फखरू चाचा की बातें सुन कर अमीर का दिल तड़प उठा. वह थके कदमों से अपने बेडरूम मे चला गया. वैसे तो शहरीना को घर छोड़े हुए एक महीने से ज्यादा हो गया था, मगर अमीर को लगता था कि उस का वजूद यहीं है. उस की चूडि़यों की खनक उसे अकसर सोते से जगा देती थी. मगर शहरीना वहां कहां होती थी. वह तड़प कर फिर सोने की कोशिश करने लगता था.
फखरू चाचा की बातों ने जब से उस की सोचों में दरार डाल दी थी, तब से वह शहरीना की याद में खोया रहने लगा था. अब वह औफिस आते जाते खोजती नजरों से भीड़ में उसे तलाशता हुआ उस की एक झलक देखने को बेकरार रहता था.
‘उफ, कहां चली गई हो शेरी, तुम क्यों मुझे तनहा छोड़ गई?’ अमीर ने कार की स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए बेबसी से सोचा. तभी अचानक उस की नजर सड़क किनारे खड़ी शहरीना पर पड़ी. वह गुलाबी कमीज, दुपट्टा और बाटल ग्रीन सलवार में किसी सवारी का इंतजार कर रही थी. कंधे पर लटका बैग और हाथ में पकड़ी फाइल उस के नौकरीपेशा होने की गवाह थी. अमीर तेजी से कार से उतर कर उस के पास जा पहुंचा, ‘‘शेरी...शेरी.’’
‘‘आप...आप यहां?’’ शहरीना उसे अपने सामने देख कर हैरत से सिर्फ इतना ही कह सकी.
‘‘हां मैं. चलो शेरी, मैं तुम्हें लेने आया हूं.’’ अमीर ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.
‘‘लेकिन मुझे आप के साथ नहीं जाना. मुझे आप...’’ शहरीना उस का हाथ झटक कर आगे बढ़ गई.
‘‘मोहतरमा, मैं तुम्हारा शौहर हूं और जबरदस्ती तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूं.’’ कह कर अमीर ने उस की कलाई पकड़ कर कार का दरवाजा खोला और उसे अंदर धकेल दिया. इस के बाद खुद दूसरी तरफ से कार में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी.


 
            
            
               
               
               
               
               
               
               
               
               
               
               
               
               
