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खलील मंगी गहरे सांवले रंग का ऊंचापूरा सेहतमंद कसरती बदन का मालिक था. कहने को तो वह बिल्डर था, लेकिन असल में वह जमीन माफिया था. रोजाना शाम को वह एक आधुनिक ‘हेल्थ एंड फिटनेस’ क्लब में वर्जिश करने जाता था. उसी क्लब के एक हिस्से में महिलाएं भी वर्जिश करती थीं. दुआ अली भी इसी क्लब में वर्जिश के लिए आती थी, लंबीछरहरी, खूबसूरत, जवानी में कदम रख चुकी 15 साल की मासूम सी लड़की दुआ मंगी को पसंद आ गई.

मंगी ने उस से दोस्ती की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा. एक दिन पार्किंग में मंगी ने दुआ के कंधे पर हाथ रख दिया तो गुस्से में दुआ ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. इस के बाद तो उस ने जबरदस्ती दुआ को बांहों में उठाया और अपनी गाड़ी में डाल कर भाग निकला. दुआ चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन उस की मदद के लिए कोई नहीं आया. अगले दिन दुआ का रौंदा बेजार शरीर शहर के मशहूर पार्क में पड़ा मिला. जिंदगी की डोर काटने से पहले उसे बड़ी ही बेरहमी से कई बार बेआबरू किया गया था.

दुआ को उठा कर कार में डालते हुए खलील मंगी को कई लोगों ने देखा था, इसलिए शकशुबहा की कोई गुंजाइश नहीं थी. दुआ का भाई शाद अली फौज में अफसर था इसलिए तुरंत काररवाई कर के मंगी को गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में मंगी ने रसूख व पैसे का जोर दिखाया, कुछ गवाह जान के खौफ से पीछे हट गए तो कुछ ने पैसे ले कर बयान बदल दिए यानी उन्हें खरीद लिया गया. पैसे के ही जोर पर मैडिकल रिपोर्ट भी बदलवा दी गई और अब वह जालिम कातिल किसी और दुआ के लिए बददुआ बनने के लिए रिहा हो कर आ रहा था.

जज आफाक अहमद आ कर अपनी सीट पर बैठ चुके थे. पेशकार ने पहले से ही टाइप की हुई फैसले की फाइल सामने रख दी थी. अदालत में दोनों ओर के वकीलों के अलावा बार काउंसिल के सदर कामरान पीरजादा, मीडिया के कुछ प्रतिनिधि, दुआ अली के कुछ रिश्तेदार, खलील मंगी का बड़ा भाई और सुरक्षा से जुड़े चंद लोगों के अलावा किसी अन्य को दाखिल होने की इजाजत नहीं थी.

अंदर आने वाले हर शख्स की बड़ी बारीकी से तलाशी ली गई थी. मीडिया वालों का हर सामान चेक किया गया था. बम डिस्पोजल स्क्वायड ने भी अदालत के कमरे को खूब अच्छी तरह से चैक किया गया था. डीएसपी रंधावा और इंसपेक्टर गुलाम भट्टी खुद भी काफी चौकन्ने थे.

दीवार पर लगी घड़ी ने 11 बजने की घोषणा की. जज आफाक अहमद ने मेज के सामने खड़े सफाई वकील को बैठने के लिए कह कर चश्मा ठीक किया. उस के बाद उन्होंने फैसला सुनाना शुरू किया, ‘‘हालात, वाकयात और गवाहों के बयानों से अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि खलील मंगी वल्द जलील मंगी बेगुनाह है.’’

यह फैसला नहीं, एक खंजर था, जिस ने दुआ के प्यारों की जान निकाल दी थी. उन की उम्मीदों का कत्ल कर दिया था. उन के चेहरों पर दुख और आंखों से आंसू उमड़ पड़े थे. जबकि मंगी के भाई का चेहरा खुशी से चमक उठा था.

दोनों भाइयों ने विजयी भाव से एक दूसरे को देखा. रंधावा और भट्टी की नजर वहां उपस्थित हर शख्स की हर हरकत पर थी. वह लम्हा आने ही वाला था, जिस का दावा किया गया था. वैसे तो हर तरफ सुकून था. उन्हें यकीन था कि कैप्टन शाद अली ने भटकाने के लिए वह दावा किया था. यकीनन वह वापसी पर मंगी पर हमला करेगा.

जज आफाक अहमद ने एक बार फिर चश्मे को ठीक किया. उस के बाद एक नजर मंगी पर डाल कर बोले, ‘‘इसी बुनियाद पर अदालत खलील मंगी वल्द जलील मंगी को बाइज्जत बरी करने का हुक्म देती है.’’

