बिना ईमान की औरत : शादाब के घर में रचा हत्या का खेल

फोन पर उस की बुआ के बेटे रिजवान कुरैशी ने बताया कि 3-4 दिन पहले 4-5 लोगों ने उस के बहन बहनोई के घर में घुस कर उन के साथ मारपीट की और उस के बहनोई की हत्या कर के उस की बहन गुलशबा को अगवा कर ले गए.

मैं मौके पर मौजूद था. मैं ने जब उन का विरोध किया तो उन्होंने मारपीट कर मुझे भी घायल कर दिया. गुलशबा अपने पति मनोज सोनी उर्फ कैफ के साथ नायगांव परिसर स्थित बिट्ठलनगर के फ्लैट में रहती थी.

इस के पहले कि शादाब कुरैशी रिजवान से इस बारे में कोई बात पूछता, फोन कट गया. कई बार कोशिश के बाद भी जब रिजवान से संपर्क नहीं हो पाया तो सच्चाई जानने के लिए शादाब बहन के फ्लैट पर पहुंच गया.

फ्लैट के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी, अंदर से थोड़ी बदबू भी आ रही थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह फ्लैट 3-4 दिनों से बंद पड़ा है. उन्होंने फोन कर के उस फ्लैट के मालिक को बुला लिया था. मामला संदिग्ध था, इसलिए मकान मालिक ने मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने को दे दी थी.

रात करीब एक बजे थाना शांतिनगर के थानाप्रभारी किशोर जाधव अपने सहायक पीआई मनजीत सिंह बग्गा, एसआई जी.के. वाघ, दिनेश लोखंडे, एएसआई डी.के. सोनवणे, सिपाही सुनील इंथापे, टी.बी. वड़ को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने देखा कि गुलशबा के फ्लैट पर ताला लटका हुआ था. चूंकि उस ताले की चाबी किसी के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताले को तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही अंदर से तेज बदबू का झोंका आया, जिस से वहां खड़े लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया.

नाक पर रूमाल रख कर पुलिस टीम जब कमरे में गई तो वहां का नजारा देख कर स्तब्ध रह गई. फर्श पर खून के जमे हुए धब्बे नजर आ रहे थे, जो सूख कर काले पड़ गए थे.

दरवाजे के पीछे कपड़ों का एक पुलिंदा रखा हुआ था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर बाहर आ गया था. उस पुलिंदे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लाश का धड़ और सिर दोनों अलगअलग थे. शादाब कुरैशी ने उस लाश की शिनाख्त अपने बहनोई मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ के रूप में की.

लाश देख कर लग रहा था कि उस की हत्या 3-4 दिन पहले की गई होगी,जिस से शव में सड़न पैदा हो गई थी. थानाप्रभारी किशोर जाधव ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. खबर पाते ही ठाणे जिले के डीसीपी मनोज पाटिल, एसीपी मुजावर तत्काल मौकाएवारदात पर आ गए. उन्होंने भी मृतक के साले शादाब और अन्य लोगों से पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिवंडी के आईजीएस अस्पताल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने शादाब कुरैशी की तरफ से हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के मामले की जांच सहायक पीआई मंजीत सिंह बग्गा को सौंप दी. शादाब ने शक अपनी बुआ के बेटे रिजवान पर ही जताया था. फुफेरे भाई के अलावा रिजवान रिश्ते में शादाब का साला भी था.

संदेह के दायरे में रिजवान कुरैशी

शुरुआती जांच में रिजवान कुरैशी पुलिस के रडार पर आ गया था. उस ने जिस प्रकार से मामले की जानकारी शादाब कुरैशी को दी थी, वह आधीअधूरी थी. इस के अलावा मृतक के तीनों बच्चे अपने नानी के घर सहीसलामत थे. बच्चों की मां गुलशबा खुद उन्हें बच्चों को मायके छोड़ कर आई थी. ऐसे में गुलशबा के अपहरण का तो सवाल नहीं उठता था. एपीआई मंजीत सिंह बग्गा के निर्देशन में पुलिस टीम उस के घर गई तो वह घर से गायब मिला.

पुलिस ने जब रिजवान कुरैशी के बारे में गहराई से जांचपड़ताल की तो पता चला कि रिजवान कुरैशी का चरित्र ठीक नहीं है. मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने गुलशबा को भी जांच के घेरे में शामिल कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने रिजवान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में यह जानकारी मिल गई कि रिजवान की किनकिन लोगों से बात होती थी. पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ के बाद पुलिस को रिजवान के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना मिल गई.

इस के बाद एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने एसआई दिनेश लोखंडे, कांस्टेबल सुनील इंथापे, टी.बी. वड़, के.टी. मोहिते की एक टीम बना कर उन्हें रिजवान कुरैशी और गुलशबा की गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया.

10 जनवरी, 2018 को यह टीम उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली पहुंच गई. वहां दबिश दे कर पुलिस ने रिजवान और गुलशबा को गिरफ्तार कर लिया. वे दोनों अपने एक जानकार के यहां छिपे हुए थे. पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर थाना शांतिनगर ले आई.

थानाप्रभारी किशोर जाधव ने उन दोनों से मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने थोड़ी सख्ती के बाद कैफ की हत्या करने की बात स्वीकारते हुए जो कहानी बताई वह एहसान फरामोशी की सारी हदें पार कर देने वाली थी—

इंसानियत का तकाजा

करीब 10 साल पहले 28 वर्षीय गुलशबा कुरैशी मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को उत्तर प्रदेश के आगरा दिल्ली हाईवे पर काफी दयनीय हालत में भटकती हुई मिली थी. मनोज उस हाइवे पर कटलरी की दुकान लगाता था. उस समय गुलशबा की स्थिति बहुत खराब थी, उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. लग रहा था जैसे वह कई दिनों से भूखी है.

वह मनोज कुमार सोनी के पास आ कर ऐसे गिर गई, जैसे बेहोश हो गई हो. उस की हालत देख मनोज कुमार घबरा गया. उस ने उसे अपनी दुकान के पास ही लिटाया और उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. कुछ देर बाद गुलशबा को होश आया तो उस ने उसे पानी पिलाया. पानी पीते ही उस की चेतना धीरेधीरे लौट आई.

इस के बाद गुलशबा ने मनोज को अपनी आपबीती बताई. गुलशबा ने उसे बताया कि वह मुंबई की रहने वाली है और वहीं के एक युवक से प्यार करती थी. वह युवक उसे घुमाने के लिए दिल्ली लाया था. दिल्ली के एक होटल में वे दोनों कई दिनों तक साथ रहे.

फिर वह युवक उसे होटल में छोड़ कर कहीं चला गया. होटल वालों ने उसे धक्के मार कर निकाल दिया. किसी तरह वह भटकती हुई यहां तक पहुंची है. अब वह अपने घर वापस नहीं लौट सकती क्योंकि घर वाले उस से बहुत नाराज हैं.

गुलशबा की आपबीती सुनने के बाद मनोज कुमार को उस से सहानुभूति हो गई. उस ने उसे धीरज बंधाया और अपनी दुकान बंद कर के खाना खिलाने के लिए एक होटल पर ले गया. बाद में वह उसे ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आया और कहा, ‘‘देखो, अब तुम जहां जाना चाहती हो, चली जाओ. मैं तुम्हारी टिकट का बंदोबस्त कर दूंगा. अच्छा यही होगा कि तुम अपने मांबाप के पास लौट जाओ. उन से माफी मांग लेना. मुझे यकीन है कि वे तुम्हें माफ कर देंगे.’’

लेकिन गुलशबा ने मनोज कुमार सोनी की बात नहीं मानी. वह बोली, ‘‘मैं अब क्या मुंह ले कर उन के पास जाऊंगी. शायद वे मुझे माफ कर भी दें लेकिन समाज में हमारी क्या इज्जत रहेगी. ऐसी स्थिति में मैं वहां नहीं जाऊंगी.’’

गुलशबा की यह बात सुन कर मनोज कुमार थोड़ा गंभीर हो गया. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अगर तुम वहां नहीं जाना चाहती हो तो यह बताओ कि तुम्हारा और कोई रिश्तेदार है, जिस के यहां तुम जाना चाहोगी. मैं वहां जाने का बंदोबस्त कर दूंगा.’’

‘‘अब मेरा कोई नहीं है. मैं कहीं नहीं जाना चाहती. मेरे नसीब में जो लिखा है, वह होगा.’’ कहते हुए गुलशबा ने अपना सिर झुका लिया.

गुलशबा के इस उत्तर से मनोज कुमार सोनी एक अजीब स्थिति में फंस गया था. अगर वह कहीं जाना नहीं चाहती तो उस का क्या होगा. एक अकेली अंजान औरत के लिए शहर सुरक्षित नहीं था. उस के साथ कुछ भी हो सकता था.

काफी समझाने के बाद भी जब गुलशबा कहीं जाने के लिए राजी नहीं हुई तो मजबूरन मनोज कुमार यह सोच कर उसे अपने घर ले आया कि मौका देख कर उसे उस के मातापिता के पास भेज देगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मनोज कुमार के घर आने के बाद गुलशबा कुछ दिनों तक तो उदास रही फिर धीरेधीरे उस के चेहरे की उदासी घटने लगी. वक्त के साथ मनोज कुमार के साथ घुलमिल गई. मनोज कुमार अपने घर में अकेला रहता था. गुलशबा ने मनोज के घर के सारे कामकाज संभाल लिए थे.

30 वर्षीय मनोज कुमार सोनी राजस्थान के रहने वाले जगदीश प्रसाद सोनी का बेटा था. रोजीरोटी के लिए वह दिल्लीआगरा हाइवे पर कटलरी की दुकान चलाता था. वह दुकान का सारा सामान मुंबई से लाता था और आगरा घूमने आने वाले सैलानियों को बेचता था, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाया करती थी.

गुलशबा को अपने प्रति समर्पित देख कर अविवाहित मनोज कुमार सोनी का भी झुकाव उस की तरफ हो गया. वे दोनों अब एकदूसरे की जरूरतें महसूस करने लगे थे, जिस के चलते उन के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. मन के साथसाथ तन का भी मिलन हो जाने के बाद दोनों अब सोतेजागते अपने जीवन के सतरंगी सपने सजाने लगे. मनोज गुलशबा से शादी करना चाहता था. लेकिन उन के बीच समाज और धर्म की दीवार खड़ी थी.

गुलशबा की तरफ से तो रास्ता साफ था लेकिन मनोज कुमार सोनी के घर वालों को यह रिश्ता पसंद नहीं था. उन की भी समाज में इज्जत थी. मनोज ने घर वालों की बातों को दरकिनार करते हुए खुद मुसलिम धर्म अपना कर गुलशबा से निकाह कर लिया. उस ने अपना नाम बदल कर कैफ रख लिया था.

गुलशबा से शादी कर के मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ खुश था. गुलशबा को भी अचानक में ही सही, पर एक ऐसा पति मिल गया था जो उस का हर तरह से पूरा ध्यान रख रहा था. मनोज रातदिन मेहनत कर के पत्नी को अपनी क्षमता के अनुसार सुखसुविधाएं दे रहा था.

पति के प्यार में गुलशबा भी अपनी बीती जिंदगी के पलों को भुला कर अपनी गृहस्थी में रम गई थी. दोनों के जीवन के 8 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच गुलशबा 2 बच्चों की मां बन गई. कुल मिला कर उस की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मनोज के कहने पर गुलशबा ने अपने मायके वालों से भी बातचीत करनी शुरू कर दी थी, जिस से उस के उन से भी संबंध सामान्य हो गए थे. बेटी खुश थी, उस का जीवन सुखी था, इस से ज्यादा एक मातापिता को और क्या चाहिए. मायके वालों का उस के पास आनाजाना शुरू हो गया.

8 सालों तक एक ही जगह पर रह कर जब गुलशबा का मन भर गया तो वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. गुलशबा चाहती थी कि उस का पति मुंबई में ही अपना धंधा शुरू कर के वहीं रहे तो वह मायके वालों के करीब आ जाएगी.

यही सोच कर उस ने एक दिन कैफ को समझाते हुए कहा, ‘‘जो काम तुम आगरा में करते हो, वही काम मुंबई में भी कर सकते हो. और फिर तुम सामान तो मुंबई से ही लाते हो. सामान लाने में खर्च भी होता है. मुंबई में काम करने से यह खर्चा भी बचेगा.’’

मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को पत्नी का सुझाव अच्छा लगा. फिर वह सन 2016 में आगरा वाली दुकान किराए पर दे कर अपने परिवार के साथ मुंबई चला गया और अपनी ससुराल के नजदीक नायगांव में किराए का घर ले कर रहने लगा.

बेटी के नजदीक आने पर मायके वाले भी खुश हुए क्योंकि उन का जब भी मन होता गुलशबा से मिलने के लिए आते रहते थे. मुंबई में गुलशबा ने एक बच्ची को जन्म दिया, जिस का नामकरण काफी धूमधाम से हुआ. जहां गुलशबा अपने मायके वालों के करीब रह कर खुश थी, वहीं मनोज उर्फ कैफ थोड़ा चिंतित और परेशान था. इस की वजह यह थी कि मुंबई में उस का कारोबार ठीक नहीं चल पा रहा था. आगरा की दुकान भी बंद हो चुकी थी.

मनोज चाहता था लौटना पर गुलशबा नहीं मानी

यह सब सोच कर मनोज ने आगरा वापस लौटने का फैसला कर लिया पर गुलशबा मुंबई छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति को कह दिया कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ अकेली ही मुंबई में रह लेगी, क्योंकि उस के मायके वाले पास में हैं. मनोज ने भी उस की बात मान ली. पत्नी और बच्चों की तरफ से चिंतामुक्त हो कर मनोज आगरा लौट आया. वापस लौट कर उस ने अपना व्यवसाय फिर से जमा लिया.

कुछ दिनों बाद उस का धंधा पहले की तरह चलने लगा. वह अपने धंधे में व्यस्त हो गया तो गुलशबा अपनी गृहस्थी में. लेकिन वक्त का पहिया कुछ इस प्रकार से घूमा कि उन का सुखमय परिवार तिनके की तरह बिखर गया. अपने कारोबार में मनोज कुमार उर्फ कैफ कुछ इस तरह उलझा कि अपनी पत्नी गुलशबा के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाता था. वह साल में 2-4 बार ही गुलशबा को वक्त दे पाता था, जिस के कारण उस के और पत्नी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं.

मनोज कुमार का समय तो उस के कामों में निकल जाता था, लेकिन गुलशबा को उस की याद आती थी. वह अधिक दिनों तक पति की इन दूरियों को बरदाश्त नहीं कर पाई, लिहाजा 27 वर्षीय रिजवान कुरैशी से उस के नाजायज संबंध बन गए. रिजवान गुलशबा के भाई शादाब कुरैशी का साला था, जिस का गुलशबा के यहां आनाजाना लगा रहता था.

रिजवान से अवैध संबंध बन जाने के बाद गुलशबा ने पति की चिंता करनी बंद कर दी. बल्कि जब कभी पति से फोन पर बात होती तो वह उस से कह देती कि यहां की कोई चिंता मत करो और अपने काम पर ध्यान दो. पत्नी की चहकती बातों से मनोज को लगता कि गुलशबा खुश है. इस तरह गुलशबा पति के भरोसे का खून करती रही.

पत्नी के अवैध संबंधों की खबर किसी तरह मनोज के पास पहुंची तो उस के होश उड़ गए. उस ने सोचा भी न था कि जिस गुलशबा को वह रोड से उठा कर अपने घर लाया, जिस की खातिर उस ने अपना धर्म बदला, अपने घर वालों तक से बगावत की, जिसे उस ने जीने का सहारा दिया, उसे सारे ऐशोआराम दिए, वह उस के एहसानों का बदला इस प्रकार से चुकाएगी.

इस बात की सच्चाई की तह में जाने के लिए मनोज कुमार जब मुंबई गया तो उसे पत्नी का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. उस के पहुंचने पर पत्नी जिस तरह खुश हो जाती थी, उसे उस के चेहरे पर वह खुशी देखने को नहीं मिली. पत्नी के हावभाव से वह इतना तो समझ ही गया था कि उस के पास पत्नी और रिजवान कुरैशी के बारे में जो खबर पहुंची थी, वह कोई कोरी अफवाह नहीं थी.

इस के बाद वह खबर की पुष्टि में लग गया. इस के लिए वह सूत्र तलाशने लगा. उस ने पड़ोसियों और अपने बच्चों से बात की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि रिजवान गुलशबा से मिलने अकसर आता रहता है. कभीकभी तो वह उस के फ्लैट पर भी रुक जाता था.

इस बारे में उस ने गुलशबा से बात की तो वह सरासर झूठ बोल गई. उस ने कहा कि उस की पड़ोसियों से बनती नहीं है, इसलिए वे सब उसे बदनाम कर रहे हैं. रिजवान तो उस का भाई जैसा है.

अपनी नौटंकी से कुछ समय के लिए तो गुलशबा ने पति को अपने झांसे में ले लिया. लेकिन 2-4 दिन में ही उस की हकीकत मनोज के सामने आ गई. मनोज ने पत्नी को रिजवान के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. तब मनोज ने गुलशबा की जम कर पिटाई की.

पोल खुल जाने के बाद गुलशबा को बेइज्जती महसूस हुई. यह बात उस के मायके वालों को भी पता लग गई. इस सच्चाई का पता लग जाने के बाद मनोज पत्नी को मुंबई में अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने गुलशबा और बच्चों को आगरा ले जाने का फैसला कर लिया.

उस ने पत्नी से कहा कि अब हम आगरा में रहेंगे. पर गुलशबा ने मुंबई छोड़ कर जाने से मना कर दिया. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी हुआ. मनोज उसे ले जाने की जिद पर अड़ा था.

गुलशबा ने रिजवान को फोन कर बता दिया कि मनोज उसे आगरा ले जाने की जिद कर रहा है और वह यहां से जाना नहीं चाहती. इस बारे में वह कुछ करे. रिजवान भी नहीं चाहता था कि गुलशबा वहां से जाए, इसलिए गुलशबा को ले कर वह परेशान हो उठा.

लिखी गई हत्या की पटकथा

किसी तरह से उस ने गुलशबा से मुलाकात की और मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को अपने बीच से हटाने की योजना तैयार कर ली. फिर अपनी योजना के अनुसार 2 जनवरी, 2018 की दोपहर में वह मनोज कुमार सोनी के फ्लैट पर पहुंच गया. जिस समय वह फ्लैट में आया, उस समय मनोज खाना खा कर सो रहा था. बच्चे घर के बाहर खेलने के लिए गए हुए थे.

मौका अच्छा था. वह गुलशबा के साथ उस के कमरे में गया और उस पर हमला कर दिया. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका. अपनी जान बचाने के लिए मनोज रिजवान से भिड़ गया, जिस में रिजवान कुरैशी जख्मी हो गया.

अपने पति को रिजवान कुरैशी पर भारी होते देख गुलशबा ने रिजवान कुरैशी की मदद की. उस ने पति के दोनों हाथ पकड़ लिए, तभी झट से रिजवान ने मनोज का गला रेत दिया. मनोज नीचे गिर गया तो रिजवान ने उस का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद दोनों ने उस के धड़ और सिर को कपड़ों के पुलिंदे में बांध कर दरवाजे के पीछे छिपा दिया. फिर उन्होंने कमरे की सफाई की.

