Social Story in Hindi : ज्यादातर सूदखोरों का धंधा अवैध रूप से और दबंगई के बूते पर चलता है. कोई व्यक्ति इन के चंगुल में फंस जाता है तो वह इन की ब्याजरूपी दलदल से मुश्किल से निकल पाता है. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ भी इन के जाल में इस कदर उलझ गए थे कि करोड़ों रुपए अदा करने के बाद भी वह…
22 अप्रैल, 2021 की शाम लगभग 5 बजे की बात है. मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर शहर की कोतवाली के टीआई उमेश दुबे को सूचना मिली कि नरसिंहपुर-करेली रेलमार्ग पर स्थित टट्टा पुल के पास रेल पटरियों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची तो रेल पटरियों के बीच में एक आदमी की लाश क्षतविक्षत हालत में पड़ी थी. लग रहा था जैसे उस ने जानबूझ कर आत्महत्या की हो. वह अचानक दुर्घटना का मामला नहीं लग रहा था. उस आदमी का चेहरा पहचानने में नहीं आ रहा था. पुलिस ने सब से पहले वह शव रेल लाइनों के बीच से हटवा कर साइड में रखवा दिया ताकि उस लाइन पर ट्रेनों का आवागमन सुचारू रूप से हो सके.
इस के बाद उस के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में एक मोबाइल फोन और एक चाबी मिली. तब तक कई लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. पुलिस जांच कर ही रही थी कि तभी किसी ने पुलिस को रेल लाइन के नजदीक सड़क पर खड़ी एक लावारिस स्कूटी के बारे में जानकारी दी. जांच में वह स्कूटी वहां जमा भीड़ में से किसी की नहीं थी. एक पुलिसकर्मी ने स्कूटी की डिक्की खोली तो उस में शादी का निमंत्रण कार्ड मिला, जिस के आधार पर पता चला कि वह शादी का कार्ड डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के नाम का था.
कोतवाली पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए वह जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद भादंवि की धारा 174 (संदिग्ध मृत्यु) का मामला दर्ज कर लिया. सिद्धार्थ तिगनाथ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह शहर के एक जानेमाने डाक्टर थे. इसलिए पुलिस ने मोबाइल फोन के जरिए डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के घर वालों की सूचना दी. उस समय सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ अपने ही रेवाश्री हौस्पिटल में मरीजों का इलाज कर रहे थे. जैसे ही उन्हें सिद्धार्थ के रेल से कटने की सूचना मिली, वे अपना होश खो बैठे. आननफानन में अस्पताल का स्टाफ डा. दीपक तिगनाथ और घर वालों को ले कर जिला अस्पताल पहुंच गए.
अस्पताल में सिद्धार्थ का शव देख कर घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. सिद्धार्थ की पत्नी अपने 5 साल के बेटे को सीने से चिपकाए बिलख रही थी. घर वालों को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार सिद्धार्थ ने इस तरह का आत्मघाती कदम क्यों उठा लिया. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ नगर के प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता एवं पेशे से दंत चिकित्सक थे. सोशल मीडिया पर यह खबर पूरे जिले में जब वायरल हुई तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि एक हाईप्रोफाइल डाक्टर फैमिली का सदस्य आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है. लौकडाउन के बावजूद देखते ही देखते जिला अस्पताल में डा. तिगनाथ के रिश्तेदार और उन के प्रशंसकों की भीड़ जमा होने लगी.
सिद्धार्थ की एकलौती बहन गार्गी रीवा में थी. दूसरे दिन जब वह नरसिंहपुर पहुंची तो पोस्टमार्टम के बाद सिद्धार्थ का अंतिम संस्कार किया गया. जब 5 साल के बेटे ने डा. सिद्धार्थ की चिता को मुखाग्नि दी तो उपस्थित घर वालों एवं अन्य लोगों की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. प्रारंभिक जांच में पुलिस ने डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के कुछ मित्र और परिजनों के बयान दर्ज किए. मामले की तहकीकात के लिए पुलिस ने सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां ज्योति तिगनाथ, पत्नी नेहा के अलावा नरसिंहपुर के सुरेश नेमा, शेख रियाज, प्रसन्न तिगनाथ, घनश्याम पटेल कुंजीलाल गोविंद पटेल के बयान दर्ज किए. इस के बाद पुलिस टीम ने रेलवे स्टेशन नरसिंहपुर के स्टाफ के बयान दर्ज किए.
