Crime News: युद्ध हो या गृहयुद्ध, आतंकवादी घटनाएं हों या मारकाट, इन में सब से ज्यादा क्षति होती है तो महिलाओं की, क्योंकि इस स्थिति में उन का सहारा तो छिनता ही है, धन और इज्जत भी लुट जाती है…
‘‘है लो, मैं वाइट हाउस वाशिंगटन से बोल रहा हूं.’’ ‘‘यस प्लीज.’’ फोन वाइट हाउस से है, यह जान कर रिसीव करने वाला थोड़ी खुशी, थोड़ी दहशत और थोड़ी बेचैनी में अटपटा सा गया.
‘‘आप कायला मुलर के फादर बोल रहे हैं न?’’ फोन करने वाले ने दर्दभरी बेचारगी के साथ पूछा.
‘‘जी हां.’’
‘‘सौरी सर, वाइट हाउस आप के दुख में बराबर का हिस्सेदार है. कायला मुलर अब इस दुनिया में नहीं रहीं. बर्बर आईएस ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया है. पूरा अमेरिका इस दुख में डूबा हुआ है. राष्ट्रपति ने पार्लियामेंट में संकल्प लिया है कि जिन लोगों ने कायला को कायरों की तरह मारा है, यह देश उन दरिंदों से अपनी प्यारी बेटी का बदला जरूर लेगा.’’
इतना कह कर फोन करने वाले वाइट हाउस के उस अधिकारी ने फोन काट दिया था, क्योंकि उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह आगे क्या कहे? शायद वह यह भी जानता था कि वह जो कुछ भी कहेगा, वह पीडि़त परिवार के दुख को और बढ़ाएगा. दरअसल, बीते कुछ दिनों से कायला मुलर के घर वाले काफी परेशान थे. इधर कुछ दिनों से पूरी दुनिया में अपनी बर्बरता से खौफ पैदा करने वाले आईएसआईएस का कहना था कि जौर्डन की सेना ने उस के लड़ाकों को मारने के लिए उस पर जो हवाई हमले किए थे, उसी से कायला की भी मौत हो गई थी, जो पिछले काफी दिनों से उस के कब्जे में थीं और प्राप्त जानकारी के अनुसार, ये आतंकी उसे लोहे के पिंजरे में बंद कर के रखते थे और बारीबारी से ‘सैक्स स्लेव’ की तरह इस्तेमाल करते थे.
अमेरिकी प्रशासन ने कायला के मारे जाने के आईएसआईएस के दावे पर यकीन नहीं किया था, इसलिए 26 वर्षीया युवती कायला के परिवार वालों को तमाम आशंकाओं के बीच भी उस के जीवित होने की थोड़ी उम्मीद थी. लेकिन 9 फरवरी, 2015 को वाइट हाउस के उस फोन ने कायला के घर वालों की तमाम उम्मीदों पर एक झटके में पानी फेर दिया था. 9 फरवरी को जब कायला की हत्या की सूचना दी गई तो मुलर परिवार बिलख पड़ा था. लगभग 6 महीनों में बर्बर खौफ का पर्याय बने इस संगठन द्वारा यह 27वीं ऐसी बर्बर हत्या थी, जिस में ऐसे लोगों को मौत के घाट उतारा गया था, जो न तो इस दरिंदे संगठन से लड़ रहे थे और न ही उसे चुनौती दे रहे थे. ये सभी तो बस मानवीय गरिमा का फर्ज अदा कर रहे थे.
लेकिन इस दरिंदे संगठन ने ऐसे सौफ्ट टारगेटों को खौफनाक ढंग से मौत के घाट उतार कर सनसनीखेज सुर्खियां तो हासिल की ही हैं, साथ ही दुनिया भर में अपने खौफ का भी विस्तार किया है. अब तक इस इस्लामिक संगठन ने 21 पत्रकारों और 6 सताए लोगों की मदद कर रहे मानवीय कार्यकर्ताओं की हत्या की है. कायला मुलर भी इंसानियत के नाते सताए लोगों की मदद करने के लिए मध्यपूर्व गई थीं, लेकिन वह आईएस के चंगुल में फंस गईं. कायला को श्रद्धांजलि देते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, ‘‘वह अमेरिका के सब से अच्छे गुणों का प्रतिनिधित्व करती थीं. उन्हीं के चलते हम सब अमेरिकियों का सिर आज गर्व से ऊंचा है.’’
