UP News : आजकल जहां एक ओर शिक्षित युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं तो वहीं भाजपा के डबल इंजन की सरकार वाले राज्य में शिक्षा माफिया दोनों हाथों से अपनी तिजोरी भर रहे हैं. इन माफियाओं की मिलीभगत से एक टीचर प्रदेश के 25 विद्यालयों में पिछले 13 महीने से नौकरी करती पाई गई. कौन थी ये टीचर और कैसे व किस के रहमोकरम पर चल रहा था ये पूरा गोरखधंधा? पढ़ें, शिक्षक घोटाले की परतदरपरत खोलती यह खास कहानी.

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में एक ऐसा घोटाला सामने आया, जिस ने उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. जिस ने पूरे सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े कर दिए थे. यह मामला गोंडा जिले का था. अनामिका शुक्ला केस, जिस में एक ही नाम के दस्तावेजों का इस्तेमाल कर 25 विद्यालयों में फरजी नौकरियां हासिल की गईं और करोड़ों रुपए का वेतन लिया गया. इस केस ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था. इस मामले की जांच उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पैशल टास्क फोर्स को सौंपी थी, लेकिन जांच अधूरी रहने और नए खुलासों के साथ यह केस अब और भी उलझता जा रहा है.

मामला तब सुर्खियों में छाया रहा, जब सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय जनसंवाद मंच के सचिव प्रदीप कुमार पांडेय ने इस मामले में गंभीर आरोप लगाते हुए अनामिका शुक्ला को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया था, जिस में बेसिक शिक्षा विभाग में एक संगठित गिरोह की ओर इशारा करते हुए डेटा लीक और फरजी नियुक्तियों के जरिए सरकारी धन की लूट का दावा किया गया. बात 5 मई, 2025 की थी. जनसंवाद मंच के सचिव प्रदीप कुमार पांडेय ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट (द्वितीय) अंकित सिंह की अदालत में अनामिका शुक्ला प्रकरण को ले कर एक याचिका दायर की थी, जिस में उन्होंने 8 लोगों को आरोपी ठहराया था.

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट (द्वितीय) अंकित सिंह ने आरोपी बनाए गए सिद्धार्थ दीक्षित (वित्त एवं लेखा अधिकारी), अतुल कुमार तिवारी (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी), सुधीर सिंह (पटल लिपिक),  अनुपम पांडेय (वित्त एवं लेखा अधिकारी), दिग्विजय नाथ पांडेय (प्रबंधक, भैया चंद्रभान दत्त स्मारक विद्यालय रामपुर टेंगरहा), अज्ञात और अनामिका शुक्ला पुत्री सुभाष चंद्र शुक्ला (भुईनडीह, कमरवा, गोंडा) समेत 8 लोगों पर नगर कोतवाली थाने को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए.

अदालत के आदेश के बाद कोतवाल विवेक द्विवेदी ने मुकदमा अपराध संख्या 658/2025 भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 319(2) (प्रतिरूपक द्वारा छल), 318(4) (छल और बेइमानी से संपत्ति के परिदान के लिए उत्प्रेरित करना), 338 (मूल्यवान प्रतिभूति या किसी धन आदि को प्राप्त करने के प्राधिकार की कूटरचना), 336(3) (छल के प्रयोजन के लिए कूट रचना), 340(2) (कूटरचित दस्तावेज को जानबूझ कर असली के रूप में उपयोग में लाना), 316(5) (लोकसेवक द्वारा आपराधिक न्यास भंग करना) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और आवश्यक काररवाई में जुट गए.

कोर्ट ने नगर कोतवाली पुलिस को आदेश दिया कि वह 10 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करे. कोर्ट के आदेश पर मुकदमा दर्ज होते ही एक बार फिर से अनामिका शुक्ला केस सुर्खियों में छा गया और आरोपियों में बुरी तरह बेचैनी छा गई. वे खुद को निर्दोष बताते हुए गिरफ्तारी से बचने के लिए हाई कोर्ट तक पहुंच गए.

