बिजनैस की वजह से अनिकेत अकसर शहर से बाहर ही रहता था. इधर एक सप्ताह का समयमिला तो कविता उस के इस समय का सदुपयोग कर लेना चाहती थी. उस ने उसी बीच शौपिंग की तैयारी कर ली. क्योंकि नवरात्र के त्यौहार नजदीक आ रहे थे. ्र
दोनों बच्चों के लिए कपड़े, चप्पल और जूते तो खरीदने ही थे, अपने और अनिकेत के लिए भी कुछ खरीदारी करनी थी. घर के लिए भी थोड़ाबहुत सामान खरीदना था. कविता जानती थी कि अगर आज उस ने यह काम न निपटाया तो बाद में अनिकेत से यही सुनने को मिलेगा, ‘‘प्लीज कविता, तुम बच्चों के साथ जा कर सारी खरीदारी कर लो न. यार देख तो रही हो कि मेरे पास समय कहां है.’’
जल्दीजल्दी तैयार हो कर सभी घर से बाहर निकले. दोनों बच्चे ऋतु और राज बहुत खुश थे. क्योंकि उस दिन उन्हें पूरे दिन पापा के साथ रहने को मिलने वाला था. सभी लोग गाड़ी में बैठ गए. ऋतु और राज पीछे बैठे थे तो कविता अनिकेत के बगल आगे वाली सीट पर बैठी थी.
अनिकेत ने कविता की ओर ताकते हुए कहा, ‘‘अरे वाह जानेमन, आज किस का कत्ल करने का इरादा है? यलो और ग्रीन कलर की इस ड्रेस में तो तुम बहुत सुंदर लग रही हो.’’
कविता ने भी मजाक में कहा, ‘‘अब अकेले नहीं जिया जा रहा इसलिए…’’
कविता की इस बात पर अनिकेत हंसने लगा तो उसी के साथ कविता भी हंस पड़ी. बच्चों की कुछ समझ में नहीं आया, पर मम्मीपापा को हंसते देख वे भी हंसने लगे.
अनिकेत की कार अपनी रफ्तार से आगे बढ़ी जा रही थी. शहर के एक जानेमाने मौल में उन्हें शौपिंग करनी थी. वे जिस रास्ते से जा रहे थे, उस रास्ते पर 2 ट्रैफिक सिग्नल पड़ते थे. पहला सिग्नल दिखाई दिया तो हरी बत्ती थी. अनिकेत ने कार की रफ्तार बढ़ा दी कि लालबत्ती होने से पहले ही सिग्नल पार कर जाए. पर ऐसा हुआ नहीं. सिग्नल तक पहुंचतेपहुंचते लालबत्ती हो गई. सिग्नल पर अनिकेत को कार रोकनी पड़ी.
अनिकेत के कार रोकते ही 2-3 महिलाएं छोटेछोटे बच्चे ले कर आईं और पैसे मांगने के लिए उन्होंने कार को घेर लिया. कांच को खटखटा कर वे पैसे मांग रही थीं. अनिकेत को इस सब से सख्त नफरत थी. उस का कहना था कि ये कोई भी मौका नहीं छोड़तीं. निकम्मे बने बैठे रहते हैं. जब बिना मेहनत के ही सब कुछ मिल रहा हो तो इन्हें मेहनत करने की जरूरत ही क्या है.
लेकिन कविता का स्वभाव थोड़ा अलग था. उस के अंदर सहज ही संवेदना और सहानुभूति भरी थी. वह किसी की आंखों में जरा भी आंसू देखती तो उसे दया आ जाती. आखिर वह थी तो महिला न. खिड़की खटाखटा कर हाथ फैलाए खड़ी महिला सचमुच बीमार लग रही थी. लग रहा था, अभी जल्दी ही उसे बच्चा पैदा हुआ है. उस ने गोद में जो बच्चा ले रखा था, वह डेढ़दो महीने का लग रहा था.