शाम होतेहोते गुलशबा अपने तीनों बच्चों को अपने मायके में छोड़ कर फ्लैट पर आ गई. फिर घर के दरवाजे पर ताला लगा कर वह रिजवान कुरैशी के साथ उत्तर प्रदेश निकल गई, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस के पहले रिजवान कुरैशी ने पुलिस और घर वालों का ध्यान भटकाने के लिए शादाब कुरैशी और अपने सारे रिश्तेदारों को एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

थानाप्रभारी किशोर जाधव और एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने गिरफ्तार रिजवान कुरैशी और गुलशबा से विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त न्यायिक हिरासतऌ में थे. आगे की जांच एपीआई मंजीत सिंह बग्गा कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के लिए अपराध : अपने ही परिवार को बनाया निशाना

गांव की एक बहुत प्रचलित कहावत है, ‘भूख न देखे रूखा भात, प्यार न जाने जातपात और नींद न देखे टूटी खाट’. वास्तव में पे्रम जाति और धर्म का बंधन नहीं देखता है. कई बार वह ऊंचनीच और नातेरिश्तों को भी भूल जाता है.

ऐसे में प्यार की पगडंडी पर चल कर कभीकभी ऐसे कदम भी उठ जाते हैं, जो अपराध को भी बढ़ावा देने से पीछे नहीं हटते. लखनऊ शहर के रसूलपुर आशिक अली के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमार की कहानी भी कुछ इसी तरह की है.

खुशबू की शहर के ही लालशाह का पुरवा मलौली के रहने वाले विनय यादव के साथ दोस्ती हो गई थी. 21 साल का विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था.

लेकिन उन के बीच जातपात की गहरी खाई थी. दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू किसी भी तरह एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे.

लेकिन परेशानी यह थी कि उन्हें साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था. अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक सामंजस्य बना हुआ था. दोनों ही मिल कर अपने दिल की बात कर लेते थे.

इस बात की खबर जब खुशबू के घर वालों को होती तो वे विनय के घर वालों से शिकायत करते, जिस से दोनों परिवारों के बीच तनातनी हो जाती थी. जिसे प्रेमी युगल भी घबरा जाते. खुशबू पर भी मनोज इस बात का दबाव बनाता कि वह विनय से मिलना छोड़ दे.

एक दिन खुशबू ने विनय से कहा, ‘‘विनय, तुम अब यह देखो कि हम लोग कैसे एक साथ रह सकते हैं. क्योंकि अब घर में परेशानियां बढ़ने लगी हैं. हमारा तुम्हारा इस तरह मिलना संभव नहीं हो पाएगा. मैं कब तक घर वालों से झगड़ा करती रहूंगी.’’

‘‘खुशबू तुम्हें लगता है कि जैसे मैं कुछ सोचता नहीं. ऐसी बात नहीं है. पर मेरी समझ में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. पहले तो सिटी में नौकरी कर लेता था. लौकडाउन हुआ तो नौकरी चली गई. अब तो अपने खर्च उठाना और भी मुश्किल हो गया है. अपने पास घर और नौकरी दोनों नहीं होगी तो काम ही नहीं चलेगा.’’ विनय ने खुशबू को अपनी परेशानी से अवगत कराते हुए समझाया.

खुशबू को वह समय याद आ रहा था जब उस की पहली मुलाकात विनय से हुई थी. विनय उसे हर लड़के से अलग लगता था. हमेशा उस का खयाल रखता और बहुत सारी चीजें भी देता रहता था. खुशबू और विनय के बीच जब थोड़ी दोस्ती बढ़ गई तो खुशबू उस के साथ शादी और बाकी जीवन गुजरबसर करने के सपने देखने लगी.

खुशबू ने सोचा था कि जब उस के घर परिवार के लोग इस दोस्ती और प्यार को शादी के रिश्ते में बदलने नहीं देंगे तो वह गांव छोड़ कर विनय के साथ शहर चली जाएगी. वहां दोनों साथसाथ रहेंगे. विनय नौकरी करेगा और वह घर को संभालेगी. विनय के वापस आने का इंतजार करेगी.

ऐसे ही हसीन सपनों में दोनों का समय गुजर रहा था. अब दोनों ही अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलने का इंतजार कर रहे थे.

इसी बीच पिछले साल कोरोना महामारी बढ़ने पर लौकडाउन लग गया तो दुकानें, होटल, फैक्ट्री आदि पिछले साल बंद हो गईं, जिस से बहुत सारे लोग घर बैठ गए.

शुरुआत में लगा कि 10-20 दिनों में लौकडाउन खत्म जाएगा. उस के बाद बाजार और कामधंधे शुरू हो जाएंगे. लेकिन धीरेधीरे करीब 3 माह का समय बीत गया था. सारा कारोबार चौपट हो चुका था.

3 माह के बाद जब विनय अपने काम पर वापस गया तो उसे बताया गया कि अब औफिस में काम कम हो गया है. लिहाजा अब उस की वहां जरूरत नहीं रह गई.

उस के बाद जब विनय ने अपने 3 माह का बकाया वेतन मांगा तो कहा गया कि जब तुम ने काम हीं नहीं किया तो वेतन किस बात का. तुम ने मार्च महीने में 20 दिन काम किया था. उन 20 दिनों का पैसा ले लो और अब नौकरी पर नहीं आना है.

विनय का गांव तो लखनऊ से 20-22 किलोमीटर ही दूर था. ऐसे में वह रोज साइकिल और आटो से आताजाता था. खुशबू को साथ रखने की योजना की वजह से उस ने उस समय लखनऊ में एक कमरा किराए पर ले लिया था.

इस का भी 5 हजार रुपए देना पड़ता था. ऐसे में जब वह वहां अपना रखा सामान लेने गया तो मकान मालिक ने 15 हजार रुपए किराए के मांगे. विनय के पास उतना तो नहीं था. उसे 10 हजार औफिस से मिले थे, उसी में से 8 हजार मकान मालिक को दे कर अपना सामान साथ ले आया. कोरोना के बाद शहर से जैसे उस का नाता टूट गया.

कोरोना ने जिस तरह से काम धंधों पर रोक लगाई, उस से विनय और खुशबू जैसे युवाओं के सामने भी अपने भविष्य को ले कर प्रश्नचिह्न लगा दिए. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए.

यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा तो सब कुछ पटरी पर आ जाएगा. लेकिन इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा. मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया.

विनय और खुशबू अपने जीवन को ले कर गंभीर थे. एक दिन विनय ने कहा, ‘‘खुशबू, अगर हमारे पास 15-20 लाख रुपए होते तो हम अपना काम भी शुरू कर लेते और एक रहने की जगह भी बना लेते, जिस से कम से कम हमें किराया तो नहीं देना पड़ता.’’

‘‘विनय, पैसे तो मिल सकते हैं. बस सावधानी बरतने की जरूरत है. और यदि हम पकड़े न जाएं तो मदद हो सकती है.’’ खुशबू ने कहा.

‘‘तुम रास्ता बताओ. बाकी हम कर लेंगे. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’ विनय ने उत्सुकता दिखाई और खुशबू को पूरा भरोसा दिलाते हुए कहा.

‘‘देखो विनय, मेरे घर में इतने रुपए और जेवर रखे हैं, जिन को मिला कर जितने पैसों की तुम बात कर रहे हो उतने हो जाएंगे. हम लोग एक दिन वह रुपए किसी तरह चोरी कर लें. चोरी होने से यह भी नहीं पता चलेगा कि किस ने यह काम किया है. फिर जब सब काम हो जाएगा, तब हम साथसाथ रहने लगेंगे.’’ खुशबू बोली.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर या संकोच भी नहीं हुआ.

इधर विनय ने अपने साथी गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में शामिल कर लिया.

खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसेनींद की 8 गोलियां ला कर दीं और कहा कि 4-4 गोलियां काढे़ में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना. जिस से वे रात भर गहरी नींद में सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई, 2021 की रात ऐसा ही किया. जब उस के मातापिता गहरी नींद में सो गए तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख के जेवर चोरी कर लिए.

जेवर और रुपए ले कर विनय और शुभम चले गए. सुबह जब खुशबू के पिता मनोज कुमार सो कर उठे तो देखा कि उन की अलमारी टूटी हुई थी और उस में रखी नकदी व जेवर गायब थे.

वह थाना गोसाईंगंज गए. वहां पर उन्होंने यह जानकारी थानाप्रभारी अमरनाथ वर्मा को दी तो थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 457 और 380 आईपीसी के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

लखनऊ के पुलिस कमिशनर धु्रवकांत ठाकुर के निर्देशन में डीसीपी ख्याति गर्ग, एडिशनल डीसीपी (साउथ) पुर्णेंदु सिंह, एसीपी स्वाति चौधरी, इंसपेक्टर गोसाईंगंज अमरनाथ वर्मा ने अपनी टीम के साथ चोरों को पकड़ने का काम शुरू किया.

पुलिस टीम में एसआई जय सिंह, दीपक कुमार पांडेय, विवेक कुमार, फिरोज आलम सिद्दीकी, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल अमीर हमजा, अकबर, सुशील चौहान, अंकित यादव, राजेश कुमार, पूनम शर्मा, मजीत सिंह, सुनील कुमार और रवींद्र कुमार शामिल थे.

मोबाइल की काल डिटेल्स में खुशबू और विनय के बीच बातचीत और रात में दोनों की लोकेशन एक होने से पुलिस का शक खुशबू पर गया. पुलिस ने खुशबू से पूछताछ की तो उस ने सच कबूल लिया. खुशबू की बताई बातों के आधार पर पुलिस ने पहले विनय और फिर शुभम को हिरासत में ले लिया. सभी ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

पुलिस ने विनय, खुशबू और शुभम की निशानदेही पर चोरी गए रुपए और जेवर बरामद कर लिए. इस के बाद इन सभी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की जल समाधि : अपने ही प्रेमी को उतारा मौत के घाट

9  जून, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के चंदौसी शहर का रहने वाला इस्तफर खान अपने मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर शहर की कोतवाली पहुंचा. उस ने कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा से मुलाकात कर बताया, ‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान पिछले महीने की 19 तारीख से गायब है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘क्या..? वह 19 मई से गायब है और पुलिस के पास 20 दिन बाद आए हो? इतने दिनों तक कहां थे?’’ कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘साहब, हम सब घर वाले अपने स्तर से उसे तलाश कर रहे थे. हम ने उसे सभी जगह पर ढूंढा मगर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा है.’’ कहते हुए इस्तफर की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘कितनी उम्र है तुम्हारे बेटे की और वह क्या करता है? वह गायब कैसे हुआ? सब विस्तार से बताओ.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान शादीश्ुदा है, उस के 2 बच्चे भी हैं. वह मकानों और कोठियों में रंगाईपुताई का काम ठेके पर लेता है. दूसरे शहरों में भी उस का ठेका चलता रहता है. 19 मई, 2021 को वह काम के सिलसिले में अलीगढ़ गया था. वह जब कभी बाहर जाता था तो अपनी बीवी और घर वालों से फोन पर बात करता रहता था.

लेकिन उस के जाने के एकदो दिनों तक फोन नहीं आया तो हम ने उस का नंबर मिलाया. उस का फोन बंद आ रहा था. तब से आज तक उस का फोन बंद ही आ रहा है.

‘‘इस से हम लोगों की चिंता बढ़ गई. अलीगढ़ में उस का काम कहां चल रहा था, यह तो हमें पता नहीं. फिर भी हम ने अपने स्तर से उसे सभी जगह ढूंढा. जब कहीं नहीं मिला तो हुजूर हम आप के पास आए हैं. आप उस का पता लगा दीजिए.’’ रोआंसे हो कर हाथ जोड़ते हुए इस्तफर गिड़गिड़ाया.

‘‘देखिए, आप ने थाने आने में बहुत देर कर दी. फिर भी हम उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे. आप बेटे का एक फोटो और तहरीर लिख कर दे दीजिए. चिंता मत करो, पुलिस जल्द ही उस की खोजबीन

कर लेगी.’’

इस के बाद इस्तफर ने लिख कर लाई हुई तहरीर और बेटे का फोटो कोतवाल साहब को दे दिया. इस के आधार पर फहीम खान की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने जांच चौकी इंचार्ज एसआई उमेंद्र मलिक को सौंप दी. वह अपनी टीम के साथ गुमशुदा फहीम की तलाश में जुट गए. पुलिस ने फहीम खान का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया. उस के फोन की अंतिम लोकेशन अलीगढ़ की मिली. जिस इलाके की लोकेशन मिली थी, पुलिस टीम ने अलीगढ़ पहुंच कर उस इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने फहीम के बारे में जांच कराई तो पता चला कि वह आशिकमिजाज व्यक्ति था. तब उन्होंने इसी दिशा में जांच करने के निर्देश एसआई उमेंद्र मलिक को दिए.

शाहिदा से चल रहा था चक्कर

इंसपेक्टर की लाइन पर काम करते हुए चौकी इंचार्ज उमेंद्र मलिक ने जांच शुरू की. चौकी इंचार्ज को जानकारी मिली कि फहीम का रामपुर जिले के पटवाई गांव की शाहिदा के साथ चक्कर चल रहा था.

फहीम की शाहिदा से मुलाकात उस की एक परिचित अफसाना ने कराई थी. अफसाना अलीगढ़ के फिरदौस नगर की रहने वाली थी और उस का निकाह सलीम उर्फ शंभू से हुआ था. सलीम फिरदौस नगर में ही अफसाना के साथ किराए पर रहता था. वह फहीम के घर भी आतीजाती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम एक बार फिर अलीगढ़ पहुंची और सलीम व उस की पत्नी अफसाना को पूछताछ के लिए चंदौसी ले आई.

पुलिस ने उन दोनों से फहीम के बारे में पूछा तो वे अनभिज्ञता जताने लगे कि सलीम को जानते ही नहीं हैं, लेकिन जब उन से सख्ती की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि फहीम इस वक्त दुनिया में नहीं है. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश हरदुआगंज की नहर में फेंक दी थी.

हत्या की खबर सुनते ही पुलिस भी चौंक गई. पुलिस को फहीम की लाश बरामद करनी थी इसलिए उन दोनों को साथ ले कर हरदुआगंज में नहर के ऊपर बने पुल पर पहुंची. वहीं से उन्होंने उस की लाश नहर में फेंकी थी.

पुलिस ने गोताखोरों की मदद से जाल डलवा कर वहां लाश की खोजबीन कराई, लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस ने उस क्षेत्र के थानों में संपर्क कर किसी पुरुष की लावारिस लाश बरामद करने के बारे में पूछा.

तब वहां के थानाप्रभारी ने बताया कि 28 मई को नहर के किनारे से 2 लाशें बरामद हुई थीं, जिन का अंतिम संस्कार भी कर दिया था. दोनों के कपड़े पुलिस के पास सुरक्षित रखे थे.

पुलिस ने वे कपड़े फहीम खान के घर वालों को दिखाए. इतने दिनों में कपड़ों की हालत भी खराब हो चुकी थी, लेकिन फहीम खान की पत्नी ने पेंट पहचान ली. क्योंकि उस ने पति फहीम की टाइट पेंट उधेड़ कर ढीली की थी.

इस के बाद पुलिस ने अफसाना की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस की सहेली शाहिदा और उस के भाई जीशान को भी गिरफ्तार कर लिया. इन चारों से पूछताछ करने के बाद फहीम की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध जनपद पीतल नगरी मुरादाबाद से सटा जिला संभल है. चांदी के वर्क बनाने के आवा, मेंथा, तंबाकू और आलू की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही सींग व हड्डी से कंघी, बटन व अन्य शोपीस के कारोबार से संभल की पहचान भी दूरदूर तक हो गई है.

संभल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर जैसा तहसील मुख्यालय चंदौसी है. चंदौसी के सीकरी गेट मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी के बगल में ही इस्तफर खान का परिवार रहता था.

उस के 4 बेटे थे. तसव्वुर खान, फहीम खान और वसीम खान का विवाह हो चुका था. जबकि चौथा बेटा सलीम खान अविवाहित था. बेटों के अलावा इस्तफर की 4 बेटियां भी थीं, जिस में से एक की मृत्यु हो चुकी थी. फहीम खान रंगाईपुताई का ठेकेदार था.

मजार पर हुई थी मुलाकात

फहीम का अलीगढ़ में भी ठेके का काम चल रहा था. वहीं पर उस की एक दिन क्वारसी क्षेत्र के फिरदौस नगर के रहने वाले सलीम उर्फ शंभू से मुलाकात हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई.

इस के बाद सलीम और उस की पत्नी अफसाना का फहीम के घर आनाजाना शुरू हो गया. एक तरह से दोनों के पारिवारिक संबंध हो गए थे.

धार्मिक विचारों का फहीम बदायूं में स्थित नामी मजार पर जाता रहता था. इन्हें छोटे सरकार और बड़े सरकार के नाम से जाना जाता है. एक बार अफसाना भी उस के साथ थी. मजार पर अफसाना की सहेली शाहिदा भी मिल गई. शाहिदा अफसाना की सहेली थी, जो रामपुर जिले के गांव हाजीनगर में रहती थी.

यह साल 2013 की बात है. शाहिदा की मां भी बदायूं शरीफ में अकसर आती थीं और कईकई दिन वहां रुकती थीं.

इन के 3 बेटे और 3 ही बेटियां हैं. रजिया, नाजिया व शाहिदा तथा भाई जीशान भी मां के साथ बदायूं आताजाता रहता था. शाहिदा अफसाना की सहेली बन गई थी.

फहीम पहली मुलाकात में ही शाहिदा को अपने दिल में बसा चुका था. बाद में इन दोनों की  फोन पर बातें होने लगीं. इन के बीच हुई दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. फहीम शाहिदा के ऊपर खूब पैसे खर्च करता था. क्योंकि उस समय तक वह अविवाहित था.

मिलते रहे छिपछिप कर

दोनों ही जिंदगी साथ गुजारने और भविष्य के सुनहरे सपनों का तानाबाना बुनते रहते. एक दिन फहीम खान की बांहों में समाई शाहिदा ने कहा कि हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे, जल्दी शादी करो और मुझे अपने घर ले चलो.

इस पर फहीम ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा. मैं ने सऊदी अरब जाने की योजना बना ली है और वहां नौकरी मिल गई है. वहां से खूब सारा पैसा कमा कर लाऊंगा, फिर दोनों अपने अलग घर में आराम से जिंदगी गुजारेंगे.’’

उसी दौरान फहीम सऊदी अरब चला गया. वह कई साल बाद वहां से लौटा तो काफी उपहार अपनी प्रेमिका शाहिदा को भी ला कर दिए.

एक दिन प्रेमीप्रेमिका दोनों अपने भविष्य का तानाबाना बुन रहे थे तभी शाहिदा के मोबाइल की घंटी बजी. फोन फहीम खान ने रिसीव किया.

काल करने वाले की बात फहीम के कानों में जैसे जहर घोल गई. वह बोला, ‘‘कैसी हो मेरी जान? मैं ने कल भी काल की थी, लेकिन रिसीव नहीं की. कोई परेशानी हो तो बताओ, गुलाम तुरंत हाजिर होगा.’’

फहीम कुछ देर तक चुपचाप उस की बातें सुनता रहा. फिर फोन करने वाले को उस ने गालियां दीं तो उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

इस के बाद तो फहीम को गुस्सा आ गया. वह सोचने लगा कि कौन है, जो उस की प्रेमिका से इस तरह बात कर रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि शाहिदा का ही प्रेमी हो.

फहीम ने इस बारे में शाहिदा से पूछताछ की तो उलटे शाहिदा फहीम से लड़ने के लिए तैयार हो गई. दोनों ओर से बात बढ़ गई तभी शाहिदा अपना आपा खो बैठी और फहीम खान पर हाथ उठा दिया, जिस से नाराज हो कर फहीम ने भी शाहिदा की जम कर पिटाई कर डाली.