अनामिका शुक्ला केस क्या है? इसे जानने के लिए पीछे की कहानी के काले पन्नों को उलटना होगा, जहां इस की बुनियाद डाली गई थी. कैसे प्रकाश में आया था अनामिका शुक्ला प्रकरण? इस पर भी रोशनी डालनी होगी. तो आइए पढ़ते हैं, हैरान कर देने वाली इस कहानी को, जहां शिक्षा विभाग के महासागर में ऐसेऐसे एनाकोंडा कुंडली मार कर बैठे हैं कि सरकारी धन को बिना डकार के पचाए जा रहे हैं.

साल 2020 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज की बेसिक शिक्षा अधिकारी अंजलि अग्रवाल ने विभाग के शिक्षकों का डिजिटल डेटाबेस तैयार करना शुरू किया था. जब उन की नजर अनामिका शुक्ला नाम पर गई तो वह बुरी तरह चौंक गईं.

ऐसे पकड़ में आया फरजी शिक्षक घोटाला

उन के सामने एक ऐसा चौंकाने वाला तथ्य आया, जिसे देखते ही वह बुरी तरह उछल गईं. वह नाम था अनामिका शुक्ला. एक ही नाम के दस्तावेजों के आधार पर उत्तर प्रदेश के 25 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियां की गई थीं. यह देखते ही उन का माथा ठनक गया था. इन नियुक्तियों के जरिए करीब 13 महीनों में लगभग एक करोड़ रुपए का वेतन भुगतान किया जा चुका था.

यह खुलासा होते ही विभाग में हड़कंप मच गया. जब दस्तावेजों की और गहराई से जांच की गई तो अनामिका शुक्ला नाम के दस्तावेजों में धुंधली तसवीरों और फरजी आधार कार्ड का इस्तेमाल किया गया प्रतीत हुआ, जिस के जरिए बैंक अकाउंट खोले गए और सैलरी ट्रांसफर की गई. जांच के दौरान यह भी सामने आया कि अनामिका शुक्ला के नाम पर कोई दूसरी महिला नौकरी कर कर रही थी. उस महिला का नाम प्रिया जाटव था, जिस ने गोंडा के रघुकुल विद्यापीठ में बीएससी की पढ़ाई की थी. पता चला कि प्रिया की मुलाकात एक शख्स से हुई, जो मैनपुरी का रहने वाला था और उस का नाम था राज.

राज का शिक्षा विभाग के बड़ेबड़े अधिकारियों से गहरी पैठ थी, जो पैसे ले कर नौकरी दिलाने का काम करते थे. प्रिया जाटव भी नौकरी करना चाहती थी. उस ने राज नामक शख्स से संपर्क किया. राज ने कथित तौर पर एक लाख रुपए ले कर प्रिया जाटव को फरजी दस्तावेजों के जरिए शिक्षा विभाग में नौकरी दिलवाई. उस ने प्रिया जाटव के नौकरी के लिए जो फरजी दस्तावेज तैयार करवाए थे, वह किसी अनामिका शुक्ला के थे. उन्हें ऐसा धुंधला कर दिया गया था, जिस से वे आसानी से न तो पढ़े जा सकें और न ही पकड़ में आ सकें.

लेकिन किसी तरह भेद खुला तो पुलिस ने अनामिका शुक्ला उर्फ प्रिया जाटव को कासगंज से गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरफ्तार होते ही राज फरार हो गया. लेकिन यह खेल यहीं नहीं थमा. इस कड़ी का एक सूत्रधार जसवंत सिंह, जो राज का भाई था, को पुलिस ने मैनपुरी से गिरफ्तार कर लिया गया. जसवंत ने पूछताछ में खुलासा किया कि उस ने 17-18 और लड़कियों को भी इसी फरजी दस्तावेजों के जरिए नौकरियां दिलवाई थीं.

