जनार्दन ने बाथरूम से बाहर आ कर ड्राइंगरूम की खिड़की खोली. सिर बाहर निकाल कर इधरउधर देखा. उस गली में कुल 12 मकान थे. 6 एक तरफ और 6 दूसरी तरफ. उन के मकान के बाईं ओर एक मकान था. जबकि दाहिनी ओर 4 मकान थे. उस के बाद पार्क था. उसी तरह सामने की लाइन में 6 मकान थे. पार्क के आगे वाले हिस्से में माली का क्वार्टर था. उसी के सामने एक दुकान थी. इस इलाके में घर के रोजमर्रा के सामानों की वही एक दुकान थी.
कालोनी के अन्य 11 मकानों में रहने वालों को जनार्दन अच्छी तरह जानते थे. उन्हें लगता नहीं था कि इन लोगों में कोई ऐसा काम कर सकता है. दुकान का मालिक पंडित अधेड़ था. उसे भी जनार्दन अच्छे से जानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पंडित इस तरह का काम कतई नहीं कर सकता.
चाय पी कर वह बाहर निकलने लगे तो लीना ने कहा, ‘‘सैवी अभी तक नहीं आई. जाते हुए जरा उसे भी देख लेना.’’
‘‘आ जाएगी. अभी तो कालोनी के सभी बच्चे खेल रहे हैं. और हां, खाना खाने की इच्छा नहीं है, इसलिए खाना थोड़ा देर से बनाना.’’
लीना ने जनार्दन के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’
‘‘आज काम थोड़ा ज्यादा था, इसलिए भूख मर सी गई है.’’ जनार्दन ने सफाई दी तो लीना बोली, ‘‘इस तरह काम करोगे, तो कैसे काम चलेगा.’’
खिड़की से हवा का झोंका आया. उस में ठंडक थी. नहीं तो पूरे दिन आकाश से लू बरसी थी. पत्थर को भी पिघला दे, इस तरह की लू. जनार्दन सैवी के बारे में सोच रहे थे. बदमाशों ने उसे न जाने कहां छिपा रखा होगा? उस के हाथ पैर बांध कर इस भीषण गर्मी में कहीं फर्श पर फेंक दिया होगा. जनार्दन का मन द्रवित हो उठा और आंखें भर आईं.
‘‘मैं जरा चैक के इस बारे में पता कर लूं.’’ दूसरी ओर मुंह कर के जनार्दन घर से बाहर आ गए. गली सुनसान थी. वह पंडित की दुकान पर जा कर बोले, ‘‘कैसे हो पंडितजी, आज इधर कोई अनजान आदमी तो दिखाई नहीं दिया?’’
पंडित थोड़ी देर सोचता रहा. उस के बाद हैरान सा होता हुआ बोला, ‘‘नहीं साहब, कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया.’’ इस के बाद उस ने मजाक किया, ‘‘बैंक मैनेजर अब नौकरी बचाने के लिए खातेदारों की तलाश करने लगे हैं क्या?’’
पंडित के इस मजाक का जवाब दिए बगैर जनार्दन आगे बढ़ गए. वह पलट कर चले ही थे कि पंडित के दुकान में लगे फोन की घंटी बजी. पंडित ने रिसीवर उठाया, उस के बाद हैरानी से बोला, ‘‘अरे पांडेजी, आप का फोन है. ताज्जुब है, फोन करने वाले को यह कैसे पता चला कि आप यहां हैं?’’
जनार्दन ने फुर्ती से पंडित के हाथ से रिसीवर ले कर कहा, ‘‘हैलो.’’
वही पहले वाली जानी पहचानी घुटी हुई अस्पष्ट आवाज, ‘‘पांडेजी आप अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हैं, तो मैं जैसा कहूं, वैसा करो. देख ही रहे हो. आजकल एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं, आप की बेटी का भी हो सकता है. याद रखिएगा 9 बजे.’’
‘‘मुझे पता कैसे चलेगा…?’’ जनार्दन ने कहा. लेकिन उन की बात सुने बगैर ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया. उन्होंने तुरंत रिसीवर रख दिया और उत्सुकता की उपेक्षा कर के आगे बढ़ गए.
अब उन्हें 9 बजे का इंतजार करना था. वह परेशान हो उठे. इतनी देर तक वह अपना क्षोभ और सैवी के अपहरण की बात कैसे छिपा पाएंगे. क्योंकि घर पहुंचते ही लीना बेटी के बारे में पूछने लगेगी. उन्हें लगा लीना को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. यही सोचते हुए वह कालोनी के गेट की ओर बढ़े. तभी उन्होंने देखा, कालू माली 2 बच्चों को गालियां देते हुए दौड़ा रहा था.
शायद उन्होंने फूल तोड़ लिए थे. गेट के बाहर आते ही एक बच्चा सड़क पर गिर पड़ा. भयंकर गर्मी से सड़क का पिघला तारकोल अभी ठंडा नहीं पड़ा था. वह बच्चे के घुटने में लग गया तो वह कुछ उस से और कुछ कालू माली के डर से रोने लगा. बड़बड़ाता हुआ कालू उस की ओर दौड़ा. उस ने बच्चे को उठा कर खड़ा किया और उस के घुटने में लगा तारकोल अपने अंगौछे से साफ कर दिया. तारकोल पूरी साफ तो नहीं हुआ फिर भी बच्चे को सांत्वना मिल गई. उस का रोना बंद हो गया.
