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शकीला एस. हुसैन

रास दिन जो क्लाइंट मुझ से मिला, वह कुछ अजब किस्म का था. उस ने अपना नाम अफजल बताया. वह फ्रूट का धंधा करता था. उस की परेशानी यह थी कि वह अपनी बीवी रूमाना को तलाक दे चुका था और उस की एकलौती बेटी को उस की बीवी रूमाना साथ ले गई थी. वह अपनी बेटी को वापस लेना चाहता था.

मांबेटी अपने घर में रह रहे थे. अफजल को घर से निकलना पड़ा, क्योंकि घर रूमाना के नाम पर था. यह मकान महमूदाबाद बाजार के सिरे पर था. मकान के बाहरी हिस्से में एक दुकान थी, मकान का रास्ता बाजू वाली गली से था. 3 कमरों के इस घर में अफजल की छोटी सी फैमिली आराम से रह रही थी कि फरीद की नजर लग गई.

फरीद हसन 45 साल का हैंडसम आदमी था, लेकिन बेहद चालाक. वह इन लोगों का किराएदार था. बाहरी हिस्से वाली दुकान में उस ने एस्टेट एजेंसी खोल रखी थी. मकान रूमाना के नाम था इसलिए उस ने फरीद को अपनी मरजी से दुकान दी थी, जबकि अफजल इस के खिलाफ था. रूमाना सरकारी नौकरी में थी, ऊपर की आमदनी भी अच्छी थी. यह घर उसी ने बनाया था. थोड़ा पैसा अफजल का भी लगा था.

वैसे उस की ज्यादा आमदनी नहीं थी. वह मंडी से माल उठाता और घरों में पहुंचा देता. ज्यादातर ग्राहक फिल्म इंडस्ट्री के थे और अफजल को जुनून की हद तक फिल्मों में काम करने का शौक था. कोई छोटा एक्टर भी उसे फिल्मों में काम दिलाने की उम्मीद दिखाता तो उसे वह फ्री में फल सब्जी पहुंचा कर फिल्म में काम मिलने की उम्मीद में खिदमत करता रहता. अभी तक उसे कोई चांस नहीं मिला था, क्योंकि अफजल के पास न हुनर था न कोई सोर्स और न किसी डायरेक्टर से पहचान.

अफजल के इस शौक से उस की बीवी रूमाना नाराज रहती थी क्योंकि फायदा कुछ नहीं था, उलटा नुकसान होता था. इस बात पर दोनों में तकरार भी होती. वह समझाता, ‘‘देखना रूमाना, मैं जल्द टीवी के ड्रामों में नजर आऊंगा. फिर मेरे पास कार बंगला सब कुछ होगा.’’

इस लड़ाई में कभी बेटी फरजाना मां का साथ देती थी. 16-17 साल की फरजाना मैट्रिक की स्टूडेंट थी. कभी झुंझला कर कह देती, ‘‘आप दोनों कभी नहीं सुधरेंगे. इसी तरह लड़तेलड़ते जिंदगी गुजर जाएगी.’’

बेटी को बहलाने के लिए अफजल ने वादा किया, ‘‘अब ये सब छोड़ कर मैं काम में दिल लगाऊंगा.’’

कुछ दिन तो सुकून से गुजरे. फिर एक नया किस्सा शुरू हो गया. दुकान का किराएदार फरीद अकसर रूमाना से मिलने आने लगा. पहले तो वह महीने में 2-4 बार आता था, अब उस की आमद बढ़ गई थी. अफजल को उस का आनाजाना पसंद नहीं था. उस की आवाजाही बढ़ी तो अफजल ने ऐतराज किया, जिस से मेलमुलाकात रुक गई थी, फिर वह अफजल की गैरमौजूदगी में भी आने लगा.

अब रूमाना ने बाहर मिलना भी शुरू कर दिया. यह बात भी अफजल को पता चल गई. अभी तकरार चल ही रही थी कि अचानक एक दिन अफजल बेटाइम घर पहुंच गया, उस ने दोनों को घर में ही रंगेहाथों पकड़ लिया.

अफजल गुस्से से पागल हो गया. फरीद भाग निकला. पतिपत्नी की जोरदार लड़ाई हुई. अफजल बोला, ‘‘बेगैरती और बेशर्मी की हद हो गई, एक जवान लड़की के होते हुए पराए मर्द से ताल्लुक रखती हो. ये मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

रूमाना भी चीख कर बोली, ‘‘बेगैरत तुम हो, तुम अपनी बीवी पर इलजाम लगा रहे हो मेरी उस की दोस्ती है, हम अपना दुखसुख बांट लेते हैं.’’

तकरार गालीगलौज पर पहुंच गई और तलाक पर खत्म हुई.

घर रूमाना के नाम पर था. अफजल को बोरियाबिस्तर बांध कर घर छोड़ना पड़ा. बेटी फरजाना मां के पास रह गई.

अब अफजल कोर्ट में केस करने के लिए मेरे पास आया था कि मैं मुकदमा लड़ कर उस की बेटी उस के हवाले कर दूं. मैं ने उसे कहा, ‘‘देखो अफजल, तुम ने रूमाना को तलाक दे दी है. अगर तुम तलाक न देते तो वह खुला (औरत तलाक मांग लेती है) ले लेती. तुम्हारे साथ हरगिज न रहती. अब तुम चाहते हो कि कोर्ट के जरिए फरजाना को रूमाना की कस्टडी से निकाल कर तुम्हारे हवाले कर दूं.’’

