जिस वक्त अमीर कमरे में दाखिल हुआ, शहरीना सोफे से पीठ टिकाए खुद में मुसकरा रही थी. वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अमीर के आने का पता भी नहीं चला. जब अमीर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अमीर… आप… आप कब आए?’’
शहरीना के चेहरे पर शर्म की एक लहर आ कर गुजर गई.
‘‘उस वक्त जब तुम किसी खूबसूरत ख्याल में खोई हुई थीं.’’ अमीर ने कोट उतार कर तीखे अंदाज में कहा, ‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम किस ख्याल में डूबी हुई थीं कि तुम्हें न तो अपनी खबर थी और न मेरे आने की.’’
‘‘वह अमीर, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी हुए एक साल हो गया है और मैं चाहती हूं कि…’’ शहरीना झिझक कर रुक गई, फिर कड़ी हिम्मत कर के बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं और …और चाहती हूं कि… कि… हमें अपनी फेमिली पूरी कर लेनी चाहिए.’’ शर्मिंदगी ओढ़ कर आखिर शहरीना ने अपनी बात कह ही दी.
पहले तो अमीर की कुछ समझ में ही नहीं आया, लेकिन दूसरे ही पल वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस के माथे पर लकीरें उभर आईं. वह तीखे लहजे में बोला, ‘‘हमारी फेमिली आफ्टर आल पूरी है.’’
‘‘नहीं अमीर, मेरा मतलब है कि हमारा अपना बच्चा…’’
‘‘आई एम सौरी शेरी. मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता.’’ अमीर उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला.
‘‘लेकिन अमीर, क्यों… मैं…’’ शहरीना के स्वर में हल्का सा दर्द था.
‘‘वह इसलिए कि मुझ से सनी का दुख बरदाश्त नहीं होगा.’’ अपने सीने पर रखे शहरीना के हाथों को झटक कर अमीर उठ खड़ा हुआ.
‘‘जी… मैं…’’ शहरीना उस की बात को ले कर सोच में पड़ गई.
‘‘शटअप… और आगे इस मसले पर मुझ से बात मत करना.’’ कहते हुए अमीर गुस्से से उबलता बाहर निकल गया.
शहरीना अंदर ही अंदर कुढ़ती बेड पर गिर पड़ी. पिछले कुछ महीने से वह अपनी इस इच्छा को दबाती चली आ रही थी. आज दिल के हाथों मजबूर हो कर कहा भी तो क्या मिला, सिवाय तड़प के.
अमीर के इस व्यवहार ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया. और फिर इसी वजह से छोटेमोटे झगड़े रोज की बात बन गए. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उस दिन तो हद ही हो गई. बात बहुत मामूली थी, मगर अमीर ने उसे इतना तूल दिया कि वह लड़ाईझगड़े तक जा पहुंची. शहरीना ने धीरे से कहा, ‘‘अमीर, प्लीज बात को इतना मत बढ़ाएं कि…’’
‘‘कि… क्या कर लोगी तुम? यह घर छोड़ कर चली जाओगी तो चली जाओ. मगर नहीं, तुम जैसी ऐशोआराम पर मरने वाली औरतें इतनी आसानी से ऐसी जिंदगी छोड़ कर कहां जा सकती हैं? तुम भी मुझे छोड़ कर भला कहां जा सकती हो? तुम ने तो इस ऐशोइशरत और दौलत के लिए ही मुझ से शादी की थी.’’ अमीर ने व्यंग्य से कहा.
शहरीना मुंह पर हाथ रखे फटी आंखों से अमीर को ताकते हुए उस की बातें सुनती रही. गुस्से से सुर्ख चेहरा लिए कुछ दूरी पर खड़ा अमीर उसे बदला हुआ लग रहा था. जिसे वह जानती थी, आज वह अमीर नहीं था. एक साल का मोहब्बत भरा साथ देने वाला अमीर उसे ही खुदगर्ज और दौलत का भूखा होने का ताना दे रहा था. जिस के लिए उस का पोरपोर मोहब्बत में डूबा था, वही उस की मोहब्बत की तौहीन कर के चला गया था.
शाम को अमीर जब घर में दाखिल हुआ तो पोर्च से लाउंज और लाउंज से बेडरूम तक पूरा घर खामोशी में डूबा था. अमीर को जहां आश्चर्य हुआ, वहीं उसे सुबह की घटना याद आ गई. कशमकश में डूबा वह अपने बेडरूम में दाखिल हुआ. शहरीना वहां भी नहीं थी. पर हां, उस का लिखा एक खत मेज पर जरूर रखा था. उस ने खत उठा लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा, उस में लिखा था—
‘‘अमीर औसाफ,
मैं आप का घर छोड़ कर जा रही हूं. कहां, यह फिलहाल मैं भी नहीं जानती. अपने भाइयों के दरवाजे पर जाना मुझे मंजूर नहीं, क्योंकि उन की नजरों में आप का एक मुकाम है. आप का मुकाम तो मेरे में दिल में भी था, लेकिन आप की बातों ने आप का वह मुकाम मेरी नजरों में गिरा दिया. आप ने यहां तक कह दिया कि तुम भला मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती हो और यह कि मैं ने तुम से दौलत की वजह से शादी की थी. मैं पिछले एक साल से आप का तीखा रवैया इसलिए बरदाश्त करती आ रही थी कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं. लेकिन अब बरदाश्त नहीं हुआ तो आप का घर छोड़ने पर मजबूर हो गई.