अब सवाल यह उठ रहा था कि असली अनामिका शुक्ला कौन है? कहां की रहने वाली है? इस कहानी में उस समय सब से हैरान करने वाला नया मोड़ आया, जब 9 जून, 2020 को एक महिला, जो खुद को असली अनामिका शुक्ला बताती हुई गोंडा के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) कार्यालय पहुंची और तत्कालीन बीएसए डा. इंद्रजीत प्रजापति से मिली और उन्हें एक प्रार्थना पत्र सौंपा. प्रार्थना पत्र का मजमून इस प्रकार से था—

जिला बेसिक अधिकारी गोंडा मैं अनामिका शुक्ला पुत्री श्री सुभाष चंद्र, गांव भुलईडीह पोस्ट- कमरावा की हूं. मैं ने निम्न वर्षों में शिक्षा ग्रहण किया है, जिस का विवरण निम्नवत है.

1- हाईस्कूल, कस्तूरबा बालिका इंटर कालेज, गोंडा, वर्ष- 2007, डिवीजन- प्रथम.

2- इंटरमीडियट, बेनीमाधव जंग बहादुर इंटर कालेज, परसपुर, गोंडा, वर्ष-2009, डिवीजन- प्रथम.

3- बीएससी, श्री रघुकुल महिला विद्यापीठ, सिविल लाइंस, गोंडा, वर्ष-2012, डिवीजन- द्वितीय.

4- बीएड, आदर्श कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जियापुर बरुवा, जलाकी टांडा, अंबेडकर नगर, वर्ष-2014, डिवीजन- प्रथम.

5- टीईटी परीक्षा नियामक प्राधिकारी उत्तर प्रदेश 23 ऐलनगंज, इलाहाबाद, वर्ष 2015, डिवीजन- प्रथम.

मैं ने वर्ष 2017 में निम्नलिखित जिले में कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में साइंस टीचर हेतु जनपद सुलतानपुर, जौनपुर, बस्ती, मिर्जापुर और लखनऊ में आवेदन किया था, परंतु काउंसलिंग हेतु वह कहीं भी उपस्थित नहीं हुई और न ही कहीं भी कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में नौकरी की थी और न ही वर्तमान समय में किसी कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में नौकरी कर रही हूं. आज दिनांक 9 जून, 2020 के अखबार में छपी खबर को पढ़ कर प्रतीत हुआ कि मेरे सभी शैक्षिक प्रमाण पत्रों का दुरुपयोग कर के फरजी लोगों द्वारा कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में नौकरी प्राप्त कर ली गई है.

मैं अपने समस्त शैक्षिक प्रमाण पत्रों की मूल प्रति के साथ आप के समक्ष उपस्थित हुई हूं. मेरे फोटो से परीक्षा दिए गए केंद्रों से मिलान कर के फरजी लोगों के विरुद्ध काररवाई करने की कृपा की जाए एवं प्रार्थिनी को प्रताडि़त न किया जाए.

प्रार्थिनी

(अनामिका शुक्ला पुत्री श्री सुभाष चंद्र)

और अंगरेजी में दस्तखत कर के प्रार्थना पत्र की ये प्रतिलिपियां बेसिक शिक्षा मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखनऊ, परीक्षा निदेशक, शिक्षा निदेशालय, लखनऊ, पुलिस उपमहानिरीक्षक, देवीपाटन मंडल, गोंडा, आयुक्त देवीपाटन गोंडा, जिलाधिकारी गोंडा और जनपद के समस्त संवाददाता (मीडिया/इलैक्ट्रौनिक मीडिया) को भेज दी थी.

एक टीचर कैसे कर रही थी 25 स्कूलों में नौकरी

यह सुन कर इंद्रजीत प्रजापति के होश फाख्ता हो गए थे. उन्हें ऐसा लगा था, जैसे उन्होंने जो अभीअभी सुना था, वह सच भी हो सकता है. उन्होंने अनामिका शुक्ला को भरोसा दिलाया कि अगर उन के मूल दस्तावेजों के साथ वाकई छेड़छाड़ कर दुरुपयोग किया गया है तो इस की जांच कराई जाएगी और दोषियों के खिलाफ विधिक काररवाई की जाएगी.