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने आईएस को कायला का हत्यारा कहा है और जौर्डन ने भी आईएस के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि कायला की मौत के लिए कायर बगदादी के दहशतगर्द जिम्मेदार हैं. गौरतलब है कि आईएस ने अगस्त, 2013 में कायला को सीरिया से अगवा किया गया था. यह वह समय था, जब यह बर्बर संगठन क्रूरता और बर्बरता में अलकायदा को पीछे छोड़ कर दुनिया के दिलोदिमाग में अपनी दहशत भर चुका था. अमेरिका ने बीते साल गर्मियों में कायला और अन्य अमेरिकी बंधकों को रिहा करवाने के लिए सैन्य औपरेशन भी चलाया था, लेकिन वह नाकाम रहा. 2 दिन पहले ही आईएस के लड़ाके उस ठिकाने को छोड़ कर जा चुके थे.
कायला मुलर आईएस की कैद में मारी गई चौथी अमेरिकी नागरिक थीं. उन से पहले आईएस 3 अमेरिकी पत्रकारों की भी हत्या कर चुका था. कायला के रिश्तेदार और दोस्त ही नहीं, दुनिया भर के अपरिचित लोग भी स्तब्ध हैं कि कैसे एक खूनी संगठन दुनिया से इंसानियत को खत्म करने पर तुला है. कायला मुलर एक भावुक युवती थीं, जो युद्ध की मार झेल रहे सीरिया में आम लोगों की परेशानी से विचलित थीं. अमेरिका में किशोरावस्था से ही मानवीय कार्यों में जुट जाने वाली कायला सीरियाई शरणार्थियों की मदद करना चाहती थीं. अगवा होने से पहले अपने ब्लौग में उन्होंने लिखा था, ‘हर इंसान को हरकत में आना चाहिए. उन्हें इस हिंसा को रोकना चाहिए.’
लेकिन दुनिया का सब से खूंखार संगठन बन चुका आईएसआईएस भला मानवता की इस बात को कैसे समझ सकता था, जो लाशों को गिन कर खुश होता है, जो पत्रकारों का जानवरों की तरह बेरहमी से गला रेतता है. यह संगठन वास्तव में जून, 2014 में बना एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जेहादी सुन्नी सैन्य समूह है. अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है ‘अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम’, जिस का हिंदी में मतलब है ‘इराक एवं शाम का इस्लामी राज्य’. शाम सीरिया का प्राचीन नाम है. आईएसआईएस अर्थात ‘इस्लामिक स्टेट औफ इराक ऐंड सीरिया’ के अलावा भी इस बर्बर संगठन के पहले कई अन्य नाम रहे हैं, जैसे आईएसआईएल, दाइश आदि.
आईएसआईएस नाम से इस संगठन का गठन अप्रैल, 2013 में हुआ. इब्राहीम अव्वल अल बदरी उर्फ अबू बकर अल बगदादी इस का मुखिया है. शुरू में यह अलकायदा का ही एक विस्तृत अंग था, जिस की वजह से अलकायदा ने भी इस का हर तरह से समर्थन किया, लेकिन बाद में अलकायदा इस संगठन से अलग हो गया. पर अब यह अलकायदा से भी अधिक मजबूत और क्रूर संगठन के रूप में जाना जाता है. विशेषकर औरतों के मामले में इस संगठन की दरिंदगी ने तो सारे रिकौर्ड तोड़ दिए हैं.
अब तक किसी भी इस्लामिक संगठन ने और न ही दुनिया के किसी भी कोने में सक्रिय किसी गैरइस्लामी संगठन ने कभी खुल्लमखुल्ला लोगों से यह नहीं कहा कि उसे सैक्स के लिए महिलाएं उपलब्ध कराई जाएं. लेकिन इस संगठन ने तो न केवल यह फरमान जारी किया है, बल्कि इराक के जिन शहरों में इस ने कब्जा किया, उन शहरों की सैकड़ों गैरसुन्नी महिलाओं को सैक्स गुलाम की तरह इस्तेमाल किया है. यह संगठन इतना क्रूर है कि इस की गतिविधियों के सामने क्रूरता की अब तक की सारी परिभाषाएं बहुत संवेदनशील और मानवीय लगने लगी हैं. यह महज महिलाओं के मामले में ही बर्बर नहीं है, लूटखसोट के मामले में भी इस का कोई सानी नहीं है. शायद इसीलिए यह दुनिया का सब से अमीर आतंकी संगठन है. इस का अपनी गतिविधियों के संचालन का बजट 2 अरब डौलर सालाना है.
पिछले साल 29 जून, 2014 को इस ने अपने मुखिया को विश्व के सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किया था और धमकी भी दी थी कि जिस ने उस के फरमान को न मानने की जुर्रत की, उसे दुनिया से दफा कर दिया जाएगा. विश्व के अधिकांश मुसलिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना इस का घोषित लक्ष्य है. इस के लिए इस ने सब से पहले लेवेंत या लेवांट क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का अभियान चलाया था. पुराने समय में लेवांट उस इलाके को कहा जाता था, जिस में आज सीरिया, लेबनान और फिलिस्तीन आते हैं. लेवांट एक ऐसे इलाके के रूप में जाना जाता है, जहां दुनिया के लिखित इतिहास में सब से अधिक खूनी संघर्ष हुए हैं. जिस के अंतर्गत जौर्डन, इजरायल, कुवैत, फिलिस्तीन, लेबनान, साइप्रस तथा दक्षिणी तुर्की का कुछ भाग आता है.
आईएसआईएस के लड़ाकों की संख्या करीब 1 लाख है. शुरू में ये बमुश्किल 10 हजार थे. लेकिन मिली जबरदस्त कामयाबियों के बाद दुनिया भर से कट्टरपंथी मुस्लिम युवा इस में भरती होने के लिए आकर्षित हुए हैं. इराक के मोसुल शहर पर कब्जा करने के बाद इस की ताकत एकदम से बढ़ गई है. इस संगठन के लड़ाकों ने हेलीकौप्टर और टैंकों के साथ वे तमाम आधुनिक हथियार भी हासिल कर लिए हैं, जो अमेरिका ने कभी इराकी सेना को दिए थे. दरअसल इराकी सैनिक बिना लड़े ही मोसुल से भाग खड़े हुए थे, जिस की वजह से इस दुर्दांत संगठन के आत्मविश्वास में ही नहीं, ताकत में भी जबरदस्त इजाफा हुआ, वह भी बिना कुछ गंवाए. क्योंकि जो इराकी सैनिक इन से डर कर भाग खड़े हुए थे, वे लगभग 30 हजार के करीब थे और आईएसआईएस के सुन्नी लड़ाके महज 800.
इसी से उत्साहित हो कर इन लड़ाकों ने मोसुल की बैंकों से करीब 42 करोड़ डौलर की नकदी लूट ली थी. हालांकि अलकायदा ने खुद को अब आईएसआईएस से अलग कर लिया है, लेकिन शियाओं पर हमले करना दोनों संगठनों की रणनीति रही है, इसलिए आम सुन्नी मुसलमानों में भी इस संगठन के प्रति काफी सहानुभूति है. एक जमाने में किसी और नाम से आईएसआईएस अलकायदा का सहयोगी संगठन था, जो पूरे मध्यपूर्व में और हर उस देश के खिलाफ जेहाद करते थे, जो उन के मुताबिक काफिर हैं. आईएसआईएस के मुखिया अबू बकर अल बगदादी को आज का तैमूर लंग कहा जाए तो लगेगा कि तैमूर भला आदमी था. कहा जाता है कि तैमूर इतिहास के सब से जालिम आक्रमणकारियों में से एक था.
1338 में जब उस ने दिल्ली पर आक्रमण किया था, तब एक लाख लोगों को मरवा दिया था. अब वही सब अबू बकर कर रहा है. जब उस के लड़ाकों ने इराक के शहर तिकरित पर कब्जा किया था तो वहां जबरदस्त मारकाट मचाई थी. लगभग 50 लाख लोग शहर छोड़ कर भाग गए थे. पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने मध्यपूर्व में आईएसआईएस की तेजी से फैली इस जहरीली ताकत से निपटने के लिए नाटो देशों से बात की थी और स्वयं अपने बलबूते पर इराक में 300 सैनिक भेजे थे, जिन का मकसद अमेरिकी दूतावास और अन्य संपत्तियों की सुरक्षा करना था. इस के बाद दूसरे दौर में अमेरिकी मदद के तहत 16 सौ सैनिक भेजे गए थे.
आईएसआईएस की ताकत का अंदाजा शायद शुरू में अमेरिका और गठबंधन देशों को नहीं हुआ, लेकिन अब कायला की हत्या के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कहना कि एक जिम्मेदार देश के मुखिया के नाते हम धरती पर कहीं भी इस तरह की अराजकता और मानवता को बंधक बनते नहीं देख सकते. दरअसल, सीरिया से होता हुआ आईएसआईएस का काफिला इराक में जब से दाखिल हुआ है और जिधर भी गया है, अपने पीछे खौफ, कहर और बर्बरता के निशान ही छोड़ता गया है. इसलिए आज पूरी दुनिया इस दरिंदे संगठन के विरुद्ध एक हो रही है, जिस ने समूची मानवता को बंधक बना लिया है.
आईएसआईएस एक ऐसा संगठन है, जो बेकुसूर पत्रकारों की कैमरे के सामने इस तरह बर्बरता से गरदन हलाल करता है, जैसे बकरे की कुरबानी दी जा रही हो, जो विज्ञान, इतिहास, सामाजिक विषयों और अर्थशास्त्र की हजारों किताबें यह कह कर जला देता है कि इसी ने युवाओं को इस्लाम से विमुख किया है, जो लड़कियों की 7 से 9 साल की उम्र में भी शादी को मंजूरी देता है और 16 साल तक हर हाल में शादी करने की हिदायत देता है, जो खुलेआम अपने लड़ाकों को सैक्स के लिए महिलाओं की मांग करता है और साफ चेतावनी देता है कि अगर उस की बात अनसुनी की गई तो खैर नहीं.
आखिर ऐसे अमानवीय और बर्बर संगठन के प्रति लड़कियां इस कदर सौफ्ट कार्नर क्यों रखती हैं, उस में शामिल क्यों होना चाहती हैं, इस के लिए उन में दीवानगी क्यों है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इन दिनों पश्चिमी देशों के समाजशास्त्रियों को परेशान कर रहे हैं. क्योंकि दि इंस्टीट्यूट फौर स्ट्रैटजिक डायलौग के एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, सीरिया या इराक जाने वाले करीब 3 हजार यूरोपीय युवाओं में 500 से ज्यादा युवतियां शामिल हैं. इन में कुछ किशोर उम्र की हैं तो कुछ (भले अपवाद के ही तौर पर हो) 50 पार की प्रौढ़ महिलाएं हैं.
‘बिकमिंग मुलान’ नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक वास्तव में ये तमाम महिलाएं, फिर चाहे वे जिस उम्र समूह से रिश्ता रखती हों, इस बात से प्रभावित हैं कि मुसलमानों के लिए एक नए इलाके का निर्माण हो रहा है. एक नई दुनिया बन रही है, जहां किसी और के लिए कोई जगह नहीं होगी, यहां तक कि मुसलमानों में गैरसुन्नियों के लिए भी नहीं. इसीलिए तमाम सुखसुविधाओं में पलीबढ़ी पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और इंग्लैंड की लड़कियां रोमांचित हैं. जाहिर है, वे उस सपने का हिस्सा होना चाहती हैं, यहां तक कि युद्ध के मोर्चे पर डट कर भी.
सवाल है कि ये महिलाएं क्या दिमागी रूप से बीमार हैं? समाजशास्त्रियों की मानें तो कुछकुछ ऐसा ही है. इन में से कई महिलाओं का व्यक्तित्व कई हिस्सों में बंटा सा लगता है. ऐसी कुछ महिलाएं, जिन के बारे में माना जाता है कि वे इस वक्त सीरिया या इराक में हैं और उन के ट्विटर या फेसबुक एकाउंट को देखने पर यह बात साफ प्रतीत होती है. क्योंकि ये महिलाएं जहां एक पल को किसी फिल्म से संबंधित कोई बात कहती हैं या अपने पालतू कुत्ते के बच्चे के साथ अपनी वाल पर तसवीर लगाती हैं, वहीं दूसरे ही पल वे किसी सार्वजनिक जगह पर आईएस के लड़ाकों की किसी का सिर काटते या नृशंसता से पेश आने वाली तसवीरों को पोस्ट कर रही होती हैं.
सवाल है कि आखिर ये महिलाएं ऐसा क्यों कर रही हैं? इस बहुचर्चित हो रही बिकमिंग मुलान रिपोर्ट के मुताबिक वास्तव में ये महिलाएं भी वही चाहती हैं, जो इन दिनों आईएसआईएस की तरफ आकर्षित दुनिया भर के खासतौर पर पश्चिम के युवा मुस्लिम चाहते हैं या कहें जिन बातों से मुसलिम युवक प्रेरित हैं, उन्हीं से ये महिलाएं भी प्रेरित हैं. मुसलिम युवाओं की तरह ही ये मुसलिम महिलाएं भी आईएसआईएस की खलीफा के शासन की स्थापना, पश्चिम से नफरत, पहचान की तलाश जैसे वैचारिक कारणों से प्रेरित हैं. आईएस के आतंकियों के कब्जे वाले इलाके में, ऐसे ही अफगानिस्तान या बाल्कन में सक्रिय कट्टरपंथियों से इसलिए भूमिका बिलकुल अलग है, क्योंकि आईएस के आतंकी यहां एक राष्ट्र का निर्माण करना चाह रहे हैं. इसलिए यहां स्थानीयता के साथ कोई टकराव नहीं है.
इसीलिए यह गतिविधि आतंक के मनोविज्ञान से ऊपर उठ कर एक राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा हो जाती है. इसीलिए इस में भाग लेते हुए महिलाएं भी इतिहास रचने वालों में शामिल होना चाहती हैं. फिर चाहे भले ही लड़ाकों के लिए सैक्स परोस कर या उन के लिए घर की देखरेख कर के ही क्यों न यह संभव हो. सच तो यह है कि ज्यादातर महिलाएं अपनी भूमिका घर की देखरेख करने वाले के तौर पर ही देख रही हैं. इसीलिए ये महिलाएं जेहादियों को अपने पति के रूप में चुन रही हैं. कुछ महिलाओं के सोशल मीडिया एकाउंट के अनुसार, जेहादी लड़ाके से शादी करने पर उन्हें घर इत्यादि की सुविधाएं मिलती हैं. यानी इस उन्माद में आर्थिक असुरक्षा भी एक कारण है.
इन महिलाओं की मंशा को उजागर करने वाली कई वेबसाइटों के मुताबिक, सीरिया में होने का दावा करने वाले कुछ लोग ‘खलीफा के राज्य’ में शादी की संभावना से जुड़े सवालों का जवाब देते हैं. हालांकि इन में से कई शादियां ज्यादा समय तक नहीं चलतीं, क्योंकि उन के पति लड़ाई में मारे जाते हैं. ऐसे में ये महिलाएं ट्विटर पर अपने पतियों के ‘शहीद’ हो जाने की घोषणा करती हैं. आईएस से तेजी से जुड़ रही ये महिलाएं एक मामले में पुरुषों से काफी हद तक अलग हैं कि इन में से ज्यादातर ने इस्लाम में धर्मांतरण किया है यानी ये जन्म से मुसलिम नहीं थीं. इसलिए ये इस्लाम से बहुत गहरे तक वाकिफ भी नहीं हैं.
शायद यही इस सवाल का जवाब भी है कि कम उम्र की लड़कियां ऐसा माहौल क्यों स्वीकार करना चाहती हैं. असली सवाल इन के इस्लाम की तरफ झुकाव का है. आईएस की तरफ तीव्रता से आकर्षित ज्यादातर लड़कियों की उम्र 16 से 25 साल के बीच है. इस्लाम ग्रहण करने वाली इन ज्यादातर लड़कियों को इस्लाम धर्म के बारे में बिलकुल भी पता नहीं होता. वास्तव में इन्होंने इंटरनेट पर इस के बारे में सर्च किया होता है, जैसा आम लोग करते हैं. उन्होंने यूट्यूब पर ऐसे वीडियो देखे होते हैं, जिन में अतिशयोक्तिपूर्ण दावे किए गए होते हैं.
धर्म के बारे में जानने के लिए उन के पास यही एक आधुनिक और आसान रास्ता होता है. ऐसी लड़कियां न कभी मसजिद गई होती हैं, न किसी लाइब्रेरी. वे पूरी तरह यूट्यूब, गूगल, सोशल मीडिया पर निर्भर होती हैं. इसीलिए ये इस्लाम की संवेदनशीलता से परिचित नहीं होतीं. ऐसे में ये अपना भी नुकसान करती हैं और इस्लाम को भी बदनाम करती हैं. खैर, जो आकर्षित हैं, उन की बात छोड़ दी जाए तो चाहे युद्ध हो या आतंकवादियों द्वारा किए गए जगहजगह विस्फोट, ऐसे मामलों में सब से ज्यादा नुकसान महिलाओं का ही होता है. उन के पति और बच्चे तो मारे ही जाते हैं, उन्हीं की अस्मत भी लुटती है. वे बेसहारा जीवन जीने के लिए मजबूर होने के साथ ऐसा कलंक भी ले लेती हैं, जो उन्हें न मरने देता है, न जीने. ISIS Terrorism