‘‘कहते हैं कि जब मोहब्बत दोतरफा होती है, तभी अच्छी होती है. एकतरफा मोहब्बत दुख ही देती है. आप अब तक मेरे मोहब्बत भरे रवैये और जज्बे को दौलत की तराजू में तौलते रहे हैं. इस से ज्यादा मेरी मोहब्बत की तौहीन और क्या होगी. मुझे आप की दौलत और ऐशोइशरत से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए आप के द्वारा दिए गए सभी तोहफे और जेवर ‘लौकर’ में छोड़ कर जा रही हूं. फकत-शहरीना’’
खत पढ़ कर अमीर के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. वह व्यंग्य भरे लहजे में कहने लगा, ‘वक्ती जज्बात में बह कर तुम ऐशोइशरत और आराम छोड़ कर चली तो गईं, मगर देखना, तुम्हें बहुत जल्द वापस लौटना पड़ेगा.’
कुछ देर बाद वह डाइनिंग टेबल पर बैठा सनी से पूछ रहा था, ‘‘सनी बेटा. तुम ने खाना खा लिया?’’
‘‘नहीं अंकल.’’
‘‘क्यों बेटा, अब तो काफी समय हो गया है? तुम ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?’’ अमीर ने मोहब्बत से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.
‘‘आंटी आज घर पर नहीं हैं ना. मुझे तो खाना वही खिलाती थीं.’’
‘‘अच्छा ठीक है. चलो, आज आप के अंकल आप को खाना खिलाएंगे.’’
‘‘मगर अंकल, वह आंटी…’’ 8 वर्षीय सनी ने कुछ कहना चाहा.
‘‘आंटी को छोड़ो और तुम खाना खाओ.’’
शहरीना के चले जाने से जहां सनी की देखरेख नहीं हो पा रही थी, वहीं पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया था. ठीक से साफसफाई भी नहीं हो रही थी. नौकर नौकरानी टाइम पास करते रहते थे. बेडरूम, बाथरूम, लाउंज आदि अस्तव्यस्त और धूलगर्द से अटे रहते थे. यह सब देख कर अमीर चिल्लाने लगता. सनी की ड्रेस भी मैली रहती थी. कभीकभी वह उसी स्थिति में स्कूल चला जाता था तो उसे डांट खानी पड़ती थी.
यह सब बातें जब अमीर को मालूम पड़तीं तो वह नौकरों को डांटने लगता. लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं होता था. एक दिन सनी ने अमीर से कहा, ‘‘अंकल ,मेरी शर्ट नहीं मिल रही है. पता नहीं कहां चली गई. आंटी सारी चीजें संभाल कर रखती थीं. मैं होमवर्क भी नहीं कर पाता हूं और रोज स्कूल भी देर से पहुंचता हूं. अब आप जल्दी से खुद जा कर आंटी को ले आएं, तब मैडम मुझे फिर से अच्छा बच्चा कहने लगेंगी.’’
‘‘हां, अमीर बेटा. सनी ठीक कह रहा है. आप शेरी बेटी को वापस ले आओ. वह बहुत अच्छी बच्ची है.’’ फखरू ने कहा. वह उस वक्त से उस के साथ रह रहे थे, जब अमीर के पिता औसाफ अहमद जिंदा थे. फखरू चाचा नौकर कम, बल्कि घर के सदस्य की तरह थे. औसाफ अहमद की मृत्यु के बाद उन्होंने और उन की बाजी ने अमीर और समीर का हर तरह से खयाल रखा था. यही नहीं, सनी की पैदाइश के बाद जब समीर की बीवी सनी को समीर की गोद में डाल कर खुद चलती बनी थी तो भी फखरू चाचा और उन की बीवी ने उस नन्हे बच्चे की देखभाल की थी.
‘‘लेकिन चाचा…’’ अमीर ने तड़प कर कुछ कहना चाहा.
‘‘नहीं बेटा. गलती तुम्हारी है. हर औरत तुम्हारी भाभी अशमल की तरह नहीं होती. शेरी जैसी नेक लड़की का अशमल से मिलान करना उस की तौहीन है. शेरी आप से बहुत मोहब्बत करती थी. सनी का बहुत खयाल रखती थी. घर में नौकर चाकर होने के बावजूद वह आप का एकएक काम खुद करती थी. बेटा, शेरी बेटी की फितरत मैं अच्छी तरह जानता हूं. उसे दौलत का कोई लालच नहीं है. वह तो बस आप की मोहब्बत के सहारे जीती थी. मगर आप ने उस पर शक कर के अच्छा नहीं किया.’’ फखरू चाचा ने जो कुछ अनुभव किया और देखा था, सचसच कह दिया.