एक ही नाम से कई लोगों के नौकरी करने का मामला संज्ञान में आया तो महानिदेशक (बेसिक शिक्षा) विजय किरन आनंद ने पूरे मामले की जांच अपर निदेशक (बेसिक शिक्षा) रमेश कुमार तिवारी से कराई, जिस में कस्तूरबा विद्यालय (प्रयागराज) में पढ़ा रही एक शिक्षिका के सभी दस्तावेज और निवास प्रमाण पत्र फरजी पाए गए. जिस के बाद उन्होंने जांच रिपोर्ट महानिदेशक (बेसिक शिक्षा) विजय किरन आनंद को काररवाई के लिए भेज दी. महानिदेशक किरन ने प्रयागराज बीएसए संजय कुशवाहा को आगे की काररवाई के लिए आदेश दिया.

जो अध्यापिका अनामिका शुक्ला बन कर कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय में पढ़ा रही थी, उस का असली नाम रीना था. वह जिला फर्रुखाबाद की तहसील कायमगंज के राजपालपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम चंद्रभान सिंह था. यही पता निवास प्रमाणपत्र पर भी अंकित था. रीना ने असली अनामिका शुक्ला के शैक्षिक दस्तावेजों के साथ कूटरचना कर के, उसे लगा कर साइंस टीचर के रूप में गलत तरीके से कस्तूरबा विद्यालय में संविदा पर नियुक्ति हासिल की थी. जांच में मामला खुलने के बाद 16 मार्च, 2020 के बाद से उस ने विद्यालय आना बंद कर दिया था.

जांच के आधार पर बीएसए संजय कुशवाहा ने प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में रीना उर्फ अनामिका शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. उस के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद जांच शुरू हो गई थी. तब प्रयागराज के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज थे, जो एक बेहद कड़क अफसर के रूप में जाने जाते थे. एसएसपी ने आरोपी रीना उर्फ अनामिका शुक्ला को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और वह गिरफ्तार कर जेल भेज दी गई थी.

अनामिका शुक्ला यहां चुप नहीं बैठी. उस ने भी गोंडा की नगर कोतवाली में एक तहरीर दे कर अपने दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल करने के खिलाफ एक केस दर्ज कराया. यह मामला मुकदमा अपराध संख्या-385/2020 पर आईपीसी की विविध धाराओं के साथ दर्ज कर जांच उत्तर प्रदेश एसटीएफ को सौंप दी गई. एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश के दिशानिर्देश में जांच शुरू की गई थी. इस दौरान एसटीएफ को बड़ी सफलता मिली. एसटीएफ की टीम ने लखनऊ से 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिन के नाम राज उर्फ पुष्पेंद्र जाटव उर्फ गुरुजी निवासी मैनपुरी, जो मुख्य आरोपी था.

इस की तैनाती फर्रुखाबाद में सहायक समन्वयक के पद पर थी. इस के अलावा जौनपुर में बेसिक शिक्षा कार्यालय में जिला समन्वयक अधिकारी आनंद और लखीमपुर में बेसिक शिक्षा कार्यालय में प्रधान लिपिक राजनाथ था. तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर एसटीएफ ने गोंडा पुलिस के हवाले कर दिया, जिन्हें पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया था.

पुलिस पूछताछ में सरगना पुष्पेंद्र जाटव उर्फ राज उर्फ गुरुजी ने बड़े चौंकाने वाले खुलासे किए थे. उस ने बताया था कि वह सुशील पुत्र गुलाब चंद के नाम से फरजी तरीके से सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त है. साल 2010 में उस की मुलाकात राजनाथ से हुई थी. राजनाथ की मदद से अंजलि नाम की महिला की नियुक्ति फरजी दस्तावेजों के जरिए कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में कराई थी. फिर उस ने अपने भाई जसवंत जाटव को विभव कुमार के नाम से फरजी डाक्युमेंट्स के जरिए कन्नौज में नौकरी पर लगवाया था.