अब फहीम ने तय कर लिया कि वह यह पता लगा कर रहेगा कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है या नहीं. कुछ दिनों में फहीम ने जानकारी निकाल ली कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है.

प्रेमिका शाहिदा किसी और युवक से प्रेम करने लगी है. शाहिदा की इस बेवफाई से फहीम खान को गहरा आघात लगा. इसी बात से दोनों के बीच ऐसी दरार पड़ी कि संबंधविच्छेद हो गए.

फहीम खान खोयाखोया सा रहने लगा. उस के दिल टूटने का एहसास परिजनों को हुआ तो उन्होंने फहीम खान का विवाह बरेली शहर में कर दिया. यह बात करीब 4 साल पहले की है. अब उस के 2 बच्चे भी हैं.

उधर शाहिदा से उस के दूसरे प्रेमी ने कई साल रिलेशनशिप रखी. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन अंत शाहिदा के अनुमान के विपरीत निकला. दूसरे प्रेमी ने उस से शादी से साफ इनकार कर दिया. इस से शाहिदा के दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगे.

रोरो कर शाहिदा का जीवन गुजरने लगा. परिजनों से भी उस का हाल देखा नहीं जाता था. शाहिदा ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन परिजनों की कड़ी निगरानी के कारण सफल न हो सकी.

शाहिदा को अपने पहले प्रेमी फहीम खान की याद सताने लगी, लेकिन फहीम खान का मोबाइल नंबर उस के पास नहीं था. शाहिदा  ने अपनी सहेली अफसाना से फहीम खान का मोबाइल नंबर लिया.

शाहिदा से संबंध टूटने के बाद फहीम खान ने अपना नंबर बदल लिया था. उस का अफसाना  से फोन से बातचीत व मेलजोल बरकरार था. अफसाना से फहीम का फोन नंबर ले कर एक दिन शाहिदा ने फहीम खान को फोन किया और मिलने की गुजारिश की. फहीम ने सोचा कि पुरानी घटना के जख्म माफी तलाफी से धुल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि बाद में उन दोनों के बीच तल्खी और बढ़ गई.

और ज्यादा खराब हो गए संबंध

फहीम खान उस के फोन करने से और भी ज्यादा आक्रामक हो गया. दोनों में फोन पर जम कर नोकझोंक होती रहती.

यह बात शाहिदा के भाई जीशान को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा कि फहीम की वजह से ही उस की बहन दुखी है. लिहाजा उस ने अफसाना से बात कर के फहीम खान को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

योजना के तहत अफसाना से फोन करा कर फहीम खान को 19 मई, 2021 को अलीगढ़ बुला लिया. उसी रात उसे खाने में नशीला पदार्थ खिलाया.

बेहोश हो जाने पर अफसाना व उस के पति सलीम उर्फ शंभू तथा जीशान और उस की बहन शाहिदा ने फहीम को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. वे उसे हरदुआगंज क्षेत्र में स्थित नहर के बरेठा पुल पर ले गए और उस के शरीर से भारी पत्थर बांध कर नहर में जिंदा ही फेंक दिया. पानी में डूब जाने से फहीम की मौत हो गई.

चारों अभियुक्तों के गिरफ्तार हो जाने के बाद एसपी चक्रेश मिश्रा ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस मामले का खुलासा किया.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी शाहिदा, उस के भाई जीशान, सहेली अफसाना और उस के पति सलीम उर्फ शंभू को गिरफ्तार कर 23 जून, 2021 को न्यायालय के समक्ष पेश किया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महात्मा गांधी की परपोती धोखाधड़ी में पहुंची जेल

दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत में 7 जून को एक अहम सुनवाई होनी थी. ज्यूरी के लोग पूरी तैयारी से अपनीअपनी जगहों पर आ चुके थे. कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और न्यायाधीश के अतिरिक्त मुकदमे के वादी, प्रतिवादी पक्षों के दरजनों लोग मौजूद थे. पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी, वैक्सीनेशन, औक्सीजन और भारत में कहर बन कर टूटी कोरोना वायरस संक्रमण की हो रही चर्चा के बीच मीडिया में इस सुनवाई को ले कर भी जिज्ञासा बनी हुई थी. गहमागहमी का माहौल था.

अंतिम फैसले पर सब की नजरें टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि मामले की जो आरोपी महिला थी, उस का संबंध महात्मा गांधी के परिवार और दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़े नाम के साथ जुड़ा था. पूरा मामला हाईप्रोफाइल होने के साथसाथ 6 साल पुराना कारोबारी धोखाधड़ी का था.

यह आरोप एस.आर. महाराज नाम के एक बिजनैसमैन की शिकायत पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के द्वारा लगाया गया था.

करीब 6 साल से जमानत पर चल रही 56 वर्षीया आरोपी महिला कठघरे में हाजिर हो चुकी थीं. अदालत की काररवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोपी के परिचय के साथसाथ न्यायाधीश के सामने उस पर लगे फरजीवाड़े के तमाम आरोप प्रस्तुत कर दिए गए थे.

प्रोसिक्यूटर द्वारा कहा गया कि धोखाधड़ी की आरोपी आशीष लता रामगोबिन ने अपनी पूर्व सांसद मां इला गांधी की इमेज और अपने परदादा महात्मा गांधी की वैश्विक कीर्ति का सहारा ले कर इस काम को अंजाम दिया था. इला गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती हैं.

वह दक्षिण अफ्रीका में 9 साल तक सांसद रह चुकी हैं और भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी नवाजी जा चुकी हैं. वह राजनीतिक रसूख वाली जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.

अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के जवाब में आरोपी आशीष लता की तरफ से वैसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका, जिन से अगस्त 2015 में उद्योगपति एस.आर. महाराज के साथ धोखाधड़ी का लगा आरोप गलत साबित हो सकता था.

नतीजा कुछ समय में ही दक्षिण अफ्रीकी कानून के मुताबिक आशीष लता को अफ्रीकी मुद्रा में 62 लाख रैंड ( करीब 3 करोड़ 22 लाख रुपए) की धोखाधड़ी, जालसाजी का दोषी ठहराते हुए 7 साल जेल की सजा सुना दी गई.

महाराज ने उन्हें कथित तौर पर भारत से ऐसी खेप के आयात और सीमा शुल्क कर के समाशोधन के लिए 62 लाख रैंड दिए थे, जिस का कोई अस्तित्व ही नहीं था. इस में आशीष लता की तरफ से लाभ का एक हिस्सा देने का वादा भी किया गया था.

समाजसेविका के रूप में पहचान थी आशीष लता की

वर्ष 2015 में जब इस संबंध में उन के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई थी, तब एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा था कि उन्होंने संभावित निवेशक को यकीन दिलाने के लिए कथित रूप से फरजी चालान और दस्तावेज दिए थे. उस में भारत से लिनेन के 3 कंटेनर आने की जानकारी दी गई थी.

आशीष लता इंटरनैशनल सेंटर फौर नौन वायलेंस नामक एक गैरसरकारी संगठन के एक प्रोग्राम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक रह चुकी थीं.

हालांकि उन के खिलाफ लगे आरोपों में फरजीवाड़े की रकम भारतीय बैंकों को करीब 23 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी की तुलना में बहुत ही कम है. फिर भी हर भारतीय को आशीष लता का कारनामा क्षुब्ध कर गया है. कारण वह उस बापू की परपोती हैं, जिन्होंने जीवन भर सत्य को अपनाया, सत्य का प्रयोग किया, सत्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और सत्य के लिए जिया.

आज जब भी किसी को अपनी सत्यता का हवाला देना होता है तो वह बापू के अपनाए गए तरीके से प्रदर्शन करता है. लोग अंतर्द्वंद्व और आत्मग्लानि के मौकों पर बापू की प्रतिमा के आगे मौन धारण कर आत्मशुद्धि के लिए बैठ जाते हैं.

इस अनुसार यह कहा जा सकता है कि आशीष लता ने न केवल इस सत्यनिष्ठा को आंच पहुंचाई, बल्कि बापू की वैश्विक कीर्ति पर ही कालिख पोतने का काम किया. यह बात हैरानी के साथसाथ अफसोस करने जैसी है.

बात करीब 6 साल पहले उस समय की है, जब एक दिन उद्योगपति एस.आर. महाराज अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे औफिस जा रहे थे. उसी दौरान लैपटौप में अपने बैंक के बैलेंसशीट पर एक नजर डालने के बाद वह मेल चैक करने लगे थे. पहले उन्होंने अपने एग्जीक्यूटिव्स के रोजमर्रा के मेल चैक किए. उन्हें जरूरी जवाब दिए, फिर वैसे मेल चैक करने लगे, जो पहली बार आए थे.

एक मेल को देख कर चौंकते हुए उन की नजर ठहर गई. कारण वह सामान्य हो कर भी खास मेल था. उस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट थी, जिस से थोड़े समय में ही अच्छी आमदनी का वादा किया गया था.

हालांकि उन के पास आए दिन इस तरह के मेल आते रहते थे, जिसे वे खुद विस्तार से पढ़ने के बजाय उस की डिटेल से जानकारी के लिए अपने सेक्रेटरी को फारवर्ड कर दिया करते थे.

महाराज की बढ़ी रुचि

लेकिन उस मेल में महाराज को जिज्ञासा भेजने वाले को ले कर भी हुई थी. उन्होंने तुरंत जवाब टाइप कर दिया, ‘‘आई नोटिस्ड योर रिक्वेस्ट, विल रिप्लाई सून!’’ यह बात साल 2015 के मई महीने की थी.

थोड़ी देर में महाराज दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अपनी कंपनी के औफिस ‘न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवेयर डिस्ट्रीब्यूटर्स’ के चैंबर में पहुंच गए. वह इस कंपनी के निदेशक हैं. कंपनी जूतेचप्पल, कपड़े और लिनेन के आयात, बिक्री एवं निर्माण का काम करती है. कंपनी का एक और काम प्रौफिट और मार्जिन के तहत दूसरी कंपनियों की आर्थिक मदद भी करना है.

एस.आर. महाराज ने अपने सेक्रेटरी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर सुथार, आज ही मुझे उस मेल की तुरंत डिटेल्स दो, जिस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट की गई है.’’

‘‘कौन सा मेल… जिसे समाजसेवी महिला आशीष लता रामगोबिन ने भेजा है?’’

‘‘हांहां वही. वह कोई आम महिला नहीं हैं. उन्होंने अपने परिचय में जो लिखा है, शायद तुम ने उस पर गौर नहीं किया.’’ उन्होंने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ ज्यादा नहीं समझ पाया.’’ सेक्रेटरी बोला.

‘‘उस ने जिस के लिए काम की बात कही है वह एक विश्वसनीय परिवार से ताल्लुक रखता है. वह भरोसे के लायक है. उस परिवार ने भारत में सामाजिक उत्थान के लिए कई बेमिसाल काम किए हैं. उन के साथ भारत के राष्ट्रपिता का दरजा हासिल कर चुके महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है. उन के साथ जल्द ही मीटिंग की डेट फिक्स कर दो.’’

ऐसे हुआ आशीष लता पर विश्वास

उद्योगपति महाराज का यह मजबूत आत्मविश्वास बनने की वजहें भी कम नहीं थीं. उस बारे में वे कई बातें पहले से जानते थे और कुछ जानकारी बाद में मालूम कर ली थीं. फाइनैंस की रिक्वेस्ट महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने भेजी थी.

उन्होंने अपने परिचय में दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में सक्रिय महिला इला गांधी की बेटी लिखा था, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ काम किया था. तत्कालीन सरकार से सीधी टक्कर ली थी.

उन्होंने निर्वासन की यातना झेली थी. उस के खात्मे के बाद सन 1994 से 2003 तक अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस की सदस्य के रूप में सांसद रह कर लोकहित में कई कार्य किए थे. उन के पति का नाम स्व. मेवा रामगोबिन है. वह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के 4 बेटों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास में दूसरे बेटे मणिलाल मोहनदास गांधी की बेटी हैं.

मणिलाल पहली बार 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे. महात्मा गांधी ने 1904 में डरबन के पास ‘द फीनिक्स सेटलमेंट’ नामक एक जगह की स्थापना की थी. वहीं उन्होंने एक ग्रामसंस्था भी स्थापित की थी और सत्याग्रह के साथ अपने अनूठे क्रांतिकारी प्रयोग किए थे. इस दौरान मणिलाल 1906 से 1914 के बीच क्वाजुलु नटाल और ग्वाटेंग में रहे. फिर वापस भारत आ गए.

जबकि महात्मा गांधी ने डरबन से अपना साप्ताहिक अखबार अंगरेजी और गुजराती में ‘इंडियन ओपिनियन’ भी छापना शुरू कर दिया था. इस की शुरुआत 1903 में ही हुई थी.

बाद में महात्मा गांधी ने उस अखबार के विशेष रूप से गुजराती खंड प्रकाशन में सहायता के लिए मणिलाल को दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था. वहां मणिलाल सन 1920 में उस के संपादक बन गए और लंबे समय तक इस की जिम्मेदारी संभाली.

उन्होंने सन 1927 में सुशीला मशरूवाला से शादी की थी, जो बाद में उन की प्रिंटिंग प्रैस की पार्टनर बन गईं. उन से 3 संतानें सीता, अरुण और इला हुए. ये सभी दक्षिण अफ्रीका के ही नागरिक बन गए. आशीष लता की मां इला का नाम दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में बड़ा नाम है. उन का जन्म वहां के क्वाजुलु नटाल में सन 1940 में हुआ था. उन्होंने हर तरह की हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया.

इस के लिए उन्होंने गांधी डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाया, जो अहिंसा के लिए काम करता है. साथ ही महात्मा गांधी के नाम एक मार्च कमेटी भी बनाई गई है.

विभिन्न सामाजिक कार्यों को देखते हुए सन 2002 में वह ‘कम्युनिटी आफ क्राइस्ट इंटरनैशनल पीस अवार्ड’ से सम्मानित की जा चुकी हैं. भारत सरकार ने भी वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे महात्मा गांधी परिवार के कई सदस्यों में कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया, उमा धुपेलिया मेस्त्री, इला गांधी और आशीष लता रामगोबिन शामिल हैं.

3 दिसंबर, 1965 को जन्म लेने वाली आशीष लता रामगोबिन का रहनसहन हिंदू रीतिरिवाज पर आधारित है एवं प्रोफेशनल पहचान सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमिता के रूप में है. वैसे उन की नागरिकता दक्षिण अफ्रीका की है.

उन के 4 छोटे भाईबहनों में आशा और आरती बहनें हैं, जबकि किदार और खुश भाई हैं. उन की फेसबुक अकाउंट के अनुसार उन्होंने सन 1988 में उरबन के ग्लेनहैवेन सकेंडरी स्कूल से सेकेंडरी तक पढ़ाई पूरी कर क्वाजुलु नटाल यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया है.

फिर दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रैशन से पोस्ट ग्रैजुएट तक की पढ़ाई की. बाद में प्रोफ्रेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग इंडस्ट्री के गुर सीखे. स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सरकारी प्रोजेक्ट, गवर्नेंस की बारीक जानकारियां, पं्रोजेक्ट एवं प्रोग्राम का मूल्यांकन, प्रोजेक्ट ड्राफ्ंिटग और एंटरप्रेन्योरशिप में महारत हासिल कर ली.

आशीष लता की शादी एक कारोबारी मार्क चूनू से हुई थी. उन से तलाक हो चुका है, लेकिन अपनी 2 संतानों बेटा और बेटी के साथ रहती हैं. वे अभी किशोर उम्र के हैं. उन का करियर स्वयंसेवी संस्था इंटरनैशनल सेंटर नान वायलेंस से जुड़ा है, जिस की वह संस्थापक और ओनर हैं.

वह उस की कार्यकारी निदेशक भी हैं. उन की पहचान राजनीतिज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता की भी है. न्यूजएंडजिप वेब पोर्टल के अनुसार, उन्होंने 29 जनवरी, 2000 को महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए एक नान वायलेंस संस्था स्थापित की थी. साथ ही उन्होंने 2016 से 5 साल तक यूनाइटेड ट्रेड सोल्यूशन के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाई. इस तरह उन्होंने स्वयंसेवी संस्था के लिए डोनेशन जुटाने का काम करने के साथसाथ बिजनैस करते हुए अच्छी पूंजी अर्जित कर ली है.

लग गई धोखाधड़ी की कालिख

आशीष लता के बारे में कई वैसी बातें भी हैं, जो उन्हें खास बनाने के लिए काफी हैं. जैसे उन्होंने अपने परदादा महात्मा गांधी और मां इला गांधी के कदमों पर चलने की निर्णय लिया है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार औरतों और बच्चों की मदद की है. वह दक्षिण अफ्रीका के समारोहों में अपने परिवार के साथ शामिल होती रही हैं.

आशीष लता रामगोबिन की उद्योगपति एस.आर. महाराज से मुलाकात सन 2015 में ही हो गई थी. दोनों की पहली मीटिंग के दौरान महाराज ने फाइनैंस की जरूरत के बारे में पूछा, ‘‘आप को पैसा क्यों चाहिए?’’

‘‘दरसअल, हम ने भारत से लिनेन के 3 कंटेनर मंगवाए हैं, जो बंदरगाह पर पड़े हैं. आयात लागत और सीमा शुल्क पेमेंट करने में दिक्कत आ गई है. माल को साउथ अफ्रीकन हौस्पिटल ग्रुप नेट केयर को डिलीवर करना है.’’ लता ने सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया.

‘‘पैसे की वापसी का भरोसा क्या है?’’ महाराज के फाइनैंस एडवाइजर ने पूछा.

‘‘ये रहे नेट केयर कंपनी और हमारे साथ एग्रीमेंट बनाने के डाक्युमेंट्स. इस में सारी बातें लिखी हैं.’’ आशीष लता ने कहा.

‘‘कितना फाइनैंस करना होगा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘6.2 मिलियन रैंड की जरूरत है. उस की डिटेल्स की मूल कौपी दे रही हूं. आयात किए गए माल के खरीद की रसीद यह रही.’’ लता ने आश्वासन दिया.

‘‘इस में मेरा प्रौफिट क्या होगा?’’ महाराज ने पूछा.

‘‘उस बारे में भी फाइनैंस की रिक्वेस्ट डिटेल्स के साथ दी गई है.’’ लता ने साथ लाए डाक्युमेंट्स के पन्ने पलट कर दिखाए. उन के द्वारा सौंपे गए डाक्युमेंट्स पर महाराज ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई और अपने फाइनैंस एडवाइजर को सौंपते हुए उस का बारीकी से अध्ययन करने का निर्देश दिया.

‘‘थोड़ा वक्त दीजिए. वैसे मुझे आप पर और आप की पहचान के साथसाथ पारिवारिक इमेज पर पूरा भरोसा है. डाक्युमेंट्स की जांचपरख तो महज औपचारिकता भर है. जल्द ही फाइनैंस संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करवा दूंगा.’’ एस.आर. महाराज बोले.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद, जितना जल्द हो सके फाइनैंस करवा दें तो अच्छा रहेगा.’’ लता ने आभार जताते हुए आग्रह किया.

‘‘…लेकिन हां, मेरे प्रौफिट की हिस्सेदारी में देरी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में हमारी कंपनी काफी सख्त है.’’ महाराज ने साफसाफ कहा.

इसी बीच कंपनी के फाइनैंस एडवाइजर ने आशंका जताई, ‘‘सर, इस में कुछ डाक्युमेंट्स कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बता दो. जितनी जल्द हो सके, लताजी उसे जमा करवा देंगी. बैंक अकाउंट स्टेटमेंट और रिटर्न की डिटेल्स भी मंगवा लेना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, बाकी के सारे डाक्युमेंट्स एक हफ्ते में आप को मिल जाएंगे.’’ लता ने कहते हुए एक बार फिर महाराज को धन्यवाद दिया.

