प्रत्यूषा बनर्जी : आत्महत्या और अनसुलझे सवाल

अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी का स्वर अभी भी कानों में गूंज रहा है. मेरे साथ पहले इंटरव्यू के दौरान उस ने बताया था कि टीवी धारावाहिक ‘बालिका वधू’ में बड़ी आनंदी के किरदार को निभाने के लिए हजारों लड़कियों के बीच से उसे कैसे चुना गया था. 18 वर्ष की उम्र में इतने बड़े शो की मुख्य भूमिका का मिलना काफी अहम था क्योंकि मुंबई में बड़ी संख्या में लड़के, लड़कियां एक अच्छी भूमिका के लिए सालोंसाल दिनरात न जाने कितने प्रोडक्शन हाऊसों के चक्कर लगाते रहते हैं. प्रत्यूषा को बचपन से अभिनय का शौक था. वह कई बार आईने के सामने खड़ी हो कर अभिनय किया करती थी.

जमशेदपुर के साधारण बंगाली परिवार में पलीबढ़ी प्रत्यूषा को जब बालिका वधू के लिए औडिशन का मौका मिला तो वह पहले लखनऊ, फिर मुंबई आई. इस धारावाहिक की मुख्यपात्र बन कुछ ही दिनों में वह सब की चहेती बन गई. उस की बातों में दृढ़ विश्वास था. वह हंसमुख थी, सौम्य थी. मुंबई में अभिनय की दुनिया की चकाचौंधभरी जिंदगी, ग्लैमरस पार्टियां प्रत्यूषा को अच्छी लगने लगीं. उस ने पहले विकास गुप्ता, मकरंद मलहोत्रा से डेटिंग की और फिर अभिनेतानिर्माता राहुल राज सिंह से डेटिंग करती रही. राहुल भी जमशेदपुर के हैं. एक बर्थडे पार्टी में एक कौमन फ्रैंड के जरिए वे दोनें मिले थे.

‘बालिका वधू’ की प्रसिद्धि से प्रत्यूषा खुश थी लेकिन इस धारावाहिक का अतिव्यस्त शूटिंग कार्यक्रम उस को रास नहीं आया. 2013 में जब यह धारावाहिक अपनी लोकप्रियता के चरम पर था तभी प्रत्यूषा ने इस धारावाहिक को यह कह कर छोड़ दिया कि वह बे्रक चाहती है, रोजरोज की शूटिंग से तंग आ चुकी है.बाद में यह भी सुना गया कि उस ने अपनी मां की बीमारी के चलते शो छोड़ा था. इस के बाद उस ने रिऐलिटी शो ‘झलक दिखला जा’ के 5वें सीजन और ‘बिग बौस’ के 7वें सीजन, ‘कौमेडी क्लास’, ‘ससुराल सिमर का’, ‘पावर कपल’ आदि किए.

24 वर्षीय प्रत्यूषा बनर्जी की मौत सब को चौंकाने वाली थी क्योंकि अप्रैल में ही वह राहुल राज सिंह से शादी करने वाली थी. उस ने अपनी भावी शादी का जोड़ा डिजाइनर रोहित वर्मा को डिजाइन के लिए दिया था. ऐसे में पंखे से लटक कर आत्महत्या की वजह समझ में नहीं आ रही. आखिर इतनी हंसमुख और स्पष्टवादी लड़की किस तरह से ऐसा कदम उठा सकती है. कुछ लोगों ने तो 1 अप्रैल के इस दिन को ‘अप्रैल फूल’ माना. पर जब हकीकत सामने आई तो फैमिली और फ्रैंड्स के होश उड़ गए.

हालांकि पोस्टमौर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह आत्महत्या माना गया है लेकिन प्रत्यूषा के दोस्त और साथी कलाकार इसे हत्या मानते हैं. उन के अनुसार, राहुल एक ऐयाश लड़का है. इस से पहले उस ने कोलकाता की एक लड़की से शादी की थी और फिर उसे छोड़ दिया था. इस के बाद वह प्रत्यूषा से मिला. और 1 साल से प्रत्यूषा के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहा और प्रत्यूषा से वह शादी करने वाला था.

इस बीच, उस के जीवन में सलोनी शर्मा नाम की एक लड़की आई जो एक धारावाहिक में काम करती है. राहुल और सलोनी की नजदीकी प्रत्यूषा को पसंद नहीं थी. उस ने राहुल से सलोनी को छोड़ने के लिए कहा पर राहुल नहीं माना. प्रत्यूषा के दोस्त और साथी कलाकारों का कहना है कि राहुल को अपनी गर्लफ्रैंड्स के पैसों पर ऐश करने में मजा आता है. रात की पार्टियों में वह अकसर दिखाई पड़ता था.

प्रत्यूषा काफी दिनों से तनाव में जी रही थी. ऐसे में उस का अकेले रहना कहां तक ठीक था? प्रत्यूषा अपने और राहुल के रिश्ते से खुश थी. इंस्टाग्राम पर वह काफी तसवीरें पोस्ट किया करती थी. ऐसे में आत्महत्या की वजह समझना मुश्किल हो रहा है. यह सही है कि लिवइन रिलेशनशिप आजकल के युवाओं का पसंदीदा रिश्ता है. यह बड़े शहरों में बढ़ भी रहा है. ग्लैमरवर्ल्ड में तो लिवइन की भरमार है.

छोटे शहरों से आई लड़कियां या लड़के जब मायानगरी मुंबई की इस चकाचौंध को देखते हैं तो इसे हजम कर पाना उन के लिए मुश्किल होता है. ऐसी घटनाएं यहां होती रहती हैं जब रिलेशनशिप में रहने वाले लड़के और लड़कियां अपना काम पूरा होने के बाद एकदूसरे को छोड़ देते हैं. कुछ तो डिप्रैशन के शिकार हो कर आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ तांत्रिक, पंडेपुजारी के जाल में फंस जाते हैं और अपना पैसा व इज्जत दोनों गंवा बैठते हैं.

लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले प्रत्यूषा और राहुल की यही कहानी थी. जिस में राहुल ने ऐश किया और प्रत्यूषा मंजिल से भटक कर मौत के मुंह में समा गई. प्रत्यूषा की मौत को उस के दोस्त मर्डर मानते हैं. प्रत्यूषा की दोस्त काम्या पंजाबी और विकास गुप्ता ने दावा किया है कि प्रत्यूषा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

राहुल की प्रेमिका सलोनी शर्मा भी, राहुल की गैरहाजिरी में, प्रत्यूषा के साथ दुर्व्यवहार करती थी. काम्या ने कहा कि मृत्यु से 3-4 दिन पहले प्रत्यूषा ने फोन कर उसे राहुल की बात बताई थी और उस से मदद मांगी थी. काम्या उस समय दिल्ली में थी और 4 अप्रैल को मुंबई पहुंच कर उस से मिलने वाली थी.

लिवइन रिलेशनशिप में रहना आज लड़के और लड़कियों में आम है पर इस रिश्ते में आई समस्याओं को झेलना उन के लिए आसान नहीं होता. इस बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल की मनोरोग चिकित्सक डा. पारुल टांक कहती हैं, ‘‘प्रत्यूषा उदासीनता की शिकार थी.

अभी तक जो बात सामने आ रही है उस के हिसाब से उस का निजी जीवन, मातापिता से संबंध और कैरियर ये तीनों ही सही नहीं थे, ऐसे में डिप्रैशन होना स्वाभाविक है.’’ लिवइन रिलेशनशिप की बढ़ती संख्या को देख कर सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल, 2015 को इसे मान्यता दे दी है. कोर्ट के अनुसार, अगर लड़का या लड़की अपनी मरजी से साथ रहते हैं तो उन्हें शादीशुदा माना जाएगा. उन के बच्चे भी जायज ठहराए जाएंगे.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट डा. संजय मुखर्जी कहते हैं, ‘‘लिवइन रिलेशनशिप में लड़का या लड़की दोनों में आपसी समझ अच्छी होनी चाहिए. एकदूसरे पर जल्दी भरोसा करना ठीक नहीं होता. अंधविश्वासी होना ठीक नहीं है. इस रिश्ते में टाइमपास कर दोनों पार्टनरों में से कोई भी रिश्ते को छोड़ सकता है.’’ डा. संजय आगे कहते हैं, ‘‘प्रत्यूषा की घटना को पर्सनैलिटी डिस्और्डर कहना ठीक होगा जिसे ‘न्यूरोटिसिज्म’ कहते हैं. यह अधिकतर आनुवंशिकी होता है. प्रत्यूषा अपने मांबाप की इकलौती संतान थी.

ऐसे में राहुल का उसे धोखा दे कर किसी और के साथ समय बिताना उसे ‘हर्ट’ कर गया. ऐसे लोगों को अगर प्यार, खुशी सबकुछ ठीक तरह से मिले तो ये मस्त जिंदगी जीते हैं और अगर इन्हें जरा भी किसी से तकलीफ मिलती है, ये बरदाश्त नहीं कर पाते.’’

प्रत्यूषा ने कम उम्र में सफलता हासिल की थी. लेकिन पैसा, बौयफ्रैंड आदि सब धीरेधीरे उस से छिनता चला गया. अभिनय से शिखर पर पहुंची प्रत्यूषा अभिनय की ग्लैमरस दुनिया की शिकार हो गई. उस ने आत्महत्या की, उसे आत्महत्या करने को मजबूर किया गया या उस की हत्या की गई, इस पर संशय रहेगा.

सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक – भाग 3

लंबीचौड़ी मारधाड़ और गोलीबारी के बाद प्रेमनाथ, अजीत और अमजद खान जैसे ड्रग स्मगलर हेलीकाप्टर में चढ़ने से पहले ही धर लिए जाते थे. उन के साथ टाम अल्टर या बौब क्रिस्टो, जो मूलत: अंगरेज हैं, को भी दिखा दिया जाता था जिस से सिद्ध हो जाता था कि ड्रग्स तसकरी बगैर विदेशी स्मगलरों के मुमकिन नहीं.

ड्रग्स की तिलिस्मी दुनिया का शिकार बन रहे हैं युवा

पिछले 2 दशक में नशे और खासतौर से ड्रग्स पर जो फिल्में बनीं वे कोई समाधान नहीं देतीं, बल्कि यह बताती हैं कि युवा नशा क्यों करते हैं और नशा होने के बाद कैसा लगता है.

आर्यन खान संभव है यही अनुभव लेने गया हो कि भविष्य में कभी ड्रग एडिक्ट युवा का रोल करना पड़ा तो उस में बिना नशे को समझे वास्तविकता कैसे आएगी.

गोवा नशेडि़यों की जन्नत है, इस हकीकत को साल 2013 में प्रदर्शित फिल्म ‘गो गोवा गान’ में दिखाया गया था. 3 दोस्त एक रेव पार्टी में गोवा जाते हैं और गलत ड्रग्स लेने पर जांबी बन जाते हैं. हालांकि फिल्म का उत्तरार्द्ध पौराणिक किस्से कहानियों और कौमिक्स जैसा था, लेकिन पूर्वार्द्ध में मुद्दे की बात आ गई थी.

प्रियंका चोपड़ा और कंगना रनौत अभिनीत मधुर भंडारकर निर्देशित ‘फैशन’ फिल्म साल 2008 में आई थी, जिस में कस्बाई युवतियों की मानसिकता को खूबी से उकेरा गया था कि वे मुंबई आ कर कैसे ड्रग्स की मायावी और तिलिस्मी दुनिया का शिकार हो जाती हैं.

