लेखक – एडवोकेट मिर्जा अमजद बेग ,

True Crime Hindi: पुलिस ने मुनीर नवाज को एक लड़की के अपहरण और कत्ल में फंसाने के लिए सारे सुबूत जुटा लिए थे. लेकिन मिर्जा अमजद बेग एडवोकेट ने ऐसा कमाल किया कि वह बरी ही नहीं हो गया बल्कि निर्दोष भी साबित हुआ. वह बूढ़ी औरत झिझकती हुई मेरे दफ्तर में दाखिल हुई. उस के साथ उस की नौजवान बेटी भी थी. दोनों के चेहरों पर परेशानी झलक रही थी. थोड़ी देर पहले मैं ने उन्हें अदालत के बरामदे में एक वकील से बातें करते देखा था. औरत

वकील को कुछ समझाने की कोशिश कर रही थी, जबकि वकील का व्यवहार बहुत ही रूखा और बेगाना सा था. वह उस से जान छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. उस समय मैं ने उन की ओर ध्यान नहीं दिया था. कचहरी में तो यह सब होता ही रहता है. औरत भले घर की लग रही थी. उस की बेटी 19-20 बरस की थी. वह काफी सुंदर थी.

‘‘तशरीफ रखें,’’ में ने पेशेवर अंदाज में कहा, ‘‘मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

दोनों मेज के सामने रखी कुरसियों पर बैठ गईं. औरत ने पूछा, ‘‘मिर्जा अमजद बेग आप ही हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने सिर को जरा सा झुका कर जवाब दिया.

‘‘मुझे किसी ने बताया है कि आप बहुत अच्छे वकील हैं.’’

‘‘बताने वाले की मेहरबानी है. मैं बड़ी मेहनत से मुकदमों की पैरवी करता हूं और मेरे ज्यादातर मुवक्किल मुझ से खुश हो कर लौटते हैं. आप का मामला क्या है?’’

‘‘मेरा बेटा एक झूठे मुकदमे में फंस गया है.’’

मैं ने डायरी खोल ली और उस में जरूरी बातें नोट करने लगा. उस के बेटे का नाम मुनीर नवाज था, उम्र 26 बरस. हाल ही में टैक्सटाइल मिल में अफसर के तौर पर तैनात हुआ था. उस के बाप की मौत हो चुकी थी. एक बहन थी, जो इस समय मेरे सामने बैठी थी. उस का नाम सरोत था और वह बीए फाइनल में पढ़ रही थी. 10 महीने पहले एक सुबह मुनीर कार से दफ्तर जाने के लिए घर से निकला तो रास्ते में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. वह कार उसे कंपनी ने खरीद कर दी थी और किस्तों में कीमत वसूल कर रही थी. पुलिस ने उस पर अपहरण और हत्या के आरोप लगाए थे. जिस वारदात का आरोप उस पर लगाया गया था, वह उस की गिरफ्तारी से 2 हफ्ते पहले हुई थी.

मौडल कालोनी की रहने वाली एक लड़की, जिस का नाम सनम था, जब एक दूसरी लड़की शकीला के साथ ट्यूशन पढ़ कर घर जा रही थी तो रास्ते में एक कार वाले ने उस का अपहरण कर लिया था. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई थी, लेकिन तत्काल कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. अगली सुबह सनम का शव एक वीरान इलाके में पड़ा हुआ पाया गया. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह सनसनीखेज रहस्य खुला कि सनम 2 माह की गर्भवती थी. वारदात के 2 हफ्ते बाद पुलिस ने मुनीर को गिरफ्तार कर लिया. फिर शिनाख्त परेड हुई और सनम की सहेली शकीला ने अपहर्ता के रूप में मुनीर को पहचान लिया.

मुनीर की मां का नाम सबाहत बेगम था. यह सारा किस्सा सुनने के बाद मैं ने सबाहत बेगम से पूछा, ‘‘क्या आप अपने पहले वकील से संतुष्ट नहीं हैं?’’

‘‘उस ने अपना वकालतनामा कैंसिल कर दिया है. अब सरकार ने अपने खर्च पर एक वकील मुहैया किया है, जो केस में बिलकुल दिलचस्पी नहीं ले रहा है.’’

‘‘लेकिन पहला वकील क्यों पीछे हट गया?’’

‘‘जी, बात दरअसल यह है कि हमारी सारी पूंजी खत्म हो गई है. हम ने घर के कीमती सामान और जेवरात बेच दिए हैं. सारी रकम मुकदमे पर खर्च हो गई है.’’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा गई और आंखों में आंसू आ गए, ‘‘मैं ने बड़ी मेहनत से बेटे को तालीम दिलाई थी. जब वह पहली तनख्वाह ले कर घर आया था तो खुशी से मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. मैं ने सोचा था कि अब मुसीबतों के दिन खत्म हो गए.

‘‘लेकिन किस्मत में तो अभी और ठोकरें लिखी थीं. मुझे पूरा यकीन है कि मेरे बेटे ने यह जुर्म नहीं किया है. मेरा बेटा ऐसी हरकत कभी नहीं कर सकता. जिस दिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था, उस के एक महीने बाद उस की शादी होने वाली थी. लेकिन अचानक ही सब कुछ खाक में मिल गया. सारा शहर हमारा दुश्मन हो गया. लड़की वालों ने मंगनी तोड़ दी. मोहल्ले वालों ने हमारे घर आनाजाना बंद कर दिया. रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिए.’’

यह सब सुन कर मुझे खयाल आया कि वह मेरी फीस कहां से अदा करेगी? दूसरी बात यह थी कि वादी की दलीलें और सुबूत बहुत मजबूत थे. मां के जज्बात की बात और थी. हर मां को अपना बेटा बेगुनाह नजर आता है.

‘‘बात यह है मैडम कि मैं आम वकीलों से ज्यादा फीस लेता हूं,’’ मैं ने कहा, ‘‘और दूसरी बात यह कि मैं मामला समझ लेने के बाद ही फैसला करूंगा.’’

‘‘आप बेशक समझ लें,’’ सबाहत बेगम ने कहा, ‘‘लेकिन मैं आप को यकीन दिलाती हूं कि मेरा बेटा बेगुनाह है. उस ने यह जुर्म नहीं किया. जरा सोचें, एक माह बाद जिस की शादी होने वाली थी, भला वह ऐसी घिनौनी हरकत कैसे कर सकता है? जहां तक आप की फीस की बात है, मैं आप का पैसापैसा अदा कर दूंगी. इस के लिए आप को थोड़ी मोहलत देनी पड़ेगी. सरोत बीए फाइनल में पढ़ रही है. कुछ महीने बाकी हैं. उस के बाद यह नौकरी कर लेगी.’’

‘‘बात यह है कि मैं फीस हमेशा पेशगी लेता हूं. अगर आप एकमुश्त भुगतान नहीं कर सकतीं तो पेशी के हिसाब से फीस अदा कर सकती हैं.’’

‘‘अभी तो मैं कुछ भी नहीं दे सकती. यकीन करें, कल तक हमारे पास बस के किराए के लिए भी पैसे नहीं थे.’’

‘‘तो मामला अल्लाह पर छोड़ दें. अगर आप का बेटा बेगुनाह है तो जरूर बरी हो जाएगा.’’

सरोत, जो अब तक खामोश बैठी थी, रुआंसी आवाज में बोली, ‘‘क्या आप के अंदर जरा भी हमदर्दी नहीं है या दौलत की तलब ने आप को अंधा कर दिया है? हम आप से खैरात तो नहीं मांग रहे? मुफ्त काम करने के लिए तो नहीं कह रहे? कभी पैसा भूल कर किसी मुसीबतजदा के काम भी आ जाया करें.’’

‘‘बीबी, अदालत में रोजाना सैकड़ों मुसीबत के मारे लोग आते हैं. उन में ज्यादातर ऐसे होते हैं, जो वकील की फीस अदा नहीं कर सकते. हम किसकिस की मदद करें? यह हमारा पेशा है. रोजीरोटी का जरिया है.’’

‘‘जिन सैकड़ों की बात आप कर रहे हैं, उन्हें तो शायद आप के दफ्तर में झांकने की भी हिम्मत नहीं होगी. आप यह बताएं कि साल भर में आप कितने केस इंसानी हमदर्दी के तौर पर लेते हैं? कितने गरीबों की बगैर फीस के इंसाफ दिलाने में मदद करते हैं?’’

‘‘यह मेरा निजी मामला है?’’

‘‘बहस न करो,’’ सबाहत बेगम ने अपनी बेटी से कहा, ‘‘हम झगड़ा करने नहीं आए. उठो, चलें.’’

दोनों उठीं और दरवाजे की ओर चल पड़ीं. दरवाजे के निकट पहुंच कर सरोत ने आशा भरी नजरों से पीछे देखा. उस के चेहरे पर सारी दुनिया की हसरत और निराशा सिमट आई थी. मेरे जी में आया कि उन्हें रोक लूं, लेकिन पता नहीं क्यों मैं ने ऐसा नहीं किया. एक दिन अदालत के बरामदे में पुलिस इंसपेक्टर मजहर हुसैन से मेरा सामना हो गया. मुनीर नवाज के केस की जांच उसी ने की थी. वह बड़ीबड़ी मूंछें रखता था और रौबदाब वाला पुलिस अफसर था. उस समय वह सरकारी वकील नूर मोहम्मद से बातें कर रहा था.

‘‘क्या हालचाल है वकील साहब?’’ मजहर हुसैन मेरे कंधे पर अपना भारी हाथ मारता हुआ बोला, ‘‘सुना है, आप ने डाकुओं और बदमाशों की वकालत करनी शुरू कर दी है?’’

‘‘अब पहले तो मुझे अपने कंधे का एक्सरे कराना पड़ेगा,’’ मैं ने अपना कंधा सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे डर है कि कहीं कोई हड्डी न टूट गई हो.’’

उस ने कहकहा लगाया और मेरे कंधे पर एक और हाथ मारते हुए बोला, ‘‘यार, अच्छा मजाक कर लेते हो.’’

उस ने फिर कहकहा लगाया और मेरे कंधे पर फिर हाथ मारना चाहा तो मैं झुका कर जल्दी से पीछे हट गया. उस ने मुश्किल से अपना कहकहा रोका और मूंछों पर हाथ फेरता हुआ बोला, ‘‘तुम वकीलों ने बहुत तंग कर रखा है. हम डाकुओं और कातिलों को पकड़ कर लाते हैं और तुम लोग कोई न कोई कानूनी नुक्ता निकाल कर उन्हें बरी करवा देते हो.’’

‘‘तुम लोग मुजरिम नहीं पकड़ते, अपना कोटा पूरा करते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘आजकल एक नौजवान मुनीर नवाज तुम्हारी हिरासत में है.’’

‘‘नौजवान नहीं, कातिल है.’’ फिर वह अचानक अदालत के कमरे की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘वह देखो, वह बैठा है तुम्हारा नौजवान कातिल.’’

मैं ने उधर देखा. कमरे के अंदर दीवार के साथ एक परेशानहाल नौजवान खड़ा था. बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई, लिबास गंदा और सलवटों भरा था. उस के हाथों में हथकड़ी और पांवों में बेडि़यां पड़ी थीं. उस के दाएंबाएं खड़े दो सिपाही सिगरेट पी रहे थे. पास ही सबाहत बेगम और उस की बेटी सरोत भी मौजूद थीं. दोनों पहले से कमजोर नजर आ रही थीं. उन के चेहरे उतरे हुए थे.

‘‘मैं ने सुना है कि तुम इस बदमाश का केस अपने हाथ में लेना चाहते हो?’’ मजहर हुसैन ने पूछा.

‘‘अभी तो नहीं लिया. मगर तुम कहते हो तो ले लेता हूं.’’

‘‘वकील साहब, उस के गले में फंदा पड़ चुका है, बस लीवर दबाने की देर है. अगर मेरी बात पर यकीन न हो तो नूर मोहम्मद से पूछ लो. यह इस केस का वकील है.’’

‘‘बस जी, कुछ पेशियों में फैसला हो जाएगा.’’ नूर मोहम्मद ने कहा.

‘‘और तुम्हारी तरक्की हो जाएगी.’’ मैं ने चिढ़ कर कहा. फिर इंसपेक्टर से पूछा, ‘‘शिनाख्त परेड में कुल कितने आदमी थे?’’

‘‘मुनीर नवाज समेत कुल 5 थे.’’

‘‘बाकी 4 कौन थे? मुजरिम, पुलिस के आदमी या आम पब्लिक के लोग?’’

‘‘आम पब्लिक के आदमी थे.’’

‘‘क्या उन के हुलिए एक जैसे थे या वे एकदूसरे से अलग थे. पूछना तो यों चाहिए कि क्या मुनीर नवाज और उन के हुलिए में फर्क था?’’

मजहर हुसैन ने खौफनाक नजरों से मेरी ओर देखा. फिर बोला, ‘‘तुम यह सवाल किस हैसियत से कर रहे हो?’’

‘‘दोस्ताना तौर पर.’’

‘‘यह सब अदालत के रेकार्ड में मौजूद है.’’

‘‘अच्छा. तो अब फिर अदालत में मुलाकात होगी,’’ मैं ने कहा, ‘‘वैसे अगर तुम इजाजत दो तो मैं मुलजिम से कुछ बातें कर लूं?’’

‘‘तुम उस के वकील नहीं हो. मैं इजाजत नहीं दे सकता.’’

‘‘कर लेने दो यार 2-4 बातें,’’ नूर मोहम्मद ने कहा, ‘‘इस की तसल्ली हो जाएगी.’’

‘‘जाओ, कर लो.’’ मजहर हुसैन ने कहा, लेकिन वह बेचैन नजर आ रहा था.

मैं कमरे में दाखिल हुआ तो सबाहत बेगम और सरोत ताज्जुब से मेरी ओर देखने लगीं.

‘‘बेग साहब, आप?’’ सबाहत बेगम ने कहा.

‘‘मैं आप के बेटे से कुछ बातें करना चाहता हूं. आप ने किसी दूसरे वकील का इंतजाम तो नहीं किया?’’

वह मेरी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखने लगी. बोली, ‘‘मैं ने आप के कहने पर मामला अल्लाह पर छोड़ दिया है.’’

मैं ने मुनीर नवाज को अपना परिचय दे कर पूछा, ‘‘क्या तुम सनम को पहले से जानते थे?’’

उस ने ‘नहीं’ में सिर हिला कर कहा, ‘‘मैं ने कभी उस लड़की की शक्ल नहीं देखी थी.’’

‘‘वारदात वाली रात तुम कहां थे?’’

‘‘उस दिन मैं 7 बजे घर पहुंचा था और उस के बाद बाहर नहीं निकला था. मेरी मां और बहन इस बात की गवाह हैं.’’

‘‘अगर तुम घर में थे तो तुम्हारी कार घर के सामने खड़ी रही होगी. तुम्हारे पड़ोसियों ने उसे जरूर देखा होगा.’’

‘‘उस दिन मेरी कार एक मामूली मरम्मत के लिए वर्कशौप में थी.’’

‘‘ओह! क्या तुम ने पुलिस को वर्कशौप के बारे में नहीं बताया?’’

‘‘बताया था. शायद इंसपेक्टर साहब ने वर्कशौप के मालिक से बात भी की थी, लेकिन उस का कहना था कि उसे दिन और तारीख याद नहीं रही. इसलिए वह गवाही नहीं दे सकता.’’

‘‘और कोई खास बात?’’

उस ने कुछ कहने का इरादा किया. फिर दुविधा भरी नजरों से सिपाहियों की ओर देख कर बोला, ‘‘कोई खास बात नहीं है जी सिवाय इस के कि में बेगुनाह हूं. कुछ बातें मैं ने अपनी अम्मी को बताई थीं. आप उन से पूछ लीजिए.’’

‘‘ठीक है,’’ मैं ने कहा, ‘‘अब तुम कोई फिक्र न करो. आज मैं तुम्हारे केस की तारीख ले लेता हूं. अगली तारीख को मैं वकालतनामा दाखिल कर दूंगा.’’

मुनीर नवाज की मां और बहन, जो पास ही खड़ी थीं, अहसानमंद नजरों से मेरी ओर देखने लगीं. थोड़ी देर बाद मैं ने पेशकार से एक महीने की तारीख ले ली और सबाहत बेगम से कहा कि वह मेरे दफ्तर आ जाएं. इंसपेक्टर मजहर हुसैन को मेरी यह हरकत पसंद नहीं आई. लेकिन जाहिर है, वह मुझे रोक नहीं सकता था. एक घंटे बाद, जब मैं 2 पेशियां भुगताने के बाद दफ्तर पहुंचा तो सबाहत बेगम और उस की बेटी को इंतजार करते पाया. सरोत के चेहरे पर बड़ी मासूम सी शर्मिंदगी थी.

‘‘बेग साहब,’’ उस ने हौले से कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं. उस दिन मैं ने आप के साथ बदतमीजी की थी.’’

‘‘खाली शर्मिंदा होने से काम नहीं चलेगा,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे लिए कोई सजा तजबीज करनी पड़ेगी, लेकिन अभी तो मुकदमे की बात हो जाए.’’

फिर मैं सबाहत बेगम से मुखातिब हुआ, ‘‘मुनीर ने मुझे बताया है कि उस ने आप को कुछ जरूरी बातें बताई थीं.’’

‘‘जी हां, पहली बात तो यह है कि सरकार ने मुनीर का जो वकील तैनात किया है, वह इंसपेक्टर मजहर हुसैन का रिश्तेदार है. दोनों आपस में मिले हुए हैं और मेरे बेटे को सजा दिलवाना चाहते हैं.’’

‘‘यह तो सचमुच बड़ी अहम बात है. अच्छा यह बताइए, क्या आप सनम के घर वालों को जानती हैं?’’

‘‘मैं अपने बेटे की गिरफ्तारी के बाद उस की मां से मिली थी. मैं ने रोरो कर और कसमें खा कर उसे यकीन दिलाने की कोशिश की थी कि मेरा बेटा उस की बेटी का कातिल नहीं है, लेकिन उस ने मेरी बात पर गौर नहीं किया. सिर्फ इतना कहा कि मामला पुलिस के हाथ में है, वह कुछ नहीं कर सकती.’’

‘‘हां, वह सचमुच कुछ नहीं कर सकती. अब फैसला अदालत ही कर सकती है. बहरहाल अगली पेशी पर मैं वकालतनामा दाखिल कर दूंगा और साथ ही सरकारी वकील को फारिग कर देने की सिफारिश भी. इस दौरान मैं कुछ लोगों से मिलना चाहता हूं. इस में आप को मेरी थोड़ी सी मदद करनी पड़ेगी. सब से पहले मैं शकीला से मिलना चाहता हूं, जो इस मुकदमे की अहम गवाह है. उस के अलावा मैं सनम की मां से और उस वर्कशौप के मालिक से भी मिलना चाहता हूं, जिस ने मुनीर की कार मरम्मत की थी.’’

‘‘मैं उन के पते आप को दे सकती हूं. इस के अलावा मुझ से कोई और मदद नहीं हो सकेगी.’’

मैं ने तीनों के पते डायरी में नोट कर लिए और सबाहत बेगम से जरूरी कागजात पर दस्तखत कराने के बाद उन्हें विदा कर दिया. फिर मैं दूसरे मुकदमों की फाइलें देखने लगा.

थोड़ी देर बाद हलकी सी आहट हुई. मैं ने नजर उठा कर देखा तो सरोत झिझकती हुई अंदर दाखिल हो रही थी.

‘‘आप ने फीस के बारे में तो कुछ बताया ही नहीं?’’ उस ने कहा.

‘‘ओह हां, मैं फीस के बारे में तो भूल ही गया था. मैं तुम से बड़ी मामूली सी फीस लूंगा, यही कोई 25 हजार के करीब.’’

‘‘25 हजार! यह तो बहुत ज्यादा है.’’

‘‘ज्यादा है तो ऐसा करते हैं कि फीस कुछ भी नहीं लेते. अब तो ठीक है न?’’

‘‘मुझे हंसी नहीं आएगी,’’ उस ने कहा और उस की आंखों में आंसू तैरने लगे, ‘‘जब से मुनीर भाई गिरफ्तार हुए हैं, मैं हंसना भूल गई हूं.’’

वह सचमुच रोने लगी.

मैं एकदम संजीदा हो गया, ‘‘अरे, मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था. फीस की बात उस समय करेंगे, जब तुम्हारे मुनीर भाई बरी हो कर घर पहुंच जाएंगे.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि वह बरी हो जाएंगे?’’ उस ने दुपट्टे से आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘अदालत के मामलों में कोई बात यकीन के साथ नहीं कही जा सकती. बहरहाल मैं पूरी कोशिश करूंगा. उम्मीद भी है. और देखो, ज्यादा रोया नहीं करो. सेहत खराब हो जाएगी. मुसीबतों का मुकाबला हिम्मत से करना चाहिए.’’

उस ने अपने आंसू पोंछ डाले और बोली, ‘‘जी अच्छा, मैं कोशिश करूंगी.’’ फिर वह कमरे से निकल गई. सोमवार के दिन अदालत के काम निपटाने के बाद मैं कार में बैठ कर मौडल कालोनी में पहुंच गया. सब से पहले मैं ने शकीला के घर पर दस्तक दी. एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला. उस के बाल स्याह थे और शरीर कुछ मोटा था. उस ने कड़ी नजरों से मेरा जायजा लिया और मेरे आने का मकसद पूछा.

मैं ने अपना परिचय देने के बाद कहा, ‘‘मैं शकीला से कुछ बातें पूछना चाहता हूं.’’

‘‘इस मुसीबत से कब हमारी जान छूटेगी?’’

‘‘उम्मीद है कि जल्दी ही छूट जाएगी.’’

औरत ने अंदर की ओर मुंह कर के आवाज लगाई, ‘‘शकीला..अरी ओ शकीला…इधर आ…यह एक और वकील साहब आए हैं तुम्हारा बयान लेने. कमबख्त को मना भी किया था कि कुछ मत बोल. पुलिस वालों को झख मारने दे. लेकिन इस के दिमाग में इंसाफ का धुआं भरा हुआ था. अरे यहां किसी के साथ कभी इंसाफ हुआ भी है…’’

इतने में एक 17-18 साल की लड़की नंगे पैर दरवाजे के पास आई. उस के बाल बिखरे हुए थे. दुपट्टा कंधे पर लटक रहा था और हाथ में खुली हुई किताब थी. वह एक अल्हड़ सी लापरवाह लड़की लगती थी. उस की शक्ल हूबहू अधेड़ औरत से मिलतीजुलती थी.

‘‘कौन है अम्मी?’’ उस ने पूछा. फिर मेरी ओर देखने लगी.

‘‘कमबख्त दुपट्टा तो ठीक से ओढ़.’’ उस की मां ने कहा, ‘‘पूछें जी, जो कुछ पूछना है.’’

‘‘क्या हम 2 मिनट के लिए अंदर नहीं बैठ सकते?’’ मैं ने कहा.

‘‘हम?’’ औरत ने कंधे के ऊपर से गली में नजर दौड़ाई, ‘‘क्या कोई और भी है आप के साथ?’’

‘‘जी नहीं, मैं अकेला हूं. मेरा मतलब है कि आप और शकीला.’’

‘‘वह कार आप की है?’’

‘‘जी हां, मेरी है.’’

‘‘आ जाइए अंदर.’’ उस ने मेरे दाखिल होने के लिए दरवाजा खोल दिया. यह बात मेरी समझ में नहीं आई कि उस ने कार के बारे में पूछने के बाद मुझे अंदर आने की इजाजत क्यों दी थी. ड्राइंगरूम में बेतरतीबी थी, लेकिन फरनीचर आला था. फर्श पर कालीन भी निहायत खूबसूरत बिछी थी.

‘‘यह घर हमारा अपना है.’’ औरत ने कहा. यह सुन कर शकीला ने मुंह बनाया.

‘‘आप किस के वकील हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘मुनीर नवाज का.’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘हाय मैं मर गई.’’ शकीला की मां ने कहा, ‘‘आप उस कातिल बदमाश की वकालत कर रहे हैं? उसे तो सरेआम फांसी पर लटकाना चाहिए.’’

‘‘मैडम, मेरी बात का बुरा न मानें. क्या आप ने उसे कत्ल करते देखा था?’’

‘‘लो, यह बात तो सब जानते हैं.’’

‘‘यही तो हमारे समाज में एक बड़ी खराबी है. बगैर तसदीक के फैसला कर देते हैं. पुलिस ने उसे कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार जरूर किया है, लेकिन जब तक उस का जुर्म साबित नहीं हो जाता, उसे कातिल नहीं कहा जा सकता. जब उस का जुर्म साबित हो जाएगा तो वह मुजरिम कहलाएगा.’’

शकीला की मां हाथ हिलाती हुई बोली, ‘‘ए हटो, हमें इन कानूनी चक्करों में दिलचस्पी नहीं है.’’

मैं भी लंबी बात करने के मूड में नहीं था. मैं ने शकीला से कहा, ‘‘मुकदमे में तुम्हारी गवाही अहम है. तुम्हारे बयान पर उसे फांसी की सजा हो सकती है. अगर तुम ने उसे पहचानने में गलती की है या पुलिस के दबाव में आ कर उस के खिलाफ बयान दिया है तो उस का खून तुम्हारे सिर होगा. इसलिए सोचसमझ कर बताओ कि क्या तुम ने सचमुच उसे पहचान लिया था?’’

‘‘बिलकुल वैसा ही लगता था. मैं ने पुलिस को भी यही बयान दिया था कि यह वही लगता है.’’

‘‘वही लगता है और वही है, में बहुत फर्क है. मैं ने अदालत में तुम्हारा बयान पढ़ा है. उस में लिखा है कि तुम ने यकीनी तौर पर मुलजिम को पहचान लिया है. क्या मुनीर नवाज वही आदमी है, जिस ने तुम्हारी सहेली सनम का अपहरण किया था?’’

‘‘मुझे क्या पता जी? थानेदार ने जिस तरह मुझे समझाया था, मैं ने वैसा ही बयान दे दिया.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ अगर तुम पर फैसला छोड़ दिया जाए तो क्या तुम मुनीर नवाज को फांसी की सजा दोगी?’’

‘‘तौबा…तौबा…’’ उस ने कानों पर हाथ लगाया, ‘‘मैं क्यों दूंगी उसे फांसी की सजा? हो सकता है, कातिल कोई और हो?’’

‘‘हूं, गोया तुम्हें पूरा यकीन नहीं है कि सनम का अपहरण करने वाला वही है.’’

‘‘हां, यों ही समझ लें, लेकिन आप यह चाहते हैं कि मैं यह बात अदालत के सामने भी कहूं तो यह नामुमकिन है. मैं अपना बयान बदल नहीं सकती. वकील ने मुझे बताया था कि अगर मैं ने अपना बयान बदला तो मैं अदालत के अपमान की दोषी बनूंगी. थानेदार ने भी यही कहा था.’’

‘‘तुम्हें गलत बताया गया है. बयान बदलने से अदालत का अपमान नहीं होता. आमतौर पर होता यह है कि पुलिस जब किसी के खिलाफ मुकदमा तैयार करती है तो वह चाहती है कि गवाह भी उस की तसदीक करे. इस के लिए कई बार वह गवाहों पर दबाव भी डालती है, इसलिए अगर कोई गवाह मुकर जाए तो अदालत को ताज्जुब नहीं होता.’’

‘‘कुछ भी हो,’’ शकीला की मां ने कहा, ‘‘अब हम अपनी बेटी को अदालत में नहीं भेजेंगे. हम क्यों ख्वाहमख्वाह पुलिस की दुश्मनी मोल लें.’’

‘‘एक बात और पूछना चाहता हूं,’’ मैं ने कहा, ‘‘जब सनम को अपहरण करने वाले ने उठा कर या घसीट कर अपनी कार में डाला था तो उस ने कोई विरोध किया था या शोर मचाया था?’’

‘‘दरअसल, उस वक्त उसे कुछ पता ही नहीं चला. मुझे भी उसी वक्त अहसास हुआ, जब कार चल दी.’’

‘‘शुरू से पूरी बात बताओ.’’

‘‘वह कार हमारे पीछे से आई और करीब पहुंच कर धीमी हो गई. ड्राइवर ने मुसकरा कर सनम की ओर देखा और हौले से उस का नाम पुकारा.’’

यह सुनते ही मैं उछल पड़ा, ‘‘क्या कहा? ड्राइवर सनम का कोई जानने वाला था?’’

‘‘हां, लेकिन सनम ने उस की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और सीधी चलती रही. कार भी धीरेधीरे हमारे साथ चलती रही. ड्राइवर ने सनम से कहा, ‘जरा सुनो तो.’ और साथ ही उस की बाहें पकड़ लीं. सनम ने गुस्से से कहा, ‘छोड़ दो, वरना शोर मचा दूंगी.’ ड्राइवर ने कहा, ‘मचाओ शोर. देखूं तो सही, तुम्हारे अंदर कितनी हिम्मत है.’ इस पर सनम रुक गई. कार भी रुक गई. सनम ने कहा, ‘बोलो, क्या चाहते हो?’ ड्राइवर ने दरवाजा खोला और सनम को अचानक अंदर खींच लिया. उस ने सनम को बड़ी बेरहमी से अपनी गोद में लिटा लिया. दरवाजा बंद किया और जल्दी से कार आगे बढ़ा दी.’’

‘‘और तुम यह सब कुछ चुपचाप देखती रहीं?’’

‘‘शुरू में मैं यही समझती रही कि सनम उस को जानती है. बातों के अंदाज से यही जाहिर होता था कि वह उस से रूठी हुई है, लेकिन जब उस ने जबरदस्ती सनम को अंदर खींच लिया तो मैं चीखने लगी.’’

‘‘तुम ने यह सब कुछ पुलिस को क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने सब कुछ बताया था. लेकिन अखबार वालों को नहीं बताया, क्योंकि सनम की अम्मी ने मुझे मना कर दिया था. उन्होंने कहा था कि इन बातों से सनम की बदनामी होगी.’’

शकीला के लिखित बयान में इन बातों का जिक्र नहीं था. निश्चय ही पुलिस ने इन बातों को गोल कर दिया था और इस का मकसद इस के सिवा और कुछ नहीं लगता था कि मुनीर नवाज हत्या के आरोप से बच न सके.

‘‘कार का रंग क्या था?’’

‘‘कार का रंग हलका बादामी था. लेकिन पुलिस का कहना है कि रंग के मामले में मुझे गलतफहमी हुई है. असल में कार का रंग हलका सब्ज है.’’

मैं ने कुछ प्रश्न किए, फिर जाने के लिए खड़ा हो गया, ‘‘शुक्रिया!’’ मैं ने कहा, ‘‘मेरे साथ जो बातचीत हुई है, उस का जिक्र किसी से न करें.’’

‘‘किसी दिन अपने बीवीबच्चों को ले कर आना.’’ शकीला की मां ने कहा.

‘‘अभी इस मुसीबत से बचा हुआ हूं.’’

‘‘तो फिर अपनी अम्मी को ले कर आना.’’

शकीला ने अपनी मां को कोहनी मारी. तब मुझे अहसास हुआ कि शकीला की मां ने बीवीबच्चों को साथ लाने के लिए क्यों कहा था. दरअसल वह यह जानना चाहती थीं कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं. 15 मिनट बाद मैं सनम के घर का दरवाजा खटखटा रहा था. दरवाजा खुला तो मेरे सामने 2 लड़कियां खड़ी थीं. उन की उम्र 12 और 15 बरस के बीच थी.

‘‘जी, आप किस से मिलना चाहते हैं?’’ दोनों ने एक साथ पूछा और फिर एकदूसरे को देख कर हंसने लगीं. इतने में एक 7-8 साल की लड़की ने दोनों के बीच से सिर निकाला.

‘‘घर में कोई बड़ा नहीं है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘इन से बड़ी 2 और हैं.’’ छोटी लड़की ने कहा.

‘‘माशाअल्लाह!’’ मैं ने कहा, ‘‘सब मिला कर 5 बहनें हुईं. खूब रौनक रहती होगी.’’

‘‘जब साथ थीं तो खूब ऊधम मचता था.’’ छोटी ने कहा, ‘‘लेकिन सब से बड़ी की शादी हो गई और उस से छोटी अल्लाह को प्यारी हो गई.’’

दोनों बड़ी लड़कियां दोबारा खीखी करने लगीं. तभी एक बूढ़े आदमी का चेहरा लड़कियों के सिरों के ऊपर से प्रकट हुआ. उस के बाल आधे सफेद और आधे काले थे. सफेद इसलिए थे कि वह बालों में रंग लगाना भूल गया था.

‘‘किस से मिलना चाहते हो मियां?’’ उस ने पूछा.

‘‘मेरा नाम अमजद बेग है और मैं वकील हूं.’’

‘‘हमें किसी वकील की जरूरत नहीं है.’’

‘‘क्या आप सनम के अब्बा हैं?’’

उस ने ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘मैं आप की बेटी के साथ पेश आने वाले हादसे के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं.’’

‘‘हम सब कुछ पुलिस को बता चुके हैं.’’

‘‘ए कौन है?’’ पीछे से किसी औरत की आवाज आई. लम्हा भर बाद एक दरमियाने कद की औरत बूढ़े के दाईं ओर से प्रकट हुई. वह बुढ़ापे की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, फिर भी उस ने खासा चुस्त लिबास पहन रखा था और खूब बनीसंवरी थी. उस के बाल हलके रंग के थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि वह बालों में रंग लगाती थी. उस ने कल्ले में पान दबा रखा था और लगातार मुंह चला रही थी. मेरे सामने खासा दिलचस्प नजारा था. 3 लड़कियां, बड़े मियां और बेगम साहिबा. में ने फिर अपना मकसद बयान किया, लेकिन बड़े मियां बात करने को तैयार नहीं हुए.

‘‘क्या आप यह पसंद करेंगे कि कोई बेगुनाह फांसी पर चढ़ जाए?’’

‘‘यह मामला अब पुलिस के हाथ में है. अदालत जिसे चाहे, फांसी पर लटकाए. हमें इस से कोई सरोकार नहीं.’’

‘‘क्या आप यह पसंद करेंगे कि आप की बेटी का कातिल दनदनाता फिरे?’’

‘‘यह तो हम हरगिज बरदाश्त नहीं करेंगे.’’ इस बार औरत ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर आप को मेरी मदद करनी चाहिए.’’

दोनों मियांबीवी ने आपस में सलाहमशविरा किया और कुछ हीलहुज्जत के बाद मुझे अंदर ड्राइंगरूम में ले गए. बूढ़े का नाम इबरार हुसैन था. वह रिटायर्ड जिंदगी बिता रहा था. उस के 7 बेटियां और 1 बेटा था. एक बेटी की शादी हो चुकी थी और एक बेटी सनम कुछ समय पहले कत्ल हो गई थी. बेटा अमेरिका में था और टेक्नोलौजी की एक कंपनी में नौकर था. 5 बेटियां घर में थीं और वह अपनी मौजूदगी का पूरापूरा सुबूत दे रही थीं.

मैं ने पूछा, ‘‘जिस आदमी को पुलिस ने आप की बेटी के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है, उस का नाम मुनीर नवाज है. क्या आप उसे जानते हैं?’’

‘‘हम ने तो कभी उस मनहूस की शक्ल भी नहीं देखी.’’

‘‘कुछ दिनों पहले मैं मुनीर नवाज से अदालत में मिला हूं. वह एक जहीन और काबिल नौजवान है. जिस दिन उसे गिरफ्तार किया गया था, उस के एक महीने बाद उस की शादी होने वाली थी. लेकिन अब मंगनी टूट गई है.’’

‘‘तुम यह सब हमें क्यों बता रहे हो?’’ इबरार हुसैन ने कहा, ‘‘अगर वह कातिल नहीं है, तो बरी हो जाएगा.’’

‘‘बात यह है जनाब कि अदालत में बात दलीलों और गवाहों के बल पर होती है. अगर एक बेगुनाह के हक में गवाही देने वाला कोई नहीं होगा तो वह कानून के फंदे में जरूर फंस जाएगा. आप को हमारी पुलिस का हाल भी खूब मालूम है. कई बार मुजरिमों से सौदेबाजी कर के उन्हें छोड़ देते हैं और बेगुनाहों को अंदर करा देते हैं.’’

‘‘देखो मियां, मैं हूं बूढ़ा आदमी. मैं पुलिस की दुश्मनी मोल ले कर अपने आखिरी दिन खराब नहीं करना चाहता. इसीलिए मैं ने अपनी तरफ से कोई वकील भी मुकर्रर नहीं किया.’’

‘‘तुम चुप रहो जी,’’  बेगम इबरार ने कहा, ‘‘जवानी में तुम ने कौन सा तीर मार लिया था? चूहे की तरह सारी जिंदगी बिता दी. इतनी अच्छी पोस्ट पर कोई और होता तो बिल्डिंगें खड़ी कर देता. घर के सामने चारचार कारें खड़ी होतीं, लेकिन तुम तो 4 बेटियों की शादी भी न कर सके.’’

‘‘खुदा का शुक्र है कि मैं ने तुम्हारी बातों में आ कर अपना परलोक खराब नहीं किया.’’

‘‘परलोक..परलोक.. तुम अपनी जन्नत खरी कर लो. बाकी कुनबा चाहे सारी उम्र आग में जलता रहे. खुदा ने बीवीबच्चों के हक भी मुकर्रर कर रखे हैं.’’

‘‘हुंह!’’ इबरार हुसैन उठता हुआ बोला, ‘‘तुम हमेशा ऊपर की तरफ देखती हो और जो इंसान ऊपर की तरफ देखता है, वह कभी खुदा का शुक्रगुजार बंदा नहीं बन सकता. मुझे तो खुदा सिर्फ इतनी बात पर जन्नत में दाखिल कर देगा कि मैं ने तुम जैसी औरत के साथ जिंदगी बिता दी.’’ फिर वह तेजी के साथ कमरे से निकल गया.

‘‘बिल में घुस जाओ जा कर. चूहों के लिए जन्नत में कोई जगह नहीं होती.’’ बेगम इबरार उस के जाने के बाद भी बोलती रहीं.

‘‘दिल के बुरे नहीं हैं,’’ बेगम इबरार एकदम बदले हुए मूड में बोलीं, ‘‘बस जरा डरपोक हैं. दुनिया की आंखों में आंखें डाल कर बात नहीं कर सकते.’’

‘‘बेगम इबरार,’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं एक बहुत जाती किस्म का सवाल करना चाहता हूं. उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगी. आप चूंकि रोशनखयाल हैं, इसलिए मुझे यकीन है कि आप की बेटियां आप को सब कुछ बता देती होंगी.’’

वह अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गई. बोली, ‘‘आप बड़ी खुशी से सवाल करें.’’

‘‘मैं ने पता लगाया है कि सनम की किसी नौजवान से दोस्ती थी और वह उस के साथ शादी करना चाहती थी. क्या आप उस नौजवान को जानती हैं?’’

बेगम इबरार ने जवाब देने में थोड़ा संकोच किया. फिर जरा पास आ गई और अपनी आवाज धीमी करती हुई बोली, ‘‘पुलिस ने भी मुझ से यह सवाल किया था, मैं ने उन्हें टाल दिया था. लेकिन मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. सनम बड़ी अच्छी लड़की थी. वह मुझे सब कुछ बता देती थी. अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले उस ने मुझे बताया था कि गड़बड़ हो गई है. लड़का बहुत ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखता था और उस ने सनम को यकीन दिलाया था कि वह अपने मांबाप को राजी कर के जल्दी ही उस के साथ शादी कर लेगा, लेकिन उस ने यह भी कहा था कि अगर मांबाप राजी न हुए तो वह सिविल मैरिज कर लेगा. मैं ने भी इस बात की इजाजत दे दी थी. आप खुद सोचें कि इस बदहाली के दौर में 7 बेटियों की शादी करना कोई आसान काम तो नहीं है.’’

मैं ने महसूस किया कि सनम की तबाही की आधी जिम्मेदारी इस औरत पर आती है. उस ने बेटियों के बोझ से छुटकारा पाने के लिए आसान राह तलाश कर ली थी.

‘‘उस नौजवान का नाम क्या था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सनम ने सिर्फ एक बार उस का नाम बताया था, लेकन मेरी बदकिस्मती देखिए कि मुझे वह नाम याद नहीं रहा. दिमाग पर जोर देती हूं तो यों लगता है कि उस का नाम कहीं खो गया है. दिमाग में आतेआते रह जाता है. काश, मैं उस के मांबाप का पता ही पूछ लेती.’’

‘‘वह नौजवान कभी आप के घर नहीं आया?’’

‘‘यह जो अल्लाह वाले अभी यहां से उठ कर गए हैं न, यह लड़कियों के मामले में बहुत तंगनजर हैं. अगर किसी दिन कोई लड़का हमारी किसी बेटी के हवाले से इस घर में दाखिल हुआ तो उस दिन यह जन्नत के रखवाले इस घर को जहन्नुम का नमूना बना देंगे. वैसे तो बहुत बुजदिल हैं, लेकिन इस मामले में शेर बन जाते हैं. शेर क्या, वहशी बन जाते हैं.’’

‘‘क्या सनम ने अपनी किसी बहन को भी नाम नहीं बताया?’’

‘‘इस मामले में ये एकदूसरी पर बिलकुल भरोसा नहीं करतीं. इन के अंदर आपसी जलन बहुत है.’’

कुछ अन्य सवालों के बाद मैं जाने के लिए खड़ा हो गया, लेकिन बेगम इबरार चाय बना कर ले आई. बातों के दौरान उस ने कहा कि अगर मुनीर नवाज बेकुसूर साबित हुआ और बरी हो गया तो वह उस की रुसवाई का बदला चुकाने के लिए अपनी एक बेटी की शादी उस से कर देगी. उस ने मुनीर की मां का पता भी मुझ से ले लिया और कहा कि वह उस से मिलने जाएगी. वहां से विदा हो कर मैं उस वर्कशौप पहुंचा, जहां मुनीर नवाज ने अपनी कार सर्विस के लिए दी थी. वर्कशौप के मालिक का नाम नबी बख्श था. उस ने मेरे पूछने पर बताया कि कुछ समय पहले मुनीर नवाज की मर्सिडीज कार उस की वर्कशौप में आई थी.

साथ ही उस ने रजिस्टर निकाल कर दिखाया, जिस में कार का नंबर और तारीख दर्ज थी. यह वही तारीख थी, जिस तारीख को सनम का अपहरण हुआ था. उस ने बताया कि इंसपेक्टर मजहर हुसैन ने भी उस रजिस्टर को देखा था और कुछ सवाल भी किए थे.

‘‘क्या उस ने तुम्हारा तहरीरी बयान नहीं लिया?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, उस ने कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो मुझे अदालत में गवाही देने के लिए आना पड़ेगा. लेकिन उस के बाद न कोई सम्मन आया और न ही किसी ने गवाही के लिए बुलाया.’’

मैं ने नबी बख्श से पूछा कि उस के पास कभी कोई ऐसा नौजवान अपनी मर्सिडीज कार की मरम्मत कराने तो नहीं आया, जिस की शक्ल मुनीर नवाज से मिलतीजुलती रही हो. लेकिन नबी बख्श का जवाब नहीं में था. मैं उसी इलाके की कुछ अन्य वर्कशौप में गया, मगर कुछ पता नहीं चल पाया. पुलिस ने जो केस तैयार किया था, उस में कई खामियां थीं. मसलन, शकीला को यकीन था कि कार का रंग बादामी था. वारदात वाले दिन मुनीर नवाज की कार वर्कशौप में थी. यह बात नबी बख्श के रेकार्ड में मौजूद थी, लेकिन उसे गवाही के लिए नहीं बुलाया गया था. जिस नौजवान के साथ सनम के ताल्लुक थे, उसे सामने लाने की कोई कोशिश नहीं हुई थी.

शकीला के बयान के अनुसार उस ने मुलजिम की यकीनी तौर पर शिनाख्त नहीं की थी. एक खास बात उस के बयान से यह पता चलती थी कि अपहरण करने वाले ने सनम का नाम ले कर पुकारा था, जिस का मतलब था कि वह उसे जानता था, जबकि मुनीर नवाज का सनम से परिचय का कोई भी सुबूत नहीं मिला था. अगली पेशी पर मैं ने वकालतनामा दाखिल कर दिया और अदालत को केस में पाई जाने वाली कुछ खामियों के बारे में बताया. जब मैं खामियों को स्पष्ट कर रहा था तो मैं ने महसूस किया कि जज के रवैए में एकदम बदलाव आ गया था. मैं ने देखा कि सफाई वकील और इंसपेक्टर मजहर हुसैन के चेहरे पर बड़ी सख्त उलझन छा गई थी.

जज ने वर्कशौप के मालिक नबी बख्श के नाम सम्मन जारी करने का आदेश दे दिया. अदालत से बाहर आ कर सबाहत बेगम ने मुझे बहुत सारी दुआएं दीं और एक बार फिर फीस के बारे में दिलासा दी. सरोत अहसानमंद नजरों से मेरी ओर देखती रही, लेकिन बोली कुछ नहीं. कुछ दिनों बाद शाम के समय मैं दफ्तर से उठने की तैयारी कर रहा था कि एक 22-23 साल की लड़की झिझकती हुई कमरे में दाखिल हुई. उस ने आसमानी रंग की सलवारकमीज पहन रखी थी. वह भरेभरे बदन की सुंदर लड़की थी.

‘‘मैं एक मुकदमे के बारे में आप से बात करना चाहती हूं.’’

मैं ने उसे बैठने के लिए कुरसी पेश की. उस ने अपना नाम सायरा बताया और कहा कि वह मुनीर के मुकदमे के बारे में बात करना चाहती है.

‘‘तुम्हारा इस मुकदमे से क्या ताल्लुक है?’’ मैं ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुनीर नवाज की रिश्तेदार हो?’’

‘‘मुनीर मेरे मंगेतर हैं.’’

‘‘अच्छा, लेकिन मैं ने तो सुना है कि मंगनी टूट गई.’’

‘‘मेरे मांबाप ने मंगनी तोड़ दी है, लेकिन मैं ने नहीं तोड़ी.’’

‘‘यानी तुम बागी हो गई हो?’’

‘‘आप जो भी समझ लें. दरअसल मुझे यकीन है कि मुनीर ने यह जुर्म नहीं किया. मैं उन्हें कई सालों से जानती हूं. वह इस टाइप के इंसान नहीं हैं. किसी लड़की का अपहरण करना तो दूर की बात, वह किसी लड़की से खुल कर बात भी नहीं कर सकते. नर्वस हो जाते हैं.’’

‘‘मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर लेता हूं कि तुम मुनीर नवाज की मंगेतर हो, लेकिन मैं तुम्हें किसी के बारे में कुछ नहीं बता सकता.’’

‘‘मैं आप से कुछ पूछने नहीं आई.’’ उस ने कहा और अपने हैंडबैग से सौ-सौ के कुछ नोट निकाल कर मेरे सामने रख दिए, ‘‘मुझे मालूम था कि अभी तक आप को फीस अदा नहीं की गई. ये 12 सौ रुपए हैं. फिलहाल आप ये रख लें, बाकी रुपए अगले महीने ले कर आ जाऊंगी.’’

मैं ने नोटों की ओर हाथ नहीं बढ़ाया, ‘‘मेरा खयाल है कि मुनीर नवाज की मां इस बात को पसंद नहीं करेंगी.’’

‘‘मुझे मालूम है. आंटी बहुत भली औरत हैं. लेकिन आजकल उन के हालात ठीक नहीं हैं. उन के लिए आप की फीस अदा करना बहुत कठिन है. आप ये रुपए रख लें. अगर आंटी ने आप को फीस अदा कर दी तो मेरे रुपए वापस कर दीजिएगा.’’

मैं ने नोट उठा कर दराज में रख लिए. अचानक मुझे खयाल आया, ‘‘क्या मुनीर की खातिर थोड़ा सा काम कर सकती हो?’’

‘‘क्यों नहीं? अगर मेरे बस में हुआ तो जरूर करूंगी.’’

‘‘तुम ने अखबार में वारदात के बारे में तो जरूर पढ़ा होगा. यह जो लड़की कत्ल हुई है, मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती थी. मैं कुछ दिनों पहले उस की मां से मिला था. उस ने बताया था कि सनम के किसी लड़के के साथ संबंध थे. लड़का किसी अमीर घराने का था. सनम ने अपनी मां को उस का नाम भी बताया था, लेकिन वह भूल गई है. हो सकता है कि सनम के साथ पढ़ने वाली कोई लड़की उस लड़के के बारे में जानती हो. तुम उस की हमजमात लड़कियों से मिल कर इस बारे में पता करने की कोशिश करो. अगर उस लड़के का सुराग मिल गया तो शायद सनम के कत्ल का राज खुल जाए.’’

‘‘काम तो मुश्किल है, लेकिन मैं कोशिश करूंगी.’’ उस ने कहा.

मैं ने उसे अपना कार्ड दे दिया और कहा कि अगर उसे कोई बात मालूम हो तो मुझे फोन कर दे. 15 दिनों बाद उस का फोन आया. वह जोश में लग रही थी. उस ने उस लड़के के बारे में मालूम कर लिया था, जिस की सनम से दोस्ती थी. उस का नाम नजीब उल्लाह था. मैं ने उस का नामपता नोट कर लिया और अपनी पहली फुरसत में उस पते पर पहुंच गया.  वह खूबसूरत बंगला था. दाहिनी ओर गैराज में 2 कारें खड़ी थीं. मैं अपनी कार गेट से अंदर ले गया. एक वर्दी वाला चौकीदार जल्दी से आगे बढ़ा और उस ने मेरी कार का दरवाजा खोला.

‘‘नजीब उल्लाह साहब घर पर हैं?’’ मैं ने चौकीदार से पूछा.

‘‘मैं अभी पता करता हूं. आप का नाम क्या है?’’

‘‘अमजद बेग.’’

उस ने मुझे इंतजार करने को कहा और इमारत के अंदर चला गया. मैं इमारत की शानशौकत का जायजा लेने लगा. फिर मेरी नजर अचानक मर्सिडीज कार पर टिक गई. मुझे एक ऐसी चीज नजर आई, जिसे देख कर मैं चौंक गया. कार के बंपर पर हलका सा गड्ढा पड़ा हुआ था, जिस के कारण रंग उखड़ गया था. मैं ने पास जा कर उस हिस्से का मुआयना किया तो मेरा अंदाजा बिलकुल सही निकला. नीचे बादामी रंग का पेंट था, जो बाद में कराया गया था. मैं ने जेब से डायरी निकाली और कार का नंबर नोट कर लिया. इतने में चौकीदार वापस आ गया और मुझे अपने साथ ड्राइंगरूम में ले गया. वहां जो आदमी मेरे स्वागत के लिए मौजूद था, उसे देख कर मुझे एक बार फिर चौंकना पड़ा.

कदकाठी और शक्लसूरत से वह मुनीर नवाज का जुड़वा भाई लगता था. अगर दोनों को एक जैसा लिबास पहना दिया जाता तो पहचानना मुश्किल हो जाता. वह अय्याश आदमी लगता था यानी कातिल मेरे सामने था. अब उस से अपराध स्वीकार कराना मेरा काम था. मैं ने उस के साथ एक छोटा सा नाटक खेलने का निश्चय किया.

‘‘फरमाइए?’’ उस ने रुखाई से कहा.

‘‘मेरा नाम अमजद बेग है,’’ मैं ने गंभीरता से कहा ‘‘मिरजा अमजद बेग एडवोकेट.’’

वह मेरा जायजा लेता हुआ बोला, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘लेकिन मैं ने आप को पहली ही नजर में पहचान लिया है, क्योंकि सनम के खत के साथ आप की तसवीर भी थी.’’

‘‘सनम?’’ उस के चेहरे पर हलकी सी घबराहट जाहिर हो गई, ‘‘किस का खत, कैसी तसवीर?’’

उस ने अभी तक मुझे बैठने को नहीं कहा था. मैं ने जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाई और कहा, ‘‘कोई हमारी बातें सुन तो नहीं लेगा?’’

‘‘एक्टिंग न करो,’’ उस ने बेचैनी से कहा और वह आप से तुम पर आ गया, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं कुछ दिनों पहले अमेरिका से वापस आया हूं. वकालत की हायर एजूकेशन के लिए वहां गया था. यहां आ कर पता चला कि मेरी फुफेरी बहन कुछ समय पहले कत्ल हो गई थी. मेरे अमेरिका जाने से पहले वह फूफीजान, मेरा मतलब अपनी अम्मी के साथ हमारे घर आई थी और मुझे एक मोहरबंद खत दिया था, साथ ही यह ताकीद की थी कि इस खत को केवल उस की मौत की हालत में ही खोला जाए.

‘‘पहले तो मैं ने उस की बात को मजाक समझा था, लेकिन वह बहुत संजीदा थी, बल्कि मेरे मजाक पर बुरा मान गई थी. इसलिए मैं ने उसे खुश करने के लिए वह खत अपने लौकर में रख लिया था. अमेरिका से वापस आने के बाद जब मैं ने उस के कत्ल के बारे में सुना तो मेरा ध्यान फौरन उस के खत की ओर गया. मैं ने वह खत खोल कर पढ़ा तो उस में उस ने आप के साथ अपने प्रेम के बारे में लिखा था.

‘‘आखिर में लिखा था कि वह गर्भवती हो गई है, लेकिन आप शादी के मामले में हीलहुज्जत से काम ले रहे हैं. कभी कहते हैं कि मांबाप नहीं मानते तो कभी कहते हैं कि सिविल मैरिज कर लेंगे. खत में यह भी लिखा है कि अगर वह कत्ल हो गई या किसी हादसे में मारी गई तो आप उस की मौत के जिम्मेदार होंगे. उस खत में आप की तसवीर भी है, जिस पर सनम ने अपने हाथ से लिखा है—मेरा कातिल. कानूनन मुझे वह खत और तसवीर पुलिस के हवाले कर देनी चाहिए थी, लेकिन मैं ने आप के साथ बात कर लेना बेहतर समझा.’’

‘‘वह खत और तसवीर कहां है?’’

‘‘मेरे दफ्तर के अंदर तिजोरी में.’’

‘‘अब आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं यह देखना चाहता हूं कि आप अपनी जिंदगी की कितनी कीमत लगाते हैं?’’

‘‘आप की डिमांड क्या है?’’

‘‘5 लाख.’’

‘‘5 लाख! हुंह! जनाब मैं ने 50 हजार में पूरे थाने का मुंह बंद कर दिया था. उतने ही रुपए आप को भी दे सकता हूं. शायद आप को मालूम नहीं कि पुलिस मेरे एक हमशक्ल को गिरफ्तार कर के अपनी तफ्तीश पूरी कर चुकी है. मजहर हुसैन ने मुझे बताया है कि अदालत कुछ ही पेशियों के बाद सजा सुना देगी.’’

थोड़ी सी बहस के बाद मैं 60 हजार पर राजी हो गया. तय यह हुआ कि अगले दिन 12 बजे वह 60 हजार रुपए ले कर तयशुदा होटल में पहुंच जाएगा. मैं उसे खत और तसवीर दूंगा और वह रुपए मेरे हवाले कर देगा. अगले दिन मैं डीआईजी विजिलेंस से मिला और उन्हें हालात से अवगत कराया. साथ ही मैं ने उन से एक छापामार पार्टी बना कर देने को कहा. उन्होंने फौरन मेरी मांग मंजूर कर ली और एक छापामार पार्टी मेरे साथ कर दी. उन में एक मजिस्ट्रेट दर्जा अव्वल, एक डीएसपी और 3 सिपाही शामिल थे. ये पांचों लोग सादे लिबास में होटल के रेस्तरां की मेजों पर बैठ गए. 12 बज कर 5 मिनट पर नजीब उल्लाह होटल में दाखिल हुआ और सीधा मेरी मेज की ओर आया.

उस के हाथ में खाकी कागज में लिपटा हुआ एक पैकेट था, जिसे उस ने मेज पर रख दिया. फिर खत और तसवीर की मांग की. इतने में छापामार पार्टी के आदमी हमारी मेज के इर्दगिर्द खड़े हो गए और डीएसपी ने मेज पर रखा हुआ पैकेट उठा लिया. यह देख कर नजीब उल्लाह बुरी तरह घबरा गया. वह समझ गया कि उसे धोखे से फंसाया गया है. उस ने 2-3 बार बात करने की कोशिश की, लेकिन आवाज उस के गले में अटक गई. डीएसपी ने पैकेट फाड़ कर देखा तो उस में 100-100 के नोटों की 6 गड्डियां थीं. संयोग से वह मर्सिडीज कार में ही वहां आया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और कार कब्जे में ले ली.

अगले दिन डीआईजी ने इंसपेक्टर मजहर हुसैन को मुअत्तल कर लाइन हाजिर करने का आदेश दिया. इस बीच पुलिस ने नजीब उल्लाह को अदालत में पेश कर के 15 दिनों का रिमांड ले लिया. इस के साथ ही मैं ने मुनीर नवाज की जमानत की दरख्वास्त दे दी. जज साहब चूंकि सारी बात समझ गए थे, इसलिए जमानत मंजूर हो गई. जब मैं मुनीर को रिहा करवा कर जेल से बाहर निकला तो सायरा अपने भाई के साथ उस के स्वागत के लिए मौजूद थी. उस के चेहरे पर बेपनाह खुशी थी. मैं ने उन दोनों को कार में बिठाया और सीधा मुनीर के घर पहुंच गया. सबाहत बेगम ने जब अपने बेटे को घर के दरवाजे पर देखा तो कुछ मिनटों तक तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ. फिर उस ने जोर से सरोत को आवाज दी और दौड़ कर मुनीर से लिपट गई. सरोत बहुत घबराहट की हालत में अपने कमरे से बाहर आई. वह भी ‘भैया’ कह कर भाई से लिपट गई.

जब खुशी का यह तूफान थम गया तो सब लोग पहले मेरी ओर और फिर सायरा की ओर मुखातिब हुए. सायरा की वहां मौजूदगी का मतलब यह था कि टूटा हुआ रिश्ता फिर जुड़ गया था.

‘‘वकील साहब, आप का शुक्रिया अदा करने के लिए मेरे पास अल्फाज नहीं हैं.’’ सरोत ने कहा.

‘‘इस का मतलब यह है कि तुम्हारी जुबान बहुत कमजोर है,’’ मैं ने हंस कर कहा, ‘‘तुम हिंदी, अंगरेजी, उर्दू किसी भी जुबान में शुक्रिया अदा कर सकती हो. वैसे असल शुक्रिया की हकदार तो यह तुम्हारी होने वाली भाभी हैं.’’

‘‘आप बैठें न,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं आप के लिए चाय बनाती हूं…या आप कौफी पसंद करते हैं? वैसे कोल्डड्रिंक भी मिल जाएगी.’’

‘‘मेरा खयाल है कि फिलहाल तुम यह फैसला करो कि मुझे क्या पिलाना चाहती हो. मैं फिर कभी आ जाऊंगा. और हां, अम्मी को समझा देना कि केस तकरीबन खत्म हो गया है. सिर्फ कुछ रस्मी काररवाई अभी बाकी है.’’ True Crime Hindi

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...