इस से पता चला कि डा. सिद्धार्थ ने ट्रेन से कट कर अपनी जीवनलीला समाप्त की थी. रेलवे स्टाफ ने पुलिस को बताया कि ट्रेन के ड्राइवर के हौर्न बजाने के बाद भी सिद्धार्थ रेल पटरियों से दूर नहीं हुए थे. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर मुख्यालय में रेवाश्री हौस्पिटल एक बड़ा प्राइवेट हौस्पिटल है, जिस के डायरेक्टर डा. दीपक तिगनाथ हैं. मैडिसिन में एमडी डिग्रीधारी कार्डियोलौजिस्ट डा. दीपक तिगनाथ पिछले 4 दशकों से पूरे जिले में अपनी चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं. डा. दीपक तिगनाथ के परिवार में एक बेटा सिद्धार्थ और एक बेटी गार्गी है. गार्गी की रीवा के रहने वाले अजय शुक्ला से शादी हो चुकी है. डा. दीपक तिगनाथ का बेटा सिद्धार्थ दंत चिकित्सक के रूप में रेवाश्री हौस्पिटल में ही अपने पिता की तरह लोगों का इलाज करते थे. परिवार में डा. सिद्धार्थ की पत्नी नेहा और उन का 5 साल का एक बेटा है.
सिद्धार्थ की शुरुआती शिक्षा रीवा के सैनिक स्कूल में हुई. उन के दादाजी गणित के शिक्षक थे, इसलिए गणित उन का पसंदीदा विषय था. क्रिकेट में भी उन की बेहद दिलचस्पी रहती थी. स्कूली पढ़ाई के बाद सिद्धार्थ बीडीएस की डिग्री ले कर दंत चिकित्सक बने, उन की इंटर्नशिप देख उन के सीनियर ने उन्हें सफल सर्जन बनने की सलाह दी. पिता भी एक सफल डाक्टर थे, वही सब अच्छे गुण विरासत में उन्हें भी मिले. राजनीति में भी सक्रिय थे डा. सिद्धार्थ चिकित्सा के साथ राजनीति को वह समाज सेवा का एक सफल माध्यम मानते थे. इसी कारण से वह राजनीति एवं प्रशासनिक की पढ़ाई के लिए पुणे स्थित पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के संस्थान में गए.
इसी संस्थान में पढ़ाई के दौरान ‘चिकित्सा पद्धति एवं उस का क्रियान्वयन कैसा हो’ विषय पर अपनी थीसिस के माध्यम से अपने विचार जब टी.एन. शेषन के सामने रखे तो शेषन डा. सिद्धार्थ से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने कहा था कि राष्ट्र को ऐसे ही परिपक्व और उत्कृष्टता दे सकने वाले तुम्हारे जैसे नौजवानों की जरूरत है. डा. सिद्धार्थ तिगनाथ एक समय जिले की राजनीति में कांग्रेसी नेता के रूप में सक्रिय रहे थे. सन 2011 में उन्हें प्रदेश के 2 बड़े नेता कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के उपाध्यक्ष की कमान सौंपी थी. लोकसभा क्षेत्र में संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने रातदिन काम किया.
किसान आंदोलन हो या उन की फसलों का मुआवजा, जहां प्रशासनिक व्यवस्था धराशाई हो जाती थी, वे किसानों को बातचीत के लिए तैयार करते. किसी कैंसर पेशेंट को क्या सहायता मिल सकती है, वह उसे पूरी मदद अपने माध्यमों से करते. चिलचिलाती गरमी में स्टेशन पर पानी के पाउच बांटते, ऐसी नेतागिरी वह अपने दम पर तन मन धन से करते थे. तिगनाथ फैमिली को पूरे इलाके में उन की दौलत और शोहरत के कारण जाना जाता था. हर किसी के सुखदुख में तिगनाथ फेमिली हमेशा साथ रहती. डा. सिद्धार्थ अपने व्यवहार एवं शैली के चलते थोड़े से समय में ही सब के चहेते बन चुके थे.
