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दुकान का मालिक नित्यानंद ठाकुर था. एसआई ने उसे मृतक के फोटो और उस के कपड़ों पर लगे स्टीकर के फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘ये कपड़े तुम्हारी दुकान से सिलवाए गए हैं. बता सकते हो यह व्यक्ति कौन है?’’

“साहब, मेरी दुकान पर कितने ही लोग कपड़े सिलवाने आते हैं. मैं हर किसी का चेहरा याद नहीं रख सकता. कुछ खास लोग मेरी पहचान के होते हैं, उन के बारे में बता सकता हूं.’’

“कपड़े तो तुम्हारे यहां ही सिले गए हैं.’’

“हां साहब, स्टीकर मेरा लगा है तो जाहिर है, ये कपड़े मेरी दुकान से ही सिले गए हैं. ठहरिए साहब.’’ एकाएक कुछ याद आने पर ठाकुर ने कहा, ‘‘मैं ग्राहक को दी गई बिल का रिकौर्ड चैक कर लेता हूं, शायद इस पैंटशर्ट की डुप्लीकेट बिल मिल जाए.’’

“देखो,’’ एसआई ने कहा.

टेलर नित्यानंद ने रिकौर्ड में रखी बिलबुकें निकाल कर उन्हें चैक करना शुरू किया तो एक बिल के साथ मृतक की पहनी पैंटशर्ट की कपड़े की कतरन अटैच्ड की हुई मिल गई. उस बिल पर पैंटशर्ट सिलवाने वाले व्यक्ति का फोन नंबर लिखा हुआ था. नित्यानंद ने वह नंबर 7838937929 एसआई को नोट करवा दिया.

फोन नंबर से मिली सफलता…

एसआई ने यह नंबर अपने मोबाइल से डायल किया लेकिन दूसरी ओर से फोन के स्विच्ड औफ होने का रिकौर्ड सुनाई दिया. एसआई बनवारी लाल ने इस नंबर की काल डिटेल्स हासिल की. उस का अध्ययन करने के बाद इस में दिल गए एक नंबर 906099xxxx पर काल लगाया.

दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, कौन?’’

“मैं सराय रोहिल्ला थाने से एसआई बनवारी लाल बात कर रहा हूं, मुझे एक नंबर की जांच करनी है. मैं वह नंबर बता रहा हूं, नोट कर के बताओ यह नंबर किसका है?’’

“ज…जी,’’ दूसरी ओर वह महिला पुलिस का नाम सुन कर घबरा गई थी. वह डरते हुए बोली, ‘‘आप नंबर बताइए.’’

एसआई ने टेलर नित्यानंद से मिला नंबर उस महिला को बताया तो वह तुरंत बोली, ‘‘साहब, यह नंबर तो मेरे पति का है.’’

“ठीक है,’’ बनवारी लाल इस मिली सफलता पर खुश होते हुए बोले, ‘‘मुझे अपना नामपता बताओ, तुम से मिलना मेरे लिए बहुत जरूरी है.’’

“साहब, मेरा नाम रिंकू है. मैं इस समय अपनी ससुराल गांव सामरी, जिला रोहताश, बिहार में हूं. मेरे पति दिल्ली में टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदासनगर कालोनी में रहते हैं. उन का पता मैं नहीं जानती.’’

“अपने पति का नाम बताओ.’’

“परशुराम सिंह है उन का नाम,’’ रिंकू ने बताते हुए पूछा, ‘‘लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं साहब?’’

एसआई बनवारी लाल ने रिंकू को परशुराम की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने और इस समय उस का शव सब्जीमंडी, दिल्ली की मोर्चरी में रखे होने की जानकारी दे कर तुरंत फोन काट दिया. वह जानते थे कि पति की मौत की खबर सुन कर रिंकू रोने लगेगी. वह किसी स्त्री का रुदन जो किसी भी मजबूत इंसान के दिल को भी झकझोर सकता है, इसलिए नहीं सुनना चाहते थे.

मृतक के नाम और उस के पैतृक गांव का पता एसआई बनवारी लाल को लग गया था. अभी यह मालूम नहीं हो सका था कि परशुराम टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदास कालोनी में कहां रहता है, यह मालूम करने के बाद ही जांच को सही दिशा मिल सकती थी. एसआई बनवारी लाल हैडकांस्टेबल सोनू के साथ परशुराम मर्डर केस की सच्चाई जानने के लिए बाबा हरिदास नगर कालोनी में पहुंच गए.