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ये युवतियां कामयाब तो अपनी प्रतिभा के दम पर होती हैं लेकिन ड्रग्स सेवन को फैशन मानते बरबाद हो जाती हैं और फिर कभी मीना कुमारी, नरगिस, हेमामालिनी, श्रीदेवी, रेखा या माधुरी दीक्षित नहीं बन पातीं यानी ड्रग्स का कारोबार कस्बाई प्रतिभाओं को कामयाब होने से रोकने की भी एक साजिश के तौर पर देखा जा सकता है.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि कभी बड़े नामी सितारे ड्रग्स लेते नहीं पकड़े जाते. अपवाद स्वरूप ही संजय दत्त रोशनी में आए थे, वह भी इसलिए कि वह नशे के इतने आदी हो चुके थे कि सुबह उठ कर ब्रश बाद में करते थे, ड्रग्स पहले लेते थे.

2009 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘देव डी’ भी ड्रग्स प्रधान थी, लेकिन यह भी मकसद से भटकी हुई फिल्म थी. धर्मेंद्र के एक बड़े भाई हैं अजीत सिंह देओल, जो फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं. इन्हीं के बेटे हैं अभय देओल. अभय देओल ने ही इस फिल्म में कामचलाऊ एक्टिंग की थी जो नशे में डूबे नाकाम आशिक के किरदार में थे.

फिर इस के 2 साल बाद आई अभिषेक बच्चन अभिनीत ‘दम मारो दम’ फिल्म, जिस में एक भूमिका राजबब्बर और स्मिता पाटिल के अभिनेता बेटे प्रतीक बब्बर की भी थी.

प्रतीक बब्बर रियल लाइफ में भी आला दरजे के नशेड़ी रह चुके हैं, जिन्हें इलाज के लिए कई बार नशा मुक्ति केंद्र में भरती होना पड़ा था. हालांकि एक्टिंग के मामले में वह संजय दत्त पर बनी बायोपिक ‘संजू’ में संजय दत्त का रोल अदा कर रहे रणबीर कपूर के सामने उन्नीस ही रहे थे.

‘दम मारो दम’ में निर्देशक रोहन सिप्पी ने कोशिश जरूर की थी कि ड्रग्स स्मगलिंग और रैकेट्स का खुलासा करें लेकिन वह भी सिमट कर रह गए थे.

इस फिल्म की शूटिंग भी ड्रग्स का स्वर्ग कहे जाने वाले शहर गोवा में हुई थी. इस से कुछकुछ हकीकत का एहसास तो हुआ था पर यह सब पुरानी हिंदी फिल्मों की कौपी थी, जिन में पुलिस और तस्कर ढाई घंटे तक चोर पुलिस का खेल खेला करते हैं.

इस फिल्म की इकलौती खूबी यह बताना थी कि हरेक किरदार के तार ड्रग माफियाओं से जुड़े हुए दिखाए गए हैं. लेकिन वे ठीक वैसे ही हैं जैसे आर्यन खान के हैं जिस से यह उम्मीद करना बेवकूफी की बात है कि वह सीधा इस धंधे के बौस से ड्रग ले कर आया हो.

2016 में आई ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म अपने शीर्षक के चलते काफी चर्चित रही थी, क्योंकि पंजाब में ड्रग्स की दखल तब तक अहम बहस का विषय बन चुकी थी. ड्रग्स पर बनी यह इकलौती फिल्म थी, जिस में यह बताया गया था कि फैक्ट्रियों में ड्रग्स कैसे बनती हैं.

निर्देशक अभिषेक चौबे यह बताने में भी कामयाब रहे थे कि इस में राजनेता भी लिप्त रहते हैं. शाहिद कपूर, करीना कपूर और आलिया भट्ट जैसे सितारों से सजी यह फिल्म विवादों से भी घिरी थी.

ड्रग्स कितनी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और इस के दुष्प्रभाव कैसे होते हैं, यह असरदार तरीके से दिखाना भी फिल्म की खूबी थी.

आर्यन कोई नादान बच्चा नहीं

ड्रग्स अकेले पंजाब या मुंबई में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सहजता से मिल जाती हैं जिस के लिए इकलौती खूबी या जरूरत तलब लगना है.

यह तलब जब लगती है तो लोग मल खाने तक को भी तैयार हो जाते हैं, लड़कियां देह व्यापार करने को मजबूर हो जाती हैं, युवा अपनी गैरत और करिअर भूल जाते हैं. इस से ज्यादा ड्रग्स की लत के बारे में ज्यादा कुछ और कहा भी नहीं जा सकता.

इस में भी कोई शक नहीं कि फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकार इस लत के शिकार हैं, जिन के नाम वक्तवक्त पर उजागर होते भी रहे हैं. लेकिन न पकड़े गए फिल्मकारों की लिस्ट उन से कई गुना ज्यादा लंबी है.

आर्यन के बहाने एक बार फिर यह सच उजागर हुआ कि कुछ भी मुमकिन है, क्योंकि एक 24 साल के नौजवान को इतना भोला भी नहीं कहा और माना जा सकता कि वह यह न जानता हो कि ड्रग्स सेहत के लिए तो नुकसानदायक हैं ही, साथ ही इन का सेवन व खरीदफरोख्त यहां तक कि इन्हें अपने पास रखना भी गैरकानूनी है.

आर्यन से पहले जो फिल्मकार ड्रग्स के मामले में पकड़े गए हैं, उन में छोटे परदे की टुनटुन कही जाने वाली कामेडियन भारती सिंह, सुशांत सिंह की प्रेमिका रही रिया चक्रवर्ती, आज की कामयाब अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और बी ग्रेड की ऐक्ट्रेस रकुलप्रीत सिंह के नाम प्रमुखता से शामिल हैं. फरदीन खान और ममता कुलकर्णी भी इस लिस्ट की शोभा बढ़ा चुके हैं.

आर्यन का क्या होगा, इस पर हर किसी की निगाह है क्योंकि वह कोई आम लड़का नहीं बल्कि शाहरुख खान का बेटा है. अगर उस पर आरोप साबित हुए तो उसे कम से कम एक साल की सजा होनी तय है.

हालफिलहाल तो वह आर्थर रोड नाम की जेल में है जिस में संजय दत्त सहित जुर्म की दुनिया के कई दिग्गजों ने अपने दुर्दिन गुजारे थे.

सच यह भी है कि आर्यन को इतनी शोहरत फिल्मों में काम करने से पहले ही मिल चुकी है कि कोई भी निर्माता उस पर अरबों का दांव खेलने का जोखिम उठा सकता है. एक बहस पेरेंट्स की भूमिका की भी हुई कि क्यों न उन्हें भी बच्चों की ड्रग की लत का जिम्मेदार ठहराया जाए.

आर्यन के गिरफ्तार होते ही शाहरुख खान का एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ था, जिस में अभिनेत्री सिम्मी ग्रेवाल को दिए इंटरव्यू में वह यह कहते नजर आ रहे थे कि वह चाहते हैं कि उन का बेटा भी ड्रग्स ट्राई करे और जब आर्यन ने उन की बात मान ही ली तो एक आम पिता की तरह रोतेझींकते और बेटे के लिए तड़पते नजर आए.

यह सोचना भी बेमानी है कि आर्यन के पकड़े जाने से ड्रग्स की समस्या खत्म हो गई है. उलटे यह गिरफ्तारी और उस के बाद का ड्रामा यह सोचने को जरूर मजबूर करता है कि यह समस्या कितनी विकराल हो गई है.

सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक – भाग 2

जब अभिनेता सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत 14 जून, 2020 को हुई थी तभी से उन के निशाने पर फिल्म इंडस्ट्री के वे स्टार्स हैं, जो ड्रग्स का सेवन करते हैं.

सुशांत सिंह की मौत के बाद भी ड्रग माफिया की चर्चा हुई थी और हल्ला भी ज्यादा मचा था, क्योंकि सुशांत और उस के कुछ साथी भी ड्रग्स लेते थे. तब इस की जांच वानखेड़े ने ही की थी.

इस के बाद तो वह बौलीवुड के ड्रग कनेक्शन के पीछे पड़ गए. आर्यन का मामला उसी पीछे पड़ने की एक कड़ी है.

मुंबई हवाई अड्डे पर तैनाती के दौरान उन की कहासुनी आए दिन फिल्म स्टार्स से हुई. 2008 बैच के आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े एनसीबी से पहले एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी में रहते भी सुर्खियों में रहते थे.

हालिया मामले में भी उन्होंने कोई नरमी नहीं बरती और एक दूसरी सनसनी 11 अक्तूबर को यह कहते हुए मचाई कि इस मामले की जासूसी हो रही थी.

इस के पहले सुनवाई कर रही मुंबई की अदालत ने उन की इस मंशा पर पानी फेर दिया था कि आर्यन और दूसरे आरोपियों को एनसीबी की कस्टडी दी जाए, जिस से उन से ढंग से पूछताछ हो सके.

अदालत ने इस दलील से इत्तफाक नहीं रखा और आरोपियों को आर्थर रोड जेल भेज दिया. यहां भी मीडिया बदस्तूर अपना काम करता रहा, मसलन आर्यन फलां बैरक में रहेगा, उसे घर का खाना नहीं मिलेगा और जेल की दिनचर्या और सख्त नियमों का उसे पालन करना पड़ेगा. कपड़े जरूर उसे पसंद के मिल सकते हैं. नाश्ते और लंच डिनर का मेन्यू भी प्रसारित किया गया.

समीर वानखेड़े के साथसाथ चर्चे सतीश मानशिंदे के भी खूब हुए कि वह इस से पहले भी इस तरह के कई मुकदमों में पैरवी कर चुके हैं. सुनील दत्त के अभिनेता बेटे संजय दत्त को जमानत उन्होंने ही दिलवाई थी.

संजय दत्त कभी अव्वल दरजे के ड्रग एडिक्ट थे और मुंबई बम धमाकों में भी उन का नाम आया था. उन की जिंदगी पर फिल्म भी बनी और किताबें भी लिखी गईं.

सलमान खान को ड्रिंक एंड ड्राइव मामले के साथ काले हिरण के शिकार के चर्चित मामले में भी मानशिंदे ने जोरदार तरीके से पैरवी करते हुए उन्हें जमानत दिलवाई थी और फिर बाइज्जत बरी भी करवाने में कामयाबी हासिल की थी.

अपने दौर के दिग्गज और नामी वकील राम जेठमलानी के 10 साल जूनियर रहे इस धुरंधर वकील की एक पेशी की फीस ही 10 लाख रुपए हुआ करती है.

सुशांत सिंह की गर्लफ्रैंड रिया चक्रवर्ती को जमानत दिलवाने का श्रेय भी मानशिंदे के खाते में दर्ज है और अभिनेत्री राखी सावंत का एक मुकदमा भी वह लड़ चुके हैं. आर्यन के मामले में भी उन्होंने जमानत याचिकाएं दमदार दलीलों के जरिए दायर कीं लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

जब आर्यन की चर्चा जरूरत से ज्यादा हो चुकी तो लोगों की दिलचस्पी सतीश मानशिंदे और समीर वानखेड़े में बढ़ी कि देखें कौन किस पर भारी पड़ता है क्योंकि ये दोनों ही अपनेअपने फील्ड के महारथी हैं.

फिल्मों में नशा

फिल्म इंडस्ट्री का नशे से काफी गहरा नाता हमेशा से ही रहा है. शराब तो बेहद आम है जिसे लगभग सभी कलाकार पीते हैं. देखा जाए तो नशा इस इंडस्ट्री का पर्याय और पहचान शुरू से ही है. लेकिन ड्रग्स की विधिवत शुरुआत हुई 70 के दशक से. तब ड्रग्स को आज जितनी मान्यता नहीं मिली थी और यह नशा भी सिर्फ अपराधियों और अभिजात्य वर्ग का नशा माना जाता था.