कहते हैं कि जीवन में यदि खुशियां हैं तो दुखों के पहाड़ भी आते हैं. कुछ लोग इन पहाड़ों को काट कर रास्ता बना लेते हैं तो कुछ लोग एक चट्टान के आगे अपनी हार मान कर निराश हो जाते हैं. डा. सिद्धार्थ ने भी 41 साल की उम्र में एक गलत फैसला ले कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली और अपने भरेपूरे परिवार को यादों के सहारे छोड़ गए. डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में इस कदर फंस चुके थे कि उस से बच कर निकलना नामुमकिन था. उन के पिता भी अपनी दौलत बेटे के कर्ज की रकम चुकाने में कुरबान कर चुके थे, फिर भी सूदखोरों का कर्जा जस का तस बना हुआ था. क्यों जरूरत पड़ी कर्ज की डा. सिद्धार्थ की सोच थी कि जिले के नौजवानों को रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलते.
इसलिए उन्होंने सन 2016 में ‘विश्वभावन पालीमर’ नाम की फैक्ट्री की शुरुआत की और बेरोजगार जरूरतमंद नौजवानों को उस में रोजगार दिया. इसी दौरान उन्होंने ‘रेवाश्री इंस्टीट्यूट औफ पैरामैडिकल साइंसेस’ कालेज की शुरुआत की, जिस में स्थानीय युवकयुवतियों को मैडिकल की पढ़ाई के साथसाथ रोजगार दे कर उन्हें पगार देनी शुरू की थी. अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह पैसे की व्यवस्था में लग गए. 2016 की नोटबंदी से कोई अछूता नहीं बचा था. कारोबार में पैसे की जरूरत ने उन्हें स्थानीय सूदखोरों की तरफ धकेला. इसी दौरान सूदखोर आशीष नेमा से उन का संपर्क हुआ. आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था.
स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते. नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे. इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.
सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी. सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए उन का पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली. सूदखोरों ने दोस्ती कर के फंसाया एक संभ्रांत परिवार का चिराग डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में ऐसे फंसे कि उन के पास दुनिया छोड़ने का ही इकलौता विकल्प रह गया था. अपनी धनदौलत, मानसम्मान, जीवन सब कुछ गंवाने के बाद भी वह सूदखोरों के कर्जे तले दबते रहे.
खास बात यह है कि बरबादी के इस चक्रव्यूह की रचना आशीष नेमा नाम के उस शख्स ने की थी, जिस ने डा. सिद्धार्थ से अपनी जानपहचान को दोस्ती का रूप दिया, फिर उन्हें लुटवाने के लिए घाघ, माफिया सूदखोरों के पास ले गया. कोतवाली थाना पुलिस द्वारा इस मामले की विवेचना में यह बात सामने आई कि नरसिंहपुर शहर में लगभग 20 सूदखोरों से संबंध रखने वाला मास्टरमाइंड गुलाब चौराहा निवासी आशीष नेमा था. डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम आशीष नेमा ने किया था. इस के पहले आशीष ने सिद्धार्थ से जानपहचान बढ़ा कर दोस्ती की. दोस्ती के चलते आशीष ने डा. सिद्धार्थ का दिल जीत लिया था. दरअसल आशीष को यह बात पता थी कि डा. सिद्धार्थ को पैसों की जरूरत है. इसी बात का फायदा उठा कर उस ने पहले छोटीमोटी रकम दे कर सिद्धार्थ का विश्वास हासिल कर लिया.
छोटीमोटी मदद के बाद आशीष और सौरभ रिछारिया ने शहर के नामीगिरामी सूदखोरों से मोटी रकम ब्याज पर उठवा दी. आशीष और सौरभ रिछारिया ने कर्जा तो दिला दिया, लेकिन ये सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. अकसर दोनों सिद्धार्थ से ब्लैंक चैक साइन करवा के रख लेते थे और फिर उन के खिलाफ चैक बाउंस का मामला दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से अनापशनाप तरीके से वसूली करने लगे. डा. सिद्धार्थ ने सेकेंडहैंड कारों को बेचने के लिए महिंद्रा फस्ट चौइस नाम से एक एजेंसी की शुरुआत की. इस के लिए उन्होंने 50 लाख रुपए का कर्जा आशीष के माध्यम से दूसरे सूदखोरों से लिया. इस सूदखोरी से मिलने वाली ब्याज की रकम में आशीष नेमा भी पार्टनर रहता. डा. सिद्धार्थ पर जब कर्जा बढ़ता गया तो आशीष नेमा भी अपने असली रंग में आ गया.