इस तरह दोनों की पहली मीटिंग संभावनाओं से भरी रही. बहुत जल्द ही एक महीने के भीतर ही 3 मीटिंग्स और हुईं और आशीष लता को जरूरत के मुताबिक फाइनैंस मिल गया. उस के बाद मुनाफे के साथ रकम वापसी की एक महीने बाद की एक डेडलाइन तय हो गई.

कहते हैं कि बिजनैसमैन एस.आर. महाराज की कंपनी ने जिस तरह से फाइनैंस करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतनी ही सुस्ती आशीष लता की तरफ से बरती गई.

समय पर नहीं लौटाई रकम

महाराज की कंपनी को समय पर भुगतान नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी के नियम और शर्तों के मुताबिक आशीष लता को नोटिस भेज दिया. नोटिस का सही जवाब नहीं मिलने पर कंपनी ने लता द्वारा जमा करवाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करवाई.

जांच में लता द्वारा किए गए कई दावे गलत साबित हुए. जिस में माल की खरीद के हस्ताक्षरित खरीद का आदेश और नेटकेयर बैंक खाते में भुगतान से संबंधित था. कंपनी ने पाया कि उन के द्वारा जमा किए गए डाक्युमेंट्स जाली थे और उन के साथ नेटकेयर ने कभी कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. यहां तक कि लिनेन के कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचे ही नहीं थे.

इस फरजीवाड़े का पता चलते ही कंपनी के डायरेक्टर एस.आर. महाराज ने आशीष लता के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. 2015 में लता के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई.

सुनवाई के दौरान एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा कि लता ने इनवैस्टर को यकीन दिलाने के लिए फरजी दस्तावेज और चालान दिखाए थे. भारत से लिनेन का कोई कंटेनर दक्षिण अफ्रीका आया ही नहीं था.

हालांकि सुनवाई के दौरान लता ने सबूत पेश करने के लिए समय मांगा और जमानत की अरजी दाखिल की. लता की पारिवारिक इमेज को ध्यान में रखते हुए अक्तूबर 2015 में 50 हजार रैंड (करीब 2.68 लाख रुपए) की जमानत राशि पर पर उन्हें छोड़ दिया गया.

जमानत पर रिहा हुई आशीष लता ने कुल 6 साल तक राहत की सांस ली, किंतु उन के कारनामे दिनप्रतिदिन और मजबूत होते चले गए और 7 जून, 2021 को डरबन की अदालत ने आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी और जालसाजी का दोष सिद्ध करते हुए 7 साल की सजा सुनाई. कथा लिखे जाने तक वह दक्षिण अफ्रीका की जेल में थीं.

 

चाची का चित्तचोर : चाची के जाल में फंसा मदनमोहन

राजस्थान के अलवर जिले के भिवाड़ी शहर के थाना यूआईटी के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को 15 फरवरी, 2021 की सुबह फोन पर सूचना मिली कि सेक्टर  4 व 5 के बीच सड़क पर एक व्यक्ति का शव पड़ा है. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

मौके पर उन्हें वास्तव में एक युवक का शव पड़ा मिला. उन्होंने जब शव की जांच की तो उस के दोनों पैरों के अंगूठों से चमड़ी उधड़ी हुई दिखी. प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था मानो मृतक की हत्या कहीं और कर के शव यहां ला कर डाला गया हो.

पुलिस ने इस नजर से भी जांच की कि मृतक कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया. मगर मौकाएवारदात और शव को देखने से ऐसा नहीं लग रहा था. शव पर और किसी जगह चोट या रगड़ के निशान या खून निकला हुआ नहीं था. मामला सीधे हत्या का लग रहा था. मामला संदिग्ध लगा तो थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी के संज्ञान में मामला आया तो उन्होंने एएसपी अरुण मच्या को घटनास्थल पर जा कर मामला देखने के निर्देश दिए. एएसपी अरुण मच्या और फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल टीम को भी वहां बुला कर साक्ष्य इकट्ठा करवाए. पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. शव की शिनाख्त नहीं हुई थी. लेकिन जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती. तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठने वाली नहीं थी. पुलिस ने अज्ञात शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस को सुलझाने के लिए एएसपी अरुण मच्या के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में यूआईटी थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार के साथ फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, एसआई अखिलेश, हैडकांस्टेबल मुकेश कुमार, राकेश कुमार, मोहनलाल, कर्मवीर, रामप्रकाश, राजेंद्र, संतराम, सुरेश, ओमप्रकाश व ऊषा को शामिल किया गया.

मृतक की हुई शिनाख्त

इस पुलिस टीम ने मृतक के फोटो एवं पैंफ्लेट बना कर भिवाड़ी में सार्वजनिक स्थानों पर लगवा कर लोगों से शव की शिनाख्त की अपील की. साथ ही पुलिस टीम ने 2 दिन में लगभग 800 घरों में संपर्क कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की. वहीं पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले.

सीसीटीवी फुटेज में एक बाइक पर एक युवक और महिला किसी व्यक्ति को बीच में बैठा कर ले जाते दिखे. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त कर ली. मृतक का नाम कमल सिंह उर्फ कमल कुमार था. मृतक कमल निवासी उमराया, छाता, जिला मथुरा का रहने वाला था और इन दिनों भिवाड़ी की प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में रह रहा था.

पुलिस ने मृतक कमल के घर जा कर पूछताछ की तो मृतक की बीवी जमना देवी अपने पति की हत्या की बात सुन कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाया और पूछताछ की. जमना देवी ने बताया कि उस का पति कमल एटीएम से रुपए निकलवाने गया था. जबकि मृतक के बड़े भाई भीम सिंह ने पुलिस को बताया कि 14 फरवरी, 2021 की रात कमल सिंह की पत्नी जमना देवी उन के घर आई थी. वह उस से बाइक की चाबी यह कह कर मांग कर लाई थी कि कमल को बल्लभगढ़ जाना है.

भीम सिंह ने तब बाइक की चाबी जमना को दे दी थी. पुलिस को लगा कि मृतक की बीवी गुमराह कर रही है. तब पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ करने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज जमना देवी को दिखाई. सीसीटीवी फुटेज में बाइक पर बैठी महिला के कपड़े एवं जमना के पहने कपड़े एक ही थे.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि कमल की हत्या में उस की पत्नी जमना का हाथ है. तब पुलिस ने जमना से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जमना टूट गई. उस ने कबूल कर लिया कि अपने प्रेमी और भतीजे मदनमोहन के साथ मिल कर पति की हत्या की थी.

तब पुलिस ने मृतक कमल सिंह की बुआ के पोते 19 वर्षीय मदनमोहन को फरीदाबाद, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने मदनमोहन को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर साइबर सेल एक्सपर्ट की मदद से धर दबोचा था.

पुलिस गिरफ्त में आते ही मदनमोहन समझ गया कि उस का भांडा फूट गया है. इसलिए उस ने भी कमल सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस तरह 19 फरवरी, 2021 को पुलिस ने हत्या के इस मामले से परदा हटा दिया. मदनमोहन को यूआईटी थाना पुलिस थाने ले आई.

शव की शिनाख्त होने के बाद कमल सिंह के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया गया. मृतक के भाई भीम सिंह की तरफ से जमना देवी उर्फ लक्ष्मी जादौन और मदनमोहन जादौन के खिलाफ भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

आरोपियों जमना देवी उर्फ लक्ष्मी और उस के प्रेमी भतीजे मदनमोहन से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार निकली—

कमल सिंह और भीम सिंह जादौन सगे भाई थे. कई साल पहले वह अपने गांव उमराया, थाना छाता, जिला मथुरा, उत्तरप्रदेश से राजस्थान के अलवर के भिवाड़ी शहर में आ बसे थे. दोनों भाई भिवाड़ी में किराए के मकान में रहते थे. दोनों भाई माश मेटल कंपनी चौक भिवाड़ी में नौकरी करते थे.

शादी के बाद दोनों भाई अलग हो गए थे. कमल सिंह अपनी पत्नी जमना देवी उर्फ लक्ष्मी के साथ प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में किराए के मकान में रहता था. वहीं भीम सिंह अपने बीवीबच्चों के साथ रामनिवास कालोनी, भिवाड़ी में रहता था. दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे. दोनों की तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. जिस से घरपरिवार का खर्च आराम से चल रहा था.

शादी में दे बैठे दिल

जमना करीब एक साल पहले कमल की बुआ के पोते की शादी में गांव सांखी, मथुरा गई थी. शादी में वैसे भी सब लोग अच्छे कपड़े और शृंगार कर के शामिल होते हैं. महिलाएं और युवतियां तो ऐसे मौके पर सजनेसंवरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं.

जमना ने भी मेकअप करा कर अच्छे कपड़े पहने. वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. शादी श्रीचंद जादौन के बड़े बेटे की थी. दूल्हे का छोटा भाई मदनमोहन भी उस समय खूब सजाधजा हुआ था. वह शक्लसूरत से भी ठीक ही था. दूल्हे के आसपास घूमते मदनमोहन और जमना की नजरें एकदूसरे से मिलीं तो दोनों एकदूसरे से नजरें नहीं हटा सके.

मदन को जहां जमना प्यारी लगी थी, वहीं जमना को भी मदन भा गया था. मदन उस समय 18 साल का गबरू जवान था. दोनों का रिश्ता वैसे तो चाचीभतीजे का था मगर उन की आंखों में एकदूजे के लिए अलग ही चाहत थी.

दोनों एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, मानो उन के अलावा उन के लिए वहां कोई और था ही नहीं. मदन ने जब भी इधरउधर देख कर जमना की तरफ देखा, वह उसे ही देखती मिली. मदनमोहन ने तब मौका पा कर जमना चाची से कहा, ‘‘चाची, क्या खूबसूरत लग रही हो. नयनों के तीर चुभो कर मेरा दिन घायल कर दिया.’’

सुन कर जमना हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारे नयनों ने मेरा भी दिल घायल कर दिया. अब इस की मरहमपट्टी तुम्हें ही करनी पड़ेगी.’’

‘‘बंदा अभी हाजिर है. आप हुक्म करें. मैं दिल का नया डाक्टर हूं.’’ वह बोला.

‘‘अच्छा, तो डाक्टर साहब से दिल घायल हुआ उस का इलाज आज जरूर कराएंगे.’’ जमना ने हंस कर कहा.

ये बातें हो तो मजाक में रही थीं मगर दोनों के मन में एकदूजे के लिए चाहत जाग उठी थी. दोनों शादी के दौरान एकदूसरे से मिलते रहे. एकदूसरे की खूबसूरती की तारीफों के पुल बांधते रहे.

मौका रात में मिला तो दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उन का चाचीभतीजे का रिश्ता वासना की आग में जल कर खाक हो गया. दोनों में एक नया रिश्ता कायम हो गया, जिस का अंत बहुत बुरा होने वाला था.

अगले दिन जमना जब गांव सांखी बुआ सास के घर से भिवानी आने की तैयारी कर रही थी तो मदनमोहन ने कहा, ‘‘चाची, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे जाने के बाद मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी.’’

‘‘आज के बाद चाची नहीं जमना कहोगे.’’ जमना बोली.

तब मदनमोहन बोला, ‘‘जैसा आप का हुकम मेरी प्यारी डार्लिंग जमना. मुझे हर रोज फोन करना. मिलने भी बुलाना. क्योंकि मैं तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘जरूर मेरे राजा, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद सताएगी. याद करूं तब दौड़े आना.’’ वह बोली.

‘‘जरूर आऊंगा.’’ मदन ने जमना की ओर देखते हुए रुआंसे स्वर में कहा.

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया. जमना भिवाड़ी आ गई. वह भिवाड़ी आ जरूर गई थी, लेकिन अपना दिल तो भतीजे मदनमोहन के पास छोड़ आई थी. यही हाल मदनमोहन का भी था. उसे जमना के बगैर कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मगर करते भी तो क्या. दोनों फोन पर बातें कर के दिल को तसल्ली देते रहते.

एक दो बार मदनमोहन भिवाड़ी भी आया और हसरतें पूरी कर वापस गांव मथुरा लौट आया. उन के बीच अवैध संबंध बने तो दोनों को दुनिया फीकी लगने लगी. मौका मिलने पर मदन भिवाड़ी आ कर जमना देवी से मिल जाता. दोनों कमल सिंह की गैरमौजूदगी में रास रचाते थे.

दोनों एकदूसरे से कोसों दूर रहते थे. एक भिवाड़ी में तो दूसरा मथुरा में. ऐसे में हर रोज मिलना संभव नहीं था. ऐसे में वे दोनों फोन पर बातें कर जी हलका करते थे.

घटना से 6 महीने पहले एक दिन कमल ने अपनी पत्नी जमना को किसी से हंसहंस कर अश्लील बातें करते पकड़ लिया. तब कमल ने उस से पूछा कि किस से बातें कर रही थी. जमना ने बताया कि वह मदनमोहन से ही बात कर रही थी. तब उस ने कहा, ‘‘अरे शर्म नहीं आई तुझे उस से ऐसी बातें करते. अगर आज के बाद किसी से भी इस तरह की बात की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

तब जमना ने कसम खा कर पति से कहा कि वह भविष्य में कभी भी मदनमोहन से बात नहीं करेगी. जमना ने पति से यह वादा कर तो लिया लेकिन मदन से बात किए बिना उस का मन नहीं लग रहा था. तब उस ने एक नई सिम ले ली. फिर वह उस नए नंबर से चोरीछिपे मदन से बतिया लेती. कमल ने सोचा कि बीवी ने मदनमोहन से बात करनी छोड़ दी है.

2 महीने बाद जमना को पुन: मदनमोहन से फोन पर बातें करते समय कमल ने पकड़ लिया. तब कमल ने जमना को जम कर पीटा और मदनमोहन को भी फोन कर के धमकाया, ‘‘हरामजादे, तेरे खिलाफ अपनी बीवी से बलात्कार करने का मुकदमा दर्ज कराऊंगा. तब तू सुधरेगा.’’

इतनी पिटाई के बाद भी जमना नहीं सुधरी. उसे अपने प्रेमी से बात करनी नहीं छोड़ी.

इस के बाद कमल सिंह ने एक बार फिर बीवी को मदनमोहन से बात करते पकड़ा. तब बीवी को पीटा और मदनमोहन को धमकी दी कि उस ने अगर 2 लाख रुपए नहीं दिए तो वह बलात्कार का मामला दर्ज करा कर सारे परिवार व रिश्तेदारों से तुम दोनों के अवैध संबंधों की पोल खोल देगा.

मदनमोहन डर गया. उस ने कहा कि उस के पास इतने रुपए नहीं हैं. वह रुपए किस्तों में दे देगा. वह बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज न कराएं. इस के बाद कमल ने 14 फरवरी, 2021 को फोन कर मदनमोहन को भिवाड़ी बुलाया. शाम 5 बजे मदनमोहन भिवाड़ी स्थित कमल के घर आया. इस के बाद कमल और मदनमोहन ने साथ बैठ कर शराब पी.

जब शराब का नशा चढ़ा तो कमल ने मदनमोहन से पूछा कि 2 लाख रुपए देगा तो बलात्कार का मामला दर्ज नहीं कराऊंगा. तब मदनमोहन ने कहा कि वह किस्तों में रुपए जरूर दे देगा.

इस के बाद कमल, जमना व मदनमोहन कमरे में एक ही बैड पर सो गए. कमल के दिमाग में तो उस समय कुछ और ही चल रहा था. वह चुपके से उठा और पास में सो रही अपनी बीवी और मदनमोहन के इस तरह फोटो खींचने लगा जैसे वे दोनों एक साथ सो रहे हैं.

फोटो खींच कर कमल ने मदनमोहन और जमना को जगा कर कहा, ‘‘अब मैं रिश्तेदारों को फोन कर के बुलाता हूं और पूरी कालोनी के लोगों को बुला कर बताता हूं कि मैं ने तुम दोनों को शारीरिक संबंध बनाते रंगेहाथों पकड़ा है.’’

तब कमल की पत्नी जमना बोली कि ऐसा मत करो. लेकिन कमल नहीं माना और जिद करने लगा कि वह लोगों को तुम्हारे अवैध संबंधों के बारे में बता कर ही रहेगा.

अपनी पोल खुलने के डर से मदनमोहन ने कमल सिंह को पकड़ लिया और जमना ने अपनी चुन्नी पति के गले में डाल कर जोर से कस दी, जिस से कमल की मृत्यु हो गई. तब मदन और जमना के हाथपांव फूल गए. मगर कमल तो मर चुका था.

तब दोनों ने कमल की लाश ठिकाने लगाने की योजना बनाई, जिस के तहत जमना उसी समय अपने जेठ भीम सिंह के घर गई और उन की बाइक की चाबी यह कह कर ले आई कि कमल को अभी एटीएम से पैसे निकालने बल्लभगढ़ जाना है.

जमना और मदन ने कमल की बाइक पर रात करीब एक बजे कमल के शव को इस तरह दोनों के बीच बिठा कर रखा जैसे किसी बीमार को अस्पताल ले जा रहे हैं. दोनों बाइक पर शव को बाबा मोहनराम के जंगलों में डालने के लिए रवाना हुए लेकिन सड़क पर आने पर बाइक के पीछे पुलिस गश्त की मोटरसाइकिल देख कर मदनमोहन ने बाइक हेतराम चौक से सेक्टर-5 की तरफ मोड़ दी.

सेक्टर-5 व 6 वाली रोड पर बस की लाइट दिखाई देने पर दोनों ने शव को सेक्टर-5 में खाली प्लौट के सामने सड़क किनारे पटक दिया और वापस घर आ गए. मोटरसाइकिल पर मृतक कमल के पैर जमीन पर लटक रहे थे, जिस के कारण दोनों पैरों के अंगूठे आगे से रगड़ कर छिल गए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी मदनमोहन फरीदाबाद चला गया.

अगली सुबह यानी 15 फरवरी, 2021 सड़क पर शव देख कर साढ़े 7 बजे थाना यूआईटी भिवाड़ी फेज-3 के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को किसी राहगीर ने शव पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने मृतक की बाइक और जमना देवी व मदनमोहन के मोबाइल जब्त कर के पूछताछ के बाद दोनों को भिवाड़ी कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

माया के लिए बड़ा गुनाह : अपनी ही पत्नी की हत्या

लालच की भी एक हद होती है, लेकिन पैसे के लिए अनुज ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस ने शालिनी की हत्या की ही योजना नहीं बनाई बल्कि एक तीर से 2 निशाने लगाने की सोची. लेकिन…

8  जनवरी, 2021 की बात है. सुबह के करीब 5 बजे थे. गुजरात के सूरत जिले के पुणा पुलिस थाने को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले व्यक्ति ने इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को फोन पर बताया कि कुमारियां गांव के सर्विस रोड स्थित रघुवीर सिलियम मार्केट के सामने बुरी तरह जख्मी एक महिला पड़ी है. उस के सिर पर गहरी चोट है. मामला सड़क दुर्घटना का लगता है. आप शीघ्र काररवाई करें.

इस जानकारी को इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया ने गंभीरता से लिया. अपने सहायकों को साथ ले कर वह तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पुणा पुलिस थाने से लगभग एक किलोमीटर दूर था. पुलिस वहां मुश्किल से 10 मिनट में पहुंच गई. इस बीच घटना की जानकारी पूरे इलाके में फैल चुकी थी और वहां अच्छाखासा मजमा लग गया था.