कालू अपना अंगौछा रख कर खड़ा हुआ, तब तक जनार्दन उस के पास पहुंच गए. उन्हें देख कर वह जानेपहचाने अंदाज में मुसकराया. जनार्दन ने पूछा, ‘‘कालू, इधर कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया?’’
‘‘नहीं साहेब, अनजान पर तो मैं खुद ही नजर रखता हूं. आज तो इधर कोई अनजान आदमी नहीं दिखा.’’
जनार्दन घर की ओर बढ़े. अब 9 बजे तक इंतजार करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह जैसे ही घर पहुंचे, फोन की घंटी बजी. जनार्दन चौंके. अपहर्त्ता ने तो 9 बजे फोन करने को कहा था. फिर किस का फोन हो सकता है. कहीं अपहर्त्ता का ही फोन तो नहीं, यह सोच कर उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.
उन के ‘हैलो’ कहते ही इस बार अपहर्त्ता ने कुछ अलग ही अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने 9 बजे फोन करने को कहा था. लेकिन 9 बजे फोन करता, तो आप के पास मेरी योजना को साकार करने के लिए समय कम रहता. इसलिए अभी फोन कर रहा हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो, जैसे ही बात खत्म हो, कार से बैंक की ओर चल देना.
‘‘बैंक के पीछे वाले दरवाजे से अंदर जाना और उसे खुला छोड़ देना. गार्ड को कहना वह आगे ही अपनी जगह बैठा रहे. तुम तिजोरी वाले स्ट्रांगरूम में जाना और तिजोरी खुली छोड़ देना. तिजोरी और स्ट्रांगरूम का दरवाजा खुला छोड़ कर तुम जा कर अपने चैंबर में बैठ जाना.
चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद कर के साढ़े 10 बजे तक वहीं बैठे रहना. उस के बाद तुम्हें जो करना हो करना, मेरी ओर से छूट होगी.’’
‘‘और उस की सलामती का क्या?’’ जनार्दन ने लीना के आगे सैवी का नाम लिए बगैर पूछा, ‘‘मुझे कैसे विश्वास हो कि उस का कुछ…’’
अपहर्त्ता ने जनार्दन को रोक लिया, ‘‘मैं तुम्हें एक बात की गारंटी दे सकता हूं. अगर हमारी योजना में कोई खलल पड़ी, हमारे कहे अनुसार न हुआ या हमें रात 11 बजे तक पैसा ले कर शहर के बाहर न जाने दिया गया, तो तुम अपनी बेटी को जीवित नहीं देख पाओगे.’’
जनार्दन का कलेजा कांप उठा. उन्होंने स्वयं को संभाल कर कहा, ‘‘तुम जो कह रहे हो, यह सब इतना आसान नहीं है. तिजोरी में 2 चाभियां लगती हैं, एक चाभी मेरे पास है, तो दूसरी हमारे चीफ कैशियर राजकुमार के पास.’’
‘‘मुझे पता है. इसीलिए तो अभी फोन किया है और कार ले कर चल देने को कह रहा हूं. राजकुमार से मिलने का अभी तुम्हारे पास पर्याप्त समय है. उस से कैसे चाभी लेनी है. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’
‘‘अगर वह घर में न हुआ तो…?’’
‘‘वह घर में ही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में पता कर लिया है. नहीं भी होगा तो फोन कर के बुला लेना.’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.
रिसीवर रखते हुए जनार्दन का हाथ कांप रहा था. लीना ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है? तिजोरी की चाभी की क्या बात हो रही थी?’’
‘‘अरे उसी चैक की बात हो रही थी,’’ जनार्दन ने सहमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे अभी बाहर जाना होगा. थोड़ी परेशानी खड़ी हो गई है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.’’
‘‘सैवी अभी तक नहीं आई है. जाते समय उसे घर भेज देना. बहुत खेल लिया.’’
सैवी का नाम सुनते ही जनार्दन का दिल धड़क उठा. उन्होंने घर से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’
जनार्दन ने कार निकाली. थोड़ी देर स्टीयरिंग पर हाथ रखे चुपचाप बैठे रहे. अपहर्त्ता की बात मानना उन की मजबूरी थी. उन्होंने समय देखा, राजकुमार शहर के दूसरे छोर पर रहता था. शाम के ट्रैफिक में आने जाने में कितना समय लग जाए, कहा नहीं जा सकता. उन्हेंने उसे फोन कर के चाबी के साथ बैंक में ही बुलाने की सोची.
असहाय क्रोध की एक सिहरन सी पूरे शरीर में दौड़ गई. लेकिन उस समय शांति और धैर्य की जरूरत थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से क्रोध पर काबू पाया. घर से तो राजकुमार को फोन किया नहीं जा सकता था. मोबाइल फोन भी वह घर पर ही छोड़ आए थे. जिस से लीना फोन करे, तो पता चले कि फोन तो घर पर ही रह गया है. उस स्थिति में वह न उन के बारे में पता कर पाएगी, न सैवी के बारे में.