खलील मंगी ने खुशी से बेकाबू हो कर अपने दोनों हाथ ऊपर किए. उसी पल मीडिया वालों के कैमरे उस पर चमकने लगे. तभी वह अचानक लड़खड़ाया. बगल में खड़े सिपाही ने उस के मुंह से निकली सिसकारी सुनी. मंगी का एक हाथ सीने पर गया और उसी के साथ वह कटघरे की रेलिंग से टकराया. रेलिंग टूट गई और वह जज की मेज के सामने जा गिरा. पलभर के लिए जैसे सन्नाटा पसर गया. रंधावा ने हैरानी से पलकें झपकाईं. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह जो देख रहा है, वह हकीकत है या भ्रम हो रहा है.

एक साथ कई तरह की आवाजें गूंजी. लेकिन सब से अलग और तेज आवाज मंगी के भाई की थी. वह चीख कर अपने भाई की ओर दौड़ा. लेकिन इंसपेक्टर गुलाम भट्टी ने उसे बीच में ही पकड़ लिया, ‘‘खुद पर काबू रखो.’’

जज आफाक अहमद उठे और अदालत से लगे अपने चैंबर में चले गए. सुरक्षा में लगे लोग हरकत में आ गए. ऐंबुलैंस के लिए फोन किया जा चुका था. मंगी का भाई बेकाबू हो रहा था. उसे जबरदस्ती बाहर ले जाया गया. बाकी लोगों को उन की जगहों पर बैठा कर तलाशी ली जाने लगी.

दुआ के बूढ़े चाचा और बहनोई के चेहरे पर एक अजीब सी खुशी और सुकून था. उन के हाथ दुआ के लिए उठे हुए थे. वे दिल से खुद के शुक्रगुजार थे. मंगी का जिस्म कुछ झटके खा कर शांत पड़ गया था. होंठों पर नीला झाग उभर आया था. दुआ अली का मुजरिम खत्म हो गया था.

कैप्टन शाद अली अपने दावे में कामयाब हो गया था. मंगी के सीने पर दाईं ओर एक सुई जैसा बड़ा सा तीर घुसा था, जो बहुत घातक जहर में बुझा हुआ था. ताज्जुब की बात यह थी कि उस तीर को वहां कैसे और किस ने उस पर चलाया था? ये दिमाग को चकराने वाले सवाल थे. ऐंबुलैंस आ चुकी थी. पुलिस हेडक्वार्टर से इन्वैस्टीगेशन टीम आने वाली थी, इसलिए अदालत के कमरे को बंद कर दिया गया था.

सभी लोगों की अच्छी तरह से तलाशी ले ली गई थी. इन्वैस्टीगेशन टीम की काररवाई के बाद मंगी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. कुछ देर बाद आफाक अहमद अपना ब्रीफकेस ले कर निकलने लगे तो रंधावा के पास आ कर धीरे से बोले, ‘‘वह अपने मकसद में कामयाब हो गया. मैं ने कहा था न कि यह तुम्हारे लिए एक यादगार केस होगा.’’

रंधावा खामोश रहे. उन का दिमाग तेजी से चल रहा था. गाड़ी आई और आफाक अहमद बैठ कर चले गए. इंसपेक्टर भट्टी और डीएसपी रंधावा सिर जोड़े बैठे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ?

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. स्पेशल इन्वैस्टीगेशन टीम की भी शुरुआती रिपोर्ट आ गई थी. उस के अनुसार मंगी के सीने में वह जहरीला तीर, बिलकुल सामने से 6 फुट की ऊंचाई से चलाया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मंगी की मौत बेहद घातक जहर से हुई थी. मंगी का कद 6 फुट 1 इंच था. इस के अलावा मुल्जिमों का कटघरा जमीन से करीब 8 इंच ऊंचा था.

उस के सामने गवाहों वाला कटघरा था. उस के सामने दीवार थी, जिस पर एक घड़ी टंगी थी. कटघरे, दीवार घड़ी आदि सभी चीजों को अच्छे से चैक किया गया था. बाद में भी उन में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी. अब सवाल यह था कि क्या कैप्टन शाद अली जादू की टोपी पहन कर अदालत के कमरे में आया और मंगी को मार कर आराम से चला गया. इन सवालों ने पुलिस को परेशान कर दिया था.

रंधावा ने पता कर लिया था कि शाद अली उस जहर और हथेली की साइज की अल्ट्रामाडर्न एरोगन चलाने वाले दस्ते से जुड़ा था. जहरीले तीर के चलने के स्थान और ऊंचाई को देख कर अदालत में मौजूद सभी लोग शक के दायरे से बाहर हो गए थे.

                                                                                                                                              क्रमशः

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