अतिरिक्त जिला जज आफाक अहमद ने सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा पर गहरी नजर डाल कर कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारा आखिरी केस यादगार बन जाए, इसलिए खलील मंगी को कल जेल से अदालत लाने और फैसले के बाद हिफाजत से उस के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं.’’
सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा ने पहलू बदलते हुए कहा, ‘‘इस में यादगार बनने वाली क्या बात है? यह तो मेरा फर्ज है, जिसे मैं और मेरे साथी बखूबी निभाएंगे.’’
जज आफाक अहमद और डीएसपी खावर रंधावा पुराने दोस्त तो थे ही, समधी बन जाने के बाद उन की यह दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदल गई थी.
‘‘मैं ने मंगी को रिहा करने का फैसला कर लिया है.’’ आफाक अहमद ने यह बात कही तो डीएसपी रंधावा को झटका सा लगा. हैरानी से वह अपने बचपन के दोस्त का चेहरा देखते रह गए. जबकि वह एकदम निश्चिंत नजर आ रहे थे. जिस आदमी के बारे में मीडिया और कानून के जानकार ही नहीं, पूरे देश में मशहूर था कि उन्होंने आज तक किसी भी गुनहगार को नहीं छोड़ा, शायद उन्होंने जिंदगी का मकसद ही गुनाहगार को सजा देना बना लिया था, आज वही शख्स एक घिनौने और बेरहम अपराधी को छोड़ने की बात कर रहा था.
उन्होंने कहा, ‘‘तुम उस घिनौने कातिल को छोड़ दोगे, जिस ने 15 साल की एक मासूम बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना कर बेरहमी से मार डाला था. भई, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि तुम ऐसा काम करोगे. जिस आदमी की ईमानदारी और फर्ज अदायगी पर लोग आंख मूंद कर यकीन करते हों, वह भला ऐसा काम कैसे कर सकता है?’’
रंधावा की बातों में शिकायत थी. आफाक अहमद निराशा भरे अंदाज में अपना सिर कुरसी की पुश्त से टिकाते हुए धीरे से बोले, ‘‘जिस तरह मेरे आदेश पर तुम उस की हिफाजत करने के लिए मजबूर हो, उसी तरह कानूनी मजबूरियों की वजह से मैं भी उसे रिहा करने को मजबूर हूं.’’
रंधावा होंठ भींचे उन्हें देखते रहे तो आफाक अहमद ने आगे कहा, ‘‘तुम अदालती काररवाई के बारे में तो जानते ही हो. चश्मदीद गवाहों ने अपने बयान बदल दिए हैं, मैडिकल रिपोर्ट भी पैसे के बल पर बदलवा दी गई है, केवल घटना के आधार पर तो सजा नहीं दी जा सकती. फिर कोई मजबूत पक्ष भी नहीं है, इसलिए मुझे मजबूरन कल उसे रिहा करना होगा.’’
रंधावा के चेहरे पर निराशा के भाव साफ झलकने लगे. दोस्त वाकई बेबस था. मजबूत एफआईआर के साथ अगर गवाह अपने बयानों पर टिके रहते तो दुनिया की कोई भी ताकत खलील मंगी को फांसी पर चढ़ने से नहीं रोक सकती थी.
आफाक अहमद के कमरे में खामोशी छा गई. उस समय दीवार पर लगी आधा दरजन घडि़यों की टिकटिक की आवाज ही आ रही थी जो उन के कमरे की दीवारों पर चारों ओर लगी थीं. तरहतरह की नईपुरानी घडि़यों को जमा करना और उन्हें दीवारों पर लगाना आफाक अहमद का शौक था. रंधावा ने अचानक कहा, ‘‘फिर तो खलील के हाथों मारी गई दुआ के लिए दुआ ही की जा सकती है. उस का भाई शाद अली, जो कैप्टन था, अच्छा होगा वह अपने दावे में कामयाब हो जाए.’’
आफाक अहमद ने भी दुखी लहजे में कहा, ‘‘खुदा करे, वह अपने मकसद में कामयाब हो.’’
