11 वर्षीय आदर्श सिंह अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था, तभी उस के कानों में आवाज आई, ‘‘हैलो आदर्श!’’  आदर्श ने पलट कर देखा तो कमरे के दरवाजे पर मुकेश खड़ा था. आदर्श मुकेश पांडेय को अच्छी तरह जानता था. वह पड़ोस में रहने वाली चांदमती का भतीजा था. मुकेश बुआ के पास घूमने आया था. मुकेश को देखते ही आदर्श बोला, ‘‘नमस्ते मुकेश भैया.’’

‘‘नमस्ते नमस्ते, क्या कर रहे हो आदर्श?’’ मुकेश ने सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठते हुए पूछा.

‘‘कुछ भी नहीं भैया, किताबों में मन नहीं लग रहा था इसलिए चंपक पढ़ रहा हूं.’’ आदर्श ने शालीनता से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा, मुझे भी बचपन में चंपक पढ़ने का बड़ा शौक था,’’ मुकेश ने कहा, ‘‘लगता है तुम्हें कहानियों और कार्टून का बहुत शौक है.’’

‘‘हां भैया,’’ आदर्श ने कहा.

‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारे ही काम की एक चीज दिखाता हूं.’’

कहने के बाद मुकेश ने अपनी पैंट की जेब से एक बड़े आकार का चमचमाता हुआ सेलफोन निकाला. नया मोबाइल फोन देख कर आदर्श के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी. मुकेश के हाथ से मोबाइल ले कर आदर्श उत्सुकतावश उसे उलटपलट कर देखने लगा, ‘‘ये तो काफी महंगा होगा भैया?’’

‘‘हां, महंगा तो है,’’ मुकेश ने जवाब दिया, फिर उस की ओर देख कर पूछा, ‘‘तुम्हें पसंद हो तो तुम इसे अपने पास रख सकते हो.’’

आदर्श उस की तरफ आश्चर्य से देखते हुआ बोला, ‘‘इतना महंगा फोन भला कोई दूसरे को देता है क्या, जो आप मुझे दे दोगे.’’

‘‘तुम्हारे लिए यह फोन क्या चीज है, आदर्श मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे दूं, एक बार कह कर तो देखो.’’

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