UP News: घर वालों ने मनोज की शादी कर के सोचा था कि पत्नी के आने पर वह अपनी भाभी के प्रेमजाल से निकल जाएगा. लेकिन क्या ऐसा हो पाया? त्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के कस्बा मोदीनगर के निकट गांव सीकरी खुर्द में हर साल चैत महीने की नवरात्र में एक विशाल मेला लगता है. इस मेले में आसपास के लोग तो आते ही हैं, अगलबगल के जिलों के भी काफी लोग आते हैं. उसी मेले में मेरठ के थाना रसूखपुर जाहिद का रहने वाला मनोज भी पत्नी संगीता और बेटी अनुष्का के साथ मेला देखने जाना चाहता था. इसलिए उस ने संगीता से कहा, ‘‘संगीता, कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हम सीकरी का मेला देखने चलेंगे.’’

मनोज संगीता से अकसर लड़नेझगड़ने के साथ मारपीट करता रहता था, इसलिए संगीता ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना है, मैं ऐसे ही ठीक हूं. मुझे मेलाठेला देखने का शौक नहीं है.’’

‘‘तुम भी जराजरा सी बात का बतंगड़ बना देती हो. अरे रात गई बात गई. रात में जो हुआ, उसे भूल जाओ. एक ओर तो कहती हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करता नहीं, तुम्हें कहीं ले नहीं जाता. अब चलने को कह रहा हूं तो नखरे दिखा रही हो.’’ मनोज ने संगीता की खुशामद करते हुए कहा. संगीता कुछ कहती, उस के पहले ही मनोज की मां यानी संगीता की सास शकुंतला ने कहा, ‘‘अरे इतने प्यार से कह रहा है तो चली जा , मेला ही दिखाने तो ले जा रहा है. कुएं में धकेलने थोड़े ही ले जा रहा है.’’

‘‘इन का क्या भरोसा. मेला दिखाने के बहाने ले जा कर कहीं कुएं में ही धकेल दें. लेकिन आप कह रही हैं, इसलिए चली जाती हूं. कितने बजे निकलना है?’’ संगीता ने पूछा.

  ‘‘9 बजे तक निकलेंगे. नहाधो कर आराम से तैयार हो जाना.’’ मनोज ने कहा.

 अगले दिन रविवार था. संगीता ने बेटी अनुष्का को भी तैयार किया और खुद भी तैयार हो गई. मनोज तैयार ही बैठा था. पत्नी और बेटी को ले कर वह बस से मोदीनगर के लिए रवाना हो गया. मोदीनगर के सीकरी खुर्द पहुंच कर दिन भर वह संगीता के साथ मेले में घूमता रहा. इस बीच मनोरंजन के साथसाथ घर के लिए कुछ खरीदारी भी की. छुट्टी का दिन होने की वजह से मेले में भीड़भाड़ ज्यादा थी, डेढ़ साल की बेटी अनुष्का को मनोज खुद ही लिए था. अंधेरा होने लगा तो मनोज घर लौटने की तैयारी करने लगा. उस ने संगीता से मेले से बाहर चलने को कहा. वह तो बेटी को ले कर मेले के बाहर गया, लेकिन संगीता नहीं पाई.

कुछ देर बाहर खड़े हो कर मनोज ने संगीता का इंतजार किया. जब काफी देर तक संगीता नहीं आई तो वह उसे तलाशने के लिए फिर मेले में घुस गया. काफी देर तक वह उसे ढूंढ़ता रहा. जब रात ज्यादा होने लगी तो उस ने इस बात की जानकारी घर वालों के साथ ससुराल वालों को दी. रात ज्यादा हो गई थी और बेटी रो रही थी, इसलिए वह पत्नी के मेले में खो जाने की सूचना थाना पुलिस को दिए बगैर ही घर गया. लेकिन अगले दिन सवेरा होते ही वह थाना मोदीनगर पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मनोज ने संगीता के मेले में खो जाने की जानकारी ससुराल वालों को भी दे दी थी. इसलिए अगले दिन संगीता के पिता जयपाल सिंह भी थाना मोदीनगर पहुंच गए थे. लेकिन उन के पहुंचने तक मनोज संगीता की गुमशुदगी दर्ज करा कर जा चुका था. जयपाल सिंह ने थानाप्रभारी दीपक शर्मा से मिल कर बेटी के गायब होने का आरोप उस की ससुराल वालों पर लगाते हुए एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस के आधार पर थानाप्रभारी ने संगीता के पति मनोज सिंह तथा उस के घर वालों के खिलाफ अपराध संख्या 237/2014 पर भादंवि की धाराओं 498, 420 एवं 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर रोशन सिंह को सौंप दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए सबइंसपेक्टर रोशन सिंह ने मनोज के घर छापा मारा.

शायद रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी मनोज और उस के घर वालों को हो गई थी, इसलिए घर पर कोई नहीं मिला. पूरा परिवार भूमिगत हो गया था. फिर भी कोशिश कर के किसी तरह उन्होंने मनोज को हिरासत में ले ही लिया. उसे थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो मनोज यही कहता रहा कि संगीता मेले में कहीं खो गई है. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ सवालों की झड़ी लगा दी तो पुलिस के सवालों के जाल में फंसे मनोज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने संगीता की हत्या कर के उस की लाश नहर में फेंक दी है. इस के बाद उस ने संगीता की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना सरूरपुर खुर्द के गांव रसूखपुर जाहिद में रहते थे देवकरण सिंह. उन के पास मात्र 5 बीघा खेती की जमीन थी, जिस पर वह परिवार की मदद से मेहनत से खेती करते थे. यही खेती उन की आजीविका का साधन थी. इसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर होता था. देवकरण सिंह के परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे, सुरेश और मनोज थे. सुरेश ज्यादा पढ़लिख नहीं सका तो पिता के साथ खेती के कामों में मदद करने लगा. पढ़ालिखा तो मनोज भी ज्यादा नहीं था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगा. उस ने भी पढ़ाईलिखाई छोड़ दी तो देवकरण सिंह ने उसे गांव में ही जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी, जिसे वह अकेला ही संभालता था.

 देवकरण सिंह ने मरने से पहले अपने बड़े बेटे सुरेश की शादी बुलंदशहर के कस्बा स्यान के रहने वाले क्षेत्रपाल सिंह की बेटी शशि से कर दी थी. शशि तीखे नैननक्श वाली खूबसूरत लड़की थी. इसलिए आते ही उस ने ससुराल के सभी लोगों का मन मोह लिया था. वह व्यवहारकुशल के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण थी, इसलिए घर का हर आदमी उस से खुश रहने लगा था. इस के बाद जल्दी ही गांव में उस के रूप और गुण की चर्चा होने लगी.

शशि के आगे उस का पति सुरेश कहीं नहीं ठहरता था. सुरेश को भी इस बात का अहसास था. शशि और सुरेश को देख कर कोई अंधा भी कह सकता था कि लंगूर के हाथ अंगूर लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. शशि को अपनी सुंदरता पर गुमान था, इसलिए अपनी उसी सुंदरता के बल पर वह पति सुरेश पर पहले ही दिन से हावी हो गई थी. शशि को सुरेश बिलकुल पसंद नहीं था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. घर वालों ने ब्याह दिया था, इसलिए तकदीर मान कर उस ने उसे गले लगा लिया था. उस ने जैसेतैसे उस के साथ निर्वाह करने का मन बना लिया था. जिस दिन उस ने ससुराल में कदम रखा था, उसी दिन से वह देख रही थी कि उस का देवर मनोज उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

वह जब भी घर में अकेली होती, मनोज उसे चाहत भरी नजरों से ताकते हुए उस के आगेपीछे नाचता रहता. शुरुआत में तो शशि को लगा कि वह नईनई आई है, इसलिए आकर्षणवश मनोज उस के आगेपीछे घूमता है. लेकिन जब मौका मिलने पर मनोज उस से छेड़छाड़ करने लगा तो शशि को समझते देर नहीं लगा कि उस का प्यारा देवर क्या चाहता है. क्योंकि अब वह बच्ची नहीं रही थी कि मनोज के दिल की बात समझती.

सच भी है, जो बातें जुबान नहीं कह पाती, आंखें उन्हें इशारोंइशारों में कह देती हैं. मनोज भी भले ही दिल की बात मुंह से नहीं कह सका था, लेकिन आंखों ने इशारोंइशारों में कह दिया था. शशि को भी मनोज अच्छा लगता था, क्योंकि वह बड़े भाई सुरेश से काफी ठीकठाक था. लेकिन वह मन की बात देवर से कह नहीं सकती थी. इसलिए वह चाहती थी कि पहल देवर ही करे. इस के लिए वह मनोज को देख कर अकसर मुसकराती तो रहती ही थी, उस की हंसीमजाक और छेड़छाड़ का जवाब भी उसी के अंदाज में देती थी.

समझदार के लिए इशारा काफी होता है. मनोज भी जवान हो चुका था. स्त्रीसुख के लिए बेचैन भी रहता था. इसलिए भाभी की ओर से इशारा मिला तो एक दिन दोपहर में जब घर में शशि और उस के अलावा कोई और नहीं था तो उचित मौका देख कर वह शशि के कमरे में घुस गया. उसे अपने कमरे में देख कर शशि ने कहा, ‘‘इस समय तो तुम्हें दुकान पर होना चाहिए, यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से एक बात कहनी थी, इसलिए दुकान छोड़ कर चला आया.’’

‘‘कहो, क्या कहना है?’’ शशि ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

‘‘सिर्फ अच्छी लगती हूं, और कुछ नहीं?’’

शशि ने यह कहा तो मनोज का हौसला बढ़ा. उस ने कहा, ‘‘भाभी, अच्छा लगने का मतलब है कि मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘तो करो प्यार, मना किस ने किया है. मैं तो कब से तुम्हारे मुंह से यह बात सुनने का इंतजार कर रही हूं. क्योंकि मुझे तो बहुत पहले ही तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था. मैं इशारे भी कर रही थी. इस के बावजूद तुम ने यह बात कहने में इतने दिन लगा दिए.’’

‘‘तुम्हारे इशारों की वजह से ही तो हिम्मत कर सका हूं. नहीं तो किसी की पत्नी से भला यह कहने की हिम्मत कहां थी.’’ कह कर मनोज ने शशि का हाथ पकड़ा तो वह उस की बांहों में समा गई.

 मनोज ने शशि को बांहों में भर लिया. इस के बाद देवरभाभी का पवित्र रिश्ता कलंकित होने से कैसे बच सकता था. रिश्तों की परिभाषा बदली तो आयाम भी बदल गए. एक ही घर में रहने की वजह से मर्यादा तोड़ने में दिक्कत भी नहीं होती थी. घर वालों के खेतों पर जाते ही देवरभाभी पतिपत्नी बन जाते. यह ऐसा काम है, जिसे लोग करते तो बहुत चोरीछिपे हैं, इस के बावजूद लोगों की नजरों में ही जाता है. मनोज और शशि के मामले में भी ऐसा ही हुआ. घर वालों को जब मनोज और शशि के बदले संबंधों की जानकारी हुई तो दोनों को रोकने की कोशिश शुरू कर दी गई. इसी के मद्देनजर फैसला लिया गया कि अब जितनी जल्दी हो सके, मनोज की शादी कर दी जाए. पत्नी के आने से वह शशि से संबंध तोड़ लेगा.

शादी की बात रिश्तेदारों के बीच पहुंची तो दौराला के गांव पनवाड़ी के रहने वाले जयपाल सिंह बड़ी बेटी संगीता का रिश्ता ले कर उस के यहां पहुंच गए. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. 25 जनवरी, 2012 को मनोज और संतीगा का विवाह भी हो गया. संगीता दुलहन बन कर रसूलपुर गई. मनोज की शादी पर शशि ने खूब हंगामा किया. लेकिन मनोज ने कहा था कि कुछ ही दिनों की तो बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा तो वह मान गई थी. संगीता के ससुराल आने के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक रहा, लेकिन अचानक मनोज संगीता में कमियां निकालने लगा. यही नहीं, कम दहेज लाने के ताने मार कर उस के साथ मारपीट भी करने लगा. इस बात में घर वाले भी उस का साथ दे रहे थे, खासकर शशि.

शुरूशुरू में तो संगीता की समझ में नहीं आया कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया कि उस में उसे इतनी सारी कमियां नजर आने लगीं. लेकिन जैसे घर वालों को देवरभाभी के रिश्ते की जानकारी हो गई थी, उसी तरह कुछ दिनों में संगीता को भी पति की असलियत का पता चल गया था. दरअसल एक दिन उस ने पति को भाभी के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया था. संयोग से अब तक संगीता एक बेटी अनुष्का की मां बन चुकी थी. उसे लग रहा था कि बेटी का मुंह देख कर ही शायद मनोज का व्यवहार बदल जाए, लेकिन जब उस ने देवरभाभी को रंगेहाथों पकड़ लिया तो समझ गई कि अब कुछ नहीं हो सकता.

 मनोज लगातार संगीता पर मायके से 50 हजार रुपए नगद, अंगूठी और फ्रिज लाने की बात कह कर जुल्म ढा रहा था. 1 मार्च, 2013 को मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को मायके भेज दिया और साफसाफ कह दिया कि जितना कहा जा रहा है, उतना सामान और रुपए ले कर ही वह ससुराल आएं, तभी उसे रहने दिया जाएगा. जयपाल ने पंचायत में गुहार लगाई. 24 जून, 2013 को गांव में हुई पंचायत ने फैसला किया कि भविष्य में मनोज के घर वाले कोई दानदहेज नहीं मांगेगे और संगीता को ठीक से रखेंगे. उसे परेशान नहीं करेंगे. समझौते के बाद 2-3 महीने तक तो मनोज और उस के घर वालों ने संगीता को कुछ नहीं कहा. उस के बाद वे अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आए.

संगीता मायके वालों से शिकायत करती और वे कुछ करते, उस के पहले ही 6 अप्रैल, 2014 को मनोज ने ससुर जयपाल सिंह को फोन कर के बताया कि संगीता सीकरी के मेले से गायब हो गई है. हैरानपरेशान जयपाल सिंह बेटों के साथ थाना मोदीनगर पहुंचे और मनोज तथा उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, अपहरण और हत्या का आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. थाना मोदीनगर पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में मनोज ने बताया कि पहले से बनाई गई योजना के तहत मेला दिखाने के बहाने वह संगीता को सीकरी खुर्द ले गया. पूरे दिन मेला देखते हुए वह खरीदारी करता रहा. शाम का धुंधलका हो गया तो वह उसे साथ ले कर गंगनहर के चित्तौड़ा पुल की ओर चल पड़ा. तब संगीता ने उस से पूछा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो, हमारा घर तो उस ओर है.’’

‘‘यहीं पास के गांव में मेरा एक दोस्त रहता है, इधर आया हूं तो चलो उस से भी मिल लेते हैं.’’ मनोज ने कहा.

इस के बाद संगीता ने कोई सवाल नहीं किया और उस के साथ चल पड़ी. जब संगीता पुल पर पहुंची तो उस ने गोद में ली बेटी को उतार कर खड़ी कर दिया और लापरवाह खड़ी संगीता को एकदम से गिरा दिया. संगीता कुछ कह पाती, उस के पहले ही उस के गले में पड़े दुपट्टे को लपेट कर कस दिया. संगीता छटपटा कर मर गई. संगीता की हत्या कर मनोज ने उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया और वापस गया. उस ने फोन कर के संगीता के गायब होने की सूचना ससुराल वालों को भी दे दी थी और अगले दिन थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा दी थी. लेकिन उस की चालाकी चली नहीं और पकड़ा गया.

अगले दिन मनोज को गाजियाबाद की जिला अदालत में पेश कर के लाश बरामद करने के लिए 3 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर लिया गया. घटनास्थल पर मनोज को ले जा कर पुलिस ने संगीता की लाश बरामद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. रिमांड अवधि खत्म होने पर मनोज को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस ने मनोज के घर वालों को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. UP News

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