उन्होंने वहां चाय की दुकान और ढाबों पर परशुराम सिंह की डेडबौडी के फोटो दिखा कर उस का सही ठिकाना मालूम करना शुरू किया. एक ढाबे पर उन्हें 2 व्यक्ति मिले, जिन्होंने परशुराम की डेडबौडी की फोटो देख कर उस की पहचान परशुराम सिंह पुत्र बिहारी सिंह, गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहार के रूप में कर दी. एसआई बनवारी लाल को इन्होंने यह भी बताया कि परशुराम सिंह की उम्र लगभग 40 साल की थी और यह टिकरी कलां बौर्डर एरिया में श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में हेल्पर का काम करता था.

इन के नाम कमलेश गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहारी और विद्यासागर गांव कल्याणी, थाना दिसपुरा, जिला रोहताश, बिहार थे, इन्हें एसआई बनवारी लाल ने जांच में शामिल कर के इन के बयान सीआरपीसी की धारा 161 में दर्ज कर के इन्हें बुलाए जाने पर हाजिर होने को कह कर जाने दिया.

दिल्ली में मिल गई नौकरी…

बिहार के रोहताश जिले का एक गांव है सामरी, टोला कवाई. इस का थाना दवात पड़ता है. इसी गांव में बिहारी सिंह रहता था. परशुराम सिंह उसी का बेटा था. गांव में खेलकूद कर परशुराम जवान हुआ तो गांव के कुछ युवकों के साथ वह काम की तलाश में दिल्ली चला आया. यहां बिहार के बहुत सारे लोग आ कर कोई न कोई काम कर रहे थे. उन के सहयोग से परशुराम को श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम मिल गया.

यह कंपनी टिकरी कलां बौर्डर एरिया में थी. परशुराम ने इस कंपनी में हेल्पर की नौकरी मिल जाने के बाद उस ने छोटूराम नगर, रेल लाइनपार, बहादुरगढ़ में एक कमरा किराए पर ले लिया. वह बहुत पैसों वालों के घर से नहीं था, पिता गांव में मजदूरी करते थे. परशुराम दिल्ली में रह कर ज्यादा से ज्यादा रुपया कमाना चाहता था ताकि मांबापको उस का सहारा मिल सके.

वह कंपनी में मन लगा कर काम करने लगा. तनख्वाह मिलती तो उस में से अपने खाने और कमरे का किराया निकाल कर शेष रुपए वह गांव भेज देता. यहां वह एक ढाबे में खाना खाता था, उस के पिता बिहारीलाल ने बेटे की परेशानी भांप कर उस की शादी रिंकू नाम की सजातीय युवती से कर दी. शादी के लिए परशुराम गांव गया और शादी के बाद पत्नी के साथ 10-12 दिन बिता लेने के बाद वापस दिल्ली लौट आया.

अब वह महीने में एकदो दिन के लिए गांव जाता और खर्च दे कर वापस लौट आता था. पत्नी रिंकू उस के साथ चलने की जिद करती तो उसे समझा देता, ‘मां बूढ़ी हो गई हैं, मुझ से ज्यादा उन्हें तुम्हारी जरूरत है. सही मौका आएगा तो मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा.’ रिंकू मन मार कर रह जाती.

समय गुजरता गया. परशुराम की धीरेधीरे आसपड़ोस और कंपनी में अच्छी पहचान बन गई, कुछ दोस्त ऐसे भी बन गए तोखानेपीने का शौक रखते थे. परशुराम की उन के साथ बैठकें जमने लगीं. इन्हीं में एक दोस्त था गोलू, यह भी श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम करता था. गोलू कभी दारू के लिए अपना पैसा खर्च नहीं करता था. परशुराम ही शराब और खाने का खर्च उठाता था. एक दिन इसी बात पर गोलू से परशुराम उलझ गया. उस दिन महफिल जमी तो परशुराम ने 3 दोस्तों के गिलास भरे, गोलू का गिलास नहीं भरा.

“ऐ, मेरे गिलास में शराब क्यों नहीं डाल रहे हो तुम?’’ गोलू ने हैरानी से पूछा.

“यहां मुफ्त की शराब नहीं मिलती,’’ परशुराम ने व्यंग्य कसा.

“क्या कहा?’’ गोलू गुर्राया, ‘‘तुम मुझे मुफ्तखोर समझ रहे हो. बोल, तुम ने कितने की बोतल मंगवाई है?’’

“इस बोतल की बात मत कर, आज तक तू मुफ्त में ही पीता आया है, तूने कब पैसे खर्च किए हैं. हिसाब करना है तो उन सभी बोतलों का कर.’’ परशुराम ने कहा.

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