‘‘हां वकील साहब, मैं हर कीमत पर अपनी बेटी को अपने पास लाना चाहता हूं. उस बेशर्म औरत की संगत में वह बिगड़ जाएगी. आप सारी बातें छोड़ें और मुकदमा लड़ कर मुझे मेरी बेटी दिला दें, मैं उस से बहुत प्यार करता हूं. मैं महीने में एक बार मिलने पर तसल्ली नहीं कर सकता. आप केस लड़ें.’’

‘‘केस लड़ने के लिए 3 बातों पर गौर करना जरूरी है, तभी मैं आप का केस ले सकता हूं.’’

‘‘कौन सी 3 बातें…जल्द बताइए.’’

‘‘पहली बात तो यह कि क्या आप के पास अपना घर है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास अपनी रिहाइश नहीं है. मेरे दोस्त बशीर का एक होटल है, उस की ऊपरी मंजिल पर स्टाफ की रिहाइश के लिए कुछ कमरे बने हैं, उन्हीं में से एक में मैं रहता हूं.’’

‘‘अगर आप के पास घर नहीं है तो यह पौइंट आप के मुखालिफ जाता है. कोर्ट लड़की को होटल में स्टाफ के लिए बने कमरों में रखने की इजाजत नहीं देगी, जबकि मां के पास खुद का घर है. दूसरा मुद्दा यह है कि क्या आप इतना कमा लेते हैं कि बेटी व उस के महंगे स्कूल का खर्च उठा सकें?’’

‘‘मैं कमा तो लेता हूं पर आमदनी रेग्युलर नहीं है. उस का स्कूल काफी महंगा है.’’

‘‘तीसरा सवाल जो सब से जरूरी है, आप की बेटी मैट्रिक में पढ़ रही है, समझदार है. क्या वह आप के पास रहने को राजी है या मां के पास रहना चाहती है?’’

‘‘ये तो जाहिर सी बात है कि वह अपनी मां के साथ रहना पसंद करती है.’’

‘‘देखिए अफजल साहब, कोर्ट औलाद की कस्टडी के लिए इन्हीं 3 बातों पर गौर करती है. इन 3 खास मुद्दों पर आप का जवाब नेगेटिव है, कोर्ट कभी भी आप को लड़की की कस्टडी नहीं देगी और आप को साफ बात बता दूं, मैं भी आप का केस नहीं लड़ सकता. मैं बेवजह आप से पैसे झटकना नहीं चाहता. हकीकत में आप का केस बहुत कमजोर है. जीतने का कोई चांस नहीं है.’’

उस दिन अफजल मेरे पास से बेहद मायूस हो कर गया. अब दोबारा आने की उम्मीद नहीं थी, पर कुछ दिनों बाद होटल के मालिक बशीर भाई मेरे सामने आ खड़े हुए. पहले मैं उन का एक केस लड़ चुका था और वह मुकदमा जीत गए थे. उन्होंने ही अफजल को मेरे पास भेजा था. आज वह फिर मेरे सामने खड़े थे. बोले, ‘‘बेग साहब, अफजल बड़ी मुसीबत में फंस गया है. वह जेल में बंद है. पुलिस ने उसे फरीद के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है.’’

‘‘फरीद वही न, एस्टेट एजेंट, जिस की वजह से अफजल ने अपनी बीवी को तलाक दी थी.’’

‘‘जी हां, वही अफजल और वही एस्टेट एजेंट फरीद. उसी के कत्ल के इलजाम में पुलिस ने कल सुबह उसे अदालत में पेश किया और 7 दिन का रिमांड हासिल कर लिया.’’

‘‘कब हुआ ये कत्ल?’’

‘‘कत्ल 15 मई को हुआ था. उसी दिन दोपहर को मेरे होटल से उसे गिरफ्तार कर लिया गया. वह सीधा, कुछ बेवकूफ जरूर है पर वह कत्ल नहीं कर सकता. बहुत डरपोक आदमी है. मैं उसे सालों से जानता हूं, उस के खिलाफ साजिश की गई है. मेरा शक तो रूमाना पर जाता है.’’

‘‘ठीक है, मैं आज थाने जा कर अफजल से मिलता हूं. आप को पक्का यकीन है न कि वह बेकुसूर है? आप केस के बारे में और मालूमात करें. उस ने मेरी फीस अदा कर दी.’’

उसी दिन शाम को मैं उस थाने पहुंच गया, जहां अफजल बंद था. मुझे देख कर उस के चेहरे पर रौनक आ गई. वह दुखी हो कर बोला, ‘‘देखिए सर, मुझे बेवजह इस केस में फंसा दिया गया है.’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने तुम्हारा केस हाथ में लिया है. चलो, मुझे सब कुछ सचसच बता दो.’’

वह बोला, ‘‘आप पूरी कोशिश कर के मुझे मौत से बचा लीजिए, भले ही मुझे थोड़ी सजा हो जाए. मैं फरजाना की शादी अपने हाथों से करना चाहता हूं.’’

मुझे थोड़ा ताज्जुब हुआ. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘तुम जल्द रिहा हो जाओगे, पर सच बोलना.’’

उस ने जो किस्सा सुनाया, उस का खुलासा यह है कि वह मेरा पहला मुलजिम था, जो थोड़ी सजा पर राजी था. जेहन में खयाल भी आया कि कहीं ये मुजरिम तो नहीं है जो कुछ उस ने कहा, मैं आप को बताता रहूंगा.

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