3 साल पहले की घटना से जुड़ीं कडि़यां डा. सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर आशीष ब्याज पर ब्याज वसूलने का काम करने लगा. डा. सिद्धार्थ अपने क्लीनिक से होने वाली सारी आमदनी इन्ही सूदखोरों को देते रहे, मगर उन का कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि सूदखोरों ने ब्याज की दर 20 से ले कर 120 फीसद तक कर दी थी. उन की एजेंसी की सभी कारें भी सूदखोरों ने हथिया लीं. पुलिस घटना के सभी पहलुओं की जांच में लगी थी. पुलिस ने जब अपने थाने के रिकौर्ड की पड़ताल की तो एक अहम जानकारी हाथ लगी. करीब 3 साल पहले डा. तिगनाथ फैमिली द्वारा नरसिंहपुर के कुछ सूदखोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.
6 मई, 2018 को तिगनाथ परिवार के सभी सदस्यों ने तत्कालीन एसपी को एक लिखित शिकायत दे कर बताया था कि नगर के कुछ सूदखोरों ने उन के घर में घुस कर गालीगलौज कर जान से मारने की धमकी दी थी. सबूत के तौर पर तिगनाथ फैमिली ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज, काल रिकौर्डिंग भी पुलिस को उपलब्ध कराई थी. इस मामले में 7 मई, 2018 को डा. सिद्धार्थ के अलावा उन के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां और पत्नी ने जबलपुर में तत्कालीन आईजी से मुलाकात कर उन्हें भी सूदखोरों की प्रताड़ना के सबूत दिए थे. 19 मई, 2018 को सिद्घार्थ तिगनाथ अपनी मां, पत्नी के साथ तत्कालीन एसपी मोनिका शुक्ला से मिले थे. उन्हें सूदखोरों के खिलाफ सारे सबूत और 8 लाख की लूट संबंधी प्रमाण भी दिए गए थे.
पुरानी फाइलों के पन्ने पलटने पर पुलिस का संदेह यकीन में बदल चुका था कि डा. सिद्धार्थ ने सूदखोरों की प्रताड़ना की वजह से ही यह आत्मघाती कदम उठाया है. पूरे मामले की जांच कर रहे एसआई जितेंद्र गढ़वाल को एक डायरी हाथ लगी, जिसे पढ़ कर मालूम हुआ कि सूदखोरों के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुके थे. डा. सिद्धार्थ की डायरी ने खोले अहम राज डा. सिद्धार्थ ने अपनी डायरी में मौत से पहले लिखा था, ‘मैं इस विश्वास के साथ दुनिया छोड़ रहा हूं कि मैं सच्चा और इज्जतदार था. बहुत बड़ा योगदान दे सकता था, पर मेरे जीवन में धूर्त लोगों का जमघट रहा है. पिछले 10 सालों से अब बहुत हुआ, इस संसार में रिस्की है अच्छा होना.
कमलनाथजी, मोदीजी अवैध सूदखोरी, चैक रख कर ब्लैकमेलिंग करने वालों के खिलाफ कानून जरूर बनाइएगा. शायद मेरी जिंदगी का एक अर्थ निकले. ‘मेरा ये लेटर मीडिया को जरूर देना. शायद इस दबाव में पुलिस कुछ काररवाई करे. जब जीवित रहते किसी ने उन की बात नहीं सुनी तो डायरी में ये सब कुछ लिख कर, अपने जीवन को ही सबूत के तौर पर भेंट चढ़ा दिया. इस विश्वास के साथ कि उन्हें न्याय मिलेगा और सरकार इन अपराधों को रोकने के लिए कुछ कानून बनाएगी, जिस से भविष्य में कोई इन सूदखोरों के चक्र में न फंसे.’ डायरी पढ़ कर पता लगा कि प्रतिदिन एक लाख रुपए तक की पैनल्टी लगा कर सूदखोरों ने सिद्धार्थ और उन के पूरे परिवार को जिस तरह से प्रताडि़त किया, उस की कहानी सुनने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
10 से 20 फीसद के ब्याज से शुरू हुआ यह खेल आखिरकार 120 फीसद ब्याज की दर के कर्ज तक जा पहुंचा था. चंद लाख रुपए का कर्जा लेने वाले डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ब्याज की अदायगी करतेकरते ही 5 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि सूदखोरों को दे चुके थे. बावजूद इस के सूदखोर कर्जा उतरने ही नहीं दे रहे थे. नतीजतन परिवार की चलअचल संपत्ति गंवा चुके डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ने आखिरकार बीती 22 अप्रैल को दुनिया से अलविदा कह दिया. इस के पूर्व वह एक ऐसी डायरी लिख कर गए, जिस में अपनी मौत का जिम्मेदार सूदखोरों की प्रताड़ना को बताया. उन की डायरी के पन्नों में नरसिंहपुर के लगभग 20 से अधिक सूदखोरों के नाम और अभी तक उन को दिए गए पैसों का पूरा हिसाब था.