एक बार अपनी कारस्तानी में गजब की सफलता पा लेने के बाद सरगना पुष्पेंद्र को मोटी कमाई का चस्का लग गया, जिस के लिए वह हमेशा लालायित रहने लगा. फिर तो उस की चांदी हो गई थी और यह सिलसिला आगे भी जारी रहा. इसी कड़ी में पुष्पेंद्र, रामनाथ और आनंद के माध्यम से दस्तावेजों में हेराफेरी कर के जौनपुर में फर्रुखाबाद की रहने वाली दीप्ति की फरजी दस्तावेजों के आधार पर शिक्षिका की नौकरी लगवाई थी.

सरगना पुष्पेंद्र ने पूछताछ में आगे जो बयान दिया था, उस से फरजीवाड़े की कहानी प्याज के छिलके की तरह परतदरपरत खुलती जा रही थी. उस ने आगे बताया कि उस की मुलाकात रामनाथ ने ही आनंद से कराई थी. आनंद की पत्नी शोभा तिवारी की जिला समन्वयक बालिका शिक्षा में भरती जौनपुर में कराई थी.

परतदरपरत खुलता गया केस

इस के आगे की पूछताछ की कड़ी में उस ने जो खुलासा किया था, उसे जानते ही पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई थी. आनंद जिस सीट पर बैठता था, बेहद जिम्मेदारी वाली थी. विद्यालय में आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के आवेदन पत्र और अंक प्रमाणपत्र उसी के संरक्षण में रखे जाते थे. उसी के जरिए काउंसलिग में उपस्थित न होने वाले अभ्यर्थियों के बारे में जानकारी मिलती थी. इसी कड़ी में आनंद ने ही गोंडा की अनामिका शुक्ला के शैक्षिक दस्तावेज उसे उपलब्ध कराए थे. उसी ने वह दस्तावेज जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय, हरदोई में तैनात लिपिक रामनाथ को दिए थे.

रामनाथ ने भी अपनी डफली अलग बजाई थी. रीना व अन्य महिला अभ्यर्थियों को रामनाथ ने अनामिका शुक्ला के नाम से सहारनपुर, बागपत, रायबरेली, अमेठी, अंबेडकरनगर में नियुक्त कराया था. यही नहीं, इसी कड़ी में जौनपुर की प्रीति यादव भी छली गई थी. आरोपी पुष्पेंद्र ने बताया कि आनंद ने ही उसे जौनपुर की रहने वाली प्रीति यादव को शैक्षिक प्रमाण पत्र दिए थे और उस ने वर्ष 2017 में कस्तूरबा गांधी विद्यालय, जौनपुर में नौकरी के लिए आवेदन किया था. उस के अभिलेखों के जरिए जौनपुर व आजमगढ़ में प्रीति यादव नाम की 4 फरजी टीचरों की नियुक्ति कराई गई थी.

इस के बाद उस ने ऐसे तमाम खुलासे किए, जिन में प्रत्येक महिला टीचर से 2-2 लाख रुपए लेने का दावा किया था, जिस का विवरण यहां देना मुश्किल होगा, क्योंकि उन तथ्यों का विवरण दिया जाए तो एक मजे की किताब तैयार हो सकती है. लेकिन बाद में किसी कारणवश जांच को बीच में ही रोक दिया गया. उत्तर प्रदेश में अनामिका शुक्ला के नाम पर प्राइमरी स्कूलों में बड़े पैमाने (25 टीचर) पर फरजी टीचर मामला गरमाया तो आयोग ने जांच के आदेश दिए. इतना बड़ा घोटाला सामने आते ही अफसरों की नींद उड़ गई. उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने भ्रष्टाचार निवारण, बेसिक शिक्षा विभाग और वित्त विभाग को इस प्रकरण में गहराई तक जा कर मामले को खंगालने का आदेश दिया.

फरजी शिक्षिकाओं को भरती कर के करोड़ों रुपए के घोटाले का मामला प्रकाश में आते ही गोंडा जिले के सुनील त्रिपाठी ने 17 मार्च, 2020 को पूरे मामले की खबर सूचना आयोग को दी. इस के बाद सूचना आयोग के कान खड़े हो गए. आयोग ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच के आदेश दिए. इसी कड़ी में सुनील त्रिपाठी ने सूचना आयोग में शिकायत की थी कि अनामिका शुक्ला टीचर घोटाले की जांच रिपोर्ट उत्तर प्रदेश एसटीएफ से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई थी.

उन का कहना था कि इस घोटाले में प्रदेश भर के 20 से ज्यादा फरजी शिक्षकों ने अनामिका शुक्ला के डाक्युमेंट्स इस्तेमाल कर करोड़ों की सैलरी हड़प ली. उस की जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति उपलब्ध क्यों नहीं कराई जा रही है? बहरहाल, अनामिका शुक्ला प्रकरण की एसटीएफ की जांच ढीली पड़ी तो दूसरी ओर इसी मामले को एसआईटी से भी जांच कराई जा रही थी. जो आज भी चल रही है. सुनील त्रिपाठी के साथ ही जनसंवाद मंच के सचिव प्रदीप कुमार पांडेय भी अनामिका शुक्ला प्रकरण को अदालत की चौखट तक खींच कर ले गए.

उन का आरोप यह था कि यह जांच एसटीएफ ने जानबूझ कर अधूरी छोड़ी थी ताकि असली संगठित गिरोह का खुलासा न हो सके. हैरानी की बात यह है कि अनामिका शुक्ला को 12 जून, 2020 में गोंडा के भैया चंद्रभान दत्त स्मारक विद्यालय, रामपुर टेंगरहा, तरबगंज में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्ति पत्र दिलवाया गया.

नियुक्ति पत्र में लिखा गया था, ”आप की नियुक्ति प्राइमरी अनुभाग में पूर्व की भांति कर ली जाए. उक्त निर्णय के क्रम में आप की नियुक्ति प्राइमरी अनुभाग में सहायक अध्यापक पद प्रशासन द्वारा देय वेतनमान में नियमावली के तहत की जाती है. आप की नियुक्ति पूर्णतया अस्थाई है. नियुक्ति पत्र आप को हस्तगत कराया जा रहा है. आप की नियुक्ति पत्र के क्रम में आज दिनांक 12/06/2020 से 3 दिन कार्य दिवस के अंदर अपने मूल शैक्षिक व प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों के साथ स्वप्रमाणित छायाप्रतियां ले कर कार्यभार ग्रहण करने का कष्ट करें,’’ नीचे विद्यालय के प्रबंधक दिग्विजय नाथ पांडेय के दस्तखत थे.

अनामिका शुक्ला का यह नियुक्ति पत्र सामने आते ही भूचाल आ गया. दावा किया गया कि अनामिका को रोजगार मिल गया है. जबकि अनामिका शुक्ला के पति दुर्गेश कुमार शुक्ला ने बातचीत में बताया कि वह उसी विद्यालय में साल 2016 से स्थाई शिक्षिका है. वह 2016 से ही उसी विद्यालय में स्थाई सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत थी और वेतन ले रही थी. अब यह सवाल उठता है कि अगर अनामिका 2016 से कार्यरत थी तो 2020 में उसे दोबारा अस्थाई नियुक्ति क्यों दी गई? इस के बाद तो यह मामला बुरी तरह से उलझ गया.

साल 2024 में स्थानीय जनसंवाद मंच के कार्यकर्ताओं ने इस मामले को फिर से उठाया. उन की ओर से दिए गए शिकायती पत्रों से पता चला कि अनामिका शुक्ला की कोई स्थाई नियुक्ति भैया चंद्रभान दत्त विद्यालय में नहीं थी. न तो बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) कार्यालय में उन की नियुक्ति से जुड़ी कोई फाइल थी, न ही वेतन भुगतान का कोई आदेश डिस्पैच रजिस्टर में दर्ज था. फिर भी, फाइनैंस ऐंड अकाउंट औफिसर की ओर से अनामिका शुक्ला को नियमित रूप से वेतन दिया जा रहा था. दिसंबर 2024 में अचानक अनामिका शुक्ला का वेतन रोक दिया गया, जिस के बाद यह मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया.