फौज में कैप्टन शाद अली ने 2 बार हिरासत के दौरान खलील मंगी पर कातिलाना हमला किया था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. उस के बाद वह एकदम से गायब हो गया था.
इलेक्ट्रौनिक मीडिया के जरिए उस ने दावा किया था कि अगर खलील मंगी को अदालत से रिहा किया तो वह अदालत में जज के सामने ही उसे जान से मार देगा. इस तरह की बातों को उछालने में मीडिया को वैसे भी बड़ा मजा आता है. इसलिए न्यूज चैनलों ने इसे बारबार दिखा कर लोगों में एक अजीब तरह का एक्साइटमेंट पैदा कर दिया था. इसीलिए यह फैसला मीडिया, अवाम और कानून के लिए एक चुनौती बन गया था.
कमरे की सभी घडि़यों ने 9 बजने की घोषणा की तो तरहतरह के म्यूजिक ने कमरे के सन्नाटे को भंग कर दिया. चंद पलों के लिए आफाक अहमद ने अपनी आंखें बंद कर लीं. ये आवाजें उन्हें बड़ा सुकून देती थीं. आवाजों के बंद होने पर उन्होंने कहा, ‘‘दोस्त हमें अपना फर्ज अदा करना है और उस सिरफिरे कैप्टन से मंगी को बचाना है. अब देखना है कि आखिर कौन कामयाब होता है?’’
रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी सारी दुआएं उस सिरफिरे कैप्टन के साथ हैं. खुदा करे वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए. दिल तो चाहता है कि मैं ही उस की कोई मदद कर दूं. लेकिन अगले हफ्ते मैं खुद ही रिटायर हो रहा हूं. इसलिए अपने बेदाग कैरियर पर मैं कोई धब्बा नहीं लगने देना चाहता. इस इमेज को बनाने में मैं ने पूरी उम्र लगा दी है, अब उसे दांव पर नहीं लगा सकता. फिर भी दुआ तो कर ही सकता हूं कि शाद अली उस जालिम कातिल को बरी होने के बाद खत्म कर दे.’’
रंधावा के लहजे में नफरत साफ झलक रही थी.
आफाक अहमद ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘डीएसपी रंधावा, इसीलिए मैं ने तुम्हें इस काम के लिए चुना है, क्योंकि मुझे यकीन है कि यह मामला तुम्हारे लिए यादगार होगा.’’
डीएसपी रंधावा ने रात को ही अपने तेजतर्रार साथी इंसपेक्टर गुलाम भट्टी के साथ मिल कर अगले दिन की सुरक्षा व्यवस्था की पूरी योजना बना डाली थी. अतिरिक्त पुलिस बल की भी व्यवस्था कर ली गई थी. खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत ले आने और ले जाने की व्यवस्था पहले से ही थी. सुरक्षा की पूरी योजना बना कर गुलाम भट्टी ने कहा, ‘‘सर, हम लोगों को अपना पूरा ध्यान अदालत के कमरे पर रखना होगा.’’
रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि अदालत के कमरे में खलील मंगी को मौत के घाट उतारने वाली बात उस ने केवल हमें भटकाने के लिए कही है. कैप्टन अदालत के बाहर कहीं पर भी उस पर हमला कर सकता है.’’
‘‘फिर तो बख्तरबंद गाड़ी को हमें अदालत के अहाते के बजाय अदालत के कमरे तक ले जाना चाहिए.’’ गुलाम भ्टटी ने कहा.
अगले दिन खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत के कमरे तक लाया गया. और जज आफाक अहमद की मेज के दाईं तरफ बने मुल्जिमों के कटघरे में खड़ा किया गया. उस की आंखों में जीत की चमक साफ झलक रही थी. उसे पूरा यकीन था कि थोड़ी देर में उसे रिहा कर दिया जाएगा. उस ने ताजा शेव किया हुआ या और कौटन का सफेद सलवार कुरता पहने था.
क्रमशः