पुलिस टीम जब वहां पहुंची तो खून ही खून फैला हुआ था. खून के अलावा वहां कुछ नहीं था. पुलिस टीम ने जब वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि उन के आने के पहले एक एंबुलैंस आई और उसे उठा कर इलाज के लिए पास ही के स्मीमेर अस्पताल ले गई.

इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को मामला गंभीर लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

निरीक्षण करने के बाद वह सीधे स्मीमेर अस्पताल पहुंचे. वहां पता चला कि उस महिला की उपचार के दौरान ही मौत हो गई थी. महिला को उस की ससुराल के लोग अस्पताल लाए थे. वह भी अस्पताल में ही मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि मृतक महिला का नाम शालिनी था. उस की मौत अस्पताल लाने के 20 मिनट बाद हुई थी.

शालिनी के पति अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू ने बताया कि वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ सुबह 5 बजे अकसर उस रोड पर मौर्निंग वाक के लिए जाता था. एक घंटे की वाक के बाद वे अपने घर आ जाते थे.

घटना के समय टहलते हुए जब वह अपनी पत्नी से कुछ दूर आगे चल रहा था, तभी अचानक रेत से भरा एक ट्रक तेजी से आया और शालिनी को रौंदता हुआ वड़ोदरा की तरफ निकल गया. घबराहट में जब तक वह कुछ समझ पाता, तब तक ट्रक उस की आंखों से ओझल हो गया था.

सुनसान सड़क होने के कारण उसे जल्दी कोई मदद भी नहीं मिली. वह अपना फोन घर भूल आया था. जिस की वजह से मजबूरन उसे शालिनी को घायलावस्था में वहीं छोड़ कर एंबुलैंस लाने के लिए जाना पड़ा.

अस्पताल के डाक्टरों के बयानों के बाद पुलिस ने शालिनी के शव का बारीकी से मुआयना किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.

थानाप्रभारी थाने लौट आए. शुरुआती जांचपड़ताल में जहां एक तरफ मामला हिट ऐंड रन का बन रहा था, वहीं दूसरी तरफ शालिनी की हत्या की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. बहरहाल, शालिनी के पति अनुज यादव की शिकायत पर पुलिस ने ड्राइवर और ट्रक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.

दूसरी ओर जब इस हादसे की खबर शालिनी के मायके वालों को मिली तो उन के पैरों तले से जमीन सरक गई. उन की बेटी शालिनी किसी हादसे का शिकार हो गई, यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उन के पूरे परिवार में बेटी को ले कर कोहराम मच गया. उस की मां, बहनों और भाइयों का रोरो कर बुरा हाल था. शालिनी के पिता धनीराम यादव ने फोन पर इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया से बात की और दूसरे दिन शाम होतेहोते वह आगरा जिले में स्थित अपने गांव से सूरत आ गए.

साजिश का संदेह

शालिनी के पिता धनीराम यादव ने शालिनी की मौत को एक सोचीसमझी साजिश बता कर उस की ससुराल वालों को संदेह के राडार पर खड़ा कर दिया. मायके वाले शालिनी के शव पर अपना दावा करते हुए उस का दाह संस्कार अपने गांव ले जा कर करना चाहते थे. साथ ही वे शालिनी की 2 वर्षीय बेटी को भी अपने संरक्षण में लेना चाहते थे. लेकिन इस के लिए शालिनी के ससुराल वाले तैयार नहीं थे. ससुराल वाले उस का शव हासिल करने की कोशिश में लगे थे.

जिस प्रकार शालिनी के पिता धनीराम यादव ने उस के पति और ससुराल वालों को शालिनी की मौत का जिम्मेदार ठहरा कर उन पर आरोप लगाया था, उस से मामला उलझ गया था. दोनों तरफ बातों में कितनी सच्चाई है, पुलिस अधिकारी इस का अध्ययन कर अपनी जांच की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि सूरत की सीबीसीआईडी के हाथों में चला गया.

पोस्टमार्टम के बाद शालिनी का शव उस के पिता धनीराम यादव को सौंप दिया गया. जो उसे अपने गांव ले गए. अपनी बेटी का दाह संस्कार करने के बाद धनीराम यादव ने सूरत के नए पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर से मुलाकात कर बेटी की मौत के मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.

पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर इस मामले पर पहले से ही नजर बनाए हुए थे. उन्होंने शालिनी के केस को गंभीरता से लेते हुए उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया.

इस के पहले कि पुलिस अधिकारी केस की जांच को ले कर कोई काररवाई करते, शालिनी की मौत को ले कर पूरे शहर में सनसनी फैल गई.

हुआ यह कि शालिनी की मौत को ले कर कई दैनिक अखबारों ने दिलचस्पी लेते हुए उसे हाईलाइट कर दिया. जिस से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा भर गया.

पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह लोगों को समझाया.

सीबीसीआईडी के प्रमुख आर.आर. सरवैया मामले की जांच करने में जुट गए. सरवैया काफी सुलझे हुए तेजतर्रार अधिकारी थे. उन की अपनी अलग पहचान थी.

मामले की जिम्मेदारी लेते ही उन्होंने अपने स्टाफ के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह बाला को साथ ले कर केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने अपने स्तर पर अस्पताल और घटनास्थल का दोबारा निरीक्षण किया. उन्होंने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथसाथ वहां के निवासियों के बयान लिए.

उन के बयानों का क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब बारीकी से अध्ययन किया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. जब उन्होंने मामले की जांच की तो पूरी दाल ही काली निकली. सुबहसुबह जिस रोड पर वह वाक करने जाते थे, उस समय वह रोड एकदम सुनसान रहती थी.

फिर इतनी सुबह उन के वहां मौर्निंग वाक पर जाने का क्या मतलब था. इस का मतलब शालिनी के पति अनुज कुमार यादव का बयान संदिग्ध था. जो आरोप शालिनी के पिता ने उस पर लगाया था, वह अपराध की श्रेणी में आता था. इस के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी रहस्यमय थी.

क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब इस की तह में जाना शुरू किया तो शालिनी के ससुराल वाले कुछ इस प्रकार उलझे कि उन के हौसले पस्त हो गए और शालिनी हत्याकांड का सच बाहर आ गया. साजिश कितनी गहरी थी, यह जान कर जांच अधिकारी भी सन्न रह गए. पैसों की भूख ने शालिनी के ससुराल वालों को अपराध की दलदल में धकेल दिया था.

25 वर्षीय अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के रहने वाले सोहन सिंह यादव का एकलौता बेटा था. सोहन सिंह यादव कई साल पहले काम की तलाश में गुजरात के शहर सूरत आए थे और सूरत की एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी करने लगे. जब वह सारे नियमकायदे जान गए तो उन्होंने खुद की सेवा सिक्योरिटी एजेंसी खोल ली.

थोड़े ही दिनों में उन की सिक्योरिटी एजेंसी अच्छी चल निकली और उन के पास 100-150 गार्ड हो गए. सूरत शहर में उन की कई शाखाएं खुल गईं. अच्छा पैसा आया तो उन्होंने अपने रहने के लिए कुमारियां

गांव स्थित सारथी रेजीडेंसी में अच्छा सा फ्लैट ले लिया.

सूरत में उन की और सिक्योरिटी एजेंसी की प्रतिष्ठा थी. वह सूरत के सम्मानित नागरिक बन गए थे. परिवार में उन की पत्नी और बेटे के अलावा एक बेटी पूजा उर्फ नीरू थी, जिस की शादी बुलंदशहर के सरपंच के बेटे रघुवेश यादव से हो गई थी. शादी के बाद भी पूजा अपनी ससुराल में कम और मायके में ज्यादा रहती थी.

अनुज उर्फ मोनू महत्त्वाकांक्षी था, वह पैसों का लोभी था. पढ़ाई खत्म करने के बाद उस का मन पिता की सिक्योरिटी एजेंसी में नहीं लगा. उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोल ली. उसे यह लुभावना सपना उस के नौकर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू ने दिखाया था, जो 5 साल पहले उस केपिता की सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की सर्विस करता था. सिक्योरिटी की नौकरी छोड़ कर वह ट्रांसपोर्ट की लाइन में चला गया था.

लालच की हद

अनुज उर्फ मोनू का ट्रांसपोर्ट का कारोबार जब ठीकठाक चलने लगा तो पिता सोहन सिंह यादव ने दिसंबर, 2017 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गांव जाफरापुर निवासी धनीराम यादव की बेटी शालिनी के साथ उस की शादी कर दी. धनीराम यादव गांव के जानेमाने काश्तकार थे. उन्होंने बेटी की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार दानदहेज दिया.

शालिनी जिन सपनों को ले कर ससुराल आई थी, उस के उन सपनों की हकीकत जल्दी ही सामने आ गई. शादी के 4 महीने बाद ही ससुराल वाले उस के मायके वालों से 5 लाख रुपयों की मांग करने लगे. कुछ दिनों बाद वह शालिनी को प्रताडि़त भी करने लगे थे.

यह बात शालिनी के मायके वालों को पता लगी तो उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने अनुज को बुला कर 2 लाख रुपए दे दिए और बाकी 3 लाख रुपए आलू की फसल बेच कर देने का वादा कर लिया.

इतना करने के बाद भी शालिनी के प्रति जब ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला तो वह जा कर शालिनी को मायके ले आए. लेकिन एक महीने बाद ही उस की ससुराल वाले उसे वापस अपने घर ले गए.

इस बीच शालिनी मां बनी और एक बच्ची को जन्म दिया. अनुज के परिवार वालों को बेटी पैदा होने की जरा भी खुशी नहीं हुई. शालिनी को बेटी होने की भी प्रताड़ना भी सहनी पड़ती थी. यहां तक कि शालिनी को अपने पास फोन तक रखने की इजाजत नहीं थी.

अनुज तो दहेज को ले कर शालिनी को तरहतरह से प्रताडि़त करता था. उस की बहन पूजा उर्फ नीरू, पिता सोहन सिंह यादव और उस के 2 चचेरे भाई गोपाल और गंगाराम यादव भी इस में पीछे नहीं रहते थे.

पैसों का भूखा अनुज अपने परिवार के साथ शालिनी पर अत्याचार तो करता ही था, उन की योजना बीमा कंपनियों को भी चूना लगाने की थी. ट्रांसपोर्ट के कारोबार में होने के कारण बीमे का फंडा उसे अच्छी तरह मालूम था. इसीलिए उस ने अपने पूरे परिवार के लिए नकली दस्तावेज दे कर जीवन बीमा पौलिसी करा ली थीं. पिता, बहन और पत्नी की पौलिसियों का वह स्वयं नौमिनी था और अपनी पौलिसी का नौमिनी उस ने अपने पिता को बनाया था.

परफेक्ट प्लानिंग

जीवन बीमा की 3-4 किस्तें के बाद अनुज अपने पिता और बहन का फरजी डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए अपनी बहन के सरपंच ससुर के पास बुलंदशहर गया. मगर वहां पूजा के पति रघुवेश की वजह से वह अपनी योजना में सफल नहीं हुआ. इस पर भाईबहन ने मिल कर रघुवेश यादव को दहेज के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया.

समय अपनी गति से चल रहा था. धीरेधीरे  शालिनी की शादी को 2 साल से अधिक समय हो गया. बेटी एक साल की हो गई थी. फिर भी शालिनी के प्रति उस की ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला. इस से नाराज शालिनी के घर वालों ने सन 2019 में शालिनी के ससुराल वालों पर धावा बोल दिया और उन की अच्छी तरह पिटाई कर दी.

इस के बाद शालिनी का व्यवहार भी बदल गया. उस ने अपनी ससुराल वालों से डरना छोड़ दिया. ससुराल वालों का जबजब सुर बदलता, तबतब शालिनी उन्हें अपने मायके वालों की धमकी दे देती थी. इस का प्रतिकूल असर उस के पति अनुज पर पड़ता था, जिसे अनुज अपना अपमान समझता था.

इस अपमान की आग अनुज के दिल में ऐसी लगी कि उस ने शालिनी का अस्तित्व ही मिटा डालने का फैसला कर लिया. उस ने शालिनी और उस के मायके वालों से एक खौफनाक अंदाज में अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली.

इस के लिए उस ने शालिनी के प्रति एक खतरनाक साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने पुराने कर्मचारी सिक्योरिटी गार्ड और ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू को भी शामिल कर लिया.

उस ने शालिनी की 30 लाख की जीवन बीमा पौलिसी तो पहले से ही करवा रखी थी. इस के बाद उस ने अपने कारोबार के लिए नवंबर में शालिनी के नाम पर 33 लाख का एक डंपर खरीद लिया. उस डंपर का भी उस ने बीमा करा लिया था.

बीमा की पौलिसी के अनुसार अगर डंपर मालिक की किसी दुर्घटना में मौत हो जाती तो डंपर का पूरा पैसा माफ हो जाता. इस तरह योजना को अंजाम देने पर अनुज को 63 लाख रुपए का फायदा होता.

साजिश को दिया अंजाम

इस साजिश को सफल बनाने के लिए अनुज ने पहले शालिनी और उस के ससुराल के लोगों के प्रति अपना व्यवहार ठीक किया. फिर घटना के 15 दिन पहले से अनुज शालिनी को साथ ले कर मौर्निंग वाक के लिए कुमारियां गांव के सर्विस रोड पर जाने लगा.

अपनी तरफ धीरेधीरे बढ़ती हुई मौत से अनभिज्ञ शालिनी अपने पति अनुज का साथ देने लगी. इस साजिश में शामिल मोहम्मद नईम को अनुज ने ढाई लाख रुपए देने का वादा किया था. मोहम्मद नईम की अपनी मजबूरी थी. उसे अपनी बेटी की शादी करनी थी. इसलिए वह राजी हो गया था.

साजिश के तहत घटना के दिन मोहम्मद नईम ने घटना से 5 घंटे पहले बालू भरी अपनी ट्रक ला कर घटनास्थल से कुछ दूरी पर खड़ी कर दी.

अपने तय समय के अनुसार सुबह साढ़े 4 बजे जब अनुज अपनी पत्नी शालिनी के साथ उस सर्विस रोड पर आया तो मोहम्मद नईम सावधान हो गया . अनुज और शालिनी आपस में बातें करते हुए जब रघुवीर सैलियम मार्केट के पास आए, उसी समय अनुज ने सुनसान माहौल देख कर शालिनी का कस कर गला दबा दिया.

शालिनी उस का विरोध भी न कर पाई और बेहोश हो गई. उस ने शालिनी को गिरने नहीं दिया, वह उसे पकड़े रहा. शालिनी के बेहोश होते ही अनुज का इशारा पा कर मोहम्मद नईम तेजी से अपनी ट्रक उन के पास से ले कर गुजरा तो अनुज ने शालिनी को ट्रक की तरफ धक्का दिया.

इस के पहले कि शालिनी के चिथड़े उड़ जाते, मोहम्मद नईम का मन बदल गया. वह अपने ट्रक को कट मार कर निकाल ले गया. लेकिन फिर भी ट्रक की टक्कर से शालिनी लहूलुहान हो गई.

अनुज कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. कुछ देर बाद रोड पर जब हलचल बढ़ी तो वह हरकत में आ गया. उस दिन वह जानबूझ कर अपना फोन घर छोड़ आया था. किसी का फोन मांग कर उस ने फोन कर के एंबुलैंस बुलाई और शालिनी को अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पूछताछ में पुलिस को गुमराह करने के लिए अनुज ने शालिनी की मौत की एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद पुलिस ने शालिनी की हत्या में शामिल ससुर सोहन सिंह यादव, ननद पूजा उर्फ नीरू यादव, गोपाल और गंगाराम यादव को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर फरार ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम को भी क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने छापा मार कर सूरत के फाल आरटीओ के पास से गिरफ्त में ले लिया और आगे की जांच के लिए सूरत के पुणा थानाप्रभारी को सौंप दिया.

कथा लिखे जाने तक शालिनी के मायके वाले उस की 2 वर्षीय बेटी को अपने संरक्षण में लेने के लिए कानूनी सलाह ले रहे थे. वह अनुज के रिश्तेदारों के पास रह रही थी.

मधु के मन का जहर : पत्नी के अवैध संबंध का खतरनाक अंजाम

उस दिन अप्रैल 2021 की 3 तारीख थी. पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर के कस्बा थाना तिलहर अंतर्गत गांव राजनपुर के मोड़ पर सड़क किनारे सैंट्रो कार के नीचे एक अज्ञात युवक की लाश दबी पड़ी थी. रात 10 बजे के करीब किसी ने तिलहर थाना पुलिस को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह बालियान अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. प्रथमदृष्टया मामला ऐक्सीडेंट का लगा. लाश दाईं ओर दोनों पहियों के बीच में पड़ी थी. सिर में काफी चोट थी. कार की तलाशी ली गई तो कार से गिलास, खानेपीने का सामान, 3 मोबाइल फोन और गाड़ी के कागजात बरामद हुए.

इसी बीच रजाकपुर गांव के कुछ लोग वहां पहुंच गए. परमजीत नाम के युवक ने लाश की शिनाख्त अपने बड़े भाई 38 वर्षीय धनपाल गंगवार के रूप में की. पूछताछ में परमजीत ने बताया कि धनपाल पत्नी मधु और 2 बेटों के साथ गुड़गांव में रहता था, होली पर 3 साल बाद अपने घर आया था.

वह शाम को पत्नी व बच्चों को तिलहर के बाजार में खरीदारी कराने के लिए ले कर आया था. साढ़े 5 बजे धनपाल ने पत्नी मधु और बच्चों को भाई प्रेमपाल के साथ वापस घर भेज दिया था और खुद तिलहर में रुक गया था. जब काफी रात हो गई, धनपाल नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू की.

इसी बीच कार से मिले मोबाइल पर किसी की काल आ गई. इंसपेक्टर बालियान ने काल रिसीव की. काल कनेक्ट होते ही दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘कहां है तू, तेरा पता ही नहीं रहता.’’

काल करने वाली कोई महिला थी. इंसपेक्टर बालियान ने उन्हें पूरी बात बताई. उस महिला ने कहा कि सैंट्रो कार उस के पति की है, जिसे उस का भाई मुकेश यादव वृंदावन जाने की बात कह कर ले गया था.

इस का मतलब यह था कि कार में मुकेश यादव था, जोकि घटना को अंजाम देने के बाद फरार हो गया था. मामला साधारण सड़क दुर्घटना का न हो कर हत्या का लग रहा था, जिसे साजिश के तहत सड़क दुर्घटना दिखाने की कोशिश की गई थी. फिलहाल इंसपेक्टर बालियान ने जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और कार को थाने में खड़ा करा दी.

अगले दिन सुबह मृतक धनपाल के छोटे भाई परमजीत गंगवार ने तिलहर थाने पहुंच कर इंसपेक्टर बालियान को तहरीर दी, जिस में उस ने मुकेश यादव पर अपने भाई की हत्या का आरोप लगाया था. उस की तहरीर के आधार पर इंसपेक्टर बालियान ने मुकेश यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

परमजीत ने इंसपेक्टर बालियान से अपनी भाभी मधु पर भी भाई की हत्या में हाथ होने का शक जताया था, लेकिन तहरीर में उस का जिक्र नहीं किया था. पति की मृत्यु के बाद भी मधु के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, जबकि जिस का पति मार दिया जाए, वह महिला रोरो कर आसमान सिर पर उठा लेती है.

इंसपेक्टर बालियान ने परमजीत से मधु का नंबर मांगा तो परमजीत ने अपनी भाभी मधु से उस का नंबर मांगा तो मधु ने साफ कह दिया कि उस के पास कोई नंबर नहीं है. जो मोबाइल उस के पास है, वह उस ने केवल गाना सुनने के लिए ले रखा है. परमजीत को मधु पर विश्वास नहीं हुआ. किसी तरह उस के करीबियों से बात कर के उस का नंबर निकलवाया.

मधु पर हुआ शक

इंसपेक्टर बालियान ने मधु के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. डिटेल्स से मधु और मुकेश के नंबरों पर हर रोज काफी बार बात करने की पुष्टि हुई. घटना की रात भी दोनों के बीच बात हुई थी.

6 अप्रैल को इंसपेक्टर बालियान ने मधु को उस की ससुराल से गिरफ्तार कर लिया. मधु से पूछताछ के बाद उन्होंने मुकेश यादव को मधु के मायके शाहजहांपुर के कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव से गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के तिलहर थाना क्षेत्र के गांव रजाकपुर में रहता था धनपाल गंगवार. धनपाल के पिता का नाम खलासीराम और माता का नाम शांति देवी था. खलासीराम सेना में कार्यरत थे.

रिटायर होने के बाद 1989 में उन की मृत्यु हो गई. उस समय धनपाल बहुत छोटा था. धनपाल कुल 6 भाई थे. 2 बड़े भाई हरपाल और जसपाल व 3 छोटे भाई धर्मपाल, प्रेमपाल और परमजीत थे. हरपाल विवाह के बाद पंजाब चला गया. जसपाल विवाह के बाद गांव में ही रह कर खेती करने लगा.

11 साल पहले धनपाल का रिश्ता शाहजहांपुर के मीरनपुर कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव निवासी मधु से हुआ था. मधु के पिता रामपाल पेशे से किसान थे. मधु की एक बड़ी बहन और 3 भाई थे.

काम के लिए वह गुड़गांव चला गया. वहां उस ने ओरियंट कंपनी में नौकरी कर ली, साथ ही हरीनगर में अनाज मंडी के पास में 4500 रुपए में किराए पर कमरा ले लिया. फिर एक दिन वापस आ कर अपने साथ पत्नी मधु को भी गुड़गांव ले गया.

समय बीतता गया. समय के साथ मधु ने 2 बच्चों कृष्णा (9 वर्ष) और क्रश (4 वर्ष) को जन्म दिया.

 पत्नी से होने लगी खटपट

धनपाल सुबह साढ़े 7 बजे घर से कंपनी जाता था और शाम 8 बजे घर में घुसता था. लगभग 12 घंटे की ड्यूटी करने के बाद वह थकाहारा घर आता था. धनपाल था तो मजबूत कदकाठी का, लेकिन रोज की यह ड्यूटी उस के बदन को तोड़ कर रख देती थी. ऐसे में जो धनपाल अभी तक शराब को हाथ तक नहीं लगाता था, वह शराब पीने भी लगा.

शराब पी कर घर जाता तो मधु से उस का झगड़ा होता. झगड़े में वह मधु को पीट भी देता था. वैसे भी मधु धनपाल पर हावी रहने की कोशिश करती थी, लेकिन धनपाल को यह मंजूर नहीं था.

शराब पीने के बाद तो इंसान वैसे भी निडर हो जाता है. किसी तरह से दोनों के  झगड़ों के बीच उन की जिंदगी कटती रही. मधु को अब धनपाल भाता नहीं था. उस के साथ रहना मधु की मजबूरी थी. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी.

एक साल पहले धनपाल ने गुड़गांव में ही घर के पास रहने वाले मुकेश यादव को घर पर डीटीएच कनेक्शन के लिए बुलवाया. धनपाल मुकेश को आतेजाते दुकान पर बैठे देखता था. मुकेश डीटीएच का काम करने के साथ ही दूध, दही, मट्ठा और लस्सी का भी काम करता था.

मुकेश गुड़गांव के थाना फरूखनगर में खेंटावास में रहता था. वह विवाहित था. उस के एक बेटा भी था. मुकेश काफी स्मार्ट था. अपने व्यवहार से वह किसी को अपना मुरीद बना लेता था.

मुकेश डीटीएच का कनेक्शन करने आया तो घर पर केवल मधु थी. उस ने मधु से बात करनी शुरू की तो मधु को ऐसा लगा जैसे वह उस से पहली बार न मिल कर कई बार मिल चुकी हो. मधु को उस की बातों में रस आया तो वह भी उस से बतियाने लगी.

मुकेश से जुड़ा कनेक्शन

उस दिन कहने को पहली मुलाकात थी दोनों की, लेकिन उन के बीच काफी बातें हुईं जोकि पहली मुलाकात में नहीं हुआ करतीं. मुकेश डीटीएच का कनेक्शन कर के चला गया, लेकिन मधु की आंखों के सामने अब भी मुकेश का चेहरा घूम रहा था. मुकेश आया तो था डीटीएच का कनेक्शन लगाने, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वह मधु के दिल से अपने दिल का कनेक्शन कर गया था.

इस के बाद तो मुकेश जबतब मधु से मिलने आने लगा. घर पर कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. मुकेश जब भी आता तो साथ में दूध, दही, लस्सी में से कुछ न कुछ ले आता और मधु को दे देता. मधु उस के तरीके को भलीभांति समझ रही थी कि वह कैसे उस के दिल तक पहुंचना चाहता है. मधु इस बात से नाराज नहीं हुई, बल्कि खुश होने लगी. उसे नए ठौर की जरूरत थी, वह खुद चल कर उस के पास आ गया था.

मुकेश की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी. उस की पत्नी अकसर मायके में ही रहती थी. यही वजह थी कि मुकेश मधु की तरफ आकर्षित हो गया था. उस के साथ अपनी जिंदगी बिताने का सपना देख रहा था. मधु और मुकेश दोनों ही अपने जीवनसाथी से खुश नहीं थे, इसलिए एकदूसरे के करीब आने में उन्हें देर नहीं लगी.

एक दिन मुलाकात के दौरान मुकेश ने मधु से कहा, ‘‘भाभी, लगता है आप अपना ध्यान नहीं रखतीं?’’

‘‘क्यों…अच्छीखासी तो हूं.’’ मधु ने कहा.

‘‘नहीं, तुम्हारा चेहरा मुरझाया सा रहता है, चेहरे पर जो चमक होनी चाहिए, वह गायब रहती है. शरीर भी पहले से काफी कमजोर हो गया है. आप को क्या चिंता है जो अपना यह हाल कर लिया है?’’

इस पर मधु कुछ देर शांत रही, फिर अपना दर्द बयां करते हुए बोली, ‘‘अब तुम ने पूछा है तो बता देती हूं. इस परदेश में दूसरा कोई है नहीं, जिस को अपना दर्द बता सकूं.’’

‘‘क्यों, धनपाल तो है.’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘दर्द देने वाला दर्द ही देगा, दवा नहीं. इसलिए…’’

‘‘ओह.. तो यह बात है. वैसे आप से अलग मेरा मामला भी नहीं है. मैं भी अपनी पत्नी से परेशान हूं.’’ दुखी लहजे में मुकेश ने कहा.

दोनों ने किया प्यार का इजहार

फिर कुछ देर शांत रहने के बाद मुकेश बोला, ‘‘तो क्यों न भाभी, हम एकदूसरे के दर्द की दवा बन जाएं.’’ उपाय सुझाते हुए मुकेश ने अपने दिल की बात मधु तक पहुंचाने की कोशिश की.

‘‘क्या मतलब..?’’ जान के भी अंजान बनती हुई मधु पूछ बैठी.

‘‘यही कि हम दोनों एकदूसरे का हाथ थाम लें और हमेशा के लिए एक हो जाएं. मैं तो तुम्हें बेइंतहा चाहता हूं, बस तुम एक बार हां कह दो तो मैं सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में डाल दूंगा.’’

‘‘तुम ने तो अपने दिल के साथसाथ मेरे दिल की भी बात कह दी. मैं भी तुम्हें चाहती हूं और तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहती हूं. अगर तुम तैयार हो तो…’’

‘‘मैं तो कब से इस पल के इंतजार में था. मैं हर पल तैयार हूं. आई लव यू मधु.’’ उस ने कह दिया.

यह पहला मौका था, जब मुकेश ने उसे भाभी नहीं मधु कह कर पुकारा था. मधु के दिल के तार झनझना उठे. एक नए एहसास से उस का दिल पुलकित हो उठा. वह भी बेसाख्ता बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू मुकेश.’’

मधु के इजहार करते ही मुकेश ने उसे बांहों के घेरे में ले लिया. उस के बाद उन के बीच कोई शारीरिक दूरी न रही. वे एकदूसरे में इस कदर समाए कि अपनी इच्छापूर्ति के बाद ही अलग हुए. इस के बाद तो उन के बीच का यह रिश्ता दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा.

मगर गलत काम कभी छिपा है जो उन का छिप जाता. धनपाल को दोनों के संबंधों की बात पता चल गई. धनपाल ने मुकेश के घर आने पर रोक लगा दी. लेकिन मुकेश और मधु का चोरीछिपे मिलना जारी रहा. इसे ले कर धनपाल और मधु में रोज झगड़े होने लगे.

मुकेश और मधु ने अपने संबंधों के बीच धनपाल को दीवार बनते देखा तो धनपाल नाम की इस दीवार को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. दोनों ने इस के लिए साथ बैठ कर योजना भी बना ली.

धनपाल विवाह के बाद साल-डेढ़ साल में शाहजहांपुर स्थित अपने घर के चक्कर लगा लेता था. लेकिन जब से बेटा स्कूल जाने लगा था, तब से वह 2-3 साल में ही घर का चक्कर लगा पाता था. 3 साल बाद इस बार धनपाल ने होली पर घर आने का फैसला लिया. इस में मधु ने खुद सहमति दी थी. इस से पहले वह ससुराल के नाम से ही बिदक जाती थी.

रच ली पूरी साजिश

गुड़गांव में पूरी योजना पर कार्य करने के बाद 14 मार्च, 2021 को मधु शाहजहांपुर के मीरनपुर कटरा थाना क्षेत्र के कसरक गांव स्थित अपने मायके आ गई. 27 मार्च को धनपाल रजाकपुर स्थित अपने घर आ गया. 2 अप्रैल को मधु मायके से अपनी ससुराल आ गई. 3 अप्रैल को धनपाल मधु और बच्चों के साथ तिलहर में ईरिक्शा से बाजार गया. ईरिक्शा धनपाल के छोटे भाई प्रेमपाल का था और उसे वही चला कर ले गया.

बाजार घूमने के बाद धनपाल ने मधु और बच्चों को प्रेमपाल के साथ वापस घर भेज दिया, वह खुद तिलहर में रुक गया. दरअसल मुकेश ने धनपाल को फोन किया था कि वह उस से मिलने आ रहा है, मिल कर दारू पार्टी करने की बात कही थी. धनपाल ने एक बार भी नहीं सोचा और उसे आने की सहमति दे दी.

मुकेश अपने बहनोई की सैंट्रो कार से तिलहर पहुंचा. मुकेश को कार में बैठाने के बाद वह एक सुनसान स्थान पर ले गया. कार में पहले से ही मुकेश ने खानेपीने की चीजें और शराब खरीद कर रख ली थी.

मुकेश ने धनपाल को खूब शराब पिलाई. धनपाल की आंख बचा कर उस की शराब में नींद की गोलियां भी मुकेश ने मिला दीं. जब धनपाल बेहोश हो गया, तब मुकेश उसे कार से राजनपुर गांव के मोड़ पर ले गया. उस समय रात के 9 बज रहे थे.

मुकेश ने धनपाल को कार से नीचे उतारा और साथ लाए हथौड़े से उस के सिर पर कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. मामले को ऐक्सीडेंट का रूप देने के लिए धनपाल की लाश को कार से कुचलने की कोशिश की. इस कोशिश में उस की कार कच्ची मिट्टी में फंस गई. मुकेश घबरा गया. कोई वहां आ न जाए उसे इस बात का डर भी सता रहा था.

जब कार किसी तरह से नहीं निकल सकी तो कार को वहीं छोड़ कर वह फरार हो गया. मुकेश ने मधु को फोन कर के धनपाल का काम तमाम कर देने की सूचना भी दे दी. जिस के बाद मधु ने अपना दूसरा मोबाइल गुप्त स्थान पर छिपा दिया.

देर रात तक धनपाल नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई. परमजीत ने सोचा कि शराब पी कर धनपाल कहीं बेसुध तो नहीं पड़ा. उस ने तिलहर थाने के एक परिचित सिपाही को फोन कर के पूछा कि कहीं कोई बंदा शराब पीए हुए तो नहीं मिला. इस पर सिपाही ने उसे राजनपुर मोड़ पर हादसा होने की जानकारी दी. जो हुलिया बताया, वह धनपाल से मिलता था. इस के बाद परमजीत, उस की मां वहां पहुंच गए. मधु भी वहां पहुंच गई.

मुकेश और मधु का गुनाह छिप न सका और दोनों पुलिस की गिरफ्त में आ गए. मधु को मुकदमे में आईपीसी की धारा 120बी का अभियुक्त बनाया गया. इंसपेक्टर हरपाल सिंह बालियान ने अभियुक्त मुकेश की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा भी बरामद कर लिया.

बाकी कार और मोबाइल तो पहले ही बरामद हो गए थे. मधु का मोबाइल नहीं बरामद हो सका. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व परमजीत से पूछताछ पर आधारित

मर्यादा तोड़ने का नतीजा: जब सीमाएं टूटी

पतिपत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. कोई आदमी किसी पर सब से अधिक विश्वास करता है तोअपनी पत्नी पर. पत्नी ही तो उस की सब से अच्छी दोस्त और जीवनसाथी होती है. ऐसे में पति उस पर अगाध विश्वास न करे तो भला किस पर करे.

सतीश को भी अपनी पत्नी मधु पर अंधविश्वास की सीमा तक विश्वास था. उस का यह यकीन तब दरका, जब एक दिन अचानक तबीयत खराब होने से शाम को वह जल्दी घर लौट आया. दरअसल सतीश मैडिकल रिप्रजेंटेटिव था. वह सुबह 10 बजे घर से निकलता था, फिर रात 9 बजे के आसपास ही उस की वापसी होती थी. लेकिन उस दिन वह जल्दी घर आ गया था.

सतीश कुमार श्रीवास्तव जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा, अंदर से मधु की खिलखिलाहट सुनाई दी. सतीश के पांव जहां के तहां ठहर गए. सोचने लगा, ‘जब मैं घर में रहता हूं, तब मधु की त्यौरियां चढ़ी होती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है, बोलो मत, मूड खराब है. लेकिन अब वह किस के साथ खिलखिला रही है.’

सतीश ने दिमाग पर जोर दिया, पर उसे याद नहीं आया कि मधु कब उस के सामने इस तरह दिल से खिलखिलाई थी.

सतीश के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा, ‘आखिर इस समय घर के अंदर कौन है जिस के साथ वह इस तरह खिलखिला कर बातें कर रही है.’

सतीश ने कदम आगे बढ़ाया, लेकिन फिर खींच लिया. मधु कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस माटी के माधव की बात कर रहे हो. अगर वही रसीला होता तो भला मैं तुम से क्यों दिल लगाती. मैं तो तुम्हारे जोश और तुम्हारी रसीली बातों की दीवानी हूं.’’

एकतरफा संवादों से सतीश ने अनुमान लगा लिया कि कमरे में मधु के अलावा कोई नहीं है. वह फोन पर किसी से रसीली बातें कर रही है. मधु जोश में थी. इसलिए उस की आवाज बुलंद थी.

कमरे में की जाने वाली बातें बाहर तक साफ सुनाई दे रही थीं. बातें सुन कर सतीश की खोपड़ी घूम गई, ‘मधु बीवी मेरी और जोश का गुणगान कर रही है किसी दूसरे का.’

सतीश ने गुस्से में दरवाजे पर लात मारी. भीतर से बंद न होने के कारण वह फटाक से खुल गया. सामने ही मधु मोबाइल फोन कान से लगाए टहलटहल कर बातें कर रही थी. पति को देखते ही उस ने हड़बड़ा कर फोन पर चल रही बात डिसकनेक्ट कर दी. इस के बाद वह चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गए?’’

सतीश ने मधु को खा जाने वाली नजरों से देखा फिर बोला, ‘‘तू किस के जोश की दीवानी है?’’

गुस्से में की पत्नी की पिटाई

सतीश ने लपक कर मधु का हाथ पकड़ लिया और उस का मोबाइल छीनने लगा. लपटा झपटी के बीच मधु ने उस नंबर को डिलीट कर दिया, जिस नंबर पर वह रसीली बातें कर रही थी.

सतीश का दिमाग पहले से गरम था, नंबर डिलीट करने से और गरम हो गया. उस ने मधु को लातघूंसों और थप्पड़ों पर रख लिया. हर प्रहार के साथ उस का प्रश्न होता था, ‘‘बता, तू किस के जोश की दीवानी है और यह सब कब से चल रहा है?’’

लेकिन पिटाई के बावजूद मधु ने जुबान बंद रखी. मधु को पीटतेपीटते जब सतीश पस्त पड़ गया तो घर के बाहर चला गया. मधु कमरे में सिसकती रही और अपने भाग्य को कोसती रही.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में बर्रा थाना अंतर्गत एक मोहल्ला जरौली पड़ता है. इसी मोहल्ले के फेस-2 में सतीश कुमार श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मधु के अलावा 2 बेटे आयुष व पीयूष थे. वह मूलरूप से औरैया जिले के दिबियापुर कस्बे का रहने वाला था.

सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आया था. वह पढ़ालिखा था. हिंदी और अंगरेजी भाषा पर उस की पकड़ थी. अत: उसे बिरहाना रोड स्थित एक आयुर्वेदिक दवा कंपनी में नौकरी मिल गई थी. बाद में वह मैडिकल रिप्रजेंटेटिव (एमआर) बन गया और उसी कंपनी की दवा आयुर्वेदिक डाक्टरों के यहां सप्लाई करने लगा था.

मधु सतीश की दूसरी पत्नी थी. उस की पहली पत्नी श्वेता की मौत हो गई थी. उस की एक बेटी शिवांगी थी, जो अपनी ननिहाल में पलबढ़ रही थी. पहली पत्नी की मौत के बाद सतीश ने मधु से शादी कर ली थी. मधु पढ़ीलिखी व तेजतर्रार थी. सुंदर भी थी, अत: सतीश उसे बहुत चाहता था और उस पर भरोसा करता था. वह उस की हर खुशी का खयाल रखता था.

समय बीतता रहा. समय के साथ मधु के बच्चे आयुष व पीयूष बड़े हुए तो उस का खर्च बढ़ गया. इस खर्चे को पूरा करने के लिए उस ने पति के साथ काम करने का निश्चय किया. मधु ने इस बाबत सतीश से बात की. पहले तो सतीश ने साफ मना कर दिया. लेकिन पत्नी के समझाने पर बाद में मान गया.

सतीश अब विजिट के लिए घर से निकलता तो मधु को भी साथ ले जाता. उस ने कानपुर शहर तथा आसपास के कस्बे के दरजनों वैद्यों व डाक्टरों से मधु का परिचय कराया और दवा बेचने के सारे गुर बताए. उस के बाद मधु सतीश के दवा कारोबार में हाथ बटाने लगी. पत्नी के सहयोग से सतीश अच्छी कमाई करने लगा.

मधु का बड़ा बेटा आयुष पढ़ने में कमजोर था. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो मधु ने उसे गोविंदनगर स्थित फार्मा मैडिकल स्टोर में काम पर लगा दिया. लेकिन छोटा बेटा पीयूष तेज दिमाग का था. मधु उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहती थी. अत: वह उस की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती थी. पढ़ाई के साथ वह कोचिंग भी जाता था.

