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इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.

साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए.

हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया.

उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई. जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे.

कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे. कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी.

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