Crime News : सरकार की निष्क्रियता के कारण आजकल तमाम सेलिब्रिटी औनलाइन गेम का प्रचार धड़ल्ले से कर रहे हैं. उन के झांसे में आ कर तमाम युवा लाखों रुपए गंवा रहे हैं. अनेक युवा तो लालच में इस चक्रव्यूह में फंस कर अपनी जान तक गंवा चुके हैं. एक मैडिकल कालेज की 32 वर्षीय वाइस प्रिंसिपल सुची राय भी इस चक्रव्यूह में ऐसी फंसी कि…
अहमदाबाद के शाहीबाग की रहने वाली 32 साल की सुची राय मेघाणी नगर के कलापी नगर चौराहे पर स्थित शुभम इंस्टीट्यूट ऐंड नर्सिंग साइंस ऐंड रिसर्च सेंटर में वाइस प्रिंसिपल के पद पर नौकरी करती थी. उस की यह नौकरी सुबह 9 बजे से शाम साढ़े 4 बजे तक की थी. पापा की मौत होने के बाद से वह अपनी मम्मी के साथ शाहीबाग में रहती थी. सुची ने बेंगलुरु में साथ पढऩे वाले एक युवक से विवाह किया था, जिस से उसे एक बेटी है, लेकिन पति से न पटने की वजह से वह इस समय मम्मी के साथ रहती थी.
साल 2014 में जब वह पति के साथ बेंगलुरु में रहती थी, तभी एक दिन उस के मोबाइल फोन में मैसेज आया कि उस ने रमी में 2500 रुपए जीते हैं. उसे यह अच्छा लगा. उस ने तुरंत अपने मोबाइल फोन में रमी गेम का ऐप इंस्टाल कर लिया और इस गेम में जुडऩे के लिए कंपनी में औनलाइन रजिस्ट्रैशन भी करा लिया. गेम में जुडऩे के बाद उस ने 50 रुपए से गेम खेलना शुरू किया. 2-3 महीने में तो वह 10,000 रुपए तक का गेम खेलने लगी. कोई भी औनलाइन गेम खेलाने वाली कंपनी कमाने के लिए यह सब खेल करती हैं, गंवाने के लिए नहीं. गंवाता तो गेम खेलने वाला है.
शुरू में भले ही खेलने वाला कुछ रुपए जीत जाता है, पर जब वह हारने लगता है तो फिर लगातार हारता ही जाता है. गेम खेलने वाला इस लालच में लगातार गेम खेलता रहता है कि शायद अब वह आगे जीत जाएगा, पर वह जीतता तभी है, जब वह छोटी रकम लगाता है. लेकिन बड़ी रकम लगाने पर गेम खेलने वाला कभी नहीं जीतता. यही हाल सुची राय का भी था. 50 रुपए से गेम की शुरुआत करने वाली सुची राय 50,000 रुपए तक पहुंच गई थी. उस ने 3 साल तक रमी गेम खेला. जब भी उस के पास पैसे कम होते थे, वह मम्मी के डेबिट कार्ड से अपने अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर लेती थी. मम्मी का डेबिट कार्ड उसी के पास रहता था.
सुची राय नर्सिंग की पढ़ाई करने के बाद अलगअलग जगहों पर नौकरी करती रही. इन नौकरियों में उसे जो वेतन मिलता रहा, वह रुपए और मम्मी के डेबिट कार्ड से निकाले गए रुपए, कुल मिला कर लगभग 18 लाख रुपए वह इस गेम में हार गई. ऐसा नहीं था कि वह सिर्फ हारती ही रही, उस ने जीता भी था.
सितंबर, 2024 में उस ने अहमदाबाद के बापूनगर स्थित सोहम कालेज में प्रिंसिपल के रूप में नौकरी कर ली थी. 3 महीने वहां नौकरी करने के बाद दिसंबर, 2024 में उस की नियुक्ति मेघाणीनगर में स्थित शुभम इंस्टीट्यूट ऐंड नर्सिंग साइंस एंड रिसर्च सेंटर में वाइस प्रिंसिपल के रूप में हो गई. इस कालेज में करीब 400 बच्चे नर्सिंग की पढ़ाई करते थे, जिन में कुछ अहमदाबाद के थे तो कुछ अहमदाबाद के बाहर के थे. बच्चों के रहने का हौस्टल अहमदाबाद के नरोड़ा में था.
पहली चोरी से ऐसे बढ़ी हिम्मत
इस नर्सिंग कालेज में बच्चों को एएनएम, जीएनएम, बीएससी, पीबीबीएससी और एमएससी का कोर्स कराया जाता था. साल 2025 के नए साल में जो बच्चे एडमिशन ले रहे थे, उन के कोर्स के अनुसार एएनएम की सालाना फीस 55,000 रुपए, जीएनएम की 95,000 रुपए, बीएससी एमएससी की एक लाख वह एक लाख 10 हजार रुपए छात्र की स्कौलरशिप के अनुसार ली जाती थी. जून, 2025 में जब कालेज खुला तो शुरुआत के सप्ताह में छात्र जो फीस जमा कर रहे थे, सुची राय रुपए लिफाफे में नाम लिख कर जमा करती जाती थी.
जून महीने में जो फीस जमा हो रही थी, उस लिफाफे को रखते समय सुची उस लिफाफे में से कुछ रुपए निकाल कर अलग रख लेती थी. क्योंकि 2 साल पहले उसने अपनी मम्मी के गहने मुथुट फाइनेंस में गिरवी रखे थे, जिन्हें उसे रकम भर कर छुड़ाना था. 28 जुलाई, 2025 को उस ने घुमा स्थित मुथुट फाइनेंस में छात्रों की फीस में से थोड़ेथोड़े जो रुपए निकाले थे, कुल मिला कर 2,95,148 रुपए मुथुट फाइनैंस में जमा करा कर अपनी मम्मी के गहने छुड़ा लिए. इस के बाद उसी तरह 50,000 रुपए चोरी कर के रमी गेम के अकाउंट में जमा कर दिए थे. इस तरह सुची ने नर्सिंग कालेज से कुल 3,45,148 रुपए की चोरी कर ली थी.
उस ने नर्सिंग कालेज के छात्रों की फीस से जो रुपए चुराए थे, वह रुपए भरने थे. क्योंकि जब भी उस से हिसाब लिया जाता, वह पकड़ी जाती. उस की चोरी न खुले, इस के लिए 27 जुलाई, 2025 की सुबह वह पौने 6 बजे उठी. उस के पास काला बुरका था, जिसे उस ने किसी फंक्शन के लिए बहुत पहले खरीदा था. उस ने वह बुरका पहना और एक्टिवा ले कर घर से निकल पड़ी. शाहीबाग कैंसर अस्पताल के नजदीक बने शौचालय के पास उसने एक्टिवा खड़ी कर दी और शेयर औटो में सवार हो कर वह नर्सिंग कालेज से थोड़ा पहले उतर गई.
वहां से पैदल चल कर वह नर्सिंग कालेज पहुंची. उस समय मुख्य दरवाजे पर कोई गार्ड नहीं था. इसलिए वह आराम से अंदर चली गई.
कालेज की तिजोरी औफिस में रखी थी. उस की चाबी उसी की मेज की दराज में थी. दराज से चाबी निकाल कर उस ने तिजोरी खोली और उस में रखे छात्रों की फीस के लिफाफे तथा पाउच निकाल कर साथ लाए बैग में रख लिए. अपना काम कर के वह कालेज से इस तरह निकल गई कि उसे किसी ने देखा नहीं. लेकिन जाते समय वह तिजोरी बंद करना वह भूल गई. कालेज का स्टाफ समय पर अपनी ड्यूटी पर आया. सुची राय भी समय पर औफिस पहुंच गई थी. पारुल नाम की कर्मी साफसफाई के लिए औफिस में गई तो तिजोरी खुली देख कर उसने शोर मचाया. शोर सुन कर औफिस स्टाफ की ज्योत्सनाबेन तथा अन्य स्टाफ औफिस के अंदर आ गया. सब के साथ सुची भी औफिस आ पहुंची थी.
प्रिंसिपल ने क्यों चुराए साढ़े 8 लाख रुपए
इस चोरी की सूचना फोन द्वारा कालेज की प्रिंसिपल सोनियाबेन को दी गई. इस के बाद औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी गई तो उस में एक महिला काला बुरका पहने चोरी करती दिखाई दी. औफिस स्टाफ के प्रह्लादभाई परमार ने थाना मेघाणी नगर पुलिस को कालेज में हुई चोरी की सूचना दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर डिंपल पटेल डाग स्क्वायड के साथ नर्सिंग कालेज पहुंच गईं. उन्होंने चोर का पता लगाने के लिए डौग स्क्वायड और सीसीटीवी फुटेज की मदद ली.
उन्होंने पूरे स्टाफ को एक लाइन में खड़ा कर के डौग को तिजोरी के हैंडल की स्मैल सुंघा कर छोड़ा तो वह सुची राय के सामने आ कर भौंकने लगा. इस से वाइस प्रिंसिपल सुची राय शक के दायरे में आ गई. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में चोरी करने वाली महिला की आंख के पास तिल दिखाई दिया. वाइस प्रिंसिपल सुची राय की आंख के पास भी वैसा ही तिल था, जैसा सीसीटीवी फुटेज में दिखाई पड़ा था.
इस के बाद शक विश्वास में बदल गया. फिर तो सुची राय से सख्ती से पूछताछ की गई. मजबूरन उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा. अपराध स्वीकार करने के बाद उस ने रमी गेम खेलने से ले कर चोरी तक की पूरी कहानी सुना दी.
पूरा हिसाब करने पर पता चला कि सुची राय ने कुल 8,42,164 रुपए की चोरी की थी. जिस में से पुलिस ने 2,37,000 रुपए सुची राय के घर से बरामद कर लिए थे. 2,95,000 रुपए सुची ने मुथुट फाइनैंस में जमा कर के मम्मी के सोने के गहने छुड़ाए थे. बाकी रुपयों में से जून महीने में 1,96,500 और जुलाई महीने में 67,100 रुपए अपने बैंक अकाउंट में जमा कर के रमी के अकाउंट में ट्रांसफर कर के उस ने रमी गेम खेला था. चोरी करने के लिए उस ने जो बुरका पहना था, उसे 3 साल पहले किसी फंक्शन के लिए खरीदा था. पुलिस ने उसे भी कब्जे में ले लिया था.
पुलिस ने उस का रमी गेम का अकाउंट चेक किया तो पता चला कि उस ने कुल 90 लाख रुपए का रमी गेम खेला था. जिस में से उस ने 40 लाख रुपए जीते थे. 40 लाख रुपए उस ने हारे थे. थाना मेघाणीनगर पुलिस ने सुची राय के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 305 (चोरी) के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया था.
औनलाइन गेम में टीचर ने गंवाए सवा करोड़
इसी तरह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार के गांव श्रीरामपुर का रहने वाला फूलचंद सरकारी प्राइमरी स्कूल में टीचर था. ठीकठाक वेतन मिलता था, इसलिए उस की जिंदगी मजे से कट रही थी. मजे से क्या शान से कट रही थी. क्योंकि उस की पत्नी भी टीचर थी. दोनों को मिला कर इतना वेतन मिलता था कि पूरा परिवार ठाठ से रहता था. गाव में 5 बीघा खेती की जमीन भी थी, जिस में ठीकठाक पैदावार हो जाती थी. खाने से जो अनाज बचता था, उसे बेच कर भी हजारों रुपए मिल जाते थे. पास में पैसे थे, इसलिए फूलचंद ने सुलतानपुर में एक आवासीय प्लौट भी खरीद लिया था.
फूलचंद के परिवार में मम्मी के अलावा पत्नी उर्मिला देवी, 2 बच्चे व एक भाई मल्हू था. सभी मिलजुल कर रहते थे, इसलिए भरापूरा यह परिवार खुश और सुखी था. लेकिन इस परिवार की खुशी में तब ग्रहण लग गया, जब परिवार के मुखिया यानी फूलचंद को औनलाइन गेम खेलने की लत लग गई. फूलचंद का एक दोस्त था. वह औनलाइन गेम खेलता था. एक दिन दोनों बैठे बातें कर रहे थे, तभी दोस्त ने कहा, ”फूलचंद, तुम भी औनलाइन गेम खेल कर देखो, अच्छा पैसा मिलता है. जैसा विज्ञापन में दिखाते हैं, उसी तरह औनलाइन गेम खेलने में मोटी रकम मिलती है.’’
”यह सब कहने की बातें हैं. औनलाइन गेम भी तो एक तरह का जुआ ही है. जुआ में आज तक क्या कोई जीता है? फिर एक बात यह बताओ, अगर गेम में सब जीतने ही लगेंगे तो गेम खेलाने वाले सभी को कहां से पैसे देंगे. हर कोई अपने बारे में सोचता है. यह दुनिया को बेवकूफ बनाने का एक धंधा है. इसलिए इन सभी चक्करों में पडऩे के बजाय अपना कमाओ और खाओ तथा मस्त रहो.’’ फूलचंद ने कहा.
”अरे अपना कमातेखाते तो सभी हैं, एक बार गेम खेल कर तो देखो. शायद कुछ हाथ लग ही जाए. मैं यह तो कह नहीं रहा कि तुम हमेशा गेम खेलते ही रहना है.’’ दोस्त ने कहा, ”मैं ने तो अब तक जो रुपए लगाए हैं, फायदा ही हुआ है.’’
इस तरह दोस्त के कहने पर न चाहते हुए भी फूलचंद उस के कहने में आ गया और औनलाइन गेम खेलने के लिए राजी हो गया. फूलचंद ने दोस्त से औनलाइन गेम खेलना सीखा और 7 लाख रुपए से गेम खेलना शुरू किया, जिस में उसे करीब 18 लाख रुपए की कमाई हुई. यह 9 महीने पहले की बात है. फिर तो फूलचंद को औनलाइन गेम खेलने की लत सी लग गई. वह पूरी की पूरी रात जाग कर गेम खेलता. उसे गेम खेलने का इस तरह नशा हो गया कि वह गेम खेलने के चक्कर में हफ्तों नहीं सोता था. पहले लगातार जीतने वाला फूलचंद अब लगातार हारने लगा. धीरेधीरे कर के वह करीब 25 लाख रुपए हार गया. इतनी बड़ी रकम हारने के बाद उस ने गेम खेलना बंद कर दिया.
लेकिन जिस तरह नशेड़ी को नशे की तलब सताती है, उसी तरह जुआरी या मोबाइल पर गेम खेलने वाले को भी गेम की तलब सताती है. इस के अलावा अपनी रकम वापस पाने की भी ललक होती है कि शायद इस बार वह जीत ही जाएगा और उसे उस की हारी रकम वापस मिल जाएगी. यही सोच कर फूलचंद के पास जितने भी रुपए थे, सब औनलाइन गेम में लगा दिए और हार गया. फूलचंद भले रुपए हार गया था, लेकिन खुद हार नहीं मानी थी. पास में रुपए न होने के बावजूद अपने हारे रुपए वापस पाने की ख्वाहिश रखते हुए फूलचंद ने अपने वेतन पर 31 लाख रुपए का लोन लिया. इस के अलावा ऐप से साढ़े 3 लाख तथा दोस्तों से 15 लाख रुपए उधार लिए.
यह पूरी की पूरी रकम वह औनलाइन गेम में हार गया. इस के बाद किसी को अपने हारने का पता न चले और उस के रुपए रिकवर हो जाएं, इस के लिए उस ने अपने हिस्से की खेती की जमीन बेच दी. इस रकम से उस ने दूसरे ऐप पर खेलना शुरू किया. इस ऐप पर भी सारे रुपए हार गया. अपने रुपए वापस पाने के चक्कर में फूलचंद ने पत्नी के गहने बेच डाले, सुलतानपुर का आवासीय प्लौट तक बेच डाला, लेकिन रुपए वापस पाने की कौन कहे, ये सारे रुपए भी हार गया. वह एक करोड़ 25 लाख रुपए हार चुका था. इस के बावजूद उस ने गेम खेलना बंद नहीं किया.
फूलचंद ने राजा मोबाइल गेम ऐप, रमी सर्किल, खेल प्ले रमी, रमी वौर्स और दमन जैसे गेम मोबाइल ऐप पर रुपए लगाए थे. गेम में रुपए हारने के बाद फूलचंद किसी को रुपए के लिए फोन करता तो उस की पत्नी उर्मिला वह नंबर नोट कर लेती. उस के बाद स्कूल जा कर उन लोगों को फोन कर के पैसे देने से मना कर देती. इतना सब होने के बावजूद फूलचंद अगस्त के तीसरे सप्ताह में भी एक लाख 74 हजार रुपए हार गया. इस के बाद तो उर्मिला उस पर बिफर पड़ी, क्योंकि इतनी कमाई होने के बावजूद बच्चों की फीस जमा करने के पैसे नहीं थे. घर में न खाने का ठिकाना था और न पहनने का. नुकसान की भरपाई के चक्कर में उस ने जमीन और शहर का आवासीय प्लौट तक बेच डाला था. इस के बावजूद वह औनलाइन गेम खेलना नहीं छोड़ रहा था.
फिर तो फूलचंद को उस की पत्नी ने ही नहीं, बल्कि उस की मम्मी और भाई ने भी खूब लताड़ा. क्योंकि अपनी कमाई तो उस ने गेम में गंवाई ही, पुश्तैनी खेती भी 60 लाख में बेच कर गेम में गंवा दी थी. सब कुछ गंवा कर जब उसे लगा कि अब जीना बेकार है तो उसने कई बार आत्महत्या की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे घर वालों ने बचा लिया. इतना सब होने के बाद फूलचंद को थोड़ी अक्ल आई. उस ने साइबर क्राइम के टोल फ्री नंबर 1930 पर फोन कर के मौखिक शिकायत की. इतना ही नहीं उसने साइबर थाने में शिकायत भी दर्ज करा दी है.
फूलचंद का कहना है कि औनलाइन गेमिंग खेलने वाले के दिमाग को जैसे हैक कर लेती है. खेलने वाला जैसे ही मोटी रकम लगाता है, हार जाता है. जैसे उसे पहले ही पता चल जाता है कि खेलने वाला मोटी रकम लगाने वाला है. लोग अपनी रकम वापस पाने के लिए लगातार ज्यादा रकम लगाते हैं, लेकिन जीतने के बजाय हारते जाते हैं. औनलाइन गेम एक नासूर की तरह है. उस की शिकायत दर्ज होने के बाद सीओ प्रशांत सिंह इस मामले की जांच करवा रहे हैं, क्योंकि उन्हें कई लोगों के औनलाइन गेम का शिकार होने की सूचना मिली है. साइबर टीम औनलाइन गेमिंग के नाम पर ठगी करने वालों को पकडऩे में लगी है.
गेम की लत में फौजी बना पत्नी का हत्यारा
उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना मदनापुर के अंतर्गत आने वाले गांव नगला बाबू उर्फ नगरिया के रहने वाले हरिओम की नौकरी सेना में लग गई थी. सेना में था तो वह सिपाही ही, पर सरकारी और सुरक्षित नौकरी होने की वजह से जो उस का भाव बढ़ गया था. उस के विवाह के लिए जो कोई उस के यहां आता, घर वाले उस से दहेज में मोटी रकम मांगते थे.
सेना में सिपाही होने की वजह से लोगों को अपनी बेटी का भविष्य उस के साथ विवाह कर के सुरक्षित लगता था, इसलिए उस के यहां लड़की वालों की लाइन लगी रहती थी. पर हरिओम के फेमिली वाले जितना दहेज मांगते थे, उतना दहेज देना हर किसी के वश का नहीं था. शाहजहांपुर के थाना पूरा बंडा के चिकटिया गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह भी अपनी बेटी विधि के लिए लड़का तलाश रहे थे. उन्हें जब हरिओम के बारे में पता चला तो वह भी उस के यहां विवाह के लिए पहुंचे. घरपरिवार और लड़का पसंद करने के बाद जब दहेज की बात चली तो हरिओम के घर वालों की मांग सुन कर उन्हें पसीना आ गया.
लेकिन बेटी के भविष्य की बात थी, इसलिए गजेंद्र ने थोड़ाबहुत दहेज कम करा कर विधि का विवाह हरिओम के साथ तय कर दिया. इस के बाद 23 मार्च, 2023 को 23 साल की विधि का विवाह फौजी हरिओम के साथ हो गया. गिरीश के अनुसार, उन्होंने विधि के विवाह में लगभग 30 लाख रुपए खर्च किए थे, लेकिन उन के इतना खर्च करने बाद भी हरिओम और उस के फेमिली वाले संतुष्ट नहीं थे. शादी के बाद विधि ससुराल आ गई. ससुराल वाले खुश नहीं थे, इसलिए विधि को बातबात पर सिर्फ ससुराल वालों के ताने ही नहीं सुनने पड़ते थे, बल्कि कभीकभार मार भी खानी पड़ती थी. जिंदगी गुजारने के लिए विधि को यह सब सहना पड़ता था.
हरिओम ससुराल वालों से 11 लाख रुपए और मांग रहा था. इस की वजह यह थी कि उस की मोबाइल पर औनलाइन गेम खेलने की लत थी, जिस में वह काफी रुपए हार चुका था. अपने रुपए हारा होता तो चल भी जाता, लेकिन वह कर्ज ले कर रुपए हार चुका था. उस ने जिन से रुपए उधार लिए थे, उस का उसे हर महीने ब्याज देना पड़ता था, जिस की वजह से वह काफी परेशान रहता था. उसे कर्ज देने वाले परेशान करते थे तो वह विधि को मायके से रुपए लाने के लिए परेशान करता था. विधि खुद मार खा लेती, परेशान हो लेती, पर अपनी परेशानी मायके वालों को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. यही बात हरिओम और उस के फेमिली वालों को खल रही थी कि विधि अपने घर वालों से पैसे क्यों नहीं मांगती. इस के बाद मायके वालों से पैसे मांगने के लिए उसे और सताया जाने लगा था
ऐसा ही कुछ 23 अगस्त, 2025 को भी हुआ होगा. विधि के पिता गजेंद्र के अनुसार, शनिवार की रात मांग पूरी न होने पर हरिओम और उस के घर वालों ने पहले विधि को खूब मारापीटा, उस के बाद गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या की बात को छिपाने के लिए उन लोगों ने उस की लाश को फंदे से लटका दिया. लाश को लटकाने के बाद विधि के ससुर श्यामवीर ने फोन द्वारा गजेंद्र को विधि की मौत की सूचना दी थी. गजेंद्र परिवार के साध विधि की ससुराल पहुंचे तो उन्हें विधि के शरीर पर चोट के निशान दिखाई दिए.
पुलिस को पहले ही सूचना दी जा चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी विधि के शरीर पर चोट के निशान मिले. उस की मौत हैंगिंग से होना बताया गया है था. विधि के भाई शिवप्रताप सिंह का कहना था कि विधि का पति हरिओम औनलाइन गेम खेलता था, जिस में वह लाखों रुपए हार चुका है. उस के ऊपर काफी कर्ज हो चुका है. कर्ज चुकाने के लिए वह विधि से मायके से 11 लाख रुपए लाने के लिए कहता था. उन्हीं रुपयों के लिए वह उसे प्रताडि़त करता था. यही नहीं, जब वह मेरठ में तैनात था, तब विधि उस के साथ रहती थी. उन दिनों वह गर्भवती थी. उस दौरान भी वह उस की पिटाई करता था.
जब इस बात की शिकायत सेना के अधिकारियों से की गई तो उस का तबादला जम्मूकश्मीर कर दिया गया. बहरहाल, औनलाइन गेम की लत ने एक अच्छेभले सेना के जवान को पत्नी का हत्यारा बना दिया. न वह गेम खेलता, न उस पर कर्ज होता और न उस कर्ज को भरने के लिए उसे पत्नी की हत्या करनी पड़ती.
आ गया है औनलाइन गेमिंग बिल
भरत सरकार ने औनलाइन गेमिंग बिल पास किया है, जिस में कहा गया है कि गेम्स चाहे स्किल बेस्ड हो या चांस बेस्ड, दोनों पर रोक है. इस बिल के अनुसार किसी भी तरह का मनी बेस्ड गेम औफर करना, चलाना, प्रचार करना गैरकानूनी है. लेकिन औनलाइन गेम खेलने वालों को सजा नहीं होगी. अगर कोई रियल मनी गेम औफर करता है या उस का प्रचार करता है तो उसे 3 साल तक की जेल और एक करोड़ रुपए तक का जुरमाना हो सकता है. विज्ञापन चलाने वालों को 2 साल की जेल और 50 लाख रुपए तक का जुरमाना हो सकता है.
इस के लिए एक खास अथौरिटी बनाई जाएगी, जो गेमिंग इंडस्ट्री को रेगुलेट करेगी, गेम्स को रजिस्टर करेगी और यह जांच करेगी कि कौन सा गेम रियल मनी गेम है. जो गेम बिना पैसे वाले हैं, जैसे पबजी, फ्री फायर, ई स्पोट्र्स और सोशल गेम्स को सपोर्ट किया जाएगा. Crime News