मधु ने कुछ समय तक ही पति के साथ काम किया. उस के बाद वह डाक्टरों के यहां अलग विजिट पर जाने लगी. मधु का मानना था कि अलगअलग जाने से दवा का और्डर ज्यादा मिलता है. यद्यपि मधु का अलग जाना सतीश को पसंद न था. लेकिन मधु के आगे उस की एक न चली.

2 डाक्टरों को फंसा लिया

मधु 2 बेटों की मां जरूर थी. लेकिन उस के बनावशृंगार से कोई भांप नहीं पाता था कि वह 2 जवान बेटों की मां है. सतीश का मन भोगविलास से उचट चुका था. वह दिन भर की भाग दौड़ से इतना थक जाता था कि खाना खाने के बाद चादर तान कर सो जाता था. इस के विपरीत मधु हर रात पति का साथ चाहती थी. लेकिन वह वंचित रहती थी.

मधु को जब पति का साथ नहीं मिला तो उस ने घर के बाहर ताकझांक शुरू की. उस के संपर्क में कई डाक्टर ऐसे थे, जो मनचले थे और जिन्हें औरत सुख की चाहत थी.

मधु ने ऐसे ही शहर के 2 डाक्टरों को अपने हुस्न के जाल में फंसाया और उन के साथ मौजमस्ती करने लगी. ये दोनों डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते थे. मधु को जब भी मौका मिलता था, वह उन से खूब रसीली बातें करती थी.

सतीश पत्नी पर भरोसा करता था. उस ने कभी किसी तरह का उस पर शक नहीं किया. लेकिन उस दिन तबीयत खराब होने पर जब वह समय से पहले घर आया और मधु को मोबाइल फोन पर अश्लील और रसीली बातें करते पाया तो उस का विश्वास डगमगा गया. शक होने पर उस ने मधु की जम कर धुनाई भी की लेकिन उस ने आशिक का नाम नहीं बताया. बल्कि आशिक का मोबाइल नंबर भी डिलीट कर दिया.

शक का बीज बहुत जल्दी पनपता है. सतीश के मन में भी शक था. अत: वह पत्नी पर नजर रखता था. जिस दिन वह मधु को एकांत में बात करते देख लेता, उस दिन पहले तो तूतू मैंमैं होती फिर नौबत मारपीट तक आ जाती. अब एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों को एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. बड़ा बेटा आयुष पिता के पक्ष में रहता था, जबकि छोटा बेटा पीयूष मां के पक्ष में बोलता था.

युवक से अश्लील बातें करते देखा

19 मार्च, 2021 को आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी की दिल्ली में मीटिंग थी, जिस में कानपुर शहर के डीलर व एमआर को मीटिंग में शामिल होने के लिए बुलाया गया था. सतीश कुमार श्रीवास्तव भी अपनी पत्नी मधु श्रीवास्तव के साथ शामिल होने दिल्ली गया था. मीटिंग समाप्त होने के बाद मधु ने कुछ खरीदारी की फिर शताब्दी बस से दोनों कानपुर को रवाना हो लिए.

21 मार्च, 2021 की सुबह 8 बजे मधु और सतीश अपने जरौली स्थित घर पहुंचे. उस समय घर पर कोई अन्य न था. दोनों बेटे आयुष और पीयूष गीता मौसी के घर पर थे, जो जरौली में ही रहती थी.

सतीश को किसी जरूरी काम से अपने पिता के घर दिबियापुर जाना था. उस ने मधु से जल्दी खाना बनाने को कहा. लेकिन मधु ने उस की बात को अनसुना कर दिया और मोबाइल फोन पर वीडियो काल कर बतियाने लगी. वह किसी युवक से अश्लील बातें कर रही थी.

सतीश ने उसे बातें करने से मना किया तो मधु झगड़ने लगी और उसे गाली बकने लगी. इस पर सतीश को गुस्सा आ गया. उस ने फोन छीन कर फेंक दिया और उसे धक्का दे दिया. धक्का लगने से उस का सिर दीवार से टकरा गया. जिस से सिर फट गया और खून बहने लगा.

अपने हाथों से घोंटा गला

खून देख कर मधु को गुस्सा आ गया और उस ने सतीश के मुंह पर जूता फेंक कर मारा. मुंह पर जूता लगा तो सतीश आपा खो बैठा. उस ने मधु को फर्श पर पटक दिया और बोला, ‘‘हरामजादी, बदचलन, आज तुझे किसी कीमत पर नहीं छोड़ूंगा. तुझे तेरे पापों की सजा दे कर ही दम लूंगा.’’ कहते हुए सतीश ने मधु की साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

मधु की हत्या करने के बाद उस ने शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. दिन का वक्त था. सो वह लाश को बाहर कैसे ले जाता. उस ने बड़े बक्से को खाली किया और मधु के शव को बक्से में बंद कर दिया. मोबाइल फोन को भी उस ने बंद कर दिया.

शाम को दोनों बेटे घर आए तो सतीश ने बताया कि मधु किसी का फोन आने पर घर से निकली थी. तब से नहीं आई. इस के बाद वह आयुष और पीयूष के साथ मधु की खोज करता रहा.

अगली सुबह सतीश ने बड़े बेटे आयुष को गुमशुदगी दर्ज कराने थाना बर्रा भेजा. वहां पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर मधु की तलाश शुरू कर दी. पुलिस को गुमराह करने के लिए सतीश ने मधु का मोबाइल चालू कर सड़क से गुजर रहे एक लोडर में फेंक दिया.

रात में सतीश ने शव को बक्से से निकाला. लेकिन गरमी की वजह से शव फूल चुका था और उस से दुर्गंध आने लगी थी. पीयूष ने बदबू की बात की तो भेद खुलने के भय से सतीश ने उसे गीता मौसी के घर भेज दिया.

आधी रात के बाद सतीश ने एक बार फिर शव को ठिकाने लगाने की सोची. वह शव कमरे से घसीट कर गेट तक लाया. लेकिन उस की हिम्मत दगा दे गई. शव उठाते समय बाल व खाल उस के हाथ में आ गए. शव सड़ने लगा था. सवेरा होने से पहले सतीश ने गेट पर ताला लगाया और फरार हो गया.

पड़ोसियों ने की पुलिस से शिकायत

23 मार्च, 2021 की सुबह सतीश के पड़ोसियों ने सतीश के घर से भीषण दुर्गंध महसूस की तो उन्होंने थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह टीम के साथ सतीश के घर पहुंचे. ताला तोड़ कर वह घर के अंदर घुसे तो गेट के पास ही उन्हें सड़ीगली महिला की लाश मिली. पड़ोसियों ने तुरंत लाश को पहचाना, उन्होंने बताया कि लाश सतीश की पत्नी मधु श्रीवास्तव की है.

थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. संभवत: उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

इसी बीच पता चला कि सतीश अपने दोनों बेटों और स्थानीय नेताओं के साथ थाना बर्रा पहुंचा है और पुलिस की नाकामी को ले कर हंगामा कर रहा है. यह सूचना प्राप्त होते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने पहुंचे और सतीश को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सख्ती से उस से पूछताछ की तो उस ने पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि मधु बदचलन थी. वह आशिक से मोबाइल पर बात कर रही थी. मना किया तो जूता फेंक कर मुंह पर मारा. गुस्से में मैं ने उस का गला घोंट दिया. उस के बेटे निर्दोष हैं. उन्हें हत्या की जानकारी नहीं थी.

चूंकि सतीश ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत सतीश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

24 मार्च, 2021 को बर्रा पुलिस ने अभियुक्त सतीश कुमार श्रीवास्तव को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भटकाव की राह पर : क्यों फिसल गई सुमन

महेंद्र सिंह को पिछले कुछ दिनों से अजय का अपने घर में आनाजाना ठीक नहीं लग रहा था. वह आता था तो उस की पत्नी सुमन उस से कुछ ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करती थी. वैसे तो अजय उस के भाई का ही बेटा था, लेकिन महेंद्र सिंह को उस के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

अजय जब महेंद्र सिंह की मानसिक परेशानी का कारण बनने लगा तो एक दिन उस ने सुमन से पूछा कि अजय क्यों बारबार घर के चक्कर लगाता है. इस पर सुमन ने तुनकते हुए कहा, ‘‘अजय तुम्हारे भाई का बेटा है. वह आता है, तो क्या मैं इसे घर से निकाल दूं?’’

महेंद्र सिंह को सुमन की बात कांटे की तरह चुभी तो लेकिन उस के पास सुमन की बात का जवाब नहीं था. वह चुप रह गया.

महेंद्र सिंह कानपुर शहर के बर्रा भाग 6 में रहता था. वह मूलरूप से औरैया जिले के कस्बा सहायल का रहने वाला था. वह अपने भाइयों में सब से छोटा था. उस से बड़े उस के 2 भाई थे— मानसिंह और जयसिंह. सब से बड़े भाई मानसिंह के 2 बेटे थे अजय सिंह और ज्ञान सिंह. ज्ञान सिंह की शादी हो गई थी. अजय सिंह अविवाहित था.

महेंद्र सिंह की शादी जिला कन्नौज के कस्बा तिर्वा निवासी नरेंद्र सिंह की बेटी सुमन के साथ हुई थी. नरेंद्र के 2 बच्चे थे सुमन और गौरव. लाडली और बड़ी होने की वजह से सुमन शुरू से ही जिद्दी स्वभाव की थी. वह जो ठान लेती, वही करती.

शादी हो कर सुमन जब ससुराल आई, तो उसे ससुराल रास नहीं आई. चंद महीने बाद ही वह पति के साथ कानपुर आ कर रहने लगी. सुमन का पति महेंद्र सिंह दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में सुरक्षागार्ड की नौकरी करता था. उस की आमदनी सीमित थी. इस के बावजूद सुमन फैशनपरस्त थी. वह अपने बनावशृंगार पर खूब खर्च करती थी.

लेकिन शुरूशुरू में जवानी का जुनून था, इसलिए महेंद्र सिंह ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया था. उसे तो बस उस की अदाएं पसंद थीं. समय के साथ सुमन ने पूजा और विभा 2 बेटियों को जन्म दिया. शादी के कुछ समय बाद ही महेंद्र सिंह महसूस करने लगा था कि उस की पत्नी उस के साथ संतुष्ट नहीं है.

दरअसल, सुमन नरेंद्र सिंह की एकलौती बेटी थी और अपनी शादी के बारे में बड़ेबड़े ख्वाब देखा करती थी. लेकिन उस के पिता ने उस की शादी एक साधारण सुरक्षा गार्ड से कर दी थी, जिस से उस के सारे अरमान चूरचूर हो गए थे. और वह बच्चों और चौकेचूल्हे में उलझ कर रह गई थी. फिर भी जिंदगी की गाड़ी जैसेतैसे चलती रही. कहानी ने मान सिंह के बड़े बेटे ज्ञान सिंह की शादी के बाद एक नया मोड़ लिया.

ज्ञान सिंह की शादी के मौके पर सुमन ने महसूस किया कि अजय उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रख रहा है. वह खाने की थाली ले कर सुमन के पास आया और उस के सामने टेबल पर रखते हुए बोला, ‘‘यहां बैठ कर खाओ चाची.’’

सुमन मुसकरा कर थाली अपनी ओर खिसकाने लगी, तो अजय भी उस की ओर देख कर मुसकराते हुए चला गया. थोड़ी देर बाद वह वापस लौटा तो उस के हाथों में दूसरी थाली थी. वह सुमन के पास ही बैठ कर खाना खाने लगा.

खाना खातेखाते दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा, तो अजय बोला, ‘‘चाची तुम सुंदर भी हो और स्मार्ट भी. लेकिन चाचा ने तुम्हारी कद्र नहीं की.’’

अजय सिंह ने यह कह कर सुमन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. ज्ञान सिंह की बारात करीब के ही गांव में जानी थी. शाम को रिश्तेदार व परिवार के लोग बारात में चले गए. लेकिन अजय बारात में नहीं गया.

उसी रात जब दरवाजे पर दस्तक हुई, तो सुमन ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर अजय खड़ा था. सुमन ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… बारात में नहीं गए. यहां कैसे?’’

दरवाजा खुला था, अजय सिंह अंदर आ गया तो सुमन ने दरवाजा बंद कर दिया. सुमन की आंखें तेज थीं. उस ने अजय की आंखों की भाषा पढ़ ली.

‘‘चाची, मुझे तुम से कुछ कहना है. बहुत दिनों से सोच रहा हूं, पर मौका ही नहीं मिल पा रहा था. आज अच्छा मौका मिला, इसलिए मैं बारात में नहीं गया.’’ अजय ने कमरे में पड़े पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात है, जिस के लिए तुम्हें मौके की तलाश थी?’’ सुमन ने पूछा, तो अजय तपाक से बोला, ‘‘चाची आया हूं तो मन की बात कहूंगा जरूर. तुम्हें बुरा लगे या अच्छा. दरअसल बात यह है कि तुम मेरे मन को भा गई हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘प्यार…’’ सुमन ने अजय को गौर से देखा.

आज वह पहले वाला अजय नहीं था, जिसे वह बच्चा समझती थी. अजय जवान हो चुका था. पलभर के लिए सुमन डर गई. उस ने कभी नहीं सोचा था कि वह उस से ऐसा भी कुछ कह सकता है.

‘‘अजय, तुम यहां से जाओ, अभी इसी वक्त.’’ सुमन ने सख्ती से कहा, तो अजय ने पूछा, ‘‘चाची क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गईं. मैं ने तो मजाक में कहा था.’’

‘‘अजय, मैं ने कहा न जाओ यहां से.’’ डांटते हुए सुमन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो उस के तेवर देख अजय डर कर वहां से चला गया.

अजय तो चला गया लेकिन सुमन रात भर सोच में डूबी अपने मन को टटोलती रही. वह सचमुच महेंद्र सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस की जिंदगी फीकी दाल और सूखी रोटी की तरह थी.

पिछले कुछ समय से महेंद्र सिंह की तबियत भी ढीली चल रही थी. ड्यूटी से आने के बाद वह खाना खाते ही सो जाता था. वह पति से क्या चाहती है, यह महेंद्र सिंह ने न तो कभी सोचा और न जानने की कोशिश की. यही वजह थी कि सुमन का मन विद्रोह कर उठा. उस ने मन को काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन न चाहते हुए भी उस की सोच नएनए जवान हुए अजय के आस पास ही घूमती रही. उस का मन पूरी तरह बेइमान हो चुका था.

आखिरकार उस ने निर्णय ले लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

कोई भी औरत जब बरबादी के रास्ते पर कदम रखती है तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुमन के मामले में हुआ. दूसरी ओर अजय यह सोच कर डरा हुआ था कि चाची ने चाचा को सब कुछ बता दिया तो तूफान आ जाएगा. इसी डर से वह सुमन से नहीं मिला.

इधर सुमन फैसला करने के बाद तैयार बैठी अजय का इंतजार कर रही थी. उस ने मिलने की कोशिश नहीं की, तो सुमन ने उसे स्वयं ही बुला लिया.

अजय आया तो सुमन ने उसे देखते ही उलाहने वाले लहजे में कहा, ‘‘मुझे राह बता कर खुद दूसरी राह चले गए. क्या हुआ, आए क्यों नहीं?’’

‘‘मैं ने सोचा, शायद तुम्हें मेरी बात बुरी लगी. इसीलिए…’’ अजय ने कहा तो सुमन बोली, ‘‘रात में आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

अजय सिंह समझ गया कि उस का तीर निशाने पर भले ही देर से लगा हो, पर लग गया है. वह मन ही मन खुश हो कर लौट गया. सुमन का पति महेंद्र सिंह दूसरे दिन ही बारात से लौटने के बाद वापस कानपुर आ गया था. लेकिन पत्नी व बच्चों को गांव में ही छोड़ गया था. इसी बीच सुमन और अजय नजदीक आने का प्रयास करने लगे थे.

सुमन ने अजय को मिलन का खुला आमंत्रण दिया था. अत: वह बनसंवर कर देर शाम सुमन के कमरे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो सुमन ने दरवाजा खोल कर उसे तुरंत अंदर बुला लिया. उस के अंदर आते ही सुमन ने दरवाजा बंद कर लिया.

अजय पलंग पर बैठ गया, तो सुमन उस के करीब बैठ कर उस का हाथ सहलाने लगी. अजय के शरीर में हलचल मचने लगी. वह समझ गया कि चाची ने उस की मोहब्बत स्वीकार कर ली. इसी छेड़छाड़ के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता हीं नहीं चला.

बिस्तर पर रिश्ते की मर्यादा भले ही टूट गई, लेकिन सुमन और अजय के बीच स्वार्थ का पक्का रिश्ता जरूर जुड़ गया. अपने इस रिश्ते से दोनों ही खुश थे.

सुमन अपनी मौजमस्ती के लिए पाप की दलदल में घुस तो गई, पर उसे यह पता नहीं था कि इस का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है.

उस दिन के बाद अजय और सुमन बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. अजय सुमन के लिए बेटे जैसा था और अजय के लिए वह मां जैसी. लेकिन वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुमन लगभग एक माह तक गांव में रही और गबरू जवान अजय के साथ मौजमस्ती करती रही. उस के बाद वह वापस कानपुर आ गई और पति के साथ रहने लगी. अजय और सुमन के बीच अब मिलन तो नहीं हो पाता था, लेकिन मोबाइल फोन पर दोनों की बात होती रहती थी. सुमन के बिना न अजय को चैन था और न अजय के बिना सुमन को.

आखिर जब अजय से न रहा गया तो वह सुमन के बर्रा भाग 6 स्थित घर पर किसी न किसी बहाने से आने लगा. उस ने सुमन के साथ फिर से संबंध बना लिए. कुछ दिनों तक तो सब गुपचुप चलता रहा. लेकिन फिर अजय का इस तरह सुमन के पास आनाजाना पड़ोसियों को खटकने लगा. लोगों को पक्का यकीन हो गया कि चाचीभतीजे के बीच नाजायज रिश्ता है.

नाजायज रिश्तों को ले कर पड़ोसियों ने टोकाटाकी की तो महेंद्र सिंह के होश उड़ गए. उस की पत्नी उसी के सगे भतीजे के साथ मौजमस्ती कर रही थी, यह बात भला वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. वह गुस्से में तमतमाता घर पहुंचा. सुमन उस समय घर के कामकाज निपटा रही थी. उसे देखते ही वह गुस्से में बोला, ‘‘तेरे और अजय के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘मतलब छोड़ो. यह बताओ कि अजय यहां क्या करने आता है?’’ महेंद्र सिंह ने पूछा तो सुमन बोली, ‘‘कैसी बातें कर रहे हो तुम? अजय तुम्हारा भतीजा है. बात क्या है. उखड़े हुए से क्यों लग रहे हो?’’

‘‘तू मेरी पीठ पीछे क्या करती है, मुझे सब पता है. तेरी पाप लीला पूरे मोहल्ले के सामने आ चुकी है. तूने मुझे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘अपनी पत्नी पर गलत इलजाम लगा रहे हो. तुम्हें शर्म आनी चाहिए.’’ सुमन ने रोते हुए कहा, तो महेंद्र सिंह बोला, ‘‘देखो, अब भी वक्त है. संभल जा, नहीं तो अंजाम अच्छा न होगा.’’

महेंद्र सिंह ने भतीजे अजय सिंह को भी फटकार लगाई और बिना मतलब घर न आने की हिदायत दी. महेंद्र सिंह की सख्ती से सुमन और अजय डर गए. अजय का आनाजाना भी कम हो गया. अब वह तभी आता जब उसे कोई जरूरी काम होता. वह भी चाचा महेंद्र सिंह की मौजूदगी में.

महेंद्र सिंह अपने बड़े भाई मान सिंह का बहुत सम्मान करता था. इसलिए उस ने अजय की शिकायत भाई से नहीं की थी. लौकडाउन के दौरान मान सिंह ने महेंद्र सिंह से 5 हजार रुपए उधार लिए थे और फसल तैयार होने के बाद रुपया वापस करने का वादा किया था.

अजय का आनाजाना कम हुआ तो महेंद्र सिंह ने राहत की सांस ली. उसे भी लगने लगा था कि अब सुमन और अजय का अवैध रिश्ता खत्म हो गया है. लिहाजा उस ने सुमन पर निगाह रखनी भी बंद कर दी थी.

20 जनवरी, 2021 की दोपहर 12 बजे महेंद्र सिंह ने पड़ोसियों को बताया कि उस की पत्नी सुमन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस की बात सुन कर पड़ोसी सन्न रह गए. कुछ ही देर बाद उस के दरवाजे पर भीड़ बढ़ने लगी. इसी बीच महेंद्र सिंह ने पत्नी के मायके वालों तथा थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह घटनास्थल पर आ गए. उस समय महेंद्र सिंह के घर पर भीड़ जुटी थी. मृतका सुमन की लाश कमरे में पलंग पर पड़ी थी. उस के गले में फांसी का फंदा था, किंतु गले में रगड़ के निशान नहीं थे. फांसी के अन्य लक्षण भी नजर नहीं आ रहे थे.

संदेह होने पर थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो कुछ देर बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें भी महिला की मौत संदिग्ध लगी. फोरैंसिक टीम को भी आत्महत्या जैसा कोई सबूत नहीं मिला.

पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि मृतका सुमन के मायके पक्ष के दरजनों लोग आ गए. आते ही उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया और महेंद्र पर सुमन की हत्या का आरोप लगाया तथा उसे गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि पुलिस अधिकारी वैसे भी मामले को संदिग्ध मान रहे थे, अत: पुलिस ने मृतका के पति महेंद्र सिंह को हिरासत में ले लिया तथा शव पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया.

दूसरे रोज शाम 5 बजे मृतका सुमन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह को प्राप्त हुई. उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी तो उन की शंका सच साबित हुई. रिपोर्ट में बताया गया कि सुमन ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि गला दबा कर उस की हत्या की गई थी.

रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने मृतका के पति महेंद्र सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने पत्नी सुमन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

महेंद्र सिंह ने बताया कि उस की पत्नी सुमन के भतीजे अजय सिंह से नाजायज संबंध पहले से थे.

उस ने कल शाम 4 बजे सुमन और अजय को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय अजय तो सिर पर पैर रख कर भाग गया. लेकिन सुमन की उस ने जम कर पिटाई की. देर रात अजय को ले कर उस का फिर सुमन से झगड़ा हुआ. गुस्से में उस ने सुमन का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

पुलिस और पड़ोसियों को गुमराह करने के लिए उस ने सुमन के शव को उसी की साड़ी का फंदा बना कर कुंडे से लटका दिया. सुबह वह बड़ी बेटी पूजा को ले कर डाक्टर के पास चला गया. उसे हल्का बुखार था. वहां से दोपहर 12 बजे वापस आया तो उस ने पत्नी द्वारा आत्महत्या कर लेने का शोर मचाया. उस के बाद पड़ोसी आ गए.

चूंकि महेंद्र सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने मृतका के भाई गौरव को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत महेंद्र सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया.

22 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त महेंद्र सिंह को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. सुमन की मासूम बेटियां पूजा और विभा ननिहाल में नानानानी के पास रह रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नीली साड़ी का राज : प्रेमी ही बना कातिल

राजस्थान के टोंक जिले की देवली तहसील के थाना घाड़ के अंतर्गत एक गांव बड़ोली आता है. इसी गांव के रहने वाले गोकुल के खेत पर सरसों की फसल की कटाई का काम मजदूरों द्वारा किया जा रहा था. यह बात 10 फरवरी, 2021 की है.

सरसों काटते हुए मजदूरों की निगाह एक मानव कंकाल पर पड़ी. इस कंकाल के पास महिला की शृंगार सामग्री यानी चूडि़यां, बिछिया, नीली साड़ी वगैरह पड़ी थी. कंकाल साड़ी में लिपटा था. देखने पर लग रहा था कि कंकाल किसी महिला का है.

यह बात मजदूरों ने खेत के मालिक गोकुल को बताई. गोकुल ने भी मौके पर आ कर देखा. बात सही थी. गोकुल ने फोन कर के गांव के सरपंच धनपत माली को खेत में कंकाल मिलने की बात बताई. कुछ ही देर में सरपंच भी खेत पर पहुंच गए. फिर उन्होंने फोन कर के धाड़ थाने में इस की सूचना दी.

सूचना पा कर धाड़ थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामेश्वर प्रसाद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल का मुआयना किया. वहां पर नीले रंग की साड़ी में लिपटा कंकाल मिला. थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद ने इस घटना की सूचना सीओ (देवली) दीपक कुमार, एएसपी राकेश कुमार और एसपी ओमप्रकाश को दे दी.

सूचना मिलने पर सीओ दीपक कुमार एवं एफएसएल टीम मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम द्वारा साक्ष्य उठाए गए, साथ ही 11 फरवरी को महिला के कंकाल को पोस्टमार्टम एवं डीएनए जांच के लिए अजमेर मैडिकल कालेज भेजा गया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (टोंक) ने अपने निर्देशन में एक टीम का गठन किया. इस टीम को जल्द से जल्द अज्ञात महिला कंकाल के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई.

इस टीम में एएसपी (मालपुरा) राकेश कुमार, सीओ दीपक कुमार, थानाप्रभारी (धाड़) रामेश्वर प्रसाद, हैडकांस्टेबल हरफूल, भैरूलाल, कांस्टेबल भागचंद, बजरंग, मेघराज, रामराज, कन्हैयालाल, महिला कांस्टेबल ज्योति और साइबर सेल के हैडकांस्टेबल सुरेशचंद शामिल थे.

पुलिस टीम ने सब से पहले महिला कंकाल से लिपटी हुई नीली साड़ी के पल्लू से बंधी मिली एक परची पर लिखे मोबाइल नंबर  की काल डिटेल्स निकाली. यह मोबाइल नंबर हरिराम मीणा पुत्र रामलाल मीणा, निवासी गांव भरनी का था. इस नंबर से सब से आखिर में महावीर मीणा से बात हुई थी.

महावीर और हरिराम मीणा काल डिटेल्स में संदिग्ध लगे तो पुलिस टीम ने 13 फरवरी को हरिराम को उठा लिया और उस से पूछताछ की. थोड़ी देर तक तो वह आनाकानी करता रहा. मगर फिर जब पुलिसिया तेवर दिखाए तो वह तोते की तरह बोलने लगा. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पता चला कि वह लाश टोंक जिले के गांव जगनतन ढिकला निवासी कमला मोग्या की थी. वह राजू मोग्या की बेटी थी. इस के बाद दूसरे आरोपी महावीर मीणा को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

तब पुलिस ने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देखने के लिए राजू मोग्या, उस की पत्नी रतनीबाई और मृतका कमला मोग्या की छोटी बहन को धाड़ थाने पर बुलाया. इन्होंने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देख कर अपनी बेटी कमला मोग्या पत्नी कालूलाल मोग्या के रूप में शिनाख्त कर ली.

लाश की शिनाख्त हो जाने और आरोपियों के गिरफ्तार होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली. कमला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मैडिकल कालेज में कंकाल की जांच हो जाने के बाद वह मृतका के पिता राजू मोग्या को सौंप दिया. उन्होंने कंकाल का अंतिम संस्कार कर दिया.

पुलिस ने मृतका के मातापिता राजू एवं रतनीबाई का डीएनए टेस्ट भी कराया ताकि सच सामने आ सके. पुलिस अधिकारियों ने कमला के खून से हाथ रंगने वाले आरोपी महावीर मीणा और हरिराम मीणा से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह कुछ इस प्रकार से है—

कमला मोग्या की शादी आज से करीब 10 साल पहले कालूलाल मोग्या से हुई थी. कमला के मातापिता ने गरीबी में जीवन गुजारा था. मगर अपनी बेटी कमला की हर ख्वाहिश पूरी की थी. कमला सांवले रंग की आकर्षक नैननक्श की नवयौवना थी. शादी के बाद उसे कालूलाल जैसा मेहनतकश इंसान पति के रूप में मिला था. वक्त के साथ कमला 3 बच्चों की मां बनी. ये तीनों बेटे हैं. इस समय इन की उम्र 7 साल, 5 और 3 साल है.

कालूलाल मेहनतमजदूरी में दिनरात खटता था. इस कारण वह थकामांदा रात को घर लौट कर खाना खा कर बिस्तर पर पड़ता और सो जाता था. कालू की पत्नी कमला की हसरतें अभी जवान थीं. वह चाहती थी कि उस का पति उसे बांहों में ले कर आनंदलोक की सैर कराए. मगर कालू की हाड़तोड़ मेहनत ने उसे थका दिया था.

अगर इंसान के तन की ज्वाला ठंडी नहीं हो तो वह बहकने लगता है. अपने सुख के लिए उस के कदम बहकने लगते हैं. कालू तो अपनी बीवी और बच्चों के भरणपोषण के लिए रातदिन मेहनतमजदूरी कर रहा था. वहीं कमला अपने देहसुख के लिए अपने जुगाड़ में लगी थी.

आज से करीब 10 महीने पहले कालू ने ढिकला निवासी दिव्यांग युवक महावीर मीणा का खेत बटाई (हिस्सेदारी) पर ले लिया. इस के बाद कालू अपनी पत्नी कमला एवं तीनों बेटों के साथ जंगलतन से ढिकला स्थित महावीर के खेत में झोपड़ी बना कर रहने लगा. खेत में रहते हुए कुछ दिन ही हुए थे कि एक रोज महावीर खेत देखने आया. उस समय कालू खेत में काम कर रहा था. कालू की बीवी कमला झोपड़ी में बैठी खाना बना रही थी.

महावीर सीधे झोपड़ी में चला गया. उस समय कमला घुटनों तक साड़ी उठा कर बैठी थी. महावीर की नजर कमला की गोरी पिंडलियों पर पड़ी. उस की कामवासना जाग उठी. महावीर ने कहा, ‘‘क्या पका रही है कालू भाई के लिए?’’

सुन कर कमला चौंकी.

उस ने आगंतुक पर नजर डाली. वह उस की गोरी पिंडलियों की तरफ ताक रहा था. कमला ने झट से साड़ी नीचे की. इसी हड़बड़ाहट में उस के उभारों पर से साड़ी हट गई. उन्नत उभार देख कर तो महावीर बावला ही हो गया.

कमला ने साड़ी को ठीक किया और बोली, ‘‘आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं महावीर हूं. यह खेत मेरा ही है.’’ सुन कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, तो आप महावीरजी हैं. आइए, बैठिए. मैं चाय बनाती हूं.’’

महावीर खटिया पर बैठ गया. कमला चाय बनाने लगी. तभी कालू भी आ गया. महावीर और कालू बातें करने लगे. कमला चाय बना लाई. सभी ने चाय पी. इस के बाद महावीर ने कहा कि कोई चीज चाहिए तो बोल देना. परेशान मत होना. मुझे अपना ही समझना. इस के बाद महावीर खेत में फसल देख कर गांव चला गया.

महावीर की आंखों में 3 बच्चों की मां कमला का मादक बदन बस गया. वह सारी रात उसे पाने का षडयंत्र मन ही मन करता रहा. महावीर 2 दिन बाद फिर खेत जा पहुंचा. खेत तो बहाना था. उसे तो कमला को रिझाना था. इस कारण वह दुकान से बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया था.

कमला से महावीर हंसीठिठोली करने लगा. वह उस की सुंदरता की तारीफ भी करता था. कमला द्वारा बनी चाय का बखान भी करता था. महावीर इस के बाद अकसर 2-4 दिन बाद खेत जाने लगा. वह कमला को ललचाई नजर से देखता.

उस रोज कालू काम से कहीं गया हुआ था. महावीर आ गया खेत पर. कमला से पता चला कि कालू शाम तक घर लौटेगा. बस उस रोज महावीर ने बिसकुट, भुजिया दे कर बच्चों को झोपड़ी से बाहर खेलने भेज दिया. उस के बाद महावीर ने कमला से पूछा, ‘‘लगता है, मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मुझे तो तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’ कमला ने कहा.

सुन कर महावीर ने आव देखा न ताव, कमला को बांहों में भर लिया. थोड़ी सी नानुकुर के बाद कमला ने अपना तन महावीर के हवाले कर दिया.

महावीर और कमला वासना के दरिया में गोते लगाने लगे. कमला को महावीर ने ऐसा शारीरिक सुख दिया कि वह उस की दीवानी हो गई. कमला भूल गई कि वह शादीशुदा और 3 बेटों की मां है. उस के ये बहके कदम उसे कहीं का नहीं छोडें़गे.

अवैध संबंधों का परिणाम बहुत खतरनाक होता है. कमला को जो शारीरिक सुख महावीर ने कई बरसों बाद दिया था, उस सुख की खातिर वह अपने पति और बच्चों तक को ताक पर रख कर महावीर के साथ भाग जाने को तैयार हो गई थी.

कालू शरीफ था. उसे पता नहीं था कि उस की गैरमौजूदगी में उस की बीवी गैरमर्द के साथ रंगरलियां मनाती है. वह तो सोचता था कि महावीर अपनी खेती देखने आता है. जबकि महावीर तो कमला से मिलने आता था.

कालू वहीं खेत पर रहता था. इस कारण कमला और महावीर का मिलन नहीं हो पाता था. ऐसे में वासना की आग में जल रहे महावीर और कमला ने योजना बनाई कि वे दोनों चुपके से भाग जाएंगे.

महावीर ने कमला से कहा, ‘‘मैं ने देवली में कमरा किराए पर ले लिया है. तुम वहीं रहना. मैं भी आताजाता रहूंगा. बाद में जब सब कुछ ठीक हो जाएगा, तब मैं तुम से शादी कर लूंगा और बच्चों को भी अपना लूंगा.’’

सुन कर कमला बहुत खुश हुई. करीब 7 महीने पहले एक रोज कमला बिना कुछ बताए कहीं चली गई. महावीर योजनानुसार कमला को ले कर देवली कस्बे पहुंचा और किराए के कमरे में कमला को छोड़ कर वापस गांव ढिकला आ गया ताकि उस पर कोई शक न करे.

उधर पत्नी के अचानक गायब हो जाने पर कालू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि उस की पत्नी गई तो गई कहां. कालू ने उस की बहुत खोजबीन की. रिश्तेदारी में ढूंढा. मगर कमला का कोई पता नहीं चल सका.

उसे जमीन खा गई थी या आसमान निगल गया था. थकहार कर कालू ने थाना दूनी में कमला की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने उस की कोई खोजबीन नहीं की. पुलिस वालों ने कहा कि कहीं गई होगी. अपने आप आ जाएगी.

गरीब की भला कौन सुनता है. कालू बीवी की खोजबीन कर के थक गया. वह अपने तीनों बच्चों की परवरिश करने लगा. कालूलाल अब बच्चों की देखभाल करने लगा.

उस का कामधंधा छूट गया था. कालू काम पर जाए तो बच्चों की देखरेख कौन करे. इस कारण कालू अपनी बीवी के वियोग में मासूम बच्चों को जैसेतैसे पालने लगा.

उधर महावीर का जब मन होता तो वह देवली जाता और कमला के साथ रंगरलियां मनाता. वह कभी गांव तो कभी देवली में प्रेमिका कमला के साथ रातें रंगीन कर रहा था. कुछ समय बाद महावीर ने कमला को देवली से निवाई कस्बे में किराए के कमरे में शिफ्ट कर दिया.

महावीर अब निवाई में कमला के साथ मौजमस्ती करने लगा. कमरे का किराया और कमला के खानेपीने का सारा खर्च महावीर मीणा उठाता था. महावीर निवाई में 2 दिन रहता. फिर गांव ढिकलाआ जाता. गांव में 2-3 दिन रहता फिर निवाई कमला के पास चला जाता. महावीर के निवाई से वापस गांव जाने के बाद कमला अकेली रह जाती थी.

वह बमुश्किल समय अकेले काटती थी. ऐसे में कमला ने तय कर लिया कि वह अब महावीर के साथ ढिकला जा कर रहेगी. उसे अपने बच्चों की भी याद सता रही थी.

महावीर जब जनवरी के दूसरे हफ्ते में निवाई कमला से मिलने आया तब कमला ने उस से कहा कि अब वह यहां अकेली नहीं रहेगी. कमला ने दबाव बनाया कि वह अपने साथ उसे गांव ढिकला में रखे और बच्चों को भी अपनाए.

सुन कर महावीर मीणा के हाथों के तोते उड़ गए. महावीर और कमला के अवैध संबंधों की खबर उस के गांव ढिकला में भी पता चल चुकी थी. महावीर के अकसर देवली और बाद में निवाई जा कर रहने का राज गांव में उजागर हो गया था. अब कमला उस के साथ ढिकला चलने की जिद करने लगी थी. ऐसे में अब तक महावीर गांव के लोगों से कहता रहा था कि कमला के बारे में जो बातें कही जा रही हैं, वह गलत हैं. उसे तो पता तक नहीं कि कमला है कहां.

ऐसे में जब उस के साथ कमला को लोग देखेंगे तो उस की समाज और गांव में बदनामी होगी. तब महावीर ने बदनामी के डर से कमला को ही रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया. महावीर ने कमला को झूठा विश्वास दिलाया कि वह एकदो दिन में उसे गांव ढिकला ले जाएगा. उस की बात सुन कर कमला खुश हो गई.

महावीर ने भरनी निवासी अपने ममेरे भाई हरिराम मीणा से इस बारे में बात की और अपने पास बुलाया. इस के बाद योजनानुसार 11 जनवरी, 2021 को महावीर और हरिराम मीणा बाइक द्वारा निवाई कमला के पास पहुंचे. रात वहीं कमला के पास रुके.

अगले दिन कमरे का हिसाब वगैरह कर के कमला के साथ मोटरसाइकिल पर टोंक पहुंचे. टोंक घूमने के बाद 12 जनवरी, 2021 को चौथ का बरवाड़ा घुमाते रहे. फिर शाम हो जाने के बाद केरली कुंड आए. वहां महावीर और हरिराम ने शराब पी. इस के बाद बड़ोली के जंगल में पहुंचे और वहां एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए.

वहीं पर उन्होंने मौका पा कर कमला को गला दबा कर मार डाला और उस के शव को सरसों के खेत में डाल कर ढिकला में अपने घर आधी रात को आ कर सो गए. कमला ने हरिराम के मोबाइल नंबर की परची अपनी साड़ी के पल्लू में बांध रखी थी ताकि कभी उस से बात करेगी. इसी परची ने पुलिस को हत्यारों तक पहुंचा दिया.

सरसों के खेत में कमला की लाश पड़ी रही. 12 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे कमला की हत्या कर शव गोकुल जाट के खेत में सरसों की फसल के बीच फेंका गया था. लाश सरसों के बीच खेत में पड़ी रही. करीब एक महीने तक पड़ी यह लाश सड़गल कर कंकाल बन गई.

जब 10 फरवरी, 2021 को हत्याकांड से करीब महीने भर बाद सरसों की कटाई मजदूरों द्वारा की जा रही थी, तब उन की नजर कंकाल पर पड़ी. इस के बाद खेत मालिक गोकुल जाट ने सरपंच धनपत माली को कंकाल मिलने की खबर दी. सरपंच ने धाड़ थाने के थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद को सूचना दी.

पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों महावीर मीणा और हरिराम मीणा को कोर्ट में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित