Hindi love Stories : जिस तरह प्यार अंधा होता है, उसी तरह प्यार होने के बाद प्रेमी भी अंधे ही नहीं, विचारशून्य भी हो जाते हैं. वह अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं, चाहे वह हत्या जैसा अपराध ही क्यों न हो. नरिंदर और राजन ने भी कुछ ऐसा ही किया. जिन दिनों मैं पंजाब के जिला पटियाला के थाना खरड़ का थानाप्रभारी था, एक दिन सुबह के करीब साढ़े 7 बजे मुझे अपने

मोबाइल फोन पर सूचना मिली कि लांडरा रोड के साथ लगे धोबिया मोहल्ले में अज्ञात हत्यारे एक लड़की के हाथपैर बांध कर एक महिला की हत्या कर गए हैं. मैं एक सबइंसपेक्टर और 2 सिपाहियों को ले कर सूचना में बताए गए पते पर पहुंच गया. जिस वक्त मैं घटनास्थल पर पहुंचा, सिटी चौकीइंचार्ज हरजिंदर सिंह वहां मौजूद थे. हरजिंदर सिंह ने मुझे बताया कि इस घटना की सूचना मिलते ही वह पुलिसपार्टी के साथ वहां आ गए थे. उन्होंने गेट के अंदर लड़की (नरिंदर कौर) को हाथ बंधे पड़ी देखा तो एक महिला सिपाही को गेट के ऊपर से दूसरी तरफ उतारा.

महिला सिपाही ने नरिंदर कौर के रस्सी से बंधे हाथ खोले तो उस ने कमरे से चाबी ला कर गेट का ताला खोला. बदमाशों ने इसी की मां का कत्ल किया है. मैं ने नरिंदर कौर के चेहरे को गौर से देखते हुए घटना के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, नकाबपोश बदमाशों ने मेरी मां की हत्या कर दी और मुझे रस्सियों से बांध कर मुंह में कपड़ा ठूंस कर एक कोने में फेंक दिया. किस्मत अच्छी थी कि सांस घुटने से पहले मैं अपने मुंह का कपड़ा निकालने में सफल हो गई और किसी तरह घिसटघिसट कर बाहर आ गई.’’

इस के बाद उस ने एक लंबी सांस ली. सांस लेने के बाद वह कुछ ज्यादा ही जोश में आ गई, ‘‘कौन कहता है कि हमारी पुलिस अच्छी नहीं है. मैं तो यही कहूंगी कि दुनिया में सब से अच्छी हमारी पुलिस है.’’

मैं ने फिलहाल लड़की की बातों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा. मगर ऐसे हालात में भी जब वह बेबाकी के साथ बोलती ही गई तो मुझे अपने पुलिसिया अनुभव के हिसाब से उसे दूसरी दृष्टि से परखना पड़ा. लेकिन मैं ने अपना शक किसी भी तरह से जाहिर नहीं होने दिया. उसे जैसेतैसे आश्वस्त कर के मैं चौकीइंचार्ज हरजिंदर सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों के साथ घर के भीतर चला गया. घर का नक्शा कुछ इस तरह से सामने आया. मुख्य गेट के बाद खुला दालान था. दालान के बाद बरामदा. जो बीच वाला कमरा था, उसी में बिछे डबलबैड पर एक किनारे नरिंदर कौर की मां सुरजीत कौर की लाश पड़ी थी.

सुरजीत कौर का शव सीधी अवस्था में था. उन का बायां हाथ कमर के साथ चिपका था तो दायां हाथ ऊपर उठा था. दोनों कलाइयों की नसें काट दी गई थीं, जहां से खून बह रहा था. एक अजीब बात वहां यह सामने आई कि शव के नथुनों में रुई के फाहे फंसे हुए थे. मृतका के हाथों में सोने की चूडि़यां और कानों में सोने की बालियां साफ नजर आ रही थीं. उन्हें देख कर यही लग रहा था कि नकाबपोश लुटेरों ने यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं की. अगर यदि ऐसा होता तो वे मृतका के गहने भला छोड़ कर क्यों जाते? दूसरे कमरे का सामान बिखरा हुआ था. ऐसा बदमाशों ने शायद घटना को लूटपाट का रूप देने के लिए किया था.

वहां की हालत से पूरी तरह साफ हो गया था कि नरिंदर कौर जो बता रही थी, वह सच नहीं था. उस का झूठ पकड़ने के लिए हम ने एक चाल चली. मैं बगल में खड़े सबइंसपेक्टर से बात कर रहा था, तभी वहां एक आदमी आया. उस का नाम देवेंद्र सिंह था. उस ने खुद को नरिंदर कौर का फूफा बताया. वह लांडरा रोड, पर सेक्टर-10 में रहता था. उस ने बताया, ‘‘सर, मृतका सुरजीत कौर ने बीती रात मुझे अपने घर बुलाया था. उस के बुलाने पर मैं यहां पहुंचा तो उस ने नाराज हो कर मुझ से कहा था कि नरिंदर अपने खानदान का बेड़ा गर्क कर रही है. वह पड़ोस में रहने वाले राजन के साथ मुंह काला करती घूम रही है. लाख समझाने पर भी नहीं मान रही है. उस ने मुझ से इस बारे में नरिंदर से बात करने को कहा था.

‘‘तब मैं ने जैसेतैसे सुरजीत को आश्वस्त किया था. चूंकि उस समय नरिंदर घर पर नहीं थी, इसलिए मैं ने सोचा कि कल आ कर नरिंदर को समझा दूंगा. मैं अपने घर जा रहा था तो लांडरा रोड पर मुझे सामने से नरिंदर आती दिखाई दी. मैं ने उसे रोक कर राजन के बारे में बात की तो उस ने कहा कि मां उस के बारे में झूठी अफवाहें उड़ा रही है. जबकि वह दिनरात मां का खयाल रख रही है और इस वक्त वह मां के लिए दवा ले कर आ रही है. उस ने मुझे अपने हाथ में पकड़ा लिफाफा भी दिखाया था, जिस में किसी दवा की स्ट्रिप थी.

‘‘इस के बाद मैं अपने घर चला गया था. मगर आज अभी कुछ देर पहले मुझे पता चला कि सुरजीत का किसी ने कत्ल कर दिया है. जानकारी मिलते ही मैं यहां चला आया. मुझे लगता है, हो न हो सुरजीत कौर का कत्ल नरिंदर ने ही अपने प्रेमी राजन के साथ मिल कर किया है.’’

मैं ने भी इस सिलसिले में ज्यादा सोचाविचारा नहीं और देवेंद्र सिंह की तहरीर पर कत्ल का मामला जरूर दर्ज करा दिया, मगर इस बात की जानकारी नरिंदर को नहीं होने दी. मेरे साथी पंचनामा आदि की काररवाई कर रहे थे, तभी मैं नरिंदर को पूछताछ के लिए एक किनारे ले गया. मैं ने उस से सवाल किया कि जब नकाबपोश लुटेरों ने घर में लूटपाट की और उस की मां का कत्ल किया तो क्या उस वक्त उन लोगों ने हाथपैर बांध कर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस रखा था? मैं ने यह भी पूछा कि उस की मां के नथुनों में जो रुई के फाहे मिले हैं, क्या वे भी नकाबपोशों ने ही ठूंसे थे? यह घटना कितने बजे हुई थी?

उस ने बताया, ‘‘घटना शायद रात डेढ़ बजे या फिर दो-ढाई बजे के आसपास घटी थी. नकाबपोश लुटेरों ने जो भी किया, सब मेरी आंखों के सामने किया. मैं उन का भारी विरोध करने लगी थी, इसी से चिढ़ कर उन्होंने मेरे हाथपैर बांध कर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया था. इस के बाद मां के हाथों की नसें काट कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था. उन के नथुनों में रुई क्यों ठूंसी, यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है.’’

यह सब बताते हुए वह हकला रही थी. उस के चेहरे की भंगिमाएं इस बात की साफ चुगली करने लगी थीं कि वह भीतर से डरी हुई है. मुझे उस पर पूरा शक होने लगा था. उसी समय जिले के अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. मैं ने उन्हें पूरी जानकारी दे दी. सुरजीत कौर की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद नरिंदर पर अपना मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए हम सभी पुलिस अधिकारी एक कमरे में चले गए. कमरा बंद कर के आधे घंटे तक गुप्त मीटिंग करने का नाटक किया. इस के बाद बाहर निकल कर बारीबारी से सब ने नरिंदर को कुछ इस तरह से घूरना शुरू किया, जैसे उसे इस बात का यकीन हो जाए कि पुलिस को उसी पर शक है.

हमारा यह सोचना था कि इस सब से अगर वह खुद ही आत्मसमर्पण को तैयार हो जाए तो केस की तफ्तीश का सिलसिला हमारे लिए आसान हो जाएगा. अपनी यह मनोवैज्ञानिक काररवाई करने के बाद हम लोग थाने आ गए. जैसा हम ने सोचा था, वैसा ही हुआ. हमारे थाने पहुंचने के थोड़ी देर बाद नरिंदर कौर का एक करीबी रिश्तेदार उसे आत्मसमर्पण करवाने के लिए थाने आ पहुंचा. उस ने आते ही नरिंदर कौर को मेरे सामने खड़ी कर के कहा, ‘‘इस ने और इस के प्रेमी राजन ने ही सुरजीत कौर का कत्ल किया है.’’

‘‘राजन कहां है?’’ मैं ने उतावलेपन से पूछा.

वह बोला, ‘‘सर, वह भी आया है. बाहर खड़ा है, अभी बुलाए देता हूं.’’

इस के बाद जरा ही देर में काले रंग की लैदर जैकेट पहने 1 नवयुवक अंदर आ गया. खुद को नरिंदर का नजदीकी रिश्तेदार कहने वाला आदमी मेरे नजदीक आ कर बोला, ‘‘सर, जब आप लोग मौके पर तफ्तीश कर रहे थे, तब मैं भी वहीं था. आप सब के जाते ही नरिंदर कौर ने मुझ से कहा कि वह बहुत घबरा रही है. उस ने कुछ सिपाहियों को आपस में बातें करते सुना था कि अपराधी अगर अपनी मरजी से आत्मसमर्पण कर देता है तो पुलिस उस से कुछ नहीं कहती, वरना पुलिस की कोशिशों से पकड़े जाने पर उस से बहुत बुरा सुलूक किया जाता है.’’

इस के बाद नरिंदर कौर ने मुझे बता दिया कि उस ने ही अपने प्रेमी राजन के साथ मिल कर मां का कत्ल किया था. पुलिस की पिटाई से बचने के लिए वह आत्मसमर्पण करना चाहती थी. नरिंदर कौर ने उसी समय फोन कर के राजन को भी बुलवा लिया था. उसे भी उस ने आत्मसमर्पण करने के लिए राजी कर लिया था. दोनों की सहमति पर वह आदमी उन्हें मेरे पास ले कर आया था. मैं ने नरिंदर कौर और राजन से पूछताछ की तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने दोनों को सुरजीत कौर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर के 5 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में की गई पूछताछ में प्रेम अपराध की जो लोमहर्षक दास्तान सामने आई, वह कुछ इस तरह से थी.

पटियाला के खरड़ निवासी मोहिंद्र सिंह मोहाली स्थित पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड में नौकरी करते थे. उन के घर से मोहाली कोई 10 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह घर से ही स्कूटर से औफिस आतेजाते थे. कई सालों पहले सड़क दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. तब उन की जगह पत्नी सुरजीत कौर को नौकरी मिल गई थी. उस वक्त उन के बच्चे काफी छोटे थे. नरिंदर उस समय 10 साल की थी और उस का भाई हरनेक 4 साल का. सुरजीत कौर पढ़ीलिखी महिला थीं. उन्होंने तय किया कि वह अपने दोनों बच्चों को खूब पढ़ालिखा कर बढि़या नौकरियों पर लगवाएंगी.

इसी तरह वक्त आगे बढ़ता गया. हरनेक 12वीं में पढ़ रहा था और नरिंदर बीए फाइनल में. वह चंडीगढ़ के जिस महिला कालेज में पढ़ रही थी, बस से ही अकेली आयाजाया करती थी. सुरजीत के घर से 4 घरों की दूरी पर सुरेश कुमार का घर था. वह बैंड मास्टर था. उस के बच्चों में एक बेटी और 3 बेटे थे. तीनों बेटे भी पिता के साथ बैंड बजाते थे. इन में मंझला बेटा राजन कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी था. 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद उस ने अपने आप को एक कलाकार के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया. उस की मेहनत रंग लाई और वह उभरते हुए कलाकार के रूप में स्टेज शोज करने लगा.

किसी स्टेज शो में अपने पड़ोसी राजन की कला देख कर नरिंदर उस पर मर मिटी. शो खत्म होने पर उस ने राजन का हाथ अपने हाथों में ले कर न केवल उसे मुबारकबाद दी, बल्कि उस की कला की भी जम कर तारीफ की. यहीं से दोनों के प्रेम की शुरुआत हुई. इस के बाद दोनों अकसर मिलने लगे. जून, 2003 में किसी बहाने से दोनों हिमाचल प्रदेश के नगर कसौली जा कर होटल में रुके. वहीं दोनों के बीच जिस्मानी ताल्लुकात भी बन गए. इस के बाद तो इन के लिए एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया. सुरजीत कौर ने नरिंदर व हरनेक को अलगअलग कमरे दे रखे थे, ताकि वे अपनी पढ़ाई ठीक से कर सकें. नरिंदर रात में अपने कमरे की कुंडी लगा कर काफी देर तक पढ़ती थी.

पूरे मोहल्ले में वह पढ़ाकू लड़की के रूप में मशहूर थी. राजन से संबंध बनाने के बाद वह रात में उसे अपने कमरे पर बुलाने लगी. राजन आधी रात में छतों से होता हुआ पिछवाड़े की तरफ से घर में दाखिल हो कर उस के कमरे में चला आता. रंगरलियां मनाने के बाद वह उसी तरह वापस अपने घर लौट जाता. कई महीने यह सिलसिला चलता रहा. मगर एक रात लघुशंका के लिए सुरजीत कौर अपने कमरे से निकलीं तो ठीक उसी समय राजन उन की बेटी के कमरे से निकल कर सीढि़यों की ओर जा रहा था. उसे देख कर सुरजीत कौर को समझते देर नहीं लगी कि मामला क्या हो सकता है. शोर मचाने से अपनी ही बदनामी होती. लिहाजा उन्होंने चुप रहते हुए समस्या का समाधान निकालने की सोची.

इस के बाद सुरजीत कौर बेटी से बेरुखी से पेश आने ही लगीं. वह रातरात भर जाग कर उस की निगरानी करने लगीं. इस से नरिंदर कौर समझ गई कि मां को शायद उस के प्यार की भनक लग गई है. वह खुद भी सतर्क हो गई. इस से राजन को रात में अपने पास बुलाना नरिंदर के लिए मुश्किल हो गया. किसी दिन सुरजीत कौर ने गुस्से में कह भी दिया ‘‘अच्छे खानदानी घर की लड़की हो कर भी तुझे उस दो टके के लड़के के साथ रासलीला रचाने में शर्म नहीं आई. आगे मैं ने उसे कभी तेरे साथ देख लिया तो दोनों की बोटीबोटी कर के कुत्तों को खिला दूंगी.’’

मां के ये शब्द सुन कर नरिंदर कौर ने जवाब तो कोई नहीं दिया, लेकिन उस के लिए अब उस की मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी. क्योंकि उस के रहते वह अपने प्रेमी से नहीं मिल सकती थी. इसलिए उस ने अपनी मां को दुनिया से विदा करने का फैसला ले लिया. नरिंदर ने इस बारे में अपने प्रेमी राजन से बात की तो उस ने उसे सलाह दी, ‘‘अपनी मां से नफरत करने के बजाय तुम उन का विश्वास जीतने की कोशिश करो. उन्हें समझाओ कि हम दोनों आपस में सच्चा प्यार करते हैं और उन के आशीर्वाद से एकदूसरे से शादी करना चाहते हैं.’’

राजन की बात नरिंदर को जंच गई. एक दिन नरिंदर कौर ने मां के पैर छूते हुए पहले अपनी गलती की माफी मांगी, फिर नजरें झुका कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं और राजन एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. न मैं राजन के बिना रह सकती हूं और न ही वह मेरे बिना. वह किसी और से शादी भी नहीं करेगा. इसलिए आप मेरी उस से शादी करवा दो. मम्मी शादी में मुझे आप के आशीर्वाद के अलावा और कुछ नहीं चाहिए.’’

नरिंदर ने हिम्मत कर के यह बात कह तो दी, मगर उसे इस बात का डर भी था कि ये सब सुनते ही मां एक बार उस पर भड़केगी जरूर. लेकिन सुरजीत कौर ने नाराज होने के बजाय अपना स्नेहिल हाथ उस के सिर पर रख कर प्यार से कहा, ‘‘तू बहुत भोली है बेटी, नादान है अभी. तू नहीं जानती कि दुनिया मक्कार लोगों से भरी पड़ी है. मैं ने रिश्तेदारी में कुछेक जगह तेरी शादी की बात चलाई है. सही लड़का मिलते ही ऐसा धूमधाम से शादी करूंगी कि सारा शहर देखता रह जाएगा. एकएक चीज दूंगी तुझे दहेज में. कार बोल कौन सी लेगी?’’

‘‘नहीं मां, न मुझे कार चाहिए, न कुछ और. शादी में दहेज का तुम मुझे एक रुपया भी मत देना. बस, मेरा ब्याह राजन से करवा दो, तुम्हारा यह एहसान मैं सारी जिंदगी नहीं भूलूंगी.’’

इतना सुनते ही सुरजीत कौर ने पास पड़ी लकड़ी की छड़ी उठा ली. यह देख कर नरिंदर डर गई कि इस छड़ी से अब उस की पिटाई होने वाली है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सुरजीत कौर वह छड़ी अपने सिर पर मारते हुए बुक्का फाड़ कर चीखने लगीं, ‘‘औलाद की बदौलत यह दिन देखने से पहले मुझे मौत आ जाती तो अच्छा था.’’

मां को चुप करवाने को नरिंदर कौर उन की ओर बढ़ी तो सुरजीत कौर ने उस छड़ी से उस को भी धुन दिया. नरिंदर कौर के जिस्म का कोई अंग ऐसा न बचा, जहां छड़ी की मार न पड़ी हो. काफी देर तक नरिंदर कौर सुबकसुबक कर रोती रही. इस के बाद उस के मन में यह बात बैठ गई कि मां किसी भी कीमत पर उस की शादी राजन से करने के लिए तैयार नहीं होगी. एकबारगी उसे यह भी डर लगा कि मां किसी रोज कहीं उसे मौत के घाट न उतार दे. लिहाजा, नरिंदर ने मन ही मन निर्णय ले लिया कि अब मां को मौत के घाट उतार कर ही दम लेगी. बाद में जब उस ने राजन को इस बारे में विस्तार से बताया तो वह भी उस के फैसले से सहमत हो गया. इस के बाद उन्होंने सुरजीत कौर को ठिकाने लगाने की योजना बना ली.

उधर बेटी को ले कर सुरजीत काफी तनाव में रहने लगी थी. उन का ब्लडप्रैशर अक्सर बढ़ने लगा. वह दवा वगैरह भी नरिंदर कौर से ही मंगवाया करती थीं. नरिंदर ने इसी बात का फायदा उठाया. 28 फरवरी, 2005 की रात में उस ने मां को खाना परोसते वक्त उन के साग में नींद की 6 गोलियों का पाउडर मिला दिया. उस दिन उस का भाई हरनेक रिश्तेदारी में गया हुआ था. खाना खाने के बाद सुरजीत कौर पर गोलियों का ऐसा असर हुआ कि वह जल्द ही गहरी नींद में चली गईं. नरिंदर को अपना काम आधी रात के बाद करना था, इसलिए मोबाइल फोन पर डेढ़ बजे का अलार्म लगा कर वह भी सो गई. डेढ़ बजे अलार्म की आवाज पर उठ कर उस ने राजन को फोन कर के आने को कहा. वह छत के रास्ते नरिंदर के घर आ गया.

नरिंदर के इशारा करने पर राजन ने गहरी नींद में सो रही सुरजीत कौर के मुंह पर तकिया रख कर दबा दिया. सुरजीत कौर छटपटाने लगीं तो नरिंदर ने अपने दुपट्टे से उन की बांहें व टांगें बांध दीं. अब तक सुरजीत की नींद पूरी तरह टूट चुकी थी. वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगीं. इस प्रयास में वह नीचे गिर गईं तो उन्होंने उन्हें उठा कर फिर से बैड पर पटक दिया. वह फिर बेहोशी में चली गईं. राजन ने नरिंदर से रुई मंगवा कर फाहे उन के नथुनों में घुसेड़ दिए. इस के बाद उन के पास ही उसी बैड पर मौजमस्ती करने लगे. उन्हें भरोसा हो गया था कि सुरजीत कौर मर चुकी है. मगर प्रेमालाप के दौरान उन्होंने उन की एक बाजू फड़फड़ाते देखी तो नरिंदर ने नब्ज टटोली, वह चल रही थी.

वह रसोई से 2 चाकू उठा लाई. एक चाकू से उस ने मां की दाईं कलाई की नस काटी तो दूसरे चाकू से राजन ने उन के बाएं हाथ की कलाई की नस काट दी. नसों से खून बह कर बिस्तर पर फैलने लगा. ज्यादा खून निकलने से थोड़ी देर में सुरजीत कौर की मौत हो गई. मां की हत्या करने के बाद उन की लाश के पास ही नरिंदर सुबह के 5 बजे तक राजन के साथ वासना का खेल खेलती रही. इस के बाद घर में रखे 3,300 रुपए, कुछ गहने उस ने राजन को सौंप दिए. इसी के साथ कुछ आलमारियों में से कपड़े वगैरह निकाल कर इधरउधर फेंक दिए, ताकि मामला लूटपाट का लगे.

घर से जाते वक्त राजन ने सुरजीत कौर के हाथों में बंधा दुपट्टा खोल कर नरिंदर के मुंह में घुसेड़ा और रस्सी से उस के हाथपैर बांध कर जमीन पर लिटा दिया. नींद की गोली का खाली पत्ता और दोनों चाकू बाहर कहीं फेंकने के लिए राजन ने अपने पास रख लिए. इस के बाद वह वहां से चला गया. सुबह 7 बजे तक नरिंदर उसी तरह लेटी रही. फिर सरकसरक कर बाहर गेट के पास आई और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. नरिंदर और राजन द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद हम ने राजन की निशानदेही पर गहने, नींद की गोलियों का खाली पत्ता, दोनों चाकू और 3,300 रुपए बरामद कर लिए. पुलिस रिमांड खत्म होने पर दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में पटियाला की सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

तय समय सीमा के अंदर ही मैं ने दोनों अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया. सेशन कमिट होने के बाद पटियाला की जिला अदालत में यह केस विधिवत चला. 31 अगस्त, 2007 को केस का फैसला सुनाते हुए रोपड़ की तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश रेखा मित्तल ने नरिंदर और राजन को दोषी मानते हुए उम्रकैद व 2 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. ऊपरी अदालतों द्वारा अपील खारिज होने के बाद आज दोनों जेल की सलाखों के पीछे अपनी उम्रकैद की सजा भुगत रहे हैं. बताया जा रहा है कि सजा पूरी होने के बाद जेल से बाहर आने पर नरिंदर कौर और राजन शादी करेंगे. किसी ने सच ही कहा है कि इश्क जब किसी की रगों में समा जाए तो इस का भयानक अंजाम सामने आने पर भी उस का महबूब ही उस के लिए सर्वोपरि होता है. Hindi love Stories

—कथा पुलिस रिकार्ड व अदाल

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