Delhi News: फिल्म ‘स्पैशल 26’ की तर्ज पर दिल्ली के एक प्रौपर्टी डीलर के औफिस में 7 लोगों की फरजी सीबीआई टीम ने छापा मार कर ढाई करोड़ रुपए लूट लिए. आखिर कौन थे ये लोग और उन्होंने कैसे बनाया इस बड़ी लूट का फुलप्रूफ प्लान?

कुरसी पर बैठेबैठे कब 30 वर्षीय पपोरी बरुआ की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. काफी देर तक वह कुरसी की पुश्त से लगी सोती रही. जब रामसिंह राणा वहां आया तो उसे बरुआ सोती हुई मिली. राणा ने बुरा सा मुंह बनाया और बड़बड़ाया, ‘एक तो कामधंधा नहीं है और यह है कि यहां सो कर सुस्ती फैला रही है.’

राणा ने बरुआ की बांह पकड़ कर झिंझोड़ा, ”मैडम, यहां क्या सोने के लिए आई हो, उठो!’’

बरुआ हड़बड़ा कर उठी और आंखें मलती हुई राणा को घूरने लगी.

”मुझे क्यों देख रही हो इस तरह?’’ राणा आंखें तरेर कर बोला, ”यह औफिस है, घर नहीं है, जहां लंबी तान कर सोया जाता है.’’

”इस समय संस्था में कोई काम है नहीं, बैठेबैठे बोरियत होती है और मन भी परेशान होता है, इसलिए नींद आएगी ही.’’ बरुआ ने अंगड़ाई ली.

दोनों हाथ उठा कर बोली, ”आप ने कुछ सोचा काम के बारे में!’’

”हां! चाय मंगवाओ और बिसकुट भी, फिर बताता हूं.’’

बरुआ कुरसी पर सीधी हो कर बैठ गई. उस ने मेज पर रखे टेलीफोन पर चाय वाले का नंबर मिला कर चाय और बिसकुट का और्डर दे दिया. राणा अब तक उस के सामने बैठ गया था. बरुआ ने उस के चेहरे पर नजरें जमा दीं. किंतु राणा कुछ बोला नहीं.

बरुआ ने मन ही मन कहा, ”बगैर दानापानी खाए यह कुछ कहने वाला नहीं है. बहुत बड़ा नमूना है.’’

थोड़ी देर में ही चाय वाला चायबिसकुट दे गया. राणा ने चाय का गिलास और बिसकुट अपनी तरफ सरकाया और यूं चट करने लगा, जैसे कई दिनों का भूखा हो. जब उस की चाय खत्म हो गई तो उस ने बहुत रहस्यमयी अंदाज में कहा, ”मैडम, करोड़ों का दांव खेलना होगा. इस पार या उस पार वाला खेल है.’’

”करोड़ों की बात है तो रिस्क तो रहेगा ही.’’ बरुआ इत्मीनान से बोली, ”आप खुल कर बताओ, क्या करना है.’’

”एक प्रौपर्टी डीलर है. करोड़ों रुपया है उस के पास. उस के यहां लूट करनी है. कामयाब हो गए तो यहां की नौकरी छोड़ कर विदेश में सैरसपाटा करेंगे. क्या यह काम इतना आसान होगा.’’

बरुआ ने राणा की तरफ देखा, ”करोड़ों रुपए रखने वाले की ओर से सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी गार्ड भी अवश्य रखे गए होंगे मिस्टर राणाजी.’’

”मेरी खोपड़ी में ऐसी योजना है कि सिक्योरिटी वाले हाथ बांध कर देखते रहेंगे.’’

”मुझे प्लान बताओ तुम, मैं साथ देने को तैयार हूं.’’ बरुआ एकदम गंभीर हो कर बोली, ”करोड़ों की बात ने मुझे बेसब्र बना दिया है.’’

”आगे को झुको.’’ राणा ने मुसकरा कर कहा.

बरुआ आगे को सरक मेज पर झुक गई, राणा उसे अपनी योजना बनाने लगा था.

19 अगस्त, 4025 मंगलवार, शाम को रविशंकर के मोबाइल पर फोन आया. फोन मनप्रीत ने किया था.

”रविशंकर, कहां पर हो तुम?’’ यह मनप्रीत की आवाज थी.

रविशंकर ने शिष्टाचार निभाते हुए कहा, ”नमस्ते मनप्रीतजी! मैं इस समय शाहदरा में हूं. कहिए, मुझे कैसे याद किया आप ने?’’

”तुम अपना काम निपटा कर विवेक विहार चले जाओ, मेरे औफिस से तुम एक करोड़ 10 लाख रुपए माहेश्वरीजी से ले लो और वो मेरे घर इंदिरापुरम दे आओ.’’

”इतनी बड़ी रकम स्कूटी से ले जाना क्या ठीक रहेगा मनप्रीतजी. यह रिस्की है कुछ.’’ रविशंकर ने झिझकते हुए कहा.

”कुछ रिस्की नहीं है रवि. तुम चमड़े के बैग को सामने रखना. किसी को ख्वाब थोड़ी आएगा कि तुम इतनी बड़ी रकम बैग में ले कर जा रहे हो.’’ मनप्रीत ने जैसे हौसला बढ़ाया.

”ठीक है जी. आप कहते हैं तो मैं यह रकम आप के घर पहुंचा आता हूं. इंदिरापुरम पहुंच कर मैं आप को फोन कर लूंगा.’’ रविशंकर ने कहा और फोन बंद कर के उस ने जेब के हवाले कर लिया.

उसे शाहदरा में कुछ खरीदना था. वह ज्यादा जरूरी नहीं था, इसलिए उस ने स्कूटर को विवेक विहार की ओर दौड़ा दिया. जल्दी ही वह विवेक विहार पहुंच गया. यहां बी ब्लौक में उस के मित्र मनप्रीत ने अपना औफिस बनाया था. इस समय औफिस में दीपक माहेश्वरी अपने केबिन में बैठे जरूरी काम कर रहे थे.

”नमस्ते माहेश्वरीजी.’’ रविशंकर ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

”ओह! रविशंकर!’’ दीपक माहेश्वरी मुसकरा कर बोले, ”नमस्ते भाई. कैसे हो तुम?’’

”मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’ रवि ने पूछा.

”तुम्हारे सामने हूं,’’ दीपक माहेश्वरी हंसते हुए बोले, ”60 का होने में 2 साल शेष हैं, लेकिन अभी एकदम यंग ही लगता हूं.’’

रविशंकर मुसकराया, ”ठीक कहते हैं आप. जब तक इंसान खुद को बूढ़ा नहीं समझता जवान ही रहता है. जिस दिन इंसान ने खुद को बूढ़ा मान लिया, समझिए गया काम से.’’

”हां.’’ दीपक माहेश्वरी ने सिर हिलाया. फिर पूछा, ”चाय लोगे या ठंडा?’’

”कुछ नहीं सर! फिलहाल तो जिस काम के लिए भेजा गया हूं, वह करना है.’’

”मुझे मालिक का फोन आ गया था, मैं ने बैग में एक करोड़ 10 लाख रुपया रख दिया है. तुम गिन लो.’’

”आप ने गिन लिया सर. मुझे आप पर यकीन है.’’ रवि मुसकरा कर बोला और उस ने बैग उठा लिया, ”चलता हूं. मुझे इंदिरापुरम जाना है, फिर लौटना भी है.’’

”ठीक है. ध्यान से जाना रवि, रकम मोटी है.’’ दीपक माहेश्वरी ने समझाया.

”हां. मैं ध्यान से ही जाऊंगा.’’ रवि ने बैग कंधे पर लाद लिया और सावधानी से सीढिय़ों के रास्ते वह नीचे आ गया.

उस की स्कूटी नीचे खड़ी थी. बैग को उस ने स्कूटी पर रखा और जैसे ही उस ने स्कूटी स्टार्ट की. एक सफेद रंग की कार उस की स्कूटी के सामने आ कर झटके से रुक गई. रवि को स्कूटी रोकनी पड़ी, उसे हैरानी हुई कि यह कार किस की है, जो एकदम सामने आ कर रुकी है.

सीबीआई का नाम सुन रवि के उड़े होश

रवि कुछ समझ पाता, तभी कार का दरवाजा खुला. उस में से एक 30-32 साल की युवती निकली. उस के शरीर पर पुरुषों की तरह सफारी सूट था. वह लंबेलंबे डग रखती हुई रविशंकर के पास आई.

”कहां भाग रहे हो तुम,’’ वह गुस्से में बोली और बगैर कोई जबाब सुने उस ने रविशंकर के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया.

”यह क्या बदतमीजी है, कौन हो तुम?’’ रवि तिलमिला कर बोला.

”मैं सीबीआई से हूं, समझा!’’ युवती रौब से बोली और उस ने कार से उतर रहे व्यक्तियों की तरफ पलट कर कहा, ”अरेस्ट करो इसे और यह बैग भी कब्जे में लो.’’

रविशंकर घबरा गया. सीबीआई का नाम ही मन में खौफ पैदा करने जैसा है. उस ने देखा कार से 3 व्यक्ति उतरे थे. सभी सफारी सूट पहने हुए थे. उन के गले में सीबीआई के आइडेंटिटी कार्ड लटक रहे थे. सभी के हाथों में वाकीटाकी भी दिखाई दे रहा था.

रविशंकर को उस युवती के भी गले में सीबीआई का आईडी कार्ड दिखाई दे गया तो उसे पसीने छूट गए.

तीनों व्यक्ति उस के करीब आए. एक ने उस की स्कूटी पर रखा बैग उठा कर कब्जे में ले लिया. दूसरे व्यक्ति ने रवि का पीछे से कौलर पकड़ लिया.

”चलो ऊपर अपने औफिस में.’’ युवती ने सख्त स्वर में कहा, ”यदि कोई चालाकी की तो गोली मार दी जाएगी.’’

रविशंकर चुपचाप उन्हें सीढिय़ों के रास्ते ऊपर औफिस में ले कर आ गया. एक व्यक्ति ने अभी भी उसे गिरेबान से पकड़ रखा था. ऊपर अपने केबिन में बैठे दीपक माहेश्वरी यह सब देख कर घबरा कर खड़े हो गए.

दोनों व्यक्ति और वह युवती माहेश्वरी के कक्ष में आ घुसे और माहेश्वरी की पिटाई करने लगे. माहेश्वरी लगभग रो देने वाले स्वर में बोले, ”कौन हैं आप, मुझे क्यों पीट रहे हो?’’

”हम ब्यूरो से हैं, सेंट्रल इनवेस्टीगेशन ब्यूरो. समझा. यहां अवैध तरीके से रुपया छिपा कर रखा गया है. हम यहां रेड डालने आए हैं.’’ वही युवती रोबदार आवाज में बोली.

उसी वक्त सीढिय़ों से 3 व्यक्ति और ऊपर आ गए. वे भी सफारी सूट पहने हुए थे. इन के हाथों में वाकीटाकी थे और गले में सीबीआई के आईडी कार्ड लटक रहे थे.

इन्होंने वहां रखा एक करोड़ 40 लाख रुपया समेट लिया. कुल मिला कर उन्होंने ढाई करोड़ रुपए अपने कब्जे में ले लिए. यह बैग में था. इन्हें 2-3 व्यक्तियों ने उठाया. 2 व्यक्ति दीपक माहेश्वरी और रविशंकर को पकड़े हुए नीचे ले आए.

ढाई करोड़ लूट कर ऐसे हुए फरार

नीचे एक और कार आ कर खड़ी हुई थी. दोनों कारों में से एक में युवती बैठी साथ में 5 व्यक्ति बैठ गए. रुपयों से भरे बैग इसी कार के पीछे रख लिए गए. दूसरी कार में दीपक माहेश्वरी और रविशंकर को ले कर 4 व्यक्ति बैठ गए.

कारें तेजी से वहां से फर्राटे भरते हुए निकलीं और मेनरोड पर आ गईं. कुछ दूर वह साथसाथ चलीं, फिर उन के रास्ते बदल गए. जिस कार में माहेश्वरी और रविशंकर को बिठाया गया था, वह दिलशाद गार्डन की तरफ जा रही थी. इन्होंने दिलशाद गार्डन में स्थित चिंतामणी रेस्टोरेंट के पास पहुंच कर रविशंकर को धमकाया, ”किसी से कुछ बताओगे तो तुम्हें जान से मार दिया जाएगा.’’

”मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा..?’’ रविशंकर थूक गटकता हुआ बोला.

उन व्यक्तियों ने कार में से रविशंकर को नीचे धकेल दिया और कार को दौड़ा लिया. दीपक माहेश्वरी सांस रोके उन के बीच फंसे हुए थे. उन्हें भय सता रहा था कि ये लोग उन्हें जान से न मार दें. अब इन की कार रिंग रोड की तरफ बढ़ रही थी. अब तक अंधेरा हो गया था. यह कार रिंग रोड पर निगमबोध घाट आई. यहां इन्होंने दीपक माहेश्वरी को कार से नीचे धकेल दिया और कार को आगे बढ़ा कर रिंग रोड पर ले गए.

दीपक माहेश्वरी नीचे धकेले जाने से चोटिल हो गए थे और उन्हें बेहोशी भी आ गई थी. वह सड़क के किनारे अचेत पड़े रहे. काफी देर बाद उन्हें होश आया तो वह उठे और जैसेतैसे अपने घर पहुंच गए. घर पहुंच कर उन्होंने अपने मालिक मनप्रीत सिंह को फोन कर के इस सीबीआई रेड की सूचना दे दी.

मनप्रीत सिंह 41 साल के युवा बिजनैसमैन थे. वह अपने परिवार के साथ इंद्रापुरम (गाजियाबाद) में रहते थे. मनप्रीत का प्रौपर्टी, फाइनैंस, कमीशन और कंसलटेंसी का कारोबार था. मनप्रीत ने अपने लिए दिल्ली की पौश कालोनी विवेक विहार के बी ब्लौक में एक औफिस लीज पर लिया था. यह औफिस यहां एक साल पहले खोला गया था. यहां ईस्ट दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा की बिजनैस गतिविधियों के रिकौर्ड और कारोबार से आने वाले कैश को रखा जाता था.

शाहदरा के दीपक माहेश्वरी (58) साल को केयरटेकर के तौर पर इस औफिस में रखा गया था. बिजनैस से आई 6-7 महीने की मोटी कैश की रकम इस औफिस में रखी हुई थी.

19 अगस्त की शाम को मनप्रीत ने नत्थू कालोनी (बुराड़ी) में रहने वाले अपने नजदीकी दोस्त रविशंकर को औफिस से एक करोड़ 10 लाख रुपया ले कर इंद्रापुरम आने को कहा था. रविशंकर ने दीपक माहेश्वरी से रुपए ले लिए थे और बैग ले कर वह यह रुपए पहली मंजिल पर स्थित औफिस से नीचे स्कूटी तक भी आ गया था, तभी वहां एक सफेद रंग की कार आ कर रुकी थी, जिस में से उतर कर आने वाली युवती ने खुद को सीबीआई अफसर बता कर उन्हें थप्पड़ मार कर कैश वाला बैग छीन लिया था. फिर अपने 3 साथियों के साथ औफिस में आ कर दीपक माहेश्वरी की भी पिटाई कर दी थी. ये लोग औफिस में रखा सारा कैश अपने साथ ले गए थे, जो ढाई करोड़ रुपया था.

दीपक माहेश्वरी और रविशंकर इन्हें सीबीआई के अफसर ही समझ रहे थे, किंतु जब इस घटना की जानकारी उन्होंने मनप्रीत सिंह को दी तो वह इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए कि यह काररवाई सीबीआई की ओर से हुई है.

उन का कहना था कि सीबीआई होती तो रविशंकर और दीपक माहेश्वरी को अपने औफिस ले कर जाती, यह उन दोनों को कार से इस तरह फेंक कर नहीं जाती. अवश्य ही सीबीआई के नकली आईडी कार्ड गले में लटका कर आने वाले डकैत थे, जिन्होंने ढाई करोड़ की डकैती उन के औफिस में डाली है.

मनप्रीत सिंह 20 अगस्त को अपने साथ रविशंकर और दीपक माहेश्वरी को ले कर थाना विवेक विहार पहुंच गए. यहां वह एसएचओ आफताब अहमद से मिले और उन्होंने अपने औफिस विवेक विहार में कल घटी घटना को सिलसिलेवार उन्हें बता दिया.

यह कोई छोटीमोटी लूट की घटना नहीं थी. मामला ढाई करोड़ रुपए का था, इसलिए यह बात उच्चाधिकारियों तक पहुंचाना जरूरी था. उन्होंने तुरंत शाहदरा के डीसीपी प्रशांत गौतम को यह जानकारी दे दी. प्रशांत गौतम ने अपना आवश्यक काम छोड़ कर इस हैरान कर देने वाले मामले को गंभीरता से लिया. वह थाना विवेक विहार आ गए और मनप्रीत से पूछा, ”मनप्रीतजी, जिस वक्त यह घटना घटी थी, क्या उस वक्त आप अपने औफिस थे?’’

”नहीं सर. मेरे अनेक काम हैं, इस वजह से मैं बहुत व्यस्त रहता हूं. मेरे इस विवेक विहार औफिस में दीपक माहेश्वरी बैठते हैं.’’ मनप्रीत सिंह ने बताया.

दीपक माहेश्वरी की ओर देख कर डीसीपी प्रशांत गौतम ने पूछा, ”वहां क्या कुछ घटा था, आप मुझे बताइए.’’

दीपक माहेश्वरी ने सारी घटना विस्तार से डीसीपी प्रशांत गौतम को बताते हुए कहा, ”वह सब सीबीआई अफसरों की तरह सफारी सूट पहने हुए थे सर. उन के गले में सीबीआई के आईडी कार्ड लटक रहे थे और हाथों में वाकीटाकी भी थे. इस से तो लग रहा था कि वे असली ही हैं.’’

”क्या उन्होंने आप के औफिस में कोई रिकौर्ड देखा या यह बताया कि आप के यहां छापा क्यों मारा जा रहा है?’’

”कुछ भी नहीं सर. वे लोग रविशंकर को नीचे से गिरेबान पकड़ कर ऊपर लाए और मेरे साथ भी मारपीट की. मेरे मालिक मनप्रीत सिंह ने रवि द्वारा एक करोड़ 10 लाख रुपया इंद्रापुरम मंगवाया था. यह रुपया रविशंकर से उन्होंने नीचे ही छिन लिया था. ऊपर आ कर मेरे साथ मारपीट करने के बाद उन्होंने वहां बैगों में रखा एक करोड़ 40 लाख रुपया भी उठा लिया. इस प्रकार पूरे ढाई करोड़ रुपए उन्होंने कब्जे में किए और मुझे तथा रविशंकर को साथ ले कर नीचे आ गए.

”एक कार में उन्होंने सारा कैश रखा. दूसरी में मुझे और रवि को बिठा लिया. उन लोगों ने मुझे निगमबोध घाट के पास फेंका था. मुझ से पहले उन्होंने रविशंकर को दिलशाद गार्डन में चिंतामणी रेस्टोरेंट के पास फेंक दिया था. हमें कुछ बताने पर जान से मारने की धमकी भी दी थी उन्होंने.’’

”यहां वे लोग गलती कर गए.’’ डीसीपी प्रशांत गौतम गंभीर स्वर में बोले, ”यदि वे असली सीबीआई अफसर होते तो आप लोगों को जान से मारने की धमकी नहीं देते और आप को कार से धकेल कर भी नहीं जाते. वैसे वे गिनती में कितने लोग रहे होंगे?’’

”वे 7 लोग थे सर. इन में एक युवती थी, जो 30-32 साल की रही होगी. उस ने भी सफारी सूट पहन रखा था. वह अपने आप को सीबीआई की इस टीम की लीडर बता रही थी.’’

”हां सर, उन की कार पर ब्यूरो का लोगो भी लगा हुआ देखा था मैं ने.’’ इस बार रविशंकर ने कहा.

श्री गौतम ने एसएचओ आफताब अहमद की तरफ पलट कर कहा, ”अहमदजी, आप जांच कर के मालूम करिए, यह क्या असली रेड थी या ‘स्पैशल 26’ वाली फिल्मी घटना वाली नकली सीबीआई की तरह यहां भी डकैतों ने लूट कर ली है.’’

”मैं जांच करता हूं सर.’’ एसएचओ गंभीर स्वर में बोले, ”मैं शीघ्र आप को रिपोर्ट दूंगा कि मामला असली है या नकली.’’

”आप इन के औफिस के आसपास लगे सीसीटीवी चैक करें. उन कारों का नंबर ट्रैस करेंगे तो रजिस्ट्रैशन से मालूम हो जाएगा कि कारें भारत सरकार की थीं या किसी बाहरी व्यक्ति की. समझ रहे हैं न, मैं क्या कहना चाहता हूं.’’

”यस सर. मैं खुद यहीं से जांच शुरू करने की सोच रहा था. इन्हीं कारों से सारी हकीकत सामने आ जाएगी.’’

प्रशांत गौतम ने मनप्रीत सिंह को आश्वासन दिया कि जल्द ही जांच कर के मामले का खुलासा कर लिया जाएगा. यदि यह नकली रेड थी तो उन का ढाई करोड़ रुपया लुटेरों से वापस लेने का पूरा प्रयास किया जाएगा. आप पुलिस पर भरोसा रखिए.

”जी,’’ मनप्रीत सिंह ने सिर हिलाया, ”मुझे पुलिस पर पूरा भरोसा है सर.’’

डीसीपी प्रशांत गौतम आवश्यक निर्देश एसएचओ को दे कर चले गए. तब इंसपेक्टर आफताब अहमद ने मनप्रीत सिंह की ढाई करोड़ रुपए की लूट वाली घटना की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

दीपक माहेश्वरी और रविशंकर को हलकी चोटें आई थीं, इसलिए इन्हें आराम करने के लिए घर भेज दिया गया. मनप्रीत सिंह के साथ एसएचओ अपनी टीम को ले कर विवेक विहार में घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. जांच के लिए फोरैंसिक टीम को भी उन्होंने फोन द्वारा घटनास्थल पर पहुंचने को कह दिया था.

एनजीओ की आड़ में लूटे ढाई करोड़

विवेक विहार की कोठी नंबर बी-253 के फस्र्ट फ्लोर मनप्रीत के औफिस की गहनता से जांच की गई. फोरैंसिक टीम ने वहां से अंगुलियों और जूतों के नमूने एकत्र किए. वहां औफिस में सीसीटीवी लगा था. उस की 19 अगस्त के शाम 6 बजे बाद की रिकौर्डिंग चैक की गई. इन में उन सातों लोगों के चेहरे दिखाई दे रहे थे, जिन्होंने यहां घुस कर ढाई करोड़ रुपए की डकैती डाली थी. नीचे पार्किंग में और सड़कों पर कई सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले गए.

कैमरों की रेंज में 2 कारें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थीं. ये कारें अर्टिगा थीं. इन के नंबर जूम करने पर पुलिस ने ट्रैस किए वाहन रजिस्ट्रैशन के कार्यालय से इन नंबरों की पड़ताल कर के यह मालूम किया कि इन नंबर वाली कारों के मालिक कौन हैं.

पुलिस को बताया गया कि ये कारें फरीदाबाद में रजिस्टर्ड है. कारें जिस व्यक्ति की थीं, पुलिस की एक टीम उस के यहां भेज दी गई. शीघ्र ही यह मालूम हो गया कि वह कारें मालिक किराए पर चलाता है. 2 दिन पहले इन्हें साकेत के सैदुला जाब में स्थित एक एनजीओ ने किराए पर लिया था. इस एनजीओ का नाम क्राइम ब्यूरो औफ इंडिया था.

यह नाम संज्ञान में आते ही पुलिस की बांछें खिल गईं. ऐसा नाम रखने वाला एनजीओ मालिक नकली सीबीआई बनने का खेल बखूबी खेल सकता है.

एसएचओ ने डीसीपी प्रशांत गौतम और एसीपी महेंद्र सिंह को सारी रिपोर्ट देते हए आगे की काररवाई के लिए दिशानिर्देश मांगा. प्रशांत गौतम ने एसीपी महेंद्र सिंह के निर्देशन में थाना विवेक विहार के एसएचओ आफताब अहमद को एक टीम बना कर उस एनजीओ पर रेड करने को कह दिया.

एसएचओ आफताब अहमद पुलिस के चुस्त और तेजतर्रार हैडकांस्टेबल, कांस्टेबल और एसआई की टीम ले कर गुप्तरूप से उस एनजीओ ‘क्राइम ब्यूरो औफ इंडिया’ पहुंच गए. धड़धड़ाती हुई पुलिस टीम एनजीओ में घुसी तो वहां 3 आरोपी हत्थे चढ़ गए. पूरे एनजीओ की तलाशी ली गई.

इस वक्त वहां 3 ही लोग मौजूद थे. इन में वही 3 लोग भी थे, जिन्होंने नकली सीबीआई बन कर विवेक विहार में मनप्रीत के औफिस से ढाई करोड़ की लूट की थी.

30 वर्ष की पपोरी बरुआ (असम), तुगलकाबाद के दीपक (32 वर्ष) और इस एनजीओ के डाइरेक्टर रामसिंह मीणा (62 वर्ष) यहां से पकड़े गए थे. इन से पुलिस ने एक करोड़ 25 लाख रुपए बरामद कर लिए. इन्होंने जो सफारी सूट पहने थे, उन पर सीबीआई के नकली लोगो लगाए थे. वह पुलिस ने कब्जे में ले लिए. फरीदाबाद से दोनों कारें जो इस डकैती में इस्तेमाल की गई थीं, पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले लीं.

इन तीनों के अलावा 4 लोग और थे. इन में से 3 अपराधी भी शीघ्र ही पुलिस के हत्थे चढ़ गए. किंतु इस घटना का मास्टरमाइंड फरार था.

कुछ सूत्रों से यह मालूम हुआ है कि भगोड़ा व्यक्ति वकील है, जो मनप्रीत को भी जानता है. मनप्रीत के विषय में अंदरूनी जानकारी होने की वजह से ही उस ने यह नकली सीबीआई वाला खेल खेला था.

दीपक माहेश्वरी और रविशंकर ने इन्हें देखते ही पहचान लिया. मनप्रीत सिंह आधी रकम वापस मिलने से संतुष्ट हैं. उन्हें विश्वास है कि पुलिस शेष रुपए भी शीघ्र हासिल कर लेगी.

इन 6 दोषियों पर पुलिस ने जो धाराएं लगाईं, वह इस प्रकार है. बीएनएस  309(4), 309(6), 332 (सी), 14(3), 351(2) और 127. इन 6 आरोपियों को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया. भगोड़े वकील के लिए पुलिस छापेमारी कर रही थी. उस के पकड़े जाने पर ही शेष एक करोड़ 25 लाख रुपयों का भी पता चल सकेगा. Delhi News

 

 

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