से तो नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए मैं जीएनएम का कोर्स करना चाहती हूं. इस से किसी न किसी अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी.”

गवेंद्र को लगा कि अब बच्चे समझदार हो गए हैं. ऐसे में प्रेमलता कुछ करना चाहती है तो इस में बुराई क्या है. वह प्रेमलता को जीएनएम का कोर्स कराने के लिए राजी हो गया. गवेंद्र के पिता रामसेवक रिटायर हो चुके थे. इसलिए अब वह भी उसी के साथ रहने लगे थे.

प्रेमलता ने बबलू की मदद से आईआईएमटी में अपना दाखिला करा लिया. बबलू उसे सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने लगा. प्रेमलता की पढ़ाई शुरू हो गई. बबलू लायर्स कालोनी में कमरा किराए पर ले कर रहता था. प्रेमलता को भी उस ने उसी कालोनी में कमरा दिला दिया. अब दोनों की रोज मुलाकात होने लगी. बबलू प्रेमलता के कमरे पर भी आनेजाने लगा.

लगातार मिलने और कमरे पर आनेजाने से प्रेमलता और बबलू में प्यार ही नहीं हो गया, प्रेमलता ने उस से शारीरिक संबंध बना कर उस ने रिश्तों की मर्यादा भंग कर दी. सपनों को ख्वाहिश बनाया तो तन और मन से पति से ही नहीं, बच्चों से भी दूर हो गई.

बबलू को जब लगा कि प्रेमलता पूरी तरह से उस की हो गई है तो उस ने उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. तब प्रेमलता ने कहा, “बबलू यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि गवेंद्र मुझे आसानी से छोडऩे वाला नहीं है.”

“तो ठीक है, मैं उसे रास्ते से हटाए देता हूं.” बबलू ने कहा तो प्रेमलता गंभीर हो कर बोली, “यह तो और भी आसान नहीं है.”

प्रेमलता भी अब गवेंद्र से छुटकारा पा कर बाकी की जिंदगी बबलू के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन वह उसे छोड़ कर बबलू से शादी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने पर मायके वाले उस का साथ न देते. इसलिए वह बड़ी उलझन में फंसी थी. वह इस बारे में कुछ करती, उस के पहले ही उस की पोल खुल गई.