जनसंवाद मंच के सचिव प्रदीप कुमार पांडेय ने 5 मई, 2025 को कोर्ट में प्रार्थना पत्र दे कर दावा किया कि बेसिक शिक्षा विभाग में एक संगठित गिरोह सक्रिय है, जो युवाओं के डेटा को लीक कर फरजी नियुक्तियां करता है और करोड़ों रुपए के सरकारी धन की लूट करता है. उन्होंने अनामिका शुक्ला के मामले को इस का उदाहरण बताया. प्रदीप कुमार पांडेय के मुताबिक अनामिका ने जून, 2020 में खुद को पीडि़ता (बेरोजगार) बता कर मुकदमा दर्ज कराया था, लेकिन जांच में यह सामने आया कि वह खुद इस घोटाले की लाभार्थी थी.

संगठित माफिया ने बुना पूरा जाल

प्रदीप पांडेय ने यह भी खुलासा किया कि 9 जनवरी, 2025 को अनामिका शुक्ला के खाते में वेतन भेजा गया, जिस के बारे में फाइनैंस ऐंड अकाउंट औफिसर ने बताया कि यह अगस्त 2024 के सैलरी रिविजन के आधार पर किया गया था. गोंडा के बेसिक शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार तिवारी ने साफ किया कि उन के कार्यालय से अनामिका के वेतन के लिए कोई बिल या प्रस्ताव वित्त एवं लेखा कार्यालय को नहीं भेजा गया. फिर भी, वेतन संशोधन के नाम पर पन्ने बदल कर अनामिका को भुगतान किया गया.

बीएसए ने यह भी स्वीकार किया कि 2024 तक वेतन संशोधन की प्रक्रिया सीधे वित्त एवं लेखा कार्यालय की ओर से की जाती थी, जिस में बेसिक शिक्षा विभाग को कोई जानकारी नहीं थी. सचिव प्रदीप कुमार पांडेय ने आरोप लगाया कि यह पूरा खेल एक सिंडिकेट माफिया का हिस्सा है, जिस में वित्त एवं लेखा कार्यालय के कुछ कर्मचारी और बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी शामिल हैं. यह इसी से पता चलता है कि डिस्पैच रजिस्टर में अनामिका शुक्ला की नियुक्ति या वेतन से जुड़ा कोई रिकौर्ड नहीं है, जिस से यह साफ होता है कि यह भुगतान अवैध रूप से किया गया.

अनामिका शुक्ला केस उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में फैला हुआ भ्रष्टाचार और लापरवाही का एक जीताजागता उदाहरण है. सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कुमार पांडेय ने न्यायालय से इस मामले की गहन जांच की मांग की है, ताकि इस गिरोह के सभी सदस्य बेनकाब हो सकें और सरकारी धन की लूट को रोका जा सके. यह मामला न सिर्फ अनामिका शुक्ला के इर्दगिर्द घूमता है, बल्कि उन हजारों युवाओं की उम्मीदों को भी उजागर करता है, जिन के सपनों को शिक्षा माफिया ने कुचल कर रख दिया है. क्या अनामिका शुक्ला सचमुच में पीडि़ता है या वह इस घोटाले की एक कड़ी है? क्या बेसिक शिक्षा विभाग में चल रहा यह खेल कभी रुकेगा? इन तमाम सवालों का जवाब सिर्फ एक निष्पक्ष और गहन जांच ही दे सकती है.

सामाजिक कार्यकर्ता और जनसंवाद मंच के सचिव प्रदीप पांडेय की इसी शिकायत पर आयोग ने सिद्धार्थ दीक्षित (वित्त एवं लेखाधिकारी), अतुल कुमार तिवारी (जिला बेसिक शिक्षा अधिकरी), सुधीर सिंह (पटल लिपिक), अनुपम पांडेय (वित्त एवं लेखाधिकारी), दिग्विजय नाथ पांडेय (प्रबंधक भैया चंद्रभान दत्त स्मारक विद्यालय रामपुर टेंगरहा), अज्ञात और अनामिका शुक्ला पुत्री सुभाष चंद्र शुक्ला (भुईनडीह, कमरवा, गोंडा) समेत 8 लोगों पर नगर कोतवाली थाने को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे. मुकदमा दर्ज होते ही गोंडा के बेसिक शिक्षा विभाग के आला अफसरों की नींद हराम हो गई थी.