इसी दौर में देवानंद की फिल्म हरे राम हरे कृष्ण आई. हिप्पी कल्चर वाली इस फिल्म में जीनत अमान ने पेरेंट्स से उपेक्षित एक मध्यमवर्गीय नशेड़ी युवती का रोल इतनी शिद्दत से निभाया था कि दर्शक रातोंरात उन के मुरीद हो गए थे.

लेकिन दिक्कत तब खड़ी होने लगी, जब युवा जीनत के साथसाथ नशे के भी दीवाने होने लगे. तब नशे के लिए गांजा, चिलम, अफीम, चरस सहित एलएसडी जैसी घातक गोलियां इस्तेमाल की जाती थीं.

जीनत अमान पर फिल्माए गाने ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ का असर उलटा हुआ. युवाओं ने नशे के नुकसानों से कोई सबक नहीं सीखा.

नशे से आगाह करती एक और फिल्म एलएसडी पर आधारित भी इसी दौर में रिलीज हुई थी, पर वह ज्यादा चली नहीं थी.

आज के आर्यन नुमा युवाओं का इस गुजरे कल से गहरा ताल्लुक है. फिल्म इंडस्ट्री में बेशुमार पैसा है, जिस पर अंडरवर्ल्ड की नजर पड़ी तो देखते ही देखते उस का हुलिया बदल गया. अंडरवर्ल्ड के सरगना फिल्मकारों को फाइनेंस करने लगे और जुर्म की दुनिया इस सुनहरे परदे की जरूरत बन गई.

हर तीसरी फिल्म में दिखाया जाने लगा कि ड्रग्स के कारोबार में मुनाफा ही मुनाफा है. लेकिन इस से भी ज्यादा प्रचार इस बात का हुआ कि ड्रग्स के सेवन से आप एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाते हैं, जहां कोई गम या दुख नहीं होता. आप ध्यान और समाधि की सी अवस्था में होते हैं.

देखते ही देखते हर कोई इस ध्यान में डूबने लगा. ड्रग्स का नशा स्टेटस सिंबल बन गया और यह कारोबार इतनी तेजी से फैला कि आज झुग्गीझोपड़ी वाले युवा भी इस की गिरफ्त में हैं.

एनसीबी की समस्या यही है कि वह इस कारोबार की जड़ तक नहीं पहुंच पाती. कुछ नशेडि़यों को यहांवहां से गिरफ्तार कर मान लिया जाता है कि अब समस्या हल हो गई.

तालिबानी सत्ता के बाद भारत में बढ़ गई ड्रग तस्करी

हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबानों के कब्जे से नशे के कारोबार पर पड़े फर्क का ही नतीजा है कि ड्रग्स सप्लाई एकाएक ही तेजी से बढ़ी. तय है इसलिए कि तालिबानी सरकार का मूड और नीतियां ड्रग्स के कारोबारी समझ नहीं पा रहे लिहाजा क्लीयरेंस सेल की तरह उन्होंने अपना स्टौक खाली करना और औनेपौने में यहांवहां माल खपाना शुरू कर दिया.

आर्यन खान कांड के चंद दिनों पहले ही गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा बंदरगाह से 21 हजार करोड़ रुपए की हेरोइन जब्त हुई थी. इस जब्ती के कारोबारी और सियासी मायने और अटकलें अलग हैं, लेकिन यह तय है कि अगर यह खेप न पकड़ी जाती तो अब तक देश के कोनेकोने में फैल चुकी होती.

हल्ला इस बात पर ज्यादा मचा कि यह खेप अडानी समूह द्वारा संचालित बंदरगाह पर उतरी. आर्यन की गिरफ्तारी के बाद यह सवाल भी उठा कि कहीं यह नया ड्रामा मुंद्रा बंदरगाह पर से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं रचा गया, क्योंकि अडानी समूह के मौजूदा हुक्मरानों से अंतरंग संबंध हैं और आम लोग भी इस बाबत सवाल पूछने लगे थे.

इस और ऐसे कई अनसुलझे सवालों का जबाब आधाअधूरा ही सही, हिंदी फिल्मों से मिलता रहा है. 70-80 के दशक की हर तीसरी फिल्म में पुलिस कमिश्नर बने चरित्र अभिनेता इफ्तिखार नए भरती हुए इंसपेक्टर रवि या विजय को एक महत्त्वपूर्ण फाइल सौंपते गंभीरता से यह कहते नजर आते थे कि यह रही ड्रग्स के उन तस्करों और कारोबारियों की जन्मकुंडली, जो हमारे देश की युवा पीढ़ी को खोखला करते, उन्हें नशे के नर्क में धकेलने का संगीन गुनाह कर रहे हैं.

इंसपेक्टर बने अमिताभ बच्चन या शशि कपूर अपनी एडि़यों को घुमा कर एक जोरदार सैल्यूट ठोकते थे और उन की जीप सीधे विलेन के अड्डे पर जा पहुंचती थी.

अगले भाग में पढ़ें- आर्यन कोई नादान बच्चा नहीं

सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक – भाग 1

2 अक्तूबर को देश भर में रस्मी तौर पर ही गांधी जयंती मनी थी. इस दिन लोगों को छुट्टी होने की खुशी ज्यादा रहती है, गांधी और उन के विचारों से कोई वास्ता नहीं रखता, जिन में से एक यह नसीहत भी है कि नशा खासतौर से युवाओं को बरबाद कर रहा है. इस दिन देश भर में ड्राई डे भी रहता है, इसलिए शराब की सभी दुकानें और ठेके बंद रहते हैं.

अगले दिन चूंकि इतवार था, इसलिए नशेडि़यों ने अपने कोटे का इंतजाम पहले से ही कर रखा था. इसी दिन देर रात मुंबई से गोवा के लिए कार्डेलिया नाम का क्रूज रवाना हुआ था जोकि एक रुटीन की बात थी.

वाटरवेज लीजर टूरिज्म प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारियों को उम्मीद रही होगी कि वीकेंड होने के चलते क्रूज पर रोज के मुकाबले भीड़भाड़ ज्यादा रहेगी, लेकिन लगभग 1300 पैसेंजर ही आए. जबकि क्रूज की क्षमता 1800 लोगों की है.

आजकल लोग क्रूज पर पार्टियां खूब करने लगे हैं. यह तेजी से पनपता नया फैशन है, इसलिए क्रूज जैसे ही मुंबई से कुछ किलोमीटर दूर पहुंचा तो पार्टियों का दौर शुरू हो गया. एक खास पार्टी सलीके से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि क्रूज पर हड़कंप मच गया. हुआ यह था कि कुछ युवाओं ने ड्रग्स लेनी शुरू कर दी थी.

इन पर नशा भी सलीके से नहीं चढ़ा था कि एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कर्मचारियों, अधिकारियों ने इन की धरपकड़ शुरू कर दी.

दरअसल, यह एनसीबी की टीम की सुनियोजित मुहिम थी इसलिए टीम के सदस्य सिविल कपड़ों में साधारण यात्रियों की तरह तट से ही क्रूज पर सवार हुए थे.  इस मुहिम की अगुवाई एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े कर रहे थे, जो बौलीवुड के ड्रग्स कनेक्शन का भंडाफोड़ करने के लिए जाने जाते हैं. उन्हें लगातार मुखबिर खबर दे रहे थे कि इन दिनों नामी फिल्मी हस्तियां क्रूज पर रेव पार्टियां करने लगी हैं.

उन्होंने सारा प्लान बनाया और इस रात कार्डेलिया पर धावा बोल दिया. देखते ही देखते 8 नाजुक खूबसूरत युवा, जिन में एक थोड़ी उम्रदराज सहित 3 युवतियां भी थीं, उन की गिरफ्त में थे, जिन का सारा नशा एनसीबी की टीम को देख छूमंतर हो गया था.

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इन लोगों की जामातलाशी में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस, 5 ग्राम एमडी और एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं. यानी सूचना गलत नहीं थी. लेकिन पकड़े गए आरोपियों में कोई नामीगिरामी फिल्मी हस्ती नहीं थी. यह तो पूछताछ के बाद उजागर हुआ कि इन में से एक अभिनेता शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है.

क्रूज पर तलाशी में पकड़े न जाएं, इसलिए ये युवा नशीले पदार्थ जूतों और अंडरगारमेंट्स में छिपा कर ले गए थे. जबकि लड़कियों ने इन्हें अपने पर्स में रखा था. उम्रदराज महिला तो ड्रग्स को सेनेटरी पैड में छिपा कर क्रूज पर ले गई थी.

इस वक्त आधी रात बीत चुकी थी, लेकिन सुबह जैसे ही यह पता चला कि पकडे़ गए युवाओं में से एक शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान भी है तो मीडिया वाले एनसीबी के दफ्तर की तरफ दौड़ लगाते नजर आए और दोपहर तक मामले को इतना हाईप्रोफाइल बना दिया कि उस दिन की दूसरी तमाम

अहम खबरें और घटनाएं इस के नीचे दब कर रह गईं. जिन में से एक मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र द्वारा 4 किसानों को कार से रौंदे जाने का भी था.

आर्यन की खबर ज्यादा बिकाऊ और चलताऊ थी, इसलिए उसे लगातार दिखाया गया और इतना भुनाया गया कि देखने वाले बिना कोई ड्रग लिए ही झूमने लगे.

ऐसा छापा कोई नई बात नहीं थी, लेकिन चूंकि इस में एक स्टार किड शामिल था इसलिए न्यूज चैनल्स को तिल का ताड़ बनाने का एक और मौका मिल गया. आर्यन के बारे में जानकारी छनछन कर बाहर आने लगी और उस के साथियों की भी जन्मकुंडली खंगाली जाने लगी.

शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर भी मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. अब एनसीबी क्या कर रही है और आगे क्याक्या हो सकता है, ये बातें सड़कछाप ज्योतिषी के तोते की तरह बांची गईं.

इस वक्त तक उम्मीद की जा रही थी कि आर्यन को मामूली पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जैसे ही अधिकारियों की टीम सवालजवाब के लिए अंदर गई तो समझने वाले समझ गए कि ड्रामा अभी और लंबा खिंचेगा.

कच्चे खिलाडि़यों की नशेड़ी टीम

आर्यन के साथ गिरफ्तार किए गए अरबाज मर्चेंट, मुनमुन धमेचा, नूपुर सारिका, इसमीत सिंह, मोहक जसवाल, विक्रांत छोकर और गोमित चोपड़ा बहुत जानेमाने नाम नहीं हैं. मुनमुन वही उम्रदराज महिला है, जिस ने सेनेटरी नैपकिन में ड्रग्स छिपाई थी.

फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी यह खूबसूरत महिला कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश के सागर शहर के गोपालगंज मोहल्ले में रहा करती थी. अपनी स्कूली पढ़ाई उस ने यहीं से पूरी की थी. उस का परिवार बिजनैस से ताल्लुक रखता है. भाई प्रिंस धमेचा दिल्ली में कार्यरत है.

कुछ न होते हुए भी उस के फिल्म इंडस्ट्री में कई हस्तियों से अच्छे संबंध हैं. आर्यन कैसे उस के संपर्क में आया, यह पूरी जांच और मुकदमे के बाद साफ होगा.

पकड़ा गया दूसरा मुख्य आरोपी 25 वर्षीय अरबाज मर्चेंट मुंबई का जानामाना टिंबर कारोबारी है, जिस की 2 कंपनियां स्वदेश टिंबर और सिमला एजेंसीज हैं. यह उस का पुश्तैनी कारोबार है.

अरबाज ने बांद्रा के आर.डी. नैशनल कालेज से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी. उस के पिता असलम मर्चेंट पेशे से वकील हैं. अरबाज और आर्यन की दोस्ती बहुत पुरानी है और दोनों ने देशविदेश की कई यात्राएं साथसाथ की हैं. दोनों पार्टियों में भी संग दिखते थे. मुनमुन कौन है, यह अरबाज भी नहीं जानता.

मोहक और नूपुर दोनों पेशे से फैशन डिजायनर हैं, जबकि गोमित हेयर स्टाइलिस्ट है. ये तीनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. नूपुर ने भी मुनमुन की तरह ड्रग्स सेनेटरी नेपकिन में छिपाई थी.

ये ड्रग्स उसे मोहक ने दी थीं, लेकिन मोहक के पास ड्रग्स कहां से आई, यह अभी पता नहीं चला है और यही सारे फसाद की जड़ है कि एनसीबी या दूसरी कोई एजेंसी ड्रग माफियाओं की जड़ तक कभी नहीं पहुंच पाती. हर बार वे फूलपत्तियां ही तोड़ती रही हैं.

इस मामले में भी छोटी मछलियां ही पकड़ाई हैं, मगरमच्छों के तो किसी को अतेपते नहीं.

जाहिर है कि ये सब के सब कच्चे और नए खिलाड़ी ड्रग्स के मायाजाल के थे, जो सिर्फ मौजमस्ती की गरज से गोवा जा रहे थे. एनसीबी के सामने इन की घिग्घी बंधी हुई थी क्योंकि हिरासत में लेते वक्त ही इन के मोबाइल फोन भी जब्त कर लिए गए थे, जिस से इन का संपर्क बाहरी दुनिया और खासतौर से उन पेरेंट्स से कट गया था, जिन के बारे में ये सोचते यह होंगे कि उन के मांबाप बहुत रईस और रसूख वाले हैं, लिहाजा इन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

अब तक ऐशोआराम में पलेबढ़े इन रईसजादों को पहली बार यह समझ आया कि कानून के सामने कोई रसूख या शोहरत नहीं चलती, जिस के कि ये आदी बचपन से ही हो चुके थे.

लंबी पूछताछ में लगता नहीं कि ये नातजुर्बेकार युवा कोई झूठ बोल पाए होंगे. एनसीबी की टीम तो इन की मानसिकता समझ रही थी, लेकिन ये लोग नहीं समझ पा रहे थे कि इस चूहेदानी से निकलना अब आसान काम नहीं.

उस वक्त ये सभी यही दुआ मांग रहे होंगे कि एनसीबी वाले पूछताछ जल्द खत्म कर हमें छोड़ दें, जिस से वे घर जा कर आराम से एयर कंडीशंड कमरों में सोएं और पार्टी की रात और बात को एक बुरे सपने की तरह भूल जाएं.

मुमकिन है इन नवोदित नशेडि़यों ने तभी कान पकड़ कर तौबा कर ली हो कि अब कभी क्रूज पार्टी तो दूर आम पार्टियों में भी ड्रग्स नहीं लेंगे.

डायरेक्टर बनाम लायर

लेकिन इन के हाथ में अब कुछ बचा नहीं था. अदालत ने पहले 3 दिनों का रिमांड दिया फिर उसे 14 दिनों तक और बढ़ा दिया तो और सनसनी और रोमांच मचने लगे. सीधेसीधे लोगों की नजरें समीर वानखेड़े और आर्यन के वकील सतीश मानशिंदे पर जा टिकीं कि इस बार कौन किस पर भारी पड़ता है.

वानखेड़े की मंशा आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा दिन हिरासत में रखने की थी तो मानशिंदे की पूरी कोशिश अपने मुवक्किल आर्यन खान को जमानत दिलाने की थी.

समीर वानखेड़े एक सख्त और तेजतर्रार अफसर हैं जिन के खाते में कई बौलीवुड हस्तियों के खिलाफ काररवाई करने का रिकौर्ड, वह भी ड्रग्स के मामले में करने का, दर्ज है.

अगले भाग में पढ़ें- तालिबानी सत्ता के बाद भारत में बढ़ गई ड्रग तस्करी

करोड़ों कमाते है सितारों के बॉडीगार्ड

नब्बे के दशक के दौरान जब फिल्मों की आउटडोर शूटिंग का चलन बढ़ा तो एक नई दिक्कत फिल्मी सितारों की सुरक्षा की पेश आने लगी. ऐसा नहीं कि इस के पहले आउटडोर शूटिंग नहीं होती थी और फिल्म स्टार्स के चाहने वाले उन्हें देखने और छूने के लिए बेकाबू होने की हद तक बेताब नहीं रहते थे, बल्कि ऐसा पहले भी होता था. जहां भी फिल्मों की शूटिंग हो रही होती थी, वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ लग जाती थी.

प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के आंचलिक उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ के कुछ दृश्यों की शूटिंग जब मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में हो रही थी, तब फिल्म के हीरो राज कपूर और हीरोइन वहीदा रहमान को देखने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था.

साल 1966 में प्रदर्शित इस फिल्म का बड़ा हिस्सा बिहार के अररिया जिले के गांव औराही हिंगना में भी फिल्माया गया था. वहां भी लोग राज कपूर और वहीदा रहमान को रूबरू देखने के लिए उमड़ पड़े थे. तब आज की तरह गैजेट्स नहीं थे कि आप अपने हाथ में दबे मोबाइल की स्क्रीन पर फोटो और वीडियो जब चाहे देख लें.

तब फिल्मी सितारे या तो थिएटर में दिखते थे या फिल्म के पोस्टरों में. लेकिन उन के फोटो काट कर दीवार पर चिपकाना हो या सीने से लगाना हो तो वो मैग्जींस खरीदनी पड़ती थीं, जिन में इन के फोटो छपते थे.

‘तीसरी कसम’ की यूनिट को बिहार और मध्य प्रदेश दोनों जगह दिक्कतें पेश आई थीं. दिक्कतें इस तरह की कि राज कपूर और वहीदा रहमान को देखने के लिए कई जगह कालेज के छात्रों ने हुड़दंग किया था.

शूटिंग देखने आए लोगों को काबू करने में स्थानीय पुलिस का रौब ही काफी होता था. लेकिन उस दौर के युवाओं पर भी पुलिसिया रौब नहीं चलता था.

शूटिंग के दौरान एक बार जब राज कपूर और वहीदा रहमान ललितपुर से मुंबई लौट रहे थे तो विदिशा रेलवे स्टेशन पर छात्रों ने ट्रेन ही रोक ली थी. तब अधिकतर ट्रेनों में एसी कोच नहीं हुआ करते थे फर्स्ट क्लास का डब्बा होता था, जो केबिनों में बंटा रहता था.

छात्रों का जमावड़ा और हुड़दंग देख राज कपूर घबरा उठे थे और विदिशा स्टेशन पर उतर कर उन्हें छात्रों के सामने हाथ जोड़ना पड़ा था. तब कहीं जा कर आधे घंटे बाद ट्रेन रवाना हो पाई थी.

आज अगर ऐसा हो तो क्या होगा, इस सवाल का जबाब यही निकलता है कि आज ऐसा नहीं हो सकता. क्योंकि तमाम बड़े और नामी फिल्म स्टार्स अपनी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी खुद उठाते हैं और उस पर तगड़ी रकम भी खर्च करते हैं.

हाल तो यह है कि फिल्म स्टार्स के बौडीगार्ड की सालाना सैलरी ही करोड़ों तक में होती है और इन बौडीगार्ड्स की शोहरत और रुतबा भी किसी फिल्म स्टार से कम नहीं होता.

सलमान और शेरा से हुई शुरुआत

बात साल 1995 की है जब सलमान खान का सितारा बुलंद था. लिहाजा उन्हें एक तजुर्बेकार और भरोसेमंद बौडीगार्ड की सख्त जरूरत थी. ऐसे में चंडीगढ़ की एक पार्टी में उन की मुलाकात सिख समुदाय के शेरा, जिन का असली नाम गुरमीत सिंह है, से हुई.

सलमान खान के भाई अरबाज खान को शेरा उपयुक्त लगे तो उन्होंने शेरा को बुला भेजा. बात जम गई और पहली ही मीटिंग में शेरा सलमान खान के बौडीगार्ड बन गए. अब तो आलम यह है कि शेरा को सलमान की परछाई और मालिक तक कहा जाने लगा है.

26 साल के अरसे में फिल्म इंडस्ट्री में कई उतारचढ़ाव और बदलाव आए, लेकिन इन दोनों का साथ नहीं छूटा. यह एक रिकौर्ड है कि शेरा के रहते कोई सलमान को छू भी नहीं पाया.

हिफाजत करने के एवज में शेरा को सैलरी कितनी मिलती है, यह आंकड़ा सुन कर आप भी चौंक सकते हैं कि तकरीबन ढाई करोड़ रुपए सालाना यानी कम से कम 20 लाख रुपए महीना.

इतनी सैलरी तो बड़ीबड़ी कंपनियों के सीईओ की भी नहीं होती और कई फिल्म स्टार्स हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतना नहीं कमा पाते, जितनी शेरा जैसे कई बौडीगार्ड की तनख्वाह है.

लेकिन शेरा का काम या जिम्मेदारी सिर्फ अपने बौस के साथ या आगेपीछे बुत जैसे खड़े रहने की नहीं है, बल्कि यह बेहद चुनौतीपूर्ण काम है जिसे शेरा 26 साल से बखूबी अंजाम दे रहे हैं.

सलमान जहां भी जाते हैं, वहां शेरा एक दिन पहले पहुंच कर जायजा लेते हैं. इस के लिए उन्हें कई किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता है.

सलमान के आते ही वह उन्हें जौइन कर लेते हैं और फिर पलभर को भी नहीं छोड़ते. शेरा के रहते सलमान किसी बात की चिंता नहीं करते, क्योंकि शेरा उन के फैंस को भी बड़ी सूझबूझ से मैनेज करते हैं.

असल में सलमान का बौडीगार्ड बनने से पहले शेरा हौलीवुड स्टार्स को सिक्योरटी दिया करते थे और साल 1993 में उन्होंने अपनी खुद की सिक्योरटी कंपनी खोली थी, जिस का नाम ‘टाइगर सिक्योरिटी’ था. यह कंपनी फिल्म स्टार्स को सिक्योरिटी उपलब्ध कराती थी. उन के क्लाइंट्स में अमिताभ बच्चन का नाम भी शुमार होता है.

यह वह दौर था, जब देश भर में धड़ल्ले से सिक्योरिटी कंपनियां खुल रहीं थीं और हर सेक्टर में सिक्योरिटी गार्ड्स की मांग बढ़ रही थी. लेकिन बौडीगार्ड केवल खास किस्म के लोगों की ही डिमांड और जरूरत थे.

किसी हस्ती का बौडीगार्ड बनने की काबिलियत केवल तगड़ा शरीर ही नहीं, बल्कि अक्ल की भी जरूरत रहती है कि सिचुएशन देखते आप में त्वरित निर्णय लेने की क्षमता कितनी और कैसी है.

शेरा इन मापदंडों पर लगातार खरे उतरते गए तो उन की चर्चा भी खूब होने लगी. जिस में शोहरत का तड़का सलमान खान अभिनीत फिल्म बौडीगार्ड से लगा.

बन जाते हैं फैमिली मेंबर

इस फिल्म के टाइटल ट्रैक में दोनों एक साथ डांस करते दिखे थे और इस से भी खास बात यह थी कि सलमान ने यह फिल्म शेरा को डेडिकेट की थी.

यह किसी नौकर को सम्मान देने की एक बेहतर मिसाल थी, जिस ने सलमान और शेरा को और नजदीक ला दिया. बाद में सलमान ने शेरा के बेटे टाइगर को सुलतान फिल्म का असिस्टेंट डायरेक्टर भी बनाया था.

अच्छेबुरे दिनों में साथ निभाने वाले शेरा अब सलमान के फैमिली मेंबर बन गए हैं तो यह कतई हैरानी की बात नहीं. ठीक यही

नामी ऐक्ट्रैस दीपिका पादुकोण के साथ भी हुआ, जो अपने बौडीगार्ड जलाल को भाई मानती हैं और रक्षाबंधन पर उन्हें राखी भी बांधती हैं.

नायकों से ज्यादा नायिकाओं को फैंस का खतरा रहता है क्योंकि वे ज्यादा जोश में उन के नजदीक पहुंच कर उन्हें छू लेना चाहते हैं.

अब वह दौर गया, जब 90 फीसदी फिल्मों की शूटिंग मुंबई के स्टूडियोज में हो जाया करती थी और सितारे बंद गाड़ी मैं बैठ कर सेट पर पहुंच जाया करते थे. जिस की किसी को भनक भी नहीं लगती थी सिवाय सितारों के सेक्रेट्रियों के, जिन की अहमियत बौडीगार्ड से कमतर नहीं थी.

फर्क इतना भर है कि सेक्रेट्री व्यावसायिक काम देखता है और बौडीगार्ड उन की हिफाजत का जिम्मा उठाता है. अब 90 फीसदी फिल्मों की शूटिंग देश के तमाम छोटेबड़े शहरों में होती है, इसलिए फिल्म स्टार्स को अपनी सुरक्षा की चिंता स्वाभाविक है.

साल 2018 में जब दीपिका पादुकोण ने रणवीर सिंह से इटली के लेक कोमो शहर में शादी की थी, तब लड़की वालों की तरफ से प्रमुखता से जलाल वहां मौजूद थे.

हालांकि जलाल की सैलरी शेरा से आधी ही है, लेकिन वह दीपिका जैसी स्टार की हिफाजत में इतने से ही खुश हैं. यह खुशी दरअसल समय के साथसाथ बांडिंग बढ़ते जाने की भी है, जो एक खास तरह का भावनात्मक संबंध भी बना देती है फिर पैसा खास माने नहीं रखता.

यही हाल शाहरुख खान और उन के बौडीगार्ड रवि सिंह का है, जो 10 साल से साथ हैं. शाहरुख खान की हर छोटीबड़ी खुशी और फंक्शन में दिखने वाले रवि को शेरा से भी ज्यादा सैलरी मिलती है तकरीबन 2.75 करोड़ रुपए सालाना, जो फिल्म इंडस्ट्री में सब से ज्यादा है.

लेकिन रवि शेरा की तरह लोकप्रिय नहीं हैं, शायद इसलिए भी कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय नहीं रहते. उलट इस के जलाल भी जब कभीकभार दीपिका की तसवीरें शेयर करते हैं तो उन की फैन फालोइंग बढ़ जाती है. आजकल के दौर में इस से बड़ा सुख और कोई है भी नहीं कि सोशल मीडिया पर आप के कितने ज्यादा फालोअर्स हैं.

हिफाजत की तगड़ी कीमत

सलमान, दीपिका और शाहरुख के अलावा तमाम बड़े फिल्म स्टार्स हिफाजत की कितनी कीमत अपने बौडीगार्ड्स को अदा करते हैं, इस पर नजर डालें तो आखें फटी रह जाती हैं. सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की एक झलक पाने को प्रशंसक बेताब रहते हैं, जो उन्हें नजदीक से एक बार देख और छू लेता है उस की तो मानो जिंदगी धन्य हो जाती है.

लेकिन लोग उन तक न पहुंचें और पहुंचें तो कैसे पहुंचें, यह तय करते हैं. उन के बौडीगार्ड जितेंद्र शिंदे जो अमिताभ को घेरे रखने के डेढ़ करोड़ रुपए सालाना लेते हैं और अमिताभ खुशीखुशी देते भी हैं.

आमिर खान के बौडीगार्ड युवराज घोरपडे की सैलरी 2 करोड़ रुपए सालाना है. युवराज पूरी मुस्तैदी से आमिर के इर्दगिर्द नजर आते हैं. कई बार आमिर गुपचुप यात्राएं करते हैं, जिन की खबर सिर्फ युवराज को ही रहती है.

इन दोनों का साथ भी सालों का है और आमिर खान की विदेश यात्राओं में भी युवराज उन के साथ रहते हैं. युवराज की यह खूबी है कि वह आमिर के बिना कहे काफी कुछ समझ जाते हैं और एक बड़े सेलिब्रेटी का पर्सनल बौडीगार्ड होने का सोशल मीडिया पर ज्यादा ढिंढोरा नहीं पीटते. आमिर खान के पास सिक्योरिटी की बड़ी टीम है, जिस के मुखिया युवराज हैं.

श्री के नाम से मशहूर श्रेयस ठेले अपने बौस अक्षय कुमार की तरह ही फिट और तेजतर्रार हैं और हमेशा उन के साथ दिखते हैं. अक्षय के बेटे आरव की हिफाजत की भी जिम्मेदारी श्रेयस निभाते हैं. इस के एवज में उन्हें कोई सवा करोड़ रुपए सालाना मिलते हैं.

आमिर की तरह अक्षय भी इस भरोसेमंद और वफादार बौडीगार्ड को विदेशों में भी साथ रखते हैं और उन का पूरा खयाल रखते हैं. क्योंकि श्रेयस के रहते 15 साल में उन्हें कभी दुश्वारी का सामना नहीं करना पड़ा.

इन दोनों की बांडिंग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अक्षय श्रेयस को राजू नाम से पुकारते हैं.

क्रिकेटर विराट कोहली की अभिनेत्री पत्नी अनुष्का शर्मा ने भी अपने बौडीगार्ड प्रकाश सिंह को सोनू नाम दे रखा है. अकसर ग्रे कलर का सूट पहने रहने वाले सोनू की यह अहम जिम्मेदारी है कि कोई अनुष्का को टच भी न कर ले.

अनुष्का और विराट दोनों सोनू को फैमिली मेंबर की तरह ही ट्रीट करते हैं. गौरतलब है कि विराट की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सोनू के कंधों पर है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सोनू अपनी मालकिन की सुरक्षा के लिए पीपीई किट पहने रहते थे. उन की सैलरी भी सवा करोड़ है.

इसी तरह श्रद्धा कपूर अपने बौडीगार्ड अतुल कांबले को 80 लाख रुपए सालाना देती हैं तो वहीं कैटरीना कैफ अपने बौडीगार्ड दीपक सिंह को साल भर में एक करोड़ रुपए पगार देती हैं. सनी लियोनी भी अपनी हिफाजत के लिए रखे यूसुफ इब्राहीम को डेढ़ करोड़ रुपए सालाना सैलरी के रूप में देती हैं.

इसलिए जरूरी हैं बौडीगार्ड

तमाम नामी फिल्म स्टार्स बौडीगार्ड रखते हैं क्योंकि उन्हें हिफाजत की गारंटी चाहिए रहती है. फिल्म इंडस्ट्री में अगर बेशुमार दौलत और शोहरत है तो खतरे भी कम नहीं हैं.

अकसर बड़ा खतरा ज्यादा नजदीक रहता है, इसलिए बौडीगार्ड्स को मुंहमांगी सैलरी दी जाती है. क्योंकि इन अंगरक्षकों को बौस से पहले जागना और बाद में सोना नसीब होता है. चौकन्नापन बौडीगार्ड्स की एक अतिरिक्त खूबी होती है. यानी जितना पैसा वे लेते हैं उतना सुखचैन उन्हें छोड़ना भी पड़ता है.

अभी तक अच्छी बात यह है कि तमाम फिल्मी बौडीगार्ड अपने मालिकों के प्रति वफादार रहे हैं और फिल्म स्टार्स ने भी तगड़ी पगार के अलावा उन्हें अपनापन और सम्मान दोनों बराबरी से दिए हैं. क्योंकि वे समझते हैं कि जो काम बौडीगार्ड्स करते हैं, उस में आराम कम काम ज्यादा है.

इन फिल्मी सितारों के लिए यह सोचना बेमानी है कि बौडीगार्ड रखना कोई स्टेटस सिंबल है बल्कि यह उन की खासी जरूरत है, जिसे पूरा करने के लिए वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा इन्हें देते हैं.

रियल लाइफ में बॉलीवुड एक्ट्रेस का तवायफ का किरदार

बौलीवुड की तमाम शीर्ष और सफल अभिनेत्रियां कभी न कभी तवायफ या वेश्या के किरदार में जरूर नजर आई हैं. यहां तक कि स्वस्थ पारिवारिक भूमिकाओं के लिए पहचानी जाने वाली जया बच्चन भी इस से अछूती नहीं रह पाईं.

साल 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘बंसी बिरजू’ में वह तवायफ के रोल में नजर आई थीं. इस फिल्म में उन के अपोजिट अमिताभ बच्चन थे, जो उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए हाथपैर मार रहे थे. ‘बंसी बिरजू’ अच्छे विषय पर आधारित होने के बाद भी चली नहीं और इस के बाद जया बच्चन ने इस शेड को नहीं दोहराया.

तवायफ समाज का जरूरी और महत्त्वपूर्ण हिस्सा शुरू से ही रही है, जिसे फिल्मों में तरहतरह से दिखाया गया है. मीना कुमारी की ‘पाकीजा’ से ले कर रेखा की ‘उमराव जान’ तक फिल्मी तवायफों ने दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.

रेखा ने तो रिकौर्ड दरजन भर फिल्मों में तवायफ की भूमिका निभाई है. ‘मुकद्दर का सिकंदर’ की जोहरा बाई लोगों के जेहन में लंबे वक्त तक बसी रही थी और नीचे के दर्शकों की पहली पसंद थी. पूजा भट्ट ने ‘सड़क’ फिल्म से वाहवाही बटोरी थी तो अपने करियर के उठाव के दौरान रति अग्निहोत्री ने भी ‘तवायफ’ फिल्म से अपने अभिनय की तारीफ उस समय आम दर्शक से करवा ली थी.

इस सवाल का जबाब ढूंढना बड़ा मुश्किल काम है कि क्यों तवायफ की भूमिका लगभग हर किसी एक्ट्रैस ने निभाई और उस रोल में दर्शकों ने उसे पसंद भी किया. फिर वो विद्या बालन अभिनीत ‘बेगम जान’ हो या फिर शर्मीला टैगोर की ‘आराधना’ हो, जिस में एक तवायफ के अंदर की ममता को दर्शक कभी भूल नहीं पाए.

बात सिर्फ इन मानवीय और स्त्रियोचित संवेदनाओं की ही नहीं है, बल्कि तवायफों की भूमिका से जुड़ा एक दिलचस्प सच यह भी है कि इस में अभिनय प्रतिभा के प्रदर्शन की संभानाएं दूसरी किसी भूमिका से ज्यादा रहती हैं. यानी अभिनय की संपूर्णता इसी से है.

सच जो भी हो, पर हर फिल्म में यह भी दिखाया गया कि कोई भी औरत अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनती, बल्कि मर्दों के दबदबे वाला समाज उसे किसी कोठे की जीनत बनने को मजबूर कर देता है या फिर वह सिर्फ पेट पालने या घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए इस घृणित और गंदे पेशे में आई.

यानी यह बात हवाहवाई और फिजूल की है कि हर औरत के अंदर एक वेश्या या तवायफ होती है. हां, यह जरूर हर कोई मानता है कि एक तवायफ के अंदर एक औरत का वजूद हमेशा रहता है. फिल्मों के मद्देनजर तवायफ और वेश्या में एक बड़ा मौलिक फर्क यह है कि जरूरी नहीं कि हर तवायफ जिस्मफरोशी करती ही हो.

जिस्मफरोशी के धंधे पर बनी पहली सार्थक फिल्म ‘मंडी’ थी, जिस में शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और नीना गुप्ता जैसी सधी अभिनेत्रियां थीं. श्याम बेनेगल की इस फिल्म का भी अपना अलग फ्लेवर था, जो यह तो एहसास करा गया था कि सभ्य समाज और राजनीति भी देहव्यापार के कितने नजदीक हैं. और नजदीक भी क्या, दरअसल उस का ही तिरस्कृत हिस्सा है, शरीर का ऐसा अंग है जो काट कर फेंक दिए जाने के बाद भी जिंदा रहता है.

चेतना से आई क्रांति

‘मंडी’ से भी 13 साल पहले 1970 में बी.आर. इशारा निर्देशित फिल्म ‘चेतना’ प्रदर्शित हुई थी. रेहाना सुलताना और अनिल धवन अभिनीत इस फिल्म में एक वेश्या अपने प्रेमी के साथ घर बसाने का फैसला कर लेती है लेकिन सफल नहीं हो पाती.

रेहाना ने कालगर्ल के रोल में जान डाल दी थी. उस समय इस फिल्म के बोल्ड सीन काफी चर्चित हुए थे और लोगों को समझ आया था कि एक मौडल कैसे पैसा कमाने के लिए दूसरों की रातें रंगीन करती है और दिन में धर्मस्थलों में माथा टेकती रहती है.

बौक्स औफिस पर पैसा बरसाने बाली ‘चेतना’ फिल्म की दूसरी खूबी यह थी कि इस ने देहव्यापार के धंधे के नए तौरतरीके उधेड़ कर रख दिए थे. 1970 के दशक में कोठे उजड़ने लगे थे और शहर के बदनाम इलाके आबाद होने लगे थे. इसी दौर में कालगर्ल्स की खेप आनी शुरू हो गई थी, जो मौडर्न और स्टाइलिश होती हैं. वे अपनी मरजी से धंधा करती हैं और अपनी फीस से कोई समझौता नहीं करतीं.

यह कालगर्ल पढ़ीलिखी थोड़ी दार्शनिक और थोड़ीथोड़ी बुद्धिजीवी भी होती थीं, जो ग्राहक के साथ मांग पर सैरसपाटे के लिए भी चली जाती थीं. खूबी यह भी थी और है भी कि कालगर्ल इसे एक बेहतर वैकल्पिक प्रोफेशन मानती है और किसी तरह का अपराधबोध नहीं रखती. वह भावनात्मक के साथसाथ पुरुष के सैक्स स्वभाव और जरूरत को भी समझती है, जो इस पेशे की एक जरूरी और अच्छी बात भी है.

रेहाना सुलताना का फिल्मी सफर बहुत लंबा नहीं चला. ‘चेतना’ के बाद वह कम ही फिल्मों में दिखीं. लेकिन जातेजाते युवतियों के लिए यह मैसेज दे गईं कि मौडलिंग और फिल्मी दुनिया में जिस्म को दांव पर लगा कर भी जगह बनाई जा सकती है. जरूरत है बस थोड़े से टैलेंट, खूबसूरती और बड़े जोखिम उठाने की हिम्मत की.

70 के दशक में देश भर से एक्ट्रैस बनने के लिए लड़कियां मुंबई की ट्रेन पकड़ने लगी थीं. इन में से कुछ जगह बना पाने में कामयाब हुईं और कई गुमनामी और कमाठीपुरा जैसे बदनाम रेड लाइट इलाके की गलियों की खिड़की से झांकते ग्राहकों को इशारे करती नजर आईं.

मुंबई की चकाचौंध और दौलत व शोहरत की कशिश कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. हीरोइन बनने के लालच में आई अनेक युवतियां कोई भी समझौता करने लगीं. लेकिन मिलने के नाम पर अधिकांश को सी ग्रेड या एक्स्ट्रा के रोल मिले, इस के एवज में भी उन्हें निर्मातानिर्देशकों और दलालों का बिस्तर गर्म करना पड़ा.

स्याह पहलू श्वेता का

ऐसी ही एक एक्ट्रैस है श्वेता बसु प्रसाद, जिस ने इसी साल जनवरी में जिंदगी के 30 साल पूरे किए हैं. श्वेता हालांकि कोई बड़ा या जानामाना नाम नहीं है लेकिन प्रतिभा उस में है, जिसे उस ने साबित भी किया. महत्त्वाकांक्षी श्वेता ने पत्रकारिता का भी कोर्स किया है और कुछ दिन एक मशहूर अखबार में लेखन भी किया.

जमशेदपुर के मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती इस खूबसूरत लड़की ने पहली बार बाल कलाकार के रूप में ‘मकड़ी’ फिल्म में काम किया था. साल 2002 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म के निर्मातानिर्देशक विशाल भारद्वाज थे. भूतप्रेत वाली इस फिल्म में श्वेता चुन्नी और मुन्नी नाम की जुड़वां बहनों के रोल में खासी सराही गई थी.

उसे सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था. इस के बाद उस ने कुछ तमिल, तेलुगू और बंगाली फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उम्मीद के मुताबिक उसे नाम और दाम नहीं मिला. कुछ टीवी धारावाहिकों में भी वह नजर आई लेकिन इस से भी उस के डगमगाते करियर को सहारा नहीं मिला.

देह व्यापार में क्यों आई श्वेता

छोटेमोटे रोल करती श्वेता को लोग भूल ही चले थे कि साल 2014 में हैदराबाद से एक सनसनीखेज खबर आई कि मशहूर एक्ट्रैस श्वेता प्रसाद बंजारा हिल इलाके के एक बड़े होटल से देहव्यापार करती हुई पकड़ी गई.

बात सच थी गिरफ्तारी के बाद उसे सुधारगृह भेज दिया गया, जहां वह बच्चों को संगीत और कला का प्रशिक्षण देती रही. मीडिया और बौलीवुड में वह उत्सुकता और आकर्षण का विषय बन गई. हर कोई जानना चाह रहा था कि वह इस घृणित पेशे में क्यों आई.

इन्हीं दिनों में श्वेता का एक बयान खूब वायरल हुआ था, जिस में वह यह कहती नजर आ रही थी कि मैं अपने ही कुछ गलत फैसलों के चलते कंगाल हो गई थी. मुझे अपने परिवार को भी संभालना था और कुछ अच्छे काम भी करने थे. लेकिन मेरे लिए सारे दरवाजे बंद थे, इसलिए कुछ लोगों ने मुझे वेश्यावृत्ति का रास्ता दिखाया. मैं कुछ नहीं कर सकती थी और न ही मेरे पास कोई और चारा था, इसलिए मैं ने यह काम किया.

सुधारगृह से छूटने के बाद वह इस बयान से मुकर गई और नएनए बयान देती रही, जिन के कोई खास मायने नहीं थे. लेकिन दाद देनी होगी श्वेता की हिम्मत और आत्मविश्वास को, जो वह देहव्यापार के आरोप में पकड़े जाने के बाद भी टूटी नहीं और उसे जो भी रोल मिला, वह उस ने स्वीकार लिया.

साल 2018 में उस ने फिल्मकार रोहित मित्तल से शादी की, लेकिन एक साल बाद ही वह टूट गई. ‘चेतना’ फिल्म की सीमा और श्वेता की असल जिंदगी में काफी समानताएं दिखती हैं, पर फिल्म के और जिंदगी के दुखांत में जमीन आसमान का अंतर होता है, जो दिख भी रहा है.

वेश्या होने का दाग आसानी से नहीं धुलने वाला पर श्वेता अभी भी जिस लगन से काम कर रही है. उस के लिए वह शुभकामनाओं की हकदार तो है कि कड़वा अतीत भूल कर मकड़ी जैसा कारनामा एक बार फिर कर दिखाए.

कड़वी मिष्ठी

श्वेता को तो हैदराबाद सेशन कोर्ट ने देह व्यापार के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया था, लेकिन सन 2014 में ही एक और एक्ट्रैस मय पुख्ता सबूतों के देहव्यापार के आरोप में रंगेहाथों धरी गई थी, जिस का नाम था मिष्ठी मुखर्जी. भरेपूरे गुदाज बदन की मालकिन मिष्ठी थी तो बंगाली फिल्मों की सी ग्रेड की अभिनेत्री, लेकिन 2012 में राकेश मेहता निर्देशित एक हिंदी फिल्म ‘लाइफ की तो लग गई’ में वह नजर आई थी और मुंबई में ही बस गई थी.

हैरानी की बात यह है कि इस फिल्म की समीक्षाओं में कहीं उस का जिक्र नहीं हुआ. मिष्ठी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. मुंबई के पौश मीरा टावर के सी विंग में फ्लैट नंबर 502 में वह परिवार सहित रह रही थी. इस फ्लैट का किराया ही 80 हजार रुपए महीना था.

मिष्ठी आलीशान जिंदगी जी रही थी. मीरा टावर में लगभग 75 फ्लैट्स आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के हैं. इस अपार्टमेंट में हंगामा 9 जनवरी, 2014 को तब मचा था, जब एक छापामार काररवाई में ओशिवरा पुलिस ने मिष्ठी को अपने बौयफ्रैंड दिल्ली के फैशन डिजाइनर राकेश कटारिया के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था.

इस छापे में पुलिस ने कोई ढाई लाख ब्लू फिल्मों की सीडी बरामद की थीं. पुलिस के मुताबिक ये सीडी दक्षिण भारत से ला कर मुंबई और ठाणे में बेची जाती थीं. देह व्यापार में सहयोग देने के आरोप में पुलिस ने मिष्ठी, उस की मां सहित पिता चंद्रकांत मुखर्जी और भाई समरत को भी गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक इस फ्लैट का इस्तेमाल ब्लू फिल्में बनाने में भी किया जाता था.

बाद में मिष्ठी और उस के परिवारजनों ने सफाई दी थी, लेकिन तब तक एक और एक्ट्रैस के दामन में जिस्मफरोशी का दाग लग चुका था. इस मुकदमे का फैसला हो पाता, इस के पहले ही महज 27 साल की उम्र में मिष्ठी किडनी फेल हो जाने से 4 अक्तूबर, 2020 को इस दुनिया से चल बसी.

लोगों को इस कांड के अलावा यह भर याद रहा कि उस ने कुछ क्षेत्रीय फिल्मों सहित हिंदी फिल्म ‘मैं कृष्णा हूं’ में एक गाना गाया था.

बाद में अंदाजा भर लगाया गया, जो सच के काफी करीब है कि अगर वह ब्लू फिल्मों का कारोबार कर रही थी या सैक्स रैकेट चला रही थी तो अपने परिवार के खर्चे पूरे करने के लिए इस गैरकानूनी रास्ते पर चल पड़ी थी.

ऐश के ऐश

ऐसा ही रास्ता दक्षिण भारत की उभरती एक्ट्रैस ऐश अंसारी ने भी चुना था, जो साल 2013 में जोधपुर के तख्त विलास होटल में रंगेहाथों जिस्मफरोशी करते पकड़ी गई थी. इस छापे में 9 लोग पकड़े गए थे. यह भी एक हाइटेक मामला था और औनलाइन चलता था.

पुलिस के मुताबिक, ऐश अपने ग्राहकों को खुश करने गई थी और इस गिरोह का हिस्सा थी. सैक्सी ऐश ने बचाव में शाहरुख खान के साथ अपनी कुछ तसवीरें पुलिस को दिखाई थीं, जो जाहिर है एक बचकानी और फिजूल की बात थी.

दरअसल, वह शाहरुख खान के साथ  ‘ओम शांति ओम’ और ‘चलते चलते’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी थी. इस के अलावा उस ने साउथ की भी कुछ फिल्मों में काम किया है. ‘बूम बूम’ नाम के म्यूजिक वीडियो से भी उस ने धूम मचाई थी.

ऐश ने यह रास्ता परिवार के लिए नहीं, बल्कि जल्द अमीर बनने के चक्कर में चुना था. लेकिन पकडे़ जाने के बाद वह ऐसी गायब हुई कि फिर फिल्मों में नजर नहीं आई. मुमकिन है उस का जमीर उसे कचोटने लगा हो.

ऐश में एक खास बात सैक्सी फिगर के साथसाथ उस के असामान्य उभार हैं जो किसी को भी पागल और मदहोश कर देने के लिए काफी हैं. देह के शौकीनों में उस की डिमांड ज्यादा थी और इस की कीमत वह वसूल भी रही थी.

घर को ही बनाया अड्डा

पर्यटन स्थलों के रिसोर्ट और भव्य होटलों के अलावा कुछ अभिनेत्रियों ने घर से देह व्यापार करना ज्यादा सुरक्षित समझा. इन में एक उल्लेखनीय नाम साउथ की ही भुवनेश्वरी का है, जो अब से 20 साल पहले तक एक उभरता नाम हुआ करता था. अक्तूबर, 2009 में एक छापे में उसे चेन्नई में गिरफ्तार किया गया था.

बोल्ड सीन देने के लिए पहचानी जाने वाली इस खूबसूरत बला और बाला के गिरोह में कई और सी ग्रेड की एक्ट्रैस भी शामिल थीं. भुवनेश्वरी ने टीवी धारावाहिकों से भी नाम कमाया था.  रियल लाइफ में देहव्यापार करने वाली इस एक्ट्रैस ने रील लाइफ में भी वेश्या का किरदार तमिल फिल्म ‘लड़के’ में निभाया था.

अब 46 की हो चुकी भुवनेश्वरी भी गायब है, जिस ने फिल्मों से ज्यादा नाम और दाम वेश्यावृत्ति से कमाया और इसे बेहद सहजता से उस ने लिया और जिया.

दक्षिण भारतीय फिल्मों की वैंप के खिताब से नवाजी गई इस एक्ट्रैस ने कभी दुनिया जहान का लिहाज नहीं किया. उस पर भी कभी देहव्यापार के आरोप अदालत में साबित नहीं हो पाए, लेकिन बदनामी से वह खुद को बचा नहीं पाई.

28 साल की होने जा रही तमिल और तेलुगू फिल्मों की अभिनेत्री श्री दिव्या भी घर से ही सैक्स रैकेट चलाते पकड़ी गई थी.  ‘बीटेक बाबू’ उस के करियर की चर्चित फिल्म थी. महज 3 साल की उम्र से परदे पर पांव रख चुकी इस हौट एक्ट्रैस ने कोई डेढ़ दरजन फिल्मों में काम किया, जिन में से कुछ में उस ने अपने अभिनय की छाप भी छोड़ी.

साल 2014 में पड़े गुंटूर के चर्चित छापे में पकड़ी गई दिव्या को कुदरत ने अजीम खूबसूरती से नवाजा भी है. लेकिन ज्यादा  पैसों के लालच से वह भी नहीं बच सकी.

पतली कमर वाली दिव्या भी गिरोहबद्ध तरीके से जिस्मफरोशी के कारोबार में गले तक डूब चुकी थी. छापे में कई दूसरी मौडल और एक्ट्रैस मय ग्राहकों के पकड़ी गई थीं.

शर्म से दूर शर्लिन चोपड़ा

हैदराबादी गर्ल के नाम से मशहूर हुई शर्लिन चोपड़ा फिल्मों से कम, गरमागरम फोटो सेशन और हर कभी वायरल होते अपने कामुक वीडियोज के चलते ज्यादा जानीपहचानी जाती है. विवादों में रहना उस का खास शगल है. प्लेबौय मैगजीन के लिए नग्न फोटो देने वाली 37 वर्षीया इस एक्ट्रैस ने फिल्मों से ज्यादा गौसिप से अपनी पहचान बनाई.

रूपेश पाल की थ्री डी फिल्म ‘कामसूत्र’ में उस ने उन्मुक्त दृश्य दिए हैं. रियल्टी शो बिग बौस सीजन-3 की प्रतिभागी भी वह रह चुकी है. उस के नाम छोटे बजट की 3 फिल्में ‘टाइम पास’, ‘रेड स्वास्तिक’ और ‘गेम’ ही हैं जो न के बराबर चलीं.

मौडलिंग से अपने करियर की शुरुआत करने वाली शर्लिन कभी देह व्यापार के किसी छापे में तो नहीं पकड़ी गई, बल्कि उस ने खुद ही उजागर किया था कि वह देह व्यापार करती है और पैसों के लिए कई मर्दों के साथ उस ने सैक्स किया है. सुर्खियों में बने रहने को ऐसे कई विवादों से उस ने खुद को जोड़े रखा.

फिल्मकार साजिद खान पर आरोप लगाते हुए उस ने अप्रैल 2015 में कहा था कि एक मुलाकात में साजिद ने पेंट से अपना प्राइवेट पार्ट निकाल कर उसे छूने के लिए कहा था. तब उस ने बिना घबराए साजिद को कहा था कि मैं जानती हूं कि प्राइवेट पार्ट कैसा होता है और उन से मिलने का उस का ऐसा कोई मकसद या इरादा नहीं है.

इस बयान से फिल्म इंडस्ट्री में तहलका मच गया था, जो सच और झूठ की बाउंड्री लाइन पर खड़ा था. यानी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा होना न तो नामुमकिन है और न ही ऐसा होने पर कोई मौडल एक्ट्रैस ऐसी आपबीती इतने खुले लफ्जों में बयां कर सकती है.

नैतिकता तो लोगों की निगाह में यह है कि ऐसा किसी लड़की के साथ हो भी तो उसे खामोश रहना चाहिए. शर्लिन ने दो टूक कहा तो इसे पब्लिसिटी स्टंट कह कर हवा में उड़ा दिया गया.

रियल और रील में फर्क

दरजनों और ऐसी फिल्म एक्ट्रैस हैं, जो देहव्यापार करते पकड़ी गई हैं. दिलचस्प बात यह है कि ये सभी सी ग्रेड की असफल और महत्त्वाकांक्षी युवतियां हैं. लगभग सभी ने रियल लाइफ में यह किरदार निभाया तो इस की वजह साफ है कि पैसा कमाने का इस से बेहतर शार्टकट और कोई है भी नहीं.

लग्जरी जिंदगी जीने की आदी इन नायिकाओं के पास अपने खर्च पूरे करने का कोई दूसरा जरिया होता भी नहीं. परदे पर इन्हें देख चुके शौकीन पैसे वाले भी मुंहमांगे दाम इन्हें देने को तैयार रहते हैं. इन तवायफों को एक रात का अपने नाम, हैसियत और शोहरत के मुताबिक एक से 5 लाख रुपया तक मिलता भी है.

अब तो बी ग्रेड के शहरों में भी इन की मांग बढ़ने लगी है और ये वहां जाती भी हैं. आनेजाने, हवाई जहाज और फाइवस्टार होटलों में ठहरने का खर्च या तो ग्राहक उठाता है या फिर वह दलाल, जो इन के और ग्राहक के बीच कड़ी का काम करता है. ठीक वैसे ही जैसे ‘चेतना’ फिल्म में रेहाना सुलताना के लिए एक दलाल करता था.

रियल लाइफ में तवायफ का किरदार – भाग 3

पुलिस के मुताबिक, ऐश अपने ग्राहकों को खुश करने गई थी और इस गिरोह का हिस्सा थी. सैक्सी ऐश ने बचाव में शाहरुख खान के साथ अपनी कुछ तसवीरें पुलिस को दिखाई थीं, जो जाहिर है एक बचकानी और फिजूल की बात थी.

दरअसल, वह शाहरुख खान के साथ  ‘ओम शांति ओम’ और ‘चलते चलते’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी थी. इस के अलावा उस ने साउथ की भी कुछ फिल्मों में काम किया है. ‘बूम बूम’ नाम के म्यूजिक वीडियो से भी उस ने धूम मचाई थी.

ऐश ने यह रास्ता परिवार के लिए नहीं, बल्कि जल्द अमीर बनने के चक्कर में चुना था. लेकिन पकडे़ जाने के बाद वह ऐसी गायब हुई कि फिर फिल्मों में नजर नहीं आई. मुमकिन है उस का जमीर उसे कचोटने लगा हो.

ऐश में एक खास बात सैक्सी फिगर के साथसाथ उस के असामान्य उभार हैं जो किसी को भी पागल और मदहोश कर देने के लिए काफी हैं. देह के शौकीनों में उस की डिमांड ज्यादा थी और इस की कीमत वह वसूल भी रही थी.

घर को ही बनाया अड्डा

पर्यटन स्थलों के रिसोर्ट और भव्य होटलों के अलावा कुछ अभिनेत्रियों ने घर से देह व्यापार करना ज्यादा सुरक्षित समझा. इन में एक उल्लेखनीय नाम साउथ की ही भुवनेश्वरी का है, जो अब से 20 साल पहले तक एक उभरता नाम हुआ करता था. अक्तूबर, 2009 में एक छापे में उसे चेन्नई में गिरफ्तार किया गया था.

बोल्ड सीन देने के लिए पहचानी जाने वाली इस खूबसूरत बला और बाला के गिरोह में कई और सी ग्रेड की एक्ट्रैस भी शामिल थीं. भुवनेश्वरी ने टीवी धारावाहिकों से भी नाम कमाया था.  रियल लाइफ में देहव्यापार करने वाली इस एक्ट्रैस ने रील लाइफ में भी वेश्या का किरदार तमिल फिल्म ‘लड़के’ में निभाया था.

अब 46 की हो चुकी भुवनेश्वरी भी गायब है, जिस ने फिल्मों से ज्यादा नाम और दाम वेश्यावृत्ति से कमाया और इसे बेहद सहजता से उस ने लिया और जिया.

दक्षिण भारतीय फिल्मों की वैंप के खिताब से नवाजी गई इस एक्ट्रैस ने कभी दुनिया जहान का लिहाज नहीं किया. उस पर भी कभी देहव्यापार के आरोप अदालत में साबित नहीं हो पाए, लेकिन बदनामी से वह खुद को बचा नहीं पाई.

28 साल की होने जा रही तमिल और तेलुगू फिल्मों की अभिनेत्री श्री दिव्या भी घर से ही सैक्स रैकेट चलाते पकड़ी गई थी.  ‘बीटेक बाबू’ उस के करियर की चर्चित फिल्म थी. महज 3 साल की उम्र से परदे पर पांव रख चुकी इस हौट एक्ट्रैस ने कोई डेढ़ दरजन फिल्मों में काम किया, जिन में से कुछ में उस ने अपने अभिनय की छाप भी छोड़ी.

साल 2014 में पड़े गुंटूर के चर्चित छापे में पकड़ी गई दिव्या को कुदरत ने अजीम खूबसूरती से नवाजा भी है. लेकिन ज्यादा  पैसों के लालच से वह भी नहीं बच सकी.

पतली कमर वाली दिव्या भी गिरोहबद्ध तरीके से जिस्मफरोशी के कारोबार में गले तक डूब चुकी थी. छापे में कई दूसरी मौडल और एक्ट्रैस मय ग्राहकों के पकड़ी गई थीं.

शर्म से दूर शर्लिन चोपड़ा

हैदराबादी गर्ल के नाम से मशहूर हुई शर्लिन चोपड़ा फिल्मों से कम, गरमागरम फोटो सेशन और हर कभी वायरल होते अपने कामुक वीडियोज के चलते ज्यादा जानीपहचानी जाती है. विवादों में रहना उस का खास शगल है. प्लेबौय मैगजीन के लिए नग्न फोटो देने वाली 37 वर्षीया इस एक्ट्रैस ने फिल्मों से ज्यादा गौसिप से अपनी पहचान बनाई.

रूपेश पाल की थ्री डी फिल्म ‘कामसूत्र’ में उस ने उन्मुक्त दृश्य दिए हैं. रियल्टी शो बिग बौस सीजन-3 की प्रतिभागी भी वह रह चुकी है. उस के नाम छोटे बजट की 3 फिल्में ‘टाइम पास’, ‘रेड स्वास्तिक’ और ‘गेम’ ही हैं जो न के बराबर चलीं.

मौडलिंग से अपने करियर की शुरुआत करने वाली शर्लिन कभी देह व्यापार के किसी छापे में तो नहीं पकड़ी गई, बल्कि उस ने खुद ही उजागर किया था कि वह देह व्यापार करती है और पैसों के लिए कई मर्दों के साथ उस ने सैक्स किया है. सुर्खियों में बने रहने को ऐसे कई विवादों से उस ने खुद को जोड़े रखा.

फिल्मकार साजिद खान पर आरोप लगाते हुए उस ने अप्रैल 2015 में कहा था कि एक मुलाकात में साजिद ने पेंट से अपना प्राइवेट पार्ट निकाल कर उसे छूने के लिए कहा था. तब उस ने बिना घबराए साजिद को कहा था कि मैं जानती हूं कि प्राइवेट पार्ट कैसा होता है और उन से मिलने का उस का ऐसा कोई मकसद या इरादा नहीं है.

इस बयान से फिल्म इंडस्ट्री में तहलका मच गया था, जो सच और झूठ की बाउंड्री लाइन पर खड़ा था. यानी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा होना न तो नामुमकिन है और न ही ऐसा होने पर कोई मौडल एक्ट्रैस ऐसी आपबीती इतने खुले लफ्जों में बयां कर सकती है.

नैतिकता तो लोगों की निगाह में यह है कि ऐसा किसी लड़की के साथ हो भी तो उसे खामोश रहना चाहिए. शर्लिन ने दो टूक कहा तो इसे पब्लिसिटी स्टंट कह कर हवा में उड़ा दिया गया.

रियल और रील में फर्क

दरजनों और ऐसी फिल्म एक्ट्रैस हैं, जो देहव्यापार करते पकड़ी गई हैं. दिलचस्प बात यह है कि ये सभी सी ग्रेड की असफल और महत्त्वाकांक्षी युवतियां हैं. लगभग सभी ने रियल लाइफ में यह किरदार निभाया तो इस की वजह साफ है कि पैसा कमाने का इस से बेहतर शार्टकट और कोई है भी नहीं.

लग्जरी जिंदगी जीने की आदी इन नायिकाओं के पास अपने खर्च पूरे करने का कोई दूसरा जरिया होता भी नहीं. परदे पर इन्हें देख चुके शौकीन पैसे वाले भी मुंहमांगे दाम इन्हें देने को तैयार रहते हैं. इन तवायफों को एक रात का अपने नाम, हैसियत और शोहरत के मुताबिक एक से 5 लाख रुपया तक मिलता भी है.

अब तो बी ग्रेड के शहरों में भी इन की मांग बढ़ने लगी है और ये वहां जाती भी हैं. आनेजाने, हवाई जहाज और फाइवस्टार होटलों में ठहरने का खर्च या तो ग्राहक उठाता है या फिर वह दलाल, जो इन के और ग्राहक के बीच कड़ी का काम करता है. ठीक वैसे ही जैसे ‘चेतना’ फिल्म में रेहाना सुलताना के लिए एक दलाल करता था.

रियल लाइफ में तवायफ का किरदार – भाग 2

स्याह पहलू श्वेता का

ऐसी ही एक एक्ट्रैस है श्वेता बसु प्रसाद, जिस ने इसी साल जनवरी में जिंदगी के 30 साल पूरे किए हैं. श्वेता हालांकि कोई बड़ा या जानामाना नाम नहीं है लेकिन प्रतिभा उस में है, जिसे उस ने साबित भी किया. महत्त्वाकांक्षी श्वेता ने पत्रकारिता का भी कोर्स किया है और कुछ दिन एक मशहूर अखबार में लेखन भी किया.

जमशेदपुर के मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती इस खूबसूरत लड़की ने पहली बार बाल कलाकार के रूप में ‘मकड़ी’ फिल्म में काम किया था. साल 2002 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म के निर्मातानिर्देशक विशाल भारद्वाज थे. भूतप्रेत वाली इस फिल्म में श्वेता चुन्नी और मुन्नी नाम की जुड़वां बहनों के रोल में खासी सराही गई थी.

उसे सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था. इस के बाद उस ने कुछ तमिल, तेलुगू और बंगाली फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उम्मीद के मुताबिक उसे नाम और दाम नहीं मिला. कुछ टीवी धारावाहिकों में भी वह नजर आई लेकिन इस से भी उस के डगमगाते करियर को सहारा नहीं मिला.

देह व्यापार में क्यों आई श्वेता

छोटेमोटे रोल करती श्वेता को लोग भूल ही चले थे कि साल 2014 में हैदराबाद से एक सनसनीखेज खबर आई कि मशहूर एक्ट्रैस श्वेता प्रसाद बंजारा हिल इलाके के एक बड़े होटल से देहव्यापार करती हुई पकड़ी गई.

बात सच थी गिरफ्तारी के बाद उसे सुधारगृह भेज दिया गया, जहां वह बच्चों को संगीत और कला का प्रशिक्षण देती रही. मीडिया और बौलीवुड में वह उत्सुकता और आकर्षण का विषय बन गई. हर कोई जानना चाह रहा था कि वह इस घृणित पेशे में क्यों आई.

इन्हीं दिनों में श्वेता का एक बयान खूब वायरल हुआ था, जिस में वह यह कहती नजर आ रही थी कि मैं अपने ही कुछ गलत फैसलों के चलते कंगाल हो गई थी. मुझे अपने परिवार को भी संभालना था और कुछ अच्छे काम भी करने थे. लेकिन मेरे लिए सारे दरवाजे बंद थे, इसलिए कुछ लोगों ने मुझे वेश्यावृत्ति का रास्ता दिखाया. मैं कुछ नहीं कर सकती थी और न ही मेरे पास कोई और चारा था, इसलिए मैं ने यह काम किया.

सुधारगृह से छूटने के बाद वह इस बयान से मुकर गई और नएनए बयान देती रही, जिन के कोई खास मायने नहीं थे. लेकिन दाद देनी होगी श्वेता की हिम्मत और आत्मविश्वास को, जो वह देहव्यापार के आरोप में पकड़े जाने के बाद भी टूटी नहीं और उसे जो भी रोल मिला, वह उस ने स्वीकार लिया.

साल 2018 में उस ने फिल्मकार रोहित मित्तल से शादी की, लेकिन एक साल बाद ही वह टूट गई. ‘चेतना’ फिल्म की सीमा और श्वेता की असल जिंदगी में काफी समानताएं दिखती हैं, पर फिल्म के और जिंदगी के दुखांत में जमीन आसमान का अंतर होता है, जो दिख भी रहा है.

वेश्या होने का दाग आसानी से नहीं धुलने वाला पर श्वेता अभी भी जिस लगन से काम कर रही है. उस के लिए वह शुभकामनाओं की हकदार तो है कि कड़वा अतीत भूल कर मकड़ी जैसा कारनामा एक बार फिर कर दिखाए.

कड़वी मिष्ठी

श्वेता को तो हैदराबाद सेशन कोर्ट ने देह व्यापार के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया था, लेकिन सन 2014 में ही एक और एक्ट्रैस मय पुख्ता सबूतों के देहव्यापार के आरोप में रंगेहाथों धरी गई थी, जिस का नाम था मिष्ठी मुखर्जी. भरेपूरे गुदाज बदन की मालकिन मिष्ठी थी तो बंगाली फिल्मों की सी ग्रेड की अभिनेत्री, लेकिन 2012 में राकेश मेहता निर्देशित एक हिंदी फिल्म ‘लाइफ की तो लग गई’ में वह नजर आई थी और मुंबई में ही बस गई थी.

हैरानी की बात यह है कि इस फिल्म की समीक्षाओं में कहीं उस का जिक्र नहीं हुआ. मिष्ठी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. मुंबई के पौश मीरा टावर के सी विंग में फ्लैट नंबर 502 में वह परिवार सहित रह रही थी. इस फ्लैट का किराया ही 80 हजार रुपए महीना था.

मिष्ठी आलीशान जिंदगी जी रही थी. मीरा टावर में लगभग 75 फ्लैट्स आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के हैं. इस अपार्टमेंट में हंगामा 9 जनवरी, 2014 को तब मचा था, जब एक छापामार काररवाई में ओशिवरा पुलिस ने मिष्ठी को अपने बौयफ्रैंड दिल्ली के फैशन डिजाइनर राकेश कटारिया के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था.

इस छापे में पुलिस ने कोई ढाई लाख ब्लू फिल्मों की सीडी बरामद की थीं. पुलिस के मुताबिक ये सीडी दक्षिण भारत से ला कर मुंबई और ठाणे में बेची जाती थीं. देह व्यापार में सहयोग देने के आरोप में पुलिस ने मिष्ठी, उस की मां सहित पिता चंद्रकांत मुखर्जी और भाई समरत को भी गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक इस फ्लैट का इस्तेमाल ब्लू फिल्में बनाने में भी किया जाता था.

बाद में मिष्ठी और उस के परिवारजनों ने सफाई दी थी, लेकिन तब तक एक और एक्ट्रैस के दामन में जिस्मफरोशी का दाग लग चुका था. इस मुकदमे का फैसला हो पाता, इस के पहले ही महज 27 साल की उम्र में मिष्ठी किडनी फेल हो जाने से 4 अक्तूबर, 2020 को इस दुनिया से चल बसी.

लोगों को इस कांड के अलावा यह भर याद रहा कि उस ने कुछ क्षेत्रीय फिल्मों सहित हिंदी फिल्म ‘मैं कृष्णा हूं’ में एक गाना गाया था.

बाद में अंदाजा भर लगाया गया, जो सच के काफी करीब है कि अगर वह ब्लू फिल्मों का कारोबार कर रही थी या सैक्स रैकेट चला रही थी तो अपने परिवार के खर्चे पूरे करने के लिए इस गैरकानूनी रास्ते पर चल पड़ी थी.

ऐश के ऐश

ऐसा ही रास्ता दक्षिण भारत की उभरती एक्ट्रैस ऐश अंसारी ने भी चुना था, जो साल 2013 में जोधपुर के तख्त विलास होटल में रंगेहाथों जिस्मफरोशी करते पकड़ी गई थी. इस छापे में 9 लोग पकड़े गए थे. यह भी एक हाइटेक मामला था और औनलाइन चलता था.