मरने से पहले डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में फंसे अन्य लोगों को सूदखोरों से बचाने की मार्मिक अपील भी कर गए. चला जस्टिस फार डा. सिद्धार्थ अभियान डा. सिद्धार्थ की मौत के बाद उन के परिवार वाले, राजनैतिक हस्तियां और सामाजिक कार्यकर्ता नरसिंहपुर पुलिस पर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाने लगे. समाचार पत्रों में रोज ही सूदखोरों पर शिकंजा कसने के समाचार छप रहे थे. डा. सिद्धार्थ के बहनोई अजय शुक्ला ने फेसबुक पर ‘जस्टिस फार डा. सिद्धार्थ अभियान’ छेड़ दिया था. इस मुहिम का असर रहा कि युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुनाल चौधरी, जिला पंचायत नरसिंहपुर के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र पटेल ने भी डा. सिद्धार्थ को न्याय दिलाने के लिए मोर्चा खोल दिया.
उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ले कर डीजीपी व एसपी नरसिंहपुर तक को शिकायत कर दोषी सूदखोरों को गिरफ्तार करने की मांग की. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी विपुल श्रीवास्तव ने व्यक्तिगत रुचि दिखा कर प्रकरण की जांच कराई. नतीजा यह रहा कि सिद्धार्थ की तेरहवीं के ठीक एक दिन पहले ही पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ आत्महत्या करने को विवश करने का मामला दर्ज कर लिया गया. लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने जिन 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 306, 34 का अपराध दर्ज किया था. उन में सुनील जाट निवासी संजय वार्ड, अजय उर्फ पप्पू जाट, भागचंद उर्फ भग्गी यादव नरसिंहपुर को 6 मई 2021 को गिरफ्तार कर लिया गया.
वहीं 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा के कोविड पौजिटिव होने व सौरभ रिछारिया के घर में परिजन के संक्रमित होने पर ये गिरफ्तार नहीं किए गए थे. इन का जिले के बाहर इलाज चल रहा था. जबकि धर्मेंद्र जाट और राहुल जैन फरार हो गए, जिन की सरगरमी से पुलिस ने तलाश शुरू कर दी. खैरी गांव का पूर्व सरपंच धर्मेंद्र जाट अपने बीवीबच्चों को जिले से बाहर रिश्तेदारों के यहां भेज कर खुद भी भागने की फिराक में था, मगर पुलिस की सक्रियता से उसे सुबह तड़के खैरी गांव में बने उस के मकान से गिरफ्तार कर लिया. गुलाब चौराहा नरसिंहपुर निवासी राहुल जैन पुलिस को चकमा दे कर भाग गया.
30 मई, 2021 को एसआई जितेंद्र गढ़वाल को मुखबिर के माध्यम से सूचना मिली कि डा. सिद्धार्थ मामले का एक आरोपी राहुल जैन जबलपुर में छिपा हुआ है. एसआई जितेंद्र गढ़वाल, आरक्षक पंकज और आशीष की टीम वहां पहुंची तो पता चला कि वह तो जबलपुर के कछपुरा इलाके में दूध बेचने का धंधा कर रहा है. पुलिस टीम ने वहां से राहुल जैन को गिरफ्तार कर लिया . यूं तो डा. सिद्धार्थ की डायरी में उन 20 सूदखोरों के नाम दर्ज थे जो उन से ब्याज के रूप में लाखों की रकम हड़प चुके थे, परंतु पुलिस की जांच में केवल 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. सिद्धार्थ के घर वाले इस बात को ले कर नाराज हैं.
उन का कहना है कि सभी सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कानूनी काररवाई की जाए, जिस से अब कोई शख्स उन सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में न फंस सके. कथा संकलन तक 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा और सौरभ रिछारिया को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. Social Story in Hindi
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित