पृथ्वी हांडा परिवार के साथ पंजाब प्रांत के जालंधर शहर के मौडल टाउन में अपनी विशाल कोठी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुजाता के अलावा एकलौता बेटा जतिन था. कोठी से कुछ दूरी पर मेनमार्केट में उन की 2 दुकानें थीं. एक में हांडा डेयरी थी, जिस में शुद्ध देसी घी का थोक कारोबार होता था तो दूसरी में रेडीमेड गारमेंट्स का. क्वालिटी के लिए उन की दोनों ही दुकानें शहर भर में प्रसिद्ध थीं. दोनों दुकानें घर से ज्यादा दूर नहीं थीं, इसलिए बापबेटा कोठी से दुकानों तक पैदल टहलते हुए चले जाते थे. हांडा डेयरी का काम पृथ्वी हांडा खुद देखते थे, जबकि हांडा कलेक्शन यानी गारमेंट्स की दुकान उन का बेटा जतिन संभालता था. बापबेटे के दुकानों पर चले जाने के बाद घर में सुजाता हांडा के अलावा 17 साल का नौकर हरीश ही रह जाता था. शरीर भारी होने की वजह से सुजाता को चलनेफिरने में दिक्कत होती थी, इसलिए घर के कामों में मदद के लिए उन्होंने हरीश को रखा हुआ था. 20 सितंबर, 2016 की शाम 5 बजे पृथ्वी हांडा ने जतिन की दुकान पर जा कर कहा, ‘‘बेटा, आज मंगलवार है. थोड़ी देर में तुम घर चले जाना और घर में रखा प्रसाद ले जा कर हनुमान मंदिर में चढ़ा देना.’’

‘‘ठीक है पिताजी, मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा.’’ जतिन ने कहा, इस के बाद पौने 6 बजे वह घर के लिए निकला तो करीब 15 मिनट बाद 6 बजे के करीब वह कोठी पर पहुंच गया. उस ने कोठी का मेन गेट अंदर से बंद देखा तो उसे हैरानी हुई, क्योंकि कोठी का मुख्य गेट केवल रात को ही बंद होता था.

बहरहाल, कुछ सोचनेविचारने के बजाय जतिन ने डोरबैल बजाई. कई बार डोरबैल बजाने के बावजूद अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं दी तो उसे चिंता हुई. पड़ोसी मि. कपूर ने जतिन को लगातार बैल बजाते देखा तो पास आ कर कहा, ‘‘बेटा, यह गेट लगभग आधे घंटे से बंद है और कुछ देर पहले कोठी के अंदर से चीखने की आवाज आई थीं. अंदर क्या हो रहा है, यह पता करने के लिए मैं ने भी खूब बैल बजाई थी, पर गेट नहीं खुला था.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है ’’ जतिन बुदबुदाया.

वह मि. कपूर से बातें कर ही रहा था कि तभी कोठी के अंदर खड़ी इनोवा कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. जतिन चौंका. उसे लगा कि अंदर जरूर कुछ गड़बड़ है. समय न गंवा कर वह कोठी के 15 फुट ऊंचे मुख्यगेट पर चढ़ गया. जब वह अंदर कूदा तो 2 लड़के इनोवा कार से उतर कर कोठी के अंदर भागते दिखाई दिए.

वे लड़के इतनी तेजी से अंदर की ओर भागे थे कि वह उन्हें देख नहीं पाया. सिर्फ एक लड़के के कपड़े दिखाई दिए थे. वह नीली जींस और पीली शर्ट या टीशर्ट पहने था. लड़कों को कोठी के अंदर जाते देख जतिन उन के पीछे भागा, पर ड्राइंगरूम की ओर जाने वाली गैलरी में उसे नौकर हरीश खून से लथपथ पड़ा मिल गया तो वह उस के पास रुक गया. वह उसे झुक कर देखने लगा, तभी उसे छत पर जाने वाली सीढि़यों पर किसी की आवाज सुनाई दी.

हरीश को छोड़ कर जतिन सीढि़यों की ओर बढ़ा तो उस ने देखा कि जो लड़के कार से निकल कर अंदर आए थे, वे सीढि़यों से छत पर जा रहे थे. उन का पीछा करने के बजाय उस ने सीढि़यों का दरवाजा बंद कर के अंदर से कुंडी लगा दी और भाग कर हरीश के पास आया और उस की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है.

जतिन घबरा गया. मां को आवाज देते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा तो वहां मां को खून से लथपथ पड़ी देख कर वह उस से चिपट कर रोने लगा. तभी उसे लगा कि मां की सांसें चल रही हैं. अब तक उस के रोने की आवाज सुन कर कई पड़ोसी आ गए थे. जतिन ने खुद को संभाला और पड़ोसियों से पिता को फोन करवाने के साथ उन्हीं की मदद से मां को नजदीक के एक अस्पताल ले गया.

वहां के डाक्टरों ने सुजाता का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पटेल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन पटेल अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन की मौत हो गई. उस समय तक पृथ्वी हांडा भी अस्पताल पहुंच गए थे. जब उन्हें पत्नी की मौत का पता चला तो दुखी हो कर वह बेहोश हो गए.

सूचना पा कर थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा भी अस्पताल पहुंच गए थे. उन्होंने जरूरी काररवाई कर सुजाता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने पृथ्वी हांडा की कोठी पर आ कर नौकर हरीश की लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दिनदहाड़े हुई इन हत्याओं से शहर में सनसनी तो फैल ही गई थी, खबर पा कर शहर के तमाम व्यापारी पृथ्वी हांडा की कोठी पर जमा हो गए थे. सभी में दहशत का माहौल था. एसीपी, डीसीपी, एडीसीपी (क्राइम) तथा पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला भी आ गए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ, डौग स्क्वायड, क्राइम टीम अधिकारियों के साथ ही एवं फोटोग्राफर ने भी आ कर अपना काम शुरू कर दिया था.

घटनास्थल यानी कोठी की जांच में पुलिस ने हांडा की कोठी के कंपाउंड में खड़ी इनोवा कार से एक सेफ बरामद की थी, जो कोठी के अंदर से ला कर कार में रखी गई थी. इस का मतलब था सुजाता और नौकर हरीश की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी. जाहिर है, हत्यारे सेफ को कार से अपने साथ ले जाना चाहते थे.

कोठी के अंदर जिस कमरे में सेफ रखी थी, उस में एक अलमारी भी थी, जिस का सारा सामान कमरे में बिखरा पड़ा था. अलमारी को देख कर पृथ्वी हांडा ने बताया कि अलमारी से ढाई, पौने 3 लाख रुपए नकद और करीब 10 लाख रुपए के गहने गायब हैं. इस के अलावा वे सुजाता के पहने गहने भी उतार ले गए थे.

पूछताछ में पुलिस को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. लेकिन पुलिस ने इतना जरूर अंदाजा लगा लिया था कि जिस ने भी वारदात को अंजाम दिया था, उसे हांडा परिवार की दिनचर्या और कोठी के कोनेकोने की जानकारी थी.

पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने पुलिस अधिकारियों की मीटिंग कर के थानाप्रभारी सतेंद्र चड्ढा के नेतृत्व में एसआई नरेंद्र सिंह, जसवंत कौर, एएसआई महावीर सिंह, लखविंदर सिंह, हैडकांस्टेबल जागीरी लाल, सुखविंदर सिंह, संदीप कौर तथा स्पैशल स्टाफ के एएसआई सुरजीत सिंह और सुनीत को मिला कर एक टीम बनाई और जरूरी निर्देश दे कर टीम को इस मामले की जांच सौंप दी.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान पुलिस को एक्टिवा स्कूटर की एक चाबी और टोपी मिली, जो शायद लुटेरों से हड़बड़ी में छूट गई थी. गली में लगे सीसीटीवी कैमरों से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. चाबी मिलने से यह अंदाजा लगाया गया कि हो सकता है कोठी के आसपास कोई एक्टिवा स्कूटर खड़ी हो.

सतेंद्र चड्ढा ने कोठी के आसपास तलाश की तो हांडा की कोठी से कुछ दूरी पर एक एक्टिवा स्कूटर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. उन्होंने कोठी में मिली चाबी उस में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस का मतलब वह एक्टिवा स्कूटर लुटेरों की थी. पुलिस ने रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर उस के मालिक के बारे में पता किया तो पता चला कि एक्टिवा मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार के नाम रजिस्टर्ड थी.

विजय कुमार से जब स्कूटर के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि एक्टिवा को ज्यादातर उस का 20 साल का बेटा अंकुश चलाता था. एक दिन पहले उस ने बताया था कि बाजार से उस की स्कूटर चोरी हो गई थी, जिस की उस ने रिपोर्ट लिखवा दी थी.

सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश के बारे में पूछा तो विजय कुमार ने बताया कि वह पिछली रात से घर नहीं आया था. उन्होंने अंकुश की फोटो और मोबाइल नंबर ले लिया. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा कर उस की फोटो की कौपी बनवा कर पुलिस वालों के अलावा मुखबिरों को भी दे दीं ताकि वे उस के बारे में पता कर सकें.

2 दिनों बाद यानी 25 सितंबर को मुखबिर की सूचना पर बसअड्डे के पास से अंकुश को एक लड़के के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर पूछताछ की गई तो पता चला उस के साथ पकड़े गए लड़के का नाम सतीश था. उन दोनों ने ही अन्य 2 साथियों अजय और मलकीत के साथ मिल कर सुजाता हांडा और नौकर हरीश को हौकी और स्टिकपैन से जख्मी कर के लूटपाट को अंजाम दिया था.

इस के बाद दोनों की निशानदेही पर अजय और मलकीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पकड़े गए चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सामान बरामद करने के लिए 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान अंकुश की निशानदेही पर रुपए तो अजय और मलकीत की निशानदेही पर गहने बरामद कर लिए गए. पूछताछ में पृथ्वी हांडा की पत्नी सुजाता और नौकर हरीश की हत्या तथा लूट की जो वजह सामने आई, वह मात्र बेइज्जती का बदला लेने के लिए किया गया अपराध था.

मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार की कपड़ों की सिलाई की दुकान थी, जो खास नहीं चलती थी. फिर भी रातदिन मेहनत कर के उस ने अपने दोनों बेटों अंकुश और विशाल को पढ़ाने की पूरी कोशिश की थी कि वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. अंकुश तो आवारा निकला ही, उस ने छोटे भाई को भी अपने सांचे में ढालने की कोशिश की. लेकिन इस मामले में वह पूरी तरह सफल नहीं हुआ. इस की वजह यह थी कि विशाल थोड़ीबहुत बुद्धि का इस्तेमाल कर लेता था.

अंकुश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए छोटेमोटे काम कर लिया करता था. इसी क्रम में वह पृथ्वी हांडा के यहां काम करने गया था. शुरू में उस ने मेहनत और ईमानदारी से काम किया, जिस से पृथ्वी हांडा को उस पर विश्वास हो गया. इस के बाद अंकुश ने घर की कोई जरूरत बता कर पृथ्वी हांडा से 10 हजार रुपए उधार ले लिए. उस ने 2 महीना बाद से 2 हजार रुपए महीना तनख्वाह से कटवाने को कहा था, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उस ने न तो रुपए लौटाए और न ही वेतन से रुपए काटने दिए.

हर महीने वह कोई न कोई बहाना कर के रुपए काटने से रोक देता था. इसी बीच पृथ्वी हांडा को अंकुश के बारे में पता चला कि वह जैसा दिखाई देता है, वैसा है नहीं. अंकुश की सच्चाई जान कर उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने तय कर लिया कि वह उन के रुपए दे या न दे, अब वह उसे अपने यहां काम पर नहीं रखेंगे.

वेतन वाले दिन पृथ्वी हांडा ने वेतन देते समय अंकुश से पूछा, ‘‘तुम उधार के 10 हजार रुपए लौटा रहे हो या तुम्हारे वेतन से काट लूं ’’

‘‘इस महीने रहने दीजिए, क्योंकि भाई का एडमीशन कराना है और पिताजी भी बीमार हैं.’’

पृथ्वी हांडा को पता था कि अंकुश झूठ बोल रहा है, इसलिए उन्होंने गुस्से में अंकुश की तनख्वाह उस के मुंह पर मार कर नफरत से देखते हुए कहा, ‘‘झूठा कहीं का, यहां से दफा हो जा. तू कभी नहीं सुधर सकता.’’

पृथ्वी हांडा ने अंकुश को जो भी कहा था, दुकान के सभी नौकरों के सामने कहा था, जिस से ये बातें उसे बहुत बुरी लगी थीं. उन की इन बातों से नाराज हो कर उस ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. उसी दिन से वह हांडा परिवार का ऐसा दुश्मन बन गया, जिस के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था.

अंकुश पृथ्वी हांडा को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा. लेकिन यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने सहपाठियों सतीश, मलकीत और अजय को यह कह कर अपनी योजना में शामिल कर लिया कि हांडा के घर लूट में करोड़ों रुपए मिलेंगे. सभी नादान उम्र कि युवक थे, इसलिए बिना सोचेसमझे वे अंकुश की बातों में आ गए. अंकुश ने अपने भाई विशाल को भी योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद अंकुश ने 28 मई, 2016 को अपने इन्हीं साथियों के साथ मिल कर पृथ्वी हांडा की दुकानों में आग लगा दी. उस ने सोचा था कि आग से ताले और शटर पिघल जाएंगे तो वे अंदर जा कर लूट कर लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इस योजना में असफल होने के बाद 20 सितंबर को अंकुश ने साथियों के साथ पृथ्वी हांडा की कोठी पर लूट की योजना बनाई. लेकिन इस में विशाल शामिल नहीं हुआ. योजना के अनुसार, अंकुश मलकीत के साथ ठीक साढ़े 5 बजे पृथ्वी हांडा की कोठी में दाखिल हुआ.

कोठी में दाखिल होने से पहले उस ने अपनी एक्टिवा स्कूटर कोठी से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दी थी. सतीश को उस ने बाहर खड़ा कर दिया था ताकि कोई खतरा दिखाई दे तो वह उसे आगाह कर सके. अंकुश अपने साथ एक हौकी ले कर आया था. कोठी के अंदर जाने से पहले उन्होंने मुख्य गेट को अंदर से बंद कर के ताला लगा दिया था.

कोठी में दाखिल होते ही अंकुश का सामना नौकर हरीश से हुआ तो बिना कोई बातचीत किए उस ने हरीश के सिर पर हौकी से अंधाधुंध वार कर किए. हरीश का सिर फट गया, जिस से खून बहने लगा. वह चीख कर फर्श पर गिर पड़ा था. उसी बीच मलकीत रसोई में से स्टिकपैन उठा लाया और उस ने भी उस के सिर पर कई वार किए. इस मारपीट से हरीश बेहोश हो गया.

हरीश चीखा तो उस की चीख सुन कर ड्राइंगरूम में बैठी सुजाता उठ कर उसे देखने आईं. उसी वक्त अंकुश और मलकीत उन पर भी टूट पड़े. वह भी खून से लथपथ हो कर फर्श पर गिर पड़ीं.

इस के बाद अंकुश ने फटाफट सुजाता के शरीर के गहने उतारे और अंदर अलमारी में रखा कैश और आभूषण अपने कब्जे में ले लिए. वहां रखी सेफ को उठा कर वे बाहर ले आए और इनोवा कार में रख दिया. कार की चाबी कहां रखी रहती है, यह अंकुश को पता था. सेफ में काफी दौलत रखी है, यह भी उसे पता था.

उन्होंने सेफ रख कर जैसे ही कार स्टार्ट की, उसी समय जतिन कोठी के अंदर कूदा. उसे देख कर अंकुश और उस के साथी कार छोड़ कर कोठी के अंदर गए और सीढि़यों से छत पर जा कर पीछे से कूद कर भाग गए. भागने में अंकुश की एक्टिवा स्कूटर की चाबी गिर गई, जिस से वे पकड़े गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश, मलकीत, सतीश और अजय को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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