कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

किरण की बेटी को पा कर कविता के दोनों बच्चों को तो जैसे छोटा सा खिलौना मिल गया था. इसलिए वे बाकी सब कुछ भूल कर उसी में व्यस्त थे. वह यही सोच रही थी कि आखिर अंत में किरण क्या कहने वाली है?

किरण कविता को लालबत्ती सिग्नल पौइंट से मिली थी. आखिर वह लालबत्ती क्या होगी? कविता ने उसे उस दिन डिस्टर्ब करना मुलतवी रखा. जब किरण पूरी तरह आराम कर के थोड़ा स्वस्थ हो जाए तो उस के बाद ही बात करने के लिए सोच कर कविता अन्य काम में लग गई.

अनिकेत बच्चों को ले कर प्रदर्शनी दिखाने चला गया तो कविता को अच्छाखासा समय मिल गया. उसने

खाना बनाया और आउटहाउस की ओर चल पड़ी.

तब तक किरण भी जाग गई थी. नहाधो कर नए कपड़े पहन कर वह तैयार हो कर बैठी थी. उस का तो पूरा रूप ही बदल गया था. वह कितनी सुंदर है कविता को अब खयाल आया था. साफसफाई और पहनावा कितना काम करता है, उसे अब पता चला था. कविता को देखते ही उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप ने क्यों कष्ट किया. मुझे बुला लिया होता.’’

‘‘कोई बात नहीं, अभी तुम बहुत कमजोर हो. इसलिए मैं ने सोचा कि मैं ही मिल आती हूं. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है? तुम्हें यहां अच्छा लगेगा न?’’

‘‘यह क्या कह रही हैं दीदी. आप तो मुझे स्वर्ग में ले आई हैं और अब पूछ रही हैं कि अच्छा लगेगा या नहीं? मैं तो सड़क पर रहने वाली हूं.’’ किरण ने भर्राए स्वर में कहा.

कविता को सचमुच उस पर दया आ गई. अनुकंपा से उस का शरीर कुछ पलों के लिए कांप उठा. एक जवान और सुंदर औरत ने किस तरह सड़क पर खुले में दिन बिताए होंगे?

कविता ने कहा, ‘‘उस समय तो तुम ने मेरी बात टाल दी थी. अब बताओ, इस बच्चे के बाप ने तुम्हें छोड़ दिया है या अब वह इस दुनिया में नहीं है?’’

कविता के इस सवाल पर थोड़ी देर चुप रहने के बाद किरण ने अपनी जो आपबीती सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

किरण के बाप ने उसे वेश्याओं के एक अड्डे पर बेच दिया था, लेकिन संयोग से उसे वहां से भागने का मौका मिल गया तो वह वहां से भाग निकली. घर के नाम पर जो एक झोपड़ी थी, अब वह भी उस के नसीब में नहीं रह गई थी. वह जहां भी काम मांगने जाती, वहां सब से पहले लोगों की नजर उस की आकर्षक युवा देह और सुंदरता पर पड़ती. नजर भांप कर वह वहां से खिसक लेती.

उसी बीच उस की मुलाकात अशोक नाम के एक आदमी से हुई. वह किसी गैंग के लिए काम करता था. उस ने किरण से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ रहो. मैं गारंटी लेता हूं कि तुम्हारी इज्जत सहीसलामत रहेगी, पर तुम्हें भीख मांगनी होगी.’’

अशोक ने किरण से कहा कि वह उसे एक बच्चा देगा, जिसे ले कर वह भीख मांगेगी. इस बीच उसे कोई छेड़ेगा तक नहीं. इस की जिम्मेदारी उस ने ले ली. इस तरह किरण ने भीख मांगने का धंधा शुरू कर दिया. रेलवे प्लेटफार्म, शौपिग मौल, अस्पताल,  ट्रैफिक सिग्नल आदि अलगअलग जगहों पर अशोक उसे पहुंचा देता, जहां किरण भीख मांगती.

भीख मांगने में उसे जो कुछ भी मिलता था, वह सब उस का होता था. इस के एवज में उसे अशोक का एक काम करना पड़ता था. वह किरण को पौलीथिन का एक बैग देता था, जिसे किरण को अशोक द्वारा बताई गाड़ी में रखना होता था. शुरू में किरण को पता नहीं था कि उस पौलीथिन के बैग में अशोक उसे क्या देता था. बाद में उसे पता चला कि उस पौलीथिन के बैग में ड्रग्स होता था. इस का मतलब अशोक ड्रग्स का धंधा करता था.

एक हिसाब से देखा जाए तो किरण भी उस के इस ड्रग्स के धंधे में शामिल थी. इनकार करने का सवाल ही नहीं उठता था. वे लोग किरण के साथ कुछ भी कर सकते थे. किरण चुपचाप वहां से भाग निकली.

अब किरण के सामने फिर वही सवाल उठ खड़ा हुआ था कि इस सुंदर काया को ले कर वह कहां जाए. पर अब तक उसे भीख मांगना आ गया था. यह धंधा बुरा नहीं था.

मैलेकुचैले कपड़े पहन कर, सुंदर काया को गंदीसंदी बना लिया जाए तो किसी को पता ही नहीं चलेगा कि वह कितनी सुंदर है. किसी की अनुकंपा हो गई तो वह 10 के बदले 20 दे देगा. इसलिए किरण ने भीख मांगने वाला अपना काम चालू रखा. दिन भर किरण भीख मांगती. अकसर उसी के साथ कुछ न कुछ खाने को भी मिल जाता था. दिन भर भीख मांगती और रात को रेलवे प्लेटफार्म की किसी बेंच पर सो जाती.

पर शायद नियति को उस का इस तरह जीना भी मंजूर नहीं था. एक रात किरण बेंच पर सो रही थी, तभी 4-5 लड़के शराब पी कर लड़खड़ाते हुए आए. उन्हें देख कर किरण डर गई. कहीं वे उस के साथ कुछ कर न बैठें, यह सोच कर वह वहां से उठी और जहां कुछ लोग सो रहे थे, उन के बीच जा कर लेट गई.

उस दिन तो कुछ नहीं हुआ. पर एक दिन उसे थोड़ा बुखार जैसा लग रहा था. उस दिन भीख में भी कुछ नहीं मिला था, इसलिए सुबह से ही उस का पेट खाली था. भूख और हरारत की वजह से उस की आंखें नहीं खुल रही थीं. उस रात वह उन लड़कों की हवस का शिकार बन गई.

दुनिया भी गजब की है. इज्जत लुटने के बाद किरण को लगा कि अब वह कहीं की नहीं रही. यह सोच कर वह आत्महत्या करने रेलवे ट्रैक पर पहुंची. लेकिन वहां भी उसे एक संभ्रांत महिला ने बचा लिया. वह किरण को अपने घर ले गई. पर कुछ दिनों बाद उस के पेट में पल रहा पाप उजागर हो गया. उस महिला को समाज का डर लगा. उस के घर के मर्दों पर समाज अंगुली उठाएगा, यह सोच कर उस ने किरण को अपने घर से भगा दिया.

एक बार फिर वह सड़क पर आ गई. धीरेधीरे दिन पूरे होने लगे. किसी दिन कुछ खाने को मिल जाता तो किसी दिन कुछ भी न मिलता. किसी दिन कुछ पैसे मिल जाते तो किसी दिन केवल अपमान ही मिलता. इसी तरह दिन बीत रहे थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...