कविता ने महसूस किया कि अभी इसे पैसों की सख्त जरूरत है, वरना इस हालत में यह बाहर न निकलती. उस की हालत देख कर यही लग रहा था कि कहीं यह चक्कर खा कर गिर न पड़े. कविता ने कहा, ‘‘अनिकेत, लगता है हमें इस की मदद करनी चाहिए.’’
अनिकेत को यह सब बिलकुल पसंद नहीं था. इसलिए वह उस की ओर से मुंह घुमा कर कार स्टार्ट करने लगा. कविता ने कहा, ‘‘एक सौ का नोट दो न. इस के लिए आज के खाने की व्यवस्था तो हो जाएगी.‘‘
‘‘नहीं,’’ अनिकेत ने कहा, ‘‘इस तरह पैसे दे कर इसे और निकम्मा नहीं बनाना. इसे मुफ्त में पैसे मिलते रहेंगे तो यह कभी काम करने के बारे में नहीं सोचेगी.’’
कविता से नहीं रहा गया. उस ने कहा, ‘‘चलो, इसे अपने घर ले चलते हैं, घर का काम कराने के लिए. यह भी तो हो सकता है कि इसे कोई काम न दे रहा हो. घर में कोई खयाल रखने वाला नहीं है, वरना इस हालत में यह घर से बाहर न निकलती. मुझे अभी भी याद है ऋतु के जन्म के समय तुम बाहर थे. अपनी स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी. उस समय मुझे कितना संघर्ष करना पड़ा था. पति साथ न हो तो किस तरह लगता है, यह मुझे अच्छी तरह पता है.’’
अनिकेत सिर झटकता रहा. कविता ने उसे किसी तरह मनाया तो अनिकेत ने गाड़ी किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद कविता गाड़ी से उतर कर उस महिला के पास गई और पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘किरण,’’ उस ने कहा.
‘‘तुम्हारे परिवार में और कौनकौन है? इस बच्चे का बाप कहां है? मर गया है या तुम्हें छोड़ कर चला गया है?’’ कविता ने पूछा.
कविता के इस सवाल पर किरण ने जो जवाब दिया, उसे सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. किरण ने कहा, ‘‘दीदी, क्या आप सचमुच मेरी मदद करना चाहती हैं? अगर कोई मदद नहीं कर सकतीं तो आज के लिए मेरे खाने की व्यवस्था ही कर दीजिए. क्योंकि मैं ने समाज की वास्तविकता और अपनी इस हालत को स्वीकार कर लिया है.’’
‘‘अगर तुम मेरे साथ मेरे घर चलना चाहो तो मैं तुम्हें ले जाने के लिए तैयार हूं. तुम मेरे घर का कामकाज करना और आराम से रहना.’’
कविता की इस बात से किरण खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘दीदीजी, आप ठीक से सोचविचार लीजिए.’’
‘‘मैं ने तो सोचविचार लिया है. अब तुम बताओ. तुम राजी हो न? मैं तो राजी हूं.’’ कविता ने कहा.
किरण तैयार हो गई तो कविता ने उसे गाड़ी में बैठाया और खरीदारी का प्रोग्राम पोस्टपोन कर के किरण को ले कर सीधे अस्पताल पहुंची. उस का पूरा हैल्थ चैकअप करा कर दवा लिखवाई. उस के बाद किरण के लिए 2-3 जोड़ी कपड़े खरीद कर रास्ते में एक रेस्टोरेंट से खाना पैक कराया और घर आ गई.
किरण के रहने की व्यवस्था आउटहाउस में कर के उसे खाना खिलाया और आराम करने के लिए कह कर कविता और अनिकेत अपने कमरे में आ गए.
अनिकेत अभी भी कविता के इस काम से सहमत नहीं था. इस तरह किसी अंजान को अपने घर ले आना और उस पर इस तरह विश्वास करना उस के स्वभाव में नहीं था. जबकि इस के उलट कविता को किसी पर क्षण भर में ही विश्वास हो जाता था. भले ही वह कितनी बार धोखा खा चुकी थी, पर उस का यह स्वभाव बदल नहीं रहा था.