बेसिक शिक्षा अधिकारी अतुल तिवारी, तत्कालीन वित्त एवं लेखाधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित और 2 पटल लिपिक सुधीर कुमार सिंह व अनुपम पांडेय एफआईआर रद्द करने की मांग को ले कर जज राजेश सिंह चौहान की कोर्ट नंबर 9 लखनऊ हाईकोर्ट पहुंच गए और हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिका की सुनवाई के बाद चारों आरोपियों की अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. तब कहीं जा कर उन की सांस में सांस आई थी. चारों याचिकाकर्ताओं ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (गृह विभाग) उत्तर प्रदेश, एसपी गोंडा, कोतवाली नगर और मुकदमा वादी प्रदीप कुमार पांडेय को पार्टी बनाया था.

लेखक ने इस संबंध में अनामिका शुक्ला का पक्ष जानने के लिए उन के मोबाइल नंबर-3333335430 पर कौल की तो अनामिका के पति दुर्गेश कुमार पांडेय ने कौल रिसीव की. चर्चित प्रकरण के संबंध में बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि अनामिका शुक्ला को जबरन केस में फंसाया जा रहा है. वह पूरी तरह निर्दोष है. इस सारे फसाद का जड़ सुनील है. उन्होंने मुझ से पैसों की मांग की थी. जब मैं ने उन्हें पैसे देने से मना कर दिया तो उन्होंने प्रदीप से मिल कर पत्नी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. मगर मैं भी चुप बैठने वालों में से नहीं हूं. मुझे गोंडा पुलिस पर कतई भरोसा नहीं है कि वह निष्पक्ष तरीके से जांच करेगी, इसीलिए इस केस की मैं ने एसटीएफ जांच के लिए मांग की है और वह मांग स्वीकार हो गई है.

एसटीएफ की जांच पर है सब की नजर

19 सितंबर, 2025 को बहुचर्चित अनामिका शुक्ला प्रकरण एसटीएफ (अयोध्या) को जांच सौंप दिया गया. सीओ सौरभ मिश्र के नेतृत्व में 3 सदस्यीय टीम ने जांच संभाली है. जांच मिलते ही वे शाम को गोंडा बेसिक शिक्षा कार्यालय पहुंचे. यहां टीम ने बीएसए अतुल तिवारी से करीब 3 घंटे तक पूछताछ की. फिर टीम वहां से भैया चंद्रभान दत्त विद्यालय गई, जहां विद्यालय बंद मिला तो टीम वापस लौट आई थी.

एसटीएफ की जांच के दायरे में खुद अनामिका शुक्ला, गोंडा के वित्त एवं लेखा विभाग के साल 2017 से 2024 तक तैनात रहे लेखाधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित, पटल लिपिक अनुपम पांडेय, अरुण शुक्ला और बीएसए अतुल तिवारी रडार पर हैं. फिलहाल अनामिका शुक्ला को 27 अक्तूबर, 2025 तक गिरफ्तार करने पर रोक लगा दी गई थी.

एक बार फिर अनामिका शुक्ला नाम का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है. कौन सच्चा है और कौन झूठा? इस सचझूठ की जांच के लिए एसटीएफ को नाकों चबाने पड़ सकते हैं. फिर कहीं जा कर इस संगठित गिरोह का परदाफाश हो सकता है. जिस दिन इस सच से परदा उठा तो इस खेल के पीछे छिपे सफेदपोश माफिया भी बाहर आ सकते हैं. क्या इस सच से परदा उठ पाएगा? UP News

(कथा अनामिका शुक्ला के पति से बातचीत, दस्तावेज एवं मीडिया जानकारी पर आधारित)

 

 

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